‘‘क्या प्राची, अभी तक ऐसे ही बैठी हो अस्तव्यस्त सी? मैं ने सोचा तैयार बैठी होगी तुम, ड्राइवर तुम्हें रिंकी के यहां छोड़ देगा,’’ बहुत सारी खरीदारी कर के लौटी थीं नीलाजी पर, प्राची को देखते ही उस पर बरस पड़ीं.

‘‘मेरा मन नहीं है रिंकी के यहां जाने का,’’ प्राची रिमोट से चैनल बदलते हुए बेमन से बोली.

‘‘अरे तो समझाओ अपने मन को. अपने मन पर काबू रखना सीखो. पर यहां तो उलटा ही हो रहा है. मन ही तुम्हें अपने पंजों में जकड़ता जा रहा है,’’ नीलाजी ने प्राची को समझाया.

‘‘मेरा मन मेरी सुनता कहां है मम्मी,’’ प्राची खोखली हंसी हंस दी.

‘‘ऐसा नहीं कहते. रिंकी तुम्हारी सब से प्यारी सहेली है. कितना आग्रह कर के गई थी कि मेहंदी की रस्म से ले कर विवाह की समाप्ति तक तुम्हें उस के घर में ही रहना है. तुम ने छुट्टी ले ली है. 2 महीनों से तुम्हारी तैयारी चल रही थी. ढेरों कपडे़ खरीद डाले तुम ने. फिर अचानक ऐसी बेरुखी क्यों?’’

‘‘कोई बेरुखी नहीं है. बस जाने का मन नहीं है. मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो मम्मी.’’

‘‘क्या हो गया है मेरी बच्ची को? इस तरह तो तू घर की चारदीवारी में घुट कर रह जाएगी. जीवन है तो उस के सुखदुख भी होंगे. रिंकी के यहां तेरी अन्य सहेलियां भी आएंगी, मन बदल जाएगा,’’ नीलाजी ने उसे जबरदस्ती उठा दिया. नीलाजी देर तक शून्य में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखती रहीं... क्या नहीं था उन के पास धन, प्रतिष्ठा और प्राची व प्रखर जैसी मेधावी संतानें. पर प्राची का विवाह होते ही जैसे इस सुख को ग्रहण लग गया. प्राची ने जब प्रशांत से विवाह का प्रस्ताव रखा था तो उन की खुशी की सीमा नहीं थी. प्रशांत था भी लाखों में एक. 35 वर्ष का प्रशांत अपनी कंपनी का सर्वेसर्वा था. उस के शालीन व सुसंस्कृत व्यवहार ने सभी का मन जीत लिया था.

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