SALE : सस्ती शौपिंग न पड़ जाए महंगी, रखें इन बातों का ख्याल

डिस्काउंट और औफर का जादू ही ऐसा होता है कि हम बिना जरूरत की चीजें भी खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं. लेकिन कई बार यह सेल की खुशी जेब और दिल दोनों पर भारी पड़ जाती है. अगर सही सावधानी न बरती जाए तो यह शौपिंग हमें फायदा देने की बजाय नुकसान में डाल सकती है.

सेल में शौपिंग करते समय आप किनकिन बातों का ध्यान में रखें ताकि आप का अनुभव अच्छा रहे और बाद में पछतावा न हो :

नो रिटर्न पौलिसी का रखें ध्यान

अकसर सेल में दुकानदार ऐसे प्रोडक्ट बेचते हैं जो नो रिटर्न पौलिसी के अंतर्गत आते हैं. इस का मतलब है कि एक बार खरीदने के बाद आप को वह सामान किसी भी हालत में न ही वापस किया जाएगा ना ही एक्सचेंज यानी बदला जा सकता है. इसलिए कुछ खरीदने से पहले यह कन्फर्म अवश्य कर लें कि जिस प्रोडक्ट पर आप हाथ डाल रहे हैं, वह रिटर्नेबल है या नहीं.

• औफलाइन स्टोर्स : दुकानदार कई बार साफ नहीं बताते कि सेल के आइटम पर रिटर्न पौलिसी लागू नहीं है. इसलिए खरीदने से पहले खुल कर पूछें और रसीद संभाल कर रखें.

• औनलाइन शौपिंग : जल्दबाजी या हड़बड़ाहट में और्डर करने से बचें. प्रोडक्ट पेज पर नो रिटर्न पौलिसी का जिक्र कई बार छोटे अक्षरों में होता है, इसलिए ध्यान से पढ़ें. अगर नो रिर्टन पौलिसी दिखे तो उस प्रोडक्ट के बारे में पुराने कस्टमर्स के रिव्यू पर जरूर पढ़ें ताकि आप को सामान की क्वालिटी के बारे में कुछ अंदाजा हो जाए.

कपड़े का रखें खास ध्यान

सेल में कपड़े खरीदना एक अच्छा मौका हो सकता है, लेकिन यह जरूरी है कि आप कपड़ों की गुणवत्ता और फिटिंग पर ध्यान दें.

• औफलाइन शॉपिंग : कपड़े का फैब्रिक जांच कर ही खरीदें. कई बार डिस्प्ले पर अच्छे कपड़े दिखते हैं, लेकिन असल में वे डैमेज हो सकते हैं. कहीं ऐसा न हो कि आप को घर आ कर कपड़ों में धागे खिंचे हुए या स्टिचिंग खराब मिले. कपड़े की हैंडलिंग के बारे में भी दुकानदार से पूछें। अगर निर्देश लिखें हैं तो उन्हें ध्यान से पढ़ें, उस के बाद ही उसे खरीदने का मन बनाएं.

• औनलाइन शौपिंग : औनलाइन शौपिंग में कपड़े का मैटीरियल साफ नजर नहीं आता. प्रोडक्ट के डिस्क्रिप्शन में दिए गए फैब्रिक डिटेल्स को ध्यान से पढ़ें ताकि बाद में आप को निराशा न हो. आप इस में पुराने कस्टमर्स के पिक्चर रिव्यू भी देख सकते हैं जिस में आप को समझ आए कि कपड़ा खराब क्वालिटी का तो नहीं है.

जूते खरीदते समय रहें सतर्क

सेल के दौरान कई बार जूते बड़े आकर्षक डिस्काउंट पर मिलते हैं, लेकिन यहां भी सावधानी जरूरी है.

• औफलाइन स्टोर्स : दुकानदार डिस्प्ले पर सही दिखने वाले जूते का डब्बे में खराब या मिक्स्ड पेयर रख देते हैं. इसलिए दोनों जूतों को अच्छी तरह से देखपरख कर ही खरीदें. अकसर डिस्पले में सालों से रखे जूते जो खराब हो गए हैं उन के दूसरे पेयर को सेल में दिखा कर खराब जोड़ी बेच दी जाती है, जो बाद में रिर्टन भी नहीं होती.

• नो रिटर्न के मामले : सेल के जूतों पर अकसर रिटर्न पौलिसी नहीं होती, इसलिए बाद में पछतावा न हो, इस के लिए पूरी तरह संतुष्ट हो कर ही खरीदें.

जल्दबाजी से बचें और जरूरतों पर ध्यान दें

सेल में अकसर हम डिस्काउंट के लालच में फंस कर ऐसी चीजें खरीद लेते हैं जिन की हमें जरूरत ही नहीं होती। इस तरह की शौपिंग से बचने के लिए कुछ बातें ध्यान में रखें :

• खरीदारी से पहले एक लिस्ट तैयार कर लें कि आप को क्याक्या खरीदना है।

• अपने बजट का ध्यान रखें और सिर्फ उन चीजों पर खर्च करें जो आप के लिए जरूरी हैं।

• ‘सेल निकल जाएगी’ की घबराहट में जल्दबाजी न करें। हर साल सेल आती है, इसलिए इस बार न भी खरीदें तो अगली बार का इंतजार कर सकते हैं।

डिस्काउंट के जाल में फंसने से बचें

कई बार दुकानदार और औनलाइन पोर्टल बड़ी छूट का दिखावा करते हैं, लेकिन असलियत में उतना फायदा नहीं होता. कुछ दुकानदार पहले प्रोडक्ट का दाम बढ़ा देते हैं और फिर डिस्काउंट दिखा कर असली कीमत पर ही बेचते हैं.

• औनलाइन स्टोर्स पर प्राइस ट्रैकिंग टूल्स का इस्तेमाल करें, ताकि आप जान सकें कि वास्तव में छूट दी जा रही है या नहीं.

• किसी भी प्रोडक्ट को खरीदने से पहले उस की असली कीमत की तुलना दूसरे स्टोर्स पर भी कर लें. जल्दबाजी न करें, आप की मेहनत की कमाई है तो उसे खर्च करने से पहले विचार जरूर करें.

सेल में खरीदे गए सामान की देखभाल और उपयोग

अगर आप ने सेल से सामान खरीद लिया है, तो उस की देखभाल और उपयोग सही तरीके से करें ताकि वह ज्यादा समय तक टिकें. खासतौर पर कपड़ों और जूतों को निर्देशानुसार ही इस्तेमाल करें.

सेल में शौपिंग करना एक रोमांचक अनुभव हो सकता है, लेकिन थोड़ी सी लापरवाही इसे महंगा सौदा बना सकती है. रिटर्न पौलिसी की जानकारी, प्रोडक्ट की गुणवत्ता और अपनी जरूरतों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है.

याद रखें, सेल में खरीदारी का मकसद सिर्फ पैसे बचाना नहीं, बल्कि सही चीजों का चुनाव करना भी है. अगर आप सावधानी से शौपिंग करेंगे तो सेल का मजा दोगुना हो जाएगा और आप का अनुभव भी बेहतरीन रहेगा. तो अगली बार जब सेल में जाएं, तो इन बातों का ध्यान रखें ताकि सेल में शौपिंग सस्ती के बजाय महंगी न पड़ जाए.

टैटू बनवाने से पहले जानें कुछ जरूरी बातें, इन बीमारियों का होता है खतरा

टैटू का क्रेज युवाओं में बहुत तेजी से बढ़ रहा है और इस की वजह है फैशन स्टेटमैंट. यंगस्टर्स सोचते हैं कि अगर हम टैटू कराएंगे तो कूल नजर आएंगे. हालांकि टैटू एक प्राचीन कला है, जिस की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं.

टैटू कराना कितना फायदेमंद है, यह तो हम नहीं कह सकते लेकिन यह आप के लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है, यह जानना आप के बेहद जरूरी है :

त्वचा संक्रमण का खतरा

टैटू कराने के लिए आप ऐक्साइटेड तो बहुत हो जाते हैं लेकिन आप को यह भी पता होना चाहिए कि इस की सुइयां सीधी त्वचा के नीचे जा कर इंक को इंजैक्ट करती हैं, जिस से त्वचा में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

अगर टैटू बनाने के दौरान सफाई का ध्यान नहीं रखा गया या इंक और उपकरण अच्छी तरह से स्टरलाइज नहीं किए गए, तो बैक्टीरिया और अन्य संक्रमण फैल सकते हैं। यह स्थिति त्वचा पर लालिमा, सूजन, दर्द और फोड़े जैसी समस्याओं का कारण बन सकती हैं.

ऐलर्जी रिएक्शन

टैटू इंक में मौजूद रसायन और धातुएं कभीकभी त्वचा पर ऐलर्जी भी कर सकती हैं. लाल, नीले, पीले, और हरे रंग की स्याही में अकसर ऐलर्जिक तत्त्व होते हैं जो त्वचा में जलन, खुजली या लाल धब्बों का कारण बन सकते हैं. कभीकभी यह ऐलर्जी लंबे समय तक बनी रह सकती है और इस का इलाज मुश्किल हो सकता है.

हेपेटाइटिस और एचआईवी जैसी बीमारियों का खतरा

अगर टैटू बनाते समय इस्तेमाल की गई सुइयां साफ और स्टरलाइज नहीं हैं, तो इस से हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों के फैलने का खतरा होता है। असुरक्षित उपकरणों का उपयोग संक्रमण के प्रसार को बढ़ा सकता है, जिस से इन घातक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

खून बहने की समस्या

टैटू बनवाने के दौरान त्वचा पर सुइयों के बारबार चुभने से खून बह सकता है. यह सामान्य बात है, लेकिन अगर व्यक्ति को ब्लड क्लौटिंग या खून जमने से संबंधित कोई समस्या है, तो स्थिति गंभीर हो सकती है. इस से त्वचा पर बड़े घाव या जख्म भी हो सकते हैं, जिन का ठीक होना मुश्किल हो सकता है.

किलोइड और स्कारिंग

कुछ लोगों की त्वचा पर टैटू बनवाने के बाद किलोइड (खास प्रकार का उभार) या स्थायी स्कार (निशान) बन सकते हैं. यह शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो सकती है, जब त्वचा को टैटू सुइयों से नुकसान पहुंचता है। इस से त्वचा पर स्थायी और भद्दे निशान बन सकते हैं, जो दिखने में खराब लग सकते हैं और इन्हें ठीक करना मुश्किल होता है.

एमआरआई के दौरान समस्याएं

टैटू में इस्तेमाल की गई इंक में कभीकभी धातु आधारित तत्त्व होते हैं, जो एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) टेस्ट के दौरान समस्याएं पैदा कर सकते हैं.

एमआरआई स्कैन के दौरान टैटू वाले स्थान पर जलन, खुजली या सूजन हो सकती है. हालांकि यह एक दुर्लभ समस्या है, लेकिन जिन लोगों को नियमित चिकित्सा परीक्षणों की आवश्यकता होती है, उन्हें इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

टैटू हटाने में कठिनाई

टैटू बनवाना जितना आसान और आकर्षक लगता है, उसे हटाना उतना ही मुश्किल और महंगा होता है. टैटू हटाने के लिए लेजर तकनीक का उपयोग किया जाता है, जो न केवल दर्दनाक होता है बल्कि इस में कई सत्रों की आवश्यकता भी होती है. इस के अलावा, टैटू हटाने के बाद भी त्वचा पर निशान और धब्बे बने रह सकते हैं.

प्रोफैशनल लाइफ पर पड़ता है असर

हालांकि अब टैटू कराना नौर्मल हो गया है लेकिन कुछ नौकरियो में इसे अभी भी सही नहीं माना जाता है खासकर कुछ कारपोरेट और सरकारी संगठनों में यह रोजगार के अवसरों को आप के लिए बंद कर सकता है। कई कंपनियां अब भी टैटू को अपने कर्मचारियों की प्रोफैशनल इमेज के लिए गलत मानती हैं. अगर आप का टैटू बहुत ज्यादा दिखाई देने वाला है, तो यह नौकरी पाने की संभावनाओं को कम कर सकता है, खासकर उन उद्योगों में जो कस्टमर से सीधे जुड़ते हैं, जैसे बैंकिंग, कानून, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं.

फैशन ट्रैंड का हिस्सा

टैटू अकसर फैशन ट्रैंड का हिस्सा बन जाते हैं। लोग अपने पसंदीदा सितारों, खिलाड़ियों या दोस्तों को देख कर टैटू बनवा लेते हैं. लेकिन फैशन ट्रैंड हमेशा बदलते रहते हैं और जो टैटू आज आप को कूल लगता है, वह कुछ सालों बाद पुराना या आउटडेटेड लग सकता है, जो बदलते फैशन के साथ नहीं चलता और फिर इसे चेंज करना या हटाना इतना आसान नहीं होता, इसलिए टैटू बनवाने से पहले जरा सोच लें.

मैरिड कपल्स और काम का बंटवारा, जीएं खुशहाल जिंदगी

आज के समय में जब समाज और परिवार की बनावट में बड़े बदलाव आ रहे हैं, मैरिड कपल्स के बीच वर्कलोड के बराबरी से बंटवारे की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है. बदलते आर्थिक और सामाजिक माहौल में, जहां महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं, पारिवारिक जिम्मेदारियों का बराबरी से विभाजन बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो गया है.

कार्यभार का सही ढंग से बंटवारा न केवल पतिपत्नी के जीवन को खुशहाल बनाता है, बल्कि एक स्वस्थ और सशक्त समाज की नींव भी रखता है.

पारंपरिक धारणाएं और बदलाव की आवश्यकता

पारंपरिक भारतीय समाज में कार्यभार का बंटवारा पहले से ही समाज द्वारा स्पष्ट था, पुरुष परिवार का पालनकर्ता था जबकि महिलाएं घरेलू कामकाज संभालती थीं.

लेकिन समय के साथ महिलाओं ने न केवल अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई, बल्कि कार्यक्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी भी दर्ज कराई. आज महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह पर कार्य कर रही हैं.

लेकिन क्या कार्यभार का सही ढंग से विभाजन हो पाया है? जवाब ढूंढने पर अकसर देखने को मिलता है कि महिलाओं पर अब भी घर का ज्यादातर काम रहता है, जिस से उन्हें शारीरिक और मानसिक थकान का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति में बदलाव की आवश्यकता है. ऐसी परिस्थिति में दोनों पतिपत्नी को मिल कर घर और काम की जिम्मेदारियों को संभालना चाहिए, ताकि कोई भी एक साथी अत्यधिक दबाव में न रहे.

घरेलू काम के विभाजन से वैवाहिक जीवन में संतुलन

शादीशुदा जीवन में कार्य का संतुलित विभाजन कपल्स के लिए कई तरीकों से लाभकारी हो सकता है. यह कपल्स के बीच बेहतर समझ और बातचीत को बढ़ावा देता है और एकदूसरे के लिए सम्मान को भी गहरा करता है. जब दोनों पार्टनर घर और बाहर के कामों में बराबरी से पार्टिसिपेट करते हैं, तो यह शादीशुदा जीवन में संतुलन और संतोष लाता है.

भावनात्मक संतुलन

जब घर का कार्यभार बराबरी से बांटा जाता है, तो यह भावनात्मक संतुलन बनाता है. किसी भी एक व्यक्ति पर जिम्मेदारियों का भार न होने से मानसिक तनाव कम होता है. इस प्रकार दोनों साथी एकदूसरे के साथ ज्यादा समय बिता सकते हैं और अपनी इमोशनल नीड्स पर ध्यान दे सकते हैं.

आपसी समझ और समर्थन

जब कपल्स एकदूसरे की समस्याओं और जिम्मेदारियों को समझने लगते हैं, तो आपसी समझ और समर्थन बढ़ता है. यह न केवल घर के काम का बोझ हलका करता है, बल्कि वैवाहिक रिश्ते को भी मजबूत बनाता है. साथ मिल कर काम करने से एकदूसरे के प्रति सहानुभूति बढ़ती है, जिस से उन के संबंध में सुधार आता है.

कार्यक्षेत्र और घर के बीच तालमेल बैठाना

आजकल कपल्स के लिए घर और कार्यक्षेत्र के बीच तालमेल बैठाना एक बड़ी चुनौती है. कार्यों का सही ढंग से बंटवारा ही इस चुनौती का समाधान हो सकता है. आप घरेलू कार्य का विभाजन कुछ इस प्रकार से कर सकते हैं :

कार्यसूची तैयार करें : पतिपत्नी दोनों को मिल कर एक कार्यसूची तैयार करनी चाहिए, जिस में घर के कामों का सही विभाजन हो. जैसे खाना बनाना, बच्चों की देखभाल, खरीदारी, सफाई आदि. यह सूची सप्ताह के प्रत्येक दिन के अनुसार बनाई जा सकती है, जिस से किसी भी काम का भार केवल एक व्यक्ति पर न पड़े.

बाहर और घर का काम मिलकर करें : यदि दोनों पार्टनर कामकाजी हैं, तो जरूरी है कि बाहर और घर के कामों का सही बैलेंस बनाया जाए. जैसेकि अगर एक व्यक्ति औफिस का काम अधिक करता है, तो दूसरे को घर के कामों में अधिक योगदान देना चाहिए. यह तालमेल बना कर ही तनावमुक्त जीवन जिया जा सकता है.

स्वतंत्रता और सहमति का सम्मान करें : घर के कामों को बांटते समय दोनों की स्वतंत्रता और सहमति का ध्यान रखना आवश्यक है. जब दोनों की सहमति से काम का बंटवारा होता है, तो एकदूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग का भाव भी बढ़ता है.

लिंग के आधार पर कार्य विभाजन के मिथक तोड़ना : अभी भी हमारे समाज में यह धारणा चली आ रही है कि कुछ काम केवल महिलाओं के लिए हैं और कुछ काम केवल पुरुषों के लिए. जैसे खाना बनाना, साफसफाई और बच्चों की देखभाल करना महिलाओं का काम माना जाता है जबकि आर्थिक जिम्मेदारी पुरुषों का काम. लेकिन समय को देखते हुए इस धारणा को बदल देना चाहिए.

घर के सभी कामों को लिंग के आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए. पुरुष भी खाना बना सकते हैं, बच्चों का ध्यान रख सकते हैं और महिलाएं भी परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियां उठा सकती हैं. यह समानता तभी आ सकती है जब हम इन रुढ़िवादी धारणाओं को पीछे छोड़ दें और एकदूसरे के काम को समान दृष्टि से देख कर आगे बढ़ें.

बच्चों को सिखाएं समानता

ज्यादातर बच्चों के जीवन में मातापिता ही उन के सब से बड़े रोल मौडल होते हैं. जब बच्चे यह देखते हैं कि उन के मातापिता घर के कामों में बराबर का योगदान दे रहे हैं, तो वे भी समानता और न्याय को सीखते हैं. इस से बच्चों में यह समझ विकसित होती है कि घर का काम केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी की है. यह समाज में एक सकारात्मक बदलाव की नींव रखता है.

कठिनाइयां और समाधान

समानता का सिद्धांत सुनने में तो सरल लगता है, पर इसे व्यवहार में लाना मुश्किल हो सकता है. कई बार कपल्स अपनी पुरानी आदतों के कारण इस तरह का बैलेंस अपने वैवाहिक जीवन में नहीं बना पाते. इस के लिए आप अपने पार्टनर से खुल कर कार्यभार बंटवारे के विषय पर बातचीत करें. एकदूसरे की राय लें और समस्याओं को सुनें और एक साथ मिल कर हल ढूंढ़ें. लेकिन याद रखें कि घरेलू कार्यों का बंटवारा रातोंरात संभव नहीं होता. यह एक प्रक्रिया है, जिस में समय लगता है. धैर्य और आपसी समझदारी से धीरेधीरे यह संतुलन बनाया जा सकता है और सब से जरूरी है कि आप अपने पार्टनर के साथ मिल कर समय की योजना बनाएं जिस से आप दोनों घर के काम भी कर सकें और एकदूसरे के लिए वक्त भी निकाल सकें.

कार्यभार का सही विभाजन शादीशुदा कपल्स के जीवन में संतुलन और खुशी लाता है. यह केवल वैवाहिक संबंधों को मजबूत नहीं करता, बल्कि पूरे परिवार को एक स्वस्थ और सशक्त वातावरण प्रदान करता है. आज के समय में जब हर व्यक्ति पर काम और परिवार का दबाव है, यह आवश्यक हो जाता है कि पतिपत्नी मिल कर घर के कामों को साझा करें और एकदूसरे के सहयोगी बनें. यही स्वस्थ और सुखी जीवन की कुंजी है.

नाश्ते में सहजन की फली से बनाएं ये खास रेसिपी, टैस्टी के साथ सेहतमंद भी

ड्रमस्टिक अर्थात सहजन की फली कैल्सियम के साथसाथ मिनरल्स, विटामिंस और फाइबर का भी प्रचुर स्रोत होती है. रंग में एकदम हरी इस फली को खाना बहुत लाभकारी होता है पर आमतौर पर इसे खाने से लोग इसलिए परहेज करते हैं क्योंकि इसे चूस कर खाना पड़ता है. यदि आप फली को बीच से काट कर चाकू से खुरच कर इस का गूदा निकाल लें तो इसे खाना काफी आसान हो जाता है.

इस गूदे से आप सब्जी, दाल के साथसाथ पूरियां और परांठे में भी प्रयोग कर सकते हैं. फली के इस गूदे को आप डीप फ्रीजर में स्टोर कर के महीनों तक प्रयोग कर सकते हैं.

आज हम आप को सहजन की फली के गूदे से बहुत ही हैल्दी नाश्ता बनाना बता रहे हैं, जिसे आप घर की सामग्री से ही बहुत आसानी से बना सकते हैं. आप इसे बना कर फ्रिज में रख कर भी झटपट प्रयोग कर सकते हैं। तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है :

कितने लोगों के लिए : 6

बनने में लगने वाला समय : 30 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री (कवर के लिए)
चावल का आटा : 2 कप
घी : 1 टेबलस्पून
पानी : 2 कप
नमक : 1/2 टीस्पून
हलदी पाउडर : 1/4 टीस्पून
राई : 1/4 टीस्पून
सफेद तिल्ली : 1/4 टीस्पून
तेल : 1 टीस्पून

सामग्री (भरावन के लिए)

सहजन (ड्रमस्टिक फली) का गूदा 1 कप
बारीक कटी शिमलामिर्च 1/4 कप बारीक कटा गाजर 1/4 कप बारीक कटा प्याज 1 कटी हरीमिर्च 4 बारीक कटा टमाटर 1 कटा हरा धनियापत्ती 1 टीस्पून जीरा 1/4 टीस्पून गरममसाला पाउडर 1/4 टीस्पून अमचूर पाउडर 1/4 टीस्पून शेजवान चटनी 1 टीस्पून तेल

विधि : पानी में 1/4 चम्मच नमक और 1/2 टीस्पून घी डाल कर उबालें. अब गैस बंद कर दें और लगातार चलाते हुए पानी में चावल के आटे को धीरेधीरे मिलाएं. अब इसे आधा घंटा के लिए ढक कर रख दें.

भरावन बनाने के लिए गरम तेल में जीरा भून कर प्याज और हरीमिर्च डालें. जब प्याज हलका भूरा होने लगे तो सभी सब्जियां, सहजन का गूदा और नमक डाल कर अच्छी तरह चला कर ढक कर सब्जियों के गलने तक पकाएं.

अब शेजवान चटनी और अन्य मसाले मिला कर चलाएं. खोल कर 5 से 7 मिनट तक चलाएं ताकि पानी पूरी तरह सूख जाए. हरा धनिया डाल कर ठंडा होने दें. चावल के आटे को आधा टीस्पून तेल लगा कर मसलें और 4 हिस्सों में बांट लें. सिल्वर फौयल या बटर पेपर पर थोड़ी चिकनाई लगाएं और एक हिस्से को रख कर आधा इंच मोटाई का बेलें. चाकू से 2 इंच के स्क्वेयर काट लें. अब एक स्क्वेयर के बीच में 1 टेबलस्पून भरावन को फैलाते हुए रखें, इस के ऊपर दूसरा स्क्वेयर रख कर हलके हाथ से चारों तरफ से फोल्ड कर के दबा दें. इसी तरह सारे स्क्वेयर तैयार करें.

फिर 1 लीटर उबलते पानी के ऊपर छलनी रखें और उस में चिकनाई लगा कर सभी स्क्वेयर को रख दें. ढक कर 5 से 7 मिनट तक पका कर गैस बंद कर दें.

अब एक पैन में तेल गरम करें और राई, तिल्ली और हलदी पाउडर डाल कर चलाएं. तैयार पार्सल्स को पैन में डाल कर हलके हाथ से चलाएं. धीमी आंच पर 5 मिनट तक भूनें. चाट मसाला बुरकें और बीच से काट कर टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

नाक की सर्जरी से लेकर जोलाइन तक, इन परमानैंट सौल्यूशन से बढ़ाएं चेहरे की खूबसूरती

लड़कियां किसी भी उम्र की हों वे हमेशा सुंदर ही दिखना चाहती हैं, लेकिन हम में से बहुत सी ऐसी यंग गर्ल्स होंगी जो अपने फीचर्स में चैंज करना चाहेंगी इसलिए अगर आप को भी अपने चेहरे में कोई कमी नजर आ रही है तो इस का परमानैंट सौल्यूशन कराएं.

अपने फीचर्स को इन्हैंस करने के लिए सर्जिकल ट्रीटमैंट अपनाएं. इस की मदद से आप चेहरे की कमियों को दूर कर सकती हैं और अपनी सुंदरता को निखार सकती हैं.

यहां हम ऐसे ही सर्जिकल उपचारों के बारे में बताएंगे जो चेहरे की कमियों को दूर करने में मदद करेंगे :

राइनोप्लास्टी (नाक की सर्जरी)

राइनोप्लास्टी एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिस में नाक के आकार को सही किया जाता है. यह नाक की लंबाई, चौड़ाई, नथुने की आकार और नाक के टिप को सही करने के लिए की जाती है.

जिन लोगों की नाक असंतुलित या बहुत बड़ी या छोटी होती है, वे इस सर्जरी का सहारा लेते हैं. जिन व्यक्तियों की नाक का आकार उन के चेहरे के साथ मेल नहीं खाता है या जिन की नाक में श्वसन संबंधी कोई समस्या होती है, उन के लिए यह सर्जरी उपयुक्त हो सकती है.

फेसलिफ्ट (राइनोफेसलिफ्ट)

फेसलिफ्ट सर्जरी उम्र बढ़ने के साथ चेहरे पर आने वाली झुर्रियों और ढीली त्वचा को टाइट करने का एक तरीका है. इस में चेहरे की त्वचा को खींच कर उसे प्राकृतिक रूप से युवा दिखने के लिए टाइट किया जाता है. इस के माध्यम से चेहरे की झुर्रियां, जोलाइन और गरदन की त्वचा में सुधार किया जाता है. यह सर्जरी उन व्यक्तियों के लिए परफैक्ट है जिन्हें उम्र बढ़ने के कारण चेहरे पर ढीलापन और झुर्रियां नजर आती हैं.

ब्लीफेरोप्लास्टी (आंखों की सर्जरी)

ब्लीफेरोप्लास्टी सर्जरी का उद्देश्य आंखों के आसपास की अतिरिक्त त्वचा और फैट को हटा कर आंखों की खूबसूरती को बढ़ाना है. इस में आंखों की ऊपरी और निचली पलकों की सर्जरी की जाती है, जिस से आंखें बड़ी और अधिक उभरी हुई दिखती हैं.

यह सर्जरी उन लोगों के लिए उपयुक्त है जिन की पलकों पर ढीली त्वचा लटक गई है या जिन की आंखों के नीचे बैग्स (सूजन) हो गई है.

जोलाइन सर्जरी (जोलाइन इनहैंसमैंट)

जोलाइन सर्जरी का उद्देश्य जोलाइन को और उभरा हुआ बनाना है. इस प्रक्रिया के तहत चेहरे के निचले हिस्से में इंप्लांट लगाए जाते हैं ताकि जोलाइन शार्प और अट्रैक्टिव दिखाई दे. इस से चेहरे का संपूर्ण आकार अधिक आकर्षक और संतुलित लगता है.

यह सर्जरी उन लोगों के लिए उपयुक्त है जिन का चेहरा गोल है या जिनकी जोलाइन बहुत कम उभरी होती है.

चीक इंप्लांट (गालों की सर्जरी)

चीक इंप्लांट सर्जरी में गालों को अधिक उभरा और परिपूर्ण बनाने के लिए गालों में इंप्लांट लगाए जाते हैं. इस से चेहरे की संरचना में सुधार होता है और चेहरा अधिक संतुलित और सुंदर दिखता है.

जिन लोगों के गाल सपाट या धंसे हुए होते हैं, उन के लिए यह सर्जरी उपयुक्त हो सकती है.

मैंटोप्लास्टी (ठुड्डी की सर्जरी)

मैंटोप्लास्टी, जिसे चिन इनहैंसमैंट या चिन रिडक्शन भी कहा जाता है, ठुड्डी के आकार को बढ़ाने या कम करने के लिए की जाती है. ठुड्डी का आकार चेहरे की समग्र सुंदरता पर बहुत प्रभाव डालता है और यह सर्जरी ठुड्डी की लंबाई या चौड़ाई को सही करने में मदद करती है. यह सर्जरी उन लोगों के लिए उपयुक्त है जिन की ठुड्डी बहुत छोटी या बहुत बड़ी होती है और चेहरा असंतुलित लगता है.

लिपोसक्शन (चेहरे की चर्बी हटाने की सर्जरी)

लिपोसक्शन एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिस में चेहरे के उन हिस्सों से अनचाही चर्बी हटाई जाती है जहां अतिरिक्त फैट जमा हो गया है. इस से चेहरे का आकार और टोन बेहतर होता है, खासकर गरदन और जबड़े के आसपास.

यह सर्जरी उन व्यक्तियों के लिए उपयुक्त है जिन के चेहरे पर अतिरिक्त फैट जमा हो गया है और वे इसे हटा कर चेहरे को अधिक परिभाषित बनाना चाहते हैं.

ओटोप्लास्टी (कान की सर्जरी)

ओटोप्लास्टी सर्जरी कानों के आकार, स्थिति और संरचना को सही करने के लिए की जाती है. यह उन लोगों के लिए उपयुक्त है जिन के कान बहुत बड़े होते हैं या असामान्य रूप से बाहर की ओर निकले होते हैं. जिन लोगों के कान असंतुलित दिखते हैं या जिन्हें अपने कानों के आकार से संबंधित समस्या है उन के लिए यह सर्जरी उपयुक्त हो सकती है।

लिप इनहैंसमैंट (होठों की सर्जरी)

लिप इनहैंसमैंट सर्जरी का उद्देश्य होंठों को अधिक भरा हुआ और आकर्षक दिखाना है. इस में होंठों में फिलर्स का इंजैक्शन लगाया जाता है, जिस से होंठों की मोटाई बढ़ती है और वे अधिक उभरे हुए दिखते हैं.यह उन लोगों के लिए उपयुक्त है जिन के होंठ बहुत पतले होते हैं और वे उन्हें अधिक भरा हुआ दिखाना चाहते हैं.

 जब मैं छोटा था: क्या कहना चाहता था केशव

केशव ने घूर कर अपने बेटे अंगद को देखा. वह सहम गया और सोचने लगा कि उस ने ऐसा क्या कह दिया जो उस के पिता को खल गया. अगर उसे कुछ चाहिए तो वह अपने पिता से नहीं मांगेगा तो और किस से मांगेगा. रानी बेटे की बात समझती है पर वह केवल उस की सिफारिश ही तो कर सकती है. निर्णय तो इस परिवार में केशव ही लेता है.

रानी ने मुसकरा कर केशव को हलकी झिड़की दी, ‘‘अब घूरना बंद करो और मुंह से कुछ बोलो.’’

केशव ने रानी को मुंह सिकोड़ कर देखा और फिर सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘क्या समय आ गया है.’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने अपने पिता से कभी कुछ नहीं मांगा?’’ रानी ने हंस कर कहा, ‘‘बेकार में समय को दोष क्यों देते हो?’’

‘‘मांगा?’’ केशव ने तैश खा कर कहा, ‘‘मांगना तो दूर हमारा तो उन के सामने मुंह भी नहीं खुलता था. इतनी इज्जत करते थे उन की.’’

‘‘इज्जत करते थे या डरते थे?’’ रानी ने व्यंग्य से कहा.

केशव ने लापरवाही का नाटक किया, ‘‘एक ही बात है. अब हमारी औलाद हम से डरती कहां है?’’

अवसर का लाभ उठाते हुए अंगद ने शरारत से पूछा, ‘‘पिताजी, क्या आप के समय में आजकल की तरह जन्मदिन मनाया जाता था?’’

केशव ने व्यंग्य से हंस कर कहा, ‘‘जनाब, ऐसी फुजूलखर्ची के बारे में सोचना ही गुनाह था. ये तो आजकल के चोंचले हैं.’’

‘‘फिर भी पिताजी,’’ अंगद ने कहा, ‘‘कभी न कभी तो आप को जन्मदिन पर कुछ तो विशेष मिला होगा.’’

रानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिला था, एक पाजामा. क्यों, ठीक है न?’’

केशव भी हंसा, ‘‘ठीक है, तुम्हें तो मेरा राज मालूम है.’’

‘‘पाजामा?’’ अंगद ने चकित हो कर पूछा, ‘‘क्या यह भी कोई उपहार है?’’

‘‘बहुत बड़ा उपहार था, बेटे,’’ केशव ने यादों में खोते हुए कहा, ‘‘पिताजी से तो बात करने का सवाल ही नहीं था. जब मैं ने मां से हठ की तो उन्होंने अपने हाथों से नया पाजामा सिल कर दिया था. मैं बहुत खुश था. रानी, तुम भी अंगद को एक पाजामा सिल

कर दो, पर…पर तुम्हें तो सिलना आता ही नहीं.’’

‘‘सारे दरजी मर गए क्या?’’ रानी ने चिढ़ कर कहा.

‘‘पाजामावाजामा नहीं,’’ अंगद ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर कुछ देना है तो मोपेड दीजिए. मेरे सारे दोस्तों के पास है. सब मोपेड पर ही स्कूल आते हैं. बस, एक मैं ही हूं, खटारा साइकिल वाला.’’

के शव ने तनिक नाराजगी से कहा, ‘‘साइकिल की इज्जत करना सीखो. उस ने 20 साल मेरी सेवा की है.’’

‘‘दहेज में जो मिली थी,’’ रानी ने टांग खींची.

‘‘क्या करता,’’ केशव चिढ़ कर बोला, ‘‘अगर स्कूटर मांगता तो तुम्हारे पिताजी को घर बेचना पड़ जाता.’’

‘‘अरे, जाओ भी,’’ रानी ने चोट खाए स्वर में कहा, ‘‘लेने वाले की हैसियत भी देखी जाती है.’’

अंगद ने महसूस किया कि बातों का रुख बदल रहा है इसीलिए बीच में पड़ कर बोला, ‘‘आप लोग तो

फिर लड़ने लगे. मेरे लिए मोपेड लेंगे या नहीं?’’

‘‘बरखुरदार,’’ केशव ने फिर से घूरते हुए कहा, ‘‘जब हम तुम्हारे बराबर थे तो पैदल स्कूल जाते थे. स्कूल भी कोई पास नहीं था. पूरे 3 मील दूर था. उन दिनों घर में बिजली भी नहीं थी इसलिए सड़क के किनारे लैंपपोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ते थे. जेबखर्च के पैसे भी नहीं मिलते थे. दिन भर कुछ नहीं खाते थे. घर आ कर 5 बजे तक रात का खाना निबट जाता था. समझे जनाब? आप मोपेड की बात करते हैं.’’

रानी इस भाषण को कई बार सुनसुन कर उकता चुकी थी इसलिए ताना मार कर बोली, ‘‘तो यह है आप की सफलता का रहस्य. देखो बेटे, ऐसा करोगे तो पिताजी की तरह एक दिन किसी कारखाने के महाप्रबंधक बन जाओगे.’’

अंगद मूर्खों की तरह मांबाप को देख रहा था. उस के मन में विद्रोह की आग सुलग रही थी. बड़ी बहन मानिनी जब भी कुछ मांगती थी तो उसे तुरंत मिल जाता था. एक वही है इस घर में दलित वर्ग का शोषित प्राणी.

नाश्ता समाप्त होने पर केशव कार्यालय जाने की तैयारी में लग गया और नौकरानी के आ जाने से रानी घर की सफाई कराने में व्यस्त हो गई. अंगद कब स्कूल चला गया किसी को पता ही नहीं चला.

कार निकालते समय केशव ने रोज के मुकाबले कुछ फर्क महसूस किया, पर समझ नहीं पाया. बहुत दूर निकल जाने पर उसे ध्यान आया कि आज अंगद की साइकिल अपनी जगह पर ही खड़ी थी. वैसे अकसर साइकिल खराब होने पर अंगद साइकिल घर छोड़ कर बस से चला जाता था.

घर का काम निबट जाने के बाद रानी ने देखा कि अंगद का लंच बाक्स मेज पर ही पड़ा था. वैसे आमतौर पर वह लंच बाक्स ले जाना भूलता नहीं है क्योंकि रानी हमेशा बेटे का मनपसंद खाना ही रखती थी. खैर, कोई बात नहीं, अंगद की जेब में इतने रुपए तो होते ही हैं कि वह कुछ ले कर खा ले.

शाम को रानी को च्ंिता हुई क्योंकि अंगद हमेशा 3 बजे तक घर आ जाता था, पर आज 5 बज रहे थे. केशव के फोन से वह जान चुकी थी कि आज अंगद साइकिल भी नहीं ले गया था, पर बस से भी इतनी देर नहीं लगती. उस वक्त 6 बज रहे थे जब अंगद ने घर में प्रवेश किया. उस का चेहरा लाल हो रहा था और जूते धूलधूसरित हो गए थे. थकान के लक्षण भी स्पष्ट थे.

‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’ रानी ने बस्ता संभालते हुए पूछा.

‘‘बस, हो गई देर, मां,’’ अंगद ने टालते हुए कहा, ‘‘जल्दी से खाना दो. बहुत भूख लगी है.’’

‘‘खाना क्यों नहीं ले गया?’’ रानी ने शिकायत की.

‘‘भूल गया था,’’ अंगद का झूठ पता चल रहा था.

‘‘भूल गया या ले नहीं गया?’’ रानी ने तनिक क्रोध से पूछा.

‘‘कहा न, भूल गया,’’ अंगद चिढ़ कर बोला.

रानी ने अधिक जोर नहीं दिया. बोली, ‘‘जा, जल्दी से कपड़े बदल और हाथमुंह धो कर आ. आलू के परांठे और गाजर का हलवा बना है.’’

अंगद के चेहरे पर झलकती प्रसन्नता से रानी को संतोष हुआ. उसे लगा कि वह वाकई बहुत भूखा है. अंगद के आने से पहले ही उस ने खाना मेज पर लगा दिया था.

अंगद ने भरपेट खाया. कुछ देर तक टीवी देखा और फिर पढ़ाई करने अपने कमरे में चला गया.

8 बजे केशव कार्यालय से आया.

आराम से बैठने के बाद केशव ने रानी से पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं? बहुत शांति है घर में.’’

‘‘मन्नू तो शालू के यहां गई है,’’ रानी ने सामने बैठते हुए कहा, ‘‘कोई पार्टी है. देर से आएगी.’’

‘‘अकेली आएगी क्या?’’ केशव ने च्ंिता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ रानी ने उत्तर दिया, ‘‘शालू का भाई छोड़ने आएगा.’’

‘‘उफ, ये बच्चे,’’ केशव ने अप्रसन्नता से कहा, ‘‘इतनी आजादी भी ठीक नहीं. जब मैं छोटा था तो बहन को तो छोड़ो, मुझे भी देर से आने नहीं दिया जाता था. आगे से ध्यान रखना. वैसे मन्नू कब तक आएगी?’’

‘‘अब क्यों च्ंिता करते हो,’’ रानी ने कहा, पर केशव की मुद्रा देख कर बोली, ‘‘ठीक है, फोन कर के पूछ लूंगी.’’

‘‘और साहबजादे कहां हैं?’’ केशव ने पूछा.

‘‘पढ़ रहा है,’’ रानी ने उत्तर दिया.

‘‘पर मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही,’’ केशव ने पुकारा, ‘‘अंगद…अंगद?’’

‘‘ओ हो, पढ़ने दो न,’’ रानी ने झिड़का, ‘‘कल परीक्षा है उस की.’’

‘‘तो जवाब नहीं देगा क्या?’’ केशव ने क्रोध से पुकारा, ‘‘अंगद?’’

अंगद का उत्तर नहीं आया. केशव अब अधिक सब्र नहीं कर सका. उठ कर अंगद के कमरे की ओर गया और झटके से अंदर घुसा.

‘‘यहां तो है नहीं,’’ केशव ने क्रोध से कहा.

‘‘नहीं है,’’ रानी को विश्वास नहीं हुआ, ‘‘थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस के मांगने पर चाय देने गई थी.’’

केशव ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हां, चाय का प्याला तो है, पर जनाब नहीं हैं. गया कहां?’’

‘‘मुझ से तो कुछ कह कर नहीं गया,’’ रानी ने च्ंिता से कहा, ‘‘मन्नू के कमरे में देखो.’’

‘‘मन्नू के कमरे में भी होता तो जवाब देता न,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘बहरा तो नहीं है.’’

रानी ने तसल्ली के लिए मन्नू के कमरे में  देखा और बोली, ‘‘पता नहीं कहां गया. शायद अखिल के यहां चला गया होगा. उस के साथ ही पढ़ता है न.’’

‘‘कह कर तो जाना था,’’ केशव भी अब च्ंितित था, ‘‘अखिल का घर कहां है?’’

‘‘वह राममनोहरजी का लड़का है,’’ रानी ने कहा, ‘‘309 नंबर में रहता है.’’

‘‘ओह,’’ केशव ने कहा, ‘‘उन के यहां तो फोन भी नहीं है.’’

‘‘थोड़ी देर देख लो,’’ रानी ने अपनी च्ंिता छिपाते हुए कहा, ‘‘आ जाएगा.’’

‘‘और मन्नू…’’

केशव का वाक्य समाप्त होेने से पहले ही रानी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मन्नू के पीछे पड़ गए. कभी तो चैन से बैठा करो.’’

झिड़की खा कर केशव कुरसी पर बैठ कर पत्रिका पढ़ने का नाटक करने लगा.

‘‘खाना लगाऊं क्या?’’ रानी ने कुछ देर बाद पूछा.

‘‘नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘बच्चों को आने दो.’’

‘‘मन्नू तो खा कर आएगी,’’ रानी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘अंगद बाद में खा लेगा. स्कूल से आ कर कुछ ज्यादा ही खा लिया था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘2 की जगह पूरे 4 परांठे खा लिए,’’ रानी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे आलू के परांठे अच्छे लगते हैं न.’’

कुछ और समय बीतने पर केशव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं राममनोहरजी के घर हो कर आता हूं.’’

उसी समय घंटी बजी और मानिनी ने प्रवेश किया. वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘शालू की पार्टी में बहुत मजा आया,’’ मानिनी ने हंसते हुए पूछा, ‘‘यह अंगद सड़क के किनारे क्यों बैठा है? क्या आप ने सजा दी है?’’

‘‘सड़क के किनारे?’’ केशव और रानी ने एकसाथ पूछा, ‘‘कहां?’’

‘‘साधना स्टोर के सामने,’’ मानिनी ने उत्तर दिया, ‘‘क्या मैं उसे बुला कर ले आऊं?’’

इस से पहले कि रानी कुछ कहती केशव ने गंभीरता से कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. शायद पढ़ रहा होगा.’’

‘‘क्या घर में बिजली नहीं है?’’ मानिनी ने पूछा, पर फिर ध्यान आया कि बिजली तो है.

रानी ने खाना लगा दिया. केशव हाथ धो कर बैठने ही वाला था कि अंगद ने आहिस्ताआहिस्ता घर में प्रवेश किया.

केशव ने घूरते हुए पूछा, ‘‘इतनी दूर पढ़ने क्यों गए थे?’’

‘‘क्योंकि पास में कोई लैंपपोस्ट नहीं था,’’ अंगद ने मासूमियत से कहा.

केशव को हंसी भी आई और क्रोध भी. रानी भी हंस कर रह गई.

‘‘चलो, खाने के लिए बैठो,’’ रानी ने कहा.

‘‘स्कूल से आते ही खा तो लिया था,’’ अंगद ने कहा और अपने कमरे में चला गया.

केशव और रानी को अंगद का व्यवहार अब समझ में आ रहा था. लगता था कि नाटक की शुरुआत है.

मानिनी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने पूछा, ‘‘बात क्या है? आज अंगद के तेवर क्यों बिगड़े हुए हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ रानी हंसी, ‘‘शीत- युद्ध है.’’

‘‘क्यों?’’ मानिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मोपेड चाहिए जनाब को,’’ केशव ने कहा, ‘‘हमारे जमाने में…’’

‘‘ओ हो, पिताजी,’’ मानिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मैं समझ गई. न आप कभी बदलेंगे, न आप का जमाना. ठीक है, मैं चंदा इकट्ठा करती हूं.’’

एक मानिनी ही थी जो केशव से बेझिझक हो कर बात कर सकती थी.

केशव ने उसे घूर कर देखा और फिर उठ कर चला गया.

सुबह की चाय हो चुकी थी. जब नाश्ता लगा तो अंगद जा चुका था.

उस की साइकिल पर धूल जम गई थी और हवा भी निकल गई थी.

शाम को थकामांदा अंगद 6 बजे आया.

‘‘क्यों, बस नहीं मिली क्या?’’ रानी ने क्रोध से पूछा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहती हैं.’’

‘‘तो फिर?’’ रानी ने पूछा.

‘‘तो फिर क्या? मुझे भूख लगी है. खाना तो मिलेगा न?’’

रानी को अब क्रोध नहीं आया. जानती थी कि वह भूखा होगा. उस के लिए खीर, पूडि़यां और गोभी की

सब्जी बनाई थी. अंगद ने प्रसन्न हो

कर भरपेट खाया और कमरे में चला गया.

केशव जब आया तब अंगद घर में नहीं था. आते वक्त केशव ने लैंपपोस्ट के नीचे निगाह डाली थी. अंगद धुंधली रोशनी में आंखें गड़ाए पढ़ रहा था.

3 दिन तक यह नाटक चलता रहा.

आज अंगद का जन्मदिन था. हर साल इस दिन रौनक छा जाती थी. पार्टी में आने वाले मित्रों की सूची बनती थी. लजीज व्यंजन बनाए जाते थे. मानिनी कुछ दिन पहले ही से उसे छेड़ने लगती थी और इस छेड़छाड़ में लड़ाई भी

हो जाती थी. वैसे अंगद को इस

बात का बहुत मलाल रहता था कि मानिनी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है.

नींद खुलते ही अंगद की नजर पास पड़े लिफाफे पर पड़ी. लिफाफे को उठाते ही उस में से एक चाबी गिरी. चाबी से लटका एक छोटा सा कार्ड था. उस पर लिखा था, ‘जन्मदिन पर छोटा सा उपहार.’

अंगद की आंखों में चमक आ गई. यह तो मोपेड की चाबी थी. आधी रात को वह एक चिट्ठी खाने की मेज पर छोड़ कर आया जिस में लिखा था :

पूज्य पिताजी और मां,

क्या आप मुझे क्षमा करेंगे? मोपेड के लिए हठ करना मेरी भूल थी. मुझे सिवा आप के आशीर्वाद और प्यार के कुछ नहीं चाहिए.

आप का पुत्र

अंगद.

जब अंगद नीचे पहुंचा तो पत्र मां के हाथ में था और वह पढ़ कर सुना रही थीं. केशव और मानिनी हंस रहे थे.

‘‘पिताजी, आप ने भी जल्दी कर दी. बेकार में मोपेड की चपत पड़ी,’’ मानिनी हंस कर कह रही थी.

अंगद सिर झुकाए शर्मिंदा सा खड़ा था.

‘‘तो आप को मोपेड नहीं चाहिए,’’ केशव ने नकली गंभीरता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ अंगद ने दृढ़ता से उत्तर दिया.

‘‘क्यों?’’ केशव ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्योंकि,’’ अंगद ने गंभीरता से शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब मुझे स्कूटर चाहिए.’’

‘‘क्या?’’ केशव ने मारने के अंदाज में हाथ उठाते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

मानिनी ने बीच में आते हुए कहा, ‘‘पिताजी, छोडि़ए भी. हमारा अंगद अब छोटा नहीं है.’’

‘‘पर जब मैं छोटा था…’’

होहल्ले में केशव अपना वाक्य पूरा न कर सका.

संस्कार: क्या जवान बेटी के साथ सफर करना सही था

जवान बेटी के साथ अकेले सफर करते रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में जवान लड़कों के ग्रुप के कारण वह अपने को असुरक्षित महसूस कर रही थी. लगभग 3 वर्ष बाद मैं लखनऊ जा रही थी. लखनऊ मेरे लिए एक शहर ही नहीं, एक मंजिल है क्योंकि वह मेरा मायका है. उस शहर में पांव रखते ही जैसे मेरा बचपन लौट आता है. 10 दिनों बाद भैया की बड़ी बेटी शुभ्रा की शादी थी. मैं और मेघना दोपहर की गाड़ी से जा रही थीं. मेरे पति राजीव बाद में पहुंचने वाले थे. कुछ तो इन्हें काम की अधिकता थी, दूसरे, इन की तो ससुराल है. ऐनवक्त पर पहुंच कर अपना भाव भी तो बढ़ाना था.

मेरी बात और है. मैं ने सोचा था कुछ दिन वहां चैन से रहूंगी, सब से मिलूंगी, बचपन की यादें ताजा करूंगी और कुछ भैयाभाभी के काम में भी हाथ बंटाऊंगी. शादी वाले घर में सौ तरह के काम होते हैं.

अपनी शादी के बाद पहली बार मैं शादी जैसे अवसर पर मायके जा रही थी. मां का आग्रह था कि मैं पूरी तैयारी के साथ आऊं. मां पूरी बिरादरी को दिखाना चाहती थीं आखिर उन की बेटी कितनी सुखी है, कितनी संपन्न है या शायद दूर के रिश्ते की बूआ को दिखाना चाहती होंगी, जिन का लाया रिश्ता ठुकरा कर मां ने मुझे दिल्ली में ब्याह दिया था. लक्ष्मी बूआ भी तो उस दिन से सीधे मुंह बात नहीं करतीं.

शुभ्रा के विवाह में जाने का मेरा भी चाव कुछ कम नहीं था, उस पर मां का आग्रह. हम दोनों, मांबेटी ने बड़े ही मनोयोग से समारोह में शामिल होने की तैयारी की थी. हर मौके पर पहनने के लिए नई तथा आधुनिक पोशाक, उस से मैचिंग चूडि़यां, गहने, सैंडल और न जाने क्याक्या जुटाया गया.

पूरी उमंग और उत्साह के साथ हम स्टेशन पहुंचे. राजीव हमें विदा करने आए थे. हमारे सहयात्री कालेज के लड़के थे जो किसी कार्यशाला में भाग लेने लखनऊ जा रहे थे. हालांकि गाड़ी चलने से पहले वे सब अपने सामान के यहांवहां रखरखाव में ही लगे थे, फिर भी उन्हें देख कर मैं कुछ परेशान हो उठी. मेरी परेशानी शायद मेरे चेहरे से झलकने लगी थी जिसे राजीव ने भांप लिया था. ऐसे में वे कुछ खुल कर तो कह न पाए लेकिन मुझे होशियार रहने के लिए जरूर कह गए. यही कारण था कि चलतेचलते उन्होंने उन लड़कों से भी कुछ इस तरह से बात की जिस से यात्रा के दौरान माहौल हलकाफुलका बना रहे.

गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी. हम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगे. लड़कों में अपनीअपनी जगह तय करने के लिए छीनाझपटी, चुहलबाजी शुरू हो गई.

वैसे, मुझे युवा पीढ़ी से कभी कोई शिकायत नहीं रही. न ही मैं ने कभी अपने और उन में कोई दूरी महसूस की है. मैं तो हमेशा घरपरिवार के बच्चों और नौजवानों की मनपसंद आंटी रही हूं. मेरा तो मानना है कि नौजवानों के बीच रह कर अपनी उम्र के बढ़ने का एहसास ही नहीं होता, लेकिन उस समय मैं लड़कों की शरारतों और नोकझोंक से कुछ परेशान सी हो उठी थी.

ऐसा नहीं कि बच्चे कुछ गलत कर रहे थे. शायद मेरे साथ मेघना का होना मुझे उन के साथ जुड़ने नहीं दे रहा था. कुछ आजकल के हालात भी मुझे परेशान किए हुए थे. देखने में तो सब भले घरों के लग रहे थे फिर भी एकसाथ 6 लड़कों का गु्रप, उस पर किसी बड़े का उन के साथ न होना, उस पर उम्र का ऐसा मोड़ जो उन्हें शांत, सौम्य तथा गंभीर नहीं रहने दे रहा था. मैं भला परेशान कैसे न होती.

मेरा ध्यान शुभ्रा की शादी, मायके जाने की खुशी और रास्ते के बागबगीचों, खेतखलिहानों से हट कर बस, उन लड़कों पर केंद्रित हो गया था. थोड़ी ही देर में हम उन लड़कों के नामों से ही नहीं, आदतों से भी परिचित हो गए.

घुंघराले बालों वाला सांवला सा, नाटे कद का अंकित फिल्मों का शौकीन लगता था. उस के उठनेबैठने में फिल्मी अंदाज था तो बातचीत में फिल्मी डायलौग और गानों का पुट था. एक लड़के को सब सैम कह कर बुला रहे थे. यह उस के मातापिता का रखा नाम तो नहीं लगता था, शायद यह दोस्तों द्वारा किया गया नामकरण था.

चुस्तदुरुस्त सैम चालढाल और पहनावे से खिलाड़ी लगता था. मझली कदकाठी वाला ईश गु्रप का लीडर जान पड़ता था. नेवीकट बाल, लंबी और घनी मूंछें और बड़ीबड़ी आंखों वाले ईश से पूछे बिना लड़के कोई काम नहीं कर रहे थे. बिना मैचिंग की ढीलीढाली टीशर्ट पहने, बिखरे बालों वाला, बेपरवाह तबीयत वाला समीर था जो हर समय चुइंगम चबाता हुआ बोलचाल में इंग्लिश भाषा के शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा कर रहा था.

मेरे पास बैठे लड़के का नाम मनीष था. लंबा, गोराचिट्टा, नजर का चश्मा पहने वह नीली जींस और कीमती टीशर्ट में बड़ा स्मार्ट लग रहा था. कुछ शरमीले स्वभाव का पढ़ाकू सा लगने वाला मनीष कान में ईयर फोन और एक हाथ में मोबाइल व दूसरे हाथ में एक इंग्लिश नौवेल ले कर बैठा ही था कि आगे बढ़ कर रजत ने उस का नौवेल छीन लिया. रजत बड़ा ही चुलबुला, गोलमटोल हंसमुख लड़का था. हंसते हुए उस के दोनों गालों पर गड्ढे पड़ते थे. रजत पूरे रास्ते हंसताहंसाता रहा. पता नहीं क्यों, मुझे लगा उस की हंसी, उस की शरारतें सब मेघना के कारण हैं. इसलिए हंसना तो दूर, मेरी नजरों का पहरा हरदम मेघना पर बैठा रहा.

मेरे ही कारण मेघना बेचारी भी दबीघुटी सी या तो खिड़की से बाहर झांकती रही या आंखें बंद कर के सोने का नाटक करती रही. अपने हमउम्र उन लड़कों के साथ न खुल कर हंस पाई न ही उन की बातचीत में शामिल हो सकी. वैसे, न मैं ही ऐसी मां और न मेघना ही इतनी पुरातनपंथी लड़की है. वह तो हमेशा सहशिक्षा में ही पढ़ी है. वह क्या कालेज में लड़कों के साथ बातचीत, हंसीमजाक नहीं करती होगी. फिर भी न जाने क्यों, शायद घर से दूरी या अकेलापन मेने मन में असुरक्षा की भावना को जन्म दे गया था.

उन से परिचय के आदानप्रदान और बातचीत में मैं ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई. मुझे लगा वे मेघना तक पहुंचने के लिए मुझे सीढ़ी बनाएंगे. उन लड़कों की बहानों से उठी नजरें जब मेघना से टकरातीं तो मैं बेचैन हो उठती. उस दिन पहली बार मेघना मुझे बहुत ही खूबसूरत नजर आई और पहली बार मुझे बेटी की खूबसूरती पर गर्व नहीं, भय हुआ. मुझे शादी में इतने दिन पहले इस तरह जाने के अपने फैसले पर भी झुंझलाहट होने लगी थी. वास्तव में मायके जाने की खुशी में मैं भूल ही गई थी कि आजकल औरतों का अकेले सफर करना कितना जोखिम का काम है. वे सभी खबरें जो पिछले दिनों मैं ने अखबारों में पढ़ी थीं, एकएक कर के मेरे दिमाग पर दस्तक देने लगीं.

कई घंटों के सफर में आमनेसामने बैठे यात्री भला कब तक अपने आसपास से बेखबर रह सकते हैं. काफी देर तक तो हम दोनों मुंह सी कर बैठी रहीं लेकिन धीरेधीरे दूसरी तरफ से परिचय पाने की उत्सुकता बढ़ने लगी. शायद यात्रा के दौरान यह स्वाभाविक भी था. यदि सामने कोई परिवार बैठा होता तो क्या खानेपीने की चीजों का आदानप्रदान किए बिना हम रहतीं और अगर सफर में कुछ महिलाओं का साथ होता तो क्या वे ऐसे ही अजनबी बनी रहतीं. उन कुछ घंटों के सफर में तो हम एकदूसरे के जीवन का भूगोल, इतिहास, भूत, वर्तमान सब बांच लेतीं.

चूंकि वे जवान लड़के थे और मेरे साथ मेरी जवान बेटी थी इसलिए उन की उठी हर नजर मुझे अपनी बेटी से टकराती लगती. उन की कही हर बात उसी को ध्यान में रख कर कही हुई लगती. उन की हंसीमजाक में मुझे छींटाकशी और ओछापन नजर आ रहा था. कुछ घंटों का सफर जैसे सदियों में फैल गया था. दोपहर कब शाम में बदली और शाम कब रात में बदल गई मुझे खबर ही न हुई क्योंकि मेरे अंदर भय का अंधेरा बाहर के अंधेरे से ज्यादा घना था.

हालांकि जब भी कोई स्टेशन आता, लड़के हम से पूछते कि हमें चायपानी या किसी अन्य चीज की जरूरत तो नहीं. उन्होंने मेघना को गुमसुम बैठे बोर होते देखा तो अपनी पत्रपत्रिकाएं भी पेश कर दीं और वे अपनेअपने मोबाइल में व्यस्त हो गए. जबजब उन्होंने कुछ खाने के लिए पैकेट खोले तो बड़े आदर से पहले हमें औफर किया, हालांकि, हम हमेशा मना करती रहीं.

मैं ने अपनेआप को बहुत समझाया कि जब आपत्ति करने लायक कोई बात नहीं, तो मैं क्यों परेशान हो रही हूं, मैं क्यों सहज नहीं हो जाती. लेकिन तभी मन के किसी कोने में बैठा भय फन फैला देता. कहीं मेरी जरा सी ढील, बात को इतनी दूर न ले जाए कि मैं उसे समेट ही न सकूं. मैं तो पलपल यही मना रही थी कि यह सफर खत्म हो और मैं खुली हवा में सांस ले सकूं.

कानपुर स्टेशन आने वाला था. गाड़ी वहां कुछ ज्यादा देर के लिए रुकती है. डब्बे में स्वाभाविक हलचल शुरू हो गई थी. तभी एक अजीब सा शोर कानों में टकराने लगा. गाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी. स्टेशन आतेआते बाहर का कोलाहल कर्णभेदी हो गया था. हर कोई खिड़कियों से बाहर झांकने की कोशिश कर ही रहा था कि गाड़ी प्लेटफौर्म पर आ लगी. बाहर का दृश्य सन्न कर देने वाला था. हजारों लोग गाड़ी के पूरी तरह रुकने से पहले ही उस पर टूट पड़े थे. जैसे, शेर शिकार पर झपटता है. स्टेशन पर चीखपुकार, लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज, हर तरफ आतंक का वातावरण था.

इस से पहले कि हम कुछ समझते, बीसियों लोग डब्बे में चढ़ कर हमारी सीटों के आसपास, यहांवहां जुटने लगे, जैसे गुड़ की डली पर मक्खियां चिपकती चली जाती हैं. वह स्टेशन नहीं, मानो मनुष्यों का समुद्र पर बंधा हुआ बांध था जो गाड़ी के आते ही टूट गया था. प्लेटफौर्म पर सिर ही नजर आ रहे थे. तिल रखने को भी जगह नहीं थी.

कई सिर खिड़कियों से अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. मेघना ने घबरा कर खिड़की बंद करनी चाही तो कई हाथ अंदर आ गए जो सबकुछ झपट लेना चाहते थे. मेघना को पीछे हटा कर सैम और अंकित ने खिड़कियां बंद कर दीं. पलट कर देखा तो मनीष, रजत और ईश, तीनों अंदर घुस आए आदमियों के रेवड़ को खदेड़ने में लगे थे. किसी को धकिया रहे थे तो किसी से हाथापाई हो रही थी. समीर ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्दीजल्दी सारा सामान बंद खिड़कियों के पास इकट्ठा करना शुरू कर दिया.

लड़कों को उन धोतीकुरताधारी, निपट देहातियों से उलझते देख कर जैसे ही मैं ने हस्तक्षेप करना चाहा तो ईश और सैम एकसाथ बोल उठे, ‘‘आंटीजी, आप दोनों निश्चिंत हो कर बैठिए. बस, जरा सामान पर नजर रखिएगा. इन से तो हम निबट लेंगे.’’

तब याद आया कि सुबह लखनऊ में एक विशाल राजनीतिक रैली होने वाली थी, जिस में भाग लेने यह सारी भीड़ लखनऊ जा रही थी. लगता था जैसे रैली के उद्देश्य और उस की जरूरत से उस में भाग लेने वाले अनभिज्ञ थे. ठीक वैसे ही उस रैली के परिणाम और इस से आम आदमी को होने वाली परेशानी से रैली के आयोजक भी अनभिज्ञ थे.

पूरी गाड़ी में लूटपाट और जंग छिड़ी थी. जैसे वह गाड़ी न हो कर शोर और दहशत का बवंडर था जो पटरियों पर दौड़ता चला जा रहा था. लड़कों का पूरा ग्रुप हम दोनों मांबेटी की हिफाजत के लिए डट गया था. एक मजबूत दीवार खड़ी थी हमारे और अनचाही भीड़ के बीच. उन छहों की तत्परता, लगन, और निष्ठा को देख कर मैं मन ही मन नतमस्तक थी. उस पल शायद मेरा अपना बेटा भी होता तो क्या इस तरह अपनी मां और बहन की रक्षा कर पाता?

कानपुर से लखनऊ तक के उस कठिन सफर में वे न बैठे न उन्होंने कुछ खायापिया. इस बीच वे अपनी शरारतें, चुहलबाजी, फिल्मी अंदाज, सबकुछ भूल गए थे. उन के सामने जैसे एक ही उद्देश्य था, हमारी और सामान की हिफाजत.

मैं आत्मग्लानि की दलदल में धंसती जा रही थी. इन बच्चों के लिए मैं ने क्या धारणा बना ली थी, जिस के कारण मैं ने एक बार भी इन से ठीक व्यवहार नहीं किया. एक बार भी इन से प्यार से नहीं बोली, न ही इन के हासपरिहास या बातचीत में शामिल हुई. क्या परिचय दिया मैं ने अपनी शिक्षा, अनुभव, सभ्यता तथा संस्कारों का? और बदले में इन्होंने इतना दिया, इतना शिष्ट सम्मान तथा सुरक्षा.

उस दिन पहली बार एहसास हुआ कि वास्तव में महिलाओं का अकेले यात्रा करना कितना असुरक्षित है. साथ ही, एक सीख भी मिली कि कम से कम शादीब्याह तय करते हुए या यात्रा पर निकलने से पहले हमें शहर में होने वाली राजनीतिक रैलियों, जलसे, जुलूसों की जानकारी भी ले लेनी चाहिए. उस दिन महिलाओं के साथ घटी दुर्घटनाएं अखबारों के मुखपृष्ठ व टैलीविजन चैनलों की सुर्खियां बन कर रह गईं. कुछ घटनाओं को तो वहां भी जगह नहीं मिल पाई.

लखनऊ स्टेशन का हाल तो उस से भी बुरा था. प्लेटफौर्म तो जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया था. सामान, बच्चे, महिलाओं को ले कर यात्री उस भीड़ से निबट रहे थे. चीखपुकार मची थी. भीड़ स्टेशन की दुकानें लूट रही थी. दुकानदार अपना सामान बचाने में लगे थे. प्रलय का सा आतंक हर यात्री के चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था. मेरी तो आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा था. इतना सारा कीमती सामान और साथ में खूबसूरत जवान बेटी. उस पर ऐसी भीड़ जिस की कोई नैतिकता, न सोच, बस, एक उन्माद होता है.

वैसे तो भैया हमें लेने स्टेशन आए हुए थे लेकिन उस भीड़ में हम उन्हें कहां मिलते. उस भीड़ में तो सामान उठाने के लिए कुली भी न मिल सका. उन लड़कों के पास अपना तो मात्र एकएक बैग था. अपने बैग के साथ सैम ने हमारी बड़ी अटैची ले ली. छोटी अटैची मेरे मना करने पर भी मनीष ने ले ली. हालांकि उस में पहिए लगे हुए थे तो परेशानी की बात नहीं थी. मेघना के पास की बोतल तथा मेरे पास मात्र मेरा पर्स रह गया. हमारे दोनों बैग भी ईश और अंकित के कंधों पर लटक गए थे. उन सब ने भीड़ में एकदूसरे के हाथ पकड़ कर एक घेरा सा बना लिया जिस के बीच हम दोनों चल रही थीं. उन्होंने हमें स्टेशन से बाहर ऐसे सुरक्षित निकाल लिया जैसे आग से बचा कर निकाल लाए हों.

मेरे पास उन का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं थे. उस दिन अगर वे नहीं होते तो पता नहीं क्या हो जाता, इतना सोचने मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं ने जब उन का आभार प्रकट किया तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से मुसकराते हुए कहा था, ‘‘क्या बात करती हैं आप, यह तो हमारा फर्ज था.’’

दिल से मैं ने उन्हें शुभ्रा की शादी में शामिल होने की दावत दी लेकिन उन का आना संभव नहीं था क्योंकि वे मात्र 4 दिनों के लिए लखनऊ एक कार्यशाला में शामिल होने आए थे. उन के लिए 10 दिन रुकना असंभव था. फिर भी एक शाम हम ने उन्हें खाने पर बुलाया. सब से उन का परिचय करवाया. वह मुलाकात बहुत ही सहज, रोचक और यादगार रही. सभी लड़के सुशिक्षित, सभ्य तथा मिलनसार थे.

हम लोग अकसर युवा पीढ़ी को गैरजिम्मेदार, संस्कारविहीन तथा दिशाविहीन कहते हैं लेकिन हमारा ही अंश और हमारे ही दिए संस्कारों को ले कर बड़ी हुई यह युवा पीढ़ी भला हम से अलग सोच वाली कैसे हो सकती है. जरूर उन्हें समझने में कहीं न कहीं हम से ही चूक हो जाती है.

अचानक से बढ़ गई है Air Purifier की मांग, खरीदने से पहले जानिए कुछ जरूरी बातें

जिस तरह गरमी में एसी की जरूरत आवश्यक है, उसी तरह प्रदूषण से बचने के लिए प्यूरीफायर (Air Purifier) का होना भी आवश्यक हो गया है. दिल्ली में तो प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ जाता है कि लोगों को सांस तक लेने में परेशानी होने लगती है जिस कारण खांसी, जुखाम, बुखार जैसी समस्या हो जाती है व फेफड़ों में भी समस्या होने लगती है.

बढ़ती मांग

यह समस्या सिर्फ मौजूदा समय की नहीं है, बल्कि हर साल की है. वायु गुणवत्ता मनकों के मुताबिक 201 से 300 तक का सूचकांक को खराब श्रेणी में माना जाता है व 301 से 400 तक के सूचकांक को अत्यंत खराब श्रेणी में रखा जाता है. वहीं आजकल देश की राजधानी में प्रदूषण का स्तर 363 के आंकड़े को पार कर गया है. वाराणसी व शिमला जैसी जगहें भी बढ़ते प्रदूषण से अछूते नहीं रहे.

ऐसे में जरूरी है कि एक अच्छा प्यूरीफायर खरीदने की. लेकिन इन्हें खरीदने से पहले आप को सही जानकारी होना आवश्यक है.

किन बातों का रखें ध्यान

फिल्टर के चयन के बारे में सही जानकारी हो. फिल्टर आमतौर पर 2 तरह के आते हैं हेपा (HEPA) फिल्टर और कार्बन फिल्टर. HEPA फिल्टर 0.3 माइक्रौन तक के सूक्ष्म कणों को हवा से हटाने तक की गुणवत्ता रखता है. धूल, पराग, धुआं और अन्य छोटे प्रदूषकों से बचाने के लिए यह फिल्टर बैस्ट होते हैं.

कार्बन फिल्टर रसोई, धूम्रपान या कैमिकल गैसों से बचाव के लिए अच्छा औप्शन होते हैं.

खरीदारी करने से पहले

खरीदारी करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि घर के जिस एरिया में इसे रखने वाले हैं वह कमरे के हिसाब से उपयुक्त हो.

कम आवाज वाला 35-50 डेसिबल के बीच का शोर स्तर सामान्य माना जाता है इसलिए नौइस लेवल अवश्य जांच लें.

यूवी और आयन टैक्नोलौजी से लेस प्यूरीफायर बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करते हैं.

स्मार्ट फीचर्स

स्मार्ट फीचर के लिए एयर क्वालिटी सेंसर, औटो मोड, टाइमर सैटिंग्स, और मोबाइल ऐप कनैक्टिविटी जैसी सुविधा से लेस प्यूरीफायर खरीद सकते हैं, ये थोड़े महंगे आते हैं.

एयर प्यूरीफायर के फिल्टर को समयसमय पर बदलने की आवश्यकता होती है. अच्छी क्वालिटी का प्यूरीफायर खरीदना आप के लिए आरामदायक हो सकता है.

दीवाली का इंतजार बेसब्री से करती हूं : ईशा संजय, मराठी ऐक्ट्रैस

दीवाली का त्योहार हर व्यक्ति के लिए खुशियों और रोशनी का त्योहार है। बच्चों से ले कर वयस्क सभी को दीवाली में दीए जलाना, अच्छे कपड़े पहनना, मनपसंद पकवान बनाना और साथ में मिलजुल कर ऐंजौय करना होता है. ऐसे में कुछ सैलिब्रिटीज हैं, जो इसे अपने परिवार के अलावा अपने आसपास के लोगों के साथ इसे मनाना पसंद करते हैं, क्योंकि उन के चेहरे की खुशी उन्हें आनंदित करती है.

आइए, जानते हैं जी मराठी की शो ‘लाखात एक आमचा दादा’ में राजश्री की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री ईशा संजय इस बार दीवाली किस तरह मना रही हैं, जिसे उन्होंने सैट पर पूरी टीम के साथ मनाई है, क्योंकि उन के साथ काम करने वालों के साथ दीवाली मनाने का अनुभव उन के लिए बहुत अलग होता है.

खूबसूरत अनुभव

अपने अनुभव को शेयर करती हुई ईशा कहती हैं कि सैट पर मैं ने इस बार अच्छी तरह दीवाली मनाई है. शूट पर पहले दीवाली मनाने का एक फायदा यह है कि दीवाली से पहले ही हम सभी दीवाली मना लेते हैं, जो प्री दिवाली होती है. असल में सैट पर रोज साथ काम करते हुए सारे टीम के लोग परिवार बन जाते हैं, क्योंकि यहां बहुत सारा समय इन के साथ बिताना पड़ता है। ऐसे में उन के साथ दीवाली की खुशियों को बांटना एक अलग ही अनुभव होता है. मैंने अपनी टीम के भावेश दादा को इस बार चौकलेट गिफ्ट किया है, क्योंकि वे सैट के प्रौपर्टी का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं, साथ ही वे किसी काम को करने से कभी मना नहीं करते। वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं. वैसे तो मैं पटाखे नहीं जलाती, लेकिन इस बार सैट पर मैं ने फुलझड़ी जलाई है.

मिलनेमिलाने का त्योहार

खुशियों के इस त्योहार को ईशा अपने परिवार और आसपास के लोगों के साथ मनाती हैं. वे कहती हैं कि दीवाली का त्योहार मेरे घर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सालभर मैं इस का इंतजार करती हूं. इस दिन सब से मिलना मुझे बहुत पसंद है.

सजावट में कमी नहीं

दीवाली पर घर की सजावट के बारे में ईशा कहती हैं कि मेरे घर में मेरी मां बहुत अच्छी रंगोली बनती है, कभी फूल तो कभी रंगों के मिश्रण से वे तरहतरह के रंगोली बनाती हैं, जो उन के मूड पर निर्भर करता है. उन का थीम हर साल अलग होता है. मैं भी उन के साथ रंगोली बनाने की कोशिश करती हूं, लेकिन मुझ से इतना अच्छा नहीं बन पाता है. इसलिए मैं अधिकतर लाइटिंग पर अधिक ध्यान देती हूं, जिस में लंबी स्ट्रिंग लाइट, जो जलतीबुझती रहती है, जिसे बालकनी में मैं लगाती हूं. इस के अलावा कंदील, दीए, मोमबत्तियां हर तरह के रोशनी से घर को सजाती हूं, जो दिखने में बहुत अच्छा लगता है.

बनते हैं स्वादिष्ठ व्यंजन

मुझे मिठाइयां बहुत पसंद हैं, खासकर दीवाली पर मेरी मां हर तरह की मिठाइयां और नमकीन बनाती हैं, जिस में बेसन के लड्डू, रवा लड्डू, चकली, करंजी आदि खास होते हैं. मुझे याद है कि बचपन से मैं ने मां को बाहर से मिठाई मंगाते हुए नहीं देखा है, क्योंकि उन्हें बाहर की मिठाई पसंद नहीं. मेरी बहन जो अमेरिका में रहती है, उस के पास भी ये सारी चीजें भेजती हैं. मेरे लिए भी घर पर रखती हैं. इसलिए ऐसी मिठाइयां और नमकीन मां दीवाली पर 2 बार बनाती हैं, जिस में मैं मां का हाथ बटाती हूं. करीब 15 दिन पहले से मां की तैयारी शुरू हो जाती है. वैसे तो मां के हाथ का बना सबकुछ मुझे पसंद है, लेकिन उन में चकली सब से अधिक पसंद है, क्योंकि दीवाली के बाद भी मैं सुबह
की चाय चकली के साथ खाती हूं.

मिलती हैं छुट्टियां

दीवाली को पसंद करने की वजह सब से मिलना ईशा के लिए खास होता है, क्योंकि दीवाली के अलावा उन्हें काम से छुट्टी नहीं मिल पाती, इसलिए इस दिन पूरी तरह से फ्री हो कर परिवारजनों और फ्रैंड्स से मिलना उन के लिए बहुत खास होता है, क्योंकि पहले इतना दूर वह कभी नहीं रहीं, इसलिए अब तो उन्हें दीवाली पर घर जाने की बहुत अधिक इच्छा रहती है. साथ ही वे बहुत बातूनी भी हैं, इसलिए सब से खूब बातें करती हैं.

सुपर पावर मिलने पर

सुपर पावर मिलने पर ईशा उन की टीम में काम करने वाले लाइट बौय, स्पौट बौय आदि सभी के लिए दीवाली पर कम से कम 5 दिन की छुट्टी देना चाहेगी, ताकि वे जहां भी रहते हों, घर जा कर परिवार के साथ इस त्योहार को अच्छी तरह से मना सकें.

अंत में इस दीवाली पर ईशा सभी से कहना चाहती हैं कि आप सभी इस बार परिवारजनों और दोस्तों से मिल कर अपनी खुशियों को बांटें. इंस्टाग्राम और फेसबुक का सहारा न लें, पटाखे न फोड़ें, कलरफुल लाइट्स से घरों को सजाएं, ताकि प्रदूषण में कमी आए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी दो महीने बाद शादी होने वाली है. मेरा होने वाला पति मुझसे बहुत प्यार करता है. हर हफ्ते हम मिलते हैं. शादी की शौपिंग भी करवाता है, लेकिन एक समस्या है कि उसकी बहन और मां जब भी मुझसे बात करती हैं कि अजीब तरीके से बात करती हैं, अकसर तंज कसती रहती हैं.

उसकी बहन कहती है कि भाभी जब आप घर आ जाएंगी, तो उसके बाद मैं आराम करूंगी, घर का काम आप करोगे, तो वहीं सासू मां कहती हैं कि बहू तुम्हें शादी के बाद तो नौकरी छोड़नी होगी, घर तो तुम्हें ही संभालना है. मैंने अपने फिऔंसे से ये सारी बातें बताई, तो वह कहता है कि उनकी बातों पर ध्यान न दों. शादी के बाद भी तुम्हें उतनी ही आजादी मिलगी, जैसे तुम्हारे पैरेंट्स ने तुम्हें रखा है, अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं, क्योंकि शादी के बाद सास और ननद भी साथ ही रहेंगी, आप ही बताएं इस स्थिति में मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए ये सवाल आपका बहुत उलझा हुआ है, जैसा कि आपने कहा कि आपके होने वाले पति आपसे बहुत प्यार करते हैं, वह आपको समझते भी हैं. हालांकि ये भी बात सही है कि सास और ननद भी साथ रहेंगी. चूंकि आप वर्किंग हैं, आपकी होने वाली सास जौब छोड़कर घर संभालने की बात कर रही हैं.

हम आपको ये सलाह देंगे कि सबसे पहले आप अपने होने वाले पति से इसके बारे में खुलकर बात करें कि शादी बाद भी आप जौब करना चाहती हैं. जैसा कि घर के कामों को लेकर भी आपकी होने वाली ननद तंज कस रही है, इसके लिए ज्यादा चिंता न करें, अगर आपका पार्टनर आपको समझता है, वह मैनेज कर लेंगे. आप उस घर की सदस्य बनकर जा रही हैं न कि कोई मेड. घर के कामों को सबको मिल बांटकर करना चाहिए. इसके अलावा आप हाउस हैल्पर भी रख सकती हैं, आपके मन में जो कन्फ्यूजन हैं, आप इस बारे में अपने होने वाले पति से बात करें, अगर वह आपको समझते हैं, तो शादी के बाद भी आपको परेशानी नहीं होगी.

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पुरुषों को ये बातें नहीं आती पसंद

पत्नियों का किसी भी बात को ले कर हर समय रोना पति को उकता देता है. अकसर पत्नियां पति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए छोटीछोटी चालों का सहारा लेने लगती हैं. लेकिन जरा सी बात का बतंगड़ बना कर जल्दी ही परेशान हो कर रोने लग जाना पति को पसंद नहीं होता है.

अकसर देखा जाता है कि शादी के कुछ समय बाद ही महिलाएं अपनी वेशभूषा के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. गुडि़या सी दिखने वाली महिला की मुसकराहट कहीं गायब हो जाए और पूरे दिन मैक्सी पहने और छोटा सा जूड़ा बनाए घूमती रहे, तो पति को कोफ्त होना लाजिम है. घर के कामकाज का रोना रोते हुए अस्तव्यस्त कपड़ों और बिखरे बालों वाली महिला को पुरुष पसंद नहीं करते हैं.

सैक्स के मामले में पत्नी का उत्साहित न होना, हमेशा बेरुखी से पेश आना या बिस्तर पर ठंडा होना भी पति पसंद नहीं करते हैं. सैक्स के प्रति खुलापन ही पति बिस्तर पर पसंद करते हैं.

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