बोया पेड़ बबूल का- भाग 3: क्या संगीता को हुआ गलती का एहसास

मैं अपना सारा सामान समेट कर मायके चली आई और मां को झूठीसच्ची कहानी सुना कर उन की सहानुभूति बटोर ली.

मां को जब इन सब बातों का पता चला तो उन्होंने संदीप को जम कर फटकारा और उधर मैं अपनी सफलता पर आत्मविभोर हो रही थी. भैया ने तो यहां तक कह डाला कि यदि उस ने दोबारा कभी फोन करने की कोशिश की तो वह दहेज उत्पीड़न के मामले में उलझा कर सीधे जेल भिजवा देंगे. इस तरह मैं ने संदीप के लिए जमीन का ऐसा कोई कोना नहीं छोड़ा जहां वह सांस ले सके.

एक दिन रसोई में काम करते हुए भाभी ने कहा, ‘संगीता, तुम्हारा झगड़ा अहं का है. मेरी मानो तो कुछ सामंजस्य बिठा कर वहीं चली जाओ. सच्चे अर्थों में वही तुम्हारा घर है. संदीप जैसा घरवर तुम्हें फिर नहीं मिलेगा.’

‘तुम कौन होती हो मुझे शिक्षा देने वाली. मैं तुम पर तो बोझ नहीं हूं. यह मेरी मां का घर है. जब तक चाहूंगी यहीं रहूंगी.’

उस दिन के बाद भाभी ने कभी कुछ नहीं कहा.

वक्त गुजरता गया और उसी के साथ मेरा गुस्सा भी ठंडा पड़ने लगा. मेरी मां का वरदहस्त मुझ पर था. मैं ने इसी शहर में अपना तबादला करा लिया.

एक दिन पिताजी ने दुखी हो कर कहा था, ‘संगीता, जिन संबंधों को बना नहीं सकते उन्हें ढोने से क्या फायदा. इस से बेहतर है कि कानूनी तौर पर अलग हो जाओ.’

इस बात का मां और भैया ने जम कर विरोध किया.

मां का कहना था कि यदि मेरी बेटी सुखी नहीं रह सकती तो मैं उसे भी सुखी नहीं रहने दूंगी. तलाक देने का मतलब है वह जहां चाहे रहे और ऐसा मैं होने नहीं दूंगी.

मुझे भी लगा यही ठीक निर्णय है. पिताजी इसी गम में दुनिया से ही चले गए और साल बीततेबीतते मां भी नहीं रहीं. मैं ने कभी सोचा भी न था कि मैं भी कभी अकेली हो जाऊंगी.

मैं ने अब तक अपनेआप को इस घर में व्यवस्थित कर लिया था. सुबह भाभी के साथ नाश्ता बनाने के बाद कालिज चली जाती. शाम को मेरे आने के बाद वह बच्चों में व्यस्त हो जातीं. मैं मन मार कर अपने कमरे में चली जाती. भैया के आने के बाद ही हम लोग पूरे दिन की दिनचर्या डायनिंग टेबल पर करते. मेरा उन से मिलना बस, यहीं तक सिमट चुका था.

जयपुर के निकट एक गांव में पति द्वारा पत्नी पर किए गए अत्याचारों की घटना की उस दिन बारबार टीवी पर चर्चा हो रही थी. खाना खाते हुए भैया बोले, ‘ऐसे व्यक्तियों को तो पेड़ पर लटका कर गोली मार देनी चाहिए.’

‘तुम अपना खाना खाओ,’ भाभी बोलीं, ‘यह काम सरकार का है, उसे ही करने दो.’

‘सरकार कुछ नहीं करती. औरतों को ही जागरूक होना चाहिए. अपनी संगीता को ही देख लो, संदीप को ऐसा सबक सिखाया है कि उम्र भर याद रखेगा. तलाक लेना चाहता था ताकि अपनी जिंदगी मनमाने ढंग से बिता सके. हम उसे भी सुख से नहीं रहने देंगे,’ भैया ने तेज स्वर में मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘क्यों संगीता.’

‘तुम यह क्यों भूलते हो कि उसे तलाक न देने से खुद संगीता भी कभी अपना घर नहीं बसा सकती. मैं ने तो पहले ही इसे कहा था कि इस खाई को और न बढ़ाओ. तब मेरी सुनी ही किस ने थी. वह तो फिर भी पुरुष है, कोई न कोई रास्ता तो निकाल ही लेगा. वह अकेला रह सकता है पर संगीता नहीं.’

‘मैं क्यों नहीं घर बसा सकती,’ मैं ने प्रश्नवाचक निगाहें भाभी पर टिका दीं.

‘क्योंकि कानूनी तौर पर बिना उस से अलग हुए तुम्हारा संबंध अवैध है.’

भाभी की बातों में कितना कठोर सत्य छिपा हुआ था यह मैं ने उस दिन जाना. मुझे तो जैसे काठ मार गया हो.

उस रात नींद आंखों से दूर ही रही. मैं यथार्थ की दुनिया में आ गिरी. कहने के लिए यहां अपना कुछ भी नहीं था. मैं अब अपने ही बनाए हुए मकड़जाल में पूरी तरह फंस चुकी थी.

इस तनाव से मुक्ति पाने के लिए मैं ने एक रास्ता खोजा और वहां से दूर रहने लायक एक ठिकाना ढूंढ़ा. किसी का कुछ नहीं बिगड़ा और मैं रास्ते में अकेली खड़ी रह गई.

मेरी जिंदगी की दूसरी पारी शुरू हो चुकी थी. जाने वह कैसी मनहूस घड़ी थी जब मां की बातों में आ कर मैं ने अपना बसाबसाया घर उजाड़ लिया था. फिर से जिंदगी जीने की जंग शुरू हो गई. मैं ने संदीप को ढूंढ़ने का निर्णय लिया. जितना उसे ढूंढ़ती उतना ही गम के काले सायों में घिरती चली गई.

उस के आफिस के एक पुराने कुलीग से मुझे पता चला कि उस दिन जो युवती संदीप से मिलने घर आई थी वह उस के विभाग की नई हेड थी. संदीप चाहता था कि उसे अपना घर दिखा सके ताकि कंपनी द्वारा दी गई सुविधाओं को वह भी देख सके. किंतु उस दिन की घटना के बाद मैं ने फोन से जो कीचड़ उछाला था वह संदीप की तरक्की के मार्ग को बंद कर गया. वह अपनी बदनामी का सामना नहीं कर पाया और चुपचाप त्यागपत्र दे दिया. यह उस का मुझ से विवाह करने का इनाम था.

फिर तो मैं ने उसे ढूंढ़ने के सारे यत्न किए, पर सब बेकार साबित हुए. मैं चाहती थी एक बार मुझे संदीप मिल जाए तो मैं उस के चरणों में माथा रगड़ूं, अपनी गलती के लिए क्षमा मांगूं, लेकिन मेरी यह इच्छा भी पूरी नहीं हुई. न जाने किस सुख के प्रलोभन के लिए मैं उस से अलग हुई. न खुद ही जी पाई और न उस के जीने के लिए कोई कोना छोड़ा.

अब जब जीवन की शाम ढलने लगी है मैं भीतर तक पूरी तरह टूट चुकी हूं. उस के एक परिचित से पता चला था कि वह तमिलनाडु के सेलम शहर में है और आज इस पत्र के आते ही मेरा रहासहा उत्साह भी ठंडा हो गया.

कोई किसी की पीड़ा को नहीं बांट सकता. अपने हिस्से की पीड़ा मुझे खुद ही भोगनी पड़ेगी. मन के किसी कोने में छिपी हीन भावना से मैं कभी छुटकारा नहीं पा सकती.

पहली बार महसूस किया कि मैं ने वह वस्तु हमेशा के लिए खो दी है जो मेरे जीवन की सब से महत्त्वपूर्ण निधि थी. काश, संदीप कहीं से आ जाए तो मैं उस से क्षमादान मांगूं. वही मुझे अनिश्चितताओं के इस अंधेरे से बचा सकता है.

प्रहरी: क्या समझ पाई सुषमा

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शायद: क्या हुआ था सुवीरा के साथ

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मजबूरियां- भाग 2: प्रकाश को क्या मिला निशा का प्यार

प्रकाश ने जब काफी देर तक उसे कोई जवाब नहीं दिया तो निशा क्रोधित हो कर बोली, ‘‘ऐसे चुप्पी मारने से काम नहीं चलेगा, यह आप सम झ लीजिए कि जवान होता बेटा कालेज जाने की तैयारी कर रहा है. लड़की जवान हो गई है तुम्हारी और तुम्हें खुद को इश्क करने से फुरसत नहीं है. क्यों अपने और हम सब के चेहरों पर कालिख पुतवाने का इंतजाम कर रहे हैं आप?’’

‘‘तुम बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो, निशा. ज्योति के कारण बच्चों की या तुम्हारी जिंदगी पर कुछ भी असर नहीं पड़ने वाला है. तुम लोगों से छीन कर मैं उसे कुछ भी नहीं दे रहा हूं, फिर तुम उस से शिकायत क्यों रखती हो?’’

‘‘क्योंकि जिस समाज में हम जी रहे हैं वह समाज ऐसे नाजायज संबंधों पर उंगलियां उठाता है. लोग हम पर हंसें, मेरा मजाक उड़ाएं, तुम्हारे इश्क के कारण हम महल्ले में सिर  झुका कर चलने को मजबूर हो जाएं, ऐसी हालत मैं कभी सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘महल्ले वाले ज्योति के वजूद से परिचित ही नहीं हैं. उन्हें बीच में ला कर बेकार शोरशराबा मत करो. ज्योति के पास कुछ वक्त गुजार कर मु झे सुकून मिलता है. मेरे सुख की, मेरी खुशियों की चिंता तुम्हें कभी नहीं रही. फिर ज्योति और मेरे प्रेम संबंध को ले कर शिकायत क्यों करती हो तुम?’’ प्रकाश का स्वर ऊंचा हो उठा.

‘‘प्रेम संबंध… रखैल के साथ बने संबंध को प्रेम का नाम नहीं दिया जाता. रखैलें पुरुषों की जरूरतें पूरी करती हैं. तुम ने उसे रहने को फ्लैट ले कर दिया है. उस पर अनापशनाप पैसा खर्च करते हो. बदले में वह चुडै़ल तुम्हारे सामने कपड़े उतार डालती है. अपनी वासना को प्रेम मत कहो और मैं इस संबंध का बिलकुल सही विरोध करती हूं, क्योंकि मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर रहना चाहती हूं,’’ निशा की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘और मु झे इस मामले में समाज की कोई चिंता नहीं रही है. ज्योति से मिलनाजुलना मैं किसी कीमत पर बंद नहीं करूंगा,’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘आप की तो मति भ्रष्ट हो गई है. मेरी सम झ में कभी नहीं आया कि तुम क्यों उस के पीछे पागल हुए जा रहे हो. उस के साधारण नैननक्श हैं. वह बैंक में साधारण सी नौकरी करती है. व्यक्तित्व में उस के कोई जान नहीं है. कौन से सुरखाब के पर लगे दिखाई देते हैं तुम्हें उस में, जरा मु झे भी तो बताओ?’’ निशा ने चुभते लहजे में कहा.

‘‘उस का दिल सोने जैसा है,’’ प्रकाश भावावेश से भर उठा, ‘‘मु झ पर जान छिड़कती है वह. प्रेम बांटने की कला आती है उसे. पूरी तरह से समर्पित है वह मेरी सुखशांति के लिए. मु झे उस से वह सब मिला है जो कभी मैं ने अपनी पत्नी से पाने की कामना की थी और जो कभी मु झे तुम से नहीं मिला.’’

‘‘मु झ में  झूठेसच्चे दोष निकाल कर तुम अपनी चरित्रहीनता को सही ठहराने की कोशिश मत करो. तुम ने कभी मु झे दिल से प्रेम किया ही नहीं. फिर कैसे उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हारे पैर धोधो कर पीती रहती? आदमी संसार में जैसा बोता है वैसा ही काटता है,’’  निशा ने कड़वे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तब तो तुम ने भी कुछ जरूर गलत बोया होगा जो आज मैं तुम से दूर हो गया हूं. तुम गोरी हो, सुंदर हो, स्कूल की पिं्रसिपल हो, शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा लेकिन तुम्हारा दिल मेरे प्रेम में नहीं धड़कता. इस घर में सुखसुविधा की हर चीज है. यहां रसोई में बढि़या खाना बनता है. लोग हमारी खुशहाली देख कर शायद हम से कुढ़ते होंगे, लेकिन मु झे इस घर में कभी सुखशांति नहीं मिली. ज्योति, सिर्फ सादी चाय भी मु झे अगर पिलाती है, तो मेरा मन तृप्त हो जाता है. वह कभी मु झ से ऊंचे स्वर में नहीं बोली. मु झ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस के जीवन में न पैसा है, न कैरियर और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा. उस के असीम प्रेम ने, उस के समर्पण ने और उस के कभी मु झ से कुछ न मांगने के गुण ने लगाए हैं उस में सुरखाब के पर,’’  प्रकाश ने अपनी बात समाप्त कर के निशा की तरफ से मुंह फेर लिया.

निशा ने नफरतभरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे सिर से उस कलमुंही के प्यार का भूत उतारने के मेरे पास और भी तरीके हैं. कभी यह उम्मीद न करना कि मैं तुम्हें तलाक दे कर तुम्हें आजाद कर दूंगी. अपनी रखैल की मांग में सिंदूर भरने की खुशी तुम्हें कभी नसीब नहीं होगी.’’

‘‘अपनी इस मजबूरी को मैं सम झता हूं और इसी कारण खून के आंसू रोता हूं. ज्योति को मांग का सिंदूर नहीं, बल्कि मेरा प्रेम चाहिए. तुम न उसे कभी सम झ सकोगी, न कभी उस की बराबरी कर पाओगी.’’

इस वार्त्तालाप के बाद उन दोनों के बीच बड़ी बो िझल खामोशी छा गई थी. प्रकाश उठ कर ज्योति के पास चल दिया.

ज्योति चाय का कप प्रकाश के हाथ में पकड़ाते हुए भावुक लहजे में बोली, ‘‘जब से आए हैं,  तब से खोएखोए नजर आ रहे हैं आप? मु झे बताइए, कौन सी उल झन आप के मन को परेशान कर रही है?’’

कुछ पलों की खामोशी के बाद प्रकाश ने संजीदा लहजे में जवाब दिया, ‘‘परसों मेरे बेटे का जन्मदिन है. निशा ने मु झ से कोई सलाह किए बिना उस दिन अपने और मेरे मातापिता व भाईबहनों को पार्टी देने का फैसला किया है.’’

‘‘इस में इतना चिंतित और परेशान होने वाली क्या बात है?’’ ज्योति बोली. ‘‘पिछले कुछ दिनों से निशा का मूड बड़ा अजीब सा हो रहा है.’’ ‘‘अजीब सा? इस का क्या मतलब हुआ?’’

‘‘मन ही मन मु झ से बेहद नाराज होते हुए भी वह बड़ी खामोश रहने लगी है. मु झे साफ एहसास हो रहा है कि मु झे तंग करने के लिए उस का दिमाग किसी योजना को जन्म दे चुका है. जन्मदिन वाली पार्टी में वह जरूर कुछ गुल खिलाने जा रही है,’’ प्रकाश बोला.

‘‘कोई गुल नहीं खिलेगा. आप बेकार की बातें सोच कर खुद को परेशान कर रहे हैं,’’  ज्योति की मुसकराहट, प्रकाश की आंखों में छाई हुई चिंता के भावों को कुछ ही कम कर पाई.

‘‘तुम दोनों में कैसा जमीनआसमान का अंतर है, ज्योति. निशा की शिकायतें कभी खत्म नहीं होतीं. मेरे लिए उस के दिल में न प्यार है न सम्मान. वह मेरा जरूर कुछ अहित करेगी, यह विश्वास दिनोंदिन मेरे दिल में मजबूत होता जाता है,’’ प्रकाश बोला.

‘‘इस शक को आप अपने दिल से निकाल फेंकिए. आप दोनों की चाहे कितनी ही न बनती हो, पर वे आप का बुरा नहीं सोच सकतीं. अगर हालत इतने बिगड़े होते तो वे आप के साथ रहना मंजूर न कर के आप को तलाक दे देतीं,’’  ज्योति ने प्रकाश को कोमल स्वर में सम झाया.

‘‘वह मु झे तलाक नहीं देती, क्योंकि उस से मेरी तलाक देने से पैदा होने वाली खुशी नहीं देखी जाएगी. तलाक उस की हार का सुबूत होगा और उस जैसी घमंडी औरत के लिए ‘हार’ शब्द मौत से बदतर माने रखता है. तुम जैसी सीधीसच्ची स्त्री निशा जैसी स्त्री के उल झे मन को कभी नहीं सम झ सकती,’’ प्रकाश के स्वर में अपनी पत्नी के लिए बड़ी नफरत भरी थी.

जहां से चले थे: पेरेंट्स की मौत के बाद क्या हुआ संध्या के साथ

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प्रहरी: भाग 3- क्या समझ पाई सुषमा

नवंबर की धूप में गार्डन फूलों से लहलहा रहा था. शनिवार की छुट्टी होने के कारण अपने छोटे बच्चों को साथ ले कर आए बहुत से युवा जोड़े वहां घूम रहे थे. दिल्ली शहर के छोटे मकानों में रहने वाले मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे खुली हवा के लिए तरसते रहते हैं. अब इस समय यहां मैदान में बड़ी ही मस्ती से होहल्ला मचाते एकदूसरे के पीछे भाग रहे थे. बच्चों की इस खुशी का रंग उन के मातापिता के चेहरों पर भी झलक रहा था.

विभा का मन भी यहां की रौनक में डूब कर हलका हो उठा. सब से बड़ी बात तो यह थी कि तपन और सुषमा के बीच कल वाला तनाव खत्म हो गया था और वे दोनों सहज हो कर आपस में बातें कर रहे थे. एक तरफ पेड़ की छाया में साफ जगह देख कर सुषमा ने दरी बिछा दी. ठंडी बयार में फूलों की महक घुली थी. विभा को यह सब आनंद दे रहा था. दरी पर बैठी वह मन ही मन सोच रही थी कि आने वाले दिनों में शायद तपन और सुषमा भी जब यहां आएंगे तो नन्हें हाथ उन की उंगलियां थामे होंगे. यह सोच कर विभा का दिल एक सुखद एहसास से भीग उठा. अचानक सुषमा की आवाज से उस की विचारशृंखला टूटी, ‘‘मांजी, यह चाय ले लीजिए.’’

अचानक तपन बोला, ‘‘सुषमा, वह देखो, उधर शंकर और सविता बैठे हैं. चलो, मिल कर आते हैं.’’ किंतु सुषमा बोली, ‘तुम हो आओ, मैं यहां मांजी के साथ ही बैठूंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तपन उधर चला गया. विभा ने एक गहरी नजर सुषमा पर डाली, जो घुटनों पर सिर रखे चुप बैठी थी. चाय पी कर गिलास नीचे रखते ही विभा उस के पास खिसक आई और पूछा, ‘‘तुम गई क्यों नहीं? शायद उस के दफ्तर का कोई दोस्त है.’’

‘‘क्या फायदा मांजी, फिर झगड़ाझंझट करेंगे. अब आप ही बताइए, इन के मित्र मुझ से बात करें तो क्या मैं अशिष्ट बन जाऊं? उन के साथ हंस कर बात करूं तो ये नाराज, और न करूं तो वे लोग बुरा मानेंगे. मैं तो बीच में फंस जाती हूं न. अब तो मैं इन के साथ पार्टियों में जाना भी बंद कर दूंगी, घर पर ही ठीक हूं,’’ सुषमा थोड़ा तल्खी से बोली.

विभा कुछ देर उस के खूबसूरत चेहरे को देखती रही जहां एक आहत सी अहं भावना की परछाईं थी. फिर कुछ सोच कर समझाते हुए बोली, ‘‘तपन तुम्हें बहुत चाहता है, इसी से उस में तुम्हारे प्रति यह भावना है. पति के दिल की एकछत्र स्वामिनी होना तो बड़े गर्व की बात है.’’

‘‘वह तो ठीक है,’’ सुषमा का चेहरा शर्म से लाल हो गया, ‘‘किंतु जब औरों को देखती हूं तो लगता है कि उन्हें इस बात की चिंता ही नहीं कि उन की पत्नियां कहां, किस से बातें कर रही हैं.’’ ‘‘तब तो तुम यह भी देखती होगी कि वही लोग कभीकभी शराब के नशे में डूबे उन से गलत व्यवहार भी करते होंगे?’’

‘‘यह सब तो कभीकभी चलता है, इन पार्टियों में सभी तरह के लोग होते हैं.’’

‘‘तो फिर अब इस बात को भी समझो कि तुम्हारे साथ किसी का गलत व्यवहार तपन को कभी सहन न होगा. विवाहित जीवन में पति का अंकुश पत्नी पर और पत्नी का अंकुश पति पर होना बहुत जरूरी है. यही एक सफल दांपत्य जीवन का मंत्र है, जहां पतिपत्नी दोनों एकदूसरे को गलत कामों के लिए टोक सकते हैं, एकदूसरे को सही राह दिखा सकते हैं. किंतु इस के लिए विश्वास की मजबूत नींव जरूरी है, जिस में एकदूसरे के इस टोकने को गलत न समझा जाए, बल्कि उस के मूल में छिपी सही विचारधारा को समझा जाए, सुषमा, इस अधिकार को एक का दूसरे पर शासन मत समझो बल्कि एक की दूसरे के प्रति अतिशय प्रेम की अभिव्यक्ति समझो. ‘‘यदि तुम्हें वह सदैव अपनी नजरों के सामने रखना चाहता है तो यह तुम्हारा बहुत बड़ा सम्मान है. पति जिस स्त्री का सम्मान करता है, उस का सम्मान सारी दुनिया करती है, इसे हमेशा याद रखना.’’

इतना सबकुछ एक सांस में ही कह चुकने के बाद विभा खामोश हो गई. उस की बातें बड़े गौर से सुनती सुषमा के सामने विवाहिता जीवन का एक नया ही रहस्य खुला था कि आज के इस नारीमुक्ति युग में पति का पत्नी पर अपना अधिकार साबित करना कोई अमानवीय काम नहीं बल्कि उस के अखंड प्रेम का संकेत है.

सुषमा सोचने लगी कि न जाने उस की कितनी सहेलियां अकेली घूमतीफिरती हैं, अकेली ही पार्टियों में भी जाती हैं. किंतु सच तो यह है कि सुषमा को उन पर बड़ी दया आती है, क्योेंकि अकसर ही उन्हें किसी न किसी पुरुष के गलत व्यवहार का शिकार होना पड़ता है, जिस से उन को बचाने वाला वहां कोई नहीं होता. लेकिन उस के साथ तो उलटा ही है, किसी की टेढ़ी तो क्या, सीधी नजर भी उस पर पड़े तो पति सह नहीं पाता. हमेशा ढाल बन कर खड़ा हो जाता है. इसलिए तो आज तक कभी किसी पार्टी में उस के साथ गलत व्यवहार करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. बुरे से बुरा व्यक्ति भी उस के सामने आ कर इज्जत से हाथ जोड़ कर उसे ‘भाभीजी’ ही कहता है. फिर वह खुद भी तो किसी को ऐसा ओछा व्यवहार करने का मौका नहीं देती.

किंतु उस की मर्यादा का सजग प्रहरी तो तपन ही है न, उस का अपना तपन, जो इन पार्टियों में हर समय साए की तरह उस के साथ रहता है. अकसर उस के दोस्त हंसते भी हैं और कहते भी हैं, ‘बीवी को कभी अकेला छोड़ता ही नहीं.’ किंतु तपन उन के हंसने या मजाक बनाने की कतई परवा नहीं करता. ये विचार मन में आते ही सुषमा को अपने तपन पर बहुत ज्यादा प्यार आया. उस की इच्छा हो रही थी कि दौड़ कर जाए और दूर खड़े तपन के गले में अपनी बांहें डाल दे और कहे, ‘अब मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगी. मांजी ने मेरी आंखों से नासमझी का परदा उठा दिया है. तुम्हारी नाराजगी का भी सम्मान करूंगी, क्योंकि वह मेरा सुरक्षाकवच है. मेरे अब तक के व्यवहार के लिए मुझे माफ कर दो.’

मन ही मन इन विचारों में घिरी सुषमा का चेहरा विश्वास की आभा से जगमगा रहा था. आंखों में मानो प्यार के दीए जल उठे थे. बड़ी बेसब्री से वह तपन के आने की प्रतीक्षा कर रही थी. सुषमा सोच रही थी कि कैसी अजीब बात है कि जब तक वह घटनाओं से खुद को जोड़े हुए थी, कुछ भी साफ देख, समझ नहीं पा रही थी, किंतु जब घटनाओं से अलग हो कर उस ने खुद को तटस्थ किया तो सबकुछ शीशे की तरह साफ हो गया. उस के अपने ही दिल ने पलभर में सहीगलत का फैसला कर लिया.

कर्तव्य पालन: क्या रामेंद्र को हुआ गलती का एहसास

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Hindi Fiction Stories : झटका – दादी की क्या थी तरकीब

Hindi Fiction Stories : स्कूलके प्रिंसिपल अमनजी के सामने प्रिया और संदीप आंखों में चिंता और तनाव के भाव लिए बैठ गए.

‘‘आप के बेटे समीर को इस वक्त स्कूल में होना चाहिए पर वह यहां नहीं है. पिछले 2 हफ्तों में उस ने यह 5वीं छुट्टी करी है,’’ अमनजी ने बिना कोई भूमिका बांधे यह सूचना दे कर उन दोनों को जोरदार झटका दिया.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? वह तो रोज सुबह तैयार हो कर स्कूल जाने को घर से निकलता है,’’ प्रिया की आंखों में फौरन हैरानी और उलझन के भाव उभरे.

‘‘क्या वह रोज स्कूल बस में आप की आंखों के सामने बैठता है?’’

‘‘आजकल वह बस से नहीं बल्कि अपने दोस्त रवि के साथ कार से स्कूल आता है.’’

‘‘आप दोनों रवि के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘यही कि उस के मातापिता दोनों आईटी कंपनी में अच्छी पोस्टों पर हैं. कुछ दिन पहले समीर से मैं ने उस के पिछले टैस्टों में आए नंबर पूछे थे. मेरा अंदाजा है कि वह पढ़ने में ज्यादा अच्छा नहीं है,’’ इस बार जवाब संदीप ने दिया.

अमनजी ने कुछ पलों की खामोशी के बाद गंभीर लहजे में उन्हें बताया, ‘‘रवि के मातापिता बहुत दौलतमंद हैं, संदीपजी मेरी नजरों में वह एक बिगड़ा हुआ रईसजादा है. ट्यूशनों के बल पर वह 12वीं कक्षा तक अपनी गाड़ी खींच ले जाएगा पर उस के कभी अच्छे नंबर नहीं आएंगे. उसे अच्छे नंबर लाने की चिंता भी नहीं है क्योंकि अपने मातापिता की गांव की जमीन के बल पर वह कोई डिगरी विदेश में जा कर ले लेगा. क्या समीर के लिए भी आप दोनों ने ऐसा ही कुछ सोच रखा है?’’

‘‘उसे विदेश में पढ़ाने की हमारी औकात नहीं है, सर. हमारी तो बड़े बाजार में गारमैंट की छोटी शौप है.’’

‘‘समीर के 10वीं कक्षा के बोर्ड में 88% आए थे, लेकिन इस साल वह पढ़ने में पिछड़ता जा रहा है. मुझे यह बताते हुए बहुत अफसोस हो रहा है कि वह आजकल गलत दोस्तों के साथ घूमने लगा है.’’

‘‘क्या उस के ये नए, गलत दोस्त भी स्कूल से गायब रहते हैं?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘सर, क्या आप को मामूल है कि ये सब इस वक्त कहां हैं?’’

‘‘रवि के घर. जिस दिन भी क्रिकेट का वन डे मैच होता है ये 4-5 लड़के स्कूल नहीं आते हैं. मुझे इन की गलत आदतों की रिपोर्ट कल ही इन के एक साथी से मिली है. क्या आप दोनों ने समीर के अंदर ऐसा कोई बदलाव महसूस नहीं किया जो उस के यों बिगड़ने की तरफ इशारा करता हो?’’

प्रिया ने फौरन अपने बेटे की उन से शिकायत करी, ‘‘आजकल वह काफी जिद्दी, बदतमीज और झगड़ालू हो गया है. जरा सा डांटो तो फट पलट कर जवाब देता है. अपने दोस्तों की तारीफ करता है और उसे हर चीज बढि़या और ब्रैंडेड चाहिए… यूनिट टैस्ट में तो उस के नंबर कम आ ही रहे हैं.’’

‘‘किसी भी किशोर के बिगड़ने के ये सब शुरुआती लक्षण हैं. औफिस के बाहर उस के दोस्त मोहित और कपिल के मातापिता बैठे हुए हैं. आप सब एकसाथ रवि के घर जाइए और देखिए कि वहां क्या हो रहा है. कल सुबह आप दोनों समीर के साथ मुझ से मिलने आएं,’’ संदीप से मिलाने को हाथ बढ़ा कर प्रिंसिपल साहब ने मुलाकात समाप्त होने का इशारा कर दिया.

आधे घंटे बाद सब लड़कों के मातापिता रवि के पिता के नए फ्लैट के अंदर थे. घर के नौकर ने उन्हें ड्राइंगरूम में बैठा कर के भीतर जाने से रोकना चाहा, पर वे जबरदस्ती रवि के बैडरूम तक जा पहुंचे.

रवि के कमरे में सिगरेट के धुएं की गंध भरी हुई थी. मेज पर बीयर की बोतलें और

गिलास रखे थे. एक लड़की रवि की बगल में उस के साथ सट कर बैठी हुई थी. उस ने किसी और स्कूल की वरदी पहनी हुई थी. टीवी पर आईपीएल मैच चल रहा था.

उन्हें अचानक सामने देख वे सब घबराए से चौंक कर उठ खड़े हुए. मोहित और कपिल के पेरैंट्स की तरह संदीप ने वहीं समीर को डांटना शुरू नहीं किया और उस का हाथ पकड़ उसे कमरे से बाहर ड्राइंगहौल में ले आया.

‘‘आप दोनों को यहां नहीं आना चाहिए था,’’ समीर शर्मिंदा होने के बजाय उलटा उन पर नाराज हो उठा.

‘‘यहां नहीं आते तो तुम्हारी करतूतों का कैसे पता लगता? तुम सिगरेट और शराब पीने लगे हो. शर्म आनी चाहिए तुम्हें,’’ उस के बोलने का गलत ढंग देख संदीप को तेज गुस्सा आ गया.

‘‘थोड़ी सी बीयर पी लेने में शर्म आने की क्या बात है? आप भी तो रोज शाम को पीते हो?’’ समीर ने अपना हाथ झटके से छुड़ाया और मेज पर रखा बैग उठा कर बाहर की तरफ चल पड़ा.

‘‘मेरे साथ तमीज से पेश नहीं आओगे तो मैं थप्पड़ मारमार कर तुम्हारे दांत तोड़ डालूंगा.’’

‘‘शोर कैसे न मचाऊं? क्या तुम हमारी नाक कटाने वाले काम नहीं कर रहे? कल को तुम्हारी यही गंदी आदतें तुम्हारे फेफड़ों और जिगर को खराब कर डालेंगी, बेवकूफ  लड़के.’’

समीर ने इस बार उलट कर कोई जवाब नहीं दिया और हौल से बाहर निकल गया.

सारे रास्ते संदीप और प्रिया उसे डांटतेसमझते हुए आए, पर मुंह सुजा कर बैठे समीर ने एक शब्द भी अपने मुंह से नहीं निकाला. जब घर के सामने कार रुकी तो वह झटके से दरवाजा खोल कर उतरा और पैर पटकता अंदर चला गया.

अंदर आने के बाद संदीप ने उसे गुस्से से भरी आवाज में कई बार पुकारा तो ही वह अपने कमरे से निकल कर ड्राइंगरूम में आया. अब तक समीर की दादी भी अपने कमरे से निकल कर वहीं आ गई थीं.

समीर के तेवर ऐसा दर्शा रहे थे मानो वह अपने मातापिता से उलझने के लिए पूरी तरह से तैयार था और हुआ भी ऐसा ही. संदीप ने अपने बेटे को डांटना शुरू किया तो उस ने पलट कर उलटे जवाब देने शुरू कर दिए.

कुछ देर तक दादी ने चुप रह कर सारे मामले को समझ और फिर ऊंची आवाज में बोलीं, ‘‘अब सब शांत हो कर आपस में बात करो. समीर अभी हम सब से प्रौमिस करेगा कि वह सिगरेट और शराब से दूर रहेगा और ज्यादा मेहनत से पढ़ाई भी करेगा.’’

अपनी मां की सलाह को नजरअंदाज करते हुए संदीप ने समीर पर गुस्सा करना जारी रखा, ‘‘तुम्हारे तेवर देख कर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है कि तुम रत्ती भर भी बदलोगे. आज तुम्हारी कलई खुली है. तुम शराब, सिगरेट और गलत कंपनी के शिकार बन चुके हो. स्कूल न जा कर बदमाश दोस्तों के साथ आवारागर्दी करते हो.’’

इस बार समीर ने जोर से चिल्ला कर जवाब दिया, ‘‘गलत कंपनी में घूमना मेरी मजबूरी है, डैड. अरे, मैं उन्हीं लड़कों के साथ घूमूंगा न जो मुझे अपना दोस्त बना कर मेरे साथ घूमने को तैयार होंगे. जो लड़के मुझ पर हंसें, जो मेरा मजाक उड़ाएं और मुझ से कटें मैं क्यों उन के साथ घूमूंगा?’’

‘‘लड़के तुम पर क्यों हंसते हैं?’’

‘‘आप दोनों के रोजरोज के लड़ाईझगड़ों ने मुझे तमाशा बनवा दिया है.’’

‘‘ज्यादा बकवास मत करो. हम पहले मातापिता नहीं हैं जिन के बीच लड़ाईझगड़ा होता है. तुम्हारे पढ़ाई में पिछड़ने और बिगड़ने का असली कारण यही है कि तुम गलत सोहबत में पड़ चुके हो. फिर कोई अच्छा सहपाठी तुम्हारे साथ क्यों घूमेगा?’’

‘‘सारा दोष मेरे सिर मढ़ने की कोशिश मत करो, पापा,’’ समीर उन के सामने तन कर खड़ा हो गया, ‘‘असली कारण तो यह है कि हमारे घर में आप दोनों के कारण 24 घंटे मची रहने वाली हायतोबा और गालीगलौज के कारण मैं ढंग से पढ़ नहीं पाता हूं. इसी कारण मैं गलत कंपनी में भी पड़ा हूं. मैं महीने में 10 दिन नानाजी के घर से स्कूल जाता हूं, 20 दिन यहां से. लोग मुझ से इस का कारण पूछते हैं तो मैं शर्म से जमीन में गड़ जाता हूं. मैं उन्हें कैसे बताऊं कि मेरी मां आए दिन लड़ कर मायके भाग आती है? साल में 8 बार तो आप पापा की बिना मरजी के इस तीर्थ और उस आश्रम में रहने चली जाती हैं और पापा अपने काम के बदले राजनीति करने चले जाते हैं. दादी ही घर में रह जाती हैं. क्या मैं पूछ सकता हूं कि अपने व्यवहार के कारण आप दोनों ने मेरी जिंदगी में इतनी टैंशन क्यों भर रखी है? मुझे अपने सहपाठियों के बीच हंसी का पात्र क्यों बनवा रखा है?’’

‘‘इस वक्त बात हमारी नहीं बल्कि तुम्हारी हो रही है.’’

‘‘अपनेआप को कठघरे में खड़ा देखना किसी को अच्छा नहीं लगता डैड. आप दोनों को मेरी फिक्र होती तो रातदिन क्लेश न करते रहते. आप दोनों को तो आपस में मारपीट करने से भी परहेज नहीं है. अगर मुझे आप की नाक कटाने वाला काम नहीं करना चाहिए तो क्या यही बात आप दोनों पर नहीं लागू होती है? पापा, आप बचपन से न जाने कौन सा इतिहास पढ़पढ़ कर ऊंचनीच, भेदभाव, इतिहास का बदला लेने जुलूसों में जा कर पथराव करते रहे हैं और अब मां से झगड़ते हैं. पड़ोस के खान अंकल को तो आप पीठ पीछे न जाने क्याक्या कहते रहते हैं.’’

‘‘इन बातों को छोड़ और यह सोच कि अपनी पढ़ाई का नुकसान कर के तुम

अपना कितना ज्यादा नुकसान कर रहे हो,’’ इस बार संदीप सुर नीचा कर के बोले.

‘‘मुझे पता है कि मैं फेल नहीं होऊंगा. वैसे भी मुझे बिजनैस करना है, कोई डाक्टर, इंजीनियर नहीं बनना है,’’ समीर ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत कर. तुझे पता तो है कि हमारे पास तेरे दोस्त के पिता जितनी दौलत नहीं है जो 40-50 लाख लगा कर बिजनैस करा सकें. तू हवा में उड़ना बंद कर और पढ़ाई में मन लगा.’’

‘‘आप जितना लगा सको, उतना पैसा लगा देना. बाकी का फाइनैंस मेरे दोस्त संभाल लेंगे.’’ इन में से कुछ की रिश्वत की मोटी कमाई है और कुछ ने गांव में करोड़ों की जमीन बेची हैं.

‘‘तेरे ये दोस्त तेरा साथ देंगे, ऐसी गलतफहमी का शिकार मत बनो.’’

‘‘आप दोनों अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रहे हो तो वैसा ही मुझे भी करने दो,’’ समीर ने रुखाई से जवाब दिया.

‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? तिल बराबर अक्ल नहीं है तेरे पास और चला है खुद अपनी जिंदगी के फैसले करने. पहले मुझे यह बताओ कि शराब और सिगरेट खरीदने को तुम्हारे पास पैसे कहां से आते हैं?’’ संदीप ने प्रिया की तरफ नाराजगी से देखते हुए सवाल किया.

‘‘मेरी तरफ गुस्से से देखने की जरूरत नहीं है. मैं इसे जेबखर्च से ज्यादा पैसे नहीं देती हूं,’’ प्रिया एकदम से गुस्सा उठीं.

‘‘आप दोनों आपस में झगड़ना शुरू करो, उस से पहले मैं ही बता देता हूं कि मैं पैसे कहां से पाता हूं,’’ समीर ने उन का मजाक उड़ाने वाले लहजे में बोलना शुरू किया.

‘‘रात को पीने के बाद क्या सुबह तक आप को याद रहता है कि आप के पर्स में

कितने रुपए थे? क्या किसी को याद है कि मुझे इस महीने की स्कूल फीस किस ने दी  थी?’’

‘‘तुम को फीस मैं ने दी थी,’’ प्रिया ने जवाब दिया.

‘‘नहीं, मैं ने दी थी,’’ संदीप ने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘आप दोनों के अलावा दादी ने भी मुझे फीस दी थी,’’ समीर के होंठों पर व्यंग्य भरी मुसकान झलक उठी.

‘‘इस ने आ कर बताया था कि फीस के पैसे खो गए थे…यह बोला कि तुम पीटोगे, तो मैं ने भी फीस दी थी. अरे शैतान, तू मुझ से भी झठ बोलने लगा है,’’ दादी ने पोते को गुस्से से घूरा.

‘‘सौरी दादी, आप से तो मैं ने रुपए अपने एक दोस्त की फीस भरने को लिए थे,’’ समीर ने दादी से माफी मांगी और फिर अपने मातापिता से शिकायती स्वर में बोला, ‘‘आप दोनों मेरे बारे में या किसी भी और विषय पर आपस में बात ही कहां करते हो. मैं पहले भी ऐसा घोटाला कर चुका हूं. तब क्या आप मुझे पकड़ पाए थे?’’

‘‘शर्म नहीं आ रही है तुझे अपने गलत कामों की तारीफ करते हुए?’’ संदीप गुस्से से फट पड़े.

‘‘मेरे लिए यहां आप दोनों के सामने शर्मिंदा होना कोई बड़ी बात नहीं है, पर मैं अपने दोस्तों के सामने शर्मिंदा नहीं हो सकता हूं. वे 4 दफा मुझ पर पैसे खर्च करेंगे तो 1 बार मुझे भी करने पड़ेंगे या नहीं? मेरी पौकेट मनी बहुत कम है और तभी मुझे हेराफेरी और चोरी करनी पड़ती है.’’

‘‘मेरा दिल कर रहा है कि हंटर मारमार कर तेरी चमड़ी उधेड़ दूं,’’ संदीप उस की तरफ आक्रामक लहजे में बढ़े.

‘‘आप ने अगर मुझ पर हाथ उठाया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा. आप भी जुलूसों में कितना मारने की बातें करते हैं. कितनी बार दुकान बंद कर के हल्ला मचाने भीड़ में जाते रहते हैं. आप मारने की धमकियां देते हैं, मैं खुद मर जाऊंगा.’’

समीर की इस धमकी को सुन संदीप का मुंह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया.

प्रिया ने उसे खींच कर समीर से दूर किया और अपने मन की चिंता व्यक्त करी, ‘‘अब ये बातें छोडि़ए और कल अमनजी से होने वाली मुलाकात के बारे में सोचिए. वहां भी अगर इस ने ऐसी ही बदतमीजी दिखाई तो वे इसे स्कूल से निकाल देंगे.’’

‘‘मौम, डौंट वरी अबाउट हिम. वो रवि को स्कूल से निकालने की हिम्मत नहीं कर सकते हैं क्योंकि रवि के पापा स्कूल के चेयरमैन के गांव के हैं और फिर उन का पैसा भी स्कूल में लगा हैं. अगर रवि स्कूल से नहीं निकलेगा तो हम में से कोई भी नहीं निकलेगा,’’ समीर फिर से लापरवाह नजर आने लगा.

‘‘तुम्हें रवि का साथ छोड़ अपने को सुधारना होगा,’’ प्रिया ने भावुक हो कर उसे सलाह दी.

‘‘अगर तुम ने अपने को फौरन नहीं बदला तो एक दिन बहुत पछताओगे,’’ संदीप अब दुखी और परेशान दिख रहे थे.

‘‘सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि घर में हरेक को बदलना और सुधरना होगा, अब भी आप ऐसा क्यों नहीं कह रहे हो?’’ समीर ने चुभते लहजे में पूछा.

प्रिया और संदीप दोनों से फौरन ही उसे कोई जवाब देते नहीं बना. उन्हें चुप करा कर समीर निडर, विद्रोही भाव से अपने कमरे की तरफ चल पड़ा. दोनों उसे रोकने की हिम्मत नहीं कर सके.

दोनों थकेहारे और टूटे से नजर आ रहे थे. दोनों को आपस में लड़ने या एकदूसरे पर आरोप लगाने की ताकत भी अपने अंदर महसूस नहीं हो रही थी. वे समीर को कैसे डांटते या समझते क्योंकि वह तो उन्हीं को कठघरे में खड़ा कर

गया था.

कुछ देर की खामोशी के बाद प्रिया ने रोनी सूरत बना कर कहा, ‘‘हमारे स्वार्थी

और नासमझ भरे व्यवहार से समीर को गुमराह होने का मौका मिला. पता नहीं वह अब कभी ठीक रास्ते पर लौट भी पाएगा या नहीं? न जाने क्यों हम घर और दुकान का काम छोड़ कर राजनीति के पचड़े में पड़ गए.’’

‘‘हम उसे किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक को दिखाएंगे,’’ संदीप ने उस का हाथ पकड़ कर धैर्य बंधाने की कोशिश करी.

दादी ने दोनों को समझते हुए सलाह दी, ‘‘कुछ महीने पहले तक समीर पढ़ाई में पूरी दिलचस्पी लेता था. उस के व्यवहार से भी हमें कोई शिकायत नहीं थी. अब तेज झटका खाने के बाद अगर आगे हम सब समझदारी और प्यार से काम लेंगे तो वह निश्चित रूप से सही राह पर लौट आएगा. गलत व्यवहार की जड़ें अभी उस के मन में ज्यादा गहरी नहीं गई हैं.’’

‘‘हम दोनों आपसी संबंधों का सुधारेंगे क्योंकि समीर के भविष्य से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हमारे लिए कुछ भी नहीं है,’’ प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

समीर ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूमा और फिर भावुक हो कर कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि हमारे बदलते ही सबकुछ ठीक

हो जाएगा. हमारी अगर उसे कमियों ने गलत

राह पर धकेला है तो हमारे अंदर आने वाला अच्छा बदलाव उसे सही रात पर आने की प्रेरणा भी देगा.’’

अतीत के सारे गिलेशिकवे भुला कर दोनों लंबे समय के बाद अपनेआप को दूसरे के बहुत करीब महसूस कर रहे थे. समीर की दादी ने सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए दोनों को अपने गले से लगा लिया था.

प्रहरी: भाग 2- क्या समझ पाई सुषमा

विभा की सारी रात करवटें बदलते बीती. बेटा मानो उस के पति का ही प्रतिरूप बन सामने आ खड़ा हुआ था. अपने विवाह के तुरंत बाद के दिन विभा की बंद आंखों में किसी चलचित्र की भांति उभर आए. किसी भी पार्टी में जाने पर अपने पति सत्येंद्र का अपनी सुंदर पत्नी के चारों ओर मानो एक घेरा सा डाले रखना उसे भूला न था. कभीकभी सत्येंद्र के मित्रों की पत्नियां विभा को चिढ़ातीं तो उसे पति के इस व्यवहार पर क्रोध भी आता, किंतु उन के खिलाफ बोलना उस के स्वभाव में न था. सो, चुप रह जाती. युवावस्था के उन मादक, मधुर दिनों की यादें विभा के दिल को झकझोरने लगीं. कैसे थे वे मोहक दिन, जब दफ्तर से छूटते ही सत्येंद्र इस तरह घर भागते, जैसे किसी कैदखाने से छूटे हों. दोस्तों के व्यंग्यबाणों को वे सिर के ऊपर से ही निकल जाने देते. पहले दफ्तर के बाद लगभग रोज ही कौफी हाउस में दोस्तों के साथ एक प्याला कौफी जरूर पीते थे, तब कहीं घर आते थे, किंतु शादी के बाद तो जैसे दफ्तर का समय ही काटे न कटता था.

शाम के बाद भला सत्येंद्र कहां रुकने वाले थे. दोस्तों के हंसने की जरा भी परवा किए बिना अपनी छोटी सी पुरानी गाड़ी में बैठ कर सीधे घर भागते. लेकिन दोस्त भी कच्चे खिलाड़ी न थे. कभीकभी दोचार इकट्ठे मिल कर मोरचा बांध लेते और उन से पहले ही उन की गाड़ी के पास आ खड़े होते. तभी कोई कहता, ‘यार, बोर हो गए कौफी हाउस की कौफी पीपी कर. आज तो भाभीजी के हाथ की कौफी पीनी है.’ इस से पहले कि सत्येंद्र हां या ना कहें, सब के सब गाड़ी में चढ़ कर बैठ जाते.

इधर विभा रोज ही शाम को पति के आने के समय विशेषरूप से बनसंवर कर तैयार रहती थी. यह उस की मां का दिया मंत्र था कि दिनभर के थकेहारे पति की आधी थकान तो पत्नी का मोहक मुसकराता मुखड़ा देख कर ही उतर जाती है. किंतु जब सत्येंद्र मित्रों को लिए घर पहुंचता और वे

सब उस की सुंदर सजीधजी पत्नी को ‘भाभीजी, भाभीजी’ कह कर घेर लेते तो वह अलगथलग कुरसी पर जा बैठता.

मित्र भी तो कम शरारती न थे, सत्येंद्र के मनोभावों को समझ कर भी अनजान बने रहते. उधर विभा उन सब के सामने बढि़या नाश्ता रख कर, कौफी बना कर स्नेह से उन्हें खिलातीपिलाती. यह सब देख सत्येंद्र और कुढ़ जाता. विभा स्थिति की नजाकत समझती थी और अब तक वह सत्येंद्र के स्वभाव को अच्छी तरह जान भी चुकी थी, इसलिए वह उस के मित्रों को जल्दीजल्दी खिलापिला कर विदा करने की कोशिश करती. मित्रों के जाते ही सत्येंद्र पत्नी पर बरसते, ‘क्या जरूरत थी उन सब की इतनी आवभगत करने की? तुम थोड़ा रूखा व्यवहार करोगी तो खुद ही आना छोड़ देंगे. लेकिन तुम तो उन के सामने मक्खनमलाई हो जाती हो, वाहवाही लूटने का शौक जो है.’

सत्येंद्र की कटु आलोचना सुन कर विभा की आंखें भर आतीं, किंतु उस में गजब का धैर्य था. वह अच्छी तरह जानती थी कि इस स्थिति में वह उसे कुछ भी समझा नहीं पाएगी. वह चुपचाप रात के खाने की तैयारी में लग जाती. सत्येंद्र की मनपसंद चीजें बनाती और फिर भोजन निबटने के बाद रात में जब खुश व संतुष्ट पति की बांहों में होती तो उसे समझाने की कोशिश करते हुए पूछती, ‘अच्छा, बताओ तो, क्या तुम सचमुच ही अपने मित्रों का यहां

आना पसंद नहीं करते? मैं तो उन की खातिरदारी सिर्फ इसलिए करती हूं कि वे औफिस में तुम्हारे साथ काम करते हैं. उन के साथ तुम्हारा दिनभर का उठनाबैठना होता है, वरना मुझे उन की खातिरदारी करने की क्या पड़ी है? यदि तुम्हें ही पसंद नहीं, तो फिर अगली बार से उन्हें केवल चाय पिला कर ही टरका दूंगी.’ ‘अरे, नहींनहीं,’ सत्येंद्र और भी कस कर उसे अपनी बांहों में जकड़ लेते, ‘यह ठीक नहीं होगा. सच तो यह है कि जब वे सब दफ्तर में तुम्हारी इतनी तारीफ करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. लेकिन क्या करूं, दिनभर के इंतजार के बाद जब शाम को तुम मुझे मिलती हो तो फिर बीच में कोई अड़ंगा मैं सहन नहीं कर सकता.’

‘कैसा अड़ंगा भला?’ उस के सीने में मुंह छिपाए विभा मीठे स्वर में कहती, ‘मैं तो सदा ही केवल तुम्हारी हूं, पूरी तरह तुम्हारी. तुम्हारे इन मित्रों की बचकानी हरकतें तो मेरे लिए तुम्हारे छोटे भाइयों की कमी पूरी करती हैं. अकसर सोचती हूं कि यदि तुम्हारे छोटे भाई होते तो वे यों ही ‘भाभीभाभी’ कह कर मुझे घेरे रहते. यही समझो कि तुम्हारे मित्रों द्वारा मेरे दिल की यही कमी पूरी होती है.’ ‘चलो, फिर ठीक है, अब बुरा नहीं मानूंगा. भूल जाओ सब.’

फिर धीरेधीरे सत्येंद्र इस सच को समझते गए कि घर आए मेहमान की उपेक्षा करना ठीक नहीं और अब विभा का अपने मित्रों से बातचीत करना, उन की खातिरदारी करना उन्हें बुरा नहीं लगता था. बदलते समय के साथ फिर तो बहुतकुछ बदलता गया. दोनों के जीवन में बच्चों के जन्म से ले कर उन के विवाह तक न जाने कितने उतारचढ़ाव आए. जिन्हें दोनों ने एकसाथ झेला. फिर कभी एक पल को भी सत्येंद्र का विश्वास न डगमगाया.

विभा की आंख जब लगी, तब शायद सुबह हो चुकी थी, क्योंकि फिर वह सुबह देर तक सोई रही. किंतु उस दिन शनिवार होने के कारण तपन की छुट्टी थी, सो, किसी काम की कोई जल्दी न थी. मुंह धो कर जब विभा रसोई में पहुंची तो सुषमा चाय बना चुकी थी. उसे देखते ही चिंतित सी बोली, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, वह तो ठीक है,’’ विभा ने कहा, ‘‘रात नींद ही बड़ी देर से आई.’’ सादगी से कही उस की इस बात पर तपन और सुषमा दोनों ही सोच में डूब गए. वे दोनों जानते थे कि उन के आपसी झगड़ों से मां का दिल दुखी हो उठता है और मुंह से कुछ भी न कह कर वे उस दुख को चुपचाप सह लेती हैं.

सुषमा के हाथ से कप ले कर विभा खामोशी से चाय पीने लगी. तपन पास आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘चलो मां, तुम्हें कहीं घुमा लाते हैं.’’ ‘‘कहां चलना चाहते हो?’’ विभा ने हलके से हंस कर पूछा तो तपन और सुषमा दोनों के चेहरे चमक उठे.

‘‘चलो मां, किसी अच्छे गार्डन में चलते हैं. सुषमा थर्मस में चाय डाल लेगी और थोड़े सैंडविच भी बना लेगी, क्यों, ठीक है न?’’ ‘‘हांहां,’’ कहते हुए सुषमा ने जब तपन की ओर देखा तो उस नजर में उन दोनों के बीच हुए समझौते की झलक थी. विभा का चिंतित मन यह देख खुश हो गया.

अंतर्व्यथा: कैसी विंडबना में थी वह

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