Online Hindi Story : राजीव ने अंजू से क्यों की पैसों की डिमांड?

Online Hindi Story : उस शाम पहली बार राजीव के घर वालों से मिल कर अंजू को अच्छा लगा. उस के छोटे भाई रवि और उस की पत्नी सविता ने अंजू को बहुत मानसम्मान दिया था. उन की मां ने दसियों बार उस के सिर पर हाथ रख कर उसे सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद दिया होगा. वह राजीव के घर मुश्किल से आधा घंटा रुकी थी. इतने कम समय में ही इन सब ने उस का दिल जीत लिया था.

राजीव के घर वालों से विदा ले कर वे दोनों पास के एक सुंदर से पार्क में कुछ देर घूमने चले आए. अंजू का हाथ पकड़ कर घूमते हुए राजीव अचानक मुसकराया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘इनसान की जिंदगी में बुरा वक्त आता है और अच्छा भी. 2 साल पहले जब मेरा तलाक हुआ था तब मैं दोबारा शादी करने का जिक्र सुनते ही बुरी तरह बिदक जाता था लेकिन आज मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी अपना हमसफर बनाना चाहता हूं. तुम्हें मेरे घर वाले कैसे लगे?’’

‘‘बहुत मिलनसार और खुश- मिजाज,’’ अंजू ने सचाई बता दी. ‘‘क्या तुम उन सब के साथ निभा लोगी?’’ राजीव भावुक हो उठा.

‘‘बड़े मजे से. तुम ने उन्हें यह बता दिया है कि हम शादी करने जा रहे हैं?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे घर वालों ने तो मेरा ऐसे स्वागत किया जैसे मैं तुम्हारे लिए बहुत खास अहमियत रखती हूं.’’ ‘‘तब उन तीनों ने मेरी आंखों में तुम्हारे लिए बसे प्रेम के भावों को पढ़ लिया होगा,’’ राजीव ने झुक कर अंजू के हाथ को चूमा तो वह एकदम से शरमा गई थी.

कुछ देर चुप रहने के बाद अंजू ने पूछा, ‘‘हम शादी कब करें?’’ ‘‘क्या…अब मुझ से दूर नहीं रहा जाता?’’ राजीव ने उसे छेड़ा.

‘‘नहीं,’’ अंजू ने जवाब दे कर शर्माते हुए अपना चेहरा हथेलियों के पीछे छिपा लिया. ‘‘मेरा दिल भी तुम्हें जी भर कर प्यार करने को तड़प रहा है, जानेमन. कुछ दिन बाद मां, रवि और सविता महीने भर के लिए मामाजी के पास छुट्टियां मनाने कानपुर जा रहे हैं. उन के लौटते ही हम अपनी शादी की तारीख तय कर लेंगे,’’ राजीव का यह जवाब सुन कर अंजू खुश हो गई थी.

पार्क के खुशनुमा माहौल में राजीव देर तक अपनी प्यार भरी बातों से अंजू के मन को गुदगुदाता रहा. करीब 3 साल पहले विधवा हुई अंजू को इस पल उस के साथ अपना भविष्य बहुत सुखद और सुरक्षित लग रहा था. राजीव अंजू को उस के फ्लैट तक छोड़ने आया था. अंजू की मां आरती उसे देख कर खिल उठीं.

‘‘अब तुम खाना खा कर ही जाना. तुम्हारे मनपसंद आलू के परांठे बनाने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी,’’ उन्होंने अपने भावी दामाद को जबरदस्ती रोक लिया था. उस रात पलंग पर लेट कर अंजू देर तक राजीव और अपने बारे में सोचती रही.

सिर्फ 2 महीने पहले चार्टर्ड बस का इंतजार करते हुए दोनों के बीच औपचारिक बातचीत शुरू हुई और बस आने से पहले दोनों ने एकदूसरे को अपनाअपना परिचय दे दिया था. उन के बीच होने वाला शुरूशुरू का हलकाफुलका वार्त्तालाप जल्दी ही अच्छी दोस्ती में बदल गया. वे दोनों नियमित रूप से एक ही बस से आफिस आनेजाने लगे थे.

राजीव की आंखों में अपने प्रति चाहत के बढ़ते भावों को देखना अंजू को अच्छा लगा था. अपने अकेलेपन से तंग आ चुके उस के दिल को जीतने में राजीव को ज्यादा समय नहीं लगा. ‘‘रोजरोज उम्र बढ़ती जाती है और अगले महीने मैं 33 साल का हो जाऊंगा. अगर मैं ने अभी अपना घर नहीं बसाया तो देर ज्यादा हो जाएगी. बड़ी उम्र के मातापिता न स्वस्थ संतान पैदा कर पाते हैं और न ही उन्हें अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पूरा समय मिल पाता है,’’ राजीव के मुंह से एक दिन निकले इन शब्दों को सुन कर अंजू के मन ने यह अंदाजा लगाया कि वह उस के साथ शादी कर के घर बसाने में दिलचस्पी रखता था.

उस दिन के बाद से अंजू ने राजीव को अपने दिल के निकट आने के ज्यादा अवसर देने शुरू कर दिए. वह उस के साथ रेस्तरां में चायकौफी पीने चली जाती. फिर उस ने फिल्म देख कर या खरीदारी करने के बाद उस के साथ डिनर करने का निमंत्रण स्वीकार करना भी शुरू कर दिया था. उस शाम पहली बार उस के घर वालों से मिल कर अंजू के मन ने बहुत राहत और खुशी महसूस की थी. शादी हो जाने के बाद उन सीधेसादे, खुश- मिजाज लोगों के साथ निभाना जरा भी मुश्किल नहीं होगा, इस निष्कर्ष पर पहुंच वह उस रात राजीव के साथ अपनी शादी के रंगीन सपने देखती काफी देर से सोई थी.

अगले दिन रविवार को राजीव ने पहले उसे बढि़या होटल में लंच कराया और फिर खुशखबरी सुनाई, ‘‘कल मैं एक फ्लैट बुक कराने जा रहा हूं, शादी के बाद हम बहुत जल्दी अपने फ्लैट में रहने चले जाएंगे.’’

‘‘यह तो बढि़या खबर है. कितने कमरों वाला फ्लैट ले रहे हो?’’ अंजू खुश हो गई थी. ‘‘3 कमरों का. अभी मैं 5 लाख रुपए पेशगी बतौर जमा करा दूंगा लेकिन बाद में उस की किस्तें हम दोनों को मिल कर देनी पड़ेंगी, माई डियर.’’

‘‘नो प्रौब्लम, सर, मुझ से अभी कोई हेल्प चाहिए हो तो बताओ.’’ ‘‘नहीं, डियर, अपने सारे शेयर आदि बेच कर मैं ने 5 लाख की रकम जमा कर ली है. मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है. जब फ्लैट को सजानेसंवारने का समय आएगा तब तुम खर्च करना. अच्छा, इसी वक्त सोच कर बताओ कि अपने बेडरूम में कौन सा रंग कराना पसंद करोगी?’’

‘‘हलका आसमानी रंग मुझे अच्छा लगता है.’’ ‘‘गुलाबी नहीं?’’

‘‘नहीं, और ड्राइंग रूम में 3 दीवारें तो एक रंग की और चौथी अलग रंग की रखेंगे.’’ ‘‘ओके, मैं किसी दिन तुम्हें वह फ्लैट दिखाने ले चलूंगा जो बिल्डर ने खरीदारों को दिखाने के लिए तैयार कर रखा है.’’

‘‘फ्लैट देख लेने के बाद उसे सजाने की बातें करने में ज्यादा मजा आएगा.’’ ‘‘मैं और ज्यादा अमीर होता तो तुम्हें घुमाने के लिए कार भी खरीद लेता.’’

‘‘अरे, कार भी आ जाएगी. आखिर यह दुलहन भी तो कुछ दहेज में लाएगी,’’ अंजू की इस बात पर दोनों खूब हंसे और उन के बीच अपने भावी घर को ले कर देर तक चर्चा चलती रही थी. अगले शुक्रवार को रवि, सविता और मां महीने भर के लिए राजीव के मामा के यहां कानपुर चले गए. अंजू को छेड़ने के लिए राजीव को नया मसाला मिल गया था.

‘‘मौजमस्ती करने का ऐसा बढि़या मौका फिर शायद न मिले, स्वीटहार्ट. तुम्हें मंजूर हो तो खाली घर में शादी से पहले हनीमून मना लेते हैं,’’ उसे घर चलने की दावत देते हुए राजीव की आंखें नशीली हो उठी थीं. ‘‘शटअप,’’ अंजू ने शरमाते हुए उसे प्यार भरे अंदाज में डांट दिया.

‘‘मान भी जाओ न, जानेमन,’’ राजीव उत्तेजित अंदाज में उस के हाथ को बारबार चूमने लगा. ‘‘तुम जोर दोगे तो मैं मान ही जाऊंगी पर हनीमून का मजा खराब हो जाएगा. थोड़ा सब्र और कर लो, डार्लिंग.’’

अंजू के समझाने पर राजीव सब्र तो कर लेता पर अगली मुलाकात में वह फिर उसे छेड़ने से नहीं चूकता. वह उसे कैसेकैसे प्यार करेगा, राजीव के मुंह से इस का विवरण सुन अंजू का तनबदन अजीब सी नशीली गुदगुदी से भर जाता. राजीव की ये रसीली बातें उस की रातों को उत्तेजना भरी बेचैनी से भर जातीं. अपने अच्छे व्यवहार और दिलकश बातों से राजीव ने उसे अपने प्यार में पागल सा बना दिया था. वह अपने को अब बदकिस्मत विधवा नहीं बल्कि संसार की सब से खूबसूरत स्त्री मानने लगी थी. राजीव से मिलने वाली प्रशंसा व प्यार ने उस का कद अपनी ही नजरों में बहुत ऊंचा कर दिया था.

‘‘भाई, मां की जान बचाने के लिए उन के दिल का आपरेशन फौरन करना होगा,’’ रवि ने रविवार की रात को जब यह खबर राजीव को फोन पर दी तो उस समय वह अंजू के साथ उसी के घर में डिनर कर रहा था.

मां के आपरेशन की खबर सुन कर राजीव एकदम से सुस्त पड़ गया. फिर जब उस की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे तो अंजू व आरती बहुत ज्यादा परेशान और दुखी हो उठीं. ‘‘मुझे जल्दी कानपुर जाना होगा अंजू, पर मेरे पास इस वक्त 2 लाख का इंतजाम नहीं है. सुबह बिल्डर से पेशगी दिए गए 5 लाख रुपए वापस लेने की कोशिश करता हूं. वह नहीं माना तो मां ने तुम्हारे लिए जो जेवर रखे हुए हैं उन्हें किसी के पास गिरवी…’’

‘‘बेकार की बात मत करो. मुझे पराया क्यों समझ रहे हो?’’ अंजू ने हाथ से उस का मुंह बंद कर आगे नहीं बोलने दिया. ‘‘क्या तुम मुझे इतनी बड़ी रकम उधार दोगी?’’ राजीव विस्मय से भर उठा.

‘‘क्या तुम्हारा मुझ से झगड़ा करने का दिल कर रहा है?’’ ‘‘नहीं, लेकिन…’’

‘‘फिर बेकार के सवाल पूछ कर मेरा दिल मत दुखाओ. मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे दूंगी. जब मैं तुम्हारी हो गई हूं तो क्या मेरा सबकुछ तुम्हारा नहीं हो गया?’’ अंजू की इस दलील को सुन राजीव ने उसे प्यार से गले लगाया और उस की आंखों से अब ‘धन्यवाद’ दर्शाने वाले आंसू बह निकले.

अपने प्रेमी के आंसू पोंछती अंजू खुद भी आंसू बहाए जा रही थी. लेकिन उस रात अंजू की आंखों से नींद गायब हो गई. उस ने राजीव को 2 लाख रुपए देने का वादा तो कर लिया था लेकिन अब उस के मन में परेशानी और चिंता पैदा करने वाले कई सवाल घूम रहे थे:

‘राजीव से अभी मेरी शादी नहीं हुई है. क्या उस पर विश्वास कर के उसे इतनी बड़ी रकम देना ठीक रहेगा?’ इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देने से उस का मन कतरा रहा था. ‘राजीव के साथ मैं घर बसाने के सपने देख रही हूं. उस के प्यार ने मेरी रेगिस्तान जैसी जिंदगी में खुशियों के अनगिनत फूल खिलाए हैं. क्या उस पर विश्वास कर के उसे 2 लाख रुपए दे दूं?’ इस सवाल का जवाब ‘न’ में देते हुए उस का मन अजीब सी उदासी और अपराधबोध से भी भर उठता.

देर रात तक करवटें बदलने के बावजूद वह किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकी थी. अगले दिन आफिस में 11 बजे के करीब उस के पास राजीव का फोन आया:

‘‘रुपयों का इंतजाम कब तक हो जाएगा, अंजू? मैं जल्दी से जल्दी कानपुर पहुंचना चाहता हूं,’’ राजीव की आवाज में चिंता के भाव साफ झलक रहे थे. ‘‘मैं लंच के बाद बैंक जाऊंगी. फिर वहां से तुम्हें फोन करूंगी,’’ चाह कर भी अंजू अपनी आवाज में किसी तरह का उत्साह पैदा नहीं कर सकी थी.

‘‘प्लीज, अगर काम जल्दी हो जाए तो अच्छा रहेगा.’’ ‘‘मैं देखती हूं,’’ ऐसा जवाब देते हुए उस का मन कर रहा था कि वह रुपए देने के अपने वादे से मुकर जाए.

लंच के बाद वह बैंक गई थी. 2 लाख रुपए अपने अकाउंट में जमा करने में उसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई. सिर्फ एक एफ.डी. उसे तुड़वानी पड़ी थी लेकिन उस का मन अभी भी उलझन का शिकार बना हुआ था. तभी उस ने राजीव को फोन नहीं किया.

शाम को जब राजीव का फोन आया तो उस ने झूठ बोल दिया, ‘‘अभी 1-2 दिन का वक्त लग जाएगा, राजीव.’’ ‘‘डाक्टर बहुत जल्दी आपरेशन करवाने पर जोर दे रहे हैं. तुम बैंक के मैनेजर से मिली थीं?’’

‘‘मां को किस अस्पताल में भरती कराया है?’’ अंजू ने उस के सवाल का जवाब न दे कर विषय बदल दिया. ‘‘दिल के आपरेशन के मामले में शहर के सब से नामी अस्पताल में,’’ राजीव ने अस्पताल का नाम बता दिया.

अपनी मां से जुड़ी बहुत सी बातें करते हुए राजीव काफी भावुक हो गया था. अंजू ने साफ महसूस किया कि इस वक्त राजीव की बातें उस के मन को खास प्रभावित करने में सफल नहीं हो रही थीं. उसे साथ ही साथ यह भी याद आ रहा था कि पिछले दिन मां के प्रति चिंतित राजीव के आंसू पोंछते हुए उस ने खुद भी आंसू बहाए थे.

अगली सुबह 11 बजे के करीब राजीव ने अंजू से फोन पर बात करनी चाही तो उस का फोन स्विच औफ मिला. परेशान हो कर वह लंच के समय उस के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लटकता मिला. ‘अंजू शायद रुपए नहीं देना चाहती है,’ यह खयाल अचानक उस के मन में पैदा हुआ और उस का पूरा शरीर अजीब से डर व घबराहट का शिकार बन गया. रुपयों का इंतजाम करने की नए सिरे से पैदा हुई चिंता ने उस के हाथपैर फुला दिए थे.

उस ने अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के पास फोन करना शुरू किया. सिर्फ एक दोस्त ने 10-15 हजार की रकम फौरन देने का वादा किया. बाकी सब ने अपनी असमर्थता जताई या थोड़े दिन बाद कुछ रुपए का इंतजाम करने की बात कही. वह फ्लैट की बुकिंग के लिए दी गई पेशगी रकम वापस लेने के लिए बिल्डर से मिलने गया पर वह कुछ दिन के लिए मुंबई गया हुआ था.

शाम होने तक राजीव को एहसास हो गया कि वह 2-3 दिन में भी 2 लाख की रकम जमा नहीं कर पाएगा. हर तरफ से निराश हो चुका उस का मन अंजू को धोखेबाज बताते हुए उस के प्रति गहरी शिकायत और नाराजगी से भरता चला गया था. तभी उस के पास कानपुर से रवि का फोन आया. उस ने राजीव को प्रसन्न स्वर में बताया, ‘‘भाई, रुपए पहुंच गए हैं. अंजूजी का यह एहसान हम कभी नहीं चुका पाएंगे.’’

‘‘अंजू, कानपुर कब पहुंचीं?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए राजीव ने सवाल किया. ‘‘शाम को आ गई थीं. मैं उन्हें एअरपोर्ट से ले आया था.’’

‘‘रुपए जमा हो गए हैं?’’ ‘‘वह ड्राफ्ट लाई हैं. उसे कल जमा करवा देंगे. अब मां का आपरेशन हो सकेगा और वह जल्दी ठीक हो जाएंगी. तुम कब आ रहे हो?’’

‘‘मैं रात की गाड़ी पकड़ता हूं.’’ ‘‘ठीक है.’’

‘‘अंजू कहां हैं?’’ ‘‘मामाजी के साथ घर गई हैं.’’

‘‘कल मिलते हैं,’’ ऐसा कह कर राजीव ने फोन काट दिया था. उस ने अंजू से बात करने की कोशिश की पर उस का फोन अभी भी बंद था. फिर वह स्टेशन पहुंचने की तैयारी में लग गया.

उसे बिना कुछ बताए अंजू 2 लाख का ड्राफ्ट ले कर अकेली कानपुर क्यों चली गई? इस सवाल का कोई माकूल जवाब वह नहीं ढूंढ़ पा रहा था. उस का दिल अंजू के प्रति आभार तो महसूस कर रहा था पर मन का एक हिस्सा उस के इस कदम का कारण न समझ पाने से बेचैन और परेशान भी था.

अगले दिन अंजू से उस की मुलाकात मामाजी के घर में हुई. जब आसपास कोई नहीं था तब राजीव ने उस से आहत भाव से पूछ ही लिया, ‘‘मुझ पर क्यों विश्वास नहीं कर सकीं तुम, अंजू? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं मां की बीमारी के बारे में झूठ भी बोल सकता हूं? रुपए तुम ने मेरे हाथों इसीलिए नहीं भिजवाए हैं न?’’ अंजू उस का हाथ पकड़ कर भावुक स्वर में बोली, ‘‘राजीव, तुम मुझ विधवा के मनोभावों को सहानुभूति के साथ समझने की कोशिश करना, प्लीज. तुम्हारे लिए यह समझना कठिन नहीं होना चाहिए कि मेरे मन में सुरक्षा और शांति का एहसास मेरी जमापूंजी के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है.

‘‘तुम्हारे प्यार में पागल मेरा दिल तुम्हें 2 लाख रुपए देने से बिलकुल नहीं हिचकिचाया था लेकिन मेरा हिसाबी- किताबी मन तुम पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहता था. ‘‘मैं ने दोनों की सुनी और रुपए ले कर खुद यहां चली आई. मेरे ऐसा करने से तुम्हें जरूर तकलीफ हो रही होगी…तुम्हारे दिल को यों चोट पहुंचाने के लिए मैं माफी मांग रही…’’

‘‘नहीं, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. तुम्हारे मन में चली उथलपुथल को मैं अब समझ सकता हूं. तुम ने जो किया उस से तुम्हारी मानसिक परिपक्वता और समझदारी झलकती है. अपनी गांठ का पैसा ही कठिन समय में काम आता है. हमारे जैसे सीमित आय वालों को ऊपरी चमकदमक वाली दिखावे की चीजों पर खर्च करने से बचना चाहिए, ये बातें मेरी समझ में आ रही हैं.’’ ‘‘अपने अहं को बीच में ला कर मेरा तुम से नाराज होना बिलकुल गलत है. तुम तो मेरे लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से ज्यादा विश्वसनीय साबित हुई हो. मां के इलाज में मदद करने के लिए थैंक यू वेरी मच,’’ राजीव ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूम लिया.

एकदूसरे की आंखों में अपने लिए नजर आ रहे प्यार व चाहत के भावों को देख कर उन दोनों के दिलों में आपसी विश्वास की जड़ों को बहुत गहरी मजबूती मिल गई थी.

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बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस गया है. उस का साल में एक चक्कर लगता है. छोटा बेटा और उस की पत्नी मुंबई में नौकरी करते हैं. वे हमेशा अपने पास रहने को बुलाते हैं पर मन नहीं मानता. यह इलाका और आसपास के लोग जानेपहचाने हैं. इन्हें छोड़ कर जाने की बात सोचते ही मन उदास हो जाता है.

‘‘सर, आप के पास पैसा और जीने का उत्साह दोनों ही हैं. आप को अकेलेपन की पीड़ा क्यों भोगनी है? अपने मनोरंजन और खुशी के लिए आप को बढि़या कंपनी बड़ी आसानी से मिल सकती है.’’ ये शब्द 21 साल की शुचि ने मुझ से आज सुबह के वक्त पार्क में कहे तो मैं मन ही मन चौंक पड़ा था.

शुचि से मेरी मुलाकात सप्ताह भर पहले सुबह की सैर के समय पार्क में हुई थी. उस दिन मैं घूमने के बाद बैंच पर बैठ कर सुस्ता रहा था और वह कुछ दूरी पर व्यायाम कर रही थी.

मैं बारबार उस की तरफ देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा था. उस के युवा, सांचे में ढले खूबसूरत जिस्म को हरकत करते देखना मुझे अच्छा लग रहा था, इस तथ्य को मैं बेहिचक स्वीकार कर लेता हूं.

एक्सरसाइज करने के बाद उसी ने मौसम के ऊपर टिप्पणी करते हुए मेरे साथ वार्तालाप शुरू किया था. करीब 10 मिनट हमारे बीच बातें हुईं पर इतनी छोटी सी मुलाकात से मिली ताजगी और खुशी दिन भर मेरे साथ बनी रही थी.

हम रोज सुबह पार्क में मिलने लगे. उस के साथ बातें करने में मुझे बहुत मजा आता था. वह एक बातूनी पर समझदार और संवेदनशील लड़की थी.

मैं रात को सोने के लिए लेटता तो पाता कि मन सुबह होने का इंतजार बड़ी बेचैनी से कर रहा है. उस से मिल कर आने के बाद घर का कोई भी काम करना मुझे पहले की तरह उबाऊ नहीं लगता. अब अगर खाली बैठता तो अकेलेपन और उदासी की चुभन व पीड़ा ने मुझे परेशान करना बंद कर दिया था.

‘‘मेरे मनोरंजन और खुशी के लिए कौन देगा मुझे बढि़या कंपनी?’’ आज सुबह उस की बात सुन कर मैं ने हलकेफुलके अंदाज में उत्सुकता दर्शाई थी.

‘‘आप अगर पैसा खर्च करने को तैयार हैं तो पहले किसी क्लब या सोसाइटी के मेंबर बन जाइए. पांचसितारा होटल के बार और रेस्तरां में जाना शुरू कीजिए. वहां आप की मुलाकात ऐसी जवान महिलाओं से होगी जिन्हें अपने शौक या जरूरतें पूरी करने को पैसा चाहिए. बदले में आप का मन बहलाने के लिए वे आप को अच्छी कंपनी देंगी.’’

‘‘आजकल ऐसा कुछ होता है, यह मैं ने सुना जरूर है पर ऐसी किसी औरत से कभी मिला नहीं हूं.’’

‘‘तो अब मिलिए, सर. आप के बेटेबहुओं के पास आप के लिए वक्त नहीं है और न ही उन्हें आप का पैसा चाहिए. तब बैंक में पैसा जोड़ कर आप को किस के लिए रखना है?’’

‘‘अरे, पैसा तो पास में होना ही चाहिए. कल को किसी बीमारी ने धरदबोचा तो…’’

‘‘सर, अगर कल की सोचते हुए आप ने आज की खुशियों को दांव पर लगा दिया तो अपने अकेलेपन और उदासी से कभी छुटकारा नहीं पा सकेंगे.’’

‘‘लेकिन मेरा इस तरह की स्त्री से परिचय कौन कराएगा?’’

‘‘सर, आप नोटों से पर्स भर कर घर से निकलिए तो सही. गुड़ कहां है, ये मक्खियों को कोई बताता है क्या, सर?’’

ऐसा जवाब देने के बाद शुचि खिलखिला कर हंसी तो मैं भी खुल कर मुसकराने से खुद को रोक नहीं पाया था.

अगले दिन उस ने जब फिर से इसी विषय पर वार्तालाप शुरू किया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘शुचि, मैं रुपए खर्च करने को तैयार हूं पर मुझे यह बताओ कि कल को मेरा कोई परिचित, दोस्त या रिश्तेदार जब किसी सुंदर स्त्री के साथ मुझे घूमते हुए देखेगा तो क्या सोचेगा?’’

‘‘वह कुछ भी सोचे, आप को इस बारे में कैसी भी टेंशन क्यों लेनी है?’’

‘‘टेंशन तो मुझे होगी ही. मैं लोगों की नजरों में अपनी छवि खराब नहीं करना चाहता हूं.’’

‘‘सर, आप तो बहुत डरते हैं,’’ उस ने अजीब सा मुंह बनाया.

‘‘अपनी बदनामी से सभी को डरना चाहिए, यंग लेडी.’’

‘‘फिर तो आप मुझे अपने घर चलने का निमंत्रण कभी नहीं देंगे,’’ उस ने अचानक ही वार्तालाप को नया मोड़ दे दिया.

‘‘तुम मेरे घर चलना चाहती हो?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘यस, सर,’’ उस ने बेहिचक जवाब दिया.

‘‘तुम्हारे घर आने की खुशी पाने के लिए मैं थोड़ी सी बदनामी सह लूंगा. तुम कब आओगी मेरे घर?’’ मैं ने मजाकिया लहजे में पूछा.

‘‘अभी चलें?’’ उस ने चुनौती देने वाले अंदाज में मेरी आंखों में झांका.

‘‘तुम्हारे मम्मीपापा चिंता तो नहीं करेंगे?’’ उस के सवाल से मन में उठी हलचल के कारण मैं एकदम से ‘हां’ नहीं कह पाया था.

‘‘मैं ने घर से निकलते हुए मम्मी को बता दिया था कि शायद मैं आप के साथ आप के घर चली जाऊं.’’

‘‘तब चलो,’’ हम दोनों पार्क के गेट की तरफ चल पड़े, ‘‘तो तुम ने अपनी मम्मी को मेरे बारे में और क्याक्या बता रखा है?’’

‘‘वह तो आप के बारे में पहले से ही बहुतकुछ जानती हैं. पार्क में घूमते हुए कुछ दिन पहले उन्होंने ही मुझे आप का परिचय बताया था.’’

‘‘और वह मुझे कैसे जानती हैं?’’ मैं ने चौंक कर पूछा.

‘‘वह आप के साथ कालिज में पढ़ा करती थीं लेकिन आप दोनों के बीच ज्यादा बातचीत कभी नहीं हुई थी.’’

‘‘शायद देखने पर मैं उन्हें पहचान लूं. वैसे तुम्हें क्या बताया है उन्होंने मेरे बारे में?’’

‘‘यही कि आप बहुत अमीर हैं और 2 साल से बहुत अकेले भी.’’

‘‘इस का मतलब तुम्हारी मम्मी को मेरी पत्नी के इस दुनिया को छोड़ कर चले जाने की जानकारी है. मेरे अकेलेपन को दूर करने का जो इलाज तुम मुझे बता रही हो, क्या वह तुम्हारी मम्मी का बताया हुआ है?’’

‘‘एक बार हम दोनों की इस विषय पर बातचीत हुई थी. वैसे मुझे नहीं लगता कि आप इस दिशा में कोई कदम उठाएंगे.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो?’’ मैं ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘आप को अपनी रेपुटेशन कुछ ज्यादा ही प्यारी है,’’ उस ने बड़े नाटकीय अंदाज में जवाब दिया और फिर हम दोनों ही जोर से हंस पड़े थे.

उस दिन शुचि मेरे घर में करीब 2 घंटे रुकी. उस ने मुझे चाय बना कर पिलाई और टोस्ट पर बटर लगा कर नाश्ता कराया. फिर मेरे साथ बातें करते हुए उस ने पहले ड्राइंगरूम में फैले सामान को संभाला और फिर मेरे शयनकक्ष को भी ठीकठाक कर दिया.

उस के हाथ में जूस का गिलास पकड़ाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम जिंदगी में क्या करना चाहती हो…क्या बनना चाहती हो, शुचि?’’

‘‘सर, 5 महीने बाद मेरा बी.कौम पूरा हो जाएगा. मेरी इच्छा बहुत अच्छे कालिज से एम.बी.ए. करने की है लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’ उस की आंखों में परेशानी के भाव पढ़ कर मैं ने उत्सुक लहजे में सवाल पूछा.

‘‘मेरी फीस देना पापा के लिए कठिन होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पहले मेरी बड़ी बहन की शादी में और फिर भैया को होस्टल में रख कर इंजीनियरिंग कराने में पापा ने पहले ही सिर पर कर्जा कर लिया है. मैं बेटी हूं, बेटा नहीं. इसीलिए वह मेरी एम.बी.ए. की फीस का इंतजाम करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेंगे,’’ शुचि उदास हो उठी थी.

मैं ने फौरन उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘शुचि, तुम अच्छे कालिज में प्रवेश तो लो. तुम्हारी फीस का इंतजाम कराने की जिम्मेदारी मेरी रहेगी.’’

‘‘क्या आप मेरी फीस भर देंगे?’’ उस की आंखों में आशा भरी चमक उभरी.

‘‘अगर बैंक से लोन नहीं मिला तो मैं भर दूंगा. नौकरी लग जाने के बाद बैंक का या मेरा लोन लौटाओगी न?’’ मैं ने मजाक में पूछा.

‘‘श्योर, सर, मेरी इस समस्या को हल करने की जिम्मेदारी ले कर आप मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करेंगे,’’ वह भावुक हो उठी थी.

‘‘दोस्तों के बीच एहसान शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए. तुम्हारे लिए कुछ भी कर के मुझे खुशी होगी,’’ इन शब्दों को सुन कर उस का चेहरा फूल सा खिल उठा था.

शुचि के साथ के कारण अचानक ही मेरा समय बड़े आराम से कटने लगा था. उस से मिलने और उस के घर आने का मुझे इंतजार रहता. अपने को मैं नई ऊर्जा और उत्साह से भरा महसूस करता. अपने बेटेबहुओं से फोन पर बातें करते हुए मैं अपने अकेलेपन की शिकायत अब नहीं करता था. शुचि की मौजूदगी ने मेरी जिंदगी से ऊब और नीरसता को बिलकुल दूर भगा दिया था.

आगामी रविवार की सुबह पार्क में सैर कर लेने के बाद उस ने कहा, ‘‘सर, आज आप का लंच हमारे यहां है. आप तैयार रहना. मैं आप को अपने घर ले चलने के लिए ठीक 12 बजे आ जाऊंगी.’’

‘‘थैंक यू वेरी मच, शुचि. तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने की मेरी भी बड़ी इच्छा है,’’ उस के घर जाने का बुलावा पा कर मैं सचमुच बहुत खुश हुआ था.

शुचि के आने से पहले मैं काजू की मिठाई का डब्बा और फूलों का बहुत सुंदर गुलदस्ता बाजार से ले आया था. उस के आने के 5 मिनट बाद ही हम दोनों कार में बैठ कर उस के घर जाने को निकल पड़े थे.

‘‘बहुत सुंदर गुलदस्ता बनवाया है आप ने, सर. मम्मी तो बहुत खुश हो जाएंगी,’’ शुचि की आंखों में अपनी तारीफ के भाव पढ़ कर मैं खुश हुआ था.

शुचि के पापा ने बड़ी गरमजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए मेरा स्वागत किया, ‘‘मैं रवि हूं…शुचि का पापा. वेलकम, कपूर साहब. शुचि आप की बहुत बातें करती है. इसीलिए ऐसा लग नहीं रहा है कि हम पहली बार मिल रहे हैं.’’

शुचि की मम्मी घर के भीतरी भाग से ड्राइंगरूम में आईं तो रवि ने मुझ से उन का भी परिचय कराया लेकिन मुझे उन के मुंह से निकला एक शब्द भी समझ में नहीं आया क्योंकि उन की पत्नी को देखते ही मुझे जबरदस्त झटका लगा था.

हमारी मुलाकात करीब 30 साल बाद हो रही थी पर सीमा को देखते ही मैं ने फौरन पहचान लिया था.

‘‘ये बहुत सुंदर हैं, थैंक यू वेरी मच,’’ सीमा ने मुसकराते हुए मेरे हाथ से गुलदस्ता ले लिया था.

मैं बड़े मशीनी अंदाज में मुसकराते हुए उन के साथ बोल रहा था. उन तीनों में से किसी की बात मुझे पूरी तरह से समझ में नहीं आ रही थी. मन में चल रही जबरदस्त हलचल के कारण मैं खुद को बिलकुल भी सहज नहीं कर पा रहा था.

‘‘क्या आप मम्मी को पहचान पाए, सर?’’ शुचि के इस सवाल को सुन कर मैं बहुत बेचैन हो उठा था.

मुझे जवाब देने की परेशानी से बचाते हुए सीमा ने हंस कर कहा, ‘‘अतीत को याद रखने की फुरसत और दिलचस्पी सब के पास नहीं होती है. कपूर साहब को कुछ याद नहीं होगा पर मैं ने इन्हें पार्क में फौरन पहचान लिया था.’’

‘‘मेरी याददाश्त सचमुच बहुत कमजोर है,’’ मैं ने जवाब हलकेफुलके अंदाज में देना चाहा था पर मेरी आवाज में उदासी के भाव पैदा हो ही गए.

‘‘सीमा कुछ नहीं भूलती है, कपूर साहब. महीनों पहले हुई गलती का ताना देने से यह कभी नहीं चूकती,’’ रवि के इस मजाक पर मेरे अलावा वे तीनों खुल कर हंसे थे.

‘‘महीनों पुरानी न सही पर आप वर्षों पहले हुई गलती तो भुला कर माफ कर देती होंगी?’’ मैं ने पहली बार सीमा की आंखों में देखने का हौसला पैदा कर यह सवाल पूछा.

रवि और शुचि मेरे सवाल पर ठहाका मार कर हंसे पर मैं ने सीमा के चेहरे पर से नजर नहीं हटाई.

‘‘वक्त के साथ नईपुरानी सारी गलतियां खट्टीमीठी यादें बन जाती हैं, कपूर साहब. आप इन की बातों पर ध्यान न देना. पुरानी बातों को याद रख कर अपने या किसी और के मन को दुखी रखना मेरा स्वभाव नहीं है. आप खाने से पहले कुछ ठंडा या गरम लेंगे?’’ सीमा सहज भाव से मुसकराती हुई किचन में जाने को उठ खड़ी हुई थी.

‘‘सीधे खाना ही खाते हैं,’’ मेरा यह जवाब सुन कर वह ड्राइंगरूम से चली गई थी.

मैं उन के घर करीब 2 घंटे रुका था. उन सब की पूरी कोशिश के बावजूद मैं सारे समय खिंचाखिंचा सा ही बना रहा. सीमा की मौजूदगी में मेरे लिए सहज हो पाना संभव भी नहीं था.

‘जिसे प्यार में मैं ने धोखा दिया हो, उस से अचानक सामना होने पर मैं कैसे सहज रह सकता हूं? शुचि को मेरा परिचय बता कर उसे मेरे निकट आने को सीमा ने क्यों प्रोत्साहित किया है? उस ने अपने घर मुझे खाने पर क्यों बुलाया था?’ उस रात ऐसे सवालों से जूझते हुए मैं ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी थी.

अगले दिन मैं पार्क में घूमने नहीं जा सका. शुचि ने फोन किया तो मैं ने तबीयत ठीक न होने का बहाना बना दिया था.

करीब 10 बजे सीमा मुझ से मिलने मेरे घर आई. उस का आना मुझे ज्यादा हैरान नहीं कर सका. शायद मेरे मन को ऐसा होने की उम्मीद रही होगी.

‘‘नहीं, मैं बैठूंगी नहीं. मैं शुचि के बारे में कुछ जरूरी बात करने आई हूं,’’ सीमा की बेचैनी और परेशानी को भांप कर मैं ने बैठने के लिए उस पर जोर नहीं डाला था.

दिल की धड़कनों को काबू में रखने की कोशिश करते हुए मैं खामोशी के साथ उस के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.

‘‘नरेश, तुम ने शुचि की एम.बी.ए. की फीस भरने का आश्वासन उसे दिया है?’’ उस ने चिंतित लहजे में सवाल पूछा.

‘‘हां, अगर जरूरत पड़ी तो मैं खुशी से ऐसा कर दूंगा. वह तुम्हारी बेटी है, इस जानकारी ने उसे मेरे दिल के और नजदीक कर दिया है.’’

‘‘मैं शुचि को ले कर काफी चिंतित रहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘वह बहुत महत्त्वाकांक्षी है… उसे किसी भी कीमत पर अमीर बनना है… दुनिया को जीतना है…मेरी बेटी बड़ी ऊंचाइयां छूने के सपने देखती है…वह बिलकुल तुम्हारी तरह है, नरेश.’’

‘‘क्या मेरे जैसा होना बुरा…’’ मैं अपना वाक्य पूरा करने से पहले ही झटके से चुप हो गया था.

‘‘प्लीज, एक मां की चिंता को तुम सही परिपे्रक्ष्य में देखना. मैं नहीं चाहती हूं कि वह अमीर बनने की अपनी चाह पूरी करने के लिए सहीगलत में फर्क करना छोड़ दे…या कोमल भावनाओं का गला घोंट कर मशीन बन जाए.

‘‘मैं ने एक दिन तुम्हें पार्क में देख कर उसे चंद बातें तुम्हारे बारे में वैसे ही बताई थीं. बाद में तुम से अपने संबंध प्रगाढ़ बनाने का फैसला उस ने खुद ही किया. तुम उस की फीस भर दोगे, ये जानने के बाद मैं ने तुम से मिलना जरूरी समझा और अपने घर लंच पर बुला लिया.

‘‘शुचि तुम्हारे करीब आई ही इसीलिए है कि तुम उस की आर्थिक सहायता करने में सक्षम हो, इस बात को समझना मेरे लिए कठिन नहीं. अपने लक्ष्य को पाने के लिए वह कैसा भी दुस्साहसी कदम उठा सकती है और यही मेरी चिंता का कारण है,’’ सीमा की पलकें नम हो चली थीं.

‘‘तुम ने उसे मेरे जैसा क्यों कहा है, मैं समझ सकता हूं,’’ मैं उदास सी हंसी हंसा, ‘‘और मैं नहीं चाहूंगा कि वह मेरे जैसा बने. इस महल जैसे सुंदर घर में मैं खुद को आज बिलकुल अकेला पाता हूं. कभी मैं ने अपनों की तरफ ध्यान नहीं दिया और आज उन के पास मेरे लिए वक्त नहीं है.

‘‘तुम्हें प्यार में धोखा दे कर मैं ने अपना कैरियर बेहतर बनाने को अमीर घर की बेटी से शादी कर ली थी. उसे चमकदमक और मौजमस्ती भरी जिंदगी पसंद थी. हमारे दिलों के बीच प्रेम का गहरा रिश्ता कभी नहीं बन पाया. मैं ने अमीर बनने की दौड़ में अंधाधुंध दौड़ते हुए तब प्यार की इस कमी को गहराई से महसूस भी नहीं किया था.

‘‘आज मैं अकेलेपन और उदासी की पीड़ा को खूब समझता हूं. तुम्हारी बेटी मेरी रेगिस्तान सी सूखी जिंदगी में बरखा की जीवनदायी फुहार बन कर आई है. तुम फिक्र मत करना. वह मेरे साथ बिलकुल सुरक्षित रहेगी. अपने अतीत को मैं उस के साथ बांटूंगा…मैं उस का उचित मार्गदर्शन करने की कोशिश बड़ी ईमानदारी से करूंगा, सीमा.’’

‘‘थैंक यू, नरेश. मैं किसी से पूछे बिना…किसी को बताए बिना यहां आई हूं. तुम भी शुचि से कुछ न कहना,’’ उस ने एक बार मेरे कंधे को अपनेपन से दबाया और आंखों में खुशी और राहत के आंसू लिए मेरे घर से चली गई थी.

शुचि शाम को मेरा हालचाल जानने मेरे घर आई. मैं ने उसे अपने पास बिठाया और एक चेक उसे दिखाते हुए बोला, ‘‘यह 5 लाख रुपए का चेक मैं ने तुम्हारे नाम से आज ही भर दिया है. अब मुझ से पूछो कि इस रकम की हकदार बनने के लिए तुम्हें क्या करना पड़ेगा.’’

‘‘क…क्या करना पड़ेगा, सर?’’ वह एकदम से टेंशन का शिकार तो बन गई पर डरी हुई बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.

‘‘क्या तुम मेरी सारी बातें खुशी- खुशी मानोगी?’’

‘‘सर, आप के इस एहसान का बदला मैं कैसे भी चुकाने को तैयार हूं.’’

सीमा की अपनी बेटी के प्रति चिंता जायज थी. मैं चाहता तो भावुकता की शिकार बनी शुचि को गलत राह पर कदम रखने को आसानी से राजी कर सकता था.

‘‘मैं ने कुछ दिन पहले कहा था न कि दोस्तों के बीच एहसान शब्द का प्रयोग ठीक नहीं है. अब तो मैं तुम्हारे परिवार से भी जुड़ गया हूं. इसलिए यह शब्द मैं फिर कभी नहीं सुनना चाहूंगा.’’

‘‘ठीक है, सर.’’

‘‘अब इस ‘सर’ को भी विदा कह कर मुझे ‘नरेश अंकल’ बुलाओ. इस संबोधन में ज्यादा अपनापन है.’’

‘‘ओ के, नरेश अंकल…’’ वह मेरे चेहरे को बड़े ध्यान से पढ़ने की कोशिश कर रही थी.

‘‘यह मेरी दिली इच्छा है कि एम.बी.ए. के लिए तुम्हें अच्छे कालिज में प्रवेश मिले. इस लक्ष्य को पाने के लिए तुम्हें बहुत मेहनत करने का वचन मुझे देना होगा, शुचि.’’

‘‘मैं बहुत मेहनत करूंगी,’’ उस की आंखों में दृढ़ निश्चय के भाव उभरे.

‘‘आज से ही?’’

‘‘हां, मैं आज से ही दिल लगा कर मेहनत करूंगी, नरेश अंकल,’’ वह जोश भरी आवाज में चिल्लाई और फिर हम दोनों ही खुल कर हंस पड़े थे.

‘‘गुड,’’ मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर दिल की गहराइयों से उसे आशीर्वाद दिया तो वह एक आदर्श बेटी की तरह मेरे पैर छू कर सीने से लग गई.

उस के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर मैं जिस जोश और उत्साह को अपने भीतर महसूस कर रहा था, उस ने मेरे अकेलेपन के एहसास की जड़ें पूरी तरह नष्ट कर दी थीं.

Storytelling : शोकसभा

Storytelling : महानगरों की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. हर इनसान अपने में ही व्यस्त है. कुसूर किसी का भी नहीं है, वक्त की कमी सभी को है और हर कोई दूसरे से न मिलने की शिकायत करता है. लेकिन व्यक्ति क्या खुद अपने गिरेबान में झांक कर स्वयं को देखता है कि वह खुद जो शिकायत कर रहा है, स्वयं कितना समय दूसरों के लिए निकाल पाता है.

सुबह आफिस जाने के लिए सुभाष तैयार हो कर नाश्ते की मेज पर बैठे समाचारपत्र की सुर्खियों पर नजर डाल रहे थे कि तभी फोन की घंटी बजी. फोन उठा कर उन्होंने जैसे ही हैलो कहा, दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘क्या भाषी है?’’

एक अरसे के बाद भाषी शब्द सुन कर उन्हें अच्छा लगा और सोचने लगे कि कौन है भाषी कहने वाला, नजदीकी रिश्तेदार ही उन्हें भाषी कहते थे. तभी दूसरी तरफ की आवाज ने उन की सोच को तोड़ा, ‘‘क्या भाषी है?’’

‘‘हां, मैं भाषी बोल रहा हूं, आप कौन, मैं आवाज पहचान नहीं सका,’’ सुभाष ने प्रश्न किया.

‘‘भाषी, तू ने मुझे नहीं पहचाना, क्या बात करता है, मैं मेशी.’’

‘‘अरे, मेशी, कितने सालों बाद तेरी आवाज सुनाई दी है, कहां है तू. तेरी तो आवाज बिलकुल बदल गई है.’’

‘‘थोड़ा सा जुकाम हो रहा है पर यह बता, तू कहां है, कभी नजर ही नहीं आता.’’

‘‘मेशी, तेरे से मिले तो एक जमाना हो गया. क्या कर रहा है?’’

‘‘तेरे से यह उम्मीद न थी, भाषी. तू तो एकदम बेगाना हो गया है. मैं ने सोचा, कहीं तू विदेश तो नहीं चला गया, लेकिन शुक्र है कि तू बदल गया पर तेरा टैलीफोन नंबर नहीं बदला है.’’

‘‘क्या बात है मेशी, सालों बाद बात हो रही है और तू जलीकटी सुना रहा है.’’

‘‘भाषी, तू हरी के अंतिम संस्कार पर भी नहीं पहुंचा, आज उस की उठावनी है, इसलिए फोन कर रहा हूं, शाम को 3 से 4 बजे का समय है.’’

‘‘क्या बात करता है, हरी का देहांत हो गया. कब, कैसे हुआ, मुझे तो किसी ने बताया ही नहीं.’’

‘‘4 दिन हो गए हैं. आज तो उस की शोकसभा है. आना जरूर.’’

‘‘कहां आऊं, पता तो बता…आज 10 साल बाद हमारे बीच बात हो रही है. न पता बता कर राजी है, न पहले बताया. बस, गिलेशिकवे कर रहा है,’’ भाषी ने तीखे शब्दों में अपनी नाराजगी जाहिर की.

मेशी ने उठावनी कहां होनी है, उस का पता बताया.

सुभाष की पत्नी सारिका रसोई में थी, टिफिन हाथ में ला कर बोली, ‘‘यह लो अपना लंच… नाश्ता यहीं ले कर आऊं या डाइनिंग टेबल पर लगाऊं.’’

‘‘टिफिन से खाना निकाल लो, आज आफिस नहीं जा रहा हूं.’’

‘‘क्यों? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, मेशी का फोन आया था. अभी उसी से बात कर रहा था. हरी का देहांत हो गया है, वहां जाना है.’’

‘‘क्या?’’ सारिका ने हैरानी से पूछा.

‘‘आज शाम को हरी की उठावनी है.’’

‘‘4 दिन हो गए और हमें पता ही नहीं. किसी ने बताया ही नहीं,’’ इस से पहले सारिका कुछ और कहती सुभाष ने कहा, ‘‘रहने दे, हम क्यों अपना दिमाग और समय खराब करें. जब पता चल ही गया है तो हम अभी हरी के घर चलते हैं और शाम को उठावनी में भी चलेेंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं भी तैयार हो जाती हूं, फिर साथ चलते हैं.’’

सारिका तैयार होने चली गई तो सुभाष अतीत में गुम हो गया. हरी, भाषी और मेशी तो उन के घर के नाम थे. तीनों ताऊ, चाचा के लड़के थे. बचपन में सब के मकान एकसाथ थे. तीनों की उम्र में 1-2 साल का ही अंतर था. एकसाथ स्कूल जाना, पढ़ना, खेलना. तीनों भाई ही नहीं दोस्त भी थे.

हरी यानी बिहारी, मेशी यानी रमेश और भाषी यानी सुभाष. तीनों बड़े हो गए लेकिन बचपन के उन के नाम नहीं गए. बाहरी दुनिया के लिए वे भले ही बिहारी, रमेश, सुभाष हों, लेकिन एकदूसरे के लिए हरी, मेशी और भाषी ही थे.

कालेज की पढ़ाई के बाद हरी ताऊजी की दुकान पर बैठ गया. रमेश चाचाजी की दुकान पर और सुभाष ने नौकरी कर ली, क्योंकि उस के पिताजी का व्यापार नुकसान की वजह से बंद हो चुका था और बहनों की शादी के खर्च के बाद मकान भी बिक गया. सुभाष मांबाप के साथ किराए के मकान में रहने लगा तो वे दूर हो गए फिर भी आपसी नजदीकियां और मेलजोल पहले जैसा ही रहा.

सुभाष की शादी सब से पहले हुई, फिर रमेश की और सब से बाद में बिहारी की. जहां सुभाष की पत्नी सारिका गरीब परिवार की थी वहीं रमेश और बिहारी की शादियां बड़े व्यापारियों की बेटियों के साथ बहुत धूमधाम से हुईं. अमीर घर की बेटियां सारिका से दूरी ही बनाए रखती थीं, लेकिन घर के बुजुर्गों के रहते कुछ बोल नहीं पाती थीं.

समय बीतता गया. घर के बुजुर्गों के गुजर जाने के बाद रमेश और बिहारी की पत्नियां सेठानी की पदवी पा गईं, उन के सामने सारिका का कोई पद नहीं था, नतीजतन, सुभाष और सारिका का बचपन के लंगोटिया मेशी, हरी का साथ छूट गया.

एक शहर में रहते हुए भी वे अनजाने हो गए. आज के भौतिकवाद में हैसियत सिर्फ रुपएपैसों से तौली जाती है. सुभाष सोचने लगा, शायद 15 साल बीत गए होंगे, मेशी और हरी से मिले हुए. शायद नातेरिश्ते भी सिर्फ पैसा ही देखते हैं. एक छोटी सी नौकरी करते हुए सुभाष बिहारी और रमेश के नजदीक न आ सका. तभी सारिका की आवाज ने सुभाष को अतीत से वर्तमान में ला दिया.

‘‘कब चलना है, मैं तैयार हूं.’’

सुभाष व सारिका बाइक पर बैठ बिहारी (हरी) के मकान की ओर चल पड़े. सुभाष ने रमेश से बिहारी के नए मकान का पता ले लिया था. सुभाष और सारिका जब बिहारी की कोठी के सामने पहुंचे तो उस की भव्यता देख कर हैरान हो गए और उस के सामने उन्हें अपने 2 कमरे के फ्लैट का कोई वजूद ही नजर नहीं आ रहा था. वे हिम्मत कर के अंदर जाने लगे तो बड़े से भव्य गेट पर गार्ड ने उन्हें रोक लिया और विजिटर रजिस्टर पर नामपता लिखवाया फिर इंटरकौम पर पूछ कर इजाजत ली, तब कहीं अंदर जाने दिया.

अंदर कुछ लोग पहले से बैठे थे जिन्हें सुभाष नहीं जानते थे. उन्हें कोई रिश्तेदार नजर नहीं आया. काफी देर तक वे बैठे रहे. जो लोग मिलने आ रहे थे, उन के डिजिटल कैमरे से फोटो खींच कर एक लड़का अंदर जाता और फिर मिलने की इजाजत ले कर बरामदे में आता और अपने साथ अंदर छोड़ कर आता.

सुभाष ने बैठेबैठे नोट किया कि उस लड़के के पास रिवाल्वर था. अपने भाई के देहांत पर अफसोस करने आए मगर अफसोस का यह सिस्टम उन की समझ से बाहर था कि क्यों आगंतुकों को एकएक कर के अफसोस जाहिर करने के लिए अंदर भेजा जा रहा है. आखिर 1 घंटे बाद सुभाष को अंदर भेजा गया. एक आलीशान कमरे में उस की भाभी डौली सोफे पर अपने 2 भाइयों के साथ बैठी थी. सोफे के दोनों कोनों पर 2 खूंखार विदेशी नस्ल के कुत्तों को देख कर सुभाष और सारिका ठिठक गए और दूर से ही हाथ जोड़ कर सिर झुका कर अफसोस जाहिर किया.

सुभाष व सारिका को घबराया देख कर डौली बोली, ‘‘सारिका, इतनी दूर क्यों खड़ी हो, मेरे नजदीक आओ.’’

‘‘इन कुत्तों की वजह से थोड़ा डर…’’

डौली कुछ सकुचा कर बोली, ‘‘डरो मत, कुछ नहीं कहेंगे.’’

सारिका नजदीक गई और दोनों देवरानीजेठानी गले मिल कर रो पड़ीं.

सुभाष ने डौली के भाइयों से पूछा, ‘‘अचानक क्या हो गया, कोई खबर ही नहीं मिली. सब कैसे हुआ?’’

‘‘बस, क्या बताएं, समझ लीजिए कि समय आ गया था, हम से रुखसत लेने का. हम लोग भी कोई कारण नहीं जान पाए. जब समय आता है तो जाना ही पड़ता है.’’

यह उत्तर सुन कर सुभाष ने कुछ नहीं पूछा, लेकिन देवरानीजेठानी आपस में कुछ फुसफुसा रही थीं. तभी डौली के छोटे भाई का मोबाइल फोन बजा. वह किसी को कह रहा था, ‘‘देख, यह हमारी इज्जत का सवाल है. हर कीमत पर वह प्रौपर्टी चाहिए. जीजा मर गया उस के पीछे, मालूम है न तुझे या समझाना पड़ेगा. देख टिंडे, खोपड़ी में 6 के 6 उतार दूंगा.’’

फोन पर भाई की बातचीत सुनते ही डौली बाथरूम का बहाना बना कर दूसरे कमरे में चली गई और सुभाष, सारिका ने मौके की नजाकत समझ कर विदा ली. चुपचाप दोनों घर वापस आ गए. सुभाष ने टीवी चलाया, लेकिन मन कहीं और विचरण कर रहा था.

सुभाष ने सारिका से पूछा, ‘‘क्या बातें कर रही थीं देवरानीजेठानी?’’

‘‘बात क्या करनी थी, बस इतना ही पूछा था कि क्या हुआ था?’’

‘‘तू ने तो पूछ भी लिया, मेरी तो हिम्मत ही नहीं हुई,’’ सुभाष ने पानी का गिलास हाथ में पकड़ते हुए कहा, ‘‘सारिका, मुझे तो लगता है कि बिहारी किसी गैरकानूनी धंधे में लिप्त था तभी तो उस ने कुछ ही सालों में इतना कुछ कर लिया…और जिस तरह से फोन पर किसी को धमकाया जा रहा था उस से मेरे विश्वास को और बल मिला है…’’

पति की बात को काटते हुए सारिका ने कहा, ‘‘छोड़ो इन बातों को, पहले आप पानी पी लो. हाथोें में अभी भी गिलास थामा हुआ है.’’

पानी पी कर सुभाष ने बात आगे जारी रखते हुए कहा, ‘‘आखिर भाई था, जानने की उत्सुकता तो होती है कि आखिर उस के साथ हुआ क्या था.’’

‘‘जिस गली जाना नहीं वहां के बारे में क्या सोचना. भाई था, लेकिन 10 साल में उन्होंने एक भी दिन आप को याद किया क्या?’’ सारिका ने कुछ व्यंग्यात्मक मुद्रा में कहा, ‘‘छोड़ो इन बातों को, थोड़ा आराम कर लें. फिर दोपहर को उठावनी में भी जाना है.’’

इतना कह कर सारिका किचन में चली गई और सुभाष का मन सोचने लगा कि क्या रिश्ते केवल रुपएपैसों तक ही सिमट कर रह गए हैं. बचपन का खेल क्या सिर्फ एक खेल ही था. शायद खेल ही था, जो अब समझ में आ रहा है. समझ में तो काफी साल पहले आ चुका था, लेकिन दिल मानता नहीं था.

‘‘खाना लग गया,’’ सारिका की आवाज सुन कर सुभाष हकीकत के धरातल पर आ गया. खाना खाते हुए उस ने कहा, ‘‘उठावनी में हमें बच्चों को भी ले चलना चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ सारिका ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘बच्चे अब बड़े हो गए हैं. शादियों मेें हमारे साथ जाते हैं, गमी में भी जाना उन्हें सीखना चाहिए. समाज के नियम हैं, आज नहीं तो कल कभी तो उन्हें भी गमी में शरीक होना पड़ेगा. जब परिवार में एक गमी का मौका है तो हमारे साथ चल कर कुछ नियम, कायदे सीख लेंगे.’’

‘‘हमारे जाने से पहले वे आ गए तो जरूर साथ चलेंगे.’’

दोनों बच्चे साक्षी और समीर कालेज से आ गए. सुभाष को देख कर बोले, ‘‘क्या पापा, आप घर में, तबीयत तो ठीक है न.’’

‘‘तबीयत ठीक है, तुम्हारे बिहारी ताऊ का देहांत हो गया है, आज दोपहर को उठावनी में जाना है, इसलिए आज आफिस नहीं जा सका. सुनो, खाना खा लो, फिर हम को उठावनी में जाना है.’’

‘‘क्या हमें भी?’’ दोनों बच्चे एक- साथ बोले.

‘‘हां, बेटे, आप दोनों भी चलो.’’

‘‘हम वहां क्या करेंगे?’’ साक्षी ने पूछा.

‘‘शादीविवाह में हमारे साथ चलते हो, अब बड़े हो गए हो, गमी में भी जाना सीखो.’’

सुभाष परिवार सहित समय से पहले ही शोकसभा स्थल पर पहुंच गए. सुबह की तरह सुरक्षा जांच के बाद हाल के अंदर गए, अंदर अभी कोई नहीं था, सुभाष का परिवार सब से पहले पहुंचा था. ‘कमाल है, घर वाले ही नदारद हैं, शोकसभा तो समय पर शुरू हो जाती है, कम से कम डौली और उस के भाइयों को तो यहां होना ही चाहिए था,’ सोचते हुए सुभाष अभी इधरउधर देख ही रहे थे कि तभी रमेश परिवारसहित पहुंचा. दोनों भाई गले मिले.

‘‘मेशी, तू तो बहुत मोटा हो गया है. लाला बन गया है. क्या तोंद बना रखी है,’’ सुभाष की बातें सुन कर समीर और साक्षी हैरान हो कर सारिका से पूछने लगे, ‘‘मां, ऐसे मौके पर भी मजाक चलता है क्या?’’

‘‘बस, तुम दोनों चुपचाप देखते रहो.’’

रमेश ने सुभाष को कोई उत्तर न दे कर, समीर, साक्षी को देख कर पूछा, ‘‘बच्चों से तो मिलवा यार, कितने सालों बाद मिल रहे हैं… बच्चे तो हमें पहचानते भी नहीं होंगे, बड़े स्वीट बच्चे हैं तेरे, भाषी, तू ने भी अपने को मेंटेन कर के रखा है, भाभीजी भी स्लिमट्रिम हैं, कुछ टिप्स बबीता को भी दो, इस की कमर तो नजर ही नहीं आती है,’’ पत्नी की तरफ इशारा कर के मेशी ने कहा. यह सुन कर सभी हंस पड़े तभी डौली, भाई और परिवार के दूसरे सदस्यों ने हाल में प्रवेश किया. हंसी रोक कर सभी ने हाथ जोड़ कर सांत्वना प्रकट की. डौली ने समीर व साक्षी को देख कर उन्हें गले लगा लिया.

‘‘सारिका के बच्चे कितने स्वीट हैं. किसी की नजर न लगे मेरे इन क्यूट बच्चों को.’’

साक्षी परेशान हो कर सोचने लगी कि डौली आंटी कैसी औरत हैं, इन का पति मर गया और ये शोकसभा में क्यूटनेस देखने में लगी हैं.

तभी डौली के बड़े भाई ने कहा, ‘‘बहना, यह कुत्ते का बच्चा टिंडा कहां मर गया, गधे को पंडित लाने भेजा था, सूअर का फोन भी नहीं लग रहा है.’’

यह सुन कर सुभाष तो मुसकरा दिए. समीर व साक्षी एकदम सन्न रह गए कि मौके की नजाकत खुद मृतक की पत्नी व साले ही नहीं समझ रहे हैं. तभी डौली के छोटे भाई का मोबाइल फोन बजा. फोन उसी टिंडे नाम के आदमी का था, जिस को अभी भद्दी गालियां निकाली जा रही थीं.

‘‘अबे, कहां मर गया, टिंडे,’’ छोटे भाई ने अभी इतना ही कहा था कि बड़े भाई ने छोटे भाई के हाथ से मोबाइल खींच लिया और चीख कर कहा, ‘‘कुत्ते, यहीं से ट्रिगर दबा दूं…’’ लेकिन दूसरे ही पल वह टिंडे को बधाई देने लगा, ‘‘वेलडन टिंडा, तू जीनियस है, तेरा मुंह मोतियों से भर दूंगा, आज तू ने जीजाजी की शहादत बेकार नहीं जाने दी, वेलडन, टिंडा… अच्छा, पंडित…ठीक है, ठीक है,’’ फोन काट कर बड़ा भाई डौली के गले लग गया, ‘‘बहना, उस हवेली का काम हो गया, टिंडे ने हवेली खाली करवा ली है.’’

‘‘शाबाश भाई, टिंडे ने आज जिंदगी में पहली बार कोई अच्छा काम किया है. खोटे सिक्के ने तो कमाल कर दिया.’’

‘‘बहना,’’ छोटा भाई बोला, ‘‘अच्छा, बड़े, पंडित को कौन ला रहा है?’’

‘‘चिंता न कर, आलू पंडित ला रहा है, बस पहुंचता ही होगा.’’

तभी एक मोटा आदमी पंडित के साथ आया. समीर और साक्षी उस मोटे आदमी को देख कर सोचने लगे, यह मोटा आदमी ही ‘आलू’ होगा.

पंडित के आने पर शोकसभा शुरू हो गई, रिवाज के अनुसार सभास्थल 2 भागों में बंट गया, पुरुष एक ओर व महिलाएं दूसरी ओर बैठ गईं. जो डौली अभी तक स्वीटनेस, क्यूटनेस ढूंढ़ रही थीं, वही दहाड़ें मार कर रो रही थीं, यह क्या मात्र दिखावा. पति मर गया, पत्नी को कोई अफसोस नहीं. सिर्फ बिरादरी के आगे झूठे आंसू.

1 घंटे तक पंडित की कथा चली, लेकिन समीर, साक्षी केवल डौली आंटी और उन के भाइयों के आचरण को ही देखते रहे. पंडित ने क्या कथा की, उन को कुछ नहीं सुनाई दी. सुभाष का मन भी उचाट था. वह भी बिहारी के बारे में सोचते रहे कि उस की मृत्यु सामान्य थी या कुछ और. खैर, 1 घंटे बाद शोकसभा समाप्त हुई. बिरादरी रुखसत होने लगी. सुभाष सभास्थल के बाहर आ गए, वहां कुछ पुराने परिचित वर्षों बाद मिले तो थोड़ीबहुत जानकारी बिहारी के बारे में मिलती रही कि बिहारी कई गैरकानूनी धंधों में लिप्त था, 2 बार जेल की हवा भी खा चुका था, जहां उस की मुलाकात शातिर अपराधियों से हुई और एक पुरानी हवेली पर कब्जे के कारण विरोधियों ने खाने में जहर दे दिया, जिसे फूड पौइजनिंग का नाम दे कर बिरादरी से छिपाया गया. उसी हवेली पर कब्जे का समाचार किसी टिंडे ने दिया था, जो सुभाष ने सुना था.

इधर सुभाष पुरुषों के बीच में और उधर सारिका महिलाओं में व्यस्त थी, जहां गहनों, डिजाइनों की बातें चल रही थीं. शोक प्रकट कर दिया तो दुनियादारी की बातों का सिलसिला चल रहा था.

‘‘सारिका, तू ने तो अपने को मेंटेन कर के रखा है, उम्र का पता ही नहीं चलता है. तेरे साथ तेरी लड़की को देख कर लगता है, हमारी देवरानी हमारी उम्र की है,’’ बबीता ने साक्षी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘शादी कब कर रही है.’’

शादी के नाम पर साक्षी एकदम चौंक गई. ताऊजी की शोकसभा पर शादी के रिश्तों की बात कर रही है. लोग क्या कुछ पल भी चुप नहीं रह सकते, वही राग, लेकिन सारिका धीरे से मुसकरा कर बोली, ‘‘दीदी, अभी उम्र ही क्या है, फर्स्ट ईयर में पढ़ रही है, पहले पढ़ाई करे, फिर नौकरी, फिर शादी की सोचेंगे, अभी कोई जल्दी नहीं है.’’

‘‘पढ़ने से कौन रोक रहा है. अच्छा रिश्ता आए तो आंख बंद कर के हां कर देनी चाहिए, बाद में उम्र ज्यादा हो जाए तो अच्छे लड़के नहीं मिलते. मेरे भाई का लड़का एकदम तैयार है, अब तो आफिस जाना शुरू कर दिया है. हमारे से भी ज्यादा काम है उस का. कहे तो बात चलाऊं.’’

‘‘कौन से भाई का लड़का, बड़े या छोटे का?’’ सारिका पूछ बैठी.

साक्षी मन ही मन जलभुन गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘बड़े वाले का बड़ा लड़का. बचपन में जिसे गोलू कहते थे. याद होगा,’’ बबीता बोली.

‘‘अरे, हां, याद आया, गोलू जैसा नाम था वैसा फुटबाल की तरह गोल था…’’

सारिका की बात बीच में ही काटते हुए बबीता ने कहा, ‘‘अब तो जिम जा कर हैंडसम बन गया है, मिलेगी तो गश खा जाएगी.’’

‘‘अभी नहीं दीदी, पहले पढ़ाई पूरी कर ले फिर. अभी सुभाष को कोई जल्दी नहीं है. आजकल लड़कियां जौब भी करती हैं, पढ़ाई बहुत जरूरी है.’’

इतने में रमेश कुछ और रिश्तेदारों के साथ आया, ‘‘भाभीजी, आज हम कितने सालों बाद मिले हैं, भाषी कहां है? अरे, वहां कोने में खड़ा है, भाषी, इधर आ,’’ रमेश की आवाज सुन कर समीर और साक्षी सोचने लगे कि पापा ने एक अलग दुनिया दिखाई है, जिस की कभी कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘यार भाषी, देख, आज सभी भाई, भाभी बच्चों सहित जमा हैं, एक यादगार अकसर है, हमसब की एकसाथ फोटो हो जाए,’’ कह कर रमेश ने अपने बेटे को आवाज लगाई, ‘‘जिम्मी, निकाल अपना नया मोबाइल और खींच फोटो. मोबाइल भी क्या चीज निकाली है, छोटा सा मोबाइल और दुनिया भर के फीचर्स.’’

जिम्मी फोटो के साथ वीडियो भी बनाने लगा. सभागार के बाहर शोक का कोई माहौल नहीं था, एक पिकनिक सा माहौल था. कुछ देर बाद सब ने विदा ली.

घर आ कर सुभाष टैलीविजन पर एक न्यूज चैनल देख रहे थे. समीर ने कहा, ‘‘पापा, यह अनुभव जिंदगी भर नहीं भुला पाऊंगा.’’

‘‘बेटे, मृत्यु जीवन का कटु सत्य है. किसी के जाने से संसार का कोई काम नहीं रुकता, हर तरह के लोग दुनिया में तुम्हें मिलेंगे, आज तुम ने देखा कि पत्नी को पति की मृत्यु का कोई दुख नहीं था. शोकसभा एक पार्टी लग रही थी, कहीं ऐसा भी देखोगे कि पत्नी पति की मृत्यु पर टूट जाती है, जितने लोगों के व्यवहार का विश्लेषण करोगे, उतनी ही दुनिया की गहराई को जान पाओगे.

‘‘हर इनसान अपनी सुविधा के अनुसार जीने का मापदंड स्थापित करता है, अपने लिए कुछ और दूसरों के लिए कुछ और. बेटे, मैं आज तक दुनियादारी नहीं पहचान सका. यह एक विस्तृत विषय है, इसे समझने के लिए पूरा जीवन भी कम है. किताबों से बाहर निकल कर कुछ व्यावहारिक ज्ञान मिले, इसी उद्देश्य से तुम्हें वहां ले कर गए थे. कालेज के बाद असली जिंदगी शुरू होती है, जो रहस्यों से भरपूर है. मुझे लगता है कि बड़े से बड़ा ज्ञानी भी इन रहस्यों को नहीं जान पाया है, हां, अपनी एक परिभाषा वह जरूर दे जाता है.’’

Hindi Kahani : आखिर कहां तक?

Hindi Kahani : रात के लगभग साढे़ 12 बजे का समय रहा होगा. मैं सोने की कोशिश कर रहा था. शायद कुछ देर में मैं सो भी जाता तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.

इतनी रात को कौन आया है, यह सोच कर मैं ने दरवाजा खोला तो देखा हरीश खड़ा है.

हरीश ने अंदर आ कर लाइट आन की फिर कुछ घबराया हुआ सा पास बैठ गया.

‘‘क्यों हरीश, क्या बात है इतनी रात गए?’’

हरीश ने एक दीर्घ सांस ली, फिर बोला, ‘‘नीलेश का फोन आया था. मनमोहन चाचा…’’

‘‘क्या हुआ मनमोहन को?’’ बीच में उस की बात काटते हुए मैं उठ कर बैठ गया. किसी अज्ञात आशंका से मन घबरा उठा.

‘‘आप को नीलेश ने बुलाया है?’’

‘‘लेकिन हुआ क्या? शाम को तो वह हंसबोल कर गए हैं. बीमार हो गए क्या?’’

‘‘कुछ कहा नहीं नीलेश ने.’’

मैं बिस्तर से उठा. पाजामा, बनियान पहने था, ऊपर से कुरता और डाल लिया, दरवाजे से स्लीपर पहन कर बाहर निकल आया.

हरीश ने कहा, ‘‘मैं बाइक निकालता हूं, अभी पहुंचा दूंगा.’’

मैं ने मना कर दिया, ‘‘5 मिनट का रास्ता है, टहलते हुए पहुंच जाऊंगा.’’

हरीश ने ज्यादा आग्रह भी नहीं किया.

महल्ले के छोर पर मंदिर वाली गली में ही तो मनमोहन का मकान है. गली में घुसते ही लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है. घर की बत्तियां जल रही थीं. दरवाजा खुला हुआ था. मैं दरवाजे पर पहुंचा ही था कि नीलेश सामने आ गया. बाहर आ कर मेरा हाथ पकड़ा.

मैं ने  हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘पहले यह बता कि हुआ क्या है? इतनी रात  गए क्यों बुलाया भाई?’’ मैं अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था इसलिए वहीं दरवाजे की सीढ़ी पर बैठ गया. गरमी के दिन थे, पसीनापसीना हो उठा था.

‘‘मुन्नी, एक गिलास पानी तो ला चाचाजी को,’’ नीलेश ने आवाज दी और उस की छोटी बहन मुन्नी तुरंत स्टील के लोटे में पानी ले कर आ गई.

हरीश ने लोटा मेरे हाथों में थमा दिया. मैं ने लोटा वहीं सीढि़यों पर रख दिया. फिर नीलेश से बोला, ‘‘आखिर माजरा क्या है? मनमोहन कहां हैं? कुछ बताओगे भी कि बस, पहेलियां ही बुझाते रहोगे?’’

‘‘वह ऊपर हैं,’’ नीलेश ने बताया.

‘‘ठीकठाक तो हैं?’’

‘‘जी हां, अब तो ठीक ही हैं.’’

‘‘अब तो का क्या मतलब? कोई अटैक वगैरा पड़ गया था क्या? डाक्टर को बुलाया कि नहीं?’’ मैं बिना पानी पिए ही उठ खड़ा हुआ और अंदर आंगन में आ गया, जहां नीलेश की पत्नी सुषमा, बंटी, पप्पी, डौली सब बैठे थे. मैं ने पूछा, ‘‘रामेश्वर कहां है?’’

‘‘ऊपर हैं, दादाजी के पास,’’ बंटी ने बताया.

आंगन के कोने से लगी सीढि़यां चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. सामने वाले कमरे के बीचों- बीच एक तखत पड़ा था. कमरे में मद्धम रोशनी का बल्ब जल रहा था. एक गंदे से बिस्तर पर धब्बेदार गिलाफ वाला तकिया और एक पुराना फटा कंबल पैताने पड़ा था. तखत पर मनमोहन पैर लटकाए गरदन झुकाए बैठे थे. फिर नीचे जमीन पर बड़ा लड़का रामेश्वर बैठा था.

‘‘क्या हुआ, मनमोहन? अब क्या नाटक रचा गया है? कोई बताता ही नहीं,’’ मैं धीरेधीरे चल कर मनमोहन के करीब गया और उन्हीं के पास बगल में तखत पर बैठ गया. तखत थोड़ा चरमराया फिर उस की हिलती चूलें शांत हो गईं.

‘‘तुम बताओ, रामेश्वर? आखिर बात क्या है?’’

रामेश्वर ने छत की ओर इशारा किया. वहां कमरे के बीचोंबीच लटक रहे पुराने बंद पंखे से एक रस्सी का टुकड़ा लटक रहा था. नीचे एक तिपाई रखी थी.

‘‘फांसी लगाने को चढ़े थे. वह तो मैं ने इन की गैंगैं की घुटीघुटी आवाज सुनी और तिपाई गिरने की धड़ाम से आवाज आई तो दौड़ कर आ गया. देखा कि रस्सी से लटक रहे हैं. तुरंत ही पैर पकड़ कर कंधे पर उठा लिया. फिर नीलेश को आवाज दी. हम दोनों ने मिल कर जैसेतैसे इन्हें फंदे से अलग किया. चाचाजी, यह मेरे पिता नहीं पिछले जन्म के दुश्मन हैं.

‘‘अपनी उम्र तो भोग चुके. आज नहीं तो कल इन्हें मरना ही है, लेकिन फांसी लगा कर मरने से तो हमें भी मरवा देते. हम भी फांसी पर चढ़ जाते. पुलिस की मार खाते, पैसों का पानी करते और घरद्वार फूंक कर इन के नाम पर फंदे पर लटक जाते.

‘‘अब चाचाजी, आप ही इन से पूछिए, इन्हें क्या तकलीफ है? गरम खाना नहीं खाते, चाय, पानी समय पर नहीं मिलता, दवा भी चल ही रही है. इन्हें कष्ट क्या है? हमारे पीछे हमें बरबाद करने पर क्यों तुले हैं?’’ रामेश्वर ने कुछ खुल कर बात करनी चाही.

‘‘लेकिन यह सब हुआ क्यों? दिन में कुछ झगड़ा हुआ था क्या?’’

‘‘कोई झगड़ाटंटा नहीं हुआ. दोपहर को सब्जी लेने निकले तो रास्ते में अपने यारदोस्तों से भी मिल आए हैं. बिजली का बिल भी भरने गए थे, फिर बंटी के स्कूल जा कर साइकिल पर उसे ले आए. हम ने कहीं भी रोकटोक नहीं लगाई. अपनी इच्छा से कहीं भी जा सकते हैं. घर में इन का मन ही नहीं लगता,’’ रामेश्वर बोला.

‘‘लेकिन तुम लोगों ने इन से कुछ कहासुना क्या? कुछ बोलचाल हो गई क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे, नहीं चाचाजी, इन से कोई क्या कह सकता है. बात करते ही काटने को दौड़ते हैं. आज कह रहे थे कि मुझे अपना चेकअप कराना है. फुल चेकअप. वह भी डा. आकाश की पैथोलौजी लैब में. हम ने पूछा भी कि आखिर आप को परेशानी क्या है? कहने लगे कि परेशानी ही परेशानी है. मन घबरा रहा है. अकेले में दम घुटता है.

‘‘पिछले महीने ही मैं ने इन्हें सरकारी अस्पताल में डा. दिनेश सिंह को दिखाया था. जांच से पता चला कि इन्हें ब्लडप्रेशर और शुगर है…’’

तभी नीलेश पानी का गिलास ले कर आ गया. मैं ने पानी पी लिया. तब मैं ने ही पूछा, ‘‘रामेश्वर, यह तो बताओ कि पिछले महीने तुम ने इन का दोबारा चेकअप कराया था क्या?’’

‘‘नहीं, 2 महीने पहले डा. बंसल से कराया था न?’’ रामेश्वर बोला.

‘‘2 महीने पहले नहीं, जनवरी में तुम ने इन का चेकअप कराया था रामेश्वर, आज इस बात को 11 महीने हो गए. और चेकअप भी क्या था, शुगर और ब्लडप्रेशर. इसे तुम फुल चेकअप कहते हो?’’

‘‘नहीं चाचाजी, डाक्टर ने ही कहा था कि ज्यादा चेकअप कराने की जरूरत नहीं है. सब ठीकठाक है.’’

‘‘लेकिन रामेश्वर, इन का जी तो घबराता है, चक्कर तो आते हैं, दम तो घुटता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘अब आप से क्या कहूं चाचाजी,’’ रामेश्वर कह कर हंसने लगा. फिर नीलेश को इशारा कर बोला कि तुम अपना काम करो न जा कर, यहां क्या कर रहे हो.

बेचारा नीलेश चुपचाप अंदर चला गया. फिर रामेश्वर बोला, ‘‘चाचाजी, आप मेरे कमरे में चलिए. इन की मुख्य तकलीफ आप को वहां बताऊंगा,’’ फिर धूर्ततापूर्ण मुसकान फेंक कर चुप हो गया.

मैं मनमोहन के जरा और पास आ गया. रामेश्वर से कहा, ‘‘तुम अपने कमरे में चलो. मैं वहीं आ रहा हूं.’’

रामेश्वर ने बांहें चढ़ाईं. कुछ आश्चर्य जाहिर किया, फिर ताली बजाता हुआ, गरदन हिला कर सीटी बजाता हुआ कमरे से बाहर हो गया.

मैं ने मनमोहन के कंधे पर हाथ रखा ही था कि वह फूटफूट कर रोने लगे. मैं ने उन्हें रोने दिया. उन्होंने पास रखे एक मटमैले गमछे से नाक साफ की, आंखें पोंछीं लेकिन सिर ऊपर नहीं किया. मैं ने फिर आत्मीयता से उन के सिर पर हाथ फेरा. अब की बार उन्होंने सिर उठा कर मु़झे देखा. उन की आंखें लाल हो रही थीं. बहुत भयातुर, घबराए से लग रहे थे. फिर बुदबुदाए, ‘‘भैया राजनाथ…’’ इतना कह कर किसी बच्चे की तरह मुझ से लिपट कर बेतहाशा रोने लगे, ‘‘तुम मुझे अपने साथ ले चलो. मैं यहां नहीं रह सकता. ये लोग मुझे जीने नहीं देंगे.’’

मैं ने कोई विवाद नहीं किया. कहा, ‘‘ठीक है, उठ कर हाथमुंह धो लो और अभी मेरे साथ चलो.’’

उन्होंने बड़ी कातर और याचना भरी नजरों से मेरी ओर देखा और तुरंत तैयार हो कर खड़े हो गए.

तभी रामेश्वर अंदर आ गया, ‘‘क्यों, कहां की तैयारी हो रही है?’’

‘‘इस समय इन की तबीयत खराब है. मैं इन्हें अपने साथ ले जा रहा हूं, सुबह आ जाएंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘सुबह क्यों? साथ ले जा रहे हैं तो हमेशा के लिए ले जाइए न. आधी रात में मेरी प्रतिष्ठा पर मिट्टी डालने के लिए जा रहे हैं ताकि सारा समाज मुझ पर थूके कि बुड्ढे को रात में ही निकाल दिया,’’ वह अपने मन का मैल निकाल रहा था.

मैं ने धैर्य से काम लिया. उस से इतना ही कहा, ‘‘देखो, रामेश्वर, इस समय इन की तबीयत ठीक नहीं है. मैं समझाबुझा कर शांत कर दूंगा. इस समय इन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं है.’’

‘‘आप इन्हें नहीं जानते. यह नाटक कर रहे हैं. घरभर का जीना हराम कर रखा है. कभी पेंशन का रोना रोते हैं तो कभी अकेलेपन का. दिन भर उस मास्टरनी के घर बैठे रहते हैं. अब इस उम्र में इन की गंदी हरकतों से हम तो परेशान हो उठे हैं. न दिन देखते हैं न रात, वहां मास्टरनी के साथ ही चाय पीएंगे, समोसे खाएंगे. और वह मास्टरनी, अब छोडि़ए चाचाजी, कहने में भी शर्म आती है. अपना सारा जेबखर्च उसी पर बिगाड़ देते हैं,’’ रामेश्वर अपनी दबी हुई आग उगल रहा था.

‘‘इन्हें जेबखर्च कौन देता है?’’ मैं ने सहज ही पूछ लिया.

‘‘मैं देता हूं, और क्या वह कमजात मास्टरनी देती है? आप भी कैसी बातें कर रहे हैं चाचाजी, उस कम्बख्त ने न जाने कौन सी घुट्टी इन्हें पिला दी है कि उसी के रंग में रंग गए हैं.’’

‘‘जरा जबान संभाल कर बात करो रामेश्वर, तुम क्या अनापशनाप बोल रहे हो? प्रेमलता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. उन का भरापूरा परिवार है. पति एडवोकेट हैं, बेटा खाद्य निगम में डायरेक्टर है, उन्हें इन से क्या स्वार्थ है. बस, हमदर्दी के चलते पूछताछ कर लेती है. इस में इतना बिगड़ने की क्या बात है. अच्छा, यह तो बताओ कि तुम इन्हें जेबखर्च क्या देते हो?’’ मैं ने शांत भाव से पूछा.

‘‘देखो चाचाजी, आप हमारे बडे़ हैं, दिनेश के फादर हैं, इसलिए हम आप की इज्जत करते हैं, लेकिन हमारे घर के मामले में इस तरह छीछालेदर करने की, हिसाबकिताब पूछने की आप को कोई जरूरत नहीं है. इन का खानापीना, कपडे़ लत्ते, चायनाश्ता, दवा का लंबाचौड़ा खर्चा कहां से हो रहा है? अब आप इन से ही पूछिए, आज 500 रुपए मांग रहे थे उस मास्टरनी को देने के लिए. हम ने साफ मना कर दिया तो कमरा बंद कर के फांसी लगाने का नाटक करने लगे. आप इन्हें नहीं जानते. इन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा है. एक अकेले आदमी का खर्चा घर भर से भी ज्यादा कर रहे हैं तो भी चैन नहीं है…और आप से भी हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दें. कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर मैं आप से कुछ बदसलूकी कर बैठूं, अब आप बाइज्जत तशरीफ ले जा सकते हैं.’’

इस के बाद तो उस ने जबरदस्ती मुझे ठेलठाल कर घर से बाहर कर दिया. रामेश्वर ने बड़ा अपमान कर दिया मेरा.

मैं ने कुछ निश्चय किया. उस समय रात के 2 बज रहे थे. गली से निकल कर सीधा प्रो. प्रेमलता के घर के सामने पहुंच गया. दरवाजे की कालबेल दबा दी. कुछ देर बाद दोबारा बटन दबाया. अंदर कुछ खटरपटर हुई फिर थोड़ी देर बाद हरीमोहन ने दरवाजा खोला. मुझे सामने देख कर उन्हें कुछ आश्चर्य हुआ लेकिन औपचारिकतावश ही बोले, ‘‘आइए, आइए शर्माजी, बाहर क्यों खडे़ हैं, अंदर आइए,’’ लुंगी- बनियान पहने वह कुछ अस्तव्यस्त से लग रहे थे. एकाएक नींद खुल जाने से परेशान से थे.

मैं ने वहीं खडे़खडे़ उन्हें संक्षेप में सारी बातें बता दीं. तभी प्रो. प्रेमलता भी आ गईं. बहुत आग्रह करने पर मैं अंदर ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठ गया.

प्रो. प्रेमलता अंदर पानी लेने चली गईं.

लौट कर आईं तो पानी का गिलास मुझे थमा कर सामने सोफे पर बैठ गईं और कहने लगीं, ‘‘यह जो रामेश्वर है न, नंबर एक का बदमाश और बदतमीज आदमी है. मनमोहनजी का सारा पी.एफ., जो लगभग 8 लाख था, अपने हाथ कर लिया. साढे़ 5 हजार पेंशन भी अपने खाते में जमा करा लेता है. इधरउधर साइन कर के 3 लाख का कर्जा भी मनमोहनजी के नाम पर ले रखा है. इन्हें हाथखर्चे के मात्र 50 रुपए देता है और दिन भर इन से मजदूरी कराता है.’’

‘‘सागसब्जी, आटापिसाना, बच्चों को स्कूल ले जानालाना, धोबी के कपडे़, बिजली का बिल सबकुछ मनमोहनजी ही करते हैं. फरवरी या मार्च में इसे पता चला कि मनमोहन का 2 लाख रुपए का बीमा भी है, शायद पहली बार स्टालमेंट पेमेंट के कागज हाथ लगे होंगे या पेंशन पेमेंट से रुपए कट गए होंगे, तभी से इन की जान के पीछे पड़ गया है, बेचारे बहुत दुखी हैं.’’

मैं ने हरीमोहनजी से कुछ विचार- विमर्श किया और फिर रात में ही हम पुलिस थाने की ओर चल दिए. उधर हरीमोहनजी ने फोन पर संपर्क कर के मीडिया को बुलवा लिया था. हम ने सोच लिया था कि रामेश्वर का पानी उतार कर ही रहेंगे, अब यह बेइंसाफी सहन नहीं होगी.

Lip Care Tips : होंठों को कैसे रखें हाइड्रेट, फौलो करें ऐक्सपर्ट के टिप्स

Lip Care Tips : सर्दी का मौसम अपने साथ ठंडी हवा, रूखी त्वचा और फटे होंठों की समस्या ले कर आता है खासकर होंठों की त्वचा बेहद नाजुक और पतली होती है. नमी की कमी और सर्द हवा की वजह से होंठों में खिंचाव, दरारें और जलन होने लगती है. सर्दियों में होंठों को स्वस्थ, मुलायम और खूबसूरत बनाए रखने के लिए सही उपचार और सही आदतों को अपना कर आप अपने होंठों को न केवल फटने से बचा सकती हैं बल्कि उन्हें खूबसूरत और गुलाबी भी बना सकती हैं. सुंदर होंठ आप के चेहरे की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते हैं.

होंठों को मौइस्चराइज करना है जरूरी

सर्दियों में होंठों को रूखेपन से बचाने के लिए मौइस्चराइज करना सब से जरूरी है. इस के लिए हमेशा एक अच्छा लिप बाम इस्तेमाल करें जिस में प्राकृतिक तत्त्व जैसे शीया बटर, कोको बटर या बीजवैक्स मौजूद हो. ये सभी होंठों को गहराई तक नमी देते हैं. होंठों को हाइड्रेट रखने के लिए रात को सोने से पहले पेट्रोलियम जेली लगाना सब से आसान और प्रभावी उपाय है. नारियल का तेल, बादाम का तेल या औलिव औयल होंठों के लिए बेहतरीन मौइस्चराइजर है. इन्हें दिन में 2-3 बार लगाएं.

डैड स्किन हटाएं (ऐक्सफौलिएशन): होंठों पर जमी हुई डैड स्किन को हटाना बेहद जरूरी हैं. इस से होंठ साफ और मुलायम बने रहते हैं.

चीनी और शहद का स्क्रब: चीनी में शहद मिला कर हलके हाथों से होंठों पर रगड़ें. यह डैड स्किन को हटाने के साथसाथ होंठों को नमी भी देता है.

हलके ब्रश का उपयोग: एक सौफ्ट टूथब्रश का उपयोग कर के हलके हाथों से होंठों पर मसाज करें. इस से रक्त संचार बढ़ता है और होंठ गुलाबी नजर आते हैं.

पानी पीएं और हाइड्रेटेड रहें: सर्दियों में पानी पीने की आदत अकसर कम हो जाती है लेकिन इस का सीधा असर होंठों पर पड़ता है. शरीर में पानी की कमी से होंठ जल्दी सूखने लगते हैं. दिनभर में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं. अपने भोजन में ऐसे फलों और सब्जियों को शामिल करें जिन में पानी की मात्रा अधिक हो जैसे खीरा और संतरा.

सूरज की किरणों से सुरक्षा: सर्दियों में भी सूर्य की किरणें होंठों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इसलिए एसपीएफ युक्त लिप बाम का उपयोग करना जरूरी है. यह होंठों को यूवी किरणों से बचाने के साथसाथ उन्हें नमी भी प्रदान करता है.

सर्दियों में होंठों के लिए खास घरेलू नुसखे

शहद और घी: रात को सोने से पहले शुद्ध घी या शहद होंठों पर लगाएं. यह होंठों को गहराई से पोषण देता है और दरारें भरने में मदद करता है.

ऐलोवेरा जैल: ऐलोवेरा में प्राकृतिक हीलिंग गुण होते हैं. ताजा ऐलोवेरा जैल होंठों पर लगाने से सूजन और जलन से राहत मिलती है.

गुलाब की पंखुडि़यां: दूध में भिगोई हुई गुलाब की पंखुडि़यों के पेस्ट में मलाई और कुछ बूंदें हनी की मिला कर होंठों पर लगाने से उन का प्राकृतिक गुलाबीपन लौटता है.

अच्छी आदतें अपनाएं

होंठ चाटने से बचें: होंठ चाटने से वे और ज्यादा सूख जाते हैं क्योंकि लार में मौजूद ऐंजाइम नमी को खत्म कर देते हैं.

धूम्रपान से बचें: धूम्रपान करने से होंठ काले और रूखे हो जाते हैं.

सर्द हवाओं से बचाव करें: बाहर जाते समय स्कार्फ या मफलर से होंठों को ढक कर रखें.

आहार का प्रभाव भी होंठों पर साफ दिखाई देता है. सर्दियों में विटामिन-ई और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड से भरपूर खाद्यपदार्थ जैसे नट्स, बीज और हरी सब्जियां खाएं. ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर फलों जैसे अनार और ब्लूबेरी का सेवन करें.

याद रखें आप की मुसकान जितनी खूबसूरत होगी उतनी ही आप की पर्सनैलिटी भी निखरेगी.

luxury life और सुसाइड

luxury life : आजकल पत्नी पीडि़तों के आत्महत्या के मामले ज्यादा चर्चित हैं पर असलियत तो यह है कि पत्नी पीडि़तों के नहीं कर्ज पीडि़तों के मामले हमेशा ही आत्महत्याओं के कारणों में ज्यादा रहते हैं. अच्छे खातेपीते लोगों से ले कर गरीब किसान, मजदूर तक कर्ज न लौटा पाने पर आत्महत्या को अकेला तरीका मानते हैं.

दिल्ली में 12 साल के बेटे के मातापिता ने मिल कर आत्महत्या कर ली क्योंकि पति कोरोना के बाद हुए नुकसानों को ले कर लिए कर्ज को चुका नहीं पा रहा था.

आमतौर पर यह कर्ज बैंकों, क्रैडिट कार्ड कंपनियों से लिया जाता है जो अपने गुर्गे भेजने शुरू कर देते हैं. ज्यादातर कर्ज जानपहचान वालों से लिया जाता है. कुछ लोग ब्याज के लालच में कर्ज देते हैं तो कुछ सहायता करने की नीयत पर.

दिक्कत यह होती है कि आमतौर पर कर्ज लेने वाले अपने व्यक्तिगत खर्चों पर कंट्रोल करने में हिचकते हैं. कितना भी कर्ज लिया जाए, कितना भी नुकसान हुआ हो, यदि छोटा, मध्यम या थोड़ा बड़ा व्यापारी या व्यक्ति अपने निजी खर्चों पर पूरा कंट्रोल करेगा तो उसे आत्महत्या का सहारा नहीं लेना पड़ेगा.

दिल्ली के एक जोड़े ने आत्महत्या की जो ठीकठाक फ्लैट में रहते थे. 20 दिन पहले तक उन के पास कार थी. कुछ दिन पहले अपने साले की शादी में पति ने जम कर डांस किया था. उस युवा ने कोरोना से पहले एक मौल में 4 लाख महीना किराए पर जगह ली थी जहां क्लब खोलने की शुरुआत की थी. रेस्तरां खोला था जो बंद हो गया.

वह धंधे ही लग्जरी के साथ जुड़े करता था और खाओपीयो के कल्चर में भरोसा करता हो तो बड़ी बात नहीं. जो शख्स साले की शादी में आत्महत्या से पहले जम कर डांस कर रहा हो उस से जीवन की गंभीरता की आशा आमतौर पर नहीं की जा सकती.

कर्ज में डूबने के कारण बहुत से होते हैं, कभी व्यापार के कारण डूब जाता है, कभी ज्यादा बड़ा बनने की तमन्ना में बहुत बड़ी कंपनियां डूबती हैं. विजय माल्या बहुत बड़ा बनने के चक्कर में डूबे और अब छिपाए पैसों पर विदेशों में मौज कर रहे हैं. ललित मोदी ने अरबों के कर्ज लिए पर भाग जाने के बावजूद अब वे लंदन में मौज की जिंदगी जी रहे हैं.

इस तरह के लोगों को आम लोगों ने अपना मौडल बना लिया है. वे समझते हैं कि लोन ले कर काम शुरू करेंगे तो चल निकलेगा ही पर हाथ में पैसा आते ही अपने खुद के खर्चे बढ़ा लेते हैं. सुंदर घर, बड़ी गाड़ी, देशविदेश का ट्रैवल, कईकई क्रैडिट कार्ड, क्लबों की मैंमबरशिप लाइफस्टाइल बन जाता है. पार्टियों पर जम कर खर्च होता है. घर का खाना सुहाता ही नहीं है.

दिल्ली के निकट शालीमार गार्डन ऐक्सटैंशन के युवा जोड़े ने आत्महत्या के सुसाइड नोट में 6 लोगों के नाम भी लिखे हैं जो अपना पैसा वापस पाने का जोर लगा रहे थे. अब वे 6 लोग पुलिस पूछताछ के शिकार होंगे. जब जाम लगते थे तब क्या होता था, यह जानने की कोशिश शायद पुलिस करेगी भी नहीं. सब से बड़ा शिकार तो 12 साल का बेटा रहेगा जो जीवनभर मांबाप को कोसता रहेगा. वह सीखेगा उन की फैजदिली से तो बड़ा बनेगा.

Love Life Goals : मेरा ऐक्स मेरी जिंदगी में वापस आ गया है, मैं क्या करूं?

Love Life Goals : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. एक युवक से मैं पिछले 3 साल से प्रेम करती थी, लेकिन किसी कारण उस से ब्रेकअप हो गया. लेकिन मैं ने निराशा का दामन छोड़ आशा का मार्ग अपनाया और एक अन्य युवक से मेरा अफेयर हो गया अब हम शादी करने वाले हैं, लेकिन पिछले हफ्ते मेरा पुराना प्रेमी बाजार में मुझ से अचानक मिल गया और बोला कि मैं अब सुधर गया हूं तथा तुम्हारा साथ चाहता हूं. अब मैं क्या करूं?

जवाब

यह लड़का जो आप को छोड़ गया फिर आप ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और अब जब आप अपने जीवन को अपने दूसरे प्यार के साथ निभाने जा रही हैं तो वह सिर्फ आ कर माफी मांगता है और आप कन्फ्यूज हो जाती हैं कि क्या करूं?

अरे, उसे कहिए जा अब मेरी जिंदगी से. सोचिए, जब आप डिप्रैशन में थीं और ब्रेकअप के बाद बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल रही थीं, वह कहां था. क्या वह तब आया आप से माफी मांगने? क्या उस के पास आप का कौन्टैक्ट नंबर, घर का पता, सहेली आदि के जरिए बातचीत करने का अवसर नहीं था. अगर वह चाहता तो तभी आप से माफी मांग एक नई शुरुआत कर सकता था, पर अब तो आप भी काफी आगे निकल चुकी हैं. उस के प्यार का कोई मतलब नहीं.

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गुस्सैल प्रेमी को प्रेम से करें कंट्रोल

प्रेमी प्रेमिका में भले कितना प्रेम हो, फिर भी कई बार छोटीछोटी बातों पर तूतू मैंमैं हो ही जाती है. ऐसे में अगर प्रेमी गुस्सैल है तो गुस्से में कुछ भी कह देता है या मिलने आना तक छोड़ देता है. ऐसे में अगर प्रेमिका सोचती है कि मैं क्यों मनाऊं, मैं क्यों झुकूं इस के सामने, कुछ दिन दूरी बनाए रखूंगी तो खुद ही कौल करेगा और इसे सबक भी मिलेगा, तो रिलेशन में यह ईगो कभी काम नहीं करती और अगर प्रेमी गुस्सैल है तो उम्मीद के विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है.

ऐसे में अगर ब्रेकअप हो जाए तो प्रेमीप्रेमिका अपनेअपने स्तर पर यह कहते पाए जाते हैं कि पार्टनर ने हमें प्रेम में धोखा दे दिया जबकि यह धोखा नहीं बल्कि ईगो का सवाल होता है. ऐसे में जरूरत है उसे प्यार से समझने व समझाने की, इस से धीरेधीरे आप उस का बिहेव भी अपने प्रति पौजिटिव देखने लगेंगी.

कैसे करें कंट्रोल

ऐक्शन में रिऐक्शन नहीं

आप के प्रेमी ने आप को मिलने के लिए बुलाया था लेकिन आप ट्रैफिक जाम या फिर अन्य किसी कारण से टाइम पर नहीं पहुंच पाईं जिस कारण प्रेमी को काफी देर तक वेट करना पड़ा और आते ही वह आप पर बरस पड़ा, तो आप भी चिल्लाने न लग जाएं कि तुम्हारी तो आदत ही ऐसी है, मैं ने गलती की जो तुम से मिलने आई.

ऐसे में दोनों तरफ गरमागरमी का माहौल होने के कारण बात बिगड़ सकती है. इसलिए खुद को कंट्रोल करते हुए कहें कि बेबी मेरे स्वीटहार्ट, नैक्स्ट टाइम से ऐसा नहीं होगा प्लीज, कूल डाउन. आप की यह बात सुन कर वह खुद को कूल करने पर मजबूर हो जाएगा. आप की इस समझदारी के कारण आप का रिलेशन भी मजबूत होगा.

छोटीछोटी बात का इश्यू न बनाएं

आप का अपने प्रेमी के साथ कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम था, लेकिन ऐन वक्त पर उस ने यह कह कर मना कर दिया कि मुझे आज राहुल के साथ शौपिंग पर जाना ज्यादा जरूरी है, इसलिए आज का प्लान कैंसिल.

उस की ऐसी बात सुन कर आप की नाराजगी जायज है, लेकिन चाहे आप को कितना भी गुस्सा आए, क्योंकि आप जानती हैं कि ऐन वक्त पर ऐसे नाटक करने की उसे आदत है, तब भी आप दिल पर न लें और न ही इस बात को ले कर इश्यू बनाएं. जब आप की तरफ से कोई रिऐक्शन नहीं होगा तो उसे भी अपनी गलती का एहसास होगा. इस से बात बिगड़ेगी नहीं और उस के मन में आप के लिए प्रेम भी बढ़ेगा.

रोमांस से करें कंट्रोल

प्रेमी अकसर प्रेमिका का स्पर्श चाहता है और अगर उसे एक बार स्पर्श मिल जाए तो चाहे वह कितने भी गुस्से में हो, उस का गुस्सा पल में छूमंतर हो जाता है.

ऐसे में जब वह गुस्सा करे तो उसे कौंप्लिमैंट दें कि वाहवाह तुम गुस्से में कितने स्मार्ट लगते हो, उस के लिप्स पर किस करें, उसे अपनी बांहों में लेते हुए कहें कि तुम ही मेरी दुनिया हो, हाथों में हाथ डालें, बारबार उस के हाथों पर किस करें. इस से आप उसे कंट्रोल में करने में कामयाब हो जाएंगी और वह  आप के इस रोमांटिक अंदाज के सामने अपना गुस्सा भी भूल जाएगा.

अकेले छोड़ कर न भागें, बात सुनें

हो सकता है आप का बौयफ्रैंड ऐसी सिचुऐशन से गुजर रहा हो, जिस के कारण उसे छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता हो और वह आप को अपने मन की बात भी न बता पा रहा हो. ऐसे में यह सोच कर कि ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है उस की प्रौब्लम को समझें. उसे अकेला छोड़ने की भूल न करें, क्योंकि ऐसे वक्त पता होने के बावजूद मेरी गलती है वह फिर भी आप का साथ चाहेगा. इसलिए चाहे वह कितना भी रूठा हो उसे मनाएं जरूर और अकेला न छोड़ें वरना इस से आप के बीच दूरियां ही बढ़ेंगी. धीरेधीरे हो सकता है वह भी अपनी आदतों को छोड़ दे.

नापसंद चीजों को अवौइड करें

आप अपने प्रेमी के नेचर को अच्छी तरह जानती हैं और उस की पसंदनापसंद से भी वाकिफ हैं, तो ऐसे में जब आप को पता है कि उसे लेट आना या फिर जब आप उस के साथ हों, तब किसी का फोन अटैंड करना पसंद नहीं है तो इन सब चीजों को अवौइड करें. आप की तरफ से इस तरह का एफर्ट आप के गुस्सैल प्रेमी को कंट्रोल में रखने में मददगार साबित होगा, क्योंकि उसे तो यही लगेगा कि आप सिर्फ दुख की साथी हैं सुख की नहीं.

फेवरिट डिश से करें गुस्सा ठंडा

आप ने बिजी होने के कारण उस का फोन नहीं उठाया. इस कारण वह आप से रूठ गया है, तो ऐसे में आप की जिम्मेदारी है कि आप उस का रोमांटिक अंदाज में गुस्सा ठंडा करें. इस के लिए उस की फेवरिट डिश खुद अपने हाथों से बना कर उस पर प्यार की बौछार कर दें और साथ ही उस की डैकोरेशन भी काफी सैक्सी अंदाज में करें कि उसे देख कर उस का खुद पर कंट्रोल ही न रहे.

सरप्राइज दें

किसी बात को ले कर आप में और आप के प्रेमी के बीच काफी समय से अनबन चल रही है, तो ऐसे में फोन पर बात करने से मिसअंडरस्टैंडिंग और बढ़ेगी ही. इस से अच्छा है कि उस के औफिस जा कर उसे सरप्राइज दें. इस से उसे काफी खुशी मिलेगी. उसे लगेगा कि आप की लाइफ में उस की वैल्यू है तभी आप उस के लिए इतनी दूर तक आई हैं. इस से वह भी आप को गले लगाने में देर नहीं लगाएगा.

उस की पसंद की चीजों में हामी भरें

भले ही आप दोनों की पसंद न मिलती हो, लेकिन फिर भी आप को अपने प्रेमी की खुशी के लिए उस की पसंद को अपनी पसंद बनाने की कोशिश करनी होगी. ऐसा बिलकुल न करें कि वह कोई भी चीज दिखाए और आप बस हर बार यही कहें कि मुझे तो यह बिलकुल पसंद नहीं बल्कि कहें कि तुम्हारी पसंद कितनी अच्छी है, मुझे भी बिलकुल ऐसी चीज ही पसंद आती है. आप के ऐेसे पौजिटिव ऐटिट्यूड को देख कर वह भी खुद को आप के लिए इंप्रूव करेगा.

पुरानी यादों से बिखेरें स्माइल

प्रेमी के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए या फिर उसे कूल करने के लिए उस के सामने पुरानी यादों का पिटारा खोल डालिए, जिस में आप एकदूसरे को हग कर रहे थे, एकदूसरे के साथ खूबसूरत लमहे बिता रहे थे, एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले हुए थे. जब वह पुरानी यादों को इन फोटोज के जरिए याद करेगा तो निश्चित ही वह कितने भी गुस्से में हो उस के चेहरे पर मुसकान लौट आएगी.

रोमांटिक पलों के लिए टाइम निकालें

हर प्रेमी चाहता है कि उस की प्रेमिका उस के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के साथसाथ रोमांटिक टाइम भी बिताए और उस के कहे बिना जब आप उस के साथ खूबसूरत पलों को ऐंजौय करेंगी तो वह चाह कर भी आप से ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह पाएगा.

इस तरह आप अपने गुस्सैल प्रेमी को प्रेम से बड़ी आसानी से कंट्रोल कर पाएंगी.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Air Fryer में खाना पकाते समय रखें इन बातों का ध्यान

Air Fryer : अलीशा ने अपनी फ्रैंड मिराया के कहने पर एअरफ्रायर खरीद तो लिया पर अब उसे यह समझ नहीं आ रहा कि इस में क्या और कैसे पकाया जाए.

इसी प्रकार रागिनी ने बारबार यूट्यूब पर एअरफ्रायर के गुणगान सुनसुन कर एअरफ्रायर खरीद तो लिया पर उस में खाना पकाने में उसे आलस्य आता है क्योंकि उस में खाना पकाते समय कैसे और क्या पकाया जाए, उसे समझ नहीं आता.

आजकल एअरफ्रायर का चलन जोरों पर है. अकसर यूट्यूबिया डिक्शनरी में इस के गुणों का इतना बखान किया जाता है कि न चाहते हुए भी महिलाएं इसे खरीदने का मन बना लेती हैं.

इस में बिना तेल या कम तेल में यानी बिना डीप फ्राइंग के खाद्य वस्तुएं क्रिस्पी तो हो जाती हैं पर यदि आप इस में बनी चीजों में डीप फ्राइंग का स्वाद खोजना चाहेंगे तो इसे ले कर आप पछताएंगे. एअरफ्रायर में बनी चीजें क्रिस्पी तो हो जाती हैं पर स्वाद से कुछ समझौता तो करना ही पड़ता है.

क्या अंतर है माइक्रोवेब और एअरफ्रायर में

दोनों में मुख्य अंतर खाना पकाने की विधि में होता है। एअरफ्रायर जहां भोजन को पकाने के लिए इनबिल्ट कौइल का प्रयोग करता है, जिस से निकलने वाली तेज गरम हवा का भोजन को पकाता है, हवा को फैलाने के लिए इस में पंखा लगा रहता है, वहीं माइक्रोवेब भोजन को पकाने के लिए मैग्नेट्रौन नामक एक ट्यूबलर हीटिंग एलिमैंट के साथ आता है जो विद्युत रेडियो तरंगों का प्रयोग कर भोजन को गरम करता है. गरम हवा की अपेक्षा विद्युत तरंगें सेहत के लिए नुकसानदायक होती हैं.

एअरफ्रायर कम तेल में भोजन पकाने के लिए बैस्ट है क्योंकि इस में बिना डीपफ्राइंग के भी खाना क्रिस्पी बन जाता है. इस के अतिरिक्त सामान्य माइक्रोवेब में स्टील अल्यूमीनियम जैसी किसी धातु के बर्तन नहीं रखे जा सकते पर एअरफ्रायर में आप किसी भी धातु का बर्तन रख सकते हैं. खाना गरम करने के लिए माइक्रोवेब सर्वोत्तम है पर खाना पकाने के लिए एअरफ्रायर उचित रहता है. इस में आप कुकिंग, बेकिंग और ग्रिलिंग सभी कर सकते हैं.

एअरफ्रायर में ऐसे पकाएं भोजन

एअरफ्रायर में अधिकांश खाद्यपदार्थ को पकाने के लिए अनेक मौड होते हैं जिन पर क्लिक कर के आप कई स्वादिष्ठ व्यंजन पका सकते हैं.

● एअरफ्रायर में निहित डीहाइड्रेट टैक्नीक से आप मेथी, धनिया, पोदीना जैसी हरी सब्जियां सुखाने के साथसाथ आंवला, बीटरूट, आम, टमाटर आदि को पतले स्लाइस में काट कर अथवा घिस कर डीहाइड्रेट कर के सूखा लें. आप चाहें तो इन का पाउडर बना कर रख सकती हैं. 10 से 15 मिनट में ये सूख जाते हैं। साथ ही इन का रंग भी बरकरार रहता है. ध्यान रखें कि बीचबीच में आप को चलाते भी रहना है.

● बैंगन, शकरकंद, आलू आदि भूनने के लिए आप इन्हें साबुत रखने के बजाय प्रेशर कुकर में हाफ बौयल कर के फिर हलकी सी चिकनाई लगा कर क्रिस्पी होने तक भून लें फिर कालानमक और चाट मसाला बुरक कर सर्व करें.

● मठरी, समोसा, कचौड़ी जैसी डीप फ्राइड चीजें यदि आप माइक्रोवेब में बनाना चाहतीं हैं तो 1 कप मैदा या आटे में आधी सूजी अथवा ओट्स का आटा मिला कर 2 टेबलस्पून घी या तेल का मोयन, चुटकीभर बेकिंग सोडा मिला कर गुनगुने पानी से आटा गूंधें. बहुत अधिक मोटी परत न रखें। साथ ही ऊपर से ब्रश से तेल या घी ब्रश कर दें. 180 डिग्री पर 10 से 15 मिनट तक बेक करें.

ध्यान रखें कि सामान्य डीप फ्राइंग की अपेक्षा एअरफ्रायर के आटे में आप को मोयन अधिक डालना पड़ता है तभी उन में कुरकुरापन आ पाता है.

● उत्तपम, चीला, पैनकेक जैसी डिशेज को आप गरम तवे पर फैलाएं। जैसे ही ये शेप ले लें तो आप कलछी से एअरफ्रायर की ट्रे में शिफ्ट कर दें. बिना तेल के ही उत्तपम क्रिस्पी हो जाएगा। साथ ही सब्जियों का रंग भी नहीं बदलेगा.

● प्याज को पतलेपतले लच्छों में काट कर नमक लगा कर 15 मिनट के लिए रख दें. 15 मिनट बाद हाथों से प्याज को निचोड़ कर पानी निकाल दें. मैश ट्रे में रख कर सुनहरा होने तक रोस्ट कर लें. एअरटाइट डब्बे में भर कर पोहा, खिचड़ी, पुलाव और बिरयानी में ऊपर से डालने में प्रयोग करें.

● सूजी, पोहा, आटा, बेसन, ओट्स और मेवा आदि को भी आप रोस्ट मौड पर भून सकते हैं. यदि हलवा बनाना चाहते हैं तो पानी, शक्कर और 1 टीस्पून घी मिला कर बीचबीच में चलाते हुए पकाएं.

● कटलेट, कबाब और पनीर टिक्का को आप बिना एक बूंद तेल के एअरफ्रायर में दिए गए कटलेट मौड पर बना सकते हैं.

● यदि आप अपनी डाइट में सौते वैजिटेबल को शामिल करना चाहते हैं तो मनचाही सब्जियों को पतलापतला काट कर नमक और सीजनिंग स्प्रिंकल कर के ट्रे में सौते मौड पर रख दें. हैल्दी डिश तैयार हो जाएगी.

रखें इन बातों का भी ध्यान

● दिए गए मैन्यू के अलावा आप अपनी डिश के अनुसार टाइम और तापमान की मैन्युअल सैटिंग भी कर सकते हैं.

● बिस्कुट, मठरी, कटलेट कबाब आदि को तेल से ब्रश कर के रखें। इस से ऊपरी परत क्रिस्पी और ब्राउन कलर की हो जाती है.

● सप्ताह में 1 बार पानी में तरल साबुन डाल कर सौफ्ट कपड़े से साफ कर कर सूती कपड़े से पोंछ कर सुखा दें.

● ट्रे या एअरफ्रायर में किसी खाद्यपदार्थ के चिपक जाने पर उसे चाकू या छुरी से खुरच कर निकालने के बजाय पानी में भिगो कर रखें और फिर साफ करें ताकि नौनस्टिक कोटिंग खराब न हो.

● ट्रे या बास्केट में चिपकी ग्रीस को साफ करने के लिए 2-3 कप पानी और डिश सोप डाल कर 5 मिनट के लिए 220 डिगरी सैंटिग्रेड पर गरम करें। इस से सारी चिकनाई नर्म हो जाएगी. बाद में साफ कपड़े से पोंछ दें.

Online Story : सोने का पिंजरा

Online Story : बालकनी से कमरे में आ कर मैं धम्म से बिस्तर पर बैठ गई और सुबकसुबक कर रोने लगी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि बालकनी में खड़ी हो अपने गीले बाल सुखाने में मैं ने कौन सा अपराध कर दिया जिस से दाता हुक्म (ससुरजी) इतना गुस्सा हो उठे. मुझे अपना बचपन याद आने लगा. जब होस्टल से मैं घर आती थी तो हिरण की तरह खेतों में कुलाचें भरती रहती थी. सहेलियों का झुंड हमेशा मुझे घेरे रहता था. गांव की लड़की शहर के होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही है तो शहर की कई बातें होंगी और यही सहेलियों के कौतुहल का कारण था.

मेरे भैयाभाभी भी कितने प्यारे हैं और कितना प्यार करती हैं भाभी मुझे. कभी भाभी ने मां की कमी महसूस नहीं होने दी. यहां आ कर मुझे क्या मिला? न घर, न किसी का स्नेह और न ही आजादी का एक लम्हा. हां, अगर सोनेचांदी के ढेर को स्नेह कहते हैं तो वह यहां बहुत है, लेकिन क्या इन बेजार चीजों से मन का सुख पाया जा सकता है? अगर हां, तो मैं बहुत सुखी हूं. सोने के पिंजरे में पंछी की तरह पंख फड़फड़ा कर अपनी बेबसी पर आंसू बहाने से ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकती.

पति नाम का जीव जो मुझे ब्याह कर लाया, उस के दर्शन आधी रात के बाद होते हैं तो दूसरों को मैं क्या कहूं. पता नहीं किस बुरी घड़ी में महेंद्र की नजर मुझ पर पड़ गई और वह मुझे सोने के पिंजरे में बंद कर लाया.

महेंद्र का रिश्ता जब पापा के पास आया था तो सब यह जान कर हतप्रभ रह गए थे. इतने बड़े जमींदार के घर की बहू बनना बहुत भाग्य की बात है. पता नहीं सहेलियों के साथ खेतों में कुलाचें भरते कब महेंद्र ने मुझे देखा और मैं उन की आंखों में बस गई. तुरतफुरत महेंद्र के घर से रिश्ता आया और पापा ने हां करने में एक पल भी नहीं लगाया.

बड़े धूमधड़ाके से शादी संपन्न हुई और मैं जमींदार घराने की बहू बन गई. जिस धूमधाम से मेरी शादी हुई उसे देख कर मैं अपनी किस्मत पर नाज करती रही. महेंद्र को देख कर तो मेरे अरमानों को पंख लग गए. जितना सुंदर और ऊंचे कद का महेंद्र है उस से तो मेरी सखियां भी ईर्ष्या करने लगीं. ससुराल की देहरी तक पहुंची तो दोनों ओर कतार में खड़े दासदासियों के सिर हमारी अगवानी में झुक गए. उन्हें सिर झुकाए देख कर मुझे एहसास होने लगा मानो मैं कहीं की महारानी हूं.

सासूमां ने आरती उतार कर मुझे सीने से लगा लिया. मुझे लगा मुझे मेरी मां मिल गई. सुहाग सेज तक पहुंचने से पहले कई रस्में हुईं. मुंह दिखाई में मेरी झोली में सुंदरसुंदर सोने के गहनों का ढेर लग गया.

तमाम तरह की रस्मों के बाद मुझे सुहाग सेज पर बैठा दिया गया. कमरा देख कर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं. कमरा बहुत बड़ा और बहुत सुंदर सजाया गया था. चारों ओर फूलों की महक मदहोश किए दे रही थी. मेरी जेठानी मुझे कमरे में छोड़ कर चली गईं. एकांत पाते ही मैं ने कमरा बंद किया और घूंघट हटा कर आराम से सहज होने की कोशिश करने लगी. दिन भर के क्रियाकलापों से ढक कर मैं थोड़ा आराम करना चाह रही थी. थकान से कब मुझे नींद ने घेर लिया पता ही नहीं चला.

दरवाजे की कुंडी खड़की तब मेरी नींद खुली. घड़ी रात के  साढ़े 3 बजा रही थी. ओह, कितनी देर से मैं सो रही हूं सोचते हुए सिर पर पल्लू ले कर दरवाजा खोला. शराब का भभका मेरे नथुने से टकराया तो मैं ने घबरा कर आगंतुक को देखा. सामने लाल आंखें लिए महेंद्र खड़े थे. मैं हतप्रभ महेंद्र का यह रूप देखती ही रह गई.

अंदर आ कर महेंद्र ने दरवाजा बंद कर लिया और मुझ से बोले, ‘सौरी निशी, शादी की खुशी में दोस्तों ने पिला दी. बुरा मत मानना.’

नशे में होने के बावजूद महेंद्र ने एक अच्छे इनसान का परिचय दिया. मैं ने भी उन्हें कुछ नहीं कहा, लेकिन यह एकदो दिन की बात नहीं थी. हवेली में मुजरे होते और महेंद्र अकसर देर रात ही कमरे में आते. हां, महेंद्र मुझे दिलोजान से प्यार करते हैं लेकिन उस के बदले मुझे कितनी तपस्या करनी पड़ती है यह बात उन्हें समझ में नहीं आती. मैं शिकायत करती तो वह कहते, ‘यह तो हमारी परंपरा है. जमींदारों के यहां मुजरे नहीं हों तो लोग क्या कहेंगे.’

‘‘अरे, छोटी कहां हो भाई. आओ, सुनारजी आए हैं,’’ यह आवाज सुन कर मैं वर्तमान में लौट आई. मेरी जेठानी मुझे बुला रही थीं. मेरा जाने को मन नहीं था लेकिन मना भी तो नहीं कर सकती थी. बाहर बारहदरी में सुनारजी कांटाबाट लिए बैठे थे. भाभी ने मुझे देखा और पूछा, ‘‘क्या हुआ छोटी, क्या तुम रो रही थीं जो तुम्हारी आंखें लाल हो रही हैं? क्या तुम्हें मायके की याद आ रही है?’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, भाभी सा, वैसे ही नींद लग गई थी इसीलिए.’’

‘‘छोटी तुझे कुछ गहने बनवाने हों तो बनवा ले. देख मैं तो यह सतलड़ा हार तुड़वा कर दूसरा बनवा रही हूं.’’

‘‘पर भाभी सा, यह तो बहुत सुंदर है और नया भी, आप इसे क्यों तुड़वा रही हैं?’’

‘‘अरे, छोटी, इसे मैं ने अपने भाई की शादी में पहन लिया और तुम्हारी शादी में भी पहना है. बस, अब पुराना हो गया है. मैं तो अब नया ही बनवाऊंगी.’’

मैं क्या कहती चुप रहना ही ठीक समझा. भाभी सा ने कहा, ‘‘तू भी कुछ न कुछ बनवा ही ले. अगर कुछ तुड़वाना नहीं चाहती तो मांजी से सोना ले कर बनवा ले. यहां सोने की कोई कमी नहीं है.’’

निशी सोचने लगी कि वह तो मैं देख ही रही हूं, तब ही तो हमारे लिए यहां सोने के पिंजरे बनवाए गए हैं. इस चारदीवारी में कैद हम गहने तुड़वाएं और गहने बनवाएं बस इन्हीं गहनों से दिल बहलाएं.

सुनारजी चले गए तो मैं ने पूछा, ‘‘भाभी सा, आप 7 बरस से यहां रह रही हैं. जेठ साहब भी आधी रात से पहले घर में नहीं आते. फिर आप किस तरह अपने को बहला लेती हैं? मेरा तो 4 महीने में ही दम घुटने लगा है.’’

‘‘देख छोटी, इन जमींदारों की यही रीत है. मेरे मायके में भी यही सबकुछ होता है. हम कुछ बोलें भी तो यहां के मर्द यही कहेंगे कि मर्दों की दुनिया में तुम लोग दखल मत दो. तुम्हारा काम है सजधज कर रहना और मन बहलाने के लिए जब चाहो सुनार को बुलवा लो और गहने तुड़वाओ तथा नए बनवाओ.’’

मैं आखें फाड़े भाभी सा को देखती ही रह गई. कितनी सहजता से उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रख दिया. कितनी आसानी से इस जिंदगी से समझौता कर लिया, लेकिन मैं क्या करूं? मैं ने तो पढ़लिख कर सारी शिक्षा भाड़ में झोंक दी. मैं कहां से रास्ता खोजूं आजादी का.

कमरे में आते ही फिर रुलाई फूट पड़ी. हाय, मैं कहां फंस गई. मेरे पापा ने यह क्यों नहीं सोचा कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती. क्यों भूल गए कि उन की बेटी पढ़ीलिखी है. उस की छाती में भी दिल धड़कता है. क्या महज पैसे वाले होने से सारी खुशियां खरीद सकते हैं? क्यों भूल गए कि उन की बेटी के भी कुछ अरमान हैं. पापा यह क्यों भूल गए कि पिंजरा तो पिंजरा ही होता है चाहे वह सोने का हो या लोहे का.

आधी रात को महेंद्र आए तो मैं जाग रही थी. मैं महेंद्र से कुछ सवाल करना चाहती थी लेकिन वह बहुत थके हुए लग रहे थे. मेरे माथे पर एक चुंबन की मुहर लगाई और बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगे. मैं मन मार कर रह गई. सोचने लगी, कभी महेंद्र मुझे वक्त दें तो मैं इस पिंजरे से आजाद होने की भूमिका बनाऊं, लेकिन यह मुजरा और मुजरेवालियां वक्त दें तब न.

वैसे महेंद्र से मुझे और कोई शिकायत नहीं थी. वह मुझे बेइंतहा प्यार करते हैं. बस, अपनी खानदानी परंपराओं में बंधे मुझे वक्त ही नहीं दे पाते. मैं ने एकदो बार दबी जबान में उन्हें मुजरे में जाने से रोकने की कोशिश भी की, तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या तुम मुझे जोरू का गुलाम कहलवाना चाहती हो? घर के सभी मर्द देर रात तक मुजरे में बैठे रहते हैं, तो भला मैं अकेला कैसे उठ सकता हूं? तुम मेरी मजबूरी समझती क्यों नहीं.’’

दिन ब दिन मैं घुटती रही. भाभी सा और सासू मां को इसी हाल में खुश देख कर भी मैं इस जिंदगी से तालमेल नहीं बैठा पा रही थी. यह दोष किस का है? पता नहीं मेरा या मेरे पापा का है या फिर मेरे इस सौंदर्य का जिस की वजह से मैं कैद कर ली गई.

सुबह बेमतलब ससुरजी नाराज हो गए. जो मर्द दूसरी औरतों के अश्लील नाचगाने पर बिछे जाते हैं, पैसा लुटाते हैं, उन्हें घर की बहू बालकनी में खड़ी हो कर बाल भी सुखा ले तो गुस्सा क्यों आता है? यह दोगली नीति जमींदारों के खानदान की रीत ही है. नाचने वालियां भी तो औरतें ही हैं. क्या उन में कभी अपनी मांबहन का चेहरा उन्हें नजर नहीं आता है?

शादी को 8 महीने हो गए, लेकिन एक दिन भी आजादी की सांस नहीं ली. खूब खानापीना और सुंदर कपड़े, गहने पहनना ही हमारी नियति थी. हम अपने लिए नहीं इस खानदान की परंपराओं के लिए जी रही थीं और इस हवेली के मर्दों के लिए ही हमारी सांसें चल रही थीं.

सासू मां और भाभी सा बिना किसी प्रतिकार के सहजता से रह रहे थे. पता नहीं उन के दिल में इस परंपरा के खिलाफ बगावत करने का विचार क्यों नहीं आता? दोनों ही मुझे बहुत स्नेह करते थे, लेकिन मेरा मन यहां नहीं रम पा रहा था. मुझे तो कुछ कर दिखाने की ललक थी. आसमान में पंख फैला कर उड़ने का अरमान था.

मेरी तकदीर ही कहिए कि इतने दिनों बाद महेंद्र से लंबी मुलाकात का अवसर मिला. हुआ यों कि सासू मां, ससुर, जेठ और भाभी सा किसी रिश्तेदारी में शादी के सिलसिले में बाहर गए हुए थे. महेंद्र के जिम्मे वहां की जमींदारी का काम छोड़ गए थे. मुझे सासू मां साथ ले जाना चाहती थीं, लेकिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, अत: मुझे घर पर ही छोड़ गए.

मैं बड़ी बेसब्री से महेंद्र का इंतजार कर रही थी. महेंद्र बाहर बैठक में किसी से लेनदेन कर रहे थे. मैं बेचैनी से बैठक के दरवाजे पर चक्कर काट रही थी. जब महेंद्र नहीं आए तो मुझ से और सब्र नहीं हो पाया और मैं बैठक में चली गई. वहां बैठे लोगों ने सिर झुका कर मेरा अभिवादन किया. एक बार फिर खुद के खास होने का एहसास मुझ पर हावी होने लगा, लेकिन महेंद्र ने इतना वक्त ही नहीं दिया. बोले, ‘‘तुम यहां बैठक में क्यों आ गई, अंदर जाओ, मैं अभी आता हूं.’’

मैं अपमानित सी लौट आई. महेंद्र भी तो इसी खानदान का खून है. भला वह कैसे बीवी को खुलेआम दूसरों के सामने आने देगा. मैं बेचैनी से पूरे घर में चहलकदमी करने लगी. महेंद्र का इंतजार मुझे हर पल बरसों सा लग रहा था लेकिन कोई चारा नहीं था.

आखिर महेंद्र घंटे भर बाद अंदर आए और मैं उन्हें लगभग धकेलती हुई अपने कमरे में ले गई. घर में मौजूद दासदासियों ने आश्चर्य से मुझे देखा और गरदन झुका लीं. इस वक्त उन की झुकी हुई गरदनें मुझे गर्व का एहसास नहीं करा पाईं.

महेंद्र ने कहा, ‘‘यह क्या पागलपन है निशी, मैं कहीं भागा थोड़े ही जा रहा हूं.’’

‘‘महेंद्र, मुझे तुम से जरूरी बात करनी है. तुम कुछ वक्त मुझे दो, तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘हां, कहो,’’ महेंद्र आराम से पलंग पर बैठ गए.

‘‘महेंद्र, बुरा मत मानना, मैं चाहती हूं कि तुम मुझे तलाक दे दो.’’

महेंद्र चौंक उठे, ‘‘यह क्या कह रही हो? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है? क्या तुम नहीं जानतीं कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं? पहले दिन तुम्हें जब मैं ने खेतों में दौड़ते देखा तो मेरा दिल धड़क उठा और उसी क्षण मैं ने फैसला कर लिया था कि तुम्हें ही अपना जीवनसाथी बनाऊंगा.’’

‘‘वह तो ठीक है, महेंद्र, मुझे तुम्हारे प्यार से इनकार नहीं है लेकिन जरा सोचो कि एक आजाद पंछी को तुम सोने के पिंजरे में कैद कर लोगे तो क्या वह खुश रह सकता है? क्या तुम चाहते हो कि मेरी शिक्षा इस पिंजरे की भेंट चढ़ जाए या फिर मैं घुटघुट कर इस कैद में जान दे दूं. न मुझे सोनाचांदी चाहिए न धनदौलत. मुझे मेरी जिंदगी चाहिए जिसे मैं अपने तरीके से जी सकूं.’’

महेंद्र चुप, क्या कहे, क्या न कहे. लंबी चुप्पी के बाद उन्होंने कहा, ‘‘अच्छा निशी मुझे सोचने के लिए वक्त दो.’’

महेंद्र ने बहुत सोचा और एक तरकीब निकाल ली. ‘‘ऐसा करो, तुम जितना धन ले जा सकती हो अपने सूटकेस में भर लो और अपनी पैकिंग कर लो. मैं तुम्हें तुम्हारे मायके छोड़ आऊंगा और कभी लेने नहीं आऊंगा. तलाक की बात पर घर में बवाल मच जाएगा. तुम इन जमींदारों को जानती नहीं हो. खूनखराब हो जाएगा. मेरी तरफ से तुम आजाद हो. मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूं इसलिए चाहता हूं कि तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचे. मायके के बहाने तुम यहां से निकल जाओगी. बाद में जो होगा मैं संभाल लूंगा. दोबारा शादी भी नहीं करूंगा. जब तुम्हें मेरी जरूरत हो, मुझे याद करना मैं आ जाऊंगा. वहां तुम आजाद हो. इतना पैसा साथ ले जाना कि तुम्हें आर्थिक परेशानी से न गुजरना पड़े. मेरी दुआ है, तुम जहां भी रहो खुश रहो.’’

अब परीक्षा की घड़ी मेरी थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं. महेंद्र के प्यार में रत्ती भर भी खोट नहीं है, लेकिन मेरे सपने मेरे अरमानों का क्या होगा. सोचा था पढ़लिख कर कुछ बन कर दिखाऊंगी, लेकिन यहां तो पढ़ाई पूरी होते ही पांव में बेडि़यां पड़ गईं. लेकिन महेंद्र का क्या होगा? कब तक वह घर वालों को भरमा पाएंगे? और उन की जिंदगी बेवजह ही नरक बन जाएगी. क्या मुझे ले कर महेंद्र के कुछ सपने नहीं हैं?

नहीं, नहीं, मैं महेंद्र को छोड़ कर नहीं जा सकती. रात भर इसी ऊहापोह में करवटें बदलती रही. सुबह महेंद्र ने मुझे प्रश्नसूचक नजरों से देखा तो मैं ने नजरें झुका लीं और दौड़ कर महेंद्र से लिपट गई.

लेखिका- प्रेम कोमल बूंलिया

Husband Wife Story : अनोखी जोड़ी

Husband Wife Story : विशाल और अवंतिका ने पहली मुलाकात के बाद चट मंगनी पट ब्याह कर लिया. लेकिन कुछ ही दिनों बाद दोनों को महसूस हुआ कि वे एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं. स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब अवंतिका ने विशाल की तेलशोधक कंपनी के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया.

दिल्ली की एक अदालत में विशाल अपनी मुसीबतों का बखान कर रहा था और इस में भी वह अपने को कठिनाइयों में घिरा पा रहा था, क्योंकि कहानी 8 वर्षों से चली आ रही थी.

विशाल मुंबई की एक मशहूर तेलशोधक कंपनी में अधिकारी था. किसी काम से दिल्ली आया तो चांदनी चौक में अवंतिका से मुलाकात हो गई…वह भी रात के 1 बजे.

खूबसूरत अवंतिका रात में सीढ़ी पर खड़ी हो कर दीवार पर ‘कांग्रेस गिराओ’ का एक चित्र बना रही थी. नीचे खड़ा विशाल उस की दस्तकारी को देख रहा था. तभी बड़ी तूलिका ने अवंतिका के हाथ से छूट कर विशाल के चेहरे को हरे रंग से भर दिया.

उस छोटी सी मुलाकात ने दोनों के दिलों को इस कदर बेचैन किया कि उन्होंने ‘चट मंगनी पट ब्याह’ कहावत को सच करने के लिए अगले ही दिन अदालत में जा कर अपने विवाह का पंजीकरण करवा लिया.

प्रेम में कई बार ऐसा भी होता है कि वह पारे की तरह जिस तेजी से ऊपर चढ़ता है उसी तेजी से नीचे भी उतर जाता है. अवंतिका के 2 कमरों के मकान में दोनों का पहला सप्ताह तो शयनकक्ष में बीता किंतु दूसरे सप्ताह जब जोश थोड़ा ठंडा हुआ तो विशाल को लगा कि उस से शादी करने में कुछ जल्दी हो गई है, क्योंकि अवंतिका का आचरण घरेलू औरत से हट कर था. नईनवेली पत्नी यदि पति व घर की परवा न कर अपनी क्रांतिकारी सक्रियता पर ही डटी रहे तो भला कौन पति सहन कर पाएगा.

विवाह के 10वें दिन से ही विवाद में घर के प्याले व तश्तरियां शहीद होने लगे तो स्थिति पर धैर्यपूर्वक विचार कर विशाल ने पत्नी को छोड़ना ही उचित समझा.

8 वर्ष बीत गए. इस बीच विशाल की कंपनी ने कई बार उसे शेखों से सौदा करने के लिए सऊदी अरब व कुवैत भेजा. अपनी वाक्पटुता व मेहनत से विशाल ने लाखों टन तेल का फायदा कंपनी को कराया तो कंपनी के मालिक मुंशी साहब बहुत खुश हुए और उसे तरक्की देने का निर्णय लिया, किंतु अफवाहों से उन्हें पता चला कि विशाल का पत्नी से तलाक होने वाला है. कंपनी के मालिक नहीं चाहते थे कि उन के किसी कर्मचारी का घर उजडे़. अत: विशाल के टूटते घर को बचाने के लिए उन्होंने उस के मित्र विवेक को इस काम पर लगाया कि वह इस संबंध  विच्छेद को बचाए. जाहिर है कहीं न कहीं कंपनी की प्रतिष्ठा का सवाल भी इस से जुड़ा था.

विशाल से मिलते ही विवेक ने जब उस के तलाक की खबर पर चर्चा शुरू की तो वह तमक कर बोला, ‘‘यह किस बेवकूफ के दिमाग की उपज है.’’

‘‘खुद मुंशी साहब ने फरमान जारी किया है. प्रबंध परिषद चाहती है कि कंपनी के सब उच्चाधिकारी पारिवारिक सुखशांति से रहें, कंपनी की इज्जत बढ़ाएं.’’

‘‘क्या बेवकूफी का सिद्धांत है. कंपनी को अधिकारियों की निपुणता से मतलब है कि उन के बीवीबच्चों से?’’

‘‘भैया, वातानुकूलित बंगला, कंपनी की गाड़ी, नौकरचाकर आदि की सुविधा चाहते हो तो परिषद की बात माननी ही होगी. वार्षिक आम सभा में केवल 1 महीना ही बाकी है. तुम अवंतिका को ले कर आम बैठक में शक्ल दिखा देना, पद तुम्हारा हो जाएगा. बाद में जो चाहे करना.’’

‘‘अवंतिका इस छल से सहमत नहीं होगी…विवेक और मैं उसे मना नहीं सकता. औंधी खोपड़ी की जो है,’’ इतना कह कर विशाल अपने तलाक को अंतिम रूप देने के लिए निकल पड़ा.

अदालत में दोनों के वकील तलाक की शर्तों पर आपस में बहस करते रहे जबकि वे दोनों भीगी आंखों से एकदूसरे को देखते रहे. पुराना प्रेम फिर से दिल में उमड़ने लगा, बहस बीच में रोक दी गई क्योंकि जज उठ कर जा चुके थे. मुकदमे की अगली तारीख लगा दी गई.

अदालत के बाहर बारिश हो रही थी. एक टैक्सी दिखाई दी तो विशाल ने उसे रोका. अवंतिका का हाथ भी उठा हुआ था. दोनों बैठ गए. रास्ते में बातें शुरू हुईं:

‘‘क्या करती हो आजकल?’’

‘‘ड्रेस डिजाइनिंग की एक कंपनी में काम करती हूं और सामाजिक सेवा के कार्यक्रमों से भी जुड़ी हूं…जैसे पहले करती थी.’’

‘‘अच्छा, किस के साथ?’’

‘‘हेमंतजी के साथ. वह मेरे अधिकारी भी हैं. वैसे तो उन से मेरी शादी भी होने वाली थी किंतु अचानक तुम मिले और मेरे दिलोदिमाग पर छा गए. याद है न तुम्हें?’’

‘‘कैसे भूल सकता हूं उन हसीन पलों को,’’ विशाल पुरानी यादों में खो गया. फिर बोला, ‘‘तुम अभी भी उसी घर में रहती हो?’’

‘‘हां.’’

घर आया तो टैक्सी से उतरते हुए अवंतिका बोली, ‘‘चाय पी कर जाना.’’

‘‘तुम कहती हो तो जरूर पीऊंगा. तुम्हारे हाथ की अदरक वाली चाय पिए हुए 8 वर्ष हो गए हैं.’’

चाय तो क्या पी विशाल ने वह रात भी वहीं बिताई और वह भी एकदूसरे की बांहों में. आखिर पतिपत्नी तो वे थे ही. तलाक तो अभी हुआ नहीं था.

सुबह उठे तो दोनों में दांपत्य का खुमार जोरों पर था. पत्नी को बांहों में लेते हुए विशाल बोला, ‘‘अब अकेले नहीं रहेंगे. तलाक को मारो गोली.’’

अवंतिका ने भी सिर हिला कर हामी भर दी.

‘‘अगर हम बेवकूफी न करते तो अभी तक हमारे घर में 2-3 बच्चे होते. खैर, कोई बात नहीं…अब सही. क्यों?’’ विशाल बोला.

‘‘बिलकुल,’’ अवंतिका ने जवाब दिया, ‘‘अब पारिवारिक सुख रहेगा, श्री और श्रीमती विशाल स्वरूप और उन के रोतेठुनकते बच्चे, बच्चों के स्कूल टीचरों की चमचागीरी आदि. क्यों प्रिये, तुम घबरा तो नहीं गए?’’

‘‘घबराऊं और वह भी जब तुम्हारा साथ रहे? नामुमकिन.’’

घड़ी पर निगाह पड़ी तो विशाल बोला, ‘‘अरे, घंटे भर में मुझे आफिस पहुंचना है. अवंतिका प्लीज, मेरे स्नान के लिए पानी गरम कर दो.’’

अवंतिका जैसे ही रसोई में पानी गरम करने गई विशाल ने विवेक को फोन लगाया, ‘‘यार, मैं अवंतिका के घर से बोल रहा हूं. वह मान गई है और हमारे घर की बगिया में फिर से बहार आ गई है.’’

विशाल कपडे़ पहन कर बाहर निकला तो देखा अवंतिका फोन पर किसी से बात कर रही थी, ‘‘नहीं पल्लवी, आज मैं हड़ताल में नारे लगाने नहीं आऊंगी, क्योंकि वहां पुलिस मुझे गिरफ्तार कर सकती है और आज मेरे लिए बहुत अहम दिन है.’’

विशाल पूछ बैठा, ‘‘अवंतिका, यह गिरफ्तार होने का क्या मामला है?’’

‘‘बात यह है विशाल कि बड़ी तेल कंपनियां अपने उत्पाद का दाम बढ़ाए जा रही हैं…मुझे इस के विरुद्ध हड़ताल करने वालों का साथ देना था.’’

‘‘क्या बेवकूफी की बातें करती हो. आखिर तेल कंपनियों को भी तो कमाना है, और अगर जनता कीमत दे सकती है तो वे दाम क्यों न बढ़ाएं?’’

‘‘मिस्टर, मुझे अर्थशास्त्र नहीं सिखाओ,’’ गुस्से में अवंतिका बोली और एक प्लेट उठाई तो वार से बचने के लिए विशाल सीढि़यों से नीचे दौड़ पड़ा.

‘‘नमस्कारम्,’’ विशाल को देख हेमंत मुसकराया.

उधर विशाल की तरफ प्लेट फेंकते हुए अवंतिका चीखी, ‘‘निकल जाओ मेरे घर से.’’

आफिस पहुंचते ही विशाल ने विवेक को बताया, ‘‘अभी मैं ने फोन पर जो कहा था वह भूल जाओ. उस बेवकूफ की औंधी खोपड़ी अभी भी वैसी ही है. ऐसी नकचढ़ी युवती के साथ मैं नहीं रह सकता.’’

विवेक फोन पर बात कर रहा था. उस ने चोगा विशाल को थमा दिया और फुसफुसाया, ‘‘मुंशी साहब.’’

मुंशी साहब का फोन कान से लगाने के बाद विशाल के मुंह से केवल ये शब्द ही निकले, ‘जी हां सर,’ ‘बहुत अच्छा सर,’ ‘बिलकुल ठीक सर’ और ‘धन्यवाद सर.’

फोन रख कर विशाल ने ठंडी सांस ली, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय शाखा का प्रबंधक होने का मतलब जानते हो विवेक. लंदन, पेरिस व रोम में अब मेरा आफिस होगा. निजी वायुयान, वर्ष में डेढ़ महीने की छुट्टी. कंपनी के खर्चे पर दुनिया घूमने का अवसर. मुंशी साहब ने तो छप्पर फाड़ कर मेरी झोली भर दी.’’

विवेक हंस पड़ा, ‘‘अब बीवी का क्या होगा?’’

‘‘तुम चिंता न करो. उस बेवकूफ को मना लूंगा. वार्षिक आम सभा में कितने दिन बाकी हैं?’’

‘‘10 दिन.’’

आफिस से विशाल टैक्सी ले कर  सीधे अवंतिका के घर की ओर भागा. देखा, वह एक टैक्सी पर सवार हो कर कहीं जा रही थी. उस ने अपने टैक्सी चालक के सामने 500 का नोट रखते हुए कहा, ‘‘भैया, वह जो टैक्सी गई है उसे पकड़ना है.’’

अवंतिका की टैक्सी हवाई अड्डे की ओर दौड़ रही थी. विशाल ने सोचा, जरूर वह तलाक लेने विदेश जा रही है. तभी हवाई अड्डे के पास की बत्ती लाल हो गई और दोनों टैक्सियां एकदूसरे के आगेपीछे रुकीं. विशाल उतर कर दौड़ा और अवंतिका का हाथ थाम लिया, ‘‘डार्लिंग, तुम्हें जो करना है करो. मैं कभी तुम्हें रोकूंगा नहीं, क्योंकि तुम से प्रेम जो करता हूं.’’

अवंतिका भी अपनी टैक्सी से उतरी और उस की बांहों में समा गई. बाद में वे दोनों वापस अपने आशियाने की ओर चल पडे़. विशाल ने विवेक को फोन किया, ‘‘भाई, किला फतह हो गया.’’

राह में अवंतिका ने समझाया, ‘‘विशाल, अभी हम दोनों को अपना प्रेम मजबूत करना है इसलिए मैं तुम से अलग दूसरे कमरे में सोती हूं.’’

विशाल क्या करता. चुपचाप मान गया.

सभा में देर हो गई, रात ठंडी थी और गजब का कोहरा था. चूंकि अवंतिका का घर पास में था इसलिए उस ने अपने साथियों को रात बिताने को अपने घर बुला लिया.

रात में बिस्तर में जब विशाल ने करवट बदली तो एक बदन से हाथ टकरा गया. सोचा, अवंतिका का दिल द्रवित हो गया होगा और पास आ कर सो गई होगी. जब मुंह पर हाथ फेरा तो बढ़ी हुई दाढ़ी मिली. बत्ती जलाई तो देखा हेमंत साहब आराम से खर्राटे ले रहे हैं.

वह उठ कर दूसरे कमरे में पहुंचा तो अवंतिका के पलंग पर नारी का खुशबूदार बदन था. अंधेरे में चादर उठा कर जब विशाल उस में घुसा तो वह चीखी. उसे छोड़ कर जब विशाल अपने बिस्तर में फिर घुसा तो हेमंत ने करवट बदली और विशाल के मुंह पर हाथ फेर धीरे से बोला, ‘‘तुम्हें ठंड तो नहीं लग रही है, प्रिये.’’

गुस्से में विशाल को भी हंसी आ गई. जोर से बोला, ‘‘नहीं, प्रिये.’’

हेमंत मुसकरा दिया.

सुबह हेमंत ने उस की कंपनी की खूब प्रशंसा की, ‘‘अवश्य तुम्हारी पदोन्नति होगी. किंतु क्या अवंतिका एक लायक पत्नी साबित होगी? वह तो हर आंदोलन में अगुआ बन नारे लगाने वालों में मिल जाती है. क्यों?’’

‘‘वह मेरी पत्नी है और मैं उस से प्रेम करता हूं. वह जो चाहे करे, मुझे कोई भी आपत्ति नहीं होगी. चाहे बिकनी पहने हुए भी नारे लगाए.’’

हेमंत की आंखें चमक गईं, ‘‘तुम्हारी कंपनी के खिलाफ भी?’’

विशाल ने जवाब नहीं दिया.

हेमंत आगे बढ़ा, ‘‘आज शाम हमारी बैठक होगी. तुम अवश्य आना. उस में तुम्हारा निजी हित होगा.’’

शाम को हेमंत ने सभा को संबोधित किया, ‘‘सज्जनो, आप को जान कर खुशी होगी कि आज मुंबई की एक बड़ी तेल कंपनी के उच्च पदाधिकारी विशालजी हमारे साथ हैं जो अपने नाम को सार्थक करते हुए विशाल हृदय रखते हैं और उन्होंने अपनी पत्नी अवंतिका को अनुमति दे दी है कि वह हमारे इस आंदोलन में केवल बिकनी पहन कर कलाकेंद्र के खिलाफ आवाज उठाएं. क्या आप लोग मेरे साथ हैं?’’

सब ने हाथ उठा कर आवाज लगाई, ‘‘जी, हां.’’

अवंतिका घबरा गई. इतना साहसिक कदम तोउस ने सोचा ही न था. समाचारपत्र क्या लिखेंगे, क्या दिखाएंगे?

अवंतिका को लगा कि विशाल को नीचा दिखाने के लिए यह हेमंत की कोई चाल है इसलिए वह बोली, ‘‘हेमंत, तुम्हारा बड़ा तुच्छ विचार था. मैं विशाल से सलाह लूंगी. अगर उसे अच्छा न लगा तो मुझे भूल जाना.’’

विशाल ने सीधे आफिस पहुंच कर विवेक को जब आंदोलन के बारे में समय और जगह बताई तो वह चकरा गया, क्योंकि  उसी समय मुंशी साहब पत्नी समेत दिल्ली एक बैठक में भाग लेने आ रहे थे. दोनों मित्रों ने दिमाग दौड़ाए. समाचारपत्र के ऊपरी पृष्ठ पर ताजा समाचार था कि अंतर्राष्ट्रीय संघ के 2 अफसरों की तेल के दाम के सिलसिले में इटली के सिसली प्रांत में माफिया वालों ने हत्या कर दी. विशाल को एक विचार आया और उस ने विवेक को उस के बारे में बताया.

शाम को विशाल जब अवंतिका के साथ बैठा था तभी फोन आया. फोन विवेक ने किया था. विशाल ने नाटक शुरू किया, ‘‘मुंशी साहब, आप ने तो 30 दिन अवकाश का वचन दिया था और अब आप कल ही मुझे सिसली जाने को कह रहे हैं. क्या…क्या…प्रधानमंत्री के आफिस से हुक्म आया है? जी, जी…तब तो जाना ही पड़ेगा. वैसे मैं इतना होनहार तो नहीं हूं, आप मुझे कुछ अधिक ही योग्यता प्रदान कर रहे हैं. ठीक है साहब, कागजात भिजवा दीजिएगा.’’

अवंतिका विशाल का चेहरा देख चिंतित हो गई, ‘‘यह तुम्हें कहां भेजा जा रहा है…सिसली…मना कर दो. वहां तो जान का खतरा है.’’

विशाल उसे सांत्वना दे ही रहा था कि विवेक ने प्रवेश किया, ‘‘मैं कान्फिडेंशल सेल से आया हं. यह कागजात, पिस्तौल और साइनाइट की टिकिया है. और हां, ये 2 टिकिट रोम के हैं. अंतिम जानकारी वहां दी जाएगी.’’

विवेक के जाने के बाद विशाल ने समझाया कि रोम तक वह भी चल सकती है तो अवंतिका मान गई.

हेमंत ने विवेक को अवंतिका के घर से निकलते देखा तो उसे कुछ शक हुआ और थोड़ी दूर पर विवेक को पकड़ कर बोला, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के गुप्तचर विभाग से हूं. यह विशाल क्यों आंदोलनकर्ताओं से मिल रहा है? बताओ…वरना…’’ और हेमंत की घुड़की काम कर गई. विवेक ने पूरी कहानी उगल दी.

हवाई अड्डे से अब मुंशी दंपती निकल रहे थे तो विशाल और अवंतिका दिखाई दिए. विशाल ने अवंतिका को वहीं रुकने को कह कर मुंशी साहब का अभिनंदन किया, ‘‘साहब, श्रीमतीजी की मां मौत के मुंह में हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है.’’

उधर हेमंत ने मौका मिलते ही अवंतिका को विशाल की झूठ पर आधारित पूरी योजना समझा दी. फिर क्या था, गुस्से से लाल होते हुए उस ने विशाल को परची लिखी, ‘‘माफ करना, मैं रोम नहीं जा सकती. आंदोलन में भाग लेना है. तुम चाहो तो साइनाइड की टिकिया खा सकते हो.’’

मुंशी दंपती और विवेक सभा भवन के पास पहुंच रहे थे कि देखा बिकनी पहने एक महिला घोड़े पर सवार है और विशाल उस से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. हेमंत व पुलिस के 2 सिपाही उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. विशाल को जब तीनों ने दबोचा तो संवाददाताओं व फोटोग्राफरों ने अपनेअपने कार्य मुस्तैदी से किए.

मुंशी साहब घबरा कर बोले, ‘‘अरे, यह तो विशाल की पत्नी है और विशाल कर क्या रहा है?’’

विवेक ने जवाब दिया, ‘‘साहब, वह मां के दुख से पागल लगती है. विशाल उसे संभाल रहा है.’’

पुलिस ने सब को हिरासत में ले लिया.

अगले दिन अदालत में न्यायाधीश ने अवंतिका व हेमंत की गवाही सुन उन्हें मुक्त कर दिया फिर विशाल की तरफ मुड़े, ‘‘आप की सफाई के बारे में आप के वकील को कुछ कहना है?’’

विवेक के वकील ने दलील पेश की कि उस का मुवक्किल एक प्रसिद्ध तेल कंपनी का उच्च पदाधिकारी है और अपने मालिक से मिलने बैठक में जा रहा था कि रास्ते में उसे अश्लील वस्त्र पहने पत्नी दिखी जो उस की कंपनी को बदनाम करने पर उतारू थी. अब जज साहब ही निर्णय दें कि क्या उस का अपनी पत्नी को बेहूदी हरकत से बचाने का कार्य गैरकानूनी था?’’

वकील के बयान पर जज को कुछ शक हुआ तो उन्होंने सीधे विशाल से पूछा, ‘‘क्यों मिस्टर विशाल स्वरूप, क्या आप के वकील का बयान सच है?’’

‘‘बिलकुल झूठ, जज साहब. रत्ती भर भी सच नहीं है,’’ और विशाल ने 8 वर्ष से तब तक की पूरी कहानी सुनाई. अवंतिका ने भी चुपचाप अदालत में उस की कहानी सुनी.

विशाल ने अंत में कहा, ‘‘जज साहब, मैं अपनी कंपनी के प्रबंधक का आभारी हूं कि उन्होंने मेरा साथ अंत तक निभाया. किंतु उन्हें यह करने की कोई जरूरत नहीं थी. मैं ने अपना त्यागपत्र उन्हें कल ही भेज दिया है. मेरी पत्नी इस तरह के आंदोलन में विश्वास रखती है, मैं नहीं रखता. किंतु सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं उस से प्रेम करता हूं. कल जो मैं ने किया उसे रोकने के लिए नहीं बल्कि उसे यह बताने के लिए कि उस का पति बना रहना ही मेरा सब से बड़ा ध्येय व पद है.’’

जज साहब हंस दिए, ‘‘मैं आशा करता हूं कि आप अपने ध्येय में सफल रहें और फिर कभी पत्नी से अलग न हों. मुकदमा बरखास्त.’’

मुंशी साहब विशाल से हाथ मिलाते हुए बोले, ‘‘तुम्हारा त्यागपत्र स्वीकार होने का सवाल ही नहीं उठता. कल तुम और अवंतिका रोम, पैरिस व लंदन के लिए रवाना हो जाओ.’’

न्यायालय से बाहर निकलते समय विवेक का हेमंत से टकराव हो गया, ‘‘माफ कीजिएगा, आप ने अपना परिचय नहीं दिया.’’

हेमंत ने हाथ बढ़ाते हुए जवाब दिया, ‘‘इंस्पेक्टर जयकर, दिल्ली गुप्तचर विभाग.’’

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