जरूरत : उस दिन कौनसी घटना घटी?

औफिस से लौट कर ऊर्जा की नजर लगातार घड़ी पर थी. उसे लग रहा था जैसे आज उस की गति बहुत धीमी है. वह चाहती थी समय जल्दी कट जाए लेकिन इस के विपरीत आज विचारों के घोड़े तेज गति से दौड़ रहे थे और घड़ी की सुइयां आगे सरकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस ने जल्दी से खाना बनाया और जय का इंतजार करने लगी. उस ने आज आने में देर कर दी थी. इंतजार का समय लंबा होता जा रहा था और उस के साथ ऊर्जा की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

9 बजे जय औफिस से आ कर सीधे बाथरूम में घुस गया. इतनी देर में उस ने खाना लगा दिया.

फ्रैश हो कर जय सीधे खाने की मेज पर आ गया और बोला, ‘‘खाने की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. लगता जल्दी घर आ कर मेरे लिए फुरसत से खाना बनाया है.’’

‘‘घर तो जल्दी आ गई थी लेकिन खाना बनाने के लिए नहीं किसी और परेशानी की वजह से आई थी.’’

‘‘क्या हुआ औफिस में सब ठीक तो है?’’

‘‘वहां ठीक है लेकिन यहां कुछ ठीक

नहीं है.’’

‘‘पहेलियां मत बु?ाओ. सीधे और साफ लफ्जों में बताओ बात क्या है ऊर्जा?’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं जय.’’

ऊर्जा सोच रही थी यह सुनते ही उस के

हाथ खाना छोड़ कर रुक जाएंगे लेकिन ऐसा

कुछ भी नहीं हुआ और वह इत्मीनान से खाना खाता रहा.

‘‘कोई नई बात नहीं है ऊर्जा. डाक्टर से मिल कर इस मुसीबत से छुटकारा पा लेना.’’

जय की बात से ऊर्जा अंदर तक तिलमिला गई लेकिन इस समय कुछ कह कर माहौल खराब नहीं करना चाहते थी. वह सधे हुए शब्दों में बोली, ‘‘हम शादी कब कर रहे हैं जय?’’

यह सुन कर उस का हाथ मुंह तक जातेजाते रुक गया. उस ने एक गहरी नजर ऊर्जा पर डाली और बोला, ‘‘हमारे बीच में यह झंझट कहां से आ गया ऊर्जा?’’

‘‘सम?ाने की कोशिश करो जय. हम 3 साल से एकदूसरे के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझते  हैं. तो फिर शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘मुझे शादी का कोई शौक नहीं है. यह बात मैं ने तुम्हें साथ रहने से पहले भी बता दी थी.’’

‘‘शौक मुझे भी नहीं है लेकिन अब जरूरत बन गई है. मैं बारबार इस तरह अर्बोशन नहीं करा सकती. तकलीफ होती है मुझे अपने शरीर का एक हिस्सा काट कर फेंकने में. जो बीतती है उसे वही बता सकता है जो भुक्तभोगी होता है.’’

‘‘यह मेरी गलती से नहीं तुम्हारी लापरवाही से हुआ है.’’

‘‘अच्छा यह जिम्मेदारी भी केवल मेरी

ही है.’’

‘‘इस बार गलती तुम्हारी थी ऊर्जा. याद करो अपने जन्मदिन पर तुम इतनी खुश थीं कि सबकुछ भूल गईं.’’

जय तीखे लहजे में बोला तो अजय चुप हो गई. जय की बात अपनी जगह सही थी. बर्थडे वाले दिन उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी.

जय उसे किसी तरह होटल से घर ले आया. नशे की हालत में उसे कुछ होश नहीं रहा. उस का परिणाम आज उसे भुगतना पड़ रहा था.

‘‘जो हो गया उसे छोड़ो और आने वाली समस्या के बारे में सोचो. समझने की कोशिश करो मैं बारबार ऐसा नहीं कर सकती. सच पूछो मुझे बच्चा चाहिए. मैं उस की परवरिश करना चाहती हूं.’’

‘‘यह तुम कह रही हो ऊर्जा? जब हम ने एकसाथ रहना शुरू किया था तब हमारे बीच में शादी और बच्चा जैसे लफ्ज नहीं थे. बस हमतुम और हमारी जरूरत थी. यही सोच कर मैं ने तुम्हारे साथ रहना शुरू किया था.’’

‘‘बीती बातें भूल जाओ प्लीज. 3 साल का समय गुजर गया है. अब हम एकदूसरे को इतना समझने लगे हैं कि एकदूसरे के बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यह तुम समझती होंगी ऊर्जा मैं नहीं. तुम अब दिल से काम ले रही हो और मैं दिमाग से. ऐसे रिश्तों में दिल को बहुत दूर रखना चाहिए वरना यह जी का जंजाल बन जाता है.’’

‘‘कभी न कभी तुम शादी का फैसला करोगे ही जय. मुझ में क्या कमी है जो तुम मुझे अपना लाइफपार्टनर नहीं बना सकते?’’

ऊर्जा ने तीखे शब्दों में पूछा.

‘‘एक कमी हो तो बताऊं. हमारे इस रिश्ते में जवानी की उमंग और इच्छाएं हैं जिन्हें हम मिल कर ऐंजौय करते हैं अपेक्षाएं नहीं कि दूसरा हमारे लिए क्या करेगा. हम दोनों ने साथ रहने का निर्णय सोचसम?ा कर लिया था. मैं शादी का फंदा जीवनभर के लिए अपने गले नहीं डाल सकता. यह तुम पहले दिन से जानती थीं और आज भी मेरा फैसला अटल है.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी निर्णय है?’’

‘‘यही समझ लो. तुम मुझे अच्छी लगती हो लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर न तुम समझौता करती हो और न मैं.अच्छा होगा कि हम इसी तरह अपनी जिंदगी गुजारें और एकदूसरे से कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘मेरा निर्णय भी सुन लो. इस बार में कोई गलत काम नहीं करूंगी और इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा फैसला है मेरा नहीं. मेरी सलाह मानो और इस परेशानी से जल्दी छुटकारा पा लो. इस के कारण हमें अपना रिश्ता खराब नहीं करना चाहिए.’’

‘‘अगर तुम ठंडे दिमाग से सोचो तो यही बच्चा हमारे रिश्ते को और मजबूत बना सकता है जय,’’ ऊर्जा बोली.

ऊर्जा तर्क कर के थकने लगी थी और जय रुकने का नाम नहीं ले रहा था. ऊर्जा उसे किसी तरह मना नहीं पाई थी.बहस की समाप्ति ऊर्जा के आंसुओं पर हुई  लेकिन जय पर उस का भी कोई असर नहीं पड़ा. खाना खा कर वह चुपचाप बैड पर आ गया और लैपटौप खोल कर अपने काम पर लग गया. उस ने इस बारे में आगे उस से कोई बात नहीं की. ऊर्जा ने भी ठान लिया था कि इस बार वह कमजोर नहीं पड़ेगी और अपनी बात मनवा कर रहेगी.

जय शादी के लिए तैयार नहीं तो क्या हुआ? बहुत सी ऐसी औरतें हैं जिन्होंने अविवाहित रह कर बच्चे को जन्म दिया है.

वह भी ऐसा कर के दिखाएगी. आज आंखों से उस की नींद गायब थी. वह सोच रही थी शायद रात के अंधेरे में अपनी जरूरत पूरा करने के लिए जय उस की ओर रुख करेगा लेकिन

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और सारी रात आंखों में कट गई.

सुबह ऊर्जा देर से उठी. जय बोला, ‘‘उठो ऊर्जा टाइम काफी हो गया है. तुम्हें औफिस के लिए देर हो जाएगी.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रही हूं.’’

‘‘छोटी सी बात के लिए तुम इतनी सीरियस कैसे हो सकती हो? तुम एक आजाद ख्यालात महिला हो. इन सब बातों में तुम्हारा कभी

विश्वास नहीं था. अचानक तुम्हारा दिमाग कैसे पलट गया?’’

जय की बात का उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने अपने लिए ब्रैड सेंकी और मक्खन के साथ खा कर निकल गया. उस के चेहरे पर उस की परेशानी का लेस मात्र भी असर नहीं था. वह सोचने लगी कि कोई व्यक्ति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?

हकीकत सामने थी उस से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता था. वह जानती थी जय जो कुछ सोच रहा है वह अपनी जगह ठीक है.

उन दोनों की दोस्ती इसी वजह से हुई थी. ऊर्जा को दुनिया की कोई परवाह नहीं थी. जय को उस की यह बात बहुत अच्छी लगी थी. वह खुद भी रिश्तों में विश्वास नहीं करता था. वे दोनों साथ उठते, बैठते और इधरउधर घूमते. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता था.

एक दिन जय ने हंसीमजाक में यों ही कह दिया था, ‘‘सड़कों पर घूमने से अच्छा है ऊर्जा

हम दोनों एकसाथ एक ही छत के नीचे रहें. इस से खर्चे भी बचेंगे और अपने लिए अधिक समय भी मिलेगा.’’

जय की मजाक में कही बात ऊर्जा को जंच गई. वह झट से उस के साथ रहने के लिए तैयार हो गई और बोली, ‘‘मु?ा से कोई उम्मीद मत रखना जय. मैं तुम्हारे साथ एक ही घर में लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती हूं. मु?ो पत्नी सम?ाने की भूल मत करना.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. ऐसे रिश्तों में

आपसी विश्वास ही सब से बड़ा होता है. अगर तुम्हें मु?ा पर विश्वास न रहे तो कभी भी छोड़ कर जा सकती हो और यही बात मुझ पर भी लागू होती है.’’

खुले विचारों के ऊर्जा और जय जल्द ही एकसाथ रहने लगे. ऊर्जा के इस निर्णय पर औफिस में बहुत कानाफूसी हुई लेकिन उस ने उन की बातों को हवा में उड़ा दिया. दोनों के औफिस अलगअलग थे इसीलिए उन के बीच का आकर्षण ज्यादा था. एक छत के नीचे दोनों की बहुत अच्छी निभ रही थी. 6 महीने की दोस्ती में ही वे एकदूसरे की पसंदनापसंद को अच्छी तरह समझने लगे. अब बाहर इधरउधर भटकने की ज्यादा जरूरत न थी. छुट्टी के दिन वे लौंग ड्राइव पर निकल जाते और सारा दिन बाहर बिता कर रात में घर लौट आते.

जिंदगी का मजा साथ रहने में था यह बात उन दोनों को अच्छे से सम?ा में आ गई थी. जब पहली बार ऊर्जा के प्रैगनैंट होने का जय को पता लगा तो बहुत चौंक गया था.

बात संभालते हुए ऊर्जा बोली, ‘‘पता नहीं कैसे यह सब हो गया? अगली बार से तुम भी इस बात का खयाल रखना.’’

ऊर्जा ने डाक्टर को अपनी समस्या बता कर उस से छुटकारा पा लिया. 2 दिन की परेशानी के बाद सबकुछ सामान्य हो गया. उन का जीवन पहले की तरह बंधनमुक्त हो कर बहुत अच्छे से कट रहा था. जय के साथ रहते हुए उसे कभी घर की याद तक न आती. वैसे भी ऊर्जा को अपने घर से कोई लगाव न था. होता भी कैसे उस की अपनी मम्मी छुटपन मैं गुजर गई थी जब वह 8 साल की थी. पापा ने घर की जरूरत को देखते हुए अपनी सहकर्मी वीरा से शादी कर ली थी. उस का पहले से घर में आनाजाना था.

ऊर्जा ने उसे मम्मी के रूप में कभी नहीं अपनाया. वीरा ने अपनी ओर से बहुत कोशिश लेकिन उसे देख कर ऊर्जा का खून खौल उठता. सबकुछ जान कर ओजस ने उसे होस्टल भेज दिया. घर पर पैसे की कमी नहीं थी. उसे भी होस्टल रास आने लगा था.

स्वभाव से उग्र होने के कारण उस के फ्रैंड्स की लिस्ट भी छोटी ही थी. देखते ही देखते उस ने इंटर पास कर लिया और इंजीनियरिंग कालेज में आ गई. छुट्टियों में घर आने के बजाय वह इधरउधर घूमना ज्यादा पसंद करती. उसे अकेले घूमने में भी कोई एतराज न था.

बीटैक करते ही उस ने एक कंपनी जौइन कर ली. औफिस के काम से उसे इधरउधर जाना पड़ता. उस के कई पुरुष मित्र थे लेकिन उस ने कभी किसी को अपने इतने नजदीक नहीं आने दिया कि वह उस के लिए अपने दिल में कुछ महसूस कर सके.

जय में कुछ बात थी. वह उस के व्यक्तित्व से ज्यादा बातों और खुलेपन से प्रभावित हो गई थी और उस के मजाक में दिए एक प्रस्ताव पर उस के साथ रहने लगी थी. ओजस यह बात जानते थे. ऊर्जा ने फोन पर पापा को यह बात बता दी थी. सुन कर उन्हें अच्छा नहीं लगा था. उन्होंने उसे समाज की दुहाइयां दीं और इस रिश्ते को शादी में बदलने के लिए दबाव डाला था लेकिन वह नहीं मानी.

पापा को दुखी देख कर दिल के किसी कोने में उसे सुकून मिल रहा था. जिस ने उस की परवाह नहीं की वह उन की भावनाओं की परवाह क्यों करे? यह बात उस का रोमरोम

चीख कर कह रहा था. पिछले साल पापा चले गए. उन के गुजरने पर वह घर आई थी. वीरा को विधवा के भेष में देख कर उसे जरा भी बुरा नहीं लगा. उसे मम्मी से पहले भी कोई उम्मीद नहीं थी. अब बीच का वह पुल भी टूट गया था जिस से वे दोनों जुड़े थे. तब से उस ने घर आना लगभग बंद ही कर दिया था. वीरा अकसर फोन करती लेकिन वह उसे उठाना तक भी जरूरी न समझती. कभी मन आया तो हैलोहाय कर देती वरना फोन पर वीरा का चेहरा देख कर उस की नफरत भड़क जाती.

आज जय के रूखे व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला दिया था. उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसी हालत में वह कहां जाए? खून के रिश्तों से उस ने पहले ही किनारा कर लिया था. अपना कहने के लिए उस के पास कोई भी नहीं था. दोस्त भी ऐसे थे जिन से यह बात शेयर कर वह उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी. बहुत सोच कर उस ने घर जाने का मन बना लिया. दोपहर में जय के नाम एक नोट छोड़ कर वह अपना सामान समेट  घर चली आई. औफिस में भी उस ने मेल से सिक लीव ले ली थी. सामान के साथ निकलते हुए उस ने एक नजर घर पर डाली और उसे अलविदा कह चली गई.

अचानक ऊर्जा को घर आया देख कर वीरा चौंक गई. उस की शक्ल से लग रहा था कुछ तो हुआ है जिस से ऊर्जा ने घर का रुख कर लिया वरना उस ने इस घर को कभी अपना समझ ही नहीं था. वीरा ने खुले दिल से उस का स्वागत किया. बदले में ऊर्जा ने भी एक फीकी मुसकान दे दी.

वीरा ने आते ही उस से कुछ पूछना ठीक नहीं सम?ा. बड़ी मुश्किल से वह लंबे अरसे बाद घर आई थी. कुछ पूछ कर वह उस का मूड खराब नहीं करना चाहती थी.

वीरा उस की हर जरूरत का खयाल रख रही थी. उस की अपनी कोई औलाद नहीं थी. लेदे कर उस के दिवंगत पति ओजस की एकमात्र निशानी ऊर्जा ही थी. 2 दिन तक उन के बीच मौन पसरा रहा. आखिर ऊर्जा की हालत देख कर वीरा ने चुप्पी तोड़ कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘कितने दिन की छुट्टी ली है ऊर्जा?’’

‘‘अभी सोचा नहीं. जब तक मन लगेगा तब तक रहूंगी. उस के बाद चली जाऊंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा अपना घर है. मैं कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी ऊर्जा. मेरा भी तुम्हारे अलावा कोई नहीं है,’’ वीरा बोली तो ऊर्जा ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया. पहली बार उस की बात सुन कर वह ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में नहीं गई. वरना ओजस के रहते  मम्मीपापा के कुछ कहते ही वह उठ कर वहां से चली जाती थी.

इस से वीरा का हौसला कुछ और बढ़ गया. उसी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘कोई परेशानी हो तो कह दो. बता देने से मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं,’’ ऊर्जा निर्विकार भाव से बोली.

यह सुन कर वीरा के मन में कई सवाल उठ रहे थे लेकिन उस ने कुछ पूछना उचित नहीं सम?ा. उसे अच्छा लगा कि ऊर्जा ने उसे इस लायक तो सम?ा और अपनी स्थिति बता दी.

‘‘तुम्हें आराम करना चाहिए. तनाव बच्चे के लिए अच्छा नहीं होता.’’

‘‘इसी वजह से घर आई हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगी ऊर्जा. तुम्हें पता भी नहीं लगेगा यह समय कब बीत गया.’’

ऊर्जा को यह सुन कर तसल्ली हुई कि उस के यहां आने से वीरा को कोई परेशानी नहीं है. थोड़ा साहस कर वह बोली, ‘‘मैं ने अभी तक शादी नहीं की है.’’

यह सुन कर वीरा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. ओजस ने उसे बता दिया था कि ऊर्जा किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है. वह सम?ा गई यह बच्चा उसी का होगा. वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं है. जब मरजी हो तब शादी कर लेना. अभी अपना ध्यान सेहत पर दो. अब पहले वाले जमाने नहीं रह गए पहले शादी फिर बच्चा.’’

‘‘जानती हूं तभी इतना बड़ा फैसला ले सकी वरना…’’ कहतेकहते वह रुक गई.

वीरा ने उसे कुरेद कर कुछ नहीं पूछा. इतना वह सम?ा गई कि अपने मन की बात वह धीरेधीरे उसे बता देगी. उसे बस ऊर्जा का विश्वास जीतना था. वीरा के बरताव ने ऊर्जा का दिल काफी हद तक जीत लिया था और उस ने थोड़ाथोड़ा कर सारी बात उसे बता दी.

‘‘तुझे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी.’’

‘‘मैं अभी छुट्टी पर हूं.’’

‘‘परिस्थितियों से भाग कर समस्या का समाधान नहीं निकलता ऊर्जा. 10 तरह की नकारात्मक बातें मन में आती हैं.’’

‘‘आप जानती हैं मैं ने कभी किसी के जज्बातों की परवाह नहीं की न ही मेरा रिश्तों

में कोई विश्वास रहा. मैं इतना ही सम?ा पाई हूं अपने  शरीर के किसी हिस्से को बारबार काट

कर फेंकना कहां की बुद्धिमानी है? विचारों की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता तभी तक सुकून देती है जब तक वह दिल पर असर न डाले. एक ही घटना के बारबार होने से मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा है. मैं अब यह काम नहीं करना चाहती.’’

‘‘तुम ने जो सोचा वह अपने हिसाब से बिलकुल ठीक है. इस समय ऐसी बातें सोचने से तुम्हारी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा. तुम खुश रहो मैं इतना ही चाहती हूं,’’ वीरा ने उसे सांत्वना दी तो ऊर्जा को अच्छा लगा.

जब वह छोटी थी तब भी वीरा ने उस के पास आने की बहुत कोशिश की लेकिन उस ने उस की भावनाओं को कभी कोई महत्त्व नहीं दिया था. पापा के साथ किसी और औरत को देखने की वह कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. वीरा को देख कर उसे बड़ा अटपटा लगता था. वह पापा की पत्नी जरूर थी लेकिन उस की मम्मी नहीं. उस ने अपने व्यवहार से कभी उसे मम्मी बनने का मौका ही नहीं दिया.

पापा के चले जाने के बाद ऊर्जा पहली बार वीरा के इतने नजदीक आई थी. उसे लगा वह एक भली औरत है. उसी की भूल थी जो वह उसे गलत सम?ाती रही. ऊर्जा के फैसले के खिलाफ उस ने एक शब्द भी नहीं कहा और उस की हर बात को जायज ठहराते हुए ऐसी हालत में उस का साथ दे रही थी.

घर पर ऊर्जा को पापा की बहुत याद आ रही थी. वह एक अच्छे इंसान थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए वीरा को उन्होंने अपना जीवनसाथी बनाया था. इस में कोई बुराई भी नहीं थी. वे चाहते तो किसी से भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकते थे. उन के मन में स्त्री

के लिए सम्मान था इसीलिए उन्होंने अपनी सहकर्मी वीरा को घर की इज्जत बना कर उसे अपनाया था. दोनों खुश थे. ऊर्जा को ही यह सब पसंद नहीं था और यहीं से उस के विचारों में बगावत शुरू हो गई. तब उसे लग रहा था शायद पापा को दुखी करने के लिए उस ने यह कदम उठाया था.

ऊर्जा बड़ी देर से पापा की तसवीर देख रही थी. वीरा उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘बीती बातें याद करने से कोई फायदा नहीं. आने वाले भविष्य की ओर देखो ऊर्जा. जो बीत गया उसे लौटाया नहीं जा सकता. ओजस तुम्हें बहुत याद करते थे. वे हर समय तुम्हारी चिंता करते थे और तुम्हें अपने पास रखना चाहते थे.’’

उस के पास कहने के लिए कुछ बचा भी नहीं था. वीरा उसे हर समय चिंता में डूबे देखती. एक दिन उस ने साहस कर के पूछ लिया, ‘‘तुम अपने इस फैसले से खुश तो हो ऊर्जा? अभी भी समय है तुम इस बारे में एक बार फिर सोच सकती हो.’’

‘‘मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही यह फैसला लिया है. मैं सिंगल मदर बनूंगी और बच्चे को पालपोस कर बड़ा करूंगी.’’

‘‘तुम्हारे विचार बहुत अच्छे हैं लेकिन कभी उस बच्चे की नजरिए से भी सोचना जिस के मन में दुनिया देखने के बाद कई प्रश्न खड़े होंगे,’’ वीरा बोली.

उस की बात सुन कर ऊर्जा चौंक गई. उस ने अभी इस दृष्टिकोण से कुछ सोचा ही नहीं था. वीरा ने यह कह कर उसे ?ाक?ार दिया.

ऊर्जा सोचने लगी अपनी मम्मी के चले जाने के बाद वह पापा के साथ वीरा को देख तक न सकी थी. कितना बुरा लगता था पापा के साथ उन्हें हंसतेबोलते देख कर. भविष्य में अगर कभी उस ने शादी करने का फैसला लिया तो क्या आने वाला मेहमान उस के नए जीवनसाथी को स्वीकार कर पाएगा. यह यक्ष प्रश्न उस के सामने खड़ा था जिसे चाह कर भी अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रही थी.

3 महीने पूरे होने में अभी 1 हफ्ता बाकी था और वह अपनेआप से लड़ रही थी कि अपने या बच्चे में से किस के दृष्टिकोण से जिंदगी को देखे.

ऊर्जा के इस तरह घर से चले जाने पर जय को घर में खालीपन लगने लगा था. वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था कि एक न एक दिन ऊर्जा उसे छोड़ कर चली जाएगी. वह अपनेआप को ऊर्जा के बगैर रहने के लिए तैयार करने लगा. जीवन का जो सुख उसे चाहिए था वह उस ने ऊर्जा के साथ भरपूर भोगा था. वह किसी नए रिश्ते में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करना चाहता था. उस ने 1-2 बार ऊर्जा से बात करने की कोशिश की लेकिन उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया था .वह स्क्रीन पर भी उस के संपर्क में नहीं आना चाहती थी.

3 साल में क्या कुछ नहीं किया था उसने जय के लिए. उस की हर इच्छा का मान किया लेकिन उस ने उसे एक मशीन समझ लिया था जिस में आधुनिकता और खुलेपन के नाम पर भावनाएं नहीं रह गई थीं. यह चौथी बार था जब जय उसे अबौर्शन कराने के लिए कह रहा था. ऐसी परिस्थिति आने पर हर बार वह उसे दोषी करार कर देता और खुद जिम्मेदारी लेने से बच जाता.

कुछ हफ्तों बाद जय को उस की कमी खलने लगी.

वह कई मामलों में जिद्दी थी लेकिन उस की हर इच्छा का बहुत खयाल रखती थी. वह अब उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया था. उसे घर के हर हिस्से में ऊर्जा की उपस्थिति महसूस होती. उसे लगने लगा कि ऊर्जा ही नहीं वह भी दिल की गहराइयों से उसे चाहने लगा.

यह बात उस का दिमाग उस वक्त स्वीकार नहीं कर सका था. आंखों के आगे से भौतिकवाद और आधुनिकता का परदा हटते ही जय को बहुत कुछ दिखाई देने लगा. वह उस से मिलने के लिए बेचैन था.

एक दिन वह हिम्मत कर ऊर्जा से मिलने उस के घर आ गया. उस समय ऊर्जा डाक्टर के पास अपनी दुविधा ले कर गई हुई थी. अचानक जय को घर पर देख कर वीरा चौंक गई. ऊर्जा ने उसे काफी कुछ उस के बारे में बता दिया था.

‘‘ऊर्जा कहां है आंटी? मैं उस से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘वह घर पर नहीं है कुछ देर बाद आ जाएगी,’’ सही बात छिपा कर वीरा बोली.

‘‘मैं ने ऊर्जा को बहुत हर्ट किया है. उसी की माफी मांगने आया हूं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो? आजकल के नौजवान इसी तरह के रिश्तों को तवज्जो दे रहे

हैं. इस में माफी जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं होती.’’

‘‘मानता हूं हम ने नए रिश्ते की शुरुआत अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा करने के लिए

की थी. ऊर्जा कब मु?ा से प्यार करने लगी कह नहीं सकता. वह अब इस जरूरत को एक पवित्र रिश्ते का नाम देना चाहती थी. मैं ही इस के लिए तैयार नहीं था.

‘‘मेरा मन इसे स्वीकार नहीं कर रहा था. रिश्ते में हम बड़ी उम्र में भी बंध सकते हैं. अगर हमें जवानी अपनी शर्तों पर खुशीखुशी

जीने के लिए मिलती है तो हम बेकार के पचड़े

में क्यों पड़े? यही सोच कर मैं ने उस की बात नहीं मानी.’’

‘‘नए जमाने की हवा ही कुछ ऐसी है. उस में जज्बातों के लिए जगह ही नहीं रही. तुम दोनों  अपनीअपनी जगह सही हो. जिसे जो ठीक लगे वही करो. इस में बड़ों की रजामंदी कोई माने नहीं रखती,’’ वीरा बोली.

तभी ऊर्जा घर लौट आई. जय को ड्राइंगरूम में देख कर उस से कुछ पूछते नहीं बना.

‘‘कैसी हो ऊर्जा?’’

‘‘अच्छीभली हूं. तुम कैसे हो जय?’’

‘‘तुम्हारे बिना कैसा हो सकता हूं?’’ जय बोला तो ऊर्जा चौंक गई. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि शरीर के स्तर पर जीने वाला इंसान कभी दिल की बात भी सुन सकता है.

‘‘मैं ने तुम से कई बार बात करने की कोशिश की. तुम ने मुझे मोबाइल के साथसाथ अपनी जिंदगी से भी डिलीट कर दिया.’’

‘‘जब तुम्हें मेरी जरूरत ही नहीं रही तो फोन पर नंबर रख कर क्या करती. तुम्हारे लिए मैं एक औरत होने के अलावा और कोई माने नहीं रखती जो तुम्हारी शारीरिक जरूरत पूरी कर सके.’’

‘‘ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो.

मुझे अपनी गलती का एहसास है. जानता हूं हमारे रिश्ते की शुरुआत चाहे जैसे भी हुई लेकिन अब हम एकदूसरे को प्यार करते हैं और एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते,’’ जय बोला तो ऊर्जा की आंखों की कोरों पर आंसू की 2 बूंदें आ कर टिक गईं.

जय ने बड़ी सावधानी से अपनी उंगलियों की पोरों से उन्हें पोंछ कर उसे अपने आलिंगन में ले लिया. ऊर्जा ने भी उस का विरोध नहीं किया. उन्हें बातें करते देख वीरा रसोई में आ गई थी. आवाज की तीव्रता धीरेधीरे कम हो कर मौन में बदल गई थी. वह समझ गई दोनों के बीच समझौता हो गया है. वे बड़ी देर तक एकदूसरे के आगोश में खोए रहे. दिल की बात आंखों से बहते आंसू बयां कर रहे थे.

तभी वीरा के आने की आहट पा कर वे दोनों एकदूसरे से अलग हो गए.

जय बोला, ‘‘आंटी मैं ऊर्जा से शादी करना चाहता हूं. आप को कोई आपत्ति तो नहीं है?’’

‘‘यह कह कर तुम ने मु?ो जो खुशी दी है उसे मैं बयां नहीं कर सकती लेकिन इस के लिए तुम्हें ऊर्जा से अनुमति लेनी होगी.’’

‘‘ऊर्जा तुम मुझ से शादी के लिए तैयार हो?’’ घुटने के बल जमीन पर बैठ कर जय उसे प्रपोज करते हुए बोला.

उस ने सिर झुका कर अपनी सहमति दे दी.

‘‘मैं आज ही कोर्ट में शादी के लिए ऐप्लिकेशन दे दूंगा. तुम मेरे साथ चलने की तैयारी करो ऊर्जा.’’

ऊर्जा ने यह सुन कर वीरा की ओर देखा.

‘‘अब तो दुलहन की विदाई शादी के बाद ही होगी जय. तब तक तुम्हें इंतजार करना होगा.’’

यह सुन कर ऊर्जा के चेहरे पर मुसकान खिल गई और गाल शर्म से लाल हो गए.

खुशी के इस मौके पर आज पहली बार ऊर्जा अपनत्व से भर कर वीरा के गले लग गई. यह देख कर उस की आंखें भर आईं. वीरा को इतने वर्षों बाद आज बेटी के साथ दामाद भी मिल गया था.

बढ़ती महंगाई फीकी रौनक

महीनों से त्योहारों का इंतजार करते दुकानदार सुस्त नजर आ रहे हैं. दीवाली पर औफर में खरीदने की फिराक में ग्राहक भी घर में शांत बैठे हैं. शौपिंग करने की लिस्ट तो लंबी है लेकिन जेब में रकम सामान के बजट से काफी छोटी है. सोनाचांदी तो दूर खाद्यपदार्थ ही सोने के भाव हो रहे हैं फिर क्या दीवाली और क्या दशहरा. मंहगाई की मार चारों तरफ है.

कमरतोङ महंगाई

महंगाई ने आमलोगों की कमर तोड़ रखी है. ऐसे में इस बार की दीवाली लोगों की जेब पर महंगी पड़ी और ग्राहकी उम्मीद से भी कम नजर आई.

त्योहारों पर गुलजार होने वाले बाजार सामान्य दिनों की तरह ही नजर आ रहे हैं और सरकार जाने कहां सोई हुई है जो आमलोगों की थाली से दाल, सब्जी दूर होने पर भी सुध नहीं ले रही है.

बाजार में खामोशी

दीवाली पर शादियों के लिए सोनेचांदी की खरीदारी करने वाले ग्राहक इक्कादुक्का ही नजर आ रहे हैं. जहां पहले मध्यवर्ग परिवार की बेटी को 10 -15 ग्राम तक के सोने से बने आभूषण भेंट करने की सोचता था अब वह 5-6 ग्राम पर ही सिमट गया है. और तो और आमजन की थाली से सब्जी व दालें नदारद होती नजर आ रही हैं, वहीं त्योहारों पर पूरीसब्जी खाने का मन करे तो लोगों को मनमसोस कर रहना पड़ेगा क्योंकि एकदम से आए तेल के रेट में उछाल ने लोगों को सकते में कर दिया है. पिछले कुछ दिनों में खाद्यपदार्थ पहुंच से बाहर हो गया है.

15 लीटर के टीन रिफंड औयल की कीमत पहले से ₹550 से 600 अधिक हो गई है क्योंकि इस पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी गई है यानि एक किलोमीटर तेल के रेट एकसाथ ₹35 के तकरीबन बढ़ा दिए हैं.
वहीं सरकार अपने महकमे से जुड़े लोगो की बल्लेबल्ले करने में लगी है.

जनता त्रस्त समरकार मस्त

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार (16 अक्तूबर, 2024) को महंगाई की भरपाई के लिए केंद्र सरकार के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते और पेंशनभोगियों को महंगाई राहत (डीआर) की मंजूरी दी है साथ ही केंद्रीय सरकार के बाद उत्तर प्रदेश व आंध्र प्रदेश नें भी 3% भत्ते में बढोत्तरी की है. यह कहां का इंसाफ है कि जनता को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया जाए या सुखसुविधा मुहैया कराई जाए.

एहसान: क्या हुआ था रुक्मिणी और गोविंद के बीच

अंधेरा हो चला था. रुक्मिणी ने सब से पहले तो बैलगाड़ी जोती और अनाज के 2 बोरे गाड़ी में रख अपने गांव की तरफ चल दी. अंधेरे को देखते हुए रुक्मिणी ने लालटेन जला कर लटका ली थी. इस बार फसल थोड़ी अच्छी हो गई थी, इसलिए वह खुश थी. खेत से निकल कर रुक्मिणी की गाड़ी रास्ते पर आ गई थी. अभी वह थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि उसे पेड़ से टकराई हुई मोटरसाइकिल दिखी. उस को चलाने वाला वहीं खून से लथपथ पड़ा था. रुक्मिणी ने गाड़ी रोकी और लालटेन निकाल कर उस के चेहरे के पास ले गई. उस आदमी की नब्ज टटोली, जो अभी चल रही थी. इस के बाद उस का चेहरा देख कर एक पल के लिए तो रुक्मिणी का भी सिर घूम गया. वह सरपंच का बेटा मंगल सिंह था.

मंगल सिंह को देख कर रुक्मिणी का एक बार मन हुआ कि उसे ऐसा ही छोड़ कर आगे बढ़ जाए, लेकिन आखिर वह भी एक औरत थी और न चाहते हुए भी उस ने गाड़ी के सामान को एक तरफ किया और फिर मंगल सिंह को उठा कर गाड़ी में डाल लिया. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी मंगल सिंह को वह सरपंच के हवाले कर दे. इसी के साथ पुरानी यादों ने रुक्मिणी के जख्म को ताजा कर दिया.

सीतापुर गांव में रामलाल अपने छोटे से परिवार के साथ रहता था. उस के पास छोटा सा खेत था, इसी के साथ उस की पत्नी त्रिवेणी सरपंच गोविंद सिंह के यहां झाड़ूपोंछे का काम करती थी. त्रिवेणी के साथ उस की बेटी रुक्मिणी भी आती थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी की उम्र बढ़ने के साथसाथ उन के दिलों में प्यार की कोंपलें भी फूटने लगी थीं और अकसर वे दोनों गांव व खेतों में निकल जाया करते थे. रुक्मिणी के भरते शरीर, उभार और जवानी का रसपान गोविंद सिंह भी दूर से करने लगा था. रुक्मिणी इन सब बातों से दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी. गंगू ने जब सरपंच गोविंद सिंह को रुक्मिणी और मंगल सिंह की प्रेम कथा बताई, तो वह आगबबूला हो गया.

पहले तो गोविंद सिंह ने मंगल सिंह को समझाया, ‘मैं तुम्हारी शादी दूसरी जगह कर दूंगा, जहां से अच्छा दहेज मिल जाएगा और वैसे भी रुक्मिणी हमारी बराबरी की नहीं है.’ जब मंगल सिंह पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ, तब उस ने रुक्मिणी के पीछे अपने आदमी छोड़ दिए. वे उसे बदनाम करने लगे. एक बार रुक्मिणी के पिता रामलाल ने उस से उस की शादी की बात की, तो वह उसे टाल गई. समय धीरेधीरे गुजर रहा था. आखिर गोविंद सिंह ने एक दिन रुक्मिणी को उठवा लिया और मंगल सिंह से कहा कि वह गांव के किसी लड़के के साथ भाग गई है. कुछ दिन बाद जब गोविंद सिंह ने उसे छोड़ा, तब तक मंगल सिंह उस से दूर चला गया था. रुक्मिणी में जिंदगी जीने और हालत से जूझने का हौसला था, इसलिए वह इतने पर भी टूटी नहीं. थोड़े दिन बाद इसी गम में रुक्मिणी के मांबाप भी इस दुनिया से चल बसे. लेकिन इन सब हालात ने उसे और भी जुझारू बना दिया था. इस के बाद रुक्मिणी ने खेतीबारी को खुद संभाल लिया और पास के दूसरे गांव में रहने चली गई. अमीर घराने की लड़की मंगल सिंह के साथ ज्यादा दिन नहीं निभा सकी और एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चली गई.

इस के बाद मंगल सिंह पागल जैसा हो गया, क्योंकि बाद में उसे भी रुक्मिणी के साथ हुए गलत बरताव के बारे में मालूम पड़ा था. इस के बाद मंगल सिंह अपने को कुसूरवार मानता था, उस से माफी मांगना चाहता था. इस के बाद उस ने भी अपने पिता सरपंच गोविंद सिंह का घर छोड़ दिया था और अलग रहने लगा था. उस दिन भी मंगल सिंह रुक्मिणी से माफी मांगने के लिए उस के खेत पर ही जा रहा था. दिमागी परेशानी से उस का ध्यान सड़क से भटक गया था और सामने से आते हुए ट्रैक्टर ने उस की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी तभी मंगल सिंह ने कराहते हुए अपनी आंखें खोलीं. अब रुक्मिणी भी यादों से वापस आ गई थी. सरपंच का घर अभी थोड़ी दूर था, इसलिए मंगल सिंह की हालत देखने के लिए उस ने बैलगाड़ी रोकी और उस के पास गई. रुक्मिणी ने मंगल सिंह के सिर पर अपनी चुनरी कस कर बांध दी. तभी मंगल सिंह के हाथ माफी मांगने के लिए जुड़ गए थे. इन सब बातों का रुक्मिणी पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने बैलगाड़ी तेजी से चलाई और सरपंच के घर के सामने गाड़ी रोक कर पूरी बात गोविंद सिंह को बताई और वापस जाने लगी.

गोविंद सिंह उस के पैरों पर गिर गया और बोला, ‘‘रुक्मिणी, मुझे किसी गरीब को नहीं सताना चाहिए था. मुझे माफ कर दे.’’ गोविंद सिंह मंगल सिंह को जीप में डाल शहर के अस्पताल में ले जाने लगा, तब मंगल सिंह ने रुक्मिणी का हाथ जोर से पकड़ लिया और उसे भी साथ चलने के लिए इशारा किया. अस्पताल में मंगल सिंह का इलाज शुरू हो गया और उसे तुरंत खून देना था. परिवार में से किसी का खून मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. साथ ही, वहां आए लोगों का खून भी मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. रुक्मिणी एक बार फिर यादों की दुनिया में चली गई थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी एक बार शहर घूमने गए थे. तब रुक्मिणी ने कहा था, ‘देख मंगल, हमारा प्यार एकदम सच्चा और पक्का है कि तू भले ही न माने, लेकिन हमारा खून भी एक ही है.’ तब मंगल सिंह ने हंसते हुए कहा था, ‘हट पगली, ऐसे थोड़े न होता है. सभी के खून का ग्रुप अलगअलग ही होता है.’

मजाक की बात शर्त में बदल गई और दोनों ने पास के एक अस्पताल में जा कर जब खून को चैक करवाया, तब दोनों का ग्रुप एक ही निकला.

तभी डाक्टर ने आ कर कहा, ‘‘गोविंद सिंह, जल्दी खून का इंतजाम करो. मंगल सिंह की हालत खराब होती जा रही है. खून काफी बह गया है.’’

तब रुक्मिणी ने विश्वास से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा खून ले लीजिए.’’ गोविंद सिंह हैरानी से रुक्मिणी को देख रहा था और एहसान तले दबा जा रहा था.

वारिस: सुरजीत के घर कौन थी वो औरत

सुरजीत के घर में अनजान औरत को देख नरेंद्र चौंक गया. पूछने पर मालूम हुआ कि वह ‘कुदेसन’ है. रहरह कर उसे अपने घर में रह रही उस औरत का खयाल आने लगा. कहीं वह भी ‘कुदेसन’ तो नहीं.

होश संभालने के साथ ही नरेंद्र उस औरत को अपने घर में देखता आ रहा था. वह कौन थी, उसे नहीं पता था.

बचपन में जब भी वह किसी से उस औरत के बारे में पूछता था तो वह उस को डांट कर चुप करा देता था.

घर के बाईं ओर जहां गायभैंस बांधे जाते थे उस के करीब ही एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी और वह औरत उसी कोठरी में सोती थी.

मां का व्यवहार उस औरत के प्रति अच्छा नहीं था जबकि उस का बाप  बलवंत और बूआ सिमरन उस औरत के साथ कुछ हमदर्दी से पेश आते थे.

नरेंद्र की मां बलजीत का सलूक तो उस औरत के साथ इतना खराब था कि वह सारा दिन उस से जानवरों की तरह काम लेती थी और फिर उस के सामने बचाखुचा और बासी खाना डाल देती थी. कई बार तो लोगों का जूठन भी उस के सामने डालने में बलवंत परहेज नहीं करती थी. लेकिन जैसा भी, जो भी मिलता था वह औरत चुपचाप खा लेती थी.

होश संभालने के बाद नरेंद्र ने घर में रह रही उस औरत को ले कर एक और भी अजीब चीज महसूस की थी. वह हमेशा नरेंद्र की तरफ दुलार और हसरत भरी नजरों से देखती थी. वह उसे छूना और सहलाना चाहती थी. पर घर के किसी सदस्य के होने पर उस औरत की नरेंद्र के करीब आने की हिम्मत नहीं होती थी. लेकिन जब कभी नरेंद्र उस के सामने अकेले पड़ जाता और आसपास कोई दूसरा नहीं होता तो वह उस को सीने से लगा लेती और पागलों की तरह चूमती.

ऐसा करते हुए उस की आंखों में आंसुओं के साथसाथ एक ऐसा दर्द भी होता था जिस को शब्दों में जाहिर करना मुश्किल था.

‘कुदेसन’ शब्द को नरेंद्र ने पहली बार तब सुना था जब उस की उम्र 14-15 साल की थी.

गांव के कुछ दूसरे लड़कों के साथ नरेंद्र जिस सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था वह गांव से कम से कम 2 किलोमीटर की दूरी पर था.

नरेंद्र के साथ गांव के 7-8 लड़कों का समूह एकसाथ स्कूल के लिए जाता था और रास्ते में अगर कोई झगड़ा न हुआ तो एकसाथ ही वे स्कूल से वापस भी आते थे.

सुबह स्कूल जाने से पहले सारे लड़के गांव की चौपाल पर जमा होते थे. एकसाथ मस्ती करते हुए स्कूल जाने में रास्ते की दूरी का पता ही नहीं चलता था और जब कभी समूह का कोई लड़का वक्त पर चौपाल नहीं पहुंचता था तो उस की खोजखबर लेने के लिए किसी लड़के को उस के घर दौड़ाया जाता था. हमारे साथ स्कूल जाने वाले लड़कों में एक सुरजीत भी था जिस के साथ नरेंद्र की खूब पटती थी. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. नरेंद्र कई बार सुरजीत के घर भी जा चुका था.

एक दिन जब स्कूल जाते समय  सुरजीत गांव की चौपाल पर नहीं पहुंचा तो उस की खोजखबर लेने के लिए नरेंद्र उस के घर पहुंच गया.

पहले तो घर में दाखिल हो कर नरेंद्र ने देखा कि सुरजीत को बुखार है. वह वापस मुड़ा तो उस की नजर सुरजीत के घर में एक औरत पर पड़ी जो उस के लिए अनजान थी.

वह जवान औरत गांव में रहने वाली औरतों से एकदम अलग थी, बिलकुल उसी तरह जैसे उस के अपने घर में रह रही औरत उसे नजर आती थी. चूंकि नरेंद्र को स्कूल जाने की जल्दी थी इसलिए उस ने इस बारे में सुरजीत से कोई बात नहीं की.

2 दिन बाद सुरजीत स्कूल जाने वाले लड़कों में फिर से शामिल हो गया तो छुट्टी के बाद गांव वापस लौटते हुए नरेंद्र ने उस से उस अजनबी औरत के बारे में पूछा था. इस पर सुरजीत ने कहा, ‘बापू ने ‘कुदेसन’ रख ली है.’

‘‘कुदेसन, वह क्या होती है?’’ नरेंद्र ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता. लेकिन ‘कुदेसन’ के कारण मां और बापू में रोज झगड़ा होने लगा है. मां कुदेसन को घर में एक मिनट भी रखने को तैयार नहीं, लेकिन बापू कहता है कि भले ही लाशें बिछ जाएं, कुदेसन यहीं रहेगी,’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मगर तेरा बापू इस कुदेसन को लाया कहां से है?’’

‘‘क्या पता, तुम को तो मालूम ही है कि मेरा बापू ड्राइवर है. कंपनी का ट्रक ले कर दूरदूर के शहरों तक जाता है. कहीं से खरीद लाया होगा,’’ सुरजीत ने कहा.

सुरजीत की इस बात से नरेंद्र को और ज्यादा हैरानी हुई थी. उस ने जानवरों की खरीदफरोख्त की बात तो सुनी थी मगर इनसानों को भी खरीदा या बेचा जा सकता है यह बात वह पहली बार सुरजीत के मुख से सुन रहा था.

‘कुदेसन’ शब्द एक सवाल बन कर नरेंद्र के जेहन में लगातार चक्कर काटने लगा था. उस को इतना तो एहसास था कि ‘कुदेसन’ शब्द में कुछ बुरा और गलत था. किंतु वह बुरा और गलत क्या था? यह उस को नहीं पता था.

‘कुदेसन’ शब्द को ले कर घर में किसी से कोई सवाल करने की हिम्मत उस में नहीं थी. बाहर किस से पूछे यह नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था.

असमंजस की उस स्थिति में अचानक ही नरेंद्र के दिमाग में अमली चाचा का नाम कौंधा था.

अमली चाचा का असली नाम गुरबख्श था. अफीम के नशे का आदी (अमली) होने के कारण ही गुरबख्श का नाम अमली चाचा पड़ गया था. गांव के बच्चे तो बच्चे जवान और बड़ेबूढे़ तक गुरबख्श को अमली चाचा कह कर बुलाते थे. दूसरे शब्दों में, गुरबख्श सारे गांव का चाचा था.

गांव की चौपाल के पास ही अमली चाचा पीपल के नीचे जूतों को गांठने की दुकानदारी सजा कर बैठता था. वह अकेला था, क्योंकि उस की शादी नहीं हुई थी. एकएक कर के उस के अपने सारे मर गए थे. आगेपीछे कोई रोने वाला नहीं था अमली चाचा के. गांव के हर शख्स से अमली चाचा का मजाक चलता था.

बड़े तो बड़े, नरेंद्र की उम्र के लड़कों के साथ भी उस का हंसीमजाक चलता था. आतेजाते लड़के अमली चाचा से छेड़खानी करते थे और वह इस का बुरा नहीं मानता था. हां, कभीकभी छेड़खानी करने वाले लड़कों को भद्दीभद्दी गालियां जरूर दे देता था.

शरारती लड़के तो अमली चाचा की गालियां सुनने के लिए ही उस को छेड़ते थे.

नरेंद्र ने जब से होश संभाला था उस का भी अमली चाचा से वास्ता पड़ता रहा था. जब भी उस के पांव की चप्पल कहीं से टूटती थी तो उस की मरम्मत अमली चाचा ही करता था. चप्पल की मरम्मत और पालिश कर के एकदम उस को नया जैसा बना देता था अमली चाचा.

काम करते हुए बातें करने की अमली चाचा की आदत थी. बातों की झोंक में कई बार बड़ी काम की बातें भी कह जाता था अमली चाचा.

‘कुदेसन’ के बारे में अमली चाचा से वह पूछेगा, ऐसा मन बनाया था नरेंद्र ने.

एक दिन जब स्कूल से वापस आ कर सब लड़के अपनेअपने घर की तरफ रुख कर गए तो नरेंद्र घर जाने के बजाय चौपाल के करीब पीपल के नीचे जूतों की मरम्मत में जुटे अमली चाचा के पास पहुंच गया.

नरेंद्र को देख अमली चाचा ने कहा, ‘‘क्यों रे, फिर टूट गई तेरी चप्पल? तेरी चप्पल में अब जान नहीं रही. अपने कंजूस बाप से कह अब नई ले दें.’’

‘‘मैं चप्पल बनवाने नहीं आया, चाचा.’’

‘‘तब इस चाचा से और क्या काम पड़ गया, बोल?’’ अमली ने पूछा.

नरेंद्र अमली चाचा के पास बैठ गया. फिर थोड़ी सी ऊहापोह के बाद उस ने पूछा, ‘‘एक बात बतलाओ चाचा, यह ‘कुदेसन’ क्या होती है?’’

नरेंद्र के सवाल पर जूता गांठ रहे अमली चाचा का हाथ अचानक रुक गया. चेहरे पर हैरानी का भाव लिए वह बोले, ‘‘ तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’

‘‘मैं ने सुरजीत के घर में एक औरत को देखा था चाचा, सुरजीत कहता है कि वह औरत ‘कुदेसन’ है जिस को उस का बापू बाहर से लाया है. बतलाओ न चाचा कौन होती है ‘कुदेसन’?’’

‘‘क्या करेगा जान कर? अभी तेरी उम्र नहीं है ऐसी बातों को जानने की. थोड़ा बड़ा होगा तो सब अपनेआप मालूम हो जाएगा. जा, घर जा.’’ नरेंद्र को टालने की कोशिश करते हुए अमली चाचा ने कहा.

लेकिन नरेंद्र जिद पर अड़ गया.

तब अमली चाचा ने कहा,

‘‘ ‘कुदेसन’ वह होती है बेटा, जिस को मर्द लोग बिना शादी के घर में ले आते हैं और उस को बीवी की तरह रखते हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं चाचा.’’

‘‘थोड़े और बड़े हो जाओ बेटा तो सब समझ जाओगे. कुदेसनें तो इस गांव में आती ही रही हैं. आज सुरजीत का बाप ‘कुदेसन’ लाया है. एक दिन तेरा बाप भी तो ‘कुदेसन’ लाया था. पर उस ने यह सब तेरी मां की रजामंदी से किया था. तभी तो वह वर्षों बाद भी तेरे घर में टिकी हुई है. बातें तो बहुत सी हैं पर मेरी जबानी उन को सुनना शायद तुम को अच्छा नहीं लगेगा, बेहतर होगा तुम खुद ही उन को जानो,’’ अमली चाचा ने कहा.

अमली चाचा की बातों से नरेंद्र हक्काबक्का था. उस ने सोचा नहीं था कि उस का एक सवाल कई दूसरे सवालों को जन्म दे देगा.

सवाल भी ऐसे जो उस की अपनी जिंदगी से जुडे़ थे. अमली चाचा की बातों से यह भी लगता था कि वह बहुत कुछ उस से छिपा भी गया था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि होश संभालने के बाद वह जिस खामोश औरत को अपने घर में देखता आ रहा है वह कौन है?

वह भी ‘कुदेसन’ है, लेकिन सवाल तो कई थे.

यदि मेरा बापू कभी मां की रजामंदी से ‘कुदेसन’ लाया था तो आज मां उस से इतना बुरा सलूक क्यों करती है? अगर वह ‘कुदेसन’ है तो मुझ को देख कर रोती क्यों है? जरा सा मौका मिलते ही मुझ को अपने सीने से चिपका कर चूमनेचाटने क्यों लगती थी वह? मां की मौजूदगी में वह ऐसा क्यों नहीं करती थी? क्यों डरीडरी और सहमी सी रहती थी वह मां के वजूद से?

फिर अमली चाचा की इस बात का क्या मतलब था कि अपने घर की कुछ बातें खुद ही जानो तो बेहतर होगा?

ऐसी कौन सी बात थी जो अमली चाचा जानता तो था किंतु अपने मुंह से उस को नहीं बतलाना चाहता?

एक सवाल को सुलझाने निकला नरेंद्र का किशोर मन कई सवालों में उलझ गया.

उस को लगने लगा कि उस के अपने जीवन से जुड़ी हुई ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन के बारे में वह कुछ नहीं जानता.

अमली चाचा से नई जानकारियां मिलने के बाद नरेंद्र ने मन में इतना जरूर ठान लिया कि वह एक बार मां से घर में रह रही ‘कुदेसन’ के बारे में जरूर पूछेगा.

‘कुदेसन’ के कारण अब सुरजीत के घर में बवाल बढ़ गया था. सुरजीत की मां ‘कुदेसन’ को घर से निकालना चाहती थी मगर उस का बाप इस के लिए तैयार नहीं था.

इस झगड़े में सुरजीत की मां के दबंग भाइयों के कूदने से बात और भी बिगड़ गई थी. किसी वक्त भी तलवारें खिंच सकती थीं. सारा गांव इस तमाशे को देख रहा था.

वैसे भी यह गांव में इस तरह की कोई नई या पहली घटना नहीं थी.

जब सारे गांव में सुरजीत के घर आई ‘कुदेसन’ की चर्चा थी तो नरेंद्र का घर इस चर्चा से अछूता कैसे रह सकता था?

नरेंद्र ने भी मां और सिमरन बूआ को इस की चर्चा करते सुना था लेकिन काफी दबी और संतुलित जबान में.

इस चर्चा को सुन कर नरेंद्र को लगा था कि उस के मां से कु छ पूछने का वक्त आ गया है.

एक दिन जब नरेंद्र स्कूल से वापस घर लौटा तो मां अपने कमरे में अकेली थीं. सिमरन बूआ किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थीं और बापू खेतों में था.

नरेंद्र ने अपना स्कूल का बस्ता एक तरफ रखा और मां से बोला, ‘‘एक बात बतला मां, गायभैंस बांधने वाली जगह के पास बनी कोठरी में जो औरत रहती है वह कौन है?’’

नरेंद्र के इस सवाल पर उस की मां बुरी तरह से चौंक गईं और पल भर में ही मां का चेहरा आशंकाओें के बादलों में घिरा नजर आने लगा.

‘‘तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’ नरेंद्र को बांह से पकड़ झंझोड़ते हुए मां ने पूछा.

‘‘सुरजीत के घर में उस का बापू  एक कुदेसन ले आया है. लोग कहते हैं हमारे घर में रहने वाली यह औरत भी एक ‘कुदेसन’ है. क्या लोग ठीक कहते हैं, मां?’’

नरेंद्र का यह सवाल पूछना था कि एकाएक आवेश में मां ने उस के गाल पर चांटा जड़ दिया और उस को अपने से परे धकेलती हुई बोलीं, ‘‘तेरे इन बेकार के सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है. वैसे भी तू स्कूल पढ़ने के लिए जाता है या लोगों से ऐसीवैसी बातें सुनने? तेरी ऐसी बातों में पड़ने की उम्र नहीं. इसलिए खबरदार, जो दोबारा इस तरह की  बातें कभी घर में कीं तो मैं तेरे बापू से तेरी शिकायत कर दूंगी.’’

नरेंद्र को अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला मगर अपने सवाल पर मां का इस प्रकार आपे से बाहर होना भी उस की समझ में नहीं आया.

ऐसा लगता था कि उस के सवाल से मां किसी कारण डर गईं और यह डर मां की आखों में उसे साफ नजर आता था.

नरेंद्र के मां से पूछे इस सवाल ने घर के शांत वातावरण में एक ज्वारभाटा ला दिया. मां और बापू के परस्पर व्यवहार में तलखी बढ़ गई थी और सिमरन बूआ तलख होते मां और बापू के रिश्ते में बीचबचाव की कोशिश करती थीं.

मां और बापू के रिश्ते में बढ़ती तलखी की वजह कोने में बनी कोठरी में रहने वाली वह औरत ही थी जिस के बारे में अमली चाचा का कहना था कि वह एक ‘कुदेसन’ है.https://audiodelhipress.s3.ap-south-1.amazonaws.com/Audible/ch_a105_000001/0923_ch_a105_000006in_rev1_s1b_waaris_sl.mp3

मां अब उस औरत को घर से निकालना चाहती हैं. नरेंद्र ने मां को इस बारे में बापू से कहते भी सुना. नरेंद्र को ऐसा लगा कि मां को कोई डर सताने लगा है.

बापू मां के कहने पर उस औरत को घर से निकालने को तैयार नहीं हैं.

नरेंद्र ने बापू को मां से कहते सुना था, ‘‘इतनी निर्मम और स्वार्थी मत बनो, इनसानियत भी कोई चीज होती है. वह लाचार और बेसहारा है. कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए मगर मैं अब उस को इस घर में एक पल भी देखना नहीं चाहती हूं. नरेंद्र भी इस के बारे में सवाल पूछने लगा है. उस के सवालों से मुझ को डर लगने लगा है. कहीं उस को असलियत मालूम हो गई तो क्या होगा?’’ मां की बेचैन आवाज में साफ कोई डर था.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम बेकार में किसी वहम का शिकार हो गई हो. हमें इतना कठोर और एहसानफरामोश नहीं होना चाहिए. इस को घर से निकालने से पहले जरा सोचो कि इस ने हमें क्या दिया और बदले में हम से क्या लिया? सिर छिपाने के लिए एक छत और दो वक्त की रोटी. क्या इतने में भी हमें यह महंगी लगने लगी है? जरा कल्पना करो, इस घर को एक वारिस नहीं मिलता तो क्या होता? एक औरत हो कर भी तुम ने दूसरी औरत का दर्द कभी नहीं समझा. तुम को डर है उस औलाद के छिनने का, जिस ने तुम्हारी कोख से जन्म नहीं लिया. जरा इस औरत के बारे में सोचो जो अपनी कोख से जन्म देने वाली औलाद को भी अपने सीने से लगाने को तरसती रही. जन्म देते ही उस के बच्चे को इसलिए उस से जुदा कर दिया गया ताकि लोगों को यह लगे कि उस की मां तुम हो, तुम ने ही उस को जन्म दिया है. इस बेचारी ने हमेशा अपनी जबान बंद रखी है. तुम्हारे डर से यह कभी अपने बच्चे को भी जी भर के देख तक नहीं सकी.

‘‘इस घर में वह तुम्हारी रजामंदी से ही आई थी. हम दोनों का स्वार्थ था इस को लाने में. मुझ को अपने बाप की जमीनजायदाद में से अपना हिस्सा लेने के लिए एक वारिस चाहिए था और तुम को एक बच्चा. इस ने हम दोनों की ही इच्छा पूरी की. इस घर की चारदीवारी में क्या हुआ था यह कोई बाहरी व्यक्ति नहीं जानता. बच्चे को जन्म इस ने दिया, मगर लोगों ने समझा तुम मां बनी हो. कितना नाटक करना पड़ा था, एक झूठ को सच बनाने के लिए. जो औरत केवल दो वक्त की रोटी और एक छत के लालच में अपने सारे रिश्तों को छोड़ मेरा दामन थाम इस अनजान जगह पर चली आई, जिस को हम ने अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किया, पर उस ने न कभी कोई शिकायत की और न ही कुछ मांगा. ऐसी बेजबान, बेसहारा और मजबूर को घर से निकालने का अपराध न तो मैं कर सकता हूं और न ही चाहूंगा कि तुम करो. किसी की बद्दुआ लेना ठीक नहीं.’’

नरेंद्र को लगा था कि बापू के समझाने से बिफरी हुई मां शांत पड़ गई थीं. लेकिन नरेंद्र उन की बातों को सुनने के बाद अशांत हो गया था. जानेअनजाने में उस के अपने जन्म के साथ जुड़ा एक रहस्य भी उजागर हो गया था.

अमली चाचा जो बतलाने में झिझक गया था वह भी शायद इसी रहस्य से जुड़ा था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि घर में रह रही वह औरत जोकि अमली चाचा के अनुसार एक ‘कुदेसन’ थी, दूर से क्यों उस को प्यार और हसरत की नजरों से देखती थी? क्यों जरा सा मौका मिलते ही वह उस को अपने सीने से चिपका कर चूमती और रोती थी? वह उस को जन्म देने वाली उस की असली मां थी.

नरेंद्र बेचैन हो उठा. उस के कदम बरबस उस कोठरी की तरफ बढ़ चले, जिस के अंदर जाने की इजाजत उस को कभी नहीं दी गई थी. उस कोठरी के अंदर वर्षों से बेजबान और मजबूर ममता कैद थी. उस ममता की मुक्ति का समय अब आ गया था. आखिर उस का बेटा अब किशोर से जवान हो गया था.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी: आखिर क्या हुआ था सौजन्या के साथ?

‘‘सौजन्या तुम अब तक यहीं बैठी हो? घर नहीं गईं?’’ रीमा सौजन्या को अपने कक्ष में लैपटौप में व्यस्त देख चौंक गई. ‘‘आओ रीमा बैठो. घर जाने का मन नहीं कर रहा था. इसीलिए समाचार आदि देखने लगी. यह इंटरनैट भी कमाल की चीज है. समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता,’’ सौजन्या बोली.

‘‘हां, वह भी जब तुम विवाह डौट कौम पर व्यस्त हो,’’ रीमा हंसी. ‘‘तुम भी उपहास करने लगीं. विवाह

डौट कौम मेरा शौक नहीं मजबूरी है. सोचती हूं कोई ठीकठाक सा प्राणी मिल जाए तो समझो मैं चैन से जी सकूंगी,’’ सौजन्या बड़े दयनीय ढंग से मुसकराई.

‘‘समझ में नहीं आता तुम्हें कैसे समझाऊं… एक बार नवीन से मिल तो लो. वह भी तुम्हारी तरह हालात का मारा है. पत्नी ने 3 माह की मासूम बच्ची को छोड़ कर आत्महत्या कर ली. बेचारा कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस कर बुरी तरह टूट चुका है,’’ रीमा ने पुन: अपनी बात दोहराई. ‘‘तुम भी रीमा… मैं तो सोचती थी तुम मेरी परम मित्र हो. मुझे और मेरी मजबूरी को भली प्रकार समझती हो. मैं तो स्वयं अपने तलाक के केस में उलझ कर रह गई थी. जीवन में कड़वाहट के अलावा कुछ बचा ही नहीं था. 10 साल लग गए उस मकड़जाल से निकलने में. सोचा था तलाक के बाद खुली हवा में सांस ले पाऊंगी, पर अब शुभचिंतक पीछे पड़े हैं. एक तुम्हारे नवीन का ही प्रस्ताव नहीं है मेरे सामने. दूरपास के संबंधियों को अचानक मेरी इतनी चिंता सताने लगी है कि मेरे लिए विवाह के प्रस्तावों की वर्षा होने लगी है,’’ सौजन्या एक ही सांस में बोल गई.

‘‘तो इस में बुराई ही क्या है? अब तो तुम्हारा तलाक भी हो गया है. कब तक यों ही अकेली रहोगी? अपनी नहीं तो अपने मातापिता की सोचो. तुम्हारी चिंता में घुल रहे हैं… तुम तो स्वयं समझदार हो. तुम्हारे भाईबहन अपनी ही दुनिया में इतने व्यस्त हैं कि तुम्हारी खोजखबर तक नहीं लेते,’’ रीमा भी कब चुप रहने वाली थी. ‘‘मैं ने कब मना किया है. मैं तो स्वयं अपने जीवन से ऊब गई हूं. पर समस्या यह है कि सभी प्रस्ताव तुम्हारे कजिन नवीन जैसे ही हैं. मैं ने अपनी मुक्ति के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़ी है कि मैं किसी और के घावों पर मरहम लगाने की हालत में नहीं हूं. मुझे तो कोई ऐसा चाहिए जो मेरे घावों पर मरहम लगा सके.’’

‘‘ठीक है, जैसा तू ठीक समझे. मैं तो तुझे खुश देखना चाहती हूं. मन को मन से राह होती है. पर जब तुम्हें कोई मनचाहा साथी मिल जाए तो बताना जरूर. अकेले ही कोई निर्णय मत ले लेना. इस बार तो हम खूब ठोकबजा कर देखेंगे ताकि बाद में पछताना न पड़े.’’ ‘‘वही तो. मैं तो ऐसा जीवनसाथी चाहती हूं, जो मेरी नौकरी और मोटे वेतन के लालच में नहीं, मैं जैसी हूं मुझे वैसी स्वीकार कर ले,’’ सौजन्या भीगे स्वर में बोली तो रीमा का मन भी भर आया.

दोनों बचपन की सहेलियां थीं और एकदूसरी पर जान छिड़कती थीं. रीमा अपने 2 बच्चों और पति के साथ अपने घरसंसार में सुखी थी, तो सौजन्या अपने नारकीय वैवाहिक जीवन से मुक्त होने के संघर्ष में टूट चुकी थी. 10 सालों के लंबे संघर्ष के बाद उसे पीड़ा से मुक्ति तो मिल गई पर इन 10 सालों के अपमान, तिरस्कार और कड़वाहट को भूल पाना सरल नहीं था. उस पर शुभचिंतकों द्वारा लाए गए नितनए विवाह के प्रस्ताव उस का जीना दूभर कर रहे थे. अत: उस ने अपने जीवन की बागडोर दृढ़ता से अपने हाथों में थामने का निर्णय ले लिया. दूसरा विवाह वह करेगी पर अपनी शर्तों पर. अपने भावी वर का चुनाव वह स्वयं करेगी. वह नहीं चाहती थी कि कोई उस पर तरस खा कर विवाह करे या उस की नौकरी और ऊंचे वेतन के लालच में विवाह के बंधन में बंधे और उस का जीवन नर्क बना दे. अंतर्मुखी सौजन्या को इन हालात में ‘इंटरनैट’ देवदूत की भांति लगा था और वह उसी में अपने सपनों के राजकुमार की खोज में जुट गई थी. 1 सप्ताह पहले जब रीमा अचानक उस के कक्ष में चली आई थी तो वह विभिन्न इंटरनैट पटलों पर भावी वरों के जीवनविवरण देखने में व्यस्त थी.

आशीष कुमार नाम के एक युवक का फोटो और जीवनविवरण उसे

इतना भा गया कि वह देर तक उस फोटो को हर कोण से देख कर मंत्रमुग्ध होती रही. जीवनविवरण का हर शब्द उस ने कई बार पढ़ा और पंक्तियों के बीच छिपे अर्थ को ढूंढ़ने का प्रयत्न करती रही. पहली बार उसे लगा कि आशीष को कुदरत ने उसी के लिए बनाया है. चेहरे का हर भाव उसे दीवाना सा किए जा रहा था. फिर तो सौजन्या मौका मिलते ही अपना लैपटौप खोल कर बैठ जाती और मंत्रमुग्ध सी अपने प्रिय को निहारती रहती.

सौजन्या को लगता कि अब उसे छिप कर रोमांस करने की जरूरत नहीं है. अब तो वह डंके की चोट पर अपने प्यार का इजहार करेगी. आशीष भी उस के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने में पीछे नहीं रहता था. उस का फोटो देख कर ही वह इतना मंत्रमुग्ध हो गया था कि उस से मिलने की प्रबल इच्छा प्रकट करता रहता था. पर न जाने क्यों सौजन्या ही उस से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही थी. वह एक ही तर्क देती, पहले एकदूसरे को जान लें, समझ लें तब मिलने की सोचेंगे. सौजन्या के मन में अजीब सी जड़ता ने घर कर लिया था. कहीं मिल कर निराशा हाथ लगी तो? कभी सोचती कि उस के जीवन में जो कुछ घट रहा है कहीं मात्र स्वप्न तो नहीं? कहीं आंखें खोलते ही सबकुछ विलुप्त तो नहीं हो जाएगा? क्यों न इस स्वप्न को यों ही चलने दे और उस का रसास्वादन करती रहे.

उधर आशीष का उस से मिलने का हठ बढ़ता ही जा रहा था. सौजन्या का एक ही उत्तर होता कि पहले हम एकदूसरे को भली प्रकार समझ तो लें. ‘‘हमारा परिचय हुए 3 माह से अधिक हो गए हैं. अधिक समझने के लिए एकदूसरे से मिलना भी तो जरूरी है,’’ एक दिन आशीष अनमने स्वर में बोला.

‘‘अभी नहीं, मैं जब मानसिकरूप से तुम से मिलने को तैयार हो जाऊंगी तो स्वयं तुम्हें सूचित कर दूंगी,’’ सौजन्या ने दोटूक उत्तर दिया. अब सौजन्या को रीमा की याद आई, ‘‘रीमा, आज शाम को घर आना. कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ उस ने रीमा को फोन कर कहा.

‘‘ऐसी क्या जरूरी बातें हैं, जो तुम औफिस में नहीं कर सकतीं?’’ रीमा ने उत्सुक स्वर में पूछा. ‘‘यह तो घर आ कर ही पता चलेगा,’’ सौजन्या ने टाल दिया.

सौजन्या घर पहुंची ही थी कि रीमा आ पहुंची. उस का सामना पहले सौजन्या की मां से हुआ. ‘‘नमस्ते आंटी,’’ रीमा उन्हें देखते ही बोली.

‘‘नमस्ते, तुम तो ईद का चांद हो गई हो बेटी. कभीकभी हम से भी मिलने आ जाया करो,’’ वे बोलीं. ‘‘2 माह पहले ही तो आई थी आंटी,’’

रीमा बोली. ‘‘हां, और मैं ने तुम से कुछ कहा था पर उस का कोई नतीजा तो सामने आया नहीं. विवाह का नाम सुनते ही सौजन्या बेलगाम सांड़ की तरह भड़क उठती है.’’

सौजन्या की मां रीमा से बातें कर ही रही थीं कि सौजन्या अपने कमरे के बाहर की बालकनी में प्रकट हुई, ‘‘अरे रीमा, वहां क्या कर रही हो? ऊपर आओ न.’’ ‘‘जाओ बेटी, हम वृद्धों के पास तुम्हारा

क्या काम?’’ ‘‘क्या मां, छोटी सी बात पर भड़क उठती हो. थोड़ी देर में हम दोनों नीचे आती हैं,’’ सौजन्या बोली.

‘‘जाओ रीमा बेटी, लैपटौप खोल कर बैठी होगी. आजकल वही इस का सबकुछ है. अपने परिवार या समाज की तो इसे चिंता ही नहीं है.’’ ‘‘आंटी, अपना गुस्सा मुझ पर उतार रही थीं. वे शायद समझती नहीं कि सहेली हूं तो क्या हुआ? औफिस में तो तू मेरी बौस है. मेरी बात भला क्यों मानने लगी,’’ रीमा सौजन्या के कक्ष में पहुंचते ही आहत स्वर में बोली.

‘‘अब दूंगी एक, पर छोड़ ये सब, यह देख,’’ सौजन्या ने विवाह डौट कौम पर आशीष का फोटो और जीवनविवरण निकाल लिया, ‘‘देख तो कैसा है?’’ ‘‘वाऊ, यह तो किसी फिल्मी हीरो की तरह लग रहा है. कब से चल रहा है ये सब?’’ रीमा आशीष का विवरण पढ़ते हुए बोली.

‘‘3 माह पहले मिले थे हम दोनों.’’ ‘‘कहां?’’

‘‘यहीं इंटरनैट पर और कहां.’’ ‘‘तो अभी मेलमुलाकात भी नहीं हुई? विवाह भी इंटरनैट पर ही करोगी क्या?’’ रीमा हंस दी.

‘‘आशीष तो बहुत दिनों से मिलने की रट लगाए हैं. मेरी ही हिम्मत नहीं होती. तुम चलोगी मेरे साथ?’’ ‘‘मैं क्यों कबाब में हड्डी बनने लगी? अब तुम छोटी बच्ची नहीं हो. अपने निर्णय स्वयं लेने सीखो. औफिस में तो लाखों के वारेन्यारे करती हो और यहां किसी से मिलने से कतरा रही हो?’’ रीमा ने समझाना चाहा.

‘‘यही पूछना था तुम से. तुम ने कहा था न कि कोई पसंद आए तो बताना. तो सब से पहले तुम्हें ही बता रही हूं.’’ ‘‘ओह हो, तुम अभी से शरमा रही हो. चेहरे पर भी लाली छा रही है. चल अभी इस से मिलने का दिन और तिथि तय कर लो.’’

‘‘रविवार कैसा रहेगा?’’ ‘‘बहुत बढि़या, छुट्टी का दिन है. दोनों पूरा दिन साथ बिता सकते हो. एकदूसरे को जाननेसमझने में मदद मिलेगी.’’ तुरंत सौजन्या और आशीष के बीच संदेशों का आदानप्रदान हुआ और रविवार के दिन मिलने की बात तय हो गई.

‘‘आंटी, अब मत डांटना मुझे. आप की इच्छा पूरी होने जा रही है. बैंडबाजा बजने में अधिक देर नहीं है अब,’’ रीमा जातेजाते सौजन्या की मां से बोली. ‘‘तुम्हारे मुंह में घीशक्कर, पर पूरी बात तो बताती जाओ,’’ वे बोलीं.

‘‘वह तो आप सौजन्या से ही पूछना. मुझे देर हो रही है. घर में सब इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह रीमा सरपट भागी. मगर दूसरे दिन कुछ अप्रत्याशित सा घट गया. सौजन्या एक मीटिंग में व्यस्त थी कि उस के सहायक ने एक चिट ला कर दी. चिट पर आशीष कुमार का नाम देखते ही उस के होश उड़ गए. वह बाहर की ओर लपकी.

आशीष लौबी में बैठा उस का इंतजार कर रहा था. ‘‘आप यहां? इस समय?’’ सौजन्या के मुंह से किसी प्रकार निकला.

‘‘रहा नहीं गया. इसीलिए मिलने चला आया. मैं रविवार तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता. चलो छुट्टी ले लो कहीं घूमनेफिरने चलते हैं,’’ आशीष बोला. ‘‘यह क्या पागलपन है. मेरी एक जरूरी मीटिंग चल रही है. मैं छुट्टी नहीं ले सकती… इस तरह यहां क्यों चले आए? देखो सब की निगाहें हम दोनों पर ही टिकी हैं,’’ सौजन्या झेंप गई थी पर आशीष अपनी ही जिद पर अड़ा था.

बड़ी मुश्किल से सौजन्या ने आशीष को समझाबुझा कर भेजा और रविवार को मिलने की बात दोहराई. लंच के समय रीमा ने सौजन्या की खूब खिंचाई की, ‘‘लगता है आशीष बाबू से अब यह दूरी सहन नहीं हो रही.’’

‘‘पर इस तरह औफिस में आ धमकना? मुझे तो अच्छा नहीं लगा.’’ ‘‘चलता है सब चलता है. प्रेम और जंग में सब जायज है,’’ रीमा हंस दी.

शुक्रवार को सौजन्या घर पहुंची ही थी कि रीमा आ पहुंची. ‘‘क्या हुआ? आज औफिस क्यों नहीं आईं और अब इस तरह अचानक?’’ सौजन्या चौंक गई.

‘‘इतने प्रश्न मत किया करो. अपने कमरे में चलो. जरूरी बात करनी है,’’ रीमा बोली और फिर दोनों सहेलियां सौजन्या के कमरे में जा बैठीं. रीमा ने चटपट ‘विवाहविच्छेद डौट कौम’ नाम की साइट खोली और एक फोटो और जीवनविवरण ढूंढ़ निकाला.

‘‘यह देखो, पहचाना?’’ रीमा बोली. ‘‘यह तो आशीष है.’’

‘‘नहीं, नीचे पढ़ो. यह रूबीन है. यहां इस का नाम, काम, धाम सब बदला हुआ है. यहां ये महोदय सरकारी अफसर नहीं चिकित्सक हैं. अविवाहित नहीं तलाकशुदा हैं. पर फोन नंबर वही है. जाति, धर्म भी बदल गए हैं.’’ ‘‘उफ, ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?’’ सौजन्या ने सिर पकड़ लिया.

‘‘स्वयं पर तरस खाना छोड़ दो सौजन्या. ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है. चलो नवीन से मिलने चलते हैं.’’ ‘‘मैं किसी से मिलने की स्थिति में नहीं हूं.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलवाने नहीं ले जा रही. हम उस से इन आशीष उर्फ रूबीन महोदय के विरुद्ध सहायता मांगेंगी. इस धोखेबाज को दंड दिलाए बिना मुझे चैन नहीं मिलने वाला. नवीन साइबर अपराध शाखा में कार्यरत है,’’ रीमा नवीन को फोन मिलाते हुए बोली. कुछ ही देर में दोनों सहेलियां नवीन के सामने बैठी सौजन्या की आपबीती सुना रही थीं.

‘‘मैं ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि औनलाइन भी इस तरह की धोखाधड़ी होती है. मैं तो सोचती थी कि ये डौट कौम कंपनियां सबकुछ पता लगा कर ही किसी का विवरण पंजीकृत करती हैं.’’ ‘‘धोखाधड़ी कहां नहीं होती सौजन्याजी. हमारे अपने भी हमें धोखा दे देते हैं. हमें सावधानी से काम लेना चाहिए. यों समझ लीजिए कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी,’’ नवीन बोला और फिर देर तक फोन करने में व्यस्त रहा.

‘‘कुछ देर तक यह आशीष उर्फ रूबीन मुझ से बात करता रहा. पर जब मैं ने पूछताछ शुरू की तो फोन काट दिया. पर आप चिंता न करें. आप चाहें तो अपनी जानकारी गुप्त रखते हुए इस व्यक्ति के विरुद्ध रपट लिखवा सकती हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. वैसे भी मैं तो बालबाल बच गई… रीमा ने बचा लिया मुझे नहीं तो पता नहीं क्या होता. मैं बहुत डर गई हूं… अब कभी इस झंझट में नहीं पड़ने वाली.’’

‘‘वही तो मैं समझा रहा हूं. उस ने मानसिक संताप दिया है आप को. इस के लिए उसे 3 साल की सजा भी हो सकती है,’’ नवीन ने समझाया. ‘‘मैं कुछ समय चाहती हूं,’’ सौजन्या ने हथियार डाल दिए थे.

धीरेधीरे जीवन अपने ही ढर्रे पर चलने लगा था. न सौजन्या ने आशीष वाली घटना का कभी जिक्र किया न रीमा ने पूछा. रीमा को लगा कि उस घटना को किसी बुरे सपने की तरह भूल जाना ही ठीक था. अचानक एक दिन नवीन रीमा के घर आ धमका. ‘‘मैं तो खुद तुम से मिल कर धन्यवाद देना चाहती थी. तुम ने उस प्रकरण को कितनी कुशलता से संभाला वरना तो पता नहीं मेरी सहेली सौजन्या का क्या हाल होता,’’ रीमा ने आभार व्यक्त किया.

‘‘रीमा, आभार तो मुझे तुम्हारा व्यक्त करना चाहिए. सौजन्या मेरे जीवन में सुगंधित पवन के झोंके की तरह आई है. शाम की प्रतीक्षा में दिन कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता.’’ ‘‘क्या? फिर से कहो, सुगंधित पवन का झोंका और न जाने क्या? लगता है आजकल सौजन्या तुम्हें घास डालने लगी है,’’ रीमा मुसकराई.

‘‘घास तो फिलहाल हम ही डाल रहे हैं, पर जीवन में कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ था.’’ ‘‘मैं सौजन्या से बात करूंगी,’’ रीमा ने कहा.

‘‘नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. उसे भनक भी लग गई कि मैं उस पर डोरे डाल रहा हूं तो भड़क उठेगी. यह समस्या मेरी है. इसे सुलझाने का भार भी मेरे ही कंधों पर है,’’ कह नवीन कहीं खो सा गया. मगर रीमा उस की आंखों में लहराते प्रेम के अथाह सागर को साफ देख पा रही थी. पहली बार रीमा को लगा कि अपने करीबी लोगों को भी कितना कम जानते हैं हम. पर वह खुश थी सौजन्या के लिए और नवीन के लिए भी जो अनजाने ही निशांत की ओर बढ़े जा रहे थे.

ब्रेकअप पार्टी: प्रतीक को अनन्या से हुआ था एक झटके में प्यार

‘‘चुप हो जा भाई, कितना रोएगा,’’ मैं और सुशील काफी देर से प्रतीक को चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, पर वह रोए जा रहा था. मिलिंद अपना आपा खोता जा रहा था और दीवार पर हाथ मारते हुए कुछ बोल रहा था, ‘इसे जल्दी चुप कराओ वरना मैं इस की पिटाई कर दूंगा.’

कितना बदल गया था प्रतीक. जब मैं ने उसे पहली बार देखा था तब मेरी तरह वह भी अपने पापा के साथ इस होस्टल में पीजी के तौर पर रहने आया था. उस की रिजल्ट हिस्ट्री जानने के बाद पापा ने मुझे उस के साथ रहने और उसी के साथ दोस्ती रखने की हिदायत दे डाली थी. जहां मैं नीट की तैयारी के लिए कोटा आया था, वह आईआईटियन था. पढ़ने में होशियार प्रतीक जब देखो किताबोें में ही घुसा रहता, पर मुझे शाम होते ही ऐसा लगता जैसे मेरे छोटे से कमरे की दीवारों ने भयावह आकृति अख्तियार कर ली है और मैं डर कर कमरे से बाहर भागता.

मेरे कमरे के पास ही सुशील का भी कमरा था पर वह सिर्फ नाम का सुशील था. पढ़ाईलिखाई से उस का कम ही वास्ता था. वह कमरे में कम बालकनी में ज्यादा रहता था और रहता भी क्यों नहीं, उस ने अपने शहर में कहां इतनी हरियाली देखी थी जो यहां थी. हमारे होस्टल वाली गली में सिर्फ हमारा ही बौयज होस्टल था. बाकी सारे गर्ल्स होस्टल थे. चारों तरफ गोपियां बीच में कन्हैया वाला हाल था.

मेरे कमरे के सामने वाला कमरा प्रतीक का था और उस के पास वाले कमरे में नया लड़का मिलिंद आया था, जो जल्दी ही हम सब का बौस बन गया था. उसे सुशील की हरकतें बिलकुल पसंद नहीं थीं. मुझे वह अपना छोटा भाई समझता था और ऐसे भाषण पिलाता था जिस के आगे मम्मी के भाषण भी फीके पड़ जाते थे.

मैं, मिलिंद और प्रतीक अकसर साथ ही पढ़ाई करते थे, पर शाम होते ही हमें किताबों को देख कर उबकाई सी आने लगती, इसलिए हम उसी वक्त पढ़ाई बंद कर के नहाधो कर, परफ्यूम लगा कर हीरो बन जाते और कोटा की भीड़भरी सड़कों पर घूमने निकल जाते.

प्रतीक और मिलिंद लड़कियों को देख कर खुश होते, लेकिन लड़कियां मुझ पर लाइन मारती हुई निकल जातीं तो मैं शरमा कर रह जाता. सुशील को तो गर्लफ्रैंड भी मिल गई थी और उस लड़की ने उसे अपनी और अपनी सहेलियों की हर ख्वाहिश पूरी करने वाला जिन्न बना लिया था. हमें उस की ऐसी हालत पर तरस भी आता और हंसी भी आती, पर कई बार हमारे समझाने पर भी वह नहीं समझा तो हम ने उसे उस के ही हाल पर छोड़ दिया.

इधर, हमेशा से पढ़ाकू रहे प्रतीक का भी मन उचटने लगा था, वजह थी सामने वाले होस्टल में रहने वाली अनन्या. अब वह भी अपने कमरे में कम, बालकनी में ज्यादा नजर आता था. हमेशा खयालों में खोया रहता. जब हम से उस का हाल देखा नहीं गया तो हम ने उन दोनों की मीटिंग की जुगत भिड़ाई और उन की प्रेमकहानी शुरू हो गई.

परेशानी यह थी कि परीक्षा के दिन नजदीक आ रहे थे और मैं व मिलिंद घूमनाफिरना छोड़ कर अब पढ़ाई में जुटे हुए थे, पर प्रतीक का मन अब पढ़ाई में नहीं लग रहा था. हर वीकली टैस्ट में उस की कटऔफ नीचे जा रही थी, पर उसे इस की परवा ही नहीं थी. फिर वही हुआ जिस का हमें डर था. उस का रिजल्ट इतना डाउन हुआ कि उस ने ही आईआईटी के छोड़ने का निश्चिय कर लिया. परीक्षा खत्म होने के बाद ज्यादातर स्टूडैंट्स अपनेअपने घर चले गए थे, पर हम लोग वहीं थे, क्योंकि अनन्या के चक्कर में प्रतीक नहीं गया और न ही उस ने हमें जाने दिया.

उस रोज मैं और मिलिंद अपने कमरे में बैठ कर बातें कर रहे थे कि मिलिंद का मोबाइल बजा. वहां से प्रतीक घबराई हुई आवाज में कह रहा था, ‘‘मिलिंद, तू सौम्य को ले कर जल्दी चंबल गार्डन पहुंच.’’

‘‘क्या हुआ भाई, तू इतना घबराया हुआ क्यों है?’’ मिलिंद की बात पूरी सुने बिना ही फोन कट चुका था. हम दोनों जैसे थे उसी स्थिति में औटो ले कर चंबल गार्डन पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर हक्केबक्के रह गए. अनन्या एक लड़के से चिपकी हुई खड़ी थी और 2 लड़के प्रतीक को पीट रहे थे. यह देख कर मेरा और मिलिंद का पारा हाई हो गया. हम ने उन दोनों लड़कों को मार भगाया और अनन्या अपने एक बौयफ्रैंड के साथ चली गई.

प्रतीक को काफी चोटें आई थीं, पर शरीर से ज्यादा उस का दिल घायल हुआ था. जब उसे पता चला कि उस के अलावा अनन्या के 2 और बौयफ्रैंड्स हैं, उस ने गुस्से में आ कर अनन्या से कहा कि वह सब के सामने उस की पोल खोल देगा. तो उस ने व उस के बौयफ्रैंड ने अपने दोस्तों को बुला कर प्रतीक को पिटवा दिया. बेचारे प्रतीक का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. इस तरह तो वह शायद बचपन में अपना कोई प्यारा खिलौना टूटने पर भी नहीं रोया होगा.

मिलिंद बारबार दीवार पीट रहा था और गुस्से में उबल रहा था, ‘‘मैं उन लोगों को छोड़ूंगा नहीं और ये अनन्या कितनी चालू लड़की निकली यार, एकसाथ 3 लड़कों के साथ फ्लर्ट कर रही है.’’

‘‘बहुत स्मार्टगर्ल है, उस के तो ऐश हैं. हम लड़के न जाने क्यों इन लड़कियों के चक्कर में पड़ जाते हैं,’’ मैं ने कहा तो प्रतीक ने मुझे घूर कर देखा और घुटनों में मुंह छिपा कर फिर से रोने लगा. उस के रोने से जहां मुझे दया आ रही थी वहीं मिलिंद को बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘ऐसे रो रहा है जैसे पता नहीं क्या हो गया है. अरे, अभी तो हमारी लाइफ शुरू हुई है. अभी तो न जाने कितने लोग हमारी लाइफ में आएंगे और चले जाएंगे, तो क्या उसे याद कर हम यों ही रोते रहेंगे.

‘‘उस लड़की के चक्कर में अपनी पढ़ाई खराब की सो अलग. सच में इन लड़कियों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए. ये सिर्फ हमारी जेब ही ढीली करवाती हैं. इन्हें कोई मालदार मिल गया तो एक ही झटके में इन्हें ढेरों बुराइयां दिखाई देने लगती हैं और एक ही झटके में ऐसे दिल तोड़ती हैं जैसे दिल न हुआ कोई कच्ची माटी का घड़ा हो गया.’’

मिलिंद बड़बड़ाए जा रहा था और प्रतीक का रोना बंद नहीं हो रहा था. तभी मुझे एक उपाय सूझा. मैं सुशील को साथ ले कर मार्केट गया और कुछ स्नैक्स व कोल्डड्रिंक ले आया. सुशील के पास एक प्लयूटूथ स्पीकर था. हम ने अच्छा सा पार्टी सौंग लगाया और प्रतीक को समझाया तब उस ने अनन्या की सारी फोटोग्राफ्स डिलीट कीं, फिर उसे सोशल साइट्स पर ब्लौक कर दिया.

यह सब करने के बाद उस के चेहरे पर सुकून की झलक दिखाई दी. उस का मूड बदलता देख हम सब मूड में आ गए और फिर हम चारों ने सारी रात खूब डांस किया. भाई का ब्रेकअप हुआ था भई, पार्टी तो बनती है.

फैस्टिव सीजन में एथनिक फैशन के रंग, ब्राइट कलर्स के साथ पाएं आकर्षक लुक

ब्याह हो या तीज-त्यौहार अथवा और कोई खास अवसर भारतीय घरों में खरीदारी भी खास हो जाती है. हर महिला चाहती है कि वह त्योहारों के अवसर पर सब से अलग और खास दिखे. सब की प्रशंसाभरी नजरें उस की तरफ उठें. मगर इस ऐक्साइटमैंट में यह न भूलें कि त्योहार के दौरान अच्छा दिखने के साथसाथ कंफर्ट का खयाल रखना भी जरूरी है. कपड़े ऐसे हों कि आप आसानी से सारी भागदौड़ कर सकें, रीतिरिवाज निभा सकें और गौर्जियस लुक के साथ परफैक्ट फैस्टिव दीवा भी लगें.

ऐसे में इंडियन एथनिक कपड़ों को पहनने का जो आनंद आता है वह शायद ही किसी और ड्रैस को पहन कर आता हो. तो इस फैस्टिव सीजन क्यों न हर रस्म को ऐथनिक फैशन के साथ सैलिब्रेट किया जाए.

इस संदर्भ में डिजाइनर शिल्पी गुप्ता कहती हैं कि इन दिनों बहुत सारे ऐथनिक फैशन उपलब्ध हैं. ऐथनिक वियर की कईर् उपशैलियां भी उपलब्ध हैं जैसेकि गुजराती ऐथनिक वियर, राजपूताना ऐथनिक वियर, पंजाबी ऐथनिक वियर, मराठी ऐथनिक वियर, इसलामिक ऐथनिक वियर आदि.

इन टिप्स को अपना कर आप त्योहार में ऐथनिक लुक में भी परफैक्ट लग सकती हैं:

मिनिमम लुक

फैस्टिवल के दौरान हम मेहमानों का अभिवादन करने में थोड़ा व्यस्त हो जाते हैं. ऐसे में भारी काम वाले कपड़े थका देने वाले साबित हो सकते हैं. अत: हलकी प्रिंटेड साड़ी स्टेटमैंट प्रिंटेड श्रग के साथ अच्छा विकल्प है. यह ड्रैस आप को ऐथनिक के साथसाथ मौडर्न लुक भी देगी.

शाइनिंग सिल्क

सिल्क में आप कोई भी ऐथनिक ड्रैस पहनती हों तो वह खूबसूरत लगती है. हाल के दिनों में डिजाइनरों, मशहूर हस्तियों और कई अन्य लोगों ने रेशम के कपड़ों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. बनारसी या डाउन साउथ शैली ने फैशन की दुनिया में अलग जगह बनाई है. आप रेशमी ब्लाउज, घाघरा या साड़ी में अपना ऐथनिक अवतार ट्राई कर सकती हैं.

अनारकली और चूड़ीदार के क्लासिक कौंबो

ड्रामा और ग्लैमर, अनारकली सूट के लिए 2 शब्द हैं. इन्हें चूड़ीदार के साथ पहना जाता है. चाहे कढ़ाई हो या जरी का काम किया गया हो अथवा किसी अन्य पैटर्न में भारतीय ऐथनिक वियर की यह शैली विकल्प के रूप में नंबर-1 पर है.

टै्रडिशनल विद मौडर्न लुक

बौलीवुड स्टार अपनी ट्रैडिशनल विद मौडर्न लुक की ऐथनिक पोशाक से सब को आकर्षित करती हैं. साड़ी, लहंगा या सूट सभी पोशाकों में थोड़ा सा मौडर्न लुक इस्तेमाल कर आप ऐथनिक में भी सब से अलग लग सकती हैं.

शौपक्लूज की रितिका तनेजा, हैड, कैटेगरी मैनेजमैंट, मानती हैं कि भारत सैकड़ों भाषाओं, संस्कृतियों, व्यंजनों और त्योहारों वाला देश है. सालभर देश के किसी न किसी हिस्से में कोई खास त्योहार मनाया जाता है, लेकिन खास फैस्टिव सीजन हर साल के अंत में शुरू होता है. इस समय महिलाओं के लिए ऐसी ड्रैसेज खरीदना काफी बड़ा काम होता है, जिन में वे खूबसूरत और सब से अलग दिखें.

कुछ टिप्स

अपनाएं इंडोवैस्टर्न फ्यूजन

फैस्टिव सीजन के विभिन्न इवेंट्स में रंग जमाने के लिए इंडोवैस्टर्न फ्यूजन जरूर आजमाएं. इस समय भारतीय लुक पर अधिक और पाश्चात्य लुक पर कम ध्यान दें. यानी आप अपने लुक को सिर्फ हलका वैस्टर्न टच दें. आप अनारकली सूट को हैरम पैंट के साथ पहन सकती हैं या इस के साथ डैनिम वेस्ट जैकेट पहनें.

ब्राइट कलर्स के साथ आकर्षक लुक

इस सीजन डल कलर्स से दूरी बनाएं और ब्राइट कलर जैसे यलो, रैड, पिंक आदि पहनें या इन के साथ मैचिंग करें. यह फैशन का ऐसा सीजन है, जिस में आप कलर्स के साथ भरपूर ऐक्सपैरिमैंट्स कर सकती हैं.

स्टाइलिश स्लिट वाला कुरता

स्लिट वाले कुरते काफी आकर्षक होते हैं. आकर्षक बनने के लिए आप साइड स्लिट, फ्रंट स्लिट और मल्टीपल स्लिट वाले कुरते आजमा सकती हैं. अपने पूरे लुक को ऐक्साइटिंग टच देने के लिए इन्हें आप स्कर्ट, बेल पैंट, प्लाजो या लूज पैंट के साथ आसानी से पहन सकती हैं.

हेमलाइन का उठाएं आनंद

अनइवन, अनमैच्ड और लेयर्ड हेमलाइंस इस सीजन में बहुत लोकप्रिय हैं, क्योंकि ये अधिक कंफर्टेबल और आकर्षक लुक प्रदान करती हैं. आप रफल्स और मल्टीपल लेस वाले कुरतों के विभिन्न स्टाइल आजमा सकती हैं. आप इसे स्लिम पैंट, लूज पैंट या स्कर्ट के साथ भी पहन सकती हैं. यह परिवार और दोस्तों के साथ त्योहार मनाने के लिए अच्छा लुक है.

आकर्षक प्रिंट्स

रैट्रो युग की प्रिंट डिजाइनें बेहद आकर्षक, स्टाइलिश और क्रिएटिव लुक देती हैं. फ्लोरल मोटिफ, ब्लौक प्रिंट्स काफी ट्रैंडी दिखते हैं और ये बाहर खाना खाने, खरीदारी करने जाते समय पहनने के लिए उपयुक्त हैं.

आइए, जानते हैं मोंटे कार्लो की ऐग्जिक्युटिव डाइरैक्टर मोनिका ओसवाल से कि अपने ऐथनिक लुक में परफैक्ट कैसे दिखें:

सही फैब्रिक है सब से अहम

परिधानों का चयन करते समय सब से पहले हमें फैब्रिक पर ध्यान देना चाहिए खासकर ऐथनिक वियर के मामले में फैब्रिक एक एनहांसर का काम करता है और आप के लुक को और निखारता है. कल्पना करें, आप ने एक सिल्क साड़ी पहनी है और उस के साथ एक अच्छा सा ब्रोकेड ब्लाउज है तो कितना अच्छा लगेगा. बात जब ऐथनिक परिधानों की आती है तो सिल्क बैस्ट विकल्प होता है. वैसे भी क्लासिक फैब्रिक जैसेकि सिल्क, लिनेन, कौटन, शिफौन, लेस आदि हमेशा चलन में रहते हैं और इन पर खर्च करना एक इनवैस्टमैंट जैसा होता है.

फिटिंग भी रखती है माने

फैब्रिक के साथ फिटिंग भी माने रखती है, क्योंकि इसी से परिधानों का लुक निखरता है. ढीलेढाले कपड़े चाहे जितने भी अच्छे क्यों न हों कभी खास नहीं लगते हैं. बहुत टाइट कपड़े भी अच्छे नहीं दिखते हैं, क्योंकि ये बेवजह का अटैंशन पाने की चाह में पहने हुए से लगते हैं. ऐसे में आप इन के साथ निप ऐंड टक कर के बड़ी आसानी से और कम समय में कपड़ों की फिटिंग ठीक कर सकती हैं या फिर टेलर से फिटिंग करा कर अपने लुक को परफैक्ट बनाएं.

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लेयरिंग का जलवा

कौन कहता है कि लेयरिंग सिर्फ वैस्टर्न आउटफिट में ही अच्छी लगती है? ऐथनिक वियर में भी लेयरिंग उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है जो ऐलिगैंस बढ़ा देती है. एक सामान्य कुरती के ऊपर अगर आप मल्टी ह्यूड जैकेट पहन लें तो यह खास लुक देगी. साड़ी के ऊपर वैलवेट केप्स पहन कर आप अपने फैशनिस्टा के सपने को साकार कर सकती हैं. यहां तक कि एक साधारण दुपट्टा भी आप के आउटफिट में जान डाल सकता है. इस लेयरिंग को समझदारी से करें और फिर देखें कैसे आप सब के आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं.

मिक्स ऐंड मैच

हमें अकसर ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास ऐथनिक इवेंट के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं है. ऐसे टाइम पर भी यदि हम अपने वार्डरोब को खंगालें तो पता चलेगा कि उस में ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिन्हें मिक्स ऐंड मैच कर के हम उस खास मौके के लिए बेहतरीन आउटफिट तैयार कर सकती हैं. चूड़ीदार की जगह प्लाजो ट्राई करें अथवा अपनी लौंग कुरती के साथ शिमरी घाघरा पहन कर अपनी ड्रैस में लाएं एकदम नयापन.

बनाएं यादगार स्टेटमैंट

यह आम धारणा है कि ऐथनिक का मतलब है गहनों से लदा होना. नख से शिख तक गहने ही गहने, जो सही नहीं है. अगर आप दुलहन नहीं हैं तो गहनों को ले कर चूजी रहें. बहुत सारे गहनों की जगह एक स्टेटमैंट पीस का चयन कर सोबर लुक के साथसाथ अट्रैक्टिव भी लगें.

फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा कहती हैं कि पेस्टल शेड्स फिर से ट्रैंड में हैं. युवा महिलाओं में त्योहारों के समय इस कलर का क्रेज दिखता है. मजैंटा या डार्क पिंक भी आजकल फ्यूजन वियर लुक के लिए ट्रैंड में हैं. ये भारतीय महिलाओं में फैस्टिव लुक्स के लिए काफी पौपुलर शेड्स हैं.

फैस्टिव लुक्स के लिए इंडोवैस्टर्न या फ्यूजन वियर भी काफी ट्रैंडिंग हैं. लहंगासाड़ी भी बेहतरीन औप्शन है. इंडोवैस्टर्न कुरती लुक्स भी फैस्टिव चौइस के रूप में काफी लोकप्रिय है. अनारकली ट्रैंड भी बेहतरीन फैस्टिव लुक देता है.

इंडोवैस्टर्न बैल्टेड साड़ी पहन कर भी आप त्योहारों के मौसम में जलवे बिखेर सकती हैं. प्लीटेड स्कर्ट्स के साथ इंडोवैस्टर्न टौप भी एक स्मार्ट चौइस है.

आजकल कुछ महिलाओं ने जोधपुरी पैंट्स के साथ शौर्ट कुरती पहननी शुरू की है, जो उन्हें डिफरैंट लुक देती है. ऐंब्रौयडरी वाली प्लेन चिकन कुरतियां भी फैवरिट फैस्टिव फैशन ट्रैंड है और यह हर उम्र की महिलाओं के द्वारा पसंद किया जाने लगा है.

इस फैस्टिव सीजन के लिए ज्वैलरी ट्रैंड्स

फ्लोरल ज्वैलरी इस सीजन में सब से ज्यादा लोकप्रिय ट्रैंडिंग ज्वैलरी ट्रैंड है. फ्लौवर्स से बने नैकपीसेज और मांगटीका इस सीजन में सब से ज्यादा पहने जा रहे हैं. स्टेटमैंट नैक पीसेज और इयररिंग्स भी फैस्टिव लुक में पसंद किए जा रहे हैं. डायमंड और क्रिस्टल ज्वैलरी मैचिंग इयररिंग्स के साथ भी फैस्टिव सीजन की पहली पसंद है. व्हाइट गोल्ड ज्वैलरी भी ट्रैंड में आ गई है. बहुत सी सैलिब्रिटीज यह ज्वैलरी पहनी दिख जाएंगी.

मल्टीपल कलर्ड पीसेज के बजाय फैस्टिवल्स में सिंगल कलर्ड ज्वैलरी पीसेज ज्यादा अच्छे लगते हैं. फैस्टिवल्स के दौरान हैवी पीस के बजाय लाइट वेट नैक पीस ज्यादा पसंद किए जाते हैं. फैस्टिव ज्वैलरी के लिए ब्यूटीफुल पर्ल्स ट्रैंड में हैं. असली और नकली दोनों तरह के पर्ल्स लिए जाते हैं. हैंड क्राफ्टेड और क्रिएटिव लुकिंग ज्वैलरी भी फैस्टिव सीजन की पहली पसंद है. इंडोवैस्टर्न लुक्स के साथ मैटेलिक या ब्रौंज्ड ज्वैलरी कंप्लीट फैस्टिव लुक देती है. सी शैल्स से बनी ज्वैलरी भी ऐथनिक फैस्टिव ड्रैसेज के साथ परफैक्ट लुक देता है. रंगरीति के सीईओ संजीव अग्रवाल ऐथनिक वियर से जुड़े निम्न टिप्स दे रहे हैं:

पारंपरिक परिधानों को दें नया ट्विस्ट

इस सीजन में पारंपरिकता और आधुनिकता का फ्यूजन टै्रंड में है. आप लंबी मैक्सी ड्रैस के साथ गहरे रंग की धोती पैंट पहन सकती हैं या कुरते के साथ धोती या पैंट मैच कर सकती हैं. आप चाहें तो स्टाइलिश कुरते को फ्लेयर्ड प्लाजो पैंट के साथ भी पहन सकती हैं.

आप स्टाइलिश कुरती और पैंट के साथ पारंपरिक जैकेट भी पहन सकती हैं. गहरे, पेस्टल या मिलेजुले रंगों में अपनी पसंद के रंग चुन सकती हैं. पेस्टल ग्रीन, मिंट ग्रीन, क्रीम, डल पिंक, पाउडर ब्लू जैसे कलर इस सीजन फैशन में हैं, जो फ्रैश और लाइट फीलिंग देते हैं.

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ऐथनिक फैशन

ऐथनिक ड्रैसेज भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं. इन त्योहारों में आप कई रंगों, पैटर्नों और डिजाइनों में ऐथनिक आउटफिट जैसे सलवार सूट, कुरतीप्लाजो, हैवी टुपट्टा, कुरती स्लिम पैंट, कुरतीस्कर्ट जैसे फ्यूजन अपना सकती हैं. अलगअलग रंगों और डिजाइनों के साथ नए प्रयोग भी कर सकती हैं.

कुरता ड्रैस

कुरता ड्रैस आजकल महिलाओं में काफी लोकप्रिय है. टाई ऐंड डाई प्रिंट का शौर्ट कुरता या मैक्सी कुरता जैसे परिधान इन त्योहारों में आप को नया लुक देंगे.

डबल लेयरिंग: लेयरिंग 2019 का नया फैशन कहा जा सकता है. यह पारंपरिक और पश्चिमी दोनों तरह की ड्रैसेज में चल रहा है. फैस्टिवल्स में आरामदायक एहसास पाने के लिए आप अपनी टीशर्ट के साथ नैट या कौटन का स्टाइलिश श्रग पहन सकती हैं. लेयर्स जहां एक ओर आरामदायक और खूबसूरत एहसास देती हैं, वहीं स्टाइलिश लुक भी देती हैं.

कोई भी ड्रैस चुनते समय आराम को सब से ज्यादा महत्त्व दें. आप चाहे वैस्टर्न वियर पहन रही हों या ऐथनिक वियर, आराम सब से ज्यादा माने रखता है. त्योहारों में आप को काम भी करना होता है, तो डांस भी. ऐसे में जरूरी है कि आप का परिधान ऐसा हो जिस में आप आराम से काम कर सकें, डांस कर सकें, लंबे समय तक सहज महसूस कर सकें. ऐसे मौकों के लिए क्लासी, लेकिन लाइटवेट कपड़े ही चुनें.

Dimple Kapadia ने बेटी ट्विंकल संग फोटो खींचवाने से किया मना, सरेआम कह दी ये बात

बौलीवुड ऐक्ट्रैस डिंपल कपाड़िया (Dimple Kapadia) इन दिनों सुर्खियों में छाई हैं. दरअसल एक इवेंट के दौरान उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे उनकी तुलना जया बच्चन से होने लगी. इस दौरान डिंपल कपाड़िया की बेटी ट्विंकल और दामाद अक्षय कुमार उनके साथ थे. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…

डिंपल कपाड़िया और उनकी बेटी ट्विंकल खन्ना (Twinkle Khanna) के बीच एक स्ट्रौंग बौन्डिंग देखने को मिलती है, मांबेटी की ये जोड़ी अपने जुदा अंदाज से अक्सर फैंस का दिल जीत लेती है. हाल ही में एक इवेंट के दौरान डिंपल कपाड़िया अपनी बेटी और दामाद के साथ मौजूद थीं. इससे जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

डिंपल कपाड़िया ने अपनी बेटी ट्विंकल के साथ पोज देने से किया मना

इस वीडियो में ऐक्ट्रैस अपनी बेटी ट्विंकल संग पोज देने से मना कर देती हैं. दरअसल, इवेंट के दौरान पैपराजी डिंपल से कहते हैं कि वह ट्विंकल के साथ पोज दें तो इस बात पर डिंपल कपाड़िया बुरी तरह से भड़क जाती हैं और गुस्से में कहती हैं, ‘मैं जूनियर्स के साथ पोज नहीं देती. सिर्फ सीनियर्स के साथ देती हूं.’ वीडियो में डिंपल का ऐसा एटीट्यूड देखकर हर कोई हैरान है. इस बर्ताव के लिए डिंपल को सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया जा रहा है.

सोशल मीडिया पर डिंपल हो रही हैं ट्रोल

हर कोई डिंपल के इस बर्ताव से हैरान है. यूजर्स का कहना है कि डिंपल को डरती हैं कि कहीं जूनियर्स के साथ पोज देने में उनकी असली उम्र न दिख जाए. तो वहीं एक यूजर ने लिखा, कि वह जया बच्चन का जूठा खा ली हैं. एक अन्य यूजर ने लिखा, उम्र के साथ हर कोई जया बच्चन बनता जा रहा है. एक यूजर ने कमेंट किया है कि लोग इनका सेंस औफ ह्यूमर नहीं समझ पा रहे हैं.

फिल्म ‘गो नोनी गो’ की क्या है कहानी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुंबई में चल रहे फिल्म फेस्टिवल 2024 में ट्विंकल खन्ना ,अक्षय कुमार और डिंपल कपाड़िया की फिल्म ‘गो नोनी गो’ का प्रीमियर रखा गया. इसी फिल्म की स्क्रीनिंग में पैपरा जी ने डिम्पल को ट्विंकल के साथ पोज देने के लिए रिक्वैस्ट की. इस फिल्म की बात करें, तो  डिंपल कपाड़िया इसमें मुख्य किरदार में हैं. ट्विंकल खन्ना ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है. यह एक रोमांटिक कौमेडी ड्रामा फिल्म है. फिल्म ‘गो नोनी गो’ की कहानी में एक ऐसी महिला को दिखाया गया है, जिसकी लाइफ में 50 साल की उम्र के बाद रोमांस जगता है. मानव कौल, आयशा रजा और अथिया शेट्टी भी इस फिल्म में नजर आएंगे.

Govinda और भांजे कृष्णा का 7 साल बाद हुआ मिलन, लेकिन लेकिन मामी सुनीता अभी भी हैं नाराज!

बौलीवुड ऐक्टर गोविंदा (Govinda)  के भांजे कृष्णा अभिषेक अपने मामा की कार्बन कौपी नजर आते हैं. कृष्णा अभिषेक ने अपने मामा गोविंदा का नाम जितना रोशन किया है उतना उनके बेटे या बेटी ने भी अपने पिता के लिए नहीं किया होगा. कृष्णा अपने मामा पर जान छिड़कते हैं वह न सिर्फ गोविंदा की तरह डांस करते हैं बल्कि गोविंदा का एक्टिंग स्टाइल भी कौपी करते हैं . मामा गोविंदा अगर बड़े पर्दे की शान है तो तो भांजे कृष्णा छोटे पर्दे की शान है. इन शौर्ट कृष्णा अभिषेक अपने मामा को ना सिर्फ गुरु मानते हैं बल्कि मामा के पदचिन्हों पर भी चलते हैं. बावजूद इसके पिछले 7 सालों से गोविंदा और कृष्णा में बातचीत बंद थी.

क्योंकि गोविंदा की पत्नी सुनीता ने कृष्णा पर इल्जाम लगाया था कि वह अपने मामा का अपने कौमेडी शोज में पब्लिकली मजाक उड़ाते हैं . इसके बाद यह झगड़ा सार्वजनिक हो गया और गोविंदा ने कृष्ण के साथ बात करनी बंद कर दी. करीबन 7 सालों से कृष्ण अपने मामा के घर भी नहीं गए.

लेकिन हाल ही में जब गोविदा को पैर में गोली लगी तो उस वक्त भांजे कृष्णा औस्ट्रेलिया में थे. मामा की खराब हालत की खबर सुनते ही जब कृष्णा मुंबई पहुंचे तो सबसे पहले वह गोविंदा से मिलने उनके घर पहुंच गये. गोविंदा ने भी सब कुछ भूल कर भांजे कृष्ण को गले लगा लिया और उसके साथ कई घंटों तक बातें की. यहां तक कि गोविंदा की बेटी और बेटा भी कृष्णा से मिले.

लेकिन बीवी सुनीता ने कृष्णा को दर्शन नहीं दिए. और ना ही कृष्ण को माफ किया. गोविंदा ने भले ही बड़ा दिल करके सारे गिले शिकवे भुलाकर भांजे गोविंद को माफ कर दिया हो. लेकिन मामी सुनीता अभी भी नाराजगी कायम की हुई हैं. गौरतलब है कि कश्मीरा शाह जहां गोविंदा के घायल होने की खबर सुनते ही अस्पताल पहुंच गई थीं वहीं सुनीता इतने बड़े कांड के बावजूद अकड़ के ही बैठी हैं.

मैंने अपनी दोस्त की बहन के साथ संबंध बनाया है, कहीं फ्रैंड मुझे धोखेबाज न समझ लें…. मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा एक बचपन का दोस्त था, जो मुझे सालों बाद मिला. अब हमारे बीच गहरी दोस्ती हो गई है. वह अपनी बहन के साथ रहता है. मैं अक्सर अपने दोस्त के घर जाता हूं, वह भी मेरे घर आता है. एक दिन उसकी बहन रास्ते में मुझे मिल गई, मैंने उसे घर छोड़ दिया उस दिन से हमारी बातचीत शुरू हुई. लेकिन मैं अपने दोस्त के सामने उसकी बहन से ज्यादा बात नहीं करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कहीं वह मुझे गलत न समझ लें.

कुछ दिनों पहले मेरा दोस्त शहर से कहीं बाहर गया था और उसकी बहन को तेज बुखार था, मेरा दोस्त मुझे फोन कर के बताया और उसने कहा कि मेरे घर चले जाओ और उसे डौक्टर से दिखा देना. उसकी बहन मुझे मैसेज काल करती है, हमारे बातचीत बढ़ती जा रही है. जब उसका भाई नहीं रहता है, तो हम मिलते भी हैं, हमारे बीच फिजिकल रिलेशन भी बन चुका है. लेकिन मेरे दोस्त को इस बारे में कुछ नहीं पता है. आजकल मुझे डर लग रहा है कि अगर मेरे दोस्त उसकी बहन के साथ अफेयर के बारे में पता चल गया तो हमारी दोस्ती तो टूटेगी ही और पता नहीं वह मेरे साथ क्या करेगा?

मेरी दोस्त की बहन ये भी कहती है कि मैं अपने भैया से हमारी शादी की बात करूंगी. मुझे ये बात भी परेशान कर रहा कि वह क्या सोचेगा कि उसकी पीठ पीछे मैंने उसकी बहन को बहकाया.

जवाब

देखिए आपके सवाल से लगता है आप अपने दोस्ती को नहीं खोना चाहते हैं और बीच में आपका प्यार भी है. दोस्ती और प्यार दोनों जरूरी रिश्ते हैं, इन दोनों में से किसी एक को चुनना बहुत कठिन है.
अगर आप और आपके दोस्त की बहन दोनों मिलकर बात करें और आप अपने दोस्त से अपने रिश्ते की सच्चाई बताएं, तो ये भी हो सकता है कि आपका दोस्त दोनों के रिश्ते को खुशीखुशी स्वीकार कर लें.

लेकिन आप अपने रिलेशनशिप की सच्चाई अपने दोस्त से छिपाए नहीं क्योंकि अगर उन्हें किसी तीसरे से इस बारे में पता चलता है, ज्यादा तकलीफ हो सकती है. उनकी सोच भी आपके प्रति गलत साबित हो सकती है. इसलिए जितना जल्दी हो सके आप अपने दोस्त से उनकी बहन के साथ रिलेशनशिप के बारे में बता दें.

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