जब कोई आपके दिल का सीक्रेट जानना चाहे, तो रखें इन बातों का ध्यान

किसी से कोई बात उगलवाने के लिए प्राय: हम अपनी कोशिश तब तक जारी रखते हैं, जब तक कि पूरी बात अपने मन की तसल्ली लायक न उगलवा लें.

रीना और सविता ननदभाभी हैं. सविता की रीना के अलावा 2 ननदें और हैं. किसी अवसर पर सविता की अपनी बीच वाली ननद से कुछ कहासुनी हो गई, जिस से संबंधों में कड़वाहट आ गई. छुट्टियों में जब रीना भाभी के घर रहने आई, तो उस ने बातोंबातों में चर्चा की कि बीच वाली जीजी आई थीं. कुछ खरीदारी करनी थी.

चूंकि सविता के मन में चोर था, इसलिए वह यह मान ही नहीं सकती थी कि बीच वाली ननद ने कोई बुराई न की हो. अत: उस ने तत्काल पूछा, ‘‘क्या कह रही थीं?’’

जवाब मिला, ‘‘कुछ खास नहीं. वही राजीखुशी की बातें कर रही थीं.’’

अनावश्यक कान भरना

पर चूंकि सविता का तनाव बीच वाली ननद से चल रहा था. अत: वह मान ही नहीं सकती थी कि वे अपनी बहन के घर जाएं और दोनों बहनों में उस की बाबत कोई चर्चा ही न हो. अत: उस के मन के चोर ने उसे उकसाया तो उस ने फिर कहा, ‘‘कुछ तो चर्चा हुई ही होगी. आखिर रही तो घर पर ही थीं. क्या कह रही थीं, बताती क्यों नहीं? मैं तो बस यों ही यह जानना चाह रही हूं कि आखिर वे क्या कह रही थीं?’’

रीना चूंकि पूरी बात जानती थी अत: समझदारी से काम लेते हुए बोली, ‘‘सच भाभी, जीजी ने तो कुछ भी नहीं कहा. कुछ कहा होता तभी तो बताती.’’

सविता अब भी भरोसा नहीं कर पाई. उसे लगा दोनों बहनें एक हो गई हैं. मिल कर उस की खूब बुराई की होगी, नमकमिर्च लगा कर. अब देखो कैसे भोली बन रही है. जैसे कुछ कहासुना ही न हो.

फिर तुनक कर बोली, ‘‘नहीं बताना है, तो मत बताओ. मैं क्या जानती नहीं.’’

पूरी बातचीत में सविता वह जानने की कोशिश करती रही, जो उस ने मन में सोच रखा था. पर जब वैसा कुछ भी सुनने को नहीं मिला, तब उसे भरोसा नहीं हुआ और परिणाम यह हुआ कि वह बीच वाली ननद से तो तनाव ले ही चुकी थी, इस ननद से भी उलझ पड़ी और मन का चैन पूरी तरह गंवा बैठी.

बेवजह तनाव

ऐसा प्राय: होता है. लोग अपने बारे में दूसरों की राय जानना चाहते हैं. कोई न बताए तो भी कुरेदकुरेद कर जानना चाहते हैं मानो जिन की राय, विचार उन्हें जानने हैं, वे कोई जज हों जो कह देंगे अच्छा तो अच्छा ही माना जाएगा.

हमारे एक परिचित हैं. वे जब आएंगे तो कहेंगे, ‘‘भाभीजी अभी कुछ दिन पहले आप के जेठजी मिले थे. आप लोगों की चर्चा होती रही. बहुत शिकायतें हैं उन्हें आप से और भैया से.’’

संभवतया वे यह बात इसलिए कहते हैं कि हम लोग चिढ़ कर उन से कुछ कहें और वे तमाशे का आनंद उठाएं. वास्तव में यह कह कर कि फलां कह रहा था, जो उत्सुकता जगाई जाती है, वह बिना पैसे का तमाशा बन उन का बखूबी मनोरंजन करती है. मैं अकसर ऐसी किसी आधीअधूरी बात पर कान देने के बजाय कहने वाले को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से कहती हूं, ‘‘कहने दो, क्या फर्क पड़ता है? जब कभी आमनेसामने पड़ेंगे और वे मुझ से कुछ कहेंगे तब जो उचित होगा जवाब दे दूंगी. अभी क्या बेवजह तनाव मोल लें?’’

एक दिन इन्हीं सज्जन ने मिलने पर कहा, ‘‘भाभीजी, आप के जेठजी तमाम किस्म की बातें आप लोगों के बारे में कहते रहते हैं. हमारा तो सुन कर खून खौल जाता है. आप को तनाव नहीं होता?’’ मैं ने मुसकरा कर यह कहते हुए बात टाल दी, ‘‘जब कभी मुझ से कहेंगे तब देख लूंगी. हर किसी के कहने पर क्या जानूं कि क्या सच है और क्या झूठ?’’

वास्तव में भीतर की बात उगलवाना व बेवजह किसी को भी तनाव देना और खुद आनंद लेना आज आम बात हो गई है. 2 की लड़ाई में तीसरा हाथ सेंकता ही है यानी मजे लेले कर तमाशा देखता है और अपरिपक्व लोग समझदारी का दामन छोड़ तमाशा दिखाते भी हैं.

झूठी तसल्ली

बताने वाला सच बताए या झूठ सुनने वाले को कभी तसल्ली नहीं होती. उसे सदैव लगता है, कुछ छिपा रहा है. फिर जब सुनने वाला कुरेद कर पूछता है कि और क्याक्या बातें हुईं, तो बताने वाला उस की झूठी तसल्ली के लिए सच के अलावा भी मन से जोड़ कर बहुत कुछ बता देता है. इधर पूछने वाले को चैन तो मिलता नहीं, हां तनाव जरूर बढ़ने लगता है. वह आक्रामक रुख इख्तियार कर बुराभला बोल मन की भड़ास निकालता जरूर है, पर यह भूल जाता है कि जिसे बता रहा है, वह यदि यही बातें उस संबंधित व्यक्ति को बता देगा तब क्या होगा?

ऐसे में यह याद रखना जरूरी है कि पूछने वाला न तो हमारा हितैषी है और न ही उस का जिस की बात कह रहा है. वह तो मात्र मजे लेने को ऐसा कर रहा है. ऐसे लोगों से सावधान रहना जरूरी है ताकि अपने जी का चैन बना रहे व संबंधों में खटास न बढ़े.

Winter Special : सर्द मौसम का लेना चाहते हैं मजा, तो इन जगहों का जरूर करें सैर

घूमनेफिरने वालों के लिए सर्दी का मौसम किसी सौगात से कम नहीं है. इस मौसम में विदेशी सैलानी भी भारत का रुख करते हैं, क्योंकि उन के लिए भारत की सर्दियां गुलाबी होती हैं. अगर आप का भी सैरसपाटे का मन है, तो निकल पडि़ए भारत के इन स्थानों का लुत्फ उठाने के लिए-

बर्फ से लदी घाटियों की सैर

पहले भले ही लोग सर्दियों में पहाड़ों पर घूमने जाने से कतराते थे पर अब वे लोग बेसब्री से सर्दियों का इंतजार करते हैं ताकि बर्फीली वादियों की सैर कर सकें. क्योंकि चाहे स्नोफाल का मजा लेना हो या बर्फ पर घूमना हो या फिर स्लेजिंग और स्कीइंग के खेल का मजा लेना हो यह सब तभी संभव हो पाएगा जब आप सर्दियों में बर्फीले पहाड़ों की सैर करने का मन बनाएंगे. आसमान से सफेद रुई जैसी बर्फ जब आप के शरीर से टकराती है, तो उस अनुभव को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. स्नोफाल की शुरुआत अकसर जनवरीफरवरी में होती है. हसीन वादियों का शहर शिमला : सर्दी हो या गरमी शिमला हर मौसम में सब का पसंदीदा हिल स्टेशन है. स्नोफाल देखने के लिए सब से पहले लोग शिमला का ही रुख करते हैं, क्योंकि यह दिल्ली से काफी करीब है और यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां का मौसम भी निराला है. यहां कुफरी और नारकंडा में जब स्नोफाल होता है तब शिमला का मौसम सुहाना होता है.

आप कुफरी और नारकंडा में बर्फ में खेलने के बाद शिमला के मौलरोड पर टहल सकते हैं. कुफरी और नारकंडा में स्नोफाल होने के बाद शिमला में स्नोफाल शुरू होता है. जो मजा यहां के मौलरोड और स्कैंडल पौइंट पर स्नोफाल देखने और बर्फ पर खेलने में आता है वह कहीं और नहीं आता. शिमला के आसपास जाखू मंदिर, कालीबाड़ी, वायसराइगल लौज, समर हिल आदि घूमने का भी अलग ही आनंद है. हनीमून डैस्टिनेशन कुल्लूमनाली :हिमालय का जो सौंदर्य व्यास नदी के तट पर बसे कुल्लूमनाली में दिखता है. वह शायद ही और कहीं देखने को मिले. एक ओर कलकल बहती व्यास नदी, तो दूसरी ओर आसमान को छूती पर्वतशृंखलाएं किसी को भी रोमांचित कर सकती हैं. तभी तो इसे हनीमून मनाने के लिए सब से आदर्श माना जाता है.

यहां भी जनवरी से हिमपात शुरू हो जाता है. सब से पहले रोहतांग दर्रे के पास हिमपात होता है और हिमपात होते ही यहां का मार्ग बंद हो जाता है. और फिर देखते ही देखते पूरा शहर बर्फ की चादर से ढक जाता है. वशिष्ठ मंदिर और हिडंबा मंदिर जाने के लिए भी बर्फ पर चलना पड़ता है. हिमाचल प्रदेश में मनाली के निकट सोलांग घाटी विंटर गेम्स के लिए आदर्श स्थान है. यहां की ढलानों की विशेषता है कि नौसिखिए सैलानी भी स्कीइंग का आनंद उठा सकते हैं. मनाली से सोलांग घाटी आसानी से जाया जा सकता है. नैनीताल में निहारें वाइल्ड लाइफ : नैनीताल में स्नोफाल का आनंद तो लिया ही जा सकता है, वाइल्ड लाइफ को भी काफी करीब से देखा जा सकता है. नैनीताल के नयनाभिराम दृश्य और पहाड़ों पर बिछी बर्फ की सफेद चादर इसे बेहद खूबसूरत बना देती है. इन्हीं पर्वतों के साए में बसा है नैनीताल का कार्बेट नैशनल पार्क, जो कई किलोमीटर में फैला है. यह उद्यान बाघों के लिए भी पहचाना जाता है. आज इस उद्यान में बाघों की संख्या काफी अधिक है. बाघों के अतिरिक्त यहां भालू, तेंदुए, जंगली सूअर, पैंथर, बारहसिंगे, नीलगाय, सांभर, चीतल, हाथी और कई अन्य जंतु भी देखे जा सकते हैं.

रामगंगा नदी उद्यान के मध्य से बहती है. यहां पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियां हैं. उन में मोर, बाज, वनमुरगी, तीतर, बया, उल्लू, अबाबील, बगला आदि को सैलानी आसानी से देख पाते हैं. सर्दियों में तो यहां प्रवासी पक्षी भी आ बसते हैं. रामगंगा के तट पर ऊदबिलाव, मगरमच्छ और जलगोह भी देखे जा सकते हैं.

कोल्ड टी दार्जिलिंग : दार्जिलिंग के चाय के बागान जितने खूबसूरत गरमियों के दिनों में दिखते हैं उस से कहीं ज्यादा आकर्षक तब दिखते हैं जब उन पर बर्फ की चादर पूरी तरह से बिछ जाती है. यहां सैलानियों को बर्फ पर खेलना काफी भाता है. बर्फीले रास्तों पर चल कर यहां के बौद्ध मठ एवं पर्वतारोहण संस्थान देखने का मजा ही कुछ और है.

सब से सुंदर कश्मीर : स्नोफाल की बात हो और कश्मीर को भुला दिया जाए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. इस मौसम में पूरा कश्मीर बर्फ से ढक जाता है. कश्मीर का गुलमर्ग देश का सब से पहला स्कीइंग डैस्टिनेशन है. इस खेल का लुत्फ उठाने आज भी यहां देशविदेश के हजारों सैलानी आते हैं. यहां आ कर गंडोले में बैठ कर ऊंची बर्फीली पहाड़ी ढलानों पर नहीं गए, तो कश्मीर दर्शन अधूरा समझिए. इस के अलावा पटनी टौप भी लोगों को काफी पसंद आता है.

करें रेगिस्तान का सफर

भरी गरमी में रेगिस्तान घूमने का आनंद नहीं उठाया जा सकता है. सर्दी के मौसम में रेत के ऊंचेऊंचे टीले, ठंडी हवा और दूर तक फैली रेत पर चलते ऊंटों के काफिले किसी का भी मन मोह लेंगे. यही वह मौसम है, जब आप मरुभूमि के ऐसे मनोरम दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं. राजस्थान का बहुत बड़ा क्षेत्रफल थार रेगिस्तान से घिरा हुआ है. यहां ऐसे बहुत से ठिकाने हैं, जहां सैलानी डैजर्ट हौलीडे मना सकते हैं. इन स्थानों की रेतीली धरती पर रेत के विशालकाय टीले यानी सैंड ड्यूंस देखना किसी रोमांच से कम नहीं है. इन्हें स्थानीय भाषा में रेत के टिब्बे या रेत के धोरे कहा जाता है. कैमल सफारी का मजा : बीकानेर शहर अपने किले, महल और हवेलियों के लिए पहचाना जाता है. राव बीकाजी द्वारा स्थापित इस के आसपास स्थित जूनागढ़ फोर्ट, लालगढ़ पैलेस, गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम, देवी कुंड, कैमल रिसर्च सैंटर आदि दर्शनीय हैं. बीकानेर के निकट सैलानी सैंड ड्यूंस की सैर भी कर सकते हैं. इस के लिए बीकानेर से कुछ किलोमीटर दूर गजनेर वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी कटारीसर गांव जाना होता है.

रेगिस्तान की धरती का सही रूप देखना है तो कैमल सफारी सब से अच्छा और रोमांचक तरीका है. इन सभी नगरों में टूर औपरेटरों द्वारा कैमल सफारी की व्यवस्था की जाती है. ऊंट के मालिक पर्यटकों के लिए गाइड का काम करते हैं. कैमल सफारी का कार्यक्रम 2 दिन से 1 सप्ताह तक का बनाया जा सकता है. कैमल सफारी के दौरान मरुभूमि के ग्राम्य जीवन को करीब से देखने का अनुभव भी अनूठा होता है. सैलानियों को लुभाता जैसलमेर : राव जैसल द्वारा स्थापित यह ऐतिहासिक शहर सर्दियों में सैलानियों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है. तपती धूप में सुनहरी रेत को देखना हो तो जैसलमेर की सैर करना बेहतर होगा. गोल्डन सिटी के नाम से पहचाने जाने वाले जैसलमेर में विशाल किला, सुंदर हवेलियां और शहर से कुछ दूर स्थित सैंड ड्यूंस सभी कुछ है. पीले पत्थरों से बने जैसलमेर फोर्ट को सोनार किला कहा जाता है. त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित यह किला विशाल परकोटे से घिरा हुआ है. सोनार किले के अंदर कुछ सुंदर महल भी दर्शनीय हैं. राज परिवार के सुंदर महलों के अलावा यहां आम लोगों के घर भी हैं. शहर में भव्य हवेलियां भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. इन में सब से आकर्षक पटवों की हवेली है. यह 7 मंजिला 5 हवेलियों का समूह है. जैसलमेर की गडीसर झील में बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है.

सैलानियों के लिए यहां सब से बड़ा आकर्षण सम सैंड ड्यूंस है. यहां आप चाहे रेत पर पैदल घूमें या फिर ऊंट पर बैठ कर रेत के धोरों के बीच घूमने निकल पड़ें. लोद्रवा, कनोई, कुलधारा आदि गांवों के पास भी रेत के टीले देखे जा सकते हैं. इस के अलावा अगर आप राजस्थान जाएं तो जयपुर, जोधपुर और अजमेर शरीफ भी जरूर देखें. इन सब का अपना अलग आकर्षण है. इस के अलावा नागौर और चुरू के नजदीक भी रेत के टीलों को देखा जा सकता है. इन टीलों की खासीयत यह है कियहां के टीले तेज हवाओं के साथ अकसर स्थान बदल लेते हैं. इसलिए इन्हें शिफ्टिंग सैंड ड्यूंस भी कहा जाता है.

सागरतट पर ढूंढ़ें सन, सैंड और सर्फिंग

सागरतट लोगों को अपनी ओर आकर्षित न करे, ऐसा हो ही नहीं सकता और यह भारत ही है जहां एक ओर ऊंचे पहाड़ हैं, तो दूसरी ओर समुद्र के तट, जो इसे 3 ओर से घेरे हुए हैं. नंगे पैर समुद्र के किनारे पैदल चलने की कल्पना हर इंसान ने कभी न कभी की ही होगी. अगर आप का भी सपना समुद्र को अपने पैरों के नीचे लेने का कर रहा हो तो यह मौसम आप को बुला रहा है. इन दिनों समुद्री हवाएं और भी सुहानी लगती हैं और किनारे की सूखी रेत पर पैदल चलना भी सुखद लगता है. तभी तो सन, सैंड और सर्फिंग के शौकीन विदेशी पर्यटक भी इन दिनों भारत के सागरतटों पर नजर आते हैं.

गोवा की खूबसूरती : सुंदर सागरतटों का जिक्र आते ही सब से पहले, जो तसवीर हमारे जेहन में आती है वह है गोवा, जो अपनेआप में एक संपूर्ण पर्यटन स्थल है. यहां की लंबी तटरेखा पर करीब 40 मनोरम बीच हैं. कई ऐतिहासिक चर्च व प्राचीन मंदिर भी यहां हैं. वैसे तो पर्यटक राजधानी पणजी के समीप मीरामार बीच पर शाम को सूर्यास्त का शानदार नजारा देखना ज्यादा पसंद करते हैं पर अगर खूबसूरती की बात करें तो कलंगूट यहां का सब से सुंदर समुद्रतट है. दोना पाउला तट पर मोटरबोट की सैर और वाटर स्कूटर का रोमांचक सफर किया जा सकता है. अंजुना बीच पर बैठ कर लाल चट्टानों से टकराती लहरों को देखना भी अपनेआप में एक नया अनुभव होगा. यहां से कुछ दूर ही बागा बीच है. यहां सैलानी समुद्र स्नान का आनंद लेते हैं.

समुद्र किनारे बसा पुरी शहर : उड़ीसा के इस शहर का सुंदर, स्वच्छ, विस्तृत और सुनहरा सागरतट दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. दूर तक फैले सफेद बालू के तट पर बलखाती सागर की लहरों को देख कर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है. भीड़भाड़ भरे जीवन से परे जब सैलानी यहां पहुंचते हैं, तो स्वयं को उन्मुक्त महसूस करते हैं. समुद्र को छू कर आती हवाएं उन में नई ऊर्जा का संचार करती हैं. इसलिए पुरी के मनोरम बीच पर सुबह से शाम तक खासी रौनक रहती है. सुबह से दोपहर तक यहां समुद्र स्नान और सूर्य स्नान करने वालों की भीड़ रहती है, तो शाम को सूर्यास्त का नजारा देखने के लिए लोग यहां जुटते हैं. पुरी का यह बीच मीलों तक फैला है. शहर के निकट तट पर भारतीय सैलानी अधिक होते हैं, तो पूर्वी हिस्से में अधिकतर विदेशी सैलानी सनबाथ का आनंद ले रहे होते हैं. यहां हस्तशिल्प की वस्तुओं का हाट भी लगता है. इस की जगमगाहट पर्यटकों को शाम को यहां खींच लाती है. उस समय समुद्र की लहरों का शोर माहौल को संगीतमय बनाए रखता है. पुरी घूमने आए सैलानी विश्वविख्यात कोणार्क मंदिर भी देख सकते हैं. यूनेस्को की ओर से इसे विश्व धरोहरों की सूची में दर्ज किया जा चुका ह.

पर्यटक भुवनेश्वर, चिल्का झील और गोपालपुर औन सी सागरतट भी देखने जा सकते हैं.

कोवलम की छांव में : कोवलम बीच देश के सुंदरतम समुद्रतटों में से एक है. यह देश का ऐसा पहला तट है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सी बीच के रूप में विकसित किया गया है. इसलिए यहां विदेशी सैलानियों की संख्या भी काफी होती है.

कोवलम का सुंदर किनारा ताड़ और नारियल के वृक्षों से घिरा हुआ है. यहां 2 छोटीछोटी खाडि़यां हैं, जिन के कोनों पर ऊंची चट्टानें हैं. चट्टानों पर बैठ कर सैलानी मचलती लहरों का आनंद लेते हैं. तिरुअनंतपुरम में और भी कई दर्शनीय स्थान हैं. इन में शंखमुखम बीच, नेपियर संग्रहालय और श्री चित्र कलादीर्घा मुख्य हैं. चलें अंतिम छोर की ओर : तमिलनाडु के कन्याकुमारी की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. यहां 3 सागरों के संगम के साथ सूर्योदय व सूर्यास्त का अनूठा नजारा देखा जा सकता है. यहां से श्रीलंका भी काफी करीब है. हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और प्रशांत महासागर यानी 3 अलगअलग रंगों के समुद्रों का नजारा इस के अलावा भारत में और कहीं नहीं देखा जा सकता है.

इच्छाधारी बाबा: मंदिर में कौनसा गोरख धंधा चल रहा था

मंदिर के ऊपरी भाग में बने स्पैशल कमरे से नीचे का सारा नजारा दिखाई देता था. वे इस कमरे में आराम करते हुए मंदिर में आने वाले भक्तों को देखते रहते थे. वैसे तो उन्हें मर्द भक्तों से इतना मतलब नहीं रहता था, पर उन में से वे केवल ऐसे भक्तों पर ही निगाह गड़ाए रहते थे, जो उन्हें पैसे वाला दिखाई देता था. इस से उलट वे मंदिर में आने वाली उन लड़कियों और औरतों को खास निगाह से देखते थे, जो गरीब घरों की होती थीं.

वे अपने कमरे से ही उन के चेहरे को पढ़ लेते थे. उन में से जिन में उन्हें कोई उम्मीद नजर आती, उन्हें अपने दूसरे कमरे में बुला लिया जाता. इस दूसरे कमरे से ही इस कमरे तक आने का सफर तय होता था. वे ‘इच्छाधारी बाबा’ कहे जाते थे.

अब थोड़ा ‘इच्छाधारी बाबा’ का इतिहास जान लेते हैं. उस का असली नाम मूलचंद था. वह शुरू से ही शानशौकत से जीने के सपने देखा करता था, पर वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था, तो उसे जो सरकारी नौकरी मिली, वह क्लर्क की थी.

यह नौकरी भी मूलचंद को इस वजह से मिल गई थी कि उस के पिताजी भी सरकारी नौकर थे और रिटायर होने से पहले एक हादसे में उन की मौत हो गई थी.

मूलचंद को आसानी से नौकरी मिली तो उस के सपने जोर मारने लगे. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उस के पास घपला करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

क्लर्क की तनख्वाह तो इतनी होती नहीं कि वह उस में ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके. घपला किया और पकड़ा गया.

मूलचंद ने जितने रुपयों का घपला किया था, उन को अपने एक दोस्त  के पास रख दिया था, ताकि  अगर  वह पकड़ा भी जाए तो उस के पैसे महफूज रहें.

मूलचंद को भरोसा था कि वह पकड़े जाने के बाद इन्हीं पैसों की रिश्वत खिला कर अपनेआप को बेदाग साबित कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं. न केवल उसे नौकरी से निकाल दिया गया, बल्कि उस के खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी गई. रिपोर्ट दर्ज होते ही उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. डर के मारे वह फरार हो गया.

पुलिस मूलचंद को ढूंढ़ती फिर रही थी और वह यहांवहां छिपते हुए दिन काट रहा था. पुलिस के साथ आंखमिचौली के दौरान ही वह एक मंदिर के पुजारी के पास पहुंचा. उस पुजारी ने उसे छिपने में बहुत मदद की.

बाद में मूलचंद को पता चला कि वह पुजारी खुद भी सालों से ऐसे ही पुलिस से छिपता फिर रहा है. उस ने तो अपनी पत्नी का ही खून कर दिया था.

मूलचंद ने भी सोचा, ‘कितने लोग ऐसे ही अपनेआप को छिपाए हुए हैं, तू भी यही चोला पहन ले…’

मूलचंद तब तक वहां छिपा रहा, जब तक उस के बाल और दाढ़ीमूंछ नहीं आ गई. फिर एक दिन वह भगवा चोला पहन कर वहां से निकल पड़ा. उस ने अपना नया नाम ‘इच्छाधारी बाबा’ रख लिया था. अब उसे पुलिस का कोई डर नहीं था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपना जो नया ठिकाना बनाया, वह एक रईस रम्मू का पुरखों का मंदिर था. इस मंदिर में बहुत सारी जमीन लगी हुई थी. इस जमीन को रम्मू ही जोतता था और सारा पैसा अपने इस्तेमाल में ही खर्च करता था.

रम्मू को अपने पुरखों से इस वजह से चिढ़ होती थी कि इतनी सारी जमीन मंदिर में लगा दी और इतनी कीमती जमीन पर मंदिर बना दिया. वह मंदिर जिस जगह पर बना था, उस की कीमत आज लाखों रुपए में हो गई थी.

धीरेधीरे जब रम्मू ने मंदिर में खर्चा कराना बंद कर दिया, तो महल्ले के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के मंदिर  को चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली.

कहीं मंदिर पूरी तरह से हाथ से न निकल जाए, इस भावना के चलते रम्मू मंदिर में अपना दबदबा बनाए रखता था. उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी, जो मंदिर से आमदनी करा सके.

मूलचंद यानी ‘इच्छाधारी बाबा’ से रम्मू की एक डील हुई थी. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने उसे हर साल एकमुश्त मोटी रकम देने का लिखित करार कर दिया था. इस के बदले रम्मू ने पूरा मंदिर उसे सौंप दिया.

रम्मू का भार हलका हो गया. अब उसे अपने पुरखों से इतनी नाराजगी भी नहीं रही. इसी बीच ‘इच्छाधारी बाबा’  मंदिर से पैसा कमाने की कला सीख चुका था.

वह महल्ला अच्छे लोगों का था, इसलिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को अपनी कमाई को ले कर कोई शक था भी नहीं. अब समाज में इज्जत भी मिलने लगी थी. वह तू से आप हो गया था.

रम्मू ने ‘इच्छाधारी बाबा’ की योजना के मुताबिक उन्हें बड़ी धूमधाम और उन से जुड़ी अनेक कहानियों का प्रचार कर मंदिर में बैठा दिया. मंदिर में एक पंडित था रामलाल, जो कुछ मंत्र वगैरह पढ़ लेता था. वह मंदिर में भगवान की पूजा करता और अपना पंडिताई धर्म निभा लेता. सपने तो वह भी बहुत सारे पाले हुए था, पर उस के पास ‘इच्छाधारी बाबा’ की तरह खुद पर यकीन और चालाकियां नहीं थीं.

‘इच्छाधारी बाबा’ को एक ऐसा ही आदमी तो चाहिए ही था, इसलिए उन्होंने उस पंडित रामलाल के सिर पर अपना हाथ रख कर यह भी सम झा दिया कि अगर उस ने उन के कामों में रोड़े अटकाए तो उस की खैर नहीं.

रामलाल वैसे भी ‘इच्छाधारी बाबा’ को देख कर घबरा चुका था, उन की धमकी को सुन कर और भी घबरा गया. वह ‘इच्छाधारी बाबा’ के पैरों में गिर गया और कसम खा ली कि बाबा के न केवल सारे कामों में वह हिस्सेदार बनेगा, साथ ही हर राज को भी बरकरार रखेगा.

‘इच्छाधारी बाबा’ को अपना जलवा बनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. वे जल्दी ही सम झ गए थे कि जो अपने चेहरे पर जितनी मुसकान लिए रहता है, उस के दिल में उतने ही दर्द छिपे होते हैं. उन्हें केवल उन दर्दों को कुरेदना ही था.

एक औरत सविता पर उन की निगाह पहले ही दिन पड़ गई थी. वह मंदिर गाहेबगाहे आ जाती थी और जोरजोर से बातें करती और हंसती रहती. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने सविता को ही अपना पहला शिकार बनाया.

सविता के कोई औलाद नहीं थी और उम्र भी ढलती जा रही थी. पति दूसरे शहर में काम करता था. वह 15 दिनों में एक बार ही आता, वह भी एक दिन के लिए.

सविता ने यह सब ‘इच्छाधारी बाबा’ को बता दिया. उस की बातें सुन कर बाबाजी की हवस जाग गई. फिर एक दिन सविता को अपने कमरे में बुला कर बाबाजी ने उस की कोख में अपना बीज रोप दिया.

सविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह पेट से हो गई और बाबाजी के लिए खिलौना बन गई. वे जब चाहते, उसे बुला लेते और अपने कमरे में मौज करते.

सविता का पेट अब बाहर की ओर निकला दिखाई देने लगा था. बाबाजी का मजा खत्म हो गया था. सविता ने एक दूसरी औरत को उन के कमरे में पहुंचा दिया था. धीरेधीरे ‘इच्छाधारी बाबा’ के पास औरतों की लाइन लगने लगी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की नजर अब नवीन पर गई. नवीन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. वह सुबह फैक्टरी जाने के पहले मंदिर में आ कर भगवान के दर्शन करता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ की निगाह उस पर गड़ चुकी थी. वैसे तो वे बहुत ही कम सुबह जल्दी सो कर उठते थे और कभीकभार ही सुबह की पूजा में शामिल होते थे. पर अब वे रोज आने लगे थे.

नवीन को अपने जाल में फंसाने के लिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. सविता ने नवीन के लिए एक खूबसूरत लड़की का इंतजाम कर दिया था.

‘इच्छाधारी बाबा’ के कमरे में नवीन की मुलाकात उस लड़की से कराई गई और उन के बिस्तर पर जाते ही वीडियो बना लिया गया. नवीन अब बाबाजी के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था.

इस मंदिर को और बड़ा नवीन ने ही कराया था. इसी दौरान बाबाजी ने ऊपरी भाग में अपने लिए एक ऐसा कमरा बनवा लिया था, जिस की कांच की दीवारों से वे तो बाहर  झांक सकते थे, पर कोई और बाहर से कमरे में नहीं  झांक पाता था. कमरे की मोटी कांच की दीवारों के अंदर से बहुत जोर की आवाज भी बाहर नहीं निकल पाती थी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की दुकानदारी चल निकली थी. मंदिर में भक्तों का जमावड़ा बढ़ने लगा था और पैसा बरसने लगा था. बाबाजी ने पैसा कमाने का एक और खेल चालू कर लिया था. उन के पास अब औरत भक्तों की तादाद खूब  हो गई थी. इन में वे तो शामिल थीं ही, जिन की गोद भर चुकी थी और वे भी थीं, जिन्हें केवल बाबाजी के साथ से मजा मिलता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपने अमीर भक्तों तक इन औरतों को पहुंचना शुरू कर दिया. बाबाजी के पास उन सब औरतों के वीडियो तो थे ही, इसलिए चाह कर भी वे उन के आदेश को मानने से इनकार नहीं कर पाती थीं. बाबाजी को इस नए कारोबार से ज्यादा आमदनी हो रही थी.

रम्मू ने जब अपना पुरखों का मंदिर ‘इच्छाधारी बाबा’ को किराए पर दिया था, तब उसे भी उम्मीद नहीं थी कि बाबाजी इस मंदिर को इतना चमत्कारिक बना देंगे कि पैसा बरसने लगेगा. उसे तो लग रहा था कि कुछ ही दिनों में बाबाजी मंदिर छोड़ कर भाग खड़े होंगे, पर अब जब मंदिर की चर्चा दूरदूर तक होने लगी थी, तो उसे बाबाजी से जलन होने लगी थी. उसे लगने लगा था कि वह ठगा गया है. वह अब उन्हें मंदिर से भगाने की जुगत में लग गया था.

एक दिन ‘इच्छाधारी बाबाजी’ अपने भक्तों के साथ नाच रहे थे. उन्होंने जिस औरत का हाथ पकड़ा हुआ था, उसे वे पहली निगाह में ही पसंद कर चुके थे. उन्होंने अपने कांच वाले कमरे से ही उस औरत को एक बच्चे और मर्द के साथ आते देख लिया था.

उस औरत की उम्र ज्यादा नहीं थी. उस के लंबे बाल कमर के नीचे तक लहरा रहे थे. बाबाजी ने उस औरत को दर्शन देने का मन बना लिया था, इसलिए वे अपने कमरे से नीचे आ गए थे.

उस औरत ने अपने सिर पर आंचल रख कर पूरी श्रद्धा के साथ बाबाजी के चरणों पर अपना सिर रख दिया और बाबाजी ने आशीर्वाद देने के बहाने उस की पीठ को सहला दिया.

इस के बाद बाबाजी उस औरत का हाथ पकड़ कर नाचने लगे. मंदिर के अहाते में जमा सभी भक्त भी बाबाजी के साथ नाच रहे थे. वे उसे यहांवहां छू रहे थे. वह औरत भी उन्हें छूने का भरपूर मौका दे रही थी.

थोड़ी देर के बाद वह औरत बाबाजी के कमरे में उन के सामने बैठी थी. बाबाजी उसे एकटक निगाहों से देख रहे थे. जैसे ही उन्होंने उस औरत के चेहरे पर आने वाली लट को हटाते हुए अपनी बांहों में लेने की कोशिश की, तभी उस औरत ने अपनी कमर में छिपी पिस्तौल को निकाल कर बाबाजी के माथे पर अड़ा दिया.

‘इच्छाधारी बाबा’ अभी भी मदहोश ही थे. उन्होंने पिस्तौल की परवाह किए बिना एक बार फिर उस औरत को बांहों में लेने की कोशिश की, पर अब की बार पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो तेज आवाज के साथ कांच की दीवार से जा टकराई.

गोली की आवाज बाहर नहीं गई थी, पर अंदर ही उस ने इतना धमाका किया था कि बाबाजी का सारा नशा गायब हो चुका था.

‘इच्छाधारी बाबा’ को गिरफ्तार कर लिया गया था. दरअसल, पुलिस ने ही यह सारा प्लान बनाया था. वह खूबसूरत औरत एसपी थी, जिस ने बाबाजी को अपने मोह जाल में फंसाया था.

पुलिस ने एक दिन पहले ही कुछ औरतों को एक होटल से गिरफ्तार किया था. उन्होंने ही मंदिर में चल रहे इस गोरखधंधे का खुलासा किया था. बाबाजी के कमरे से गंदी किताबों के अलावा नशीली दवाएं भी बरामद हुई थीं. ‘इच्छाधारी बाबा’ का पुराना कच्चाचिट्ठा भी खुल चुका था.

Gazar Ka Halwa Recipe : हलवाई जैसा घर पर बनाएं टेस्टी गाजर का हलवा

Gazar Ka Halwa Recipe: गाजर का हलवा (Carrot Halwa) एक बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन है. जो खासतौर पर सर्दियों के मौसम में लोग खाना पसंद करते हैं. इसे गाजर, दूध, घी, चीनी और ड्राई फ्रूट्स के साथ पकाया जाता है. आज आपको इसे बनाने की आसान विधि बताएंगे.

सामग्री

गाजर (कद्दूकस की हुई) – 4 कप
दूध – 2 कप
घी – 2-3 बड़े चमच
चीनी – 1/2 कप (स्वादानुसार)
इलायची पाउडर – 1/2 छोटी चमच
काजू और बादाम – 2 बड़े चम्मच (कटे हुए)
किशमिश – 1 बड़ा चम्मच
अखरोट – 1 छोटा चमच कटा हुआ
पानी – 1/2 कप

बनाने की विधि:

सबसे पहले गाजर को अच्छे से धोकर छील लें और फिर कद्दूकस करके अलग रख लें.

एक कढ़ाई में घी गर्म करें. उसमें कद्दूकस की हुई गाजर डालें और अच्छे से मिला लें. अब इसे मध्यम आंच पर 5-7 मिनट तक भूनें, ताकि गाजर नरम हो जाए.

गाजर को अच्छे से भूनने के बाद उसमें 2 कप दूध डालें. इसे अच्छी तरह पकाएं.

जब दूध लगभग आधा रह जाए, तो उसमें चीनी और 1/2 कप पानी डालें.

अब इसे अच्छे से मिला लें और धीमी आंच पर पकने दें.

गाजर और दूध के मिश्रण को लगातार चलाते रहें. इसे तब तक पकाएं, जब तक दूध पूरी तरह से सूख न जाए और गाजर हलवे जैसा गाढ़ा हो जाए.

अब इसमें इलायची पाउडर डालें और कटे हुए काजू, बादाम, और किशमिश डालकर अच्छे से मिला लें.

5-10 मिनट तक पकने दें,

अब आपका गाजर का हलवा तैयार है. आप इसे गरमागरम परोस सकते हैं.

टिप्स:

आप गाजर के हलवे में बादाम, काजू, और पिस्ता जैसे ड्राई फ्रूट्स की मात्रा बढ़ा सकते हैं.

दूध की बजाय आप दूध पाउडर का भी उपयोग कर सकते हैं, लेकिन ताजे दूध से हलवा ज्यादा स्वादिष्ट बनता है.

हलवे में घी का इस्तेमाल स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है, लेकिन आप घी की मात्रा कम भी कर सकते हैं.

गाजर का हलवा एक लाजवाब मिठाई है, जो सर्दी में खासतौर पर खाई जाती है.

Shraddha Kapoor को एक साथ कई फिल्में साइन करने में लगता है डर, इसके पीछे ये है खास वजह….

श्रद्धा कपूर (Shraddha Kapoor) उन हीरोइनों में से हैं जो किसी बौलीवुड ग्रुप का हिस्सा नहीं है और उन्होंने अकेले के दम पर फिल्म इंडस्ट्री में अपना वर्चस्व स्थापित किया है. हाल ही में श्रद्धा कपूर की फिल्म स्त्री 2 ने जहां बौक्स औफिस पर धमाल मचाया है उनकी अन्य फिल्मों ने भी जैसे तू झूठी में मक्कार, स्त्री, साहो आदि कई फिल्मों ने बौक्स औफिस पर धमाल मचाया है. बावजूद इसके बेहद इमोशनल श्रद्धा कपूर एक साथ तीन चार फिल्में साइन करने से डरती हैं, क्योंकि वह नहीं चाहती कि एक साथ कई फिल्में साइन करने के बाद उन्हें रिप्लेसमेंट का झटका सहन करना पड़े.

श्रद्धा अपने शुरुआती दिनों के अनुभव को याद करते हुए कहती हैं कि शुरुआती करियर में उन्होंने कई फिल्में साथ में साइन कर ली थी लेकिन एक दो फिल्मों की असफलता के बाद ही उनको कई फिल्मों से रिप्लेसमेंट कर दिया गया था. कुछ फिल्मों में तो वह पूरी तरह से फाइनल थी बावजूद इसके उनको फिल्मों से हटा दिया गया क्योंकि शुरुआती दिनों में उनकी कुछ फिल्में फ्लौप हो गई थी.

श्रद्धा के अनुसार उन दिनों की असफलता ने बहुत कुछ सिखाया लेकिन साथ ही मेरे दिल में रिप्लेसमेंट को लेकर डर भी बैठ गया है. क्योंकि जब मुझे कुछ फिल्मों से रिप्लेस किया गया तो मैं मानसिक तौर पर टूट गई थी और मेरा आत्मविश्वास भी डगमगा गया था. इसलिए अब मैं बहुत सोच समझ कर साइन करती हूं. जो मुझे अपने इनट्यूशन से लगता है कि यह फिल्म अच्छी जाएगी. वही फिल्म में साइन कर लेती हूं. नई फिल्में साइन करने के मामले में कोई जल्दबाजी नहीं करती. क्योंकि मैं चाहती हूं कि मैं भी अपने पिता शक्ति कपूर की तरह फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय तक रहूं और अच्छीअच्छी फिल्मों में अभिनय करती रहूं फिर भले साल में मेरी एक फिल्म ही क्यों ना रिलीज हो. श्रद्धा कपूर के अनुसार मुझे अभिनय से प्यार है. लंबे समय तक अपने काम को एंजौय करना चाहती हूं.

लकीर मत पीटो: क्या बहु बेटी बन पाई

मेरी जांच करने आए डाक्टर अमन ने कोमल स्वर में कहा, ‘‘अनु, बेहोश हो जाने से पहले तुम ने जो भी महसूस किया था, उसे अपने शब्दों में मुझए बताओ.’’

डाक्टर अमन के अलावा मेरे पलंग के इर्दगिर्द मेरे सासससुर, ननद नेहा और मेरे पति नीरज खड़े थे. इन सभी के चेहरों पर जबरदस्त टैंशन के भाव पढ़ कर मेरे लिए गंभीरता का मुखौटा ओढ़े रखना आसान हो गया.

‘‘सर, मम्मीजी मुझे किचन में कुछ समझ रही थीं. बस, अचानक मेरा मन घबराने लगा. मैं ने खुद को संभालने की बहुत कोशिश करी पर तबीयत खराब होती चली गई. फिर मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छाया. इस के बाद मुझे अपने और हाथ में पकड़ी ट्रे के गिरने तक की बात ही याद है,’’ मरियल सी आवाज में मैं ने डाक्टर को जानकारी दी.

‘‘तुम ने सुबह से कुछ खाया था?’’

‘‘जी, नाश्ता किया था.’’

‘‘पहले कभी इस तरह से चक्कर आया है.’’

‘‘जी, नहीं.’’

उन्होंने कई सवाल पूछे पर मेरे चक्कर खा कर गिरने का कोई उचित कारण नहीं समझ सके. मेरे ससुर से बस उन्हें यह काम की बात जरूर पता चली कि मेरी सास उस वक्त मुझे कुछ समझने  के बजाय बहुत जोर से डांट रही थीं.

‘‘इसे गरम दूध पिलाइए. कुछ देर आराम करने से इस की तबीयत बेहतर हो जाएगी. ब्लड प्रैशर कुछ बढ़ा हुआ है. अब ऐसी कोई बात न करें जिस से इस का मन दुखी या परेशान हो,’’  ऐसी हिदायते दे कर डाक्टर साहब चले गए.

उन्हें बाहर तक छोड़ कर आने के बाद मेरे ससुरजी कमरे मे लौटे और मेरी सास से नाराजगीभरे अंदाज में बोले, ‘‘बहू के साथ डांटडपट जरा कम किया करो. उस के पीछे पड़ना नहीं छोड़ोगी तो यह बिस्तर से लग जाएगी. कुछ ऊंचनीच हो गई तो देख लेना सब कहीं के नहीं रहेगे.’’

‘‘इन से फालतू बात करने की जरूरत नहीं है, जी. घर में गलत काम होते देख कर मैं तो चुप नहीं रह सकती हूं और मैं ने ऐसा कुछ कहा भी नहीं था इसे जो यह गश खा कर गिर पड़े. इसे किसी दूसरे डाक्टर को दिखाओ,’’ मेरी सास ससुर पर गुर्रा पड़ीं.

ससुरजी के कमरे से जाने के बाद नीरज मेरा सिर दबाने लगे. साथ ही साथ मुझे टैंशन न लेने के लिए समझते भी जा रहे थे.

मन ही मन उन के हाथों के स्पर्श का आनंद लेती हुई मैं कुछ देर पहले घटी घटना के बारे में सोचने लगी…

मुझे इस घर में बहू बन कर आए हुए अभी दूसरा महीना भी पूरा नहीं हुआ है. शादी से पहले ही मुझे बहुत से लोगों ने बता दिया था कि मेरी सास स्वभाव की बहुत तेज हैं. तभी मेरी जेठानी उन से तंग आ कर अपनी शादी के 6 महीने बाद ही घर से अलग हो कर किराए के मकान में रहने चली गई थी.

मैं ने सोच लिया था कि सासससुर को छोड़ कर नहीं जाऊंगी क्योंकि हम दोनोें के प्रेमविवाह में बहुत सी अड़चनें आई थीं. पंडितों ने मेरी कुंडली में हजार दोष निकाल दिए थे और मातापिता फालतू में पैसे दे कर दोष निवारण करते रहे थे.

मेरी सास ने तो एक ही वाक्य बोला था, ‘‘नीरज को पसंद है तो और क्या देखना. बाकी मैं संभाल लूंगी.’’

तब तो मुझे बाकी में संभाल लूंगी का मतलब समझ नहीं आया था पर अब समझ आने लगा था.

मेरी सास ने पहले दिन से ही मुझ पर अपना रोब जमाने का अभियान छेड़ दिया था. मेरे पहननेओढ़ने, उठनेबैठने और हंसनेबोलने के ढंग में उन्हें कोई न कोई कमी जरूर नजर आ जाती थी.

उन की अब तक की टोकाटाकी को मैं किसी तरह बरदाश्त करती रही पर आज तो अति हो गई.

‘‘इस की मां ने इसे कुछ नहीं सिखाया. हमारे पल्ले कैसी फूहड़ बहू पड़ी है. इस की सुंदर शक्लसूरत को अब क्या हम चाटें. यह नीरज भी न जाने कैसे इसे पसंद कर बैठा,’’ मेरी सास मुझे और मेरे मायके वालों को लगातार बेइज्जत किए जा रही थीं और नीरज को भी कोसती जा रही थीं.

मेरी गलती बहुत बड़ी नहीं थी. आलूगोभी की सब्जी आंच पर रख कर मैं नहाने चली गई थी. मुझे ध्यान नहीं रहा और नहा कर आने के बाद में मोबाइल पर लग गई. तब तब सब्जी जल गई.

सासूजी ने वौक से लौटते ही मौके का फायदा उठाया और मुझे व मेरे मातापिता को जम कर कहना शुरू कर दिया.

मैं डाइनिंगटेबल से टे्र में कपप्लेट रख कर ला रही थी जब मेरे सब्र का बांध टूटा तो मारे गुस्से से मेरे हाथपैर कांपने लगे. क्रोध से उबलता खून हाथ में पकड़ी ट्रे को दीवार पर दे मारने के लिए मेरे मन को उकसा रहा था.

अपने गुस्से को काबू में रखने के लिए मुझे पूरी ताकत लगानी पड़ रही थी. मेरे अंदर चल रहे तूफान से अनजान सासूजी लगातार बोले जा रही थीं.

मैं ने अपनी नजरों को फर्श पर गड़ा लिया. अगर मैं उन की तरफ देखने लगती तो फिर कुछ भी अनहोनी घट सकती थी.

यह मेरी मजबूरी थी कि मैं अपनी सास को उलट कर जवाब नहीं दे सकती थी. उन के कड़वे, तीखे शब्द सुनते हुए अचानक मेरा सिर बुरी तरह से भन्नाया और मैं ने ट्रे जानबूझ कर हाथों से छोड़ दी.

कपप्लेट टूटने की आवाज ने मेरे मन में उठ रहे हिंसा के तूफान को कुछ कम किया. अगर मैं ऐसा न करती तो मुझे लग रहा था कि तेज गुस्से को दबाने के चक्कर में मेरे दिमाग की कोई नस जरूर फट जाएगी.

‘‘क्या हुआ. क्या हुआ?’’ ऐसा शोर मचाते मेरे ससुर, नेहा और नीरज भागते हुए रसोई में पहुंच गए.

मेरी सास की समझ में कुछ नहीं आया. वे हक्कीबक्की सी मेरी तरफ देख रही थीं. टूटे कपप्लेट देख कर मुझे भी अब घबराहट हो रही थी. इस कठिन समय में कालेज के दिनों में एक नाटक में किया अभिनय मेरे काम आया.

उस नाटक के एक दृश्य में मुझे बेहोश होने का अभिनय करना था. मैं ने उसी सीन को याद किया और आंखें मूंदने के बाद फर्श पर गिर पड़ी. सासूजी के जहरीले शब्दों की मार से बचने का मुझे उस वक्त यही रास्ता सूझ था.

मेरे घर वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच मेरी छवि ऐसी तेजतर्रार लड़की की है जो गलत और अन्यायपूर्ण बात को बिलकुल बरदाश्त नहीं करती. मुझे नाजायज दबाने की कोशिश इन सब को बड़ी महंगी पड़ती थी. फिर मैं अपनी सास के अन्याय को चुपचाप सहने को क्यों मजबूर हूं, इस के पीछे भी एक कहानी है.

गुस्से में किसी से भी भिड़ जाने की मेरी आदत से परेशान मेरी मां मुझे हमेशा समझती थीं, ‘‘अनु, दफ्तर में जा कर शांत रहियो. तेरी नई बौस खड़ूस है. तेरी सहेली ही कह रही थी. तू उस से बिलकुल मत उलझना. वह कुछ भी कहे पर तू पलट कर जवाब देना ही मत.’’

जब शादी की बात हुई और मैं नीरज को बुला कर लाई तो मां ने कदम हां कर दी और फिर सब हमारे घर आए थे. वहीं मां को पता चला कि नीरज के मांबाप पहले उसी बिल्डिंग में रहते थे जहां मेरी मौसी रहती हैं. मां ने मौसी से पता किया तो पता चला कि नीरज की मां जरूर थोड़ी तेजतर्रार हैं पर न उन्हें रीतिरिवाजों के ढकोसलों से मतलब है, न दहेज से.

मां ने कहां भी था, ‘‘तेरी सास भी तेरी बौस की तरह गुस्से वाली है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मां क्या मेरी बौस से कोई लड़ाई हुई है? यहां भी संभाल लूंगी.

‘‘मां, तुम मेरी इतनी फिक्र मत करो. मैं सब संभाल लूंगी. अगर मेरी सास सेर हैं तो मैं सवा सेर हूं. नाजायज दबाया जाना मैं न यहां बरदाश्त करती हूं, न वहां करूंगी,’’ मैं निडर, लापरवाह अंदाज में ऐसा जवाब देती तो मां की आंखों में गहरी चिंता के भाव उभर आते.

मगर मेरी शादी से महीनाभर पहले उन्हें दिल के हलके से दौरे का शिकार बना दिया. इस अवसर का पूरा फायदा उठाते हुए मां ने आईसीयू में पलंग पर लेटे हुए मुझ से एक बचन ले लिया था, ‘‘अनु, तेरी मुझे बहुत चिंता है. मैं चाहती हूं कि शादी के बाद तू अपनी ससुराल मेें बहुत सुखी रहे. बेटी, मेरे मन की शांति के लिए मुझे बचन दे कि तू अपनी सास को कभी पलट कर जवाब नहीं देगी. उन के सामने कभी अपनी आवाज ऊंची नहीं करेगी.’’

मां के स्वास्थ्य को ले कर उस वक्त मैं बहुत भावुक हो रही थी. बिना सोचेसमझे मैं ने मां को अपनी भावी सास के साथ कभी सीधे न टकराने का वचन दे दिया.

इंसान गलत बात का विरोध न कर सके तो ज्यादा परेशान रहता है. सासूजी की सहीगलत डांटफटकार को मां को दिए बचन के कारण मजबूरन खामोश रह कर सहना मुझे भी बहुत परेशान और दुखी कर रहा था.

यह बात गलत है कि चुप रहने से टेढ़ी सास का उस के साथ दुर्व्यवहार कम हो जाता है पर मेरी खामोशी ने मेरी सास को मुझे और मेरे मातापिता का अपमान करने की खुली छूट दे दी.

आज की घटना हम सब के लिए नई थी. मैं मानसिक तनाव के कारण बेहोश हो गई, इस गलत सोच के चलते सारा दिन सब ने मेरा बहुत ध्यान रखा. सासूजी ने मुझ पूरा दिन पलंग से उतरने नहीं दिया. ससुरजी मेरी कमजोरी दूर करने के लिए बाजार से 2 डब्बे जूस ले कर आए. नीरज लगातार मेरे पास बैठे मुझे प्यार से निहारते रहे थे.

कोई इंसान आसानी से अपना मूलभूत स्वभाव बदल नहीं सकता है. कोई 3-4 दिन सब ठीकठाक चला पर फिर मेरी सास ने अपने पुराने रंग में लौटना शुरू कर दिया.

कुछ दिन तक उन्होंने हिचकिचाते से अंदाज में मेरे साथ पुराने अंदाज में टोकाटाकी शुरू कर दी. जब उन्होंने देखा कि मैं सहीसलामत हूं तो उन्होंने गियर बदला और मेरे साथ उन का व्यवहार फिर पहले जैसा खराब और गलत होने लगा.

मुझे खासकर तब बहुत गुस्सा आता जब वे मौका मिलते ही मेरी पुरानी गलतियों का रोना शुरू कर देतीं. पता नहीं मुझे बातबेबात शर्मिंदा और बेइज्जत करने में उन्हें क्या मजा आता था.

मां को दिए वचन ने एक तरफ मेरा मुंह सिला हुआ था और दूसरी तरफ सासूजी के जहरीले शब्दों ने मेरी सुखशांति नष्ट कर रखी थी. तब बहुत तंग हो कर मैं ने एक रात अपनेआप से कहा कि अनु, ऐसे काम नहीं चलेगा. चींटी को दबाओ तो वह भी काट लेती है. तूने अपना बचाव नहीं किया तो पागल हो जाएगी.

अगले दिन ड्राइंगरूम और रसोई की साफसफाई को ले कर सासूजी ने मुझे शाम को डांटना शुरू किया. कुछ देर तक मैं चुपचाप सब सुनती रही, फिर चाय की ट्रे पकड़े हुए मैं ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया और अचानक झटके से रुक पत्थर की मूर्ति की तरह अपनी जगह खड़ी की खड़ी रह गई.

मेरी नजरें फर्श की तरफ झुकी थीं पूरे बदन में हलका सा कंपन होता दिख रहा था. इस कारण ट्रे में रखे कपप्लेट आपस में टकरा कर आवाज करने लगे.

उस वक्त वहां घर के सारे सदस्य मौजूद थे. मेरी अजीब सी मुद्रा देख कर उन सभी को मेरे अचानक बेहोश हो जाने वाली घटना जरूर याद आ गई होगी. तभी नेहा ने भाग कर मेरे हाथ से ट्रे ले ली और ससुरजी ने जोर से डांट कर मेरी सास को चुप करा दिया.

नीरज ने मुझे सहारा दे कर सोफे पर बैठाया. मैं सिर ?ाकाए गुमसुम सी बैठी रही.

‘‘कैसा महसूस कर रही हो?’’ मेरी सास को छोड़ कर हर व्यक्ति मुझ से बारबार यही सवाल पूछे जा रहा था.

मेरे ससुरजी ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ रख कर पूछा, ‘‘बहू चक्कर तो नहीं आ रहा है? क्या डाक्टर को बुलाएं?’’

मैं ने इनकार में सिर हिलाया और बड़े दुखी और अफसोस भरे लहजे में बोली, ‘‘पापा, मैं मम्मी को बहुत दुख देती हूं. मैं बहुत फूहड़ हूं. मुझे कुछ नहीं आता है.’’

‘‘नहींनहीं, तुम बिलकुल फूहड़ नहीं हो. अरे, धीरेधीरे तुम सब सीख जाओगी. अपने मन में किसी तरह की टैंशन मत रखो,’’ ससुरजी ने मुझे कोमल स्वर में सम?ाया.

मैं ने सासूजी की तरफ देखते हुए भावुक अंदाज में डायलौग बोलने चालू रखे, ‘‘मैं आप से

सबकुछ सीखना चाहती हूं मम्मीजी, पर मैं जब गलत काम कर रही होती हूं, जब मेरा काम आप को अधूरा लगता है, तब उसी वक्त आप मेरा मार्गदर्शन क्यों नहीं करती हैं?

‘‘सांप के निकल जाने के बाद आप जब लकीर पीटते हुए मुझ पर गुस्सा होती हैं तो मुझ बहुत दुख और अफसोस होता है. अपनेआप से नफरत सी होने लगती है.

‘‘फिर मुझ अपना सिर घूमता लगता है. जोर से चक्कर आने शुरू हो जाते हैं. आप मुझे तब कितना भी डांट लो जब मैं काम गलत ढंग से कर रही होती हूं पर बाद में डांट खाना…’’ रोआंसी सी हो कर मैं झटके से चुप हो गई. फिर मैं ने अपने हाथ फैलाए तो मेरी सासूजी को आगे बढ़ कर मुझे अपने बदन से लिपटाना पड़ा.

‘‘बहू बिलकुल ठीक कह रही है,’’ मेरे ससुरजी एकदम जोश से भर उठे, ‘‘सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटना बेवकूफी है. आगे से इस घर में कोईर् भी अगर किसी को कुछ समझाए या डांटे तो यह काम उसी वक्त हो जब काम चल रहा हो. बाद में गड़े मुरदे उखाड़ते हुए घर का माहौल खराब करने की किसी को कोई जरूरत नहीं है.’’

ससूरजी के विरोध में आवाज उठाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. मेरी आंखों में नजर आ रहे आंसुओं को देख कर मेरी सास का मन भी पसीजा और वे मुझे देर तक प्यार करती रहीं.

‘सांप के निकल जाने के बाद लकीर मत पीटो’ उस दिन के बाद से घर के अंदर यह वाक्य बहुत ज्यादा बोला जाने लगा.

कोई भी पुरानी बात उठा कर किसी से उलझने की कोशिश करता तो उसे फौरन यही वाक्य सुना कर चुप करा दिया जाता. मुझे इन शब्दों को बोलने की जरूरत नहीं पड़ती थी. मेरा तो पत्थर की मूर्ति वाली मुद्रा बना लेना ही काफी रहता और मेरी सास फौरन नारजगी भरे अंदाज में खामोश हो जाती थीं.

एक शाम उन्होंने मुझे सुबह देर से उठ कर आने के लिए डांटना चालू ही रखा तो उन्हें ससुरजी से जोरदार डांट पड़ गई.

‘‘मेरी इस घर में जो कोई इज्जत नहीं रह गई है उस के लिए सिर्फ आप जिम्मेदार हो,’’ सासूजी ने अपने पति से नाराजगी जाहिर करते हुए अचानक रोना शुरू कर दिया, ‘‘जिंदगीभर मुझ से यह इंसान कभी ढंग से नहीं बोला. कभी मुझे प्यार नहीं दिया.’’

‘‘यह शिकायत तब करना जब प्यार लेनेदेने का मौका सामने हो. मैं ने तुम्हारे सारे गिलेशिकवे दूर न कर दिए तो कहना. अरे, सांप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने की यह आदत तू न जाने कब छोड़ेगी.’’

ससुरजी के इस मजाक पर जब हम सब ठहाका मार कर हंसे तो मैं ने अपनी सासूजी का चेहरा पहली बार लाजशर्म से गुलाबी होते देखा.

‘‘बहू आ गई है घर में पर इन से ये घटिया मजाक नहीं छूटे,’’ सासूजी ने बुरा सा मुंह बनाया और फिर मेरे पीछे मुंह छिपा कर खूब हंसीं.

उस दिन के बाद से मेरी सास मेरी सहेली भी बन गई हैं. इस में कोई शक नहीं कि लकीर न पीटने के फौर्मूले ने हम सब के आपसी रिश्तों को मधुर बना कर घर के अंदर सुखशांति और हंसीखुशी को बढ़ा दिया है.

Navjot Singh Sidhu के निम-हल्दी से कैंसर ठीक होने वाले दावे पर मचा बवाल, इस अस्पताल के 262 डौक्टरों ने किया विरोध

Navjot Singh Sidhu: हाल ही में क्रिकेटर और कांग्रेस लीडर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने सोशल मीडिया पर कैंसर का देसी इलाज कच्ची हल्दी, नींबू पानी ,नीम के पत्ते और खट्टे फलों का सेवन बता कर यह दावा किया कि यह सब देसी इलाज करने के बाद उनकी पत्नी का ब्रैस्ट कैंसर जो चौथे स्टेज पर पहुंच गया था वह पूरी तरह ठीक हो गया और इसके बाद उनकी पत्नी पूरी तरह कैंसर से मुक्त हो गई हैं.

सिद्धू के अनुसार उनकी पत्नी की कैंसर से मुक्ति की वजह सही डाइट अनुशासन सही खानपान है ना कि दवाइयां और अस्पताल में किया गया सही इलाज है. सिद्धू के इस दावे ने मेडिकल की दुनिया में तहलका मचा दिया क्योंकि यह दावा पूरी तरह बिल्कुल गलत है. कैंसर जैसी भयानक बीमारी का इलाज यह देसी नुस्खे नहीं बल्कि सही ट्रीटमेंट है, जो न सिर्फ कैंसर को फैलने से रोकता है बल्कि अगर सही समय पर इलाज हो जाए तो कैंसर खत्म होने के लिए भी कारगर सिद्ध होता है.

इसी महत्वपूर्ण बात को मद्दे नजर रखते हुए टाटा मेमोरियल अस्पताल के 262 डौक्टरों ने एक बयान पर हस्ताक्षर करके लोगों के बीच जारी किया है इस बयान में अस्पताल प्रशासन ने साफसाफ कहा है कि नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा दिया गया यह बयान कैंसर मरीजों को गुमराह कर रहा है, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी सिर्फ और सिर्फ इलाज से ठीक होती है ना कि देसी टोटके से.

टाटा अस्पताल के 262 औकोलौजिस्ट द्वारा साइन किया गया प्रमाण पत्र जिसमें साफसाफ लिखा है कि हमारा लोगों से आग्रह है सिद्धू द्वारा दिए गए अप्रमाणित उपाय का पालन करके अपने उपचारों में देरी कर के अपने आप को मुसीबत में ना डाले .और कैंसर जैसी बीमारी को और ज्यादा फैलने का निमंत्रण ना दें.

क्योंकि अगर समय रहते कैंसर के लक्षण डौक्टरों द्वारा पकड़ लिए गए तो इसका इलाज संभव है जिसके लिए उपचारों में रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी, और सर्जरी शामिल है. कैंसर का इलाज समय रहते करे. व्यर्थ के प्रयोग करके अपनी जान जोखिम में ना डालें.

‘उनकी गर्लफ्रैंड्स को जो चाहा वो नहीं मिला’ Aditya Pancholi के अफेयर पर पत्नी जरीना ने तोड़ी चुप्पी

बौलीवुड के विवादित कपल आदित्य पंचोली (Aditya Pancholi) और जरीना वहाब (Zarina Wahab) एक बार फिर से चर्चे में छाए हुए हैं. दरअलस जरीना ने फिर अपने पति के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान अपने पर्सनल लाइफ को लेकर खुलकर बात की है. जरीना ने अपने पति आदित्य पंचोली के अफेयर और उन पर लगे इल्जामों पर भी अपनी राय दी है.

पत्नी जरीना ने लिया आदित्य पंचोली का पक्ष

एक इंटरव्यू के दौरान जरीना ने अपने पति का पक्ष लिया है. हालांकि लोगों को उनकी इस बात से हैरानी है कि वह आदित्य पंचोली के बारे में सारी सच्चाई जानते हुए भी पति का पक्ष लिया. जरीना के इस इंटरव्यू से फैंस को इस बात से हैरानी है कि वह अपने पति की सच्चाई जानते हुए भी उनका पक्ष ले रही हैं.

जरीना को पता था कि आदित्य का बाहर अफेयर है

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जरीना वहाब ने इंटरव्यू के दौरान बताया कि उन्हें पता था कि आदित्य का बाहर अफेयर है, वह ये बात अच्छे से जानती थी कि उनके पति की बाहर गर्लफ्रेंड हैं. वह आगे कहती है कि लेकिन मैंने इस बारे में उनसे सवाल पूछना जरूरी नहीं समझा, बस मैं ये देखती थी कि घर पर उनका बर्ताव मेरे साथ कैसा है, वह मुझे कैसे रख रहे हैं.

आदित्य की गर्लफ्रैंड्स को वो नहीं मिला, जो चाहती थी

जरीना ने आगे कहा कि मेरे पति बेहद प्यारे हैं वह तो कभी मुझे डांट भी नहीं लगाते हैं, बल्कि मैं ही उन्हें डांट देती हूं. उनकी गर्लफ्रैंड्स ने उनपर आरोप इसलिए लगाया क्योंकि जो वह चाहती थी वो नहीं मिला.
आपको बता दें कि आदित्य का नाम कंगना रनौत  और पूजा बेदी से भी जुड़ा था. इस बात पर जरीना ने कहा कि मैं कंगना के साथ हमेशा से सही रही हूं. वह कई बार मेरे घर आईं. आदित्य भी उनके साथ सही रहते थे. लेकिन मुझे ये पता नहीं, कब उनके साथ चीजें खराब हुई. जरीना ने आदित्य को अच्छे पिता और पति बताया.

आदित्य हैं गुड लुकिंग ऐक्टर

इस इंटरव्यू के दौरान जरीना से ये भी पूछा गया कि आदित्य कैसे ऐक्टर हैं? जरीना ने जवाब में ये कहा कि आदित्य अपने समय के शानदार अभिनेता हैं. लेकिन इंडस्ट्री में आदित्य को वह जगह नहीं मिली, जिसके वह हकदार थे.

जरीना ने आदित्य के काम को लेकर ये भी बताया कि उस समय काफी सारे ऐक्टर आदित्य के साथ काम करने से मना करते थे. आदित्य को ये सुनने को मिलता था कि मैं तेरे साथ काम करूंगा, तो मुझे कौन देखेगा? इतना ही नहीं, जरीना ने आदित्य के लुक को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा कि वह बहुत गुड लुकिंग ऐक्टर हैं. लेकिन अभी उन्होंने काम करना बंद कर दिया है.

Romantic Story : जबजब वह मुसकराए

लेखक- विनयचंद्र मौर्या

Romantic Story: मेरी डेटिंग को अभी 2 साल ही हुए हैं परंतु लगता है कि  पता नहीं कितनी पुरानी बात हो गई है. बौयफ्रैंड बनने से पहले की निश्चित जिंदगी के बारे में सोचने के लिए जब दिमाग पर जोर डालता हूं, तभी गर्लफ्रैंड का गुस्से से भरा डांटताफटकारता चेहरा सामने घूमने लगता है. इस के अलावा तो अब कुछ भी याद नहीं आता. पता नहीं किस वजह से मैं ने उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट फेसबुक पर भेज दी और मैं ने क्यों मान ली. हम दोनों एक ही शहर के थे इसलिए रीयल बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड बन गए. न शायद उसे और कोई घास डाल रहा था, न मुझे.

मगर फिर भी जिस तरह कांटों में रहने वाले लोग लगातार वहां रहतेरहते कांटों में सुख का अनुभव करने लगते हैं, उसी तरह मैं भी उस के रूखे चेहरे को देखने का इतना अभ्यस्त हो चुका हूं कि मु?ो उस के इसी रूप में असीम शांति तथा तसल्ली मिलती है. वह भी शायद अपने घर में कम मुसकराने का प्रण कर पैदा हुई थी. फिर भी वह जबजब मुसकराई है, तबतब मेरा बंटाधार ही हुआ है. उस की यदाकदा मुसकराहटों को भी बड़ी मुश्किल से झेल सका हूं.

पहली बार वह तब मुसकराई थी जब दूसरी रेस्तरां में मिले थे. वह सब से महंगी मुसकराहट साबित हुई क्योंकि गदगद हो कर उसी वक्त मैं उसे गर्लफ्रैंड बनने को प्रपोज कर बैठा, जिस की सजा आज तक भुगत रहा हूं और उस की पहली मुसकराहट मेरी फूल सी लहलहाती जिंदगी पर तुषारापात कर गई.

फ्रैंड बनने के 4 दिन बाद वह फिर मुसकराई और बोली, ‘‘एके, ….. वैकेशन मनाने ऊटी चलेंगे?’’

मेरे शांत हृदय में तूफान मचाने के लिए इतना काफी था. मैं हतप्रभ तथा ठगाठगा सा उस की मुसकराहट में बह गया. होंठ कुछ बोलने से पहले ही सिल गए. चुपचाप उलटे पैर अपने अजीज दोस्त के घर गया और उस के पैर पकड़ लिए. तब तक पैर नहीं छोड़े जब तक बतौर कर्ज 25 हजार रुपए नहीं ले लिए. होश तो अब आया जब 3 दिन में ही मुसकराहट का सारा नशा खत्म हो गया. मालूम पड़ा जैसे आसमान से सीधा दलदल में गिरा हूं. गनीमत थी कि वैकेशन के 4 दिनों के दौरान फ्रैंड एक दिन भी नहीं मुसकराई.

2 सप्ताह बाद एक बार मौल में इस के साथ घूम रहा था. मौसम कुछ आशिकाना था. मौल में रोमांटिक गाने की धुन बज रही था कि अचानक वह मुसकराई. तब तक मैं पुरानी मुसकराहट का हश्र कुछकुछ भूल चुका था, इसलिए अनजाने में फिर बह गया. उस का इशारा ड्रैस की दुकान की तरफ था. मैं सम्मोहित सा उस के पीछेपीछे था. कुछ होश ही नहीं था कि वह क्या ले रही है. पता नहीं मैं किस मदहोशी में डूबा था और वह साडि़यों पर साडि़यां पलटती जा रही थी.

थोड़ी देर बाद उस ने लाल रंग की एक औफशोल्डर ड्रैस मुझे दिखाई. मैं ने पता नहीं किस मूड में गरदन हिला दी. बस, फिर क्या था? ड्रैस पैक हो कर आ गई. मैं सब बातों से बेखबर फ्रैंड को एकटक देखे जा रहा था कि जालिम दुकानदार ने लाइन काट दी. मेरी तंद्रा उस समय टूटी जब देखा कि वह फ्रैंड का बिल मुझे दे रहा है. मेरा दिमाग ठनका. बिल देखते ही पसीना छूटने लगा. दुकानदार शादीशुदा था, सारा माजरा समझ गया. वह तुरंत भागता हुआ एक गिलास ठंडा पानी ले आया. पानी पी कर मैं थोड़ा संयत हुआ. फिर बिल देखा, पूरे क्व7 हजार रुपए का था. फ्रैंड की तरफ देखा, चेहरे से मुसकराहट गायब थी. जेब में हाथ डाला क्रैडिट कार्ड निकाला. उस ने स्काइप किया तो डिकलाइन हो गया. वह तो भला हो उस दुकानदार का, जो परिचित निकला. किसी तरह इज्जत बच गई और अगले दिन भुगतान कर आया पर क्व1 हजार महीने की ईएमआई आज भी चुका रहा हूं.

इसी तरह 2 या 4 सप्ताह में वह कभीकभार मुसकरा कर मुझ पर वज्रपात करती रही, मेरी कमर टूटती रही. अब हालत यह है कि मुझे उस की मुसकराहट से बड़ा खौफ सा लगता है. फ्रैंड की मुसकराहट झेलने का बूता अब मुझ में नहीं बचा है. जब भी किसी बाग या रेस्तरां में मिलते हैं चोरों की तरह दबे पांव पीछे से झांक कर यह तसल्ली कर लेता हूं कि कहीं वह मुसकराने के मूड में तो नहीं है. फिर अचानक गर्लफ्रैंड का तमतमाया तथा गुस्से से फूला चेहरा देख कर काफी तसल्ली और शांति के साथ उस से गले मिलन करता हूं कुछ जलीकटी सुनने को. वह सुनाती है, मैं सुनता रहता हूं. वाह, क्या आनंद है. गर्लफ्रैंड की गालियां भी फेसबुक पोस्ट पर लाइक्स लगती हैं.

किंतु यह आनंदमय जीवन ज्यादा समय तक टिक नहीं सका. इस में एक भयंकर तूफान आ गया. हुआ यह कि मैं एक दिन औफिस से बदहवास सा बाइक पर घर जा रहा था कि दूर चौराहे से देखा कि मेरी फ्रैंड एक बस स्टैंड पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही है. मैं चौंका, ‘अरे यह नया करिश्मा कैसा?’ चश्मे की धूल कमीज से पोेंछते हुए फिर देखा. फ्रैंड ही थी परंतु जान नहीं पाया कि किस मूड में है. अनिष्ट की आशंका से दिल डूबने सा लगा. तय नहीं कर सका कि उस तरफ बढ़ूं या कहीं भाग जाऊं. काफी देर पसोपेश में खड़ा सोचता रहा. वह फ्रैंड थी कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थी. दिल को मजबूत, सांत्वना तथा दिलासा दे कर संभाला. किसी तरह मन को झूठी तसल्ली दे कर उस की तरफ बढ़ने का फैसला कर लिया. दिल रहरह कर धड़क उठता था. किंतु मैं था कि वीरों की तरह मौत की तरफ बढ़ता जा रहा था.

बस स्टैंड गेट आ गया था परंतु गर्लफ्रैंड की तरफ मुंह उठा कर देखने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. अभी सिर्फ सिर झुका कर बाइक को स्टैंड पर खड़ा किया ही था कि जिस का डर था वही हो गया. निगाहें न चाहते हुए भी उस के चेहरे की तरफ उठ गई थीं. फिर जो देखा उसे शब्दों में बयां करना मेरे लिए संभव नहीं है. मेरा तनबदन कांपने लगा. बदहवासी में हैंडल हाथ से छूट गया, ब्रीफकेस जमीन पर एक ओर गिर पड़ा, वह मुसकरा रही थी.

मैं जड़वत जहां का तहां खड़ा रह गया. पैर बढ़ाने की हिम्मत नहीं बटोर पा रहा था. दिल में अजीब से विचार उठ रहे थे. उस तरफ बड़ी ही कातर दृष्टि से देखा. वह अभी भी मुसकरा रही थी. उफ, आज क्या होग? मेरे मुंह से अनायास निकल गया. इतनी लंबी मुसकान किस कदर कहर बरपाएगी इस का अंदाज मु?ो लगने लगा था. वह शायद मेरी दयनीय दशा को भांप गई थी, सो एक प्यारी सी मुसकान बिखेरती हुई स्टैंड पर लगी बैंच पर बैठ गई. थोड़ा संयत होने पर मैं सामान बटोरने में लग गया.

धड़कते दिल से स्टैंड के अंदर घुसा. कदम फूंकफूंक कर रख ही रहा था कि अचानक  जोर की आवाज के साथ मैं इतनी जोर से चौंका कि गिरतेगिरते बचा. देखा कि स्टैंड पर 2 बच्चे बैठे थे. मैं कुछ समझ पाता इस से पहले बच्चों की एक फौज कमरे में घुस आई. मालूम हुआ कि मेरी गर्लफ्रैंड की शादीशुदा बहनें अपने 2-2 बच्चों के साथ 1 महीने की छुट्टियां मनाने आई हैं. अब मैं फ्रैंड की मुसकराहट का रहस्य समझ गया था. मुझे उन बच्चों और उन की मांओं की खातिरदारी 4 दिन फ्रैंड का साथ देना था.

4 दिनभर की मेहमाननवाजी ने किन विषम तथा संकटपूर्ण आर्थिक समस्याओं के सम्मुख खड़ा कर दिया, इस का ब्योरा देना तो मुश्किल है पर इतना जरूर बताऊंगा कि इजराइली सेना ने इतनी निर्ममता से फिलिस्तिनियों को नहीं कुचला होगा, जितना कि बच्चों ने कूच करने से पहले मेरे पास, मेरी बाइक और मेरी नींद को कुचला. शायद यह सेना मेरा एकएक सामान (जो कुछ भी था) जब्त करने का लक्ष्य बना कर ही आई थी. उसे उस ने बड़ी आसानी से कर भी दिखाया. मैं बेबस और असहाय सा सब देखता रह गया. मेरा मोबाइल गया. मेरा आई पैड गया. मेरी हैल्थ वाच गई, पारकर का पैन गया. गौगल्स गए.

फिर भी कभीकभी सोचता हूं कि गनीमत है जो कुदरत ने असीम कृपा कर मुझे कम मुसकराने वाली फ्रैंड दी वरना मैं क्व3 हजार महीना कमाने वाला क्लर्क आज चौराहे पर बड़ा सा कटोरा लिए घूम रहा होता. भविष्य के बारे में तो कुछ कह नहीं सकता, पर अभी तक ऐसी नौबत नहीं आ पाई है.

खुली छत: कैसे पतिपत्नी को करीब ले आई घर की छत

रमेश का घर ऐसे इलाके में था जहां हमेशा ही बिजली रहती थी. इसी इलाके में राजनीति से जुड़े बड़ेबड़े नेताओं के घर जो थे. पिछले 20 सालों से रमेश अपने इसी फ्लैट में रह रहा है. 15 वर्ष मातापिता साथ थे और अब 5 वर्षों से वह अपनी पत्नी नीना के साथ था. उन का फ्लैट बड़ा था और साथ ही 1 हजार फुट का खुला क्षेत्र भी उन के पास था.

7वीं मंजिल पर उन के पास इतनी खुली जगह थी कि लोग ईर्ष्या कर उठते थे कि उन के पास इतनी ज्यादा जगह है.

रमेश के पिता का बचपन गांव में बीता था और उन्हें खुली जगह बहुत अच्छी लगती थी. रिटायर होने से पहले उन्होंने इसी फ्लैट को चुना था, क्योंकि इस में उन के हिस्से इतना बड़ा खुला क्षेत्र भी था. दोस्तों और रिश्तेदारों ने उन्हें समझाया था कि इस उम्र में 7वीं मंजिल पर घर लेना ठीक नहीं है. यदि कहीं लिफ्ट खराब हो गई तो बुढ़ापे में क्या करोगे पर उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी थी और 1 लाख रुपए अधिक दे कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

पत्नी ने भी शिकायत की थी कि अब बुढ़ापे में इतनी बड़ी जगह की सफाई करना उन के बस की बात नहीं है. नौकरानियां तो उस जगह को देख कर ही सीधेसीधे 100 रुपए पगार बढ़ा देतीं. पर गोपाल प्रसाद बहुत प्रसन्न रहते. उन की सुबह और शामें उसी खुली छत पर बीततीं. सुबह का सूर्योदय, शाम का पहला तारा, पूर्णिमा का पूरा चांद, अमावस्या की घनेरी रात और बरसात की रिमझिम फुहारें उन्हें रोमांचित कर जातीं.

उस छत पर उन्होंने एक छोटा सा बगीचा भी बना लिया था. उन के पास 50 के करीब गमले थे, जिस में  तुलसी, पुदीना, हरी मिर्च, टमाटर, रजनीगंधा, बेला, गुलाब और गेंदा आदि सभी तरह के पौधे लगा रखे थे. हर पेड़पौधे से उन की दोस्ती थी. जब वह उन को पानी देते तो उन से मन ही मन बातें भी करते जाते थे. यदि किसी पौधे को मुरझाया हुआ देखते तो बड़े प्यार से उसे सहलाते और दूसरे दिन ही वह पौधा लहलहा उठता था. वह जानते थे कि प्यार की भाषा को सब जानते हैं.

मातापिता के गुजर जाने के बाद से घर की वह छत उपेक्षित हो गई थी. रमेश और नीना दोनों ही नौकरी करते थे. सुबह घर से निकलते तो रात को ही घर लौटते. ऐसे में उन के पास समय की इतनी कमी थी कि उन्होंने कभी छत वाला दरवाजा भी नहीं खोला. गमलों के पेड़पौधे सभी समाप्त हो चुके थे. साल में एक बार ही छत की ठीक से सफाई होती. उन का जीवन तो ड्राइंगरूम तक ही सिमट चुका था. छुट्टी वाले दिन यदि यारदोस्त आते तो बस, ड्राइंगरूम तक ही सीमित रहते. छत वाले दरवाजे पर भी इतना मोटा परदा लटका दिया था कि किसी को भी पता नहीं चलता कि इस परदे के पीछे कितनी खुली जगह है.

नीना भी पूरी तरह से शहरी माहौल में पली थी, इसलिए उसे कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि उस के ससुर उन के लिए कितना अमूल्य खजाना छोड़ गए हैं. काम की व्यस्तता में दोनों ने परिवार को बढ़ाने की बात भी नहीं सोची थी पर अब जब रमेश को 40वां साल लगा और उसे अपने बालों में सफेदी झलकती दिखाई देने लगी तो उस ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया. अब नीना भी उस से सहमत थी, पर अब वक्त उन का साथ नहीं दे रहा था. नीना को गर्भ ठहर ही नहीं रहा था. डाक्टरों के भी दोनों ने बहुत चक्कर लगा लिए. काफी दवाएं खाईं. डी.एम.सी. कराई. स्पर्म काउंट कराया. काम के टेंशन के साथ अब एक नया टेंशन और जुड़ गया था. दोनों की मेडिकल रिपोर्ट ठीक थी फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. अब उन के डाक्टरों की एक ही सलाह थी कि आप दोनों तनाव में रहना छोड़ दें. आप दोनों के दिमाग में बच्चे की बात को ले कर जो तनाव चल रहा है वह भी एक मुख्य कारण हो सकता है आप की इच्छा पूरी न होने का.

इस मानसिक तनाव को दूर कैसे किया जाए? इस सवाल पर सब ओर से सलाह आती कि मशीनी जिंदगी से बाहर निकल कर प्रकृति की ओर जाओ. अपनी रोजमर्रा की पाबंदियों से निकल कर मुक्त सांस लेना सीखो. कुछ व्यायाम करो, प्रकृति के नजदीक जाओ आदि. लोगों की सलाह सुन कर भी उन दोनों की समझ में नहीं आता था कि इन पर अमल कैसे किया जाए.

इसी तरह की तनाव भरी जिंदगी में वह रात उन के लिए एक नया संदेश ले कर आई. हुआ यों कि रात को 1 बजे अचानक ही बिजली चली गई. ऐसा पहली बार हुआ था. ऐसी स्थिति से निबटने के लिए वे दोनों पतिपत्नी तैयार नहीं थे, अब बिना ए.सी. और पंखे के बंद कमरे में दोनों का दम घुटने लगा. रमेश उठा और अपने मोबाइल फोन की रोशनी के सहारे छत के दरवाजे के ताले की चाबी ढूंढ़ी और दरवाजा खोला. छत पर आते ही जैसे सबकुछ बदल गया.

खुली छत पर मंदमंद हवा के बीच चांदनी छिटकी हुई थी. आधा चंद्रमा आकाश के बीचोंबीच मुसकरा रहा था. रमेश अपनी दरी बिछा कर सो गया. उस ने अपनी खुली आंखों से आकाश को, चांद को और तारों को निहारा. आज 20-25 वर्षों बाद वह ऐसे खुले आकाश के नीचे लेटा था. वह तो यह भी भूल चुका था कि छिटकी हुई चांदनी में आकाश और धरती कैसे नजर आते हैं.

बिजली जाने के कारण ए.सी. और पंखों की आवाज भी बंद थी. चारों ओर खामोशी छाई हुई थी. उसे अपनी सांस भी सुनाई देने लगी थी. अपनी सांस की आवाज सुननेके लिए ही वह आतुर हो उठा. रमेश को लगा, जिन सांसों के कारण वह जीवित है उन्हीं सांसों से वह कितना अपरिचित है. इन्हीं विचारों में भटकतेभटकते उसे लगा कि शायद इसे ही ध्यान लगाना कहते हैं.

उस के अंदर आनंद का इतना विस्तार हो उठा कि उस ने नीना को पुकारा. नीना अनमने मन से बाहर आई और रमेश के साथ उसी दरी पर लेट गई. रमेश ने उस का ध्यान प्रकृति की इस सुंदरता की ओर खींचा. नीना तो आज तक खुले आकाश के नीचे लेटी ही नहीं थी. वह तो यह भी नहीं जानती थी कि चांदनी इतनी धवल भी होती है और आकाश इतना विशाल. अपने फ्लैट की खिड़की से जितना आकाश उसे नजर आता था बस, उसी परिधि से वह परिचित थी.

रात के सन्नाटे में नीना ने भी अपनी सांसों की आवाज को सुना, अपने दिल की धड़कन को सुना, बरसती शबनम को महसूस किया और रमेश के शांत चित्त वाले बदन को महसूस किया. उस ने महसूस किया कि तनाव वाले शरीर का स्पर्श कैसा अजीब होता है और शांत चित्त वाले शरीर का स्पंदन कैसा कोमल होता है. दोनों को मानो अनायास ही तनाव से छुटकारा पाने का मंत्र हाथ लग गया.

वह रात दोनों ने आंखों ही आंखों में बिताई. रमेश ने मन ही मन अपने पिता को इस अनमोल खजाने के लिए धन्यवाद दिया. आज पिता के साथ गुजारी वे सारी रातें उसे याद हो आईं जब वह गांव में अपने पिता के साथ लेट कर सुंदरता का आनंद लेता था. पिता और दादा उसे तारों की भी जानकारी देते जाते थे कि उत्तर में वह ध्रुवतारा है और वे सप्तऋषि हैं और  यह तारा जब चांद के पास होता है तो सुबह के 3 बजते हैं और भोर का तारा 4 बजे नजर आता है. आज उस ने फिर से वर्षों बाद न केवल खुद भोर का तारा देखा बल्कि पत्नी नीना को भी दिखाया.

प्रकृति का आनंद लेतेलेते कब उन की आंख लगी वे नहीं जान पाए पर सुबह सूर्यदेव की लालिमा ने उन्हें जगा दिया था. 1 घंटे की नींद ले कर ही वे ऐसे तरोताजा हो कर उठे मानो उन में नए प्राण आ गए हों.

अब तो तनावमुक्त होने की कुंजी उन के हाथ लग गई. उसी दिन उन्होंने छत को धोपोंछ कर नया जैसा बना दिया. गमलों को फिर से ठीक किया और उन में नएनए पौधे रोप दिए. बेला का एक बड़ा सा पौधा लगा दिया. रमेश तो अपने अतीत से ऐसा जुड़ा कि आफिस से 15 दिन की छुट्टी ले बैठा. अब उन की हर रात छत पर बीतने लगी. जब अमावस्या आई और रात का अंधेरा गहरा गया, उस रात को असंख्य टिमटिमाते तारों के प्रकाश में उस का मनमयूर नाच उठा.

धीरेधीरे नीना भी प्रकृति की इस छटा से परिचित हो चुकी थी और वह भी उन का आनंद उठाने लगी थी. उस ने  भी आफिस से छुट्टी ले ली थी. दोनों पतिपत्नी मानो एक नया जीवन पा गए थे. बिना एक भी शब्द बोले दोनों प्रकृति के आनंद में डूबे रहते. आफिस से छुट्टी लेने के कारण अब समय की भी कोई पाबंदी उन पर नहीं थी.

सुबह साढ़े 4 बजे ही पक्षियों का कलरव सुन कर उन की नींद खुल जाती. भोर के टिमटिमाते तारों को वे खुली आंखों से विदा करते और सूर्य की अरुण लालिमा का स्वागत करते. भोर के मदमस्त आलम में व्यायाम करते. उन के जीवन में एक नई चेतना भर गई थी.

छत के पक्के फर्श पर सोने से दोनों की पीठ का दर्द भी गायब हो चुका था अन्यथा दिन भर कंप्यूटर पर बैठ कर और रात को मुलायम गद्दों पर सोने से दोनों की पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगी थी. अनायास ही शरीर को स्वस्थ रखने का गुर भी वे सीख गए थे.

ऐसी ही एक चांदनी रात की दूधिया चांदनी में जब उन के द्वारा रोपे गए बेला के फूल अपनी मादक गंध बिखेर रहे थे, उन दोनों के शरीर के जलतत्त्व ने ऊंची छलांग मारी और एक अनोखी मस्ती के बाद उन के शरीरों का उफान शांत हो गया तो दोनों नींद के गहरे आगोश में खो गए थे. सुबह जब वे उठे तो एक अजीब सा नशा दोनों पर छाया हुआ था. उस आनंद को वे केवल अनुभव कर सकते थे, शब्दों में उस का वर्णन हो ही नहीं सकता था.

अब उन की छुट्टियां खत्म हो गई थीं और उन्होंने अपनेअपने आफिस जाना शुरू कर दिया था. फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गई थी पर अब आफिस से आने के बाद वे खुली छत पर टहलने जरूर जाते थे. दिन हफ्तों के बाद महीनों में बीते तो नीना ने उबकाइयां लेनी शुरू कर दीं. रमेश पत्नी को ले कर फौरन डाक्टर के पास दौड़े. परीक्षण हुआ. परिणाम जान कर वे पुलकित हो उठे थे. घर जा कर उसी खुली छत पर बैठ कर दोनों ने मन ही मन अपने पिता को धन्यवाद दिया था.

पिता की दी हुई छत ने उन्हें आज वह प्रसाद दिया था जिसे पाने के लिए वह वर्षों से तड़प रहे थे. यही छत उन्हें प्रकृति के निकट ले आई थी. इसी छत ने उन्हें तनावमुक्त होना सिखाया था. इसी छत ने उन्हें स्वयं से, अपनी सांसों से परिचित करवाया था. वह छत जैसे उन की कर्मस्थली बन गई थी. रमेश ने मन ही मन सोचा कि यदि बेटी होगी तो वह उस का नाम बेला रखेगा और नीना ने मन ही मन सोचा कि अगर बेटा हुआ तो उस का नाम अंबर रखेगी, क्योंकि खुली छत पर अंबर के नीचे उसे यह उपहार मिला था.

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