Married Life को समझें ग्रोइंग बिजनैस की तरह, बड़े काम के हैं ये मैनेजमैंट

Married Life : किसी कंपनी को चलाना किसी मैरिज को मैनेज करने जैसा ही हो सकता है. सुनने में यह अजीब बात लग सकती है. पर गौर करें तो दोनों में ही कहीं एक समानता नजर आएगी. तो फिर वैवाहिक जिंदगी को अपने बिजनैस या प्रोफैशनल लाइफ की तरह मैनेज करने में बुराई ही क्या है?

जैसे आप किसी बिजनैस को चलाने के लिए बजट बनाते हैं, लोगों को काम सौंपते हैं, उन्हें समयसमय पर प्रोत्साहित करते हैं, रिवार्ड देते हैं. ठीक वैसे ही वैवाहिक जीवन में भी बजट बनाना पड़ता है, एकदूसरे को काम सौंपे जाते हैं, जिम्मेदारियां बांटी जाती हैं, साथी को प्रोत्साहित किया जाता है, उसे समयसमय पर गिफ्ट दे कर अपने प्यार का इजहार कर यह जताया जाता है कि वह उस के जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण है.

ग्रोइंग बिजनैस की तरह समझें

कोई भी अपने वैवाहिक जीवन की तुलना बिजनैस के साथ करना पसंद नहीं करता है. ऐसा करने से रिश्ते से रोमांस खत्म होता लगता है. पर विवाह में भी अपेक्षाएं और सीमाएं वैसी ही होती हैं जैसी कि किसी कंपनी में. आर्थिक जिम्मेदारियां, स्वास्थ्य संबंधी फायदे और प्रौफिट मार्जिन विवाहित संबंध में भी देखे जा सकते हैं. अगर हम अपने रिश्ते को एक ग्रोइंग बिजनैस की तरह देखते हैं, जिस में भविष्य की योजनाएं होती हैं, तब हमारा विवाह भी ग्रो कर सकता है.

हमें भावनात्मक संसाधनों को निर्मित करने, वित्तीय स्थिरता को बढ़ाने और अनापेक्षित स्थितियों का सामना करने के लिए वैकल्पिक योजनाएं बनाने के लिए समय की आवश्यकता होती है. यही बात बिजनैस पर भी लागू होती है, जिस में सही तरह से बनाई गई योजनाएं ही लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करती हैं.

पार्टनरशिप डील है

अगर सीधे शब्दों में कहें तो मैरिज को एक प्रकार की पार्टनरशिप ही मानें जिसे आप सफल बनाना चाहती हैं. मैरिज काउंसलर दिव्या राणा का कहना है कि लक्ष्य बनाएं और एक टीम की तरह उसे पूरा करने के लिए सहमत हों. याद रखें कि सब से सफल पार्टनरशिप प्रत्येक पार्टनर की बेहतरीन व अनोखी विशेषताओं का उपयोग करती है. आप में से कोई फाइनैंस संभालने में ऐक्सपर्ट हो सकता है तो दूसरा प्लानिंग में. आप को एकदूसरे की इन विशेषताओं का वैसे ही सम्मान करना चाहिए जैसे कि बिजनैस पार्टनर आपस में करते हैं.

मनोवैज्ञानिक अनुराधा सिंह मानती हैं कि अपनी शादी को एक प्राइवेट कंपनी की तरह अच्छे कम्यूनिकेशन के साथ चलाना और उसे सफल बनाने की इच्छा रखना बहुत माने रखता है. एक अच्छा बिजनैसमैन अपने कर्मचारी को सम्मान देता है और उस का खयाल रखता है, इसी वजह से कर्मचारी उस का सम्मान करते हैं और उम्मीद से ज्यादा काम करते हैं.

इस वजह से बिजनैस सुगमता और व्यवस्थित ढंग से चलने के साथसाथ लाभ भी देता है. इसी तरह जब हम अपने साथी का सम्मान करते है, उस की हर छोटीबड़ी बात की परवाह करते हैं, हमें उन से बदले में कहीं अधिक मिलता है, कई बार उम्मीद से ज्यादा.

बिजनैस के साथ प्लैजर को भी मिक्स करें. बिजनैस को भी ऐंजौय करें और मैरिज को भी. इस से संतुलन बने रहने के साथसाथ जोश और उत्साह भी बना रहेगा जो निरंतर आगे बढ़ते रहने को प्रोत्साहित करेगा. विवाह अगर नीरस बन जाए तो जीवन की गाड़ी खींचना बोझ लगने लगता है, तो फिर दायित्वों के साथ थोड़ा प्लैजर भी क्यों न मिक्स कर लिया जाए?

वर्क ऐथिक्स हैं जरूरी

चाहे बिजनैस हो या मैरिज दोनों ही वर्क ऐथिक्स पर चलते हैं. दोनों में ही निवेश करना पड़ता है. जिस तरह से आप अपने पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं, उसी तरह मैरिज में भी आप को अपने संबंधों के पोर्टफोलियो को मैनेज और अपडेट करते रहना पड़ता है.

अगर आप अपने मनपसंद प्रोफैशन में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत कर सकते हैं तो क्या वही वर्क ऐथिक्स आप की मैरिज पर लागू नहीं होते? बात आश्चर्यजनक लग सकती है पर अपने कैरयर में आप ने जो सफलता व निपुणता हासिल की है, उसे ही मैरिज में ट्रांसफर कर दीजिए. फिर उसी तरह से एक मजबूत परिवार निर्मित कर पाएंगे जैसे कि आप ने अपनी कंपनी खड़ी की है.

ईगो को रखें दूर

मैरिज हो या बिजनैस, दोनों में ही अगर ईगो फैक्टर सिर उठाने लगे तो बिजनैस चौपट हो जाता है और मैरिज में टकराव या अलगाव झेलना पड़ जाता है. इसीलिए माना जाता है कि एक सही तरह से चलने वाला बिजनैस एक सही ढंग से चल रही शादी के समान है. दोनों ही अपनेअपने खिलाडि़यों के ईगो को बढ़ने नहीं देते.

ईगो वह संवेग है, जो युगल को अपने स्वार्थ से बाहर आने और एकदूसरे के प्रति पूर्ण समर्पित होने से रोकता है, चाहे युगल एकदूसरे को बहुत ज्यादा प्यार व सम्मान देने की चाह ही क्यों न रखते हों. इसी तरह बिजनैस के फेल होने का मुख्य कारण ईगो ही होता है, क्योंकि मालिक को वह अपने मातहतों के साथ सही ढंग से पेश आने या उन की परेशानियों को समझने से रोकता है.

कमिटमैंट है जरूरी

विवाह हो या बिजनैस दोनों ही जगह सहयोग अपेक्षित है. दोनों ही जगह अगर समझौते की स्थिति न हो तो असफलता हाथ लगते देर नहीं लगती है. समझौते के साथसाथ कम्यूनिकेशन एक ऐसा आधार है, जो दोनों को ही सफल बनाता है.

एकदूसरे को बदलने की कोशिश करने के बजाय दोनों को अपने को सुधारने पर काम करने को तैयार रहना चाहिए. कम्युनिकेशन के साथसाथ कमिटमैंट भी एक आवश्यक तत्त्व है शादी को निभाने के लिए वैसे ही जैसे वह बिजनैस को चलाने के लिए आवश्यक होता है. जहां कमिटमैंट नहीं वहां युगल में न विश्वास होगा न समर्पण की भावना और न ही जिम्मेदारी का भाव.

इसी तरह अगर बिजनैस में कमिटमैंट न हो तो बौस उस के प्रति न तो चिंतित रहेगा न ही उसे सुधारने के लिए मेहनत करेगा. ऐसी स्थिति में बिजनैस लंबे समय तक कायम नहीं रह पाएगा. वैसे ही शादी भी इस के अभाव में एक जगह पर आ कर ठहर जाएगी और पतिपत्नी दोनों के लिए एकदूसरे का साथ किसी सजा से कम नहीं होगा.

नारीवाद: जननी का था एक अनोखा व्यक्तित्व

मैं पत्रकार हूं. मशहूर लोगों से भेंटवार्त्ता कर उन के बारे में लिखना मेरा पेशा है. जब भी हम मशहूर लोगों के इंटरव्यू लेने के लिए जाते हैं उस वक्त यदि उन के बीवीबच्चे साथ में हैं तो उन से भी बात कर के उन के बारे में लिखने से हमारी स्टोरी और भी दिलचस्प बन जाती है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. मैं मशहूर गायक मधुसूधन से भेंटवार्त्ता के लिए जिस समय उन के पास गया उस समय उन की पत्नी जननी भी वहां बैठ कर हम से घुलमिल कर बातें कर रही थीं. जननी से मैं ने कोई खास सवाल नहीं पूछा, बस, यही जो हर पत्रकार पूछता है, जैसे ‘मधुसूधन की पसंद का खाना और उन का पसंदीदा रंग क्या है? कौनकौन सी चीजें मधुसूधन को गुस्सा दिलाती हैं. गुस्से के दौरान आप क्या करती हैं?’ जननी ने हंस कर इन सवालों के जवाब दिए. जननी से बात करते वक्त न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि बाहर से सीधीसादी दिखने वाली वह औरत कुछ ज्यादा ही चतुरचालाक है.

लिविंगरूम में मधुसूधन का गाते हुए पैंसिल से बना चित्र दीवार पर सजा था. उस से आकर्षित हो कर मैं ने पूछा, ‘‘यह चित्र किसी फैन ने आप को तोहफे में दिया है क्या,’’ इस सवाल के जवाब में जननी ने मुसकराते हुए कहा, ‘हां.’

‘‘क्या मैं जान सकता हूं वह फैन कौन था,’’ मैं ने भी हंसते हुए पूछा. मधुसूधन एक अच्छे गायक होने के साथसाथ एक हैंडसम नौजवान भी हैं, इसलिए मैं ने जानबूझ कर यह सवाल किया. ‘‘वह फैन एक महिला थी. वह महिला कोई और नहीं, बल्कि मैं ही हूं,’’ यह कहते हुए जननी मुसकराईं.

‘‘अच्छा है,’’ मैं ने कहा और इस के जवाब में जननी बोलीं, ‘‘चित्र बनाना मेरी हौबी है?’’ ‘‘अच्छा, मैं भी एक चित्रकार हूं,’’ मैं ने अपने बारे में बताया.

‘‘रियली, एक पत्रकार चित्रकार भी हो सकता है, यह मैं पहली बार सुन रही हूं,’’ जननी ने बड़ी उत्सुकता से कहा. उस के बाद हम ने बहुत देर तक बातें कीं? जननी ने बातोंबातों में खुद के बारे में भी बताया और मेरे बारे में जानने की इच्छा भी प्रकट की? इसी कारण जननी मेरी खास दोस्त बन गईं.

जननी कई कलाओं में माहिर थीं. चित्रकार होने के साथ ही वे एक अच्छी गायिका भी थीं, लेकिन पति मधुसूधन की तरह संगीत में निपुण नहीं थीं. वे कई संगीत कार्यक्रमों में गा चुकी थीं. इस के अलावा अंगरेजी फर्राटे से बोलती थीं और हिंदी साहित्य का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था. अंगरेजी साहित्य में एम. फिल कर के दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी करते समय मधुसूधन से उन की शादी तय हो गई. शादी के बाद भी जननी ने अपनी किसी पसंद को नहीं छोड़ा. अब वे अंगरेजी में कविताएं और कहानियां लिखती हैं. उन के इतने सारे हुनर देख कर मुझ से रहा नहीं गया. ‘आप के पास इतनी सारी खूबियां हैं, आप उन्हें क्यों बाहर नहीं दिखाती हैं?’ अनजाने में ही सही, बातोंबातों में मैं ने उन से एक बार पूछा. जननी ने तुरंत जवाब नहीं दिया. दो पल के लिए वे चुप रहीं.

अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने मुसकराहट के साथ कहा, ‘आप मुझ से यह सवाल एक दोस्त की हैसियत से पूछ रहे हैं या पत्रकार की हैसियत से?’’ जननी के इस सवाल को सुन कर मैं अवाक रह गया क्योंकि उन का यह सवाल बिलकुल जायज था. अपनी भावनाओं को छिपा कर मैं ने उन से पूछा, ‘‘इन दोनों में कोई फर्क है क्या?’’

‘‘हां जी, बिलकुल,’’ जननी ने कहा. ‘‘आप ने इन दोनों के बीच ऐसा क्या फर्क देखा,’’ मैं ने सवाल पर सवाल किया.

‘‘आमतौर पर हमारे देश में अखबार और कहानियों से ऐसा प्रतीत होता है कि एक मर्द ही औरत को आगे नहीं बढ़ने देता. आप ने भी यह सोच कर कि मधु ही मेरे हुनर को दबा देते हैं, यह सवाल पूछ लिया होगा?’’

कुछ पलों के लिए मैं चुप था, क्योंकि मुझे भी लगा कि जननी सच ही कह रही हैं. फिर भी मैं ने कहा, ‘‘आप सच कहती हैं, जननी. मैं ने सुना था कि आप की पीएचडी आप की शादी की वजह से ही रुक गई, इसलिए मैं ने यह सवाल पूछा.’’ ‘‘आप की बातों में कहीं न कहीं तो सचाई है. मेरी पढ़ाई आधे में रुक जाने का कारण मेरी शादी भी है, मगर वह एक मात्र कारण नहीं,’’ जननी का यह जवाब मुझे एक पहेली सा लगा.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ मैं ने कहा. ‘‘जब मैं रिसर्च स्कौलर बनी थी, ठीक उसी वक्त मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन की इकलौती संतान होने के नाते उन के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी मेरी बन गई थी. सच कहें तो अपने पिताजी के व्यवसाय को चलातेचलाते न जाने कब मुझे उस में दिलचस्पी हो गई. और मैं अपनी पीएचडी को बिलकुल भूल गई. और अपने बिजनैस में तल्लीन हो गई. 2 वर्षों बाद जब मेरे पिताजी स्वस्थ हुए तो उन्होंने मेरी शादी तय कर दी,’’ जननी ने अपनी पढ़ाई छोड़ने का कारण बताया.

‘‘अच्छा, सच में?’’ जननी आगे कहने लगी, ‘‘और एक बात, मेरी शादी के समय मेरे पिताजी पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे. मधु के घर वालों से यह साफ कह दिया कि जब तक मेरे पिताजी अपना कारोबार संभालने के लायक नहीं हो जाते तब तक मैं काम पर जाऊंगी और उन्होंने मुझे उस के लिए छूट दी.’’

मैं चुपचाप जननी की बातें सुनता रहा. ‘‘मेरी शादी के एक साल बाद मेरे पिता बिलकुल ठीक हो गए और उसी समय मैं मां बनने वाली थी. उस वक्त मेरा पूरा ध्यान गर्भ में पल रहे बच्चे और उस की परवरिश पर था. काम और बच्चा दोनों के बीच में किसी एक को चुनना मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन मैं ने अपने बच्चे को चुना.’’

‘‘मगर जननी, बच्चे के पालनपोषण की जिम्मेदारी आप अपनी सासूमां पर छोड़ सकती थीं न? अकसर कामकाजी औरतें ऐसा ही करती हैं. आप ही अकेली ऐसी स्त्री हैं, जिन्होंने अपने बच्चे की परवरिश के लिए अपने काम को छोड़ दिया.’’ जननी ने मुसकराते हुए अपना सिर हिलाया.

‘‘नहीं शंकर, यह सही नहीं है. जैसे आप कहते हैं उस तरह अगर मैं ने अपनी सासूमां से पूछ लिया होता तो वे भी मेरी बात मान कर मदद करतीं, हो सकता है मना भी कर देतीं. लेकिन खास बात यह थी कि हर औरत के लिए अपने बच्चे की परवरिश करना एक गरिमामयी बात है. आप मेरी इस बात से सहमत हैं न?’’ जननी ने मुझ से पूछा. मैं ने सिर हिला कर सहमति दी.

‘‘एक मां के लिए अपनी बच्ची का कदमकदम पर साथ देना जरूरी है. मैं अपनी बेटी की हर एक हरकत को देखना चाहती थी. मेरी बेटी की पहली हंसी, उस की पहली बोली, इस तरह बच्चे से जुड़े हर एक विषय को मैं देखना चाहती थी. इस के अलावा मैं खुद अपनी बेटी को खाना खिलाना चाहती थी और उस की उंगली पकड़ कर उसे चलना सिखाना चाहती थी. ‘‘मेरे खयाल से हर मां की जिंदगी में ये बहुत ही अहम बातें हैं. मैं इन पलों को जीना चाहती थी. अपनी बच्ची की जिंदगी के हर एक लमहे में मैं उस के साथ रहना चाहती थी. यदि मैं काम पर चली जाती तो इन खूबसूरत पलों को खो देती.

‘‘काम कभी भी मिल सकता है, मगर मेरी बेटी पूजा की जिंदगी के वे पल कभी वापस नहीं आएंगे? मैं ने सोचा कि मेरे लिए क्या महत्त्वपूर्ण है-कारोबार, पीएचडी या बच्ची के साथ वक्त बिताना. मेरी अंदर की मां की ही जीत हुई और मैं ने सबकुछ छोड़ कर अपनी बच्ची के साथ रहने का निर्णय लिया और उस के लिए मैं बहुत खुश हूं,’’ जननी ने सफाई दी. मगर मैं भी हार मानने वाला नहीं था. मैं ने उन से पूछा, ‘‘तो आप के मुताबिक अपने बच्चे को अपनी मां या सासूमां के पास छोड़ कर काम पर जाने वाली औरतें अपना फर्ज नहीं निभाती हैं?’’

मेरे इस सवाल के बदले में जननी मुसकराईं, ‘‘मैं बाकी औरतों के बारे में अपनी राय नहीं बताना चाहती हूं. यह तो हरेक औरत का निजी मामला है और हरेक का अपना अलग नजरिया होता है. यह मेरा फैसला था और मैं अपने फैसले से बहुत खुश हूं.’’ जननी की बातें सुन कर मैं सच में दंग रह गया, क्योंकि आजकल औरतों को अपने काम और बच्चे दोनों को संभालते हुए मैं ने देखा था और किसी ने भी जननी जैसा सोचा नहीं.

‘‘आप क्या सोच रहे हैं, वह मैं समझ सकती हूं, शंकर. अगले महीने से मैं एक जानेमाने अखबार में स्तंभ लिखने वाली हूं. लिखना भी मेरा पसंदीदा काम है. अब तो आप खुश हैं न, शंकर?’’ जननी ने हंसते हुए पूछा. मैं ने भी हंस कर कहा, ‘‘जी, बिलकुल. आप जैसी हुनरमंद औरतों का घर में बैठना गलत है. आप की विनम्रता, आप की गहरी सोच, आप की राय, आप का फैसला लेने में दृढ़ संकल्प होना देख कर मैं हैरान भी होता हूं और सच कहूं तो मुझे थोड़ी सी ईर्ष्या भी हो रही है.’’

मेरी ये बातें सुन कर जननी ने हंस कर कहा, ‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’

मैं भी जननी के साथ उस वक्त हंस दिया मगर उस की खुद्दारी को देख कर हैरान रह गया था. जननी के बारे में जो बातें मैं ने सुनी थीं वे कुछ और थीं. जननी अपनी जिंदगी में बहुत सारी कुरबानियां दे चुकी थीं. पिता के गलत फैसले से नुकसान में चल रहे कारोबार को अपनी मेहनत से फिर से आगे बढ़ाया जननी ने. मां की बीमारी से एक लंबी लड़ाई लड़ कर अपने पिता की खातिर अपने प्यार की बलि चढ़ा कर मधुसूधन से शादी की और अपने पति के अभिमान के आगे झुक कर, अपनी ससुराल वालों के ताने सह कर भी अपने ससुराल का साथ देने वाली जननी सच में एक अजीब भारतीय नारी है. मेरे खयाल से यह भी एक तरह का नारीवाद ही है. ‘‘और हां, मधुसूधनजी, आप सोच रहे होंगे कि जननी के बारे में यह सब जानते हुए भी मैं ने क्यों उन से ऐसे सवाल पूछे. दरअसल, मैं भी एक पत्रकार हूं और आप जैसे मशहूर लोगों की सचाई सामने लाना मेरा पेशा है न?’’

अंत में एक बात कहना चाहता हूं, उस के बाद जननी को मैं ने नहीं देखा. इस संवाद के ठीक 2 वर्षों बाद मधुसूदन और जननी ने आपसी समझौते पर तलाक लेने का फैसला ले लिया.

Fashion Style : एक ड‍ेनिम पैंट के साथ मैच कराएं ये 7 ट्रैंडी टौप

Fashion Style: स्‍टडी तो करनी है, एग्‍जाम में अच्‍छे मार्क्‍स भी लाने हैं लेकिन इसके लिए अपने लुक को बेचारा बनाने की जरूरत नहीं. अपनी एक या दो डेनिम पैंट्स के साथ ही बार बार नई डिजाइन के कुछ टौप कैरी करें और अपने लुक को ग्‍लैमरस अंदाज दें. कोचिंग क्‍लासेज में सवालों का जवाब देते समय आत्‍मविश्‍वास से भरी हुई नजर आएंगी और पार्टी में भी दिखेंगी ग्‍लैमरस. इन सात टौप्‍स को आप किसी भी ड‍ेनिम पैंट के साथ कैरी कर सकती हैं,

पैपलम टौप

अगर आप थोड़ी चबी या पल्‍म्‍प हैं, तो यह टौप आपके लिए परफेक्‍ट है, इसमें बौडी हैवी नहीं लगती. पेट के पास की जगह उभरी हुई नजर नहीं आती है, इस कारण बौडी स्लिम दिखती है. वैसे यह टौप स्लिम लड़कियों पर भी अच्‍छा लगता है. पेपलम टौप की खासियत है कि इसमें पेट के हिस्‍से में चुन्‍नटें होने की वजह से वहां का मोटापा छिप जाता है.

हौल्‍टर नेक टौप

कुछ लड़कियों को यह टौप कोचिंग क्‍लासेस के लिए हौट लग सकता है लेकिन बड़े शहरों में इसे अब कूल माना जाता है. हौल्‍टर नेक टौप में दोनों तरफ की स्‍लीव्‍स का कट गरदन के पास से गुजरता है. इससे पर्सनेलिटी को मौर्डन टच मिलता है. अगर इसे पहनने में झेंप होती हो, तो इसे पतले झीने से वाइट शर्ट के साथ पहनें. अब सर्दियां भी आ गई है, तो ऐसे में जैकेट के साथ भी इसे कैरी कर सकती हैं.

शर्ट क्रौप टौप

यह अभी भी फैशन की दुनिया में इन है. यह बहुत कौमन है. इसे ब्‍लू, ब्‍लैक, ग्रे किसी कलर के ड‍ेनिम के साथ पहना जा सकता है. इस तरह के टौप में लड़कियां बहुत ज्‍यादा बोल्‍ड नहीं लगती, उनकी स्‍मार्टनेस भी बरकरार रहती है. इसके साथ ही वह पढ़ाकू और प्रोफेशनल भी नजर आती हैं.

बस्टियर टौप

कई बार कौलेज में, कोचिंग क्‍लासेज में या हौस्‍टल के दोस्‍तों के साथ पार्टी करना हो, तो ऐसे मौकों के बस्टियर टौप बेस्‍ट औप्‍शन है. यह लुक को ग्‍लैमरस बनाने के साथ ही कंफर्ट फील कराता है. अगर इस तरह के टौप पहनने का मन है लेकिन यह अधिक रिवीलिंग लग रहा है, तो इसके साथ ट्रांसपेरेंट श्रग कैरी किया जा सकता है.

एवरग्रीन ट्यूब टौप

यह टौप उन गर्ल्‍स के लिए है जो हमेशा कंफर्ट महसूस करना चाहती है. सेलिब्रेटीज भी आमतौर पर इस टौप को अपने डेनिम के साथ कैरी करते नजर आ जाते हैं. अगर क्‍लास में देर हो रही हो या अचानक घर से बाहर निकलने की जरूरत आ जाए, तो इस टौप से बेहतर दूसरा कुछ नहीं हो सकता है.

वाइट स्‍लीवलेस टौप

एक वाइट स्‍लीवलेस टौप हर लड़की के पास होना चाहिए. यह आपके लुक को कूल टच देता है, वहीं इस टौप का स्‍लीवलेस होना आपको लिबरल सोच की लड़की बताता है. सबसे अच्‍छी बात है कि इस टौप को किसी भी कलर के डेनिम पैंट के साथ कैरी किया जा सकता है. वाइट टौप खरीदते समय फैब्रिक का जरूर ख्‍याल रखें. इस टौप को हमेशा क्‍लीन रखें ऐसे टौप को ब्‍लू डेनिम जैकेट के साथ पहन कर इंटरव्‍यू देने जा सकती हैं.

ग्रैफेटी स्‍लोगन टीशर्ट

इस तरह के टौप आज की यंग जेनरेशन के बारे में बहुत कुछ कहती है. वे किन विचारों के साथ है, वह अपनी कौन सी बात को कहना चाहते हैं और उनकी कौन सी बात अनसुनी कर दी जाती है, ये सब उनके टीशर्ट या शर्ट पर लिखे शब्‍दों से पता चल जाता है. पिछले कुछ सालों से इस टौप का ट्रेंड बढ़ा है.

एक वक्‍त था, जब लोग कहते थे कि “अभी पढ़ लो फैशन बाद में करना”. आज के जेनरेशन का स्‍लोगन है ‘वर्क हार्ड, पार्टी हार्डर’ यानि जम कर मेहनत करो और जीभर कर पार्टी करो इसलिए जरूरी है कि स्‍कूल, कौलेज या दफ्तर में मेहनत करने के साथ साथ लुक पर भी ध्‍यान दिया जाए.

अकेलेपन की वजह से इस बीमारी से जूझ रहे हैं Arjun Kapoor

हाल ही में सिंघम अगेन 3 में बतौर विलन नजर आए अर्जुन कपूर (Arjun Kapoor) अपने अभिनय करियर से ज्यादा अपने लव अफेयर को लेकर चर्चा में रहते हैं . फिलहाल अर्जुन कपूर के मलाइका अरोड़ा के साथ ब्रेकअप की खबरें चर्चा में है. खबर थी कि अर्जुन कपूर डिप्रेशन में जा रहे हैं. हाल ही में अर्जुन कपूर ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि बचपन से ही वह अकेलेपन की भावना के चलते मानसिक तौर पर बीमार चल रहे हैं.

अर्जुन के अनुसार उनकी मां के देहांत के बाद उन्हें अपने अकेले घर में जाना अच्छा नहीं लगता था. इसलिए वह ज्यादातर घर के बाहर रहते थे. अर्जुन के अनुसार वह फ्लेयर्स औटो इम्यून डिसऔर्डर हाशिमोटो की बीमारी से पीड़ित है.

हाशिमोटो बीमारी थायराइड का एक्सटेंशन है, यह थायराइड ग्रंथि को इफैक्ट करती है. जिसकी वजह से थकान और वजन बढ़ना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. अर्जुन इस बीमारी से निपटने के लिए थेरेपी की सहायता ले रहे हैं. पिछले दिनों मलाइका से ब्रेकअप के बाद वह डिप्रेशन में लग रहे हैं और उनका इलाज जारी है. अर्जुन के अनुसार अकेलेपन की वजह से इस बीमारी से उन्हें जूझना पड़ा है. मलाइका से ब्रेकअप के बाद भी अर्जुन डिप्रेशन में थे जिसे इलाज के जरिए बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. इस दौरान अर्जुन ने सिंघम अगेन की शूटिंग की. ताकि मौजूदा हालात से वह अपना ध्यान हटा सके.

Bigg Boss 18 : एकता कपूर ने घरवालों की लगाईं वाट, एम्पायर को लेकर फूटा गुस्सा

बिग बौस 18 ( Bigg Boss 18)  से दर्शकों का भरपूर एंटरटैनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में बिग बौस हाउस का बड़ा झगड़ा देखने को मिला. शो में दिखाया गया कि सारा अरफीन खान ने गुस्से में अपना आपा खो दिया और विवियन पर चिल्लाने लगीं. इसके बाद ईशा के बाल भी खींच दिए और और तकिया फेंका. घर में जबरदस्त तूतू-मैंमैं हुआ. लेकिन इस वीकेंड के वार में एकता कपूर ने बिग बौस हाउस में एंट्री लीं और कंटेस्टैंट्स की वाट लगा दीं. आइए बताते हैं इस वीकेंड के वार का लेटेस्ट अपडेट…

एकता कपूर ने हर किसी से पूछा तीखा सवाल

बिग बौस का एपिसोड शुरू होते ही एकता कपूर कंट्रैस्टेंट्स से रू-ब-रू हुईं और बताया कि इस हफ्ते घर में क्याक्या हुआ… विवियन डीसेना से लेकर चाहत पांडे तक हर किसी से एकएक कर के एकता कपूर ने सवाल पूछा.

विवियन को लेकर एकता कपूर का फूट गुस्सा

एकता कपूर ने विवियन डीसेना को लेकर कहा कि मैंने इनके साथ काम किया है, लेकिन घर में ये जो कर रहे हैं, उससे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वह कितने अच्छे हैं. इतना ही नहीं एकता ने विवियन को डांटा. उन्होंने कहा कि वह अपना प्वाइंट औफ व्यू नहीं रखते. एकता ने बाकी घरवालों से भी सवाल किया कि विवियन कैसे हैं, सभी ने अपनाअपना राय दिया.

एकता ने घरवालों को इक्वालिटी का मतलब समझाया

एकता कपूर ने कंटेस्टैंट्स को इक्वालिटी के बारे में समझाया. उन्होने कहा कि घर में वुमन कार्ड खेला जा रहा है. एकता ने चाहत पांडे को लेकर भी कई उदाहरण दिया. एकता कपूर ने फिर चाहत को समझाया और पूछा कि वो जो हर बात पर कहती हैं कि उनके साथ कुछ भी होता है वह एक लड़की हैं. एकता कपूर ने चाहत को समझाने के साथ उन्हें सच का पाठ भी पढ़ाया.

एटिट्यूड के कारण फंसे रजत

इसके बाद एकता अपनी फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ के बारे में बताया. बिग बौस हाउस में एक टास्क हुआ, जिसमें घरवाले रजत और विवियन में से बताते हैं कि किसका एटिट्यूड उसे डुबाएगा, ज्यादा लोगों ने रजत का नाम लिया.

सारा अरफीन खान को भी आड़े लिया

एकता कपूर ने सारा अरफीन खान को भी लताड़ा और उनसे पूछा कि वह घर में कल क्या कर रही थीं. ऐसे में सारा ने एकता को समझाने की बहुत कोशिश कीं, लेकिन एकता ने उन्हें गलत ही साबित किया.
सारा ने एकता के साथ भी बहसबाजी करनी शुरू कर दी कि वह सही थीं लेकिन एकता ने उनकी पोलपट्टी खोली और कहा कि वह गेम खेल रही हैं.

रजत की भी लगाई वाट

फिर एकता रजत दलाल से सवाल करती है और उनसे कहती हैं कि वो ये पूछकर गाली देते हैं कि अविनाश के घर में कौनकौन है. एकता ये भी कहती हैं कि अगर वह होतीं तो घर में आकर उन्हें बतातीं.

एकता कपूर के जाने के बाद बिग बौस हाउस में घरवालों को काफी चीजें क्लियर हुईं. सभी आपस में बैठकर बातें करने लगे कि कौन क्या कर रहा है और किसका क्या नजरिया है.

Samosa Recipe : संडे को बनाएं हरे मटर के समोसे और साथ में तीखी हरी चटनी 

Samosa Recipe: ताजे हरे मटर का मौसम आ गया है. बाजार से हरे मटर लाएं और हल्‍की सर्दी के इस मौसम में गरमागरम चाय और हरी चटनी के साथ हरे मटर के समोसे का आनंद उठाएं. अकसर समोसे को देख कर लगता है कि इसे बनाना कठिन है लेकिन ऐसा नहीं है, इसे आसानी से घर पर ही तैयार किए जा सकता हैं.

समोसे के कवर के लिए सामग्री  

  1 कप मैदा

   ¼ कप तेल 

   ¼ छोटा चम्‍मच नमक 

  गूंधने के लिए पानी

विधि :

  • सभी सामग्री को मिला कर समोसे का आटा गूंध लें.  
  • यह न तो काफी सख्‍त हो और न ही गीला हो.
  •  इसे 10 मिनट के लिए कपड़े से ढक कर रख दें. 


भरावन के लिए सामग्री :


1 कप हरा मटर (हल्‍का उबला हुआ) 


1 छोटा आलू (अच्‍छी तरह उबाल कर मसल लें)


1 बड़ा चम्‍मच तेल
  

¼  चम्मच जीरा

¼  चम्मच अजवायन

¼
 चम्मच काला जीरा

¼ चम्मच हींग

¼ चम्मच हल्दी पाउडर

¼ चम्मच लाल मिर्च पाउडर

¼ चम्मच धनिया पाउडर

¼  चम्मच गरम मसाला पाउडर 

¼  चम्मच अमचूर पाउडर (आमचूर)

 ¼ चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट

2-3 हरी मिर्च (बारीक कटी हुई)

¼ कप हरी धनिया (बारीक कटा हुआ)

नमक स्‍वादानुसार 

विधि :

  • कड़ाही में तेल गरम करके उसमें जीरे का तड़का लगाएं.
  • इसमें हींग डालें.
  • अब लहसुन और अदरक का पेस्‍ट मिला कर चलाएं.
  • इसमें कटी हुई हरी मिर्च, सारे मसाले, आमूचर पाउडर, नमक  डाल कर हल्‍का भूनें.
  • अब मसले हुए आलू को इसमें अच्‍छी तरह से मिलाएं.
  • उबली हुई मटर भी डाल कर मिक्‍स कर लें.
  • सबसे आखिरी में बारीक कटा धनिया डालें ताक‍ि उसकी फ्रेशनेस बनी रहे.
  • इस भरावन को थोड़ी देर के लिए ठंडा होने को रख दें.

    समोसा का कवर तैयार करें :      

  • गूंथे हुए आटे के छोटे छोटे गोले बना लें.  
  • हर गोले को बेलन से बिलकुल गोल रोटी की तरह बेल लें.  मैदे की रोटी बहुत ज्‍यादा पतली नहीं होनी चाहिए.
  • इस रोटी को बीच से दो भागों में काट लें.
  • दोनों आधे टुकड़ों को कोन का शेप दे दें.
  • इसमें मटर का मिक्‍सचर भर लें.
  • समोसे के खुले किनारे को पानी लगाकर ठीक से बंद करें ताकि यह तलने के दौरान नहीं खुले.    

तलने की तैयारी  :  

  • कड़ाही में तेल  डालें. तेल इतना हो कि समोसे अच्‍छी तरह डूब जाएं.
    आंच को मध्‍यम रखें.
  • जब तेल अच्‍छी तरह गरम हो जाए तो इसमें समोसे डालें.
  • तेज आंच पर नहीं तलें, तभी समोसा अंदर तक सिकेगा.
  • इसे पलटते रहे ताकि दोनों तरफ अच्‍छी तरह एकसमान रूप से सिक जाए .
  • सुनहरा हल्‍का लाल होने तक भूनें.
  • पेपर टौवल पर निकाल कर रखें ताकि अतिरिक्‍त तेल निकल जाए.

हरी चटनी 

सामग्री 

2 कप ताजी दही 

1 छोटा कटोरा कटा धनिया

4-5 पत्‍ता पुदीना

1 बारीक कटी हुई हरी मिर्च 

2 बारीक कटी लहसुन की कली 

नमक टेस्‍ट के अनुसार 

विधि :

  • ग्राइंडर में दही को छोड़ बाकी सभी चीजों को पीस लें. अब इसमें दो चम्‍मच दही डाल कर ग्राइंडर चला लें.
  • अब इस पेस्‍ट को बाकी बची हुई दही में मिला कर मिक्‍स करें.  

गरमागरम समोसे के साथ हरी चटनी का आनंद उठाएं.  यह पौष्टिकता से भरे होने के साथ ही टेस्‍टी होंगे. बाहर से लाए समोसे में उसकी शुद्धता का डर बना रहता है, जो घर के समोसे में नहीं रहता इसलिए मजे से खाएं.  

एक ही छत के नीचे : बहन की शादीशुदा जिंदगी बचाने के लिए क्या फैसला लिया उसने?

परसों ही मेरी बड़ी बहन 10 दिन रहने को कह कर आई थीं और अभी कुछ ही देर पहले चली गई हैं. मुझ से नाराज हो कर अपना सामान बांधा और चल दीं. गुस्से में अपना सामान भी ठीक तरह से नहीं संभाल पाईं. इधरउधर पड़ी रह गई चीजें इस बात का प्रमाण हैं कि वे इस घर से जल्दी से जल्दी जाना चाहती थीं. कितनी दुखी हूं मैं उन के इस तरह अचानक चले जाने से. उन्हें समझा कर हार गई लेकिन दीदी ने कभी किसी को सोचनेसमझाने का प्रयत्न ही कहां किया है? उन का स्वभाव मैं अच्छी तरह जानती हूं. बचपन से ही झगड़ालू किस्म की रही हैं. क्या घर में, क्या स्कूलकालेज में, क्या पासपड़ोस में, मजाल है उन्हें जरा भी कोई कुछ कह जाए. हर बात का जवाब दे देना उन की आदत है.

अचानक परसों रात 10 बजे के करीब दीदी ट्रेन से आई थीं, उसी शाम सुबोध मुझे पर खूब बिगड़ चुके थे. हर घटना को तूल दे देना व उस के लिए मुझे ही दोषी ठहराना इन की आदत है. घर में कुछ जरा सा भी अवांछित घट जाए, ये मुझे ही उस के लिए दोषी ठहराते हैं. रिषी को जरा सी ठंड लग जाए या उस से कुछ टूट जाए, इन के मुंह से यही निकलेगा, ‘‘सब तुम्हारी लापरवाही के कारण हुआ है. ठीक है नौकरी कर रही हो पर फिर भी एक बच्चे की देखभाल तो करनी ही है. मुझे फोन कर देती कि आया से नहीं संभल रहा तो मैं छुट्टी ले कर आ जाता.’’

उस दिन रिषी ने बैठक मैं रखा एक डैकोरेशन पीस जो महंगा था मेरी पूर्ण सतर्कता के बावजूद तोड़ दिया. वह प्रतिमा ये पिछले वर्ष मुंबई से लाए थे. दीवाली से 2-4 दिन पहले ही वह मूर्ति इन्होंने बैठक में रखे स्टूल पर रख दी थी. उस समय मैं ने इन से अनुरोध भी किया था कि मूर्ति को इतने नीचे स्थान पर न रखें. कहीं ऊपर रखें ताकि रिषी उस तक न पहुंच सके. परंतु अपनी आदत के अनुसार इन्होंने तब मेरी बात नहीं सुनी उलटे कहा, ‘‘तुम यदि ध्यान रखोगी तो रिषी बैठक में नहीं पहुंच पाएगा.’’

रिषी ने जब से नई प्रतिमा को बैठक में रखा देखा था, उसे बेचैनी हो रही थी कि किस प्रकार उसे छू कर देखे. उस दिन वह मेरी आंख बचा कर किसी तरह बैठक में घुस ही गया और मूर्ति को स्टूल से गिरा दिया. मेरा कलेजा धक से हो गया. मैं जानती थी कि सुबोध पूरा दोष मुझ पर ही मढ़ेंगे.

सचमुच शाम दफ्तर से लौट कर वे मुझे पर खूब चिल्लाए. घर में खाना तक नहीं बना. रिषी को बगल में ले कर मैं भी भूखी ही चारपाई पर जा लेटी थी. इन की अकारण झल्लाहट के कारण मन इतना दुखित हुआ कि मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और फिर न जाने रोतेरोते मैं कब सो गई.

अपर्णा दीदी ने दरवाजा खटखटाया तो आंख खुली. ऐसे तनाव भरे मौके पर दीदी के आकस्मिक आगमन से मन में संतोष हुआ. इन के आने से घर का तनाव समाप्त होगा, यही सोच कर मैं दीदी का सामान अंदर लाने के पश्चात सहर्ष रसोई में चाय बनाने चली गई.

उन के आने से यद्यपि मेरे चेहरे पर अनजाने ही प्रसन्नता की लहर दौड़ गई थी, परंतु मेरी सूजी हुई आंखों को देख कर उन्होंने सही अनुमान लगा लिया कि मैं रोती रही हूं. वे मेरे पीछे ही रसोई में आ गईं और पूछने लगीं, ‘‘दीपा, तुझे देख कर तो लग रहा है जैसेकि तू बहुत रोई है, क्या हुआ है तुझे?’’

मेरी आंखों से 2 बूंद आंसू अनजाने ही टपक पड़े, जिन्हें मैं ने दीदी की नजरों से छिपा कर झट से अपनी साड़ी के आंचल से पोंछ डाला. वास्तव में मैं तो चाहती थी कि दीदी को हमारे घर की स्थिति का ज्ञान ही न हो परंतु उन्हें सामने पा कर व उन के कुछ पूछने पर न जाने क्यों मेरी रुलाई फूट पड़ी.

तब तक सुबोध भी उठ कर रसोई के द्वार तक पहुंच गए थे. इन के चेहरे पर भी तनाव की रेखाएं स्पष्ट थीं. इन्होंने दीदी को प्रणाम किया और उन्हें ले कर बैठक में चल गए, जहां टूटी हुई मूर्ति के टुकड़े बिखरे पड़े थे.

मैं चाय ले कर बैठक में पहुंची तो ये मेरी शिकायतों की पूरी फाइल दीदी के सामने खोले बैठे थे, ‘‘देखिए, आप की दीपा की लापरवाही का प्रमाण. मेरी लाई गई मूर्ति के ये टुकड़े स्पष्ट बता रहे हैं कि यह एक बच्चे की निगरानी भी ढंग से नहीं कर सकती. पूरा दिन घर में रहती, तब भी आए दिन कुछ न कुछ नुकसान होता है.’’

दीदी आश्चर्य से मेरी ओरी देखने लगीं. उन का अनुमान था कि अपनी उस शिकायत से मैं बहुत अधिक उत्तेजित हो जाऊंगी, पर मैं शांत बनी ज्यों की त्यों खड़ी रही तो उन्होंने मुझे आंखों ही आंखों में बुरी तरह घूरा, जैसेकि चुप रह कर मैं ने बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो. मैं ने अपनी नजरें झुका लीं और उठ कर चुपचाप रसोई में खाना बनाने चल दी.

सुबोध की इस चिड़चिड़ाहट व झल्लाहट का कारण मैं समझती न होऊं, बात ऐसी नहीं है. मैं जानती हूं कि इन के परिवार का हर व्यक्ति पश्चिमी विचारों से प्रभावित है, ‘हर व्यक्ति को अपनी आजीविका स्वयं कमानी चाहिए,’ इन के परिवार के हर सदस्य की यही मान्यता है. मेरी सास अभी भी कालेज में पढ़ाती हैं. इन की

दोनों बहनें सरकारी दफ्तरों में स्टेनो हैं. अत: मेरा घर में बैठना सब को खलता है. जब से रिषी कुछ बड़ा हुआ है, सुबोध समाचारपत्रों में रिक्त स्थान देख कर मुझे बताते रहते हैं, ‘‘तुम भी आवेदन पत्र दे दो न, रिषी अब 4 साल का होने जा रहा है. घर बैठ कर मक्खियां मारने से तो अच्छा ही रहेगा,’’

मुझे आश्चर्य तो तब होता है जब वे मुझे नौकरी के लिए किसी दूरस्थ स्थन में भी भेजने को तैयार हो जाते हैं पर मैं निर्णय कर चुकी हूं कि नौकरी करने के लिए न तो मैं रिषी को असहाय छोड़ूंगी, न इन की छाया छोड़ कर कहीं दूसरी जगह ही जाऊंगी. अत: जब भी ये किसी कारण मुझ पर झल्लाते हैं तो मैं चुप ही रहती हूं. हर बार यही प्रयत्न करती हूं कि घर का तनाव किसी भी तरह शीघ्रातिशीघ्र दूर हो जाए.

रात 12 बजे खापी कर जब हम सोने के कमरे में पहुंचे तो दीदी ने धीरे से मेरे कान में कहा, ‘‘समझ में नहीं आता कि सुबोध की इतनी बातें सुन कर भी तू चुप कैसे रह लेती है. कैसे रह रही है तू इस के साथ? मायके में जा कर भी कभी किसी से कुछ नहीं बताती. किस मिट्टी की बनी है तू?’’

मुझे डर था कि कहीं दीदी की बातों की भनक भी सुबोध के कान में पड़ गई तो अनर्थ हो जाएगा. मैं ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘दीदी, ये कुछ भी कहते रहें, आप इन के सामने मेरे पक्ष में कभी कुछ न कहें. अकारण ही हमारे जीवन में जहर घुल जाएगा.’’

‘‘तू तो हमेशा से ही मिट्टी की माधो रही है. आखिर डर किस बात का है तुझे? किसी छोटेमोटे घर की तो है नहीं. पिताजी ने 3-3 फ्लैट किस लिए बना रखे हैं? पिछली बार कह तो रहे थे कि एक अजीत के नाम करेंगे, बाकी दोनों हम दोनों के.’’

मैं दीदी के विचारों पर मन ही मन हंस रही थी. पिताजी ने दोनों फ्लैट किराए पर देने के लिए बनवाए थे न कि हम बेटियों के लिए, यह मैं अच्छी तरह जानती हूं.

मुझे चुप देख कर दीदी फिर बोलीं, ‘‘हम से तो भई किसी के दबाव में नहीं रहा जाता. तू तो जानती ही है कि मैं ने तो ससुराल पहुंचते ही अपना अलग घर बना लिया था. मेरी सास तो बातबात पर हिदायतें देना ही जानती थीं.’’

‘‘लेकिन दीदी एक मां को उस के बेटे से अलग कर के आप ने कुछ अच्छा तो किया नहीं.’’

दीदी ने झुंझालाहट भरे शब्दों में कहा, ‘‘तू बहुत अच्छा कर रही है न, अपने लिए? इसी तरह सुबोध के अंकुश में रही तो देख लेना 2-4 साल में ही तेरा बुरा हाल हो जाएगा. लेकिन अब मैं तुझे यहां नहीं रहने दूंगी.’’मैं मन ही मन सोचने लगी, एक घर के 2 घर बनाने से क्या लाभ? क्या इस से दांपत्य जीवन की सब विषमताएं दूर हो जाती हैं?

नहीं बल्कि इस तरह तो विषमताओं व कटुताओं की एक नई कड़ी शुरू होती है, दीदी को इस का आभास चाहे अभी न हो, पर भविष्य में अवश्य होगा.

मैं नींद का बहाना कर के चुपचाप लेट गई ताकि दीदी हमारे बारे में कुछ और न कहें.

अगले दिन प्रात:काल की बातचीत के दौरान मैं ने दीदी से पूछा, ‘‘आप जीजाजी के पास से कब आईं? बंटू व बबली को किस के पास छोड़ आई हैं?’’

‘‘तू तो न जाने किस दुनिया में रहती है? मैं तो 2 महीने पहले ही मेरठ में मां के पास आ गई हूं. मुझे मेरठ की एक बनेबनाए कपड़ों की फर्म में नौकरी भी मिल गई है. यहां भी अपनी फर्म के ही काम से आई हूं.’’

मेरा मुंह आश्चर्य से खुला रह गया, ‘‘आप को नौकरी करने की क्या आवश्यकता थी? बंटू, बबली व जीजाजी का क्या होगा?’’

दीदी लापरवाही से हंसीं, ‘‘तू सोचती है कि बच्चे हमें कुछ भी करने से रोकते हैं. मन में पक्की लगन हो तो क्या रास्ता नहीं मिल सकता? आखिर इतने क्रैचें, नर्सरी व होस्टल किसलिए हैं?’’

बबली व बंटू के मासूम चेहरे मेरी आंखों के आगे नाचने लगे. दोनों बच्चे अभी से मां के प्यार के अभाव में कैसे रहेंगे? मैं दुखित हो उठी. बबली तो अभी 4 वर्ष की भी नहीं हुई है. हरदम दीदी की गोद में लिपटी रहती थी. मैं ने और भी दुखित हो कर उन से पूछा, ‘‘जीजाजी को भी आप अकेला छोड़ आई हैं. उन को अपने व्यस्त जीवन में आप की बहुत आवश्यकता है दीदी…’’

दीदी व्यंग्य से हंसीं, ‘‘उन्हें भी तू ने बच्चा ही समझ लिया है जो अपनी देखभाल खुद नहीं कर सकेंगे? बच्चों को आवासीय विद्यालय में डाला ही इसलिए था कि मैं भी नौकरी कर सकूं. फिर क्या मैं उन के लिए बंध कर घर में बैठी रहती?’’

दीदी के विचारों से मेरा मन दुखित हो उठा. लेकिन उन्हें कुछ भी कहना या समझना व्यर्थ था.

थोड़ी देर चुप रह कर वे फिर बोलीं, ‘‘मैं तो तुझे भी यही सलाह दूंगी कि तू भी नौकरी कर ले. सुबोध जब खुद चाहता है कि तू कमाने लगे तो तू अवसर का लाभ क्यों नहीं उठाती? तू नौकरी करने लगेगी तो यह प्रताड़ना जो तुझे अकारण मिल रही है, कभी नहीं सहनी पड़ेगी. तब तो तू भी सुबोध को 4 बातें सुनाने की हकदार हो जाएगी.’’

तब मैं ने कुछ कठोर पड़ते हुए कहा, ‘‘दीदी आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए.’’

तब वह एकदम क्रोधित हो कर बोलीं, ‘‘तू क्या सोचती है कि मैं तुझे यों घुटघुट कर मरने दूंगी? देख लेना, अभी मेरठ जा कर सब पिताजी को बताऊंगी. वही तेरा प्रबंध करेंगे.’’

बस फिर वे पूरा दिन दिल्ली में अपना कामकाज करती रहीं. रात को फिर देर से लौटीं. थोड़ाबहुत खाया और चुपचाप सो गईं. अगले दिन प्रात:काल ही उन्होंने अपना सामान जल्दीजल्दी बटोरा और चली गईं.

मेरा मन सशंकित रहने लगा है कि मुझे व सुबोध को ले कर दीदी मायके में जा कर न जाने क्या उलटासीधा बताएंगी. सुबोध के विरुद्ध घर के पूरे सदस्यों को भड़काएंगी और मेरे प्रति हरेक के दिल में व्यर्थ की सहानुभूति जगाएंगी. यद्यपि मैं जानती हूं कि सुबोध का व्यवहार मेरे प्रति रूखा ही रहता हैऔर जब एक बार रुष्ट होते हैं तो महीनों अपने अहं के कारण बोलने में भी कभी पहल नहीं करते. लेकिन केवल इसी कारण तो अपना घर नहीं छोड़ा जाता.

होली अभी आ कर गई है, बच्चों की छुट्टियां निकट आ रही हैं. इन का व्यवहार यदि तब भी यही रहा तो मेरे लिए इस वर्ष का अवकाश तो सूना ही बीत जाएगा. रिषी ने जिस दिन से प्रतिमा तोड़ी है, इन का उखड़ापन दूर नहीं हो पाया. कई बार मन में आता है कि कितना अच्छा रहे कि इस बार अवकाश में मायके जा कर स्वच्छंदतापूर्वक रहूं.

आज ही डाकिया पत्र दे गया. पिता का पत्र देख कर मन खुशी से झूम उठता. उन्होंने बच्चों की गरमी की छुट्टियां मायके में ही बिताने का आग्रह किया है.

मगर दूसरे ही क्षण एक विचार से मन अत्यंत क्षुब्ध हो उठता है. पिताजी ने केवल मुझे ही क्यों बुलाया? ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ था. अवश्य ही दीदी ने सुबोध को

ले कर पिताजी के मन में कुछ जहर घोला है. ऐसी स्थिति में क्या मेरा जाना उचित रहेगा? सुबोध को अवकाश के दिनों में यों अकेला छोड़ जाऊं और वहां सब मेरे पति के विरुद्ध कुछ न कुछ मुझसे कहें तो मेरा दिल क्या खाक छुट्टी मना पाएगा?

मुझे यही निर्णय लेना पड़ा कि  इस बार छुट्टियों में यहीं पर इकट्ठे रहेंगे. अपने घर की सफाई व लिपाईपुताई भी करा लेंगे. पिछली बार दीवाली पर करा नहीं पाए थे. अवकाश में रिषी को ये कितने उत्साह से बाजार ले जाते हैं. कितना सामान खरीदवा देते हैं. साथ ही मेरे लिए भी तो कुछ न कुछ ले कर आते हैं. मेरा तनमन सिहर उठा.

दोपहर को अपने पास रखे कुछ रुपयों से इन के लिए एक नई कमीज बाजार से ले आई. जब ये मुझे कुछ उपहार देंगे तो मैं भी इस बार इन्हें कुछ न कुछ दे कर आश्चर्यचकित कर दूंगी. मैं ने इसी विचार से कमीज अपने बक्स में रख दीं.

मेरी आशा के अनुरूप इस बार की गरमी की छुट्टियों के पहले ही दिन ये मुझे बाजार ले गए और इन्होंने एक कीमती साड़ी मुझे ले कर दी और अपने पिछले व्यवहार पर खेद प्रकट करते हुए मेरे कानों में बुदबुदाए, ‘‘दीपा, मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी सहनशील हो. अपनी एक छोटी सी जिद के पीछे कि तुम्हें नौकरी करनी ही चाहिए, मैं अकारण ही बातबात में तुम पर झल्लाता रहा. तुम्हारी दीदी से जो तुम्हारी बातें हुईं, उन्होंने तो मेरी आंखें ही खोल दीं. अब कभी ऐसा नहीं होगा,’’ रात साड़ी देते हुए सुबोध ने प्रेमविह्वल हो मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. कितनी सुखद स्मृतियां छोड़ गई हैं बच्चों की गरमियों की छुट्टियों की यह पहली रात. उस दिन से इन के व्यवहार में पूर्णत: तबदीली आ गई.

अभी सप्ताह भर ही हुआ था कि पिताजी का वह पत्र न जाने कैसे इन के हाथ लग गया.

ये मेरे समीप आ कर बोले,  ‘‘पिताजी ने न जाने किस उद्देश्य से तुम्हें बुलाया है, चाहे तो 2-4 दिन के लिए मेरठ हो आओ.’’

मेरा मन भी दुविधा में था. मैं भी मेरठ जाने की इच्छुक थी. अगले ही दिन रविवार को इन्होंने मुझे व रिषी को मेरठ की बस में बैठा दिया.

रास्तेभर मैं ने यही अंदाजा लगाया कि दीदी ने मुझे व सुबोध को ले कर सब को खूब भड़काया होगा और वहां यही योजना बन रही होगी कि या तो मुझे सुबोध से अलग कर दिया जाए या इन के व्यवहार के लिए इन्हें कुछ भलीबुरी सुनाई जाए.

धड़कते दिल से घर पहुंची तो केवल दीदी ही वहां उपस्थित थीं. सब लोग किसी के यहां शादी में गए हुए थे.

मुझे अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में देख कर दीदी को आश्चर्य हुआ. बोलीं, ‘‘मायके में पहुंचते ही तू अपने दिल का सब हाल छिपा लेती है, कैसी खुश दिल रही है, लेकिन मैं ही जानती हूं कि बच्चों की छुट्टियों के ये दिन तेरे लिए कितने अंधकारमय बीत रहे होंगे.’’

‘‘सच पूछो तो मेरे विवाहित जीवन में यह पहला मौका था, जिसे मैं हमेशा याद रखूंगी. दीदी आप नहीं जान पाएंगी कि…’’

‘‘तू तो मायके में पहुंचते ही ?ाठ बोलने लगती है. कैसे विश्वास करूं मैं तुझ पर?’’

‘‘आप को यदि विश्वास नहीं हो रहा है तो मत मानिए. मुझे मेरे ही हाल पर छोड़ दीजिए. आप अपनी बताइए? नौकरी लगने के बाद जीजाजी को कोई पत्र लिखा या नहीं?’’

उन के चेहरे पर एकदम गहरी उदासी छा गई, ‘‘दीपा, वह पत्र पिताजी के नाम से मैं ने ही तुझे लिखा था. पिताजी से तो मैं ने केवल उन के हस्ताक्षर भर करवा लिए थे. मैं चाहती हूं कि तू मेरे साथ रहने लगे तो मैं यहां से अलग कोई किराए का मकान देख लूं. तेरी नौकरी भी मैं लगवा दूंगी. यहां मायके में तो अब रहना मुश्किल हो गया है.’’

‘‘दीदी, मैं यदि कभी नौकरी की आवश्यकता समझूंगी भी तो सुबोध से अलग रह कर किसी भी हालत में नौकरी नहीं करूंगी और अब तो वे भी मुझे कहीं और भेजने वाले नहीं हैं,’’ मैं ने पूर्ण विश्वास से दीदी के नेत्रों में झांका तो एक बार फिर उन के चेहरे पर आत्मग्लानि के भाव उमड़ पड़े, शायद अपनी मूर्खता के लिए स्वयं को ही कोस रही थीं.

मैं ने उन्हें समझने के उद्देश्य से कहा, ‘‘मैं तो आप को भी यही राय दूंगी कि आप जीजाजी के पास चली जाएं. अपने दोनों बच्चों का बचपन अपनी देखरेख में बीतने दें. उस के पश्चात भी यदि आप के पास समय हो तो पुणे में ही कोई काम ढूंढ़ सकती हैं.’’

दीदी की आंखें छलक आईं. आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘तू तो मेरा स्वभाव जानती ही है. हर बात पर तर्क करने की मेरी आदत ने उन्हें भी बोलने पर विवश कर दिया और वे गुस्से में न जाने मुझ से क्याक्या बोल गए.’’

‘‘और आप उन्हें छोड़ कर चली आईं? क्या पति का घर छोड़ने से जिंदगी की राहें सहज हो जाती हैं? आप तो मायके में रह रही हैं, कैसा लग रहा है आप को?’’

दीदी चुपचाप आंसू टपकाने लगीं, ‘‘मैं ने कई बार अपने कानों से सुना है, दीपा, मां बड़े भैया से कह चुकी हूं कि मेरा यहां रहना उन्हें बहुत बुरा लगता है. लोगों के प्रश्नों के उत्तर देतेदेते परेशान हो गई हूं. दूसरे उन्हें 4 हजार रुपए महीने की आर्थिक हानि हो रही है. जिन दो कमरों में मैं रह रही हूं, उन से उन्हें इतना किराया आसानी से मिल सकता है, इसीलिए तो मैं चाह रही थी कि तू यदि मेरे साथ आ जाए तो कोई और जगह देख लें.’’

मैं समझ गई कि अपनी जिद्द के पीछे दीदी जीजाजी के पास नहीं जाना चाहतीं. अकेले रहना कठिन लग रहा था. सुबोध के व्यवहार को देख ही आई थीं. अत: उस का लाभ उठाना चाहती थीं. अन्य कोई रास्ता उन्हें नहीं सूझा.

मैं ने उन्हें सुझाव दिया, ‘‘आप के मन में डर है कि आप के लौटने पर जीजाजी की न जाने क्या प्रतिक्रिया हो. मगर वे बेहद संवेदनशील हैं. यदि आप उन्हें छोड़ कर न आई होतीं तो निश्चय ही वे अपने कहे के लिए स्वयं ही खेद प्रकट कर के कभी का आप को मना चुके होते. मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे आप का स्वागत मुसकराहट के साथ ही करेंगे.’’

दीदी कुछ देर सोचती रहीं. फिर नम्र शब्दों में बोलीं, ‘‘तू ठीक कहती है दीपा, उम्र

में मुझ से छोटी होने पर भी तू इतनी समझदार रही. सुबोध का स्वभाव भी तूने अपनी सहनशीलता व समझदारी से बदल दिया, जबकि मैं तेरे जीजाजी जैसे सहनशील व्यक्ति को भी यों ही छोड़ आई और आज मुझे लगता है कि उन के बिना मेरा कहीं कोई ठिकाना नहीं. उन के पास लौट जाने में ही मेरा हित है.’’

इन शब्दों के साथ ही दीदी आंखों में प्रायश्चित्त के आंसू पोंछते हुए एकदम उठ कर खड़ी हो गईं, ‘‘जब तक सब लोग लौट कर आएं, मैं अपना सामान बांध लेती हूं. तू खुद देखना कि मां के चेहरे पर मेरे लौट जाने के निर्णय को सुन कर कितनी प्रसन्नता दिखाई देगी.’’

‘‘इस में अस्वाभाविक भी क्या है? हर मां यही चाहेगी कि उस की विवाहिता बेटी अपने पति के साथ ही सुखचैन से रहे. उन के बीच किसी प्रकार का मतभेद न हो और एक ही छत के नीचे दोनों का जीवन सुख से बीते.’’ ‘‘तू वास्तव में बहुत समझदार है, दीपा,’’ अपर्णा दीदी ने यह कह कर मुझे गले से लगा लिया.

ऐसा भी होता है बौयफ्रैंड: प्रिया के साथ दीपक ने क्या किया

सफेद कपड़े पहने होने के बावजूद उस का सांवला रंग छिपाए नहीं छिप रहा था. करीब जा कर देखने से ही पता चलता था कि उस के गौगल्स किसी फुटपाथी दुकान से खरीदे गए थे. बालों पर कई बार कंघी फिरा चुका वह करीब 20-22 साल की उम्र का युवक पिछले एक घंटे से बाइक पर बैठा कई बार उठकबैठक लगा चुका था यानी कभी बाइक पर बैठता तो कभी खड़ा हो जाता. काफी बेचैन सा लग रहा था. इस दौरान वह गुटके के कितने पाउच निगल चुका, उसे शायद खुद भी न पता होगा. गहरे भूरे रंग के गौगल्स में छिपी उस की निगाहों को ताड़ना आसान नहीं था. अलबत्ता जब भी उस ने उन्हें उतारने की कोशिश की, तो साफ जाहिर था कि उस की निगाहें गर्ल्स स्कूल की इमारत के दरवाजे से टकरा कर लौट रही थीं. तभी उस दरवाजे से एक भीड़ का रेला निकलता नजर आया. अब तक बेपरवाह वह युवक बाइक को सीधा कर तन कर खड़ा हो गया.

इंतजार के कुछ ही पल बेचैनी में गुजरे, तभी पसीनापसीना हुए उस लड़के के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उस ने एक बार फिर बालों पर कंघी फिराई और गौगल्स ठीक से आंखों पर चढ़ाए. मुंह की आखिरी पीक पिच्च से थूकते हुए होंठों को ढक्कन की तरह बंद कर लिया.

तेजी से अपनी तरफ आती लड़की को पहचान लिया था, वह प्रिया ही थी. प्रिया खूबसूरत थी और उस के चेहरे पर कुलीनता की छाप थी. खूबसूरत टौप ने उस में गजब की कशिश पैदा कर दी थी. बाइक घुमाते हुए उस ने पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसे एहसास हो गया था कि प्रिया बाइक की पिछली सीट पर बैठ चुकी है. तभी उसे अपनी पीठ पर पैने नाखून चुभने का एहसास हुआ और हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया, ‘‘प्लीज, जल्दी करो, मेरी सहेलियों ने देख लिया तो गजब हो जाएगा?’’

‘‘बाइक पर किक मारते ही लड़के ने पूछा, ‘‘कहां चलना है, सिटी मौल या…’’

फर्राटा भरती बाइक के शोर में लड़के को सुनाई दे गया था, ‘‘कहीं भी…जहां तुम ठीक समझो?’’

‘‘कहीं भी?’’ प्रिया की आवाज में घुली बेचैनी को वह समझ गया था. फिर भी मजाकिया लहजे में बोला. ‘‘तो चलें वहीं, जहां पहली बार…’’ बाकी शब्द पीठ पर चुभते नाखूनों की पीड़ा में दब गए. लेकिन इस बार उस के कथन में मजाक का पुट नहीं था… ‘‘तो फिर सिटी मौल चलते हैं?’’

‘‘नहीं, वहां नहीं,’’ प्रिया जैसे तड़प कर बोली, ‘‘तुम समझते क्यों नहीं दीपक, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

तभी दीपक ने अपना एक हाथ पीछे बढ़ा कर लड़की की कलाई थामने की कोशिश की तो उस ने अपना गोरा नाजुक हाथ उस के हाथ में दे दिया और उस की पीठ से चिपक गई? दीपक को बड़ी सुखद अनुभूति हुई, तभी बाइक जोर से डगमगाई. उस ने फौरन लड़की का हाथ छोड़ दिया और बाइक को काबू करने की कोशिश करने लगा.

‘‘क्या हुआ?’’ लड़की घबरा कर बोली. अब वह दीपक की पीठ से परे सरक गई.

‘‘बाइक का पहिया बैठ गया मालूम होता है,’’ दीपक बोला, ‘‘शायद पंचर है,’’ उस ने बाइक को सड़क के किनारे लगाते हुए खड़ी कर दी. अब तक वे शहर से काफी दूर आ चुके थे. यह जंगली इलाका था और आसपास घास के घने झुरमुट थे.

तब तक प्रिया उस के करीब आ गई थी. उस ने आसपास नजर डालते हुए कहा, ‘‘अब वापस कैसे चलेंगे?’’ उस के स्वर में घबराहट घुली थी. लड़के ने एक पल चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा, चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. दीपक ने प्रिया की कलाई थाम कर उसे अपनी तरफ खींचा. प्रिया ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया, लेकिन अगले ही पल अर्थपूर्ण स्वर से बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘तनहाई हो, लड़कालड़की दोनों साथ हों और मिलन का अच्छा मौका हो तो लड़का क्या करेगा?’’ उस ने हाथ नचाते हुए कहा.

प्रिया छिटक कर दूर खड़ी हो गई. ‘‘ये सब गलत है, यह सबकुछ शादी के बाद, अभी कोई गड़बड़ नहीं. अभी तो वापसी की जुगत करो,’’ प्रिया ने बेचैनी जताई, ‘‘कितनी देर हो गई? घर वाले पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगी?’’

दीपक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘यह तुम सोचो,’’ इस के साथ ही वह ठठा कर हंस पड़ा और लपक कर प्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘ऐसा मौका बारबार नहीं मिलता, इसे यों ही नहीं गंवाया जा सकता?’’

‘‘लेकिन जानते हो, अभी मेरी उम्र शादी की नहीं है. अभी मैं सिर्फ 15 साल की हूं, इस के लिए तुम्हें 3 साल तक  इंतजार करना होगा,’’ प्रिया ने उस की गिरफ्त से मुक्त होने की कोशिश की.

‘‘लेकिन प्यार करने की तो है,’’ और उस की गिरफ्त प्रिया के गिर्द कसती चली गई. प्रिया का शरीर एक बार विरोध से तना, फिर ढीला पड़ गया. घास के झुरमुटों में जैसे भूचाल आ गया. करीब के दरख्तों पर बसेरा लिए पखेरू फड़फड़ कर उड़ गए.

करीब एक घंटे बाद दोनों चौपाटी पहुंचे और वहां बेतरतीब कतार में खड़े एक कुल्फी वाले से फालूदा खरीदा. गिलास से भरे फालूदा का हर चम्मच निगलने के बाद प्रिया दीपक की बातों पर बेसाख्ता खिलखिला रही थी. उन के बीच हवा गुजरने की भी जगह नहीं थी, क्योंकि दोनों एकदूसरे से पूरी तरह से सटे बैठे थे.

सलमान खान बनने की कोशिश में दीपक आवारागर्दी पर उतर आया था और उस ने प्रिया के गले में अपनी बांह पिरो दी थी. लेकिन इस पर प्रिया को कोई एतराज नहीं था. उस ने फालूदा खा कर गिलास ठेले वाले की तरफ बढ़ा दिया. प्रिया के पर्स निकालने और भुगतान करने तक दीपक कर्जदार की तरह बगलें झांकता रहा. उस ने ऐसे मौकों पर मर्दों वाली तहजीब दिखाने की कोई जहमत नहीं उठाई.

3 युवक एक मोटरसाइकिल पर आए और प्रिया के पास आ कर रुके. शायद ये दीपक के यारदोस्त थे. उन्होंने हाथ तो उस की तरफ हिलाया, लेकिन असल में सब प्रिया की तरफ देख रहे थे. प्रिया ने उड़ती सी नजर उन पर डाली और दूसरी तरफ देखने लगी.

उन्होंने दीपक का हालचाल पूछा तो वह उन की तरफ बढ़ा और दांत निपोरने के साथ ही मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे लड़के की पीठ पर धौल जमाया, ऐसे ही मूड बन गया था यार, आइसक्रीम खाने का..’’

‘‘बढि़या है…बढि़या है यार…’’ इस बार वह लड़का बोला जो बाइक चला रहा था. वह प्रिया से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘मैं, आप के फ्रैंड का जिगरी दोस्त.’’

यह सुन प्रिया मुसकराई. उस के चेहरे पर आए उलझन के भाव खत्म हो गए. लड़के ने उस की तरफ बढ़ने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन एकाएक ठिठक कर रह गया. प्रिया कंधे पर रखा बैग झुलाती हुई सामने पार्किंग में खड़ी अपनी स्कूटी की तरफ बढ़ी. उस लड़के ने खास अदा के साथ हाथ हिलाया. प्रिया एक बार फिर मुसकराई और स्कूटी से फर्राटे से आगे बढ़ गई.

यह देख चंदू निहाल हो गया. उस ने हकबकाए से खड़े दीपक पर फब्ती कसी. ‘‘अबे, क्यों बुझे हुए हुक्के की तरह मुंह बना रहा है? लड़की तू ने फंसाई तो क्या हुआ? दावत तो मिलबैठ कर करेंगे न?’’ तब तक दीपक भी कसमसा कर उन के बीच में सैंडविच की तरह ठुंस गया. बाइक फौरन वहां से भाग निकली. चंदू के ठहाके बाइक के शोर में गुम हो चुके थे.

2 महीने बाद… पुलिस स्टेशन के उस कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. पैनी धार जैसी नीरवता पुलिस औफिसर के सामने बैठी एक कमसिन लड़की की सिसकियों से भंग हो रही थी. उस का चेहरा आंसुओं से तरबतर था. वह कहीं शून्य में ताक रही थी. शायद कुरसी पर बैठे उस के मातापिता थे, उन के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. शर्म और ग्लानि के भाव उन पर साफ दिखाई दे रहे थे. पुलिस औफिसर शायद प्रिया की आपबीती सुन चुका था. उस का चेहरा गंभीर बना हुआ था. उन्होंने सवालिया निगाहों से प्रिया की तरफ देखा, ‘‘तुम्हारी उस लड़के से जानपहचान कैसे हुई?’’

प्रिया का मौन नहीं टूटा. इस बार औफिसर की आवाज में सख्ती का पुट था, ‘‘जो कुछ हुआ तुम्हारी नादानी से हुआ, लेकिन अब मामला पुलिस के पास है तो तुम्हें सबकुछ बताना होगा कि तुम्हारी उस से मुलाकात कैसे हुई?’’

प्रिया ने शायद पुलिस औफिसर की सख्ती भांप ली थी. एक पल वह उलझन में नजर आई, फिर मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘एक बार मैं शौप पर कुछ खरीद रही थी, लेकिन जब पैसे देने लगी तो हैरान रह गई, मेरा पर्स मेरी जेब में नहीं था. उधर, दुकानदार बारबार तकाजा कर कह रहा था, ‘कैसी लड़की हो? जब पैसे नहीं थे तो क्यों खरीदा यह सब.’ मुझे याद नहीं रहा कि पर्स कहां गिर गया था, लेकिन दुकानदार के तकाजे से मैं शर्म से गड़ी जा रही थी. तभी एक लड़का, मेरा मतलब, दीपक अचानक वहां आया और दुकानदार को डांटते हुए बोला, ‘कैसे आदमी हो तुम?’ लड़की का पर्स गिर गया तो इस का मतलब यह नहीं हुआ कि तुम उसे इस तरह बेइज्जत करो? अगले ही पल उस ने जेब से पैसे निकाल कर दुकानदार को थमाते हुए कहा, ‘यह लो तुम्हारे पैसे.’ इस के साथ ही वह मुझे हाथ पकड़ कर बाहर ले आया.’’

प्रिया ने डबडबाई आंखों से पुलिस औफिसर की तरफ देखा और बात को आगे बढ़ाया, ‘‘यह सबकुछ इतनी अफरातफरी में हुआ कि मैं उसे न तो पैसे देने से रोक सकी और न ही उस से अधिकारपूर्वक हाथ पकड़ कर खुद को शौप से बाहर लाने का कारण पूछ सकी.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पुलिस औफिसर ने सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘फिर अगली मुलाकात कब हुई और यह मुलाकातों का सिलसिला कैसे चल निकला.’’

इस बार वहां बैठे दंपती एकटक बेटी की ओर देख रहे थे. उन की तरफ से आंखें चुराते हुए प्रिया ने बातों का सूत्र जोड़ा, ‘‘फिर यह अकसर स्कूल की छुट्टी के बाद मुझ से मिलने लगा. हम कभी आइसक्रीम शौप जाते, कभी मूवी या फिर घंटों गार्डन में बैठे बतियाते रहते.’’

‘‘मतलब वह लड़का पूरी तरह तुम्हारे दिलोदिमाग पर छा गया था?’’

प्रिया ने एक पल अपने मातापिता की तरफ देखा. उन का हैरत का भाव प्रिया से बरदाश्त नहीं हुआ, लेकिन पुलिस औफिसर की बातों का जवाब देते हुए उस ने कहा, ‘‘हां, मुझे यह अच्छा लगने लगा था. वह जब भी मिलता, मुझे गिफ्ट देता और कहता, ‘बड़ी हैसियत वाला हूं मैं, शादी तुम्हीं से करूंगा.’’

‘‘अभी शादी की उम्र है तुम्हारी?’’ पुलिस औफिसर के स्वर में भारीपन था. प्रिया चाह कर भी बहस नहीं कर सकी. उस ने सिर झुकाए रखा, ‘‘दरअसल, सहेलियां कहती थीं कि जिस का कोई बौयफ्रैंड नहीं उस की कोई लाइफ नहीं. बस, मुझे दीपक को पा कर लगा था कि मेरी लाइफ बन गई है.’’

‘‘क्योंकि तुम्हें बौयफ्रैंड मिल गया था, इसलिए,’’ पुलिस औफिसर ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘क्या उस से फ्रैंडशिप का तुम्हारे मातापिता को पता था? जब तुम देरसवेर घर आती थी तो क्या बहाने बनाती थी?’’ पुलिस औफिसर ने तीखी निगाहों से दंपती की तरफ भी देखा, लेकिन वे उन से आंख नहीं मिला सके.

उस की मम्मा ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘‘हम से तो इतना भर कहा जाता था कि आज सहेली की बर्थडे पार्टी थी या ऐक्स्ट्रा क्लास में लेट हो गई या फिर…’’ लेकिन पति को घूरते देख उस ने अपने होंठ सी लिए.

पुलिस औफिसर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘कैसे गैरजिम्मेदार मांबाप हैं आप? लड़की जवानी की दहलीज पर कदम रख रही है, उस के आनेजाने का कोई समय नहीं है, और आप को उस की कतई फिक्र नहीं है, लड़की की बरबादी के असली जिम्मेदार तो आप हैं. मेरी नजरों में तो सजा के असली हकदार आप लोग हैं.’’

लड़की को घूरते हुए पुलिस औफिसर ने बोला, ‘‘बौयफ्रैंड का मतलब भी समझती हो तुम? बौयफ्रैंड वह है जो हिफाजत करे, भलाई सोचे. तुम पेरैंट्स को बेवकूफ बना रही थी और लड़का तुम को  इमोशनली बेवकूफ बना रहा था.’’

पुलिस औफिसर के स्वर में हैरानी का गहरा पुट था, ‘‘कैसा बौयफ्रैंड था तुम्हारा कि उस ने तुम्हारे साथ इतना बड़ा फरेब किया? तुम्हें बिलकुल भी पता नहीं लगा. विश्वास कैसे कर लिया तुम ने उस का कि उस ने तुम्हारी आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग बना ली और तुम्हें जरा भी भनक नहीं लगी?’’

‘‘वह कहता था कि मेरा फिगर मौडलिंग लायक है, मुझे विज्ञापन फिल्मों में मौका मिल सकता है, लेकिन इस के लिए मुझे बस थोड़ी झिझक छोड़नी पड़ेगी. काफी नर्वस थी मैं, लेकिन कोल्डड्रिंक पीने के बाद कौन्फिडैंस आ गया था.’’

झल्लाते हुए पुलिस औफिसर ने कहा, ‘‘नशा था कोल्डड्रिंक में क्या, और उस कौन्फिडैंस में तुम ने क्या कुछ गंवा दिया, पता नहीं है तुम्हें?’’ क्रोध से बिफरते हुए पुलिस औफिसर ने लड़की को खा जाने वाली नजरों से देखा.

खुश्क होते गले में प्रिया ने जोर से थूक निगला. उस ने बेबसी से गरदन हिलाई और चेहरा हथेली से ढांप कर फफक पड़ी. उस की सिसकियां तेज होती चली गईं. अपनी ही बेवकूफी के कारण उसे यह दिन देखना पड़ा था. दीपक पर उस ने आंख मूंद कर भरोसा कर लिया था, इसलिए उस के इरादे क्या हैं, यह नहीं समझ सकी. काश, उस ने समझदारी से काम लिया होता. पर अब क्या हो सकता था.

पति को उनके परिवार से दूर रखना क्या सही फैसला है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 22 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को अभी 4 महीने ही हुए हैं. हम दोनों पतिपत्नी बहुत खुश हैं. सासससुर इंदौर में रहते हैं. पर इधर एक परेशानी हो गई है. मेरी ननद जो पिछले महीने हमारी ही हाउसिंग सोसाइटी में शिफ्ट हो गई है, बेवक्त आ जाती है, जिस से हम लोग अपना कोई घूमनेफिरने का प्रोग्राम नहीं बना पाते. पति यों तो अपनी बहन को बहुत चाहते हैं, पर उस के कारण हमारी प्राइवेसी में खलल पड़ता है, यह वे भी महसूस करने लगे हैं. घर से पति का कार्यालय काफी दूर पड़ता है, इसलिए हम सोच रहे हैं कि कार्यालय के पास ही कोई फ्लैट देख लें. इस से हम लोग अपने लिए कुछ अधिक समय निकाल पाएंगे. क्या यह उचित रहेगा?

जवाब-

आजकल एकल परिवार का ट्रैंड चल पड़ा है. आप शादी के बाद अकेले रहे हैं. इसीलिए आप को अपनी ननद की मौजूदगी अखर रही है. वैसे उसे भी यह सोचना चाहिए कि ऐसे समय न आए जिस से आप लोगों को कोई परेशानी न हो. आप की यह सोच भी वाजिब है कि पति के कार्यालय के पास घर ले लें. इस से आप को पति का साथ भी अधिक मिलेगा और ननद से भी थोड़ी दूरी हो जाएगी. इस से आपस में प्यार भी बना रहेगा.

ये भी पढ़ें- 

‘‘बताओ न हर्ष, तुम मुझ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘पीहू, रोजरोज यह सवाल पूछ कर क्या तुम मेरा प्यार नापती हो,’’ हर्ष ने पीहू की आंखों में आंखें डाल कर जवाब दिया.

‘‘यस मिस्टर, मैं देखना चाहती हूं कि जैसेजैसे हमारी रोज की मुलाकातें बढ़ती जा रही हैं वैसेवैसे मेरे लिए तुम्हारा प्यार कितना बढ़ रहा है.’’

‘‘क्या तुम्हें नजर नहीं आता कि मैं तुम्हारे लिए पागल हुआ रहता हूं. तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं. अब तो यारदोस्त भी कहने लगे हैं कि तू पहले वाला हर्ष नहीं रहा. कुछ तो बात है. पहले तो तू व्हाट्सऐप ग्रुप में सब के साथ कितना ऐक्टिव रहता था. इंस्टाग्राम पर रोज तेरी स्टोरी होती थी.’’

‘‘तो तुम उन्हें क्या जवाब देते हो?’’ पीहू हर्ष के बालों में उंगलियां फेरते

हुए बोली.

हर्ष ने पीहू की कमर में हाथ डाला और उसे अपने और करीब लाते हुए बोला, ‘‘क्या जवाब दूं कि आजकल मेरे ध्यान में, बस, कोई एक छाई रहती है, जिस की कालीकाली आंखों ने मुझे दीवाना बना दिया है. जिस की हर अदा मुझे मदहोश कर देती है. अब तुम्हारा दोस्त किसी काम का नहीं रहा.’’

हर्ष का यह फिल्मी अंदाज पीहू के मन को गुदगुदा गया. हर्ष की ये प्यारभरी बातें उसे बहुत भातीं. मन करता था कि वह उस की तारीफ करता रहे और वह सुनती रहे. एक अजीब से एहसास से सराबोर हो जाता था उस का तनमन.

वाकई हर्ष ने उस की जिंदगी में आ कर उसे जीने का नया अंदाज सिखा दिया था. जिंदादिल, दूसरों की मदद करने में हमेशा आगे, दोस्तों का चहेता, दिल से रोमांटिक, स्मार्ट, इंटैलिजैंट, कितनी खूबियां हैं उस में. बहुत खुशनसीब समझती है वह अपनेआप को कि हर्ष जैसा लवर उसे मिला.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

समझौते स्त्री के ही हिस्से में क्यों ?

अंकिता और अनुज ने लव मैरिज की थी. शुरुआत में दोनों एक ही औफिस में थे, मगर बाद में अंकिता ने कंपनी बदल ली. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे और कोई भी फैसला लेने से पहले आपस में सलाह जरूर करते थे. कुछ दिनों से अंकिता के सासससुर भी उन के पास हैदराबाद में आ कर रहने लगे थे क्योंकि वे अपने छोटे पोते रवि के साथ समय बिताना चाहते थे. अंकिता अपने सासससुर का बहुत खयाल रखती थी.

इसी बीच अंकिता को एक असाइनमैंट के लिए मुंबई जाने का और्डर मिला. इस असाइनमैंट के बाद प्रमोशन मिलना तय था. अंकिता बहुत दुविधा में थी. अगर वह मुंबई नहीं जाती तो प्रमोशन तो मिलता ही नहीं नौकरी भी खतरे में आ जाती, जबकि उस के लिए अनुज और रवि को छोड़ कर मुंबई जाने का फैसला भी आसान नहीं था.

ऐसे में जब अंकिता ने अपनी सास से बात की तो वे सहजता से बोलीं, ‘‘बेटा कंप्रोमाइज तो औरतों को ही करना पड़ता है. मुझे देख अपनी लेक्चररशिप की जौब छोड़ तेरे ससुर के साथ उतनी दूर दिल्ली में जा कर बस गई. शादी के बाद जब फिर नौकरी का फैसला लिया तो अनुज पेट में आ गया. सास ने साफ मना कर दिया. बस तब से खशीखुशी होममेकर की जिंदगी बिता रही हूं. मु?ो इस बात का कोई गिला नहीं कि जिंदगी में मु?ो कई बार कंप्रोमाइज करने पड़े. आखिर नारी का दायित्व यही है कि वह पति की अनुगामिनी बने.’’

‘‘जी ठीक है. मैं यह जौब ही छोड़ दूंगी. कोई और देख लूंगी. वैसे भी रवि को छोड़ कर मैं नहीं जा सकती.’’

शाम जब अनुज आया और उस ने अंकिता का फैसला जाना तो वह भड़क उठा, ‘‘यह क्या कह रही हो? इस असाइनमैंट और प्रमोशन के लिए तुम कितने समय से उत्साहित थी. अब मौका आया है तो यह मौका छोड़ना चाहती हो?’’

‘‘तो क्या करूं? सब छोड़ कर कैसे जा सकती हूं?’’

‘‘क्यों नहीं जा सकती? अगर यह मौका मुझे मिलता तो क्या मैं नहीं जाता और तुम अकेले घर नहीं संभालती? तब तुम कंप्रोमाइज करती. अब मैं करूंगा. मां के साथ मिल कर मैं रवि को संभाल लूंगा. तुम बस जाने की तैयारी करो. वैसे भी कोई हमेशा के लिए तो जाना नहीं है. 2-3 महीने की बात है सो हम एडजस्ट कर लेंगे.’’

अनुज की बात सुन कर अंकिता की आंखों में आंसू आ गए. वह समझो गई कि अनुज जैसा हसबैंड पा कर उसे कभी अपने सपनों से समझोते नहीं करना पड़ेगा. वह प्यार से पति के गले

लग गई.

अनुज ने थोड़ा प्रयास कर अपनी मां को भी इस फैसले के लिए राजी कर लिया. अंकिता की नजरों में पति के लिए सम्मान काफी बढ़ गया.

पुरुष भी कर सकता है समझौता

इसी तरह दिल्ली में रहने वाली 34 वर्षीय प्रिया माथुर के पति बैंकिंग के क्षेत्र में हैं और वह मौडलिंग में है. फिर भी दोनों के बीच एडजस्टमैंट को ले कर कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. दोनों उस वक्त से अच्छे दोस्त थे जब प्रिया मौडलिंग के क्षेत्र में नहीं थी. मगर शादी के बाद अच्छीखासी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर मौडलिंग के क्षेत्र में आने के प्रिया के निर्णय में पति की पूरी सहमति थी. यहां तक कि पहले असाइनमैंट के लिए उसे ले कर मुंबई जाने का काम भी उस के पति ने किया था. इस के लिए बाकायदा उस ने 4 दिनों की छुट्टी भी ली थी.

दरअसल, जब 2 इंसानों के बीच सच्चा प्यार होता है तो वे दो शरीर और एक प्राण बन जाते हैं. उन के सपने और दुनिया सब एक हो जाते हैं. ऐसे में जब समझोते का समय आता है तो यह नहीं देखना चाहिए कि समझोता केवल स्त्री को करना जरूरी है. पुरुष भी समझोता कर सकता है. मगर समाज में ऐसे उदाहरण कम ही दिखने को मिलते हैं. ज्यादातर मामलों में घरपरिवार में यही उम्मीद की जाती है कि वही समझोता करे.

हमेशा स्त्री ने ही किए समझोते

अपने रिश्तों को बनाए रखने के लिए स्त्रियां हमेशा समझोता करने को तैयार होती रही हैं क्योंकि रिश्तों को निभाना और बचाए रखना उन के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होता है. हम ने परिवार में, समाज में और रिश्तेदारों को भी अकसर सलाह देते देखा और सुना है कि ‘बेटा थोड़ा एडजस्ट कर लो,’ ‘थोड़ाबहुत एडजस्ट तो हर लड़की को करना पड़ता है,’ ‘जौब के बारे में बाद में सोचना पहले परिवार संभालो’ जैसी हिदायतें महिलाओं को मिलती रहती हैं.

यह माना जाता रहा है कि रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारी केवल महिलाओं की ही होती है. यही नहीं इस पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं को विनम्र और त्यागशील  होने की सलाह भी दी जाती है ताकि वे अपनी शादीशुदा जिंदगी को कोई नुकसान न पहुंचाएं. उन से कहा जाता है कि उन के लिए बाकी सारी चीजें बाद में आती हैं. सब से पहले जो माने रखता है वह है उन का रिश्ता.

शादी के बाद एडजस्टमैंट इशूज के कारण होते झोगड़े

मगर स्त्री पर जबरदस्ती थोपे गए इन समझोतों का नतीजा यह निकलता है कि वह अपना मन मार कर और सपनों का गला घोंट कर जीने को विवश हो जाती हैं. महिलाएं मन ही मन में किलसती रहती हैं और चिडचिड़े स्वभाव की हो जाती हैं. यही वजह है कि अकसर लोग कहते हैं पत्नी के रंग शादी के बाद बदल जाते हैं. यह सच है. दरअसल, शादी के बाद महिलाओं की मनोस्थिति बदलती है और इस में कई बार उन का दोष भी नहीं होता है. साइंस भी यह मानती है कि शादी के शुरुआती 6 महीनों में ही कई बार पतिपत्नी के झोगड़े बहुत बढ़ जाते हैं.

साइकोलौजी टुडे के एक सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि डेटिंग के समय के बाद शादी और शादी के बाद झोगड़े होना पूरी तरह से नौर्मल है. इस का अहम कारण एडजस्टमैंट है क्योंकि शादी के बाद एक महिला को बहुत ज्यादा एडजस्टमैंट करना होता है.

उदाहरण के लिए उन्हें नए घर में एडजस्टमैंट की टैंशन रहती है. शादी के बाद महिलाओं का घर बदल जाता है. नए रिश्ते जुड़ते हैं जबकि पुराने रिश्ते दूर हो जाते हैं. नए घर में एडजस्ट करने में भी उन्हें दिक्कतें आती हैं. ऐसे में वे ज्यादा चिड़चिड़ी हो जाती हैं. अगर किसी महिला को ऐसा लगता है कि नए घर में उसे ठीक से अपनाया नहीं जा रहा है तो भी उसे समस्या हो सकती है. बचपन से जवान होने तक महिलाएं बिलकुल अलग माहौल में रहती हैं. शादी के बाद नया माहौल उन्हें परेशान कर सकता है.

इसी तरह अधूरी इच्छाएं और टूटते सपने भी उन्हें परेशान करते हैं. कई बार शादी के तुरंत बाद ऐसा महसूस होने लगता है कि कुछ इच्छाएं अधूरी रह गई हैं. उन्हें अपने सपने पीछे छोड़ने पड़ते हैं. कई महिलाएं अपने कैरियर, जौब, शहर, काम आदि सबकुछ के साथ कंप्रोमाइज कर लेती हैं और ऐसे में उन का चिड़चिड़ा होना बहुत स्वाभाविक है.

दुनिया के सब से जटिल रिश्तों में से एक है पतिपत्नी का संबंध. पतिपत्नी चाहें तो 2 दोस्तों की तरह भी जिंदगी बिता सकते हैं, लेकिन कई बार होता यह है कि वे हर वक्त लड़तेझोगड़ते और कुढ़ते हुए जीवनयापन करते हैं और फिर अलग भी हो जाते हैं. आजकल स्त्रियां खुद भी पति को छोड़ कर अलग रहने का फैसला करने लगी हैं.

दरअसल, पतिपत्नी के रिश्ते में स्त्री का आत्मसम्मान बेहद महत्त्वपूर्ण होता है. आज के दौर में स्त्री की तरफ से रिश्ते उस वक्त टूटतेबिखरते हैं जब उस के आत्मसम्मान को बारबार ठेस पहुंचती है और इस में कुछ भी गलत नहीं है. गुजरे जमाने में स्त्री सिर्फ आत्मसमर्पण जानती थी. इसलिए रिश्ते बने रहते थे. तब ज्यादातर स्त्रियां अपने जीवनसाथी के अत्याचारों को चुपचाप सहती रहती थीं. मगर उन की जिंदगी में समझोतों के सिवा कुछ नहीं होता था. आज की स्त्री जानती है कि उस का अपना वजूद है, अपना आत्मसम्मान है और इसे बचाए रखना उस की और उस के पति दोनों की जिम्मेदारी है.

पति भी क्यों न करें समझोता

लोगों को यह समझोना चाहिए कि आपस में प्यार बनाए रखने और खूबसूरत जिंदगी जीने के लिए पति को भी समझोते करने के लिए तैयार रहना चाहिए. समझोते के लिए मिल कर काम करना जरूरी है. एकदूसरे की बातें सुनने और उन का सम्मान करने की जरूरत है. हो सकता है शादी से पहले आप को अकेले फैसले लेने की आदत हो. मगर शादी के बाद हालात बदल जाते हैं. अब दोनों को मिल कर फैसले लेने चाहिए. वैसे भी जब 2 लोग मिल कर फैसले लेते हैं तो इस के नतीजे बेहतर निकलते हैं.

पतियों के लिए पत्नी की बातें को ध्यान से सुनना और उन पर गहराई से सोचना जरूरी है. शादी के सलाहकार जौन एम. गौटमैन अपनी किताब में लिखते हैं, ‘‘आप का जीवनसाथी जो कहता या सोचता है जरूरी नहीं कि आप उसे राजी हों, मगर यह जरूरी है कि आप उस की बात ध्यान से सुनें और उस पर गहराई से सोचें. जब आप का साथी किसी समस्या के बारे में आप से खुल कर बात कर रहा हो तो उस वक्त अगर आप सिर्फ हाथ बांध कर ‘न’ में सिर हिलाते रहें तो समस्या कभी नहीं सुलझो पाएगी और न ही आप की बातचीत कभी आगे बढ़ पाएगी.’’

समझोते के लिए एकदूसरे के प्रति सम्मान का होना जरूरी है. कोई भी ऐसे जीवनसाथी के साथ रहना पसंद नहीं करेगा जो हमेशा यह माने कि उस की सोच ही सही है या उस की बात माननी ही पड़ेगी. दरअसल, पति और पत्नी दोनों को एकदूसरे की बात माननी चाहिए न कि हमेशा अपनी बात पर अड़े रहना चाहिए.

सोच में बदलाव

देश और समाज के विकास के लिए महिलाओं की भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण है इस का अंदाजा राष्ट्रीय स्तर पर देखा जा सकता है. आज महिलाओं को आत्मनिर्भर जिंदगी जीने और सपने पूरे करने के मौके दिए जा रहे हैं. उन्हें परदे की ओट से बाहर लाने की मुहिम चलाई जा रही है. लोग यह समझो रहे हैं कि स्त्री की तरक्की समाज के विकास के लिए कितनी जरूरी है. आरएसएस जैसे संघ जो धर्म के नाम पर सत्ता चलाते हैं और महिलाओं को पीछे रखते हैं, उन को भी अब लगने लगा है कि बिना महिलाओं के तरक्की संभव नहीं है. इसलिए वे भी अब महिलाओं को आगे लाने पर जोर दे रहे हैं.

हाल ही में आरएसएस प्रमुख भागवत ने नागपुर में एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि अगर हम विश्व गुरु के रूप में भारत का निर्माण करना चाहते हैं तो सिर्फ पुरुषों की भागीदारी ही काफी नहीं है बल्कि महिलाओं की समान भागीदारी की भी आवश्यकता है. एक तरफ हम उन्हें जगतजननी के रूप में मानते हैं, लेकिन दूसरी तरफ हम उन्हें घर में गुलामों की तरह मानते हैं. हमें महिलाओं को अच्छा वातावरण देने की जरूरत है. उन्हें प्रबुद्ध, सशक्त और शिक्षित किया जाना चाहिए और यह प्रक्रिया घर से शुरू होनी चाहिए.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद से हर साल नागपुर में दशहरे पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता रहा है. 1925 के बाद इस कार्यक्रम में हमेशा कोई पुरुष ही मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करता आया है. लेकिन पहली बार इस प्रोग्राम में संघ ने किसी महिला को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया. इस वर्ष कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पर्वतारोही संतोष यादव शामिल हुईं. संतोष यादव पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने 2 बार माउंट ऐवरेस्ट की चढ़ाई की है.

अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं कि पुरुष समझोता करने को खुद तैयार रहे

खुद को छुईमुई या फिर दरवाजे की ओट से बाहर की दुनिया झोंकने वाली डरीसहमी सी औरत बना कर न रखें. अपने वजूद को पहचानें. आप किसी से कम नहीं. पुरुष के समान ही आप के पास योग्यता है, काबिलीयत और हिम्मत है. इस का प्रयोग करें. खुद को ऊंचाइयों तक ले जाएं जहां से समाज का भेदभाव आप पर कोई असर न कर सके. आप अपने बल पर जीने की हिम्मत रखें. किसी पर आश्रित लता बनने के बजाय खुद सामर्थ्यशील बनें. आप अपने जीवनसाथी को एहसास दिलाएं कि आप के बिना वे कितने अधूरे हैं. उन की जिंदगी में हर जगह अपनी उपस्थिति और अहमियत साबित करें. उन्हें महसूस होने दें कि आप के बिना वे जी नहीं सकेंगे. आप का कोई विकल्प उन के पास नहीं.

पुरुष को स्त्री की ज्यादा जरूरत है

याद रखें कि स्त्री पुरुष के बिना आराम से जी सकती है, मगर पुरुष के लिए स्त्री के बिना जीना मुमकिन नहीं. स्त्री के बिना वह वाकई अधूरा है. बात घर चलाने की हो या शारीरिक जरूरतों की एक स्त्री के बिना पुरुष मारामारा फिरता है. उस का कोई ठिकाना नहीं रह जाता. स्त्री के बिना घर का मैनेजमैंट पूरी तरह हिल जाता है. पुरुष को न तो ठीक से खाना बनाना आता है और न ही बच्चों को संभालना. न तो वे राशन और सब्जी के झोमेलों को संभाल पाते हैं और न घर की साफसफाई ही रख पाते हैं.

किसी पुरुष की पहली पत्नी चली जाए तो क्या पता दूसरी कैसी आए यह सवाल जरूर उठता है. पुरुष सैक्सुअली भी पत्नी के ऊपर डिपैंडैंट रहता है. इस के विपरीत एक औरत आराम से अकेली या बिना पुरुष के रह सकती है. उसे घर संभालना भी आता है, पैसे भी कमा सकती है और अपनी जरूरतों की प्राथमिकता भी तय कर सकती है. इसलिए पुरुषों को यह समझोना चाहिए कि औरत को तकलीफ देने या हर बात में झोकाने से अच्छा है कि वे खुद भी समझोते कर अपनी और पत्नी की जिंदगी खूबसूरत और आसान बना ले.

इतनी कोमल न बनें कि कोई भी आप को अपने अनुसार चलाने लगे

महिलाएं तन के साथ मन से भी कोमल होती हैं. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप कठोर बनना जानें ही नहीं. जरूरत पड़ने पर स्त्री को भी कठोर बनना होता है वरना लोग उसे अपने हिसाब से चलाने लगते हैं. जिंदगी में सबकुछ दूसरों की मरजी अनुसार करना उचित नहीं. जो आप को अच्छा लगता है वह करना भी जरूरी है. खुद को माटी का पुतला बना कर न रखें कि पुरुष उसे अपने सांचे में ढाल ले. घर हो या बाहर अपनी आवाज उठानी भी जरूरी है वरना लोग भूल जाएंगे कि आप का भी कोई वजूद है. अगर आप को कुछ करना है तो घरवालों की अनुमति लें. मगर यदि वे बेवजह आप को अनुमति नहीं दे रहे या समझोता करने को मजबूर करें तो दृढ़ता से अपना पक्ष रखें और वही करें जो आप को सही लगे. धीरेधीरे पति भी आप की बात मानने लगेंगे.

धर्म और कर्मकांड के बजाय आपने आप पर समय खर्च करें

अकसर घर की महिलाएं अपना ज्यादातर समय और शक्ति कर्मकांडों और धार्मिक गतिविधियों में बरबाद करती हैं. हर दूसरे दिन कोई खास पूजा या अनुष्ठान की तैयारी, भजनपूजन, व्रतउपवास इन्हीं सबों में लिप्त रहती हैं. वे यह नहीं समझोतीं कि समय अमूल्य है. इसी समय का उपयोग यदि वे अपने लिए करें तो उन का कायाकल्प हो जाए. वे चाहें तो इस समय का उपयोग अपने गुणों को निखारने और नई कला सीखने में कर सकती हैं. इस से उन का व्यक्तित्व स्ट्रौंग बनेगा और आय अर्जित करने की क्षमता

भी विकसित होगी. वे आत्मनिर्भर बनेंगी और

उन्हें नाहक जीवन में समझोते नहीं करने पड़ेंगे, उलटा उन के पति उन की कीमत सम?ोंगे और

उन के लिए किसी भी तरह कंप्रोमाइज करने को तैयार रहेंगे.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें