वित्त वर्ष 2017-18 खत्म होने में अब केवल एक महीने का समय रह गया है. ऐसे में अगर आप इनकम टैक्स बचाने के लिए निवेश विकल्प की तलाश में है और आपका मन शेयर बाजार में निवेश करने का है तो ULIP और ELSS आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं. हम अपनी इस स्टोरी के माध्यम से आपको बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर इन दोनों में से कौन सा विकल्प आपके लिए ज्यादा बेहतर रहेगा.
पहले जानें कि दोनों विकल्पों में क्या है सामान्य अंतर
टैक्स बचत के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ये दोनों ही विकल्प एक जैसे बिल्कुल भी नहीं होते हैं. इन दोनों में अंतर होता है. दरअसल यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ELSS) दो अलग अलग उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस्तेमाल होने वाले निवेश विकल्प हैं. यूलिप जीवन बीमा से जुड़ा हुआ होता है और इस विकल्प की पेशकश जीवन बीमा कंपनियों की ओर से की जाती है, जबकि ईएलएसएस एक इक्विटी फंड होता है. इन दोनों ही निवेश विकल्पों से आप टैक्स की बचत कर सकते हैं.
दोनों के एक जैसे होने को लेकर भ्रम की स्थिति क्यों?
इन दोनों ही निवेश विकल्पों को लेकर भ्रम इसलिए पैदा होता है क्योंकि दोनों ही इक्विटी मार्केट्स में निवेश करते हैं और दोनों ही टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स हैं.
आपके लिए क्या बेहतर और क्यों?
इन दोनों विकल्पों में आपके लिए क्या बेहतर रहेगा आप खुद तय करें.
ULIP (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान)
यह एक इंश्योरेंस-कम-इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट है. इसे बीमा कंपनियां बेचती हैं.
यूलिप के निवेशकों के पास इक्विटी, डेट, हाइब्रिड और मनी मार्केट फंड्स में पैसा लगाने का विकल्प होता है.
मिनिमम सम एश्योर्ड एनुअल प्रीमियम का 10 गुना (अगर निवेश शुरू करते वक्त उम्र 45 साल से ज्यादा हो तो सात गुना) होता है.
यूलिप में लगभग 60 फीसद शुल्क पहले कुछ वर्षों में ले लिए जाते हैं. इनमें प्रीमियम एलोकेशन चार्ज मौर्टेलिटी चार्ज (इंश्योरेंस कौस्ट), फंड मैनेजमेंट फी, पौलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज, फंड
स्विचिंग चार्ज और सर्विस टैक्स डिडक्शन शामिल होते हैं. बाकी राशि बाजार में निवेश की जाती है.
यूलिप के मामले में अगर आप लौक-इन पीरियड से पहले सरेंडर कर दें तो पहले लिया गया कोई भी डिडक्शन रिवर्स हो जाता है और आपको टैक्स अदा करना पड़ता है. मैच्योरिटी एमाउंट केवल उस सूरत में टैक्स फ्री होता है, जब पौलिसी होल्डर की मृत्यु हो जाए.
यूलिप में लौक-इन पीरियड पांच वर्षों का होता है.
यूलिप में स्विच का विकल्प मिलता है. यानी इक्विटी, डेट, हाइब्रिड आदि विभिन्न फंड्स में आप निवेश की गई रकम का अनुपात बदल सकते हैं.
ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स)
ELSS एक डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स हैं.
इनमें लगाया गया पैसा शेयरों में निवेश किया जाता है.
यह इनवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट्स हैं और इनमें किसी भी तरह का बीमा नहीं मिलता है.
ELSS में केवल एक शुल्क लगता है. इसे फंड मैनेजमेंट फीस या एक्सपेंस रेशियो कहा जाता है. यह अधिकतम 2.5 फीसद हो सकता है और यह लागत स्कीम की नेट एसेट वैल्यू में एडजस्ट की जाती है, न कि अलग से ली जाती है. ईएलएसएस में लौक-इन पीरियड तीन वर्षों का होता है.
ईएलएसएस के मामले में ऐसा कोई विकल्प नहीं होता है.
टैक्स के लिहाज से दोनों में कौन बेहतर
31 जनवरी 2018 तक ये दोनों ही विकल्प आयकर की धारा 80C के तहत कर छूट के दायरे में आते थे. लेकिन अब बजट 2018 के कुछ प्रस्तावों ने ईएलएसएस को यूलिप के मुकाबले थोड़ा कमजोर कर दिया है. यूलिप पर किया गया निवेश अब भी 80C के तहत कर छूट के दायरे में आएगा, लेकिन अब ईएलएसएस में किया गए निवेश पर लौन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू होगा.
VIDEO : हेयरस्टाइल फौर कौलेज गोइंग गर्ल्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
आप अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी वक्त बिताने के साथ किसी एडवेंचर प्लेस पर जाने की इच्छा रखती हैं, तो आपको इसके लिए कुछ स्पेशल सोचना पड़ेगा. चलिए, हम आपकी मदद कर देते हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं डेटिंग के लिए ऐसी शानदार तरकीब, जहां आप अपने पार्टनर के साथ प्यार भरी ट्रिप का मजा भी ले सकती हैं.
थीम पार्क
थीम पार्क्स सिर्फ बच्चों और टीनएजर्स के लिए नहीं है. कल्पना कीजिए कि आप किसी जायंट वील या रोलर कौस्टर जैसे झूले पर अपने पार्टनर के साथ बैठी हैं और वह बीच में रूक जाए तो ये नजारा अलग होगा ना. यहां आप आसपास के नजारे का मजा भी ले सकती हैं.
कैंपिंग
फर्स्ट डेट के लिए यह बेहतरीन आइडिया नहीं है लेकिन अगर आप अपने पार्टनर को अच्छी तरह से जान चुकी हैं और उनके साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिताना चाहती हैं तो कैंपिंग एक अच्छा आइडिया है. आप पार्टनर के साथ पास के कैंपिंग लोकेशन पर जाकर साथ में बारबेक्यू करना, बौनफायर जलाना और नेचर ब्यूटी का मजा उठाना जैसी चीजें कर सकती हैं.
हाइकिंग के साथ पिकनिक
किसी ऊंची पहाड़ की चोटी पर पार्टनर के साथ हाइकिंग टूर पर जाना और फिर पिकनिक मनाना. बात पिकनिक की हो रही है तो अपने साथ चटाई, कुछ खाने-पीने की चीजें, खेलने का कुछ सामान ले जाना न भूलें.
आइस स्केटिंग
भले ही यह आइडिया आपको पुराना लगे लेकिन पार्टनर के साथ स्केटिंग या आइस स्केटिंग के लिए जाकर आप एक दूसरे के साथ बेहतर बौन्ड बना सकती हैं. खासतौर पर तब जब दोनों पार्टनर में से किसी एक को स्केटिंग न आती हो. स्केटिंग करते हुए गिरना, एक दूसरे को संभालना. इन सबके दौरान आप जान पाएंगी कि आपका पार्टनर आपकी कितनी केयर करता है.
VIDEO : गर्मियों के लिए बेस्ट है ये हेयरस्टाइल
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
मशहूर नाटककार शैक्सपीयर ने कहा है कि शराब कामेच्छा तो जगाती है, पर काम को बिगाड़ती भी है. यह बात सौ फीसदी सच है. अगर लंबे समय तक शराब का सेवन किया जाए तो उत्तेजना में कमी आ जाती है. यही नहीं और भी कई तरह की परेशानियां शराब के कारण हो जाती हैं.
इस बारे में सैक्सोलौजिस्ट डाक्टर बीर सिंह का कहना है, ‘‘शराब सैक्स के लिए जहर है. यह बात और है कि शराब पी लेने के बाद चिंता थोड़ी कम हो जाती है और शराब पीने वाला ज्यादा आत्मविश्वास से सहवास कर पाता है. लेकिन कोई व्यक्ति लंबे समय तक शराब का सेवन करता रहे तो वह नामर्दी तक का शिकार हो सकता है.’’
आइए, जानें कि शराब किस तरह से सैक्स के लिए हानिकारक है:
छवि का खराब होना
सुहागरात से पहले शराब का सेवन करने से जीवनसाथी की नजर में छवि खराब होती है. ऐसे में यह भी संभव है कि वह अपने जीवनसाथी का विश्वास पहली ही रात को खो दें. सुहागरात नए रिश्ते की शुरुआत की रात होती है. इस मौके पर अपने जीवनसाथी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें. उसे समझें और खुद को भी उसे समझने का मौका दें. आप के शराब पी कर आने पर वह आप के बारे में अच्छा नहीं सोच पाएगी.
स्पर्म काउंट कम होने की संभावना
शराब के अधिक सेवन और जरूरत से ज्यादा तनाव लेने से पुरुषों के स्पर्म काउंट कम होने की संभावना भी रहती है. हाल ही में एक रिसर्च से पता चला है कि लगातार शराब के सेवन से शुक्राणुओं पर बुरा असर पड़ता है. जितनी अधिक शराब का सेवन उतनी ही खराब क्वालिटी का वीर्य. शराब के दुष्प्रभाव से हारमोन का संतुलन भी बिगड़ता है, जिस से शुक्राणुओं पर बुरा असर पड़ता है.
नशा उतरने पर अफसोस होता है
शराब के सेवन के बाद आप अपने होश में नहीं रहते हैं और कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिस के बारे में आप ने सोचा नहीं होता. नशे में आप को वह महिला भी आकर्षक नजर आती है जिसे आप होश में होने पर पसंद नहीं करते. नशे में आप उस के साथ काफी आगे तक बढ़ जाते हैं. लेकिन जब नशा उतरता है तो पता चलता है कि आप से क्या हो गया, क्योंकि तब आप को वह उतनी आकर्षक नहीं लगती जितनी कि नशे में लग रही थी. तब आप को अफसोस होता है कि आप ने ऐसा क्यों किया.
परफौर्मैंस गिराती है
शराब के नशे में नियंत्रण खो देना आम बात है. खासकर जब 1 या 2 पैग ज्यादा ले लिए जाएं. लेकिन जब आप बिस्तर में पहुंचते हैं तो आप को लगता है कि काश कम पी होती, क्योंकि आप होश में नहीं होते और खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते. इस का असर आप की परफौर्मैंस पर पड़ता है. शायद इसी वजह के चलते शैक्सपीयर ने कहा है कि शराब डिजायर बढ़ाती है पर परफौर्मैंस गिराती है.
खतरे से भरी सैक्स लाइफ
शराब के असर से लोग अकसर अविवेकपूर्ण सैक्स में लिप्त हो जाते हैं. इस का परिणाम सैक्स संक्रमित रोग होना, गर्भ ठहरना और पुराने रिश्तों के टूटने में हो सकता है. इस के अलावा और भी कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं. महिलाओं में शराब की वजह से मासिकधर्म की दिक्कतें शुरू हो जाती हैं. हारमोन संतुलन भी बिगड़ जाता है, जिस का असर सैक्स लाइफ पर पड़ता है. शराब के सेवन से लिवर खराब हो जाता है, पाचनतंत्र पर असर पड़ता है, कैंसर की संभावना बढ़ जाती है. अधिक मात्रा में शराब का सेवन दिल को कमजोर करता है, क्योंकि शराब पीने के बाद रक्तसंचार बढ़ जाता है जिस कारण दिल ज्यादा तेजी से धड़कता है.
नशे की हालत में भूल
नशे की हालत में अकसर गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना भूल जाना आम बात है, क्योंकि आप अपने होश में नहीं होते. आप में सही और गलत के बीच फर्क करने की क्षमता नहीं होती. फिर जब सुबह आंख खुलती है और नशा उतर गया होता है तब एहसास होता है कि हम गलती कर बैठे. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और उस गलती का खमियाजा भुगतना पड़ता है.
गर्भावस्था के लिए हानिकारक
जब आप गर्भवती हो जाएं तो आप का शराब से दूर रहना आवश्यक है, क्योंकि यह एक कटु सत्य है कि अगर मां शराब पी रही है तो बच्चा भी शराब पी रहा है. मां के द्वारा पी गई शराब बच्चे के रक्तप्रवाह का हिस्सा बन जाती है. इस का प्रभाव शिशु के मानसिक विकास पर भी पड़ता है. अधिक शराब के सेवन से शिशु के शरीर का आकार कम हो सकता है.
उत्तेजना में कमी आती है
अधिक शराब पीने से लिंग की उत्तेजना में कमी आ जाती है. इसी तरह यदि महिला ने भी शराब पी हो, तो उस के लिए भी चरम सुख तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है.
सैक्स का मजा किरकिरा हो जाता है
सैक्स क्रिया को ऐंजौय करने और मिलन का समय बढ़ाने के लिए जरूरी है कि आप शराब या अन्य नशीले पदार्थ का सेवन न करें, क्योंकि नशे में आप को जल्दी नींद आ सकती है, जिस से सैक्स का मजा किरकिरा हो सकता है.
कुछ भी करने को मजबूर कर देती है
नशे की लत लोगों को कुछ भी करने को मजबूर कर देती है. नशे के लिए लोग अच्छे और बुरे में फर्क को भूल जाते हैं. जब शराब की लत लगती है तो वे इस के लिए कुछ भी करने से गुरेज नहीं करते. महिलाएं पैसे के लिए अपना शरीर बेचने तक को तैयार हो जाती हैं.
आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में अस्मत के एक ऐसे लुटेरे का मामला सामने आया, जो शराब और सिगरेट देने के एवज में लड़कियों की इज्जत लूटता था. यह व्यक्ति फ्री में शराब और सिगरेट देने के एवज में लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाता था. मन भर जाने पर उन से किनारा कर लेता था. पर उधर लड़कियों को नशा करने की लत लग गई होती थी. तब वे अपनी इस लत को पूरा करने के लिए अपनी मरजी से उस के साथ सैक्स करने के लिए तैयार हो जाती थीं. सिडनी की एक जिला अदालत में उस व्यक्ति पर सैक्स, बलात्कार और नशे का लालच देने जैसे कई मामलों में केस चल रहे हैं.
VIDEO : हेयरस्टाइल फौर कौलेज गोइंग गर्ल्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
आमिर खान ने 14 मार्च को 53वां जन्मदिन सेलिब्रेट किया. जन्मदिन के मौके पर आमिर खान को बौलीवुड के कई सितारों ने शुभकामनाएं दी. फातिमा सना शेख, प्रीति जिंटा, माधुरी दीक्षित और सचिन तेदुंलकर जैसे सितारों ने बधाई दी, लेकिन बौलीवुड अभिनेत्री ने इंस्टाग्राम पर जन्मदिन की बधाई देते हुए एक वीडियो शेयर किया.
कैटरीना कैफ के द्वारा शेयर किए गए वीडियो में आमिर खान और कैटरीना कैफ एक साथ थिरकते हुए नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर आमिर खान और कैटरीना कैफ का यह वीडियो वायरल हो गया है. वीडियो को एक दिन में ही 14 लाख 80 हजार से ज्यादा लोग देख चुके हैं.
वीडियो को शेयर करते हुए कैटरीना कैफ ने कैप्शन लिखा, ”जन्मदिन की शुभकामनाएं आमिर खान. अभी बहुत बार एक साथ डांस करना है. इंस्टाग्राम पर स्वागत है.” वीडियो में कैटरीना और आमिर खान ने ट्रैक सूट और टी-शर्ट पहने हुए नजर आ रहे हैं.
वीडियो देखकर पता चलता है कि दोनों डांस प्रैक्टिस कर रहे हैं. यदि आमिर खान के लुक की बात करें तो आमिर खान का लुक उनकी अपकमिंग फिल्म ‘ठग्स औफ हिंदोस्तान’ से प्रेरित है. आमिर बड़ी-बड़ी मूछों के साथ ही लंबे बालों में नजर आ रहे हैं. आमिर खान ने अपने फैंस को तोहफा देते हुए जन्मदिन के दिन इंस्टाग्राम पर अकाउंट बनाया है.
वीडियो में यूजर्स कमेंट कर दोनों की तारीफ कर रहे हैं. एक यूजर ने कमेंट बौक्स में लिखा, आपका डांस शानदार है, आपकी कला लाजवाब है भगवान आपको तरक्की दें. वहीं एक अन्य यूजर ने कमेंट बौक्स में लिखा, काबिले-तारीफ.
‘ठग्स औफ हिंदोस्तान’ में अमिताभ बच्चन के साथ कैटरीना कैफ, फातिमा सना सेख और आमिर खान भी नजर आएंगे. यशराज प्रोड्क्शन के बैनर तले बन रही इस फिल्म का निर्देशन विजय कृष्ण आचार्य कर रहे हैं. फिल्म दिवाली के मौके पर सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी. फिल्म ठग्स औफ हिंदोस्तान की कहानी साल 1839 में प्रकाशित फिलिप मीडोज टेलर की किताब ‘कनफेशंस औफ ए ठग’ पर आधारित है.
VIDEO : हेयरस्टाइल फौर कौलेज गोइंग गर्ल्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
‘ईश्वर की विशेष कृपा से विवाह के 20 साल सफलतापूर्वक गुजर गए,’ उन्होंने बतौर इन्फौर्मेशन, धांसू अचीवमैंट, फांसू फोटो शृंखला के साथ फेसबुक पर गुरिल्ला स्टाइल में घोषणा की, ‘थैंक्स टू ईश्वर.’ यों आप चाहें तो इसे महज सूचना भी मान सकते हैं, धमकी भी और चैलेंज भी. आगे उन्होंने याचना सी करते हुए लिखा, ‘इस मौके पर आप की शुभकामनाओं की दरकार है.’ सूचना दे कर वे लाइक व कमैंट रूप में शुभेच्छाओं का इंतजार करने लगे. शुभेच्छाओं से बल मिलता है. विशेषकर विवाह जैसे मसलों में शुभेच्छाएं शिलाजीत से भी ज्यादा बलवर्द्धक होती हैं.
गौर करने वाली बात यह थी कि उन्होंने 20 साल सफलतापूर्वक कहा. इसे आप व्यंजना में शांतिपूर्वक समझ सकते हैं. गोया एक पिक्चर है, जो 20 वर्षों से चल रही है और पिक्चर अभी बाकी है, मेरे दोस्त. कई दोस्तों ने हैरत जताई. वौव, 20 साल, इतना लंबा पीरियड. रश्क तो होता है. कुछ हतप्रभ हुए, तो कुछ स्मृतियों में खो गए कि उन के अपने कैसे गुजर रहे हैं. कुछ ने ‘कैसे कटे ये दिन, कैसे कटीं ये रातें…’ गुनगुनाते हुए ठंडी आह भरी. दिन हैं कि गुजरने का नाम नहीं लेते. इस से पता चलता है कि विवाह में ईश्वर की विशेष कृपा की कितनी अहमियत है. थैंक्स टू ईश्वर.
ईश्वर अपनी विशेष कृपादृष्टि बनाए रखे, तो 20 क्या, बंदा सात जन्मों तक का रिस्क उठा लेता है. बिन ईश्वर कृपा, 7 मिनट ही सात जन्मों के समान लगते हैं. ऐसे में 20 साल गुजरना अपनेआप में बड़ी परिघटना है. बिग अचीवमैंट है. स्तुत्य है. प्रशंसनीय है. ओलिंपिकनुमा कारनामा है. इस से तो गठबंधन की सरकार चलाना कहीं आसान है, सिर्फ तुष्टीकरण से चल जाती है. शादीशुदा जिंदगी सतत संतुष्टिकरण तक से सफलतापूर्वक नहीं चलती. इसलिए ऐसे मसलों में आदमी स्वयं पर कतई भरोसा नहीं करता. अपने बूते चला ले जाने का कोई मुगालता नहीं पालता.
हालांकि, विवाहपूर्व बड़ा जोश रहता है, दौड़ा ले जाने का. फिर धीरेधीरे दिन गुजरते हैं, विश्वास के आईने पर जमी धूल छंटती है, सबकुछ ईश्वर पर छूटता जाता है. मैं ने इधरउधर खूब खंगाला. मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसे खुद पर भरोसा हो, जिस ने कहा हो कि हमारे प्यार, सहयोग, समर्पण के बल पर विवाह के 20 साल गुजर गए. इस के पीछे कारण शायद यह हो कि ईश्वर पर छोड़ देने से किसी पक्ष को एतराज नहीं होता. वरना एक के श्रेय ले लेने पर दूसरा पक्ष चैलेंज कर सकता है, समर्थनवापसी का ऐलान कर सकता है. चलती सरकार को अल्पमत में ला कर पटखनी दे सकता है.
एक मित्र हैं, जिन्होंने परसों फेसबुक पर लिखा- ‘पता ही नहीं चला, विवाह के 25 साल कैसे गुजर गए.’ इस में ऐसा ध्वनित हो रहा था कि उन्हें ये साल गुजरने की कतई उम्मीद नहीं थी और अब वे खुद यह कल्पना कर हैरान हो रहे हैं कि हा, हू, हाय, उफ, अहा, हुर्रे. आखिर गुजर कैसे गए. एक मित्र तो हर साल मैरिज एनिवर्सरी पर लिखते हैं- ‘जैसे कल ही की बात हो.’ उन का समझ आता है. हादसों को कौन भूल सकता है, भला. कल के से ही लगते हैं. वह तारीख, वह दिन, वह घटना उन के दिमाग में इस कदर फ्रीज हो गई है कि उस के बाद का उन्हें याद ही नहीं. उन्हें रहरह कर लगता रहता है जैसे कल की ही बात है.
कुछकुछ लोगों के दिमाग के पट पर उन की शादी होने की घटना घंटे की तरह टकराती रहती है. अनुगूंज आती रहती है-जैसे कल की ही बात है. सही भी है, जिस से आज प्रभावित हो रहा हो, उस कल को कौन भूल सकता है. पिछले हफ्ते एक मित्र ने मैरिज एनिवर्सरी पर रात 12 बजते ही तूफानी अंदाज में फेसबुक पर दनादन कई तसवीरें अपलोड कर डालीं. या तो उत्साह का अतिरेक था, या फिर एक और साल गुजर जाने की बेतहाशा खुशी कि उन्हें सुबह तक का भी इंतजार नहीं हुआ. मुमकिन है, इस के पीछे शायद यह धारणा भी हो कि विवाह के बाद वह सुबह कभी आती ही नहीं, जिस का इंतजार रहता है, इसलिए जब मानो, तभी सवेरा. आधी रात को सुबह मानने की उलटबांसी वैवाहिक जीवन में ही संभव है. खैर, सिलसिलेवार डाली गई तसवीरों का कुल सार यह था कि शादी के बाद इस बंदे से सुखी व्यक्ति संसार में दूसरा कोई नहीं.
मैं ने चकित होते हुए शुभकामना देने के लिए फोन किया. उन की कौलर ट्यून ‘सुन रहा है तू, रो रहा हूं मैं…’ सुन कर चौंक गया. फोन उठाते ही मैं ने कहा, भई, सुन तो रहा हूं मैं, लेकिन तुम्हें रोते हुए कभी देखा नहीं. वह एकदम रोंआसा सा हो गया, जैसे दुखती नस पर मैं ने हाथ रख दिया हो, वह बोला, आप जैसे मित्रों से ही उम्मीद रहती है कि कम से कम वे तो सुन ही लेंगे. वैसे भी, विवाह लोकल एनेस्थेसिया की तरह होता है, सुन्न में गुजर जाता है. होश आया और जोश गया.
मैं ने दिलासा देने के अंदाज में कहा, ‘सही कह रहे हो, भाई. खुशफहमी में साल गुजर जाते हैं. इसीलिए समझदार कहते हैं, खुशफहमी सफल वैवाहिक जीवन का आधार है.’ वह ‘हूंहूं’ करता रहा.
उन्हें एक बार फिर सांत्वनात्मक बधाई देने के बाद फोन काट कर मैं खुशफहमी पालने लगा, ताकि मेरे अपने आधार को मजबूती मिल सके.
VIDEO : गर्मियों के लिए बेस्ट है ये हेयरस्टाइल
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
राइनर वाइस, बैरी बैरिश और किप थोर्ने को इस साल का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है. गुरुत्त्वीय तरंगों की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को इस साल भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला है. वैज्ञानिक अमेरिका के हैं. इस बार भौतिकी का नोबेल पुरस्कार 3 लोगों को संयुक्त रूप से दिया गया है. पुरस्कार की आधी रकम जरमनी में पैदा हुए वाइस को मिलेगी जबकि आधी रकम थोर्ने और बैरिश में बांटी जाएगी. राइनर वाइस मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी से जुड़े हैं जबकि बैरी बैरिश और किप थोर्ने कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी से जुड़े हैं. सितंबर में गुरुत्वीय तरंगों की खोज में इन तीनों वैज्ञानिकों की अहम भूमिका थी. कई महीनों बाद जब इस खोज का ऐलान किया गया था तब न सिर्फ भौतिक विज्ञानियों में बल्कि आम लोगों में भी सनसनी फैल गई थी. इन तीनों अमेरिकी वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का पता लगाया और अल्बर्ट आइंस्टाइन के सदियों पुराने सिद्धांत को सच साबित किया.
गुरुत्वीय तरंगों की जिस खोज के लिए 3 अमेरिकी वैज्ञानिकों को फिजिक्स के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है, उस खोज में भारतीय वैज्ञानिकों का भी बड़ा हाथ है. कुल 37 भारतीय वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों की खोज का पेपर तैयार करने में अपना योगदान दिया है. हम आज भी नोबेल पुरस्कार पाने में बहुत पीछे हैं, चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो या साहित्य का. लगभग सवा अरब आबादी और करीब 800 भाषाओं वाले देश के खाते में अब तक साहित्य का सिर्फ एक ही नोबेल पुरस्कार मिला है, सौ साल से भी ज्यादा समय बीत गया जब भारत को साहित्य का पहला और इकलौता नोबेल पुरस्कार मिला था. तब से रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य के क्षेत्र में भारत के अकेले नोबेल विजेता हैं.
साहित्य के क्षेत्र में भारत में नोबेल पुरस्कार के सूखे की क्या वजह है. क्या भारत में ऐसा कुछ नहीं लिखा जा रहा है जो दुनिया को अपनी तरफ खींच पाए या फिर भारत में जो लिखा जा रहा है वह दुनिया तक नहीं पहुंच रहा है? क्या कारण है कि भारत में इतने साहित्य लिखे जाने के बावजूद किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिल पाता.
कुछ रोचक तथ्य
नोबेल फाउंडेशन द्वारा स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में वर्ष 1901 में शुरू किया गया यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है. इस पुरस्कार के रूप में प्रशस्तिपत्र के साथ 14 लाख डौलर की राशि प्रदान की जाती है. अल्फ्रेड नोबेल ने कुल 355 आविष्कार किए जिन में 1867 में किया गया डायनामाइट का आविष्कार भी था. नोबेल को डायनामाइट तथा इस तरह के विज्ञान के अनेक आविष्कारों की विध्वंसक शक्ति की बखूबी समझ थी. साथ ही, विकास के लिए निरंतर नए अनुसंधान की जरूरत का भी उन्हें भरपूर एहसास था.
दिसंबर 1896 में मृत्यु से पहले8 अपनी विपुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया. उन की इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिन का काम मानव जाति के लिए सब से कल्याणकारी पाया जाए. स्वीडिश बैंक में जमा इसी राशि के ब्याज से नोबेल फाउंडेशन द्वारा हर वर्ष शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र में सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है. नोबेल फाउंडेशन की स्थापना 29 जून, 1900 को हुई तथा 1901 से नोबेल पुस्कार दिया जाने लगा. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1968 से की गई. पहला नोबेल शांति पुरस्कार 1901 में रेड क्रौस के संस्थापक ज्यां हैरी दुनांत और फ्रैंच पीस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष फ्रेडरिक पैसी को संयुक्तरूप से दिया गया.
अल्फ्रेड नोबेल की मौत के बाद जब उन का वसीयतनामा खोला गया तो उन के परिवार वाले दंग रह गए. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि नोबेल अपनी सारी संपत्ति इन पुरस्कारों के नाम कर जाएंगे. 5 वर्षों तक उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. लेकिन 1901 में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत की गई. पिछले 112 सालों में नोबेल पुरस्कारों की दुनिया में बहुत कुछ हो गया है. यह पुरस्कार केवल जीवित लोगों को ही दिया जा सकता है.
मरणोपरांत पुरस्कार
3 व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया. सब से पहले 1931 में एरिक एक्सल कार्लफेल्ट को साहित्य के लिए और फिर 30 वर्षों बाद 1961 में डाग हामरशोल्ड को शांति पुरस्कार दिया गया. इन दोनों की ही मौत नामांकन और पुरस्कार दिए जाने के बीच हुई. मगर 1974 से नियम बदल कर ऐसा होने की संभावना भी मिटा दी गई. 2011 में कनाडा के राल्फ स्टाइनमन को चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लेकिन जब उन का नाम चुना गया उस वक्त नोबेल कमेटी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि स्टाइनमन की 3 दिन पहले ही मौत हो चुकी है. इस मामले को नोबेल कमेटी ने अपवाद करार दिया.
1948 में महात्मा गांधी का नाम भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना जाना था, लेकिन नामांकन से 2 दिन पहले ही उन की हत्या कर दी गई. उस समय भी कमेटी ने मरणोपरांत पर चर्चा तो की, लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं. कमेटी ने कई बार इस पर खेद भी जताया. महात्मा गांधी को आज तक नोबेल पुरस्कार नहीं मिला. उन्हें यह पुरस्कार न दिया जाना नोबेल पुरस्कारों के इतिहास की सब से बड़ी भूल है. हालांकि महात्मा गांधी 5 बार इस पुरस्कार के लिए नामित किए जा चुके हैं.
17 वर्ष की उम्र में नोबेल
2014 में नोबेल पाने वाली मलाला यूसुफजई इस पुरस्कार की अब तक की सब से युवा विजेता हैं. नोबेल पुरस्कार विजेताओं को चुनने वाली कमेटी इस बात का विशेष ध्यान रखती है कि नोबेल पुरस्कार योग्य काम करने वाले व्यक्ति की उम्र जितनी कम हो उतना अधिक अच्छा होता है. साल 2014 में पाकिस्तान की मलाल यूसुफजई को जब नोबेल पुरस्कार मिला तब उन की उम्र महज 17 साल थी. कैमिस्ट्री में नोबेल पुरस्कार मिलने वाले लोगों की औसत उम्र 58 साल है. जहां अर्थशास्त्र और साहित्य में नोबेल पुरस्कार मिलने वाले लोगों की उम्र क्रमश: 67 और 65 साल है वहीं भौतिकी और शांति में नोबेल पुरस्कार मिलने वाले लोगों की औसत उम्र 56 साल और 61 साल की है. गौरतलब है कि सिर्फ शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वालों की औसत उम्र में गिरावट के अलावा बाकी सभी पुरस्कार वालों की औसत उम्र में वृद्धि देखने को मिली है.
2 बार नोबेल पाने वाले इसी तरह 4 ऐसे लोग भी हैं जिन्हें 2 बार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. अमेरिका के जौन बारडेन को 2 बार भौतिकी के लिए पुरस्कार मिला. पहली बार 1956 में ट्रांजिस्टर के आविष्कार के लिए और दूसरी बार 1972 में सुपरकंडक्टिविटी थ्योरी के लिए. कैमिस्ट्री में 2 बार पुरस्कार मिला ब्रिटेन के फ्रेडेरिक सैंगर को. पहली बार 1958 में इंसुलिन की संरचना को समझने के लिए और दूसरी बार 1980 में.
एक शख्स ऐसे भी हैं जिन्हें 2 अलगअलग क्षेत्रों में पुरस्कार दिया गया है. अमेरिका के लाइनस पौलिंग को 1954 में कैमिस्ट्री के लिए और फिर 1962 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्होंने परमाणु बम के परीक्षण के खिलाफ आवाज उठाई थी.
दौड़ में महिलाएं पीछे
नोबेल पुरस्कार के क्षेत्र में महिलाएं अभी भी बहुत पीछे हैं. मैरी क्यूरी एकमात्र महिला हैं जिन्हें 2 बार नोबेल पुरस्कार मिला, 1903 में रेडियोऐक्टिविटी समझने के लिए फिजिक्स में और 1911 में पोलोनियम और रेडियम की खोज करने के लिए कैमिस्ट्री में. 2012 तक कुल 44 महिलाओं को ही नोबेल पुरस्कार दिया गया है. इन में से 16 विज्ञान के क्षेत्र में हैं, भौतिकी में 2, रसायन शास्त्र में 4 और चिकित्सा में 10. साल 1901 में शुरू हुए नोबेल पुरस्कारों में अभी तक सिर्फ 48 महिलाओं को ही नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
नोबेल पुरस्कार लेने से इनकार
कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने नोबेल पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था. 1964 में फ्रांस की ज्यां पौल सार्त्र ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था. उन का कहना था, ‘‘एक लेखक को खुद को संस्थान नहीं बनने देना चाहिए.’’ इस के बाद 1973 में विएतनाम के ले डुक थो ने देश के राजनीतिक हालात के चलते पुरस्कार लेने से मना कर दिया था. इस के अलावा हिटलर के शासन के दौरान वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार स्वीकारने की अनुमति नहीं थी. 1038 में रिचर्ड कून, 1939 में अडोल्फ बूटेनांट और गेरहार्ड डोमाक को नामांकित किया गया था. दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद ही उन्हें पुरस्कार दिया जा सका, हालांकि पुरस्कार की राशि उन्हें नहीं दी गई.
ज्यादा पुरस्कार किसे
सब से अधिक नोबेल पुरस्कार अमेरिकी लोगों को मिले हैं. भौतिकी में अमेरिका के कुल 222 लोगों को नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं जोकि 47 प्रतिशत के आसपास है. मैडिसिन में कुल 219 अमेरिकी लोगों को नोबेल पुरस्कार मिले हैं जो कुल 51 प्रतिशत है. कैमिस्ट्री में 194 अमेरिकी लोगों को नोबेल मिल चुके हैं जो कुल 41 प्रतिशत के आसपास है. साहित्य में अब तक कुल 111 अमेरिकी लोगों को नोबेल पुरस्कार मिले हैं जो 6 प्रतिशत के आसपास है. इसी तरह शांति और अर्थशास्त्र में क्रमश: 102 और 83 अमेरिकी हस्तियों को नोबेल पुरस्कार मिले हैं.
अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर जरमनी है. इस के बाद ब्रिटेन और फ्रांस का नंबर आता है. इसे संयोग ही कहेंगे कि पुरस्कार लेने वाले अधिकतर लोगों का जन्मदिन 21 मई और 28 फरवरी को होता है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस दिन विद्वान जन्म लेते हैं. नोबेल पुरस्कारों का चयन करने वाली स्वीडिश कमेटी के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार किसी भी स्थिति में 3 से अधिक लोगों को नहीं दिया जा सकता.
साहित्य की खुशबू
भारत में साहित्यिक भाषा बोलने वालों की तादाद 55 करोड़ से ज्यादा है. 10 सब से ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उडि़या 10वें नंबर पर आती है जिसे 3 करोड़ से ज्यादा लोग बोलते हैं. यह भाषायी विविधता सांस्कृतिक विविधता की कोख से जन्मी है. इस लिहाज से देखें तो साहित्य सृजन के लिए भारत में बहुत अच्छा माहौल है. लेकिन नए साहित्य की खुशबू दुनिया तक नहीं पहुंच रही है. दुनिया का सवाल तो बाद में आता है, पहले यह सोचने की जरूरत है कि भारत के एक कोने में रहने वाले लोग दूसरे कोने में रचे जा रहे साहित्य को कितना जानते हैं या उस में कितनी दिलचस्पी लेते हैं? एक भाषा के लोगों तक दूसरी भाषा के साहित्य को पहुंचाने के लिए अनुवाद ही अकेली कड़ी है. इसी के सहारे दुनिया तक भी पहुंच सकते हैं. फिलहाल भारत में यह कड़ी उतनी मजबूत नहीं दिखती, जितनी होनी चाहिए. रवींद्रनाथ टैगोर की जिस कृति ‘गीतांजलि’ ने उन्हें नोबेल दिलाया, वह भी दुनिया तक अनुवाद के जरिए ही पहुंची थी.
भारत में न कहानियों की कमी है और न ही कहने वालों की. सवाल यह है कि भारत के लोग खुद अपने साहित्य और उसे दुनिया तक पहुंचाने को ले कर कितना गंभीर हैं. यहां जरूरत भारत के साहित्य को इस तरह पेश करने की है कि भाषा और संस्कृति के बंधनों से परे दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला शख्स उन्हें महसूस कर सके. अगर साहित्य समाज का आईना है तो भारत में बहुतकुछ ऐसा है जो दुनिया को अपनी तरफ खींचने की ताकत रखता है. लेकिन खींचने वाली इस डोर को और मजबूत करना होगा.
VIDEO : गर्मियों के लिए बेस्ट है ये हेयरस्टाइल
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
नारियल के टुकड़े, लालमिर्चें, कालीमिर्च, बड़ी इलायची, कटा प्याज और साबूत धनिया को ग्राइंड कर के कोल्हापुरी मसाला तैयार कर लें. अब कड़ाही में घी गरम कर के मसाले को अच्छी तरह भूनें और उबली हुई गाजर, बींस, फूलगोभी और हरे मटर के दाने मिलाएं. अब इस में नमक और लालमिर्च पाउडर मिला कर पका लें. धनियापत्ती से सजा कर परोसें.
VIDEO : हेयरस्टाइल फौर कौलेज गोइंग गर्ल्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
अंगरेजों की हुकूमत के दौरान भारत में बग्घियों का चलन शान समझा जाता था. बग्घियों को घोड़े खींचते थे और इन बग्घियों की सजावट पर काफी ध्यान दिया जाता था. इन के कलपुर्जों को तैयार करने के लिए लोहे व तांबे का प्रयोग किया जाता था. उन के बाकी इंटीरियर व सजावट में लकड़ी, पीतल के साथ सोने और चांदी तक का प्रयोग किया जाता था. बग्घियों की सजावट में जिन कपड़ों का प्रयोग होता था वे बेहद खास होते थे. उन पर महीन कसीदाकारी भी होती थी. बग्घियों को शाही सवारी का दरजा हासिल था. ज्यादातर अंगरेज अफसर, राजारजवाड़े और नवाब इन का प्रयोग करते थे. मोटरकार जब चलन में आ गई थी, उस के बाद भी शान दिखाने के लिए बग्घियों की सवारी की जाती थी. बग्घियों और सामान्य कार में अंतर यह होता है कि बग्घी कार से ऊंची होती है. बैठने वाले को अपने ऊंचे होने का एहसास होता रहता है.
देश के कार बाजार में लंबे समय तक एंबैसेडर कार का जलवा था. सालोंसाल तक एंबैसेडर कार चली. पुरानी कार की भी रीसेल वैल्यू होती थी. 1980 के बाद देश के कार बाजार में मारुति कार और जिप्सी जीप का दबदबा बढ़ने लगा. मारुति कार की खासीयत तेज रफ्तार और ईंधन की कम खपत थी. मारुति की छोटी सी कार ने देश के लोगों का दिल जीत लिया. मारुति की तरह दूसरी कार कंपनियों ने भी छोटी कार के बाजार को बढ़ा दिया. मारुति की छोटी कार ने एंबैसेडर को हाशिए पर ढकेल दिया. मारुति कार का यह दौर एक दशक तक बाजार पर छाया रहा.
मारुति को टक्कर देने के लिए भारतीय कार कंपनी टाटा ने लखटकिया कार नैनो को बाजार में उतारा. यह देश में एक कुतूहल का विषय था. बाजार में नैनो अपना खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई. इस का प्रमुख कारण यह था कि भारतीय मानस बड़ी कारों को तलाश रहा था जो बग्घियों की तरह शान की सवारी का प्रतीक बन सकें. छोटी कार का सिमटता बाजार
भारत में मारुति 800 कार लाने वाली कंपनी को अब एसयूवी कार ले कर आना पड़ा. मारुति ने अगले एक साल में जिन 6 नई कारों के मौडल्स को बाजार में लाने की योजना बनाई है उन में 4 कारें एसयूवी होंगी. इस का कारण यह है कि साल 2017 में मारुति की छोटी कारों की बिक्री में 4 फीसदी की कमी आई है, जबकि उस की एसयूवी गाडि़यों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. भारतीय बाजार का यह हाल तब था जब यहां का बाजार नोटबंदी व जीएसटी की चुनौतियों से जूझ रहा था. कार बाजार को देखें तो एसयूवी में 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. मजेदार बात यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेशों में एसयूवी गाडि़यों की डिमांड ज्यादा है. इस का कारण एसयूवी गाडि़यों को शान की सवारी माना जाना है. इस से दबंगई भी झलकती है. देश के कार बाजार की सभी कंपनियां अब बाजार में सब से ज्यादा एसयूवी गाडि़यां उतारने की तैयारी में हैं. मारुति, हुंडई, फोर्ड, रेनो, टोयटा जैसी कंपनियां अपनी 6 एसयूवी गाडि़यां जल्दी ही लौंच करने की तैयारी में हैं. इस का कारण यह माना जा रहा है कि नई कार खरीदने वाले ज्यादातर युवा हैं और एसयूवी उन की पहली पसंद बनती जा रही है.
रेनो भारतीय कार बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए एसयूवी बाजार पर ही ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहती है. कंपनी ने बाजार में अपनी बढ़त बनाने के लिए कैप्चर को लौंच किया जो विदेश में एसयूवी ब्रैंड में काफी मशहूर है. 10 से 14 लाख रुपए की कीमत वाली कैप्चर की प्रतिस्पर्धा हुंडई की क्रेटा व महिंद्रा की स्कौर्पियो से होगी. दबंगईपसंद लोगों की पहचान बन रही एसयूवी
हुंडई और टोयटा भी नए मौडल के साथ बाजार में हैं. हुंडई भी एसयूवी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रही है. टोयटा एसयूवी के बाजार में नएनए प्रयोग कर रही है. ये दोनों कंपनियां देश के मध्य वर्ग को एसयूवी से जोड़ने की योजना के साथ आ रही हैं. टोयटा की रश सस्ती एसयूवी होगी. हुंडई की क्रेटा भारतीय बाजार में बड़े वर्ग के लोगों द्वारा पसंद की जा रही है. एसयूवी टैक्नोलौजी में आगे होने के बाद भी डस्टर के मुकाबले इंटीरियर पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही जिस से वह खरीदारों को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पा रही है.
कार कंपनियां अब यह मान कर चल रही हैं कि भारत के कार बाजार में थ्री बौक्स कार सेडान का वापस आना मुश्किल है. ऐसे में एसयूवी गाडि़यां ही सब से अधिक बिकेंगी. भारतीय बाजार में प्रमुख कार कंपनी टाटा मोटर्स ने एक साल में 2 एसयूवी हैक्सा और नैक्सन पेश कर ग्राहकों को लुभाया है. टाटा जल्द ही इसी वर्ग की 2 नई गाडि़यां लाने की तैयारी में है. भारतीय कार के खरीदारों में 2 तरह के लोग हैं. एक वर्ग एसयूवी गाडि़यों की आड़ में अपनी दबंगई, स्पीड और शान को दिखाना चाहता है. ऐसे लोग ज्यादातर काले रंग की गाडि़यां पसंद करते हैं. एक समय में काला रंग माफियाओं को पसंद आने लगा था. उत्तर प्रदेश और बिहार के तमाम बाहुबली इस का प्रयोग करते थे. ऐसे में समाज के दूसरे वर्ग ने काले रंग की कारों से परहेज करना शुरू कर दिया. सेडान महंगी होने के बाद भी कम पसंद की जा रही है. इस की एक प्रमुख वजह सड़क की कंडीशन भी होने लगी है. जिन प्रदेशों की सड़कें सही नहीं हैं वहां के लोग एसयूवी को प्रमुखता दे रहे हैं. पहाड़ी प्रदेशों में रहने वालों को भी बड़े टायर और बड़ी ताकत वाली एसयूवी कारें ज्यादा पसंद हैं. सरकारी खरीद में अब एंबैसेडर की खरीद बंद हो गई है. वहां एसयूवी की जगह लग्जरी गाडि़यां पसंद की जा रही हैं.
पहले जहां कार खुद ही शान की सवारी होती थी, अब उस में भी अलगअलग वर्ग हो गए हैं. एसयूवी में 2 तरह के मौडल हैं. कम कीमत वाली क्रौसओवर एसयूवी कार कहलाती है. इस की कीमत 8 लाख से 14 लाख रुपए तक होती है. 12 से 20 लाख रुपए वाली प्रीमियम एसयूवी कार कहलाती है. सब से महंगी प्रीमियम एसयूवी 22 लाख रुपए से शुरू होती है. ऐसे में केवल एसयूवी के आरंभिक मौडल की कार खरीद कर उसे शान की सवारी कहना मुश्किल होगा. उस में भी अलगअलग वर्ग हैं. कुल मिला कर कार बाजार में एसयूवी कारों की धूम है. छोटी कार का बाजार अब सिमटता जा रहा है.
VIDEO : हेयरस्टाइल फौर कौलेज गोइंग गर्ल्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
आमतौर पर त्वचा रोग विशेषज्ञ ठंडे पानी से चेहरा धोने की सलाह देते हैं. दिन में दो से तीन बार ठंडे पानी से चेहरा धोने पर ताजगी बनी रहती है और त्वचा की नमी भी खोने नहीं पाती है.
चेहरे पर पानी के छींटे मारने से काफी आराम मिलता है लेकिन क्या आप जानते हैं नारियल पानी से चेहरा धोना, सामान्य ठंडे पानी की तुलना में कहीं अधिक फायदेमंद होता है. नारियल पानी से चेहरा धोने पर एक ओर जहां चेहरे की नमी बनी रहती है वहीं त्वचा से जुड़ी कई गंभीर समस्याओं के होने का खतरा भी कम हो जाता है. इसके अलावा नारियल पानी में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल तत्व भी त्वचा को विभिन्न प्रकार के संक्रमण से सुरक्षित रखने में मददगार हैं.
नारियल पानी से चेहरा धोने के फायदे
1. अगर आपके चेहरे पर बहुत अधिक दाग-धब्बे हैं और आपको झांइयों की शिकायत है तो नारियल पानी से चेहरा धोना आपके लिए बहुत फायदेमंद होगा. इससे चेहरे के दाग आसानी से साफ हो जाते हैं और चेहरे का नेचुरल ग्लो भी बना रहता है.
2. अगर आपके चेहरे पर बहुत अधिक मुंहासे हो गए हैं तो भी नारियल पानी से चेहरा धोना फायदेमंद रहेगा. गर्मियों में ऑयली स्किन वालों को खासतौर पर ये शिकायत हो जाती है. ऐसे में नारियल पानी का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है.
3. आंखों के नीचे के काले घेरों को दूर करने के लिए भी नारियल पानी का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहेगा. रूई के फाहे को नारियल पानी में डुबोकर आंखों के नीचे लगाएं. रोजाना ऐसे करने पर कुछ ही दिनों में आंखों के नीचे के काले घेरे दूर हो जाएंगे.
4. अगर आपको ताजी-निखरी त्वचा के साथ ही गोरी रंगत भी चाहिए तो आपके लिए नारियल पानी का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहेगा.
5. गर्मियों में अक्सर टैनिंग की समस्या हो जाती है. ऐसे में झुलसी त्वचा में निखार लाने के लिए भी नारियल पानी से चेहरा धोना फायदेमंद रहेगा.
अगर हर रोज नारियल पानी से चेहरा धोना संभव न हो तो नारियल पानी में रूई के फाहे को डुबोकर चेहरे को पोंछ लें. ये भी फायदेमंद रहेगा.
VIDEO : गर्मियों के लिए बेस्ट है ये हेयरस्टाइल
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
मेहमानों, दोस्तों का दिल जीतना है तो खाना सर्व करने से पहले निम्न सुझावों को अनदेखा न करें :
जगह
आप सब से पहले जगह तय कर लें कि आप अपने मेहमानों को खाना कहां खिलाना पसंद करेंगी. यदि मेहमानों की संख्या कम हो तो डाइनिंग टेबल का उपयोग करें.
टेबल क्लाथ
यदि आप डाइनिंग टेबल काम में ले रही हों तो उसे ग्लैमरस लुक देने के लिए सिल्क, साटिन, ब्रोकेड के बार्डर वाले मेजपोश, गोटे की किनारी वाले रनर या कशीदे के काम किए मेजपोश सुंदर लगेंगे.
रनर
टेबल क्लाथ पर रखे आकर्षक रनर गरम सामान से आप की टेबल की रक्षा करते हैं. ये रनर टेबल के मध्य में लंबाई में बिछाए जाने चाहिए. यदि ये टेबल क्लाथ के कंट्रास्ट कलर में हों तो टेबल की खूबसूरती दोगुनी हो जाएगी. गरम सर्विंग डिश रखने के लिए लकड़ी के स्टैंड का इस्तेमाल करते हैं, जिसे हम ‘ट्राईवेट्स’ कहते हैं.
कटलरी
सर्वप्रथम आप तय कर लें कि कौन सी कटलरी इस्तेमाल करने वाली हैं. फिर हर सीट के सामने डाइनिंग मैट्स बिछाएं. डिनर प्लेट्स को मैट्स के मध्य में रखें. सलाद और चपाती की प्लेट डिनर प्लेट के बाईं तरफ रखें. छुरी और गिलास भी दाईं ओर रखें.
नैपकिन
डाइनिंग टेबल पर नैपकिन डिनर प्लेट के बाईं ओर कांटों के नीचे या डिनर प्लेट के ऊपर रखा जा सकता है. नेपकिन आप चौकोर, फोल्ड, क्लासिक फोल्ड, नौट फोल्ड, रिंगफोल्ड या डेजी फोल्ड भी बना सकती हैं.
टेबल की सजावट
टेबल के मध्य में ताजे फूलों का गुलदस्ता रख कर माहौल को खुशनुमा बना सकती हैं.
टेबल पर एक साल्ट एंड पेपर शेकर अर्थात नमकमिर्चदानी अवश्य रखें.
एक सुंदर से बाउल में अचार पहले से ही निकाल कर रख दें.
यदि रात का खाना हो तो कैंड्ल्स लगा कर आप उसे कैंड्ललाइट डिनर का लुक दे सकती हैं.
एक कांच के बरतन में पानी डाल कर कुछ गुलाब की पत्तियां डाल दें और उस में फ्लोटिंग दीए जला दें. ये आप की डाइनिंग टेबल को नया लुक प्रदान करेंगे.
खुशबूदार अगरबत्तियां जला दें. इस से वहां के वातावरण में भीनीभीनी खुशबू आती रहेगी.
कैसे सर्व करें?
खाना हमेशा बाईं ओर से परोसा जाता है. डेजर्ट हमेशा सब से अंत में सर्व किया जाता है.
खाने की प्लेट्स हमेशा दाहिनी ओर से हटाई जाती हैं.
मेजबान होने के नाते सब से अंत में स्वयं को सर्व करना आप की समझदारी को दर्शाता है.
VIDEO : गर्मियों के लिए बेस्ट है ये हेयरस्टाइल
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.