मेरे हसबैंड अपनी भाभी से ज्यादा क्लोज हैं, ऐसा लगता है कि वह मुझसे प्यार नहीं करते…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी शादी को 6 महीने हुए है, मेरे पति मुझसे ज्यादा अपनी भाभी के क्लोज हैं. दोनों एक दूसरे के पसंदनापसंद का ख्याल रखते हैं. दरअसल मेरे पति के भाई दूसरे शहर में रहते हैं, तो भाभी किसी भी काम के लिए मेरे पति पर ही निर्भर रहती हैं. हालांकि वह मेरी मदद करती है. लेकिन मेरे पति और उनके बीच स्ट्रौंग बौन्डिंग है. मेरे पति हर बात अपनी भाभी से शेयर करते हैं. मैं चाहती हूं कि पति अपनी भाभी के बजाय मुझ से अपने दिल की बातें करें. मैं उन के ज्यादा करीब रहूं. मुझे कभीकभी लगता है कि वे मुझे प्यार ही नहीं करते. उन्हें अपनी भाभी का साथ ज्यादा अच्छा लगता है. समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए अभी आपकी नईनई शादी हुई है. हो सकता है घर के तौरतरीके सिखने में आपको थोड़ा टाइम लगे और जैसा कि आपने बताया कि आपके पति के भाई घर से बाहर रहते हैं, तो अभी भाभी आपके घर की बड़ी सदस्य हैं और ये भी बात सच है कि आपसे पहले उन की भाभी बरसों से उस परिवार का हिस्सा हैं, तो आपको बेवजह ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए बल्कि आपको अपने पति का साथ देना चाहिए, उनका भरोसा जीतना चाहिए.

अभी आपको अपने पति के साथ रोमांटिक पल बिताना चाहिए. बेकार के घर की बातों को दिल से नहीं लगाना चाहिए. आप अपने पति के साथ नाइट आउट पर जाएं. आप अपने लुक पर ध्यान दें. शादी के शुरुआती दिनों को यादगार बनाएं न कि भाभी के साथ आपके पति के कैसे रिश्ते हैं.. इस तरह की बातों पर ध्यान न दें.

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आप भले ही बोलें के मेरा बौयफ्रैंड मुझसे कुछ नहीं छुपाता और हर बात शेयर करता, वह बहुत आपेन है. लेकिन ऐसा नहीं है. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो बौयफ्रैंड दिल में होती हैं लेकिन उसे वह जुबान पर लाना नहीं चाहता.

1. साथ का अहसास

लड़के देखने में बड़े तेज होते हैं. वह हमेशा अपनी गर्लफ्रैंड की तुलना करते रहते हैं. ऐसे में जब आप अपने पार्टनर के साथ कहीं डिनर में जा रही होती हैं तो पूरी तरह से सज संवरकर जाना चाहती हैं. बड़ी सी गाउन और बेहद फैशन के साथ निकलने की कोशिश करती हैं. बौयफ्रैंड को आपका हमेशा सरल लिबास और कम फैशन भाता है जिससे कि साथ चलने में एक दूसरे का अहसास हो सके. भारी कपड़ों के साथ दूर रहना पड़ता है. उस वक्त आपकी खुशी और घंटों ड्रेस को लेकर बिताए समय का लिहाज कर वह कुछ नहीं बोलता लेकिन दिल में यही होती है सिंपल और सोबर ही आप ज्यादा सुंदर दिखती हैं.

2. शायद रिश्ता गहरा नहीं है

रिलेशनशिप में आने के बाद लड़कों को बातोंबातों में यह अहसास होता है कि शायद उसकी गर्लफ्रैंड की ओर से यह रिश्ता अभी पक्का नहीं है. वह इस कदर अटैच नहीं है जितना की बौयफ्रैंड. ऐसे में वह अक्सर इस रिश्ते को जांचने की कोशिश करता है लेकिन इस बात को बोलता नहीं. इमोशनली वह अंदर से घुटता रहता है. इसे जांचने के लिए अक्सर वह फिजिकल रिलेशन या किस का सहारा लेता है कि आप क्या बोल रही हैं.

3. फिजिकल रिलेशन

भले ही आपका बौयफ्रैंड यह बोले की वह रिश्ते में सैक्स को ज्यादा अहमियत नहीं देता लेकिन लड़के ऐसा कतई नहीं हो​ते. अपनी गर्लफ्रैंड के साथ वो सेक्स के बारे में सोचते ही हैं. यह कोई जरूरी नहीं कि हर रोज ही सेक्स करें लेकिन कभीकभी की तो चाहत होती ही है. इन चीजों को आप खुद भी नोटिस कर सकते हैं. नए रिश्ते में भले ही वह कुछ न बोले लेकिन जैसे ही रिश्ता पुराना होता है. वह अपने घर पर अकेला होने पर ​बुलाता है या फिर आपको यह जरूर बताएगा कि उसके दोस्त का कमरा अक्सर खाली होता है. इन सब बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह क्या चाहता है.

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बदनामी का डर: राज अनुभा को धोखा क्यों दे रहा था

राज ने एक बार फिर से अनुभा को अपनी बांहों में भर कर उस के लबों को चूम लिया. अनुभा देर तक राज को प्यार से निहारती रही फिर शरमा कर बोली,” हटो अब जाने दो मुझे. इतनी रात गए तुम्हारे घर से निकलते किसी ने देख लिया तो हंगामा हो जाएगा. विपक्षी दल वाले तुम्हारे पीछे पड़ जाएंगे. एक मुद्दा मिल जाएगा उन्हें.”

“तो फिर आज मेरे घर में ही ठहर जाओ न. जाने की जरूरत ही क्या है? अपनी वार्डन को कह दो कि ऑफिस में किसी काम से बाहर जाना पड़ा. अनीता भी अभी 15 दिन से पहले नहीं आएगी. 15- 20 दिनों की बात कह कर मायके गई है. उस के भाई के बेटे का मुंडन है न. ऐसे में मुझे किसी की परवाह नहीं. खूब मस्ती करेंगे हम दोनों.”

“वाह क्या बात है बीवी गई और प्रेमिका को घर में बुला लिया मिस्टर राजशेखर. देश के नामचीन खानदान के चश्मोचिराग और उभरते हुए युवा नेता जिन का नाम ही काफी है. सोचा है कभी किसी ने आप की चोरी पकड़ ली तो राजनीतिक गलियारों में कैसा हंगामा मच जाएगा?” अनुभा शरारती नज़रों से देखती हुई बोली.\

“चोरी तो तुम ने की है मेरे दिल की. मैं तो चाहता हूं न कोई अंदर आए और न कोई बाहर जाए. बस वक्त यहीं ठहर जाए. तुम हमेशा के लिए मेरी बाहों में रह जाओ.”

“ओके तो तुम बैठ कर बॉबी फिल्म का गाना गाओ. मैं तो निकलती हूं. वैसे भी तुम्हारे कहने पर आज जनता कर्फ्यू का पूरा दिन तुम्हारे साथ बिताया है. अब जाने दो मुझे.”

देखो अनुभा, आज मेरी बात मान जाओ . मेरे पास ही रुक जाओ. तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही. कितनी खांसी हो रही है. प्लीज रुक जाओ.”

“ओके चलो रुक जाती हूं.” अहसान दिखाते हुए अनुभा रुक गई और पर्स में से खांसी की दवाई निकाल कर खा ली. फिर दोनों ने खूब मस्ती की.

अगले दिन वह जाने लगी तो राज ने उसे फिर से रोका,” यार जब एक दिन रुक गई हो तो दोतीन दिन और रुक जाओ न. क्या अंतर पड़ जाएगा?”

“ओके रुक जाती हूं. “कोई विरोध किए बिना अनुभा ने राज के आगे सरेंडर कर दिया. दोनों फिर से प्यार की खुमारी में खो गए.

अनुभा राज की प्रेमिका ही नहीं बल्कि जान भी है. शादी के पहले से ही वह अनुभा के करीब है. अनीता से उस की शादी एक राजनीतिक समझौता थी. अनीता के पापा एक जानेमाने नेता हैं. उन्होंने शादी के बदले सहयोग देने का वादा किया था इसलिए राज को अनीता से शादी करनी पड़ी. अनीता घर में जरूर आ गई मगर राज और अनुभा ने मिलना नहीं छोड़ा. कहीं न कहीं अनुभा आज भी राज का पहला प्यार था.

राज अनुभा के प्यार में पागल था. ऐसा मौका उन्हें रोजरोज नहीं मिल सकता था. सुबह से ले कर रात तक दोनों प्यार में डूबे रोमांस के लम्हों का आनंद लेते रहे. फिर दोनों ने बैठ कर खूब वाइन पी. अब उन्हें जमाने का कोई होश नहीं रह गया था.

राज का मोबाइल भी चार्जिंग खत्म होने के बाद कब बंद हो गया उसे पता ही नहीं चला. दोनों सपनों की दुनिया में खोए हुए थे .

प्यार की खुमारी टूटी तो अगले दिन राज को पता लगा कि बीती रात 12 बजे से पूरे देश में प्रधानमंत्री ने लौकडाउन की घोषणा कर दी है.

उस ने अनुभा को जगाया,”अनुभा उठो दिन के 10 बज गए. हम दोनों को तो होश ही नहीं रहा. चलो तैयार हो जाओ. तुम्हें पीजी छोड़ दूं.”

“हां उठती हूं.” कहते हुए वह उठी और लड़खड़ा कर गिर पड़ी.

“क्या हुआ? सब ठीक तो है ?”राज ने उसे संभालते हुए उठाया तो उस के हाथ बहुत गर्म लगे. माथा छुआ तो वह भी तप रहा था.

“यह क्या अनुभा तुम्हें तो बुखार है.” राज घबरा गया.

“हां लगता है बुखार तेज है. सुनो मेरे पर्स में दवा होगी. कभीकभी मुझे सर्दीखांसी के साथ बुखार हो जाता है. मैं दवाएं हमेशा पर्स में ही रखती हूं.”

राज ने उसे दवा खिला दी मगर शाम तक बुखार में कमी नहीं आई. वह बेहोश सी पड़ी थी. राज अजीब पसोपेश में था. वह यदि डॉक्टर को बुलाएगा तो लोग बातें बनाएंगें. राज मन ही मन बुदबुदाया, नहींनहीं डाक्टर को नहीं बुला सकता. उस से बेहतर है ओझा जी को बुला लूं जो सालों से हमारे वफादार हैं. झाड़फूंक कर देंगे. सब ठीक हो जाएगा.

राज को उस समय यही उचित लगा और तुरंत उन्हें फोन किया. ओझा जी वैसे भी उस के घर आतेजाते रहते थे और उन का घर भी पास में ही था इसलिए तुरंत आ गये.

उन्होंने अनुभा को बगल में बिठा कर कई तरह के झाड़फूंक की प्रक्रियाएं पूरी कीं.  कई तरह के मंत्र पढ़े और टोटकों का इस्तेमाल किया. इन सारे कामों में तीनचार घंटे लग गए. अनुभा की हालत बेहतर होने के बजाय बिगड़ ही रही थी. राज ने एक बार फिर से दवा दे कर अनुभा को सुला दिया .

वह रात राज के लिए बहुत बेचैनी भरी रही. उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. तभी उसे पाठक जी याद आए जो सबों की कुंडलियां देखने से ले कर हवन और पूजापाठ का काम करवाते थे. जब राज बच्चा था तो उस के पिता भी खासतौर पर पाठक को ही बुलाते थे. वे अनुभा और राज के रिश्ते के बारे में भी जानते थे और फिर विश्वासी भी थे. इसलिए राज को विश्वास था कि उन के जरिए अनुभा के यहां होने की बात लीक होने की संभावना नहीं थी.

पाठक जी ने राज को हवन करवाने की सलाह दी और इस के लिए एक लंबी लिस्ट बना दी. राज ने फटाफट अपने नौकर को लिस्ट में लिखी सामग्री लेने के लिए भेजा. लौकडाउन की वजह से लिस्ट की कुछ चीजें नहीं मिल पाईं मगर ज्यादातर चीजें आ गई थीं. बाकी सामान राज ने किसी तरह घर से ही उपलब्ध करा दीं और पाठक जी हवन की तैयारी करने लगे.

तभी अनुभा उठी और राज को पुकारने लगी. राज दौड़ कर अनुभा के पास गया. अनुभा ने परेशान स्वर में स्वर में कहा,” मैं क्या करूं राज तबीयत बहुत खराब लग रही है. दवा भी असर नहीं कर रही है. प्लीज डाक्टर को बुलाओ.”

“डाक्टर को कैसे बुलाऊं अनुभा समझ नहीं आ रहा. हम दोनों के रिश्ते को ले कर पूरे में हल्ला मच जाएगा. तबीयत तो मेरी भी खराब हो रही है. सुबह से ही जुकाम और खांसी है. इसलिए हवन भी करवा रहा हूं. मुझे खुद डॉक्टर के पास जाना चाहिए मगर फिर वही सवाल उठेंगे कि यदि कोरोना है तो कहां से आया. तुम्हारे साथ मेरे संबंधों का खुलासा करना पड़ेगा और यही मैं नहीं चाहता. 2 महीने बाद चुनाव है. मीडिया में तुरंत खबर फैल जाएगी और विपक्ष वाले मेरा नाम उछालने लगेंगे. वे तो मौके की तलाश में ही रहते हैं. उस पर अनीता के पापा इस मसले को बहुत आगे तक ले जाएंगे. लॉकडाउन के बाद घर के बाहर पुलिस और मीडिया भी कहीं न कहीं मेरे घर पर नजर रखे ही हुए हैं. क्यों कि उन्हें ऐसे समय में नेताओं के घर ताकझांक करने की बुरी आदत होती है. तुरंत न्यूज़ चैनलों में यह खबर बारबार प्रसारित होने लगेगी कि हमदर्द पार्टी के युवा नेता राजशेखर के घर में यह महिला कौन थी? इसे कहां ले जाया जा रहा है? इस बार मेरे जीतने की पूरी उम्मीद है. मैं ने इतनी समाज सेवा की है. लोगों के बीच गया हूं. गरीबों की बस्ती में भी अनाज बांटे हैं. किसानों के लिए इतना कुछ किया है. सब एक मिनट में मिट्टी में मिल जाएगा.”

राज अनुभा से अपनी मजबूरी बता रहा था. इधर अनुभा फिर से सो चुकी थी. राज अंदर से भयभीत हो रहा था. मगर मन में एक आस थी कि शायद हवन करवाने से सारी मुसीबतें दूर हो जाएं. दोतीन घंटे हवन में लगे. पाठक जी ने सारी मुसीबतों को भगा देने का आश्वासन दिया और चले गए. इधर राज के शरीर में भी कोरोना के लक्षण तेजी से बढ़ने लगे थे.

अनुभा को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी. राज समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. किसी डॉक्टर को बुलाए या खुद हॉस्पिटल चला जाए एडमिट होने या फिर इमरजेंसी नंबर में कॉल करे.

अनुभा की हालत तेजी से खराब होने लगी थी. वह बिल्कुल भी सांस नहीं ले पा रही थी. राज का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. उसे खुद बुखार महसूस होने लगा था. किसी तरह रात बीतने का इंतजार कर रहा था कि सुबह 4 बजे के करीब अनुभा की धड़कनें रुक गईं.

अनुभा जा चुकी थी. राज का सिर चकराने लगा. यह सोच कर वह बहुत डर गया कि अगला नंबर उसी का है. अब भी लापरवाही बरती तो फिर उसे कोई नहीं बचा पाएगा. बदनामी का डर इसी तरह हावी रहा तो अनुभा की तरह वह खुद भी जान से हाथ धो बैठेगा. जान है तो जहान है.

उस ने मास्क और ग्लव्स पहन कर जल्दी से अपने पुराने विश्वासपात्र नौकर दीनू काका की मदद से अनुभा को एक बड़े संदूक में डाला और किसी तरह पीछे की तरफ ग्राउंड में ले जा कर गाड़ दिया. बुखार की वजह से उस के हाथ कांप रहे थे.

इस के बाद उस ने जल्दी से इमरजेंसी में कॉल किया और फिर सुबहसुबह उसे अस्पताल ले जाने के लिए ले एंबुलेंस आ गई. अस्पताल तक पहुंचतेपहुंचते राज को बेहोशी सी आ गई. बेहोशी की हालत में उस ने महसूस किया जैसे अनुभा सामने खड़ी है और रोतेरोते कह रही है कि तुम ने मेरे साथ ठीक नहीं किया. इस का अंजाम तुम्हें भोगना ही होगा .

जरा सा मोहत्याग : ऐसा क्या हुआ था नीमा के साथ?

बहुत दिनों से नीमा से बात नहीं हो पा रही थी. जब भी फोन मिलाने की सोचती कोई न कोई काम आ जाता. नीमा मेरी छोटी बहन है और मेरी बहुत प्रिय है.

‘‘मौसी की चिंता न करो मां. वे अच्छीभली होंगी तभी उन का फोन नहीं आया. कोई दुखतकलीफ होती तो रोनाधोना कर ही लेतीं.’’

मानव ने हंस कर बात उड़ा दी तो मुझे जरा रुक कर उस का चेहरा देखना पड़ा. आजकल के बच्चे बड़े समझदार और जागरूक हो गए हैं, यह मैं समझती हूं और यह सत्य मुझे खुशी भी देता है. हमारा बचपन इतना चुस्त कहां था, जो किसी रिश्तेदार को 1-2 मुलाकातों में ही जांचपरख जाते. हम तो आसानी से बुद्धू बन जाते थे और फिर संयुक्त परिवारों में बच्चों का संपर्क ज्यादातर बच्चों के साथ ही रहता था. बड़े सदस्य आपस में क्या मनमुटाव या क्या मेलमिलाप कर के कैसेकैसे गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं, हमें पता ही नहीं होता था. आजकल 4 सदस्यों के परिवार में किस के माथे पर कितने बल आए और किस ने किसे कितनी बार आंखें तरेर कर देखा बच्चों को सब समझ में आता है.

‘‘मैं ने कल मौसी को मौल में देखा था. शायद बैंक में जल्दी छुट्टी हो गई होगी. खूब सारी शौपिंग कर के लदीफंदी घूम रही थीं. उन की 2 सहयोगी भी साथ थीं.’’

‘‘तुम से बात हुई क्या?’’

‘‘नहीं. मैं तीसरे माले पर था और मौसी दूसरे माले पर.’’

‘‘कोई और भी तो हो सकती है? तुम ने ऊपर से नीचे कैसे देख लिया?’’

‘‘अरे, अंधा हूं क्या मैं जो ऊपर से नीचे दिखाई न दे? अच्छीखासी हंसतेबतियाते जा रही थीं… और आप जब भी फोन करती हैं रोनाधोना शुरू कर देती हैं कि मर गए, बरबाद हो गए. जो समय सुखी होगा उसे आप से कभी नहीं बांटती और जब जरा सी भी तकलीफ होगी तो उसे रोरो कर आप से कहेंगी. मौसी जैसे इनसान की क्या चिंता करनी… छोड़ो उन की चिंता. उन का फोन नहीं आया तो इस का मतलब है कि वे राजीखुशी ही होंगी.’’

मैं ने अपने बेटे को जरा सा झिड़क दिया और फिर बात टाल दी. मगर सच कहूं तो उस का कहना गलत भी नहीं था. सच ही समझा है उस ने अपनी मौसी को. अपनी जरा सी भी परेशानी पर हायतोबा मचा कर रोनाधोना उसे खूब सुहाता है. लेकिन बड़ी से बड़ी खुशी पचा जाना उस ने पता नहीं कहां से सीख लिया. कहती खुशी जाहिर नहीं करनी चाहिए नजर लग जाती है. किस की नजर लग जाती है? क्या हमारी? हम जो उस के शुभचिंतक हैं, हम जिन्हें अपनी परेशानी सुनासुना कर वह अपना मन हलका करती है, क्या हमारी नजर लगेगी उसे? अंधविश्वासी कहीं की. अभी पिछले हफ्ते ही तो बता रही थी कि मार्च महीने की वजह से हाथ बड़ा तंग है. कुछ रुपए चाहिए. मेरे पास कुछ जमाराशि है, जिसे मैं ने किसी आड़े वक्त के लिए सब से छिपा कर रखा है. उस में से कुछ रुपए उसे देने का मन बना भी लिया था. मैं जानती हूं रुपए शायद ही वापस आएं. यदि आएंगे भी तो किस्तों में और वे भी नीमा को जब सुविधा होगी तब. छोटी बहन है मेरी. मातापिता ने मरने से पहले समझाया था कि छोटी बहन को बेटी समझना. मुझ से 10 साल छोटी है. मैं उस की मां नहीं हूं, फिर भी कभीकभी मां बन कर उस की गलती पर परदा डाल देती हूं, जिस पर मेरे पति भी हंस पड़ते हैं और मेरा बेटा भी.

‘‘तुम बहुत भोली हो शुभा. अपनी बहन से प्यार करो, मगर उसे इतना स्वार्थी मत बनाओ कि उस का ही चरित्र उस के लिए मुश्किल हो जाए. मातापिता को भी अपनी संतान के चरित्रनिर्माण में सख्ती से काम लेना पड़ता है तो क्या वे उस के दुश्मन हो जाते हैं, जो तुम उस की गलती पर उसे राह नहीं दिखातीं?’’

‘‘मैं क्या राह दिखाऊं? पढ़ीलिखी है और बैंक में काम करती है. छोटी बच्ची नहीं है वह जो मैं उसे समझाऊं. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है.’’

‘‘सब का अपनाअपना स्वभाव होता है तो फिर रहने दो न उसे उस के स्वभाव के साथ. गलती करती है तो उसे उस की जिम्मेदारी भी लेने दो. तुम तो उसे शह देती हो. यह मुझे बुरा लगता है.’’

मैं मानती हूं कि उमेश का खीजना सही है, मगर क्या करूं? मन का एक कोना बहन के लिए ममत्व से उबर ही नहीं पाता. मैं उसे बच्ची नहीं मानती. फिर भी बच्ची ही समझ कर उस की गलती ढकती रहती हूं. सोचा था क्व10-20 हजार उसे दे दूंगी. कह रही थी कि मार्च महीने में सारी की सारी तनख्वाह इनकम टैक्स में चली गई. घर का खर्च कैसे चलेगा? क्या वह इस सत्य से अवगत नहीं थी कि मार्च महीने में इनकम टैक्स कटता है? उस के लिए तैयारी क्या लोग पहले से नहीं करते हैं? पशुपक्षी भी अपनी जरूरत के लिए जुगाड़ करते हैं. तो क्या बरसात के मौसम के लिए छाते का इंतजाम नीमा के पड़ोसी या मित्र करेंगे? सिर मेरा है तो उस की सुरक्षा का प्रबंध भी मुझे ही करना चाहिए न. मैं हैरान हूं कि उस के पास तो घर खर्च के लिए भी पैसे नहीं थे और मानव ने बताया मौसी मौल में खरीदारी कर रही थीं. सामान से लदीफंदी घूम रही थीं तो शौपिंग के लिए पैसे कहां से आए?

सच कहते हैं उमेश कि कहीं मैं ही तो उसे नहीं बिगाड़ रही. उस के कान मरोड़ उसे उस की गलती का एहसास तो कराना ही चाहिए न. कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जिन के बिना गुजारा नहीं चलता. लेकिन वही हमें तकलीफ भी देते हैं. गले में स्थापित नासूर ऐसा ही तो होता है, जिसे काट कर फेंका नहीं जा सकता. उसी के साथ जीने की हमें आदत डालनी पड़ती है. निभातेनिभाते बस हम ही निभाते चलते जाते हैं और लेने वाले का मुंह सिरसा के मुंह जैसा खुलता ही जाता है.

40 की होने को आई नीमा. कब अपनी गलत आदतें छोड़ेगी? शायद कभी नहीं. मगर उस की वजह से अकसर मेरी अपनी गृहस्थी में कई बार अव्यवस्था आ जाती है. अकसर किसी के पैर पसारने की वजह से अगर मेरी भी चादर छोटी पड़ जाए तो कुसूर मेरा ही है. मैं ने अपनी चादर में उसे पैर पसारने ही क्यों दिए? मातापिता ही हैं जो औलाद के कान मरोड़ कर सही रास्ते पर लाने का दुस्साहस कर सकते हैं. वैसे तो एक उम्र के बाद सब की बुद्धि इतनी परिपक्व हो ही जाती है कि चाहे तो पिता का कहा भी न माने तो पिता कुछ नहीं कर सकता. मगर बच्चे के कान तक हाथ ले जाने का अधिकार उसे अवश्य होता है.

मैं ने शाम को कुछ सोचा और फिर नीमा के घर का रुख कर लिया. फोन कर के बताया नहीं कि मैं आ रही हूं. मानव कोचिंग क्लास जाता हुआ मुझे स्कूटर पर छोड़ता गया. नीमा तब स्तब्ध रह गई जब उस ने अपने फ्लैट का द्वार खोला.

‘‘दीदी, आप?’’

नीमा ने आगेपीछे ऐसे देखा जैसे उम्मीद से भी परे कुछ देख लिया.

‘‘दीदी आप? आप ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘बस सोचा तुझे हैरान कर दूं. अंदर तो आने दे… दरवाजे पर ही खड़ा कर दिया.’’

उसे एक तरफ हटा कर मैं अंदर चली आई. सामने उस का कोई सहयोगी था. मेज पर खानेपीने का सामान सजा था. होटल से मंगाया गया था. जिन डब्बों में आया था उन्हीं में खाया भी जा रहा था. पुरानी आदत है नीमा की, कभी प्लेट में सजा कर सलीके से मेज पर नहीं रखती. समोसेपकौड़े तो लिफाफे में ही पेश कर देती है. पेट में ही जाना है. क्यों बरतन जूठे किए जाएं? मुझे देख वह पुरुष सहसा असहज हो गया. सोचता होगा कैसी बदतमीज है नीमा की बहन एकाएक सिर पर चढ़ आई.

‘‘अपना घर है मेरा… फोन कर के आने की क्या तुक थी भला? बस बैठबैठे मन हुआ तो चली आई. क्यों तुम कहीं जाने वाली थी क्या?’’

मैं ने दोनों का चेहरा पढ़ा. पढ़ लिया मैं ने कुछ अनचाहा घट गया है उन के साथ.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए सोचा देख आऊं.’’

‘‘हां, विजय भी हालचाल पूछने ही आए हैं. ये मेरे सहयोगी हैं.’’

मेरे ही प्रश्न ने नीमा को राह दिखा दी. मैं ने तबीयत का पूछा तो उस ने झट से हालचाल पूछने के लिए आए सहयोगी की स्थिति साफ कर दी वरना झट से उसे कोई बहाना नहीं सूझ रहा था. मेरी बहन है नीमा. भला उसी के रंगढंग मैं नहीं पहचानूंगी? बचपन से उस की 1-1 हरकत मैं उस का चेहरा पढ़ कर ही भांप जाती हूं. 10 साल छोटी बहन मेरी बहुत लाडली है. 10 साल तक मेरे मातापिता मात्र एक ही संतान के साथ संतुष्ट थे. मैं ही अकेलेपन की वजह से बीमार रहने लगी थी. मौसी और बूआ सब की 2-2 संतानें थीं और मेरे घर में मैं अकेली. बड़ों में बैठती तो वे मुझे उठा देते कि चलो अंदर जा कर खेलो. क्या खेलो? किस के साथ खेलो? बेजान खिलौने और बेजान किताबें… किसी जानदार की दरकार होने लगी थी मुझे. मैं चिड़ीचिड़ी रहती थी, जिस का इलाज था भाई या बहन.

भाई या बहन आने वाला हुआ तो मातापिता ने मुझे समझाना शुरू कर दिया कि सारी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी ही होगी. अपना सुखदुख भूल मैं नीमा के ही सुख में खो गई. 10 साल की उम्र से ही मुझ पर इतनी जिम्मेदारी आ गई कि अपनी हर इच्छा मुझे व्यर्थ लगती. ‘‘तुम उस की मां नहीं हो शुभा… जो उस के मातापिता थे वही तुम्हारे भी थे,’’ उमेश अकसर समझाते हैं मुझे.

अवचेतन में गहरी बैठा दी गई थी मातापिता द्वारा यह भावना कि नीमा उसी के लिए संसार में लाई गई है. मुझे याद है अगर हम सब खाना खा रहे होते और नीमा कपड़े गंदे कर देती तो रोटी छोड़ कर उस के कपड़े मां नहीं मैं बदलती थी. जबकि आज सोचती हूं क्या वह मेरा काम था? क्या यह मातापिता का फर्ज नहीं था? क्या बहन ला कर देना मेरे मातापिता का मुझ पर एहसान था? इतना ज्यादा कर्ज जिसे 40 साल से मैं उतारतेउतारते थक गई हूं और कर्ज है कि खत्म ही नहीं होता है.

‘‘आओ दीदी बैठो न,’’ अनमनी सी बोली नीमा.

मेरी नजर सोफे पर पड़े लिफाफों पर पड़ी. जहां से खरीदे गए थे उन पर उसी मौल का पता था जिस के बारे में मानव ने मुझे बताया था. कुछ खुले परिधान बिखरे पड़े थे आसपास. शायद नीमा उन्हें पहनपहन कर देख रही थी या फिर दिखा रही थी.

छटी इंद्री ने मुझे एक संकेत सा दिया… यह पुरुष नीमा की जिंदगी में क्या स्थान रखता है? क्या इसी को नीमा नए कपड़े पहनपहन कर दिखा रही थी.

‘‘क्या बुखार था तुम्हें? आजकल मौसम बदल रहा है… वायरल हो गया होगा,’’ कह मैं ने कपड़ों को धकेल कर एक तरफ किया.

उसी पल वह पुरुष उठ पड़ा, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं.’’

‘‘अरे बैठिए न… आप अपना खानापीना तो पूरा कीजिए. बैठो नीमा,’’ मेरा स्वर थोड़ा बदल गया होगा, जिस पर दोनों ने मुझे बड़ी गौर से देखा.

उस पुरुष ने कुछ नहीं कहा और फिर चला गया. नीमा भी अनमनी सी लगी मुझे.

‘‘बीमार थी तो यह फास्ट फूड क्यों खा रही हो तुम?’’ डब्बों में पड़े नूडल्स और मंचूरियन पर मेरी नजर पड़ी. उन डब्बों में 1 ही चम्मच रखा था. जाहिर है, दोनों 1 ही चम्मच से खा रहे थे.

‘‘कुछ काम था तुम से इसलिए फोन पर बात नहीं की… मुझे कुछ रुपए चाहिए थे… मानव की कोचिंग क्लास के लिए… तुम्हारी तरफ मेरे कुल मिला कर 40 हजार रुपए बनते हैं. तुम तो जानती हो मार्च का महीना है.’’ नीमा ने मुझे विचित्र सी नजरों से देखा जैसे मुझे पहली बार देख रही हो… चूंकि मैं ने कभी रुपए वापस नहीं मांगे थे, इसलिए उस ने भी कभी वापस करना जरूरी नहीं समझा. मैं बड़ी गौर से नीमा का चेहरा पढ़ रही थी. मैं उस की शाम बरबाद कर चुकी थी और संभवतया नैतिक पतन का सत्य भी मेरी समझ में आ गया था. अफसोस हो रहा है मुझे. एक ही मातापिता की संतान हैं हम दोनों बहनें और चरित्र इतना अलगअलग… एक ही घर की हवा और एक ही बरतन से खाया गया खाना खून में इतना अलगअलग प्रभाव कैसे छोड़ गया.

‘‘मेरे पास पैसे कहां…?’’ नीमा ने जरा सी जबान खोली.

‘‘क्यों? अकेली जान हो तुम. पति और बेटा अलग शहर में रहते हैं… उस पर तुम एक पैसा भी खर्च नहीं करती… कहां जाते हैं सारे पैसे?’’

नीमा अवाक थी. सदा उसी की पक्षधर उस की बहन आज कैसी जबान बोलने लगी. बोलना तो मैं सदा ही चाहती थी, मगर एक आवरण था झीना सा खुशफहमी का कि शायद वक्त रहते नीमा का दिमाग ठीक हो जाए. उस का परिवार और मेरा परिवार तो सदा ही उस के आचरण से नाराज था बस एक मैं ही उस के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसी थी और आज वह सहारा भी मैं ने छीन लिया.

‘‘पाईपाई कर जमा किए हैं मैं ने पैसे… मानव के दाखिले में कितना खर्चा होने वाला है, जानती हो न? मेरी मदद न करो, लेकिन मेरे रुपए लौटा दो. बस उन से मेरा काम हो जाएगा,’’ कह कर मैं उठ गई. काटो तो खून नहीं रहा नीमा में. मेरा व्यवहार भी कभी ऐसा होगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा होगा. उस की हसीन होती शाम का अंजाम ऐसा होगा, यह भी उस की कल्पना से परे था. कुछ उत्तर होता तो देती न. चुपचाप बैठ गई. उस के लिए मैं एक विशालकाय स्तंभ थी जिस की ओट में छिप वह अपने पति के सारे आक्षेप झुठला देती थी.

‘‘देखो न दीदी अजय कुछ समझते ही नहीं हैं…’’

अजय निरीह से रह जाते थे. नीमा की उचितअनुचित मांगों पर. नारी सम्मान की रक्षा पर बोलना तो आजकल फैशन बनता जा रहा है. लेकिन सोचती हूं जहां पुरुष नारी की वजह से पिस रहा है उस पर कोई कानून कोई सभा कब होगी? अपने मोह पर कभी जीत क्यों नहीं पाई मैं. कम से कम गलत को गलत कहना तो मेरा फर्ज था न, उस से परहेज क्यों रखा मैं ने? अफसोस हो रहा था मुझे. दम घुटने लगा मेरा नीमा के घर में… ऐसा लग रहा था कोई नकारात्मक किरण मेरे वजूद को भेद रही है. मातापिता की निशानी अपनी बहन के वजूद से मुझे ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई. सच कहूं तो ऐसा लगता रहा मांपिताजी के रूप में नीमा ही है मेरी सब कुछ और शायद यही अनुभूति मेरा सब से बड़ा दोष रही. कब तक अपना दोष मैं न स्वीकारूं? नीमा की भलाई के लिए ही उस से हाथ खींचना चाहिए मुझे… तभी वह कुछ सही कर पाएगी…

‘‘दीदी बैठो न.’’

‘‘नहीं नीमा… मुझे देर हो रही है… बस इतना ही काम था,’’ कह नीमा का बढ़ा हाथ झटक मैं बाहर चली आई. गले तक आवेग था. रिकशे वाले को मुश्किल से अपना रास्ता समझा पाई. आंसू पोंछ मैं ने मुड़ कर देखा. पीछे कोई नहीं था, जो मुझे रोकता. मुझे खुशी भी हुई जो नीमा पीछे नहीं आई. बैठी सोच रही होगी कि यह दीदी ने कैसी मांग कर दी… पहले के दिए न लौटा पाए न सही कम से कम और तो नहीं मांगेगी न… एक भारी बोझ जैसे उतर गया कंधों पर से… मन और तन दोनों हलके हो गए. खुल कर सांस ली मैं ने कि शायद अब नीमा का कायापलट हो जाए.

वे तीन शब्द: क्या आरोही को अपना हमसफर बना पाया आदित्य ?

दीवाली की उस रात कुछ ऐसा हुआ कि जितना शोर घर के बाहर मच रहा था उतना ही शोर मेरे मन में भी मच रहा था. मुझे आज खुद पर यकीन नहीं हो रहा था. क्या मैं वही आदित्य हूं, जो कल था… कल तक सब ठीक था… फिर आज क्यों मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था… आज मैं अपनी ही नजरों में गुनाहगार हो गया था. किसी ने सही कहा है, ‘आप दूसरे की नजर में दोषी हो कर जी सकते हैं, लेकिन अपनी नजर में गिर कर कभी नहीं जी सकते.’

मुझे आज भी आरोही से उतना ही प्यार था जितना कल था, लेकिन मैं ने फिर भी उस का दिल तोड़ दिया. मैं आज बहुत बड़ी कशमकश में गुजर रहा हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? मैं गलत नहीं हूं, फिर भी खुद को गुनाहगार मान रहा हूं. क्या दिल सचमुच दिमाग पर इतना हावी हो जाता है? प्यार की शुरुआत जितनी खूबसूरत होती है उस का अंत उतना ही डरावना होता है.

मैं आरोही से 2 साल पहले मिला था. क्यों मिला था, इस का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, क्योंकि उस से मिलने की कोई वजह मेरे पास थी ही नहीं, जहां तक सवाल है कैसे मिला था, तो इस का जवाब भी बड़ा अजीब है. मैं एटीएम से पैसे निकाल रहा था, उस के हाथ में पहले से ही इतना सारा सामान था कि उस को पता ही नहीं चला कि कब उस का एक बैग वहीं रह गया. मैं ने फिर उस को ‘ऐक्सक्यूज मी’ कह कर पुकारा और कहा, ‘‘आप का बैग वहीं रह गया था.’’

बस, यहां हुई थी हमारी पहली मुलाकात. अपने बैग को सहीसलामत देख कर वह खुशी से ऐसे उछल पड़ी मानो किसी ने आसमान से चांद भले ही न सही, लेकिन कुछ तारे तोड़ कर ला दिए हों. लड़कियों का खुशी में इस तरह का बरताव करने वाला फंडा मुझ को आज तक समझ नहीं आया. उस की मधुर आवाज में ‘थैंक्यू’ के बदले जब मैं ने ‘इट्स ओके’ कहा तो बदले में जवाब नहीं सवाल आया और वह सवाल था, ‘‘आप का नाम?’’

मैं ने भी थोड़े स्टाइल से, थोड़ी शराफत के साथ अपना नाम बता दिया, ‘‘जी, आदित्य.’’ ‘‘ओह, मेरा नाम आरोही है,’’ उस ने मेरे से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘भैया, कनाटप्लेस चलोगे?’’ मैं ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. यह सवाल उस ने मुझ से नहीं बल्कि साथ खड़े औटो वाले से किया था.

‘‘नहीं मैडमजी, मैं तो यहां एक सवारी को ले कर आया हूं. यहां उन का 5 मिनट का काम है, मैं उन्हीं को ले कर वापस जाऊंगा.’’ ‘‘ओह,’’ मायूसी से आरोही ने कहा.

‘‘अम्म…’’ मैं ने मन में सोचा ‘पूछूं या नहीं, अब जब इनसानियत निभा रहा हूं तो थोड़ी और निभाने में मेरा क्या चला जाएगा?’ ‘‘जी दरअसल, मैं भी कनाटप्लेस ही जा रहा हूं, लेकिन मुझे थोड़ा आगे जाना है. अगर आप कहें तो मैं आप को वहां तक छोड़ सकता हूं,’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा.

उस का जवाब हां में था. यह उस की जबान से पहले उस की आंखों ने कह दिया था. मैं ने उस का बैग कार में रखा और उस के लिए कार का दरवाजा खोला.

रास्ते में हम ने एकदूसरे से काफी बातचीत की. ‘‘ क्या आप यहीं दिल्ली से हैं?’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘नहीं, यहां तो मैं अपने चाचाजी के घर आई हूं. उन की बेटी यानी मेरी दीदी की शादी है इसलिए आज मैं शौपिंग के लिए आई थी,’’ आरोही ने मुसकान के साथ कहा. ‘‘कमाल है, दिल्ली जैसे शहर में अकेले शौपिंग जबकि आप दिल्ली की भी नहीं हैं,’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, नहींनहीं, दिल्ली मेरे लिए बिलकुल भी नया शहर नहीं है. मैं दिल्ली कई बार आ चुकी हूं. मेरी स्कूल की छुट्टियों से ले कर कालेज की छुट्टियां यहीं बीती हैं इसलिए न दिल्ली मेरे लिए नया है और न मैं दिल्ली के लिए.’’ मैं ने और आरोही ने कार में बहुत सारी बातें कीं. वैसे मेरे से ज्यादा उस ने बातें की, बोलना भी उस की हौबी में शामिल है. यह उस के बिना बताए ही मुझे पता चल गया था.

उस के साथ बात करतेकरते पता ही नहीं चला कि कब कनाटप्लेस आ गया. ‘‘थैंक्यू सो मच,’’ आरोही ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘प्लीज यार, मैं ने कोई बड़ा काम नहीं किया है. मैं यहां तक तो आ ही रहा था तो सोचा आप भी वहां तक जा रही हैं तो क्यों न लिफ्ट दे दूं, और आप के साथ तो बात करते हुए रास्ते का पता ही नहीं चला कि कब क्नाटप्लेस आ गया,’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा. ‘‘चलिए, मुझे भी दिल्ली में एक दोस्त मिला,’’ आरोही ने कहा.

‘‘अच्छा, अगर हम अब दोस्त बन ही गए हैं तो मेरी अपनी इस नई दोस्त से कब और कैसे बात हो पाएगी?’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए पूछा. वह कुछ देर के लिए शांत हो गई. उस ने फिर कहा, ‘‘अच्छा, आप मुझे अपना नंबर दो, मैं आप को फोन करूंगी.’’

मैं ने उसे अपना नंबर दे दिया. आरोही ने मेरा नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया और बाय कह कर चली गई.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मैं भी तो आरोही से उस का नंबर ले सकता था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो… ‘चलो, कोई बात नहीं,’ मैं ने स्वयं को सांत्वना दी.

उस दिन मेरे पास जो भी फोन आ रहा था मुझे लग रहा था कि यह आरोही का होगा, लेकिन किसी और की आवाज सुन कर मुझे बहुत झुंझलाहट हो रही थी. मुझे लगा कि आरोही सच में मुझे भूल गई है. वैसे भी किसी अनजान शख्स को कोई क्यों याद रखेगा और अगर उसे सच में मुझ से बात करनी होती तो वह मुझे भी अपना नंबर दे सकती थी.

अगले दिन सुबह मैं औफिस के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया, ‘‘हैलो, आई एम आरोही.’’ मैसेज देख कर मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस ने मुझे मैसेज किया है.

मैं ने तुरंत उसे मैसेज का जवाब दिया, ‘‘तो आखिर आ ही गई याद आप को अपने इस नए दोस्त की.’’ उधर से आरोही का मैसेज आया, ‘‘सौरी, दरअसल, कल मैं काम में बहुत व्यस्त थी और जब फ्री हुई तो बहुत देर हो चुकी थी तो सोचा इस वक्त फोन या मैसेज करना ठीक नहीं है.’’

मैं ने आरोही को मैसेज किया, ‘‘दोस्तों को कभी भी डिस्टर्ब किया जा सकता है.’’ आरोही का जवाब आया, ‘‘ओह, अब याद रहेगा.’’

बस, यहीं से शुरू हुआ हमारी बातों का सिलसिला. जहां मुझे अभी कुछ देर पहले तक लगता था कि अब शायद ही उस से दोबारा मिलना होगा. लेकिन कभीकभी जो आप सोचते हैं उस से थोड़ा अलग होता है. आरोही की बड़ी बहन की शादी मेरे ही औफिस के सहकर्मी से थी. जब औफिस के मेरे दोस्त ने मुझे शादी का कार्ड दिया तो शादी की बिलकुल वही तारीख और जगह को देख कर मैं समझ गया कि हमारी दूसरी मुलाकात का समय आ गया है.

पहले तो शायद मैं शादी में न भी जाता, लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ आरोही से दोबारा मिलने के लिए जा रहा था. मैं ने झट से उसे मैसेज किया, ‘‘मैं भी तुम्हारी दीदी की शादी में आ रहा हूं.’’

आरोही का जवाब में मैसेज आया, ‘‘लेकिन आदित्य, मैं ने तो तुम्हें बुलाया ही नहीं.’’ उस का मैसेज देख कर मुझे बहुत हंसी आई, मैं ने ठिठोली करते हुए लिखा, ‘‘तो?’’

उस का जवाब आया, ‘‘तो क्या… मतलब तुम बिना बुलाए आओगे, किसी ने पूछ लिया तो?’’ मुझे बड़ी हंसी आई, मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए उसे फोन किया, ‘‘हैलो, आरोही,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम बिना बुलाए आओगे शादी में,’’ आरोही ने एक सांस में कहा, ‘‘हां, तो मैं डरता हूं्र्र क्या किसी से, बस, मैं आ रहा हूं,’’ मैं ने थोड़ा उत्साहित हो कर कहा. ‘‘लेकिन किसी ने देख लिया तो,’’ आरोही ने बेचैनी के साथ पूछा.

‘‘मैडम, दिल्ली है दिल वालों की,’’ यह कह कर मैं हंस दिया. लेकिन मेरी हंसी को उस की हंसी का साथ नहीं मिला तो मैं ने सोचा, ‘अब राज पर से परदा हटा देना चाहिए.’ मैं ने कहा, ‘‘अरे बाबा, डरो मत, मैं बिना बुलाए नहीं आ रहा हूं, बाकायदा मुझे निमंत्रण मिला है आने का.’’

‘‘ओह,’’ कह कर आरोही ने गहरी सांस ली. ‘‘तो अब तो खुश हो तुम,’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘हां, बहुत…’’ आरोही की आवाज में उस की खुशी साफ झलक रही थी. उस दिन बरात के साथ जैसे ही मैं मेनगेट पर पहुंचा तो बस मेरी निगाहें एक ही शख्स को ढूंढ़ रही थीं. वहां पर बहुत सारे लोग मौजूद थे, लेकिन आरोही नहीं थी.

काफी देर तक जब इधरउधर देखने के बाद भी मुझे आरोही नहीं दिखाई दी तो मैं ने उस के मोबाइल पर कौल की, ‘‘कहां हो तुम…, मैं कब से तुम को इधरउधर ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने बेचैनी से पूछा. ‘‘ओह, पर क्यों… हम्म…’’ उस ने चिढ़ाते हुए कहा.

मैं ने भी उस को चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘ओह, ठीक है फिर लगता है हमारी वह मुलाकात पहली और आखिरी थी.’’ ‘‘अरे, क्या हुआ, बुरा लग गया क्या, अच्छा बाबा, मैं आ रही हूं,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘लेकिन तुम हो कहां?’’ मैं ने आरोही से पूछा. ‘‘जनाब, पीछे मुड़ कर देखिए,’’ आरोही ने हंसते हुए कहा.

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो बस देखता ही रह गया. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी में एक लड़की मेरे सामने खड़ी थी. हां, वह लड़की आरोही थी. उस के खुले हुए बाल, हाथों में साड़ी की ही मैचिंग गुलाबी चूडि़यां, आज वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. आज मुझे 2 बातों का पता चला, पहला यह कि लोग यह कहावत क्यों कहते हैं कि मानो कोई अप्सरा जमीन पर उतर आई हो, और दूसरी बात यह कि शादी में क्यों लोग दूल्हे की सालियों के दीवाने हो जाते हैं.

मैं ने उसी की तरफ देख कर कहा, ‘‘जी, आप कौन, मैं तो आरोही से मिलने आया हूं, आप ने देखा उस को.’’ उस ने बड़ी बेबाकी से कहा, ‘‘मेरी शक्ल भूल गए क्या, मैं ही तो आरोही हूं.’’

मैं ने उस की तरफ अचरज भरी निगाहों से देख कर कहा, ‘‘जी, आप नहीं, आप झूठ मत बोलिए, वह इतनी खूबसूरत है ही नहीं जितनी आप हैं.’’ आरोही ने गुस्से से घूरते हुए कहा, ‘‘ओह, तो तुम मेरी बुराई कर रहे हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, मैं तो आप की तारीफ कर रहा हूं.’’ वह दिन मेरे लिए बहुत खुशी का दिन था, मैं ने आरोही के साथ बहुत ऐंजौय किया. उस ने मुझे अपने मम्मीपापा और भाईबहन से मिलवाया. पूरी शादी में हम दोनों साथसाथ ही रहे.

जातेजाते वह मुझे बाहर तक छोड़ने आई. मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा सुनो, मैं उस समय मजाक कर रहा था. तुम जितनी मुझे आज अच्छी लगी हो न उतनी ही अच्छी तुम मुझे उस दिन भी लगी थी जब हम पहली बार मिले थे,’’ यह सुन कर वह शरमा गई. अब हम दोनों घंटों फोन पर बातें करते. वह अपनी शरारतभरी बातों से मुझे हंसाती और कभी चिढ़ा दिया करती थी. मैं कभी बहुत तेज हंसता तो कभीकभी मजाक में गुस्सा कर दिया करता. हम दोनों के मन में एकदूसरे के लिए इज्जत और दिल में प्यार था. जिस की वजह से हम दोनों बिना एकदूसरे से सवाल किए बात करते थे. कुछ चीजों के लिए कभीकभी शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ती. आप की निगाहें ही आप के दिल का हाल बयां कर देती हैं. फिर भी वे 3 शब्द कहने से मेरा दिल डरता है.

अब मुझे रोमांटिक फिल्में देखना अच्छा लगता है. उन फिल्मों को देख कर मुझे ऐसा नहीं लगता था कि क्या बेवकूफी है. जहन में आरोही का नाम आते ही चेहरा एक मुसकान अपनेआप ओढ़ लेता था और बहुत अजीब भी लगता था, जब कोई अनजान शख्स मुझे इस तरह मुसकराता देख पागल समझता था. अपनी मुसकान को रोकने की जगह मैं उस जगह से उठ जाना ज्यादा अच्छा समझता था. ‘‘हाय, गुडमौर्निंग,’’ आज यह मैसेज आरोही की तरफ से आया.

हमेशा की तरह आज भी मैं ने आरोही को फोन किया, लेकिन आज पहली बार उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. मैं पूरे दिन उस का नंबर मिलाता रहा, लेकिन उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. आज दीवाली है और आरोही मुझे जरूर फोन करेगी, लेकिन आज भी जब उस का कोई फोन नहीं आया तो मैं ने उस को फिर फोन किया. आज आरोही ने फोन उठा लिया.

‘‘कहां हो आरोही, कल से मैं तुम्हारा फोन मिला रहा हूं, लेकिन तुम फोन ही नहीं उठा रही थी,’’ मैं ने गुस्से में आरोही से कहा. ‘‘यह सब परवा किसलिए आदित्य,’’ आरोही ने रोते हुए पूछा.

‘‘परवा, क्या हो गया तुम्हें, सब ठीक तो है न… और तुम रो क्यों रही हो?’’ मैं ने बेचैनी से आरोही से पूछा. ‘‘प्लीज आदित्य, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कानपुर मेरी शादी की बात चल रही थी इसलिए बुलाया गया था, लेकिन तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम्हें तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा था जब मैं उस दिन रेस्तरां में तुम्हें घर वापस आने की बात कहने आई थी,’’ आरोही एक सांस में बोले जा रही थी. मानो कई दिन से अपने दिल पर रखा हुआ बोझ हलका कर रही हो.

‘‘तुम्हारे लिए मैं कभी कुछ थी ही नहीं आदित्य, शायद यह सब बोलने का कोई हक नहीं है मुझे… और न ही कोई फायदा, शायद अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे, अलविदा…’’ यह कह कर आरोही ने फोन रख दिया. मैं एकटक फोन को देखे जा रहा था, जो आरोही हमेशा खिलखिलाती रहती थी आज वही फूटफूट कर रो रही थी. इसलिए आज मैं खुद को गुनाहगार मान रहा था, लेकिन अब मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं अपनी आरोही को और नहीं रुलाऊंगा, मैं जान चुका हूं कि आरोही भी मुझे उतना ही प्यार करती है जितना कि मैं उसे करता हूं.

मैं ने फैसला कर लिया कि मैं कल सुबह ही टे्रन से कानपुर जाऊंगा. आज की यह रात बस किसी तरह सुबह के इंतजार में गुजर जाए. मैं ने अगली सुबह कानपुर की टे्रन पकड़ी. 10 घंटे का यह सफर मेरे लिए, मेरे जीवन के सब से मुश्किल पल थे. मैं नहीं जानता था कि आरोही मुझे देख कर क्या कहेगी, कैसा महसूस करेगी, इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं, मैं ने जैसे ही आरोही के घर पहुंच कर उस के घर के दरवाजे की घंटी बजाई तो आरोही ने ही दरवाजा खोला. आरोही मुझे देख कर चौंक गई.

मैं ने आरोही को गले लगा लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो आरोही… सारी मेरी ही गलती है. मुझे हमेशा यही लगता था कि अगर मैं तुम से अपने दिल की बात कहूंगा तो तुम को हमेशा के लिए खो दूंगा. मैं भूल गया था कि मैं कह कर नहीं बल्कि खामोश रह कर तुम्हें खो दूंगा.’’ आरोही की आंखों में आंसू थे. उस के घर के सभी लोग वहां मौजूद थे. मैं ने आरोही की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘कल तक मुझ में हिम्मत नहीं थी, लेकिन आज मैं तुम्हारे प्यार की खातिर यहां आया हूं, आई लव यू आरोही, बोलो, तुम दोगी मेरा साथ…’’ मैं ने अपना हाथ आरोही की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

आरोही ने अपना हाथ मेरे हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘आई लव यू टू.’’ आज आरोही और मेरे इस फैसले में उस के परिवार वालों का आशीर्वाद भी शामिल था.

Skin Care Tips : स्किन के अनुसार चुनें फेस सीरम, रुक जाएगा बढ़ती उम्र का प्रभाव

Skin Care Tips: प्रदूषण, गंदगी, धूप और बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल के कारण अब लोगों को स्किन केयर पर दोगुना ध्यान देना पड़ता है. थोड़ी सी भी लापरवाही आप की स्किन की परेशानियां बढ़ा सकती है. यही कारण है कि स्किन केयर की लिस्ट में अब फेस सीरम ने अपनी अलग जगह बना ली है. यह ​त्वचा को न सिर्फ पूरा पोषण देते हैं, बल्कि कई स्किन प्रौब्लम्स को दूर भी करते हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि कौन सा फेस सीरम आप के लिए अच्छा है?

फेस सीरम का सही फायदा आप को तब ही मिलेगा जब आप अपनी स्किन के अनुसार इसे चुनेंगे. अगर आप भी इस सीक्रेट को नहीं जानते हैं, तो आइए आज हम बताते हैं कि आप सही फेस सीरम कैसे चुनें :

औयली स्किन के लिए

अगर आप की स्किन औयली है तो आप को लाइट फेस सीरम चुनने चाहिए, जो आप के स्किन पोर्स को बंद न करें. आप के लिए सैलिसिलिक एसिड, नियासिनामाइड, ह्यूलूरोनिक एसिड और विटामिन सी बैस्ट है. ये सभी सीरम लाइट होते हैं, जिस से आप के पोर्स ब्लौक नहीं होंगे.

सैंसिटिव स्किन के लिए

सैंसिटिव स्किन के लिए आप को बहुत ही संभल कर फेस सीरम चुनना चाहिए. ध्यान रखें कि फेस सीरम का इस्तेमाल करने से पहले आप को पैच टेस्ट भी जरूर करना चाहिए. इस स्किन टाइप के लिए आप को नियासिनामाइड, लैवेंडर औइल या फिर एलोवेरा जैल का उपयोग करना चाहिए.

ड्राई स्किन के लिए जरूरी है हाइड्रेशन

अगर आप की स्किन ड्राई है तो आप को एक ऐसा सीरम चुनना चाहिए जिस से आप को पूरा हाइड्रेशन मिले. इस से ​त्वचा में नमी बनी रहती है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप पूरे हाइड्रेशन वाला फेस सीरम चुनें. आप के लिए ग्लिसरीन युक्त फेस सीरम अच्छे रहते हैं. आप के लिए ह्यूलूरोनिक एसिड और सेरेमाइड्स एसिड बैस्ट रहेगा.

ऐसे बैलेंस होगी कौंबिनेशन स्किन

अगर आप की कौंबिनेशन स्किन है तो आप के पास फेस सीरम के कई औप्शन हैं. आप को ऐसे सीरम की जरूरत है जो आप की स्किन को बैलेंस करे. इस के लिए आप को विटामिन सी और विटामिन ई से युक्त सीरम यूज करना चाहिए. ह्यूलूरोनिक एसिड और नियासिनामाइड एसिड वाले फेस सीरम आप के लिए बैस्ट हैं. ये आप की स्किन के हाइड्रेशन को बैलेंस रखेंगे.

उम्र के प्रभाव को रोक सकते हैं ये सीरम

आजकल झुर्रियां, फाइनलाइंस जैसी समस्याएं लोगों को उम्र से पहले ही होने लगी हैं. एक अच्छा फेस सीरम आप को इन परेशानियों से बचा सकता है. इसलिए आप को रैटिनोल, पेप्टाइड्स, विटामिन सी और ह्यूलूरोनिक एसिड युक्त फेस सीरम यूज करना चाहिए. पिगमैंटेशन और डार्क स्पौट्स से राहत पाने के लिए विटामिन सी, अल्फा हाइड्रोक्सी एसिड, ग्लिकोलिक एसिड और रैटिनोल युक्त फेस सीरम लगाने चाहिए.

इको फ्रैंडली इनविटेशन से लेकर पौपअप कार्ड तक, ट्रैंड में है Wedding Invitation के ये डिजाइन्स

Wedding Invitation : भारतीय शादियों में लोगों को बुलाने के लिए खूबसूरत इनविटेशन कार्ड भिजवाए जाते हैं. चूंकि अब फैशन का जमाना है तो ऐसे में शादी के कार्ड का भी फैशन बदलता जा रहा है. मार्केट में मौजूद डिजाइन और ट्रैंड्स न केवल सुंदर और आकर्षक हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल और आधुनिक तकनीक से भरे हुए हैं.

2024 में इनविटेशन कार्ड के नए डिजाइन और ट्रैंड्स में आधुनिकता और परंपरा का अच्छा मेल है.इसलिए हम आप को कुछ डिजाइन और ट्रैंड्स के बारे में बता रहे हैं :

इको फ्रैंडली इनविटेशन : शादी करने वाले कपल इको फ्रैंडली कार्ड्स की काफी डिमांड कर रहे हैं जिस में सब से यूनिक और इनोवेटिव है प्लांटेबल वैडिंग कार्ड जो अनोखे, सुंदर, कस्टमाइजेबल होते हैं क्योंकि इन के पेपर में ऐसे बीज होते हैं जो निमंत्रण को लगाने पर फूल, जड़ीबूटियां, यहां तक कि सब्जियां भी उगा सकते हैं.

लोकप्रिय बीजों में जंगली फूल, तुलसी और सलादपत्ते शामिल हैं.आजकल लोग रीसाइकिल किए गए पेपर, बीज वाले पेपर और बायोडिग्रेडेबल पेपर का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि पर्यावरण का ध्यान रखा जा सके.

डिजिटल और वीडियो निमंत्रण : डिजिटल निमंत्रण का चलन बढ़ रहा है. इस में वीडियो इनवाइट्स और एनिमेशन शामिल होते हैं, जो इसे आकर्षक और आसान बनाते हैं. QR कोड का उपयोग भी हो रहा है जिस से मेहमान इवैंट की जानकारी आसानी से देख सकें. साथ ही लोगों के पास समय न होने के कारण भी वे डिजिटल कार्ड पसंद कर रह हैं. डिजिटल कार्ड औनलाइन भेजे जाते हैं, इसलिए उन्हें ऐक्सट्रा शिपिंग या डिलिवरी चार्ज के बिना ही दुनियाभर में भेजा जा सकता है. लेकिन इन्हें भेजने से पहले अपने व्हाट्सऐप पर डिसपिएरिंग औप्शन जरूर बंद कर दें.

कस्टम और बोल्ड टाइपोग्राफी : अब बोल्ड टाइपोग्राफी भी काफी यूज में है. हाथ से लिखी हुई शैली और विशेष फौंट्स का उपयोग निमंत्रण को स्पैशल बनाता है. बोल्ड टाइपोग्राफी और कलात्मक अक्षरों का प्रयोग ट्रैंड में चल रहा है.

मिनिमलिस्टिक डिजाइन : साधारण और साफसुथरे डिजाइन जो मोनोक्रोम और न्यूट्रल कलर पैलेट का उपयोग करते हैं, एक क्लासी और ऐलिगेंट लुक देते हैं. गोल्ड, सिल्वर और रोज गोल्ड जैसे मेटैलिक ऐक्सेंट्स भी ट्रैंड में हैं.

फ्लोरल और नेचर थीम : कई कपल नेचर के काफी क़रीब होते हैं और फूलों को बहुत पसंद करते हैं. अपने इनविटेशन कार्ड में भी नेचर से जुड़ी चीजों का उपयोग कर निमंत्रणकार्ड को कुछ हट कर बनाना चाहते हैं. इस में वाटरकलर और ऐब्सट्रैक्ट फ्लोरल डिजाइन बहुत पसंद किए जा रहे हैं.

रैट्रो और विंटेज वाइब्स : 70 और 80 के दशक की डिजाइन व ट्रैंड की वापसी हो रही है. आर्ट डेको पैटर्न और विंटेज कलर स्कीम का उपयोग निमंत्रण को एक खास और आकर्षक लुक देता है.

इंटरऐक्टिव और पौपअप कार्ड : इस तरह के कार्ड में पौपअप डिजाइन और कई लेयर वाले डिजाइन इस्तेमाल हो रहे हैं, जिस से कार्ड को खोलने में मजा आता है.

AR और टैक्नोलौजी इंटीग्रेटेड इनविटेशन : औगमेंटेड रियलिटी (AR) फीचर्स से लैस निमंत्रण कार्ड्स एक नया आकर्षण जोड़ रहे हैं. मेहमान कार्ड को स्कैन कर 3D एनिमेशन या वीडियो देख सकते हैं, जो एक अविस्मरणीय अनुभव देता है.

Fatty Liver होने के क्या हैं कारण, जानें कैसे करें बचाव

Fatty Liver : बदलता लाइफस्टाइल आज हर किसी के लिए बीमारियों की जड़ बनता जा रहा है. रहनसहन व खानपान की खराब आदतें हमें उम्र से पहले बीमार कर रही हैं. कई बार ये बीमारियां इतनी घातक रूप ले लेती है कि व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है ऐसी ही आम दिखने वाली बीमारी है फैटी लिवर.

क्या है फैटी लिवर

लिवर के आसपास वैसे तो पहले से ही थोड़ा फैट होता है लेकिन जब फैट जरूरत से ज्यादा हो जाए तो फैटी लिवर की समस्या हो जाती है.

लिवर हमारे शरीर का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग है. यह हमारे शरीर के लिए प्रोटीन का निर्माण, पाचन के लिए पित्त का उत्पादन, विषाक्त पदार्थों को खून से निकाल कर संक्रमण से बचाता है व पोषक तत्त्वों को ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

यदि लिवर की समस्या में दवाइयां या परहेज में लापरवाही बरती जाए तो व्यक्ति की जान भी जा सकती है और यदि समय रहते सही इलाज मिल जाए तो व्यक्ति जल्दी ही ठीक हो जाता है.

तो जरूरी है कि इस के कारण, इलाज व बचाव की जानकारी सभी को होना.

कारण

शराब का अधिक सेवन, मसालेदार, तला हुआ भोजन खाना,आलस्य में रहना, शरारिक काम न करना,
मोटापा या अधिक वजन होना, टाइप 2 डायबिटीज होना,
मेटाबौलिज्म सिंड्रोम का होना, चीनी का अधिक सेवन, अधिक मात्रा में एसिटामिनोफेन दवाइयों का सेवन, विटामिन A सप्लिमैंट्स की अधिक मात्रा लेना इस के मुख्य कारण हैं.

लक्षण

पेट में दर्द की समस्या होना व पेट के दाहिने भाग में भारीपन बना रहना, भूख न लगना, उलटी लगना यानी जी मिचलाना, शरीर का रंग पीला होना व आंखें सफेद होना, पैरों में दर्द व सूजन होना, तेजी से वजन कम होना फैटी लिवर के लक्षण हैं.

किसे है अधिक खतरा

शराब का अधिक सेवन, बढ़ता मोटापा, महिलाओं को होता पोस्ट मेनोपौज, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या हाई कोलेस्ट्रौल, औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया से ग्रसित लोगों में फैटी लिवर की समस्या का खतरा अधिक होता है

कैसे करें बचाव

यदि आप इस समस्या से जूझ रहे हैं, तो समय रहते डाक्टर से संपर्क करें. शराब व तलेभुने खाने से परहेज करें. स्ट्रीट फ़ूड बिलकुल न खाएं. सौफ्ट ड्रिंक व चीनी का सेवन कम करें. धीरेधीरे अपना वजन कम करें. तेजी से वजन कम करना नुकसानदेह साबित हो सकता है.

यदि डायबिटीज है तो नियंत्रण के लिए दवा अवश्य लें. रोजाना व्यायाम अवश्य करें.

चालाक भी: होशियार निकली लड़की

मेरे होंठों पर तो केवल एक हलकी सी मुसकान आई, पर पत्नी के चेहरे पर तब आश्चर्य था जब हमारे मित्र ने उसे बताया कि इस समय अर्थात रात के लगभग 1 बजे आने वाला आगंतुक एक महिला होगी. पर जब वह आई तो उस में ऐसा कुछ असाधारण नहीं दिखा. एक साधारण नारी की तरह उस के पास भी 2 ही भुजाएं थीं. उन 2 भुजाओं में भी उस ने कोई अस्त्रशस्त्र नहीं थाम रखा था. उस के हाथ तो टिके हुए थे अपनी नीली छत वाली उस वातानुकूलित टैक्सी के स्टेयरिंग पर.

उन हाथों की पकड़ को मैं ने ध्यान से देख कर उन में घबराहट या आत्मविश्वास की कमी का कोई लक्षण तलाशने की कोशिश तो की पर नाकामयाब रहा. उस की बातों से ही नहीं, उस के हाथों से भी आत्मविश्वास झोलक रहा था. पर वह बड़बोली नहीं थी. आत्मविश्वास ने नम्रता को स्थानापन्न नहीं किया था. वह अपनी सवारी से बातें करते हुए एक साधारण घरेलू महिला जैसी ही लग रही थी. पर शायद यहां मैं गलती कर रहा हूं. कोई घरेलू महिला रात के 2 बजे मुंबई महानगर की किसी सड़क पर एक नितांत अपरिचित के साथ बातें करती हुई इतनी सहज नहीं लग सकती थी जितनी मुंबई की वह महिला टैक्सीचालक लग रही थी.

टैक्सीचालिका कहना उस के नारीत्व का असम्मान होगा, इसलिए टैक्सीचालक कह कर ही उस की बात कर रहा हूं. उस की बातचीत में नारीसुलभ मिठास थी. किसी भी प्रकार का दंभ उस की बातों में नहीं था कि वह कोई असाधारण काम करती है. टैक्सी ड्राइव करने में उस का कौशल किसी पुरुष से कम नहीं था. अत: चालक और चालिका शब्दों का भेदभाव इस प्रसंग में बेमानी होगा और आत्मसम्मान के साथ जीविकोपार्जन करने के उस के चुने काम के प्रति बेईमानी भी. तो मैं उसे टैक्सी चालक ही कहूंगा.

कुछ समय अपने बेटेबहू के साथ बिताने के लिए मैं सपत्नीक दिल्ली से मुंबई आया हुआ था. एक पुराने मित्र का बहुत दिनों से आग्रह था कि मुंबई आने पर एक शाम उन के नाम करें. हम ने उस निमंत्रण को भुनाते हुए एक बहुत मजेदार शाम उन के साथ बिताई. 2-3 दशक पहले हम ने वायुसेना में साथसाथ काम किया था और हमारी पत्नियों की भी प्रगाढ़ दोस्ती थी. अत: उन बीते दिनों की याद करते हुए. गप्पें लगाते और खातेपीते कब 1 बज गया, पता ही नहीं चला. वैसे भी कोलाबा से जहां हम बेटे के पास ठहरे थे पोवाई के हीरानंदानी कौंप्लैक्स जहां मेरा मित्र रहता था, पहुंचने में बहुत देर हो गई थी. हम रात के 10 बजे के लगभग पोवाई पहुंचे थे तो फिर वापस आतेआते रात का 1 बज जाना मामूली बात थी. मित्र ने आग्रह कर के इतनी देर तक बैठाए रखा था. साथ ही आश्वस्त भी कर दिया था कि इस महानगर में रात के किसी भी प्रहर में टैक्सी आसानी से मिल जाएगी.

पर जब उस ने हमारी टैक्सी बुलाने के लिए फोन किया तो उस ने मेरी पत्नी से हंसते हुए कहा कि आप मेरे दोस्त के साथ हैं, इसलिए आज महिला ड्राइवर वाली टैक्सी बुलाता हूं. मेरे चेहरे पर तो केवल विस्मय के ही भाव थे पर मेरी पत्नी के चेहरे पर आश्चर्य के साथसाथ घबराहट भी थी. लेडी टैक्सी ड्राइवर? इतनी रात में? उसे डर नहीं लगेगा? क्या उस के साथ कोई सुरक्षागार्ड भी चलता है? उस ने एकसाथ इतने सारे प्रश्न पूछ डाले थे कि विस्मय से अधिक घबराहट और परेशानी उस के प्रश्नों में साफ झोलक रही थी.

मेरे दोस्त ने हंस कर ही जवाब दिया कि वह पहुंचने ही वाली है, सारे सवाल उसी से पूछ लेना.

महिला टैक्सी ड्राइवर का जिक्र आने से पहले हम चारों ने इतनी देर तक गप्पें मारते हुए न मालूम कितने अतीत के पृष्ठ पलट डाले थे. पर चूंकि हम दिल्ली से आए थे इसलिए अतीत से वर्तमान में पहुंचते ही बातें निर्भया के साथ हुए उस जघन्य बलात्कार और अमानवीय यंत्रणाओं तक पहुंच गईं जिन का प्रसंग आने पर रोंगटे खड़े हो जाते थे और देश की राजधानी के माथे पर लगे कलंक से हर दिल्लीवासी का चेहरा शर्म से झोक जाता था.

तब तक शक्ति मिल्स वाला मुंबई का घिनौना कांड नहीं हुआ था, इसलिए मेरे मित्र का कहना था कि मुंबई महिलाओं के लिए दिल्ली की अपेक्षा अधिक सुरक्षित है.

बहरहाल, इतनी देर तक महिलाओं की सुरक्षा को ले कर उठी बातचीत के कारण उस महिला टैक्सीचालक के आने पर जब हम उस की गाड़ी में बैठ कर विदा हुए तब तक हमारे मन में प्रश्नों का अंबार खड़ा हो गया था.

अभी टैक्सी उस कौंप्लैक्स से बाहर ही आई थी कि मेरी पत्नी ने पहला सवाल दाग दिया, ‘‘कोलाबा बहुत दूर है. तुम्हें इतनी दूर जाने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी?’’

तब उस ने सहज मुसकान के साथ जवाब दिया, ‘‘नहीं बाबा, जितना दूर का पैसेंजर मिले उतना ही अच्छा. अब इस टाइम कोई 2 किलोमीटर जाने के लिए बुलाए तब दिक्कत होगी मैडम.’’

उस की हिंदी भाषा और उच्चारण आम मुंबैया हिंदी से अधिक साफ था. स्पष्ट था कि अधिकांश मुंबैया टैक्सीचालकों की तरह वह ‘भैया’ नहीं थी. मु?ो पहले कुतूहल हुआ, फिर हंसी आ गई कि यदि वह भी बिहार या यूपी की होती तो उसे ‘भाभी’ कहते या ‘बहना’.

पत्नी ने बात जारी रखी, ‘‘हिंदी तो तुम्हारी मातृभाषा नहीं होगी?’’

‘‘नहीं मैडम, मैं आंध्रा की हूं. पर बचपन में ही इधर आ गई थी, इसलिए मराठी, हिंदी दोनों भाषाएं ठीक बोल लेती हूं. तेलुगु तो आती ही है, गुजराती भी मैनेज कर लेती हूं.’’

‘‘इस मैनेज शब्द से तो लगता है तुम अंगरेजी भी अच्छी तरह मैनेज कर लेती हो,’’ मैं ने भी बातचीत में घुसते हुए कहा.

वह खुश हो गई. गर्व से बोली, ‘‘हां सर, एअरपोर्ट से अकसर फौरनर मिल जाते हैं. उन से बात करने के लिए अंगरेजी जानना भी जरूरी हो जाता है.’’

‘‘अच्छा, एअरपोर्ट पर तो प्राय: रात कीही उड़ानें होती हैं. क्या तुम हमेशा रात में ही चलाती हो?’’

‘‘नहीं, शुरू में तो रात में नहीं चलाती थी. पर तब मुंबई के रास्ते ठीक से नहीं जानती थी. पर अब सब रास्ते अच्छी तरह पहचान गई हूं… फिर रात की शिफ्ट में ज्यादा पैसे…’’

मेरी पत्नी ने बीच में ही बात काटते हुए पूछा, ‘‘पर रात को टैक्सी चलाने में तुम्हें डर नहीं लगता? टैक्सी में हर तरह के लोग बैठते होंगे?’’

उस ने एक नि:श्वास लेते हुए उत्तर दिया, ‘‘अब मैडम, अगर कोई गुंडा, मवाली यात्री मिल जाए तो क्या दिन और क्या रात… सभी गड़बड़ है… दिन में भी अगर कोई शहर से बाहर कहीं दूर जाने को कहे तो उसे मना तो नहीं कर सकते हैं. पर अब तो काफी दिन हो गए हैं मु?ो गाड़ी चलाते. एकाध बार ही ऐसी सवारी थी जिस से मुझो थोड़ा डर लगा था.’’

‘‘क्या कोई हथियार भी साथ रखती हो तुम?’’ पत्नी ने पूछा तो वह हंस पड़ी, ‘‘अरे, मेरे को कौन पिस्तौल, रिवौल्वर खरीद कर देगा मैडम और फिर कोई दे भी दे तो उस का लाइसैंस मिलने में कम लफड़ा है क्या?’’ पर पत्नी संतुष्ट नहीं थीं. बात जारी रखने के लिए पूछा, ‘‘फिर?’’

हम शायद बातचीत में ही उल?ो रहते पर तभी अचानक मु?ो लगा कि हम एक ऐसी सड़क पर आ गए हैं जिस से कुछ मिनट पहले ही गुजरे थे. अत: मैं ने उसे बताया तो वह थोड़ी असामान्य दिखी. फिर बोली, ‘‘हां सर, मु?ो भी ऐसा ही लग रहा है. मैं इधर से कोलाबा एक ही बार गई थी. थोड़ा रास्ते का कन्फ्यूजन हो रहा है.’’

फिर उस ने मोबाइल निकाल कर मिलाया. शायद उस के टैक्सी स्टैंड का था. रास्ते के बारे में अपनी दिक्कत बताई और आवश्यक निर्देश लिए. फिर हम से मुखातिब होते हुए बोली, ‘‘सौरी सर, सौरी मैडम, लगता है, मैं ने एक गलत टर्न ले लिया था, पर फिक्र न करें. अभी ठीक हो जाएगी गलती,’’ और फिर गाड़ी यू टर्न लेते हुए मोड़ ली.

एक चौराहे पर मंत्रालय की ओर इंगित करता हुआ बोर्ड दिखा कर क्षमायाचना करती हुई बोली, ‘‘आप लोगों को मैं ने गलत रास्ते पर ले जा कर करीब 10 किलोमीटर ऐक्स्ट्रा घुमा दिया है. आप चार्ट देख कर 10 किलोमीटर का पैसा काट कर बाकी पेमैंट करना.’’

हमारे लिए यह उतना ही अभूतपूर्व अनुभव था जितना रात में ढाई बजे एक 27-28 वर्षीय नवयुवती द्वारा चलाई टैक्सी में बैठ कर पोवाई से कोलाबा तक की लंबी दूरी मुंबई की रात की गहराइयों में डूबते हुए तय करने का. मैं ने उसे धन्यवाद दिया और उस की ईमानदारी की प्रशंसा की. जिसे सुन कर उस के गालों पर आई सलज्ज मुसकान ने एक बार फिर उस की नारीसुलभ कोमलता की पुष्टि की. वह कोमलता जिसे उस ने पुरुषों द्वारा कब्जा किए हुए काम में आ कर भी गंवाया नहीं था. कोलाबा अब नजदीक आ गया था. फिर भी आधा घंटा तो कम से कम और लगता ही. तभी उस का मोबाइल बजा. कान से लगा कर उस ने 2-3 बार यस मैडम, यस मैडम कहा. फिर बोली, ‘‘बस मैडम, मैं अभी 10 मिनट में आती हूं.’’

मुझो आश्चर्य हुआ. अभी तो कोलाबा पहुंचने में ही कम से कम 20 मिनट और लगने हैं. वह 10 मिनट में कहां पहुंच सकती है? अत: मैं चुप नहीं रह पाया और उस से अपनी शंका का समाधान करने को कहा.

‘‘अरे सर, आप को भी तो 10 मिनट में ही आने का बोला था, पर 20 मिनट लगाए थे न. अब आधी रात में वह मैडम लेडी ड्राइवर खोज रही है. कहां से कोई दूसरी लेडी ड्राइवर आसानी से पाएगी. फिर धंधे में थोड़ा झोठ तो बोलना ही पड़ता है न?’’

 

मैं और मेरी पत्नी दोनों हंस पड़े. समझो गए कि वह चालक भी है और चालाक भी. जो भी हो, मेरा मन उस के दोनों रूपों के सामने नतमस्तक हो गया.

मेरी भाभी मुझ पर गंभीर आरोप लगाती हैं, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं अविवाहित युवती हूं. माता पिता नहीं हैं. मैं भाई भाभी के साथ रहती हूं. समस्या यह है कि मेरी भाभी मुझ पर आरोप लगाती हैं कि मेरे और भैया के बीच गलत संबंध हैं. मुझे उन का यह आरोप बहुत परेशान करता है. समझ नहीं आता कि भैया से इस बारे में बात करूं या नहीं, सलाह दें.

जवाब

लगता है आप की भाभी को आप का उन के साथ रहना अखरता है. वे आप के प्रति अपनी व आप के भैया के जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसा आरोप लगा रही है. भाई से अपनी शादी कराने के लिए कहें. जैसा भी पति मिले, उस के साथ शादी करने को हां कह दें. यह क्लेश सब को भारी पड़ सकता है.

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न बहकें कदम

पिछले दिनों एक समाचारपत्र में खबर आई थी कि एक विवाहित महिला का एक युवक से प्रेमसंबंध चल रहा था. दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपने इस संबंध का पूरी तरह से आनंद उठा रहे थे. महिला के घर में सासससुर, पति और उस के 2 बच्चे थे. पति जब टूअर पर जाता था, तो सब के सो जाने पर युवक रात में महिला के पास आता था. दोनों खूब रंगरलियां मना रहे थे.

एक रात महिला अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी, तभी उस का पति उसे सरप्राइज देने के लिए रात में लौट आया. आहट सुन कर महिला और युवक के होश उड़ गए. महिला ने फौरन युवक को वहां पड़े एक खाली ट्रंक में लिटा कर उसे बंद कर दिया. पति आ गया. वह उस से सामान्य बातें करती रही. काफी देर हो गई. पति को नींद नहीं आ रही थी. महिला को युवक को ट्रंक से बाहर निकालने का मौका ही नहीं मिला. बहुत घंटों बाद उस ने ट्रंक खोला. ट्रंक में दम घुटने से युवक की मृत्यु हो चुकी थी.

उस के बाद जो हुआ, उस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. चरित्रहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण, तानेउलाहने, पुलिस, कोर्टकचहरी, परिवार, समाज की नजरों में जीवन भर के लिए गिरना. क्या कुछ नहीं सहा उस महिला ने. बहके कदमों का दुष्परिणाम उस ने तो सहा ही, युवक का परिवार भी बरबाद हो गया. बहके कदमों ने 2 परिवार पूरी तरह बरबाद कर दिए.

कभी न भरने वाले घाव

ऐसा ही कुछ मेरठ में हुआ. 2 पक्की सहेलियां कविता और रेखा आमनेसामने ही रहती थीं. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि कालोनी में मिसाल दी जाती थी. दोनों के 2-2 युवा बच्चे भी थे. पता नहीं कब कविता और रेखा के पति विनोद एकदूसरे की आंखों में खोते हुए सब सीमाएं पार कर गए. कविता के पति अनिल और रेखा को जरा भी शक नहीं हुआ. पहले तो विनोद रेखा के साथ ही कविता के घर जाता था. फिर अकेले भी आने लगा.

कालोनी में सुगबुगाहट शुरू हुई तो दोनों ने बाहर मिलना शुरू कर दिया. बाहर भी लोगों के देखे जाने का डर रहता ही था. दोनों हर तरह से सीमा पार कर एक तरह से बेशर्मी पर उतर आए थे. अपने अच्छेभले जीवनसाथी को धोखा देते हुए दोनों जरा भी नहीं हिचकिचाए और एक दिन कविता और विनोद अपनाअपना परिवार छोड़ घर से ही भाग गए.

रेखा तो जैसे पत्थर की हो गई. अनिल ने भी अपनेआप को जैसे घर में बंद कर लिया. दोनों परिवार शर्म से एकदूसरे से नजरें बचा रहे थे. हैरत तो तब हुई जब 10 दिन बाद दोनों बेशर्मी से अपनेअपने घर लौट कर माफी मांगने का अभिनय करने लगे.

रेखा सब के समझाने पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए भावशून्य बनी चुप रह गई. बच्चों का मुंह देख कर होंठ सी लिए. विनोद को उस के अपने मातापिता और रेखा के परिवार ने बहुत जलील किया पर अंत में दिखावे के लिए ही माफ किया. सब के दिलों पर चोट इतनी गहरी थी कि जीवन भर ठीक नहीं हो सकती थी.

कविता को अनिल ने घर में नहीं घुसने दिया. उसे तलाक दे दिया. बाद में अनिल अपना घर बेच कर बच्चों को ले कर दूसरे शहर चला गया. लोगों की बातों से बचने के लिए, बच्चों के भविष्य का ध्यान रखते हुए रेखा का परिवार भी किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया. रेखा को विनोद पर फिर कभी विश्वास नहीं हुआ. दोस्ती से उस का मन हमेशा के लिए खट्टा हो गया. उस ने फिर किसी से कभी दोस्ती नहीं की. बस बच्चों को देखती और घर में रहती. विनोद हमेशा एक अपराधबोध से भरा रहता.

क्षणिक सुख

दोनों घटनाओं में अगर अपने भटकते मन पर नियंत्रण रख लिया जाता, तो कई घर बिखरने से बच जाते. कदम न बहकें, किसी का विश्वास न टूटे, इस तरह के विवाहेत्तर संबंधों में तनमन को जो खुशी मिलती है वह हर स्थिति में क्षणिक ही होती है. इन रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. ये जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं.

अपनी बेमानी खुशियों के लिए किसी के पति, किसी की पत्नी की तरफ अगर मन आकर्षित हो तो अपने मन को आगे बढ़ने से पहले ही रोक लें. इस रास्ते पर सिर्फ तबाही है, जीवन भर का दुख है, अपमान है. परपुरुष या परस्त्री से संबंध रख कर थोड़े दिन की ही खुशी मिल सकती है. ऐसे संबंध कभी छिपते नहीं.

यदि आप के वैवाहिक रिश्ते में कोई कमी, कुछ अधूरापन है तो अपने जीवनसाथी से ही इस बारे में बात करें, उसे ही अपने दिल का हाल बताएं. पति और पत्नी दोनों का ही कर्तव्य है कि अपना प्यार, शिकायतें, गुस्सा, तानेउलाहने एकदूसरे तक ही रखें.

स्थाई साथ पतिपत्नी का ही होता है. पतिपत्नी के साथ एकदूसरे के दोस्त भी बन कर रहें तो जीने का मजा ही और होता है. अपने चंचल होते मन पर पूरी तरह काबू रखें वरना किसी भी समय पोल खुलने पर अपनी और अपने परिवार की तबाही देखने के लिए तैयार रहें.

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कांटा : क्या शिखा की चाल हुई कामयाब?

रूपापत्रिका ले कर बैठी ही थी कि तभी कालबैल की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने उस की बचपन की सहेली शिखा खड़ी थी. शिखा उस की स्कूल से ले कर कालेज तक की सहेली थी. अब सुजीत के सब से घनिष्ठ मित्र नवीन की पत्नी थी और एक टीवी चैनल में काम करती थी.

रूपा के मन में कुछ देर पहले तक शांति थी. अब उस की जगह खीज ने ले ली थी. फिर भी उसे दरवाजा खोल हंस कर स्वागत करना पड़ा, ‘‘अरे तू? कैसे याद आई? आ जल्दी से अंदर आ.’’

शिखा ने अंदर आ कर पैनी नजरों से पूरे ड्राइंगरूम को देखा. रूपा ने ड्राइंगरूम को ही नहीं, पूरे घर को सुंदर ढंग से सजा रखा था. खुद भी खूब सजीधजी थी. फिर शिखा सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘इधर एक काम से आई थी… सोचा तुम से मिलती चलूं… कैसी है तू?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तू अपनी सुना?’’

सामने स्टैंड पर रूपा के बेटे का फ्र्रेम में लगा फोटो रखा था. उसे देखते ही शिखा ने कहा, ‘‘तेरा बेटा तो बड़ा हो गया.’’

‘‘हां, मगर बहुत शैतान है. सारा दिन परेशान किए रहता है.’’

शिखा ने देखा कि यह कहते हुए रूपा के उजले मुख पर गर्व छलक आया है.

‘‘घर तो बहुत अच्छी तरह सजा रखा है… लगता है बहुत सुघड़ गृहिणी बन गई है.’’

‘‘क्या करूं, काम कुछ है नहीं तो घर सजाना ही सही.’’

‘‘अब तो बेटा बड़ा हो गया है. नौकरी कर सकती हो.’’

‘‘मामूली ग्रैजुएशन डिग्री है मेरी. मु झे कौन नौकरी देगा? फिर सब से बड़ी यह कि इन को मेरा नौकरी करना पसंद नहीं.’’

‘‘तू सुजीत से डरती है?’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है? पतिपत्नी को एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल तो रखना ही पड़ता है.’’

शिखा हंसी, ‘‘अगर दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर हो तो?

यह सुन कर रूपा  झुं झला गई तो वह शिखा से बोली, ‘‘अच्छा तू यह बता कि छोटा नवीन कब ला रही है?’’

शिखा ने कंधे  झटकते हुए कहा, ‘‘मैं तेरी तरह घर में आराम का

जीवन नहीं काट रही. टीवी चैनल का काम आसान नहीं. भरपूर पैसा देते हैं तो दम भी निकाल लेते हैं.’’

शिखा की यह बात रूपा को अच्छी नहीं लगी. फिर भी चुप रही, क्योंकि शिखा की बातों में ऐसी ही नीरसता होती थी. रूपा की शादी मात्र 20 वर्ष की आयु में हो गई थी. लड़का उस के पापा का सब से प्रिय स्टूडैंट था और उन के अधीन ही पी.एचडी. करते ही एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव लग गया था. मोटी तनख्वाह के साथसाथ दूसरी पूरी सुविधाएं भी और देशविदेश के दौरे भी.

लड़के के स्वभाव और परिवार की अच्छी तरह जांच कर के ही पापा ने उसे अपनी इकलौती बेटी के लिए चुना था. हां, मां को थोड़ी आपत्ति थी लेकिन सम झने पर वे मान गई थीं. पापा मशहूर अर्थशास्त्री थे. देशविदेश में नाम था.

रूपा अपने वैवाहिक जीवन से बेहद खुश थी. होती भी क्यों नहीं, इतना हैंडसम और संपन्न पति मिला था. और विवाह के कुछ अरसा बाद ही उस की गोद में एक प्यारा सा बेटा भी आ गया था. शादी को 8 वर्ष हो गए थे. कभी कोई शिकायत नहीं रही. वह भी तो बेहद सुंदर थी. उस पर कई सहपाठी मरते थे, पर उस का पहला प्यार पति सुजीत ही थे.

बेटी को सुखी देख कर उस के मातापिता भी बहुत खुश थे.

बात बदलते हुए रूपा ने कहा, ‘‘छोड़ इन बातों को… इतने दिनों बाद मिली है… चल सहेलियों की बातें करती हैं.’’

शिखा थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू भी तो कभी मेरी खबर लेने नहीं आती.’’

‘‘देख  झगड़े की बात नहीं… सचाई बता रही हूं… कितनी बार हम लोगों ने तु झे और नवीन भैया को बुलाया. भैया तो एकाध बार आए भी पर तू नहीं… फिर तू ने तो कभी हमें बुलाया ही नहीं.. अच्छा यह सब छोड़. बोल क्या लेगी चाय या ठंडा? गरम सूप भी है.’’

‘‘सूप ही ला… घर का बना सूप बहुत दिनों से नहीं पीया.’’

थोड़ी ही देर में रूपा 2 कप गरम सूप ले आई. फिर 1 शिखा को पकड़ा और दूसरा स्वयं पकड़ कर शिखा के सामने बैठ गई. बोली, ‘‘बता कैसी चल रही है तेरी गृहस्थी?’’

जब रूपा सूप लेने गई थी तब शिखा ने घर के चारों ओर नजर डाली थी. वह सम झ गई थी कि रूपा बहुत सुखी और संतुष्ट जीवन जी रही है. उस का स्वभाव ईर्ष्यालु था ही. अत: सहेली का सुख उसे अच्छा नहीं लगा. वह रूपा का दमकता नहीं मलिन व दुखी चेहरा देखना चाहती थी.

शिखा यह भी सम झ गई थी कि उस के सुख की जड़ बहुत मजबूत है. सहज उखाड़ना संभव नहीं. आज तक वह उसे हर बात में पछाड़ती आई है. पढ़ाई, लेखन प्रतियोगिता, खेल, अभिनय, नृत्य व संगीत सब में वह आगे रहती आई है. रूपा है तो साधारण स्तर की लड़की पर कालेज का श्रेष्ठ हीरा लड़का उस के आंचल में आ गया था. फिर समय पर वह मां भी बन गई. पति प्रेम, संतान स्नेह से भरी है वह. ऊपर से मातापिता का भरपूर प्यार, संरक्षण भी है उस के पास. संपन्नता अलग से.

यह सब सोच शिखा बेचैन हो उठी कि जीवन की हर बाजी उस से जीत कर यह अंतिम बाजी उस से हार जाएगी… पर करे भी तो क्या? कैसे उस की जीत को हार में बदले? कुछ तो करना ही पड़ेगा… पर क्या करे? सोचना होगा, हां कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही होगा. रूपा में बुद्धि कम है. उसे बहकाना आसान है, तो कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा… जरूर कुछ सोचेगी वह.

मां से फोन पर बातें करते हुए रूपा ने शिखा के अचानक आने की बात कही तो वे शंकित

हो उठीं, ‘‘बहुत दिनों से उसे देखा नहीं… अचानक तेरे घर कैसे आ गई?’’

रूपा बेटे को दूध पिलाते हुए सहज भाव से बोली, ‘‘नवीन भैया तो आते रहते हैं… वही नहीं आती थी… उन से दूर की रिश्तेदारी भी है. सुजीत के भाई लगते हैं और दोस्त तो हैं ही. पर आज बता रही थी कि पास ही चैनल के किसी काम से आई थी तो…’’

‘‘मु झे उस पर जरा भी विश्वास नहीं. मु झे तो लगता है तेरा घर देखने आई थी,’’ मां रूपा की बात बीच ही में काटते हुए बोली.

यह सुन रूपा अवाक रह गई. बोली, ‘‘मेरे घर में ऐसा क्या है, जो देखने आएगी?’’

‘‘जो उस के घर में नहीं है. देख रूपा,

वह बहुत धूर्त, ईर्ष्यालु है… बिना स्वार्थ के वह एक कदम भी नहीं उठाती… तू उसे ज्यादा गले मत लगाना.’’

‘‘मां वह आती ही कहां है? वर्षों बाद तो मिली है.’’

‘‘यही तो चिंता है. वर्षों बाद अचानक तेरे घर क्यों आई?’’

रूपा हंसी, ‘‘ओह मां, तुम भी कुछ कम शंकालु नहीं हो… अरे, बचपन की सहेली से मिलने को मन किया होगा… क्या बिगाड़ेगी मेरा?’’

‘‘मैं यह नहीं जानती कि वह क्या करेगी पर वह कुछ भी कर सकती है. मु झे लग रहा है वह फिर आएगी… ज्यादा घुलना नहीं, जल्दी विदा कर देना… बातें भी सावधानी से करना.’’

अब रूपा भी घबराई, ‘‘ठीक है मां.’’ मां की आशंका सच हुई. एक दिन फिर आ धमकी शिखा. रूपा थोड़ी शंकित तो हुई पर उस का आना बुरा नहीं लगा. अच्छा लगने का कारण यह था कि सुजीत औफिस के काम से भुवनेश्वर गए थे और बेटा स्कूल… बहुत अकेलापन लग रहा था. उस ने शिखा का स्वागत किया. आज वह कुछ शांत सी लगी.

इधरउधर की बातों के बाद अचानक बोली, ‘‘तेरे पास तो बहुत सारा खाली समय होता है… क्या करती है तब?’’

रूपा हंसी, ‘‘तु झे लगता है खाली समय होता है पर होता है नहीं… बापबेटे दोनों की फरमाइशों के मारे मेरी नाक में दम रहता है.’’

‘‘जब सुजीत बाहर रहता है तब?’’

‘‘हां तब थोड़ा समय मिलता है. जैसे आज वे भुवनेश्वर गए हैं तो काम नहीं है. उस समय मैं किताबें पढ़ती हूं. तु झे तो पता है मु झे पढ़ने का कितना शौक है.’’

‘‘पढ़ तो रात में भी सकती है?’’

रूपा सतर्क हुई, ‘‘क्यों पूछ रही है?’’

‘‘देख रूपा, तू इतनी सुंदर है कि 20-22 से ज्यादा की नहीं लगती… अभिनय, डांस भी आता है. हमारे चैनल में अपने सीरियल बनते हैं. एक नया सीरियल बनना है जिस के लिए नायिका की खोज चल रही है. सुंदर, भोली सी कालेज स्टूडैंट का रोल है. तु झे तो दौड़ कर ले लेंगे. कहे तो बात करूं?’’

रूपा हंसने लगी, ‘‘तू पागल तो नहीं हो

गई है?’’

‘‘क्यों इस में पागल होने की क्या बात है?’’

‘‘कालेज, स्कूल की बात और है सीरियल की बात और. न बाबा न, मु झे घर से ही फुरसत नहीं. फिर मैं टीवी पर काम करूं यह कोई पसंद नहीं करेगा.’’

‘‘अरे पैसों की बरसात होगी. तू क्या सुजीत से डरती है?’’

‘‘उन की छोड़. उन से पहले मांपापा ही डांटेंगे. फिर अब तो बेटा भी बोलने लग गया है. मु झे पैसों का लालच नहीं है. पैसों की कोई कमी नहीं है. सुजीत हैं, पापा हैं.’’

शिखा सम झ गई कि रास्ता बदलना पड़ेगा. अत: फिर सामान्य बातें करतेकरते अचानक बोली, ‘‘तू सुजीत पर बहुत भरोसा करती है न?’’

यह सुन रूपा अवाक रह गई, बोली, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है? वे मेरे पति हैं. मेरा उन पर भरोसा नहीं होगा तो किस पर करूंगी?’’

‘‘तु झे पूरा भरोसा है कि भुवनेश्वर ही गए हैं काम से?’’

‘‘अरे, मैं ने खुद उन का टूअर प्रोग्राम देखा है. मैं उस होटल को भी जानती हं जिस में वे ठहरते हैं. मैं भी तो कितनी बार साथ में गई हूं. इस बार भी जा रही थी पर बेटे की परीक्षा में हफ्ता भर है, इसलिए नहीं जा पाई. फिर वे अकेले नहीं गए हैं. साथ में पी.ए. और क्लर्क रामबाबू भी हैं. दिन में 2-3 बार फोन भी करते हैं.’’

‘‘तू सच में जरूरत से ज्यादा मूर्ख है. तू मर्दों की जात को नहीं पहचानती. बाहरी जीवन में वे क्या करते हैं, कोई नहीं जानता.’’

रूपा अंदर ही अंदर कांप गई. शिखा की उपस्थिति उसे अखरने लगी थी. मम्मी

की बातें बारबार याद आने लगीं. पर घर से धक्के मार उसे निकाल तो नहीं सकती थी. उस ने सोचा कि इस समय खुद पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है… शिखा की नीयत पर उसे भरोसा नहीं था.

‘‘मैं घर और बच्चे को छोड़ कर सुजीत के पीछे ही पड़ी रहूं तो हो गया काम… फिर उन पर मु झे पूरा विश्वास है. दिन में कई बार फोन करते हैं… उन के साथ जो गए हैं उन्हें भी मैं अच्छी तरह जानती हूं.’’

‘‘बाप रे, तू तो सीता को भी मात देती लगती है.’’

इस बार शिखा हंसहंसते लोटपोट हो गई.

‘‘फोन वे करते हैं. तु झे क्या पता कि भुवनेश्वर से कर रहे हैं या मनाली की खूबसूरत वादियों में किसी और लड़की के साथ घूमने…’’

हिल गई रूपा, ‘‘यह क्या बक रही है? मेरे पति ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘सभी मर्द एकजैसे होते हैं.’’

‘‘नवीन भैया भी ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं बताती हूं कैसे परखेगी… जब वे टूअर से लौटें तो उन के कपड़े चैक करना… किसी महिला के केश, मेकअप के कोई दाग, फीमेल इत्र की गंध है या नहीं… 2-4 बार अचानक औफिस पहुंच जा.’’

‘‘छि:… छि:… कितनी गंदगी है तेरी सोच. मु झे अब नवीन भैया पर तरस आ रहा है. अपना घर, नवीन भैया का जीवन बिगाड़ चैन नहीं… अब मेरा घर बरबाद करने आई है. तू जा… मेरे सिर में दर्द हो रहा है. मैं सोऊंगी.’’

शिखा का काम हो गया था. अत: वह हंस कर खड़ी हो गई. बोली, ‘‘जी भर कर सो ले. मैं जा रही हूं.’’

शिखा तो हंसती हुई चली गई, पर रूपा खूब रोई. जब बेटा स्कूल से आया तो उसे ले कर सीधे मां के पास चली गई.

मां ने उसे आते देख सम झ गईं कि जरूर कोई बात है. पर उस समय कोई बात नहीं की. बेटे और उसे खाना खाने बैठाया फिर बेटे को सुलाने के बाद वे बेटी के पास बैठीं, ‘‘अब बोल, क्या बात है.’’

रूपा चुप रही.

‘‘क्या आज भी शिखा आई थी?’’

उस ने हां में सिर हिलाया.

‘‘मैं ने तु झे पहले ही सावधान किया था. वह अच्छी लड़की नहीं है. वह जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है. हां, उस की मां सौतेली हैं यह ठीक है पर वे उस की सगी मां से भी अच्छी हैं. जब तक वहां रही एक दिन उसे चैन से नहीं रहने दिया. बाप से  झूठी शिकायतें कर घर को तोड़ने की कोशिश करती रही. पर उस के पापा सम झदार थे. बेटी की आदत को जानते थे और अपनी पत्नी पर पूरा विश्वास था, इसलिए शिखा अपने मकसद में कामयाब न हुई. अब जब से शादी हुई है तो बेचारे नवीन के जीवन को नरक बना रखा है… उस से भी मन नहीं भरा तो अब तेरे घर को बरबाद करने चली है… तू क्यों बैठाती है उसे?’’

‘‘अब घर आए को कैसे भगाऊं?’’

‘‘एक कप चाय पिला कर विदा कर दिया कर… बैठा कर बात मत किया कर. आज क्या ऐसा कहा जो तू इतनी परेशान है?’’

रूपा ने पूरी बात बताई तो वे शंकित हुईं और गुस्सा भी आया. वे अपनी बेटी को जानती थी कि उसे चालाकी नहीं आती है… उस के घर को तोड़ना बहुत आसान है. फिर बोली, ‘‘क्या तू यही मानती है कि सुजीत भुवनेश्वर नहीं गया है?’’

‘‘नहीं, मु झे उन पर पूरा विश्वास है. रामबाबू भी तो साथ हैं. यह तो शिखा कह रही थी.’’

‘‘फिर भी तू विचलित है, क्योंकि संदेह का कांटा वह तेरे मन में गहरे उतार गई है. देख संदेह एक बीमारी है. अंतर इतना है कि इस का कोई इलाज नहीं है. दूसरी बीमारियों की दवा है, उन का इलाज किया जा सकता है पर संदेह का नहीं. शिखा ने यह बीमारी तु झे लगाई है. अब अगर तु झ से सुजीत को लगे और वह तु झ पर शक करने लगे तब क्या करेगी?’’

कांप गई रूपा, ‘‘मु झ पर?’’

‘‘क्यों नहीं? उस के पीछे तू क्या करती है, उसे क्या पता. हफ्ताहफ्ता बाहर रहता है… तब तू एकदम आजाद होती है. जब तू उस पर शक करेगी तो वह भला क्यों नहीं कर सकता?’’

रूपा को काटो तो खून नहीं.

‘‘देख पागल मत बन… दूसरे की नहीं अपने मन की आवाज सुन कर चल. तू उस जैसी नहीं है. तेरे साथ तेरा बच्चा है, तू साधारण स्तर की पढ़ीलिखी है, बाहरी समाज का तु झे कोई अंदाजा नहीं है. अगर वह खाईखेली लड़की नवीन से तलाक भी ले ले तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पर तू क्या करेगी? हम हैं ठीक है पर पापा को जानती है न कितने न्यायप्रिय हैं… तू गलत हुई तो यहां से तु झे तिनके का सहारा भी नहीं मिलने वाला. मैं कुछ भी नहीं कर सकती.’’

मां की बात सुन कर स्तब्ध रह गई रूपा कि मां ने जो कहा स्पष्ट कहा, उचित बात कही. उस के मन में शिखा कांटा बोना चाहे और वह बोने दे तो अपना ही सर्वनाश करेगी.

मां ने नवीन से भी इस विषय पर बात की, यह सोच कर कि भले ही बेटी को सम झाया हो उन्होंने पर उस के मन का कांटा जड़ से अभी नहीं उखड़ा होगा.

नवीन ने उस दिन अचानक फोन कर के रूपा से कहा, ‘‘रूपा, बहुत दिन से तुम ने कुछ खिलाया नहीं. आज रात डिनर करने आऊंगा.’’

रूपा खुश हुई, ‘‘ठीक है भैया… मैं आप की पसंद का खाना बनाऊंगी.’’

शाम को नवीन सुजीत के साथ ही आया.

रूपा ने चाय के साथ पकौड़े बनाए.

नवीन ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘रात को क्या खिला रही हो?’’

‘‘आप की पसंद के हिसाब से पालकपनीर, सूखी गोभी, बूंदी का रायता और लच्छा परांठे… और कुछ चाहें तो…’’

‘‘नहींनहीं, बहुत बढि़या मेनू है. तुम बैठो. हां, सुजीत तू एक काम कर. रबड़ी ले आ.’’

सुजीत रबड़ी लेने चला गया तो नवीन ने कहा, ‘‘रूपा, आराम से बैठ कर बताओ पूरी बात क्या है?’’

रूपा चौंकी, ‘‘क्या भैया?’’

‘‘सुजीत को लग रहा है तुम पहले जैसी सहज नहीं हो… उसे तुम्हारे व्यवहार से कोई शिकायत नहीं है पर उसे लगता है तुम पहले जैसी खुश नहीं हो… लगता है कुछ है तुम्हारे मन में.’’

रूपा चुप रही.

‘‘रूपा तुम चुप रहोगी रही तो तुम्हारी समस्या बढ़ती ही जाएगी. बात क्या है? क्या सुजीत के किसी व्यवहार ने तुम्हें आहत किया है?’’

‘‘नहीं, वे तो कभी तीखी बात करते ही नहीं.’’

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता बहुत सहज होते हुए भी बहुत नाजुक होता है. इस में कभीकभी बुद्धि को नजरअंदाज कर के मन की बात काम करने लगती है. तुम्हारे मन में कौन सा कांटा चुभा है मु झे बताओ?’’

रूपा ने कहा, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘रूपा, पतिपत्नी का रिश्ता एकदूसरे के प्रति विश्वास पर टिका होता है. मु झे लगता है सुजीत के प्रति तुम्हारे विश्वास की नींव को धक्का लगा है. पर क्यों? सुजीत ने कुछ कहा है क्या?’’

शिखा ने जो संदेह का कांटा उस के मन में डाला था उस की चुभन की अवहेलना नहीं कर पा रही थी वह. इसी उल झन में उस की मानसिक शांति भंग हो गई थी. अब वह पहले जैसी खिलीखिली नहीं रहती थी और सुजीत से भी अंतरंग नहीं हो पा रही थी. उस की मानसिक उधेड़बुन उस के चेहरे पर मलिनता लाई ही, व्यवहार में भी फर्क आ गया था.

उस ने सिर  झुका कर जवाब दिया, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है भैया.’’

‘‘नहीं रूपा, तुम्हारे मन की उथलपुथल तुम्हारे मुख पर अपनी छाप डाल रही है. ज्यादा परेशान हो तो तलाक ले लो. सुजीत तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार है.’’

रूपा चौंकी उस की आंखें फैल गईं, ‘‘तलाक?’’

‘‘क्यों नहीं? तुम सुजीत के साथ खुश

नहीं हो.’’

‘‘भैया, मैं बहुत खुश हूं. सुजीत के बिना अपना जीवन सोच भी नहीं सकती. दोबारा तलाक की बात न करना,’’ और वह रो पड़ी.

‘‘तो फिर पहले जैसा भरोसा, विश्वास क्यों नहीं कर पा रही हो उस पर? उसे कभीकभी तुम्हारी आंखों में संदेह क्यों दिखाई देता है?’’

‘‘मैं सम झ रही हूं पर…’’

‘‘अपने मन से कांटा नहीं निकाल पा रही हो न? यह कांटा शिखा ने बोया है?’’

वह फिर चौंकी. नवीन को उस ने असहाय नजरों से देखा.

‘‘रूपा, कोईकोई मुरगी अंडा देने योग्य नहीं होती और वह दूसरी मुरगी का अंडा देना भी सहन नहीं कर पाती. कुछ औरतें भी ऐसी ही होती हैं, जो न तो अपने घर को बसा पाती हैं और न ही दूसरे के बसे घरों को सहन कर पाती हैं. उन्हें उन घरों को तोड़ने में ही सुख मिलता है. शिखा उन में से एक है और तुम उस की शिकार हो. उस ने चंद्रा का घर भी तोड़ने के कगार पर ला खड़ा किया था. मुश्किल से संभाला था उसे. अब उस के लिए वहां के दरवाजे बंद हैं तो तुम्हारे घर में घुस गई. तुम ही बताओ पहले कभी आती थी? अब बारबार क्यों आ रही है?’’

सिहर उठी रूपा. यह क्या भयानक भूल हो

गई है उस से… अपने सुखी जीवन में अपने हाथों ही आग लगाने चली थी. सुजीत जैसे पति पर संदेह. वह भी कब तक सहेंगे. उसे पापा, मां तो उसे एकदम सहारा नहीं देंगे…

फिर बोली, ‘‘भैया, शिखा तो बीमार है.’’

‘‘हां मानसिक रोगी तो है ही. पर तुम अपने को और अपने घर को बचाना चाहती हो तो अभी भी समय है संभल जाओ. सुजीत को अपने से उकताने पर मजबूर मत करो. जितना नुकसान हुआ है जल्दी उस की भरपाई कर लो.’’

‘‘वह मैं कर लूंगी पर आप…’’

‘‘मेरा तो दांपत्य जीवन कुछ है ही नहीं. घर भी नौकर के भरोसे चलता है और चलता रहेगा.’’

‘‘भैया, मैं कुछ करूं?’’

नवीन हंसा, ‘‘क्या करोगी? पहले अपना घर ठीक करो.’’

‘‘कर लूंगी पर आप के लिए भी सोचती हूं.’’

‘‘लो, सुजीत रबड़ी ले आया,’’ नवीन बोला.

शांति, प्यार, लगाव जो रूपा के हाथ से निकल रहे थे अब उस ने फिर उन्हें कस कर पकड़ लिया. मन ही मन शपथ ली कि अब सुजीत पर कोई संदेह नहीं करेगी. फिर सब से पहला काम उस ने जो किया वह था सुजीत को सब खुल कर बताना, वह सम झ गई थी कि लुकाछिपी करने से लाभ नहीं… जिस बात को छिपाया जाता है वह मन में कांटा बन कर चुभती है. और कोई भी बात हो एक न एक दिन खुलेगी ही. तब संबंधों में फिर से दरार पड़ेगी. इसलिए अपने मन में जन्मे विकार तक को साफसाफ बता दिया.

सारी बात ध्यान से सुन कर सुजीत हंसा,

‘‘मुझे पता था कि बेमौसम के बादल आकाश में ज्यादा देर नहीं टिकते. हवा का  झोंका आते ही उड़ जाते हैं. इसलिए तुम्हारे बदले व्यवहार से मैं आहत तो हुआ पर विचलित नहीं, क्योंकि मु झे पता था कि एक दिन तुम्हें अपनी भूल पर जरूर पछतावा होगा और तब सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘हमारा तो सब ठीक हो गया, पर नवीन भैया उन का क्या होगा?’’

‘‘शिखा के स्वभाव में परिवर्तन लाना नामुमकिन है.’’

‘‘नहीं, हमें कोशिश करनी चाहिए. नवीन भैया कितने अच्छे हैं.’’

‘‘बिगड़े संबंध को ठीक करने के लिए दोनों के स्वभाव में नमनीयता होनी चाहिए, जो शिखा में एकदम नहीं है.’’

‘‘फिर भी हमें प्रयास तो करना ही चाहिए,’’ रूपा ने कहा तो सुजीत चुप रहे.

फिर 3-4 दिन बाद रूपा ने दोनों को डिनर पर बुलाया. दोनों ही आए पर अलगअलग. रूपा फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. शिखा को बोलने का मौका न दे कर स्वयं ही हंसे, बोले जा रही थी. जरा सी भी बात बिगड़ती देखती तो अपने बेटे को आगे कर देती. उस की मासूम बातें सब को मोह लेतीं. पूरा वातावरण खुशनुमा रहा. वैसे भी रूपा की आंखों से सुख, प्यार  झलक रहा था.

शिखा के मन में क्या चल रहा है, पता नहीं पर वह सामान्य थी. 2-4 बार मामूली मजाक भी किया. खाने के बाद सब गरम कौफी के कप ले कर ड्राइंगरूम में जा बैठे. बेटा सो चुका था.

बात सुजीत ने ही शुरू की, ‘‘यार काम, दफ्तर और घर इस से तो जीवन ही नीरस बन गया है. कुछ करना चाहिए.’’

नवीन ने पूछा, ‘‘क्या करेगा?’’

‘‘चल, कहीं घूम आएं. हनीमून में बस शिमला गए थे. फिर कहीं निकले ही नहीं.’’

‘‘हम भी शिमला ही गए थे. पर अब

कहां चलें?’’

रूपा ने कहा, ‘‘यह हम शिखा पर छोड़ते हैं. बोल कहां चलेगी?’’

शिखा ने कौफी का प्याला रखते हुए कहा, ‘‘शिमला तो हो ही आए हैं. गोवा चलते हैं?’’

रूपा उछल पड़ी, ‘‘अरे वाह, देखा मेरी सहेली की पसंद. हम तो सोचते ही रह जाते.’’

‘‘वहां जाने के लिए समय चाहिए, क्योंकि टिकट, ठहरने की जगह बुक करानी पड़ेगी. इस समय सीजन है… आसानी से कुछ भी नहीं मिलेगा और वह भी 2 परिवारों का एकसाथ,’’ नवीन बोला.

सुजीत ने समर्थन किया, ‘‘यह बात एकदम ठीक है. तो फिर?’’

‘‘एक काम करते हैं. मेरे दोस्त का एक फार्महाउस है. ज्यादा दूर नहीं. यहां से

20 किलोमीटर है. वहां आम का बाग, सब्जी की खेती, मुरगी और मछली पालन का काम होता है. बहुत सुंदर घर भी बना है और एकदम यमुना नदी के किनारे है. ऐसा करते हैं वहां पूरा दिन पिकनिक मनाते हैं. सुबह जल्दी निकल कर शाम देर रात लौट आएंगे.’’

रूपा उत्साहित हो उठी, ‘‘ठीक है, मैं ढेर सारा खानेपीने का सामान तैयार कर लेती हूं.’’

‘‘कुछ नहीं करना… वहां का केयरटेकर बढि़या कुक है.’’

शनिवार सुबह ही वे निकल पड़े. आगेपीछे 2 कारें फार्महाउस के

गेट पर रुकीं. चारों ओर हरियाली के बीच एक सुंदर कौटेज थी. पीछे यमुना नदी बह रही थी. बेटा तो गाड़ी से उतरते ही पके लाल टमाटर तोड़ने दौड़ा.

थोड़ी ही देर में गरम चाय आ गई. सुबह की कुनकुनी धूप सेंकते सब चाय पीने लगे. बेटे के लिए गरम दूध आ गया था.

रूपा ने कहा, ‘‘भैया, इतने दिनों तक हमें इतनी सुंदर जगह से वंचित रखा. यह तो अन्याय है.’’

नवीन हंसा, ‘‘मैं ने सोचा था ये सब फूलपौधे, नदी, हरियाली, कुनकुनी धूप हम मोटे दिमाग वालों के लिए हैं बुद्धिमानों के लिए नहीं.’’

‘‘ऐसे खुले वातावरण में सब के साथ आ कर शिखा भी खुश हो गई थी. उस के मन की खुंदक समाप्त हो गई थी. अत: वह हंस कर बोली, ‘‘तू सम झी कुछ? यह व्यंग्य मेरे लिए है.’’

सुजीत बोला, ‘‘तेरा दिमाग भी तो मोटा है… तू कितना आता है यहां?’’

‘‘जब भी मौका मिलता है यहां चला आता हूं. ध्यान से देखेगा तो मेरे लैंडस्केपों में तु झे यहां की  झलक जरूर दिखेगी… देख न यहां काम करने वाले सब मु झे जानते हैं.’’

शिखा चौंकी, ‘‘तो क्या कभीकभी जो देर रात लौटते हो तो क्या यहां आते हो?’’

‘‘हां. यहां आ कर फिर दिल्ली के हंगामे में लौटने को मन नहीं करता. बड़ी शांति है यहां.’’

‘‘तो तेरी कविताएं भी क्या यहीं की

उपज हैं?’’

‘‘सब नहीं, अधिकतर.’’

शिखा की आंखें फैल गईं, ‘‘क्या तुम कविताएं भी लिखते हो? मु झे तो पता ही नहीं था.’’

‘‘3 काव्य संग्रह निकल चुके हैं… एक पर पुरस्कार भी मिला है. तु झे पता इसलिए नहीं है, क्योंकि तू ने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की कि हीरा तेरे आंचल से बंधा है. तेरी सौत कोई हाड़मांस की महिला नहीं यह कविता और चित्रकला है. इन के बाल नोच सके तो नोच. भैया ही कवि परिजात हैं, जिस की तू दीवानी है.’’

‘‘कवि परिजात?’’ प्याला छूट गया, उस

के हाथों से और फिर दोनों हाथों से मुंह छिपा कर रो पड़ी.

रूपा कुछ सम झाने जा रही थी मगर सुजीत ने रोक दिया. कान में कहा, ‘‘रोने दो… बहुत दिनों का बो झ है मन पर… अब हलका होने दो. तभी नौर्मल होगी.’’

थोड़ी देर में स्वयं ही शांत हो कर शिखा ने रूपा की तरफ देखा, ‘‘देख ले कितने धोखेबाज हैं.’’

रूपा यह सुन कर हंस पड़ी.

‘‘कितनी भी अकड़ दिखाओ शिखा पर प्यार तुम नवीन को करती ही हो… ये सारी हरकतें तुम्हारी नवीन को खोने के डर से ही थीं… पर उन्हें आप ने आंचल से बांधे रखने का रास्ता तुम ने गलत चुना था,’’ सुजीत बोला.

नवीन बोला, ‘‘छोड़ यार, अब हम

दूसरा हनीमून गोवा चल कर ही मनाते हैं…

जब भी टिकट और होटल में जगह मिलेगी तभी चल देंगे.’’

रूपासुजीत दोनों एकसाथ बोले,‘‘जय हो.’’

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