निमरत कौर और Abhishek Bachchan की शादी का सच आया सामने, फोटो हुआ वायरल

यह चर्चा जोरों पर है कि जूनियर बी की जिंदगी में किसी और म‍हिला की एंट्री हो गई है. यहां बात हो रही है अभिषेक बच्‍चन (Abhishek Bachchan) और उनकी रूमर्ड गर्लफ्रैंड  निमरत कौर की. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो अमिताभ बच्‍चन के लाडले बेटे अभिषेक बच्‍चन और बहू ऐश्‍वर्या राय कई महीनों से अलग रह रहे हैं. कुछ मौकों पर पूरा परिवार यानी अमिताभ बच्‍चन, जया बच्‍चन, इनकी बेटी श्‍वेता बच्‍चन और पति निखिल, बेटा अगस्‍त्‍य और बेटी नव्‍या भी साथ नजर आए लेकिन प‍रिवार की बहू कहीं नजर नहीं आई.

अभिषेक और ऐश्‍वर्या के तलाक की खबरें भी कई बार आई लेकिन अभिषेक ने अपनी उंगुली में इंगेजमेंट की अंगूठी दिखा कर बोलने वालों का मुंह चुप करा दिया. लेकिन अब ‘पत‍ि पत्‍नी और वो’ की तर्ज पर अभिषेक-ऐश्‍वर्या की तलाक की कहानी में नया ट्विस्‍ट आ गया है. इस कपल के रिश्‍ते में निमरत कौर को ‘वो’ बनाया गया है.

जूनियर बच्‍चन और निमरत कौर ने मूवी दसवीं में साथ काम किया था, इसमें वे पतिपत्‍नी के रोल में दिखे थे. इंटरनेट पर तो एआई से क्रिएट की हुई इमेज वायरल हो रही है, जिसमें निमरत कौर के मांग में सिंदूर लगा है और वह फोटो में अभिषेक के साथ नजर आ रही हैं. जबसे ऐश्‍वर्या के फैंस को यह खबर मिली कि अभिषेक और निमरत के बीच ‘कुछ चल रहा है’, तबसे निमरत की ट्रोलिंग शुरू हो गई. इधर निमरत कौर का वह पोस्‍ट वायरल हो रहा है जिसमें अमिताभ बच्‍चन के भेजे हुए फ्लावर बुके और लिखा पत्र नजर आ रहा है. हालांकि यह बहुत ही पुराना पोस्‍ट है जो अभी वायरल हो रहा है. इस बीच निमरत कौर का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जो साल 2016 का बताया जा रहा है.

इस इंटरव्‍यू में निमरत से उनकी शादी के बारे में सवाल पूछा गया था. इस पर निमृत का कहना था कि मैं शादीशुदा नहीं हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं शादी नहीं करना चाहती हूं. सही समय पर सही व्‍यक्ति मिलने पर ही शादी होती है.

एक्‍ट्रैस निमरत कौर और अभिषेक बच्‍चन के बीच अफेयर है या नहीं  यह तो आने वाला वक्‍त ही बताएगा लेकिन इस वजह से निमरत की जबरदस्‍त ट्रोलिंग हो रही है, कोई उन्‍हें ‘होमब्रेकर’ कह रहा है, तो कोई ‘चोरनी’ कह रहा है, यहां तक कि ट्रोलर्स निमरत को ‘चुड़ैल’ कहने से भी बाज नहीं आ रहे हैं, ऐश्‍वर्या के फैंस केवल निमरत की ही नहीं अभिषेक बच्‍चन की ट्रोलिंग भी कर रहे हैं, वह लिख रहे हैं कि ‘कोई सोना बेचकर ईंट पत्‍थर भी खरीदता है क्‍या’ मुंबई की मायानगरी में अफेयर या अफेयर से जुड़ी अफवाह बहुत ही कौमन है. आमतौर पर ऐसी खबरों का कोई सिरपैर नहीं होता है.

अभिषेक बच्‍चन के अलावा निमरत कौर के अफेयर के चर्चे पहले भी रहे हैं. खबरों की मानें तो निमरत कौर का नाम 90 के दशक के फेमस क्रिकेटर रवि शास्‍त्री के साथ भी जुड़ चुका है. मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि दोनों दो साल तक रिलेशनशिप में रहे, इनका रिश्‍ता साल 2018 में ही टूट गया था. 42 साल की निमरत कौर का जन्‍म राजस्‍थान के पिलानी के एक सिक्ख परिवार में हुआ. जब वह केवल 12 साल की थी तो उनके पिता की हत्‍या कर दी गई थी. उनके पिता इंडियन आर्मी में अधिकारी थे.

इन्‍होंने अपने कैरियर की शुरुआत मौडलिंग से की थी, साल 2013 में डेयरी मिल्‍क सिल्‍क के विज्ञापन से लोगों के बीच इनकी पहचान बनी. बाद में इरफान खान के साथ इनकी मूवी लंचबौक्‍स आई जो काफी सराही गई. इनकी पहचान एक गंभीर ऐक्‍ट्रैस की रही है. इनकी मूवीज को कांस फेस्टिवल में भी सराहा गया है. इन दिनों ट्रोलर्स इस एक्‍ट्रैस के पीछे पड़े हैं और मीम्‍स, फोटोज और वीडियोज के जरिए एक्‍ट्रैस को घर तोड़नेवाली बताना चाह रहे हैं. ऐश्‍वर्या और अभिषेक की शादी साल 2007 में हुई थी और दोनों ने अभी भी इंगेजमेंट की अंगूठी पहन रखी है.

Face Mask से जुड़ी ये गलतियां कर देती हैं आपकी स्किन को डैमेज, जानें कैसे रखें चेहरे का ख्याल

स्किन को साफसुथरा रखने के लिए अक्सर लड़कियां फेस मास्क (Face Mask) का इस्तेमाल करती हैं. कई लोग तो घर में ही होममेड मास्क बना लेते हैं. हालांकि मार्केट में अच्छे प्रोडक्ट के फेस मास्क आपको मिल जाएंगे, जिसका इस्तेमाल कर आप अपनी स्किन को साफसुथरा रख सकती हैं.

लेकिन कई बार लड़कियां फेस मास्क लगाते समय कुछ ऐसी गलतियां कर देती हैं, जिसकी वजह से चेहरे पर चमक नहीं आती है बल्कि स्किन डैमेज होने लगता है. अगर आप भी अक्सर फेस मास्क लगाती हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए है. आइए जानें फेस मास्क से जुड़ी मिस्टेक्स के बारे में…

फेस मास्क लगाने से पहले स्किन को करें एक्सफोलिएट

फेस मास्क का बैस्ट रिजल्ट पाने से पहले स्किन पर जमी धूल मिट्टी, गंदगी को साफ करना बेहद जरूरी है. आप अपनी स्किन को एक्सफोलिएट करना न भूलें.

ज्यादा देर तक लगाए रखती हैं फेस मास्क?

चेहरे पर फेस मास्क करीब 15-20 मिनट तक रखना सही होता है. कई बार ज्यादा देर तक फेस मास्क चेहरे पर लगाए रखते हैं, जिससे ड्राई स्किन की समस्या होती है, इसके अलावा इरिटेशन से भी परेशान हो सकती हैं.

फेस मास्क हटाने के बाद मौइश्चराइजर का यूज करें

हालांकि फेस मास्क में स्किन को हाइड्रेट और मौइश्चराइज करने के गुण होते हैं, लेकिन चेहरे पर बैस्ट रिजल्ट पाने के लिए फेस मास्क हटाने के बाद स्किन को अच्छी तरह से मौइश्चराइज करें.

चेहरे पर न लगाएं ज्यादा फेस मास्क

हफ्ते में 2-3 बार फेस मास्क लगाना स्किन के लिए फायदेमंद है, लेकिन अगर आप रोजाना फेस मास्क लगाते हैं, तो इससे चेहरे का नेचुरल औयल खत्म हो जाता है. स्किन पर ज्यादा ड्राईनेस होती है, जिससे चेहरे की चमक फीकी पड़ जाती है. इसलिए चेहरे पर बहुत फेस मास्क का इस्तेमाल न करें.

मास्क निकालने के बाद करें ये काम

  • मास्क निकालने के बाद चेहरे को  ज्यादा गर्म पानी से न धोएं और न ही ज्यादा ठंडा पानी का इस्तेमाल करें.  फेस मास्क हटाने के बाद हमेशा गुनगुना पानी से चेहरे को साफ करें.
  • जब आपका चेहरा साफ हो जाए, तो मुलायम तौलिए से अपने चेहरे को थपथपाकर सुखाएं.  नमी को बरकरार रखने के लिए अपने अच्छे क्वालिटी की मौइस्चराइजक का इस्तेमाल करें. जिससे आपका स्किन सैफ्ट और ग्लोइंग नजर आएगी.
  • मौइस्चराइज करने के बाद आप सीरम या आई क्रीम जैसे प्रोडक्ट का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर आप खासकर दिन में बाहर जा रहे हैं, तो सनस्क्रीन लगाना न भूलें.
  • अगर आप नए प्रोडक्ट या किसी सामग्री का इस्तेमाल कर रही हैं, तो उन्हें अपने पूरे चेहरे पर लगाने से पहले पैच टेस्ट ज़रूर करें.

चिराग : स्वप्निल के संदेश का क्या था राज?

लेखक-  डा. अखिलेश पालरिया

पोती ने दादी के लिए खाने की थाली लगाई तो दादी रोटी का एक टुकड़ा निकाल कर बोलीं, ‘‘पहले खाने के साथ ही गौरैया भी फुदक कर पास आ जाती थी और मेरे पास ही खापी कर उड़ जाती थी जैसे मेरा और उस का कोई पुराना नाता रहा हो.’’

पोती शालिनी ने पूछा, ‘‘दादी, आज अचानक आप को गौरैया कैसे याद आ गई?’’

‘‘अरी, आज सुबह ही तो मैं ने एक गौरैया को छत की मुंडेर पर फुदकते देखा था तो मैं तुरंत स्टोर से एक कटोरी बाजरे की ले आई लेकिन वह तो न जाने कहां उड़ गई.’’

‘‘दादी, अब तो गौरैया कम ही दिखाई देती है.’’

‘‘हां, रूठ गई है वह हम मनुष्यों से… अब वह हमें अपना नहीं मानती क्योंकि हम ने उसे अपने यहां शरण देना जो बंद कर दिया है. सारे मकान पैक कर दिए हैं न. शायद लुप्त होने की कगार पर हैं हमारी ये घरेलू चिडि़यां.’’

‘‘दादी, मु?ो ही अपनी गौरैया मान लो न.’’

दादी खिलखिलाईं फिर बोलीं, ‘‘हां, है तो तू मेरी गौरैया.’’

रागिनी भीतर रसोई में दादीपोती की बातें सुन रही थी. प्लेट में गरम फुलका ला कर सासूजी की थाली में परोसा फिर बड़े क्षोभ के साथ कहा, ‘‘मां, गौरैया तो बीती बातें हो गई, आजकल तो परिवार वाले भी टांग खिंचाई में लगे रहते हैं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही है बहू?’’

‘‘आज स्वप्निल जूते पहनते हुए शिकायती लहजे में कह रहा था कि मम्मी, मैं ने पारिवारिक वाट्सऐप गु्रप- ‘अपने लोग’ में अपने दोहरे शतक की जानकारी शेयर की तो कोई कुछ न बोला सिवा सुजाता मौसी के.’’

‘‘हां मम्मी,’’ शालिनी तपाक से बोली, ‘‘स्वप्निल का मजाक उड़ाने वालों को अब सांप सूंघ गया है. कोई प्रतिक्रिया तक नहीं देते मानो कुछ हुआ ही न हो.’’

‘‘वे भी तो सब अपने ही हैं बहू.’’

‘‘एक सुजाता ही है जो खुश हो कर हर बार बधाई व शुभकामनाएं देती है.’’

रागिनी के कथन पर दादी ने पूछा, ‘‘कौन सुजाता?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘आप भूल गई मां, सुजाता को? मेरी छोटी बहन, जो सूरत में रहती है.’’

‘‘अरे हां, याद आया. बहुत अच्छी है वह. मैं तो नाम भूल जाती हूं बहू आजकल.’’

रागिनी कहती रही, ‘‘एक वह दौर था जब क्रिकेट का जनूनी स्वप्निल 10वीं में फेल हो गया था तो सब रिश्तेदार व्यंग्य करते कि देखो हमारे खानदान का चिराग, जिस ने हम सब का नाम रोशन कर दिया है. जहां परिवार के लोग इंजीनियर, डाक्टर, आईएएस बन गए हैं, वहीं एक यह स्वप्निल है जो 10वीं में ही लुढ़क गया. वह तो इस के पापा, दादी और मैं ने इस को संभाला नहीं तो यह आत्महत्या कर चुका होता,’’ स्वप्निल की बड़ी बहन शालिनी ने जोड़ा, ‘‘मेरी सुजाता मौसी ने तो ग्रुप में स्वप्निल का बचाव करते हुए कहा था कि देखना, एक दिन वह क्रिकेट का स्टार खिलाड़ी बन कर सब को पीछे छोड़ देगा और परिवार का चिराग बनेगा. मौसी की इस बात पर 1-2 ने तालियां बजाईं तो बाकी ने मजाक उड़ाया.’’

‘‘मां, ऐसे होते हैं परिवार वाले जो कुछ अच्छा करने पर आंखें मूंद लेते हैं और अच्छा न करने पर उंगलियां उठाने से भी बाज नहीं आते. अरे, तुम्हें किसी का टेलैंट नजर क्यों नहीं आता जो अपने भीतर की नकारात्मकता को दफन करना तो दूर, उसे दूसरों पर थोपते रहने का कोई अवसर नहीं गंवाते,’’ रागिनी के मन की भड़ास आज रहरह कर स्वर में घुलती जा रही थी.

‘‘बहू, स्वप्निल जैसे जनूनी विरले ही मिलते हैं जो काम को पूजा समझ कर किसी दिन अजूबा कर देते हैं. और रही बात परिवार वालों की तो वे सब एक दिन अपने कृत्य पर शर्मिंदा हो कर उस के गुणगान गाएंगे.’’

इधर इस लंबेचौड़े परिवार में एक हादसा हो गया. आईआईटी कोचिंग सैंटर कोटा में पढ़ने वाले बच्चे सुयोग्य ने चौथी मंजिल से कूद कर अपनी जान दे दी क्योंकि वह बहुत दबाव में था और मांबाप की इच्छानुसार वहां पढ़ने में अपना मन नहीं लगा पाया. वह आर्टिस्ट बनना चाहता था और घर वाले उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे.

परिवार में कुहराम मच गया था और मांबाप ने अपने इकलौते भावुक बेटे को खो दिया था जो नाम से तो सुयोग्य था ही, सद्गुणों में भी सब पर भारी पड़ता था.

मांबाप का रोरो कर बुरा हाल था पर अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत.

सुयोग्य के मम्मीपापा अब उस पल को कोस रहे थे जब वे उसे कोटा में कोचिंग के लिए जबरन भेजने पर आमादा थे. उस का कमरा जिस में एक से बढ़ कर एक सुंदर पेंटिंग्स थीं, जिन में से एक को तो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था और स्कूल वाले भी उस की इस प्रतिभा के कायल थे. अब उन के पास हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ न बचा था.

स्वप्निल दादी के पास आ कर बोला, ‘‘दादी, मैं तो शुरू से ही सुयोग्य के साथ था लेकिन इतने सुशिक्षित लोगों के बीच मेरी कौन सुनता? सुयोग्य ने कई बार पारिवारिक वाट्सऐप समूह- ‘अपने लोग’ में अपनी पेंटिंग्स पोस्ट की थीं लेकिन उस के कद्रदान वहां कौन थे उलटे मेरे द्वारा सुयोग्य की प्रशंसा पर वे मुझ पर ही हंसे थे.’’

दादी ने स्वप्निल का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मेरे बच्चे, कभी भी लोगों के व्यवहार व असफलता से घबराना नहीं, मैं और तुम्हारे मम्मीपापा तुम्हारी प्रगति की राह में तुम्हारे साथ खड़े हैं.’’

‘‘जानता हूं दादी लेकिन सुयोग्य को यह सपोर्ट नहीं थी’’

सुयोग्य चला गया और पीछे छोड़ गया अपने मम्मीपापा की अधूरी महत्त्वाकांक्षाएं जो अब पूर्ण न हो सकती थीं. वह उस टीस को भी छोड़ गया था जिस की पीड़ा उन्हें आजीवन ही भुगतनी थी, मरते दम तक.

इस बीच 1 साल पूरा होने को आया. स्वप्निल रणजी फर्स्ट क्लास मैचेज में शतक और दोहरे शतकों की बदौलत संपूर्ण वर्ष अपनी धाक जमाता रहा इसीलिए उसे आईपीएल मैचों के इस सीजन के लिए 5 करोड़ में खरीद लिया गया. इन मैचों में भी उस की उच्च स्तरीय तकनीक व मारक क्षमता के कारण सारे धुरंधर गेंदबाज भी बौने साबित हुए. अब वह क्रिकेट का तेजी से उभरता हुआ सितारा बन गया था.

स्वप्निल को अपने शानदार रिकौर्ड के कारण वर्ल्ड कप में भारतीय टीम में बतौर ओपनर शामिल कर लिया गया. यह उस के लिए सर्वाधिक खुशी के पल थे.

वर्ल्ड कप के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मैच में जो चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरुद्ध था. स्वप्निल पर सब की आंखें गड़ी हुई थीं. एक टीवी ऐंकर ने साक्षात्कार में उस से पूछा भी, ‘‘विश्व कप का पहला मैच और वह भी पाक के विरुद्ध… क्या नर्वस हैं आप?’’

स्वप्निल ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘क्या आप को मेरे चेहरे से ऐसा लगता है? मैं खेलने और गेंदबाजों के छक्के छुड़ाने को बेताब हूं.’’

जब भारत ने बल्लेबाजी शुरू की तो पहले ही ओवर में विकेट गिर गया था लेकिन स्वप्निल फिर भी दूसरे छोर पर निर्भीक खड़ा था. भारतीय फैंस जरूर नर्वस हो गए थे लेकिन उन की निराशा को शीघ्र ही स्वप्निल ने अपने चौकोंछक्कों से दूर कर दिया. यद्यपि विकेट भी निरंतर गिर रहे थे लेकिन स्वप्निल का बल्ला रनों की बारिश करता रहा.

हजारों की संख्या में प्रत्यक्ष मैच देख रहे दर्शकों के बीच आगे की लाइन में स्वप्निल की सुजाता मौसी भी बैठी थीं साथ में करोड़ों प्रशंसक अपने घरों में स्वप्निल की बल्लेबाजी का आनंद लेते हुए ?ाम रहे थे.

विजयश्री जब सामने खड़ी थी तो इस बार तो स्वप्निल ने छक्का अपनी मौसी की ओर ही उछाल दिया और यह एक तरह से उन के प्रति कृतज्ञता थी. इस खूबसूरत शौट के साथ ही भारत जीत गया.

चारों ओर विजय का उत्सव आरंभ हो गया. पैवेलियन की ओर लौटते हुए स्वप्निल का सभी खड़े हो कर अभिनंदन कर रहे थे और हाथों में उन के लहराता हुआ तिरंगा था. मौसी भी खड़े हो कर तालियां बजा रही थीं.

स्वप्निल अपनी मौसी की ओर बढ़ा. उन के पैर छुए तो उन्होंने उसे गले लगा लिया. मौसीभानजे के बीच कुछ पल खुशियों की फुल?ाडि़यां छूटती रहीं जो टीवी पर सीधे प्रसारित हो रही थीं.

अंतत: स्वप्निल ड्रैसिंगरूम में लौट आया. सोने से पहले स्वप्निल ने अपने लगभग 100 व्यक्तियों के पारिवारिक वाट्सऐप समूह- ‘अपने लोग’ पर एक नजर डाली जहां आज बधाइयों की होड़ मची थी. उस से रहा नहीं गया. अत: उस ने लिखा-

‘‘आज भाई सुयोग्य की पहली पुण्यतिथि है. मेरा आज का अंतर्राष्ट्रीस एकदिवसीय शतक जो मेरा डेब्यू मैच भी था, दिवंगत सुयोग्य को समर्पित करता हूं.

‘‘हां, वह एक शानदार आर्टिस्ट बनना चाहता था. उस में एक बेहतरीन आर्टिस्ट बनने की सब से बड़ी योग्यता थी, उस का जनून. बिना जनून के आदमी कुछ हासिल नहीं कर सकता.

‘‘मेरे अंदर पढ़ने की योग्यता न थी क्योंकि मेरा फोकस केवल और केवल क्रिकेट पर था. पापा ने मु?ा 3 साल के बच्चे को जब बर्थडे की खिलौनों की दुकान में कोई गिफ्ट चुनने के लिए कहा था तो मैं ने न जाने क्यों क्रिकेट का बल्ला और टेनिस की बौल को चुना. लेकिन बाद में यह मेरे हाथ से कभी छूट ही नहीं पाया और मैं सब कुछ छोड़ कर क्रिकेट का फैन बन गया. थोड़ा सा बड़ा होने पर आश्चर्यजनक रूप से टीवी पर क्रिकेट मैचेज को ध्यान से देखता और जब खुद बड़े शौट मारने लगा तो मेरे साथी खिलाड़ी दांतों तले अंगुली दबाने लगते. तब मु?ो इस खेल में पसीना बहाने में भी मजा आने लगा.

‘‘अधिकतर मांबाप अपने बच्चों को बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं देते और उन्हें डाक्टर, विशेषज्ञ चिकित्सक, इंजीनियर, सीए, प्रोफैसर या अधिक से अधिक आईएएस बनाना चाहते हैं लेकिन मेरे पापा ने मेरी क्रिकेट के प्रति दीवानगी की हदें पार करते देख मु?ो अच्छा क्रिकेटर बनने की सारी सुविधाएं व प्रशिक्षण दिलाया हालांकि मैं 10वीं की परीक्षा में भी पास न हो सका जबकि मेरे सभी रिश्तेदारों की संतानें अपनी पढ़ाई में धाक जमाती रहीं.

‘‘मैं हंसी का पात्र भी खूब बना किंतु मैं ने हिम्मत नहीं हारी. मेरा लक्ष्य असाधारण व कठिन था अत: लोगों की कल्पना से परे था.

‘‘आज सोचता हूं कि मु?ो भारत की ओर से खेलने का अवसर मिला तो इस के पीछे मेरा जनून और पापा का समर्थन था.

‘‘मेरे परिवार में कोई डी.एम. कार्डियोलौजिस्ट था तो कोई इंजीनियर, कोई सीए तो कोई प्रोफैसर था या फिर आईएएस, ऐसे में एक 10वीं कक्षा में फेल हुए बालक पर हंसेंगे नहीं तो क्या गर्व करेंगे?

‘‘वे अपनी जगह सही थे लेकिन मेरी नजर में डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफैसर और आईएएस कोई बड़े लक्ष्य नहीं थे क्योंकि मैं और भी बड़ा लक्ष्य अर्जित करना चाहता था और धीरेधीरे अपने लक्ष्य की ओर कड़ी मेहनत और धैर्य के साथ आगे बढ़ रहा था. मेरा और मेरे अपनों के पास चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं था.

‘‘यद्यपि कोई भी क्षेत्र हो, उस में वांछित सफलता के लिए जनून होना चाहिए किंतु मेरे अंदर क्रिकेट के लिए 100त्न जुनून था और शेष के लिए शून्य.

‘‘वैसे तो कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. जिस को करने में मन को सुकून मिले और वह पूरी शिद्दत से किया जाए तो बड़ा बन जाता है. हर काम को मन के संतोष की दृष्टि से देखा जाए तो जीवन को अच्छे से जीने की गारंटी मिल जाती है.

‘‘मैं मानता हूं कि बड़ा नाम कमाने के लिए पैसा नहीं, सम्मान ही बड़ा होता है. आज करोड़ों लोगों ने मु?ो खेलते हुए देखा लेकिन जब मैं ने अपने देश के लिए मुश्किल परिस्थितियों में शतक लगा कर हार को जीत में बदल दिया तो देश का सम्मान सब से बड़ा और पैसा गौण हो गया.

‘‘कुछ कामों में पैसा नहीं होता लेकिन नाम बड़ा माना जाता है जैसे लता मंगेशकर को देश का सर्वोच्च पुरस्कार- भारत रत्न मिला तो वहां पैसा नहीं, केवल सम्मान ही था. क्या प्रेमचंद और शैक्सपीयर के नाम छोटे हैं? हां, उन के पास मरते दम तक पैसा नहीं था पर नाम आसमान को छू गया. यही सच्ची दौलत होती है. क्या पैसा होने पर भी हम साथ ले जा सकते हैं?

‘‘मुझ से दूर निवास करने वाली सुजाता मौसी के प्रोत्साहन ने मुझे कभी टूटने नहीं दिया और आज के मैच में दर्शकदीर्घा में उन्हें देख कर मेरा हौसला आकाश जितना बड़ा हो गया. घर आ कर जब मैं ने उन के साथ के टीवी रिप्ले नैशनल न्यूज पर देखे तो ये मेरे लिए अमूल्य क्षण थे.

‘‘मेरा कजिन ब्रदर आर्टिस्ट बनना चाहता था जिस के लिए मैं उस की पेंटिंग्स व जनून देख चुका था और मैं सचमुच अचंभित होता था. लेकिन उस की इच्छा के विरुद्ध उसे आईआईटी कोचिंग सैंटर में भेज दिया गया तो निराश हो कर उसे आत्महत्या करनी पड़ी. यह हम सब के लिए बहुत दुखद घटना थी. मु?ो पक्का विश्वास है कि वह जिंदा रहता तो बहुत ऊंचाइयां छू कर दिखाता.

‘‘हवा के विपरीत दिशा में तो पतंग भी नहीं उड़ती फिर कोई मन के विरुद्ध कैरियर जैसा बड़ा काम कैसे करेगा? क्या इच्छाओं के विरुद्ध डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस बनाना ही सबकुछ है? सच कहूं तो इन का फलक तो सीमित ही होता है. यह बन कर भी अधिक ऊंचा नहीं उड़ा जा सकता. बड़े सपनों के लिए साहित्य, अभिनय, खेल, राजनीति, गीतसंगीत जैसे क्षेत्र चुनने पड़ते हैं और ऊंची उड़ान भरनी पड़ती है. अत: असंभव से दिखने वाले लक्ष्य की शुरुआत में अपने निकट परिचितों, संबंधियों द्वारा हंसी उड़ती है, उस की टांग खींच कर उसे आगे बढ़ने से जबरन रोका जाता है या तो जगहंसाई के बाद भी वह बुलंदियों पर पहुंच जाता है या फिर हिम्मत हार जाता है. विस्तृत फलक वाली कठिन उपलब्धियों के साथ ही देशविदेश में नाम कमाया जा सकता है. यद्यपि बड़ा बनने के लिए अंगारों पर चलना और दीपक की तरह जलना पड़ता है.

‘‘आज हम एक दीपक अपने होनहार सुयोग्य की स्मृति में भी जलाएं. भाई सुयोग्य, तुम अपने घर के चिराग थे. तुम ने नादानी की जो चले गए. क्या तुम नहीं जानते थे कि कोई भी मांबाप अपने बेटे को खोना नहीं चाहते, किसी भी परिस्थिति में नहीं. मरना किसी के लिए जरूरी नहीं होता, हरगिज नहीं. हर समस्या का कोई समाधान अवश्य होता है लेकिन मरना किसी समस्या का समाधान नहीं होता. तुम नहीं जानते, किसी भी मांबाप को यह बात सहन नहीं होती कि उस की संतान उन से पहले चली जाए.

‘‘तुम्हें वापस इस दुनिया में आना पड़ेगा दोस्त, एक आर्टिस्ट बनने के लिए, अपना रूप बदल कर ही सही. तो आओगे न तुम?

-स्वप्निल.’’

स्वप्निल के इस संदेश को पहली बार आज समूह में सब ने खूब सराहा. बाद में इसे किसी ने वायरल कर दिया तो यह देश के सभी समाचारपत्रों के मुखपृष्ठ पर छपा.

वास्तव में यह संदेश उन सब के लिए था जो बड़े लक्ष्य अर्जित करना चाहते थे और उन के लिए भी जो उन के मार्ग में रोड़ा अटका सकते थे.

अनोखा बदला : राधिका ने कैसे लिया बदला?

निर्मला से सट कर बैठा संतोष अपनी उंगली से उस की नंगी बांह पर रेखाएं खींचने लगा, तो वह कसमसा उठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी मर्द की इतनी प्यार भरी छुअन महसूस की थी.

निर्मला की इच्छा हुई कि संतोष उसे अपनी बांहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि…

निर्मला के मन की बात समझ कर संतोष की आंखों में चमक आ गई. उस के हाथ निर्मला की नंगी बांहों पर फिसलते हुए गले तक पहुंच गए, फिर ब्लाउज से झांकती गोलाइयों तक.

तभी बाहर से आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘दीदी, चाय बन गई है…’’

संतोष हड़बड़ा कर निर्मला से अलग हो गया, जिस का चेहरा एकदम तमतमा उठा था, लेकिन मजबूरी में वह होंठ काट कर रह गई.

नीचे वाले कमरे में छोटी बहन उषा ने नाश्ता लगा रखा था. चायनाश्ता करने के बाद संतोष ने उठते हुए कहा, ‘‘अब चलूं… इजाजत है? कल आऊंगा, तब खाना खाऊंगा… कोई बढि़या सी चीज बनाना. आज बहुत जरूरी काम है, इसलिए जाना पड़ेगा…’’

‘‘अच्छा, 5 मिनट तो रुको…’’ उषा ने बरतन समेटते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी एक सहेली से नोट्स लेने हैं. रास्ते में छोड़ देना. मैं बस 5 मिनट में तैयार हो कर आती हूं.’’

उषा थोड़ी देर में कपड़े बदल कर आ गई. संतोष उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर चला गया.

उधर निर्मला कमरे में बिस्तर पर गिर पड़ी और प्यास अधूरी रह जाने से तड़पने लगी.

निर्मला की आंखों के आगे एक बार फिर संतोष का चेहरा तैर उठा. उस ने झपट कर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर गिर कर मछली की तरह छटपटाने लगी.

निर्मला को पहली बार अपनी बहन उषा और मां पर गुस्सा आया. मां चायनाश्ता बनाने में थोड़ी देर और लगा देतीं, तो उन का क्या बिगड़ जाता. उषा कुछ देर उसे और न बुलाती, तो निर्मला को वह सबकुछ जरूर मिल जाता, जिस के लिए वह कब से तरस रही थी.

जब पिता की मौत हुई थी, तब निर्मला 22 साल की थी. उस से बड़ी कोई और औलाद न होने के चलते बीमार मां और छोटी बहन उषा को पालने की जिम्मेदारी बिना कहे ही उस के कंधे पर आ पड़ी थी.

निर्मला को एक प्राइवेट फर्म में अच्छी सी नौकरी भी मिल गई थी. उस समय उषा 10वीं जमात के इम्तिहान दे चुकी थी, लेकिन उस ने धीरेधीरे आगे पढ़ कर बीए में दाखिला लेते समय निर्मला से कहा था, ‘‘दीदी, मां की दवा में बड़ा पैसा खर्च हो रहा है. तुम अकेले कितना बोझ उठाओगी…

‘‘मैं सोच रही हूं कि 2-4 ट्यूशन कर लूं, तो 2-3 हजार रुपए बड़े आराम से निकल जाएंगे, जिस से मेरी पढ़ाई के खर्च में मदद हो जाएगी.’’

‘‘तुझे पढ़ाई के खर्च की चिंता क्यों हो रही है? मैं कमा रही हूं न… बस, तू पढ़ती जा,’’ निर्मला बोली थी.

अब निर्मला 30 साल की होने वाली है. 1-2 साल में उषा भी पढ़लिख कर ससुराल चली जाएगी, तो अकेलापन पहाड़ बन जाएगा.

लेकिन एक दिन अचानक मौका हाथ आ लगा था, तो निर्मला की सोई इच्छाएं अंगड़ाई ले कर जाग उठी थीं.

उस दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद सब चले गए थे. निर्मला देर तक बैठी कागजों को चैक करती रही थी. संतोष उस की मदद कर रहा था. आखिरकार रात के 10 बजे फाइल समेट कर वह उठी, तो संतोष ने हंस कर कहा था, ‘‘इस समय तो आटोरिकशा या टैक्सी भी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं आप को मोटरसाइकिल से घर तक छोड़ देता हूं.’’

निर्मला ने कहा था, ‘‘ओह… एडवांस में शुक्रिया?’’

निर्मला को उस के घर के सामने उतार कर संतोष फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा, तो उस ने हाथ बढ़ा कर हैंडल थाम लिया और कहने लगी, ‘‘ऐसे कैसे जाएंगे… घर तक आए हैं, तो कम से कम एक कप चाय…’’

‘‘हां, चाय चलेगी, वरना घर जा कर भूखे पेट ही सोना पड़ेगा. रात भी काफी हो गई है. मैं जिस होटल में खाना खाता हूं, अब तो वह भी बंद हो चुका होगा.’’

‘‘आप होटल में खाते हैं?’’

‘‘और कहां खाऊंगा?’’

‘‘क्यों? आप के घर वाले?’’

‘‘मेरा कोई नहीं है. मैं मांबाप की एकलौती औलाद था. वे दोनों भी बहुत कम उम्र में ही मेरा साथ छोड़ गए, तब से मैं अकेला जिंदगी काट रहा हूं.’’

संतोष ने बहुत मना किया, लेकिन निर्मला नहीं मानी थी. उस ने जबरदस्ती संतोष को घर पर ही खाना खिलाया था.

अगले दिन शाम के 5 बजे निर्मला को देख कर मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट करते हुए संतोष ने कहा था, ‘‘आइए… बैठिए.’’

निर्मला ने बिना कुछ बोले ही पीछे की सीट पर बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रख दिया था. घर पहुंच कर उस ने फिर चाय पीने की गुजारिश की, तो संतोष ने 1-2 बार मना किया, लेकिन निर्मला उसे घर के अंदर खींच कर ले गई थी.

इस के बाद रोज का यही सिलसिला हो गया. संतोष को निर्मला के घर आने या रुकने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, खासतौर से छुट्टी वाले दिन तो वह निर्मला के घर पड़ा रहता था. सब ने उसे भी जैसे परिवार का एक सदस्य मान लिया था.

एक दिन अचानक निर्मला का सपना टूट गया. उस दिन उषा अपनी सहेली के यहां गई थी. दूसरे दिन उस का इम्तिहान था, इसलिए वह घर पर बोल गई थी कि रातभर सहेली के साथ ही पढ़ेगी, फिर सवेरे उधर से ही इम्तिहान देने यूनिवर्सिटी चली जाएगी.

उस दिन भी संतोष निर्मला के साथ ही उस के घर आया था और खाना खा कर रात के तकरीबन 10 बजे वापस चला गया था.

उस के जाने के बाद निर्मला बाहर वाला दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट रही थी, तभी मां ने टोक दिया, ‘‘बेटी, तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

निर्मला का मन धड़क उठा. मां के पास बैठ कर आंखें चुराते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘बेटी, संतोष कैसा लड़का है. वह तेरे ही दफ्तर में काम करता है… तू तो उसे अच्छी तरह जानती होगी.’’

निर्मला एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी.

मां ने कांपते हाथों से निर्मला का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे मन का दुख समझती हूं बेटी, लेकिन इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता, अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, इसलिए…’’

निर्मला एकदम तिलमिला उठी. वह घबरा कर बोली, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो मां? क्या तुम ने कभी कुछ देखा है?’’

‘‘हां बेटी, देखा है, तभी तो कह रही हूं. कल जब तू बाजार गई थी, तब दो घड़ी के लिए संतोष आया था. वह उषा के साथ कमरे में था.

‘‘मैं भी उन के साथ बातचीत करने के लिए वहां पहुंची, लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने उन दोनों को जिस हालत में देखा…’’

निर्मला चिल्ला पड़ी, ‘‘मां…’’ और वह उठ कर अपने कमरे की ओर भाग गई.

निर्मला के कानों में मां की बातें गूंज रही थीं. उसे विश्वास नहीं हुआ. मां को जरूर धोखा हो गया है. ऐसा कभी नहीं हो सकता. लेकिन यही हो रहा था.

अगले दिन निर्मला दफ्तर गई जरूर, लेकिन उस का किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ी देर बाद ही वह सीट से उठी. उसे जाते देख संतोष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

निर्मला ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मेरी एक खास सहेली बीमार है. मैं उसे ही देखने जा रही हूं.’’

‘‘कितनी देर में लौटोगी?’’

‘‘मैं उधर से ही घर चली जाऊंगी.’’

बहाना बना कर निर्मला जल्दी से बाहर निकल आई. आटोरिकशा कर के वह सीधे घर पहुंची. मां दवा खा कर सो रही थीं. उषा शायद अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. इस लापरवाही पर उसे गुस्सा तो आया, लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप दरवाजा बंद कर के वह ऊपर अपने कमरे में चली गई.

इस के आधे घंटे बाद ही बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज सुनाई पड़ी. निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि जरूर संतोष आया होगा.

निर्मला कब तक अपने को रोकती. आखिर नहीं रहा गया, तो वह दबे पैर सीढि़यां उतर कर नीचे पहुंची. मां सो रही थीं.

वह बिना आहट किए उषा के कमरे के सामने जा कर खड़ी हो गई और दरवाजे की एक दरार से आंख सटा कर झांकने लगी. भीतर संतोष और उषा दोनों एकदूसरे में डूबे हुए थे.

उषा ने इठलाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे… कभी तो इतना प्यार दिखाते हो और कभी ऐसे बन जाते हो, जैसे मुझे पहचानते नहीं.’’

संतोष ने उषा को प्यार जताते हुए कहा, ‘‘वह तो तुम्हारी दीदी के सामने मुझे दिखावा करना पड़ता है.’’

उषा ने हंस कर कहा, ‘‘बेचारी दीदी, कितनी सीधी हैं… सोचती होंगी कि तुम उन के पीछे दीवाने हो.’’

संतोष उषा को प्यार करता हुआ बोला, ‘‘दीवाना तो हूं, लेकिन उन का नहीं तुम्हारा…’’

कुछ पल के बाद वे दोनों वासना के सागर में डूबनेउतराने लगे. निर्मला होंठों पर दांत गड़ाए अंदर का नजारा देखती रही… फिर एकाएक उस की आंखों में बदले की भावना कौंध उठी. उस ने दरवाजा थपथपाते हुए पूछा, ‘‘संतोष आए हैं क्या? चाय बनाने जा रही हूं…’’

संतोष उठने को हुआ, तो उषा ने उसे भींच लिया, ‘‘रुको संतोष… तुम्हें मेरी कसम…’’

‘‘पागल हो गई हो. दरवाजे पर तुम्हारी दीदी खड़ी हैं…’’ और संतोष जबरदस्ती उठ कर कपड़े पहनने लगा.

उस समय उषा की आंखों में प्यार का एहसास देख कर एक पल के लिए निर्मला को अपना सारा दुख याद आया.

मां के कमरे के सामने नींद की गोलियां रखी थीं. उन्हें समेट कर निर्मला रसोईघर में चली गई. चाय छानने के बाद वह एक कप में ढेर सारी नींद की गोलियां डाल कर चम्मच से हिलाती रही, फिर ट्रे में उठाए हुए बाहर निकल आई.

संतोष ने चाय पी कर उठते हुए आंखें चुरा कर कहा, ‘‘मुझे बहुत तेज नींद आ रही है. अब चलता हूं, फिर मुलाकात होगी.’’

इतना कह कर संतोष बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के घर के लिए चला गया.

दूसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी, ‘कल मोटरसाइकिल पेड़ से टकरा जाने से एक नौजवान की दर्दनाक मौत हो गई. उस की जेब में मिले पहचानपत्रों से पता चला कि संतोष नाम का वह नौजवान एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था’.

मेरा बेटा मोटापे का शिकार है, जबकि उसकी उम्र बहुत कम है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा 8 साल का बेटा है. उसका वजन बढ़ता जा रहा है. पहले वह काफी ज्यादा जंक फूड खाता था. लेकिन अब मैंने कुछ दिनों से पूरी तरह से बंद कर दिया है. फिर भी उसका वजन कम नहीं हो रहा है, मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए बच्चों में मोटापा बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं. जैसा कि आपने कहा कि बच्चे को जंक फूड देना बंद कर दिया है. लेकिन आप अपने बच्चे को हैल्दी फूड खाने को जरूर दें. आप उससे फिजिकल ऐक्टिविटी करवाएं. आजकल बच्चे ज्यादा समय स्क्रीन पर बिताते हैं, जिसके कारण भी बच्चों में मोटापा बढ़ता है. उसका स्क्रीन टाइम भी कम करें.

क्यों मोटापे के शिकार होते हैं बच्चे

बच्चे के मोटा होने के कारण जेनेटिक भी हो सकता है. अगर मातापिता में से कोई एक मोटा है, तो बच्चे में मोटापा की संभावना बढ़ जाती है. कई बार पढ़ाई या पैरेंट्स के प्रैशर के कारण बच्चे तनाव में होते हैं, इस वजह से भी उनका वजन प्रभावित होता है. दवाएं लेने के कारण बच्चे के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे बच्चे का वजन बढ़ता है.

ये भी पढ़ें

क्या आपके भी बच्चे खाने में करते हैं नखरे

बच्चों को सिंपल खाना पसंद नहीं होता है. उन्हें तो वे सब चीजें अट्रैक्ट करती हैं, जो डिफरैंट कलर्स के साथसाथ डिफरैंट शेप्स व डिजाइन में बनी होती हैं. ऐसे में आप अपने बच्चे को जो भी हैल्दी खिलाएं, उसे बहुत ही सुंदर तरीके से सर्व करें. जैसे अगर आप का बच्चा फ्रूट्स और सलाद को खाने में आनाकानी करता है, तो आप उसे कुकी कटर से काट कर मनचाहा आकार दें.

यहां तक कि आप अपने बच्चे की पसंद का कुकी कटर खरीद कर उसे फनफन में हैल्दी चीजें खिला सकती हैं. फिर आप उस की पसंद की सौस व डिप के साथ सर्व करें. यकीन मानिए आप का यह तरीका बच्चों को खाना खिलाने में बड़े काम का साबित होगा.

फलों को खाने में बच्चे बहुत आनाकानी करते हैं. लेकिन आप इन की जगह उन के शरीर की पोषण संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें होममेड फ्रैश फ्रूट्स का जूस बना कर दे सकती हैं. इसके लिए कभी आप उन्हें संतरे का जूस दें, तो कभी मिक्स फ्रूट जूस, तो कभी अनार का. आप इनमें कुछ ऐसी सब्जियों को भी ऐड कर सकते हैं. जिससे बच्चे के लिए ये काफी हैल्दी साबित हो सकता है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मुझे माफ कर दो मां

आभा का जीवन अपनी गति से चल रहा था कि अचानक कनु का फोन कर यह कहना कि कल सुबह तक दिल्ली न पहुंची तो मुझ से कभी मुलाकात न होगी. यह सुन कर उस का दिल बैठा जा रहा था. बच्चे भी न बोलने से पहले कुछ सोचते ही नहीं. कहीं कोई गलत कदम न उठा ले. जाने क्या चल रहा हो दिमाग में. वैसे भी बचपन से ही अधीर रही है.

उन की समझ में कुछ नहीं आया तो अमन और नेहा को बुला कर टिकट की व्यवस्था करने के लिए कहा.

अमन ने एतराज भी किया, ‘‘अब तुम्हारी उम्र हो गई है मां. अकेले सफर नहीं करने दूंगा.’’

‘‘अकेली कहां रहूंगी. सहयात्री तो होंगे न.’’

‘‘क्या मां तुम भी. और यह दीदी को क्या हुआ है? 30 की हो गई. अब भी अक्ल नहीं आई उसे? ऐसे अचानक बुला लिया. अब समझदार न हुई तो कब होगी?’’

‘‘बेटा तू 10 का था और वह 15 की,

जब तेरे पापा हमें छोड़ कर दूसरी दुनिया में

चले गए थे. पिता की लाड़ली उन के जाने का

गम न सह सकी थी. उस पर से प्रदीपजी का हमारे जीवन में आना उस के बरदाश्त के बाहर

हो गया.

‘‘पर मां उन्होंने आप की नौकरी लगवाई थी. हमारे पढ़ाईलिखाई का पूरा खर्च उठाया. एक पिता की तरह सहारा दिया था.’’

‘‘हां बेटा. वह तुम्हारे पिता के मित्र थे. स्वयं विधुर थे. उन्हें परिवार चाहिए था और तुम दोनों को पिता. समाज ऐसे रिश्तों की स्वीकृति नहीं देता तभी तो उन्होंने हम से विवाह कर लिया था मगर उसी दिन मैं ने कनु को खो दिया था.’’

‘‘पर क्यों मां. दीदी को तो तुम्हारे लिए खुश होना चाहिए था न?’’

‘‘वह आपे में नहीं थी. अपने पिता का स्थान किसी और को नहीं दे पा रही थी. तब मु?ो यह एहसास हुआ कि दूसरी शादी ने मेरी औलाद को तीसरा बना दिया है. शायद मेरे हिस्से में खो कर पाना ही लिखा है. जब भी कुछ पाया तो उस के बदले में बहुत कुछ खोया. मु?ो जरा आभास भी होता कि प्रदीपजी के कारण कनु को खो दूंगी तो मैं उन से शादी न करती. मु?ो दुलहन के लिबास में देखा तो वह लड़झगड़ कर अपनी सहेली के घर चली गई थी और वहीं से दिल्ली लौट कर इस घर में कदम ही नहीं रखा. तुम्हारे विवाह में भी नहीं आई…’’

‘‘प्रदीपजी से इतनी नफरत थी उसे?’’

‘‘अपने पिता से इतना प्यार था,’’ कहती हुई आभा हिचकहिचक कर रोने लगीं.

सचमुच वैधव्य ही उन के हिस्से था. इस जीवन में अपनी आंखों के सामने 2-2 अर्थियां उठती देख लीं थी. अपने मध्याह्न में ही इतना कुछ देख लिया था कि कुछ और देखने की हिम्मत शेष न बची थी. 50-55 में जब साथी की सब से ज्यादा जरूरत होती है तब वे फिर से अकेली हो गईं. पहले पति का जीवन के मंझधार में छोड़ जाना फिर एक सहारे की तरह प्रदीपजी का आना और अनायास ही उन का भी आंखें मूंद लेना और अपनी ही कोख से जन्मी खुद की जाई का घर से विमुख हो जाना तमाम घटनाक्रम चलचित्र की भांति आंखों में नाच गया.

आभा का जीवन सचमुच कांटों भरा था. अपने जीवन में आने वाले हर उतारचढ़ाव से तो समझता कर ही लिया था मगर अपनी औलाद के दुख से बच कर कहां जातीं. सच है जो किसी से नहीं हारता वह अपने ही जन्मे से हारता है. वह तो भला हो बहू नेहा का जो उस ने पोती के रूप में छोटी कनु दे दी और वे उस की किलकारियों के मधुर संगीत में खो गईं. मगर अतीत से पीछा छुड़ाना आसान कहां होता है.

पति ‘विमानचालक वीरेंद्र’ के प्लेन क्रैश में मौत की सूचना लाने वाले प्रदीपजी ही जबतब हालचाल पूछने आने लगे थे. उस वक्त वे बुरी तरह से टूटी हुई थी. उन के सामने आने में भी उन्हें पूरा 1 साल लग गया था. उन्हीं के स्कूल

में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी थीं और फिर एक दिन उन के द्वारा विवाह का प्रस्ताव दिए जाने पर आभा ने मौन स्वीकृति दे दी थी और वह भी बड़ी होती बिटिया कनु की खातिर मगर अफसोस उसी ने मां को न समझ. हमेशा के लिए पिता का आवास छोड़ कर चली गई. बच्चे नादानी कर सकते हैं पर मां नहीं. कनु का स्वाभिमान बना रहे तभी तो अपनी पूरी तनख्वाह कनु तक उस की सहेली प्रिया के हाथों भिजवाती रही, जब तक वह 18 की नहीं हो गई.

एअरलाइंस वालों ने कनुप्रिया को उस के पिता की जगह नौकरी के तौर पर विमान परिचारिका नियुक्त कर दिया. अब उस की जब भी मां से मिलने की इच्छा होती तब हवाईयात्रा के दौरान वह बनारस हो कर आतीजाती. मगर घर के बजाय प्रिया के घर पर बुला कर मिल लेती. प्रिया शादी कर विदेश चली गई तो बचाखुचा नाता भी टूट गया. तब से उस की कोई खोजखबर नहीं थी. आखिरी फोन भी तभी किया था जब हृदयाघात से प्रदीपजी की मौत की सूचना मिली थी.

उस ने फोन पर बस यही कहा, ‘‘देखा तुम ने मेरे पिता की जगह लेने का नतीजा?’’

‘‘मरने वाले से कैसा बैर बेटा?’’

‘‘उन से बैर क्यों न करूं जिन्होंने मुझे जीते जी मार दिया. पिता पहले ही छोड़ गए थे. एक मां थीं जो उन्होंने छीन लीं.’’

बेटी के तेवर देख मां ने चुप्पी ओढ़ ली तो फोन कट गया. क्या कहती. क्या समझती. कहा तो तब जाए जब कोई सुने. अगर सुनना ही न चाहे दिमाग के द्वार बंद कर ले तो बोलने वाले के होंठ ही फड़फड़ाते हैं और कुछ नहीं.

उफ, पहले पति से और फिर अपनी आत्मजा से विछोह को आभा ने अपने हिस्से का दोष मान कर स्वीकार कर लिया था मगर बरसों बाद मिले बेटी के इस अप्रत्याशित पैगाम ने उन्हें बुरी तरह से झकझर दिया. किसी तरह से खुद को संभाल कर बेटी के पास जाने की तैयारी की. उस की पसंद की मिठाइयां और बनारसी सूट के साथ दिल्ली की उड़ान भर ली.

कनु उन्हें लेने एअरपोर्ट आ गई थी. मगर यह क्या. चेहरे पर इतनी गंभीरता क्यों? फूल सी बच्ची का कुम्हलाया मुंह देख जी धक से रह गया.

‘‘अरे कैसी दिख रही लाडो. चेहरा उड़ाउड़ा. काम पर नहीं जा रही क्या?’’ घर पहुंच कर पूछा.

‘‘बताती हूं मां. पहले आराम कर लो.’’

बिटिया की आवाज का ठहराव अलग ही था. नहीं यह उस की कनु नहीं. वह तो कभी सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी. थोड़ी देर बाद मांबेटी खाना खा कर लेटे तो बेटी का माथा चूम उसे सीने से चिपका लिया. उन की ममता जो बेटी के वियोग में बरसों तड़पी थी अब तृप्त हो रही थी.

‘‘मां, तुम्हें सुन कर अजीब लगेगा पर बताना भी जरूरी है… मैं और रोहन पिछले 2 साल से साथ रह रहे हैं. मैं जिस एअरलाइंस में काम करती हूं वह उसी के जहाज उड़ाता है. पायलट है. सच कहूं तो वह जब से मेरी जिंदगी में आया मैं प्यार को समझ पाई. स्त्रीपुरुष का संबंध सिर्फ दैहिक नहीं बल्कि आत्मिक भी होता है. साथ मजबूत बनाता है तो जीवन जीने का हौसला मिलता है साथ ही यह एहसास हुआ कि क्यों तुम ने प्रदीपजी का सहारा लिया. तुम्हारी मनोस्थिति समझ पाई तो कदमकदम पर अपनी गलतियां पता लगीं. मैं ने तुम्हारी खुशियों के बारे में एक पल को भी नहीं सोचा उलटे तुम्हें छोड़ कर आ गई. कितने बरस तुम्हारी ममता अपनी बेटी के लिए तड़पी होगी. सच कहूं तो कई बार तुम्हें देखना चाहा पर हिम्मत नहीं हुई. तुम्हें दुख देने के बाद मैं अंदर ही अंदर पछता रही थी.’’

‘‘कोई बात नहीं बच्चे. अब आ गई हूं न. आ मेरी गोद में बैठ जा. पिछले वर्षों की सारी ममता उड़ेल दूं तुझ पर.’’

उद्गम ने आद्र स्वर में गुहार लगाई जैसे वापस कोख में समा लेने की चाहत बलवती हो आई हो मगर बेटी पछतावे के दर्द से आकुल थी.

‘‘इस से पहले कि तुम तक आऊं मु?ो सब कह लेने दो मां. रोहन के साथ लिव इन में रहते हुए हमारे बीच तय हुआ था कि हम में से कोई शादी का नाम नहीं लेगा. तुम तो जानती हो कि मु?ो बंधन से कितनी चिढ़ है. अब जबकि मैं स्वयं मां बनने वाली हूं ऐसे में मु?ो अकेली छोड़ कर वह अपने परिवार के बीच रहने चला गया है. मां. मैं अकेली पड़ गई हूं. मु?ो तुम्हारा साथ चाहिए. तुम्हारे बिना मैं मां नहीं बनना चाहती.’’

‘‘मां.’’

‘‘हां मां. मैं प्रैगनैंट…’’

‘‘रोहन जानता है?’’

‘‘हां,’’ उस ने भी संक्षिप्त उत्तर दिया मानो मां का मन पढ़ लिया था.

उफ… यह क्या कर डाला बागी बिटिया ने. बेटी के अंदर की स्त्री का दुख, एक भावी मां का दुख सब मिल कर आभा को द्रवित कर रहे थे मगर जब घर ही छोड़ दिया था तो सवाल क्या और जवाब क्या? इस वक्त उसे नसीहतों की नहीं बल्कि मदद की जरूरत थी. मां को अपने कलेजे के टुकड़े को फिर से अपनाना था. गले लगा कर गलतियां सुधारनी थीं. अत: मन मजबूत कर पूछ बैठीं, ‘‘फिर भी तुम्हें अकेली छोड़ कर चला गया?’’

‘‘उस ने कहा कि वह आधाआधा नहीं जी सकता. कभी यहां तो कभी अपनी मां के पास जाने से अच्छा है कि सभी एकसाथ रहें.’’

‘‘सही कहता है. मैं रोहन की माताजी से बात करूंगी. तुम उन्हें बुला लो.’’

‘‘रोहन की मां एक सुलझ हुई महिला हैं. उन्होंने अपनी बहन के बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया है वह भी तब जब वे असामयिक वैधव्य के दुख से अवसाद में आ गई थीं और उसी मानसिक अवस्था में अपनी जान दे डाली. उन का ही कहना है कि एक बच्चे के स्वस्थ जीवन के लिए मां का खुशहाल होना बहुत जरूरी है. वह मेरे मन की गांठ खोलना चाहती हैं. इसीलिए उन्होंने कहा कि जब तक मेरे परिवार वालों से नहीं मिलेंगी मेरी और रोहन की शादी नहीं हो सकती. मां, तुम मिलोगी न मेरे लिए? मैं जानती हूं कि मैं ने तुम्हें बहुत सताया है पर अपने अंदर आने वाले शिशु की आहट ने मु?ो बदल दिया है. मां बनने की संभावना ने मां की मजबूरी समझ दी है. सही मानों में अब तुम्हें समझ पाई हूं. मु?ो माफ कर दो न मां.’’

बेटी के इस बदले रूप को देख खुशी के आंसू छलक आए. प्यार अच्छेअच्छे को बदल देता है. अब सबकुछ साफसाफ नजर आ रहा था कि क्यों बिटिया ने आपातकालीन अल्टीमेटम दे कर उन्हें दिल्ली बुलाया.

तभी बड़ा ही हैंडसम नौजवान कमरे में दाखिल हुआ और उस के साथ ही एक

संभ्रांत महिला थीं.

‘‘न… न… समधनजी… आप अन्यथा न लें. यह सब रोहन की चाल है मांबेटी को मिलाने की. मैं तो कब से कनुप्रिया को अपनी बहू बनाने के सपने संजाएं बैठी हूं.’’

‘‘आंटी, यह कुछ कहती नहीं थी पर अंदर ही अंदर घुटती रहती थी. इसलिए मैं ने और मां ने तय किया कि आप के आने के बाद ही शादी होगी ताकि इस के अंदर का दुख कम हो जाए, आंतरिक खुशी महसूस कर सके. खुद अच्छी बेटी बनेगी तभी तो अच्छी मां भी बन सकेगी.’’

‘‘वाह, इतना अच्छा लड़का, इतनी अच्छी सास मिली हैं तु?ो कनु.’’

धूमधाम से शादी हुई. पूरा परिवार शामिल हुआ और ठीक 7वें महीने वह भी आ गया जिस के लिए आभा यहां आई थीं.

‘‘अरे, यह तो अपने नाना की परछाईं है. बापबेटी का ऐसा प्यार न देखा न सुना. सच वही तेरी ममता की छांव में बड़े होने वापस लौट आए हैं.’’

और वह टूटा परिवार हमेशाहमेशा के लिए जुड़ गया. इस बार आभा ने कुछ खोए बिना ही खुशियां पाईं. एक पैगाम ने उस के परिवार को पूरा कर दिया था.

ब्राइड्स अब हाई हील्स में नहीं स्निकर शूज में ले रहीं ऐंट्री, जानिए क्यों है यह ट्रैंड में

Bridal Shoes : आज की लड़कियां ब्राइडल लुक को खास बनाने के लिए कई तरह की तैयारियां करती हैं, जिस में खास होता है उन का पहनावा, ज्वैलरी, मेकअप और अंत में आता है फुटवियर, जो आज की ब्राइड्स के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि शादी के दौरान हाई हील्स के साथ डांस करना, काफी देर तक खड़े रहना काफी पैनफुल होता है। ऐसे में आरामदायक फुटवियर से चेहरे की ग्लो और मुसकान अंत तक बनी रहती है.

आज की दुलहनें मौजमस्ती को अधिक महत्त्व देती हैं, ऐसे में भारीभरकम लहंगे के साथ हाई हील्स पहनना उन के बस की बात नहीं होती. कई बार तो ऐसे अनुष्ठानों पर दुलहनें नंगे पैर ही डांस करती हुई दिखाई देती हैं.

असल में आजकल सोशल मीडिया और औनलाइन पर तरहतरह के ब्राइडल शूज देखने को मिलते हैं, जिस में स्निकर शूज का प्रचलन अधिक देखा जा रहा है. इन शूज को ब्राइडल ड्रैस के अनुसार कस्टमाइज भी किया जाता है, जो दिखने में ऐलिगैंट और स्टाइलिश लगते हैं.

पर्ल वाले ब्राइडल शूज

अगर आप कलरफुल शूज का चयन कर रही हैं, तो ड्रैस के अनुसार शूज को कलर कर उस में ग्लू के जरीए कलरफुल मोती चिपका दिया जाता है। इन शूज की कीमत बाजार में ₹5 हजार से ₹7 हजार तक होती है। लेकिन अगर आप के पास समय है और कुछ क्रिऐटिव करने की शौकीन हैं, तो खुद भी कर सकती हैं.

इस तरह के ब्राइडल शूज आप जरकन वर्क या फ्लोरल वर्क के आउटफिट के साथ कैरी कर सकती हैं. शू बाइट से बचने के लिए पैरों की सैंसिटिव जगहों पर बैंडेज का प्रयोग कर करें.

सलमासितारों वाले शूज

मोनोक्रोम पहनावे यानि एक ही रंगों के पहनावे को स्टाइल करने के लिए इस तरीके के ब्राइडल शूज को चुन सकती हैं. शादी के अन्य फंक्शन जैसे कौकटेल के लिए भी इस तरह के शूज स्टाइल कर सकती हैं. इस तरह के शूज आप को करीब ₹4 हजार से ले कर ₹5 हजार तक में आसानी से मिल जाते हैं. इस में आउटफिट में भी सलमासितारे हों, तो उस के साथ इस तरह के शूज को मैच कर सकती हैं.

बोहो स्टाइल के शूज

बोहो स्टाइल के शूज दिखने में काफी कलरफुल और सुंदर नजर आते हैं. अगर आप अपनी शादी के लिए बोहो लुक चुन रही हैं, तो इस तरह के शूज को आप कस्टमाइज करवा सकती हैं. इस में आप को कई अन्य डिजाइन और कलर भी आसानी से मिल जाते हैं.

इस तरह के शूज को हलदी या मेहंदी के फंक्शन के लिए ट्राई कर सकती हैं, क्योंकि ये शूज दिखने में काफी कलरफुल नजर आते हैं और हर तरह के फंक्शन के लिए अच्छा रहता है.

सिंपल स्निकर्स को बनाएं खास

आप चाहें तो किसी साधारण स्नीकर्स का चयन कर उस पर अपनी शादी की तारीख या जोड़े का नाम लिखवा सकती हैं। इस से यह काफी स्पैशल बन जाता है. इसे आप शादी के शुरुआत के फंक्शन में पहन सकती हैं.

सगाई की झलक सफेद शूज से

सफेद रंग के जूतों पर आप सगाई की झलक दिखा सकती हैं। सफेद जूतों पर आउटफिट के अनुसार कढ़ाई और सजावट देखने में खूबसूरत लगेगा, जो सगाई की झलक दिखाती है. कढ़ाई वाले शूज
सिंपल रंगीन स्निकर्स जूतों पर अलगअलग धागों की कढ़ाई कर गोल्डन रंग का गोटा लगवाने पर खूबसूरत दिखता है। इसे अपने आउटफिट के अनुसार सजा कर शादी के संगीत सेरेमनी पर पहन सकती हैं.

मिरर वर्क वाले शूज

स्पोर्ट्स शूज पर मिरर वर्क करवाने पर ये खास और सुंदर बन जाते हैं, क्योंकि ये देखने में क्लासी और स्टाइलिश लगते हैं। इन्हें जारदोजी और मिरर वर्क वाले पोशाक के साथ पहनना अच्छा रहता है.

इस प्रकार आज की दुलहन अपने लिए आउटफिट हो या बैग या फिर शूज, हर छोटीबड़ी बातों पर ध्यान देती हैं, ताकि उन की शादी यादगार और अनोखी हो.

इस में वे सैलिब्रिटीज को भी फौलो करने में पीछे नहीं हटतीं. आप को बता दें कि क्रिश्चियन लुबोटिन और सब्यसाची मुखर्जी ने अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की शादी के दिन लाल रंग की शूज को कढ़ाई के साथ कस्टमाइज किया, जो दिसंबर, 2018 में उदयपुर में उन्होंने वैडिंग के दिन लहंगे के साथ पहनी थी.

डिजाइनर जोड़ी ने दीपिका पादुकोण के लिए भी कढ़ाई वाली जूतियां बनाईं, जो उन की शादी के लहंगे के लिए फिट बैठती थी.

असल में दर्जी द्वारा बनाए गए जूते भी एक पुरानी व शाही परंपरा रही है. वर्ष 2010 में केट मिडल्टन ने
प्रिंस विलियम से शादी की, तो उन्होंने भी यही किया. डचेस औफ कैंब्रिज ने ड्रैस की डिटेलिंग के अनुसार लेस से सजे कस्टमाइज्ड अलेक्जैंडर मैक्वीन के जूते पहने थे.

खुद को सुरक्षित रखने के लिए किचन हाइजीन भी है जरूरी, जानें कैसे ?

रसोई (Kitchen Hygiene)  हमारे घर का जरूरी कक्ष है. यदि इस में सफाई तथा सुरक्षा के नियम नजरअंदाज किए जाते हैं तो यह बीमारी की वजह बन सकता है. अत: अपनी रसोई को जितना साफ और व्यवस्थित रखेंगे उतना ही लाभ है. यहां गैस भी होती है इसलिए यहां पर जागरूक हो कर ही काम किया जाना चाहिए.

इस खास स्थान को जितना साफ और व्यवस्थित रखना जरूरी है, उतना ही जरूरी है इसे सुरक्षित रखना भी. दरअसल, रसोई में आग और बिजली से चलने वाले कई उपकरण मौजूद होते हैं. इन के अलावा नुकीली वस्तुएं जैसे चाकू, मिक्सर के ब्लेड आदि भी होते हैं. ये उपकरण काम को सरल तो करते हैं लेकिन साथ ही कहीं न कहीं खतरनाक भी साबित हो सकते हैं. बच्चों के साथसाथ बड़ों के लिए भी. ऐसे में रसोई को सुरक्षित बनाने की कोशिश करें.

रसोई में खाना बनता है इसलिए यहां भरपूर रोशनी होना बहुत जरूरी है खासतौर पर उस जगह जहां चूल्हा रखा हो ताकि खाना पकाते समय सब साफसाफ नजर आए. इस बात का भी ध्यान रखें कि लाइट इस तरह लगी होनी चाहिए कि किसी भी हिस्से में परछाईं न पड़े. ऐसा करने से दुर्घटना होने की आशंका कम होगी.

फर्श की फिसलन करें दूर

रसोई का फर्श चिकना न हो यह भी सुनिश्चित करें क्योंकि इस से फिसलने का डर रहता है. ऐसे में फर्श को स्लिप रिजिस्टैंट बनवाएं. इस में टाइल्स चिकनी न हो कर डिजाइनदार होनी चाहिए जो फिसलन से बचाती हैं. अगर फर्श बदल नहीं सकते तो स्लिप रिजिस्टैंट मैट रख सकते हैं या पूरे फर्श पर चिपका सकते हैं. खासतौर पर रसोई में उस जगह जरूर लगाएं जहां फर्श का गीले रहना तय है और वहां खड़े हो कर खाना बनाया जाता हो.

बिजली से चलने वाले उपकरण जैसे फ्रिज, मिक्सर आदि को पानी वाली जगह से दूर रखें. जहां पीने का पानी रखा हो, फिल्टर लगा है या सिंक है, वहां बिजली के उपकरण न रखें. इस से शौर्ट सर्किट होने की आशंका हो सकती है. इसी तरह कभी गीले हाथों से किसी उपकरण का इस्तेमाल न करें और न ही प्लग छुएं. इस से करंट लग सकता है. नुकीला सामान दूर रखें चाकू, फोर्क या नोक वाले बड़े चम्मच ऐसे स्थान पर रखें जहां बच्चे आसानी से न पहुंच सकें. इन्हें किसी अलमारी या बंद रैक में रखें. बच्चों के साथसाथ बड़ों को भी इन से हानि पहुंच सकती है. इन से टकराने या हाथ लगने पर चोट लग सकती है. इस के अलावा अगर प्लेटफौर्म या रसोई में रखी अलमारी और टेबल की किनारी गोल करवा लें या इन में प्रोटैक्टर लगा दें.

रास्ते में सामान न रखें

रसोई के प्रवेशद्वार पर या किनारे पर कोई भी सामान न रखें. रसोई का रास्ता साफ होना चाहिए ताकि कोई टकराए नहीं. दरवाजे पर रखे सामान से कोई भी टकरा सकता है और गिर सकता है जिस से चोट लग सकती है. ऐसे में इस बात का ध्यान रखें. अग्निशामक यंत्र रखें.

रसोई के प्रवेशद्वार की दीवार पर एक छोटा अग्निशामक यंत्र भी रख सकते हैं. अगर कभी आग या शौर्ट सर्किट होने की आशंका हुई तो यह सुरक्षा में काम आएगा. रसोई में कम से कम 3 सूखे तौलिए हमेशा होने चाहिए.

रसोई में खिड़की के चारों तरफ सुरक्षा की सील बहुत जरूरी है. खाद्यपदार्थ की महक से कीट तथा चूहे यहां प्रवेश कर सकते हैं. रसोई में सरसों तेल, दूध या सिंक के कारण आने वाली दुर्गंध से बचने के लिए कभीकभी दालचीनी उबाल कर उस का छिड़काव करना चाहिए. इस तरह अपनी उपयोगी रसोई की थोड़ी सी देखभाल के अनेक लाभ हैं.

किडनी की बीमारी के क्या लक्षण हैं, कृपया बताएं

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

डा. विकास जैन, डाइरैक्टर ऐंड यूनिट हैड, डिपार्टमैंट औफ यूरोलौजी, फोर्टिस हौस्पिटल, दिल्ली.

सवाल

कौन से लक्षण हैं जिन से हम पहचानें कि हमारी किडनियां सही काम कर रही हैं या बीमार हैं?

जवाब

‘इंटरनैशनल सोसायटी औफ नैफ्रोलौजी’ के अनुसार विश्व की 10त्न जनसंख्या किडनियों से संबंधित मामूली या गंभीर समस्याओं से जूझ रही है. ऐसे में आप इन 7 लक्षणों से अपनी किडनियों की सेहत को जान सकते हैं और उन्हें ठीक रखने के लिए जरूरी कदम उठा सकते हैं:

1.  लगातार उर्जा की कमी और थकान महसूस होना. 2. शरीर के विशेष भागों (विशेष कर पैरों और टखनों) में सूजन आना. 3. यूरीन से संबंधित समस्याएं शुरू होना जैसे सामान्य से अधिक या कम यूरिन पास करना, यूरिन का टैक्स्चर बदल जाना. 4. लगातार रक्तदाब अधिक बना रहना. 5. यूरिन ऐल्बुमिन टू क्रिएटनिन रेशो (जूएसीआर) बढ़ा हुआ होना. यूरिन में ऐल्बुमिन की मात्रा अधिक होना, किडनी के क्षतिग्रस्त होने का प्रारंभिक संकेत है. 6. ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट (जीएफआर) टैस्ट, जीएफआर सामान्य न होना किडनियों के बीमार होने का संकेत है. 7. सीरम क्रिएटनिन टैस्ट में रक्त में क्रिएटनिन का बढ़ना किडनियां ठीक प्रकार से काम नहीं करने का संकेत है.

सवाल

डायबिटीज के मरीजों में किडनियों से संबंधित समस्याओं का खतरा अधिक क्यों रहता है?

जवाब

दरअसल, डायबिटीज केवल एक रोग नहीं मैटाबोलिक सिंड्रोम है, जिस का प्रभाव किडनियों सहित शरीर के प्रत्येक अंग और उस की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. हाथों, टखनों और पैरों के पंजों में सूजन की समस्या डायबिटिक नैफ्रोपैथी के कारण हो सकती है. डायबिटीज से पीडि़त 30-40त्न लोगों में डायबिटिक नैफ्रोपैथी के कारण किडनियां खराब हो जाती हैं. आप अपनी यूरिन की जांच कराएं. यूरिन में ऐल्बुमिन का आना और शरीर में क्रिएटिनिन बढ़ना डायबिटिक नैफ्रोपैथी के संकेत हैं. अगर यूरिन में माइक्रो ऐल्बुमिन नहीं आ रहा है तो किडनियों पर असर नहीं हुआ है. डायबिटिक नैफ्रोपैथी को ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन उपचार के द्वारा इस के गंभीर होने की प्रक्रिया को बंद या धीमा किया जा सकता है. उपचार में रक्त में शुगर के स्तर और रक्तदाब को जीवनशैली में परिवर्तन ला कर और दवाइयों से नियंत्रित रखा जाता है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आजादी: राधिका का आखिर क्या था कुसूर

फैमिली कोर्ट की सीढि़यां उतरते हुए पीछे से आती हुई आवाज सुन कर वह ठिठक कर वहीं रुक गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा. वहां होते कोलाहल के बीच लोगों की भीड़ को चीरता हुआ नीरज उस की तरफ तेज कदमों से चला आ रहा था.

‘‘थैंक्स राधिका,’’ उस के नजदीक पहुंच नीरज ने अपने मुंह से जब आभार के दो शब्द निकाले तो राधिका का चेहरा एक अनचाही पीड़ा के दर्द से तन गया. उस ने नीरज के चेहरे पर नजर डाली. उस की आंखों में उसे मुक्ति की चमक दिखाई दे रही थी. अभी चंद मिनटों पहले ही तो एक साइन कर वह एक रिश्ते के भार को टेबल पर रखे कागज पर छोड़ आगे बढ़ गई थी.

‘‘थैंक्स राधिका टू डू फेवर. मुझे तो डर था कि कहीं तुम सभी के सामने सचाई जाहिर कर मुझे जीने लायक भी न छोड़ोगी,’’ राधिका को चुप पा कर नीरज ने आगे कहा.

राधिका ने एक बार फिर ध्यान से नीरज के चेहरे को देखा और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई. फैमिली कोर्ट के बाहर से रिकशा ले कर वह सीधे औफिस ही पहुंच गई. उस के मन में था कि औफिस के कामों में अपने को व्यस्त रख कर मन में उठ रही टीस को वह कम कर पाएगी. लेकिन वहां पहुंच कर भी उस का मन किसी भी काम में नहीं लगा. उस ने घड़ी पर नजर डाली. एक बज रहा था. औफिस में आए उसे अभी एक घंटा ही हुआ था. अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना कर उस ने हाफडे लीव को फुल डे सिकलीव में कन्वर्ट करवा लिया और औफिस से निकल कर सीधे घर जाने के लिए रिकशा पकड़ लिया.

सोसाइटी कंपाउंड में प्रवेश कर उस ने लिफ्ट का बटन दबाया, पर सहसा याद आया कि आज सुबह से बिजली बंद है और शाम 5 बजे के बाद ही सप्लाई वापस चालू होगी. बुझे मन से वह सीढि़यां चढ़ कर तीसरी मंजिल पर आई. फ्लैट नंबर सी-302 का ताला खोल कर अंदर से दरवाजा बंद कर वह सीधे जा कर बिस्तर पर पसर गई.

कुछ देर पहले बरस कर थम चुकी बारिश की वजह से वातावरण में ठंडक छा गई थी. लेकिन उस का मन अंदर से एक आग की तपिश से जला जा रहा था. नेहा अपने बौस के साथ बिजनैस टूर पर गई हुई थी और कल सुबह से पहले नहीं आने वाली थी वरना मन में उठ रही टीस उस के संग बांट कर अपने को कुछ हलका कर लेती. बैडरूम में उसे घबराहट होने लगी, तो वह उठ कर हौल में आ कर सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई. उस की आंखों के आगे जिंदगी के पिछले 4 साल घूमने लगे…

‘चलो अच्छा ही है 2 दोस्तों के बच्चे अब शादी की गांठ से बंध जाएंगे तो दोस्ती अब रिश्तेदारी में बदल कर और पक्की हो जाएगी,’ राधिका के नीरज से शादी के लिए हां कहते ही जैसे पूरे घर में खुशियां छा गई थीं. राधिका के पिता ने अपने दोस्त का मुंह मीठा करवाया और गले से लगा लिया.

राधिका ने अपने सामने बैठे नीरज को चोरीछिपे नजरें उठा कर देखा. वह शरमाता हुआ नीची नजरें किए हुए चुपचाप बैठा था. न्यूजर्सी से अपनी पढ़ाई पूरी कर अभी कुछ महीने पहले ही आया नीरज शायद यहां के माहौल में अपनेआप को फिर से पूरी तरह से एडजस्ट नहीं कर पाया. यही सोच कर राधिका उस वक्त उस के चेहरे के भाव नहीं पढ़ पाई. अपने पापा के दोस्त दीनानाथजी को वह बचपन से जानती थी लेकिन नीरज से उस की मुलाकात इस रिश्ते की नींव बनने से पहले कभीकभी ही हुई थी. 12वीं पास करने के बाद नीरज 5 साल के लिए स्टूडैंट वीजा पर न्यूजर्सी चला गया था और जब वापस आया तो पहली ही मुलाकात में चंद घंटों की बातों के बाद उन की शादी का फैसला हो गया.

‘‘नीरज, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न?’’ बगीचे में नीरज का हाथ थाम कर चलती राधिका ने पूछा.

‘‘हां. लेकिन क्यों ऐसा पूछ रही हो?’’ उस की बात का जवाब देते हुए नीरज ने पूछा.

‘बस ऐसे ही. अगले महीने हमारी शादी होने वाली है. पर तुम्हारे चेहरे पर कोई उत्साह न देख कर मुझे डर सा लगता है. कहीं तुम ने किसी दबाव में आ कर तो इस शादी के लिए हां नहीं की न?’ पास ही लगी बैंच पर बैठते हुए राधिका ने नीरज को देखा.

‘वैल. अपना बिजनैस सैट करने की थोड़ी टैंशन है. इसी उलझन में रहता हूं कि कहीं शादी का यह फैसला जल्दी तो नहीं ले लिया,’ कहते हुए नीरज ने अपनी पैंट की जेब से रूमाल निकाला और माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछ डाला.

‘इस में टैंशन लेने वाली बात ही क्या है? शादी तो समय पर हो ही जानी चाहिए. वैसे भी, जीने के लिए पैसा नहीं, अपने लोगों के पास होने की जरूरत होती है,’ कहती हुई राधिका ने नीरज के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

‘बात तो सच है तुम्हारी पर फिर भी हर वक्त एक डर सा बना रहता है,’ नीरज ने अपने हाथ में अभी भी रूमाल पकड़ रखा था.

‘छोड़ो भी अब यह डर और कोई रोमांटिक बात करो न मुझ से,’ कहती हुई राधिका ने आसपास नजर दौड़ाई. बगीचे में अधिकांश जोड़े अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे. सहसा राधिका नीरज के और करीब आ गई और उस के हाथ की उंगलियां उस की छाती पर हरकत करने लगीं.

‘यह क्या हरकत है राधिका?’ कहते हुए नीरज ने एक झटके से राधिका को अपने से दूर कर दिया और अपनी जगह से खड़ा हो गया. राधिका के लिए नीरज का यह व्यवहार अप्रत्याशित था. वह नीरज की इस हरकत से सहम गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. राधिका अपनी यादों से बाहर निकल कर खड़ी हुई और दरवाजा खोला.

‘‘नेहा प्रधान हैं?’’

दरवाजे पर कूरियर वाला खड़ा था. ‘‘जी, इस वक्त वह घर पर नहीं है. लाइए मैं साइन कर देती हूं,’’ राधिका ने पैकेट लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.

पैकेट दे कर कूरियर वाला चला गया. दरवाजा बंद करती हुई राधिका ने पैकेट को देख कर उस के अंदर कोई पुस्तक होने का अंदाजा लगाया. नेहा अकसर कोई न कोई पुस्तक मंगाती रहती थी. उस ने पैकेट टेबल पर रख दिया और वापस सोफे पर बैठ गई.

4 वर्षों का साथ आज यों ही एक झटके में तो नहीं टूट गया था. उस के पीछे की भूमिका तो शायद शादी के पहले से ही बन चुकी थी. पर नीरज का मौन राधिका की जिंदगी भी दांव पर लगा गया. नीरज के बारे में और सोचते हुए उस का चेहरा तन गया.

‘नीरज,  तुम्हारे मन में आखिर चल क्या रहा है? हमारी शादी हुए एक महीने से ज्यादा हो गया और 10 दिनों के अच्छेखासे हनीमून के बाद भी तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी वाली खुशी नदारद सी है. बात क्या है? मुझ से तो खुल कर कहो,’ पूरे हनीमून के दौरान राधिका ने महसूस किया कि नीरज हमेशा उस से एक सीमित अंतर बना कर रह रहा है. रात के हसीन पल भी उसे रोमांचित नहीं कर पा रहे थे. वह, बस, शादी के बाद की रातों को एक जिम्मेदारी मान कर जैसेतैसे निभा ही रहा था. हनीमून से लौट कर आने के बाद राधिका के चेहरे पर अतृप्ति के भाव छाए हुए थे.

‘कुछ नहीं राधिका. मुझे लगता है हम ने शादी करने में जल्दबाजी कर दी है,’ राधिका की बात सुन कर नीरज इतना ही बोल पाया.

‘जनाब, अब ये सब बातें सोचने का समय बीत चुका है. बेहतर होगा हम मिल कर अपनी शादी का जश्न पूरे मन से मनाएं,’ राधिका ने नीरज की बात सुन कर कहा.

‘तुम नहीं समझ पाओगी राधिका और मैं तुम्हें अपनी समस्या समझ भी नहीं पाऊंगा,’ कह कर नीरज राधिका की प्रतिक्रिया की परवा किए बिना ही कमरे से बाहर चला गया.

अकेले बैठी हुई राधिका का मन बारबार पिछली बातों में जा कर अटक रहा था. लाइट भी नहीं थी जो टीवी औन कर अपना मन बहला पाती. तभी उस के मन में कुछ कौंधा और उस ने नेहा के नाम से अभी आया पैकेट खोल लिया. उस के हाथों में किसी नवोदित लेखक की पुस्तक थी. पुस्तक के कवर पर एक स्त्री की एक पुरुष के साथ हाथों में हाथ डाले हुए मनमोहक छवि थी और उस के ऊपर पुस्तक का शीर्षक छपा हुआ था- ‘उस के हिस्से का प्यार’. कहानियों की इस पुस्तक की विषय सूची पर नजर डालते हुए उस ने एक के बाद एक कुछ कहानियां पढ़नी शुरू कर दीं. बच्चे के यौन उत्पीड़न और फिर उस को ले कर वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्या को ले कर लिखी गई एक कहानी पढ़ कर वह फिर से नीरज की यादों में खो गई.

उस दिन नीरज बेहद खुश था. वह घर खाने पर अपने किसी विदेशी दोस्त को ले कर आया था.

‘राधिका, 2 दिनों पहले मैं अपने जिस दोस्त की बात कर रहा था वह यह माइक है. न्यूजर्सी में हम दोनों रूममेट थे और साथ ही पढ़ते थे,’ नीरज ने राधिका को माइक का परिचय देते हुए कहा.

राधिका ने अपने पति की बाजू में खड़े उस श्वेतवर्णी स्निग्ध त्वचा वाले लंबे व छरहरे युवक पर नजर डाली. राधिका को पहली ही नजर में नीरज का यह दोस्त बिलकुल पसंद नहीं आया. उस का क्लीनशेव्ड नाजुक चेहरा और उस पर सिर पर थोड़े लंबे बालों को बांध कर बनाई गई छोटी सी चोटी देख कर राधिका को आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा लड़का नीरज का दोस्त कैसे हो सकता है. नीरज तो खुद अपने पहनावे और लुक को ले कर काफी कौन्शियस रहता है. उस वक्त इस बात को नजरअंदाज कर वह इस बात पर ज्यादा कुछ न सोचते हुए खाना बनाने में जुट गई.

उसी रात नीरज ने जब राधिका से सीधेसीधे तलाक लेने की बात छेड़ी तो राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई.

‘लेकिन बात क्या हुई नीरज? न हमारे बीच कोई झगड़ा है न कोई परेशानी. सबकुछ तो बराबर चल रहा है. कहीं तुम्हारा किसी के संग अफेयर तो…’ रिश्तों को बांधे रखने की दुहाई देते हुए सहसा उस का मन एक आशंका से भर गया.

‘अफेयर ही समझ लो. अब तुम से मैं आगे कुछ और नहीं छिपाऊंगा,’ कहते हुए नीरज चुप हो गया. राधिका ने नीरज के चेहरे को देखते हुए उस की आंखों में अजीब सी मदहोशी महसूस की.

‘तुम कहना क्या चाहते हो नीरज?’ राधिका नीरज की अधूरी छोड़ी बात पूरी सुनना चाहती थी. उस के बाद नीरज ने जो कुछ उस से कहा, उन में से आधी बात तो वह ठीक से सुन ही नहीं पाई.

‘तुम्हारे संग मेरी शादी मेरे लिए एक जुआ ही थी. मैं अपनी सारी जिंदगी इसी तरह कशमकश में गुजार देता पर अब यह कुछ नामुमकिन सा लगता है राधिका. बेहतर होगा हम अपनेअपने रास्ते अलगअलग ही तय करें,’ नीरज से शादी टूटने से पहले कहे गए आखिरी वाक्य उस के दिमाग में बारबार कौंधने लगे.

राधिका ने कमरे की लाइट बंद कर दी और चुपचाप लेट कर सारी रात अपनी बरबादी पर आंसू बहाती रही.

अब एक ही घर में नीरज के साथ रहते हुए वह अपनेआप को एक अजनबी महसूस कर रही थी. अपने मन की बात राधिका को जता कर जैसे नीरज के मन का भार हलका हो चुका था लेकिन राधिका जैसे मन पर एक अनचाहा भार ले कर जी रही थी. जब उस के मन का भार असहनीय हो गया तो वह नीरज के घर की दहलीज छोड़ कर अपने पिता के घर आ गई.

फिर जो हुआ वह आज के दिन में परिणत हो कर उस के सामने खड़ा था. कानूनी तौर पर वह भले ही नीरज से अलग हो चुकी थी लेकिन नीरज की सचाई और उस के द्वारा दी गई अनचाही पीड़ा अब भी उस के मन के कोने में कैद थी जिसे वह चाह कर भी किसी से बयान नहीं कर सकती थी. घर में बैठेबैठे अकेले घुटन होने से वह घर लौक कर बाहर निकल गई और एमजी रोड पर स्थित मौल में दिल बहलाने के लिए चक्कर लगाने लगी.

रात देर से नींद आने की वजह से सुबह उस की नींद देर से ही खुली. वैसे भी आज उस का वीकली औफ होने से औफिस जाने का कोई झंझट न था. उस ने उठ कर समाचार सुनने के लिए टीवी औन ही किया था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘हाय राधिका. हाऊ आर यू?’’ दरवाजा खोलते ही नेहा राधिका से लिपट गई.

‘‘मैं ठीक हूं. तेरा टूर कैसा रहा?’’ राधिका के चेहरे पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई.

‘‘बौस के साथ टूर हमेशा ही मजेदार रहता है. वैसे भी अब जिंदगी ऐसे मोड़ तक पहुंच गई है जहां से वापस लौटना संभव ही नहीं. यह टूर तो एक बहाना होता है एकांत पाने का,’’ कहती हुई नेहा सोफे पर पसर गई.

राधिका ने रिमोट उठा कर चुपचाप न्यूज चैनल शुरू कर दिया.

‘‘सुन, कल तेरी आखिरी सुनवाई थी न फैमिली कोर्ट में. क्या फैसला आया?’’ नेहा ने राधिका को अपने पास खींचते हुए उस से पूछा.

‘‘फैसला तो पहले से ही तय था. बस, साइन ही करने तो जाना था,’’ राधिका ने बुझेमन से जवाब दिया.

‘‘लेकिन तू ने अभी तक नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो तू ने नीरज से अलग होने का फैसला ले लिया?’’ पिछले एक साल से साथ रहने के बावजूद राधिका ने अपनी जिंदगी का एक अधूरा सच नेहा से अब तक छिपाए रखा था.

‘भारत की न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक फैसला सैक्शन 377 के तहत अब गे और लैस्बियन संबंध वैध.’

तभी टीवी स्क्रीन पर आती ब्रैकिंग न्यूज देख कर राधिका असहज हो गई.

‘‘स्ट्रैंज,’’ नेहा ने न्यूज पर अपनी छोटी सी प्रतिक्रिया जताते हुए राधिका से फिर से पूछा, ‘‘तू ने बताया नहीं राधिका? कुछ कारण तो रहा होगा न?’’

‘‘बस, समझ ले कल उसे एक अनचाहे रिश्ते से कानूनीतौर पर मुक्ति मिली और आज उस मुक्ति की खुशी मनाने का मौका भी उसी कानून ने उसे दे दिया,’’ राधिका की नजरें अभी भी टीवी स्क्रीन पर जमी हुई थीं. लेकिन नेहा उस की नम हो चुकी आंखों में तैर रही खामोशी को पढ़ चुकी थी. द्य

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें