उलटी गंगा- भाग 3: योगेश को क्या था डर

मन ही मन योगेश ने उस चपरासी को हजारों गालियां दी और बेचारे को ‘कामचोर’ का नाम दे कर औफिस से निकलवा दिया. मगर मुक्ता अब अलर्ट रहने लगी थी. वक्त के साथ काम करती और सब के साथ ही निकल जाती. लेकिन योगेश मौका तलाश रहा था किसी तरह उसे अपने चंगुल में फंसाने का.

उस रोज योगेश ने उसे फोन कर के बोला कि कल औफिस के काम से उसे उस के

साथ दूसरे शहर जाना होगा. वह तैयार रहे मगर वह बहाने बनाने लगी.

‘‘मैं तुम से पूछ नहीं रहा हूं, बता रहा हूं और खुशी मनाओ कि तुम्हारा बौस तुम्हें अपने साथ बाहर ले जा रहा है. वरना तुम जैसी लड़कियों को पूछता कौन है,’’ अजीब तरह से हंसते हुए योगेश ने कहा.

योगेश उस से देहसुख चाहता था, यह बात मुक्ता समझ गई थी, इसलिए जितना भी हो सकता, वह उस से दूर रहने की कोशिश करती. यह भी जानती थी कि योगेश बहुत ही पावरफुल आदमी है. चाहे तो उस की नौकरी भी छीन सकता है. इसलिए वह उस से पंगा भी नहीं लेना चाहती थी. कभीकभी तो उस का मन होता अपनी मां को सब बता दे, पर इसलिए अपने होंठ सी लेती कि जानने के बाद उस की मां जीतेजी मर जाएगी. जब घर में सब सो जाते तब वह अपनी बेबसी पर रोती. कभी उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. कभी करता आत्महत्या कर ले, पर जब मां और भाईबहन का खयाल आता तो अपना इरादा बदल लेती.

अब मुक्ता इसी कोशिश में थी कि कहीं और नौकरी मिल जाए, तो योगेश जैसे राक्षस का सामना न करना पड़े और अब तो उस की शादी भी होने वाली थी, तो इस बात का भी उसे डर सताने लगा था कि अगर लड़के वालों को कुछ भनक मिल गई तो क्या होगा.

आखिरकार उसे दूसरी जगह नौकरी मिल ही गई. कुछ महीने बाद उस की शादी भी हो गई. जानबूझ कर उस ने अपना फोन नंबर बदल लिया ताकि भविष्य में कभी योगेश उसे परेशान न करे. कहते हैं, बीते दुखों और आने वाले सुखों के बीच देहरीभर का फासला होता है और वह यह देहरी ढहने नहीं देना चाहती थी. कटी पतंग का आसमान में उड़ कर गुम हो जाना उस की हार नहीं, बल्कि जीत है और मुक्ता जीतना चाहती थी.

मगर यह बात मुक्ता को नहीं पता थी कि आज योगेश खुद ही उस से भय खाए हुए है. मुक्ता के नाम से भी अब उसे डर लगने लगा है. रातरात भर वह सो नहीं पाता. सोचता है पता नहीं कब मुक्ता नाम का यमराज उस के ऊपर बंदूक तान कर खड़ा हो जाए. कोई अनजान व्यक्ति घर में आ जाए या कूरियर वाला कुछ दे कर चला जाए तो उसे लगता मुक्ता ने ही कुछ भेजा होगा. दरवाजे की एक छोटी सी घंटी भी उस का दिल दहला देती. जोरजोर से सांसें भरने लगता. लगता मुक्ता ही आई होगी.

परसों की ही बात है. एक आदमी नीलिमा के हाथ में एक लिफाफा दे गया. योगेश को लगा जरूर मुक्ता ने ही कुछ भेजा होगा. नीलिमा के हाथ लग गया तो वह तो गया काम से. ‘‘क… कौन है? क्या… क्या है इस में?’’ घबराते हुए उस ने पूछा.

‘‘पता नहीं, लगता है कोई फोटोवोटो है,’’ लिफाफा खोलते हुए नीलिमा बोली.

मगर जब तक नीलिमा लिफाफा खोल पाती, योगेश ने उस के हाथ से पैकेट छीन लिया और कहने लगा कि ऐसे कैसे बिना जाने वह यह लिफाफा खोल सकती है?

‘‘अरे, पागल हो गए हो क्या? क्या हो गया है तुम्हें? क्यों नहीं खोल सकती मैं यह लिफाफा? डर तो ऐसे रहे हो जैसे इस में तुम्हारा कोई पुराना राज छिपा हो?’’

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नीलिमा की बातें उस के दिल में तीर की तरह चुभ गईं. कहते हैं न चोर की दाढ़ी में तिनका वही यागेश के साथ हो रहा था. हर बात पर उसे डर लगता कि कहीं वह पकड़ा न जाए. पुराने राज न खुल जाएं. लेकिन उस ने तब राहत की सांस ली जब लिफाफे में कुछ और निकला.

जैसेजैसे मीटू का प्रचार गरमाता जा रहा था, योगेश की दिल की धड़कनें बढ़ती ही जा रही थीं. उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ था. पलपल वह डर के साए में जी रहा था. कभी सोतेसोते जाग जाता, तो कभी बैठेबैठे अचानक उठ कर यहांवहां घूमने लगता.

अचंभित थी नीलिमा उस के व्यवहार से. सोचती, कहीं पगला तो

नहीं गया यह? मगर योगेश के दिल की हालत वह क्या जाने भला. सालों पहले उस के किए पाप अब उस के गले की हड्डी बन चुके थे. सोचता, काश, मुक्ता मिल जाए और वह अपने किए की उस से माफी मांग ले, तो सब ठीक हो जाएगा. कभी सोचता काश, बीते पल वापस लौट आएं और वह सब सुधार दे. मगर क्या बीते पल कभी वापस आए हैं.

फिर सोचा, क्यों न खुद जा कर मुक्ता से उस बात की माफी मांग ले. जरूर वह उसे माफ कर देगी. आखिर औरतों का दिल बहुत बड़ा होता. बहुत ढूंढ़ने पर मुक्ता का पता उसे मिल ही गया. मगर तब उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. जब उस ने मुक्ता को उस वकील के साथ थाने में प्रवेश करते देखा. उसे लगा जरूर वह उस के खिलाफ ही शोषण का केस करने गई होगी. खड़ेखड़े योगेश को लगा वह गश खा कर वहीं गिर पड़ेगा. अगर उस राहगीर ने न संभाला होता, तो सच में गिर ही पड़ता.

‘‘धन्यवाद भाई,’’ उस बचाने वाले आदमी को धन्यवाद कह योगेश थाने के आसपास ही चक्कर काटने लगा ताकि मुक्ता निकले तो उस से बात कर सके, अपने किए की माफी मांग सके. मगर वह कब किस रास्ते से निकल गई पता ही नहीं चला.

इस तरह उसे हफ्तों बीत गए, पर मुक्ता से बात न हो पाई और न ही पता लग पाया कि क्यों वह थाने आई थी. लेकिन एक दिन उसे पता चल ही गया कि वह यहां अपने भाई की पत्नी की शिकायत पर पैरवी कर रही है. किसी तरह अपने भाई को सजा से बचाना चाह रही है और इसलिए वह वकील के साथ थाने आई थी. दरअसल, उस की भाभी ने उस के भाई पर उसे मारनेपीटने को ले कर पुलिस में शिकायत कर दी थी. इसलिए वह थाने के चक्कर काट रही थी. सारी बातें जानने के बाद योगेश ने राहत की सांस ली. लगा वह बच गया. तभी उस का फोन घनघना उठा. देखा, तो नीलिमा का फोन था. चिल्लाए जा रही थी कि वह कहां है और अब तक घर क्यों नहीं आया.

जैसी ही योगेश घर पहुंचा, दैत्य की तरह नीलिमा उस के सामने खड़ी हो गई और पूछने लगी कि अब तक वह कहां था? फिर बताने लगी कि अमन अंकल फिलहाल तो जमानत पर छूट गए, मगर बच नहीं पाएंगे. उन का किया पाप एक न एक दिन ले ही डूबेगा उन्हें.

अब फिर योगेश को डर सताने लगा. सोचने लगा कि पता नहीं कहीं मुक्ता का दिमाग फिर गया तो…

भले ही योगेश आज खुद को बचा हुआ समझ रहा है, पर तलवार तो उस की भी गरदन पर टंगी है, जो जाने कब गिर जाए. जैसी उलटी गंगा बही है न, शायद ही योगेश बच पाए. जाने कब मुक्ता का दिमाग फिर जाए और वह योगेश के खिलाफ मीटू का केस कर दे. यह बात योगेश भी अच्छी तरह समझता था और जान रहा था कि अब बाकी की जिंदगी ऐसे ही डरडर कर कटेगी उस की. भविष्य में उस के साथ क्या होगा, नहीं पता.

उलटी गंगा- भाग 2: योगेश को क्या था डर

उस के पति को बदनाम करना चाहती है, क्योंकि उस ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था. गुस्सा तो मुझे उन की पत्नी पर भी आ रहा है, क्योंकि वह एक गुनहगार को बचाने पर तुली है, पर बचेगा नहीं. मैं तो कहती हूं उस की पत्नी को भी जेल में डाल देना चाहिए, जो एक गुनहगार की अगुआई कर रही है,’’ गुस्से से अपनी आंखें लाल कर नीलिका बोली.

‘‘हो सकता है अमनजी सही कह रहे हों और वह लड़की झूठ…’’

‘‘झूठ…? बीच में ही नीलिमा बोल पड़ी,’’ और वे सच बोल रहे हैं? क्यों, क्या वह लड़की पागल है जो खुद को ही बदनाम करेगी? जरूर कुछ किया ही होगा तभी तो वह बोल रही होगी… इसलिए गुनाह कर के भी मर्द बच निकलते हैं, क्योंकि उन की पत्नियां उन्हें बचाने के लिए दीवार बन कर उन के सामने खड़ी हो जाती हैं. जानती हैं कि पति गुनहगार है फिर भी… सच कहती हूं अगर उस की जगह मेरा पति होता न, तो मैं उसे नहीं छोड़ती. जेल भिजवा कर ही रहती साले को, ‘‘नीलिमा के मुंह से ऐसी बातें सुन कर योगेश के रोंगटे खड़े हो गए.’’

‘‘सोचो, खुद की भी बेटी है, अगर उस के साथ कोई ऐसा करे तो? छि:, अरे, औरत क्या कोई वस्तु है, जो जिस का जब मन चाहे इस्तेमाल कर लो, बिना उस की मरजी के?’’

आज नीलिमा के तेवर देख योगेश की रूह कांप रही थी. बस मन ही मन यही प्रार्थना किए जा रहा था कि वह इस सब से बचा रहे किसी तरह.

‘‘अब तुम्हें क्या हुआ?’’ योगेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख नीलिमा कहने लगी, ‘‘हां, पता है मुझे, तुम्हें भी सुन कर बुरा लग रहा होगा, है न? अरे किसी भी शरीफ इंसान को सुन कर बुरा लगेगा, मगर देखो, हम उन्हें क्या समझते थे और क्या निकले?’’ किसी का कुछ कहा नहीं जा सकता,’’ भुनभुनाते हुए नीलिमा किचन की तरफ बढ़ गई.

योगेश धम्म से वहीं सोफे पर बैठ गया. सोचने लगा कि आज जिस तरह से संस्कारी अमन अंकल की थूथू हो रही है, कल उस की बारी न हो. फिर कैसे नजरें मिलाएगा वह अपनी बेटियों से? गुमसुम सा वह आ कर कमरे में बैठ गया. नीलिमा ने पूछा, ‘‘कुछ खाओगे?’’

बच्चे और नीलिमा तो सो गए, उस की आंखें अब भी जाग रही थीं. अचानक उस के दिल में एक शूल सा उठता, फिर शांत हो जाता. कभी वह अपने सो रहे बच्चों को निहारता, तो कभी एकटक नीलिमा को देखता. आज नीलिमा उसे उस की पत्नी नहीं, बल्कि चंडिका का रूप लग रही थी, जो छूते ही भस्म कर देगी. इसलिए वह हौल में जा कर सोफे पर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन वहां भी उसे कहां चैन.

घर का 1-1 सामान जैसे उस के मुंह चिढ़ा रहा हो, हंस रहा हो उस पर और कह रहा हो, ‘‘देख रहे हो, कैसी उलटी गंगा बह रही है? नहीं बच पाओगे तुम भी योगेश बाबू. देरसबेर ही सही, पर कर्मों का फल तो सब को मिलता ही है. तुम्हें भी जरूर मिलेगा. उन की बातें सुन वह घबरा कर उठ बैठता और लंबीलंबी सांसें लेने लगता. डर के मारे हालत खराब हो रही थी उस की, पर बताए तो किसे और क्या? सोच कर ही कंपकंपा उठता कि अगर उस के किए गुनाह सब के सामने आ गए, तब क्या होगा? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी ही उजड़ जाएगी.’’

‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्यों मैं बेकार की बातें सोच रहा हूं? वह कभी अपना मुंह नहीं खोलेगी और अगर खोल दिया तो? तो मैं उसे झूठा साबित कर दूंगा. कह दूंगा वही मुझ पर डोरे डाल रही थी. जब दाल नहीं गली, तो मुझ पर इलजाम लगा रही है. मगर उस ने कोई सुबूत पेश कर दिया या गवाह खड़ा कर दिया तो, तो क्या होगा? कौन गवाह? किस की  इतनी हिम्मत है कि जो मेरे खिलाफ बोले,’ वह खुद से ही सवालजवाब किए जा रहा था और परेशान हुए जा रहा था. मुक्ता के साथ किए 1-1 अत्याचार आज उस की आंखों के सामने चलचित्र की तरह नाचने लगे.

बात 7-8 साल पहले की है. जिस कंपनी में योगेश बौस था. उसी कंपनी में मुक्ता भी काम करती थी, पर छोटे पद पर. चूंकि योगेश मुक्ता का बौस था, इसलिए उस की मजबूरी थी उस की हर बात को मानना. गोरा रंग, लंबे घने बाल, मोटीमोटी झील सी आंखें और उस का छरहरा बदन देख योगेश उसे देखता ही रह जाता. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देखा करता. उस से मुक्ता एकदम असहज हो जाती और अपने कपड़े ठीक करने लगती.

जानती थी वह कि उसे ले कर योगेश के विचार कुछ ठीक नहीं हैं, इसलिए वह अपना काम समय के साथ कर लिया करती ताकि योगेश को उसे कुछ कहने का मौका ही न मिले. फिर भी किसी न किसी बहाने वह उसे अपने कैबिन में बुला ही लेता और घंटों बेमतलब के कामों में उलझाए रखता. जब वह कामों में उलझी रहती, योगेश लगातार अपनी नजरें उस पर ही टिकाए रखता.

आप कितने भी अपने काम में व्यस्त क्यों न हों अगर कोई आप को एकटक निहार रहा हो, तो आप की नजरें खुदबखुद उस ओर चली जाती हैं. ऐसा अकसर होता है. जब मुक्ता की नजर योगेश पर पड़ती, तब भी ढीठ की तरह वह उसे उसी प्रकार निहारता रहता. हार कर मुक्ता ही अपनी नजरें नीची कर लेती या वहां से हट जाती.

मुक्ता को अब योगेश के सामने जाने से भी डर लगने लगा था, क्योंकि जिस तरह से वह उस के सीने पर अपनी नजरें गड़ाए रहता, उस से वह सहम सी जाती. योगेश के डर से ही अब उस ने जींस टीशर्ट और स्लीवलैस कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. जानबूझ कर ढीलेढाले कपड़े पहन कर औफिस जाती, ताकि योगेश उसे न देखे, पर उस की गंदी नजरें फिर भी उसे घूरती रहतीं.

कई बार तो वह जानबूझ कर उस से टकरा जाता, फिर भी मुक्ता ही सौरी बोलती. एक बार तो उस ने उस के सीने पर हाथ ही रख दिया और फिर सौरीसौरी कहने लगा, लेकिन योगेश ने ऐसा जानबूझ कर किया, यह बात मुक्ता जानती थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी मौका मिलता, वह मुक्ता को यहांवहां छू देता और बेचारी कुछ न बोल कर आगे बढ़ जाती.

रोना आता उसे अपनी हालत पर. सोचती क्या लड़की होना इतना बड़ा पाप है? शुरू से ही मुक्ता पर उस की गंदी नजर थी. जानता था वह कि यह नौकरी उस के लिए कितना माने रखती है, क्योंकि उस के घर में कमाने वाला उस के सिवा और कोई नहीं था. पिता की असमय मौत ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी उस के कंधों पर डाल दी थी. इसी कारण वक्तबेवक्त योगेश उस का फायदा उठाता रहता था.

उस दिन जानबूझ कर योगेश ने मुक्ता को देर रात तक औफिस में रोक लिया और कहा कि वह उसे घर छोड़ देगा. औफिस के चपरासी को भी उस ने छुट्टी दे दी. लेकिन मुक्ता जल्दीजल्दी अपना काम निबटा कर वहां से जाने ही लगी कि पीछे से आ कर योगेश ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया और उसे यहांवहां छूने लगा.

‘‘सर, यह क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे,’’ कह कर मुक्ता ताकत लगा कर उस की पकड़ से निकली ही कि फिर से उस ने उसे दबोचना चाहा, यह बोल कर कि इसी मौके की तो उसे कब से तलाश थी. मगर ऐन वक्त पर वही चपरासी वहां पहुंच गया और मुक्ता बच गई. वरना तो आज योगेश उसे नहीं छोड़ता. शायद वह चपरासी भी योगेश के गंदे इरादे भांप गया था, इसलिए अपना खाने का डब्बा छूट जाने का बहाना कर वापस आ गया और मुक्ता बरबाद होने से बच गई.

उलटी गंगा- भाग 1: योगेश को क्या था डर

‘‘देश में लाखों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. किसान आत्महत्या कर रहे हैं, देश बदहाली की ओर जा रहा है और यहां लोग फालतू की बातों में समय बरबाद कर रहे हैं. अरे, मैं पूछता हूं और कोई काम नहीं बचा है क्या इन औरतों के पास, जो मीटू मीटू का नारा लगाए जा रही हैं. मैं पूछता हूं कि जिस समय इन का शोषण हुआ, तब क्यों नहीं आवाज उठाई, जो अब चिल्ला रही हैं? झूठा प्रचार कर रही हैं, षड्यंत्र रच रहीं पुरुषों के खिलाफ और कुछ नहीं या फिर हो सकता है फेम में रहने के लिए ये मीटू अभियान से जुड़ गई हों. बंद करो टीवी, कुछ नहीं रखा है इन सब में,’’  झल्लाते हुए योगेश ने खुद ही टीवी औफ कर दिया और फिर रिमोट को एक तरफ फेंकते हुए औफिस जाने के लिए तैयार होने लगा.

‘‘अच्छा, ये औरतें बकवास कर रही हैं और तुम सारे मर्द दूध के धुले हो, क्यों?’’ रोटी को तवे पर पटकती हुई नीलिमा कहने लगी, ‘‘हूं, स्वाभाविक भी है जिस समाज में महिला की चुप्पी को उस की शालीनता और गरिमामय व्यक्तित्व का मूलाधार माना जाता रहा हो, वहां शोषण के विरुद्ध उस की आवाज झूठी ही मानी जाएगी?’’ नीलिमा तलखी से बोली.

‘‘मैं ऐसा नहीं कर रहा हूं, पर अब 10-20 या 30 साल पुरानी बातों को कुरेदने का क्या मतलब है बताओ? जब उन के साथ ऐसा कुछ हुआ था तब क्यों नहीं आवाज उठाई थी

जो अब चिल्ला रही हैं, मैं यह कह रहा हूं,’’ शर्ट का बटन लगाते हुए योगेश बोला.

योगेश की बातों पर नीलिमा को हैरानी भी हुई और गुस्सा भी आया. बोली, ‘‘तुम्हें यह चीखनाचिल्लाना लगता है पर मुझे तो इस में एकदम सचाई नजर आ रही है योगेश. दरअसल, गलती सिर्फ मर्दों की ही नहीं, समाज की भी है, जहां प्रताडि़त होने के बाद भी लड़कियों को ही चुप रहने को कहा जाता है.

‘‘अगर औफिस में लड़कियां शोषण के प्रति आवाज उठाती हैं, तो नौकरी चली जाती है और घरेलू महिला ऐसा करे, इतनी उस की हिम्मत कहां. समाज में औरतों को बचपन से ही यह शिक्षा दी जाती है कि वे शर्म का चोला पहन कर रखें. मगर मर्दों के लिए खुली छूट क्यों? महिलाएं क्या पहनें क्या नहीं, यह उन की अपनी मरजी होनी चाहिए न कि दूसरों की. फिर वैसे भी शर्महया देखने वालों की आंखों में होती है योगेश, कपड़ों या आचरण में नही. लेकिन लद गया अब वह जमाना.

‘‘सच कहूं, तो मुझे बड़ी खुशी हो रही है यह देख कर कि भारत के इतिहास में शायद यह पहला अवसर है जब पुरुष भयभीत दिखाई दे रहे हैं कि कहीं उन के वर्षों पूर्व किए गए गुनाह का पिटारा न खुल जाए,’’ गर्व से सिर ऊंचा कर नीलिमा बोली, ‘‘बहुत दे चुकी सीता अग्नि परीक्षा. अब राम की बारी है, क्योंकि स्त्री सिर्फ देह नहीं है, बल्कि उस में सांस और स्पंदन भी है और यह बात अब पुरुष को समझनी पड़ेगी कि औरत का भी अपना वजूद है. वह सिर्फ सहती नहीं, सोचती भी है.’’

नीलिमा की लंबीचौड़ी बातें सुन योगेश का दिमाग भन्ना गया. अत:

झल्लाते हुए बोला, ‘‘बस हो गया… अब क्या भाषण ही देती रहोगी या खाना भी मिलेगा? वैसे भी आज मुझे देर हो गई है.’’

खाने की प्लेट योगेश के सामने रखती हुई नीलिमा बोली, ‘‘वैसे तुम क्यों इतना बौखला रहे हो? कहीं तुम ने भी तो किसी के साथ… डर तो नहीं रहे हो कि कहीं तुम्हारा भी कोई पुराना पाप न खुल जाए?’’

यह सुनते ही रोटी का कौर योगेश के गले में ही अटक गया. फिर किसी तरह हलक से रोटी को नीचे उतारते हुए बोला, ‘‘प… प… पागलों सी बातें क्यों कर रही हो तुम? मुझे क्यों बिना वजह इन सब में घसीट रही हो? करे कोई और भरे कोई…? मुझे तो बख्श दो और दुनिया जानती है कि मैं कैसा इंसान हूं. सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है मुझे.’’

‘‘हूं, और दुनिया उन्हें भी जानती है जिन का पिटारा खुला… पता चले कि जनाब ने भी कभी किसी लड़की के साथ… मैं सिर्फ कह रही हूं,’’ खाने का डब्बा योगेश के सामने रखते हुए नीलिमा बोली.

नीलिका की बातों से योगेश तमतमा उठा. मन तो किया उस का कि खाने का डब्बा उठा कर फेंक दे और कहे कि हां, दुनिया के सारे मर्द खराब हैं. सिर्फ औरतें ही पावन पवित्र हैं. मगर उस की इतनी हिम्मत कहां, जो नीलिमा के सामने औरतों के खिलाफ कुछ बोले, क्योंकि आखिर वह महिलाओं की हमदर्द जो ठहरी. किसी शोषित महिला के बारे में कुछ सुना नहीं कि सखियों सहित मोरचा ले कर निकल पड़ती है.

‘‘क्या अब अपने पति पर भी तुम्हें भरोसा नहीं रह गया और क्या मैं तुम्हें इतना गिरा हुआ इंसान लगता हूं जो ऐसी बातें बोल रही हो?’’

नीलिमा को लगा कि कहीं योगेश उस की बातों को दिल से न लगा बैठे, इसलिए खुद को शांत कर बोली, ‘‘अरे, मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी और क्या मैं तुम्हें नहीं जानती… चलो अब निकलो औफिस के लिए वरना कहोगे मैं ने ही देर करवा दी.’’

‘‘हूं, वैसे भी आज मेरी जरूरी मीटिंग है,’’ योगेश ने मुसकराते हुए कहा और फिर हमेशा की तरह बाय कह कर औफिस निकल गया. लेकिन उस के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. डर तो उसे सताने ही लगा था अपने भविष्य को ले कर. सोच कर ही सिहर उठता कि अगर मीटू की चपेट में वह भी आ गया, तो क्या होगा. नीलिमा तो एक पल भी उसे बरदाश्त नहीं करेगी. और तो और उसे सजा दिलवाने में भी पीछे नहीं रहेगी. अपने बच्चों की नजरों में भी उस की छवि धूमिल पड़ जाएगी सो अलग. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. समाज में बनीबनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

मीटिंग में भी योगेश बस यही सब सोचता रहा. औफिस के किसी काम में आज उसे मजा नहीं आ रहा था और न ही किसी स्टाफ को वह कुछ काम करने को कह रहा था वरना तो किसी को ठीक से सांस तक नहीं लेने देता. सब के सिर पर सवार रहता.

‘‘क्या बात है यार, आज बौस बड़े चुपचुप लग रहे हैं? न चीखना, न चिल्लाना, बस चुपचाप जा कर कैबिन में बैठ गए. गुडमौर्निंग बोला तो कोई जवाब भी नहीं दिया. कहीं इन पर भी किसी देवी ने मीटू का केस तो नहीं कर दिया?’’ ठहाके लगाते हुए संदीप ने कहा तो उस की बात पर औरों को भी हंसी आ गई.

‘‘सही कह रहा हूं यार वरना तो आते ही हमें घूरने लगते थे, मगर आज नजरें नीची किए किसी गहरी चिंता में डूबे हैं. क्या बात हो सकती है?’’ संदीप फिर बोला.

‘‘हां यार, मुझे तो लगा था डांटने के लिए बुलाया है, पर कहने लगे कि उन्होंने मेरी छुट्टी मंजूर कर दी है,’’ नमन ने कहा, तो वहां बैठे सभी हैरान रह गए. क्योंकि मजाल थी जो किसी को वह बिना नाक रगड़ाए छुट्टी दे दे.

‘‘खैर, जाने दो न हमें क्या. हो गई होगी पत्नी से लड़ाई और क्या,’’ कह कर सभी अपनेअपने काम में लग गए.

भरे मन से जैसे ही योगेश घर पहुंचा, देखा नीलिमा किसी से फोन पर बातें कर रही

थी. जोरजोर से कह रही थी, ‘‘एकदम नहीं छूटना चाहिए वह इंसान. समझता क्या है? भेडि़या कहीं का. बड़ा संस्कारी बना फिरता था, पर चलन तो देखो. नातीपोता वाला हो कर ऐसे कुकर्म और वह भी अपनी बेटी समान लड़की से?’’

‘‘क्या हुआ?’’ धीरे से योगेश ने पूछा,

‘‘आ गए तुम? अभी मैं तुम्हें ही फोन लगाने वाली थी. पता है, वे अमनजी अरे हमारे  पड़ोसी… उन पर किसी लड़की ने हैरेसमैंट का केस किया है. देखो, कितने संस्कारी बने फिरते थे.

‘‘मैं तो कहती हूं ऐसे इंसान का मुंह काला कर चौराहे पर खड़ा कर हजार जूते मारने चाहिए. पता है तुम्हें, उस की पत्नी तो यह बोलबोल कर चिल्लाए जा रही थी कि वह लड़की झूठी है.

रेतीली चांदी: क्या हुआ था मयूरी के साथ

रेतीली चांदी- भाग 4: क्या हुआ था मयूरी के साथ

अब मयूरी को अपनी मां व बहन की फिक्र सताने लगी थी. कहीं राहुल के गुर्गे उन्हें वहां परेशान न करें. पर चोरों के पैर ही कहां होते हैं. वहां जाने की उन की शायद ही हिम्मत होती. मां तो सोच रही होंगी, बेटी फ्रांस में आराम से अपने पति के साथ है और वह यहां पर. उन्हें हकीकत से दोचार कराना भी बहुत जरूरी था. सो, उस ने विस्तार में न जा कर संक्षेप में केवल अपनी सलामती, राहुल की असलियत व अपने सऊदी अरब में खान चाचा के परिवार के साथ रहने की पूरी खबर के साथ ही उन का पता व बाकी बाद में आ कर बताने के लिए लिख कर पत्र भेज दिया था.

रहने के लिए उसे खान चाचा ने छत दी ही थी. मयूरी अपना खर्च भी उन्हीं के ऊपर नहीं थोपना चाहती थी. सो, उस के बहुत अपील करने पर खान चाचा ने एक सीनियर डाक्टर की सिफारिश ले कर उसे अस्पताल में ही स्टोरकीपर की नौकरी दिलवा दी. जिस से उस की आर्थिक समस्या कुछ हद तक सुलझ गईर् थी. बीचबीच में वह भारतीय दूतावास से संपर्क कर के अपने पासपोर्ट आदि के बारे में पता करती रहती थी. दूतावास ने अपने लैवल पर इस पूरी घटना की छानबीन करवानी शुरू कर दी थी. घर से बाहर निकलते समय मयूरी हमेशा बुर्के में ही रहती, ताकि कहीं फिर वह उन लोगों के चंगुल में न फंस जाए.

सना से, जो लगभग उसी की हमउम्र थी, मयूरी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. जल्द ही वे दोनों एकदूसरे की हमराज भी बन गईं. कट्टरपंथी पारिवारिक माहौल के कारण सना घर में बहुत कम बोलने वाली व धर्मभीरु लड़की मानी जाती थी. परंतु मयूरी के सामने वह अपने दिल का हर राज बेहिचक खोल देती. रूढि़वादी परंपराओं से बंधी मां के सामने जो बात वह इतने दिनों तक न कह सकी थी, मयूरी को जानते देर न ली कि वह एक मुसलिम युवक से बेइंतहा प्यार करती है और उसी से विवाह करना चाहती  है.

उस की यह बात सुन कर मयूरी पूछ उठी, ‘‘तो मुश्किल क्या है? जब तुम्हारी जातबिरादरी एक है तो खान चाचा मान ही जाएंगे.’’

‘‘नहीं मयूरी आपा, वे कभी नहीं मानेंगे. क्योंकि उन्होंने बचपन में ही मेरी शादी खालाजान के साहबजादे रशीद से तय कर दी थी. और वे अपनी जबान

के बेहद पक्के हैं. पर मुझे वह रशीद एक आंख नहीं भाता. मेरा शिराज

उस से कहीं ज्यादा हसीन और अमीर है. कहां तेल मसालों की दुकान पर बैठा गंधाता रशीद, कहां इत्र की भीनीभीनी खुशबुओं में डूबा शिराज.’’

‘‘देखो सना, जहां तक मैं खान चाचा को समझी हूं, वे बहुत ही नेक और रहमदिल इंसान हैं. जब तुम जानती हो कि वे अपनी जबान के पक्के हैं तो गलत रास्ते पर बढ़ ही क्यों रही हो? रशीद से तुम्हारी शादी उन्होंने कुछ सोचसमझ कर ही तय की होगी. खूबसूरती केवल तन की ही नहीं, मन की भी होती है. हो सकता है जो उन्होंने देखा हो, वह तुम नहीं देख पा रही हो. आखिर वे तुम्हारे पिता हैं, तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहेंगे,’’ मयूरी उसे समझाती हुई बोली.

‘‘क्यों, मैं क्या नन्ही बच्ची हूं. अब मैं भी बालिग हो गई हूं और हमें अपनी मरजी से शादी करने का हक है. अब्बूजान अगर जिद करेंगे तो मैं भी उन्हीं की बेटी हूं, बगावत कर दूंगी या घर से भाग कर उस से निकाह कर लूंगी.’’

उसे जनून की हद तक शिराज की दीवानी देख मयूरी मन ही मन परेशान हो उठी. पर उसे डांटती हुई बोली, ‘‘मोहब्बत का मतलब भी समझती हो, मोहब्बत ऊपर उठना सिखाती है, न कि नीचे गिरना. खबरदार, तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी. पहले उन्हें सबकुछ सचसच बताओ और राजी करने की कोशिश करो. जिन मांबाप ने तुम्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया है, तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी की है, घर से भाग कर उन के मुंह पर कालिख पोतते तुम्हें जरा भी शर्म न आएगी? कितने दिनों से जानती हो उसे?’’

‘‘लगभग सालभर से, वह बहुत शरीफ लड़का है आपा. खानदानी रईस है, मगर घमंड जरा भी नहीं है.’’

‘‘करता क्या है?’’ मयूरी ने उसे और कुरेदते हुए पूछा.

‘‘कई कोठियां हैं कनाड़ा, पेरिस आदि में. यहां भी 2 कोठियां हैं. उन का किराया ही काफी आ जाता है. मैं ने बताया न, खानदानी रईस है. कुछ काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ती. हर महीने जमा होने वाले किराए का ब्याज ही काफी हो जाता है,’’ वह गर्व से बोली.

‘‘यानी निठल्ला है. बापदादाओं के पैसे पर ही ऐश कर रहा है. अपना कोई कामधाम नहीं है.’’

‘‘रहने दो मयूरी आपा, अब आप भी अम्मीजान की जबान मत बोलो. एक बार मैं ने अपनी एक सहेली की आड़ ले कर इस बारे में मां से बात की थी. तब वे भी कुछ ऐसे ही बोली थीं,’’ सना रूठते हुए बोली.

तो मयूरी उसे मनाती सी बोल उठी, ‘‘अच्छा लाड़ो रानी, हमें दिखाओ तो कौन है वह? कैसा है? अच्छा लगा तो मैं खुद खान चाचा से बात करने की कोशिश करूंगी. लेकिन यह घर से भागनेवागने की बात तुम अपने जेहन से बिलकुल निकाल दो, ठीक है?’’

‘‘ठीक है, मंजूर. पर मेरे पास उस का कोई फोटो तो है नहीं. हां, आप को उस से मिलवा सकती हूं,’’ सना खुश हो कर बोली.

मयूरी ने उस से खान चाचा से बात करने के लिए कह तो दिया पर वह समझ रही थी कि ये सब कितना मुश्किल होगा. अपनी दी हुई जबान से पलटना उन के लिए मौत से कम तकलीफदेह न होगा. पर सना को भी वह इस राह पर बढ़ने से कैसे रोके?

सना तो अभी नादान है. उम्र के उस पड़ाव पर है जब मन अपने ही ख्वाबों की दुनिया में खोया रहता है. उस में किसी की दखलंदाजी उसे नागवार गुजरती है. दुनिया की ऊंचनीच से अनजान सना को शिराज पर पूरा भरोसा था. क्या पता वह रशीद से बेहतर जीवनसाथी ही साबित हो, पर खान चाचा की दी हुई जबान? एक बार वह शिराज से मिल कर उसे पूरी हालत बता कर सना को समझाने के लिए अपील तो कर ही सकती है. शायद शिराज ही मान जाए और पीछे हट जाए. तब तो कोई दिक्कत ही नहीं बचेगी. फिर वह सना को भी समझाबुझा कर खान चाचा की पसंद से ही निकाह करने के लिए राजी कर लेगी. पर शिराज उस की बात मानेगा ही क्यों…?

जिस परिवार ने विषम परिस्थितियों में उसे सहारा दिया, उस की इज्जत बनाए रखना अब उस की जिम्मेदारी हो गई थी. किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिए पहले शिराज से मिलना जरूरी था.

अगले 2-3 दिनों बाद ही सना ने मयूरी को बताया कि कल वह उसे शिराज से मिलाने ले चलेगी.

‘‘कोई फोन तो आया नहीं, मिलने का प्रोग्राम कैसे तय किया?’’ बात की तह तक जाने के लिए मयूरी उत्सुक थी.

‘‘हमारी कामवाली फरीदन उसी की कोठी के पास एक गली में रहती है. जब हमें मिलना होता है, फरीदन के हाथ ही एक कागज पर जगह व समय लिख कर भेज देते हैं,’’ सना भेदभरी धीमी आवाज में उसे अपना राजदार बनाती बोली.

‘‘ओह,’’ सबकुछ जान कर मयूरी हैरान रह गई थी कि फरीदन भी इस में एक कड़ी का काम कर रही थी.

अगले दिन वे दोनों बाजार तक जाने के लिए कह कर तय जगह व समय से थोड़ा पहले पार्क में पहुंच गईं. पहले दूर से ही बिना उसे बताए शिराज को देखनेपरखने, फिर अपनी राय देने के लिए सना को समझा कर मयूरी कुछ ही दूर पड़ी दूसरी बैंच पर बैठ गई.

बुर्का पहने होने से वह आसानी से अपनी पहचान छिपाए रखे थी, सबकुछ देखती रह सकती थी. उन्हें बैठे हुए 10 मिनट ही हुए थे. जब वह सना की तरफ देख रही थी, तभी उस की साइड से एक युवक निकल कर सना की तरफ बढ़ता दिखाई दिया. शायद यही शिराज था, क्योंकि उसे देखते ही सना का चेहरा फूल सा खिल उठा था. पर अभी वह उस की पीठ ही देख पा रही थी.

रेशमी चूड़ीदार व लंबी कढ़ी हुई अचकन उस की अमीरी बयां कर रही थी. सना को आदाब करता शिराज जैसे ही उस की बगल में बैठा, उस के चेहरे पर निगाह पड़ते ही मयूरी बुरी तरह चौंक उठी, क्योंकि शिराज के भेष में राहुल उस के सामने एक लाल मखमली डब्बी खोल कर मुसकराते हुए सना को कुछ तोहफा दे रहा था.

मयूरी का दिल चाहा अभी जा कर सना को उस की असलियत बता कर उसे वहां से उठा लाए. पर उठतेउठते, ठिठक कर वह फिर बैठ गई. उस के पास शिराज के ही राहुल होने का क्या सुबूत था. इस तरह उस के कहने मात्र से सना उस पर भला क्यों यकीन करेगी. सना मानेगी नहीं और राहुल भी चौकन्ना हो जाएगा. शहर से गायब भी हो सकता है या उसी को कुछ नुकसान पहुंचा सकता है.

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रेतीली चांदी- भाग 6: क्या हुआ था मयूरी के साथ

ताला तोड़ कर जब दरवाजा खोला गया तो एक पतलासंकरा सा गलियारा अंदर जाता दिखा. कुछ पुलिस वाले उस में से होते हुए अंदर बढ़ने लगे. अंदर चारों तरफ गंदगी व सीलन की बदबू फैली थी. कुछ दूर चलने पर वह गलियारा एक छोटे से कमरे में खुला. वहां बेडि़यों में जकड़ी, कोड़ों की मार से पड़ीं नीलीलाल धारियों वाली जख्म खाई, अर्धबेहोश सी 3 युवतियां बेहद दीनहीन हालात में, ठंडे नंगे फर्श पर पड़ी मिलीं.

कमरे में लोगों ही आहट पा कर उन की आंखों में खौफ की छाया उभर आई थी. पर उन की बेडि़यां खोल, उन के हमदर्द होने का यकीन दिलाते वे लोग एकएक कर के उन्हें किसी तरह सहारा दे कर बाहर लाए. बाहर आते ही उन्होंने खाना व पानी मांगा तो तुरंत ही जूस आदि की व्यवस्था कर के खाना खिलवाया गया. उन्हें तो यह भी याद नहीं था कि कितने दिनों बाद आज उन्हें कुछ खानापीना नसीब हुआ था.

उन्हीं में से एक पांखी थी. उस का सूजा हुआ मुंह व जिस्म पर जगहजगह जलती सिगरेट से दागे जाने के अनगिनत निशान, उस पर हुए क्रूर जुल्मों की दास्तान खुद ही बयान कर रहे थे. उस के कुछ संभलने पर मयूरी उस के गले से लिपट बुदबुदा उठी, ‘‘मुझे माफ कर दो पांखी, मेरे कारण तुम्हें कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ी हैं, मुझे माफ कर दो. तुम्हारी बेटी कहां है? यहां हमें कहीं नहीं मिली?’’

‘‘बीमार पड़ गई थी इस गंध से. छुटकारा पा कर दुनिया से चली गई,’’ बुझी हुई आवाज में पांखी धीरे से बुदबुदा उठी.

‘‘ओह, आई एम सौरी. मगर इलाज नहीं कराया?’’

पर तब तक अर्धबेहोश सी पांखी फिर बेहोश हो चुकी थी. एंबुलैंस आते ही तीनों युवतियों को अस्पताल भिजवा कर उन्हें मैडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं.

गिरफ्तार लोगों से पुलिस ने अभिरक्षा में कड़ी पूछताछ शुरू कर दी थी. उन की निशानदेही पर ही भारतीय दूतावास को सूचित कर के देहरादून स्थित उन के औफिस का मैनेजर व उस का सहायक भी तुरंत वहीं गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए और औफिस सीलबंद कर दिया गया. उन पर भारत में ही मुकदमा चलाने की प्रक्रिया शुरू हो गई. अब मयूरी को समझ आ रहा था कि क्यों सारा उस की छुट्टियां इतनी आसानी से सैंक्शन करवा देती थी और जो लड़कियां सारा के बहकावे में नहीं आती थीं, उन से बेहद कठोरता से काम लिया जाता था.

युवतियां बहलानेफुसलाने व बरगला

कर बेचने वालों के रैकेट का

परदाफाश होते ही उन के बचेखुचे साथी भी एक के बाद एक पकड़ लिए गए थे. जिन्हें समय से भनक लग गई वे फरार हो गए थे, परंतु उन की खोजबीन जारी थी. पूरे शहर में यह खबर आग की तरह फैल चुकी थी. अगले दिन के अखबार के मुख्यपृष्ठ की सुर्खियों में यही खबर उन लोगों की फोटो सहित छपी.

तब मयूरी, सना के सामने अखबार रखती हुई बोली, ‘‘अब देख सना, यह है तुम्हारे शिराज उर्फ मेरे राहुल की असलियत. मैं ने कहा था न, अभी सीरत परखनी बाकी है.’’

पूरी खबर पढ़ कर सना पागल सी बैठी रह गई थी. वह शिराज को क्या समझती रही और वह क्या निकला. कहीं वह उस की बातों में आ कर घर से भाग गई होती तो…? अपना संभावित हश्र सोच कर वह मन ही मन कांप उठी. एकाएक उस ने झुक कर मयूरी के पैर पकड़ लिए.

आंसूभरी आंखों से मयूरी को देखती, लरजती आवाज में बोली, ‘‘प्लीज आपा, आप घर में किसी को कुछ न बताइएगा.’’

‘‘पागल हुई है,’’ एक मीठी झिड़की देते मयूरी ने उसे उठा कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘आप उसे पहले दिन ही पहचान गई थीं न, तभी क्यों नहीं बता दिया?’’

‘‘क्या तब तुम मेरी बात का यकीन करतीं? उलटे, उसी से सवाल करतीं,’’ मयूरी बोली.

‘‘शायद नहीं,’’ कुछ सोचती सी सना बोली.

‘‘बस, इसीलिए नहीं बताया. तब मेरे पास कोई सुबूत नहीं था. पर आज मैं तुम्हें उसी के राहुल होने का सुबूत दिखा सकती हूं,’’ कह कर मयूरी ने पिछले दिन ही पहुंचे अपनी शादी के फोटोग्राफ्स उसे दिखाए, और गौर से चेहरा देखती पूछ बैठी, ‘‘मेरे खयाल में अब तुम्हें बताने की जरूरत तो नहीं कि रशीद के बारे में तुम्हें क्या फैसला लेना है?’’

‘‘बिलकुल नहीं आपा, आप बेफिक्र रहिए. मेरी आंखें खुल गई हैं. अब्बू की जबान ही अब मेरी जिंदगी है.’’

तहखाने से बरामद युवतियों का सरकारी खर्च पर इलाज करा कर उन्हें उन की पसंद की जगह हिफाजत के साथ पहुंचवा दिया गया. पांखी को मयूरी अपने साथ ले आई. अपने भविष्य के प्रति चिंतित, निराश पांखी आत्मग्लानि में डूब गई थी. इतनी जिल्लतभरी जिंदगी जीने के बाद अब वह वापस मांबाप के पास लौटती भी है, तो क्या वे लोग उसे अपना लेंगे? पांखी के लिए यह सवाल था.

लोकलाज के बंधन ग्रामीण पर्वतीय समाज में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं. वह वापस जाने के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी, ‘‘वापस किस मुंह से जाऊं. मैं तो बहकावे में आ कर घर से भागी थी. मांबाप के लिए तो मैं उसी दिन मर गई होऊंगी. अब वापस जा कर उन की परेशानियां और नहीं बढ़ाना चाहती.’’

‘‘घर से भागी, वह गलती तो तुम ने की ही थी. परंतु अब वापस न लौट कर एक और गलती मत करो. वे लोग तुम्हें बुराभला कहें भी, तो इसे सजा समझ कर सुन लेना. यह दुनिया भूखेभेडि़यों से भरी हुई है.’’

‘‘मुझे यकीन नहीं है कि वे लोग मुझे माफ करेंगे,’’ पांखी सिसकसिसक कर रोने लगी.

तो उसे चुप कराती मयूरी उस के आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘तुम घबराओ नहीं पांखी. मेरी मानो तो एक बार वहां चलो जरूर. कहो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं, उन्हें समझाने की कोशिश करूंगी. अगर वे तुम्हें अपने साथ रखने को राजी नहीं हुए तो तुम मेरे साथ रहना. मैं सोच लूंगी, मेरी एक नहीं, 2 छोटी बहनें हैं.’’

मयूरी के बहुत समझाने पर पांखी को कुछ ढाढ़स बंधी.

पूरे गिरोह के खिलाफ कई पुख्ता सुबूतों व गवाहियों के आधार पर गिरोह के सदस्यों का जुर्म साबित होते देर नहीं लगी. और सब को जेल की सलाखों के पीछे उम्रकैद में डाल दिया गया

भारत में विदेश मंत्रालय के कुछ अधिकारी नकली पासपोर्ट बनाने के धंधे में शामिल पाए गए थे. वे गैरकानूनी ढंग से विदेश पहुंच चुके लोगों के पासपोर्ट जब्त कर के उन की फोटो के स्थान पर नए व्यक्ति की फोटो लगा कर फेरबदल कर देते थे, फिर वही पासपोर्ट दूसरे को दे दिया जाता था. इतने बड़े घोटाले का परदाफाश होने पर पूरा महकमा अंदर तक हिल गया था. दोषी व्यक्तियों को सस्पैंड कर देने के साथ ही उन के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही होने की मांग जोर पकड़ने लगी थी. इस बीच, जद्दा में मयूरी व पांखी के पासपोर्ट व वीजा आदि तैयार हो गए थे.

आखिर एक दिन वे दोनों खान चाचा के परिवार से भावभीनी विदाई ले कर, दिल में एकदूसरे की अनगिनत यादें समेटे, वापस इंडिया के लिए आसमान में उड़ चलीं. मयूरी ने शीशे से झांक कर एक आखिरी नजर नीचे डाली तो नीचे फैले विशाल समुद्र का अंतहीन रेतीला तट, सूरज की किरणों में चांदी की चादर सा चमकता नजर आ रहा था. पर आज वह इस मृगमरीचिका से दिग्भ्रमित नहीं हुई, क्योंकि वह इस रेतीली चांदी को खुद परख चुकी थी, जो, जब आंखों के सामने होती है तो मन को लुभाती है, छूनेसहेजने के लिए उद्यत कर देती है. पर उस के पास जाने पर जब वह पांव के नीचे आती है तो लहरों के बहाव के साथ पांव के नीचे से वह भी खिसक जाती है. और यदि वह हाथ में हो, तो मुट्ठी के बीच से फिसल जाती है. पीछे बचता है खाली हाथ.

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रेतीली चांदी- भाग 5: क्या हुआ था मयूरी के साथ

सना पर तो उस ने अपनी अमीरी व प्रेम का ऐसा रंग चढ़ा रखा है, जिस पर दूसरा रंग चढ़ना आसान न था. मगर अब मयूरी को जल्द ही इस का कोई हल निकालना ही था, वरना सना की जिंदगी बरबाद होते देर नहीं लगती. उसे याद आ रहा था जब मसूरी में राहुल उस से मिलता था तो इसी तरह अमीरी के दिखावे के साथसाथ बड़ी शराफत व नफासत के साथ उस से पेश आता था. उस में कोई छिछोरापन न पा कर ही मयूरी धीरेधीरे उस की हर बात पर खुद से ज्यादा यकीन करने लगी थी. यदि तब कोई उसे राहुल की असलियत बताता तो शायद वह भी उस पर यकीन न करती.

यहां तो सना उस के कहने का उलटा अर्थ भी निकाल सकती थी कि उस के पिता के एहसानों तले दबे होने से ही वह शिराज को उस की नजरों में गिरा कर रशीद से उस का निकाह कराना चाहती है. अपनी बात की सचाई साबित करने के लिए मयूरी के पास कोई पुख्ता सुबूत भी तो नहीं था, कोई फोटो तक न थी. फोटो से उसे ध्यान आया. यहां भले ही उस के पास फोटो न हो पर शादी के समय मां ने किसी से उन दोनों के कुछ फोटोज खिंचवाए थे. वहां से तो मिल ही सकते थे.

यही सब सोचतेसोचते उधेड़बुन में फंसी मयूरी को पता ही न चला कैसे आधा घंटा निकल गया. उस ने पलट कर सना की तरफ देखा. तब तक शिराज जा चुका था और सना उसी की तरफ बढ़ी चली आ रही थी.

दूर से ही लाल डब्बी दिखाती आ रही सना ने पास आ कर डब्बी खोल कर डायमंड रिंग उसे दिखाते हुए बड़ी उम्मीद से उस से पूछा.

‘‘आप ने उन्हें देखा आपा? कैसे लगे?’’

‘‘हां, सूरत को ठीकठाक ही है. अभी सीरत परखनी बाकी है. एक बार और मिलना पड़ेगा,’’ उस की बात का गोलमोल जवाब देती मयूरी उसे असलियत भी तो नहीं समझा सकती थी.

एक जरूरी काम याद आने का बहाना कर के उस ने सना को घर भेज दिया और खुद हैड पोस्टऔफिस पहुंच कर जल्दी से जल्दी लौटती डाक से अपनी शादी के फोटोग्राफ्स भेजने के लिए मां को एक पत्र लिख कर वहीं पोस्ट कर दिया. पता अपने अस्पताल का दे दिया था. पत्र का जवाब आने में कम से कम 8-10 दिन तो लगने ही थे.

वहां से निकल कर वह भारतीय दूतावास के औफिस पहुंची, जहां उस ने अपना पासपोर्ट व वीजा बनवाने के लिए अप्लीकेशन दी हुई थी. भारतीय दूतावास ने भारत में विदेश मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों को इस पूरे प्रकरण की जानकारी दे दी थी जिस की उच्चस्तरीय जांच शुरू हो चुकी थी.

भारतीय दूतावास के अधिकारियों के लिए यह काफी सनसनीखेज घटना थी. क्योंकि मयूरी के अनुसार उस का पासपोर्टवीजा आदि 2 दिनों के अंदर ही तैयार हो गया था. जबकि संवैधानिक तरीके से पूरी प्रक्रिया में कम से कम 20-22 दिनों का समय लगता ही है. इस का मतलब उस ने कहीं से नकली पासपोर्ट बनवा कर पूरी यात्रा की थी और वे दोनों कहीं पकड़े भी नहीं गए. यानी कुछ बड़े अधिकारी भी इस घोटाले में कहीं न कहीं शामिल थे. फर्जी पासपोर्ट की कुछ शिकायतें पहले भी आ चुकी थीं. पर कोई पुख्ता सुबूत न होने से मामला लटका रहा. परंतु इस बार मयूरी की तरफ से रिपोर्ट कराते ही पूरा महकमा हरकत में आ गया था.

भारत में विदेश मंत्रालय को इस घोटाले की लिखित खबर मिलने पर सीबीआई को जांच सौंप दी गई. उस ने तुरंत ही देहरादून स्थित उस औफिस के बारे में छानबीन करनी शुरू कर दी. मयूरी की मां से मिल कर भी सीबीआई को अपनी तफ्तीश में काफी जानकारी मिल गई थी. शादी पर खींचे गए फोटोज से उन्हें राहुल की फोटो मिल गई. भारत में काफी जानकारी इकट्ठा कर के सीबीआई ने संबंधित अधिकारियों को पूरी रिपोर्ट भेज दी थी. जो जद्दा में काउंसलेट को स्थानांतरित करा दी गई थी. वहां की पुलिस ने इस की मदद से रैड एलर्ट घोषित करते हुए राहुल की फोटो सब थानों में भेज दी थी ताकि उसे पहचानने व पकड़ने में मदद मिल सके.

इस केस की जांच कर रहे अधिकारी को जब मयूरी ने राहुल की फोटो 8-10 दिनों में भारत से आ जाने की जानकारी दी तो उसे चकित करते हुए उन्होंने पहले ही सीबीआई द्वारा भेजी जा चुकी तसवीर उस के हाथ पर रख दी. इतनी तेजी से इन्क्वायरी होते देख उसे काफी तसल्ली हो गई थी. तभी उस ने राहुल के पकड़े जा सकने की उम्मीद का जिक्र भी कर दिया. सना का नाम बीच में लाए बिना उस ने बताया कि घर में काम करने वाली फरीदन के साथ उस ने राहुल को बाजार में देखा था. वह राहुल के सामने पड़ना नहीं चाहती थी, सो, उस समय कुछ नहीं बोली, पर फरीदन का पता वह कल तक उन्हें दे देगी, उस से राहुल का ठौरठिकाना मिल सकता है.

मयूरी को साथ ले जा कर उन लोगों ने वह भव्य इमारत भी खोज निकाली थी, जहां राहुल उसे छोड़ कर गया था. बिल्ंिडग की शिनाख्त करा के वहां खुफिया पुलिस के आदमी सादी ड्रैस में तैनात कर दिए गए थे, जो उस बंगले में हर आनेजाने वाले की कड़ी निगरानी करते थे.

घर आ कर मयूरी ने बातोंबातों में फरीदन से उस के घर का पता जान लिया था, जो उस ने फौरन अधिकारियों तक पहुंचा दिया. और उस के घर की निगरानी भी शुरू हो गई थी.

मयूरी ने सना को बिना कुछ बताए उस की तरफ से फरीदन की मारफत शिराज के पास अगले दिन उसी पार्क में आने के लिए मैसेज भिजवाया.

घर पहुंच कर फरीदन मैसेज का पुरजा राहुल को देने के लिए जैसे ही घर से निकली, बुर्कानशीं मयूरी सादे कपड़ों की पुलिस के साथ उस के पीछे चल पड़ी. गली से निकल कर वह एक मकान के सामने जा कर रुकी और दरवाजे की घंटी दबा दी. दरवाजा राहुल ने ही खोला था. फरीदन को देखते ही उसे अंदर कर के दरवाजा फिर बंद हो गया.

मयूरी से उसी के राहुल होने की शिनाख्त करा कर पुलिस वालों ने उस घर को चारों तरफ से घेर लिया. जैसे ही फरीदन ने वापस जाने के लिए कदम बाहर रखा, उसे गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही, कुछ पुलिस वाले धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गए. पुलिस को देख राहुल ने भागने की कोशिश की किंतु जल्द ही उसे भी गिरफ्त में ले लिया गया. मकान की तलाशी लेने पर नीचे बने तहखानेनुमा स्टोर में एक युवती छिपी हुई मिली, जिसे मयूरी ने राहुल की बहन सारा के रूप में पहचान लिया, किंतु फरीदन के अनुसार, वह राहुल की प्रेमिका ऐना थी.

इधर इन लोगों की गिरफ्तारी के साथ ही दूसरी टीम ने भव्य इमारत को भी घेर लिया था. और उस के चौकीदार, दरबान व कुछ कर्मचारियों के साथ ही अंदर मौजूद 2 शेखों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

इमारत से बरामद लोगों में पांखी व उस की बेटी को न पा कर मयूरी बेहद परेशान हो उठी. उस ने पांखी की बताई हुई कुछ जानकारियां अधिकारियों को बताईं, जिन के आधार पर उन्होंने पूरी इमारत का चप्पाचप्पा छान मारा, तब एक आदमकद शीशे के पीछे एक चोर दरवाजा मिला, जिस पर ताला पड़ा हुआ था.

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रेतीली चांदी- भाग 3: क्या हुआ था मयूरी के साथ

देहरादून से वापस लौटते ही मयूरी को मां का भेजा पत्र मिला कि उन्होंने एक अच्छे संभ्रांत परिवार में उस का रिश्ता तय कर दिया है. केवल औपचारिक तौर पर वे लोग एक बार आमनेसामने लड़की को देखना चाहते हैं. तभी वे शगुन की रस्म भी कर देंगी. सो, अगली गाड़ी से ही वह घर आ जाए.

मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा पसोपेश में पड़ गई. अब वह मां को अपने दिल की बात कैसे बताए कि वह केवल राहुल को चाहती है व उसी से शादी करना चाहती है. मां का पत्र राहुल व सारा ने भी पढ़ा.

राहुल के चेहरे पर कई रंग आ कर चले गए. कुछ सोच कर वह बोला, ‘देख लो, फैसला तुम्हारे हाथ में है. एक तरफ तुम्हारी पसंद का देखापरखा तुम्हारा प्यार है, दूसरी तरफ एक अनजान परिवार जिसे न तुम ने पहले देखा है न बिलकुल जानती हो. बालिग हो, अपना फैसला खुद लेने का हक है तुम्हें. हम लोग यहीं कोर्ट में विवाह कर लेते हैं, बाद में मां को बता देंगे.’

‘पर इस तरह शादी कर लेने से मां को बहुत दुख होगा. हम दोनों बहनों के लिए उन्होंने बहुत दुख उठाए है.’ मयूरी के संस्कार उसे मां से बगावत करने से रोक रहे थे, पर अमीर राहुल से विवाह होने पर सुखसुविधा संपन्न जीवनयापन की चाह मां के फैसले के उलट करने को उकसा रही थी.

राहुल द्वारा कोर्टमैरिज के लिए जोर देने पर, उस से विवाह करने की दिली इच्छा होते हुए भी, वह मां को अंधेरे में रख कर यह विवाह नहीं करना चाहती थी. उसे वह ठीक नहीं समझ रही थी. वह विवाह तो करना चाहती थी पर मां की खुशी के साथ.

आखिर सोचविचार कर, एक बार मां को मनाने की कोशिश करने के लिए वह राहुल व सारा के साथ अगले ही दिन मां के पास जा पहुंची थी. वहां राहुल ने अपना परिचय देने के साथ ही मयूरी का हाथ भी मांग लिया तो वे इस प्रस्ताव से चौंक उठी थीं, ‘कहां तुम लोग और कहां हम. रिश्ता तो बराबरी वालों में ही अच्छा रहता है.’

‘बराबरी केवल पैसों से ही थोड़े न होती है. मुझे आप की बेटी बेहद पसंद है. आप फिक्र न करें, हमें कोई दानदहेज नहीं चाहिए?  बस, अपनी बेटी 3 कपड़ों में विदा कर दीजिएगा,’ राहुल ने अपील की.

‘पर तुम्हारे मातापिता भी आ जाते, तभी बात पक्की करते,’ वे असमंजस में पड़ कर बोलीं. इतने बड़े घर से बेटी का रिश्ता मांगा जाता देख वे थोड़ी हतप्रभ थीं, साथ ही उन्हें खुशी भी थी कि बेटी इतने बड़े संपन्न घर जा कर चैन से जिंदगी बसर करेगी.

‘हमारी मौम तो अब रही नहीं. हां, डैडी हैं, पर वे इस समय बिजनैस के सिलसिले में हौंगकौंग गए हुए हैं. सो, उन का आना तो फिलहाल संभव नहीं है. अपने डैडी से मैं खुद मयूरी को मिलाने ले जाऊंगा. तभी शादी का रिसैप्शन दिया जाएगा. अभी तो बस आप इजाजत दे दीजिए, ताकि मैं मयूरी से कोर्टमैरिज कर सकूं. क्योंकि 2 दिनों बाद ही मुझे भी बिजनैस की कई मीटिंग्स अटैंड करने फ्रांस जाना है और फिर शायद जल्दी आना नहीं हो पाएगा.’

‘पर इतनी जल्दी मयूरी का पासपोर्ट वगैरह कैसे बन पाएगा?’ वसुंधरा के मुंह से निकला.

‘वह मैं अरैंज करा दूंगा. मेरी जानपहचान है.’

राहुल ने कहा तो वसुंधरा को फिर इस रिश्ते के लिए न कहने की कोई वजह नहीं दिखी. उसे सबकुछ स्वप्न सा लग रहा था. वसुंधरा अपने रीतिरिवाजों के अनुसार विवाह की रस्में पूरी करवाना चाहती थी. पर पैसे व समय दोनों की बचत करने पर जोर दे कर राहुल कोर्टमैरिज करने के फैसले पर ही अड़ा रहा और दोचार जानपहचान वालों की मौजूदगी में उन लोगों ने एक हलफनामे पर हस्ताक्षर कर के विवाह की फौर्मेलिटीज पूरी कर दीं. वसुंधरा के बहुत मना करने पर भी राहुल डेढ़ लाख रुपए अपने यहां की ‘हक’ की रस्म के नाम पर उन्हें दे ही गया.  क्रमश:

क्या जो हसीन सपने मयूरी देख रही थी वाकई पूरे होने वाले थे या कुछ ऐसा होने वाला था जो कोई सोच भी नहीं सकता था.

मयूरी को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल के बैड पर पाया. उस के एक हाथ में टेप से चिपकी सूई लगी हुई थी और ग्लूकोज चढ़ रहा था. उस ने धीरे से आंखें खोल एक नजर आसपास डाली पर कमजोरी के कारण फिर आंखें बंद कर लीं. कुछ पल तो उसे यह समझने में ही लग गए कि वह वहां कैसे आई…जरूर सुबह मजदूरों ने उसे बेहोश पा कर यहां अस्पताल में ला कर भरती करा दिया होगा. तभी एक नर्स आ कर उस का ब्लडप्रैशर नापने लगी तो उस की आंखें खुल गईं.

नर्स के साथ ही एक डाक्टर भी थे जो उसे होश में आया देख पूछ रहे थे, ‘‘होश आ गया आप को, अब कैसा फील कर रही हैं?’’

‘‘काफी ठीक लग रहा है, मैं यहां आई कैसे?’’

‘‘आप 2 दिनों से बेहोश पड़ी हैं…’’ उस का बीपी चैक करती नर्स ने बताया तो वह चौंक पड़ी.

‘‘2 दिनों से?’’

‘‘जी हां, 2 दिनों से,’’ इस बीच डाक्टर उस की रिपोर्ट भी पढ़ते रहे.

‘‘पर मुझे यहां लाया कौन?’’ वह कमजोर सी आवाज में पूछ उठी.

‘‘वह तो भला हो खान चाचा का, जो आप को कचरे के ढेर के पास से उठा कर यहां लाए थे. वरना कुछ भी हो सकता था. उस की बांह पर से बीपी इंस्ट्रूमैंट की पट्टी खोलती नर्स बोली.’’

‘‘खान चाचा कौन हैं? कहां हैं? वह पूरी बात जानना चाह रही थी.

‘‘हमारे अस्पताल में स्टाफ के चीफ हैं. अभी औपरेशन थिएटर में डाक्टर साहब के साथ हैं, आते ही होंगे,’’ नर्स उसे बता कर अगले मरीज के पास पहुंच गई.

थोड़ी देर बाद ही 45-50 वर्षीय, खिचड़ी बालों वाले खान चाचा, औपरेशन पूरा होने के बाद उस के पास आए. उसे होश में आया देख उन्होंने राहत की सांस ली, ‘‘शुक्र है तुम्हें होश तो आया. अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘बहुत बेहतर, आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं, समझ नहीं पा रही,’’ उन्हें देखती मयूरी बोल उठी.

‘‘बेटा, शुक्रिया मेरा नहीं, समय का अदा करो. हम तो समय पर पहुंच गए थे.’’

‘‘मेरे लिए तो आप ही सबकुछ बन कर आए हैं.’’

‘‘अच्छा छोड़ो, यह बताओ तुम वहां कचरे के ढेर के पास कैसे पहुंच गईं? अपने घर का पता दो, तो तुम्हारे मातापिता को सूचना दूं. परेशान हो रहे होंगे वे लोग. यह तो कहो, मेरा घर वहीं पास में ही है. अपनी नाइट ड्यूटी खत्म कर के मैं वहां से गुजर रहा था, तब तुम्हारे कराहने की आवाज सुनी व बदन में हरकत देखी तो फौरन यहां ले आया.’’

मयूरी को समझ नहीं आ रहा था कि एक अजनबी पर वह कितना यकीन करे. एक बार धोखा खा चुकी थी, अब दोबारा नहीं खाना चाहती थी. पर उस के सामने कोई चारा न था. फिर खान चाचा तो नेक बंदे लग रहे थे. वरना आजकल की स्वार्थी दुनिया में, जहां लोग अपनों की मदद करने में हिचकते हैं, उस जैसी अनजान लड़की के लिए इतनी जहमत हरगिज नहीं उठाते. सो, उस ने संक्षेप में खान चाचा को सबकुछ सचसच बता दिया. वहां से भागते हुए वह तो उस बिल्ंिडग के अंदर पहुंचते ही बेहोश हो कर गिर पड़ी थी. सुबह वहां काम करने वालों ने शायद उसे मरा हुआ समझ कर पुलिस की झंझटों से बचने के लिए थोड़ी ही दूर पर बने कचरे के डलाव के पास डाल दिया होगा.

मयूरी के साथ घटी पूरी दास्तान सुन कर खान चाचा फिक्रमंद हो गए थे. उस की तबीयत थोड़ी संभल जाने पर अस्पताल से छुट्टी करा कर वे उसे अपने साथ अपने घर ले गए, जहां उन की पत्नी साबिया बेगम व बेटी सना थीं. उन्हें पहले ही संक्षेप में सबकुछ बता कर उन्होंने मयूरी को, भारत वापस लौटने तक अपने साथ ही रखने का मशवरा कर लिया था. सो, घर में सब ने उसे हाथोंहाथ लिया. जरा भी पराएपन का एहसास नहीं होने दिया. जानपहचान वालों से उसे अपना दूर का रिश्तेदार बता दिया गया था.

अगले दिन खान चाचा ने मयूरी की तरफ से राहुल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर पासपोर्ट बनवाने के लिए अप्लीकेशन जमा करवा दिया. साथ ही, पूरे घटनाक्रम की एक प्रति भारतीय दूतावास को भी भेज दी.

आगे पढ़ें- रहने के लिए उसे खान चाचा ने…

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रेतीली चांदी- भाग 2: क्या हुआ था मयूरी के साथ

वसुंधरा को बेटी का यों बदलना अच्छा नहीं लगा था. मयूरी अभी भी तरहतरह से खुद को सही साबित करने के लिए तर्क पर तर्क दिए जा रही थी. मांबेटी को इत्मीनान से बात करने के लिए अकेला छोड़, सारा कुछ काम का बहाना बना कर बाहर चली गई थी.

उस के जाते ही वसुंधरा मयूरी से बोली, ‘बेटी, तुम घर से बाहर पहली बार निकली हो. दस तरह के लोग तुम्हें मिलेंगे. जो भी करना बहुत सोचसमझ कर करना. अपनी जरूरत पूरी करना अच्छा है और जरूरी भी पर फुजूलखर्ची नहीं होनी चाहिए. तुम अब कमाने लगी हो तो उस में से कुछ बचत करने की आदत भी डालो. मौडर्न होने में कोई बुराई नहीं है पर याद रखो, जिस्म की खूबसूरती उसे ढकने में ही है, न कि उस की नुमाइश करने में. यह सारा कैसी लड़की है?’

‘बहुत ही अच्छी है मां. अमीर परिवार की है पर घमंड जरा भी नहीं है. मेरी तो वह बहुत अच्छी दोस्त बन गई है,’ और फिर मयूरी उस के परिवार के बारे में विस्तार से बताती रही.

‘इतने अमीर घर की हो कर भी यहां क्यों नौकरी कर रही है?’

‘नौकरी तो वह अपने दम पर कुछ कमाने के लिए करती है. खाली बैठने से तो अच्छा ही है. फिर मां, बड़े लोगों से दोस्ती करने में हर्ज ही क्या है. वास्तव में उसी ने मुझे यह ड्रैस सैंस दिया है.’

‘बेटा, ये सब उच्च वर्गीय अमीरों के चोंचले हैं कि जितना ज्यादा पैसा, उतने ही कम कपड़े,’ मां उसे बीच में टोकती हुई बोली.

‘ओह मां, आप भी क्या बेकार की बातें ले बैठीं. आजकल तो सभी लड़कियां ऐसे ही रहती हैं,’ मयूरी बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, पर आप चाहती हैं कि मैं फिर वही पुरानी बहनजी टाइप बन कर ही रहूं तो ठीक है.’

‘बेटा, मुझे गलत मत समझो. दुनिया चाहे कहीं पहुंच गई हो पर औरत के लिए वह आज भी नहीं बदली है. तुम से बस यही कहना है कि आगे कभी कोई गलत कदम न उठा लेना. बहकाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, संभालने वाला कोई नहीं मिलता. सारा तो अमीर घराने की है. उन के रहनसहन चालचलन और हमारे में बहुत फर्क है.’

वसुंधरा अपनी तरफ से बेटी को तरहतरह से समझा कर लौटती बस से वापस चली गई.

मयूरी ने मां की कुछ बातें समझीं, कुछ को उन के पुराने खयालों की सोच समझ कर एक कान से सुन कर, दूसरे से निकाल दीं. उस की जिंदगी उस की मनमरजी के अनुसार ही चलती रही. मां के समझाने से इतना असर जरूर हुआ कि उस ने कुछ पैसा घर भेजना व कुछ बैंक में जमा कराना शुरू कर दिया.

कुछ दिनों बाद सारा ने उसे बताया कि लंदन से उस के बड़े भाई राहुल बिजनैस के सिलसिले में दिल्ली आने वाले हैं. तब वे 2 दिनों के लिए उस के साथ मसूरी भी जाएंगे. उस ने मयूरी से भी साथ चलने व घूमने के लिए कहा.

‘अच्छा, मां से पूछ कर बताऊंगी.’

मयूरी के सहज ढंग से कहने पर सारा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘क्या दूध पीती बच्ची हो जो ये सब बातें भी अब मां से पूछ कर करोगी? कब तुम्हारी चिट्ठी वहां पहुंचेगी, कब वे जवाब देंगी. कोई फोन तो है नहीं तुम्हारे घर. तब तक तो राहुल भैया सब काम निबटा कर वापस भी जा चुके होंगे.’

उस के हंसी उड़ाने वाले अंदाज में हंसने से मयूरी झेंप गई.

‘नहीं, तब भी. औफिस से भी तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी,’ उस ने खुद का बचाव सा करते हुए कहा तो सारा चुटकी बजाते हुए बोली, ‘उस की तुम फिक्र मत करो, बौस से मैं बात कर लूंगी. वे मेरे डैडी के बहुत अच्छे दोस्तों में से हैं. मैं कहूंगी तो मना नहीं करेंगे.’

आखिर मसूरी घूमने की इच्छा तो मयूरी की भी थी. सो, सारा के जोर देने पर उस ने भी साथ चलने की हामी भर दी.

2 दिनों बाद मयूरी ने राहुल को पहली बार उस तीनसितारा होटल में देखा था जहां उस ने सारा व मयूरी को डिनर के लिए बुलाया था. किसी सीरियस बिजनैसमैन की जगह 25-30 वर्षीय अपटूडेट नौजवान राहुल को देख पहले तो वह उस से बातचीत में थोड़ा सकुचाती रही, पर उन दोनों के मधुर व्यवहार से वह प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी.

खूबसूरत डिजायनर मोमबत्तियों का हलका उजाला, तरहतरह की जलतीबुझती रोशनियां, गूंजता सुरीला संगीत और डांसफ्लोर पर एकदूसरे में खोए से प्रेमी युगल…सब कुछ मयूरी के लिए नए थे. अनजाने ही वह उधर देखती खुद को राहुल के साथ डांसफ्लोर पर थिरकने की कल्पना कर उठी. तभी, मयूरी ने राहुल को अपने सामने खड़ा पाया जो उस की तरफ हाथ बढ़ाए उसे ही देख रहा था.

‘मे आई प्लीज?’

‘पर मुझे डांस नहीं आता,’ वह एकदम घबरा सी गई, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

‘कोई बात नहीं, मेरे साथ आइए, अपनेआप आ जाएगा,’ वह मुसकरा कर बोला.

उस की आवाज की कशिश व देखने का अंदाज मयूरी को अंदर से कहीं कमजोर बना रहा था. तभी सारा ने भी उसे जाने के लिए कहा और लगभग ठेल सा ही दिया. अगले 2 घंटे मयूरी के लिए सपने की दुनिया में सैर करने के समान थे. माहौल का असर उस पर हावी होता जा रहा था. उस का दिल चाह रहा था, काश, यह संगीत कभी न रुके और वह इसी तरह पूरी जिंदगी राहुल के साथ एक लय पर थिरकती उस के करीब बनी रहे. उस के जिस्म से आती भीनीभीनी खुशबू उसे मदहोश बना रही थी.

वहां से लौट कर भी मयूरी राहुल के खयालों में ही खोई रही थी. अगले 2 दिनों का मसूरी ट्रिप भी उस के लिए कई यादगार लमहे छोड़ गया था. राहुल के वापस जाने के बाद मयूरी को सबकुछ कितना खालीखाली सा लगता रहा था. सारा उस के मन की हालत समझ रही थी. और अब गाहेबगाहे उसे राहुल का नाम लेले कर छेड़ने से बाज नहीं आती थी.

ऐसे मौकों पर मयूरी के लाख झुठलाने पर भी उस के लाल होते गाल उस के दिल की भावनाओं की चुगली कर जाते. अनजाने ही उस की आंखों में राहुल जैसा जीवनसाथी पाने का एक छोटा सा सपना पलने लगा था.

सपनों पर किसी देश, समाज या धर्म का बंधन तो होता नहीं. ये तो बस मन में उठती भावनाओं का रूप होते हैं. देशविदेश घूमने की चाह व उच्च सामाजिक रुतबा पाने की ख्वाहिश शायद उस के सपनों के मूल में थी. पर उन की सामाजिक स्थिति के बीच जमीनआसमान का अंतर होने से कभीकभी उसे खुद पर ही झुंझलाहट भी हो आती कि क्यों वह ऐसे सपने देखती ही है जिन के पूरा होने की कोई उम्मीद ही न हो. क्या दोचार दिन साथ घूम लेने से ही वह उस की प्रेयसी हो जाएगी.

राहुल अमीर है, स्मार्ट है. कितने ही बड़ों घरों से उस के लिए रिश्ते आते होंगे. ऐसे में वह तो कहीं भी नहीं ठहरती. किंतु राहुल के सामने आने पर, उस की आंखों में अपने लिए कुछ खास सा भाव देख वह फिर दिल के हाथों मजबूर हो, उस की तरफ एक खिंचाव सा महसूस करने लगती. इधर वसुंधरा भी अब मयूरी के लिए अपनी जातबिरादरी में लड़का ढूंढ़ने लगी थी.

हर 2 महीने बाद राहुल दिल्ली आता तो देहरादून जरूर जाता. तब अकसर ही सारा व मयूरी के साथ कभी मसूरी, कभी सहस्त्रधारा आदि का प्रोग्राम बना कर घूमने निकल जाता. वहां सारा कभी उन्हीं के साथ रहती, कभी अलग घूमने निकल जाती. तब केवल वे दोनों व उन की तनहाइयां ही रह जातीं. पर राहुल ने कभी उस का बेजा फायदा उठाने की कोशिश नहीं की. जिस से मयूरी का उस पर यकीन बढ़ता गया, साथ ही आपस में हंसीमजाक भी. आखिर जाने से एक दिन पहले राहुल ने उस से अपने दिल की बात कह ही दी.

‘मुझ से शादी करोगी?’

इतने दिनों से जो बात उस के ख्वाबोंखयालों में मंडराती रहती थी, आज हकीकत में सुन कर पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ, फिर मयूरी की पलकें झुक गईं और होंठों पर एक लजाई हुई मुसकराहट छा गई थी.

‘कुछ तो कहो?’ उस ने उस का चेहरा उठाते हुए पूछा.

‘अच्छा, मां से बात करो,’ कह कर उस ने सिग्नल दे दिया था.

आगे पढ़ें- मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा…

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