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लेखक- अरुण गौड़

नैना के एक दोस्त की बर्थडे पार्टी थी. उस का मन नहीं था लेकिन फिर भी जाना तो था. वह देररात तक दोस्तों के साथ रही. वैसे पार्टी फंक्शन में वह एकदो पैग ही पीती थी लेकिन आज उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली. अकसर लोग गम या खुशी में इतनी शराब पीते हैं. लेकिन नैना ने तो आज उलझन में इतनी शराब पी थी. शायद, अभी वह खुद को होश में नहीं रखना चाहती थी. वह लेटनाइट घर पहुंची और ऐसे ही जा कर बिस्तर पर सो गई. इस दुनिया, अकेलेपन, चाहत, उलझन इन सब से दूर खयालों की दुनिया में वह घूमती रही. सुबह आंख खुली, तो उसे एहसास हुआ कि उठने में काफी देर हो गई थी. रात के हैंगऔवर की वजह से उस का सिर थोड़ा सा भारी था. मन नहीं कर रहा था बिस्तर से उठने का. लेकिन औफिस में एक मीटिंग थी, जिस में शिरकत जरूरी था उसे, इसलिए वह तैयार हो कर औफिस चली गई.

औफिस में वह बारबार अपना फोन चैक कर रही थी. नईनई उम्र में लड़का या लड़की की लाइफ में कोई आता है तो एक उतावलापन रहता है. लेकिन यह तो टीनएजर के लिए था. नैना तो चालीस पार कर चुकी थी, उस को ऐसा उतावलापन क्यों हो रहा था, वह समझ नहीं पा रही थी.

वह एक पल रोहन को भुलाना चाहती थी, तो दूसरे पल उसे पाना चाहती थी. पिछले 4 दिनों से उस के साथ यह ही हो रहा था. इस कशमकश में वह बेचारी फंस चुकी थी. मीटिंग हो गई थी. तभी संध्या की कौल आई, “हैलो, नैना कैसी हो?”

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