क्याकरे रमला? गैरजिम्मेदार ही सही लेकिन है तो आखिर बाप ही न, कैसे बेसहारा छोड़ दे. माना कि पिता को घर लाने का सीधासीधा अर्थ खुद अपनी खुशियों में सेंध लगाना ही है, लेकिन इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं. जब पति राघव ने पिता को अपने साथ रखने के प्रस्ताव पर चर्चा की है तब से ही रमला बेचैन है.
ऐसा नहीं है कि रमला को अपने जन्मदाता से प्रेम नहीं, है. बहुत है, लेकिन वह कंठहार ही क्या जो गले का फंदा बन जाए.
कितनी खुशहाल जिंदगी चल रही थी उस की. यों कहो कि जिंदगी का स्वर्णकाल शुरू ही हुआ था कि काल का पतन शुरू हो गया. अभी साल भी तो नहीं हुआ राघव से शादी हुई थी को इस से पहले तो जिंदगी घुटीघुटी सी ही थी.
हालांकि बहुत बड़ा परिवार नहीं था उस का. कायदे से चलता तो कोई कमी नही थी. मां सरकारी अध्यापिका थीं, रमला को भी खूब पढ़ाया था उन्होंने. बस पिता ही थे जो उन की मखमल की रजाई में टाट बने रहते थे.
मां ने प्रेम विवाह किया था. पिता अपने पिता यानी रमला के दादाजी की स्टेशनरी की दुकान पर बैठा करते थे जो सरकारी बीएड कालेज के पास थी. मां वहीं से पढ़ाई कर रही थीं. प्रेम हुआ और थोड़ी नानुकुर के बाद शादी.
मां को पिता की कम कमाई से कोई शिकायत नहीं रही क्योंकि वे खुद नौकरी करती थीं. उन्हें पिता का घर की दुकान संभालना अखरता नहीं था बल्कि वे तो खुद चाहती थीं कि बच्चों की देखभाल करने के लिए कोई एक अभिभावक घर पर उन के साथ रहे.
मां की इस छूट को पिता ने अपना अधिकार सम?ा लिया और धीरेधीरे वे दुकान से विमुख होने लगे. नतीजतन, दुकान में लगातार घाटा होने लगा. मां ने कई बार उन के व्यवसाय में जान फूंकने के लिए उस में पैसे भी लगाए लेकिन पिता एक बार लापरवाह हुए तो फिर होते ही चले गए.
घरबाहर संभालती मां चिड़चिड़ी होने लगीं और पिता से विरक्त भी. शायद यही कारण रहा होगा कि रमला के कोई दूसरा भाईबहन भी नहीं है.
इतना सबकुछ होनेसहने के बाद भी मां ने इस की आंच से रमला को हमेशा दूर
ही रखा था. पिछले साल जैसे ही कोरोना के केस थोड़े कम हुए, मां ने राघव और उस की सगाई को शादी में बदल दिया. रमला तो अपनी नई जिंदगी से खुश थी. उसे तो राघव के रूप में हमसफर मिल गया था, लेकिन मां बिलकुल अकेली रह गई थीं. एक रमला ही तो थी उन की पीड़ की सा?ादार, वह भी चली गई.
कोरोना की दूसरी लहर और भी अधिक घातक रूप ले कर आई थी. मां ने हालांकि वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली थीं फिर भी न जाने कैसे कोरोना की चपेट में आ गई थी. पिता तो थे ही सदा के लापरवाह. मां की बीमारी को हलके में लेते रहे. मां खुद भी कहां उसे सब
बता रही थीं. पता नहीं वह बेटीदामाद को परेशान नहीं करना चाहती थीं या उन्हें संक्रमण से दूर रखना चाहती.
उन्होंने रमला को बीमारी की गंभीरता का आभास भी नहीं होने दिया. जब भी बात होती तो जरा सा खांसीबुखार है कह कर टाल जातीं. जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी तब राघव उन्हें ले कर अस्पताल गया. छाती का ऐक्सरे करवाया तो पता चला सीटी स्कैन का स्कोर 25 में से 22 है.
सुनते ही रमला के पांवों तले से जमीन खिसक गई. हाथपांव ठंडे पड़ गए. राघव ने किसी तरह भागदौड़ कर के उन्हें अस्पताल में भरती करवाया.
इधर सांसों के लिए जू?ाती मां हर पल मौत के एक कदम नजदीक जा रही थीं और उधर औक्सीजन की कमी, दवाओं की कालाबाजारी और प्रशासन की अंधेरगर्दी उन्हें मौत के कुएं में धक्का देने का काम कर रही थी. आम आदमी की मजबूरी है कि वह अपने किस्मत को कोसने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर पाता.
आखिर वही हुआ जिस का खटका रमला को हर पल लगा रहता था. एक मनहूस सुबह मां पीपीई किट में ही सिमट कर आ गईं. रमला न ठीक से मां की सूरत देख सकी और न ही उन का अंतिम संस्कार विधान पूर्वक हो सका. सरकारी नियमावली के अनुसार मां को सीधे श्मशान घाट ले जाया गया और पीपीई किट सहित मां पंचतत्व में विलीन हो गईं. रमला का मायका सूना हो गया.
रमला को तो राघव ने संभाल लिया, लेकिन पिता? उन्हें कौन संभाले? कुछ दिन तो खुद से ही कच्चापक्का बना कर खाया, फिर कभी पेट खराब तो कभी व्रतनागा होने लगा तो रमला ने पिता के लिए टिफिन लगवा दिया लेकिन केवल खाने भर से ही तो व्यक्ति की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता न? जिंदगी आराम से चलती रहे इस के लिए बहुत से दूसरे काम भी करने होने होते हैं. घर में पिता के अकेले रहने के कारण कोई कामवाली भी मदद के लिए आने को तैयार नहीं थी. कपड़ेबरतन तो पिता ने कभी धोए ही नहीं थे.
रमला ने उन्हें औटोमैटिक वाशिंगमशीन ला दी, लेकिन उन की तरफ से चिंतामुक्त फिर भी नहीं हो सकी.
रमला नहीं चाहती थी कि पिता को अपने साथ रख कर अपना सुखचैन दांव पर लगा दे, लेकिन संतान के फर्ज को भी तो नहीं भूल
सकती न, क्या यही दिन देखने के लिए लोग बच्चे पैदा करते हैं? कल को यदि खुद उस के बच्चे उन के साथ यही व्यवहार करें तो उन्हें कैसा लगेगा? ऐसे अनेक प्रश्न अपना जाल उस के इर्दगिर्द और भी अधिक मजबूत कर लेते. रमला छटपटा कर रह जाती.
‘‘सुनो, मैं सोचता हूं कि तुम्हारे पापा को यहां ले आऊं, अपने पास. वहां बेचारे बुढ़ापे में परेशान हो रहे हैं. कल को कोई हारीबीमारी हो गई तो? तब भी तो हमें ही देखना होगा न?’’ राघव ने एक रात कहा तो रमला को उस पर और प्यार उमड़ आया. मां के चयन पर गर्व हुआ, लेकिन अपने पिता को वह राघव से बेहतर जानती थी. कैसे कुल्हाड़ी पर पांव मार ले.
‘‘बेटीदामाद के घर तो शायद वे खुद भी न रहना चाहें, लेकिन हम उन्हें अपने पास ही कोई घर दिलवा देते हैं. उन का भी मान रह जाएगा और देखभाल भी हो जाएगी,’’ रमला ने सु?ाया.
राघव को हालांकि प्रस्ताव कुछ कम ही जंचा, लेकिन वह बापबेटी के बीच नहीं पड़ना चाहता था इसलिए चुप रहा.
रमला ने अपने पिता को घर के पास ही एक छोटा घर किराए पर दिला दिया. मां वाला बड़ा घर किराए पर उठा देने से पिता को अतिरिक्त आमदनी भी होने लगी. बापबेटी दोनों खुश.
जेब और पेट भरा हो तो मन चंचल होने लगता है. पुरुष और वह भी अकेला…
मन तो चंचल होना ही था. एक दिन अलसुबह एक महिला को पिता के घर से निकलते देखा तो रमला चौंक गई.
‘‘घर की साफसफाई के लिए बुलाई थी,’’ पिता से पूछने पर उन्होंने नजर चुराते हुए जवाब दिया. रमला सम?ा गई थी कि माजरा क्या है.
‘पिता हैं तो क्या हुआ, पुरुष भी तो हैं और फिर भूख सिर्फ पेट को ही तो नहीं लगती,’ रमला ने उदार हो कर सोचा और उस महिला के आनेजाने को सहज लेने की कोशिश की.
‘‘क्यों न इस महिला को पिता के जीवन में स्थाई रूप से लाया जाए?’’ रमला ने सोचा और राघव से बात करना तय किया. रमला की बात सुनते ही पहले तो राघव चौंक गया, लेकिन ठंडे दिमाग से सोचने पर उसे भी इस में कोई बुराई नजर नहीं आई.
‘‘लेकिन वह महिला कौन है? उस की बैकग्राउंड क्या है. क्या वह उन के लिए सही साथी साबित होगी? कहीं कोई फ्रौड या पेशेवर हुई तो?’’ राघव ने अपने मन में आए कई प्रश्न पूछे.
उस के प्रश्न सुन कर रमला भी सोच में पड़ गई. सभी अपनी जगह वाजिब थे. उस ने इस मामले की तह में जाना निश्चित किया. शाम को जब पिता खाना खाने आए तो रमला अपना मन बना चुकी थी. पूछा, ‘‘पापा, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’
पिता ने आंखें उठाते हुए हां का इशारा किया.
‘‘मैं और राघव सोच रहे थे कि आप अपने लिए कोई साथी चुन लें,’’ रमला ने धीरे से कहा. पिता खाना रोक कर उस की तरफ देखने लगे. कुछ देर चुप्पी पसरी रही. तभी राघव भी आ गया.
‘‘रमला ठीक कहती है पापा. हालांकि आप के साथ रहने से हमें कोई परेशानी नहीं बल्कि सहारा ही है, लेकिन कोई एक मनचाहा साथी तो होना ही चाहिए न मन की बात कहनेसुनने के लिए,’’ राघव ने बातचीत का हिस्सा बनते हुए बात आगे बढ़ाई.
‘‘उस दिन जिसे मैं ने घर से निकलते हुए देखा था, यदि आप को ठीक लगती है तो बात कर सकते हैं,’’ रमला ने राघव की थाली परोसते हुए कहा.
‘‘अरे नहींनहीं वह तो बस यों ही. मैं ने बताया था न कि घर की साफसफाई के लिए बुलाया था,’’ पिता कहते हुए ?ोंप रहे थे.
रमला और राघव सम?ा रहे थे कि वह तो भूख मिटाने का तात्कालिक साधन है जैसे सड़क की चाटपकौड़ी. घर का खाना खाने के लिए तो पूरी रसोई नए सिरे से ही सजानी पड़ेगी.
‘‘कोई बात नहीं. हम कोई अच्छा सा मैच तलाशते हैं. कोशिश करने में क्या हरज है. देखते हैं कि क्या किया जा सकता है. बस, आप की सहमति होनी चाहिए,’’ राघव ने बात संभाल कर एक बार फिर अपनी सम?ादारी साबित की.
राघव ने समाचारपत्र में वैवाहिक विज्ञापन दिया. कुछ रिश्ते आए भी लेकिन उन्हें कोई सम?ा में नहीं आया.
कुछ माह बीत गए. इस बीच रमला ने महसूस किया कि पिता अपनी जिम्मेदारी सम?ाने लगे हैं. खाना तो दोनों समय रमला के पास खाते हैं, लेकिन चाय खुद अपने घर पर ही बना कर पीते हैं. शाम को आते समय 2 समय की सब्जी रमला को ला देते हैं. और तो और धीरेधीरे रसोई भी जमाने लगे हैं. काश, मां को भी कभी यह सुख मिला होता.
सबकुछ पटरी पर आने ही वाला था कि एक और वज्रपात हुआ. राघव की विधवा बूआ का इकलौता जवान बेटा कोरोना का ग्रास बन गया. पति को पहले ही खो चुकी बूआ बेटे के जाने के गम में पगला ही गई. रमला और राघव उन की हरसंभव मदद और देखभाल कर रहे थे.
इस बीच रमला को लगा कि उस के पांव भारी हैं. यह सुनते ही राघव खुशी से नाच उठा. डाक्टर ने रमला को खास देखभाल की हिदायत दी तो राघव ने बूआ से रमला की जिम्मेदारी संभालने का आग्रह किया. बूआ ने मान लिया और रमला को अपनी निगरानी में ले लिया.
बूआ अब राघव के घर की स्थाई सदस्य बन गई. रमला की देखभाल के साथसाथ उन्होंने शेष घर की जिम्मेदारी भी सहज ओड़ ली. समय आने पर रमला ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. घर में खुशियों की लहर आ गई.
इन सब में उल?ा कोई देख ही नहीं पाया कि रमला के पिता भी बूआ से प्रभावित होने लगे थे. वे उन के साथ सहज हासपरिहास करते रहते जिस से घर का माहौल खुशनुमा बना रहता. बूआ भी सुबहशाम चाय उन्हीं के साथ पीती. बच्ची के साथ बच्चे बने दोनों खेलने लगते तो समय का पता ही नहीं चलता. बूआ से ट्यूनिंग बैठने के बाद पिता ने एक बार भी अपने अकेलेपन को नहीं कोसा. अपनी गर्भावस्था और उस के बाद डिलिवरी पीरियड से बाहर निकलने पर रमला का ध्यान इस तरफ गया तो वह मुसकरा दी.
‘‘2 अधूरी तसवीरों को आपस में जोड़ दिया जाए तो?’’ एक रात बिटिया को थपकी देती रमला ने राघव से प्रश्न किया जिसे राघव बू?ा नहीं पाया.
‘‘बताओ न क्या होगा?’’ रमला अब शरारत पर उतर आई.
‘‘होगा क्या, एक पूरी तसवीर बन जाएगी और क्या?’’ राघव ने पत्नी की शरारत का मजा लेते हुए जवाब दिया.
‘‘तो क्यों न हम भी अपने घर की दोनों खंडित तसवीरों को जोड़ दें?’’ रमला ने फिर से शरारत से आंखें नचाईं.
‘‘यार, पहेलियां मत बु?ाओ. सीधेसीधे कहो ना जो कहना चाहती हो,’’ राघव ?ां?ाला गया.
‘‘मैं पापा और बूआ की बात कर रही हूं,’’ रमला ने हंसते हुए कहा तो आश्चर्य और खुशी के मारे राघव की आंखें चौड़ी हो गई.
‘‘कमाल है मैं क्यों नहीं देख पाया यह समाधान,’’ राघव ने रमला के हाथ पकड़ते हुए कहा. ‘‘तो अब देख लो,’’ रमला ने चहक कर कहा. रास्ता सू?ा जाए तो मंजिल मिलना आसान हो जाता है. रमला और राघव के प्रयासों से 2 अधूरी तसवीरें मिल कर एक हो गईं. कुछ दिन तो सब को उन के बीच का जोड़ दिखाई दिया, लेकिन बाद में सब सामान्य हो गया. रमला के पिता और राघव की बूआ कोर्ट मैरिज कर के एकसाथ रहने लगे. समय के साथ घिसता हर जोड़ एकसार हो ही जाता है.