Anupama को धक्का देगी बड़ी आध्या, अपने पौप्स की मौत का लगाएगी आरोप

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) में लीप आने के कारण कहानी का ट्रैक बदलता हुआ नजर आ रहा है. सीरियल में कई नए किरदार जुड़ गए हैं. तो कहानी का फोकस अनुपमा और आध्या पर ही दिखाया जा रहा है. इस सीरियल के कई फैंस इस शो को अब बोरिंग बता रहे हैं, कुछ लोगों का कहना है कि कहानी में अब कुछ नया नहीं बचा है, वहीं घिसीपिटी मांबेटी की कहानी का ट्रैक चल रहा है, शो में पहले जो दमदार किरदार थे, उनका पत्ता कट चुका है. तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें अनुपमा की कहानी पसंद आ रही है. तो चलिए बताते हैं, इस शो के लेटेस्ट एपिसोड में क्या होने वाला है.

इस सीरियल में अनुज और अनुपमा की जोड़ी को दर्शक बेहद पसंद करते हैं, लेकिन अभी इस कहानी में यह जोड़ी कहीं भी नजर नहीं आ रही है. शो में आध्या और अनुपमा आमनेसामने आ चुके हैं. हालांकि अनुपमा बड़ी आध्या को देखते ही पहचान गई है कि वह उसकी छोटी अनु है. अब लेटेस्ट एपिसोड में आप देखेंगे कि आध्या यानी राही अपनी मां का दिल तोड़ देगी. वह अपने मां के जीते ही उसको मरा हुआ मानेगी. इतना ही नहीं, अनुपमा पर अनुज की मौत का आरोप भी लगाएगी.

घाट पर अनुपमा का श्राद्ध करेगी आध्या

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा प्रेम की मदद से उस आश्रम में पहुंच जाती है, जहां पर उसकी छोटी अनु यानी राही रहती है लेकिन राही को वहां नहीं देखकर वह तड़प जाती है. अनुपमा राही की तलाश में घाट पर पहुंच जाती है. यहां पर वह अपनी बेटी को देखकर बेहद खुश होती है और उसे गले लगाने के लिए दौड़ती है. लेकिन राही अपनी मां को धक्का देती है और घाट किनारे अनुपमा का श्राद्ध करती है.

अनु की रसोई में  मिलावट

दूसरी तरफ प्रेम उसे बहुत समझाता है, लेकिन राही उसकी एक नहीं सुनती है और अनुपमा के खिलाफ कहती है. अपनी बेटी की इस नफरत को देख अनुपमा टूट जाती है. शो में आप आगे ये भी देखेंगे कि अनुपमा के बिजनेस में कई दिक्कतें आती हैं. मसाले में मिलावट की वजह से उसका सारा आर्डर कैंसिल हो जाता है. दूसरी तरफ अनु की रसोई की औरतें भी काम करने से मना कर देती हैं.

अपनी बेटी के सामने गिड़गिड़ाएगी अनुपमा

जिस वजह से बा उनसे बहस करने लगती हैं. दूसरी तरफ अपनी बेटी से इतना बेइज्जत होने के बाद भी अनुपमा आध्या से उसकी नाराजगी की वजह पूछती है. तो वह कहती है कि उसकी वजह से राही को घर छोड़ना पड़ा. वह अपने पौप्स अनुज की मौत का जिम्मेदार अनुपमा को ठहराती है. ये सब सुनकर अनुपमा अपनी बेटी के सामने गिड़गिड़ाती है. अब शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या राही अनुपमा को माफ करेगी या उसकी नफरत बढ़ती ही जाएगी?

पट्टेदार ननुआ : पटवारी ने कैसे बदल दी ननुआ और रनिया की जिंदगी

लेखक- डा. प्रमोद कुमार अग्रवाल

ननुआ और रनिया रामपुरा गांव में भीख मांग कर जिंदगी गुजारते थे. उन की दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त भी नहीं हो पाता था. ननुआ के पास हरिजन बस्ती में एक मड़ैया थी. मड़ैया एक कमरे की थी. उस में ही खाना पकाना और उस में ही सोना.

मड़ैया से लगे बरामदे में पत्तों और टहनियों का एक छप्पर था, जिस में वे उठनाबैठना करते थे. तरक्की ने ननुआ की मड़ैया तक पैर नहीं पसारे थे, पर पास में सरकारी नल से रनिया को पानी भरने की सहूलियत हो गई थी. गांव के कुएं, बावली या तो सूख चुके थे या उन में कूड़ाकचरा जमा हो गया था.

एक समय ननुआ के पिता के पास 2 बीघे का खेत हुआ करता था, पर उस के पिता ने उसे बेच कर ननुआ की जान बचाई थी. तब ननुआ को एक अजीबोगरीब बीमारी ने ऐसा जकड़ा था कि जिला, शहर में निजी अस्पतालों व डाक्टरों ने मिल कर उस के पिता को दिवालिया कर दिया था, पर मरते समय ननुआ के पिता खुश थे कि वे इस दुनिया में अपने वंश का नाम रखने के लिए ननुआ को छोड़ रहे थे, चाहे उसे भिखारी ही बना कर.

ननुआ की पत्नी रनिया उस पर लट्टू रहती थी. वह कहती थी कि ननुआ ने उसे क्याकुछ नहीं दिया? जवानी का मजा, औलाद का सुख और हर समय साथ रहना. जैसेतैसे कलुआ तो पल ही रहा है.

गांव में भीख मांगने का पेशा पूरी तरह भिखारी जैसा नहीं होता है, क्योंकि न तो गांव में अनेक भीख मांगने वाले होते हैं और न ही बहुत लोग भीख देने वाले. गांव में भीख में जो मिलता है, उस से पेटपूजा हो जाती है, यानी  गेहूं, चावल, आटा और खेत से ताजी सब्जियां. कभीकभी बासी खाना भी मिल जाता है.

त्योहारों पर तो मांगने वालों की चांदी हो जाती है, क्योंकि दान देने वाले उन्हें खुद ढूंढ़ने जाते हैं. गांव का भिखारी महीने में कम से कम 10 से 12 दिन तक दूसरों के खेतखलिहानों में काम करता है. गांव के जमींदार की बेगारी भी. कुछ भी नहीं मिला, तो वह पशुओं को चराने के लिए ले जाता है, जबकि उस की बीवी बड़े लोगों के घरों में चौकाबरतन, पशुघर की सफाई या अन्न भंडार की साफसफाई का काम करती है. आजकल घरों के सामने बहती नालियों की सफाई का काम भी कभीकभी मिल जाता है. ननुआ व रनिया का शरीर सुडौल था. उन्हें काम से फुरसत कहां? दिनभर या तो भीख मांगना या काम की तलाश में निकल जाना.

गांव में सभी लोग उन दोनों के साथ अच्छे बरताव के चलते उन से हमदर्दी रखते थे. सब कहते, ‘काश, ननुआ को अपना बेचा हुआ 2 बीघे का खेत वापस मिल जाए, तो उसे भीख मांगने का घटिया काम न करना पड़े.’

गांव में एक चतुर सेठ था, जो गांव वालों को उचित सलाह दे कर उन की समस्या का समाधान करता था. वह गांव वालों के बारबार कहने पर ननुआ की समस्या का समाधान करने की उधेड़बुन में लग गया.

इस बीच रामपुरा आते समय पटवारी मोटरसाइकिल समेत गड्ढे में गिर गया. उसे गंभीर हालत में जिला अस्पताल ले जाया गया. वहां से उसे तुरंत प्रदेश की राजधानी के सब से बड़े सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया. पटवारी की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी और डाक्टरों ने उसे 6 महीने तक बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी थी. पटवारी की पत्नी मास्टरनी थी और घर में और कोई नहीं था.

पटवारी की पत्नी के पास घर के काम निबटाने का समय नहीं था और न ही उसे घर के काम में दिलचस्पी थी. फिर क्या था. सेठ को हल मिल गया. उस की सलाह पर गांव की ओर से रनिया को पटवारी के यहां बेगारी के लिए भेज दिया गया. वह चोरीछिपे ननुआ को भी पटवारी के घर से बचाखुचा खाना देती रही. अब तो दोनों के मजे हो रहे थे.

पटवारी रनिया की सेवा से बहुत खुश हुआ. उस ने एक दिन ननुआ को बुला कर पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी औरत की सेवा से खुश हूं. मैं नहीं जानता था कि घर का काम इतनी अच्छी तरह से हो सकता है. मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूं. कहो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?’’

सेठ के सिखाए ननुआ ने जवाब दिया, ‘‘साहब, हम तो भटकभटक कर अपना पेट पालते हैं. आप के यहां आने पर रनिया कम से कम छत के नीचे तो काम कर रही है, वरना हम तो आसमान तले रहते हैं. हम इसी बात से खुश हैं कि आप के यहां रनिया को काम करने का मौका मिला.’’

‘‘फिर भी तुम कुछ तो मांगो?’’

‘‘साहब, आप तो जानते ही हैं कि गांव के लोगों को अपनी जमीन सब से ज्यादा प्यारी होती है. पहले मेरे पिता के पास 2 बीघा जमीन थी, जो मेरी बीमारी में चली गई. अगर मुझे 2 बीघा जमीन मिल जाए, तो मैं आप का जिंदगीभर एहसान नहीं भूलूंगा.’’

‘‘तुम्हें तुम्हारी जमीन जरूर मिलेगी. तुम केवल मेरे ठीक होने का इंतजार करो,’’ पटवारी ने ननुआ को भरोसा दिलाया.

पटवारी ने बिस्तर पर पड़ेपड़े गांव की खतौनी को ध्यान से देखा, तो उस ने पाया कि ननुआ के पिता के नाम पर अभी भी वही 2 बीघा जमीन चढ़ी हुई है, क्योंकि खरीदार ने उसे अभी तक अपने नाम पर नहीं चढ़वाया था. पहले यह जमीन उस खरीदार के नाम पर चढ़ेगी, तभी सरकारी दस्तावेज में ननुआ सरकारी जमीन पाने के काबिल होगा. फिर सरकारी जमीन ननुआ के लिए ठीक करनी पड़ेगी. उस के बाद सरपंच से लिखवाना होगा. फिर ननुआ को नियमानुसार जमीन देनी होगी, जो एक लंबा रास्ता है.

पटवारी जल्दी ठीक हो गया. अपने इलाज में उस ने पानी की तरह पैसा बहाया. वह रनिया की सेवा व मेहनत को न भूल सका.

पूरी तरह ठीक होने के बाद पटवारी ने दफ्तर जाना शुरू किया व ननुआ को जमीन देने की प्रक्रिया शुरू की. बाधा देने वाले बाबुओं, पंच व अफसरों को पटवारी ने चेतावनी दी, ‘‘आप ने अगर यह निजी काम रोका, तो मैं आप के सभी कामों को रोक दूंगा. इन्हीं लोगों ने मेरी जान बचाई है.’’

पटवारी की इस धमकी से सभी चौंक गए. किसी ने भी पटवारी के काम में विरोध नहीं किया. नतीजतन, पटवारी ने ननुआ के लिए जमीन का पट्टा ठीक किया. आखिर में बड़े साहब के दस्तखत के बाद ही राज्यपाल द्वारा ननुआ को 2 बीघा जमीन का पट्टा दे दिया गया. नए सरकारी हुक्म के मुताबिक पट्टे में रनिया का नाम भी लिख दिया गया.

गांव वाले ननुआ को ले कर सेठ के पास गए. ननुआ ने उन के पैर छुए. सेठ ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तो तुम्हारा सिर्फ आधा काम हुआ है. ऐसे तो गांव में कई लोगों के पास परती जमीनों के पट्टे हैं, पर उन के पास उन जमीनों के कब्जे नहीं हैं. बिना कब्जे की जमीन वैसी ही है, जैसे बिना गौने की बहू.

‘‘पटवारी सरकार का ऐसा आखिरी पुरजा है, जो सरकारी जमीनों का कब्जा दिला सकता है. वह जमींदारों की जमीनें सरकार में जाने के बाद भी इन सरकारी जमीनों को उन से ही जुतवा कर पैदावार में हर साल अंश लेता है.

‘‘पटवारी के पास सभी जमीन मालिकों व जमींदारों की काली करतूतों का पूरा लेखाजोखा रहता है. ऊपर के अफसर या तो दूसरे सरकारी कामों में लगे रहते हैं या पटवारी सुविधा शुल्क भेज कर उन्हें अपने पक्ष में रखता है.

‘‘पटवारी ही आज गांव का जमींदार है. और वह तुम्हारी मुट्ठी में है. समस्या हो, तो रनिया के साथ उस के पैर पड़ने चले  जाओ.’’ ननुआ को गांव वालों के सामने जमीन का कब्जा मिल गया. गांव में खुशी की लहर दौड़ गई.

पटवारी ने घोषणा की, ‘‘इस जमीन को और नहीं बेचा जा सकता है.’’ अब ननुआ के लिए पटवारी ही सबकुछ था. उस का 2 बीघा जमीन पाने का सपना पूरा हो चुका था.

ननुआ व रनिया ने मिल कर उस बंजर जमीन को अपने खूनपसीने से सींच कर उपजाऊ बना लिया, फिर पटवारी की मदद से उसे उस ऊबड़खाबड़ जमीन को बराबर करने के लिए सरकारी मदद मिल गई.

पटवारी ने स्थानीय पंचायत से मिल कर ननुआ के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत घर बनाने के लिए सरकारी मदद भी मुहैया करा दी.

ननुआ व रनिया अपने 2 बीघा खेत में गेहूं, बाजरा, मक्का के साथसाथ दालें, तिलहन और सब्जियां भी उगाने लगे. किनारेकिनारे कुछ फलों के पेड़ भी लगा लिए. मेंड़ पर 10-12 सागौन के पेड़ लगा दिए. उन का बेटा कलुआ भी पढ़लिख गया. उन्होंने अपने घर में पटवारी की तसवीर लगाई और सोचा कि कलुआ भी पढ़लिख कर पटवारी बने.

इन लक्षणों से पता करें कि बढ़ने लगा है आपका थायरायड लेवल, जानें इसे कंट्रोल करने के तरीके

थायरायड एक छोटी, तितली के आकार की ग्रंथि है जो आप की गर्दन के सामने त्वचा के नीचे स्थित होती है. यह आप के अंतःस्रावी तंत्र का एक हिस्सा है और थायरोक्सिन (T4) और ट्राईआयोडोथायोनिन (T3) जैसे थायरायड हार्मोन का उत्पादन और रिलीज करके आपके शरीर के कई महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित
करता है .इस के द्वारा शरीर के मेटाबौलिज्म (शरीर में एनर्जी के उपयोग और उत्पादन की प्रक्रिया) को नियंत्रित किया जाता है. अगर थायराइड ग्लैंड सामान्य से अधिक या कम हार्मोन बनाने लगती है तो यह थायराइड से जुड़ी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है. थायराइड से जुड़ी बीमारियों में सबसे आम हैं हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरौइडिज़्म. इन बीमारियों की शुरुआत में कुछ लक्षण दिखाई देते हैं, जिन्हें जानना जरूरी है ताकि समय पर इलाज हो सके.

आइए जानते हैं थायराइड के लक्षणों के बारे में मैरिंगो एशिया हौस्पिटल,
गुरुग्राम की डा मुज़म्मिल सुल्तान कोका से ;

1. थकान और कमजोरी

थायराइड के शुरुआती लक्षणों में थकान और कमजोरी होना बहुत ही आम बात है.
हाइपोथाइरॉइडिज़्म (जब शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी होती है) में
व्यक्ति को बिना किसी मेहनत के भी थकान महसूस हो सकती है. शरीर को ऊर्जा
प्राप्त करने में दिक्कत होती है, जिससे व्यक्ति हर समय थका हुआ और सुस्त
महसूस करता है. यह थकान दिनभर बनी रह सकती है और व्यक्ति को अपने
रोजमर्रा के काम करने में कठिनाई महसूस हो सकती है.

2. वजन में बदलाव

थायराइड के असंतुलन से वजन में तेजी से बदलाव आ सकता है.
हाइपोथाइरौइडिज़्म में व्यक्ति का वजन अचानक से बढ़ सकता है, जबकि
हाइपोथायरायडिज्म (जब शरीर में थायराइड हार्मोन की अधिकता होती है) में
व्यक्ति का वजन कम हो सकता है. वजन में बिना किसी स्पष्ट कारण के बदलाव
होने पर यह संकेत हो सकता है कि आपकी थायराइड ग्रंथि ठीक से काम नहीं कर
रही है.

3. बाल झड़ना और त्वचा का सूखापन

थायराइड की समस्या से बालों का झड़ना भी हो सकता है. शरीर में थायराइड
हार्मोन की कमी से बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं, जिससे बाल पतले
होने लगते हैं और तेज़ी से झड़ने लगते हैं. इसके साथ ही त्वचा भी सूखी और
रूखी हो सकती है. हाइपोथाइरौइडिज़्म में व्यक्ति की त्वचा सख्त और बेजान
हो सकती है, जिससे खुजली और रूखापन महसूस हो सकता है.

4. हार्मोनल बदलाव और मूड स्विंग्स

थायराइड ग्लैंड ग्रंथि के असंतुलन से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. हाइपोथाइरॉइडिज़्म में व्यक्ति को उदासी, डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन महसूस हो सकता है. वहीं, हाइपोथायरायडिज्म में व्यक्ति अत्यधिक चिंतित, घबराया हुआ और परेशान महसूस कर सकता है. मूड स्विंग्स और मानसिक अस्थिरता
थायराइड की समस्या का महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है.

5. गर्दन में सूजन और दर्द

थायराइड की समस्या से गर्दन के सामने हिस्से में सूजन या दर्द हो सकता
है. अगर थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है या उसमें गांठ बनने लगती है,
तो गर्दन में दर्द और सूजन हो सकती है. इसे गौइटर कहते हैं, जो थायराइड
की गंभीर समस्या का संकेत हो सकता है. अगर आपको गर्दन में किसी प्रकार की
असामान्य सूजन महसूस होती है, तो तुरंत डौक्टर से कंसल्ट करना चाहिए.

6. कब्ज या पेट की अन्य समस्याएं

थायराइड की समस्या से पाचन क्रिया प्रभावित हो सकती है. हाइपोथाइरौइडिज़्म में कब्ज की समस्या हो सकती है, जबकि हाइपोथायरायडिज्म में दस्त या पेट की अन्य समस्याएं हो सकती हैं. अगर आपको नियमित रूप से पेट की समस्याएं हो रही हैं, तो यह थायराइड की समस्या का संकेत हो सकता
है.

7. ज़्यादा ठंड या गर्मी महसूस होना

थायरौइड हार्मोन शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं. अगर आपको सामान्य से ज्यादा ठंड या गर्मी महसूस होती है, तो यह थायराइड समस्या का लक्षण हो सकता है. हाइपोथाइरॉइडिज़्म में व्यक्ति को ज्यादा ठंड लग सकती है, जबकि हाइपोथायरायडिज्म में व्यक्ति को ज्यादा गर्मी
महसूस हो सकती है. शरीर के तापमान को सहन करने की क्षमता में बदलाव आना
थायराइड के असंतुलन का संकेत हो सकता है.

8. दिल की धड़कन में बदलाव

थायराइड हार्मोन दिल की धड़कन को भी प्रभावित कर सकते हैं. हाइपोथाइरौइडिज़्म में दिल की धड़कन धीमी हो सकती है, जिससे चक्कर आना, कमजोरी और थकान हो सकती है. वहीं, हाइपोथायरायडिज्म में दिल की धड़कन तेज हो सकती है, जिससे व्यक्ति को घबराहट और बेचैनी महसूस हो सकती है. अगर
आपको अपनी दिल की धड़कन में कोई असामान्य बदलाव महसूस होता है, तो यह थायराइड की समस्या हो सकती है.

9. मासिक धर्म में गड़बड़ी

महिलाओं में थायरौइड की समस्या से मासिक धर्म में अनियमितता हो सकती है.  हाइपोथायरौइडिज्म में पीरियड्स लंबे समय तक चल सकते हैं और ब्लड फ्लो ज्यादा हो सकता है, जबकि हाइपरथायरौइडिज़्म में पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं और ब्लड फ्लो कम हो सकता है. अगर आपके मासिक धर्म में कोई
असामान्यता है, तो यह थायरॉइड समस्या का संकेत हो सकता है.

10. शारीरिक कमजोरी और मांसपेशियों में दर्द

थायरौइड की समस्या से मांसपेशियों में कमजोरी और दर्द हो सकता है. हाइपोथायरौइडिज़्म में व्यक्ति को मांसपेशियों में ऐंठन, दर्द और अकड़न महसूस हो सकती है. शारीरिक कार्यों को करने में कठिनाई और मांसपेशियों में कमजोरी थायरौइड की समस्या के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं.

11. नींद की समस्या

थायरौइड असंतुलन से नींद पर भी असर पड़ सकता है. हाइपरथायरौइडिज़्म में
व्यक्ति को नींद न आना की समस्या हो सकती है, जबकि हाइपोथायरॉइडिज़्म
में व्यक्ति को बहुत ज्यादा नींद आ सकती है. अगर आपकी नींद में अचानक कोई
बदलाव आता है, तो यह थायरौइड की समस्या का संकेत हो सकता है.

12. ध्यान और याददाश्त में कमी

थायरौइड की समस्या से मानसिक ध्यान और याददाश्त पर भी असर पड़ सकता है.
हाइपोथायरॉइडिज़्म में व्यक्ति को ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है और याददाश्त कमजोर हो सकती है. यह स्थिति व्यक्ति के रोजमर्रा के कामों पर नेगेटिव प्रभाव डाल सकती है. अगर आपको अपनी मानसिक क्षमता में गिरावट महसूस होती है, तो यह थायरॉइड की समस्या का संकेत हो सकता है.

इलाज और डायग्नोसिस

थायरौइड की समस्या का इलाज और डायग्नोसिस डौक्टर द्वारा किया जाता है.
सबसे पहले ब्लड टेस्ट के माध्यम से शरीर में थायरौइड हार्मोन का स्तर जांचा जाता है. अगर टेस्ट के परिणाम में असंतुलन पाया जाता है, तो डौक्टर उचित उपचार की सलाह देते हैं. थायरॉइड की समस्या का इलाज दवाइयों के माध्यम से किया जाता है, और नियमित जांच के द्वारा स्थिति को कंट्रोल किया जा सकता है. अगर समय पर इलाज किया जाए तो थायरौइड की समस्या को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है.

थायरौइड की समस्या के शुरुआती लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है ताकि समय पर इलाज हो सके. थकान, वजन में बदलाव, बालों का झड़ना, मूड स्विंग्स, गर्दन में सूजन, और पाचन संबंधी समस्याएं थायरौइड की समस्या के प्रमुख लक्षण हो सकते हैं. अगर आपको इन लक्षणों में से कोई भी महसूस हो रहा है, तो बिना देर किए डॉक्टर से परामर्श लें.

हैंड पेंटिंग से लेकर खास तारीख तक, वैडिंग डे पर इन यूनिक तरीकों से सजाएं अपना आउटफिट

शादी का दिन हर किसी के जीवन का सब से खास और यादगार पल होता है. इस मौके को और भी खास बनाने के लिए दुलहन का लहंगा न सिर्फ फैशन स्टेटमैंट बन सकता है, बल्कि उस में अपनी अनमोल यादों को सजा कर उसे आप पर्सनल टच भी दे सकती हैं.

आजकल दुलहनें अपने वैडिंग आउटफिट्स को कस्टमाइज कर रही हैं, ताकि हर ऐलीमैंट में उन की प्रेम कहानी और खास पलों की झलक दिखाई दे.

आइए, जानें कि आप मेहंदी डिजाइन, लहंगे, दुपट्टे और स्नीकर्स को कैसे पर्सनलाइज कर सकती हैं :

मेहंदी से सजाएं अपनी प्रेम कहानी

वक्त के साथ लोगों की मेहंदी डिजाइन की पसंद भी काफी बदल रही है, कभी कमल का फूल लोगों को ज्यादा लुभा रहे थे, तो कभी रजवाड़ा या अरेबिक थीम की मेहंदी ज्यादा पसंद की जाती थी, लेकिन अब मेहंदी प्रेम कहानी कहने का एक जरीया बन गई है. दुलहनें अपनी मेहंदी में अब सिर्फ अपने सजना का नाम ही नहीं, बल्कि उन की पूरी तसवीर बनवा रही हैं.

आप अपनी मेहंदी को खास बनाने के लिए अपनी पहली डेट की तारीख, पसंदीदा डेटिंग प्लेस और खास पलों की झलक मेहंदी डिजाइन में शामिल कर सकती हैं. मसलन :

पहली मुलाकात की थीम : मेहंदी के एक हाथ पर आप की पहली मुलाकात का सीन और दूसरे हाथ पर आप का रिश्ता कैसे आगे बढ़ा, यह दिखा सकती हैं.

कपल इनीशियल्स : अपने और अपने पार्टनर के नाम के पहले अक्षर को मेहंदी डिजाइन में शामिल करें.

स्पैशल मोमैंट्स : जैसे पहला गिफ्ट, खास तारीखें या वह जगह जहां आप ने शादी का प्रपोजल स्वीकार किया, इन सब को मेहंदी में जोड़ा जा सकता है.

लहंगे को बनाएं यादों का खजाना

आप के लहंगे पर पारंपरिक जरी वर्क या कढ़ाई के अलावा व्यक्तिगत ऐलिमैंट्स को शामिल करना उसे और भी खास बना देगा. यह आप की प्रेम कहानी को कपड़े में बुनने का बेहतरीन तरीका है. मसलन :

● हैंड पेंटिंग : लहंगे के बौर्डर या स्कर्ट पर उन जगहों की पेंटिंग बनवाएं, जहां आप दोनों ने अपने सब से यादगार पल बिताए. यह हो सकता है कि कोई समुद्र किनारा, पार्क या वह रेस्तरां जहां आप पहली बार मिले थे. बहुत से आर्टिस्ट आजकल खास इसी तरह के प्रोजैक्ट्स पर काम कर रहे हैं, जिस में वे आप के लहंगे को खास आप के लिए हैंडपेंट करते हैं.

● डिजाइन में छिपी कहानियां : पैनल्स या मोटिफ्स में आप की जर्नी के खास मोमैंट्स, जैसे ट्रिप्स, फेवरिट मूवी सीन या कपल फोटो के आइडियाज को मैटल वर्क या धागे से उकेरा जा सकता है. आप लहंगे के डिजाइन में अपने पसंद के फूलों से प्रेरित डिजाइन बनवा सकती हैं.

● इनीशियल्स और तारीखें : अपने लहंगे में कहीं छिपी हुई जगह पर (जैसे कमरबंध के पास) अपने और पार्टनर के इनीशियल्स या वैडिंग डेट को कढ़ाई से उकेरा जा सकता है. आप चाहें तो लटकनों पर भी ये ऐंब्रौयडरी करा सकती हैं.

दुपट्टे में भी हो यादों की मिठास

दुपट्टा वह हिस्सा है जो आप के पूरे वैडिंग लुक को खूबसूरती से कवर करता है, तो क्यों न इसे भी पर्सनलाइज किया जाए। मसलन :

● कोट्स और वचन : अपने फेवरिट कोट्स, गाने की लाइंस या वह वादा जिसे आप हमेशा निभाना चाहती हैं, उसे दुपट्टे के बौर्डर पर लिखवाएं.

● कस्टम बौर्डर : दुपट्टे के किनारों पर हैंड पेंटिंग या कढ़ाई से आप की पहली डेट, फेवरिट फूड प्लेस या हनीमून डैस्टिनेशन के छोटेछोटे मोटिफ्स उकेरवाएं.

● स्पैशल ऐंब्रौयडरी : आप की शादी की तारीख और पार्टनर का नाम भी दुपट्टे के कोने में शामिल किया जा सकता है, ताकि यह हमेशा के लिए यादगार बना रहे.

कूल और पर्सनलाइज्ड स्नीकर्स

आजकल कई ब्राइड्स अपनी शादी के लहंगे के साथ स्नीकर्स पहन कर एक कंफर्टेबल और ट्रैंडी लुक अपनाती हैं. अब आप इन स्नीकर्स को भी अपनी पर्सनल टच दे सकती हैं :

● हैंड पेंटेड स्नीकर्स : अपने फर्स्ट डेट का लोकेशन, फेवरिट मूवी कैरेक्टर या जोक्स को स्नीकर्स पर पेंट करवाएं.

● इनीशियल्स और वैडिंग डेट : स्नीकर्स के लेस या सोल पर अपने और अपने पार्टनर के इनीशियल्स और शादी की तारीख प्रिंट करवा सकती हैं.

● फनी मैसेजेस : स्नीकर्स के हील्स पर छोटेछोटे फनी मैसेज या Just Married जैसी थीम भी ऐड कर सकती हैं.

आप के वैडिंग डे पर हर डिटेल में आप की प्रेम कहानी की झलक मिलनी चाहिए. लहंगे से ले कर स्नीकर्स तक, हर चीज में अपना पर्सनल टच जोड़ना इस खास दिन को और भी यादगार बना देगा.

शादी के बाद जब आप अपने आउटफिट को संभाल कर रखेंगी, तो उस में बसी ये छोटीछोटी यादें हमेशा आप के चेहरे पर मुसकान लाएंगी. तो आगे बढ़िए और अपने सपनों का आउटफिट तैयार करवाइए, जो केवल सुंदर ही नहीं, बल्कि आप की जर्नी की कहानी भी सुनाए।

दीवाली पर किचन को दें मौडर्न लुक, अपनाएं ये बैस्ट आइडियाज

दीवाली पर हम अकसर अपने घर की सजावट में कुछ नया करना चाहते हैं. हमारे घर का सब से जरूरी जगह किचन एक ऐसी जगह है, जहां स्वादिष्ठ पकवान बनाए जाते हैं और जहां कई यादें बनती हैं.

फैस्टिवल के अनुरूप घर का रूप बदलने की शुरुआत करने के लिए यह एक उत्तम जगह है क्योंकि यह न केवल दीवाली के सैलिब्रेशन का आनंद बढ़ाती है बल्कि पूरे घर के रौनक को उभारती है.

तो आइए, किचन के लुक को बदलने के लिए श्रेयस त्रिवेदी, वाइस प्रेसिडैंट, रिटेल बिजनैस
(यूनिस्पेस) अपर्णा इंटरप्राइजेज लिमिटेड, बता रहे है 5 आइडियाज, जो आप के किचन को फैस्टिवल सैलेब्रेशंस के लिए एक शानदार सैटिंग में बदल देंगे और एक ऐसी जगह बनाएंगे जिसे आप पूरे साल संजो कर रखेंगे.

ओपन कौंसेप्ट लेआउट अपनाएं

ट्रैडिशनल इंडियन किचन में अकसर खाना पकाने और खाने के लिए अलगअलग जगह होती है, पर मौडर्न घरों में ओपन कौंसेप्ट अच्छी तरह से काम कर सकता है. यह अपनेपन को बढ़ावा देता है और बेहतर वैंटिलेशन प्रदान करता है.

अपने किचन को मौडर्न बनाने के सब से प्रभावी तरीकों में से एक ओपन कौंसेप्ट लेआउट डिजाइन है. अपने किचन को लिविंग या डाइनिंग एरिया से अलग करने वाली दीवारों को हटा कर आप स्पेस के बीच एक स्मूद फ्लो बना सकते हैं. यह डिजाइन बातचीत को प्रोत्साहित करता है और किचन को अधिक बड़ा बनाता है, जिस से फैमिली और फ्रैंड्स खाना बनाते समय इकट्ठा हो सकते हैं.

मौड्यूलर किचन कैबिनेट

दीवाली के लिए अपने किचन को नया रूप देने का सब से आसान तरीका मौड्यूलर किचन कैबिनेट में अपग्रेड करना है. आकर्षक, मौडर्न कैबिनेट न केवल आप की किचन की खूबसूरती को बढ़ाते हैं बल्कि इस की जगह को बड़ा दिखाने के लिए प्रैक्टिकल सोल्यूशन भी प्रदान करते हैं. मौड्यूलर कैबिनेट कई तरह के डिजाइन, रंग और फिनिश में आते हैं, जिस से आप के घर की सजावट के लिए उपयुक्त कैबिनेट ढूंढ़ना आसान हो जाता है.

फैस्टिवल सीजन और दीवाली की डैकोरेशन को दिखाने के लिए ग्लासफ्रंट कैबिनेट को शामिल करें, जिस से किचन का लुक अक्ट्रैटिव दिखाई दे.

मौडर्न इक्विपमैंट को अपनाएं

पुराने उपकरण आप के खाना पकाने के अनुभव को नीरस बना सकते हैं. (energy efficient)
ऊर्जा कुशल, स्मार्ट उपकरणों में निवेश करने पर विचार करें जो आप की आदतों के अनुकूल हों.

वाईफाई कनैक्टिविटी जैसी सुविधाओं पर ध्यान दें, जो आप को अपने फोन से, अपने ओवन या रैफ्रिजरेटर की निगरानी करने की सुविधा देती है. आधुनिक उपकरण न केवल खाना पकाने को अधिक आनंददायक और कुशल बनाते हैं, बल्कि वे अधिक पर्यावरण अनुकूल घर बनाने में भी योगदान देते हैं, ऊर्जा की बचत करते हैं और आप के बिजली के बिलों को कम करते हैं.

स्मार्ट स्टोरेज सौल्यूशन

दीवाली के दौरान फैस्टिवल डिशेज तैयार करने में आप का किचन पहले से कहीं ज्यादा बिजी हो जाता है. अव्यवस्थित किचन निराशाजनक और पेचीदा हो सकता है. यहीं पर स्मार्ट स्टोरेज सौल्यूशन एक बड़ा अंतर ला सकते हैं क्योंकि वे आप की अव्यवस्था को दूर करने में मदद कर सकते हैं.

स्मार्ट स्टोरेज सौल्यूशन समाधानों को शामिल कर के आप अपनी रसोई को सहज और व्यवस्थित बना सकते हैं जैसे पुलआउट पेंट्री शेल्फ मुश्किल से पहुंचने वाली वस्तुओं को आसानी से पकड़ की रेंज में लाते हैं और कोने वाली कैरोसेल इकाइयां असुविधाजनक स्थानों को कार्यात्मक भंडारण क्षेत्रों में बदल देती हैं.

खुली शेल्फिग अकसर इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं को आसानी से सुलभ बनाते हुए एक स्टाइलिश आकर्षण भी जोड़ सकती है. एक सुव्यवस्थित रसोई खाना पकाने को अधिक आनंददायक बनाती है.

लाइटिंग अरैंजमेंट

किसी भी स्थान के मूड को सैट करने में प्रकाश व्यवस्था एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और आप की किचन को अक्ट्रैटिव बनाने मे इस का उतना ही योगदान होता है. दीवाली पर किचन की लाइट को बेहतर बनाने पर विचार करें. अंडर कैबिनेट लाइटिंग आप के कार्यस्थल को रोशन करते हुए एक चमक भी प्रदान करती है. अच्छी रोशनी न केवल किचन के सौंदर्य को बढ़ाती है बल्कि एक स्वागतयोग्य वातावरण भी बनाती है.

किचन के रूप मे नए बदलाव लाने से सिर्फ इस की कार्यक्षमता ही नहीं बढ़ती बल्कि यह आप की पूरी जीवनशैली को भी बेहतर बना सकती है. चाहे आप दोस्तों की मेजबानी कर रहे हों, परिवार के साथ डिनर का मजा ले रहे हों या सिर्फ अपने लिए खाना बना रहे हों, ये नवीनीकरण आप को एक ऐसी जगह बनाने में मदद कर सकते हैं जो वास्तव में आप की पर्सनैलिटी को दर्शाती हो.

इस फैस्टिव सीजन घर को प्लास्टिक नहीं, जीतेजागते पौधों से सजाएं

त्योहार पर ज्यादातर लोग अपने घरों को सजाने के लिए प्लास्टिक के फूलों का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि ये सस्ते और बारबार इस्तेमाल करने में आसान लगते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लास्टिक के फूलों के बजाय असली पौधों से सजा हुआ घर न केवल सुंदर दिखता है, बल्कि घर के वातावरण को भी ताजगी और शांति से भर देता है.

जीतेजागते पौधे आप के घर में रंग और जीवन लाते हैं, जिस से हर दिन किसी त्योहार से कम नहीं लगता. तो फिर क्यों इस फैस्टिव सीजन अपने घर को सजाएं जीवंत पौधों के साथ, जो न सिर्फ आप के घर की शोभा बढ़ाएंगे बल्कि वातावरण को भी बेहतर बनाएंगे.

आइए, जानें कि आप के घर के बैडरूम, किचन, लिविंगरूम और बाथरूम के लिए कौनकौन से पौधे सब से उपयुक्त रहेंगे जो कम रोशनी में भी अच्छा ग्रो करते हैं और पौकेट फ्रैंडली भी हैं :

ताजगी और शांति का अनुभव देते हैं बैडरूम में लगे ये प्लांट्स

बैडरूम वह जगह है जहां आप आराम और सुकून चाहते हैं. इसलिए ऐसे पौधों का चुनाव करना जरूरी है जो आप के मन को शांत करें और रातभर बेहतर नींद में मदद करें.

स्नैक प्लांट (Snake Plant) : यह पौधा रात में भी औक्सीजन रिलीज करता है और हवा को शुद्ध करता है, जिस से गहरी नींद आती है.

लैवेंडर (Lavender) : इस की भीनीभीनी खुशबू तनाव को कम करती है और मूड को बेहतर बनाती है.

मनी प्लांट (Money Plant) : यह न सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा लाता है, बल्कि देखने में भी खूबसूरत लगता है. इसे किसी खूबसूरत प्लांटर में लगा कर बैडरूम की शोभा बढ़ाएं. आप मनी प्लांट को घर के हर कोने में लगा सकते हैं.

ताजगी और जड़ीबूटियों से महकेगा आप का किचन

किचन में पौधों को लगाने का मतलब सिर्फ साजसज्जा नहीं बल्कि उपयोगी जड़ीबूटियों को उगाना भी है. ये न केवल किचन का माहौल बेहतर बनाएंगे, बल्कि आपशके खाने को भी स्वादिष्ठ और पौष्टिक बना देंगे.

तुलसी (Holy Basil) : यह पौधा पवित्रता और औषधीय गुणों का प्रतीक है. इस की पत्तियां चाय या भोजन में इस्तेमाल किए जा सकते हैं.

ऐलोवेरा (Aloe Vera) : किचन में छोटीमोटी जलन या कट लगने पर ऐलोवेरा का जैल बहुत काम आता है.

मिंट (Mint) : पुदीना का पौधा ताजगी से भरपूर होता है और इसे सलाद, चटनी या पेय पदार्थों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

बाथरूम में नैचुरल लुक देंगे ये पौधे

बाथरूम में पौधों का होना ताजगी और प्रकृति के करीब होने का एहसास दिलाता है. ऐसे पौधों का चुनाव करें जो कम रोशनी और ज्यादा नमी में भी आसानी से जीवित रह सकें.

स्पाइडर प्लांट (Spider Plant) : यह पौधा नमी को अच्छी तरह झेल सकता है और बाथरूम के छोटे कोनों में फिट हो जाता है.

फर्न (Fern) : फर्न के हरेभरे पत्ते बाथरूम में फ्रैशनैस का एहसास कराते हैं और मौइस्चर में भी अच्छी तरह बढ़ते हैं.

पीस लिली (Peace Lily) : यह पौधा हवा को शुद्ध करता है और बाथरूम को एक ऐलिगैंट लुक देता है.

लिविंगरूम में लगे ये पौधे मेहमानों का स्वागत करेंगे हरेभरे अंदाज में लिविंगरूम वह जगह है जहां आप सब से ज्यादा समय बिताते हैं और मेहमानों का स्वागत भी यहीं होता है. इसलिए यहां ऐसे पौधों का चयन करें जो आप की स्टाइल और सुंदरता को दर्शाएं.

फिडल लीफ फिग (Fiddle Leaf Fig) : यह पौधा बड़ेबड़े पत्तों के कारण बहुत ही आकर्षक लगता है और लिविंगरूम को मौडर्न लुक देता है.

रबर प्लांट (Rubber Plant) : इस की गहरी हरी पत्तियां रूम को एक रिच और क्लासी लुक देती हैं. इस पौधे में आप को ज्यादा देखभाल की जरूरत भी नहीं है, हफ्ते में 1 बार पानी और हलकी रोशनी में भी यह पौधा अच्छा ग्रो करता है.

एरेका पाम (Areca Palm) : यह पौधा न केवल लिविंगरूम की सुंदरता बढ़ाता है, बल्कि हवा को भी साफ करता है. इस की खूबसूरत पत्तियां आप के इंटीरियर में जान डाल देंगी.

सजावट में चार चांद लगाने के लिए प्लांटर्स पर दें खास ध्यान

पौधों की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए प्लांटर्स का सही चुनाव भी बहुत जरूरी है. प्लास्टिक के साधारण गमलों के बजाय सिरेमिक, मैटल या जूट के प्लांटर्स का इस्तेमाल करें. ये न केवल आप के पौधों को सपोर्ट देंगे, बल्कि घर की सजावट में भी जान डालेंगे.

आप रंगबिरंगे प्लांटर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि हर कोने में एक अलग ही आकर्षण नजर आए. यदि आप का इंटीरियर मिनिमलिस्टिक है, तो सफेद या मैटल फिनिश वाले प्लांटर्स का चयन करें. वहीं, रंगीन दीवारों के लिए कंट्रास्ट कलर वाले प्लांटर्स बहुत अच्छे लगते हैं.

प्लास्टिक के फूलों से नहीं, पौधों से सजाएं घर

प्लास्टिक के फूल भले ही देखने में आकर्षक लगते हों, लेकिन वे कभी भी असली पौधों की खूबसूरती और ताजगी का मुकाबला नहीं कर सकते. एक बार पौधों में किया गया निवेश लंबे समय तक आप के घर को सजाता रहेगा. हर दिन आप को प्रकृति का एहसास कराएगा और आप के घर के वातावरण को शुद्ध बनाएगा.

हर सीजन को फैस्टिव सीजन बनाना चाहते हैं तो अपने घर को पौधों से सजाएं. रंगबिरंगे फूलों वाले पौधे घर में रंग भर देंगे और हरीभरी पत्तियों वाले पौधे शांति और सुकून का एहसास कराएंगे. पौधों के साथ बिताया गया हर पल आप को प्रकृति से जोड़ता है और एक नई ऊर्जा से भर देता है. यह सजावट न सिर्फ आप के घर को खूबसूरत बनाएगी, बल्कि आप के मन और जीवन को भी सकारात्मकता से भर देगी. घर हर कोने में रखे पौधे एक नई कहानी बयां करेंगे और आप के घर को सदाबहार सुंदरता से भर देंगे.

पंडितों ने 4 सालों तक मां नहीं बनने की बात कही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल- 

मैं 27 साल की हूं. मेरे विवाह को 5 महीने हो चुके हैं, लेकिन अभी तक प्रैगनैंट नहीं हुई हूं. क्या यह मेरे भीतर किसी कमी या गड़बड़ी का लक्षण है? कई पंडितों ने मुझ से कहा है कि मैं कम से कम अगले 4 सालों तक मां नहीं बन पाऊंगी. मैं इस बात से बहुत डरी हुई हूं. बताएं, मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

यह निश्चित तौर पर बता पाना कि आप कब मां बनेंगी, किसी के वश की बात नहीं है. अगर पतिपत्नी दोनों की फर्टिलिटी नौर्मल है यानी दोनों की प्रजननशक्ति अच्छी है और सारे हालात प्रैगनैंसी के अनुकूल हैं तब भी प्रैगनैंट होने के लिए यह जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों का शारीरिक मेल उन दिनों में हो जिन दिनों में पुरुष शुक्राणु और स्त्री डिंब के मेलमिलाप का संयोग बनता है. स्त्री के मासिकचक्र में हर महीने कुछ ही दिन ऐसे होते हैं जिन में प्रैंगनैंसी का संयोग बनता है. फर्टिलिटी स्टडीज में देखा गया है कि जो दंपती हर तरह से सामान्य होते हैं उन में भी स्त्री के प्रैंगनैंट होने के चांसेज किसी 1 महीने में 20-25% ही होते हैं. 3 महीने लगातार जतन करने पर चांसेज 50%, 6 महीने में 72% और 12 महीने में 85% पाए गए हैं. अभी आप के विवाह को मात्र 5 महीने ही बीते हैं, इसलिए इस तरह निराश होना कतई ठीक नहीं है. अगर आप का मासिकचक्र 28 दिनों का है, तो आप दोनों का 11वें से 17वें दिन के बीच मिलन फलदायी हो सकता है. मसलन अगर आप का मासिक धर्म 8 अगस्त को शुरू होता है, तो इस हिसाब से 19 से 25 अगस्त के बीच का शारीरिक मेल आप को प्रैगनैंट बना सकता है. दरअसल, यही वे दिन होंगे जब आप की ओवरी से एग रिलीज होने के सब से ज्यादा चांसेज बनेंगे. किसी पंडित, ज्योतिषी या हस्तरेखा वाचक की बातों में आ कर बिना वजह अपने जीवन को संशय, चिंता या भय में न डालें.

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लेखिका- दीप्ति गुप्ता

ज्यादातर भारतीय लोगों को सुबह और शाम चाय पीने की आदत  होती  है. इसे पीने के बाद वे ताजा महसूस करते हैं. वैसे देखा जाए, तो चाय गर्भवती महिलाओं सहित दुनियाभर के लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पीऐ जाने वाले खाद्य पदार्थों में से एक  है. प्रैग्नेंसी में खासतौर से सीमित मात्रा में चाय का सेवन बहुत अच्छा माना जाता है. दरअसल, चाय की पत्तियों में पॉलीफेनॉल और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं., जो न केवल आपके ह्दय स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं बल्कि आपकी प्रतिरक्षा को भी बढ़ाते हैं. हालांकि,  इनमें कैफीन भी होता है, इसलिए इनका सेवन आपको एक दिन में 200 मिग्रा से ज्यादा नहीं करना चाहिए. वैसे विशेषज्ञ प्रैग्नेंसी में कुछ खास तरह की चाय का सेवन करने की सलाह देते हैं. उनके अनुसार, आमतौर पर ब्लैक टी, मिल्क टी, ग्रीन टी में 40 से 50 मिग्रा कैफीन होता है, जबकि हर्बल टी में कैफीन की मात्रा न के बराबर होती है. इसलिए प्रैग्नेंसी के दौरान हर्बल टी को एक स्वस्थ और बेहतरीन विकल्प माना गया है. यहां 6 तरह की हर्बल चाय हैं, जिनका प्रैग्नेंसी के दौरान सेवन करना पूरी तरह से सुरक्षित है.

1. अदरक की चाय-

अदरक की चाय में जो स्वाद है, वो किसी आम चाय में नहीं. इसे खासतौर से सर्दियों में पीया जाए, तो गर्माहट तो आती ही है ,साथ ही ताजगी का अहसास भी होता है. लेकिन किसी भी गर्भवती महिला को अपने रूटीन में अदरक की चाय जरूर शामिल करनी चाहिए. क्योंकि यह मॉर्निंग सिकनेस को कम करती है. इसे अपने रूटीन में शामिल करने के बाद सर्दी, गले की खराश और कंजेशन की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इसके लिए अदरक के कुछ टुकड़ों को गर्म पानी में उबाल  लें और दूध, शहद के साथ लाकर पी जाएं.

कैसे बनाते हैं रवा परांठा, ब्रेकफास्ट में आप भी करें ट्राई

अगर आप अपनी फैमिली को ब्रेकफास्ट में कुछ हेल्दी और टेस्टी रेसिपी परोसना चाहती हैं तो रवा परांठा आपके लिए अच्छा औप्शन है. रवा परांठा आसानी से बनने वाला हेल्दी ब्रेकफास्ट औप्सन है, जिसे आपकी फैमिली बेहद पसंद करेगी.

हमें चाहिए

–  1 कप सूजी

–  1/2 कप मक्के का आटा

–  1/2 कप मेथी के पत्ते

–  1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

–  1 बड़ा चम्मच तेल

–  1/4 कप दही

–  तेल सेंकने के लिए

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

सूजी व मक्के के आटे में नमक, अदरकलहसुन का पेस्ट, दही, तेल व मेथी के पत्ते काट कर डाल आवश्यकतानुसार पानी डाल कर आटा गूंधें. फिर आटे के पेड़े बना कर बेलें और गरम तवे पर दोनों तरफ से सेंकें. आलूटमाटर की सब्जी के साथ गरमगरम परोसें.

आखिरी प्यादा: क्या थी मुग्धा की कहानी

लेखिका- कुसुम पारीक

सायरन बजाती हुई एक एम्बुलेंस अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी. वहां की औपचारिकताएं पूरी करने में दोतीन घंटे लग गए थे.

सारी कार्यवाही कर जब वे वापस आए तब घर में केवल राघव और मैं थे.

राघव और ‘मैं’ यानी पड़ोसी कह लीजिए या दोस्त, हम दोनों का व्यवसाय एक था और पारिवारिक रिश्ते भी काफी अच्छे थे.

हम सब मित्रों की संवेदनाएं राघव के साथ थीं कि इस उम्र में पत्नी मुग्धा जी मानसिक असंतुलन खो बैठी हैं और उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

हर कोई राघव की बेचारगी से परेशान था लेकिन ध्यान से देखने पर मैं ने पाया कि वहां असीम शांति थी.

मुझे आश्चर्य जरूर हुआ था लेकिन शक करने की कोई वज़ह मुझे नहीं मिली थी क्योंकि मैं क्या, लगभग हर जानपहचान वाले यही सोचते थे कि यह एक आदर्श जोड़ा है जो अपनी हर जिम्मेदारी बख़ूबी निभाता आया है.

हम सब जानते थे कि राघव की पत्नी बहुत पढ़ीलिखी थी जो घरबाहर के हर काम में निपुण थी.

हम दोस्त लोग बातें किया करते थे कि राघव समय का बलवान है जो इतनी आलराउंडर पत्नी मिली है. कई समस्याएं वह चुटकियों में सुलझा देती थी. राघव को केवल औफिस के काम के अलावा कुछ नहीं करना पड़ता था.

शाम को चाय की चुस्कियों के साथ कई बार हम शतरंज की बिसात बिछा लेते थे. कम बोलने वाला राघव अपनी हर चाल लापरवाही से चलता था. कई बार उस का वज़ीर तक उड़ जाता था लेकिन पता नहीं कैसे अंत में एक प्यादे को अंतिम स्थान पर पहुंचा कर अपने वज़ीर को ज़िंदा करवा लेता था.

यह घटना घटने के बाद मुझे लगने लगा था कि राघव की जीवननैया ठहर जाएगी लेकिन उस का रोज सुबह घूमना वगैरह सब अनवरत जारी था.

बेटी किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेश में फंसी थी, इसलिए उसे आने में थोड़ा समय लगा.

बेटा जौब चेंज करवा कर पापा के पास ही आ गया था. बेटी सीधे अस्पताल गई और अपनी मां के बारे में पूछा. वहां की रिपोर्ट्स देख कर उस का माथा भन्ना गया. वह किसी भी परिस्थिति में मानने को तैयार नहीं थी कि उस की मम्मी अपना मानसिक संतुलन खो चुकी थी.

वह लगातार भागदौड़ में लगी हुई थी कि मम्मी को डिस्चार्ज करवाए व अपने साथ ले कर जाए जिस से यदि उन को मानसिक समस्या है तब भी उन को सहारा दे कर उस का समाधान किया जा सकता है.

मेरी निगाहें भी राघव की बेटी प्राची की गतिविधियों पर लगी रहती थी. मेरा मन मेरे उन अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश करने लगा जो इतने दिनों तक अनुत्तरित थे.

मैं ने हमेशा मुग्धा जी को ऊर्जा से भरपूर व्यक्तित्व के रूप में देखा था लेकिन जब कभी वे हम दोस्तों के समूह में कुछ बोलने के लिए मुंह खोलतीं, राघव फटाक से उन्हें चुप करा देता या कोई काम के बहाने अंदर भेज देता.

कई बार मुग्धा जी के चेहरे पर शिकायतों का बवंडर रहता लेकिन वे राघव की एक मिनट की विरह भी बरदाश्त न कर पाती थीं.

हम सब हमारी पत्नियों को कई बार कह भी देते, ‘तुम लोग करती क्या हो? फिर भी परेशानियां सिर उठाए तुम्हें नोंचती रहती है. एक मुग्धा जी को देखो, एक रुपए की दवाई तक नहीं खरीदी अभी तक उन्होंने.’

किताबी कीड़ा थीं वे, आध्यात्म में गहरी रुचि होने के कारण कभीकभी भजनकीर्तन की मंडली घर में होती रहती थी.

अब मेरे बेचैन मन को एक सूत्र मिल गया था प्राची के रूप में.

एक दिन वह अस्पताल जाने के लिए बाहर निकली ही थी कि मैं नीचे मिल गया. मैं ने उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे कर उस के साथ अस्पताल चलने की इच्छा जताई.

वह भी आत्मविश्वास में अपनी मां पर गई थी. फिर भी बोली, “अच्छा होगा अंकल, आप मेरे साथ रहेंगे तो मम्मी का केस सुलझाने में मुझे आसानी होगी.”

रास्ते में उस ने मुझे बताया कि मेरी मम्मी जीनियस पर्सन थीं अंकल. वे खुद मानसिक रूप से इतनी मजबूत थीं कि उन्हें ऐसा रोग हो भी नहीं सकता.

मैं बचपन से ही पापामम्मी की बहस देखती आई हूं जिस में मम्मी ने हमेशा तर्कसंगत बात की व पापा पीड़ित को शोषक के रूप में पेश कर देते थे. दोनों में शतरंज की सी बिसात बिछी रहती थी.

मम्मी, पापा से बहुत प्यार करती थीं, उस का पापा ने भरपूर फायदा उठाया.

मम्मी अपनी बात तर्को के साथ रखती थीं. पापा कभी उन से जीत न पाते थे तो उन्हीं के कहे शब्दों के उलटे अर्थ निकाल कर मम्मी को दोषी ठहराने की कवायद शुरू हो जाती थी.

मम्मी भावुक थीं लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में वे भी पीछे न रहती थीं. इस लंबी बहस का परिणाम पापा का लंबे समय तक अबोलापन बन जाता था जो मम्मी को तोड़ देता था.

मम्मी बहुत ही धार्मिक महिला थीं जो हर समय पूजापाठ में लगी रहती थीं. इस के पीछे पापा की सलामती और उन का प्यार पाना मुख्य मुद्दा रहता था.

एक बार जब मैं छोटी थी, मैं ने मम्मी से बोल दिया था कि बिंदी गिर गई है तो गिरने दो, मत लगाओ. तब एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ा था जिस का मतलब मैं काफी वर्षों तक न समझ पाई थी.

मां ने एक भय का घेरा अपने आसपास बना लिया था जिस में से बाहर निकलना उन्हें कभी मंजूर न था.

वे बहुत प्रतिभाशाली और साहसी थीं लेकिन पापा उन की कमजोरी थे. पापा शायद इस बात को भांप चुके थे. उन्होंने इस बात का भरपूर दोहन किया था.

मम्मी को हर क्षेत्र में रुचि होने से जनरल नौलेज बहुत अच्छी थी. और किताबें पढ़ने के शौक के परिणामतया वे किसी भी टौपिक पर पांच-दस मिनट निर्द्वंद बोल सकती थीं.

पापा को उन के इसी बोलने से चिढ़ मचती थी.

वे हमेशा ऐसा रास्ता अपनाने की कोशिश करते कि मां को चुप होना पड़ता.

मां को भी गुस्सा आता था जब बेवज़ह उन को चुप करवाया जाता था.

जब कभी मम्मी इधरउधर होतीं, पापा उन के खिलाफ कुछ न कुछ बोलना शुरू कर देते. लेकिन मैं अपनी मां को अच्छी तरह जानती थी कि वे पापा के प्यार व विश्वास के लिए कितने आंसू बहाती हैं.

मैं उन की बात उसी समय काट देती जिस से मुझ से भी थोड़ेथोड़े खिंचे रहते थे.

मां की जब दूसरे लोग बड़ाई करते तब पापा को सहन न होता था. यह मेरे अलावा अर्णव जानता है, लेकिन वह कम ही बोलता था.

पिछले 6 सालों में मैं पढ़ाई व जौब के चक्कर में बाहर हूं. मैं ने मम्मी को कई बार अपने पास आ कर रहने के लिए कहा. लेकिन मम्मी हर बार मुझ से कहती थीं, ‘तेरे पापा को छोड़ कर कैसे आऊं?’

जब प्राची बोल कर चुप हो गई तब मैं सोचने लगा कि फिर क्या वजह रही होगी कि इतनी बीमार हो गई मुग्धा.

अगले दिन हम दोचार मित्र पार्क में मिले. संजय बोला, “अपनी ज़िंदगी से राघव परेशान तो नहीं दिखता था लेकिन एक बार मुझ से जरूर उस ने कहा था कि बोलने वाली औरतें अच्छी नहीं लगतीं उसे. तब मैं ने कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.”

कुछ देर बाद मैं और प्राची अस्पताल पहुंचे जहां नर्स ने बताया कि मुग्धा जी ने बहुत परेशान किया था जिस से उन्हें इंजैक्शन दे कर सुला दिया गया था.

हम लोग वहीं पड़ी बैंच पर बैठ गए थे. थोड़ी देर बाद वे उठीं, तब काफ़ी शांत लग रही थीं औऱ ऐसा लग रहा था जैसे हम से कुछ कहना चाह रही हों.

प्राची ने उन से पूछा, “मां, ऐसा क्या हो गया था कि आप को यहां ले कर आए पापा?”

वे पहले थोड़ा सकुचाईं लेकिन मेरी आंखों में आश्वस्ति देख कर बोलीं, “तुम जानती ही हो कि मैं उन के प्रति बहुत पजैसिव थी, इसलिए उन्होंने इस का फायदा उठाया औऱ हमेशा मौका ढूंढ़ते रहे जिस में मेरी बेइज्जती हो.

“तुम थीं वहां जब तक, थोड़ा आराम था. लेकिन जब तुम दोनों भाईबहन बाहर चले गए तब इन की जरूरत भी कम हो गई और इन्होंने अपनी इतने सालों की भड़ांस निकालनी शुरू कर दी.

मुझे हर समय वह दिखाने की कोशिश की जाती जो कभी मैं थी ही नहीं.

एक दिन का वाकेआ है, मैं ने तुम्हारे पापा को एक व्हाट्सऐप मैसेज दिखाया. तब वे बोले, “यह तुम मुझे कल दिखा चुकी हो.”

मैं ने कहा, “यह आज ही आया है मेरे पास.”

फिर बोले, “बस, यही समस्या है तुम्हारी, भूल जाती हो और फिर ज़िद करने लगती हो.”

मैं एकदम सन्न रह गई. मेरे सारे व्हाट्सऐप ग्रुप चैक किए कि कहीं आया हो तो, लेकिन वह मैसेज कहीं नहीं था.

उस के बाद ऐसी बातों की बहस कई बार हो जाती और हर बार मुझे गलत ठहराने की कोशिश की जाती थी.

मैं धीरेधीरे गुमसुम रहने लगी थी. बस, जब तुम लोग आते, तभी घर में रौनक आती. अन्यथा तेरे पापा अपने दोस्तों व औफिस में मस्त जबकि मैं अकेली इस घर में इस संकट से बाहर आने की कवायद करती रहती थी.

अचानक एक दिन तेरे पापा को सपने में बड़बड़ाते हुए देखा. कुछकुछ शब्द समझ भी आ रहे थे. उस समय मैं कुछ न बोली. लेकिन 2 दिनों बाद ऐसे ही मेरी याददाश्त को झूठा ठहराने की कोशिश में वही बहस हुई.

मैं ने बोला, “आप को सपना आया होगा जिस में आप ने कुछ देखा होगा क्योंकि ऐसे ही कुछ शब्द आप सपने में दोहरा रहे थे.” अचानक वे चुप हो गए और वहां से चले गए.

अब मुझे विश्वास हो गया था कि इन को ऐसे सपने आते हैं. लेकिन वे यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

घर में हर समय तनातनी रहने लगी थी.

मैं ने कुछ साक्ष्य जुटाने की कोशिश भी की लेकिन उस से पहले यह सब हो गया.

अब मैं खुद को रोक न पाया और बोल उठा, “क्या हो गया था मुग्धा जी?”

तब प्राची बोली, “मां को एक दिन इतना परेशान किया कि वे चिढ़ गईं व चिल्लाने लगीं.

पापा ने उस का वीडियो बना लिया. उस बात पर मां और ज्यादा परेशान हो गई थीं.

वह वीडियो हम लोगों को भी भेजा था.”

“लेकिन हम दोनों बहनभाइयों ने मम्मी को ही सही ठहराया था.” प्राची के रुकने के बाद मुग्धा जी बोलीं, “बस, वह शतरंज की आखिरी बिसात थी. मुझे लग रहा था कि तेरे पापा को शह दी जा चुकी है लेकिन मैं गलत थी और उन्होंने फिर वही अपने आखिरी प्यादे की चाल चल दी थी.”

वातावरण बहुत बोझिल हो चला था. मैं ने प्राची से कहा, “तुम जो भी कार्यवाही करो, मेरा साथ हमेशा रहेगा.” मुझ से आश्वस्ति पा कर उस ने हलकी सी मुसकान दी और थोड़ी संतुष्ट हो कर चली गई.

अस्पताल से मुग्धा बाहर निकलने को तैयार नहीं हो रही थीं. एकदो बार मैं भी प्राची के साथ उन से मिलने गया. लेकिन वे अधिकतर समय शून्य में ताकती रहती थीं. जबकि प्राची को इस अपराधी को दंड देना ही था. डाक्टर भी अपनी सारी कोशिशें कर चुके थे कि वे कुछ मुंह खोलें तो उन की चुप्पी का रहस्य खुले.

आखिर एक दिन वे डाक्टर को देख कर अचानक पास पड़े नैपकिन को उठा कर मुंह पर रख कर बोलीं, “डाक्टर, आप भी अपनी पत्नी को ऐसे ही पट्टी बांध कर रखते हैं क्या?”

“उस को पट्टी बांध कर क्यों रखूंगा? वह इंसान है और इंसानों की तरह ही रहेगी न.”

“नहीं डाक्टर, स्त्री इंसान नहीं होती, उसे विवेक को किसी कोने में दफना कर केवल कठपुतली बन कर रहना होता है.”

“आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं?” डाक्टर ने कुछ और जानने के उद्देश्य से पूछा.

“डाक्टर, जो स्त्री बोलती है उसे एक प्यादा भी कब घोड़े की तरह ढाई पांव चल कर मार दे, पता भी नहीं लगता.”

एहसानमंद: क्या विवेक अपने मरीज की जान बचा पाया?

लेखक- ब्रजेंद्र सिंह

घड़ी के अलार्म की घंटी बजी और डाक्टर विवेक जागा. साथ में सोती हुई उस की पत्नी सुधा भी उठ रही थी.

‘‘शादी की सालगिरह बहुतबहुत मुबारक हो, डार्लिंग,’’ विवेक ने उस का आलिंगन किया.

‘‘आप को भी बहुतबहुत मुबारक हो,’’ सुधा ने उत्तर दिया.

नहाधो कर जब विवेक नाश्ता खाने बैठा तो सुधा ने उस के सामने उस के मनपंसद गरमागरम बेसन के चीले और पुदीने की चटनी रखी. विवेक बहुत खुश हुआ.

‘‘पत्नी हो तो तुम्हारे जैसी,’’ उस ने सुधा से कहा, ‘‘बोलो, आज तुम्हारे लिए क्या उपहार लाऊं? जो जी चाहे मांग लो.’’

‘‘मुझे कोई उपहार नहीं चाहिए, बस, एक अनुरोध है,’’ सुधा ने कहा.

‘‘अनुरोध क्यों, आदेश दीजिए, डार्लिंग,’’ विवेक ने उदारतापूर्ण स्वर  में कहा.

‘‘मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि कम से कम आज जल्दी घर आने की कोशिश कीजिएगा. आज हमारी शादी की दूसरी सालगिरह है. मैं आप के साथ कहीं बाहर, किसी अच्छे से रैस्टोरैंट में खाना खाने जाना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा,’’ विवेक ने उसे आश्वासन दिया, पर वह जानता था कि घर लौटने का समय उस के हाथ में नहीं था. और वह यह भी जानता था कि सुधा को भी इस बात का पूरी तरह पता था. आखिरकार, वह भी एक डाक्टर की बेटी थी और, पिछले 2 सालों से एक डाक्टर की पत्नी भी.

अस्पताल जाते हुए ट्रैफिक जाम में फंसा विवेक सोचने लगा कि डाक्टरों का जीवन भी कितना विचित्र होता है. अगर उन की जिम्मेदारी का कोई रोगी ठीक हो जाए तो वह और उस के संबंधी आमतौर से डाक्टर के एहसानमंद नहीं होते हैं.

वे सोचते हैं कि मेहनताना दे कर उन्होंने सारा कर्ज चुका दिया है. आखिरकार डाक्टर अपना काम ही तो कर रहा था. पर अगर किसी कारण से रोगी की हालत न सुधरे, उस का देहांत हो जाए, तो गलती हमेशा डाक्टर की ही होती है, चाहे कितनी ही बुरी हालत में रोगी को चिकित्सा के लिए लाया गया हो.

ऐसी स्थिति में मृतक के घर वाले और अन्य रिश्तेदार कई बार डाक्टर को दोष देते हुए मारामारी और तोड़फोड़ करना आरंभ कर देते हैं. और ऐसे हालात में कुछ लोग तो डाक्टर और अस्पताल पर रोगी की अवहेलना का मुकदमा भी ठोक देते हैं.

विवेक को उसी के अस्पताल में डेढ़ साल पहले हुए एक हादसे का खयाल आया. वह उस हादसे को भला कैसे भूल सकता था, जिस का बेहद गंभीर परिणाम निकला था.

एक अमीर घराने का नाबालिग लड़का अपनी 2 करोड़ रुपए की गाड़ी अंधाधुंध रफ्तार से चला रहा था. गाड़ी बेकाबू हो कर सड़क के बीच के डिवाइडर से टकराई. फिर पलट कर सड़क के दूसरी ओर जा गिरी.

उस तरफ एक युवक मोबाइल पर बात करते हुए अपने स्कूटर पर आ रहा था. कलाबाजी मारती हुई कार, उस के ऊपर गिरी. कार चलाने वाले लड़के की वहीं मौत हो गई. स्कूटर चालक बुरी तरह घायल था. जिस से वह बात कर रहा था, वह शायद कोई उस के घर वाला था, क्योंकि पुलिस के आने से पहले लड़के के रिश्तेदार उसे उठा कर विवेक के अस्पताल ले आए. इमरजैंसी वार्ड में विवेक उस समय ड्यूटी कर रहा था.

6-7 लोग घायल लड़के को ले कर अंदर घुस गए. कुछ विवेक को जल्दी करने को कह रहे थे, कुछ आपस में हादसे की बात कर रहे थे. विवेक ने लड़के की जांच की. वह मर चुका था. जब उस ने यह सच उस के रिश्तेदारों को बताना चाहा तो उन्होंने मानने से इनकार किया.

‘पर वह अभी तक तो जीवित था,’ एक ने बहस की, ‘वह एकदम मर कैसे सकता है, तुम उसे बचाने की कोशिश नहीं करना चाहते हो.’

बीच में एक और रिश्तेदार बोलने लगा, ‘आजकल के डाक्टर सब एकजैसे निकम्मे हैं. ये लोग भारी पगार चाहते हैं, पर पूरे कामचोर हैं.’ विवेक ने मुश्किल से अपने गुस्से को संभाला, ‘देखिए मिस्टर…’ तब तक एक नर्स उस के पास आई और बोली, ‘डाक्टर साहब, एक मरीज आया है, लगता है उसे दिल का दौरा पड़ा है. जरा जल्दी चलिए.’

विवेक उस के साथ जाने के लिए घूमा पर तभी लड़के के चाचा ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘पहले मेरे भतीजे की अच्छी तरह जांच करो, फिर तुम यहां से जा सकोगे. मुझे तो लगता है कि मेरा भतीजा अभी जिदा है.’

एक नर्सिंग अरदली ने विवेक का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. एक और डाक्टर और कुछ रिश्तेदार बीच में घुसे. देखते ही देखते हाथापाई शुरू हो गई. कई लोगों को चोट लगी. अस्पताल का सामान भी तोड़ा गया. सिक्योरिटी गार्ड बुलाए गए और उन्होंने सब को शांत किया. विवेक के माथे पर, जहां किसी की अंगूठी से चोट लगी थी, 5 टांके लगाए गए.

इस घटना के बाद विवेक के अस्पताल ने एक सख्त नियम बनाया. किसी भी मरीज के साथ 2 से अधिक साथवाले, अस्पताल के अंदर नहीं आ सकते, चाहे वे जो हों. इस नियम को कुछ लोगों ने कानूनी चुनौती दी थी और मामला अब भी अदालत में था.

गाडि़यों के जाम के खुलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी. विवेक की विचारधारा वर्तमान में लौट आई. रहा डाक्टरों का निजी जीवन, वह भी काफी अनिश्चित होता है. कुछ पता नहीं कब किस रोगी की तबीयत अचानक बिगड़ जाए, या किसी हादसे में घायल हुए व्यक्ति को डाक्टर की जरूरत पड़े. ऐसी हालत में डाक्टर होने के नाते, उन्हें सबकुछ छोड़ कर, अपना कर्तव्य निभाने जाना पड़ता है, चाहे पत्नी के साथ सिनेमा देख रहे हों, या बच्चों के साथ उन का जन्मदिन मना रहे हों. डाक्टर बनने से पहले उन को ऐसा व्यवहार करने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है.

जाम आखिर खुलने लगा और विवेक ने गाड़ी बढ़ाई. अस्पताल पहुंच कर विवेक ने डाक्टरों के लौकर में जा कर अपना सफेद कोट निकाल कर पहन लिया. फिर उस ने, हमेशा की तरह, उन 3 वार्डों के चक्कर लगाने लगा, जिन के मरीजों के रोगों के बारे में रिकौर्ड रखने के लिए वह जिम्मेदार था.

हर वार्ड में 10-12 मरीज थे. उन में हर एक की अपनी ही एक खास कहानी थी. पहले वार्ड में उस की मरीज राधा नामक एक विधवा थी. वह पीलियाग्रस्त थी. तकरीबन 1 महीने से वह अस्पताल में पड़ी हुई थी. उस के साथ उस की 5 साल की बेटी भी भरती कराई गई थी क्योंकि घर पर उस की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. लड़की का नाम मीनू था और वह डाक्टर विवेक की दोस्त बन गई थी.

मीनू रोज सुबह एक नर्स के साथ अस्पताल के बगीचे में घूमने जाती थी. और जब विवेक अपने राउंड पर आता, तो पहले मीनू उसे बताती थी कि उस ने बगीचे में क्या देखा, फिर उसे बाकी काम करने देती.

आज वह बहुत उत्तेजित लग रही थी, जैसे उस के पास कोई बड़ी खबर हो. विवेक को देखते ही वह बोलने लगी, ‘‘अंकल अंकल, आप कभी नहीं बता सकेंगे कि मैं ने आज क्या देखा. मैं ने तितली देखी. बड़ी सुंदर रंग वाली. वह इधरउधर उड़ रही थी जैसे कोई परी हो. मैं ने उस से बात करने की कोशिश की, पर वह चली गई. किसी दिन मैं एक तितली से दोस्ती करूंगी.’’

उस की मासूमियत देख कर विवेक ने सोचा, ‘काश, यह बच्ची जीवनभर ऐसी ही रह सकती. पर मतलबी दुनिया में यह संभव नहीं है.’

अगले वार्ड में, एक पलंग पर वृद्ध गेनू लेटा था. वह मौत के द्वार पर खड़ा था और वह यह जानता था कि वह अब केवल मशीनों के जरिए जी रहा है. उस के दोनों बेटे विदेश में बसे हुए थे. गेनू की पत्नी का देहांत कुछ साल पहले हो चुका था. 6 महीने पहले, गेनू को दिल का दौरा पड़ा.

उस का एक पड़ोसी उसे अस्पताल ले आया. जांच के बाद पता चला कि उस के दिल को भारी नुकसान पहुंचा है. उस की उम्र 70 वर्ष से ऊपर थी और वह बहुत कमजोर भी था. सो, डाक्टरों ने औपरेशन करना उचित नहीं समझा और उस के अधिक से अधिक एक साल और जीने की संभावना बताई. उस के बेटों को जब उस की हालत का पता चला और उस के अस्पताल में भरती होने का समाचार मिला, तो वे विदेश से भागेभागे आए. उन्हें यहां आ कर यह मालूम हुआ कि पिताजी के बचने की कोई उम्मीद नहीं है और वे इस दुनिया में अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं.

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दोनों ने आपस में बात की होगी कि पिताजी की मृत्यु तक वे रुकना नहीं चाहते. चूंकि अस्पताल का खर्चा बीमा कंपनी दे रही थी, उन्होंने साथ मिल कर सोचा कि पिताजी को अब पैसों की जरूरत नहीं होगी. सो, पिताजी को दोनों बेटों ने बताया कि उस के घर में काफी लंबीचौड़ी मरम्मत करवा कर उस को बिलकुल नया बनाना चाहते हैं.

काम के लिए काफी पैसे लगेंगे. इस बहाने उन्होंने कोरे कागज और कोरे चैक पर पिताजी के हस्ताक्षर ले लिए. फिर क्या कहना. चंद दिनों में उन्होंने घर भी बेच दिया और पिताजी का खाता भी खाली कर दिया. और तो और, उस के बाद पिताजी को बताए बिना वे विदेश लौट गए. उन की धांधली के बारे में पिताजी को तब पता चला, जब उस के पड़ोस में रहने वाला दोस्त उस से मिलने आया था.

अगले वार्ड में एक शराबी, मीनक पड़ा था. 2 हफ्ते पहले वह नशे की हालत में सीढि़यों से नीचे गिर कर बुरी तरह घायल हो गया था. अस्पताल में भरती होने के बाद वह रोज शाम को ऊंची आवाज में शराब मांगता था और शराब न मिलने पर काफी शोर मचाता था. पूरा स्टाफ उस से दुखी था. इसलिए सब बहुत खुश थे कि अब वह ठीक हो गया था और आज उसे अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी.

पिछली शाम, जब यह खबर उस की पत्नी को दी गई, तो वह खुश होने के बजाय, घबरा गई. वह भागीभागी विवेक के पास गई. उस के सामने वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘डाक्टर साहब, मुझ पर दया कीजिए. मेरे पति कुछ काम नहीं करते हैं. घर को चलाने का और 2 बच्चों को पढ़ाने का पूरा खर्चा मैं संभालती हूं. मेरी अच्छी नौकरी है पर फिर भी हमें पैसों की कमी हमेशा महसूस होती है. अभी महीने की शुरुआत है. मुझे हाल में वेतन मिला है. अगर आप कल मेरे पति को डिस्चार्ज कर देंगे, तो वह घर आ कर मुझे पीटपाट कर, सारे पैसे बैंक से निकलवाएगा. फिर सब पैसा शराब में उड़ा देगा.

‘‘अभी मुझे पिछले महीने का कर्ज भी चुकाना है. इस महीने का खर्च चलाना है. बच्चों की स्कूल की फीस भी देनी है. मैं कैसे काम चलाऊंगी. मैं आप से हाथ जोड़ कर विनती करती हूं, मेरे पति को कम से कम 4-5 दिन और अस्पताल में रख लीजिए.’’

‘‘माफ करना बहनजी,’’ विवेक ने जवाब दिया, ‘‘पर आप के पति को अस्पताल में रखना या न रखना मेरे हाथ में नहीं. वैसे भी, हम किसी रोगी को ठीक होने के बाद यहां रखना नहीं चाहते हैं क्योंकि बहुत और बीमार लोग हैं जो यहां बैड के खाली होने का इंतजार कर रहे हैं.’’ रोगियों की और रिश्तेदारों की कोई कमी नहीं थी. कहीं बेटी मां के बारे में चिंतित थी, कहीं चाचा भतीजे के बारे में. हर रोगी की रिपोर्ट जांचना और उस की आगे की चिकित्सा का आदेश देना आवश्यक था और ऊपर से उस को आश्वासन भी देना होता था कि डाक्टर पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह जल्द से जल्द पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएगा.

विवेक मैटरनिटी वार्ड के सामने से निकल रहा था कि वार्ड का दरवाजा अचानक खुला और वरिष्ठ डाक्टर प्रशांत बाहर आए. वे काफी चिंतित लग रहे थे पर विवेक को देख कर उन का चेहरा खिल उठा. ‘‘डाक्टर विवेक,’’ वे बोले, ‘‘अच्छा हुआ कि तुम मिल गए. हमारे वार्ड में इस समय कोईर् खाली नहीं है, और एक जरूरी संदेश वेटिंगरूम तक पहुंचाना था. कृपा कर के, क्या तुम यह काम कर दोगे?’’

‘‘कर दूंगा, सर’’ विवेक ने उत्तर दिया, ‘‘संदेश क्या है और किस को पहुंचाना है?’’

‘‘वेटिंगरूम में एक मिस्टर विनोद होंगे,’’ डाक्टर प्रशांत ने कहा, ‘‘उन को यह बताना है कि उन की पत्नी को एक प्रिमैच्योर यानी उचित समय से पहले बच्चा हुआ है और वह लड़का है. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं पर उसे बचाना काफी कठिन लग रहा है. और उन को यह भी कहना कि इस समय वे अपनी पत्नी और बच्चे से नहीं मिल सकेंगे. पर शायद 3-4 घंटे के बाद यह संभव होगा.’’

वेटिंगरूम की ओर जाते हुए विवेक सोचने लगा कि यह क्यों होता है कि बुरा समाचार देने के लिए हमेशा जूनियर डाक्टर को ही जिम्मेदारी दी जाती है. डरतेडरते विवेक ने बच्चे के बाप को अपना परिचय दिया और फिर संदेश सुनाया. बाप कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि आप लोग बच्चे को बचाने के लिए जीजान लगाएंगे.’’

विवेक ने वापस जा कर बच्चे की मां की फाइल निकाली और पढ़ कर उस को पता लगा कि उस औरत को इस से पहले 2 मिसकैरिज यानी गर्भपात हुए थे, और दोनों वक्त बच्चा मृतक पैदा हुआ था. यह उस औरत का तीसरा गर्भ था. डाक्टरों ने बच्चे को बचाने की जितनी कोशिश कर सकते थे, उतनी की. बच्चा 5 दिन जीवित रहा. इस दौरान उस के बाप ने उस का नाम विजय रख दिया. चंद गिनेचुने रिश्तेदार भी उस से मिल सके. विवेक भी दिन में 2-3 बार जा कर बच्चे की हालत पता करता था.

पर 5वें दिन विजय का छोटा सा दिल हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया. विवेक भी उन डाक्टरों में था जिन्होंने अस्पताल के दरवाजे के पास खामोश खड़ेखड़े उस के पिता को विजय का नन्हा मृतक शरीर अपनी छाती से लगा कर बाहर जाते देखा.

कुछ दिनों बाद डाक्टर विवेक के नाम अस्पताल में एक पत्र आया. उस ने लिफाफा खोला और पढ़ा, ‘डाक्टर विवेक, मैं यह पत्र आप को भेज रहा हूं, क्योंकि मुझे सिर्फ आप का नाम याद था, पर यह उन सब डाक्टरों के लिए है जिन्होंने मेरे बेटे विजय की देखभाल की थी.

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‘आप लोगों ने उस को इतनी देर जीवित रखा ताकि हम उस को नाम दे सकें, उस को हम अपना प्यार दे सकें, उस के दादादादी और नानानानी उस से मिल सकें. दवाइयों ने उसे जिंदा नहीं रखा, बल्कि आप लोगों के प्यार ने उसे चंद दिनों की सांसें दीं. धन्यवाद डाक्टर साहब. मैं आप सब का एहसानमंद हूं.’ नीचे हस्ताक्षर की जगह लिखा था, ‘विजय का पिता.’ विवेक की आंखें भर आईं और उस के गाल गीले हो गए. पर उस ने अपने आंसुओं को रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

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