दहशत- भाग 4: क्या सामने आया चोरी का सच

कुछ देर के बाद गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘एक प्रौब्लम हो गई है प्रीतिजी, खाना तो सब तैयार है लेकिन उसे परोसेंगे किस में? आप बुरा न मानें तो खाना यहीं मंगवा लूं मगर मेरे पास भी बरतन नहीं हैं, आप के यहां ही आना पड़ेगा.’’

‘‘तो आइए न डा. राघव और दूसरे मेहमानों से भी मेरी ओर से आने का आग्रह कीजिए.’’ ‘‘दूसरे मेहमान हमारे सीनियर डाक्टर थे, सो उन्हें असलियत बता कर राघव ने माफी मांग ली है. जो डाक्टर राघव के साथ रहते हैं उन दोनों की आज नाइट शिफ्ट है. सो, बस राघव ही आएगा. माफ करिएगा, मेहमान के बजाय आप को मेजबान बना रहा हूं.’’

‘‘माई प्लैजर डाक्टर, डू कम प्लीज.’’ कुछ देर के बाद गौरव और राघव राजू के साथ खाने का सामान उठाए हुए आ गए.

‘‘राजू को रोक लें, खाना गरम कर के सर्व कर देगा?’’

‘‘हां, फिर खुद भी खा लेगा. चलो, राजू तुम्हें बता दूं कि कहां क्या रखा है.’’ राजू को सब समझा कर प्रीति भुने पिस्ते और काजू ले कर आई, ‘‘जब तक राजू सूप गरम कर के लाता है तब तक इस से टाइमपास करते हैं.’’ ‘‘गुड आइडिया,’’ राघव ने पिस्ते उठाते हुए कहा, ‘‘वैसे आप दोनों ने इस कालोनी के लोगों को कई रोज के लिए टाइमपास का जरिया दे दिया.’’ लेकिन हंसने के बजाय प्रीति ने गंभीरता से कहा, ‘‘टाइमपास से ज्यादा बात फिक्र करने की है. आज जो हुआ है उस से तो लग रहा है कि चोर कालोनी में ही रहता है.’’ ‘‘वह तो आप के साथ हुए हादसे से ही पता चल गया था,’’ गौरव ने गौर से उस की ओर देखा. वह सहमी हुई सी लग रही थी.

‘‘आज भी उस ने यह हरकत की और मौका लगते ही फिर कर सकता है,’’ राघव बोला.

‘‘यानी हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा. शुंभ से कहती हूं कोई फुलटाइम नौकरानी तलाश करे मेरे लिए जो रात में भी मेरे यहां रहे,’’ प्रीति ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा, इस से आप का अकेलापन भी दूर होगा,’’ गौरव ने प्रीति के मनोभाव पढ़ने की कोशिश की, ‘‘थकेहारे काम से खाली घर में लौटने पर थकान और बढ़ जाती है.’’

‘‘यू कैन से दैट अगेन,’’ प्रीति ने उसांस ले कर कहा.

‘‘अकेलेपन से परेशानी है तो अकेलापन दूर करने का स्थायी प्रबंध क्यों नहीं करते आप दोनों…’’

‘‘क्यों, आप को अकेलेपन से परेशानी नहीं है?’’ प्रीति ने राघव की बात काटी.

‘‘होनी शुरू हो गई थी तभी तो मधु से उस की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही शादी कर ली. वह लखनऊ में एमडी कर रही है, चंद महीनों में पूरी कर के यहां आएगी.’’

‘‘और तब राघव के घर में चलने वाला हमारा मैस बंद हो जाएगा,’’ गौरव ने कहा.

‘‘तो अपने घर में चला लीजिएगा, आप के 2 साथी और भी तो हैं.’’ इस से पहले कि गौरव प्रीति के सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता, राजू सूप ले कर आ गया और विषय बदल गया.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ राघव ने चलने से पहले कहा, ‘‘मधु की मुलाकात करवाऊंगा आप से.’’

‘‘जरूर, उन की वैलकम पार्टी यहीं रख लेंगे, क्यों गौरव?’’

‘‘दैट्स एन आइडिया,’’ गौरव फड़क कर बोला. प्रीति के मुंह से अपना नाम सुन कर वह अभिभूत हो गया था. किसी भी तरह इस अनौपचारिकता को आगे बढ़ाना होगा. उसे राघव पर भी गुस्सा आया. क्यों उस ने राजू से टेबल और किचन साफ करवा दिया वरना इसी बहाने प्रीति की मदद करने को वह कुछ देर और रुक जाता. अब तो खैर जाना ही पड़ेगा मगर जल्दी ही कोई और मौका ढूंढ़ना होगा. और मौका अगले रोज ही मिल गया. सोसायटी के क्लबहाउस में शाम को इमरजैंसी मीटिंग रखी गई थी जिस में प्रत्येक फ्लैट से एक सदस्य का आना अनिवार्य था. गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘जिन हादसों से घबरा कर मीटिंग रखी गई है उन के शिकार तो हम दोनों ही हैं तो हमारा जाना तो जरूरी है. आप चल रही हैं?’’

‘‘जी हां, और आप?’’

‘‘मैं भी चल रहा हूं. इकट्ठे ही चलते हैं.’’ गौरव ने सोचा तो था कि इकट्ठे ही बैठेंगे मगर लिफ्ट में वर्मा दंपती भी मिल गए, प्रीति श्रीमती वर्मा के साथ चलते हुए उन्हीं के साथ ही अन्य महिलाओं के पास बैठ गई. प्रीति से तो किसी ने कुछ नहीं पूछा लेकिन गौरव की स्वयं की लापरवाही मानने पर भूषणजी ने कहा कि ऐसी गलती किसी से भी हो सकती है, सो बेहतर होगा कि पहले माले की सभी बालकनियों में ऊपर तक ग्रिल लगवा दी जाए और हरेक बिल्डिंग के गेट पर सीसीटीवी कैमरा. अधिकांश लोगों ने तो प्रस्ताव का अनुमोदन किया और कुछ ने महंगाई के बहाने अतिरिक्त खर्च का विरोध किया मगर सुरक्षा का कोई दूसरा विकल्प न होने से प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया और मीटिंग खत्म. गौरव ने सुना, कुछ महिलाएं प्रीति से कह रही थीं, ‘‘चोर के बहाने उस रोज आप के यहां बढि़या पकौड़े खाने को मिल गए.’’

‘‘पकौड़ों की दावत तो आप को जब चाहे दे सकती हूं.’’ ‘‘मगर उस से पहले आप को हमारे यहां आना पड़ेगा,’’ किसी ने कहा. ‘‘बुध को मेरे यहां किटी पार्टी है न, उस में प्रीति को बुला लेते हैं,’’ श्रीमती वर्मा बोलीं, ‘‘हमारी खातिर एक रोज छुट्टी कर लेना प्रीति.’’

‘‘आप पार्टी का समय बता दीजिए, मैं आ जाऊंगी और पार्टी खत्म होने पर फिर औफिस चली जाऊंगी,’’ प्रीति हंसी.

‘‘ऐसी बात है तो आप हमारी किटी जौइन कर लीजिए न. महीने में 1 बार कुछ घंटों का बंक मारना तो चलता है.’’ ‘‘देखते हैं,’’ प्रीति ने वर्मा दंपती के साथ चलते हुए कहा. कुछ दूर जा कर वर्मा दंपती एक और बिल्ंिडग में चले गए और गौरव लपक कर प्रीति के साथ आ गया.

‘‘आप डा. राघव के साथ नहीं गए?’’

‘‘उस के साथ जा कर क्या करता? वह तो अभी मधु से चैट करेगा. खाना तो हम लोग 9 बजे के बाद खाते हैं.’’

‘‘अभी घर जा कर क्या करेंगे?’’

‘‘चैनल सर्फिंग, जब तक कुछ दिलचस्प न मिल जाए. आप क्या करेंगी?’’

‘‘वही जो आप करेंगे. उस से पहले आप को कौफी पिला देती हूं.’’

‘‘जरूर,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘चोर के बहाने आप की तो कालोनी में जानपहचान हो गई, किटी पार्टी में जाने से और भी हो जाएगी,’’ गौरव ने कौफी पीते हुए प्रीति की ओर देखा, ‘‘खाली समय आसानी से कट जाया करेगा.’’ प्रीति के अप्रतिभ चेहरे से लगा जैसे चोरी करती रगेंहाथों पकड़ी गई हो. ‘‘उन महिलाओं का जो खाली समय होगा तब मुझे फुरसत नहीं होगी और जब मैं खाली हूंगी तो वे अपने घरपरिवार में व्यस्त होंगी,’’ प्रीति ने एक गहरी सांस खींची, ‘‘वैसे जानपहचान तो आप से भी हो गई है.’’ ‘‘और मेरे पास तो शाम को खाली वक्त भी होता है. अस्पताल से 7 बजे छुट्टी मिल जाती है. कई बार घर आ कर 9 बजे तक टाइम गुजारना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कभी फोन कर सकता हूं?’’ गौरव ने मौका लपका.

‘‘औफिस से जल्दी निकलने पर अकसर मैं मैडिटेशन सैंटर चली जाती हूं. सो, हो सकता है तब आप को मेरा मोबाइल बंद मिले.’’

‘‘अपने घर में सन्नाटा कम है क्या जो शांति की तलाश में मैडिटेशन सैंटर जाती हैं?’’ गौरव हंसा.

‘‘अपने पास जो होता है उस की कद्र कौन करता है?’’ प्रीति भी हंसने लगी.

‘‘यह तो है, पहले बंधन और रिश्तों से बचने के लिए अपनों को नकारते हैं और फिर भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं.’’

‘‘सही कहा आप ने, अपनों की भीड़ तो चौराहों से अपनी राह चली जाती और आप तनहा खड़े रह जाते हैं खुद की बनाई बंद गली में.’’ ‘बंद ही नहीं, अंधेरी गली में जिस की घुटन से घबरा कर आप ने खुद सामान को गिरा कर एक काल्पनिक चोर का निर्माण किया था और दहशत का माहौल बना दिया था जिस की सचाई जानने को मैं ने अपनी और राघव की क्रौकरी तोड़ी, पहली मंजिल से कूदने का रिस्क लिया. भले ही इस सब से कालोनी वालों का आजकल के माहौल के किए उपयुक्त सुरक्षा मिल गई और आप को थोड़ी बहुत दोस्ती,’  गौरव ने कहना चाहा मगर यह सोच कर चुप रहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. कोशिश तो यही रहेगी कि ये सब बगैर बताए ही प्रीति के करीब आ कर उस की और अपनी जिंदगी से अकेलेपन की वीरानगी और दहशत हमेशा के लिए दूर कर दें.

शक की निगाह: नीरा की बेटी ने क्या किया था

शाम को औफिस से घर आया तो पत्नी का उतरा हुआ चेहरा देख कर कुछ न कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा हो गया. बिना कुछ पूछे मैं हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम में चला गया. वापस आया तो नीरा चाय ले कर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी. चाय के कप के साथ ही मैं ने अपनी प्रश्नवाचक निगाह उस के चेहरे पर टिका दी. प्रश्न स्पष्ट था, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘सामने वाले फ्लैट को रामवीर सहायजी ने स्टूडैंट्स को किराए पर दे दिया है,’’ नीरा के स्वर में झल्लाहट और रोष दोनों ही टपक रहे थे. ‘‘यह तो बहुत ही अच्छा हुआ. इतने महीने से फ्लैट खाली पड़ा हुआ था, अब चहलपहल रहेगी. वैसे भी जहां स्टूडैंट्स रहते हैं वहां चौबीसों घंटे रौनक रहती है. न कभी रात होती है न कभी दिन. एक सोता है तो दूसरा जागता है. पर तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो?’’ मैं ने पूछा तो नीरा बिफर पड़ी, ‘‘तुम आदमियों का दिमाग तो जैसे घुटने में रहता है. आजकल के लड़के पढ़ाई के नाम पर घरों से दूर रह कर क्याक्या गुल खिलाते रहते हैं, क्या कभी सुना नहीं? मांबाप सोचते हैं उन का बेटा दिनरात एक कर के पढ़ाई में लगा होगा जबकि लड़के उन के पैसों पर गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं.’’

‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा नीरा, बच्चे किसी और के हैं, पैसे किसी और के हैं, पर परेशान तुम हो रही हो. आखिर वजह क्या है, साफसाफ बताओ.’’ ‘‘तुम्हारी तो, जब तक साफसाफ न बताओ तब तक, कोई बात समझ में ही नहीं आती. अपने घर में 3-3 जवान होती बेटियां हैं. हम दोनों पतिपत्नी सुबह ही औफिस निकल जाते हैं और घर के ठीक सामने जवान होते लड़के आ कर बस गए. चिंता न करूं तो क्या करूं?’’ ‘‘देखो नीरा, वे लड़के पराए हैं पर बेटियां तो अपनी हैं. उन्हें तो हम ने अच्छे संस्कार दिए हैं. फिर उन लड़कों के बारे में बिना कुछ जानेसमझे गलत धारणा बनाना भी ठीक नहीं है. अब चिंता छोड़ो और जाओ, अपना काम करो,’’ कह कर मैं पेपर पढ़ने लगा.

‘‘देखोजी, जवान लड़केलड़कियां आग और फूस के समान होते हैं. आसपास रहेंगे तो कभी भी आग पकड़ लेने का अंदेशा बना रहता है. तुम या तो सहायजी से कहो कि लड़कों के बजाय किसी परिवार वाले को घर दे दें, या तुम ही कोई दूसरा घर देखो. हमें नहीं रहना अब यहां.’’ सोते वक्त भी नीरा घर बदलने पर विचार करने की हिदायत देने लगी. मुझे आंखकान खुले रखने और लड़कों को मुंह न लगाने को कह कर नीरा तो सो गई पर मैं सोचने लगा कि क्या सचमुच बात इतनी चिंता करने लायक है जितनी नीरा कर रही है. यह सच है कि आजकल अच्छेबुरे दोनों तरह के लोग होते हैं पर बिना किसी से मिले, समझे उस के बारे में यह धारणा बना लेना कि वे बुरे ही हैं और यहां पढ़ने नहीं गुलछर्रे उड़ाने आए हैं, सरासर गलत है. फिर वे भले ही पराए हैं पर हमें अपनी बेटियों पर तो विश्वास करना ही चाहिए. आखिर उन्हें तो हम ने ही संस्कार दिए हैं.

फिर भी मैं कल उन लड़कों से मिलूंगा और निर्णय पर पहुंचूंगा कि हमें आगे उन के साथ किस तरह का संबंध बना कर रखना है. दूसरे दिन रविवार था, मैं ने जानबूझ कर बाहर का दरवाजा खुला छोड़ दिया और वहीं कुरसी डाल कर पेपर पढ़ने बैठ गया. उन लड़कों को अपने काम से अंदरबाहर आतेजाते देखता रहा. इस दौरान उन्होंने एक बार भी अनायास घर में ताकझांक करने की कोशिश नहीं की. जब मेरी नजर एक लड़के से मिली तो उस ने ‘अंकल नमस्ते’ कह कर मेरा अभिवादन किया, तो मैं ने भी मौका हाथ से जाने न दिया, ‘‘अरे बच्चो आओ, हमारे साथ एकएक कप चाय पीओ, इसी बहाने हम लोग एकदूसरे के बारे में भी जानसमझ लें.’’ मैं ने नीरा से पूछे बगैर ही उन लड़कों को चाय पीने के लिए बुला लिया.

मुझे पता था नीरा को यह बिलकुल नागवार गुजरा होगा कि मैं ने उन लड़कों को घर में ही बुला लिया. इसीलिए मैं ने नीरा को कोई औपचारिक सूचना देने के बजाय चुपचाप पेपर पढ़ते रहने में ही अपनी भलाई समझी. इस बात का विश्वास भी था कि लड़कों के आने पर चाय के साथ कुछ नाश्ता भी ले कर अपनेआप ही आ जाएगी नीरा. हुआ भी वही. एकएक कर के पांचों लड़के अंकल नमस्ते कहते हुए आ कर बैठ गए. थोड़ी ही देर में नीरा भी चाय की ट्रे ले कर आ गई. मुझे आश्चर्य भी हुआ देख कर कि सुबह के नाश्ते में बनाया हुआ पोहा पांचों लड़कों के बीच बांट दिया था नीरा ने. हम ने उन से बातोंबातों में उन के पूरे खानदान की जानकारी हासिल कर ली. और होनीअनहोनी पर तुरंत संपर्क कर सकूं इस का हवाला दे कर मैं ने उन पांचों के घरों का पता और फोन नंबर भी नोट कर लिए.

उसी समय उन के सामने ही एकएक के घर फोन मिला कर मैं ने बात भी कर ली. मेरे इस आश्वासन से कि मैं उन के बच्चों का एक अभिभावक की तरह खयाल रखूंगा, वे लोग बहुत ही आभारी होने लगे. सभी से बात कर के मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि बच्चे संस्कारी व सुशिक्षित घरों के हैं और यहां पर सचमुच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने ही आए हैं. कुछ आश्वस्त तो नीरा भी हुई पर पता नहीं पिता की तुलना में मां बच्चों के प्रति ज्यादा शंकालु होती हैं या पिता से ज्यादा बच्चों को प्यार करती हैं कि हर वक्त उन की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहती हैं. नीरा ने बेटियों पर कई तरह की बंदिशें लगा डालीं, जैसे जोरजोर से ठहाके न लगाओ, अनायास बालकनी में न खड़ी हो, बाहर का सिर्फ जाली वाला ही नहीं लकड़ी वाला दरवाजा भी हमेशा बंद रखा करो आदि.

समय के साथसाथ सबकुछ सामान्य ढंग से चलता रहा. लड़के घर पर कम ही रहते. सारा दिन कोचिंग सैंटर में होते. घर आते तो सो जाते और फिर रात को जग कर पढ़ाई करते. हमारे जीवन में तथा हमारी दिनचर्या में उन के होने, न होने का कोई फर्क नहीं पड़ा. हां, कुछ तकनीकी बातों जैसे इंटरनैट, मोबाइल आदि की खास समस्याओं के लिए हम उन पर निर्भर हो गए थे और वे भी आम पड़ोसियों की तरह कभीकभार चायपत्ती, चीनी या 1-2 आलूटमाटर के लेनदेन से ज्यादा और कुछ दखलंदाजी नहीं करते. कल को हमारा छोटा सा बेटा बड़ा होगा और वह भी कहीं न कहीं पढ़ने या नौकरी करने बाहर जाएगा ही, तब कोई उस के साथ अच्छी तरह पेश आए, हम यही चाहेंगे, इसीलिए मैं उन लड़कों के साथ और भी अच्छी तरह व्यवहार करता.

मेरे अलावा नीरा की भी शंका उन लड़कों के प्रति कम हो ही रही थी कि एक दिन रात के 2 बजे घर में कुछ हलचल सी सुनाई दी तो मैं और नीरा घबरा कर अपने कमरे से बाहर निकले. देखा तो हमारी बड़ी और छोटी बेटियां घबराई हुई सी खड़ी थीं. बाहर का दरवाजा खुला था और सामने वाले फ्लैट में भी कुछ असामान्य सी हलचल दिख रही थी. ‘‘क्या हुआ? तुम दोनों इतनी घबराई हुई क्यों हो और स्नेहा और सौरभ कहां हैं?’’ हम दोनों ने एकसाथ ही सारे सवाल पूछ डाले. ‘‘मां, पापा, सौरभ तो सो रहा है पर स्नेहा घर में नहीं है. मैं अभी वाशरूम जाने के लिए उठी तो देखा दरवाजा खुला है, और स्नेहा नहीं है.’’ हमारे तो पैरों तले से जमीन ही खिसक गई, ‘‘दिखा ही दिया इन शरीफजादों ने अपना रंग,’’ कह कर नीरा सोफे पर निढाल पड़ गई. मैं दौड़ता हुआ बाहर की ओर भागा. लड़कों के फ्लैट का दरवाजा भी खुला हुआ था. मैं अपने वश में नहीं रह गया था. चीखते हुए मैं उन के घर में घुस गया. पांचों में से 3 लड़के सामने ही खड़े थे और वे खुद भी परेशान लग रहे थे. ‘‘विनय और राहुल कहां हैं?’’ मैं ने चीखते हुए पूछा. ‘‘जी, अंकल, वे अभीअभी गए हैं, बस आते ही होंगे,’’ वे तीनों एकसाथ बोल पड़े. ‘‘कहां ले कर गए हैं वे मेरी बेटी को? मुझे जल्दी बताओ वरना मैं तुम सब को पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ मैं अपना आपा खोता जा रहा था. ‘‘अंकल, वे स्नेहा को ले कर नहीं गए हैं, आप को गलतफहमी हो रही है.’’ ‘‘गलतफहमी हो रही है? अगर वे स्नेहा को ले कर नहीं गए हैं तो तुम्हें कैसे पता कि स्नेहा कहीं गई है? हम ने तो नहीं बताया तुम्हें कि स्नेहा घर में नहीं है.’’

जिन लड़कों को मैं अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जा कर मानसम्मान और स्नेह दे रहा था उन्होंने आज मेरे मुंह पर ऐसी कालिख पोत दी, सोच कर मेरा आत्मनियंत्रण समाप्त होता गया और मैं ने पास पड़ा बैट उठा कर उन के ऊपर बरसाना शुरू कर दिया. अचानक उन लड़कों के तेवर बदल गए. उन्होंने मेरे हाथ से बैट छीन कर फेंक दिया. ‘‘अंकल, अभी तक हम आप के आदरवश चुप थे. आप के सम्मान की खातिर हमारा दोस्त अपनी जान की परवा किए बिना ही इस समय यहां से गया हुआ है और आप उस पर ही शक कर रहे हैं? हमें ही दोषी ठहरा रहे हैं? आंटी ने हमेशा हमें ही शक की निगाह से देखा पर कभी अपनी बेटियों पर भी निगरानी रखी? अगर निगरानी रखी होती तो यह दिन नहीं आता. स्नेहा विनय या राहुल के साथ नहीं भागी है, बल्कि किसी और के साथ गई है, पर आप चिंता न कीजिए. विनय और राहुल उसे वापस ले कर आते ही होंगे.’’

उन की बात सुन कर मैं असमंजस में पड़ गया कि ये सच बोल रहे हैं या झूठ. पर तभी पीछे से नीरा दहाड़ी, ‘‘इन की झूठी बातों में मत आइए. ये सब इन की साजिश का हिस्सा है. ये हमें ऐसे ही उलझा कर तब तक रखना चाहते हैं जब तक वेदोनों स्नेहा को ले कर दूर न निकल जाएं. आप तुरंत पुलिस को फोन लगाइए वरना हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे,’’ नीरा जोरजोर रोए जा रही थी. ‘‘प्लीज अंकल, आप हमारी बात पर यकीन कीजिए. पुलिस को बुला लेंगे तो बात सभी को पता चल जाएगी. स्नेहा तो बदनाम होगी ही, आप सब का भी घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा. आप बस थोड़ी देर हमारी बात का यकीन कीजिए. अगर 10 मिनट तक वे स्नेहा को ले कर वापस नहीं आ जाते हैं तो आप को जो दिल आए करिएगा. पर अभी बस हमारी इस बात का यकीन करिए कि राहुल और विनय स्नेहा को भगा कर नहीं ले गए हैं बल्कि उसे किसी और के साथ इस समय जाता देख वापस ले आने के लिए गए हैं.’’

हालांकि मेरी सोचनेसमझने की शक्ति पूरी तरह खत्म हो चुकी थी फिर भी उन लड़कों की बात पर यकीन कर कुछ देर इंतजार कर लेने में ही मैं ने भलाई समझी. पुलिस के आने से सिवा बदनामी और बात के बतंगड़ के अलावा और कुछ हासिल नहीं होना था. मैं घड़ी देखता, चहलकदमी करने लगा.

नीरा और बच्चे अंदरबाहर करते रहे. ‘‘अंकल, आप सब को पता है कि हम सब रात को जग कर पढ़ाई करते हैं. पिछले कई दिनों से हम स्नेहा को अपनी बालकनी में धीरेधीरे फोन पर बात करते हुए देखते थे पर हम ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. ‘‘इधर 2-3 दिनों से 2 लड़कों को रात को बिल्ंिडग के आसपास चक्कर लगाते देख हमें कुछ शक हो रहा था. हम आप से बात करें या न करें, और आप हमारी बातों का यकीन करेंगे या नहीं, हम सब आपस में यह विचारविमर्श कर ही रहे थे कि अचानक जब विनय चाय पीने के लिए बालकनी में निकला तो उसे नीचे 2 लड़कों के साथ एक लड़की दिखी. उस ने ध्यान से देखा तो वह स्नेहा ही लगी. विनय चाय का कप अंदर रख कर तुरंत उन के पीछे भागा. जाते वक्त सिर्फ इतना ही बोला, ‘शायद स्नेहा कहीं जा रही है, मैं उसे ले कर आता हूं,’ उसे अकेला जाता देख राहुल भी पीछेपीछे भागा. चूंकि सबकुछ अस्पष्ट था, वह स्नेहा ही है या कोई और थी? यह भी पक्का नहीं था, इसलिए हम आप को जगा कर क्या बताएं, बताएं या नहीं, यह सोच ही रहे थे कि आप सब स्वयं जग गए.

‘‘अंकल, आप लोगों ने इस अनजान शहर में हमें जितना स्नेह और संरक्षण दिया है उस के बदले में हमें अपनी जान की बाजी लगा कर भी आप लोगों के सम्मान की रक्षा करनी पड़े तो कम है. हमें पता है कि स्नेहा का कोई बड़ा भाई नहीं है, ऐसे में बड़े भाई का कर्तव्य हमें ही निभाना है.’’ उन की बातें पूरी भी नहीं हुई थीं कि राहुल और विनय वापस आ गए. उन के साथ डरीसहमी सी स्नेहा भी खड़ी थी. विनय ने उस का हाथ जोर से पकड़ रखा था, ‘‘अंकल, स्नेहा किसी सड़कछाप के साथ जा रही थी कहीं, मैं ने आज इसे न जाने कितने चांटे मारे हैं. मुझे माफ कर दीजिएगा. मैं अपने पर नियंत्रण न रख सका. जो पिता अनजान, अपरिचित बच्चों पर इतना प्यार न्योछावर करता हो उस पिता की बेटी ने उन के मुंह पर कालिख पोतने से पहले जरा भी न सोचा. बस, यही सोच कर मैं अपना आपा खो बैठा था. मुझे अफसोस है तो बस इस बात का कि इस की हरकतों पर शक होते ही मैं ने एक बड़े भाई की भूमिका अदा करने में देर कर दी. अगर मैं ने उसी वक्त इसे थप्पड़ मार दिया होता तो आज न यह इतनी बड़ी गलती करती और न आप लोगों को शर्मिंदा करती.’’

उन लड़कों को धन्यवाद, शुक्रिया कहने के लिए न तो हमारे पास शब्द थे न ही जबान. हम स्नेहा को सहीसलामत ले कर घर में आ गए. दिनचर्या धीरेधीरे फिर सामान्य होने लगी. सबकुछ पूर्ववत चलने लगा. बदलाव बस इतना आया कि नीरा अब उन लड़कों के बजाय अपनी बेटियों को शक की निगाह से देखने लगी. पहले उन लड़कों से सामना हो, वह नहीं चाहती थी और अब उन का सामना कैसे करेगी, यह सोच कर परेशान रहने लगी.

अधूरी मौत- भाग 5: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली.

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए रिवौल्वर साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली.

ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों ओर खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स से रिवौल्वर निकालते हुए कहा, ‘‘हां, तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली.

शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, मैं 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया. तुम ने लगभग 100 मीटर दूर पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग की तो मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान पुलिस को दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

काला अतीत- भाग 2: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

मर्द गलती कर माफी मांगने को अपना हक समझता है, लेकिन औरत की एक गलती पर सजा देने को आतुर रहता है. मर्द पराई औरतों को घूर सकता है, सिगरेटशराब पी सकता है, शराब के नशे में पत्नी को पीट सकता है, बातबात पर उस के मायके वालों को कोस सकता है, लेकिन अगर यही सब एक औरत करे तो वह बदचलन, बदमाश और न जाने क्याक्या बन जाती है.

कहने को तो जमाना बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है, पर कहीं न कहीं आज भी औरतें मर्दों की पांव की जूती ही समझी जाती हैं. उन की जगह पति के पैरों में होती है. लेकिन मैं जानती हूं, मेरे देवेन ऐसे नहीं हैं बल्कि उन का तो कहना है कि पति और पत्नी दोनों गाड़ी के 2 पहिए की तरह होते हैं, एकदम बराबर. लेकिन अगर मैं कहूं कि उस महिला की तरह कभी मेरा भी बलात्कार हुआ था, तो क्या देवेन इस बात को हलके से ले सकेंगे? कहने को भले ही कह दिया कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन पड़ता है. हर मर्द को पड़ता है.

जब एक धोबी के कहने पर मर्यादापुरुषोत्तम राम ने ही अपनी पत्नी सीता को घर से निकाल दिया था वह भी तब जब वह उन के बच्चे की मां बनने वाली थीं तो फिर देवेन पर मैं कैसे भरोसा कर लूं कि वे मुझे माफ कर देंगे? नहीं, मुझ में इतनी ताकत नहीं और इसलिए मैं ने अपना काला अतीत हमेशा के लिए अपने अंदर ही दफन कर लिया. भरेपूरे परिवार में मैं एकलौती बेटी थी. मैं घर में सब की प्यारी थी. दादी का प्यार, मां का दुलार और पापा का प्यार हमेशा मुझ पर बरसता रहता. लेकिन इस प्यार का मैं ने कभी नाजायज फायदा नहीं उठाया. पढ़ने में मैं हमेशा होशियार रही थी.

स्कूल में मेरे अच्छे नंबर आते थे. लेकिन औरों की तरह कभी मुझे डाक्टरइंजीनियर बनने का शौक नहीं रहा. मैं तो आईएएस बनना चाहती थी. जब भी किसी लड़की के बारे में पढ़ती या सुनती कि वह आईएएस बन गई, तो सोचती मैं भी आईएएस बनूंगी एक दिन.

दिनरात मेरी आंखों में बस एक ही सपना पलता कि मुझे आईएएस बनना है. पापा से बोल भी दिया था कि 12वीं कक्षा के बाद मैं यहां गोरखपुर में नहीं पढ़ूंगी. मुझे अपनी आगे की पढ़ाई दिल्ली जा कर करनी है. उस पर पापा ने कहा था कि जहां मेरा मन करे जा कर पढ़ाई कर सकती हूं, पर मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि आईएएस बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है. उस पर मैं ने कहा था कि हां पता है मुझे और मैं खूब मेहनत करूंगी.

एक दिन जब मैं ने यह बात अपने दोस्त मोहन का बताया, जो की मेरे साथ मेरे ही क्लास में पड़ता था, तो उस का चेहरा उतर आया. कहने लगा कि वह मेरे जैसा पढ़ने में होशियार नहीं है. लेकिन उस का भी मन करता है दिल्ली जा कर पढ़ाई करने का. पढ़ाई क्या करनी थी, उसे तो बस मस्ती करने दिल्ली जाना था और यह बात उस के बाबूजी भी अच्छे से समझ रहे थे. तभी तो कहा था कि पैसे की बरबादी नहीं करनी है उन्हें. अभी 2-2 बेटियां ब्याहने को हैं और जब पता है कि लड़का पढ़ने वाला ही नहीं है, फिर गोबर में घी डालने का क्या फायदा.

उस की बात पर मुझे हंसी आ गई थी. सो छेड़ते हुए कह दिया, ‘‘हां, सही तो कह रहे हैं चाचाजी. गोबर में घी डालने का क्या फायदा. गोबर कहीं का. इस से तो अच्छा तू अपने बाबूजी का चूडि़यों का बिजनैस संभाल ले. पढ़ने से भी बच जाएगा और डांट भी नहीं पड़ेगी तुझे,’’ बोल कर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी थी. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी बातें उसे इतनी बुरी लग जाएंगी कि वह मेरे साथ स्कूल जाना ही छोड़ देगा.

मोहन का और मेरा घर आसपास ही थे. उस की मां और मेरी मां की आपस में खूब बनती थी. हम दोनों साथ ही स्कूल आयाजाया करते थे. मोहन के साथ स्कूल जाने से मां के मन को एक तसल्ली रहती कि साथ में कोई है, रक्षक के तौर पर. लेकिन उस दिन की बात को ले कर मोहन मुझ से गुस्सा था. मुझे भी लगा, मैं ने गलत बोल दिया, ऐसे नहीं बोलना चाहिए था मुझे.

मैं उस से माफी मांगने उस के घर गई तो उस के सामने ही उस के मांबाबूजी उसे ताना मारते हुए कहने लगे कि एक सुमन को देखो, पढ़ने में कितनी होशियार है और एक तुम. किसी काम के नहीं हो.

मुझे बुरा भी लगा कि बेचारा, बेकार में डांट खा रहा है. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि इस बार अगर वह 12वीं कक्षा में पास नहीं हुआ, तो उसे चूडि़यों की दुकान पर बैठा देंगे. और हुआ भी वही. मोहन 12वीं कक्षा में फेल हो गया और वहीं मैं 96% अंक ला कर पूरे स्कूल में टौपर बन गई.

मेरे इतने अच्छे अंकों से पास होने पर मोहन मुझ से इतना जलभुन गया कि उस ने मुझ से बात करना ही छोड़ दिया. लेकिन इस में मेरी क्या गलती थी. फिर भी मैं उसे धैर्य बंधाती कि कोई बात नहीं, मेहनत करो, इस बार पास हो जाओगे.

मेरा दिल्ली के एक अच्छे कालेज में एडमिशन हो गया था और 2 दिन बाद ही मुझे दिल्ली के लिए निकलना था. इसलिए सोचा बाजार से थोड़ीबहुत खरीदारी कर लेती हूं. पीछे से किसी का स्पर्श पा कर चौंकी तो मोहन खड़ा था. वह मुझे देख कर मुसकराया तो मैं भी हंस पड़ी.

राहत की सांस ली कि अब यह मुझ से गुस्सा नहीं है. दोस्त रूठा रहे, अच्छा लगता है क्या?

‘‘क्या बात है बहुत खरीदारी हो रही है. वैसे क्याक्या खरीदा?’’

मेरे बैग के अंदर झांकते हुए उस ने पूछा, तो मैं ने कहा कि कुछ खास नहीं, बस जरूरी सामान है. वह कहने लगा कि अब तो मैं चली ही जाऊंगी इसलिए उस के साथ चाटपकौड़ी खाने चलूं. चाटपकौड़ी के नाम से ही मेरे मुंह में पानी आ गया और फिर मोहन जैसे दोस्त को मैं खोना नहीं चाहती थी. इसलिए बिना मांपापा को बताए उस के साथ चल पड़ी. एक हाथ से बैग थामे और दूसरा हाथ उस के कंधे पर रख मैं बस बोलती जा रही थी कि दिल्ली के अच्छे कालेज में मेरा एडमिशन हो गया और 2 दिन बाद जाना है. लेकिन मेरी बात पर वह बस हांहूं किए जा रहा था. उस ने जब अपनी बाइक चाटपकौड़ी की दुकान पर न रोक कर कहीं और मोड दी, तो थोड़ा अजीब लगा. टोका भी कि कहां ले जा रहे हो मुझे? तब हंसते हुए बोला कि क्या मुझे उस पर भरोसा नहीं है.

‘‘ऐसी बात नहीं है मोहन… वह मांपापा चिंता करेंगे न,’’ मैं ने कहा.

वह कहने लगा कि वह मुझे एक अच्छी जगह ले जा रहा है. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे ले कर उस की नीयत में खोट आ चुका है. वह हीनभावना से इतना ग्रस्त हो चुका था कि उस ने मुझे बरबाद करने की सोच ली थी. वह मुझे शहर से दूर एक खंडहरनुमा घर में ले गया और बोला कि इस घर से बाहर का नजारा बहुत ही सुंदर दिखता है. मैं ने कहा कि मुझे डर लग रहा है मोहन, चलो यहां से. लेकिन वह कहने लगा कि जब वह साथ है, तो डर कैसा.

जैसे ही हम खंडहर के अंदर गए और जब तक मैं कुछ समझ पाती उस ने मेरा मुंह दबा दिया और मेरे साथ यह कह कर वह मेरा बलात्कार करता रहा कि बहुत घमंड है न तुझे अपनी पढ़ाई पर. बड़ा आईएएस बनना चाहती हो तो देखते हैं कैसे बनती हो आईएएस. कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ूंगा तुझे. वह मेरे शरीर को नोचता रहा और मैं दर्द से कराहती रही. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस मोहन को मैं ने अपना भाई माना वह मेरे साथ ऐसा कर सकता है. उस ने मेरी दोस्ती का ही नहीं बल्कि मेरे विश्वास का भी गला घोंट दिया था. मेरा बलात्कार करने के बाद वह मुझे वहीं छोड़ कर भाग गया. मेरा सारा सामान मेरे सपनों की तरह बिखर चुका था. मैं उठ भी नहीं पा रही थी. किसी तरह खुद को घसीटते हुए कपड़ों को अपनी तरफ खींचा और अपने बदन को ढकने लगी.

अधूरी मौत- भाग 4: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी.

अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. उसे भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था.

क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से?

शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी.

ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे.

वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई. किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी.

शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी.

चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा.

इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था.

शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा.

शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. वह जानती थी कि इस समय फोन करने वाला कौन होगा.

उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी.

लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

काला अतीत- भाग 1: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

सुबह सुबह काम की ऐसी मारामारी रहती है कि अखबार पढ़ना तो दूर की बात, पलट कर देखने तक का टाइम नहीं होता मेरे पास. बच्चों को स्कूल और देवेन को औफिस भेज कर मुझे खुद अपने औफिस के लिए भागना पड़ता है. शाम को औफिस से आतेआते बहुत थक जाती हूं. फिर रात के खाने की तैयारी, बच्चों का होमवर्क कराने में कुछ याद ही नहीं रहता कि अपने लिए भी कुछ करना है. एक संडे ही मिलता है जिस में मैं अपने लिए कुछ कर पाती हूं.

आज संडे था इसलिए मैं आराम से मैं अखबार के साथ चाय का मजा ले रही थीं. तभी एक न्यूज पढ़ कर शौक्ड रह गई. लिखा था एक पति ने इसलिए अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि शादी के पहले उस का बलात्कार हुआ था.

मुझे अखबार में आंख गड़ाए देख देवेन ने पूछा कि ऐसा क्या लिखा है अखबार में, जो मैं चाय पीना भी भूल गई. चाय एकदम ठंडी हो चुकी थी सो मैं ने एक घूंट में ही सारी चाय खत्म की और बोली, ‘‘देखो न देवेन, कैसा जमाना आ गया. एक पति ने इसलिए अपनी पत्नी को धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि शादी से पहले उस का बलात्कार हुआ था. पति को लगा उस की पत्नी ने उस से झूठ कहा. उसे धोखे में रखा आज तक.

‘‘उस की नजर में वह अपवित्र है, इसलिए अब वह उसे तलाक देना चाहता है. लेकिन बताओ जरा, इस में उस औरत का क्या दोष? क्या उस ने जानबूझ कर अपना बलात्कार करवाया? यह सोच कर नहीं बताया होगा कि कहीं उस का पति उसे छोड़ न दे और हादसा तो किसी के साथ भी हो सकता है न देवेन, लेकिन वह अपवित्र कैसे बन गई? फिर तो वह बलात्कारी भी अपवित्र हुआ.’’

‘‘सही बात है. और फिर गड़े मुरदे उखाड़ने का क्या फायदा,’’ चाय का घूंट भरते हुए देवेन बोले.

‘‘सच बोलूं, तो लोग भले ही ज्यादा पढ़लिख गए हैं, देश तरक्की कर रहा है, पर कुछ लोगों की सोच आज भी वहीं के वहीं है दकियानूसी और फिर इस में उस औरत का क्या दोष है? दोषी तो वह बलात्कारी हुआ न? उसे पकड़ कर मारो, जेल में डालो उसे.

‘‘मगर यहां गुनहगार को नहीं, बल्कि पीडि़ता को सजा दी जा रहा है जो सरासर गलत है.’’

मेरी बात से सहमति जताते हुए देवेन बोले कि मैं बिलकुल सही बोल रही हूं. देवेन की

सोच पर मुझे गर्व हुआ. लगा मैं कितनी खुशहाल औरत हूं जो मुझे देवेन जैसे पति मिले. कितने उच्च विचार हैं इन के. लेकिन फिर लगा, हैं तो ये भी मर्द ही न. दूसरों के लिए बोलना आसान होता है, लेकिन बात जब खुद पर आती है तो लोगों के लिए पचाना मुश्किल हो जाता है.

मैं ने देवेन का मन टटोलते हुए पूछा, ‘‘देवेन, अच्छा एक बात बताओ. इस आदमी की जगह अगर तुम होते, तो क्या करते?’’

अचानक से ऐसे सवाल से देवेन मुझे अचकचा कर देखने लगे.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि अगर कल को तुम्हें पता चल जाए कि शादी से पहले मेरा बलात्कार हुआ था और मैं ने तुम से वह बात छिपा कर रखी, तो तुम्हारा क्या रिएक्शन होगा? क्या तुम भी मुझे घर से बाहर निकाल दोगे? तलाक दे दोगे मुझे?’’

मेरी बात पर देवेन खाली कप को गोलगोल घुमाने लगे. शायद सोच रहे हों मेरी बात का क्या जवाब दिया जाए. फिर मेरी तरफ देख कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘पहले तुम बताओ कि अगर कल को तुम्हें पता चल जाए कि शादी से पहले मेरा किसी औरत से संबंध था, तो तुम क्या करोगी? मुझे इस घर से बाहर निकाल दोगी या तलाक दे दोगी मुझे.’’

देवेन ने तो मेरे सवालों में मुझे ही उलझा दिया.

बोलो कि चुप क्यों हो गई मैडम? देवेन मुसकराए और फिर वही सवाल दोहराया कि अगर उन के अतीत के बारे में मुझे पता चल जाए, तो क्या मैं उन्हें छोड़ दूंगी? अलग हो जाऊंगी उन से?

‘‘सच में बड़े चालाक हो तुम,’’ मैं हंसी, ‘‘तुम ने तो मेरी बातों में मुझे ही उलझा दिया देवेन,’’ पीछे से देवेन के गले में बांहें डालते हुए मैं बोली, ‘‘मैं तुम्हें तलाक नहीं दूंगी क्योंकि वह शादी के पहले की बात थी और पहले तुम क्या थे, किस के साथ तुम्हारा संबंध था, नहीं था, इस बात से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है.’’

मेरी बात पर देवेन हंसते हुए मेरे हाथों को चूम कर बोले कि तो फिर उन का भी यही जवाब है और इसी बात पर 1-1 कप चाय और हो जाए.

मैं चाय बना ही रही थी कि दोनों बच्चे अतुल्य और मिक्की आंखें मींचते हुए ‘मम्मामम्मा कह मेरे पीछे हो लिए. उन्हें पुचकारते हुए मैं चाय ले कर देवेन के पास पहुंच गई. बच्चे पूछने लगे कि आज हम कहां घूमने चलेंगे तो मैं ने उन्हें जल्दी से तैयार होने को कहा और खुद किचन में चली गई.

नाश्ता करने के बाद हमेशा की तरह हम कहीं बाहर घूमने निकल पड़े. एक संडे ही तो मिलता जब हम रिलैक्स हो कर कहीं घूम सकते हैं, शौपिंग कर सकते हैं. कोरोना के मामले भले ही कम हो गए हैं, पर अभी भी कहीं बाहर खाने में डर तो लगता ही है. इसलिए मैं ने घर से ही कुछ नाश्ता बना कर और बिस्कुट, नमकीन, चिप्स वगैरह बैग में रख लिए थे ताकि बाहर से कुछ खरीदना न पड़े. बच्चे हैं, थोड़ीथोड़ी देर पर भूख लगती रहती है.

शहर की भीड़भाड़ से दूर हम एक शांत जगह चादर बिछा कर बैठ गए. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और हम बातों में. कुछ देर बाद देवेन भी बच्चों के साथ बच्चे बन कर क्रिकेट में हाथ आजमाने लगे और मैं बैठी उन्हें खेलते देख यह सोचने लगी कि भले ही देवेन ने कह दिया कि मेरे अतीत से उन का कुछ लेनादेना नहीं है, लेकिन जानती हूं कि सचाई जानने के बाद उन के दिल में भी मेरे लिए वह प्यार और इज्जत न होगी, जो आज है.

कहीं पढ़ा था कि मर्द पजैसिव और शक्की मिजाज के होते हैं. वे कभी बरदाश्त नहीं कर सकते. एक पत्नी अपने पति की लाख गलतियों को माफ कर सकती है, पर पति अपनी पत्नी की एक भी गलती को सहन नहीं कर पाता. गाहेबगाहे उसी बात को ले कर ताना मारना, जलील करना, नीचा दिखाना और फिर अंत में छोड़ देना.

मेरी सहेली रचना के साथ क्या हुआ. भावनाओं में बह कर बेचारी ने सुहागरात पर अपने पति के सामने अपने प्रेमी का जिक्र कर दिया. यह भी बता दिया कि वह भी उस पर जान छिड़कता था. दोनों शादी करना चाहते थे, मगर उन के परिवार वाले राजी नहीं हुए.

रचना के पति ने कितनी चालाकी से उसे विश्वास में ले कर कहा था कि अब हम दोनों एक हैं, तो हमारे बीच कोई राज नहीं रहनी चाहिए. तब रचना ने 1-1 कर अपनी पूरी प्रेम कहानी पति को सुना दी. सुन कर उस समय तो उस के पति ने कोई रिएक्ट नहीं किया, पर कहीं न कहीं उस के अहं को ठेस पहुंची थी और जिस का बदला वह धीरेधीरे रचना को प्रताडि़त कर लेने लगा. बातबात पर उस पर शक करता. कहीं जाती तो उस के पीछे जासूस छोड़ देता. छिपछिप कर उस का फोन चैक करता. कहीं न कहीं उस के दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि आज भी रचना को अपने पुराने प्रेमी से संबंध हैं और दोनों उस की पीठ पीछे रंगरलियां मनाते हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था. मगर उसी बात को ले कर वह रचना से झगड़ा करता. शराब के नशे में गालियां बकता, मारता और उस के मांबाप को कोसता कि अपनी चरित्रहीन बेटी उस के पल्ले बांध दी.

कहते हैं दुनिया में हर मरज की दवा है, पर शक की कोई दवा नहीं. पति के खराब व्यवहार के कारण रचना का जीवन नर्क बन चुका था और फिर एक रोज अजिज आ कर उस ने अपने पति से तलाक ले लिया और आज अकेले ही अपने दोनों बच्चों को पाल रही है, जबकि उस के पति के खुद कई औरतों से संबंध रह चुके थे. लेकिन रचना ने कभी उसे इस बात के लिए नहीं कोसा.

अधूरी मौत- भाग 3: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी.

रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

अधूरी मौत- भाग 2: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए.

तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल ने कहा.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दे कर इंसपेक्टरको वीर का नंबर दे दिया.

इंसपेक्टर ने वीर को फोन कर थाने आने को कहा.

‘‘सर, लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर थाने पहुंच गया. इंसपेक्टर ने पूरी जानकारी उसे देते हुए पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए,’’ वीर बोला.

एक दिन वीर ने शीतल से कहा, ‘‘करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी, जिस में अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’

‘‘वीर भाई साहब, आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे.

इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी.

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

अधूरी मौत- भाग 1: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, जो कुछ भी चाहा मिला.’’ शीतल उस हिल स्टेशन के होटल के कमरे में खुदबखुद गुनगुना रही थी.

‘‘क्या बात है शीतू, बहुत खुश नजर आ रही हो.’’ अनल उस के पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

‘‘हां अनल, मैं आज बहुत खुश हूं. तुम मुझे मेरे मनपसंद के हिल स्टेशन पर जो ले आए हो. मेरे लिए तो यह सब एक सपने के जैसा था.

‘‘पिताजी एक फैक्ट्री में छोटामोटा काम करते थे. ऊपर से हम 6 भाईबहन. ना खाने का अतापता होता था ना पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे. किसी तरह सरकारी स्कूल में इंटर तक पढ़ पाई. हम लोगों को स्कूल में वजीफे के पैसे मिल जाते थे, उन्हीं पैसों से कपड़े वगैरह खरीद लेते थे.

‘‘एक बार पिताजी कोई सामान लाए थे, जिस कागज में सामान था, उसी में इस पर्वतीय स्थल के बारे में लिखा था. तभी से यहां आने की दिली इच्छा थी मेरी. और आज यहां पर आ गई.’’ शीतल होटल के कमरे की बड़ी सी खिड़की के कांच से बाहर बनते बादलों को देखते हुए बोली.

‘‘क्यों पिछली बातों को याद कर के अपने दिल को छोटा करती हो शीतू. जो बीत गया वह भूत था. आज के बारे में सोचो और भविष्य की योजना बनाओ. वर्तमान में जियो.’’ अनल शीतल के गालों को थपथपाते हुए बोला.

‘‘बिलकुल ठीक है अनल. हमारी शादी को 9 महीने हो गए हैं. और इन 9 महीनों में तुम ने अपने बिजनैस के बारे में इतना सिखापढ़ा दिया है कि मैं तुम्हारे मैनेजर्स से सारी रिपोर्ट्स भी लेती हूं और उन्हें इंसट्रक्शंस भी देती हूं. हिसाबकिताब भी देख लेती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘हां शीतू यह सब तो तुम्हें संभालना ही था. 5 साल पहले मां की मौत के बाद पिताजी इतने टूट गए कि उन्हें पैरालिसिस हो गया. कंपनी से जुड़े सौ परिवारों को सहारा देने वाले खुद दूसरे के सहारे के मोहताज हो गए.

‘‘नौकरों के भरोसे पिताजी की सेहत गिरती ही जा रही थी. तुम नई थीं, इसीलिए पिताजी का बोझ तुम पर न डाल कर तुम्हें बिजनैस में ट्रेंड करना ज्यादा उचित समझा. पिताजी के साथ मेरे लगातार रहने के कारण उन की सेहत भी काफी अच्छी हो गई है. हालांकि बोल अब भी नहीं पाते हैं.

‘‘मैं चाहता हूं कि इस हिल स्टेशन से हम एक निशानी ले कर जाएं जो हमारे अपने लिए और उस के दादाजी के लिए जीने का सहारा बने.’’ अनल शीतल के पीछे खड़ा था. वह दोनों हाथों का हार बना कर गले में डालते हुए बोला.

‘‘वह सब बातें बाद में करेंगे. अभी तो 7 दिन हैं, खूब मौके मिलेंगे.’’ शीतल बोली.

अगली सुबह अनल ने कहा, ‘‘देखो, आज 5 विजिटिंग पौइंट्स पर चलना है. 9 बजे टैक्सी आ जाएगी. हम यहां से नाश्ता कर के निकलते हैं. लंच किसी सूटेबल पौइंट पर ले लेंगे.’’

‘‘हां, मैं तैयार होती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘सर, आप की टैक्सी आ गई है.’’ नाश्ते के बाद होटल के रिसैप्शन से फोन आया.

‘‘ठीक है हम नीचे पहुंचते हैं.’’ अनल बोला.

दिन भर घुमाने के बाद ड्राइवर ने दोनों को होटल में छोड़ दिया. शीतल अनल के कंधे का सहारा ले कर टैक्सी से निकलते हुए बोली, ‘‘अनल, जब हम घूम कर लौट रहे थे तब उस संकरे रास्ते पर क्या एक्सीडेंट हो गया था? ट्रैफिक जाम था. तुम देखने भी तो उतरे थे.’’

‘‘एक टैक्सी वाले से एक बुजुर्ग को हलकी सी टक्कर लग गई. बुजुर्ग इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. इसीलिए पूरा रास्ता जाम था.’’ अनल ने बताया. ‘‘ऐसा ही एक एक्सीडेंट हमारी जिंदगी में भी हुआ था, जिस से हमारी जिंदगी ही बदल गई.’’ अनल ने आगे जोड़ा.

‘‘हां मुझे याद है. उस दिन पापा मेरे रिश्ते की बात करने कहीं जा रहे थे. तभी सड़क पार करते समय तुम्हारे खास दोस्त वीर की स्पीड से आती हुई कार ने उन्हें टक्कर मार दी. जिस से उन के पैर की हड्डी टूट गई और वह चलने से लाचार हो गए.’’ शीतल बोली.

‘‘हां, और तुम्हारे पिताजी ने हरजाने के तौर पर तुम्हारी शादी वीर से करने की मांग रखी.’’

‘‘मेरा रिश्ते टूटने की सारी जवाबदारी वीर की ही थी. इसलिए हरजाना तो उसी को देना था न.’’ शीतल अपने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए बोली.

‘‘वीर तो बेचारा पहले से ही शादीशुदा था, वह कैसे शादी कर सकता था? मेरी मम्मी की मौत के बाद वीर की मां ने मुझे बहुत संभाला और पिताजी को पैरालिसिस होने के बाद तो वह मेरे लिए मां से भी बढ़ कर हो गईं.

‘‘कई मौकों पर उन्होंने मुझे वीर से भी ज्यादा प्राथमिकता दी. उस परिवार को मुसीबत से बचाने के लिए ही मैं ने तुम से शादी की.

‘‘मेरे बिजनैस की पोजीशन को देखते हुए कोई भी पैसे वाली लड़की मुझे मिल जाती. मैं किसी गरीब घर की लड़की से शादी करने के पक्ष में था ताकि वह पिताजी की देखभाल कर सके.’’

‘‘मतलब तुम्हें एक नौकरानी चाहिए थी जो बीवी की तरह रह सके.‘‘शीतल के स्वर में कुछ कड़वापन था.

‘‘बड़ेबुजुर्गों के मुंह से सुना था कि जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं. मगर हमारी जोड़ी सड़क पर बनी. लेकिन मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं हैं. मैं ने पिछले 9 महीनों में एक नई शीतल गढ़ दी है, जो मेरा बिजनैस हैंडल कर सकती है. बस एक ही ख्वाहिश और है जिसे तुम पूरा कर सकती हो.’’ अनल हसरतभरी निगाहों से शीतल की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘अनल, पहाड़ों पर चढ़नेउतरने के कारण बदन दर्द से टूट रहा है. कोई पेनकिलर ले कर आराम से सोते हैं. वैसे भी सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा सनराइज पौइंट जाने के लिए. यहां सूर्योदय साढ़े 5 बजे तक हो ही जाता है.’’ शीतल सपाट मगर चुभने वाले लहजे में बोली.

अनल अपना सा मुंह ले कर बिस्तर में दुबक गया.

अगली सुबह ड्राइवर आया तो शीतल उस से बोली, ‘‘ड्राइवर भैया, आज ऐसी जगह ले चलो जो एकदम से अलग सा एहसास देती हो.’’

‘‘जी मैडम, यहां से 20 किलोमीटर दूर है. इस टूरिस्ट प्लेस की सब से ऊंची जगह. वहां से आप सारा शहर देख सकती हैं, करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

‘‘वहां पर आप टेंट लगा कर कैंपिंग भी कर सकते है. यहां टेंट में रात को रुकने का अपना ही रोमांच है. वहां आप को डिस्टर्ब करने के लिए कोई नहीं होगा.’’ ड्राइवर ने उस जगह के बारे में बताया.

‘‘और लोग भी तो होते होंगे वहां पर?’’ अनल ने पूछा.

‘‘सामान्यत: भीड़ वाले समय में 2 टेंटों के बीच लगभग 100 मीटर की दूरी रखी जाती है. आप की इच्छानुसार आप का टेंट नो डिस्टर्ब वाले जोन में लगा देंगे.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो ना अनल. ऐसी जगह पर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘चलो भैया आज उसी टेंट में रुकते हैं.’’ अनल खुश होते हुए बोला.

लगभग एक घंटे के बाद वह लोग उस जगह पर पहुंच गए.

‘‘साहब, यहां से लगभग एक किलोमीटर आप को संकरे रास्ते से चढ़ाई करनी है.’’ ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए बोला.

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

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