Team India के कैप्‍टन Rohit Sharma दोबारा बने पापा, पत्‍नी रितिका सजदेह ने दिया बेटे को जन्‍म

कुछ महीने पहले यह चर्चा काफी तेज थे क‍ि रोहित (Rohit Sharma) की पत्‍नी रितिका प्रैग्‍नेंट है लेकिन इस पर कपल में से किसी ने खुल कर कुछ कहा नहीं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रोहित की वाइफ रितिका ने 15 नवंबर की देर रात को बेटे को जन्‍म दिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि रोहित ने इसी वजह से स्‍पोर्ट्स से थोड़ा ब्रेक लिया था और टीम के साथ आस्ट्रेलिया नहीं पहुंचे. अब ऐसा कहा जा रहा है कि वे 22 नवंबर से  आस्ट्रेलिया के पर्थ में टेस्‍ट मैच खेल सकते हैं. रोहित और रीतिका साल 2015 में शादी के बंधन में बंधे थे. साल 2018 में उनकी बेटी सायरा का जन्‍म हुआ. यह कपल अकसर अपनी बेटी के साथ सैरसपाटे करते देखा जाता है. सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रहा है, जो न्‍यू बौर्न बेबी और उनके पैरेंट्स का बताया जा रहा है.

केएल राहुल (K L Rahul) भी इस लाइन में

इन दिनों इंडियन क्रिकेट टीम (Team India) से केवल गुड न्‍यूज ही आ रही है. पिछले दिनों यह खबर आई कि टीम इंडिया के बैट्समैन केएल राहुल भी पापा बनने वाले हैं. केएल राहुल की शादी एक्‍टर सुनील शेट्टी की बिटिया अथिया शेट्टी के साथ हुई है. जनवरी 2025 में अथिया बच्‍चे को जन्‍म दे सकती हैं. टीम इंडिया के फैंस को पता है कि साल 2024 में ही विराट कोहली भी दोबारा पिता बने. कुछ दिन पहले उनके जन्‍मदिन पर उनकी पत्‍नी अनुष्‍का शर्मा ने उनकी एक फोटो पोस्‍ट की थी, जिसमें वह अपने बेटे और बेटी के साथ दिखे. विराट ने अपने बेटे का नाम अकाय रखा है.

टीम इंडिया का अगला टारगेट आस्ट्रेलिया 

आस्ट्रेलिया के पर्थ में 22 नवंबर से मैच खेला जाएगा. इसके बाद 6 दिसंबर से एडीलेड में भी डेनाइट टेस्‍ट मैच होगा. कहा जा रहा है कि 32 साल बाद टीम इंडिया आस्ट्रेलिया  में 5 टेस्‍ट मैचों की सीरीज खेलने पहुंची है. उम्‍मीद है कि इस साल पूरी टीम उसी देश में न्‍यू ईयर पार्टी के जश्‍न का आनंद ले क्‍योंकि सीरीज का पांचवा और आखिरी टेस्‍ट मैच 3 जनवरी को खेला जाएगा, जो सिडनी में होगा. वर्ल्‍ड टेस्‍ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने के लिए भारत को वहां पर 4 टेस्‍ट मैच जीतने होंगे इसलिए यह कहा जा सकता है कि टीम को पूरी तरह तैयार रहना होगा .

Arjun Kapoor के घर में जल्द गूंजेगी शहनाई, बहन अंशुला कपूर करेंगी शादी

बोनी कपूर की पहली पत्नी से हुई बेटी और अर्जुन कपूर (Arjun Kapoor) की बहन अंशुला कपूर ने 33 साल की उम्र में शादी करने का मन बना लिया है. करीबन 4 महीने पहले अंशुला की मुलाकात स्क्रीन राइटर रोहन ठक्कर से हुई थी . बाद में यह दोस्ती चार महीना तक चली और प्यार में बदल गई. पेशे से लेखक रोहन अंशुला को बहुत पसंद है, और उनका शादी करने का प्लान भी है.

शादी कब होगी यह अभी तक फाइनल नहीं है. अंशुला ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि 33 साल की होने के बावजूद कभी उनके पिता बोनी कपूर या भाई अर्जुन कपूर ने उनका शादी के लिए प्रेशर नहीं दिया. अंशुला के अनुसार मेरी दादी ने भी मुझसे यही कहा कि जब मुझे कोई लड़का पसंद आ जाए तो मैं उन को बता दूं .

तो फिर वह मेरी पसंदीदा लड़के से शादी कर देंगे. पापा बोनी कपूर को जरूर मेरी शादी को लेकर चिंता थी जब मैंने 30 की उम्र पार कर ली. उस वक्त पापा ने मुझे जरूर कहा कि मेरा शादी का क्या प्लान है. लेकिन कभी फोर्स नहीं किया. अब फाइनली मुझे रोहन पसंद आ गया है. सो मेरा शादी का इरादा रोहन से ही है. लेकिन शादी की डेट या समय जब फाइनल होगा तो मैं आप सबको जरूर बताऊंगी.

शाहरुख खान और अजय देवगन के बीच नहीं है दोस्ती, क्या वजह हैं Kajol ?

अभी हाल ही में अजय देवगन (Ajay Devgan)  की फिल्म ”सिंघम अगेन 3′ में सलमान खान की बतौर चुलबुल पांडे एंट्री हुई, इससे पहले भी अजय देवगन सलमान खान के साथ ‘हम दिल दे चुके हैं सनम’ में काम कर चुके हैं. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती भी है. लेकिन अजय देवगन की फिल्म इंडस्ट्री में अगर किसी से दोस्ती नहीं है तो वह है किंग खान यानी शाहरुख खान (Shahrukh Khan). जिसके चलते अजय देवगन ने आज तक शाहरुख खान के साथ एक भी फिल्म नहीं की और ना ही भविष्य में शाहरुख के साथ कभी कोई फिल्म करने का इरादा है. इसकी खास वजह है काजोल. जिस तरह पजेसिव पति को अपनी पत्नी के रिश्तेदार पसंद नहीं होते, उसी तरह अपनी पत्नी के खास दोस्तों से भी पजेसिव पति को प्रौब्लम रहती है.

भले ही फिर वह पति अजय देवगन अपनी बचपन की दोस्त तब्बू के साथ गहरी दोस्ती होने का दावा करें . लेकिन अगर उनकी बीवी काजोल की किसी से दोस्ती है. तो अजय देवगन को यह बर्दाश्त नहीं है. हाल ही में इस बात का खुलासा खुद काजोल ने अपने एक इंटरव्यू में किया. काजोल (Kajol )के अनुसार अजय और शाहरुख अच्छे दोस्त नहीं है इसलिए वह ना तो किसी फिल्म में नजर आते हैं और ना ही किसी फिल्मी पार्टी में एक साथ नजर आते हैं. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि उन दोनों में कोई दुश्मनी है . लेकिन यह भी सच है की दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते.

शायद इसलिए क्योंकि शाहरुख और काजोल की जोड़ी बौलीवुड की सबसे पसंदीदा जोड़ी है और इन दोनों ने बाजीगर, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, जैसी कई हिट फिल्में दी है और रियल लाइफ में भी शाहरुख और काजोल अच्छे दोस्त हैं शायद इसीलिए अजय देवगन को शाहरुख खान ना पसंद है और उन्होंने शाहरुख खान के साथ हमेशा से दूरी बनाए रखी है.

सातवें आसमान की जमीन

ड्राइंगरूम में हो रहे शोर से परेशान हो कर किचन में काम कर रही बड़ी दी वहीं से चिल्लाईं, ‘‘अरे तुम लोगों को यह क्या हो गया है. थोड़ी देर शांति से नहीं रह सकते? और यह नंदा, यह तो पागल हो गई है.’’

‘‘अरे दीदी मौका ही ऐसा है. इस मौके पर हम भला कैसे शांत रह सकते हैं. सुप्रिया दीदी टीवी पर आने वाली हैं, वह भी अपने मनपसंद हीरो के साथ, मात्र उन्हीं की पसंद के क्यों. अरे सभी के मनपसंद हीरो के साथ. अब भी आप शांत रहने के लिए कहेंगी.’’ नंदा ने कहा.

सब के सब नंदा को ताकने लगे. किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सुप्रिया को ऐसा क्या मिल गया और कौन सा हीरो इस के लिए निमंत्रण कार्ड ले कर आया है, यह सब पता लगाना घर वालों के लिए आसान नहीं था. और नंदा तो इस तरह उत्साह में थी कि घर वालों को कुछ बताने के बजाए इस अजीबोगरीब खबर को फोन से दोस्तों को बताने में लगी थी.

नंदा की इस शरारत पर बड़ी दी ने खीझ कर उसे पकड़ते हुए कहा, ‘‘तेरा यह कौन सा नया नाटक है, कुछ बता तो सही.’’

‘‘बड़ी दी, सुप्रिया दीदी एक कांटेस्ट जीत गई हैं. ईनाम में उसे अपने फेवरिट हीरो के साथ टीवी पर आना है. अब तो समझ में आ गया कि नहीं?’’ नंदा ने स्पष्ट किया.

‘‘तुम्हारा मतलब सुप्रिया टीवी पर अपने ड्रीम बौय के साथ, फैंटास्टिक.’’ संदीप ने किताब बंद करते हुए नंदा की बात का समर्थन किया. नंदा ने आगे कहा, ‘‘भैया इतना ही नहीं, वह हीरो, सुप्रिया दीदी के लिए परफोर्म करेगा, गाना गाएगा. डांस करेगा. अब और क्या चाहिए? पर है कहां अपनी गोल्डन गर्ल?’’

‘‘नहा रही है लकी गर्ल, लेकिन उस ने तो मुझ से कुछ बताया ही नहीं, पर बाकी लोग तो हैं. सुप्रिया दीदी को लग रहा होगा, पता नहीं किसे बुरा लग जाए. इसीलिए किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है. और जीतना तो एक सपना था. उसे कहां पता था कि सच हो जाएगा.’’

तभी परदे के पीछे से सुप्रिया आती दिखाई दी. अपार आनंद में डूबी सुप्रिया के चेहरे पर अजीब तरह की चमक थी. नंदा ने दौड़ कर सुप्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘सुप्रिया दी…लकी…लकी गर्ल.’’

दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़ कर नाचने लगीं. थक गईं तो निढाल हो कर सोफे पर गिर पड़ीं. इस बीच किसी को भी एक भी शब्द बोलने का मौका नहीं मिला. दोनों के सोफे पर बैठते ही बड़ी दी बोलीं, ‘‘यह क्या पागलपन है, सुप्रिया, घर में किसी को कुछ बताए बगैर तुम कांटेस्ट के फाइनल तक पहुंच गईं. चलो जो किया, ठीक किया. अमित को इस बारे में बताया है?’’

सुप्रिया आंखों से मधुर मुसकान मुसकराईं, उस के बजाए नंदा बोली, ‘‘बड़ी दी, इस तरह के काम कोई पूछ कर करता है? मान लीजिए आप से पूछने आती तो आप कांटेस्ट में हिस्सा लेने देतीं? दीदी अब छोड़ो इसे टीवी पर देखने के लिए तैयार हो जाइए. कमर कस कर तैयारी शुरू कर दीजिए.’’

‘‘तैयारी किस बात की. कोई ब्याह थोड़े ही करने जा रही हैं,’’ वह थोड़ा नाराज हो कर बोलीं, ‘‘आजकल के बच्चे भी न पागल… नादान…’’

‘‘दीदी, ब्याह क्या, यह तो उस से भी जबरदस्त है. लाखों दिलों की धड़कन, चार्मिंग, अमेजिंग लवर बौय अपनी सुप्रिया के साथ…’’

नंदा की बात पूरी होती, उस के पहले ही शैल, सुकुमार और नेहा का झुंड आ पहुंचा. इस के बाद तो जो हंगामा मचा. कान तक पहुंचने वाला शब्द भी ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था. बड़ी दी, भैयाभाभी और घर के अन्य लोग परेशान थे. हवा रंगबिरंगी और सुगंधित हो गई थी. कौन सी डे्रस, कैसी हेयरस्टाइल, स्किनकेयर, फुटवेयर, परफ्यूम, डायमंड या पर्ल, गोल्ड या सिलवर… बातों की पतंगें उड़ती रहीं और सुप्रिया उन पर सवार विचारों में डूबी थी कि जीवन इतना भी सुंदर और अद्भुत हो सकता है.

वह असाधारण और अविस्मरणीय घटना घटी और विलीन हो गई. वह दृश्य देखते समय सुप्रिया के मित्रों में जो उत्तेजना थी, उस का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता. फिर भी इस पागल उत्साह में बड़ी दीदी ने थोड़ा अवरोध जरूर पैदा किया था. इस के बावजूद उन्होंने सभी को आइस्क्रीम खिलाई थी. सुप्रिया की ठसक देख कर सभी ने अनुभव किया कि अमित कितना भाग्यशाली है. उस की अनुपस्थिति थोड़ा खल जरूर रही थी. पता नहीं, चेन्नै में उस ने यह प्रोग्राम देखा या नहीं. सुप्रिया ने उसे कांटेस्ट की बात बताई भी थी या नहीं?

सुप्रिया के राजकुमार ने अपनी अत्यंत लोकप्रिय फिल्म का प्रसिद्ध गाना पेश किया था. उस ने उस का हाथ पकड़ कर डांस भी किया. एक प्रेमी की तरह चाहत भरी नजरों से उसे निहारा भी और घुटनों के बल बैठ कर उसे गुलाब भी दिया.

‘‘इस समय आप को कैसा लग रहा है?’’ कार्यक्रम खत्म होने पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले ने पूछा था. खुशी में पागल हो कर उछल रही सुप्रिया कुछ पल तो बोल ही नहीं सकी. उस आनंद में उस की आंखों की पलकें तक नहीं झपक रही थीं. खुशी में आंसू आ जाते हैं. इस के बारे में उस ने पढ़ा और सुना था. पर सचमुच वह क्या होता है. उस दिन उसे पता चला. सातवां आसमान मतलब यही था, आउट आफ दिस वर्ल्ड. दिल से अनुभव किया था उस ने. उसे ऐसा भाग्य मिला. इस के लिए उस ने उस अदृश्य शक्ति को हाथ जोड़े और इसी के साथ तालियों की गड़गड़ाहट…

मेघधनुष लुप्त हो गया. सुप्रिया ने यह सप्तरंगी सपना समेट कर यादों के पिटारे में रख लिया कि जब मन हो पिटारा खोल कर देख लेगी. आखिर सुप्रिया पूरी तरह जमीन पर आ गई. इस की मुख्य वजह चेन्नै से अमित वापस आ गया था. आते ही उस ने फोन कर के यात्रा और अपने काम की सफलता की कहानी सुना कर पूछा, ‘‘तुम्हारा क्या हाल है, कुछ नया सुनाओ?’’

‘‘कुछ खास नहीं, बस चल रहा है.’’

‘‘नथिंग एक्साइटिंग?’’

‘‘कुछ नहीं, यहां क्या एक्साइटिंग हो सकता है. बस सब पहले की तरह…’’ सुप्रिया ने कहा. कांटेस्ट जीतने की परीकथा उस के होंठों तक आ कर लौट गई. शायद मन में कुछ खटक रहा था.

‘थाटलेस और मीनिंगलेस… चीप इंटरटेनमेंट…’ अमित टीवी के ज्यादातर प्रोग्रामों के लिए यही कहता था. जबकि उस की इस मान्यता का सुप्रिया से कोई लेनादेना नहीं था.

‘‘क्यों कोई लेनादेना नहीं है. उस के साथ शादी करने जा रही है. पूछ तो सही उस से कि उस ने तेरे कार्यक्रम की डीवीडी देखी थी या नहीं? वह देखना चाहता है या नहीं? दुनिया ने उस प्रोग्राम को देखा है. ऐसा भी नहीं कि उसे पता न हो. तब इस में उस से छिपाना क्या?’’ नंदा ने पूछा.

देखा जाए, तो एक तरह से उस का कहना ठीक भी था. सुप्रिया बारबार खुद से पूछती थी कि आखिर उस ने अमित से इस विषय पर बात क्यों नहीं की? किसी न किसी ने तो उसे बताया ही होगा. यह कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. चारों ओर चर्चा थी. फिर यह कौन सी चोरी की बात है, जो उस से छिपाई जाए. पर अमित ने भी तो उस से इस बारे में कुछ नहीं पूछा.

सुप्रिया ने सब को पार्टी दी. सभी इकट्ठे हुए. बड़ी दी ने सब का स्वागत किया. क्योंकि मम्मीपापा के बाद इस समय घर में वही सब से बड़ी थीं. धमालमस्ती में उन्होंने कोई रुकावट नहीं डाली थी. अमित को भी आना था, इसलिए सुप्रिया पूरी एकाग्रता से तैयार हुई थी.

‘‘गौर्जियस?’’

उस दिन उस के प्रिय अभिनेता ने भी यही शब्द कहा था और उस समय सुप्रिया को जो सुख प्राप्त हुआ था, वह उसे अभी अमित तक पहुंचा नहीं सकी थी. अमित उस स्वप्नलोक जैसा कहां था. यह तो देखने की बात है, वर्णन करने की नहीं. नंदा तो जैसे मौका ही खोज रही थी. अन्य दोस्त भी कहां पीछे रहते.

सभी ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘यार अमित, यू रियली मिस्ड समथिंग. क्या ठसक थी सुप्रिया की. वह जैसे सचमुच प्रेम कर रहा हो और प्रपोज कर रहा हो… इस तरह घुटने के बल बैठ कर… मान गए यार.’’

‘‘अरे इन एक्टरों के लिए तो यह रोज का खेल है. दिन में दस बार प्रपोज करते हैं ये. यही अभिनय करना तो उन का काम है. यह उन के लिए बहुत आसान है.’’

‘‘सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर अपलक ताक रहा था और बैकग्राउंड में वह गाना बज रहा था… कि तुम बन गए हो मेरे खुदा…ही वाज सो इंटेंस, सो इमोशनल, माई गौड. अमित, तुम देखते तो पता चलता. उस सब को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता.’’

‘‘इस का मतलब अमित ने उसप्रोग्राम की डीवीडी नहीं देखी. इसे जलन हो रही होगी.’’ रौल ने कहा.

‘‘नो यंगमैन, जलन किस बात की. मुझे इन नाटकों में जरा भी रुचि नहीं है. यह सब दिखावा है. इस सब के लिए मेरे पास जरा भी समय नहीं है.’’

अमित की इन बातों पर सुप्रिया एकदम से उदास हो गई. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.

‘‘अमित, तुम जिसे पल भर का नाटक कह रहे हो, उसी पल भर के नाटक में सुप्रिया किस तरह आनंद समाधि में समा गई थी, इस से पूछो. इस का हाथ पकड़ कर जब उस ने अपने होंठों से लगाया तो यह सहम सी गई. सच है न सुप्रिया?’’

सुप्रिया ने हां में सिर हिलाया.

नंदा ने उस के सिर पर ठपकी मार कर कहा, ‘‘चिंता में क्यों पड़ गई, अमित तुझे खा नहीं जाएगा. यह कोई 18वीं सदी का मेलपिग नहीं है.’’

अमित ने नंदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

सुप्रिया उस समय बड़ी दी को याद कर रही थी. उन्होंने कहा, ‘‘लड़की के व्यवस्थित होने तक तमाम चीजों का ध्यान रखना पड़ता है. हर चीज बतानी पड़ती है. कांटेस्ट में भाग लिया है, इस में क्या बताना. भूल हो गई, कह देना. पर यह झूठ है. कांटेस्ट में हिस्सा लेने के लिए किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की थी. अपनी मरजी से हिस्सा लिया था और जीतने की इच्छा के साथ. यह भी सच है कि जीतने की तीव्र इच्छा थी जीत का नशा भी चढ़ा था, इस में कोई झूठ भी नहीं, अब बचाव में कुछ कहना भी नहीं. जो अच्छा लगा, व किया. कोई अपराध तो नहीं किया. साथ रहना है तो यह स्पष्टता होनी ही चाहिए.’’

मन नहीं था, फिर भी सुप्रिया अमित के साथ इंडिया गेट आ गई थी. अब आ ही गई तो इस बारे में क्या सोचना, आने से पहले ही उस ने काफी सोचविचार कर तय कर लिया था कि उसे अपनी बात किस तरह कहनी है. इस के बावजूद काफी गुणाभाग और सुधार कर उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें मेरा यह निर्णय खराब तो नहीं लगा?’’

‘‘खराब, किस बारे में?’’

‘‘वही टीवी और कांटेस्ट वाली बात.’’

‘‘छोड़ो न, डोंट टाक रबिश, तुम्हें यह पूछना पड़े, इस का मतलब तुम ने मुझे अभी जानापहचाना नहीं.’’

‘‘ऐसा नहीं है अमित, तुम मुझे मूडलेस लगते हो. तुम ने मुझ से कांटेस्ट की कोई बात तक नहीं की. घर में किसी ने प्रोग्राम देखा हो और किसी को कुछ न अच्छा लगा हो.’’

‘‘तुम्हें पता है मेरे यहां कोई रुढि़वादी या पुरानी सोच वाला नहीं है.’’

‘‘भले ही पुराने विचारों वाला नहीं है. पर कुछ न अच्छा लगा हो.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.’’

अमित ने दोनों हाथ ऊपर की ओर कर के सूरज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सूर्यास्त देख कर चलना है न?’’

सुप्रिया थोड़ा खीझ कर बोली, ‘‘सूर्यास्त को छोड़ो, तुम अपनी बात करो. चेन्नै से आने के बाद तुम काफी गंभीर हो गए हो. ऐसा क्यों?’’

‘‘नथिंग पार्टिक्युलर. तुम्हें ऐसे ही लग रहा है. तुम्हें इस चिंतित अनुभव के बाद तुम्हें सब कुछ डल और लाइफलेस लग रहा है.’’

‘‘अब आए न लाइन पर. सो यू डिड नाट लाइक इट. सही कहा जा सकता है.’’

‘‘तुम्हें जो अच्छा लगा. तुम ने वह किया. इस में मुझे अच्छा या खराब लगने का कोई सवाल ही नहीं उठता. हमारे संबंधों के बीच अब ये बातें नहीं आनी चाहिए.’’

‘‘सवाल है न. कुछ दिनों बाद हमें साथ जीना है. इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है.’’

‘‘तुम बेकार में पीछे पड़ी हो, फारगेट इट. कोई दूसरी बात करते हैं. कुछ खाते हैं.’’

‘‘अमित, तुम बात बदलने की कोशिश मत करो. मैं आज तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं. चलो, दूसरी तरह से बात करती हूं. तुम ने डीवीडी क्यों नहीं देखी? वैसे तो तुम मुझ में बहुत रुचि लेते हो, भले ही इस बात को तुम चीप इंटरटेनमेंट मानते हो, इस के बाद भी तुम्हें मेरा प्रोग्राम देखना चाहिए था. मेरा प्रोग्राम देखने का तुम्हारा मन क्यों नहीं हुआ? मेरी खातिर तुम्हारे पास इतना समय भी नहीं है?’’

‘‘इस में समय की बात नहीं है. तुम्हें पता है, मुझे ऐसावैसा देखना पसंद नहीं है.’’

‘‘ऐसावैसा मतलब? अमित ऊपर देख कर चलने की जरूरत नहीं है और जिसे तुम चीप कह रहे हो, उसी तरह के अन्य प्रोग्राम तुम देखते हो. यह जो तुम क्रिकेट देखते हो, वह क्या है.’’

‘‘जाने दो न सुप्रिया, बेकार की बहस कर के क्यों शाम खराब कर रही हो.’’

‘‘शाम खराब हो रही है, भले हो खराब. आज मैं यह जान कर रहूंगी कि आखिर तुम्हारे मन में मेरे प्रति क्या है. सचसच बता दो. बात खत्म.’’

अमित ने एक लंबी सांस ली. शाम को पंक्षी अपने बसेरे की ओर जाने लगे थे. उस ने सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम ने कांटेस्ट में हिस्सा लिया, तुम्हारी मरजी. ठीक है न?’’

‘‘एकदम ठीक.’’

‘‘तुम्हें जीतना था, जिस की मुख्य वजह यह थी कि जीतने पर तुम्हारा फेवरिट हीरो तुम्हारे साथ परफोर्म करता. सच है न?’’

‘‘एकदम सच.’’

‘‘तुम जीतीं और तुम्हारा सपना पूरा हुआ, जिस से तुम्हें खुशी हुई. यह स्वाभाविक भी है. आई एम राइट?’’

‘‘एकदम सही, पर यह क्या मुझे गोलगोल घुमा रहे हो. मुद्दे की बात करो न. शाम हो रही है, मुझे घर भी जाना है. दीदी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें आराम की जरूरत है.’’

‘‘चलो मुद्दे की बात करते हैं. वह अभिनेता, जो इस जीवन में कभी नहीं मिलने वाला तुम से झूठमूठ में प्रपोज किया, तुम से मिलने को आतुर हो इस तरह का नाटक किया, मात्र नाटक, इस झूठमूठ के नाटक में तुम मारे खुशी के रो पड़ीं. सचमुच में रो पड़ीं. तुम्हारी खुशी कोई एक्टिंग नहीं थी. सच कह रहा हूं न?’’

‘‘हां, मैं एकदम भावविभोर हो गई थी. वह खुशी… इट वाज जस्ट टू मच. अकल्पनीय आनंद की अनुभूति हुई थी मुझे.’’

‘‘तुम ने जो कहा, यह सब… अब याद करो, मैं ने तुम्हें प्रपोज किया, अंगूठी पहनाई, गुलाब दिया, हाथ में हाथ लिया, मेरे लिए तुम्हारी आंखें कभी भी एक बार भी प्यार में नहीं छलकीं. सो आई वाज जस्ट थिंकिंग कि यह सब क्या है? सचमुच, मैं यही सोचते हुए यहां आया था. तब से यही सोचे जा रहा हूं. खैर, चलो अब चलते हैं.’

श्यामा आंटी: सुगंधा की चापलूसी क्यों काम नहीं आई?

फोनकी घंटी बजी. विदिशा ने फोन उठाया था. उधर वाचमैन था, ‘‘मैडम, आप को कामवाली की जरूरत है क्या? एक लेडी आई है. कह रही है कि आप ने उसे बुलाया है.’’

‘‘भेज दो.’’

विदिशा की कामवाली गांव गई हुई थी.

1 महीने से वे खाना बनाबना कर परेशान थीं. इसलिए वे अकसर सब से कहती रहती थीं कि कोई कामवाली बताओ. वे सोच रही थीं कि जो भी होगी, उसे वह रख लेंगी, बाद में देखा जाएगा. तभी दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘दीदी, जय बंसी वाले की…’’

तकरीबन 54-55 साल की पतलीछरहरी महिला, जिस का रंग गेहुंआ था, नैननक्श तीखे थे, साफसुथरी हलके रंग की साड़ी पहनी हुई थी. माथे पर चंदन का टीका लगाए हुई थी और गले में रुद्राक्ष की माला पहनी थी.

‘‘कैसे आई…’’

‘‘दीदी, हम नाम भूल रहे हैं, गेटकीपर

कहा था कि मैडम को खाना बनाने वाली की जरूरत है. हमें काम की जरूरत है, आप को कामवाली की.’’

 

विदिशा की मम्मीजी भी वहीं बैठी हुईर् थीं. उन्होंने मम्मीजी को उस से

बात करने के लिए इशारा किया.

‘‘पैसा कितना लोगी?’’

‘‘माताजी आप मेरा काम देख लो, फिर

जो ठीक लगे, वह दे देना. वैसे आप जो पहली को दे रही हो, उस से कम से कम क्व200 बढ़ा कर दे दो.’’

विदिशा उस की चतुराई पर मुसकरा उठी थी. वह उस की वाक कुशलता देख रही थी.

‘‘तुम अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘हमारा नाम श्यामा है.’’

‘‘देखो, श्यामा, बुरा मत मानना, तुम कौन सी बिरादरी से हो?’’

‘‘हम बहुत ऊंचे कुल के ब्राह्मण हैं. प्रयागराज में ब्याह हुआ रहा. खूब चैनचौन रहा, लेकिन किस्मत फूट गई. एक दिन हमारे मालिक दुकान से आ रहे थे कि तभी उन की साइकिल में मोटर साइकिल वाले ने टक्कर मार दी और उन की सांस छूट गई. बस फिर तो सब की नजरें बदल गईं.

‘‘हम तो नौकरानी बन के भी खुश रहे, लेकिन एक रात हमारे ससुर रात को कमरे में आ गए. हम मुश्किल से अपनी इज्जत बचा पाए. अगले दिन 10 बरस की बिटिया का हाथ पकड़ कर घर से निकल आए. कुछ दिनों तक तो मायके में रही, लेकिन माताजी आप तो जानती हो कि जब अपना कोई नहीं तो सपना क्यों?’’

वह अपने पल्लू से अपने आसुंओं को पोंछ रही थी. मम्मीजी तो उस के आसुंओं को देख पिघल उठी थीं. बस, उसी क्षण से उन के घर में श्यामा आंटी का प्रवेश हो गया था.

‘‘जय बंसी वाले…’’ उन का तकिया कलाम था. वे आते और जाते समय जरूर बोलतीं. मम्मीजी की श्यामा आंटी से बहुत अच्छी बनती थी, यह भी उन के लिए बहुत खुशी की बात थी.

थोड़े दिनों में ही श्यामा आंटी ने अपनी पाककला और मीठीमीठी बातों से सब का दिल जीत लिया था. उन्हीं दिनों विदिशा की किट्टी की चिट निकल आई. अब तो श्यामा आंटी की पाककला, उन के लिए सोने में सुहागा की तरह था.

‘‘श्यामा आंटी, मेरे घर में किट्टी में 15-16 महिलाएं आएंगी. आप सब के लिए नाश्ता बना दीजिएगा.’’

‘‘अरे दीदी, आप चिंता न करें. आप जो भी कहेंगी हम सब बना देंगे. आप की सखियां उंगली चाटती हुई जाएंगी.’’

 

मौसम सुहावना हो रहा था. हलकीहलकी फुहारें पड़

रही थीं. ऐसे समय में विदिशाजी के यहां हरियाली तीज के उपलक्ष्य में ‘तीज मिलन’ की किट्टी थी. सभी महिलाएं हरेहरे परिधानों में सजी हुई थीं.

आज उन का घर हंसी के ठहाकों और खिलखिलाहट से गुंजायमान हो रहा था. आज विशेषरूप से हरियाली थीम रखी गई थी. विदिशाजी ने हरेहरे पत्तों और मोर पंखों के द्वारा सुंदर सजावट की थी.

स्टार्टअप में महिलाओं के सामने खस था. हराहरा शरबत और पालक की हरीहरी पकौडि़यां चटनी के साथ सब को बहुत पसंद आ रही थी. श्यामा आंटी पकौडि़यां सेंक भी रही थीं और ला कर दे भी रही थीं.

अंचल बोली, ‘‘विदिशा, यह नमूना तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘बस मिल गई.’’

‘‘कुछ भी कहो, आज जैसी पकौडि़यां और शरबत… मजा आ गया.’’

फिर तो अर्चना, गीता और पूनम सभी ईर्ष्या से विदिशा के भाग्य को सराहती हुईं लालची निगाहों से श्यामा आंटी की ओर देख रही थीं. पूनम बोली, ‘‘विदिशा, तुम्हारी श्यामा आंटी तो ऐसा लगता है कि किसी मंदिर से सीधा उठ कर आ गई हैं. पूरी मलिन लगती हैं.’’

‘‘धीरे बोलो, पूरी पंडिताइन हैं. प्याज

नहीं खातीं. जूठेमीठे का बहुत परहेज करती हैं और छुआछूत तो बस पूछो नहीं. डाइनिंग टेबल पर रखी कोई चीज नहीं खातीं. कई बार गुस्सा

भी जाती है, लेकिन यार, खाना बहुत टैस्टी

बनाती हैं.’’

‘हाउजी गेम’ पूरा हुआ ही था कि वे किचन से आ कर बोली थीं, ‘‘दीदी, नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है. मैं पकौडि़यां सेंकने जा रही हूं.’’

 

सुगंधा हराहरा ढोकला चखते ही खुश हो कर बोली, ‘‘विदिशा, ढोकला क्या

हलदीराम से मंगाया है, बहुत सौफ्ट और टैस्टी है. वाहवाह… ऐसा लग रहा है, खाती जाऊं.’’

श्यामा आंटी ने सब की प्लेट में ढोकला रख दिया. तभी विदिशाजी ने उन की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘आज तो सारी चीजें श्यामा आंटी ने ही बनाई हैं…’’

सुगंधा तो चापलूसी कहते हुए बोली, ‘‘श्यामा आंटी, तुम्हारी कोई बहनवहन नहीं है क्या? मेरे लिए अपने गांव से ले आओ, उसे मुंहमांगे पैसे दूंगी. आशीष को तो खाने का

बहुत शौक है और संगीता तो कुछ अच्छा बनाती ही नहीं.’’

तभी विदिशा किचन से हरीहरी पूडि़यां और पालकपनीर की सब्जी सर्व करने लगी थी. वह अंदर पूडि़यां लेने गई थी तो श्यामा आंटी बोलीं, ‘‘दीदी, हाथ तो धो लेतीं, आप ने तो सब जूठा कर दिया. खैर मु?ो क्या? आप का घर है, जैसे चाहो वैसे करो,’’ वह तमतमा उठी थी लेकिन अपनेआप को कंट्रोल किया था.

उस की किट्टी अच्छी तरह संपन्न हुई इसलिए वह बहुत खुश थी. श्यामा आंटी के लजीज व्यंजनों के कारण आज उन की सखीसहेलियों के बीच उन का कद ऊंचा हो गया था.

‘‘दीदी, वीरवार को पीला कपड़ा पहना करो, ठाकुरजी का आशीर्वाद मिलता है. बंसीवाले, आप दोनों की जोड़ी बनाए रखें.’’

अखिल लंच के लिए आते तो वे घूंघट निकाल लेतीं और उन से घूंघट की ओट से

बात करतीं.

‘‘श्यामा, चावल का डोंगा रखना भूल गईर् हो, दे जाओ.’’

‘‘दीदी, आज एकादश है. इस दिन चावल नहीं खाना चाहिए.’’

अखिल को चावल बहुत पसंद थे, ‘‘सुनिए, हम लोग यह सब नहीं मानते… शाम को बना दीजिएगा.’’

‘‘भैया, एक दिन चावल न खाओगे तो क्या हो जाएगा?’’

उन की आंखों से टपटप आंसू बह रहे थे. वातावरण भारी हो गया था. उन्होंने पति को इशारे से चुप रहने को कहा था.

‘‘यह तुम्हारी श्यामा आंटी तो पूरी नाटक मंडली हैं.’’

एक दिन उन्होंने 1 बजा दिया. अखिल का आने का समय हो रहा था, इसलिए उन्होंने सब्जी छौंक दी थी, तभी वे आ गईं.

‘‘श्यामा आंटी, आज इतनी देर क्यों करा दी? भैया बस आने वाले ही होंगे.’’

‘‘दीदी, आज सावन का सोमवार है न, इसी वजह से हम आज उपासी हैं. मंदिर में भीड़ थी इसलिए देर हुई. हम तो दीदी, घर में मुंह में पानी भी नहीं डाले और भागे आए कि भैया को खाना में देर न हो जाए.’’

अब यदि श्यामा आंटी उपासी हैं, तो स्वाभाविक है कि उन की मालकिन विदिशा दीदी उन के लिए कुछ न कुछ फलाहार का इंतजाम तो करेंगी ही. उन्होंने फ्रिज से फल वगैरह निकाल कर रख दिए थे.

‘‘चलो मैं खाना बनाने में तुम्हारी हैल्प कर देती हूं.’’

‘‘नहीं दीदी, कोई बात नहीं है. हम बना लेते हैं. आप बिलकुल भी परेशान न हों.’’

वे उन्हें दिखादिखा कर फ्रिज से बारबार पानी निकाल कर पी रही थीं, ‘‘दीदी, आज गरमी बहुत है और उपासी भी है इसीलिए परेशान हैं.’’

‘‘जाओ, तुम अपने लिए जूस बना कर पी लो, तुम्हें आराम मिल जाएगा.’’

अब उन्होंने श्यामा आंटी से दूरी बना ली थी, ज्यादा बात नहीं करती थी. एक दिन वह काम में लगी थी, इसलिए अभी नहाई नहीं थी.

‘‘दीदी, बच के निकलो. हम नहाधो कर आए हैं. आप बासी कपड़ा पहने हो.’’

उन्हें गुस्सा तो बहुत जोर से आया पर अपनेआप को रोक लिया था. वह जितनी देर काम करतीं, कृष्णजी के पद गुनगुनाती रहतीं. उन्हें कभी उल?ान भी होती पर भगवान के नाम पर वे भला क्या बोलतीं.

‘‘दीदी, राधावल्लभ मंदिर में भागवत बैठी है. 5-6 दिन की बात है, हम जल्दी खाना बना दिए हैं. आप खाना गरम कर लेना.’’

वह संकोचवश मना नहीं कर पाई और श्यामा आंटी आराम से भागवतकथा का आनंद लेने चलती बनीं.

वे अकसर अपनी मीठीमीठी बातों के जाल में फंसा कर बेवकूफ बनाती रहतीं, ‘‘दीदी, आज रुक्मिणी विवाह है. पंडितजी कहते हैं कि साड़ी चढ़ाओ, सुहाग का समान चढ़ाओ. ठाकुरजी तुम्हारे सुहाग बनाए रखें. कोई मिलीजुली साड़ी रखी हो तो दे दो. हम तुम्हारे नाम से चढ़ा देंगे.’’

‘‘मेरे पास कहां रखी है कि मैं नई साड़ी दूं.’’

‘‘दीदी, क्व51 की सुहाग पिटरिया तो देखो, हम लाए हैं खरीद कर…’’

उस का मंतव्य सम?ाते हुए उन्होंने क्व500 का नोट निकाल कर दिया था, ‘‘लो, साड़ी खरीद लेना.’’

‘‘जय बंसी वाले की. आप दिल की बहुत बढि़या हैं…’’

उन्होंने गौर किया था कि जब से श्यामा आंटी ने काम करना शुरू किया था, शुरू में तो वे डरीडरी सी रहती थीं लेकिन जब साल बीत गया तो वे अपनी चालाकी दिखाने लगी थीं.

सोसायटी की मित्रमंडली में से अकसर ही कभी अनन्या तो कभी सुगंधा आ ही जाती फिर चाय पी कर जातीं लेकिन उन लोगों की निगाहें तो श्यामा आंटी पर ही लगी रहती, ‘‘आंटी, आप अपने गांव से अपनी जैसी औरत या लड़की मेरे लिए भी ले आइए.’’

वे भी बहुत तेज थी. हां में हां मिला कर कहतीं, ‘‘अपने गांव हम ने खबर कर दी है. रमा आ जाएगी.’’

अंचल तो लड़ पड़ी थी, ‘‘देखो विदिशा, तुम्हारे सामने की बात है, उसे तो मैं अपने घर में रखूंगी.’’

‘‘अरे यार, पहले आने तो दो,’’ कहते हुए उस दिन की सभा विसर्जित हुई थी.

सालभर के अंदर श्यामा आंटी पंडिताइन नाम से सोसायटी भर में मशहूर हो चुकी थीं. सोसायटी में उन्हें फुसलाने की होड़ लगी हुई थी.

पहले तो विदिशा के पास कभी पूनम तो कभी कल्पना का फोन आता, ‘‘दीदी, पंडिताइन को मेरे घर भेज देना. कुछ मनसा, पूजा का सामान रखा हुआ है.’’

रोजरोज के झमेलों से उन्हें उल?ान होने लगती थी. कभीकभी वह भुनभना भी उठती थी. उस ने गौर किया था कि श्यामा आंटी खूब घी, मसालेदार खाना बनाती थीं, जो स्वाद में तो सब को अच्छा लगता था मगर स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह था. वे अपनी पसंद का ही खाना बनातीं, चाहे कितना उन्हें बता कर आती लेकिन वे अपने हिसाब से अधिक बना लेतीं ताकि अपने घर खाना ले जा सकें.

घर के अंदर उन के सामने तो छुआछूत और जूठेमीठे का नाटक करतीं कि मैं कुछ भी नहीं खाऊंगी, आज पूर्णमाशी है, एकादशी है, आज मंगल का व्रत है. पर अब सम?ा में आने लगा था कि वह भरभर कर खाना अपने घर ले जाना चाहती हैं इसीलिए यहां खाने से मना कर देती थीं.

अब वह उन की होशियारी काफी कुछ पहचानने लगी थी. लेकिन सुगंधा, अर्चना, अंचल के घर से दानपुण्य के नाम पर रोज ?ोला भरभर कर सामान अपने साथ ले जाया करतीं.

अपनी पाककलाके बलबूते सोसायटी में कभी कहीं तो कभी कहीं नाश्ता बनाने की उन की बुकिंग रहती. अब नामचीन कुक के

साथसाथ पंडिताइन के लैबल के चलते उन की कमाई में चौगुनी बढ़ोत्तरी हो गई थी, साथ ही सब के मन में ब्राह्मणी के लिए आदर की भावना अलग से थी. महिलाएं उन के पैर छू कर उन से आशीर्वाद लेतीं.

सोसायटी में उन की जानपहचान की महिलाएं धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. एकदूसरे को देख कर आपस में होड़ थी. यदि किसी ने साड़ी दी, तो आगेपीछे दूसरी भी साड़ी देगी.

अब श्यामा आंटी ने एक नया पैंतरा फैलाया था. वे अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ज्ञान दिखातीं. अपने मीठे सुर में गा कर सब को सुनातीं.

जब कभी विदिशा नाराज होती तो वह धीरेधीरे गुनगुनाने लगती, ‘‘ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए…’’

एक दिन मम्मीजी से पूछ रही थीं, ‘‘काहे माताजी तुम्हारे घर में महीना की छूट नहीं मानी जाती क्या?’’

अब वह देख रही थी कि श्यामा आंटी का खाना बनाने का काम सैकंडरी हो चुका था और सोसायटी में दूसरों के घरों में जा कर उन के काम करना प्राइमरी हो गया था.

उन्हीं दिनों पितृपक्ष शुरू हो गए थे. अब तो सभी महिलाओं को अपनेअपने पुरखों को खुश करने के लिए खाना बनाने के लिए भी पंडिताइन की जरूरत होती थी और खाना खाने के लिए पंडिताइन की आवश्यकता थी.

श्यामा आंटी की तो चांदी थी. रोज बढि़या खाना, नगद दक्षिणा और फलमिठाई… कहीं साड़ीकपड़ा तो कहीं बरतन. आदरसम्मान मुफ्त में.

अब वह उन के घर समयबेसमय आया करतीं और खाना भी आधाअधूरा या उलटासीधा बना कर, ‘‘आज जल्दी है कल कर दूंगी,’’ कह कर चल देती थीं.

चापलूसी करते हुए कहतीं, ‘‘दीदी, आप के घर काम तो कभी नहीं छोड़ूंगी. आप की वजह से ही तो हमें इतना काम मिला है.’’

मगर सचाई है कि रंगा हुआ सियार कभी न कभी असली रंग में आएगा ही.

एक दिन वे घर में खाना बना रही थीं कि तभी उन का पुराना इलैक्ट्रिशियन राहुल उन के घर आया. जैसे ही उस ने श्यामा आंटी को किचन में काम करते हुए देखा वह चौंक कर उसे देखता ही रह गया था.

उस समय विदिशा भी किचन में ही थी इसलिए श्यामा आंटी के चेहरे के उतारचढ़ाव को और साथ ही अपने होंठों पर उंगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा करते हुए देख लिया था.

‘‘क्यों राहुल, तुम लोग एकदूसरे को जानते हो क्या?’’

वह कुछ जवाब दे पाता, इस के पहले ही श्यामा आंटी जोर से बोल पड़ी थीं, ‘‘नहीं न… इन को तो हम कभी देखे ही नहीं हैं…’’

लेकिन उन का उड़ा हुआ सफेद पड़ता चेहरा देख कर उन का शक पक्का हो गया था कि दाल में कुछ काला है.

‘‘क्यों रमा, तुम आंटी के किचन में कैसे घुस गईं?’’

‘‘कौन रमा, इस का नाम तो श्यामा है.’’

‘‘नहीं भाभी, इस का घर तो लालपुरा में है. मैं तो इन लोगों के पुरखों तक की जानकारी रखता हूं. भाभी, आप ने इस से खाना कैसे बनवाया? इस का पूरा परिवार ही यहीं रहता है और आएदिन आपस में सब लड़ते रहते हैं. इस की मां तो गांव के मंदिर के बाहर की सफाई करती थी.’’

इसी दौरान श्यामा आंटी जाने कब दबे पांव वहां से नौदो ग्यारह हो चुकी थीं. अगले दिन विदिशा लालपुरा की बस्ती में श्यामा के घर के आगे खड़ी थी. यह राज बस उन्हें ही मालूम रहेगा कि श्यामा आंटी कोई पंडिताइन नहीं, बल्कि रमा है और पूरे परिवार के साथ यहीं रहती हैं. काफी मानमनौव्वल और क्व100 बढ़वा कर ही श्यामा आंटी मानी थीं. अब हर रोज विदिशा को भी ‘जय बंसी वाले की’ बोलना पड़ता.

Face Serum से पाएं बेदाग त्वचा, नहीं रहेंगे मुंहासे और दागधब्बे

Face Serum: चेहरे का नूर बहुत कुछ कहता है.यही कारण है कि हर किसी की चाहत होती है कि उन की स्किन पर बेदाग निखार हो.लोगों की इसी चाहत को देखते हुए ब्यूटी इंडस्ट्री में नित​ नए ब्यूटी प्रोडक्ट्स और फौर्मूले आ रहे हैं, जिस के उपयोग से स्किन की समस्याएं खत्म होने के साथ ही ग्लो भी आता है.

इसी कड़ी में जुड़ गया है ‘ट्रैनेक्सैमिक एसिड’ का नाम. इस नए एसिड से आप अपनी स्किन को चमकदार बना सकती हैं.यह सीरम और गोलियों के रूप में उपलब्ध है. क्या है ट्रैनेक्सैमिक एसिड और इस के फायदे, आइए जानते हैं :

ऐसे काम करता है ट्रैनेक्सैमिक एसिड

ट्रैनेक्सैमिक एसिड को TXA भी कहा जाता है.यह एक सिंथेटिक अणु है, जिस की संरचना लाइसिन के जैसी है.यह अमीनो एसिड में प्राकृतिक रूप से मिलता है.इस शक्तिशाली कंपाउंड से स्किन में कोलेजन बढ़ता है और फ्लेक्सिबिलिटी आती है.साथ ही यह मेलेनिन के उत्पादन को कम करता है.यही कारण है कि ट्रैनेक्सैमिक एसिड के नियमित उपयोग से हाइपरपिग्मेंटेशन, काले धब्बे और मेलास्मा जैसी परेशानियां दूर होती हैं.

इस के उपयोग से ब्लड सर्कुलेशन नियंत्रित होता है जिस से स्किन की समस्याएं खत्म होती हैं और चमक आने लगती है.यह मुंहासों और ऐक्ने को कम करने में भी मददगार है.स्किन के अनईवन टोन को भी यह सुधारता है.इस से मुंहासों के गहरे निशान कम होने में भी मदद मिलती है।

साइड इफैक्ट भी

वैसे तो ट्रैनेक्सैमिक एसिड स्किन के लिए काफी अच्छा है, लेकिन इस के कुछ साइड इफैक्ट्स भी हैं. इस के उपयोग से पहले इन्हें जानना भी जरूरी है.कई बार इस के उपयोग से स्किन पर जलन हो सकती है.यह स्किन को रूखा बना सकता है.

अगर आप ट्रैनेक्सैमिक एसिड की गोलियों का सेवन कर रहे हैं तो इस से मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन, सूजन, ​मतली, उलटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं.अगर आप हृदय या गुरदे की समस्याओं से जूझ रहे हैं तो भी इस का सेवन नहीं करना चाहिए.

ऐसे करें ट्रैनेक्सैमिक एसिड का उपयोग

आप प्रतिदिन ट्रैनेक्सैमिक एसिड सीरम का उपयोग कर सकती हैं.बेहतर रिजल्ट के लिए इसे अच्छे सनस्क्रीन लोशन या क्रीम के साथ लगाना चाहिए.इस सीरम की बहुत कम मात्रा का ही उपयोग करना चाहिए.

अगर आप को स्किन पर कोई साइड इफैक्ट नजर आता है तो इस का उपयोग ​बंद कर दें.वहीं दवा हमेशा डाक्टर की सलाह के बाद ही लें।

जब आपके Husband कर लें दूसरी शादी, तो उठाएं ये कदम

आज के समय में जहां सबकुछ आराम से मिल जाता है, वहीं रिश्तों की कीमत घटती जा रही है। प्यार और शादी के मायने बदल रहे हैं, हर किसी के पास बहुत सारे औप्शन हैं. ‘तू नहीं तो और सही’ के फौर्मूले के चलते शादीशुदा रिश्ते कमजोर पड़ रहे हैं. इस रिश्ते में भी विश्वास और वफादारी, घर की जिम्मेदारियां सभी कुछ ताक पर रख कर अपनी स्वार्थ सिद्धि ज्यादा देखने में आ रही है, जिस की वजह से कई सारे शादीशुदा रिश्ते 20-20 साल बाद भी तलाक में बदल रहे हैं.

ऐसे में, जब एक पत्नी अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चे, परिवार और पति की सेवा में लगा देती है, उस औरत की दुनिया अपने घरपरिवार तक ही सीमित रह जाती है.

मगर एक दिन जब उस को पता चलता है कि उस के पति (Husband )ने दूसरी शादी कर ली है और अपना दूसरा घर बसा लिया है तो उस औरत के पैरों तले से जमीन खिसक जाती है क्योंकि न तो वह मानसिकतौर पर मजबूत होती है और न ही आर्थिक तौर पर. ऐसे में जब उसे यह एहसास होता है कि इतने साल शादी होने के बाद अचानक फिर से अकेली हो गई है, यहां तक की बच्चों को पालने की जिम्मेदारी भी उस पर आ गई है, तो उस को दिन में ही तारे नजर आ जाते हैं.

ऐसे हालत में अगर पत्नी शिक्षित और कामकाजी है, आर्थिक तौर पर सशक्त है, तो एक बार वह पति की बेवफाई को झेल भी लेती है. लेकिन अगर वहीं दूसरी ओर पति के कहने पर ही यदि पत्नी घर तक ही सीमित, बाहर की दुनिया से बेखबर और अशिक्षित है और 2-3 बच्चों की मां भी है, तो ऐसे में पति के तलाक के बाद उस की आगे की जिंदगी मुश्किल हो जाती है. वह सदमाग्रस्त हो जाती है क्योंकि ज्यादातर लड़कियां शादी होने के बाद इतना ज्यादा बेपरवाह हो जाती हैं कि घर तक की सीमित रहती हैं। वे पहले की तरह सजनासंवरना छोड़ देती हैं.

न तो वे पति को रिझाने के लिए पहले की तरह सजतीसंवरती हैं और न ही घर से बाहर जा कर पैसा कमाने के बारे में सोचती हैं क्योंकि उन के खुद के पति ही अपनी पत्नियों को नौकरी करने से रोकते हैं और घरपरिवार और बच्चों को संभालने की सलाह देते हैं. ऐसे में, जब वही पति तलाक देने की बात कहता है तो ऐसी पत्नियों का दिमाग हिल जाता है.

आज के समय में कई सारे ऐसे पति हैं जिन्होंने अपनी पत्नियों को 15 से 20 साल बाद तलाक दे कर बीच मंझदार में छोड़ दिया.

ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है फिल्म इंडस्ट्री में ही कितने ऐक्टर ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पहली पत्नी को कई सालों की शादी के बाद तलाक दे दिया और दूसरी शादी कर ली.

गायक और संगीतकार हिमेश रेशमिया, सैफ अली खान, बोनी कपूर, रितिक रोशन, अरबाज खान आदि कई हीरो ने अपनी पत्नियों को कई सालों की शादी के बाद मंझदार में छोड़ दिया और दूसरी शादी कर के अपना घर बसा लिया.

फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसी नायिकाएं भी हैं जिन्होंने शादी कर के फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी थी और बाद में तलाक होने के बाद फिर से ऐक्टिंग लाइन में वापसी की जैसे श्वेता तिवारी, करिश्मा कपूर, उर्मिला मातोंडकर आदि.

ऐसे नाजुक वक्त पर पति की छोड़ी और सताई पत्नियों को क्या कदम उठाना चाहिए कि वे अपनी आगे की जिंदगी पूरे आत्मसम्मान के साथ आत्मनिर्भर हो कर हंसीखुशी गुजार सकें, आइए जानते हैं :

शिक्षित और आत्मनिर्भर बनें

आज के समय में जब महंगाई चरम सीमा पर है और सिर्फ एक के दम पर घर चलाना मुश्किल है, तो ऐसे नाजुक मौके पर हर औरत का शिक्षित और आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर कोई औरत शिक्षित और आत्मनिर्भर रहती है तो वह अंदरूनी तौर पर मजबूत होती है क्योंकि उसे पता होता है कि उस में इतना दम है कि बुरे वक्त में पैसे कमाने की ताकत रखती है. इस के अलावा औरतों को खासतौर पर शादीशुदा पारिवारिक औरतों को कुछ पैसे बुरे वक्त के लिए बचा कर रखना चाहिए ताकि अचानक से अगर कोई मुसीबत आती है तो उस को किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े.

हीनभावना का शिकार होने से बचें

प्यार में धोखा और शादीशुदा जिंदगी में अवहेलना एक औरत को आर्थिक तौर पर ही नहीं मानसिक तौर पर भी कमजोर बना देता है. पति या प्रेमी द्वारा रिजैक्शन एक औरत को आसमान से जमीन पर ला पटकता है.

ऐसे में अगर कोई शादीशुदा 2-3 बच्चों की मां किसी दूसरी औरत के लिए पति द्वारा ठुकराई जाती है तो वह हीनभावना का शिकार हो जाती है. उस का अपने प्रति आत्मविश्वास कम हो जाता है. ऐसे नाजुक वक्त में अपनेआप को कम समझने की गलती न करें, निडर और आत्मविश्वासी बनें और नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने का जोश अपने अंदर पैदा करें.

ध्यान रखें कि तलाक जीवन का अंत नहीं है बल्कि नए जीवन की शुरुआत भी हो सकती है.

हुनर को पहचानें

आप अपने हुनर और अपनी काबिलियत को पहचानें. पति के लिए रोनेधोने के बजाय पैसा कमाने के बारे में सोचें क्योंकि जब कोई साथ नहीं देता तब पैसा ही साथ देता है. अपने बच्चों को भी दुनियादारी सिखाएं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करें ताकि जो आप के साथ हुआ वह आप के बच्चों के साथ न हो।

सच बात तो यह है कि एक शादीशुदा जिंदगी में जिम्मेदारी का बोझ पति से ज्यादा पत्नी पर होता है। पति अगर बाहर जा कर पैसा कमाता है तो पत्नी घर और बाहर का सारा काम करने के साथसाथ बच्चों की भी परवरिश करती है. परिवार के अन्य लोगों की भी सेवा करती है जैसे सासससुर ननद, देवर आदि। इस के बाद भी अगर आप का पति आप का सम्मान नहीं करता, आप की बेइज्जती करता है, ताने मार कर या मारपीट कर के आप को दुख पहुंचाता है, तो ऐसे आदमी से रिश्ता रखने से अच्छा उस को तलाक देना ही सही है. कम से कम आप शांति का जीवन तो जी पाएंगी.

जिंदगी की नई शुरुआत करें

यों तो हर रिश्ता हमारी जिंदगी में बहुत जरूरी होता है। खासतौर पर पतिपत्नी का रिश्ता जिंदगी की डोर से जुड़ा होता है. लेकिन इस रिश्ते में अगर आप को अपने पति द्वारा अपमानित होना पड़े तो इस जबरदस्ती के रिश्ते से दूर हो कर जीवन की नई शुरुआत करना ही समझदारी है क्योंकि कोई भी रिश्ता जबरदस्ती में नहीं निभाया जा सकता उस में प्यार विश्वास और सम्मान का होना बहुत जरूरी है.

Health Tips : क्या आप का बच्चा है जरूरत से ज्यादा ऐक्टिव, तो इस बीमारी का शिकार तो नहीं?

Health Tips : अकसर कई पेरैंट्स या टीचर बच्चे को मजाकमजाक में ही बोल देते हैं कि तुम थकते नहीं हो, तुम्हारे पैरों में क्या हिरन की हड्डी है जो पूरा दिन उछलते रहते हो…इस बात को बच्चा तो नहीं समझ पाता लेकिन बच्चे की ऐसी गतिविधियों पर मातापिता को जरूरत है थोड़ी जागरूकता की ताकि वे समझ सकें कि एक जगह शांति से न बैठ पाना भी एक बीमारी ही है जिसे मैडिकल भाषा में एडीएचडी कहते हैं.

जानें क्या है एडीएचडी

एडीएचडी (अटैंशन डैफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऔर्डर) यह एक न्यूरोडैवलपमैंटल डिसऔर्डर है जोकि बच्चों में एक कौमन डिसऔर्डर के रूप में देखा जाता है.

शुरुआत में ही सही इलाज मिल जाए तो बच्चा जल्दी ही स्वस्थ हो जाता है अन्यथा बड़े होने पर भी यह समस्या बनी रह सकती है. इस के 3 मुख्य प्रकार हैं- संयुक्त प्रस्तुति, अतिसक्रिय/आवेगपूर्ण प्रस्तुति और असावधानीपूर्ण प्रस्तुति.

लक्षण

किसी भी काम में ध्यान केंद्रित कर पाने में असमर्थ होना, अपने खिलौने या चीजें खो देना, किसी बात को ध्यान से न सुनना, पढ़ाई हो या खेल छोटेछोटे कामों को पूरा कर पाना भी इन के लिए बड़ी चुनौती बन जाता है और मन हमेशा विचलित रहता है.

अत्यधिक ऊर्जा से भरे रहना, अपनी बारी का इंतजार न कर पाना, बिना वजह चिल्लाना इन के स्वभाव का हिस्सा बन जाता है.

इलाज

एडीएचडी का निदान एक योग्य चिकित्सक या मनोचिकित्सक ही कर सकता है. निदान करने के लिए डीएसएम-5 (DSM-5) या आईसीडी ICD-11 के मापदंडों का उपयोग करते हैं. इस के लिए डाक्टर को परिवार का इतिहास, गर्भावस्था और प्रसव के दौरान की जानकारी, शुरुआती विकास, शिक्षा, सामाजिक संबंध और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की जानकारी होना आवश्यक है.

इस के इलाज के तौर पर बिहेवियर थेरैपी दी जाती है. इस के जरीए बच्चा आत्मनियंत्रण, सकरात्मकता का गुण सीखता है, जिस से बच्चा सामाजिक और शैक्षिक समस्याओं का सामना कर पाने में समर्थ बने.ऐसे बच्चों को छोटेछोटे ब्रेक और गतिविधियों के साथ सिखाया जाता है.

ध्यान योग्य बातें

* मातापिता को बच्चे के सकारात्मक पहलुओं को प्रोत्साहित करना चाहिए और धैर्यपूर्वक उस के व्यवहार को समझने की कोशिश करनी चाहिए.

* शिक्षकों का इस के इलाज में बहुत अच्छा रोल है. वह बच्चे को छोटेछोटे टास्क के जरीए पढ़ा सकते हैं व किसी भी बच्चे का व्यवहार यदि एडीएचडी जैसा लगता है तो जरूरी है कि बच्चे के पेरैंट्स से बात करें, जिस से समय रहते सही इलाज मिल सके.

पति करियर को लेकर परेशान हैं, मैं क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरे मायके में सब बिजनैसमैन हैं पर मेरे पति नौकरीपेशा हैं. मेरी लव मैरिज है. मैं चाहती हूं कि पति भी मेरे भाइयों की तरह कोई बिजनैस करें. भाई आर्थिक मदद सहित हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं पर पति नहीं मान रहे. कहते हैं कि वे अपनी नौकरी से खुश हैं. शादी से पहले मैं ने सोचा था कि उन्हें मना लूंगी, क्योंकि तब वे मेरी हर बात मानते थे. वैसे शादी के बाद भी बदले नहीं हैं. सिर्फ कैरियर को ले कर अडिग हैं. बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब-

आप ने प्रेम विवाह किया है और मानती हैं कि पति अब भी आप की परवाह करते हैं तो आप को भी उन की इच्छाअनिच्छा का खयाल रखना चाहिए. कैरियर को ले कर उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए.

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अगर आपने हाल में ही 10 वीं या 12वीं पास की है या पहले से ही ग्रेजुएट हैं.लेकिन नौकरी न मिलने से परेशान हैं तो यह लेख आपके लिए ही है.यूं तो कहा जा सकता है कि इस भीषण बेरोजगारी के दौर में नौकरी मिलने की गारंटी किसी भी डिग्री या डिप्लोमा में नहीं है और यह सच भी है है.लेकिन इस बड़े सच के परे भी एक सच है.वह यह कि अगर आपने अपरेंटिस की हुई है तो समझिये नौकरी की गारंटी है.दूसरे शब्दों में अगर गारंटीड नौकरी चाहिए तो 10 वीं के बाद कभी भी किसी अपरेंटिस प्रोग्राम का हिस्सा बन जाइए नौकरी हर हाल में मिलेगी.

बेरोजगारी के इस भीषण दौर में भी अपरेंटिस किये लोगों को 100 फीसदी रोजगार मिल रहा है. 24 जून 2021 तक रेलवे में करीब 4000 अपरेंटिस की भर्ती होने जा रही है.एक रेलवे ही नहीं मई और जून के महीने में ऐसी दर्जनों सरकारी, गैर सरकारी, सार्वजनिक उपक्रम और मल्टीनेशनल कंपनियां तक अपरेंटिसशिप की रिक्तियां निकालती हैं. अपरेंटिसशिप का मतलब होता है एक किस्म का ट्रेनिंग प्रोग्राम.इस कार्यक्रम के तहत बिल्कुल नये लोगों को किसी क्षेत्र विशेष के काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

लेकिन यह ट्रेनिंग विद्यार्थियों के सरीखे नहीं मिलती. यह ट्रेनिंग दरअसल ट्रेंड लोगों के साथ पूरे समय नियमित कर्मचारियों की तरह किये जाने वाले काम के रूप में मिलती है.यहां इन ट्रेनीज से पूरे समय एक नियमित कामगार के तौरपर काम कराया जाता है. जिस संस्थान में अपरेंटिसशिप होती है वहां इन ट्रेनीज पर वही नियम लागू होते हैं,जो नियमित कामगारों पर लागू होते हैं सिवाय वेतनमान के.अपरेंटिस संस्थान के नियमित कर्मचारियों की तरह ही भीकाम में आते हैं और उन्हीं की तरह उनकी भी छुट्टी होती है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

रोशन गलियों का अंधेरा: नानी किस सोच में खो गई

“अरी ओ चंचल… सुन क्यों नहीं रही हो? कब से गला फाड़े जा रही हूं मैं और तुम हो कि चुप बैठी हो. आ कर खा लो न…” 60 साल की रमा अपनी 10 साल की नातिन चंचल को कब से खाने के लिए आवाज लगा रही थीं, लेकिन चंचल है कि जिद ठान कर बैठ गई है, नहीं खाना है तो बस नहीं खाना है.
“ऐ बिटिया, अब इस बुढ़ापे में मुझे क्यों सता रही हो? चल न… खा लें हम दोनों,” दरवाजे पर आम के पेड़ के नीचे मुंह फुला कर बैठी चंचल के पास आ कर नानी ने खुशामद की.
“नहीं, मुझे भूख नहीं है. तुम खा लो नानी,” कह कर चंचल ने मुंह फेर लिया.
“ऐसा भी हुआ है कभी? तुम भूखी रहो और मैं खा लूं?” कहते हुए नानी ने उसे पुचकारा.
“तो फिर मान लो न मेरी बात. मम्मी से बोलो, यहां आएं.”
“अच्छा, बोलूंगी मैं. चल, अब खा ले.”
“10 दिन से तो यही बोल कर बहला रही हो, लेकिन मम्मी से नहीं कहती हो. अभी फोन लगाओ और मेरी बात कराओ. मैं खुद ही बोलूंगी आने के लिए. बोलूंगी कि यहीं कोई काम कर लें. कोई जरूरत नहीं शहर में काम करने की.
“मुझे यहां छोड़ कर चली जाती हैं और 3-4 महीने में एक बार आती हैं, वह भी एक दिन के लिए. ऐसा भी होता है क्या? सब की मां तो साथ में रहती हैं. लगाओ न फोन…” चंचल मन की सारी भड़ास निकालने लगी.
“तुम जरा भी नहीं समझती हो बिटिया. मम्मी काम पर होगी न अभी. अभी फोन करेंगे तो उस का मालिक खूब बिगड़ेगा और पैसा भी काट लेगा. फिर तेरे स्कूल की फीस जमा न हो पाएगी इस महीने की. जब फुरसत होगी, तब वह खुद ही करेगी फोन,” नानी ने उसे समझाने की कोशिश की.
“ठीक है, मत करो. अब उन से बात ही नहीं करनी मुझे कभी. जब मन होता है बात करने का तो मैं कर ही नहीं सकती. वे जब भी करेंगी तो 4 बजे भोर में ही करेंगी. नींद में होती हूं तब में… आंख भी नहीं खुलती है ठीक से, तो बात कैसे कर पाऊंगी? तुम ही बताओ नानी, यह क्या बात हुई…”
“अच्छाअच्छा, ठीक है. इस बार आने दो उसे, जाने ही नहीं देंगे,” नानी ने उस का समर्थन किया.
“हां, अब यहीं रहना पड़ेगा उन्हें हमारे साथ. चलो नानी, अब खा लेते हैं… भूख लगी है जोरों की.”
“हांहां, मेरी लाडो रानी. 12 बज गए हैं, भूख तो लगेगी ही. चल…”
चंचल उछलतीकूदती नानी के साथ चली गई. दोनों साथसाथ खाने बैठीं. चंचल भूख के मारे दनादन दालभात के कौर मुंह में ठूंसती जा रही थी.
“ओह हो, शांति से खा न. ऐसे खाएगी तो हिचकी आ जाएगी,” नानी ने टोका.
लेकिन वह कहां सुनने वाली थी. मुंह में दालभात ठूंसती जा रही थी.
“आने दो हिचकी. पानी है, पी लूंगी,” चंचल लापरवाही से बोली.
नानी मुसकराईं और उसे देखते हुए पुरानी यादों में खो गईं…
बेचारी नन्ही सी जान. इसे क्या पता कि इस की मम्मी इस के लिए कैसे कलेजे पर पत्थर रख कर दूर रह रही है. आह, दिसंबर की वह सर्द रात… जब वह 8 दिन की इस परी को मेरी झोली में डाल गई थी.
पेट दर्द की न जाने कैसी बीमारी लगी थी मुझे. गांवघर के वैद्यहकीम से दवादारू कर के हार गई थी, लेकिन पेट दर्द जाने का नाम ही नहीं ले रहा था. रहरह कर दर्द उभर आता था.
कुछ पढ़ेलिखे लोगों ने कहा कि शहर में अच्छे डाक्टर से दिखा लो. दिखा तो लेती, लेकिन अकेली कैसे जाती? न पति, न कोई औलाद. बाप की एकलौती बेटी थी मैं. मां मेरे बचपन में ही गुजर गई थीं. मेरी शादी के 2 साल ही तो हुए थे और कोई बच्चा भी नहीं हुआ था. तीसरे साल में पति को जानलेवा बीमारी खा गई. बापू भी बूढ़े हो कर एक दिन परलोक सिधार गए.
रह गई मैं अकेली. दूसरी शादी भी नहीं की, मन ही उचट गया था. हाथ में हुनर था सिलाईबुनाई का तो कुछ काम मिल जाता और घर के पिछवाड़े 3 कट्ठा जमीन में सागसब्जी उगा लेती. जो आमदनी होती उसी से गुजरबसर होती रही.
पेट दर्द अब असहनीय होने लगा था. बड़ी खुशामद के बाद पड़ोसी सहदेव का बेटा मुरली तैयार हुआ साथ में शहर जाने के लिए. शहर तो चली गई, लेकिन मुरली के मन में न जाने कौन सा खोट पैदा हुआ कि मुझे डाक्टर के यहां छोड़ कर बहाने से भाग निकला.
वह तो अच्छा था कि मैं ने पैसा उस को नहीं थमाया था, वरना…
खैर, मैं ने डाक्टर को दिखा तो लिया, लेकिन जब परचे पर जांचपड़ताल के लिए कुछ लिख कर दिया तो अक्कबक्क कुछ न सूझ रहा था. भला हो उस कंपाउंडर बाबू का, जिस ने सब काम करा दिया.
रिपोर्ट 4 बजे के बाद मिलने वाली थी तो मैं वहीं बरामदे पर बैठ कर रिपोर्ट और मुरली दोनों का इंतजार करने लगी. सोचा कि किसी काम से इधरउधर गया होगा, आ जाएगा. लेकिन यह क्या… 4 बज गए, रिपोर्ट भी आ गई, लेकिन मुरली का कोई अतापता नहीं. मन में चिंता हुई कि ठंड का मौसम है, 4 बज गए मतलब अब कुछ ही देर में अंधेरा घिर आएगा. घर कैसे जाऊंगी?
तभी कंपाउंडर बाबू ने रिपोर्ट ले कर बुलाया, तो मैं झोला उठाए चल दी.
डाक्टर साहब ने बताया, “जांच में कुछ गंभीर नहीं निकला है. ठीक हो जाओगी अम्मां. चिंता की कोई बात नहीं. ये सब दवाएं ले लेना,” कह कर डाक्टर ने एक और परचा थमाया.
मन को शांति मिली. पास ही दवा की दुकान थी, वहीं से दवा ले ली. अब घर जाने की चिंता होने लगी. बसअड्डा किधर है? किस बस पर बैठूं? इतनी देर हो गई, अभी बस खुलेगी भी कि नहीं? कुछ समझ नहीं आ रहा था.
कुछ ही देर में अंधेरा घिर आया तो मैं ने वहीं बरामदे के एक कोने में अपने झोले से चादर निकाली और ओढ़ कर यह सोच कर बैठ गई कि रात यहीं गुजार लेती हूं किसी तरह. सुबह कुछ उपाय सोचूंगी.
घर से लाई हुई रोटी और आलू की भुजिया रखी ही थी. भूख भी लग रही थी तो निकाल कर खा ली. 8 बजे वहां मरीजों की आवाजाही सी खत्म हो गई.
तभी गार्ड बाबू आ कर कड़क कर बोला, “ऐ माई, इधर सब बंद होगा अब. चलो, निकलो यहां से.”
“बाबू, रातभर रहने दीजिए न. अकेली हूं और घर भी दूर है. सुबहसवेरे निकल जाऊंगी,” मैं न जाने कितना गिड़गिड़ाई, लेकिन पता नहीं किस मिट्टी का बना था वह. अड़ा रहा अपनी बात पर.
क्या करती मैं भी. झोला उठा कर ठिठुरते हुए सड़क पर निकल पड़ी. भटकती रही घंटों, पर कहीं कोई आसरा न मिला. ठंड भी इतनी कि सब लोगबाग घरों में दुबके थे.
चलतेचलते पैर थक गए तो एक मकान के छज्जे के नीचे सीढ़ी पर रात गुजारने की सोच कर झोला रखा ही था कि 2-4 कुत्ते एकसाथ टूट पड़े.
तभी अचानक से किसी ने जोर से मुझे अपनी तरफ खींचा और धर्रर… से एक ट्रक गुजरा. मुझे कुछ देर होश ही नहीं रहा. जब होश आया तो देखा कि मैं एक पेड़ के नीचे लेटी थी और 22-23 साल की एक खूबसूरत युवती, जिस की गोद में नवजात बच्चा था, मेरा सिर सहला रही थी. तब सब समझ में आ गया कि अगर यह मुझे नहीं खींचती तो ट्रक मेरा काम तमाम कर देता.
“ऐसे बेखबर चलती हो… पता भी है रात के 12 बज रहे हैं, ऊपर से इतनी ठंड. और तो और आंख बंद कर के सड़क पर चलती जा रही हो. अभी ट्रक के नीचे आती और सारा किस्सा खत्म…” वह युवती मुझ पर बरसती जा रही थी, लेकिन उस का बरसना मन को सुकून दे रहा था.
पलभर में हमारे बीच न जाने कौन सी डोर बंध गई कि हम ने एकदूसरे के सामने अपने दिल खोल के रख दिए. उस के दर्द को जान कर कलेजा कांप गया मेरा.
उस का नाम मनीषा था. उसे उस की सौतेली मां ने 14 साल की उम्र में ही एक दलाल के हाथों बेच दिया था और यह बात फैला दी कि वह किसी के साथ भाग गई है.
दलाल ने उसे एक कोठे पर पहुंचा दिया और उस का नाम मोहिनी रख दिया गया. वह न चाहते हुए भी मालिक के इशारे पर नाचती. हर रात अलगअलग मर्द उस के जिस्म से खेलते. कई बार भागने की भी कोशिश की, लेकिन हर बार वह पकड़ी जाती और फिर दोगुनी मार सहती.
एक बार तो वह घर भी पहुंच गई थी, लेकिन सब ने अपनाने से इनकार कर दिया. खूब जलीकटी सुनाई. समंदर भर का दर्द ले कर वह लौट आई फिर उसी अंधेरी गली में.
8 दिन पहले ही उस ने बेटी को जन्म दिया था. पेट से तो वह पहले भी 2 बार रही थी, लेकिन जैसे ही पता चलता कि पेट में लड़का है, फौरन पेट गिरा दिया जाता, क्योंकि लड़कों के जिस्म से कमाई नहीं होती न. इस बार लड़की थी तो उस का मालिक खुश था .
लेकिन मोहिनी हर हाल में अपनी बच्ची को इस दलदल से, इस अंधेरी दुनिया से बाहर निकालना चाहती थी. यही सोच कर वह आज छिपतेछिपाते बाहर निकली थी कि या तो कहीं भाग जाएगी या फिर बेटी के साथ नदी में कूद कर जान दे देगी.
“तुम जान देने की बात कैसे कर सकती हो बेटी, जबकि तुम ने मेरी जान बचाई है. नहींनहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकती,” मुझे जान देने की बात बिलकुल भी पसंद नहीं आई.
“तो फिर मैं क्या करूं अम्मां? तुम ही बताओ भाग कर कहां जाऊं? लोग न मुझे चैन से जीने देंगे, न इस नन्ही सी जान को. ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी से अच्छा है कि हम दोनों मर ही जाएं.”
उस के मुंह से ‘अम्मा’ शब्द सुन कर मेरी छाती में ममता की धार फूट पड़ी.
“तुम ने मेरी जान बचाई है तो मेरी जिंदगी तुम्हारी हुई न. अभीअभी तुम ने अम्मां बुलाया मुझे और मैं ने तुम्हें बेटी… है कि नहीं? तो एक मां के रहते बेटी को किस बात की चिंता? मेरी बेटी और नातिन मेरे साथ रहेंगी, मेरे घर,” नन्ही सी बच्ची को चादर में लपेट कर अपनी छाती से लगा लिया था मैं ने.
“नहीं अम्मां, मैं तुम्हें किसी मुसीबत में नहीं डाल सकती,” मोहिनी ने एकदम से इनकार कर दिया.
“कैसी मुसीबत? बच्चे मां के लिए मुसीबत नहीं होते हैं. तू चल मेरे साथ. मेरा गांव शहर से दूर है, कोई खोज भी नहीं पाएगा,” मैं ने खूब मनुहार की.
लेकिन वह थी कि मान ही नहीं रही थी. सुबकसुबक कर कहने लगी, “अम्मा, तुझे कुछ नहीं पता… नहीं पता कि इन चकाचौंध वाली गलियों के सरदार की पहुंच कितनी दूर तक है. बड़ेबड़े नेता, मंत्री, अफसर और भी न जाने कितने रसूखदारों को अपनी सेवा देते हैं ये लोग. ऐसी कई हस्तियों के हाथों लुट चुकी हूं मैं भी. मोहिनी का नाम और चेहरा सब का जानपहचाना है. फौरन ढूंढ़ लेंगे ये भेड़िए…
“अम्मा… अब इस नरक की आदी हो चुकी हूं मैं. अब तक कोई मलाल नहीं था, लेकिन अब इस नन्ही जान के लिए कलेजा मुंह को आ जाता है. इसे किसी भी कीमत पर इस नरक में न झोंकने दूंगी उस जालिम को, चाहे जान ही क्यों न देनी पड़े.”
“तो क्या सोचा है तुम ने ?” मुझ से रहा नहीं गया.
“अम्मां, एक एहसान करोगी मुझ पर?” वह कातर स्वर में बोली.
“तू बोल तो सही,” मैं ने आश्वासन दिया तो वह बोली, “तू इसे रख ले अपने पास. पाल ले इसे. मैं खर्च भेजती रहूंगी. खूब पढ़ानालिखाना. और हां, मैं कभीकभी मिलने भी आती रहूंगी सब से छिप कर. लेकिन मेरी सचाई मत बताना कभी, वरना नफरत हो जाएगी इसे. जब पढ़लिख कर समझदार हो जाएगी तो सही समय पर सब सच बता देंगे. बोल अम्मां, तू करेगी यह एहसान मुझ पर?”
मैं ने उसे गले से लगा लिया और हामी भर दी.
“अम्मां, तुम्हारे गांव की तरफ जाने वाली पहली बस सुबह 5 बजे खुलती है. मैं बिठा दूंगी, तुम चली जाना. अभी तो 2 ही बज रहे हैं और ठंड भी इतनी है. चलो, कोई कोने वाली जगह ढूंढ़ लें, कम से कम ठंडी हवा से तो राहत मिले. नींद तो वैसे भी नहीं आएगी,” कह कर उस ने मेरा झोला उठाया और चल पड़ी.
बच्ची मेरी गोद में थी. थोड़ी दूर चलने पर बसअड्डा आ गया. यात्री ठहराव के लिए बने हालनुमा बरामदे पर एक खाली कोने में हम ने रात काटी. वह रातभर बच्ची को अपनी छाती से लगाए रही.
हम दोनों सुबह मुंह अंधेरे उठ गईं. उस ने चादर से मुंह ढक लिया और टिकट ले आई. मुझे बस में बिठा कर उस ने अपने कलेजे के टुकड़े को सौंप दिया.
इस के बाद उस ने मेरे गांव का नामपता एक कागज पर लिख लिया, फिर बोली, “अम्मां, किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए. आज से यह तुम्हारी है. मैं वहां सब से कह दूंगी कि ठंड लगने से मर गई तो फेंक आई नदी में…” उस की आंखें नम थीं, लेकिन एक अलग ही चमक भी थी. बस खुलने ही वाली थी. वह बच्ची को चूम कर तेजी से नीचे उतर गई.
तब से यह मेरे साथ ही है. मोहिनी 2-4 महीने पर आ जाती है मिलने. अब तो फोन खरीद कर दे दिया है, तो जब मौका मिलता है बात भी कर लेती है…
“अरी ओ नानी, हाथ क्यों रुक गया तुम्हारा? खाओ न. मैं इतना सारा नहीं खा पाऊंगी न,” चंचल ने हाथ पकड़ कर अपनी नानी को झकझोरा तो वे वर्तमान में लौट आईं.
“अरे हां, खा ही तो रही हूं. हो गया तुम्हारा तो तुम उठ जाओ,” नानी हड़बड़ा कर बोलीं.
“तुम भी न नानी बैठेबैठे सो जाती हो,” चंचल हंसते हुए बोली और चांपाकल की ओर भागी.
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