सुंदर माझे घर: दीपेश ने कैसे दी पत्नी को श्रद्धांजलि

नीरा को प्रकृति से अत्यंत प्रेम था. यही कारण था कि जब दीपेश ने मकान बनाने का निर्णय लिया तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह फ्लैट नहीं, अपना स्वतंत्र घर चाहती है जिसे वह अपनी इच्छानुसार, वास्तुशास्त्र के नियमों के मुताबिक, बनवा सके. उस में छोटा सा बगीचा हो, तरहतरह के फूल हों. यदि संभव हो तो फल और सब्जियां भी लगाई जा सकें.

यद्यपि दीपेश को वास्तुशास्त्र में विश्वास नहीं था किंतु नीरा का वास्तुशास्त्र में घोर विश्वास था. उस का कहना था कि यदि इस में कोई सचाई न होती तो क्यों बड़ेबड़े लोग अपने घर और दफ्तर को बनवाने में वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते या कमी होने पर अच्छेभले घर में तोड़फोड़ कराते.

अपने कथन की सत्यता सिद्ध करने के लिए नीरा ने विभिन्न अखबारों की कतरनें ला कर उस के सामने रख दी थीं तथा इसी के साथ वास्तुशास्त्र पर लिखी एक पुस्तक को पढ़ कर सुनाने लगी. उस में लिखा था कि भारत में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर शतप्रतिशत वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए बनाया गया है. तभी उसे इतनी प्रसिद्धि मिली है तथा चढ़ावे के द्वारा वहां जितनी आय होती है उतनी शायद किसी अन्य मंदिर में नहीं होती.

हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड पंचतत्त्वों से बना है. जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि तथा आकाश के द्वारा हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा चरबी जैसे आंतरिक शक्तिवर्धक तत्त्व तथा गरमी, प्रकाश, वायु तथा ध्वनि द्वारा बाहरी शक्ति प्राप्त करता है परंतु जब इन तत्त्वों की समरसता बाधायुक्त हो जाए तो हमारी शक्तियां क्षीण हो जाती हैं. मन की शांति भंग होने के कारण खिंचाव, तनाव तथा अस्वस्थता बढ़ जाती है. तब हमें अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को एकाग्र हो कर निर्देशित करना पड़ता है ताकि इन में संतुलन स्थापित हो कर शरीर में स्वस्थता तथा प्रसन्नता और सफलता प्राप्त हो. इन 5 तत्त्वों का संतुलन ही वास्तुशास्त्र है.

दीपेश ने देखा कि नीरा एक पैराग्राफ कहीं से पढ़ रही थी तथा दूसरा कहीं से. जगहजगह उस ने निशान लगा रखे थे. वह आगे और पढ़ना चाह रही थी कि उन्होंने यह कह कर उसे रोक दिया कि घर तुम्हारा है, जैसे चाहे बनवाओ. लेकिन खुद घर बनवाने में काफी परिश्रम एवं धन की जरूरत होगी जबकि उतना ही बड़ा फ्लैट किसी अच्छी कालोनी में उतने ही पैसों में मिल जाएगा.

‘आप श्रम की चिंता मत करो. वह सब मैं कर लूंगी. हां, धन का प्रबंध अवश्य आप को करना है. वैसे, मैं बजट के अंदर ही काम पूरा कराने का प्रयत्न करूंगी, फिर यह भी कोई जरूरी नहीं है कि एकसाथ ही पूरा काम हो, बाद में भी सुविधानुसार दूसरे काम करवाए जा सकते हैं. अब आप ही बताओ, भला फ्लैट में इन सब नियमों का पालन कैसे हो सकता है. सो, मैं छोटा ही सही, लेकिन स्वतंत्र मकान चाहती हूं,’ दीपेश की सहमति पा कर वह गद्गद स्वर में कह उठी थी.

दीपेश ने नीरा की इच्छानुसार प्लौट खरीदा तथा मुहूर्त देख कर मकान बनाने का काम शुरू करवा दिया. मकान का डिजाइन नीरा ने वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए अपनी वास्तुकार मित्र से बनवाया था. प्लौट छोटा था, इसलिए सब की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डुप्लैक्स मकान का निर्माण करवाने की योजना थी. निरीक्षण के लिए उस के साथ कभीकभी दीपेश भी आ जाते थे.

तभी एक दिन सूर्य को डूबते देख कर नीरा भावविभोर हो कर कह उठी थी, ‘लोग तो सूर्यास्त देखने पता नहीं कहांकहां जाते हैं. देखो, कितना मनोहारी दृश्य है. हम यहां एक बरामदा अवश्य निकलवाएंगे जिस से चाय की चुस्कियों के साथ प्रकृति के इस मनोहारी स्वरूप का भी आनंद ले सकें.’

उस समय दीपेश को भी नीरा का स्वतंत्र बंगले का सु झाव अच्छा लगा था.नीरा की सालभर की मेहनत के बाद जब मकान बन कर तैयार हुआ तब सब बेहद खुश थे, खासतौर से, नितिन और रीना. उन को अलगअलग कमरे मिल रहे थे. कहां पर अपना पलंग रखेंगे, कहां उन की पढ़ने की मेज रखी जाएगी, सामान शिफ्ट करने से पहले ही उन की योजना बन गई थी.

अलग से पूजाघर,  दक्षिणपूर्व की ओर रसोईघर तथा अपना बैडरूम दक्षिण दिशा में बनवाया था क्योंकि उस के अनुसार पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के पूजा करने में मन को शांति मिलती है. वहीं, उस ओर मुंह कर के खाना बनाने से रसोई में स्वाद बढ़ता है तथा दक्षिण दिशा घर के मालिक के लिए उपयुक्त है क्योंकि इस में रहने वाले का पूरे घर में वर्चस्व रहता है. एक बार फिर मुहूर्त देख कर गृहप्रवेश कर लिया गया था.

सब अतिथियों के विदा होने के बाद रात्रि को सोने से पहले दीपेश ने नीरा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा था, ‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारी अथक मेहनत के कारण हमारा अपने घर का सपना साकार हो पाया है.’

‘अभी तो सिर्फ ईंटगारे से निर्मित घर ही बना है. अभी मु झे इसे वास्तव में घर बनाना है जिसे देख कर मैं गर्व से कह सकूं, ‘सुंदर मा झे घर,’ मेरा सुंदर घर. जहां प्यार, विश्वास और अपनत्व की सरिता बहती हो, जहां घर का प्रत्येक प्राणी सिर्फ रात बिताने या खाना खाने न आए बल्कि प्यार के अटूट बंधन में बंधा वह शीघ्र काम समाप्त कर के इस घर की छत की छाया के नीचे अपनों के बीच बैठ कर सुकून के पल ढूंढ़े,’ नीरा ने उस की ओर प्यारभरी नजरों से देखते हुए कहा था.

नीरा ने ईंटगारे की बनी उस इमारत को सचमुच घर में बदल दिया. उस के हाथ की बनाई पेंटिंग्स ने घर में उचित स्थानों पर जगह ले ली थी. दीवार के रंग से मेल खाते परदे, वौल हैंगिंग्स, लैंप आदि न केवल घर की मालकिन की रुचि का परिचय दे रहे थे, घर की शोभा को दोगुना भी कर रहे थे.

नीरा ने न केवल ड्राइंगरूम बल्कि बैडरूम और रसोईघर को भी सामान्य साजसामान की सहायता व अपनी कल्पनाशीलता से आधुनिक रूप दे दिया था, साथ ही, आगे बगीचे में उस ने गुलाब, गुलदाऊदी, गेंदा और रजनीगंधा आदि फूलों के पेड़ व घर के पीछे कुछ फलों के पेड़ और मौसमी सब्जियां भी लगाई थीं. अपने लगाए पेड़पौधों की देखभाल वह नवजात शिशु के समान करती थी. कब किसे कितनी खाद और पानी की जरूरत है, यह जानने के लिए उस ने बागबानी से संबंधित एक पुस्तक भी खरीद ली थी.

दीपेश कभीकभी घर सजानेसंवारने में पत्नी की मेहनत और लगन देख कर हैरान रह जाता था. एक बार वह साड़ी खरीदने के लिए मना कर देती थी लेकिन यदि उसे कोई सजावटी या घर के लिए उपयोगी सामान पसंद आ जाता तो वह उसे खरीदे बिना नहीं रह सकती थी.

नीरा की ‘मा झे सुंदर घर’ की कल्पना साकार हो उठी थी. धीरेधीरे एक वर्ष पूरा होने जा रहा था. वह इस अवसर को कुछ नए अंदाज से मनाना चाहती थी. इसीलिए घर में एक साधारण पार्टी का आयोजन किया गया था. घर को गुब्बारों और रंगबिरंगी पट्टियों से सजाया गया था. काम की हड़बड़ी में ऊपर के कमरे से नीचे उतरते समय नीरा का पैर साड़ी में उल झ गया और वह नीचे गिर गई. सिर में चोट आई थी लेकिन उस ने ध्यान नहीं दिया और पार्टी का मजा किरकिरा न हो जाए, यह सोच कर चुपचाप दर्द को  झेलती रही.

‘आज मैं बहुत थक गई हूं. अब सोना चाहती हूं,’ पार्टी समाप्त होने पर नीरा ने थके स्वर में दीपेश से कहा था.

‘अब आलतूफालतू काम करोगी तो थकोगी ही. भला इतना सब ताम झाम करने की क्या जरूरत थी?’ दीपेश ने सहज स्वर में कहा था. ऊपरी चोट के अभाव के कारण दीपेश ने नीरा के गिरने की घटना को गंभीरता से नहीं लिया था.

जब नीरा सुबह अपने समय पर नहीं उठी तब दीपेश को चिंता हुई. जा कर देखा तो पाया कि वह बेसुध पड़ी थी, चेहरे पर अजीब से भाव थे जैसे रातभर दर्द से तड़पती रही हो. दीपेश ने फौरन डाक्टर को बुला कर दिखाया. डाक्टर ने उसे शीघ्र ही अस्पताल में भरती कराने की सलाह देते हुए कहा कि गिरने के कारण सिर में अंदरूनी चोट आई है. ‘सिर की चोट को कभी भी हलके रूप में नहीं लेना चाहिए. कभीकभी साधारण चोट भी जानलेवा हो जाती है.’

डाक्टर की बात सच साबित हुई. लगभग 5 दिन जिंदगी और मौत के साए में  झूलने के बाद नीरा चिरनिद्रा में सो गई. सभी सगेसंबंधी, अड़ोसीपड़ोसी इस अप्रत्याशित मौत का समाचार सुन कर हक्कबक्के रह गए.

नीरा का अंतिम संस्कार करने के बाद दीपेश ने घर में प्रवेश किया तो उस के कुशल हाथों से सजासंवरा घर उसे मुंह चिढ़ाता प्रतीत हुआ. उस के लगाए पेड़पौधे कुछ ही दिनों में सूख गए थे. दीपेश सम झ नहीं पा रहा था कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने के बाद भी घर वीरान क्यों हो गया? उन के जीवन में तूफान क्यों आया? उस समय वह नितिन और रीना को अपनी गोद में छिपा कर खूब रोया. तब नन्ही रीना उस के आंसू पोंछती हुई बोली थी, ‘डैडी, ममा नहीं हैं तो क्या हुआ, उन की यादें तो हैं.’’

दीपेश ने बच्चों का मन रखने के लिए आंसू पोंछ डाले थे. लेकिन नीरा का चेहरा उन के हृदय पर ऐसा जम गया था कि उस को निकाल पाना उस के लिए संभव ही नहीं था. वह घर कैसा जहां खुशियां न हों, प्यार न हो, स्वप्न न हों.

दीपेश के मांपिताजी नहीं थे, सो, नीरा की मां ने आ कर उन की बिखरती गृहस्थी को फिर से समेटने का प्रयत्न किया था.

एक दिन सवेरे दीपेश का मन टटोलने के लिए मांजी ने कहा, ‘बेटा, जाने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता, फिर से घर बसा लो. बच्चों को मां व तुम्हें पत्नी मिल जाएगी. आखिर मैं कब तक साथ रहूंगी.’

‘पापा, आप नई मां ले आइए. हम उन के साथ रहेंगे,’ नन्हे नितिन, जो नानी की बात सुन रहा था, ने भोलेपन से कहा और उस की बात का समर्थन रीना ने भी कर दिया.

दीपेश सोच नहीं पा रहे थे कि बच्चे अपने मन से कह रहे हैं या मांजी ने उन के नन्हे मन में नई मां की चाह भर दी है. वह जानता था कि नीरा की यादों को वह अपने हृदय से कभी हटा नहीं सकता. फिर क्यों दूसरा विवाह कर वह उस लड़की के साथ अन्याय करे जो उस के साथ तरहतरह के स्वप्न संजोए इस घर में प्रवेश करेगी.

2 महीने बाद जाते हुए जब मांजी ने दोबारा दीपेश के सामने अपना सु झाव रखा तो वह एकाएक मना न कर सका. शायद इस की वजह यह थी कि रीना को अपनी नानी के साथ काम करते देख कर उस का मन बेहद आहत हो जाता था. कुछ ही दिनों में रीना बेहद बड़ी लगने लगी थी. उस की चंचलता कहीं खो गईर् थी. यही हाल नितिन का भी था. जो नितिन अपनी मां को इधरउधर दौड़ाए बिना खाना नहीं खाता था वही अब जो भी मिलता, बिना नानुकुर के खा लेता था.

बच्चों का परिवर्तित स्वभाव दीपेश को मन ही मन खाए जा रहा था. सो, मांजी के प्रस्ताव पर जब उन्होंने अपने मन की चिंता बताई तो वे बोली थीं, ‘बेटा, यह सच है कि तुम नीरा को भूल नहीं पाओगे. नीरा तुम्हारी पत्नी थी तो मेरी बेटी भी थी. जाने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता और न किसी के जाने से जीवन ही समाप्त हो जाता.’

दीपेश को मौन पा कर मांजी फिर बोलीं, ‘तुम कहो तो नंदिता से तुम्हारी बात चलाऊं. तुम तो जानते ही हो, नंदिता नीरा की मौसेरी बहन है. उस के पति का देहांत एक कार दुर्घटना में हो गया था. वह भी तुम्हारे समान ही अकेली है तथा स्त्री होने के साथसाथ एक बेटी अर्चना की मां होने के नाते वह तुम से भी ज्यादा मजबूर और बेसहारा है.’

मांजी की इच्छानुसार दीपेश ने घर बसा लिया था लेकिन फिर भी न जाने क्यों जिस घर पर कभी नीरा का एकाधिकार था उसी घर पर नंदिता का अधिकार होना वह सह नहीं पा रहा था.

नंदिता ने दीपेश को तो स्वीकार कर लिया लेकिन बच्चों को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वैसे, दीपेश भी क्या उस समय अर्चना को पिता का प्यार दे पाए थे. घर में एक अजीब सा असमंजस, अविश्वास की स्थिति पैदा हो गई थी. वह अपनी बच्ची को ले कर ज्यादा ही भावुक हो उठती थी.

नंदिता को लगता था, उस की बेटी को कोई प्यार नहीं करता है. घर में अशांति, अविश्वास, तनाव और खिंचाव देख कर बस एक बात उन के दिमाग को मथती रहती थी कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन कर बनाया यह घर प्रेम, ममता और अपनत्व का स्रोत क्यों नहीं बन पाया? आंतरिक और बाहरी शक्तियों में समरसता स्थापित क्यों नहीं हो पा रही है? क्यों उन की शक्तियां क्षीण हो रही हैं? उन में क्या कमी है? अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को निर्देशित कर उन में संतुलन स्थापित कर क्यों वे न स्वयं खुद रह पा रहे हैं और न दूसरों को खुश रख पा रहे हैं?

नई मां की अपने प्रति बेरुखी देख कर रीना और नितिन अपने में सिमट गए थे. लेकिन बड़ी होती अर्चना ने दिलों की दूरी को पाट दिया था. वह मां के बजाय रीना के हाथ से खाना खाना चाहती, उसी के साथसाथ सोना चाहती, उसी के साथ खेलना चाहती. रीना और नितिन की आंखों में अपने लिए प्यार और सम्मान देख कर नंदिता में भी परिवर्तन आने लगा था. बच्चों के निर्मल स्वभाव ने उस का दिल जीत लिया था या अर्चना को रीना और नितिन के साथ सहज, स्वाभाविक रूप में खेलता देख उस के मन का डर समाप्त हो गया था.

एक बार दीपेश को लगा था कि उन  के घर पर छाई दुखों की छाया हटने लगी है. रीना कालेज में आ गई थी तथा नितिन और अर्चना भी अपनीअपनी कक्षा में प्रथम आ रहे थे. तभी एक दिन नंदिता ऐसी सोई कि फिर उठ ही न सकी. पहले 2 बच्चे थे, अब 3 बच्चों की जिम्मेदारी थी. लेकिन फर्क इतना था कि पहले बच्चे छोटे थे, अब बड़े हो गए थे और अपनी देखभाल स्वयं कर सकते थे व अपना बुराभला सोच और सम झ सकते थे.

रीना ने घर का बोझ उठा लिया. अब दीपेश भी रीना के साथ रसोई तथा अन्य कामों में हाथ बंटाते तथा नितिन और अर्चना को भी अपनाअपना काम करने के लिए प्रेरित करते. घर की गाड़ी एक बार चल निकली थी, लेकिन इस बार के आघात ने उन्हें इतना एहसास करा दिया था कि दुखसुख के बीच में हिम्मत न हारना ही व्यक्ति की सब से बड़ी जीत है. वक्त किसी के लिए नहीं रुकता. जो वक्त के साथ चलता है वही जीवन के संग्राम में विजयी होता है.

इस एहसास और भावना ने दीपेश के अंदर के अवसाद को समाप्त कर दिया था. अब वे औफिस के बाद का सारा समय बच्चों के साथ बिताते या नीरा द्वारा बनाए बगीचे की साजसंभाल करते तथा उस से बचे समय में अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर उकेरते. कभी वे गीत बन कर प्रकट होतीं तो कभी कहानी बन कर.

शीघ्र ही उन की रचनाएं प्रतिष्ठित पत्रपत्रिकाओं में स्थान पाने लगी थीं. उन के जीवन को राह मिल गई थी. समय पर बच्चों के विवाह हो गए और वे अपनेअपने घरसंसार में रम गए. उन की लेखनी में अब परिपक्वता आ गई थी.

पेंट करवाने के लिए एक दिन दीपेश ने अपने कमरे की अलमारी खोली, तो कपड़े में लिपटी एक डायरी मिली. डायरी नीरा की थी. वे उसे खोल कर पढ़ने का लोभ छोड़ नहीं पाए. जैसेजैसे डायरी पढ़ते गए, नीरा का एक अलग ही स्वरूप उन के सामने आया था, एक कवयित्री का रूप. पूरी डायरी कविताओं से भरी पड़ी थी. एक कविता- ‘सुंदर मा झे घर’ की पंक्तियां थीं…

क्षितिज के उस पार की

सुखद सलोनी दुनिया को

लाना चाहती हूं…

एक सुंदर घर

बसाना चाहती हूं,

जहां तुम हो

जहां मैं हूं…

कविता लिखने की तिथि देखी तो विवाह की तिथि से एक माह बाद की थी. दीपेश ने पूरी डायरी पढ़ ली तथा उसी समय नीरा की कविताओं का संकलन करवाने का निश्चय कर लिया. एक महीने के अधिक परिश्रम के बाद दीपेश ने नीरा की चुनी हुई कविताओं को संकलित कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाने के लिए प्रकाशक को दे दी थीं.

अचानक बज उठी फोन की घंटी ने उन की विचार तंद्रा को भंग किया. नितिन का फोन था, ‘‘पापा, आप कैसे हैं? अपनी दवाइयां ठीक से लेते रहिएगा. आप हमारे पास आ जाइए. आप के अकेले रहने से हमें चिंता रहती है.’’

‘‘बेटा, मैं ठीक हूं. तुम चिंता मत किया करो. वैसे भी, मैं तुम से दूर कहां हूं जब भी इच्छा होगी, मैं आ जाऊंगा.’’

बच्चों की चिंता जायज थी. लेकिन वे इस घर को कैसे छोड़ कर जा सकते हैं जिस की एकएक वस्तु में खट्टीमीठी यादें दफन हैं, साथ गुजारे पलों का लेखाजोखा है. एकदो बार बच्चों के आग्रह पर दीपेश उन के साथ गए भी लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन के बरामदे से दिखते अनोखे सूर्यास्त की सुखदसलोनी लालिमा का आकर्षण उन्हें इस घर में खींच लाता था. वह उन की प्रेरणास्रोत थी. उसी से उन्होंने जीवनदर्शन पाया था कि जीवन भले ही समाप्त हो रहा हो लेकिन आस कभी नहीं खोनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक अवसान के बाद सुबह होती है और इसी सत्य पर इन की कितनी ही रचनाओं का जन्म यहीं इसी कुरसी पर बैठेबैठे हुआ था.

वह अंदर जाने के लिए मुड़े ही थे कि स्कूटर की आवाज ने उन्हें रोक लिया. प्रकाशक के आदमी ने उन के हाथ में पांडुलिपि देते हुए मुखपृष्ठ के लिए कुछ चित्र दिखाए. एक चित्र पर उन की आंखें ठहर गईं. घर के दरवाजे से निकलती औरत और नीचे कलात्मक अक्षरों में लिखा हुआ था… ‘सुंदर मा झे घर’.

चित्र को देख कर दीपेश को एकाएक लगा, मानो नीरा ही घर के दरवाजे पर उस के स्वागत के लिए खड़ी है. वह नीरा नहीं, बल्कि उस की कल्पना का ही मूर्तरूप था. दीपेश ने बिना किसी और चित्र को देखे उस चित्र के लिए अपनी स्वीकृति दे दी.

दीपेश जानते थे कि आने वाले कुछ दिन उस के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होंगे. पांडुलिपि का अध्ययन कर प्रकाशक को देना था. किसी विशिष्ट व्यक्ति से मिल कर विमोचन के लिए तारीख को साकार करने का उन का यह छोटा सा प्रयास भर ही तो था. शायद अपनी अर्धांगिनी को श्रद्धांजलि देने का इस से अच्छा सार्थक रूप और भला क्या हो सकता था.

विरक्ति: बूढ़े दंपति को कैसे हुआ एच.आई.वी.

लेखक- गोपाल काबरा

मैं उन से मिलने गया था. पैथोलाजी विभाग के अध्यक्ष और ब्लड बैंक के इंचार्ज डा. कांत खराब मूड में थे, विचलित और विरक्त.

‘‘सब बेमानी है, बकवास है. महज दिखावा और लफ्फाजी है,’’ माइक्रो- स्कोप में स्लाइड देखते हुए वह कहे जा रहे थे, ‘‘सोचता हूं सब छोड़छाड़ कर बच्चों के पास चला जाऊं. बहुत हो गया.’’

‘‘क्या हुआ, सर? क्या हो गया?’’ मैं ने पूछा तो कुछ क्षण चुपचाप माइक्रोस्कोप में देखते रहे, फिर बोले, ‘‘एच.आई.वी., एड्स… ऐसा शोर मचा रखा है जैसे देश में यही एक महामारी है.’’

‘‘सर, खूब फैल रही है. कहते हैं अगर रोकथाम नहीं की गई तो स्थिति भयानक हो जाएगी. महामारी…’’

मेरी बात बीच में ही काटते हुए डा. कांत तल्ख लहजे में बोले, ‘‘महामारी, रोकथाम. क्या रोकथाम कर रहे

हो. पांचसितारा होटल

में कानफ्रेंस, कंडोम वितरण. महामारी तो तुम लोगों के आडंबर और हिपोक्रेसी की है. बड़ी चिंता है लोगों की. इतनी ही चिंता है तो हिपे- टाइटिस बी. के बारे में क्यों नहीं कुछ करते. देश में महामारी हिपे टाइ-टिस बी. की है.

‘‘हजारों लोग हर साल मर रहे हैं, लाखों में संक्रमण है. यह भी तो वैसा ही रक्त प्रसारित, विषाणुजनित रोग है. इस की चिंता क्यों नहीं. असल में चिंता तो विदेशी पैसे और बिलगेट्स की है. एड्स उन की चिंता है तो हमारी चिंता भी है.’’

‘‘क्या हुआ, सर? आज तो आप बहुत नाराज हैं,’’ मैं बोला.

‘‘होना क्या है, तुम लोगों की बकवास सुनतेदेखते तंग आ गया हूं. एच.आई.वी., एड्स, दोनों का एकसाथ ऐसे प्रयोग करते हो जैसे संक्रमण न हुआ दालचावल की खिचड़ी हो गई. क्या दोनों एक ही बात हैं. क्या रोकथाम कर रहे हो? तुम्हें याद है यूनिवर्सिटी वाली उस महिला का केस?’’

‘‘कौन सी, सर? उस अविवाहित महिला का केस जिस ने रक्तदान किया था और जिस का ब्लड एच.आई.वी. पाजिटिव निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले.

‘‘उस को कैसे भूल सकते हैं, सर. गुस्से से आगबबूला हो रही थी. हम ने तो उसे गुडफेथ में बुला कर रिजल्ट बताया था वरना कानूनन एच.आई.वी. पोजि-टिव ब्लड को नष्ट करना भर लाजमी होता है. हमारा पेशेंट तो रक्त लेने वाला होता है, देने वाला तो स्वेच्छा से आता है. देने वाले में रोग निदान के लिए तो हम टेस्ट करते नहीं.’’

डा. कांत कुछ नहीं बोले, चुपचाप सुनते रहे.

‘‘वह महिला अविवाहित थी. उस के किसी से यौन संबंध नहीं थे. उस ने कभी रक्त नहीं लिया और न ही किसी प्रकार के इंजेक्शन आदि. इसीलिए तो हम ने उस की प्री टेस्ट काउंसिलिंग कर वेस्टर्न ब्लोट विधि से टेस्ट करवाने की सलाह दी थी. हम ने उसे बता दिया था कि जिस एलिसा विधि से हम टेस्ट करते हैं वह सेंसिटिव होती है, स्पेसिफिक नहीं. उस में फाल्स पाजिटिव होने के चांसेज होते हैं. सब तो समझा दिया था, सर. उस में हम ने क्या गलती की थी?’’

‘‘गलती की बात नहीं. इन टेस्टों के चलते उस महिला को जो मानसिक क्लेश हुआ उस के लिए कौन जिम्मेदार है?’’

‘‘सर, उस के लिए हम क्या कर सकते थे. जीव विज्ञान में कोई भी टेस्ट 100 प्रतिशत तो सही होता नहीं. हर टेस्ट की अपनी क्षमता होती है. हर टेस्ट में फाल्स पाजिटिव या फाल्स निगेटिव होने की संभावना

होती है. सेंसिटिव में फाल्स पाजिटिव और स्पेसिफिक में फाल्स निगेटिव.’’

‘‘बड़ी ज्ञान की बातें कर रहे हो,’’ डा. कांत बोले, ‘‘यह बात आम लोगों को समझाने की जिम्मेदारी किस की है? खुद को उस महिला की जगह, उस की समझ और सोच के हिसाब से रख कर देखो. उसे कितना संताप हुआ होगा. खैर, उसे छोड़ो. उस लड़के की बात करो जो अपनी लिम्फनोड की बायोप्सी ले कर आया था. उस का तो वेस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव आया था. वह तो कनफर्म्ड एच.आई.वी. पाजिटिव था. उस में क्या किया? क्या किया तुम ने रोकथाम के लिए?’’

‘‘वही जवान लड़का न सर, जिस की किसी बाहर के सर्जन ने गले की एक लिम्फनोड निकाल कर भिजवाई थी? जिस लड़के को कभीकभार बुखार, शरीर गिरागिरा रहना और वजन कम होने की शिकायत थी, पर सारे टेस्ट करवाने पर भी कोई रोग नहीं निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले, ‘‘याद है तुम्हें, वह बायोप्सी रक्त कैंसर की आरंभिक अवस्था न हो, इस का परीक्षण करवाने आया था. टेस्ट में रक्त कैंसर के लक्षण तो नहीं पाए गए थे, पर उस की लिम्फनोड में ऐसे माइक्रोस्कोपिक चेंजेज थे जो एच.आई.वी. पाजिटिव मामलों में देखने को मिलते हैं.’’

‘‘जी, सर याद है. उस की स्वीकृति ले कर ही हम ने उस का एच.आई.वी. टेस्ट किया था और वह पाजिटिव निकला था. उसे हम ने पाजिटिव टेस्ट के बारे में बताया था. उस की भी हम ने काउंसिलिंग की थी. किसी प्रकार के यौन संबंधों से उस ने इनकार किया था. रक्त लेने, इंजेक्शन, आपरेशन आदि किसी की भी तो हिस्ट्री नहीं थी. हम ने सब समझा कर नियमानुसार ही उसे वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट करवाने की सलाह दी थी.’’

‘‘नियमानुसार,’’ बड़े तल्ख लहजे में डा. कांत ने दोहराया, ‘‘जब उस ने आ कर बताया था कि उस का वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव है तब तुम ने नियमानुसार क्या किया था? याद है उस ने आ कर माफी मांगी थी. हम से झूठ बोलने के लिए माफी. उस ने बाद में बताया था कि उस की शादी हो चुकी है, गौना होना है. मंगेतर कालिज में पढ़ रही थी. उस ने यौन संबंध न होने का झूठ भी स्वीकारा था. उस ने कहा था वह और उस के कुछ दोस्त एक लड़की के यहां जाते थे, याद है?’’

‘‘जी, सर, अच्छी तरह याद है, भले घर का सीधासादा लड़का था. उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया था. बड़ा घबराया हुआ था. जानना चाहता था कि उस का क्या होगा. हम ने उस की पूरी पोस्ट टेस्ट काउंसिलिंग की थी. बता दिया था उसे, कैसे सुरक्षित जीवन जीना…’’

‘‘नियमानुसार जबानी जमाखर्च हुआ और एड्स की रोकथाम

की जिम्मेदारी

पूरी हो गई,’’

डा. कांत ने बीच में बात काटी.

‘‘और क्या कर सकते थे, सर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जिस लड़की के साथ उस का विवाह हो चुका था और गौना होना था उसे ढूंढ़ कर बताना आवश्यक नहीं था? उस के प्र्रति क्या तुम्हारा दायित्व नहीं था? तुम कौन सा वह केस बता रहे थे जिस में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि अगर आप का कोई रोगी एच.आई.वी. या ऐसे ही किसी संक्रमण से ग्रसित है और वह किसी व्यक्ति को संक्रमण फैला सकता है तो ऐसे व्यक्ति को इस खतरे के बारे में न बताने पर डाक्टर को दोषी माना जाएगा. अगर उस चिह्नित रोगी व्यक्ति को संक्रमण हो जाए तो उस डाक्टर के खिलाफ फौजदारी की काररवाई भी हो सकती है.’’

‘‘जी सर, डा. एक्स बनाम अस्पताल एक्स नाम का मामला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, वही, अजीब नाम था केस का,’’ डा. कांत ने कहना जारी रखा, ‘‘लिम्फनोड वाले लड़के ने अपने दोस्तों के बारे में बताया था. क्या उन दोस्तों को पहचान कर उन का भी एच.आई.वी. टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? क्या उस लड़की या वेश्या, जिस के यहां वे जाते थे उसे पहचानना, उस का टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? एड्स की रोकथाम के लिए क्या उसे पेशे से हटाना जरूरी नहीं था?’’

‘‘जरूरी तो था, सर, पर नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, और न ही ऐसी कोई व्यवस्था है जिस से हम यह सब कर सकें,’’ मैं ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तो फिर एड्स की रोकथाम क्या खाक करोगे. बेकार के ढकोसले क्यों करते हो? जो एच.आई.वी. पाजिटिव है उसे बताने की क्या आवश्यकता है. उसे जीने दो अपनी जिंदगी. जब एच.आई.वी. पाजिटिव व्यक्ति एड्स का रोगी हो कर आए तब जो करना हो वह करना.’’

‘‘लेकिन सर,’’ मैं ने कहना शुरू किया तो डा. कांत ने फिर बीच में ही टोक दिया.

‘‘लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि एच.आई.वी. संक्रमण, वेश्या के पास जाने या यौन संबंधों से ही नहीं, किसी शरीफ आदमी और महिला को चिकित्सा प्रक्रिया से भी हो सकता है,’’ वह बोले.

‘‘हां, सर, एच.आई.वी. संक्रमण होने के तुरंत बाद जिसे हम विंडो पीरियड कहते हैं, ब्लड टेस्ट पाजिटिव नहीं आता. लेकिन ऐसा व्यक्ति अगर रक्तदान करे तो उस से रक्त पाने वाले को संक्रमण हो सकता है.’’

सुन कर डा. कांत बोले, ‘‘मैं इस चिकित्सा प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा. ऐसा न हो उस के पूरे प्रयास किए जाते हैं, जिस केस को ले कर मुझे ग्लानि विरक्ति और अपनेआप को दोषी मान कर क्षोभ हो रहा है और जिसे ले कर मैं सबकुछ छोड़ने की बात कर रहा हूं, वह कुछ और ही है.’’

मैं कुछ बोला नहीं. चुपचाप उन के बताने का इंतजार करता रहा. अवश्य ही कोई खास बात होगी जिस ने डा. कांत जैसे वरिष्ठ चिकित्सक को इतना विचलित कर दिया कि वह सबकुछ छोड़ने की सोच रहे हैं.

काफी देर चुप रहने के बाद बड़ी संजीदगी से लरजती आवाज में वह बोले, ‘‘कल देर रात घर आए थे, मियांबीवी दोनों. काफी बुजुर्ग हैं. रिटायर हुए भी 15 साल हो चुके हैं. बेटेपोतों के भरे परिवार के साथ रहते हैं.

‘‘कहने लगे, दोनों सोच रहे हैं कहीं जा कर चुपके से आत्महत्या कर लें क्योंकि एच.आई.वी पाजिटिव होना बता कर मैं ने उन्हें किसी लायक नहीं रखा है. मैं ने उन्हें किसलिए बताया कि वे एच.आई.वी. पाजिटिव हैं. उन दोनों का किसी से यौन संबंध नहीं हो सकता और न ही रक्तदान करने की उन की उम्र है. फिर उन से संक्रमण होने का किसे खतरा था जो मैं ने उन्हें एच.आई.वी. पाजिटिव होने के बारे में बताया? जब एच.आई.वी. का निदान कर कुछ किया ही नहीं जा सकता तो फिर बताया किसलिए? वे कैसे सहन करेंगे, अपने बच्चों, पोतों का बदला हुआ रुख जब उन्हें मालूम होगा. उन को संक्रमण का कोई खतरा नहीं है पर अज्ञात का भय, जब बच्चे उन के पास आने से कतराएंगे. कहने लगे, उचित यही होगा कि नींद की गोलियां खा कर जीवन समाप्त कर लें.’’

कहतेकहते डा. कांत चुप हो गए तो मैं ने कहा, ‘‘सर, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. एड्स संक्रमण ऐसे तो होता नहीं. जब संक्रमण हुआ है तो उसे भुगतना और फेस भी करना ही होगा.’’

जवाब में डा. कांत ने कहा, ‘‘मेरी भी समझ में नहीं आया था कि उन्हें संक्रमण हुआ कैसे. मैं उन्हें अरसे से बहुत नजदीक से जानता हूं. घनिष्ठ घरेलू संबंध हैं. बड़ा साफसुथरा जीवन रहा है उन का. किसी प्रकार के बाहरी यौन संबंधों का सवाल ही नहीं उठता और उन का विश्वास करने का भी कोई कारण नहीं.

‘‘जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था कि जिस से चाहेअनचाहे एच.आई.वी. संक्रमण हो सकता. सब पूछा था, काफी चर्चा हुई. वे बारबार मुझ से ही पूछते थे कि फिर कैसे हो गया संक्रमण. अंत में उन्होंने मुझे बताया कि वे डायबिटीज के रोगी अवश्य हैं. उन्हें इंसुलिन या अन्य इंजेक्शन तो कभी लेने नहीं पड़े पर वे नियमित रूप से टेस्ट करवाने एक प्राइवेट लैब में जाते थे. उन्होंने बताया, उस लैब में उंगली से ब्लड एक प्लंजर से लेते थे. दूसरे रोगियों में भी वही प्लंजर काम में लिया जाता था.

‘‘क्या उस से उन को संक्रमण हुआ है, क्योंकि इस के अलावा तो उन्होंने कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिए. जब मैं ने बताया कि यह संभव है तो उन्होंने कहा कि इस लैब के खिलाफ काररवाई क्यों नहीं करते? लैब को ऐसा करने से रोका क्यों नहीं गया? जो उन्हें हुआ है वह दूसरे मासूम लोगों को भी हो सकता है या हुआ होगा.’’

कुछ पल शांत रह कर वह फिर बोले, ‘‘और मैं सोच रहा था कि आत्महत्या उन्हें करनी चाहिए या मुझे? क्या लाभ है ऐसे रोगों का निदान करने में जिन का इलाज नहीं कर सकते और जिन की रोकथाम हम करते नहीं. महज ऐसे रोेगियों का जीना दुश्वार करने से लाभ? क्या सोचते होंगे वे लोग जिन का निदान कर मैं ने जीना दूभर कर दिया?’’

हौसले की उड़ान : बदनामी की धार सिर्फ स्त्री के लिए ही क्यों है?

Writer-  रेखा भारती मिश्रा

सुमन  दोपहर का खाना बना रही थी. उस की सास बिट्टो को ले कर हौल में बैठी थी. हौल में बिट्टो के खिलौने बिखरे पड़े थे. बिट्टो सुमन की डेढ़ वर्षीय बेटी थी. सुमन की शादी को अभी 3 साल हीं हुए थे.

सुमन उसे याद है अमन ने उस को एक बार देखा और पसंद कर लिया था. परिवार वाले भी सुमन को बहू बनाने को तैयार थे. लेकिन जब लेनदेन की बात आई तो सुमन के पिता ने हाथ जोड़ लिए और बोले, ‘‘रिटायर आदमी हूं, क्लर्क की नौकरी करता था. ऐसे में भला कहां से मोटी रकम जुटा पाऊंगा. बरात के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा. जो भी जमा किया पैसा है उसी में खर्च हो जाएगा. मैं दहेज नहीं दे पाऊंगा समधीजी.’’

अमन के परिवार वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन अमन की जिद्द के आगे किसी की नहीं चली, ‘‘हमारे पास किसी चीज की कमी नहीं तो फिर दहेज की मोटी रकम के नाम पर सुमन जैसी लड़की को छोड़ना कितना उचित है? मु?ो सुमन बहुत पसंद है, मेरी शादी यहीं होगी,’’ और फिर उन की शादी हो गई.

अमन के पिता का कपड़ों का व्यवसाय था. सुपर मार्केट में उन की कपड़ों की एक बड़ी दुकान थी जहां अमन, उस का भाई और पिता तीनों बैठते थे. अमन भाई के साथ दोपहर का खाना खाने घर आता था और खाने के बाद

दुकान चला जाता. तब उस के बाद पिताजी आते और खा कर 2 घंटे आराम और फिर शाम में दुकान जाते थे.

रोज की भांति आज भी अमन अपने भाई को ले कर बाइक से घर लौट रहा था. तभी रास्ते में एक टैंपो वाले ने तेजी से बढ़ते हुए जोर का धक्का मारा जिस से अमन का बैलेंस लड़खड़ाया और वह टप्पा खाते हुए एक दूसरी कार पर जा गिरा. अमन का भाई भी दूसरी तरफ जा गिरा और सड़क पर भीड़ लग गई. घर वालों को जैसे ही सूचना मिली वे बदहवास भागे. अमन को गहरी चोटें आई थीं. उस के भाई को भी फै्रक्चर हो गया था मगर उस की जान बचा ली गई. इधर अमन को डाक्टर नहीं बचा पाए.

घर में मातम ने डेरा डाल दिया था. सुमन की तो दुनिया ही उजड़ गई. लेकिन उस के दुखों का सिलसिला शायद अब शुरू हुआ था. अमन को गुजरे अभी महीना भी नहीं हुआ था कि घर वालों ने सुमन को अपने साथ रखने से इनकार कर दिया.

वह मानसिक यातना ?ोलने लगी. वह कोशिश कर रही थी कि दृढ़ हो कर रहे मगर अमन के विछोह से कमजोर पड़ी सुमन घर वालों के प्रतिकूल व्यवहार से टूट रही थी.

वृद्ध पिता से सुमन का दुख देखा नहीं जा रहा था. उन्होंने सुमन को मायके बुला लिया. हालांकि सुमन  जाना नहीं चाहती थी. उसे एहसास था कि यहां से जाते हीं ससुराल वालों के मन की  बात हो जाएगी. फिर भी बिट्टो को देखते हुए वह भी मायके जाने को तैयार हो गई.

पिता ने भी सम?ाया, ‘‘अभी जख्म ताजा हैं, उन्हें भरने में समय लगेगा. तुम अपनी हालत को देखो. यदि तुम लड़खड़ा जाओगी तो बिट्टो को कौन संभालेगा? एक दिन सब ठीक हो जाएगा. इसलिए कुछ दिन यहीं हमारे साथ रहो.’’

सुमन बिट्टो को ले कर मायके आ गई. मायके में मां भले ही नहीं थीं मगर पिता ने सुमन को भरपूर सहारा दिया. अपने शब्दों से उसे मजबूत करते रहते. धीरेधीरे सुमन गम से निकलने की कोशिश करने लगी. उस का अधिकांश समय बिट्टो और वृद्ध पिता के साथ बीतता. घर के कामों में भी भाभी को भरपूर सहयोग देती

मगर भाभी को सुमन से कोई खास लगाव नहीं था. सुमन को मायके में रहते हुए कुछ महीने हो गए लेकिन ससुराल वाले उस की खोजखबर नहीं लेते. वह यदाकदा फोन करती भी तो ससुराल के लोग नंबर देख कर ही कौल काट देते. यहां तक कि सुमन के मायके से किसी का भी फोन जाता तो वे लोग बात नहीं करते. अब सुमन का ससुराल वालों से कोई रिश्ता नहीं रह गया था.

सुमन का भाई एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी पोस्ट पर काम करता था. तनख्वाह भी अच्छीखासी थी. मगर फिर भी उस की भाभी पैसों की तंगी का रोना रोती रहती. पिताजी की पैंशन भी उन्हीं लोगों के हाथ रहती.  पिताजी की सारी जरूरतें उन की पैंशन से पूरी कर दी जातीं. फिर बची रकम घर खर्च में लगा देते हैं. सुमन और बिट्टो वहां बस अपने दिन गुजार रहे थे.

बिट्टो की भी जरूरतें बढ़ रही थीं. आखिर कब तक सुमन इधरउधर हाथ पसारती. पिता की अवस्था देख कर सुमन भैयाभाभी के व्यवहार के बारे में कुछ नहीं कहती. वह अपने पिता को किसी भी प्रकार से दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए वह एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करने लगी. उस ने स्कूल जाना शुरू कर दिया मगर बिट्टो को उस की भाभी संभालने को तैयार नहीं हुई. पिता के पास चाह कर भी नहीं छोड़ सकती थी. अब इस उम्र में वे कहां इस बच्ची के पीछे भागते. सुमन बिट्टो को अपने साथ ले कर जाने लगी. वहां स्कूल स्टाफ, सहायिका आदि हाथोंहाथ बच्चे को संभाल लेते. बिट्टो नन्हेनन्हे पैरों से इधरउधर भागती, खेलती.

सुमन अपने काम और बिट्टो में उल?ा कर कुछ सुकून के पल तलाशने में कामयाब होने लगी लेकिन कालचक्र से सुमन का यह सुकून देखा नहीं गया. समय ने करवट बदली. सुमन के पिता को टाइफाइड हो गया जिस में वे गंभीर इन्फैक्शन के शिकार हो गए. इलाज हो रहा था लेकिन बीमारी बढ़ती जा रही थी. उन का वृद्ध शरीर बीमारी के कारण और भी जर्जर हो गया. एक दिन वे इस दुनिया से विदा हो गए. पीछे छूट गया सुमन और बिट्टो का उल?ा जीवन.

मायके में पिता ही मजबूत सहारा थे जिस से सुमन मुश्किल भरे दिनों में भी टिकी हुई थी. अब तो भैयाभाभी पर वह पूरी बो?ा ही लग रही थी, ‘‘अब हम अपनी गृहस्थी देखे या सुमन का जीवन. हमारे बच्चों की तो इस महंगाई में बहुत मुश्किल से कुछ जरूरतें पूरी हो पाती हैं. फिर इस बिट्टो का भार कौन उठाएगा. पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह,’’ भाभी ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘हम आप पर बो?ा कहां हैं. मैं स्कूल में पढ़ाती हूं और अपना खर्च निकाल लेती हूं,’’ बोलते हुए सुमन की आवाज में दर्द था.

‘‘अपना रोज का खर्च ही तो निकालती हो. उस के अलावा भी तो कई खर्चे हैं जो हमें चलाने पड़ते हैं. रहने का, खाने का, त्योहारों में कपड़े, उपहार देने का.’’

भाभी की बातों ने सुमन को बहुत ही आहत किया. भैया की चुप्पी में सुमन को भाभी के लिए उन का मौन समर्थन नजर आया. सुमन ने मंथन किया. उसे महसूस हुआ कि छोटेमोटे खर्चे के लिए चंद रुपए कमाने से कुछ नहीं होगा. अब उसे अपनी और बिट्टो की जिंदगी को सुरक्षित करना होगा. वह एक वकील से मिली और फिर ससुराल में अपनी हिस्सेदारी के लिए कोर्ट में एक अपील दायर करवाई. सुमन ने अर्जी तो लगा दी मगर उस पर फैसला आना इतना आसान नहीं था. एक तो वैसे ही कोर्ट में न जाने कितने मामले लंबित पड़े थे. ऊपर से सुमन के ससुराल वाले पैसे का लेनदेन कर के मैनेज कर लेते और अपने वकील से तारीख बढ़वा देते. इस तरह सुमन को ससुराल से इतनी आसानी से कुछ मिलने वाला नहीं था.

इधर भाभी का व्यवहार सुमन को टीसता रहता. एक दिन भाभी ने सुमन को शादी करने की सलाह दी.

‘‘भाभी,’’ मैं दूसरी बार दुलहन बनने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हूं. मैं फिलहाल सिर्फ और सिर्फ बिट्टो की मां बन कर जीना चाहती हूं.’’

‘‘दूसरी शादी करने में भला बुराई ही क्या है? भरी जवानी में यों घूमना और अकेले रहना… तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा मगर यह समाज हम पर ताने कसेगा कि जवान ननद के जीवन के बारे में कुछ नहीं सोचा. ऊपर से कल को हम ने अपने बच्चों का भी तो रिश्ता करना है. तुम्हारी शादी नहीं होगी तो उन का भविष्य प्रभावित होगा,’’ भाभी ने फिर शब्दों के तीर छोड़े.

‘‘लेकिन मेरी शादी से उन के भविष्य का क्या संबंध और वैसे भी समाज क्या कहेगा, मैं कुंआरी नहीं विधवा हूं और जीने के लिए एक सहारा ही काफी है बिट्टो.’’

‘‘एक जवान महिला आखिर कब तक अकेले रहेगी. समाज ऐसी महिलाओं के चरित्र को गलत नजर से देखता है,’’ भाभी ने कटाक्ष भरे लहजे में कहा.

यह बात सुमन को भीतर तक चुभ गई मगर खुद को संयमित रखते हुए बोली, ‘‘मैं ऐसे समाज या लोगों की परवाह नहीं करती और वैसे भी जब किसी के पास औरत से जीतने के तरीके नहीं होते तो वे स्त्री के चरित्र पर हीं छींटाकशी करने का हथकंडा अपनाते हैं,’’ यह कहते हुए सुमन वहां से चली गई.

मगर बात यहीं पर खत्म नहीं हुई. सुमन की भाभी किसी भी तरह से उस की शादी करवाने में लगी रहती. इस के लिए वह अपने पति की भी रजामंदी ले लेती. अब सुमन के भैया भी उस पर शादी कर लेने का दबाव डालते हैं. वे बिट्टो की अच्छी परवरिश का हवाला देते.

दबावों से घिरी सुमन दूसरी शादी के लिए तैयार हो गई. सुमन की भाभी अपने मायके में एक दूर के रिश्तेदार के यहां उस की शादी करवाना चाहती थी. वह व्यक्ति विधुर था. उस के 2 बच्चे थे 1 लड़का और 1 लड़की. बहुत मुश्किल से सुमन हामी भर पाई. सोचा चलो बिट्टो को खेलने के लिए 2 दोस्त मिल जाएंगे और वह भी शायद 3 बच्चों के बीच अपने दुख को ढक कर मुसकराहट के पलों को संवार पाएगी. मगर शादी के बाद वे लोग बिट्टो को अपनाने को तैयार नहीं थे. उन लोगों ने सिर्फ सुमन को ही अपनाने की बात बताई.

यह सुन कर सुमन काफी नाराज हो गई और शादी करने से इनकार कर दिया.

‘‘बिट्टो को नहीं अपना रहे हैं तो क्या तुम्हें तो बहू बना कर पूरा मान देने को तैयार हैं न. बड़े घर में जा रही हो. किसी चीज की कमी नहीं है वहां,’’ भाभी ?ाल्ला कर बोली.

‘‘सब से बड़ी कमी तो मेरी बिट्टो की होगी भाभी. मैं बिट्टो को नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘अरे छोड़ना क्या है, बिट्टो को किसी अनाथाश्रम में रखवा देते हैं. वहां जा कर कभीकभी अपनी बेटी से मिल लिया करना.’’

‘‘भाभी,’’ सुमन गुस्से से बोली, ‘‘आप सोच भी कैसे सकती है कि मेरी बिट्टो अनाथाश्रम में रहेगी. माना कि उस के सिर पर पिता का हाथ नहीं है मगर उस की मां जीवित है. मेरी बिट्टो अनाथ नहीं है.’’

‘‘ठीक है, जो मन में आए वह करो लेकिन हम से किसी प्रकार की मदद की उम्मीद नहीं करना. अपनी व्यवस्था खुद देख लो,’’ भाभी ने दोटूक जवाब दिया.

सुमन की अपनी भाभी से जोरदार बहस हुई. वह एक बार फिर से दुख की गहराई में उतर रही थी. उसे अपने जीवन में चारों तरफ अंधकार ही अंधकार नजर आ रहा था. मगर उसे बिट्टो के लिए उजाला लाना था. खुशियों के लमहे समेटने थे.

अत: उस ने स्वयं को कठोर बनाना बेहतर सम?ा. उसे आभास हो रहा था कि यदि इस पल वह कमजोर हो गई तो वह रौंद दी जाएगी. उस का अस्तित्व हाशिए पर चला जाएगा और बिट्टो बिट्टो का क्या होगा.

इसी द्वंद्व के बीच रात गुजर गई. सुबह हुई तो भैया ने सुमन को भाभी से माफी मांगने के लिए कहा लेकिन सुमन ने माफी मांगने से इनकार कर दिया और स्पष्ट जवाब दिया, ‘‘मेरा फैसला है कि मैं वहां शादी नहीं करूंगी और हां जब तक मेरी कोई ठोस व्यवस्था न हो जाए या लाइफ सिक्योर न हो जाए तब तक मैं यहां से जाने वाली भी नहीं. मत भूलो, मायके में मेरा भी अधिकार है,’’ कह कर सुमन तैयार हो बिट्टो को ले कर स्कूल चली गई.

इधर सुमन की बातें सुन कर भैयाभाभी दंग थे.

सुमन स्कूल तो आ गई लेकिन आज उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह खुद को सहज दिखाने की भरपूर कोशिश कर रही थी मगर उस के चेहरे के भाव और माथे पर खिंचती लकीरें उस की असहजता का एहसास करा रही थीं जिन्हें पुलकित आसानी से देख रहा था. पुलकित उस स्कूल में संगीत शिक्षक था और सुमन के साथ उस की अच्छी निभती थी.

‘‘क्या बात है सुमन, आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हो?’’

‘‘नहीं तो,’’ सुमन ने खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश की.

‘‘लेकिन मु?ो एहसास है तुम्हारी परेशानी का. मु?ो सिर्फ कलीग नहीं अपना हमदर्द भी सम?ा,’’ कहते हुए पुलकित ने सुमन के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

पुलकित के हाथ के स्पर्श ने सुमन को अपनेपन का एहसास कराया. वह चाहती तो अपने हाथों को खींच सकती थी मगर ऐसा कर न सकी. एक लंबी सांस खींचते हुए उस ने अपनी बातें पुलकित को बता दीं.

‘‘तुम्हारी परिस्थितियां विकट होती जा रही हैं. तुम्हें ससुराल वालों के साथसाथ अपने मायके वालों से भी संघर्ष करना पड़ रहा है. मु?ो डर है कि कहीं विचलित हो कर तुम कोई गलत कदम न उठा लो.’’

‘‘नहीं पुलकित, मु?ो बिट्टो की फिक्र है और मैं इस मासूम के जीवन को सुंदर बनाना चाहती हूं इसलिए खुद को सुदृढ़ रखना जरूरी है.’’

सुमन के शब्द और आंखें एकदूसरे से मेल नहीं खा रहे थे. शब्द दृढ़ता की बात कर रहे थे मगर आंखों की नमी उस की तकलीफ का स्तर बता रही थी.

पुलकित आगे कुछ बोलना नहीं चाह रहा था. सुमन के मन को बदलने के खयाल से उस

ने सुमन को अपने घर चाय पर आने को कहा. सुमन मना नहीं कर सकी और स्कूल की छुट्टी होने पर बिट्टो को ले कर पुलकित के साथ उस

के घर चली गई. पुलकित सुमन के लिए कुछ खाने की व्यवस्था करना चाह रहा था मगर उस

ने मना कर दिया. बिट्टो को बिस्कुट, टौफी दे

कर पुलकित 2 कौफी बना कर ले आया. कौफी पीते हुए दोनों के बीच सामान्य बातें होती रहीं. इस सहज माहौल में सुमन को सुकून की मिठास घुली नजर आ रही थी. अचानक वक्त का ध्यान आया तो सुमन वापस घर के लिए वहां से निकल गई.

पुलकित के घर से निकलते समय सुमन को एक व्यक्ति ने देखा जो उस की ससुराल से परिचित था. उस व्यक्ति ने सुमन के ससुराल वालों को यह बात गलत तरीके से बताई जिस के कारण लोग सुमन के चरित्र पर शक करने लगे.

सुमन का संघर्ष मायके और ससुराल दोनों तरफ के लोगों से बढ़ रहा था. इधर पुलकित का स्नेहिल साथ सुमन को तपती धूप में शीतल छांव की भांति राहत भी देने लगा था. वह जब भी बहुत परेशान या तनावग्रस्त होती तो पुलकित के साथ बैठ कर कुछ मन हलका कर लेती. ससुराल वालों ने सुमन के चरित्र पर आक्षेप लगाना भी शुरू कर दिया. उन की कोशिश थी कि सुमन को बदनामी के गर्त में इतना धकेल दिया जाए कि वह फिर सामने आ कर यहां अपना अधिकार न मांग सके.

बात उड़तेउड़ते सुमन के मायके तक भी पहुंच चुकी थी. आसपास के लोगों में सुमन को ले कर कानाफूसी होने लगी.

इधर भाभी की कर्कशता भी बढ़ गई, ‘‘अब सम?ा में आया कि शादी से इनकार क्यों कर रही थी, इसे तो कुंआरा छैलछबीला रास आया. फांस लिया उसे अपने रूपजाल में.’’

‘‘यह क्या बोल रही हो भाभी? एक स्त्री हो कर दूसरी स्त्री पर गलत आक्षेप लगाना कहां तक जायज है?’’

‘‘आक्षेप,’’ उस संगीत मास्टर के साथ जो प्रेम राग अलाप रही हो न उस से समाज में हमारी नाक कट गई है. अरे तेरी छोड़, अब तो हमें चिंता है कि कल हमारे बच्चों के रिश्ते कैसे तय होंगे?’’

‘‘समाज, समाज तो अकसर स्त्रियों के लिए पंच बन कर तैयार बैठा रहता है. बस उसे थोड़ा सा भी मौका मिले की स्त्री को कुलटा और चरित्रहीन दिखाने में लग जाता है लेकिन यह भी सच है कि इसी समाज में कुछ अच्छे लोग भी होते हैं जो महिलाओं को चरित्र प्रमाणपत्र बांटने के बदले उन के सहयोगी और संबल बनने का प्रयास करते हैं. पुलकित भी उन्हीं में से एक है,’’ सुमन भी भाभी को करारा जवाब दिया.

बात पुलकित तक भी पहुंच गई. स्कूल में सुमन से वह संकोच भरी नजरों से मिलता है. मगर उस की आंखों में सुमन के लिए स्नेह कम भी नहीं हुआ. स्टाफरूम में थोड़ी चुप्पी के बाद उस ने बोलने की हिम्मत जुटाई, ‘‘सौरी सुमन, मु?ो नहीं मालूम था कि तुम्हें खुशी और सुकून देने की कोशिश में हमारी यों बदनामी हो जाएगी.’’

‘‘सौरी मत बोलो पुलकित, तुम ने कुछ भी गलत नहीं किया. गलत तो लोगों की नजरें हैं जो तुम्हारे पवित्र स्नेह को दैहिक प्रेम समझ रही हैं.’’

‘‘सुमन, मैं तुम्हारे मन की नहीं जानता लेकिन यदि तुम्हारी सहमति हो तो हम आजीवन एकदूसरे का संबल बन सकते हैं.’’

पुलकित द्वारा अचानक बोली गई यह

बात सुमन को आश्चर्य में डाल गई, ‘‘मतलब तुम्हारे मन में… ओह मैं तो सोच भी नहीं पाई थी. तुम अफवाह को हकीकत बनाने की कोशिश कर रहे हो.’’

‘‘तुम गलत न सम?ा सुमन. मैं तुम्हारे हर फैसले का सम्मान करूंगा. तुम्हारे ऊपर मैं भावनात्मक दबाव नहीं डाल रहा. बस अपने मन की साझा कर रहा हूं. तुम्हें पीड़ा से उबारना चाहता हूं.’’

‘‘पीड़ा, पीड़ा तो हम जैसी महिलाओं की शक्ति होती है. हम वेदना से टूटते नहीं जू?ाते हैं. आलोचना का श्रंगार कर खुद को स्थापित करते हैं.’’

थोड़ा रुक कर एक लंबी सांस खींच सुमन ने आगे कहा, ‘‘अभी कुछ नहीं कह सकती मु?ो थोड़ा वक्त दो.’’

सुमन घर लौट आई. बीच में शनिवाररविवार की छुट्टी थी. वह न तो पुलकित से मिली और न ही बात की मगर उस के शब्द सुमन के साथ थे. इधर घर में लोगों के ताने उधर ससुराल पक्ष से कई तरह के ?ाठे आरोप, किसकिस को जवाब दे, वह सोचने लगी कि इज्जत का गहना, बदनामी की धार आखिर सिर्फ स्त्री के लिए ही क्यों है? हमेशा स्त्री ही क्यों कठघरे में खड़ी की जाती है? नहीं, मु?ो इन चीजों से बाहर आना होगा. जिसे जो कहना है कहे लेकिन मु?ो अपने और बिट्टो के जीवन को देखते हुए फैसले लेने होंगे.

काफी सोचने के बाद सुमन ने पुलकित को फोन किया, ‘‘हैलो, पुलकित, मैं तुम्हें पिछले दिनों में जितना सम?ा पाई हूं उस के आधार पर यह तय किया है कि मैं तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं मगर तुम्हें सिर्फ पति नहीं अच्छा पिता भी बनना होगा. बिट्टो के प्रति पिता के रूप में प्रेम और जिम्मेदारियां बखूबी निभानी होंगी.’’

‘‘तुम निश्चिंत रहो सुमन. एक पिता के फर्ज और दायित्व से मैं पीछे नहीं हटाने वाला.’’

पुलकित के शब्दों में खुशी की ध्वनि सुमन को स्पष्ट सुनाई दे रही थी. उस ने फोन रख दिया और फिर स्नेहभरी नजरों से देखते हुए बिट्टो के सिर पर हाथ फेरा क्योंकि उस के जीवन में खुशियों को लाने के लिए उसने साहस का पिटारा खोल दिया था. अब वह मुश्किलों को बांध कर हौसले की उड़ान भरने के लिए तैयार थी.

आखिरी बाजी: क्या दोबारा अपनी जिंदगी में जोहरा को ला पाया असद

लेखक- जुबैर फरीदी

सकीना बानो ने घबरा कर घर के बाहर देखा. दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था. उस ने दरवाजा बंद कर दिया और लौट कर जोहरा के पास आ गई. जोहरा बिस्तर पर पड़ी प्रसवपीड़ा से तड़प रही थी. कभीकभी उस की कराहटें तीव्र हो जाती थीं. ऐसे में सकीना का कलेजा मुंह को आने लगता. उस से जोहरा की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी.

उसे बारबार असद पर क्रोध आ रहा था. वह कह कर गया था कि शाम तक लौट आएगा, लेकिन रात हो आने पर भी उस का कहीं पता नहीं था. घर में असद ने इतने पैसे भी नहीं छोड़े थे कि वह स्वयं ही किसी डाक्टर को बुला लाती. अब तो यह सोचने के सिवा और कोई चारा नहीं था कि जो कुछ होगा उस से निबटना ही पडे़गा.

तभी अचानक लगा कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी है. वह तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ी. दरवाजा खोला, पर बाहर  कोई नहीं था. उसे अपने ऊपर क्रोध आ गया.

जैसेजैसे अंधेरा बढ़ता जा रहा था, उस के हृदय की धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं. असद के न आने पर उस ने मजबूरन पड़ोस के लड़के शमीम को असद को बुलाने भेजा था.

अब तो शमीम को गए भी 1 घंटा बीत चुका था, लेकिन अभी तक न असद का पता था न शमीम का.

बेचैनी से टहलती वह जोहरा के पास पहुंची और बोली, ‘‘सब्र और हिम्मत से काम ले, बेटी, थोड़ी ही देर में असद आ जाएगा.’’

‘‘अम्मी,’’ जोहरा तड़प उठी, ‘‘मुझे यकीन है, वह आज भी नहीं आएंगे. कहीं जुआ खेलने बैठ गए होंगे.’’

‘‘बहू, ऐसी औलाद या ऐसा खाविंद मिलने पर इनसान अपनेआप को कोसने के अलावा और कर ही क्या सकता है?’’ सकीना की आवाज से दर्द भरी मायूसी साफ झलक रही थी.

कुछ ही देर में शमीम आ गया. आते ही बोला, ‘‘भाईजान का तो कहीं पता नहीं चला, वह जहांजहां बैठते थे, सब जगह देख आया.’’

शमीम के आते ही सकीना ने अपनी बेटी नजमा को बुला कर कहा, ‘‘तू अपनी भाभी के पास बैठ. मैं बन्नो दाई को बुला कर लाती हूं,’’ यह कह कर सकीना बुरका ओढ़ कर घर से बाहर निकल गई.

फजर (तड़के) की नमाज के वक्त जोहरा ने एक सुंदर लड़के को जन्म दिया. सकीना प्रसन्नता से खिल उठी, लेकिन जोहरा की आंखें आंसुओं से भरी थीं. वह सोच रही थी, कैसा दुख भरा जीवन है उस का कि उस के पहले बच्चे के जन्म के समय उस का शौहर सब कुछ जानते हुए भी उस के पास नहीं है.

सकीना उस दर्द को समझती थी. इसीलिए उस ने उसे समझाया, ‘‘बहू, रंज मत करो, बुरे वक्त को भी हंस कर गुजार देना चाहिए. तुम्हारे मियां की तो अक्ल ही मारी गई है, फिर कोई क्या कर सकता है. मैं तो उसे समझासमझा कर हार गई. घर में जवान बहन बैठी है, फिर भी उस पर कोई असर नहीं. कहां से करूं बेटी की शादी? मुझे तो रातदिन उस की ही फिक्र खाए जाती है.’’

दूसरे दिन शाम को कहीं जा कर असद ने घर में प्रवेश किया. बच्चा पैदा होने के बावजूद घर में बजाय खुशी के सन्नाटा छाया हुआ था. वैसे वह ऐसे माहौल का आदी हो चुका था. अकसर हर शनिवार को वह गायब हो जाता था और दूसरे दिन शाम को लौट कर आता था.

सकीना ने जब उसे बताया कि वह एक बेटे का बाप बन चुका है तो वह सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

जब असद जोहरा के पास पहुंचा तो जोहरा ने उसे देख कर मुंह फेर लिया. असद हलके से मुसकरा दिया और बोला, ‘‘लगता है, मुझ से बहुत नाराज हो. भई, क्या बताऊं, रात एक दोस्त ने रोक लिया. उस के यहां दावत थी. सुबह सो कर उठा तो बोला, दोपहर का खाना खा कर जाना. इसलिए देर हो गई. लाओ, मुन्ने को मुझे दे दो, देखूं तो किस पर गया है.’’

जोहरा ने पटकने वाले अंदाज में बच्चे को असद की ओर बढ़ा दिया. असद ने बच्चे को गोद में लिया तो वह रोने लगा, ‘‘अरे…अरे, रोता है. बिलकुल अपनी अम्मी पर गया है,’’ असद ने हंस कर कहा और बच्चे को जोहरा की ओर बढ़ा दिया. जोहरा ने बच्चे को ले लिया.

असद ने हंस कर जोहरा की ओर देखा और बोला, ‘‘लगता है, आज बेगम साहिबा ने न बोलने की कसम खा रखी है.’’

‘‘पूरी रात तकलीफ से छटपटाती रही पर आप को तो अपने दोस्तों और जुए से ही फुरसत नहीं थी. हार कर अम्मी को ही जा कर दाई को बुला कर लाना पड़ा. आप की बला से, मैं मर भी जाती तो आप को क्या फर्क पड़ता?’’ कह कर जोहरा सिसक पड़ी.

‘‘लेकिन मैं ने जुआ कहां

खेला?’’ असद ने अपनी सफाई पेश करनी चाही, ‘‘मैं तो दोस्तों के साथ दावत में था.’’

‘‘दावत में थे तो वे 500 रुपए कहां हैं जो कल आप मुझ से झूठ बोल कर ले गए थे,’’ जोहरा ने पूछा.

‘‘वे…वे…मैं तो…’’ असद का रंग सफेद पड़ गया. फिर वह तुरंत ही संभल गया और कड़क कर बोला, ‘‘तुम कौन होती हो पूछने वाली?’’

‘‘मैं…’’ जोहरा कुछ कहना ही चाहती थी कि अचानक सकीना ने खांस कर कमरे में प्रवेश किया. सास को देख कर जोहरा चुप हो गई. सकीना जोहरा के निकट आ कर बोली, ‘‘बहू, मुन्ने का अच्छी तरह ध्यान रखना. बाहर बड़ी ठंडी हवा चल रही है. मैं अभी थोड़ी देर में तुम्हारे लिए खाना लाती हूं,’’ फिर एक नजर उस ने असद पर डाली और बोली, ‘‘जाओ, असद, तुम भी खाना खा लो.’’

असद चुपचाप कमरे से निकल गया. जोहरा उदास नजरों से अपने शौहर को जाते देखती रही.

सकीना ने अपने पोते का नाम जफर रखा था. जफर 2 माह का हो गया था. उस ने हाथपैर चलाने के साथसाथ मुंह टेढ़ा करना भी सीख लिया था. उस की इस हरकत से घर के सब लोग हंस पड़ते थे.

असद तो जैसे मुन्ने के लिए दीवाना सा रहता था. दफ्तर से आते ही वह मुन्ने से खेलने लगता. जुआ तो उस ने खेलना बंद नहीं किया था लेकिन उस का रातरात भर गायब रहना अब तकरीबन बंद सा हो गया था.

एक दिन जब असद मुन्ने से खेल रहा था तो जोहरा बोली, ‘‘सुनिए, मुन्ने के लिए बाजार से कुछ कपडे़ ला दीजिए. अभी तक आप ने मुन्ने के लिए कुछ भी नहीं खरीदा. आप को कल ही तनख्वाह मिली है, लेकिन अभी तक आप ने अपनी तनख्वाह अम्मी को भी नहीं दी. अम्मी पूछ रही थीं, कहीं आप तनख्वाह को भी जुए में तो नहीं हार आए?’’ बोलते हुए जोहरा का हृदय जोरों से धड़क रहा था.

‘‘मुझे क्या करना है, क्या नहीं, यह सोचना मेरा काम है. न ही मैं इस बात के लिए पाबंद हूं कि दूसरों के सवालों का जवाब देता फिरूं,’’ असद ने क्रोध भरे स्वर में कहा और मुन्ने को सोफे पर लिटा कर जोहरा को घूर कर देखा.

फिर कुछ क्षण चुप रहने के बाद बोला, ‘‘मैं देख रहा हूं, तुम्हारा दिमाग दिनबदिन खराब होता जा रहा है. तुम मेरे हर काम में दखल देने लगी हो. आखिर तुम्हें क्या हक है मुझ से हिसाबकिताब मांगने का?’’ असद क्रोध से कांपने लगा था.

‘‘मैं आप की बीवी हूं. मुझे यह जानने का पूरा हक है कि आखिर आप ने अम्मी को अपनी तनख्वाह क्यों नहीं दी,’’ जोहरा गुस्से से बिफर कर बोली, ‘‘मैं कोई भगा कर लाई गई औरत नहीं हूं जो आप के जुल्म बरदाश्त करती रहूंगी. मेरा आप के साथ निकाह हुआ है. जितनी जिम्मेदारी आप पर है उतनी ही मुझ पर भी है.’’

‘‘जोहरा, तुम अपनी हद से आगे बढ़ रही हो. तुम भूल रही हो कि मैं तुम्हारा शौहर हूं. शौहर के सामने बात करने की तमीज सीखो.’’

‘‘शौहर को भी तो यह तमीज होनी चाहिए कि वह अपनी बीवी से कैसे पेश आए.’’

‘‘तुम मेरी गैरत को ललकार रही हो, जोहरा,’’ असद आपे से बाहर हो गया था.

‘‘आप में गैरत है कहां?’’ जोहरा तेज स्वर में बोली.

‘‘मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,’’ असद चीखा.

‘‘फिर देते क्यों नहीं तलाक? अपनी इस नापाक जबान से 3 बार तलाक, तलाक, तलाक कहिए और निकाल दीजिए घर से धक्के दे कर. आप मर्दों ने औरत को समझ क्या रखा है, सिर्फ एक खिलौना? जब जी भर गया, उठा कर फेंक दिया. आप की नजरों में औरत का जन्म शायद मर्दों के जुल्म सहने के लिए ही हुआ है.’’

‘‘जोहरा,’’ असद इतनी जोर से चीखा कि उस के गले की नसें तक तन गईं, ‘‘मैं ने तुम्हें तलाक दिया, मैं ने तुम्हें तलाक दिया, मैं ने तुम्हें तलाक दिया.’’

जोहरा अवाक् फटीफटी आंखों से असद को देखती रही. फिर अचानक ही बेहोश हो कर नीचे गिर पड़ी. सकीना और नजमा उस समय घर में नहीं थीं. वे अभीअभी एक रिश्तेदार से मिल कर लौटी थीं. दोनों ने असद के अंतिम शब्द सुन लिए थे.

सकीना ने असद की ओर क्रोध से देखा और बोली, ‘‘असद, यह तू ने बहुत बुरा किया.’’

असद बुत की तरह स्थिर खड़ा था. सकीना ने असद को झंझोड़ा तो उस ने चौंक कर अपनी अम्मी को देखा और तेजी से घर से बाहर निकल गया. सकीना उसे आश्चर्य से जाते देखती रही.

फिर सकीना ने नजमा की मदद से जोहरा को चारपाई पर लिटाया और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी. उधर नजमा रोते हुए मुन्ने को गोद में ले कर उसे बहलाने की कोशिश करने लगी.

शाम को जब असद ने घर में प्रवेश किया तो घर में छाई खामोशी ने उसे अंदर तक कचोट दिया. एक आशंका ने उसे कंपा दिया. कमरे में घुसते ही उस की नजर सोफे पर बैठी अपनी अम्मी पर पड़ी, जो गुमसुम सी कहीं खोई हुई थीं.

असद ने धड़कते हृदय के साथ पूछा, ‘‘जोहरा कहां है, अम्मी?’’

‘‘जोहरा,’’ अचानक ही सकीना ने चौंक कर असद की ओर देखा और बोली, ‘‘अपने मायके चली गई है. मैं ने बहुत रोका, लेकिन वह बोली कि अब उस का इस घर से क्या रिश्ता है? उन्होंने मुझे तलाक दे दिया है. अब उन के पास मेरा रहना हराम होगा.’’

यह सुन कर असद अवाक् रह गया. उस का सिर घूमने लगा. उसे उम्मीद न थी कि वह क्रोध में यह सब कर बैठेगा. उस ने भर्राए स्वर में पूछा, ‘‘अब क्या होगा, अम्मी? मैं जोहरा के बिना नहीं रह सकता. मुझे नहीं मालूम था कि मैं इस जुए के चक्कर में अपने जीवन की सब से बड़ी बाजी हार जाऊंगा.’’

‘‘तुम ने बहुत देर कर दी, बेटे. ऐसी शरीफ और नेक बहू ढूंढे़ से भी नहीं मिलेगी. तुम उस पर जुल्म करते रहे लेकिन उस ने कभी उफ तक न की. मगर आज तो तुम ने वह काम किया जो कोई खूनी इनसान ही कर सकता है. तुम ने औरत की अहमियत को नहीं समझा. उसे पैर की जूती समझ कर निकाल फेंका,’’ सकीना ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अम्मी, तुम कल ही जा कर जोहरा को बुला लाओ. मैं अपने किए की माफी मांग लूंगा,’’ असद ने उम्मीद के साथ अपनी अम्मी की तरफ देखा.

‘‘अब ऐसा नहीं हो सकता,’’ सकीना बोली, ‘‘हमारा मजहब इस बात की इजाजत नहीं देता. हमारे मजहब ने मर्द को इतनी आसानी से तलाक देने का हक दे कर औरत को इतना कमजोर बना दिया है कि निर्दोष होते हुए भी उस की जरा सी भूल उसे धूल में मिला देती है. हमारे मजहब के मुताबिक इन हालात में ‘हलाला’ होना जरूरी है. अब जोहरा का तुम से दोबारा निकाह तभी हो सकता है जब उस का किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह हो और वह मर्द जोहरा को एक रात अपने साथ रख कर तलाक दे दे.’’

‘‘मैं इस के लिए भी तैयार हूं, अम्मी. तुम जोहरा से बात तो करो,’’ असद ने डूबे स्वर में कहा.

‘‘अभी 1-2 महीने रुक जाओ, मैं कोशिश करूंगी,’’ सकीना बोली.

इस के बाद असद कुछ नहीं बोला.  वह गुमसुम सा चारपाई पर जा कर

लेट गया. उस की आंखों के सामने जोहरा की सूरत घूम गई. उस के दफ्तर से आते ही वह उस का कोट उतार कर टांग देती थी. उस के जूतों के तसमे खोल कर जूते उतारती थी. उस के आते ही उसे चाय देती थी. उस के जरा से उदास हो जाने पर स्वयं भी उदास हो जाती थी.

उसे ध्यान आया, एक बार जब वह बीमार पड़ गया था तो जोहरा ने रातदिन जाग कर उस की खिदमत की थी.

जोहरा की खिदमत और मुहब्बत का उस ने कितना अच्छा सिला दिया, उस के जरा से क्रोध पर उसे घर से निकाल दिया. असद का मन आत्मग्लानि से भर उठा.

असद के दिन अब बड़ी खामोशी  से गुजरने लगे थे. दफ्तर से आते ही वह घर में गुमसुम सा पड़ा रहता. कहीं आताजाता भी नहीं था. जुआ तो दूर की बात थी, उस दिन से उस ने ताश के पत्तों को छुआ तक नहीं था.

एक दिन अख्तर ने असद से जुआ खेलने को कहा तो असद ने उस को पीट दिया. उस दिन से असद और अख्तर में अनबन हो गई थी.

जोहरा से उस ने कई बार मिल कर माफी मांगने की कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हो सका. आखिर मजबूर हो कर उस ने अम्मी को जोहरा के मांबाप के पास भेजने का निश्चय किया.

सकीना को जोहरा से मिलने के लिए गए हुए 2 दिन हो चुके थे लेकिन वह अभी तक नहीं लौटी थी, ये 2 दिन असद ने बड़ी मुश्किल से काटे थे.

तीसरे दिन शाम को जब सकीना लौटी तो असद दौड़ादौड़ा अम्मी के पास आया और बोला, ‘‘क्या कहा जोहरा ने, अम्मी?’’

सकीना खामोश रही तो असद का हृदय धड़क उठा. बेचैन हो कर उस ने दोबारा पूछा, ‘‘अम्मी, तुम बतातीं क्यों नहीं?’’

‘‘फिक्र क्यों करता है, बेटे, मैं तेरी दूसरी शादी कर दूंगी,’’ सकीना का स्वर बुझाबुझा सा था, ‘‘अभी कौन सी तेरी उम्र निकल गई? लोग तो बुढ़ापे में शादियां करते हैं.’’

‘‘अम्मी, मैं जो तुम से पूछ रहा हूं, उस का जवाब क्यों नहीं देतीं,’’ असद बोला.

‘‘जोहरा ने इनकार कर दिया, बेटे. वह किसी भी हालत में तुम्हारे साथ रहने को तैयार नहीं है.’’

‘‘अम्मी,’’ असद का स्वर कांप कर रह गया. उस की आंखें शून्य में टिक गईं. जुए की आखिरी बाजी ने उस की सारी प्रसन्नताएं हर ली थीं. असद थकेथके कदमों से चलता अपने कमरे में आ गया. सकीना और नजमा कुछ कहना चाह कर भी कुछ न कह सकीं.

अंत से शुरुआत: आखिर कौन थी गिरिजा

लेखक- एस भाग्यम शर्मा

रविवार का दिन था. श्वेता अपने पैरों के नाखूनों को शेप दे रही थी कि तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

“हैलो, क्या आप का नाम श्वेता है?”

“जी… पर आप कौन? मैं ने आप को पहचाना नहीं.”

“मेरा नाम गिरिजा है. मैं रूपराज की पत्नी हूं. अब मैं कौन हूं समझ में आ ही गया होगा?” श्वेता कोई जवाब तो नहीं दे पाई पर वह सदमे में आ गई.

“यहां बैठ कर आराम से बात नहीं हो सकती. पास के रैस्टोरैंट में चल कर हम बात करें? कपड़े बदल कर जल्दी से चलो,” गिरिजा बोलीं.

उन की आवाज में जो गंभीरता थी उस से श्वेता को वैसे ही करने के लिए मजबूर कर दिया. उस के मन के अंदर हजारों प्रश्न उठने लगे,’झगड़ा करने आई है क्या… मेरे पति को मुझ से अलग मत करो ऐसा विनती करेगी और आदमियों को ला कर मुझे धमकी देगी…’ क्या करना चाहिए उस के समझ में नहीं आया. श्वेता कपड़े बदल कर उन के साथ रवाना हो गई.

श्वेता जहां काम करती थी वहां पर रूपराज एक बड़ा अधिकारी था. करीब ढाई हजार आदमीऔरत वहां पर काम करते थे. जहां आदमीऔरत साथ काम करते हैं तो एकदूसरे से मिलनाजुलना स्वाभाविक ही है‌. एक ही कंपनी में काम करने से कई बार रूपराज से उस की बातचीत हुई थी . एक दिन लिफ्ट में साथ आने का मौका भी मिला और फिर एक दिन मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान भी.

रूपराज के फोन पर बात करने पर वह मना नहीं कर सकी. उस से बात करना अच्छा लगने लगा. फिर मिलने की इच्छा भी होने लगी. दोनों के बीच प्रेम शुरू हो चुका था. श्वेता को लगा कि अब इस प्रेम को शादी में बदलना चाहिए.

“मैं पहले से ही शादीशुदा हूं…” कहते हुए रूपराज हकलाया,”मेरी पत्नी एक राक्षसी है, मोटी है और बदसूरत ही नहीं निपूती भी है. हमेशा चिल्लाती रहती है. सामानों को उठा कर फेंकती है. प्रेम से एक शब्द भी नहीं बोलती. मुझे तो घर जाने की इच्छा भी नहीं होती…” कह कर टेबल पर दोनों हाथ रख कर रोने लगा.

“तुम्हें देखते ही मैं तुम पर फिदा हो गया. तुम बेहद खूबसूरत हो और तुम्हें देख कर मैं सबकुछ भूल गया कि मैं शादीशुदा हूं. मुझे लगा तुम्हें मालूम पड़े तो तुम मुझ से रिश्ता नहीं रखोगी, यही सोच कर मैं ने सच को तुम से छिपाया. मुझे छोड़ कर मत चली जाना श्वेता…”

यह सुनने के बाद श्वेता को रूपराज से जो प्रेम था वह और भी बढ़ गया. इतने प्रेम से रहने वाले पति से, प्रेम न करने वाली पत्नी के ऊपर उसे गुस्सा भी आया.

“तुम चिंता मत करो. मैं उस से तलाक ले लूंगा. उस के बाद हम शादी कर लेंगे. पर तब तक मैं तुम्हें देखे बिना नहीं रह सकता. होस्टल में तो आनाजाना संभव नहीं. एक नया घर ले लेता हूं, तुम वहां रहो. 2 महीने में तलाक हो जाएगा…”

विश्वास करने लायक बात तो थी, मगर उस की पत्नी इस तरह आ कर उस के सामने खड़ी हो जाएगी यह उस ने नहीं सोचा था. रैस्टोरैंट में श्वेता और गिरिजा कोने की एक टेबल पर बैठे.

और्डर दे कर गिरिजा ने मौन को तोड़ा,”क्या बात है श्वेता, तुम कुछ भी बोल नहीं रही हो… मैं क्या कहूंगी ऐसा तुम्हें डर लग रहा है क्या?”

“मैं… यहां इस होस्टल में रहती हूं यह आप को कैसे पता चला?”

गिरिजा खिलखिला कर हंसी,”आदमी दूसरी औरत के पास जा रहा है एक औरत उसे समझ नहीं सकती क्या ?
पति से जब पूछा तब उन्होंने ठीक से जवाब नहीं दिया तब डिटैक्टिव ऐजैंसी की मैं ने सहायता ली. उस ने हर बात को सहीसही बता दिया.

“छोटी उम्र में तुम्हारे मातापिताजी गुजर गए और नजदीकी रिश्तेदार भी कोई नहीं है. औफिस में तुम किसी से भी ज्यादा बातचीत नहीं करतीं. सिर्फ शुक्रवार को ही तुम साड़ी पहनती हो और बाकी दिन चूड़ीदार या कोई वैस्टर्न ड्रैस पहनती हो. पिछली बार जब तुम रूपराज के साथ बाहर गई थीं तो उस ने तुम्हें एक पिंक कलर की सिल्क की साड़ी दिलाई थी. यह सबकुछ भी मुझे मालूम है.”

अपराधिक भावना से श्वेता ने सिर झुका लिया.

“चलो रख लो… ऐसा कह कर एक चौकलेट देने वाला भी तुम्हें कोई नहीं है. एक गंभीर आदमी के आते ही तुम उस पर फिसल गईं. मैं दिखने में सुंदर नहीं हूं, मोटी हूं, काली हूं और हमारे पिताजी की वजह से एक बेमेल शादी हो गई.”

वह आगे बोलीं,”मेरी बहन ने एक लड़के से प्रेम किया, वह कौन है, कैसा है मेरे पिताजी ने इसे भी मालूम नहीं किया. उन से बात कर के दीदी की शादी करवा दी. मेरे पिताजी को तो उस के बारे में मालूम करना चाहिए था. यदि लड़का ठीक होता तो शादी करवाते. पर ऐसा नहीं हुआ.

“उस आदमी के सही न होने कारण मेरी दीदी ने आत्महत्या कर ली. मैं भी कहीं प्रेम में न पड़ जाऊं ऐसा सोच कर वे डर गए और उन के औफिस में काम करने वाले रूपराज से जल्दीजल्दी में मेरी शादी करवा दी.पर रूपराज को हमारे पिताजी के रुपयों पर ही आंख थी, यह समझने के पहले ही उन का देहांत हो गया. हमारा कोई बच्चा नहीं है, यह तो एक बहाना है. जिन के बच्चा नहीं होता वे खुशी के साथ नहीं रहते हैं क्या? मन में प्रेम हो तो यह संभव है,” गिरिजा का गला भर आया. आंखों में नमी आ गई.

अपनी गलती को श्वेता ने महसूस किया.

“देखो, अपनी समस्या को बता कर सांत्वना लेने के लिए मैं यहां नहीं आई. मेरे पति को छोड़ दो यह भी नहीं कहूंगी. जब उस ने मेरे शरीर का बहाना बना कर दूसरी स्त्री को ढूंढ़ लिया है, तो उसी समय से मेरी शादीशुदा जिंदगी का कोई अर्थ नहीं है, यह बात मेरी समझ में आ गई थी.सिर्फ तुम्हारे बारे में बात करने के लिए मैं तुम्हें ढूंढ़ कर आई, तुम से बात करने.”

‘यदि मुझे समझाने के लिए मां होती तो मेरी यह गलती नहीं हुई होती…’ श्वेता सोचने लगी.

“तुम कैसी लड़की हो श्वेता? कोई तुम्हें बस इतना कहे कि वह तुम्हें चाहता है, वह शादीशुदा है तो तुम्हें अपना होश खो देना चाहिए? तुम्हें पूछताछ कर के सच का पता नहीं लगाना चाहिए?

“मुझे एक फोन तो कर सकती थीं न… तुम अकेली हो, नौकरी करती हो, फिर क्यों यह सैकंड हैंड हसबैंड के साथ रहना चाहती हो?

“तुम्हें कानून की जानकारी नहीं है? वह तलाक मांगे तो मैं तलाक दे दूंगी तुम ने ऐसा क्यों सोच लिया? रूपराज ने अभी तक तलाक की अर्जी भी नहीं लगाई है. वैसे, अर्जी लगा भी दे तो तलाक मिलने में 2-3 साल तो लग ही जाएंगे. यदि मैं कोई विरोध करूं तो और भी समय लग सकता है. तब तक रूपराज तुम से शादी नहीं कर सकता. यदि करे तो कानून के हिसाब से वह सही नहीं होगा.”

गिरिजा की गंभीर और सही बातों का श्वेता के पास कोई जवाब नहीं था,”अभी क्या करना चाहिए मेरी समझ में नहीं आ रहा है. आप ही बताइए क्या करूं?” श्वेता बोली.

“हमारे घर में प्रेम के कारण आत्महत्या हुई है, वैसे ही यहां नहीं हो, इसी बात को ध्यान में रख कर मैं यहां आई हूं. होस्टल में जाओ और तसल्ली से सोचो. तुम्हें रूपराज से कितना प्रेम है और रूपराज को तुम से कितना प्रेम है और वह कितना सच्चा है इसे भी मालूम करो? हमारा तलाक हो भी जाए तो रुपए, मकान और सबकुछ मेरे पास आ जाएंगे. आवाज देते ही काम के लिए आदमी हाजिर, बड़ा बंगला, हमेशा ड्राइवर के साथ गाड़ी… इन सब सुविधाओं को छोड़ने के लिए रूपराज तैयार होगा क्या, इसे मालूम करो. यदि इन सब को छोड़ कर वह तुम्हारे साथ आने को तैयार है तो वह सच्चा प्रेम है. फिर तुम उस से शादी कर लो और खुश रहो. पर पहले उसे परखो और सचाई को जानो. यदि कोई धोखा खाने वाला आदमी हो तो वहां धोखा देने वाला आदमी भी होता है.

“रूपराज की बातों को सुन कर जल्दी से होस्टल खाली कर के नया मकान ले कर चली मत जाना. जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है. तुम्हें कुछ मदद की जरूरत है तो मुझे फोन कर देना,” कह कर गिरिजा बिल चुका कर बाहर निकल गईं.

‘रूपराज ने जिस गिरिजा के बारे में बताया था उस में और इस गिरिजा में कितना अंतर है… यह सब देखे बिना ही मैं रूपराज के प्रेमजाल में फिसल गई यह मेरी ही गलती थी,’ यह सोचते हुए श्वेता ने एक दिन रूपराज से बात की.

तलाक के बारे में प्रश्न पूछने पर उस ने बेरुखी से जवाब दिया. वह श्वेता को अलग मकान में रखना चाहता था.
गिरिजा के साथ जो आरामदायक जीवन उसे मिला है, वह उसे खोना नहीं चाहता था. वह खुद को अच्छा आदमी भी दिखाना चाहता था ताकि समाज में उस की इज्जत बनी रहे. श्वेता के साथ छिप कर जिंदगी जीने का जो जाल उस ने बिछाया था वह श्वेता की समझ में आ चुका था. यह जान कर एक दिन उस ने गुस्से में कहा,”अरे, तुम कैसी बात कर रही हो. मेरे साथ घूमीफिरी हो, कितने दिन होटलों में आई हो, मौजमस्ती की हो, उन सब को मैं फोन पर डाल कर भेज दूंगा. फिर कोई तुम से शादी नहीं करेगा. मैं जैसा बोल रहा हूं वैसा रहो नहीं तो मैं क्या करूंगा मुझे ही नहीं पता.”

श्वेता डर गई. उस ने गिरिजा से मदद मांगी,”वह धमकाता है…”

तब गिरिजा ने कहा,”तो तुम क्यों डर रही हो? जो कुत्ते भूंकते हैं वे काटते नहीं. तुम्हारी फोटो डालते ही साथ में उस की तसवीर नहीं आएगी क्या? हां, तुम सतर्क जरूर रहो. गुस्से में लोग खून करने में भी पीछे नहीं रहते…

“तुम पुलिस की मदद लो. जहां विनम्र होना जरूरी हो वहां होना चाहिए पर कोई गलती करे तो उस को छोङो भी मत. किसी काम को शुरू करने के बाद मन में दुख नहीं होना चाहिए…” गिरिजा बोलीं.

फिसल कर गिरने वाली श्वेता का गिरिजा ने हाथ पकड़ कर खींचा था और उसे सही राह दिखाई थी. फिर भी वह औफिस वालों की निगाहों और रूपराज की धमकियों को सहन न कर पाई.

“तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा हो तो नौकरी छोड़ दो श्वेता,” गिरिजा बोलीं.

“नौकरी छोड़ दूं तो कैसे? फिर मेरा क्या होगा?”

“श्वेता… तुम्हें ड्रैस डिजाइनिंग का काम अच्छी तरह आता है न, तुम अपनी ड्रैस स्वयं ही डिजाइन करती हो… यह सब कैसे मालूम है मत पूछो. मैं हूं न तुम्हारे साथ. बस, पहले छोटे दुकान से शुरू करेंगे. हम दोनों के नाम से उस का नाम ‘श्वेगी’ रखेंगे. अलगअलग जगहों से कपड़े खरीदेंगे. अच्छा चलेगा तो यात्रा भी करेंगे.”

“नहीं तो?”

“नहीं तो दुकान बंद कर के ठेला लगा कर चाट बेचेंगे,” कह कर गिरिजा हंसी.

कठोर परिश्रमी, किसी बात से न डरने वाली और मजबूत इरादों वाली गिरिजा दृढ़ता से खड़ी थीं. उसे प्यार देने के लिए कोई नहीं था. एक दीदी थीं वह भी चल बसी थीं. पिता भी नहीं है. शादी की, तो पति भी दूसरी लड़की को ढूंढ़ता फिर रहा है बावजूद भी वह निडर हो कर खड़ी है. अपने फैसलों को सोचसमझ कर ले रही है. दूसरी लड़की धोखा न खाए इसलिए उस की मदद कर रही है.

गिरिजा से संबंध रखने में श्वेता का भी स्वभाविमान जाग उठा. दोनों के संयुक्त प्रयास से ‘श्वेगी फैशन’ का जन्म हुआ. जीने का आत्मविश्वास जागृत होने से और अपने परिश्रम से वे दोनों सफलता की ओर बढ़ते चले गए.

बदल गया जीने का नजरिया: क्या दूर हुआ मीना के घर का क्लेश

सुरेश भी अकसर बिना किसी बात के उस से चिड़चिड़ा कर बोल पड़ता था. कभीकभार तो मीना के ऊपर उस का इतना गुस्सा फूटता कि अगर चाय का कप हाथ में होता तो उसे दीवार पर दे मारता. ऐसे ही कभी खाने की थाली उठा कर फेंक देता. इस तरह गुस्से में जो सामान हाथ लगता, वह उसे उठा कर फेंकना शुरू कर देता. इस से आएदिन घर में कोई न कोई नुकसान तो होता ही, साथ ही घर का माहौल भी खराब होता.

ऐसे में मीना को सब से ज्यादा फिक्र अपने 2 मासूम बच्चों की होती. वह अकसर सोचती कि इन सब बातों का इन मासूमों पर क्या असर होगा? यही सब सोच कर वह अंदर ही अंदर घुटते हुए चुपचाप सबकुछ सहन करती रहती.

मीना अपनेआप पर हमेशा कंट्रोल रखती कि घर में झगड़ा न बढ़े, पर ऐसा कम ही हो पाता था. आजकल सुरेश भी औफिस से ज्यादा लेट आने लगा था.

जब भी मीना लेट आने की वजह पूछती तो उस का वही रटारटाया जवाब मिलता, ‘‘औफिस में बहुत काम था, इसलिए आने में देरी हो गई.’’

एक दिन मीना की सहेली सोनिया उस से मिलने आई. तब मीना का मूड बहुत खराब था. सोनिया के सामने वह झूठमूठ की मुसकराहट ले आई थी, इस के बावजूद सोनिया ने मीना के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफसाफ पढ़ ली थीं.

मीना ने सोनिया को कुछ भी नहीं बताया और अपनेआप को उस के सामने सामान्य बनाए रखने की कोशिश करती रही थी. कभी उस का मन कहता कि वह सोनिया को अपनी समस्या बता दे, लेकिन फिर उस का मन कहता कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए. हो सकता है, सोनिया उस की समस्या सुन कर खिल्ली उड़ाए या फिर इधरउधर कहती फिरे.

अगले दिन जब मीना बस से कहीं जा रही थी कि तभी उस की नजर उस बस में चिपके एक इश्तिहार पर अटक गई. उस इश्तिहार में किसी बाबा द्वारा हर समस्या जैसे सौतन से छुटकारा, गृहक्लेश, व्यापार में घाटे से उबरने का उपाय, कोई ऊपरी चक्कर, प्रेमविवाह, किसी को वश में करने का हल गारंटी के साथ दिया गया था.

बाबा का इश्तिहार पढ़ते ही मीना के मन में अपने गृहक्लेश से छुटकारा पाने की उम्मीद जाग गई थी. उस ने जल्दी से अपना मोबाइल फोन निकाला और बाबा के उस इश्तिहार में दिया गया एक नंबर सेव कर लिया.

घर पहुंचते ही मीना ने बाबा को फोन किया और फिर उस ने अपनी सारी समस्याएं उन के सामने उड़ेल कर रख दीं.

दूसरी तरफ से बाबा की जगह उन का कोई चेला बात कर रहा था. उस ने कहा कि आप दरबार में आ जाइए, सब ठीक हो जाएगा. उस ने यह भी कहा कि बाबा के दरबार से कोई भी निराश नहीं लौटता है. उस ने उसी समय मीना को एक अपौइंटमैंट नंबर भी दे दिया था. मीना अब बिलकुल भी देर नहीं करना चाहती थी. वह सुरेश को पहले जैसा खुश देखना चाहती थी.

जब दूसरे दिन मीना बाबा के पास पहुंची और अपनी सारी समस्याएं उन्हें बताईं, तब बाबा ने बुदबुदाते हुए कहा, ‘‘आप के पति पर किसी ने कुछ करवा दिया है.’’

मीना हैरान होते हुए बाबा से पूछ बैठी, ‘‘पर, किस ने क्या करवा दिया है? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है… बाबाजी, ठीकठीक बताइए… क्या बात है?’’

इस पर बाबा दोबारा बोले, ‘‘आप के पति का किसी पराई औरत के साथ चक्कर है और उस औरत ने ही शर्तिया आप के पति पर कुछ करवाया है. आप के पति को उस से छुटकारा पाना होगा.’’

बाबा की बातों से मीना के मन में अचानक सुरेश की चिड़चिड़ाहट की वजह समझ आ गई.

मीना बोली, ‘‘बाबाजी, आप ही कोई उपाय बताएं… ठीक तो हो जाएंगे न

मेरे पति?’’

मीना की उलझन के जवाब में बाबा ने कहा, ‘‘ठीक तो हो जाएंगे, लेकिन इस के लिए पूजा करानी होगी और उस के बाद मैं एक तावीज बना कर दूंगा. वह तावीज रात को पानी में भिगो कर रखना होगा और अगली सुबह मरीज को बिना बताए चाय में वह पानी मिला कर

मरीज को पिलाना होगा. यह सब तकरीबन 2 महीने तक करना होगा.

‘‘मैं एक भभूत भी दूंगा जिसे उस औरत को खिलाना होगा, जिस ने आप के पति को अपने वश में कर रखा है.’’

बाबा की बातों से मीना का दिल बैठ गया था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेश उस के साथ बेवफाई कर सकता है.

इसी बीच बाबा ने एक कागज पर उर्दू में कुछ लिख कर उस का तावीज बना कर भभूत के साथ मीना को दिया और कहा, ‘‘मरीज को बिना बताए ही तावीज का पानी उसे पिलाना है और यह भभूत उस औरत को खिलानी है. अगर उस औरत को एक बार भी भभूत खिला दी गई तो वह हमेशा के लिए तेरे पति को छोड़ कर चली जाएगी.’’

मीना ये सब बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी. वह सुरेश को फिर से पहले की तरह वापस पाना चाहती थी. उसे बाबा पर पूरा भरोसा था कि वे उस के पति को एकदम ठीक कर देंगे.

उस रात मीना बिस्तर पर करवटें बदलती रही. उस की नींद छूमंतर

हो चुकी थी. उस को बारबार यही खयाल आता, ‘कहीं उस औरत के चक्कर में सुरेश ने मुझे छोड़ दिया तो मैं क्या करूंगी? कैसे रह पाऊंगी उस के बगैर?’

यह सब सोचसोच कर उस का दिल बैठा जा रहा था. फिर वह अपनेआप को मन ही मन मजबूत करती और सोचती कि वह भी हार नहीं मानने वाली.

इस के बाद मीना यह सोचने लग गई कि तावीज का पानी तो वह सुरेश को पिला देगी, पर उस औरत को ढूंढ़ कर उसे भभूत कैसे खिलाएगी? वह तो उस औरत को जानती तक नहीं है. यह काम उसे बहुत मुश्किल लग रहा था.

सुबह उठते ही मीना ने सब से पहले सुरेश के लिए चाय बनाई और उस में तावीज वाला पानी डाल दिया.

इस के बाद मीना सोफे पर पसर गई. बैठेबैठे वह फिर सोचने लगी कि उस औरत को कैसे ढूंढ़े, जबकि उस ने तो आज तक ऐसी किसी औरत की कल्पना तक नहीं की है?

मीना ने आज जानबूझ कर सुरेश का लंच बौक्स उस के बैग में नहीं रखा था, जिस से लंच बौक्स देने का बहाना बना कर वह उस के औफिस जा सके और उस की जासूसी कर सके.

सुरेश के औफिस जाने के बाद मीना भी उस के औफिस के लिए निकल पड़ी.

औफिस में जा कर मीना सब से पहले चपरासी से मिली और घुमाफिरा कर सुरेश के बारे में पूछने लगी.

चपरासी ने बताया, ‘‘सुरेश सर तो बहुत भले इनसान हैं. वे और उन की सैक्रेटरी रीता पूरे समय काम में लगे रहते हैं.’’

जब मीना ने चपरासी से सुरेश से मिलवाने को कहा, तब उस ने मीना को अंदर जाने से रोकते हुए कहा, ‘‘अभी सर और रीता मैडम कुछ जरूरी काम कर रहे हैं. आप कुछ देर बाद मिलने जाइएगा.’’

मीना को दाल में काला नजर आने लगा. अब तो उस का पूरा शक सैक्रेटरी रीता पर ही जाने लगा. उसे रीता पर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन अपने गुस्से पर काबू करते हुए वह कुछ देर के लिए रुक गई.

कुछ देर बाद जब सैक्रेटरी रीता बाहर निकली तब मीना उसे बेमन से ‘हाय’ करते हुए सुरेश के केबिन में घुस गई.

वापसी में जब मीना दोबारा रीता से मिली तो उस ने कुछ दिनों बाद अपने छोटे बेटे के जन्मदिन पर रीता को भी न्योता दे डाला.

जब रीता उस के घर आई तो मीना ने उस के खाने में भभूत मिला दी. इस काम को कामयाबी से अंजाम दे कर मीना बहुत खुश थी.

अगली शाम को जब सुरेश दफ्तर

से लौटा तो एकदम शांत था, वह रोज की तरह आते ही न चीखाचिल्लाया

और न ही मीना से कोई चुभने वाली बात की. मीना बहुत खुश थी कि बाबा के तावीज ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. उस रात सुरेश ने मीना से बहुत सी प्यार भरी बातें की थीं और उसे अपनी बांहों में भी भर लिया था.

मीना मन ही मन बाबा का शुक्रिया अदा करने लगी. वह यही सोच रही थी कि अब कुछ दिन बाद सुरेश को उस कुलटा औरत से छुटकारा मिल जाएगा और उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी.

सुरेश के स्वभाव में दिनोंदिन और भी बदलाव आता चला गया. अब उस ने बच्चों के साथ खेलना और समय देना भी शुरू कर दिया था. मीना यह सब देख कर मन ही मन बहुत खुश होती. उसे बाबा द्वारा बताए गए उपाय किसी चमत्कार से कम नहीं लगे थे.

अब मीना बाबा के पास जा कर उन का शुक्रिया अदा करना चाहती थी. कुछ दिनों बाद ही वह बाबा के लिए मिठाई और फल ले कर उन के आश्रम पहुंच गई.

जब बाबा को इस बात का पता चला तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने मीना से कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारे पति को अभी कुछ और दिनों तक तावीज का पानी पिलाना पड़ेगा, वरना कुछ दिन में इस का असर खत्म हो जाएगा और वह फिर से पहले जैसा हो जाएगा.’’

मीना यह बात सुन कर अंदर तक सहम गई. उस ने बाबा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बाबा, आप जो कहेंगे, मैं वहीं करूंगी और जब तक कहेंगे तब तक करती रहूंगी, चाहे मुझे इस के लिए कितने ही रुपए क्यों न खर्च करने पड़ें.’’

इस पर बाबा ने उसे भरोसा देते हुए कहा, ‘‘चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा. मेरे यहां से कभी कोई निराश हो कर नहीं गया है.’’

बाबा की बातें सुन कर मीना ने राहत की सांस ली. बाबा कागज के एक पुरजे पर उर्दू में कुछ मंत्र लिख कर तावीज बनाने में लगे थे कि तभी मीना के पति सुरेश का औफिस से फोन आ गया, ‘क्या कर रही हो? जरा गोलू से बात कराना.’

मीना थोड़ा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कुछ नहीं.’’मीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह सुरेश से क्या कहे कि वह कहां है और इस समय वह उस की गोलू से बात नहीं करा सकती. इसी बीच उस की नजर दीवार पर टंगे जीवन अस्पताल के कलैंडर पर पड़ी तो उस ने झट से कह दिया, ‘‘मैं अस्पताल में हूं. गोलू को घर छोड़ कर आई हूं.’’

सुरेश ने घबरा कर पूछा, ‘‘कौन से अस्पताल में?’’

मीना फिर हड़बड़ा कर कलैंडर में देखते हुए बोली, ‘‘जीवन अस्पताल.’’

मीना का इतना कहना था कि सुरेश का फोन कट गया.

थोड़ी देर बाद मीना बाबा के यहां से वापस लौट रही थी कि रास्ते में जीवन अस्पताल के सामने सुरेश को अपना स्कूटर लिए खड़ा देख वह बहुत ज्यादा घबरा गई.

उसे देख कर सुरेश एक ही सांस में कह गया, ‘‘तुम यहां कैसे? क्या हुआ मीना तुम्हें? सब ठीक तो है न?’’

सुरेश के मुंह से इतना सुन कर और अपने लिए इतनी फिक्र देख कर मीना भावुक हो उठी. उस वक्त उसे सुरेश की आंखों में अपने लिए अपार प्यार व फिक्र नजर आ रही थी.

इस के बाद तो मीना से झूठ नहीं बोला गया और उस ने सारी बातें ज्यों की त्यों सुरेश को बता दीं.

मीना की सारी बातें सुनते ही सुरेश ने हंसते हुए उस के गाल पर एक

हलकी सी चपत लगाई और फिर गले लगा लिया.

सुरेश मीना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे समझ लिया. भला इतनी प्यारी पत्नी से कोई कैसे बेवफाई कर सकता है. लेकिन, तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो कि मुझे पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हो, यह जान कर आज मुझे सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है.

‘‘पर, तुम तो पढ़ीलिखी और इतनी समझदार हो कर भी इन बाबाओं के चक्कर में कैसे पड़ गईं, जबकि पहले तो तुम खुद बाबाओं के नाम से चिढ़ती थीं? अब तुम्हें क्या हो गया है?’’

सुरेश की बातों के जवाब में मीना एक लंबी सांस लेते हुए बोली, ‘‘लेकिन, कुछ भी हो… बाबा की वजह से

आप मुझे वापस मिले हो. अब मुझे पहले वाले सुरेश मिल गए हैं. अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए.’’

सुरेश ने प्यार से मीना का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘अच्छा चलो… घर चल कर बाकी बातें करते हैं.’’

घर पहुंच कर सुरेश ने मीना की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें पता है न कि बाबाजी ने कोई चमत्कार नहीं किया. मैं बदला हूं सिर्फ और सिर्फ अपने दोस्त के साथ हुए एक हादसे के चलते. तुम बेकार ही यह समझ रही हो कि यह बाबा का चमत्कार है.’’

सुरेश की बातों पर मीना हैरान हो कर उसे घूरते हुए बोली, ‘‘हादसा… कैसा हादसा?’’

सुरेश ने उसे उदास मन से बताया, ‘‘मेरे एक दोस्त की पत्नी ने खुदकुशी कर ली थी और बच्चों को भी खाने में जहर दे दिया था.

‘‘जब मैं ने अपने दोस्त से पूछा कि यह सब कैसे हो गया तो उस ने बताया कि वह आजकल बहुत बिजी रहने

लगा था और काम के बोझ के चलते चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात पर अपनी पत्नी पर गुस्सा होता रहता था और अकसर मारपीट पर भी उतर आता था.

‘‘पहले तो उस की पत्नी कभी उस से उलझ भी जाती थी, लेकिन कुछ दिन बाद उस ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था और वह गुमसुम रहने लगी थी.

‘‘यह सब बताते हुए मेरा दोस्त फूटफूट कर रोने लगा था. उस ने अपने ही हाथों अपना परिवार स्वाहा कर दिया था.’’

सुरेश ने एक लंबी सांस लेते हुए आगे कहा, ‘‘अपने दोस्त की इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था. उसी समय मैं ने सोच लिया था कि अब मैं भी अपने इस तरह के बरताव को बदल

कर ही दम लूंगा. इस तरह मेरा जीने का नजरिया ही बदल गया.’’

सुरेश की बातें सुन कर मीना बोली, ‘‘आप ने तो अपने जीने का नजरिया खुद बदला और मैं समझती रही कि यह सब बाबा का चमत्कार है और

इस सब के चलते मैं हजारों रुपए भी लुटा बैठी.’’

मीना के इस भोलेपन पर सुरेश ने हंसते हुए उसे अपनी बांहों में कस कर भर लिया.

इक सफर सुहाना: क्या पूरा हुआ वीना का प्लान

अजीत की बड़ी बहन मीना का पत्र आया था. उसे खोल कर पढ़ने के बाद अजीत बोला, ‘‘आ गया खर्चा.’’

‘‘अरे, पत्र किस का है पहले यह तो बताओ?’’ पत्नी वीना तनिक रोष से बोली, ‘‘सीधी तरह तो बताते नहीं, बस पहेलियां बुझाने लगते हो.’’

‘‘मीना दीदी का है. बेटे की सगाई कर रही हैं. अगले महीने की 15 तारीख की शादी है. बंबई में ही कर रही हैं.’’

वीना खुश हो गई, ‘‘यह तो बहुत अच्छा हुआ. बहुत दिनों से मेरा बंबई जाने का मन हो रहा था. बच्चे भी शिकायत करते रहते हैं कि कभी समुद्र नहीं देखा. और हां, लड़की कैसी है, कुछ लिखा है?’’

अजीत उस की बात पर ध्यान दिए बिना हिसाब लगाने लगा, हम दो, हमारे दो यानी 3 पूरी टिकट और 1 आधा, ऊपर से बहन को शादी में देने के लिए उपहार आदि.

‘‘भई, एक सप्ताह की छुट्टी तो कम से कम जरूर लेना. पहली बार बंबई जा रहे हैं. मैं ने कभी फिल्म की शूटिंग नहीं देखी. जीजाजी कह रहे थे कि फिल्म वालों से उन की खासी जानपहचान है. वे कुछ न कुछ प्रबंध करवा ही देंगे. वहां आरगंडी की साडि़यां बहुत अच्छी मिलती हैं और सस्ती भी होती है. दीदी की साडि़यां देखी हैं, कितनी सुंदर होती हैं. बच्चों के कपड़े भी वहां सस्ते और सुंदर मिलते हैं,’’ वीना धाराप्रवाह बोले जा रही थी.

अजीत झल्ला गया, ‘‘दो मिनट चुप भी रहोगी या नहीं. तुम तो बंबई का नाम सुनते ही ऐसे योजना बनाने लगी हो मानो किसी बड़े व्यापारी की पत्नी हो. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना खर्चा करेंगे कैसे. तुम ने कुछ रुपए बचा कर रखे हुए हैं क्या अपने पास?’’

वीना का जोश झाग के समान बैठ गया, ‘‘मेरे पास कहां से आएंगे. तुम्हारे बैंक में कुछ तो होंगे ही. जाना तो बहुत जरूरी है.’’

‘‘यही तो चिंता है. अनु भी अब 14 वर्ष की होने वाली है, उस का भी पूरा टिकट लगेगा. मनु साढ़े 6 का हो गया है, इसलिए आधा टिकट उस का भी लेना पड़ेगा. आनेजाने का भाड़ा ही कितना हो जाएगा. कहां मेरठ और कहां बंबई, लिख देंगे रेल में आरक्षण नहीं मिला, इसलिए नहीं आ सकते. अब परिवार के साथ बिना आरक्षण के इतना लंबा सफर तो हो नहीं सकता या लिख देंगे कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

वीना चुप हो गई. पति भी सच्चे थे. इतना खर्चा करना आजकल हर किसी के बूते की बात तो है नहीं, पर जाए बिना भी गुजारा नहीं था. वह सोचने लगी, दीदी का 1 ही तो बेटा है, उसी के ब्याह में न पहुंचे तो जीवनभर उलाहने सुनने पड़ेंगे. वैसे बंबई जाने का लोभ वह स्वयं भी संवरण नहीं कर पा रही थी. मेरठ में रहते हुए बंबई उस के लिए लंदन, न्यूयार्क से कम नहीं था.

‘‘किसी तरह खर्चा कम नहीं किया जा सकता?’’ वह ठुड्डी पर हाथ रखती हुई बोली.

‘‘अब रेल में दूसरे दरजे से तो कम कुछ है नहीं. हां, यह हो सकता है कि तुम अकेली ही हो आओ. मैं काम का बहाना कर लूंगा,’’ अजीत उस की उत्सुकता को भांपते हुए बोला.

अब तक दोनों बच्चों को बंबई जाने की भनक लग गई थी. अपने कमरे से ही चिल्लाए, ‘‘विनय भैया की शादी में हम जरूर जाएंगे.’’

‘‘काम की बात कभी सुनाई नहीं देती पर अपने मतलब की बात वहां बैठे भी सुनाई दे गई,’’ अजीत भन्नाया.

वीना के दिमाग में नएनए विचार आ कर उथलपुथल मचा रहे थे. अचानक अजीत के पास सरकती हुई फुसफुसाई, ‘ऐसा करते हैं, अनु का तो आधा टिकट ले लेते हैं और मनु का लेते ही नहीं. दोनों दुबलेपतले से तो हैं. अपनी उम्र से कम ही लगते हैं. अनु को साढ़े 11 वर्ष की बता देंगे और मनु को सवा 4 वर्ष का.

अजीत ने हिसाब लगाया कि ऐसे फर्क तो काफी पड़ जाएगा. दो आधी टिकटें कम हो जाएंगी. आनेजाने का मिला कर 2 टिकटों के पैसे बच जाएंगे. वीना का विचार तो सही है.

‘‘पर अगर पकड़े गए तो?’’ उस ने धीरे से पूछा.

‘‘अरे, कैसे पकड़े जाएंगे?’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘गाड़ी में कोई प्रमाणपत्र थोड़े ही मांगता है. इस महंगाई के जमाने में सब लोग ऐसा ही करते हैं, हम कोई निराले थोड़े ही हैं. हमारे जरा से झूठ बोलने से कौन सी रेलें चलनी बंद हो जाएंगी.’’

अजीत को बात समझ में आ गई, ‘‘पर टिकट चैकर को तुम्हीं संभालना, मुझ से इतना बड़ा झूठ नहीं बोला जाएगा.’’

‘‘ठीक है, तुम पहले आरक्षण तो करवाओ. अरे, यही पैसा खरीदारी में काम आ जाएगा. सब जाएंगे तो दीदी भी खुश हो जाएंगी,’’ वीना चहकने लगी. आखिर उसे अपना बंबई घूमने का सपना साकार होता नजर आ रहा था.

अजीत ने भागदौड़ कर के सीटें आरक्षित करवा लीं. दीदी को देने के लिए सामान भी खरीद लिया. वीना सारी तैयारी खूब सोचसमझ कर कर रही थी.

सफर पर रवाना होने से पहले उस ने अनु को एक पुरानी, छोटी हो चुकी फ्रौक पहना दी और कानों के ऊपर कस कर 2 चोटियां बना दीं.

‘‘अब इसे 10 वर्ष के ऊपर कौन मान सकता है. मनु तो दुबलापतला सा है, सो जब टिकट चैकर आएगा तो उसे मैं गोद में ले लूंगी. किसी को शक तक नहीं होगा,’’ वीना ने पति से कहा.

अगले दिन शाम को सपरिवार बंबई के लिए निकल पड़े. स्टेशन पहुंचने के बाद थोड़ी देर इंतजार के बाद ट्रेन आ गई. ट्रेन आते ही एकएक कर सभी ट्रेन में बैठ गए.

टे्रन का सफर बड़ा अच्छा कट रहा था. 3 स्टेशन निकल चुके थे और कोई टिकट चैकर नहीं आया था.

‘‘रात में तो वैसे भी कोई नहीं आएगा,’’ वीना बोली, ‘‘फिर कल सुबह तक तो बंबई पहुंच ही जाएंगे. बाहर निकलते समय कौन पूछता है यह सब.’’

शाम की चाय पी कर दोनों बाहर डूबते हुए सूरज का दृश्य निहार रहे थे. हरेभरे खेतों और उन पर फैली हुई सूरज की लालिमा को देखते हुए दोनों मुग्ध हो रहे थे.

‘‘सब कितना सुंदर लग रहा है,’’ वीना पति के कंधे पर सिर टिकाती हुई बोली.

तभी डब्बे में कुछ हलचल होने लगी.

‘‘टिकट चैकर आ रहा है,’’ अजीत बोला और जल्दी से चादर ओढ़ कर लेट गया, ‘‘टिकटें तुम्हारे पर्स में ही हैं.’’

टिकट चैकर आया तो वीना ने तीनों टिकटें दिखा दीं. चैकर ने चारों के चेहरों को ध्यान से देखा. मनु को अजीत ने अपने साथ ही लिटा लिया था.

‘‘बेटा अभी सवा 4 साल का ही है,’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘यह इस बिटिया का आधा टिकट है.’’

अनु खिड़की से सिर टिकाए एक उपन्यास पढ़ रही थी. मां की बात सुन कर वह जरा सी हंसी और फिर अपनी पुस्तक में खो गई.

‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ती हो, बेटी?’’ टिकट चैकर ने उस के हाथ में पकड़े उपन्यास को घूरते हुए पूछा.

वीना हड़बड़ा गई कि अब अनु कहीं सब गुड़गोबर न कर दे.

‘‘यह छठी में पढ़ती है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘बड़ी होशियार है. पढ़ने का बहुत शौक है. सदा कुछ न कुछ पढ़ती रहती है. इस उम्र में ही इतनी बड़ीबड़ी पुस्तकें पढ़ने लगी है. अनु, जरा इन्हें अपना उपन्यास तो दिखाना. मैं तो मना करती रहती हूं कि चश्मा लग जाएगा. इतना मत पढ़, पर मानती ही नहीं है. आजकल के बच्चों को समझाना बड़ा कठिन है.’’

‘‘घरघर यही हाल है, बहनजी, आजकल के बच्चे किसी की नहीं सुनते. पर आप की बच्ची को अभी से पढ़ने का इतना शौक है वरना आजकल बच्चे तो पुस्तकों से कोसों दूर भागते हैं. मेरे तो तीनों बच्चे नालायक हैं. बस, फिल्मों की पूरी खबर रखते हैं. पता नहीं बड़े हो कर क्या करेंगे?’’

गाड़ी धीमी हो गई थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था. टिकट चैकर उठ कर दरवाजे के पास चला गया. वीना ने चैन की सांस ली. एक बड़ी मुसीबत से पार पा लिया था. ‘अब, वापसी में भी ऐसे ही आसानी से बात बन जाए तो

इस झंझट से छुटकारा मिले,’ वीना सोच रही थी.

अजीत हंसता हुआ उठ गया, ‘‘तुम ने तो उसे एकदम बुद्धू बना दिया. मुझ से न हो पाता.’’

डब्बे में एक चौकलेट बेचने वाला घूम रहा था.

‘‘मां, एक बड़ा वाला चौकलेट दिलवा दो,’’ मनु जिद करने लगा. पिता के उठते ही वह भी उठ कर बैठ गया.

‘‘अरे नहीं, बहुत महंगा है. यह ले, मैं तेरे लिए कितने बढि़या शक्करपारे बना कर लाई हूं. तुझे तो ये बहुत पसंद हैं,’’ वीना उसे प्यार से समझाती हुई बोली.

‘‘नहीं दिलाओगी क्या?’’ वह मां को घूरते हुए बोला, ‘‘ठीक है, तब मैं टिकट चैकर चाचा को बता दूंगा कि दीदी तो 14 साल की हैं और मैं 7 साल का. मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता हूं. फिर भी इन्होंने मेरा टिकट नहीं लिया.’’

अजीत ने जल्दी से उस के मुंह पर हाथ रख दिया. गनीमत थी कि उस समय किसी ने अनु की बात नहीं सुनी. कोई सुन लेता तो कितनी बेइज्जती होती.

‘‘इधर आना भई,’’ अजीत ने चौकलेट वाले को पुकारा. जिस महंगे चौकलेट की मनु फरमाइश कर रहा था, वह उसे दिलवा दिया.

‘‘इस शैतान को सब बताने की क्या आवश्यकता थी,’’ फिर वह वीना पर बिगड़ा.

‘‘अरे, मैं ने कब बताया. जाने चोरीछिपे क्याक्या सुनता रहता है,’’ वह परेशान हो कर बोली, फिर मनु को जोर से झिंझोड़ते हुए डांटा, ‘‘अब खबरदार जो तू ने मुंह खोला.’’

पर मनु को भला इन सब बातों का कहां फर्क पड़ने वाला था हर स्टेशन पर किसी न किसी ऊलजलूल वस्तु की फरमाइश करता रहता. मना करने पर धौंस दिखाता, ‘अच्छा, मैं अभी टिकट चैकर चाचा को आप की सारी चालाकी बताता हूं.’

वीना और अजीत हार कर उस की हर फरमाइश पूरी करते जाते. उधर अनु अलग मुंह फुलाए भुनाभुना रही थी, ‘डब्बे में कहीं घूम भी नहीं सकती, इतनी छोटी सी फ्रौक पहना दी है. बाल भी गंवारों से गूंथ दिए हैं. टिकट नहीं खरीद सकते थे तो मुझे लाए ही क्यों? मेरठ में ही क्यों नहीं छोड़ दिया? आगे से आप लोगों के साथ कहीं नहीं जाऊंगी. हमें तो कहते रहते हैं कि झूठ मत बोलो और आप इतने बड़ेबड़े झूठ बोलते हैं.’

बंबई पहुंचने पर सामान उतरवाते ही अजीत बोला, ‘‘तुम लोग जरा यहां रुको, मैं अभी आया.’’

‘‘कहां भागे जा रहे हो?’’ वीना इतनी भीड़ देख कर घबरा गई, ‘‘अब तो पहले घर पहुंचने की बात करो. इतने लंबे सफर के बाद बुरी हालत हो गई है.’’

‘‘वापसी का सफर आराम से करो. उसी का प्रबंध करने जा रहा हूं. पहले इन बच्चों के टिकटे ठीक से बनवा लाऊं, हो गई बहुत बचत. आज से अपनी ‘सुपर’ योजनाएं अपने तक ही सीमित रखना, मुझे बीच में मत फंसाना.’’

वीना उत्तर में केवल सिर झुकाए खड़ी रही. इस से अधिक वह कर भी क्या सकती थी. जिस जोश से वह घर से निकली थी वह अब ठंडा पड़ चुका था.

बांझ : राधा को बाबा ने कैसे मां बनाया

लेखक- ज्ञान ज्योति

रोज की तरह आज की सुबह भी सास की गाली और ताने से ही शुरू हुई. राधा रोजरोज के झगड़े से तंग आ चुकी थी, लेकिन वह और कर भी क्या सकती थी? उसे तो सुनना था. वह चुपचाप सासससुर और पड़ोसियों के ताने सुनती और रोती.

राधा की शादी राजेश के साथ 6 साल पहले हुई थी. इन 6 सालों में जिन लोगों की शादी हुई थी, वे 1-2 बच्चे के मांबाप बन गए थे. लेकिन राधा अभी तक मां नहीं बन पाई थी. इस के चलते उसे बांझ जैसी उपाधि मिल गई थी.

राह चलती औरतें भी राधा को तरहतरह के ताने देतीं और बांझ कह कर चिढ़ातीं. राधा को यह सब बहुत खराब लगता, लेकिन वह किसकिस का मुंह बंद करती, आखिर वे लोग भी तो ठीक ही कहते हैं.

राधा सोचती, ‘मैं क्या करूं? अपना इलाज तो करा रही हूं. डाक्टर ने लगातार इलाज कराने को कहा है, जो मैं कर रही हूं. लेकिन जो मेरे वश में नहीं है, उसे मैं कैसे कर सकती हूं?’ एक दिन पड़ोस का एक बच्चा खेलतेखेलते राधा के घर आ गया. बच्चे को देख राधा ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसे प्यार से चूमने लगी.

जब सास ने राधा को दूसरे के बच्चे को चूमते हुए देखा, तो वह बिफर पड़ी. वह उस की गोद से बच्चे को छीनते हुए बोली, ‘‘कलमुंही, बच्चा पैदा करने की तो ताकत है नहीं, दूसरों के बच्चों से अपना मन बहलाती है.

‘‘अरी, तू क्यों डालती है अपना मनहूस साया दूसरों के बच्चे पर…?

‘‘तू तो उस बंजर जमीन की तरह है, जहां फसल तो दूर घास भी उगना पसंद नहीं करती.’’

जब राधा से सास की बातें नहीं सुनी गईं, तो वह अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा बंद कर रोने लगी. रात को राजेश के आने पर राधा ने रोते हुए सारी बात उसे बता दी और बोली, ‘‘मैं बड़ी अभागिन हूं. मैं किसी की इच्छा पूरी नहीं कर सकती, ऊपर से मुझ पर बांझ होने का धब्बा भी लग चुका है.’’

राधा की बातें सुन कर राजेश ने कहा, ‘‘तुम मां की बातों का बुरा मत मानो. उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए. हर मांबाप की इच्छा होती है कि उन के परिवार को आगे बढ़ाने वाला उन के रहते हुए ही आ जाए. तुम से यह इच्छा पूरी नहीं होते देख कर मां तुम से उलटीसीधी बातें बोलती हैं. तुम चिंता मत करो, तुम्हारा इलाज चल रहा है. तुम जरूर मां बनोगी.’’

राधा बोली, ‘‘मेरी एक सहेली थी, वह भी बहुत दिनों बाद मां बनी थी. मां बनने में देर होते देख कर जब उस ने अपना इलाज कराया, तो जांच में उस में कोई कमी नहीं पाई गई. कमी उस के पति में थी. जब उस के पति ने इलाज कराया, तभी वह मां बन सकी.

‘‘हो सकता है, उसी की तरह आप में भी कोई कमी हो. इसलिए मैं चाहती हूं कि आप भी एक बार अपना इलाज करा लेते.’’

राधा की बात सुन कर राजेश भड़क उठा, ‘‘मुझ में भला क्या कमी हो सकती है? मैं तो बिलकुल ठीक हूं. मुझ में कोई कमी नहीं है.

‘‘मेरी चिंता छोड़ो, तुम अपना अच्छी तरह इलाज कराओ.’’

‘‘मैं मानती हूं कि आप में कोई कमी नहीं है, लेकिन तसल्ली की खातिर…’’ राधा ने सलाह देने के खयाल से ऐसा कहा, लेकिन राजेश ने उस की बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘नहीं राधा, तसल्ली वगैरह कुछ नहीं. मैं ने कहा न कि मुझ में कोई कमी नहीं है,’’ राजेश ने उसे डांट दिया.

पति के भड़के मिजाज को देख राधा ने चुप रहना ही उचित समझा. शहर के बड़े से बड़े डाक्टर से उस का इलाज हुआ, फिर भी उस की कोख सूनी ही रही. डाक्टर ने जांच के दौरान उस में कोई कमी नहीं पाई.

‘‘देखो राधा, रिपोर्ट देखने के बाद तुम में कोई कमी नजर नहीं आती. शायद तुम्हारे पति में कोई कमी होगी. तुम एक बार उसे भी इलाज कराने की सलाह दो,’’ डाक्टर ने उसे समझाया.

अब राधा को पूरा भरोसा हो गया था कि उस में कोई कमी नहीं है. मां बनने के लिए कमी उस के पति में ही है, लेकिन उसे कौन समझाए. उसे राजेश के गुस्से से भी डर लगता था.

एक दिन किसी ने राधा की सास को बताया कि पास ही गांव के मंदिर में एक बाबा रहते हैं, जिस की दुआ से हर किसी का दुख दूर हो जाता है. सास ने यह बात अपने बेटे राजेश को बता दी और राधा को बाबा के पास भेजने को कहा. रात को राजेश ने राधा से कहा, ‘‘कल तुम मंदिर चली जाना.’’

‘‘ठीक है, मैं चली जाऊंगी, लेकिन मैं डाक्टर के पास गई थी. डाक्टर ने मुझ में कोई कमी नहीं बताई. इसलिए मैं चाहती हूं कि आप भी एक बार अपना…’’ डरतेडरते राधा कह रही थी, लेकिन राजेश ने उस की बात को अनसुना कर दिया.

‘‘राधा, मैं कहीं नहीं जाऊंगा. तुम कल मंदिर में बाबा के पास चली जाना,’’ ऐसा कह कर राजेश सो गया.

राधा ने भी अपने माथे पर लगा बांझपन का धब्बा मिटाने के लिए बाबा के पास जा कर उन से दुआ लेने की सोच ली. दूसरे दिन सवेरे नहाधो कर वह बाबा के पास चली गई. मंदिर में लगी भीड़ को देख कर उसे भरोसा हो गया कि वह भी बाबा की दुआ पा कर मां बन सकती है.

राधा बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘बाबा, मेरा दुख दूर करें. मैं 6 साल से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं.’’

‘‘उठो बेटी, निराश मत हो. तुम्हें औलाद का सुख जरूर मिलेगा.

‘‘लेकिन, इस के लिए तुम्हें माहवारी होने के बाद यहां 4 दिनों तक रह कर लगातार पूजा करनी होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा, मैं जरूर आऊंगी.’’ राधा खुशी से घर गई. घर आ कर उस ने सारी बातें अपने पति को बताईं.

‘‘मैं कहता था न कि जो काम दवा नहीं कर सकती, कभीकभी दुआ से हो जाती है. बाबा की दुआ पा कर अब तुम जरूर मां बनोगी, ऐसा मुझे भरोसा है. तुम ठीक समय पर बाबा के पास चली जाना,’’ राजेश ने खुश होते हुए कहा. राधा अब बेसब्री से माहवारी होने का इंतजार करने लगी. कुछ दिन बाद उसे माहवारी हो गई.

माहवारी पूरी होने के बाद राधा फिर बाबा के पास गई. उसे देखते ही बाबा ने कहा, ‘‘बेटी, जैसा कि मैं ने तुम्हें पहले भी कहा था कि यहीं रह कर 4 दिनों तक लगातार पूजा करनी पड़ेगी, तभी तुम मां बन सकोगी.’’

‘‘जी बाबा, मैं रहने के लिए तैयार हूं,’’ राधा ने कहा.

‘‘ठीक है, अभी तुम अंदर चली जाओ. रात से तुम्हारे लिए पूजा करनी शुरू करूंगा,’’ अपनी चाल को कामयाब होते देख बाबा मन ही मन खुश होते हुए बोला.

रात को बाबा ने राधा से कहा, ‘‘बेटी, इस पूजा के दौरान कोई भी देवता खुश हो कर तुम्हें औलाद दे सकता है. इस के लिए तुम्हें सबकुछ चुपचाप सहन करना पड़ेगा, नहीं तो तुम कभी मां नहीं बन पाओगी.’’

‘‘जी बाबा, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, मुझे औलाद हो जानी चाहिए.’’

राधा के इतना कहने के बाद बाबा उसे एक कोठरी में ले गए, जहां हवनकुंड बना हुआ था. उस में आग जल रही थी. बाबा ने उसे वहीं पर बिठा दिया और वह भी बैठ कर जाप करने लगा.

कुछ देर तक जाप करने के बाद बाबा ने कहा, ‘‘राधा, देवता मुझ में समा चुके हैं. वह तुम्हें औलाद का सुख देना चाहते हैं, इसलिए तुम चुपचाप अपने बदन के सारे कपड़े उतार दो और औलाद पाने के लिए मेरे पास आ जाओ. वह तुम्हें दुआ देना चाहते हैं.’’

राधा ने यह सोच कर कि बाबा में देवता समा चुके हैं और देवता जो भी करते हैं, गलत नहीं करते, इसलिए उस ने अपने बदन के सारे कपड़े उतार दिए. बाबा उस के अंगों से खेलने लगा और उसे दुआ देने के नाम पर उस की इज्जत पर डाका डाल दिया. 4 दिनों तक लगातार बाबा ने इस पूजा के बहाने राधा से जिस्मानी संबंध बनाए. 5वें दिन बाबा ने कहा, ‘‘राधा बेटी, हमारी दुआ कबूल हो गई. पूजा भी पूरी हो गई. अब तुम जरूर मां बनोगी. तुम घर जा सकती हो.’’

बाबा की दुआ ले कर वह खुशीखुशी घर लौट आई. 9 महीने बाद राधा मां बन गई. उसे बाबा की दुआ लग गई थी. उस के माथे से बांझपन का धब्बा मिट चुका था. घर के सारे लोग बहुत खुश थे. राजेश को अब पूरा यकीन हो गया था कि उस में भी बाप बनने की ताकत है, लेकिन सचाई से सभी अनजान थे.

अधूरापन : सुहागरात के दिन क्या हुआ सलीम के साथ?

राइटर: मो. मुबीन

घर के संस्कार और वातावरण आदमी की प्रकृति को इस हद तक प्रभावित करते हैं कि वह प्रकृति के विपरीत असामान्य आचरण करने लगता है. यहां तक कि उस के परिवार के सदस्यों को भी उस में अधूरेपन का एहसास होने लगता है. क्या सलीम भी इसी का शिकार था?

वह सन्न सी बैठी सलीम को घूर रही थी और सलीम दूसरे पलंग पर आराम से लेटा खर्राटे ले रहा था. कुछ ही क्षणों में उस के विचारों और सपनों की शृंखला कांच के समान टूट कर बिखर गई. कुछ देर पहले जब वह सुहाग की सेज पर बैठी सलीम की राह देख रही थी, उस के हृदय की स्थिति भी अजीब सी थी.

उस के मस्तिष्क में तरहतरह के विचार घूम रहे थे. उन बातों के बारे में सोचसोच कर उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. आने वाले क्षणों की कल्पना से उसे पसीना छूट रहा था. उसी समय दरवाजा एक हलकी सी आवाज के साथ खुला और उस के दिल की धड़कनों की गति और भी तेज हो गई.

वह कुछ और सिकुड़ कर बैठ गई और स्वयं पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करती सोचने लगी कि किस तरह सलीम से बातें करे या उस की बातों का उत्तर दे.

कमरे में मौन छाया रहा. उस का सिर  झुका हुआ था. जब उस भयंकर मौन से उस का मन घबरा गया तो उस ने धीरे से नजरें उठा कर चोर नजरों से सलीम की ओर देखा.

वह अपने कपड़े बदल रहा था. कपड़े बदल कर वह सामने वाले पलंग पर बैठ गया.

‘‘इस लंबे समय में तुम काफी थक गई होगी?’’ सलीम ने धीरे से पूछा.

‘‘जी…’’ उस ने धीरे से जवाब दिया.

‘‘मैं भी काफी थक गया हूं,’’ कहते हुए वह पलंग पर लेट गया और बोला, ‘‘तुम भी सो जाओ.’’

उसे इस बात की कतई आशा नहीं थी कि सलीम उस से ये शब्द कहेगा और उससे ऐसा व्यवहार करेगा. बहुत देर तक तो वह कुछ भी नहीं सम झ सकी, अपनी ही उधेड़बुन में व्यस्त रही. फिर जब उस ने सलीम को देखा तो उस के मस्तिष्क को एक  झटका लगा. वह सो गया था. सलीम ऐसा होगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

उसे  झुंझलालट सी हो रही थी. फिर जब वह गंभीरता से सोचने लगी तो उसे अपनी मूर्खता पर क्रोध आया कि वह भी कितनी मूर्ख है, क्याक्या सोच रही है. सलीम की बात भी तो सच है. 2 दिन के विवाह के  झमेलों और फिर लंबी यात्रा ने उसे भी तो काफी थका दिया था. सलीम सचमुच थक गया होगा. ऐसी स्थिति में वह उस से क्या बातें कर सकता था? इन बातों के लिए तो जिंदगी पड़ी है. यह सोच कर वह पलंग पर लेट गई. थोड़ी देर यों ही लेटी रही. फिर थकान के कारण उसे जल्द ही नींद आ गई.

सवेरे आंख खुली तो सूरज काफी चढ़ आया था. वह घबरा कर उठी. उसे स्वयं पर लज्जा आने लगी कि यह आ इतनी देर कैसे नींद आती रही.

सलीम का पलंग खाली था. शायद वह काफी पहले उठ चुका था. लज्जित सी वह कमरे के बाहर आई.

‘‘नींद पूरी हो गई, बेटी?’’ अम्मी से सामना होने पर उन्होंने पूछा.

‘‘हां, अम्मी,’’ उस ने सिर  झुका कर जवाब दिया.

‘‘अच्छा देखो, मेरी किट्टी की 1-2 मैंबर्स आई हैं, उन से मिल लो.’’

वह दूसरे कमरे में आई तो उस ने देखा कि उस की उम्र की कई लड़कियां उस की राह देख रही हैं. उन्होंने उसे घेर लिया.

‘‘वाह, खालाजान सलीम ने क्या बहू चुनी.’’

‘‘अरे, चांद का टुकड़ा नजर आती है.’’

‘‘अच्छी पढ़ीलिखी भी है.’’

‘‘सुनाइए, भाभीजी, रात कैसी बीती? सलीम ने ज्यादा तंग तो नहीं किया?’’

‘‘अरे, तंग क्या करेंगे, मु झे तो लगता है उन्होेंने भाभी को छुआ भी नहीं,’’ एक शोख लड़की बोल उठी.

‘‘क्या मतलब?’’ सभी चौंक कर उसे देखने लगीं.

‘‘सुबूत हाजिर है,’’ उस ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘इन हाथों में सुहाग की ये कच्ची चंपई चूडि़यां बिलकुल साबूत हैं. अरे, ये तो जरा सा धक्का लगते ही टूट जाती हैं. अगर सलीम इन्हें छूते तो ये यों कैसे रहतीं?’’

‘‘बेचारी निकहत,’’ एक बोली, ‘‘हम तो सम झते थे सलीम हम से बात करते हुए इसलिए घबराते हैं कि शायद वे हम से शरमाते होंगे परंतु उन्होंने तो हमारी तरह निकहत की तरफ भी

आंख उठा कर नहीं देखा. हम तो खैर उन की बहनेंभाभियां हैं, परंतु निकहत तो उन की पत्नी है.’’

‘‘देखेंगे भी कैसे?’’ एक चंचल पड़ोसिन बोल उठी.

‘‘हमारे खयाल से तो गली के मर्द सलीम के बारे में जो कहते हैं वह सच ही है कि वे अधूरे हैं.’’

‘‘उफ, अब यह अधूरेपन का महारोग भाभी जैसी अप्सरा को लग गया.’’

यह सुनते ही उस के मस्तिष्क में धमाके होने लगे. उस के होंठों से चीख निकलतेनिकलते रह गई.

‘‘लड़कियों, अब उसे और अधिक तंग मत करो,’’ इस बीच अम्मी आ गईं, ‘‘उसे बाथ के लिए जाने दो.’’

‘‘बाथ…’’ 1-2 लड़कियां जोर से हंस पड़ीं, ‘‘अरे खालाजान, आज या आज के बाद भाभी को कभी बाशरूम की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ कहती हुई वे भाग गईं.

उन के कहकहे उस के मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बरसने लगे. उस ने अम्मी की तरफ देखा. उन का चेहरा भी पीला था जैसे उन की कोई चोरी पकड़ ली गई हो. यह रिश्ता उस के पिता के एक जानकार ने कराया था. सलीम से 2 बार मिली भी थी पर आसपास सब लोग थे. सलीम चुप ही रहे थे. उसे थोड़ा सरप्राइज हुआ पर ऐसे लड़के होते हैं  जो लड़कियों के साथ बात करने से घबराते हैं, वह जानती थी.

उस ने आंखों से निकलने के लिए बेताब आंसुओं को किसी तरह रोका और दूसरे कमरे में आ गई. उस के मस्तिष्क में रात की घटनाएं और उन पड़ोसियों की बातें घूम रही थीं. रात की घटनाओं को तो संयोग सम झ कर उस ने अपना मन बहला लिया परंतु इन बातों को वह कैसे  झुठलाए, उस की सम झ में नहीं आ रहा था.

क्या सचमुच विवाह के साथ ही उसे अधूरापन जैसे महारोग लग गया है? यह सोच कर वह कांप उठी.

फिर किट्टी की कुछ और औरतें आ गईं. वे उस से बातें करने लगीं. उन के साथ बातों में वह सारी बातें भूल गई. परंतु जब वह किसी को खुसुरफुसुर करते पाती या किसी स्त्री की बात में व्यंग्य का अनुभव करती तो बेचैन हो उठती. वह एक अजीब सी दुविधा में फंसी हुई थी. दिन तो गुजर गया परंतु अगली रात फिर एक कड़ी परीक्षा लेने के लिए आ गई. वह पलंग पर बैठी सलीम की प्रतीक्षा करने लगी. सलीम बहुत देर से आया. उस की राह देखतेदेखते वह उकता गई थी.

आने के बाद सलीम बजाय उस के पास आने के पलंग पर लेट गया, ‘‘तुम अभी तक सोई नहीं? सो जाओ,’’ कह कर उस ने करवट बदल ली.

बिना कोई उत्तर दिए वह उठ कर उस के पास चली गई. उस की आहट सुन कर सलीम चौंक उठा. फिर उसे इतना समीप पा कर वह घबरा गया.

‘‘तुम… तुम यहां क्यों आई हो?’’ वह बोला.

‘‘क्यों? मैं आप की पत्नी हूं. मैं यहां नहीं आ सकती?’’

‘‘नहीं,’’ वह भयभीत स्वर में बोला, ‘‘मु झे लड़कियों को करीब पा कर घबराहट होने लगती है. पसीना छूटने लगता है.’’

उस ने सलीम की ओर देखा, सचमुच उस का चेहरा भय से पीला पड़ गया था और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं. वह जैसे ही उस के समीप गई, वह चीख उठा, ‘‘मेरे करीब मत आओ, निकहत, मु झे घबराहट होती है.’’

यह सुनते ही उस के मस्तिष्क को एक आघात लगा. आंखों से आंसू छलक पड़े. वह तेजी से मुड़ी और पलंग पर गिर कर सिसकने लगी. उस की सिसकियां कमरे के करुणामय मौन को भंग कर रही थीं और आंसू तकिए के गिलाफ को गीला कर रहे थे. दूसरी ओर सलीम बेखबर सोया हुआ था. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. मां और बहन की वीसियों कौल व्हाट्सऐप पर आ चुकी थीं पर वह उठा नहीं रही थी. न जाने कब मन का गुबार निकल जाए और शादी के 4 दिन में ही हंगामा मच जाए.

दूसरे दिन सो कर उठी तो वह बहुत उदास थी. वह स्वयं को टूटा हुआ अनुभव कर रही थी. अम्मी भी उस से कतरा रही थीं, जिस से साफ सिद्ध हो रहा था जैसे वह महसूस कर रही हैं कि उन्होंने उसे अपने घर की बहू बना कर उस से बहुत बड़ी ज्यादती की है. इस अपराधबोध के कारण वे उस का सामना नहीं कर पा रही हैं. वे अपने काम में व्यस्त हो गईं.

दोपहर में जो स्त्री उस से मिलने के लिए आई उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा, ‘‘अरे शब्बो, तू यहां है?’’ उस ने पूछा.

‘‘और तू यहां कैसे?’’

शब्बो आश्चर्य से बोली, ‘‘क्या सलीम का विवाह तेरे साथ हुआ है?’’

‘‘हां,’’ उस ने धीरे से जवाब दिया. उस का उत्तर सुन कर शब्बो सन्नाटे में आ गई. बहुत देर तक वह कुछ नहीं बोली. फिर बोली, ‘‘निक्की, विवाह से पहले लड़के को अच्छी तरह देख तो लिया होता.’’

‘‘अच्छी तरह देखा था, 2 बार साथ बैठ कर बात भी की थी,’’ वह दर्द भरे स्वर में बोली.

‘‘फिर इतनी बड़ी गलती क्यों की?’’

‘‘मु झे तो ऐसा अनुभव हो रहा था मैं कोई गलती नहीं कर रही हूं,’’ वह बोली, ‘‘परंतु तुम ही बताओ क्या सचमुच यह मेरी गलती है? मैं बहुत परेशान हूं.’’

‘‘मैं सलीम के बारे में अधिक नहीं जानती,’’ शब्बो बोली, ‘‘क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उन की बदली होने से यहां रहने आई हूं.

परंतु कालोनी के लोगों और औरतों का विचार है कि सलीम अधूरा है. वह लड़कियों से बात करते हुए घबराता है. मैं ने खुद कभी उसे किसी लड़की से बात करते नहीं देखा. कालोनी में

यह बात गरम है कि सलीम का विवाह एक बड़ी ही सुंदर लड़की से हुआ है. बेचारी का जीवन नष्ट हो गया. उस बेचारी को देखने ही मैं यहां आई थी परंतु मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह तू होगी.’’

शब्बो की बात सुन कर उस का मन भर आया और वह सिसकसिसक कर रोने लगी.

शब्बो ने उसे सांत्वना दी और सम झाया, ‘‘जो हो गया अब उस भूल का प्रायश्चित्त इसी तरह किया जा सकता है कि तुम इसी समय मायके वापस चली जाओ और सलीम से तलाक ले लो. यदि तुम यहां रही तो तुम्हें मानसिक यातना का तो सामना करना ही पड़ेगा, साथ ही लोग तुम्हारा मजाक भी उड़ाएंगे.’’

उसे क्या करना चाहिए, उस ने मन में तय कर लिया.

रात जैसे ही सलीम आया, उस ने सख्त स्वर में एक ही सवाल पूछा, ‘‘सचसच बताइए क्या आप सचमुच अधूरे हैं?’’

यह सुनते ही सलीम का चेहरा पीला पड़ गया. वह आश्चर्य से उसे देखने लगा. फिर धीरे से बोला, ‘‘नहीं.’’

सलीम की बात सुनते ही उस की सारी उत्तेजना गायब हो गई. उस ने कोमल स्वर में पूछा, ‘‘आप ने कभी खुद को किसी डाक्टर को दिखाया?’’

‘‘हां,’’ सलीम बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘जांचने के बाद उस ने कहा था कि मु झ में कोई कमी नहीं है,’’ सलीम बोला, ‘‘लोग जब मेरे बारे में ऐसी बातें उड़ाते थे तो मैं भी जीवन से निराश हो गया था परंतु डाक्टर की रिपोर्ट के बाद मेरे मस्तिष्क में समाई हीनभावना दूर हो गई. उस के बाद मैं ने कभी लोगों की परवाह नहीं की. वे बकते हैं तो बकें.’’

उसे सलीम की बात सुन कर एक संतोष सा मिला. उसे लगा, उस की कई दिनों की उल झन एक क्षण में दूर हो गई.

‘‘ठीक है,’’ वह बोली, ‘‘कल मु झे उस डाक्टर के पास ले चलिए.’’

‘‘अच्छा,’’ सलीम ने धीरे से उत्तर दिया.

दूसरे दिन सलीम उसे उस डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर से कह कर उस ने कुछ देर के लिए सलीम को बाहर भेज दिया. वह डाक्टर से एकांत में कुछ बातें करना चाहती थी.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने उन का कभी मैडिकल चैकअप किया था?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ डाक्टर बोला, ‘‘अचानक लोगों की बातों से उन के मन में यह बात बैठ गई थी कि वे अधूरे हैं. उस समय मैं ने सलीम साहब का चैकअप किया था. चैकअप के बाद मु झे उन में कोई कमी अनुभव नहीं हुई. तब मैं ने उन्हें विश्वास दिलाया था कि वे संपूर्ण पुरुष हैं. अधूरे का विचार अपने दिमाग से निकाल दें. उन्होंने मेरी बात मान भी ली थी. उस के बाद वे फिर कभी मेरे पास नहीं आए.’’

‘‘डाक्टर साहब, आप विश्वास से कह रहे हैं कि उन में कोई कमी नहीं है?’’ उस ने पूछा.

‘‘ झूठ बोलने की कोई जरूरत ही नहीं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘उन में कोई कमी नहीं है.’’

‘‘फिर उन्होंने अभी तक मु झे छुआ क्यों नहीं?’’ वह उत्तेजित हो कर बोली,

‘‘डाक्टर साहब, अभी हमारे विवाह को कुछ ही दिन हुए हैं परंतु उन्होंने मेरे साथ जो व्यवहार किया है और मैं ने लोगों से जो कुछ सुना है उस से तो लगता है कि मैं ने उन से विवाह कर के बहुत

बड़ी गलती कर दी है. विवाह मेरी पसंद से हुआ है. वे विवाह से पहले मेरे घर आए थे. मैं ने उन

से ज्यादा बातें तो नहीं कीं परंतु उन्हें अच्छी तरह देखा था. वे थोड़े दुबले हैं परंतु मु झे लगा था कि वह मु झे एक पति के सारे सुख दे सकते हैं. उनका कारोबार भी अच्छा है. परंतु यहां अजीब मुसीबत में फंस गई हूं. जी चाहता है कि आत्महत्या कर लूं. मेरी एक सहेली ने तो कहा कि मैं तलाक ले लूं.’’

‘‘मैं आप की स्थिति को सम झ रहा हूं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘यह एक मनोवैज्ञानिक केस है. सलीम साहब का आप से दूरदूर रहना, आप के समीप जाते ही उन्हें पसीना छूटना या लड़कियों से कतराने का कारण एक ही हो सकता है और वे हैं उन के संस्कार, वह वातावरण जिस में उन की परवरिश हुई.’’

वह चुपचाप डाक्टर का चेहरा ताकती रही.

‘‘कुछ घरों में लड़कों को बहुत दबा कर रखा जाता है. कुछ घरों में लड़कों को मसजिदों, मौलाओं, दरगाहों पर ज्यादा ले जाया जाता है. उन्हें लड़कियों से घुलनेमिलने नहीं दिया जाता, दूरदूर रखा जाता है. फिर जैसेजैसे उम्र बढ़ती है लड़कियां उन के लिए हौआ बन जाती हैं और लोग उस लड़के को अधूरा सम झने लगते हैं और इस तरह की समस्या पैदा हो जाती है. बस, यही सलीम के साथ भी हुआ है.’’

‘‘इस का कोई हल?’’ उस ने पूछा.

‘‘आसान सा है,’’ डाक्टर बोला, ‘‘पहले उन के दिमाग से यह बात निकालनी है कि लड़कियां हौआ होती हैं. अभी तक लड़कियां अधिक देर तक उन के साथ

एकांत में नहीं रहीं. बस आप ज्यादा से ज्यादा उन के साथ एकांत में रहने का प्रयत्न करें. उन से दोस्तों की तरह बातें करें. आप को एकांत में देखने के वे आदी हो जाएंगे तो धीरेधीरे उन के समीप जाइए. आप देखेंगी कि उन्हें घबराहट नहीं हो रही है, पसीना नहीं छूट रहा है और

फिर आप अनुभव करेंगी कि वह रोग भी दूर हो गया है.’’

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, डाक्टर साहब,’’ वह उठती हुई बोली, ‘‘आप ने मेरी एक  बहुत बड़ी उल झन दूर कर दी.’’

वापसी में उस ने अनुभव किया कि सलीम उस से दूरदूर चल रहा है और चुप भी है. उस खामोशी को तोड़ने के लिए वह उस से बातें करने लगी.

शुरूशुरू में सलीम उस की बात सुन कर चुप रहता था, फिर धीरेधीरे उस की बातों के जवाब देने लगा.

रात को सलीम सोने के लिए अपने पलंग पर लेटा तो उस ने उसे जल्दी सोने नहीं दिया, उस से बातें और हंसीमजाक करती रही.

सलीम भी उस का साथ दे रहा था. उस के साथ दिल खोल कर बातें कर रहा था, उस की बातों पर जोरजोर से हंस रहा था.

फिर सलीम कोई हंसी की बात कहता तो वह भी जोर से हंस पड़ती. उसे हंसता देख कर सलीम खुश होता.

दिन में भी वह सलीम के चारों तरफ ज्यादातर मंडराती रही. वजहबेवजह उस से बातें करती या छेड़ती.

सलीम का सारा संकोच खत्म हो गया था और वह भी उस से दोस्तों की तरह खुले मन से बात करने लगा था.

रात वह सलीम के पलंग पर उस के समीप जा बैठी और और उस से बातें करती रही.

सलीम के चेहरे पर घबराहट का कोई चिह्न नहीं उभरा, न माथे पर पसीने की बूंदें आईं.

बातें करतेकरते वह धीरे से सलीम के शरीर को छू लेती तो वह चौंक पड़ता परंतु वह तुरंत जल्दी से हाथ हटा कर इस तरह बातों में उस घटना को उड़ा देती कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

उस के बाद वह सलीम के अधिकाधिक समीप रहने लगी. कभी अपने शरीर का स्पर्श सलीम के शरीर से कर देती तो कभी बातों ही बातों में अपने शरीर का सारा बो झ सलीम पर डाल देती.

एक रात अचानक सलीम ने उसे बांहों में भर लिया. उस के शरीर में खुशी की लहरें

दौड़ने लगीं.

‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो न…’’ वह उस की बांहों में धीरे से कसमसाई.

‘‘क्यों छोड़ूं?’’ सलीम चंचल दृष्टि से उस की आंखों में  झांकते हुए बोला, ‘‘मैं कोई पराया हूं? तुम्हारा पति हूं पति.’’

‘‘कोई आ जाएगा?’’

‘‘रात के 12 बजे इस बंद कमरे में कौन आ सकता है? अम्मी तो आराम से खर्राटे ले रही होंगी,’’ कहते हुए उस ने उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के शरीर में बिजलियां सी दौड़ने लगीं. उस ने भी सलीम को अपनी बांहों में भर लिया. और उस रात के बाद सलीम उस के लिए ‘पूर्ण’ बन गया. उसी रात उस का अधूरापन हमेशा के लिए खत्म हो गया.

अगले दिन उस ने सब से पहले उन सारी कौल्स के जवाब दिए जिन्हें वह टाल रही थी. फिर प्रैगनैंसी पिल्स भी औनलाइन और्डर कर दीं शब्बों के पते पर.

जिस दिन स्त्री औकात पर आ गई तो…

‘‘रूही उठो बेटा वरना लेट हो जाओगी. अभी तो तुम्हें पैकिंग भी करनी है.

रात को पैकिंग क्यों नहीं की? मु?ो भी आज औफिस जल्दी जाना है वरना मैं तुम्हारी हैल्प कर देती. जल्दी से उठो.

‘‘ब्रेकफास्ट बना कर रख जाऊंगी खा लेना और समय से निकलना. मु?ो नहीं लगता आज तुम पहला लैक्चर अटैंड कर पाओ. और हां तुम्हारा साथ ले जाने का सामान भी मैं पैक कर रही हूं. आज का खाना तो घर का ही खा लेना. आज होस्टल से मत खाना. कम से कम एक दिन तो घर का खाना खाया जाएगा,’’ इस तरह बोलतेबोलते पूजा ?ाटपट किचन का काम भी निबटा रही थी और साथ में खुद का औफिस का बैग भी रैडी कर रही थी.

मगर जब थोड़ी देर तक पूजा ने देखा कि न तो रूही ने कोई जवाब दिया और न ही अभी उस ने बिस्तर छोड़ा.

‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. रूही तो एक आवाज पर ही उठ जाती है, आज क्यों नहीं उठ रही? देखूं तो कहीं तबीयत तो खराब नहीं इस की. आजकल वायरल भी तो बहुत फैला हुआ है,’’ ऐसा खुद से ही बड़बड़ाते हुए वह रूही के कमरे की तरफ चल दी.

रूही को हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ बेटा तबीयत तो ठीक है? आज उठा क्यों नहीं मेरा बच्चा?’’

जब पूजा ने प्यार से रूही का गाल थपथपाया तो रूही उठ कर उस के गले लग कर सुबकने लगी, ‘‘मम्मा, मु?ो नहीं जाना उस कालेज, मैं यहीं आप के पास रह कर पत्राचार पढ़ लूंगी या फिर इसी शहर के कालेज में ही पढ़ लूंगी. मु?ो नहीं जाना आप से दूर.’’

पूजा ने उसे प्यार से चुप कराया, ‘‘रूही मेरा बच्चा इस में रोने वाली क्या बात है. अच्छा एक बात सचसच बताओ, तुम्हें मु?ा से दूर नहीं जाना या कोई और बात है?’’

‘‘नहीं मम्मा मु?ो आप से दूर नहीं जाना बस इसीलिए.’’

मगर जिस तरह रूही कहते हुए नजरें चुरा रही थी उस से पूजा का माथा ठनका कि अवश्य कोई बात है जिसे रूही शायद बताना नहीं चाहती.

आज औफिस में बहुत जरूरी मीटिंग थी इसलिए पूजा का औफिस जाना भी जरूरी था. इसलिए उस ने उसे ज्यादा कुछ न कहते हुए शाम को आ कर बात करने के लिए कह कर औफिस के लिए चली गई. पर पूजा को औफिस में भी चैन कहां. उस का किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था. मीटिंग में भी उस ने खास इंटरैस्ट नहीं लिया, बस चुपचाप सब के व्यूज सुनती रही क्योंकि उस का ध्यान तो रूही में था कि ऐसा क्या हो गया जो वह कालेज नहीं जाना चाहती.

पूजा अपने कैबिन में गुमसुम सी बैठी थी कि चपरासी ने आ कर कहा, ‘‘बौस ने बुलाया है.’’

पूजा चुपचाप उठ कर बौस के कैबिन की तरफ चल दी.

‘‘मैं आई कम इन सर?’’

‘‘पूजा, यस, यस, औफकोर्स कम इन.’’

पूजा अंदर आ कर, ‘‘यस सर.’’

‘‘आओ पूजा बैठो,’’ कुरसी की तरफ इशारा करते हुए सर ने कहा और पूजा के बैठने के बाद उसे टेबल पर रखा पानी का गिलास दिया, ‘‘लो पहले पानी पीयो और रिलैक्स हो जाओ, फिर आराम से बात करते हैं.’’

पूजा ने आराम से कुरसी पर बैठ कर पानी पी पिया.

‘‘अब बताओ पूजा क्या बात है? आज तक मैं ने तुम्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा, जबकि मैं तुम्हें 8-10 सालों से जानता हूं. जब से मैं ट्रांसफर हो कर इस ब्रांच में आया हूं तुम्हें बहादुर, निडर और साहसी देखा है. कभी न घबराने, हार न मानने या न ही डगमगाने वाली हो तुम. आज पहली बार मु?ो तुम्हारे माथे पर शिकन की लकीरें नजर आई हैं. ऐसा क्या हो गया है, किसी ने कुछ कहा तो बताओ?’’

‘‘नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं, किसी ने कुछ नहीं कहा, बस रूही को ले कर थोड़ा सा परेशान थी.’’

‘‘क्यों क्या हुआ रूही को? वह तो बहुत सम?ादार बच्ची है. 2-4 बार तुम्हारे साथ आई तो उस से बातचीत करने पर मैं ने महसूस किया कि वह तुम्हारी तरह बहुत हिम्मत वाली है. कोई परेशानी है तो तुम मु?ा से बे?ि?ाक शेयर कर सकती हो.’’

 

‘‘सर, आप को याद है जब रूही ने 12वीं कक्षा पास की थी, तब वह

मैकेनिकल इंजीनियरिंग करना चाहती थी और वह भी पीयूसे कहती थी मम्मा यहां जगाधरी जैसे छोटे शहर में नहीं पढ़ना मु?ो. मु?ो तो बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ना है बल्कि यहां तक भी कहा था कि वह कुछ न कुछ कर के अपना खर्चा भी स्वयं निकालेगी. तब आप से मैं ने सलाह ली तो आप ने भी यही कहा था कि उसे भेज दूं, वहां आगे बढ़ने का स्कोप है.’’

‘‘हांहां मु?ो अच्छे से याद है. तुम घबरा रही थी कि वह तुम्हारे बिना रह नहीं पाएगी.’’

‘‘जी सर और उस ने एक साल बड़े अच्छे से निकाला. वह खुद कहती थी मम्मा अगर मैं ऐसा सोचूंगी तो मैं रह नहीं पाऊंगी. मु?ो अकेले रहना सीखना होगा. तभी तो मैं आप का बेटा बन कर आप का सहारा बन पाऊंगी. आज वही रूही कालेज न जाने के लिए रो रही है. उस ने मु?ा से कहा तो यही है कि वह मु?ा से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन मेरा मन कह रहा है कि यह बात नहीं है कुछ और बात है जिसे वह मु?ो बता नहीं पा रही.’’

‘‘पूजा तुम चिंता मत करो, मीटिंग हमारी सक्सैस रही. उम्मीद है टैंडर हमें ही मिलेगा. इस का फैसला तो अगले हफ्ते होगा. अब कोई खास काम नहीं है, तुम ऐसा करो अब घर चली जाओ और रूही के साथ 2 दिन बिताओ और प्यार से उस से पूछो कि क्या बात है. वह अवश्य तुम्हें बताएगी. बस उसे थोड़ा वक्त देना.’’

‘‘जी सर, धन्यवाद सर आप ने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया है. मैं अभी चली जाती हूं घर और कल तक मैं उस के साथ ही रहूंगी ताकि वह अपने मन की बात तसल्ली से मु?ो बताए.’’

पूजा ने घर आ कर रूही से सामान्य तरीके से बातचीत की. खाना खा कर दोनों मांबेटी टीवी चला कर बैठ गईं.

‘‘रूही क्या कहती है शाम को मूवी चलें? सुना है बहुत अच्छी मूवी है.’’ रूही ने चुपचाप सिर हिला दिया.

पूजा ने औनलाइन टिकट बुक कर लिए. शाम को दोनों मांबेटी मूवी देखने गईं. वहीं पर बर्गर और कौफी ले ली. घर आ कर खाने की इच्छा ही नहीं हुई.

‘‘रूही कुछ खाना है क्या? कहो तो बना दूं?’’

‘‘अरे नहीं मम्मा मेरा तो पेट फट जाएगा आज. एक तो मूवी में इतनी कौमेडी कि

हंसहंस कर पेट में बल पड़ गए उस पर इतना हैवी बर्गर था. लगता है बर्गर वाले ने इस मूवी को देखने वालों के लिए स्पैशल बर्गर बनाया था. वह मजा आ गया. जितना आज हंसे इतना तो कभी नहीं हंसे.’’

‘‘हां यह तो है और मेरी आंखों के सामने तो बारबार वही सीन आ रहा है जब दूल्हे का मामा गधे को…’’ आगे वह बात ही पूरी न कर सकी और दोनों खूब हंसी.

थोड़ी देर बाद रूही जब बिलकुल अच्छे से मां से बातें करने लगी तब…

‘‘रूही, बेटा अब खुल कर बता मु?ो. तु?ो वहां कालेज में क्या प्रौब्लम है? क्यों तू वहां से पढ़ाई बीच में छोड़ना चाहती है?’’

‘‘मम्मा मैं ने आप को लास्ट टाइम बताया था न कि अतुल सर क्लास में मु?ा से ही अधिकतर सवाल पूछते हैं और अच्छे से पढ़ने और सम?ाने पर मैं सारे जवाब सही देती हूं और वे हर वक्त क्लास में मेरा ही उदाहरण देते हैं कि रूही को देखो ट्यूशन ग्रुप भी पढ़ाती है और खुद भी पढ़ती है, तुम सब से बैस्ट स्टूडैंट है वह. तुम्हें रूही से कुछ सीखना चाहिए.

‘‘अब वे किसी न किसी बहाने मु?ो छूने लगते हैं. जैसे मैं ने किसी सवाल का जवाब दिया तो मेरे पास आ कर शाबाश रूही कहते हुए मेरी पीठ पर हाथ फिराते हैं, कभी मु?ो गले से लगाने की कोशिश करते हैं. 1-2 बार तो मु?ो औफिस में बिना वजह बुला कर अपने साथ लिपटा लिया और बोले कि तुम बहुत अच्छी लगती हो. तुम मेरी फेवरेट स्टूडैंट हो. मैं बड़ी मुश्किल से खुद को छुड़ा कर बाहर आई और संयोग से और लैक्चरार भी वहां आ गए.

‘‘और मम्मा उन्हें क्लास में ऐसा करते देख कर 3-4 लड़के भी कभीकभी मु?ो बहाने से टच करते हुए कहते हैं कि रूही तो सर की बैस्ट स्टूडैंट है. कीप इट अप रूही. ऐसा कहते हुए मेरी पीठ पर या गाल पर हाथ फिराते हैं.’’

पूजा सम?ा गई कि रूही के भोलेपन और अकेलेपन का सब नाजायज फायदा उठाने की फिराक में हैं. अब न तो पूजा नौकरी छोड़ कर रूही के साथ रह सकती थी और न ही रूही को इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी छोड़ कर यहां छोटे से कसबे में ला सकती थी. रूही के सिवा और है भी तो कोई नहीं कैसे करे, किसे रूही की निगरानी के लिए उस के पास भेजे. फिर उस ने सोचा ये सब तो रूही को अकेले ही हैंडल करना होगा.

‘‘रूही आज तुम्हें मैं एक कहानी सुनाती हूं,’’ और पूजा ने रूही को अपनी गोद में लिटाया और कहानी सुनाने लगी:

‘‘एक लड़की थी भोलीभाली सी. उसे एक कालेज में एक लड़के से प्यार हो गया. लड़की पंजाबी और लड़का पंडित. लड़की के मातापिता को कोई एतराज नहीं था. वे नए ख्यालात के लोग थे लेकिन लड़के के मातापिता को एतराज था इस शादी से. लेकिन आखिर इकलौता बेटा जिस की जान उस पंजाबी लड़की में है, अगर वही न रहा तो क्या करेंगे इस जिद्द और जीवन का. इसलिए शादी की रजामंदी तो दे दी लेकिन उसे अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने को कह दिया.

दोनों की शादी हो गई. दोनों अलग घर में रहने लगे. 1 साल बाद उन की एक प्यारी सी गुडि़या जैसी बेटी पैदा हुई. जब गुडि़या 3 साल की हो गई तब उन्होंने सोचा कि अब उस के लिए एक भाई लाना चाहिए. इस फैसले को लिए अभी एक ही दिन हुआ था कि लड़के का औफिस लौटते हुए ऐक्सीडैंट हो गया. ऐक्सीडैंट भी इतनी बुरी तरह कि औन द स्पौट ही लड़के की मृत्यु हो गई.

एक तो लड़के के मातापिता पहले से उसे पसंद नहीं करते थे अब तो बेटे की मौत का जिम्मेदार भी उसे ही ठहराने लगे. वह लड़की अकेली सहमी सी, छोटी सी बच्ची गोद में, पति की मृत्यु हो गई और सासससुर पहले से ही उसे नापसंद करते और अब तो बेटे की मौत भी उस के सिर मढ़ दी. दिनरात आंसू बहाती रहती. घर खर्च इत्यादि मातापिता देने लगे. गुडि़या को स्कूल में दाखिला भी दिलाना था. मातापिता ने करा दिया. लेकिन वह हर वक्त डरीसहमी, छुईमुई सी रहती. लेकिन उसी की कालोनी में उसी की हमउम्र उस की एक सहेली बन गई थी. किरण नाम था उस का. वह एक स्कूल में टीचर थी. उस ने उस लड़की को सम?ाया, ‘‘सुन तु इस तरह अगर दुनिया से डरेगी तो यह दुनिया तु?ो और डराएगी, तु?ो जीने नहीं देगी यह दुनियां और फिर सोचो इस छोटी सी जान का कौन है? इस की मां भी तुम हो और पिता भी तुम. तुम्हें इसे पढ़ानालिखाना है. इसे तुम्हीं तो पालोगी और आज अभी तुम्हारे भाई की शादी नहीं हुई कल को जब तेरे भाई की शादी हो गई तब? तू पढ़ीलिखी है अपने पैरों पर खड़ी हो कर दुनियां को दिखाओ, किरण ने उस लड़की को मोटिवेट किया, उसे हिम्मत बंधाई. उस के सारे सर्टिफिकेट निकालवाए. 1-2 जगह उस का सीवी बना कर भेजा. किरण के हौंसला देने पर उस लड़की ने सोचा कि बात तो सही है. यदि मैं ऐसे ही रही तो मेरी गुडि़या का क्या होगा? कब तक मैं दूसरों के सहारे जीऊंगी.

और वह खुद ही अपना सीवी ले कर चल पड़ी जमाने की पथरीली राहों पर. अच्छी पढ़ीलिखी होने पर नौकरी तो अच्छी मिल गई मगर हरकोई उस की काबिलियत से पहले उस के जिस्म का मुआयना करता. कब तक सहती वह. बेशक पति की मृत्यु के बाद उस ने बहुत सी मुश्किलों का सामना किया लेकिन उस ने अब सहना छोड़ दिया क्योंकि अब वह चंडी बन चुकी थी. जब भी कोई गलत हाथ उस की तरफ बढ़ता तोड़ देती उस हाथ को. जब भी कोई गंदी नजर उस की ओर उठती आंखें निकाल लेती उस की वह. सब को मुंहतोड़ जवाब देना सीख लिया. उस की हिम्मत, हौसले के आगे औफिस हो या घरबाहर कोई भी उसे छू नहीं सकता.

आज उस लड़की की हरकोई इज्जत करता है क्योंकि उस ने इस मतलबपरस्त दुनिया में जीना सीख लिया है. जब तक किसी दूसरे के सहारे जीओगे तब तक जिंदगी जिंदगी नहीं बल्कि भीख होगी. अगर इज्जत से जीना है तो बैसाखियों को छोड़ कर खुद के पैरों पर खड़ा होना होगा.

‘‘बस मम्मा मैं सब सम?ा गई और यह भी जान गई कि यह कहानी किस की है. अब आप देखना आप की बेटी कुछ बन कर ही आएगी वहां से. मैं अभी अपना सामान पैक करती हूं. कल सुबह मु?ो कालेज जाना है.’’

अगले दिन अतुल सर ने रूही को क्लास में प्यार से अपने साथ चिपकाते हुए

कहा, ‘‘रूही डियर कहां रह गई थी? कल क्लास में क्यों नहीं आई? तुम्हारे बिना तो हमारा मन ही नहीं लगा कल.’’ सर के ऐसा करते और कहते ही पूरी क्लास हंसने लगी.

‘‘चटाक,’’ यह क्या इतनी जोर से आवाज और पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया. रूही का जोरदार हाथ सर के गाल पर पड़ा था. सब लड़कियां क्लास में खड़ी हो कर तालियां बजा रही थीं. लड़के शर्म और घबराहट से सिर नीचा किए बैठे थे और अतुल सर महोदय गाल पर हाथ रखे चुपचाप क्लास से बाहर चले गए.

इधर पूजा सोचने लगी किसी औरत को बेसहारा देख कर हरकोई सहारा देने के बहाने उस के शरीर का सौदा क्यों करता है? क्या स्त्री की इतनी ही औकात है?

नहीं दोस्त स्त्री की औकात इतनी नहीं. स्त्री अपनी औकात दिखाती नहीं इसलिए पुरुष की नजर में उस की कोई औकात नहीं वरना जिस दिन स्त्री अपनी औकात पर आ गई तो पूरी सृष्टि को तहसनहस भी कर सकती है स्त्री. इसलिए हमेशा स्त्री का सम्मान करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें