‘‘उठोनेहा, स्कूल नहीं जाना क्या? बस निकल जाएगी. फिर स्कूल कैसे जाएगी?’’ नीना ने उसे  झं झोड़ कर उठाया.

‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है. स्कूल नहीं जाऊंगी,’’ नेहा ने करवट बदली. नीना ने अटैच्ड बाथरूम का गेट खोला तो नेहा लपक कर बिस्तर से उठी और मां का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मैं ने जब कह दिया तबीयत ठीक नहीं है तो नहीं है. बाथरूम में क्या ताक झांक कर रही हो? क्या आप को पीरियड नहीं आते?’’

अपनी लड़की के मुंह से इतना सुनते ही नीना की भृकुटि तन गईर्, कुछ नहीं बोली और चुपचाप नेहा के कमरे से बाहर आ गई. मां के जाते ही नेहा ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया.

‘‘जब बोल दिया तो जासूसी करने की क्या जरूरत है? खुद को पीरियड नहीं आते क्या?’’ 14 साल की नेहा बड़बड़ाती हुई फिर से बिस्तर में पसर गईर्.

नीना भी मन ही मन भन्ना रही थी, ‘‘ये लड़कियां एक बार टीनएज हो जाएं तो हाथ से निकल जाती हैं. सुनती भी नहीं हैं.’’

थोड़ी देर में नीना भी औफिस के लिए निकल गई.

यह उम्र ही कुछ ऐसी है. शारीरिक और मानसिक बदलाव से लड़कियों की सोच

और दुनिया बदल जाती है. खेल और पढ़ाई से आगे शारीरिक आकर्षण, सुंदरता और लड़कों में रुचि बढ़ने लगती है.

नेहा अब टीवी अधिक देखने लगी थी. टीवी और फिल्म अभिनेत्रियों के बदन से अपनी तुलना करने लगी.

बाथरूम में अपनी फिगर देखते समय उस के मन में अभिनेत्रियां ही थीं. उन के जैसे हावभाव करने लगी. उस का मन भी वैसे फैशन करने को करता. मगर मम्मी भी न... खुद तो सजसंवर कर मटकती हुई औफिस निकल

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