जंगल सफारी के लिये बेस्ट हैं ये जगह, आप भी करें ट्रिप प्लान

बचपन में जब भी हम किसी फिल्म में हाथी को देखते थे, तो हमारे में मन हमेशा ख्याल आता था कि काश, हम हाथी को नजदीक से देख पाते. बचपन की वो इच्छा मन में अभी भी कहीं दबी हुई है. ऐसे में आप इस इच्छा को पूरा शौक से पूरा कर सकती हैं. भारत की कुछ ऐसी जगह हैं, जहां पर आप सिर्फ हाथियों को देख ही नहीं, बल्कि उनकी सवारी भी कर सकती हैं. चलिए, हम आपको बताते हैं जंगल सफारी की बेहतरीन 5 जगह.

कार्बेट नेशनल पार्क

उत्तराखंड में स्थित जिम कार्बेट नेशनल पार्क काफी पुराना है. ये जगह बाघों के लिए मशहूर है. यहां पर हाथियों की भी अच्छी तादाद देखने को मिल जाएगी. आप शाम के समय ऐलिफंट सफारी का मजा ले सकती हैं.

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कैसे पहुंचे

रामनगर रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो कौर्बेट नेशनल पार्क से 60 किमी. की दूरी पर स्थित है. यह स्टेशन देश के सभी प्रमुख शहरों से नियमित रेल सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है. स्टेशन से राष्ट्रीय उद्यान जाने के लिए टैक्सियां उपलब्ध हैं, जिनका मूल्य 1000 रूपये प्रति ट्रिप है.

बांधवगढ़ नेशनल पार्क

मध्यप्रदेश में स्थित बांधवगढ़ नेशनल पार्क एक बार जरूर घूमने जाएं. सफारी के दौरान राष्ट्रीय उद्यान में टहलते हुए जानवरों को देखना बहुत रोचक होगा. ऐसे में एलीफेंट सफारी आपको और भी दिलचस्प लगेगा.

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कैसे पहुंचे

रेल मार्ग के जरिए यहां पहुंचने के लिए जबलपुर (195 किलोमीटर), कटनी (100 किलोमीटर), सतना (120 किलोमीटर) और साउथ इस्टर्न रेल रूट पर उमरिया (33 किमी) समीप के रेलवे स्टेशन हैं.जबलपुर, कटनी और उमरिया से आप टैक्सी के जरिए बांधवगढ़ पहुंच सकती हैं.

कान्हा नेशनल पार्क

मध्यप्रदेश में स्थित कान्हा नेशनल पार्क हाथियों के लिए काफी मशहूर है. इस पार्क में आप कई दुर्लभ प्रजातियों को देख सकती हैं, जिनमें भेड़िया, चिन्कारा, इंडियन पेंगोलिन, समतल भूमी में जीने वाले ऊदबिलाव शामिल है. यहां ऐलिफेंट सफारी का मजा लिया जा सकता है.

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कैसे पहुंचे

यहां का निकटतम हवाई अड्डा नागपुर में स्थित है. रेल मार्ग के लिए आप जबलपुर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकती हैं. सड़क मार्ग के लिए आप एनएच 2,3,12 का सहारा ले सकती हैं. यह पार्क सड़क मार्ग से खजुराहो, नागपुर, मुक्की व रायपुर से जुड़ा हुआ है.

काजीरंगा नेशनल पार्क

असम में स्थित काजीरंगा नेशनल पार्क में एक बार जरुर घूमकर आएं. यहां एक सींग वाले गैंडे काफी देखने को मिल जाएंगे. साथ ही यहां कई दूसरे किस्म के जानवर भी देखने को मिल जाएंगे. यहां आप हाथी की सवारी कर जंगल की सैर का लुत्फ उठा सकती हैं.

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कैसे पहुंचे

यह गुवाहाटी से 225 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और काजीरंगा तक पहुंचने के लिए कैब सबसे अच्छा तरीका है. आसपास के अन्य शहरों में तेजपुर और गोलाघाट हैं, जो राज्य के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़े हैं.

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साल 2018 म्युचुअल फंड में निवेश के लिये है सही समय

निवेश के लिहाज से म्युचुअल फंड को एक अच्छा विकल्प माना जाता है. म्युचुअल फंड में निवेश करने की प्रक्रिया (एसआईपी के जरिए) भी काफी आसान होती है और इसमें निवेशक ठीक ठाक रिटर्न भी हासिल कर लेते हैं, जो कि बाजार में उपलब्ध अन्य निवेश विकल्पों के मुकाबले बेहतर होता है. साल 2017 म्युचुअल फंड के लिहाज से काफी बेहतर रहा था, ऐसे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि साल 2018 भी म्युचुअल फंड में निवेश के लिहाज से बेहतर हो सकता है.

वर्ष 2017 रहा MF के लिए बेहतर

वर्ष 2017 म्युचुअल फंड में निवेश के लिहाज से एक बेहतरीन साल रहा था, ऐसा इसलिए क्योंकि नोटबंदी के बाद, बैंकों के पास काफी ज्यादा मात्रा में नकदी पहुंच गई थी और फिक्स्ड डिपौजिट पर ब्याज दरों में बैंकों की ओर से कटौती की गई. इस वजह से लोगों ने म्युचुअल फंड में निवेश करना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें यहां ज्यादा रिटर्न मिलने की उम्मीद थी.

LTCG के बावजूद म्युचुअल फंड देते हैं बेहतर रिटर्न

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केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2018 के आम बजट भाषण में कहा था कि सरकार इक्विटी म्युचुअल फंड और ईएलएसएस (टैक्स की बचत करने वाला म्युचुअल फंड) समेत इक्विटी उन्मुख फंडों पर फिर से एलटीसीजी (LTCG) कर लगाने जा रही है. इस घोषणा के बाद काफी सारे निवेशकों ने इस निवेश विकल्प से भी मुंह मोड़ा लेकिन इस टैक्स के बावजूद म्युचुअल फंड बाजार में उपलब्ध तमाम विकल्पों से बेहतर रिटर्न देने में सक्षम है. आपको बता दें कि लौन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स उस सूरत में लागू होता है जब आप म्युचुअल फंड में अपने निवेश को एक साल से अधिक अवधि तक के लिए बनाए रखते हैं.

एक्सपर्ट की राय

एक्सपर्ट के अनुसार साल 2018 के दौरान इक्विटी इन्फ्लो में तेजी देखी गई है. इनके अनुसार बाजार में ज्यादा पैसा आने से उसे स्थायित्व मिलता है. वहीं सरकार भी पुर्नपूंजीकरण के जरिए काफी सारा निवेश कर रही है और ईपीएफओ की ओर से भी प्रवाह में तेजी देखने को मिल रही है. उन्होंने कहा कि अगर दूसरे विकल्पों की बात करें मसलन रियल एस्टेट सेक्टर (जिसकी स्थिति बेहतर नहीं है) तो इसके मुकाबले म्युचुअल फंड्स बेहतर रिटर्न दे रहे हैं. इसके अलावा साल 2019 के आम चुनावों को लेकर अभी से विश्लेषकों ने गुणा-भाग लगाना शुरू कर दिया है. सामान्यतया: यह उम्मीद लगाई जा रही है कि फिर से एनडीए सरकार सत्ता में आएगी. अगर ऐसा होता है तो यह बाजार के लिए एक अच्छा संकेत है.

साल 2018 में कितने रिटर्न की उम्मीद?

सोलंकी ने बताया कि साल 2018 में बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है. हालांकि बाजर बीते साल जितना रिटर्न तो नहीं देगा लेकिन म्युचुअल फंड निवेशक 12 से 15 फीसद तक के रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं. यानी कुल मिलाकर यह अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में बेहतर रिटर्न ही देगा.

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बिग बौस के घर को लेकर अर्शी खान ने किये कई नये खुलासे

बिग बौस के नए सीजन के लिए औडिशन शुरू हो गए है. लेकिन पिछले सीजन में काफी कुछ ऐसा चटपटा हुआ कि उसकी बातें अब भी लोगों के जहन में हैं. बिग बौस के 11वें सीजन में मौडल अर्शी खान ने काफी सुर्खियां बटोरी और अब घर से बाहर निकल कर भी अर्शी खबरों में हैं. हाल ही में अर्शी ने बिग बौस के घर के कई राज लोगों के सामने साझा किए हैं.

यूं तो बिग बौस के घर में शराब या नशे की कोई भी चीज इसके कंटस्‍टेंट को परोसी नहीं जाती, लेकिन पिछले सीजन के खिलाड़ियों में नशे की तलब कुछ ऐसी हुई कि उन्‍होंने घर में ही शराब बनाकर पीने की कोशिश की. घर में हुई इस घटना का खुलासा अब अर्शी खान ने किया है.

अर्शी खान के एक वीडियो में वह घर की पोल खोलती नजर आ रही हैं. अर्शी ने अपने इस वीडियो में बताया कि एक बार सब्‍यसाची ने घर में शराब बनाने की कोशिश की थी. आर्शी ने कहा, ‘सब्‍यसाची ने सेब का जूस निकालकर उसे बाहर रख दिया था कि यह दो दिन बाद शराब बन जाएगी. लेकिन इसके बारे में पता चलते ही बिग बौस ने इतना चिल्‍लाया और हम सब को एक लैब में लेकर गए. जहां हमारी जांच हुई कि हमने शराब पी तो नहीं.’ अर्शी ने कहा कि उसके सेब के जूस में कीड़े भी गिर गए थे, लेकिन हम फिर भी उसे छान कर पीने को तैयार थे.

अर्शी ने अपने इस इंटरव्‍यू में बताया कि वहां घर में काफी कीड़े थे और हम दाल-रोटी खा कर इतना परेशान हो गए थे कि कभी-कभी मन करता था कि इन कीड़ों को ही पका कर खा जाएं. अर्शी ने बताया कि घर के शीशों के पीछे से उन्‍हें इस शो के क्रू मैंबर्स की आवाज भी आती थी.

अर्शी खान, ‘बिग बौस 11’ में शिल्‍पा शिंदे और अपनी दोस्‍ती के चलते काफी हिट हुई थीं. इसके साथ ही अर्शी इस शो में अक्‍सर नाइटी में नजर आती थीं. हाल ही में अर्शी, डिजाइनर और बिग बौस के कंटेस्‍टंट रहे सब्‍यसाची सतपथी के फैशन शो में रैंप वौक करती नजर आईं.

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फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : पनीर भुर्जी सैंडविच

सामग्री

• 200 ग्राम पनीर • 1/2 कप हरी, पीली शिमलामिर्च बारीक कटी • 2 चम्मच अदरक व हरीमिर्च बारीक कटी • 1/4 कप प्याज बारीक कटा • 1/2 कप बीज रहित टमाटर छोटे क्यूब में कटा • 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर • 1 चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी • 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल • 8 ब्रैड स्लाइस • 50 ग्राम मक्खन • नमक स्वादानुसार.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के प्याज भूनें. इस में अदरक, हरीमिर्च, टमाटर और शिमलामिर्च डाल कर थोड़ा गलने तक पकाएं. फिर पनीर को हाथों से क्रंबल कर के मिलाएं और नमक भी डाल दें. मध्यम आंच पर 5 मिनट उलटेपलटें. अब इस में कालीमिर्च पाउडर व धनियापत्ती मिला कर मिश्रण ठंडा करें. ब्रैड स्लाइसेज में मक्खन लगा कर पनीर भुर्जी की लेयर लगाएं और सैंडविच तैयार करें. ग्रिल कर के मनपसंद सौस के साथ सर्व करें.

व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा 

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किचन आईलैंड : रसोई को बेहतरीन लुक देने का तरीका हम से जानिए

अगर आप की किचन कुछ बड़ी है और उस के मध्य में कुछ जगह बच रही हो तो आप अपनी किचन में आईलैंड अवश्य बनाएं. किचन आईलैंड आप की किचन को बेहतरीन लुक देगा. उस की सुंदरता और बढ़ जाएगी. इस के अलावा इस के और भी फायदे हो सकते हैं.

आईलैंड फिक्स्ड भी हो सकता है और मोबाइल भी. मोबाइल आईलैंड के कुछ अलग फायदे हैं.

आईलैंड के फायदे

आईलैंड के नीचे दोनों तरफ आप अतिरिक्त कैबिनेट, ड्राअर और शैल्फ बना सकती हैं. इस तरह किचन आईलैंड में अतिरिक्त स्टोरेज के लिए जगह होगी.

आप इस के  अंदर रिसाइकल बिन रख कर उस में किचन वेस्ट रख सकती हैं.

आवश्यकता पड़ने पर यह अतिरिक्त डाइनिंग टेबल का काम भी कर सकता है. इस की दोनों तरफ आप कुरसियां रख सकती हैं.

आप के घर में कोई पार्टी या गैटटुगैदर हो तो इस पर खानेपीने का सामान सजा सकती हैं.

यह आप के लिए अतिरिक्त काउंटर स्पेस देगा. अगर आईलैंड मोबाइल हो और ऐक्स्ट्रा फ्लोर स्पेस की जरूरत पड़े तो इसे आप हटा सकती हैं.

किचन आईलैंड में आप चाहें तो ऐक्स्ट्रा सिंक या वाशबेसिन भी रख सकती हैं.

आईलैंड टौप के मध्य में आप गुलदस्ते में फूल या अन्य सजावट का सामान रख सकती हैं.

आप इसे अपनी निजी जरूरत के अनुसार बनवा सकती हैं. अगर यह स्थाई हो तो इस में बिजली और पानी की लाइन रख कर मिक्सी, टोस्टर आदि यंत्र भी रख सकती हैं.

आप चाहें तो किचन आईलैंड में बरतन धोने की मशीन डिशवाशर भी लगा सकती हैं.

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आदर्श होती हैं कामकाजी महिलाएं

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने 25 देशों में 50 हजार व्यस्कों पर एक शोध किया और पाया कि वर्किंग मदर्स के बच्चे हर दृष्टि से बेहतर साबित होते हैं. उन की बेटियां अपना कैरियर अच्छा बनाती हैं, प्रतियोगिताओं को दमखम से फेस करती हैं, वे ज्यादा ऊंचे पद पाती हैं. यह आंकड़ा चौंकाने वाला इसलिए है कि जिन मांओं ने सिर्फ घर ही संभाला उन के मुकाबले वर्किंग मांओं की बेटियां 23% ज्यादा वेतन पाती हैं. 8% ज्यादा बेटियों को मैनेजर की जगह मिली.

यही नहीं वर्किंग मदर्स के बेटे घरों में पत्नी का हाथ ज्यादा बंटाते हैं और फिर भी उन का कैरियर कम नहीं होता. एक आम धारणा यह है कि वर्किंग मदर्स के ऐक्स्ट्रा चाबी वाले बच्चे अकेले रह जाते हैं, बिगड़ जाते हैं पर इस स्टडी ने इस बात को झुठलाया है और यह साबित कर दिया है कि कुल मिला कर कामकाजी मांएं बच्चों पर एक अच्छा प्रभाव छोड़ती हैं.

यह स्वाभाविक है, क्योंकि कामकाजी महिलाएं जहां बेटियों के सामने आदर्श रहती हैं कि घरबाहर दोहरी जिम्मेदारियां उठा कर वे अपनी शक्ति का सदुपयोग करती हैं वैसे ही बेटियों को करना चाहिए. वहीं वर्किंग मदर्स बेटियों को आफिसों की राजनीति, दूसरेपराए पुरुषों से व्यवहार, आर्थिक फैसले करने का अभ्यास बखूबी करा देती हैं. वर्किंग मदर्स की बेटियां प्रारंभ से ही घर ज्यादा अच्छा चला लेती हैं, क्योंकि वे परंपराओं से दूर रहती हैं.

इस स्टडी में तो यह नहीं पूछा गया पर यह पक्का है कि भारत में कामकाजी मांओं को धार्मिक पाखंडों से मुक्ति जरूर मिल जाती है और वे रोजरोज के व्रतों, उपवासों, पंडों को खिलाने, घंटियों को बजाने, मंदिरों की लाइनों में लगने से बच जाती हैं. ये गुण बेटियों में भी आ जाते हैं.

कामकाजी मांएं बेटों को आत्मसमर्थ बना देती हैं और वे बेहतर पति साबित होते हैं. मांओं के लिए कामकाजी होना बच्चों के लिए एक अच्छा अवसर होता है भले कुछ साल उन्हें दादियों, चाचियों या आयाओं के साथ काटने पड़ते हों. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इस शोध ने साबित किया है कि औरतें किसी से कम नहीं और जो औरतें किसी से कम नहीं वे घरबाहर दोनों के लिए वरदान हैं.

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बेजबानों की जान पर भारी फैशन

पिछले साल मैं जैनी के घर नागपुर गई. रास्ते में मुझे बताया गया कि परिवार बहुत धार्मिक है और सूर्यास्त से पहले ही खाना खा लेता है. यह परिवार जमीन के अंदर उगने वाली कोई सब्जी नहीं खाता. जब मैं उन के ड्राइंगरूम में घुसी तो देखा कि उन के ड्राइंगरूम में घोड़े की चमड़ी से बना गलीचा बिछा है. छोटे घोड़ों को मार कर उन की खाल निकाल ली जाती है और फिर उसे बारीकी से सिल कर गलीचा बनाया जाता है. उन्हें बेहद अमीर लोग ही अफौर्ड कर सकते हैं.

मेरे मेजबान जब कहने की कोशिश करने लगे कि यह नकली सिंथैटिक रंग है तो मैं ने उन्हें खाल पर चिपके बाल दिखाए. ये चीजें अमेरिका में बनती हैं. लोग फर के कोट, जूते, फर के बने सौफ्ट टौएज भी खरीदते हैं और सोचते हैं कि चूंकि ये बहुत सस्ते हैं तो अवश्य नकली सिंथैटिक मैटीरियल के होंगे.

यह सच नहीं है: ह्यूमन सोसायटी इंटरनैशनल ने पाया कि इन में से बहुत सी चीजें नकली फर, एक्रिलिक या पैट्रोलियम प्रोडक्टों से नहीं असली फर की बनी हैं, जो जानवरों से आती हैं. सोसायटी ने पाया कि बहुत से स्टोर जो नो फर नीति की घोषणा करते हैं वास्तव में फर की बनी चीजें ही बेचते हैं. बूट्स के बनाए क्लिप नकली फर के नहीं असली मिंक जानवर की फर के होते हैं. टैस्को स्टोर की रिंग और फैट फेस कंपनी के दस्ताने खरगोशों की खाल के ही होते हैं. अरबन आउटफिट्स असली फर के स्वैटर फेक फर के नाम से बेचती है.

असली को नकली बता कर बेचते हैं: लोगों को मालूम भी नहीं होता और बिल्ली की फर से बने लाइनिंग के जूते मिसगाइड कंपनी बेचती है. हाउस औफ फ्रासर, लिली लुलु, अमेजन, एएसओएस असली फर को नकली फर के नाम पर बेचते हैं, क्योंकि पशुप्रेमी असली फर बेचने पर बहुत हल्ला मचाते हैं.

जानवरों की खाल से बनी फर: नेइमन मारकस कोहल्स फौरएवर जैसे स्टोर जो नो फर नीति को मानने का विश्वास ग्राहकों को दिलाते हैं असल में जानवरों की खाल से बनी फर की चीजें बेचते पाए गए हैं. लोग सोचते हैं कि ये चीजें सस्ती हैं तो असली फर की नहीं होंगी पर सच यह है कि इन जानवरों को अब आधुनिक डेयरी फार्मों की तरह फार्मों में रख कर पाला जाने लगा है और बहुत ही क्रूर तरीके से इन्हें बड़ा कर के इन की खाल का इस्तेमाल करा जाता है. आधुनिक तकनीक और दवाइयों के कारण इन की उत्पादन लागत बहुत कम हो गई है.

कोई नहीं समझता इन का दर्द: जालियों के पिंजरों में रखे जाने वाले इन जानवरों को पोलैंड, चीन, कजाकिस्तान जैसे देशों में पाला जाता है जहां पशुप्रेमियों का बस नहीं चलता. लेखक टैंसी हौस्किंस ने इंगलैंड के अखबार द गार्जियन में लिखा है, ‘फर फार्मों में 7.5 करोड़ जानवरों को छोटेछोटे पिंजरों में रखा जाता है जहां इन्हें बीमारियां हो जाती हैं, घाव बन जाते हैं और ये दर्द से छटपटाते रहते हैं. ये घंटों अपनी गंद में पड़े रहते हैं. बहुत से जानवर तो दर्द के कारण पागल हो जाते हैं.’

इन जानवरों की वीडियोग्राफी तक कर ली गई है और बेहद दुखदाई क्लिप्स सार्वजनिक हो चुकी हैं.

हर चीज के पीछे जानवरों की चीखें: कई जगह इन्हें दवाइयां दे कर मोटा करा जाता है ताकि एक जानवर से ज्यादा से ज्यादा खाल मिल सके. इसी कारण अब फर से बनी चीजें बेहद सस्ती होने लगी हैं. भेडि़या, चिंचिल, भिंक, लोमड़ी, खरगोश, रैकून, कुत्तों और बिल्लियों का व्यापार अब बेहद कम दाम वाला बन गया है. इन की खाल से बनी चीजें अब सिंथैटिक चीजों से भी सस्ती होने लगी हैं जबकि हर चीज के पीछे जानवरों का दर्द व चीखें होती हैं.

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फिल्म रिव्यू : 102 नौट आउट

गुजराती भाषा के नाटकों की बदौलत बौलीवुड में ‘आंखे’ और ‘‘ओह माई गौड’’ सहित कई बेहतरीन व अति उत्कृष्ट फिल्में आयी हैं, मगर सौम्या जोशी लिखित गुजराती भाषा के नाटक ‘‘102 नौट आउट’’ पर बनी फिल्म ‘‘102 नौट आउट’’ को उत्कृष्ट फिल्म नहीं कहा जा सकता.

मूर्खतापूर्ण हंसाने वाले दृश्यों के साथ रुलाने वाली इस फिल्म के बाक्स आफिस पर कमाल दिखाने की बहुत ज्यादा उम्मीद नजर नहीं आती है. जबकि तीन किरदारों वाली इस फिल्म में अमिताभ बच्चन व ऋषि कपूर जैसे महान कलाकारों के संग जिमित त्रिवेदी हैं.

फिल्म की कहानी मुंबई के एक गुजराती परिवार की है. यह कहानी है 102 वर्षीय दत्तात्रय वखारिया (अमिताभ बच्चन) और उनके 75 वर्षीय बेटे बाबूलाल वखारिया (ऋषि कपूर) की. इनके साथ एक दवा की दुकान पर काम करने वाला युवक धीरु (जिमित त्रिवेदी) भी जुड़ा हुआ है,जो कि हर दिन इन्हे दवा आदि देने आता रहता है. दत्तात्रय ने छह माह के लिए धीरु की विशेष सेवाएं ले रखी हैं.

फिल्म शुरू होती है सूत्रधार से, जो कि फिल्म के किरदारों का परिचय करवाता है. बाबूलाल वखारिया उर्फ बाबू 75 वर्ष के हैं और उन्होंने मान लिया है कि वह बूढे़ हो गए हैं. जिसके चलते बुढ़ापा उन पर झलकने लगा है. अब वह कंधा सीधा करके खडे़ भी नहीं होते हैं. दवाओं पर चल रहे हैं. हर दिन डाक्टर मेहता के पास अपना चेकअप कराने जाते हैं. बहुत कम बोलते हैं. गुपचुप रहते हैं. उनकी जिंदगी में खुशी का कोई नामोनिशान नहीं है. उन्हे लगता है कि वह बहुत जल्द सब कुछ भूल जाते हैं. इसलिए हर जगह उन्होंने लिख रखा है कि क्या करना है. मसलन – बाथरूम में लिखा है – गीजर बंद करें.’ पत्नी चंद्रिका की मौत हो चुकी है. अब बाबू इस उम्मीद में जी रहे हैं कि 21 वर्ष से विदेश में बसा, वहीं शादी कर चुका उनका बेटा अमोल एक न एक दिन अपनी पत्नी व बच्चों को लेकर उनके पास आएगा.

बाबूलाल वखारिया को अपने पोते पोती का चेहरा देखने की हसरत है. इसी हसरत के चलते वह अपने नालायक बेटे अमोल की हर बात को भुला चुके हैं. वह यह भी याद नहीं करना चाहते कि उनकी पत्नी चंद्रिका पूरे 28 दिन तक बीमार रहीं और बेटे अमोल को याद करती रही,पर अमोल  छुट्टी न मिलने की बात कर भारत नहीं आया.

अपने बेटे बाबूलाल वखारिया की इस आदत व स्वभाव से दत्तात्रय परेशान हैं. वह 102 की उम्र में छब्बीस वर्ष के युवक की तरह जिंदगी जीते हैं और वह चाहते हैं कि उनका बेटा बाबू लाल भी अपने नालायक बेटे को भुलाकर अपनी जिंदगी जिए. दतात्रय हमेशा खुश रहते हैं,फन करते रहते हैं. एक दिन दत्तात्रय को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सच पता चलता है, तब वह एक बूढ़े चीनी का कटआउट लेकर घर पहुंचते है और बताते हैं कि यह चीनी 114 वर्ष तक जिंदा रहा, तो अब दत्तात्रय इसका रिकार्ड तोड़ेंगे.

उसके बाद वह बाबूलाल को बदलने के लिए एक एक कर छह शर्त रखते हैं. शर्त न मानने पर उसे वृद्धाश्रम भेजने की धमकी देते हैं. अब यह छह शर्ते क्या हैं और बाबू लाल में बदलाव आता है या नहीं, इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म गुजराती नाटक पर आधारित है. और इंटरवल से पहले फिल्म जिस ढंग से आगे बढ़ती है, उसे देखते हुए दर्शक यही सोचता रहता है कि नाटक को फिल्म में बदलने की क्या जरुरत थी. इंटरवल से पहले फिल्म प्रभावित नहीं करती है. इंटरवल तक फिल्म मूर्खतापूर्ण हास्य चुटकलों के अलावा कुछ नहीं है. मगर इंटरवल के बाद फिल्म सही मायनों में न सिर्फ गति पकड़ती है, बल्कि अति संवेदनशील व भावुकता वाली फिल्म बन जाती है, जो कि हर इंसान को सिखाती है कि महज संपत्ति के लिए मां बाप से रिश्ता रखने वाले बच्चों को घर से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए.

इतना ही नहीं फिल्म में एक खूबसूरत संवाद है-‘‘औलाद नालायक निकले, तो उसे भूल जाना चाहिए. सिर्फ उसका बचपन याद रखना चाहिए.’’ फिल्म की कमजोर कड़ी है बेतुके दृश्यों से भरी पटकथा. फिल्म में एक सीन है, जहां दत्तात्रय अपने बेटे बाबू को हर दिन डाक्टर से मिलने पर रोक लगाने के लिए डाक्टर पर 250 रूपए से भरा बटुआ चुराने का आरोप लगाने की सलाह देता है. यह पटकथा लेखक के खाली दिमाग का परिचायक है. इसी तरह कई जगह पटकथा लेखक की कमजोरी उजागर होती है.

फिल्मकार उमेश शुक्ला यह साबित करने के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं कि तीन पुरुष पात्रों के साथ, बिना हीरोईन के भी बेहतर फिल्म बन सकती है. इंटरवल से पहले तो निर्देशक के तौर पर वह काफी निराश करते हैं, मगर इंटरवल के बाद वह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाने में कामयाब होते हैं. फिल्म में पिता पुत्र के बीच के आत्मीय व भावुक संबंध बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरे गए हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर दोनों ही अभिनय के महारथी हैं. अमिताभ बच्चन अपने अभिनय से भावनाओं का ऐसा सैलाब उकेरते हैं कि दर्शक हंसने के साथ साथ रोता भी है. मगर उनकी सभी धारणात्मक अति उत्साही प्रकृति एक सीमा के बाद असहनीय हो जाती हैं. इतना ही नहीं अमिताभ बच्चन इस फिल्म में खुद को बार बार दोहराते हुए नजर आए हैं. उन्हे देख दर्शकों को अमिताभ बच्चन की कुछ पुरानी फिल्मों की याद आती रहती है.

बाबूलाल के किरदार को निभाने में ऋषि कपूर को कड़ी मेहनत करने की जरुरत नहीं पड़ी. वह बिना संवादों के, महज अपने चेहरे के भाव से बहुत कुछ कह जाते हैं. अमिताभ बच्चन व ऋषि कपूर बड़ी सहजता से पिता पुत्र के किरदारों में लोगों के दिलों में समा जाते हैं. इन दो महान कलाकारों के साथ ही धीरू का किरदार निभाने वाले अभिनेता जिमित त्रिवेदी ने ठीक ठाक अभिनय किया है. फिल्म में यह तीसरा किरदार भी काफी अहम है, क्योंकि पिता पुत्र के किरदार और उनके बीच हो रही बातचीत को अंतःदृष्टि देने का काम तो धीरू ही करता है, पर जिमित त्रिवेदी घर की बैठक में नाटक करते हुए लगते हैं.

फिल्म में पुराने लोकप्रिय गीतों की कुछ पंक्तियों को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म का गीत संगीत साधारण है. कैमरामैन लक्ष्मण उटेकर ने  प्रशंसा बटोरने वाला काम किया है.

एक घंटा 42 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘102 नौट आउट’’ का निर्माण ट्रीटौप इंटरटेनमेंट, बेंचमार्क पिक्चर्स, सोनी पिक्चर्स इंटरटेनमेंट फिल्मस ने मिलकर किया है. फिल्म के निर्देशक उमेश शुक्ला, लेखक सौम्या जोशी, पटकथा लेखक विकास पाटिल,  कैमरामैन लक्ष्मण उटेकर, संगीतकार सलीम सुलेमान और पार्श्व संगीतकार जौर्ज जोसेफ  तथा फिल्म के कलाकार हैं – अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, जिमित त्रिवेदी, धर्मेंद्र गोहिल व अन्य.

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कपिल शर्मा ने पत्रकार को उनके चरित्र हनन के लिए भेजा कानूनी नोटिस

अभिनेता कौमेडियन कपिल शर्मा एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं. उन्होंने एंटरटेनमेंट न्यूज पोर्टल और उसके पत्रकार विक्की लालवानी को उनके अपमानजनक लेखों व उनके चरित्र हनन के लिए कानूनी नोटिस भेजा है. इस नोटिस में उन्होंने पब्लिकेशन के एडिटर से नोटिस मिलने के सात दिन के भीतर सार्वजनिक तौर पर बिना शर्त माफी मांगने की मांग की है.

उन्होंने पब्लिकेशन से ‘अपने खिलाफ अपमानजनक, निंदात्मक बयानों, खबरों, साक्षात्कारों का प्रसारण न करने’ का आग्रह किया है. साथ ही उन्होंने प्रकाशन से सोशल मीडिया के सभी मंचों से सभी अपमानजनक लेखों/प्रकाशन सामग्री को तत्काल हटाने को कहा है. इतना ही नहीं कपिल शर्मा ने छवि खराब करने के लिए 100 करोड़ रुपए का हर्जाना भी मांगा है.

कपिल शर्मा के वकील तनवीर निजाम ने कानूनी नोटिस भेजे जाने की पुष्टि की है. इस पर उनका कहना है कि ‘विक्की लालवानी पर लिखे लेखों में जानबूझकर मेरे मुवक्किल को बदनाम किया गया. हमने सात दिनों के अंदर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने के लिए कानूनी नोटिस भेजा है. ऐसा नहीं होने पर हम संस्थान और पत्रकार के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया शुरू करेंगे.

गौरतलब है कि यह विवाद बीते महीने तब शुरू हुआ जब कपिल द्वारा लालवानी को गाली दिए जाने के एक औडियो कौल को सार्वजनिक किया गया था. नोटिस में कहा गया है कि कपिल अपमानजनक लेखों से दुखी हैं. बता दें कि कपिल ने अपनी एक्स मैनेजर प्रीति सिमोस और विक्की लालवानी पर 25 लाख रुपए मांगने का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि दोनों ने उन्हें जानबूझकर बदनाम करने की कोशिश की है.

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फिटनैस के लिए पौष्टिक डाइट जरूरी

महिलाएं हर जगह बहुत ही बोल्ड किरदार निभाती हैं और कैसी भी विषम परिस्थिति क्यों न हो कभी हिम्मत नहीं हारतीं और हमेशा अपने परिवार की भी हिम्मत बनी रहती हैं. यही नहीं बल्कि वे उन के खानपान का भी पूरा ध्यान रखती हैं ताकि उन की व्यस्त दिनचर्या में भी उन्हें पौष्टिकता से भरपूर डाइट परोसी जा सके. उन के इसी प्रयास में दिल्ली प्रैस द्वारा 17 अप्रैल, 2018 को दिल्ली के पीतमपुरा स्थित एमयू ब्लौक में आईटीसी द्वारा आशीर्वाद इवैंट का आयोजन किया गया, जिस में भारी संख्या में महिलाओं ने उपस्थित हो कर कार्यक्रम को सफल बनाया.

इवैंट में जान डाली ऐंकर अंकिता मंडल ने जिन्होंने मनोरंजक ऐक्टिविटीज से औडियंस में नई ऊर्जा का संचार किया. कार्यक्रम की शुरुआत रोटी मेकिंग की ऐक्टिविटी से हुई जिस में

3 महिलाओं ने दिए आटे से रोटी बना कर कला का बेहतरीन नमूना पेश किया. वैसे तो तीनों ही महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन विनर रही वह रोटी जो आशीर्वाद सलैक्ट आटे से बनी हुई थी.

रोटी मेकिंग की ऐक्टिविटी के बाद शैफ रमेश कुमार रौय ने आशीर्वाद शुगर रिलीज कंट्रोल आटे की खूबियां बताते हुए बताया कि अकसर जब हमारे परिवार में डायबिटीज पेशैंट स्वीट डिश की डिमांड करता है तो हम मना कर देते हैं जबकि उन्हें आप शुगर रिलीज कंट्रोल आटे व गुड़ से कैबेज पुडिंग क्रेप्स यानी पैन केक बना कर सर्व कर के उन की स्वीट डिश खाने की इच्छा पूरी कर सकते हैं.

शैफ की क्रिएटिव डिश की तारीफ करते हुए न्यूट्रिशनिस्ट मिस दिपांशी मल्होत्रा ने आशीर्वाद मल्टीग्रेन आटे में उपस्थित चीजों के फायदे बताते हुए कहा कि आप जितना पौष्टिक भोजन खाएंगे आप अंदर से उतना ही फिट रहेंगे. इसलिए फास्टफूड से ज्यादा हैल्दी खाने पर जोर दें. बीचबीच में ऐंकर ने औडियंस को गेम्स खेल कर उन्हें प्राइज जीतने का मौका दिया.

इस के बाद मोस्ट पौपुलर दीवा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिस में आशीर्वाद पौपुलर आटे के साथसाथ कुछ इंग्रीडीऐंड्स दे कर डिश बनाने को कहा जिस में कोमल ने आटे का चीला बना कर न सिर्फ मोस्ट पौपुलर दीवा का अवार्ड जीता बल्कि बहुत ही फुरती से बना कर बता दिया कि कुछ भी असंभव नहीं, वहीं सीमा मित्तल का आटे का चीला भी तारीफ के काबिल रहा.

अंत में रैसिपी विनर्स की घोषणा की गई. बीट फ्लोर डोसा बना कर विजय ने सांत्वना पुरस्कार जीता, तो वहीं तृतीय पुरस्कार जीता आटा ओट्स बना कर मिस गीतांजलि बंसल ने. द्वितीय पुरस्कार विजेता रहीं आटे की सब्जी बना कर मिस सरिता अग्रवाल. फर्स्ट रनरअप रहीं रोडानजा बनाने वाली ममता काली और प्रथम पुरस्कार जीता चपाती नूडल्स बना कर मिस सरिका गुप्ता ने. प्रतियोगिता के अंत में सभी को गुडी बैग्स दिए गए.

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