वैधव्य से मुक्ति: भाग 2- खूशबू ने क्या किया था

कहानी- लक्ष्मी प्रिया टांडि

यही वजह थी कि मेरे घर वाले जल्द ही गिरगिट की तरह रंग बदल कर मेरे सामने हाजिर हो गए कि चल कर उसे आशीर्वाद दे दो, जब उसे ही अपनी चिंता नहीं है तो फिर भाड़ में जाए. मैं दुविधा की स्थिति में न चाहते हुए खुशबू के सामने जा खड़ी हुई. जब उस ने स्निग्ध मुसकान के साथ मेरे पैरों को हाथ लगा कर अपनी आंखों से लगाया तो मैं खुद पर काबू न रख सकी और उसे अपने कदमों से उठा कर सीने से लगा लिया.

हम दोनों की पलकें भीग उठीं. उफ, मैं बता नहीं सकती कि कैसी अजीब सी तृष्णा थी जो उसे हृदय से लगाने पर तृप्त होता मैं ने अनुभव किया. खुशबू तो बिन मां की बड़ी हुई थी सो उस के पास इतना भावुक होने की वजह थी पर मेरा मन क्यों भर आया, मैं आज तक न जान सकी.

विवाह की अगली सुबह साढ़े 5 बजे ही अपने कमरे के दरवाजे पर दस्तक सुन कर मैं ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने खुशबू नाइटी पहने खड़ी थी. ‘क्या बात है, बेटी, तू इस तरह इतनी सुबह यहां…’ मैं कुछ घबरा सी उठी.

जवाब में उस ने आंखें खोल कर भरपूर नजरों से मुझे देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘मां, मैं चाहती थी कि आप का स्नेहमयी और ममतामयी चेहरा देख कर ही मैं ससुराल में अपना दिन शुरू करूं.’

उस की बातें सुन कर मुझे अजीब सी अनुभूति हुई क्योंकि अब तक अपने लिए मैं यही सुनती आई थी कि सुबहसुबह विधवा का मुंह देख लिया, बड़ा अपशकुन हो गया.

अब जब रोज खुशबू का दिन मेरा चेहरा देख कर शुरू होने लगा तो धीरेधीरे मेरे मन से यह वहम निकल गया कि मेरा मुख देखने से किसी का अमंगल भी हो सकता है.

निखिल की शादी के करीब महीने भर बाद उस के एक अंतरंग  मित्र राजेश की शादी की पहली वर्षगांठ थी. इस मौके पर पूरे परिवार को न्योता दिया था. राजेश के घर जाने के लिए उस दिन सभी  लोग बनसंवर कर तैयार हो गए थे. मैं भी झटपट एक सफेद सूती साड़ी बांध कर तैयार हो गई. महेश के गुजरने के बाद से घर हो या बाहर यही मेरा पहनावा था.

हम सब घर से निकलने ही वाले थे कि खुशबू मुझे देख कर चौंक गई, ‘यह क्या मां? तुम पार्टी में इस तरह चलोगी?’

जवाब जेठानी ने दिया, ‘अरे, तो क्या एक विधवा सोलह शृंगार कर के जाएगी? तू नहीं जानती बहू, हमारे में एक विधवा को इसी रूप में रहना पड़ता है.’

खुशबू ने विनम्र किंतु दृढ़ स्वर में कहा, ‘आप सही कह रही हैं बड़ी मां, विधवा औरत का शृंगार करना कुछ जंचता नहीं पर शृंगार के बगैर फंक्शन में सुरुचिपूर्ण तरीके से तैयार हो कर हलके रंगों का परिधान तो पहना ही जा सकता है. आप लोग बस 5 मिनट ठहरिए, हम अभी आते हैं और वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचती हुई ले गई.’

कमरे में आ कर मैं ने खुशबू को फिर समझाया, ‘मैं ऐसे कपड़े ही पहनती हूं और अब तो मुझे इस की आदत पड़ गई है.’

हमेशा की तरह उस ने मुझे अपने  प्रेम और न्यायअन्याय का तर्क दे कर परास्त कर दिया और मुझे ऐसे तैयार किया जैसे एक मां अपनी बच्ची को तैयार करती है.

तैयार करने के बाद जब उस ने मुझे अलमारी में लगे आदमकद आईने के सामने खड़ा किया तो मैं खुद को देख कर ठगी सी रह गई. मुझे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि मेरी उम्र 42 से  ऊपर हो चुकी है.

बैठक में घुसते ही परिवार वालों की नजरें मुझ से चिपक सी गईं. उन में से कुछ नजरों में मेरे लिए प्रशंसा और आदर के भाव थे तो कहीं ईर्ष्या और उलाहना भी शामिल था परंतु मेरी छवि को अशोभनीय कहने  लायक कोई बहाना खुशबू ने नहीं छोड़ा था. इसलिए चाहते हुए भी कोई कटाक्ष न कर पाया.

हलकी वसंती रंग की साड़ी के साथ मेल खाता चिकन का ब्लाउज, हाथों, गले और कानों में सोने के हलके आभूषण, माथे पर वसंती रंग की छोटी सी बिंदी के साथ ढंग से बांधे गए ढीले जूड़े ने मेरे पूरे व्यक्तित्व को ही बदल डाला था. होश संभालने के बाद से पहली बार मेरे बच्चे मुझे इस रूप में देख रहे थे. निशा तो खुशी से रो ही पड़ी थी.

उस दिन पार्टी में शायद ही कोई परिचित बचा हो जिस ने मेरी नई वेशभूषा की भूरिभूरि प्रशंसा न की हो. उन के तारीफ करने पर उन सभी को मैं यह बताना नहीं भूली कि इस का श्रेय सिर्फ खुशबू को जाता है. उस दिन मैं ने अपने खोए हुए औरतपन को फिर से महसूस किया और जिंदगी को नई नजरों से देखना शुरू किया.

इस के कुछ ही दिन बाद की बात है. खुशबू और निशा ने मिल कर ढेर सारे पकवानों के साथ चिकनबिरयानी भी बनाई थी. उस दिन भी मुझे ले कर जबरदस्त भूचाल आया. हमेशा की तरह जब मैं अपने लिए अलग से बनाए सादे भोजन को लेने रसोई की ओर चली तो खुशबू ने  मुझे टोक दिया, ‘मां, हमारे साथ ही खाओ न. अकेले खाना क्या अच्छा लगता है?’ तब मैं उसे टाल न सकी थी.

खाने की मेज पर जब उस ने सब के साथ मेरे लिए भी वही खाना परोसा तो मेरे साथ ही सब की आश्चर्य भरी नजरें मेरी थाली की ओर उठ गईं.

निशा ने कहा, ‘भाभी, लगता है तुम ने गलती से किसी और की थाली मां के सामने रख दी. तुम तो जानती ही हो कि मां यह सब नहीं खाती हैं.’

‘हां, बेटी, मेरा खाना रसोई में अलग रखा है. जा कर ले आओ,’ मैं ने अपनी पसंदीदा चिकनबिरयानी को परे सरकाते हुए कहा तो सब के चेहरों के तनाव कुछ कम हो गए.

‘मां, तुम्हारे लिए रखा गया भोजन मैं ने कामवाली को दे दिया है. क्योंकि आज उस ने कुछ खाया नहीं था,’ खुशबू ने लोगों के चेहरे की ओर देखते हुए कहा, ‘आज से तुम भी वही खाना खाओगी जो सब के लिए बनेगा. मैं इतना काम नहीं कर सकती कि एक बार तुम्हारे लिए खाना बनाऊं फिर दोबारा पूरे परिवार के लिए बनाऊं. अभी तो निशा मेरा हाथ बंटा देती है पर 2 महीने बाद जब वह ससुराल चली जाएगी तब क्या होगा?’

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वैधव्य से मुक्ति: भाग 1- खूशबू ने क्या किया था

कहानी- लक्ष्मी प्रिया टांडि

‘‘मां, ओ मां, कहां हो तुम? जल्दी यहां आओ. एक बहुत बड़ी खुशी की खबर है,’’ खुशबू के खुशी से डूबे हुए स्वर मेरे कानों से टकराए तो मैं बिस्तर छोड़ कर उठने लगी क्योंकि मैं यह अच्छी तरह से जानती थी कि अब अपनी खबर सुनाए बगैर वह मु़झे छोड़ेगी नहीं.

‘‘मां…मां… मैं बहुत खुश हूं. आप भी खबर सुन कर बहुत खुश होंगी,’’  खुशबू ने मेरी बांह पकड़ कर मुझे चक्करघिन्नी सा गोलगोल घुमा दिया.

‘‘अरे, पहले बता तो सही कि ऐसी क्या बात है जो तू यों खुशी से बावली हुई जा रही है,’’ मैं उसे रोकते हुए बोली.

‘‘मां, अभीअभी अंकल का फोन आया था कि अपनी निशा मां बनने वाली है और उस की गोदभराई की रस्म के लिए हमें बुलाया है. उन्होंने यह भी कहा कि सब से पहले आप ही निशा की गोद भरेंगी. मैं जाती हूं यह खबर निखिल को सुनाने,’’ कह कर खुशबू निखिल के कमरे की ओर दौड़ पड़ी जो रविवार होने की वजह से अब तक सो रहा था.

ओह, कितनी खुशी की खबर है पर  मुझ से ज्यादा खुश तो खुशबू है. आखिर निशा उस की ननद कम और सखी ज्यादा जो है. आज यह कहते हुए मुझे फख्र होता है कि खुशबू बहू होते हुए भी मेरे लिए निशा से कहीं अधिक प्यारी बेटी बन गई है. मैं डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठ जाती हूं. और न चाहते हुए भी मेरा मन अतीत की यादों में खोने लगा.

मेरे जीवन में खुशबू के आने से पहले मुझे क्याक्या नहीं सहना पड़ा था. जीना किसे कहते हैं, शायद मैं भूल चुकी थी और जिंदगी बिताने की रस्म भर अदा कर रही थी. यों तो विधवा के लिए समाज के बनाए नियमों को मैं ने सहज अंगीकार कर लिया था. बचपन से विधवाओं को ऐसी ही बेरंग जिंदगी जीते देखती आई थी सो मन की छोटीछोटी इच्छाओं का दमन करने में मुझे थोड़ी तकलीफ तो होती थी पर दुख नहीं. नियम और परंपरा के नाम पर मेरे ऊपर परिवार वालों का शिकंजा कसा हुआ था.

हालांकि मैं चाहती तो अपने बच्चों के साथ एक छोटा सा घर किराए पर ले कर अलग रह सकती थी पर एक कम उम्र की विधवा को 2 छोटे बच्चों के साथ अकेले रहने पर क्याक्या परेशानी हो सकती थी इस का अंदाजा मुझे अच्छी तरह से था. इसलिए समाज में खुले घूमने वाले भूखे भेडि़यों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए मुझे ससुराल वालों का ताना सुनना ज्यादा बेहतर और आसान लगा था.

देखते ही देखते पढ़ाई समाप्त कर निखिल एक मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्तहो गया. अब ससुराल वालों की नजरों में मेरी कुछ इज्जत बन गई थी. इधर मेरी ननद अपने पति और ससुराल वालों से झगड़ कर मायके रहने आ धमकी थी. ननद अपने साथ बहुत सारे जेवरात ले कर आई थी और शायद चंद्रहार के साथ सोने की तगड़ी भी जेठानी को देने का लालच दिया था. इसलिए दोनों की आपस में खूब छनती थी और ननद का मायके में डटे रहना जेठानी को बुरा नहीं लगता था.

निखिल की नौकरी लगने के बाद घर में पहला धमाका तब हुआ जब उस ने अपनी बिरादरी से अलग पंजाबी लड़की से विवाह करने का ऐलान किया. विवाह हो भी गया. प्रथा के अनुसार खुशबू पूरे परिवार के लिए कपड़ों के साथ कुछ न कुछ तोहफे भी लाई थी. खूबसूरत साडि़यों ने जेठानी और ननद की नाराजगी को बहुत हद तक कम कर दिया था.

सब से मिलने के बाद खुशबू की नजरें कुछ ढूंढ़ने लगीं. मैं यह सब अंदर कमरे में बैठी परदे की ओट से देख रही थी. चांद सी सुंदर बहू को देख कर मैं मुग्ध थी. मैं यह बिलकुल ही भूल चुकी थी कि अभी थोड़ी देर पहले घर वालों के बीच जा कर अपनी बहू को आशीर्वाद न दे पाने की वजह से मैं कितनी दुखी थी. क्या करती एक विधवा के लिए शुभ काम में शामिल होना वर्जित जो था. पर अपनी ममता को मैं मार न सकी. इसलिए दूल्हादुलहन के रूप में बेटेबहू को देखने की इच्छा मन में लिए परदे के पीछे छिप कर खड़ी हो गई.

तभी खुशबू के प्रश्न ने घर वालों को चौंका दिया, ‘निखिल, मां कहां हैं? क्या वह हमें आशीर्वाद नहीं देंगी?’ फिर वह कुछ ऊंची आवाज में बोली, ‘मां, कहां हो तुम? सब ने मुझे आशीर्वाद दिया, सिर्फ तुम्हीं ने नहीं. किसी कारण से मुझ से नाराज हो तो मैं वचन देती हूं कि तुम्हारी सारी नाराजगी दूर कर दूंगी.’

सभी सकते में आ गए क्योंकि एक तो उन्हें नई बहू के रूप में खुशबू का अपनी सास को ‘तुम’ कह कर संबोधित करना नागवार गुजरा. दूसरे, इस तरह के व्यवहार से खुशबू का दबंग स्वभाव उजागर हो चुका था जो शायद उस के हित में नहीं था लेकिन मैं तो यह संबोधन सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

बात यह नहीं थी कि मैं ने मां का संबोधन पहली बार सुना था. हां, खुशबू से ऐसे संबोधन की मैं ने कल्पना नहीं की थी. मैं सोचा करती थी कि मेरी बहू भी और बहुओं की तरह मुझे ‘मांजी’ पुकारा करेगी. शायद इसीलिए एक पराईजाई कन्या का सिर्फ ‘मां’ कहना और आप की जगह बेटी की तरह तुम कह कर संबोधित करना एक अनजाने सुख से मुझे सराबोर कर गया.

फिर भी अंधविश्वास के मकड़जाल को तोड़ कर मैं उस नववधू को आशीर्वाद देने के साथ आलिंगन में भर लेने का साहस न जुटा पाई थी. तभी ननद की बातों ने मेरा ध्यान भंग किया, ‘बेटी, तुम तो जानती ही हो कि मेरे भैया इस दुनिया में नहीं हैं. सो इस समय भाभी यहां आ कर तुम्हें आशीर्वाद नहीं दे सकतीं.’

मैं ने अच्छी तरह अनुभव किया कि ननद ने एक एस.पी. की बेटी से बात करने के लिए अपने स्वभाव के विपरीत बोलने में कितनी कठिनाई से अपने शब्दों को चाशनी में डुबोया था.

ननद की बातें सुन कर खुशबू ने हठी बच्चे की तरह अपना फैसला सुनाया था, ‘फिर ठीक है, मैं भी तब तक अन्न का एक दाना अपने मुंह में नहीं डालूंगी जब तक यहां आ कर मां मुझे आशीर्वाद नहीं दे देतीं.’

सभी बहू को समझासमझा कर थक गए पर 2 घंटे तक वह अपनी बात पर डटी रही. मैं ने भी अंदर परदे की ओट से उस की कितनी मिन्नतें कीं कि वह सब की बात मान ले. पर वह गजब की हठी निकली. इस बात के लिए सब मन ही मन खुशबू को कोस रहे थे कि वह एस.पी. की बेटी थी, ऐसी बित्ते भर की लड़की की क्या मजाल जो वह मेरी जेठानी और ननद जैसी वीरांगनाओं के सामने डटी रहती. चूंकि सब के मन में यह बात गहरे पैठी हुई थी कि नई दुलहन ससुराल में छींक भी दे तो अच्छीभली आफत खड़ी हो सकती है.

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खुदगर्ज मां: क्या सही था शादी का फैसला

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पति-पत्नी और वो: भाग 3- साहिल ने कौनसा रास्ता निकाला

तीनों की कुछ सम झ में नहीं आया.

‘‘एक गुरुमंत्र है बेटा, अपनी सास को खुश कर लो, बीवी फ्री में खुश रहेगी और बोनस में अपनी सास को खुश रखेगी. हो गए न एक तीर से तीन निशाने.’’

‘‘वह कैसे? मतलब कि हम क्या करें,’’ तीनों को साहिल के कहे में काफी गहरा रहस्य दिखाई पड़ रहा था.

साहिल ने तीनों के साथ सिर जोड़ कर अपनी बात सम झाई तो तीनों को

सम झ में आ गई.

‘‘और तब भी बात न बनी तो?’’ तीनों ने शंका जाहिर की.

‘‘तो कौन सा भूचाल आ जाएगा, जो चल रहा है वह तो चल ही रहा है.’’

‘‘तेरी बात कुछकुछ सम झ में आ रही है यार. उन से और उन की बातों से पलायन करने के बजाय क्यों न सामना किया जाए,’’ तीनों ने अपनेअपने ढंग से यह बात कही.

‘‘मगर प्यार से,’’ साहिल ने बात में

संशोधन किया.

तीनों दोस्त एकदूसरे की गलबहियां करते घर की तरफ प्रस्थान कर गए.

रूपम घर पहुंचा तो रास्ते से सासूमां की पसंद की पेस्ट्री खरीद कर ले जाना नहीं भूला. जैसे ही अंदर पहुंचा सासूमां के दर्शन लाबी में ही हो गए. वे टीवी पर अपना मनपसंद सीरियल देख रही थीं. आज रूपम उन को अनदेखा कर बैडरूम में जाने के बजाय उन की बगल में सोफे पर बैठ गया. चेहरे पर मनभावन मुसकान खिंची थी. सासूमां तो सासूमां, रिमी भी हैरान…

‘‘जल्दी कैसे आ गए? तुम तो बोल

कर गए थे कि देर से आऊंगा?’’ रिमी आश्चर्य

से बोली.

‘‘हां जल्दी काम खत्म हो गया. सोचा वर्किंग डेज में तो मम्मीजी के साथ बैठने का टाइम ही नहीं मिल पाता, आज छुट्टी का दिन उन के साथ बिताया जाए. मम्मीजी लीजिए आप की पसंद की पेस्ट्री लाया हूं.’’

‘‘मेरी पसंद, पता है तुम्हें?’’ मम्मीजी की आवाज आश्चर्य से भरी थी.

‘‘हां क्यों नहीं, कई बार बताया रिमी ने,’’ वह प्लेट में पेस्ट्री रख मम्मीजी को देता हुआ बोला.

प्लेट लेते हुए मम्मीजी की आंखों में अनायास ही तरलता घुल गई थी. अब उन की जबान नहीं सिर्फ आंखें बोल रही थीं.

‘‘और रिमी जल्दी से तैयार हो जाओ,

बाहर चलते हैं… जब से मम्मीजी आई हैं, उन्हें ठीक से कहीं घुमाया भी नहीं है. आज डिनर भी बाहर ही करेंगे.’’

‘‘अरे नहीं बेटा, इस की कोई जरूरत नहीं. आज छुट्टी का दिन… तुम्हें भी तो आराम की जरूरत है.’’

पर रूपम ने मम्मीजी को जबरदस्ती कर तैयार होने भेज दिया. रिमी उसे घायल करने वाली मुसकान से देख रही थी.

सौरभ जब घर पहुंचा तो उस की सासूमां डाइनिंगटेबल पर बैठी मटर छील रही थीं. आज सौरभ कुरसी खींच कर उन के सामने बैठ गया. बैंक से रिटायर्ड सास के हर समय पैसे बचाने के तरीकों पर भाषण सुनने से बचते सौरभ को मस्त अंदाज में सामने बैठते देख सौरभ की सासूमां प्रफुल्लित हो गईं.

‘‘मम्मीजी सोचता हूं, आज आप से उन स्कीमों की जानकारी ले ही लूं इत्मीनान से. आप सही कहती हैं, हमें भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. मु झे तो कुछ ठीक से याद रहता नहीं, आप जिया को इस बार ठीक से सम झा दीजिए, फिर विचार करते हैं, एक दिन बैठ कर,’’ सौरभ साथ में मटर छीलता हुआ बोला.

सासूमां चारों खाने चित्त. हर समय उन के उपदेशों से भागने वाला सौरभ खुद ही यह टौपिक उठा लाया था. बोलीं, ‘‘नहीं बेटा मैं क्या बताऊंगी भला, तुम तो खुद ही बहुत सम झदार हो.’’

‘‘मु झ में इतनी सम झ कहां मम्मीजी, इतना व्यस्त रहता हूं कि किसी बात का ध्यान ही नहीं रहता. आप इस बार जिया को ठीक से सम झा कर जाना सबकुछ और खाने में क्या बना रही हैं आप आज आप के बनाए मटरपनीर का तो जवाब नहीं. अपने जैसी कुकिंग जिया को भी सिखा दीजिए, आप के जैसी सुघड़ता नहीं है आप की बेटी में,’’ सौरभ मंदमंद मुसकराता हुआ बोला.

मम्मीजी फूल कर कुप्पा हो गईं और जिया,  झूठमूठ के गुस्से वाली मीठी मुसकराहट से उसे निहार रही थी.

सुमित घर पहुंचा तो मांबेटी सिर जोड़े अपनी ही गुफ्तगू में व्यस्त थीं ‘पता

नहीं क्या साजिश चल रही है मेरे खिलाफ,’ सुमित ने सोचा पर प्रत्यक्ष में मुसकराहट बिखेर दी.

‘‘अरे तुम कैसे जल्दी आ गए?’’ शानिका उसे देख आश्चर्य से बोली.

‘‘क्यों क्या मैं जल्दी नहीं आ सकता, क्यों मम्मीजी? आखिर मम्मीजी के लिए भी तो मेरा कोई फर्ज बनता है. सोचता हूं 2 दिन का प्रोग्राम आसपास का घूमने का बना लेते हैं, अच्छी आउटिंग हो जाएगी.’’

‘‘क्या?’’ शानिका आश्चर्यचकित रह गई. मम्मीजी अपरोक्ष व वह परोक्ष रूप से जानती थी कि मम्मीजी के नाम पर सुमित घर से दूर रहने की कोशिश करता है.

‘‘हां… हां… कितनी मुश्किल से आ पाती है मम्मीजी, मैं तब तक फ्रैश हो कर आता हूं, तुम मम्मीजी के साथ मिल कर डिसाइड करो कि कहां चलना है,’’ कह कर उन्हें आश्चर्यचकित छोड़ सुमित बैडरूम की तरफ चला गया.

तीनों दोस्तों ने अगले कुछ दिन समस्या से भागने के बजाय समस्या का सामना कर अपनीअपनी सासूमां को खुश कर रुखसत किया.

तीनों की बीवियां एकदम प्रसन्नचित्त थीं अपनेअपने पति के बदले अंदाज पर और उन की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार थी:

‘‘बहुत दिनों से मम्मीजी नहीं आई हैं, आप को तो कुछ ध्यान ही नहीं रहता उन का. अब मैं ही बात करती हूं उन से किसी दिन.’’

‘‘अरे पर मम्मीजी तो अभीअभी रह कर गई हैं. अभीअभी कैसे आएंगी?’’ तीनों दोस्त अनजान भोले बन कर कह रहे थे.

‘‘मैं आप की सास की नहीं अपनी सास की बात कर रही थी,’’ कहते हुए उन की बीवियों ने समस्त चाशनी अपने स्वरों में उंडेल दी थी.

सुन कर अगले दिन तीनों दोस्त फूलों का गुलदस्ता ले कर साहिल से मिलने चले गए.

‘‘मान गए… अब जब भी पतिपत्नी के बीच किसी की भी सास ‘वो’ के रूप में फंसेगी, तब तुम्हारे ही बताए नक्शेकदम पर चलेंगे,’’ तीनों एकसाथ बोल पड़े.

तीनों सिर  झुकाए साहिल के सामने खड़े थे और वह हाथ बढ़ा कर उन्हें आशीर्वाद दे रहा था.

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पति-पत्नी और वो: भाग 2- साहिल ने कौनसा रास्ता निकाला

तीनों दोस्त बढ़चढ़ कर अपनीअपनी सास की बुराई में मशगूल थे कि रात के 9 बज गए.

‘‘मैं चला…’’ रूपम हड़बड़ा कर उठता हुआ बोला, ‘‘वरना मेरी बीवी मेरी सास की ही तो बेटी है,’’ कह कर वह बाहर निकल गया.

‘‘हमारी भी तो…’’ कह कर सौरभ, सुमित भी पीछेपीछे निकल गए.

नियत दिन तीनों की सासूमांएं पहुंच गईं.

रूपम की सास अघ्यापिका के पद से रिटायर हुईं थीं. इसलिए उन की बातचीत हमेशा उपदेशात्मक रहती थी. वे अपनी बेटी व रूपम को हमेशा नादान बच्चा ही सम झती थीं. बेटी को तो आदत थी पर रूपम जबतब  झल्ला जाता.

‘‘जब मेरे मांबाप हमें कुछ नहीं बोलते तो तुम्हारी मम्मी क्यों हमेशा उपदेश देने के मूड में रहती हैं?’’

‘‘ठीक से बोलो रूपम, वे तुम्हारी भी मां हैं… हमारे भले के लिए ही बोलतीं हैं. इस में बुरा मानने वाली कौन सी बात है?’’ रिमी धीमी आवाज में सम झाती.

‘‘तो क्या इस बात पर भी सम झाएंगी कि मु झे अपनी पत्नी के साथ कैसे बात करनी चाहिए, उसे टाइम देना चाहिए, उस के साथ घूमना चाहिए, काम में हाथ बंटाना चाहिए, अब बच्चा पैदा कर लेना चाहिए? तुम्हें है कोई शिकायत मु झ से? अपनी शिकायतें हम खुद निबटा लेंगे.’’

‘‘तुम इतनी छोटीछोटी बातों को दिल से क्यों लगाते हो? मां ही तो हैं, बोल दिया तो क्या हुआ?’’

‘‘तो फिर बारबार क्यों बोलतीं हैं? उन के पास बैठना ही मुश्किल है. तुम्हें तो तब पता चले जब मेरी मां तुम्हें हर समय उपदेश देती रहें. जरा सा भी नहीं सुन पाती हो उन का बोला हुआ… और सही कहें या गलत… तुम सुनो,’’ उस की आवाज ऊंची होने लगती.

उधर सौरभ की सास बैंक से रिटायर्ड. सौरभ की पत्नी जिया उसे जब भी ठेलठाल कर मम्मीजी के सामने बैठने को कहती तो वे अपना वही टौपिक शुरू कर देतीं, ‘‘बेटा, प्राइवेट नौकरी है, जरा हाथ दबा कर खर्च किया करो तुम लोग. आज नहीं बचाओगे तो रिटायरमैंट के बाद क्या खाओगे? कई स्कीमों के बारे में बता सकती हूं मैं तुम्हें. उन में पैसा इन्वैस्ट करो. हमें तो कोई बताने वाला नहीं था, तुम्हें तो बताने वाली मैं हूं. फालतू का खर्च करते हो. शीना तो नौकरी और छोटे बच्चे के साथ व्यस्त रहती है, पर तुम तो मेड के साथ मिल कर किचन संभाल सकते हो. कपड़ेजूतों से अलमारी भरी है, फिर भी खरीदते रहते हो. जरूरतों को जितना बढ़ाओ, बढ़ती हैं और शौक जितने कम करो कम हो जाते हैं.’’

‘‘सही कहती हैं मम्मीजी, यह सादा जीवन उच्च विचार वाला फलसफा इस बार जिया को रटवा देना,’’ कह कर सौरभ पतली गली से अपना बचाव करता हुआ बिना कारण बताए घर से बाहर निकल जाता और बेमतलब इधरउधर टाइम पास कर घर आ जाता. उसे 1 महीना बिताना पहाड़ जैसा लग रहा था.

उधर सुमित भी अपनी सास से बचने के लिए औफिस से घर जाने में जानबू झ कर देर करता और फटाफट खाना खा कर सो जाता.

मगर खाना खातेखाते भी मम्मीजी अपनी बात कहने से बाज नहीं आतीं, ‘‘कितना दुबला और थका हुआ लग रहा है बेटा… इतनी जान मारने की क्या जरूरत है? तुम लोग तो वहीं आ जाओ, जो भी नौकरी मिले वहीं कर लो… आखिर शानिका हमारी इकलौती बेटी है. तुम्हें तो गर्व होना चाहिए जो उन्हें इतनी सुंदर, सुगड़ और योग्य पत्नी मिली है, जो इतनी धनसंपत्ति की अकेली वारिश भी है… फिर हमारे प्रति भी तो तुम्हारा कुछ फर्ज बनता है.’’

सुमित का दिल करता कि कहे मम्मीजी ये सब पता होता तो शानिका के सलोने मुखड़े, पर फिदा होने से पहले 10 बार सोचता. पर प्रत्यक्ष

में कहता, ‘‘मम्मीजी, आप की उम्र में इतनी देर भूखा रहना ठीक नहीं, आप जल्दी खा कर सो जाया कीजिए.’’

‘‘कैसे सो जाऊं बेटा, तुम से बात किए बिना दिल ही नहीं मानता. हमारे सबकुछ तुम्हीं तो हो, थोड़ा जल्दी आ जाया करो,’’

सुन कर सुमित कुढ जाता. कहना चाहता कि आप की बेटी तो मेरे मातापिता की कुछ भी नहीं बन पा रही, मैं कैसे बन जाऊं आप का सबकुछ. फिर कहता, ‘‘ठीक है मम्मीजी कल से जल्दी आने की कोशिश करूंगा.’’

उधर साहिल बीवी के साथ विदेश भ्रमण पर था और बेहद रोमांटिक अंदाज के

फोटो फेसबुक पर अपलोड कर देता. कभी कुछ फोटो व्हाट्सऐप पर भी भेज देता. तीनों दोस्त अपना गुस्सा अपना मोबाइल पटक कर निकालते.

साहिल तीनों को जलाजला कर खुश होता. सुबह बड़ी प्यारी गुड मौर्निंग भेजता और रात में हालचाल पूछना न भूलता. तीनों दोस्तों का दिल करता कि उस की सासूमां का भी टिकट कटा कर उसी के पास भेज दें.

ऐसे ही वे किसी तरह दिन निकाल रहे थे. एक दिन तीनों समुद्र किनारे बैठे सासूपुराण में फिर व्यस्त थे और काफी चर्चा के बाद अब थक कर गहन सोच में डूबे समुद्र की लहरें गिन रहे थे.

‘‘अभी तो आधे ही दिन बीते हैं, मु झे तो घर और बीवी दोनों ही पराए लगने लगे हैं,’’ रूपम खिन्न स्वर में बोला.

‘‘यार अब सम झ में आ रहा है कि बहुएं अपनी सासों से क्यों भागा करती हैं. बेसिरपैर की बातें और बिन मौके के उपदेश भला किसे अच्छे लगते हैं,’’ सौरभ ने विश्लेषण दिया.

‘‘असल में हर पुरानी पीढ़ी अपनी नई पीढ़ी को नादान सम झती है और अपनी सम झ के अनुसार उपदेश देती रहती है और हर नई पीढ़ी को लगता है पुरानी पीढ़ी को कोई सम झ नहीं. वह क्या जाने नए जमाने की बातें,’’ आवाज सुन कर तीनों दोस्तों ने चौंक कर पीछे देखा तो साहिल खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘अरे तू कब आया?’’

‘‘मेरा ट्रिप तो 2 हफ्ते का ही था, सुबह ही पहुंचा हूं. आज छुट्टी थी, मु झे पता थार दोस्त लोग यहां पर गुप्त मंत्रणा कर रहे होंगे.’’

‘‘अरे इस की सोच यार. एक तरफ अपनी सास और दूसरी तरफ अपनी बीवी और बीवी की सास, खूब पिसेगा अब बाकी दिन बेचारा. सारी छुट्टियों की मस्ती निकल जाएगी,’’ सुमित ठहाका लगाता हुआ बोला.

‘‘मैं तुम्हारी तरह समस्याओं से पलायन नहीं करता,’’ साहिल दार्शनिक अंदाज में बोला, ‘‘जैसे सम झदार व सहनशील बहू होती है, वैसे ही मैं सम झदार व सहनशील अच्छे वाला दामाद हूं. बस थोड़ा ‘हैंडल विद केयर’ की जरूरत पड़ती है, आखिर मां तो मां ही होती है फिर चाहे बीवी की हो या अपनी,’’ साहिल रहस्यात्मक तरीके से मुसकराया.

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बहार: भाग 1- क्या पति की शराब की लत छुड़ाने में कामयाब हो पाई संगीता

अपने सास ससुर के रहने आने की खबर सुन कर संगीता का मूड खराब हो गया. यह बात उस के पति रवि की नजरों में भी आ गई.

सप्ताहभर पहले संगीता की बड़ी ननद मीनाक्षी अपने दोनों बच्चों के साथ पूरे 10 दिन उस के घर रह कर गई थी. अब इतनी जल्दी सासससुर का रहने आना उसे बहुत खल रहा था.

‘‘इतना सड़ा सा मुंह मत बनाओ संगीता क्योंकि 10-15 दिनों की ही बात है. पहली बार दोनों अपने छोटे से कसबे में रहने आ रहे हैं, इसलिए मैं टालमटोल नहीं कर सकता था.’’

रवि के इन शब्दों को सुन कर संगीता का मूड और ज्यादा उखड़ गया. बोली, ‘‘मेरी खुद की तबीयत ठीक नहीं रहती है. उन की देखभाल के लिए नौकरानी ला दो, तो मुझे कोई शिकायत नहीं. फिर कितने भी दिन रुकें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ तीखे स्वर में जवाब दे कर संगीता ने चादर से मुंह ढका और लंबी चुप्पी साध ली.

अपने मातापिता के आने से परेशान रवि भी था. मीनाक्षी के सामने संगीता के साथ उस का कई बार झगड़ा हुआ था. उन सब झगड़ों की खबर उस के मातापिता तक निश्चित रूप से मीनाक्षी ने पहुंचा दी होगी. वह जानता था कि मातापिता अपना पुरातनपंथी रवैया नहीं छोड़ेंगे और पूरी सोयायटी में उस की जगहंसाई हो सकती है.

शादी होने के सिर्फ 5 महीने बाद बेटाबहू खूब लड़तेझगड़ने लगे थे. इस तथ्य ने उस के मातापिता का दिल दुखा कर उन्हें चिंता से भर दिया होगा. अब रवि उन का सामना करने का हौसला अपने भीतर जुटा नहीं पा रहा था. वह कोविड-19 का बहाना बना कर उन्हें टालता रहा था पर अब वह बहाना चल नहीं रहा था.

लगभग ऐसी ही मनोस्थिति संगीता की भी थी. काम के बोझ का तो उस ने बहाना बनाया था. वह भी अपने सासससुर की नजरों के सामने खराब छवि के साथ आना नहीं चाहती थी. उन का चिंता करना या समझना उसे अपमानजनक महसूस होगा और वह उस स्थिति का सामना करने से बचना चाहती थी. रवि के मातापिता कोविड-19 के दिनों में अकेले ही रहे थे और अकेलेपन को सहज लेते रहे थे.

अगले दिन शाम को उस के सासससुर उन के घर पहुंच गए. दोनों में से किसी

ने भी रवि और उस के बीच 2 साल से चलने वाले झगड़ों की चर्चा नहीं छेड़ी. उसे 2 सुंदर साडि़यों का उपहार भी मिला. सोने जाने तक का समय इधरउधर की बातें करते हुए बड़ी अच्छी तरह से गुजरा और संगीता ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस करी.

‘‘अपने सासससुर के सामने न मैं आप से उलझंगी, न आप मुझ से झगड़ना,’’ संगीता के इस प्रस्ताव पर रवि ने फौरन अपनी सहमति की मुहर सोने से पहले लगा दी थी.

अगले दिन शाम को जो घटा उस की कल्पना भी उन दोनों ने कभी नहीं करी थी.

रवि अपने दोस्तों के साथ शराब पीने के बाद घर लौटा. वह ऐसा अकसर सप्ताह में

3-4 बार करता था. इसी क ारण उस का संगीता से खूब झगड़ा भी होता.

उस शाम संगीता की नाक से शराब का भभका टकराया, तो उस की आंखों में गुस्से की लपटें फौरन उठीं, पर वह मुंह से एक शब्द नहीं बोली.

रवि के दोस्तों में से ज्यादातर पियक्कड़ किस्म के थे. रवि की जमात के लोगों को ऊंची जाति के लोग दोस्त नहीं बनाते थे और उसे सड़क छाप आधे पढ़े लोगों को अपना दोस्त बनाना पड़ता था जो सस्ती शराब भरभर कर

पीते थे.

उस की मां आरती मुसकराती हुई अपने

बेटे के करीब आईं, तो शराब की गंध उन्होंने

भी पकड़ी.

‘‘रवि, तूने शराब पी रखी है?’’ आरती ने चौंक कर पूछा.

‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी थी. थोड़ी सी जबरदस्ती पिला दी उन लोगों ने,’’ उन से बच कर रवि अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ा.

आरती ने अपने पति रमाकांत की तरफ घूम कर उन से शिकायती लहजे में

कहा, ‘‘मेरे बेटे को यह गंदी लत आप की बदौलत मिली है.’’

‘‘बेकार की बकवास मत करो,’’ रमाकांत ने उन्हें फौरन डपट दिया.

‘‘मैं ठीक कह रही हूं,’’ आरती निडर बनी रहीं, ‘‘जब यह बच्चा था तब इस ने आप को शराब पीते देखा और आज खुद पीने लगा है.’’

‘‘मुझे शराब छोड़े 10 साल हो गए हैं.’’

‘‘जब ब्लडप्रैशर बढ़ गया और लिवर खराब होने लगा, तब छोड़ा आप ने पीना. मैं लगातार शोर मचाती थी कि बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा, पर मेरी कभी नहीं सुनी आप ने. मेरा बेटा अपना स्वास्थ्य अब बरबाद करेगा और उस के जिम्मेदार आप होंगे.’’

‘‘अपनी बेकार की बकबक बंद कर, बेवकूफ औरत.’’

उन की गुस्से से भरी चेतावनी के बावजूद आरती ने चुप्पी नहीं साधी, तो उन के बीच झगड़ा बढ़ता गया. संगीता अपनी सास को दूसरे कमरे में ले जाना चाहती थी, पर असफल रही. रवि ने बारबार रमाकांत से चुप हो जाने की प्रार्थना करी, पर उन्होंने बोलना बंद नहीं किया.

रमाकांत को अचानक इतना गुस्सा आया कि नौबत आरती पर हाथ उठाने की आ गई. तब संगीता अपनी सास को जबरदस्ती खींच कर दूसरे कमरे में ले गई.

रवि देर तक अपने पिता को गुस्सा न करने के लिए समझता रहा. रमाकांत खामोशी से उस की बातें सिर झकाए सुनते रहे

उन के पास से उठने के समय तक रवि का नशा यों गायब हो चुका था जैसे उस ने शराब पी ही नहीं थी. सारा झगड़ा उस के पिता की शराब पीने की पुरानी आदत को ले कर हुआ था. कमाल की बात यह थी कि उसे दिमाग पर बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आया कि उस ने कभी अपने पिता को शराब पीते देखा हो.

शादी के बाद संगीता ज्यादा दिन अपने सासससुर के साथ नहीं रही थी. उन की आपस में लड़नेझगड़ने की क्षमता देख कर उसे अपने रवि के साथ हुए झगड़े बौने लगने लगे थे.

रविवार के दिन आरती और रमाकांत का एक

और नया रूप उन दोनों को देखने के लिए मिला.

संगीता ने आरती द्वारा पूछे

गए एक सवाल के जवाब में

कहा, ‘‘इन्हें घूमने जाने या फिल्म देखने को बिलकुल शौक नहीं है. मुझे फिल्म देखे हुए महीनों बीत गए हैं.’’

‘‘बकवास हिंदी फिल्में सिनेमाहौल पर देखने में 3 घंटे बरबाद करने की क्या तुक है?’’ रवि ने सफाई दी, ‘‘फिर केबल

पर दिनरात फिल्में आती रहती हैं. टीवी पर फिल्में देख कर यह अपना शौक पूरा कर लेती है, मां. नैट विलक्स भी है. बहुत सीरीज हैं, उन्हें देखे न.’’

‘‘असल में तुम बापबेटे दोनों को ही अपनीअपनी पत्नी के शौक पर खर्चा करना अच्छा नहीं लगता है,’’ आरती ने अपनी बहू का हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर शरारती स्वर में टिप्पणी करी.

‘‘तुम हर बात में मुझे क्यों बीच में घसीट लेती हो? अरे, मैं ने तो शादी के बाद तुम्हें पहले साल में कम से कम 50 फिल्में दिखाई होंगी,’’ रमाकांत ने तुनक कर सफाई दी.

‘‘फिल्में देखने का शौक आप को था, मुझे नहीं.’’

‘‘तू तो हौल में आंखें बंद कर के बैठी रहती होगी.’’

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व्रत उपवास: भाग 3- नारायणी ने क्या किया था

अभी करवाचौथ बीते 4 दिन भी नहीं हुए थे कि अष्टमी आ पहुंची. इसी- लिए नारायणी को छोड़ कर सब कांप रहे थे. और जैसे ही नारायणी ने चेतावनी दी कि कोई खटपट न करे तो शत्रु दल में भगदड़ मच गई. तनाव के कुछ तार बाकी थे, वे सब एकसाथ झनझना उठे. जैसे ही देवीलाल ने कहा कि खटपट वह शुरू कर रही है तो रोनापीटना शुरू हो गया.

एक दिन पहले ही नारायणी सब बच्चों से पूछ रही थी कि अष्टमी के दिन क्या बनाएं. बच्चों ने बड़े चाव से अपनी- अपनी पसंद बताई थी. काफी तैयारी भी हो चुकी थी. बच्चे बेसब्री से अष्टमी की प्रतीक्षा कर रहे थे. मन ही मन कह भी रहे थे कि चाहे कुछ भी हो वे मां को प्रसन्न रखेंगे.

पर ऐसा न पिछले कई वर्षों से हुआ था और न इस साल होने के आसार दिखाई दे रहे थे. नारायणी तो आंसू टपका कर बिस्तर पर जा गिरी और घर का भार आ पड़ा निर्मला के नन्हेनन्हे नाजुक कंधों पर. उस ने जैसेतैसे चाय बनाई, नाश्ता बनाया और सब को खिलाया. पर उस के गले से कुछ न उतरा.

देवीलाल ने गला खंखारते हुए पूछा, ‘‘बाजार से कुछ लाना है?’’

नारायणी चुप रही.

‘‘अरे, बाजार से कुछ लाना है?’’

नारायणी फिर भी चुप रही.

निर्मला ने मां के पास जा कर कंधा हिलाते हुए कहा, ‘‘अम्मां, बाबूजी बाजार जा रहे हैं, कुछ मंगाना है क्या?’’

‘‘भाड़ में जाओ सब.’’

‘‘वह तो चले जाएंगे, पर अभी कुछ लाना हो तो बताओ,’’ देवीलाल ने कहा.

‘‘थोड़े मखाने ले आना. खरबूजे के बीज और एक नारियल. खोया मिले तो ले आना. जो सब्जी समझ में आए, ले लेना पर मटर लाना मत भूलना. आज आलूमटर की कचौडि़यां बनाऊंगी. सोनू का बड़ा मन था. मूंगदाल की पीठी ले आना, हलवा बनाना है. दहीबड़े खाने हों तो उड़द की दाल की पीठी और दही ले आना,’’ नारायणी एक सांस में बोल गई.

देवीलाल ने गहरी सांस भर कर कहा, ‘‘एकसाथ इतना सामान कैसे लाऊंगा?’’

‘‘सोनू को साथ ले जाओ.’’

‘‘चल बेटा, सोनू चल. बरतन और थैला उठा ले. पूछ ले अम्मां से घीतेल तो है न? कहीं ऐन मौके पर उस के लिए भी भागना पड़े.’’

‘‘अरे, अभी तो लाए थे करवाचौथ के दिन. सब का सब रखा है. खर्च ही कहां हुआ?’’

करवाचौथ के नाम से फिर एक बार दहशत छा गई. इस से पहले कि कुछ गड़बड़ हो, देवीलाल बाहर सड़क पर आ गए और सोनू की प्रतीक्षा करने लगे.

कुछ देर तक तो शांतिअशांति के उतारचढ़ाव में दिन निकला. पर जहां नारायणी जैसी धार्मिक तथा कट्टर व्रत वाली औरत हो, वहां तूफान न आए यह असंभव था. वह बारीबारी से देवीलाल और बच्चों को आड़े हाथों लेती रही. कभी इसे झिड़कती तो कभी उसे डांटती. देवीलाल को तो एक क्षण चैन नहीं लेने दिया.

बोली, ‘‘मेरी मां तो सीधी थी, एकदम गऊ. आज उसी की शिक्षा है कि मैं भी इतनी सीधी हूं. मुंह से एक शब्द नहीं निकलता. दूसरी औरतों को देखो, कितनी तेजतर्रार हैं. सारे महल्ले का मुंह बंद कर देती हैं, बस, एक बार बोलना शुरू कर दें.’’

देवीलाल ने बच्चों की ओर देखा. वे मुसकराने का असफल प्रयत्न कर रहे थे. ठंडी सांस भर कर देवीलाल ने कहा, ‘‘सो तो है. तुम्हारे जैसी सीधी तो अंगरेजी कुत्ते की पूंछ भी नहीं होती.’’

नारायणी पहले तो समझी कि उस की प्रशंसा हो रही है, पर जब उस की समझ में आया तो चिढ़ कर बोली, ‘‘तुम मेरी मां की हंसी तो नहीं उड़ा रहे?’’

‘‘तुम्हारी मां तो गऊ थीं. कोई उन की हंसी उड़ाएगा. मैं तो बैल की सोच रहा था.’’

नारायणी ने आंखें तरेर कर कहा, ‘‘क्या कुछ मजाक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं तो,’’ देवीलाल ने बात बदल कर कहा, ‘‘बेटी निर्मला, खाली हो तो एक प्याला चाय ही बना दे.’’

कुछ देर शांति रही, पर कब तक? फिर वही शाम और पूजा की तैयारी. फिर वही चांद की प्रतीक्षा. लो कल सप्तमी के दिन तो ऐसी फुरती से निकल आया कि पूछो मत और आज अष्टमी है तो ऐसा गायब जैसे गधे के सिर से सींग. सारा परिवार पागलों की तरह चांद की तलाश में ऊपरनीचे, अंदरबाहर घूम रहा था.

9 बज गए. पिछली बार की तरह फिर एक बार खतरे की घंटी बजी. पर वह चांद न था, केवल उस की परछाईं थी.

‘‘अरे, जा न,’’ नारायणी ने सोनू को डांटा, ‘‘जाता है कि नहीं.’’

‘‘अभी तो देख कर आ कर बैठा हूं,’’ सोनू ने झल्ला कर कहा, ‘‘अब नहीं जाता.’’

‘‘जा, गोलू, तू ही जा. यह तो मेरी जान ले कर छोड़ेगा. मरा, न जाने किस घड़ी में पैदा हुआ था,’’ नारायणी ने कोसा.

‘‘अम्मां, मैं नहीं जाता. मेरी टांगें तो टूट गई हैं ऊपरनीचे होते,’’ गोलू ने घुटने दबाते हुए कहा, ‘‘सोनू को कहो. यह बीच सीढ़ी से ही लौट आता है.’’

‘‘सत्यानास,’’ नारायणी एकदम आपा खो बैठी, ‘‘एक तो तुम्हारे लिए भूखप्यास से तड़प रही हूं और तुम लोगों से इतना सा भी नहीं होता.’’

‘‘छोड़ो, अम्मां,’’ सोनू ने हलके से कहा, ‘‘जा कर पिताजी की चांद देख लो. असली चांद से ज्यादा चमकती है.’’

नारायणी ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मर जाओ एकएक कर के. मजाल है कि तुम्हारा मुंह भी देखूं.’’

देवीलाल ने कहा, ‘‘क्या कह रही हो, नारायणी? बच्चों के लिए व्रत रख रही हो और उन्हें ही कोस रही हो? ऐसा व्रत रखने का क्या लाभ है?’’

‘‘करम फूट गए जो ऐसी औलाद पैदा हुई. इस से तो बिना संतान ही भली थी,’’ नारायणी ने क्रोध में कहा. वह तनाव के अंतिम क्षणों में पहुंच गई थी.

इतने में ‘चांद निकल आया’ का शोर आने लगा. नारायणी ने फिर से अपनी गोटे वाली साड़ी को ठीक किया और सजीसजाई पूजा की थाली को ले कर छत की भीड़ में गुम हो गई. सोचती जा रही थी कि बाईं आंख फड़क रही है, कहीं फिर कुछ बदशगुनी न हो जाए.

जब खाना खाने बैठे तो किसी की इच्छा खाना खाने की न हुई. सब थोड़ा- बहुत खापी कर उठ गए. इस तरह मंगल कामना करते हुए बच्चों के लिए अष्टमी का व्रत पूरा हुआ.

दूसरे दिन पड़ोस वाली शीला ने पूछा, ‘‘अरे, नारायणी चाची, कल श्याम चाचा के यहां खाने पर क्यों नहीं आईं?’’

‘‘खाने पर,’’ नारायणी ने पूछा, ‘‘कैसा खाना था श्याम के यहां?’’

‘‘अरे, क्या तुम्हें निमंत्रण नहीं मिला? उन के बेटे की सगाई थी न.’’

‘‘पता नहीं,’’ नारायणी ने मुरझा कर कहा.

सहसा शीला को याद आया, ‘‘पर वैसे भी तुम कहां आतीं. कल तो तुम ने अहोई अष्टमी का व्रत रखा होगा. सच, बड़ा कठिन है. मैं तो एक बार भी व्रत नहीं रख पाई. मुझे तो चक्कर आने लगते हैं.’’

नारायणी ने कहा, ‘‘अगर निमंत्रण आया होता तो मैं अवश्य आती.’’

‘‘क्यों, क्या व्रत नहीं रखतीं?’’

‘‘व्रत?’’ नारायणी ने क्रोध में कहा, ‘‘ऐसे नासपीटे बच्चों के लिए व्रत रखना तो महान अपराध है.’’

शीला अवाक् हो कर नारायणी का मुंह देख रही थी. उस ने कभी उसे इतना उत्तेजित नहीं देखा था.

सहज हो कर नारायणी ने पूछा, ‘‘क्याक्या बना था दावत में?’’

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सपनों का महल- भाग 3: क्या हुआ था रितू के साथ

‘‘रितु तुम्हारा घरगृहस्थी में मन नहीं लगता है. आज तो कुछ ढंग का लंच बना देती.’’

‘‘सुबह से ही तो काम पर लगी हूं और क्या चाहते हो मुझ से?’’

‘‘3 समय का भोजन समय से मिल जाए और क्या चाहूंगा.’’

‘‘यह क्या है?’’ रितु ने अपनी प्लेट पटकते हुए कहा.

‘‘हफ्ते भर का मेनू बना कर रसोई में टांग लो, तुम्हें भी बनाने में सुविधा रहेगी और मुझे भी खिचड़ी से छुटकारा मिल जाएगा,’’ आदित्य ने गुस्से से कहा.

‘‘किसी महराजिन को रख लो, फिर सुबहशाम मनपसंद खाते रहना,’’ रितु ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

‘‘यहां कुक की पगार पता है? फिर तुम से शादी करने का क्या फायदा? तुम्हें सजाधजा कर ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाने तो नहीं लाया हूं,’’ आदित्य ऊंचे स्वर में बोला.

‘‘ऐसे कह रहे हो जैसे मैं दिनभर महारानी की  तरह राज करती हूं. कामवाली भी आधे दिन छुट्टी कर जाती है. घर की साफसफाई से ले कर खाना बनाने तक की सारी जिम्मेदारी मेरी ही तो है. तुम से शादी करने का मुझे क्या फायदा मिला? नौकरानी बन कर रह गई हूं.’’

‘‘कौन सी नौकरानी 10-15 हजार की ड्रैस पहनती है? अभी शादी में लिए कपड़े पहने भी नहीं गए हैं… तुम ने इतनी महंगी शौपिंग कर डाली.’’

‘‘ओह तो सारी आग उन कपड़ों को ले कर है. मुझे मौडलिंग के 2-3 औफर मिल गए हैं. तुम्हारे रुपए लौटा दूंगी. मुझे पता होता कि तुम इतने कंजूस हो तो कभी शादी नहीं करती,’’ रितु तमक कर बोली.

‘‘कुछ पता भी है कैसे खर्च किया जाता है. इस फ्लैट की किश्त, गाड़ी की किश्त देने के बाद जो बचता है. उसी में सेविंग भी करनी होती है. यह नहीं कि कार्ड घिसा और बिना सोचेसमझे और्डर कर दिया.’’

‘‘कौन से लाखों रुपए खर्च कर दिए. मुझे जैसे ही मौडलिंग करने से पैसे मिलेंगे तुम्हारी पाईपाई चुका दूंगी,’’ रितु भड़क चुकी थी.

‘‘ज्यादा हवा में न रहो. इतनी फ्रौड कंपनियां भरी हैं नैट में, तुम से कपड़ेगहनों पर खर्चा भी करवाएंगी. तुम्हीं से शूटिंग का पैसा भी लेंगी, फिर गायब हो जाएंगी.’’

‘‘तुम तो यही कहोगे.’’

‘‘हां यही सच है. मेरा कार्ड वापस कर दो. आइंदा इस घर में मुझ से पूछे बिना कुछ नहीं आएगा. मौडलिंग के सपने देखना बंद करो. दिमाग खराब कर के रख दिया है.’’

अगले ही पल रितु ने डैबिट कार्ड उस के सामने पटक दिया.

रात के खाने में भी दोनों के बीच सन्नाटा पसरा रहा. दोनों ही करवट बदलने में लगे हुए थे. आदित्य ने हाथ बढ़ा कर रितु के कंधे पर रख कर समझौता करना चाहा. रितु ने गुस्से से हाथ झटक दिया और ड्राइंगरूम के सोफे पर जा कर पसर गई.

दोनों के बीच अबोला हफ्तेभर चलता रहा. शनिवार की शाम आदित्य शराब की

बोतल खोल कर बैठ गया. उस ने 2 पैग ही लिए थे कि रितु ने बोतल बिना कुछ कहे, हटा कर अलमारी में संभाल दी. आदित्य फिर बोतल निकाल लाया. आदित्य को तीसरा पैग बनाते देख कर वह बोतल पर बाज की तरह झपट कर पलटी कि उस का पैर कालीन में उलझ गया और बोतल हाथ से छूट कर गिरी और फूट कर बिखर गई. रितु का सिर टेबल का किनारा लगने से चोटिल हो उठा. रितु अपनी बेइज्जती महसूस कर फूटफूट कर रोने लगी. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. आदित्य ने रितु को उस के हाल पर छोड़ दिया और दरवाजे की ओर बढ़ गया.

दरवाजे पर रितु का बड़ा भाई ऋ षभ उन दोनों को सरप्राइज देने का मन बना कर मिलने चला आया था. आदित्य उसे देख कर हड़बड़ा गया. ऋ षभ को गरमजोशी से स्वागत की उम्मीद थी मगर उसे घर के माहौल में गड़बड़ लगी.

रितु के माथे की चोट, टूटी बोतल देख ऋषभ के मन में शंका हुई. उस ने परोक्ष रूप से कुछ नहीं कहा, मगर उस के विश्वास को ठेस पहुंच गई थी. ऋ षभ ने दोनों की पसंद पूछ कर डिनर और्डर कर दिया.

भोजन करते समय उस ने रितु से कहा, ‘‘लगता है तुम्हें एक ब्रेक की जरूरत है. मैं तो बौएज हौस्टल में रहता हूं. तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकता. तुम कहो तो अगले वीकैंड में तुम्हें कानपुर पहुंचा दूंगा. वहां रह कर ठंडे दिमाग से सोचना. तुम दोनों कुछ दिन एकदूसरे से दूर ही रहो तो बेहतर है. आगे साथ रहना है कि नहीं इस विषय में तुम दोनों को सोचने का समय मिल जाएगा,’’ ऋ षभ ने समझदारी के साथ खरीखरी सुना दी.

आदित्य यह सुन कर चौंक उठा. इस विषय की गहराई पर उस ने ध्यान ही नहीं दिया था. यदि दोनों भाईबहन मिल कर उस पर घरेलू हिंसा का आरोप लगा दें तो वह कोर्टकचहरी के चक्कर ही काटता रह जाएगा. उस के मित्र के साथ ऐसा ही हुआ जब मामूली धक्कामुक्की होने पर पत्नी ने पुलिस बुला ली और पुलिस ने उस के मित्र को

4 डंडे लगा कर ही छोड़ा. आदित्य का शादी को ले कर बनाया गया स्वप्नमहल भरभरा कर गिर गया.

यही रितु के दिमाग में भी चल रहा था कि मौडलिंग के चक्कर में वह अपनी गृहस्थी को बिखेर रही है. प्रत्यक्ष में ऋ षभ से इतना ही बोली, ‘‘मैं तुम्हें कल शाम तक बता दूंगी कि कानपुर कब चलना हैं.’’

रात बिस्तर पर लेटते ही रितु की आंखों के आगे अपनी शादी की तैयारी से

ले कर आज तक का दिन फिल्म की तरह घूम गया. उसे अपनी गलतियां साफ नजर आने लगीं. मगर उस का दंभ इसे स्वीकार नहीं करना चाह रहा था. उधर आदित्य सोच रहा था कि वह अपनी व्यस्तता के बीच रितु के मन की थाह लेना ही भूल गया. यदि वह उस के साथ खुल कर हर विषय पर चर्चा करता तो रितु उस से छिप कर, मौडलिंग के लिए उलटेसीधे हाथपैर नहीं मारती. आज भी अगर वह अपनी बात कहने से चूक गया तो उस की गृहस्थी उजड़ते देर नहीं लगेगी.

‘‘रितु क्या तुम सचमुच कानपुर लौट जाओगी?’’ आदित्य ने बात की शुरुआत करने के लिए पूछा.

‘‘हां क्या फायदा यहां आ कर जब मुझे मौडलिंग करने का मौका ही नहीं मिला. तुम भी पिताजी की तरह तानाशाही दिखाने लगे हो,’’ रितु ने अपनी भड़ास निकाली.

आदित्य ने उठ कर बैडरूम की लाईट जला दी और रितु की ओर देखा. रितु की आंखें रोने के कारण लाल हो रही थीं. उस ने रितु का हाथ पकड़ा और उसे सहलाते हुए बोला, ‘‘रितु, अगर तुम आत्मनिर्भर बनना चाहती हो तो इस में कोई बुरी बात नहीं है. मगर कौन सी कंपनी फ्रौड है कौन सी नहीं, यह तो मैं भी नहीं जानता. अखबार में इन से जुड़ी खबरे तो पढ़ी ही होंगी. तुम्हारी इतनी अच्छी पर्सनैलिटी है तुम चाहो तो प्रोफैशनल कोर्स में दाखिला ले लो. फिर तुम्हें आगे बढ़ने के कई अवसर मिल जाएंगे. मैं भी चाहता हूं कि तुम तरक्की करो मगर सही तरीके से. शौर्टकट के चक्कर में कहीं भटक कर न रह जाओ.’’

रितु आदित्य की बात सुन कर शर्मिंदा हो उठी और बोली, ‘‘सौरी आदित्य मैं ने तुम से कई सारी बातें छिपाईं. तुम ठीक कहते हो मैं प्रोफैशनल कोर्स करने को तैयार हूं. मुझे खाना बनाना नहीं आता, मगर नैट से सीख कर कुछ न कुछ नया बनाती तो हूं.’’

‘‘ठीक है रितु, गलती मेरी भी है मुझे तुम्हारी इच्छाओं का भी सम्मान भी करना चाहिए था. मैं तो बस शादी के बाद अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उतावला हो गया,’’ आदित्य ने कहा.

‘‘नहीं गलती मेरी है. मुझे घर में रह कर भी इतनी अव्यवस्था नहीं फैलानी चाहिए कि समय से भोजन भी न मिल सके.’’

‘‘कोई बात नहीं रितु, जैसे ही मेरा इंसैंटिव बढ़ेगा मैं एक फुल टाइम मेड रख लूंगा,’’ आदित्य ने दिलासा दिया.

‘‘नहीं आदित्य जब तुम मेरे विषय में इतना सोचते हो तो मेरा भी कर्तव्य है कि हम अपने भविष्य के लिए बचत करें. मैं तुम्हें अब निराश नहीं करूंगी,’’ रितु ने कहा.

‘‘यह हुई न रोल मौडल वाली बात. तुम अपने बच्चों के लिए रोल मौडल बनो, मैं तो बस यही चाहता हूं,’’ कह आदित्य ने रितु को अपनी बांहों के घेरे में कसते हुए चुंबन जड़ दिया.

रितु ने कसमसा कर अपना हाथ टेबललैंप की तरफ बढ़ा कर स्विच औफ कर दिया. सपनों के महल से निकल कर वे वर्तमान की इमारत में हाथों में हाथ थामे बढ़ चले.

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