राहुल ने कालेज से ही फोन किया, ‘‘मां, आज 3 बजे तक मेरे दोस्त आएंगे.’’

रूपा ने पूछा, ‘‘कौन से दोस्त?’’

‘‘मेरा पुराना गु्रप?’’

‘‘कौन सा गु्रप? नाम बताओ, इतने तो दोस्त हैं तुम्हारे.’’

‘‘अरे मां, कृतिका, नेहा, अनन्या, मोहित,  अमित ये लोग आएंगे.’’

‘‘क्या? अनन्या भी?’’

‘‘हां, मां.’’

‘‘लेकिन वह यहां... हमारे घर पर?’’

‘‘ओह मां, इस में हैरानी की क्या बात है? आप तो हर बात पर हैरान हो जाती हैं.’’

‘‘अच्छा, ठीक है तुम आ जाओ,’’ कहते हुए रूपा ने फोन रखते हुए सोचा ठीक तो कह रहा है राहुल... मैं तो हैरान ही होती रहती. आजकल के बच्चों की सोच पर कि कैसी है युवा पीढ़ी. कितनी सहजता से रिएक्ट करती है हर छोटीबड़ी बात पर. हां, बड़ी बात पर भी.

अनन्या और राहुल बचपन से साथ पढ़े थे, फिर अनन्या ने साइंस ले ली थी, राहुत ने कौमर्स, लेकिन दोनों की दोस्ती बहुत पक्की थी. अमित और राहुल के पिता व मां दोनों अपने युवा बच्चों के दोस्त बन कर रहते थे. राहुल से 3 साल बड़ी सुरभि सीए कर रही थी.

राहुल भी उसी लाइन पर चल रहा था, बच्चों की गतिविधियों पर सावधान नजरें रखती हुई रूपा अंदाजा लगा चुकी थी कि राहुल और अनन्या के बीच दोस्ती से बढ़ कर भी कुछ और है, राहुल अनन्या के साथ बाहर जाता तो अमित कई बार उसे छेड़ते हुए कहते कि गया तुम्हारा बेटा अपनी गर्लफ्रैंड के साथ. राहुल भी हंसता हुआ आराम से कहता कि हां, अच्छी दोस्त है वह मेरी.’’

अब मातापिता के सामने यही कह सकता था बाकी तो अमित और रूपा ने अंदाजा लगा ही लिया था. कई बार तो रूपा ने इस विषय पर सख्ती से काम लेने की सोची, लेकिन फिर आज के बच्चे, आज का माहौल देखते हुए खुद को ही समझ लिया था. वैसे राहुल काफी सभ्य और पढ़ाई में होशियार था. स्पोर्ट्स में भी आगे रहता, अनन्या से उस की दोस्ती पर वह घर में कलह करे रूपा का मन यह भी नहीं चाहता था.

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