शादी से पहले लगभग हर लड़की अपने भावी जीवन के बारे में कुछ सपने देखती है. उन सपनों में दुख नाम मात्र को भी नहीं होते. मैं भी उन्हीं लड़कियों में से एक थी.
शादी से पहले जब मैं ये सपने देखती तो उन में एक सपना मु?ो बारबार आता और वह
था मेरे भावी पति के पास एक एसयूवी का होना, जिस में 7 जने बैठ सकें. ऐसा सपना देखते
समय आंखों के सामने वही फिल्मी दृश्य आते, जिन में नायक और नायिका तथा 2 लड़के और
3 लड़कियां एक कार में मस्ती करते या गाते हुए जा रहे होते या नायिका स्वयं कार चला रही होती. मन के एक कोने में स्वयं कार चलाने की इच्छा भी दबी हुई थी.
संयोग से जिस व्यक्ति से मेरा रिश्ता तय हुआ उस का वेतन अच्छा था. मेरी बड़ी बहन खुशी से बोली, ‘‘अब मेरी बहन गहनों से लदी रहेगी.’’
मैं ने मन ही मन कहा कि क्या दकियानूसी बात कर दी. गहने लादने से क्या लाभ. यह क्यों नहीं कहती कि एसयूवी में घूमूंगी.
शादी के बाद पहली ही रात पति ने बड़े उत्साह से बताया कि उन की बुक कराई मारुति की आई-10 कार शीघ्र ही आने वाली है. मेरा सारा उत्साह ठंडा हो गया और सपने टूटने लगे.
मेरी चिरकाल से संजोई इच्छा को जान कर पति ने तसल्ली दी कि दोनों की अगली पदोन्नति पर एसयूवी भी आ जाएगी. सपने फिर से शुरू हो गए.
मै हर समय यही सोचती रहती कि कौन सी कार लेनी ठीक रहेगी, कौन सा रंग अच्छा होगा इत्यादिइत्यादि. जब किसी महिला को एसयूवी भी चलाते देखती तो उसे बहुत स्मार्ट मानती. कभी किसी ऐसी महिला से परिचय कराया जाता, जो पुराने फैशन की और सादी सी लगती तो मैं नाक सिकोड़ लेती पर मु?ो जैसे ही पता चलता कि वह एसयूवी भी चलाती है तो उस के प्रति मेरे विचार तुरंत बदल जाते. मु?ो वह बड़ी बोल्ड, आधुनिक व स्मार्ट नजर आती. सोचने लगती, वह दिन कब आएगा जब मैं भी ऐसी महिलाओं की श्रेणी में
आ जाऊंगी.
एक बार किसी विशेष स्थान पर टैक्सी कर के जाना पड़ा. रास्ते में एक लड़की कार चला कर जा रही थी. मु?ो ऐसा लगा मानो वह आधुनिक व स्वतंत्र हो और मु?ो एकदम फूहड़ और परतंत्र सम?ा रही हो. उसे क्या पता, थोड़े समय पश्चात मैं भी उस की तरह कार चलाऊंगी.
आखिर कुछ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद वह दिन भी आया जब हम ने एसयूवी खरीदी. पर इस खुशी के साथ मन में एक कसक थी. हमारी सारी जमापूंजी उस में लग गईर् थी. आई-10 तो बेचनी ही पड़ी, साथ ही कुछ रुपए भी उधार लेने पड़े. हमारे वर्ग के दूसरे लोग तो बड़े खुश नजर आते थे. क्या उन के दिलों में भी ऐसी कोई कसक थी?
मैं ने एसयूवी भी चलानी शुरू कर दी. अब जब भी 4 महिलाओं के बीच होती, घुमाफिरा कर बात इस बिंदु पर ले आती कि मैं भी एसयूवी चलाती हूं और किसी को भी छोड़ दूंगी हालांकि अभी स्टेयरिंग व्हील के आगे बैठने पर दिल इतने जोर से धड़कता था कि इंजन की आवाज उस के आगे मंद लगती.
एक दिन मैं मुख्य सड़क पर एसयूवी चला रही थी. एक बस मेरे आगे थी और एक पीछे. मेरे हौर्न बजाने पर अगली बस ने बड़ी तमीज से मु?ो आगे जाने की राह दे दी. पिछली आदरपूर्वक धीमी हो गई. मैं साथ बैठे पति से बोली, ‘‘लोग यों ही दिल्ली के बस चालकों को बदनाम करते हैं कि अंधाधुंध गाड़ी चलाते हैं. देखो न कैसे सलीके वाले चालक हैं.’’
पति से रहा न गया और बोले, ‘‘देवीजी, आप की कार के बाहर मैं ने 2 बड़े डैंटों के निशान लगे देखे हैं. आखिर उन्हें भी तो अपनी जान व नौकरी प्यारी. ये आप ने पिछले सप्ताह ही मारे थे. डैंटरपैंटर 3 हजार का ऐस्टीमेट दे रहा है. ये लोग ठुकी गाड़ी को ठीक कर आप की पहली ठुकाई का इंश्योरैंस नहीं देना चाहते.
एक बार मैं अकेली कहीं कार चला कर जा रही थी. चौराहे पर लालबत्ती थी और मैं सब से आगे थी. पता नहीं, किस सोच में थी कि अचानक अपने पीछे कारों की लाइन की पोंपों सुन कर चौंक गई. हरी बत्ती हो चुकी थी और मैं ने ध्यान ही नहीं दिया था. आगे बढ़ी तो एक टैक्सी वाला फर्र से पास से गुस्से से बकता हुआ निकल गया कि मैडम, तुसीं तो स्कूटी ले लो.
सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती व दोपहर को उन्हें वापस लाती तो अधिक ध्यान इसी ओर रहता कि कोई जानपहचान का मिल जाए तो देख ले कि मैं भी भारीभरकम कार चला लेती हूं. सुबह जाते समय कोई पड़ोसी न देख रहा होता तो लगता क्या सुस्त लोग हैं, अभी तक बिस्तरों पर पसरे हुए हैं.
एक बार हरीश बाबू शाम को मिलने आए तो बोले, ‘‘भाई साहब, दोहरी बधाई हो, एक तो एसयूवी खरीदने की, दूसरी भाभीजी के कार चलाना सीख लेने की. इतनी पावरफुल गाड़ी संभालना आसान नहीं है.’’
‘‘भई, जल्द ही तीसरी मुबारक भी देने आओगे… मेरे साइकिल खरीदने की नौबत जल्द ही आने वाली है क्योंकि तुम्हारी भाभी तो एसयूवी छोड़ती ही नहीं.’’
मेरा छोटा भाई विदेश से आया तो अगले ही दिन बड़े चाव व शान से अपना मोबाइल कैमरा दिखाते हुए बोला, ‘‘दीदी, चलिए आपका वीडियो बना लूं. किंतु इस के लिए आप को थोड़ा ऐक्शन में होना पड़ेगा.’’
‘‘अरे, यहां ऐक्शन की क्या कमी है,’’ मैं शान से बोली, ‘‘चलो, मैं एसयूवी चलाती हूं, तुम वीडियो बना लेना.’’
भाई ने अचकचा कर देखा. उस समय अपनी धुन में मस्त मैं ने सोचा कि इतनी जल्दी एसयूवी चलानी सीख ली है, शायद इसीलिए हैरान हो रहा है. थोड़ी देर बाद मैं एक भड़कीला टौप व जींस पहन तैयार हो कर उंगली में चाबी का गुच्छा घुमाती हुई आ गई तो उस बेचारे के लिए वीडियो खींचने के अलावा और कोई चारा न रहा.
ओहो, कार को भी आज ही नखरा
दिखाना था. नई कार और ?ाटक?ाटक कर चले, वह भी वीडियो खिंचवाने के समय. खैर,
जैसेतैसे एक सुंदर मोड़ से धीरेधीरे एसयूवी चलाती हुई, मुसकराती हुई, कैमरे के आगे से निकली तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी फिल्म की शूटिंग हो रही हो और मेरा पुराना सपना साकार हो गया हो.
मु?ो एसयूवी कंट्रोल करना आता है, इस प्रचार के लिए रिश्तेदारों से भी मिलने जाती. महिला क्लब जाना होता तो रास्ते में
6-7 सहेलियों को लेती जाती. कोई घर मिलने आता तो उसे मैट्रो स्टेशन तक एसयूवी में छोड़ने जरूर जाती.
एक दिन पतिदेव ने हिसाब लगा कर बताया कि डीजल के खर्चे के कारण घर का बजट डगमगाने लगा है और सुना है डीजल अभी और महंगा होने वाला है. बात तो बिलकुल ठीक थी, पर मेरी सहेलियों को क्या पता था. कहीं आनाजाना होता तो औपचारिकता को ताक में रख कर कह देतीं, ‘‘भई मनीषा, जाते समय हमें भी घर से लेती जाना.’’
अब तो आन का प्रश्न था, ले जाना पड़ता. वैसे भी अब मेरे पास सब से ज्यादा
गौसिप होतीं क्योंकि जब मेरे पास चाबी होती तो 6-7 नईपुरानी फ्रैंड्स अपनी कार छोड़ कर साथ चलने को तैयार हो जातीं.
20 मील की दूरी पर रहते एक दूर के रिश्तेदार के यहां शादी पर गए तो उन्होंने शिकायत की, ‘‘एसयूवी तुम्हारे पास है, फिर भी तुम कल दोपहर महिला संगीत पर नहीं पहुंचीं, कितनी बुरी बात है. हम तो सोच रहे थे कि तुम पीहू (होने वाली ब्राइड) को लहंगे सहित एसयूवी में तो लाओगी तो वह खिल उठेगी.’’
अब तो कार अधिक चलाने से पीठ अधिक दुखने लगती है. मुसीबत लगती है कि सुबह सारे काम छोड़ कर पूरी सोसायटी के बच्चों को स्कूल छोड़ने जाओ और दोपहर को आराम के समय उन्हें लेने जाओ. डीजल की महंगाई देखते हुए स्कूल बस ही ठीक रहेगी और मेरा सिरदर्द भी दूर होगा. बच्चों को भी मजा आता क्योंकि उन की कैब में एयरकंडीशनर तो था नहीं.
मेरी मौसी मेरे पास आईं तो बीमार पड़ गईं. अकसर डाक्टर के पास जाने को मु?ो ही एसयूवी के साथ हाजिर होना पड़ता क्योंकि उन के साथ उन की आया और मेरा मौसेरा भाई भी होता और फिर भला एसयूवी किसलिए सीखी थी. यदि ऐसे समय किसी की सेवा न कर सकी तो एसयूवी होेने का फायदा ही क्या. उबेर न ले लेते वे.
एक दिन सुबह पतिदेव ने फरमाया, ‘‘आज शाम किसी को जल्दी मिलने जाना है.
दफ्तर की बस से आते देर लग जाएगी, तुम एसयूवी ले कर शाम को दफ्तर पहुंच जाना.’’
वहां मेरी गाड़ी को पार्किंग ही नहीं मिली और पूरे 20 मिनट मैं इधरउधर भीड़ में उसे चलाती रही. छोटी गाडि़यां आराम से निकल भी रही थीं और पार्क भी हो रही थीं.
पैट्रोल और महंगा हो गया है. कहीं जाना हो तो पहला विचार यह आता है कि दूरी कितनी है, कितने का पैट्रोल फुंकेगा. क्या जाना इतना जरूरी है.
अब रिश्तेदार मिलने आते हैं 1-2 नहीं 4-5 आ जाते हैं. जब वे लौटने लगते हैं तो मुझे कहना पड़ता, ‘‘चलिए, मैट्रो स्टेशन तक मैं भी आप के साथ चलती हूं. मेरी भी सैर हो जाएगी. (चाहे धूप ही चमक रही हो.)’’
हालत यह है कि हम तो खाली पेट चल सकते हैं, पर एसयूवी को खाली पेट लाख धक्के मारिए, वहीं अड़ी रहेगी, गुर्राती रहेगी.
उस दिन दोपहर के भोजन पर 5-6 मेहमान आए. उन के जाने तक थक कर चूर हो चुकी थी, पर बच्चों की छुट्टी का समय हो रहा था, उन्हें लाना था. भरी दोपहरी में कार चला रही थी.
2-4 डैंट पड़ जाने के कारण उस में कुछ न कुछ खराबी का खटका भी लगा रहता है. कितनी सुखी थी मैं, जब मु?ो एसयूवी चलानी नहीं आती थी और आई-10 ही ठीक थी.
तभी तेजी से एक उबेर गुजरी, जिस में एक महिला बैठी थी. मु?ो लगा, क्या रानियों की तरह ठाट से पीछे बैठी है. न कार की खराबी का खटका, न पैट्रोल की सूई का ध्यान. मु?ो अब वह महिला अधिक आधुनिक, शांत व स्मार्ट लग रही थी.