जब होने लगें 30 की, तो सेहत को गंभीरता से लें

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कामकाजी महिलाओं को अपने औफिस और परिवार की जिम्मेदारियों को एकसाथ संभालना होता है. ऐसे में कइयों के लिए अपने बेहद व्यस्त शैड्यूल में से खुद के लिए थोड़ा सा भी समय निकाल पाना मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें लगातार एक से दूसरे काम में व्यस्त रहना पड़ता है. अपने शरीर और समय को ले कर नियमित तनाव की वजह से अकसर इन महिलाओं को खुद की और अपने शरीर की मांगों के स्थान पर अपने कर्तव्यों को चुनना पड़ता है. समय और ऊर्जा से तंग कई महिलाएं खाने की अस्वास्थ्यकर आदतों को अपना लेती हैं.

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ये महिलाएं यह भूल जाती हैं कि अगर ये अपने शरीर, अपनी सेहत का ध्यान नहीं देंगी, तो अपने महत्त्वपूर्ण बोझ को उठाने में सक्षम नहीं रह जाएंगी. इसलिए एक खुशनुमा व स्वस्थ जीवन जीने के लिए महिलाओं को अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान देने, समयसमय पर सेहत की जांच कराने, पोषक आहार लेने और नियमित व्यायाम करने के लिए समय निकालने की जरूरत होती है.

सेहत को गंभीरता से लें

जब खाने की बात आती है, तो उम्रदराज वयस्कों को अपने कैलोरी के उपभोग को कम करने और फाइबर व पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाने की जरूरत होती है. कैलोरी से भरे आहार की वजह से वजन बढ़ सकता है और इस से महिलाओं को डायबिटीज, स्ट्रोक, औस्टियोपोरोसिस, स्तन कैंसर, उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस जैसी कई अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं.

इसलिए महिलाओं के लिए यह अनिवार्य है कि 30 की उम्र के बाद वे अपनी सेहत को गंभीरता से लें. बीमारियों से बचने, अपनी हड्डियों को मजबूत करने, अपने प्रतिरक्षातंत्र को सुदृढ़ करने और त्वचा की रक्षा के लिए सेहतमंद जीवनशैली अपनाएं.

जानिए 30 साल की होने पर अपने आहार में कैसे संशोधन करें:

– अपने दैनिक आहार में मसूर की दाल और फलीदार सब्जियां शामिल करें. सूखी सेम और मटर, काली सेम, राजमा, पत्तागोभी और मटर की दाल में सेहतमंद फाइबर और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है. पकाई गई 1 कप मसूर की दाल में लगभग 16 ग्राम फाइबर होता है, जो कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के साथ ही पाचन को भी बेहतर बनाने में मदद करता है.

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– एक पैकेट आलू के चिप्स या अपनी पसंदीदा कुकीज में ही संतुष्ट हो जाने की वजह से बाद में जब भी भूख लगे तो ताजा फल और सब्जियां खाने की आदत डालें. चमकीले रंगों वाले फलों का ताजा सलाद या सब्जियों का एक बाउल जैसे कि गाजर, कद्दू, शकरकंद, टमाटर, पपीता या मौसमी हरी सब्जियों का एक बाउल सेहतमंद बीएमआई मैंटेन करने में मदद कर सकता है. यह आप के खून के कोलैस्ट्रौल और शुगर के स्तर को बेहतर करने में भी मदद करता है.

– मलाई निकला दूध, कम वसा या वसारहित दही और चीज कैल्सियम के अच्छे स्रोत हैं. गाय का दूध खासतौर पर कैल्सियम के अच्छे स्रोत हैं. पीनट बटर में कैल्सियम की काफी मात्रा होने के साथ ही विटामिन ई, मैग्नीशियम, पौटैशियम, और प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने वाले विटामिन बी6 की अच्छाई भी होती है.

– मिठासरहित बादाम का दूध और नारियल का दूध ऐसे पोषणयुक्त सेहतमंद पेयपदार्थ हैं, जो शरीर को पर्याप्त पोषण देते हैं. बादाम के दूध में विटामिन डी की प्रचुर मात्रा होती है जबकि कैलोरी कम होती है. नारियल का दूध लैक्टोजरहित होता है. यह कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने, रक्त दाब बेहतर करने और हार्ट अटैक या स्ट्रोक रोकने में मदद करता है.

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– सेहत और सौंदर्य को ले कर हलदी के कई फायदे हैं. कढ़ी या सूप जैसे अपने खाने में इस सुनहरे पीले पाउडर की एक चुटकी मिलाने से कई बीमारियों के विरुद्घ सुरक्षा मिलती है, ऐस्ट्रोजन हारमोंस को नियमित रखने में मदद मिलती है, स्तन कैंसर का जोखिम कम होता है, झुर्रियां घटती हैं.

– पालक, पत्तागोभी और गोभी जैसी सब्जियों में बीटा कैरोटिन की मात्रा पर्याप्त होती है और इन के सेहत संबंधित कई फायदे होते हैं.

– भले ही रैड मीट में हाई क्वालिटी प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है, लेकिन इस में सैचुरेटेड वसा भी होती है, जिस से हाई कैलोरी काउंट भी मिलता है. इसलिए सालमन, ट्यूना और सार्डिन जैसी कम वसायुक्त मछलियों का सेवन करें.

– दैनिक उपभोग में बादाम, अखरोट, चिआ के बीज आदि शामिल करें. रोज अगर 1 मुट्ठी बादाम खाए जाएं, तो इस से शरीर को फाइबर, प्रोटीन, कैल्सियम, जिंक, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फास्फोरस, कौपर, आयरन और विटामिन बी मिलेगा. चिआ के बीजों में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड्स, कैल्सियम, जिंक, विटामिन बी1, बी2, बी3 और विटामिन ई होता है.

– सोया मिल्क, टोफू, छोले, अलसी, दलिया, जई, ओटमील, और हाई क्वालिटी प्रोटीन सप्लिमैंट्स को अपने आहार का हिस्सा बनाएं.

– राजमा, डार्क चौकलेट्स, किशमिश, जई, ब्रोकली, टमाटर, अखरोट, जैसे हाई क्वालिटी ऐंटीऔक्सीडैंट्स को अपने आहार में मिलाएं. इन खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट्स फ्री रैडिकल्स के प्रभावों से कोशिकाओं की रक्षा करते हैं, उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करते हैं, दिल की बीमारी का जोखिम घटाते हैं और प्रतिरक्षा तंत्र को सुदृढ़ करते हैं.

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– डार्क चौकलेट से डायबिटीज, कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारी और दिल से संबंधित अन्य बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है.

– उम्र बढ़ने की निशानियों को घटाने का सब से अच्छा तरीका है कि रसभरी, स्ट्राबैरी और ब्लूबैरी खाएं.

ऐसे भी कुछ खाद्य पदार्थ हैं, जिन से महिलाओं को 30 की उम्र के बाद अपनी सेहत के संकल्प को बनाए रखने के लिए पूरी तरह बचना चाहिए:

– सूप, कटी सब्जियां, फल और सौसेज जैसे कैन्ड फूड्स से पूरी तरह बचना चाहिए. कैन्ड फूड में सोडियम बहुत होता है. इस में प्रिजर्वेटिव्स मौजूद होते हैं और टिन में धातु या प्लास्टिक की कोटिंग के कारण इन के दूषित होने की संभावना होती है.

– बहुत ज्यादा फ्रोजन खाना भी सेहतमंद नहीं होता है.इस में 700 से 1800 एमजी तक सोडियम शामिल होता है. इस की वजह से ब्लडप्रैशर और सेहत से संबंधित अन्य बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है.

– ज्यादातर बेक्ड फूड आइटम्स जैसे कि केक, पेस्ट्री और बिस्कुट का सेवन कम करना चाहिए, क्योंकि इन में रिफाइंड आटा मौजूद होता है जो अस्वास्थ्यकर होता है. इन में पोषक तत्त्वों की कमी होती है और कैलोरी ज्यादा होती है. ये वसा और शुगर से बने होते हैं.

– कैन्ड जूस और गैस भरे ड्रिंक्स का सेवन कम करें, क्योंकि इन में हाई शुगर की सामग्री होती है, जिस से डायबिटीज बढ़ सकती है और आप के दिल व लिवर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

सोनिया नारंग

(न्यूट्रिशनिस्ट ऐंड फिटनैस ऐक्सपर्ट)

जायकों का शहर इंदौर

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सर्राफायों तो सोनेचांदी की मार्केट को कहते हैं और इंदौर सर्राफा बाजार इस के लिए काफी मशहूर भी है, लेकिन सर्राफा बाजार बंद होने के बाद वहां स्वादिष्ठ व्यंजनों के खोमचे जम जाते हैं और ये करीब रात भर जमे रहते हैं. बाजार के ज्वैलर्स बताते हैं कि सर्राफा बाजार के रात को व्यंजन मार्केट बनने के कई कारण हैं. पहला यह कि रात भर की चहलपहल और दुकानों के बाहर खोमचे लगने की वजह से ज्वैलरी की दुकानों में चोरी का डर नहीं रहता. दूसरा बाहर से आने वाले व्यापारियों को खाने का सामान आसानी से मिल जाता है. और तीसरा सब से बड़ा कारण शहर का चटोरापन है. गरमी के मौसम में कुल्फी फलूदा तो सर्दी के मौसम में गराडू और गुलाब जामुन के साथसाथ मालपूए खाने लोग आसपास के शहरों से भी आते हैं.

स्वादिष्ठ गराड़ू: गराड़ू शायद इंदौर में ही खाया जाता है. यह एक प्रकार का जमींकंद है और पश्चिमी मालवा में उगता है. पत्थर की तरह दिखने वाला मोटा सा जमींकंद बड़ा ही फायदेमंद होता है. इसे काटते ही इस में से लुआब टपकने लगता है. यह लुआब गाढ़ा और चिकना होता है जो जोड़ों के दर्द में काफी लाभदायक होता है. इसे तेल में देर तक तला जाता है और फिर मसाला बुरक कर खाया जाता है. सर्राफा बाजार में रात को गराड़ू का स्वाद लिया जा सकता है.

दूध की शिकंजी: शिकंजी का नाम सुनते ही अगर आप के जेहन में नीबू, पुदीने से बना ठंडा मीठा स्वाद से भरा गिलास सामने आ जाता है तो आप सही नहीं हैं. जी हां, कम से कम इंदौर में शिकंजी तो दूधरबड़ी से बनी, मेवों से लबरेज एक लजीज और ताजगी प्रदान करने वाली चीज है. है तो यह भी पेय ही, किंतु 1 गिलास इस का पीने के बाद आप दिन भर कुछ न खाएंगे. सर्राफा में नागोरी मिष्ठान्न भंडार पर केवल 2 बजे तक यह पेय मिलता है. अगर शिकंजी के गिलास 2 बजे से पहले ही खत्म हो जाते हैं तो लोग दुकानें बंद कर चले जाते हैं. हां, इस के अलावा शिकंजी का स्वाद फिर छप्पन दुकान पर मधुरम स्वीट्स पर लिया जा सकता है.

इंदौरी सेव: अगर यह कहें कि इंदौर सेव का कुटीर उद्योग केंद्र है तो गलत नहीं होगा. यहां हर गली में सेव और नमकीन की दुकानें हैं. शाम होते ही सेव की कड़ाहियां गरम होने लगती हैं. चारों ओर गरमगरम सेव की खुशबू फैल जाती है. सेव का आटा बेसन में गूंधा जाता है. गुंधे आटे में मसाले मिलाए जाते हैं.

भट्ठी पर रखी कड़ाही में गरम तेल के ऊपर झारा रख कर सेव बनाने वाला कारीगर अपनी हथेली से गुंधे आटे को रगड़ता है. यह काम आसान नहीं है. ज्यादातर कारीगर राजस्थान से आते हैं. कुछ बड़े ब्रैंड्स ने अब बड़ीबड़ी मशीने लगा ली हैं. औटोमैटिक मशीनों से आटा गूंधने से ले कर पैकिंग तक का काम आसान हो गया है. यहां हजारों टन सेव और नमकीन का व्यापार किया जाता है.

मूलत: सेव नजदीक के शहर रतलाम से इंदौर में आई है. रतलामी सेव बड़ी ही स्वादिष्ठ और मशहूर है. लेकिन खानपान के इस शहर ने सेव की बहुत वैराइटीज तैयार कर ली हैं. लौंग की सेव, टमाटर की सेव, दूध की सेव, अचारी सेव, खट्टीमीठी सेव, गाठिया, भुजिया, मोती सेव, बारीक सेव, जैसे कई स्वाद आप को हरदम तैयार मिलेंगे. क्व200 से क्व300 प्रति किलोग्राम में सेव और क्व350 तक कोई भी नमकीन आसानी से उपलब्ध है.

सेव की सब्जी भी बड़ी स्वादिष्ठ बनती है. प्याज को मंदी आंच पर गुलाबी होने तक भूनने के बाद रतलामी या लौंग की सेव कड़ाही में डाल कर थोड़ा सा पानी, नमक, मिर्च, अमचूर या सब्जी मसाला डाल कर कड़ाही को ढक दिया जाता है. ऊपर से हरा धनिया डाल कर रोटी या ब्रैड के साथ खाया जाता है.

सेव के साथसाथ अन्य नमकीन में मिक्सचर की भी खपत बहुत ज्यादा है. मिक्सचर मुख्यतया, पोहे के बेस पर बनता है. मीठा मिक्सचर, खट्टामीठा मिक्सचर, तीखा मिक्सचर, गुजराती एवं मारवाड़ी मिक्सचर के अलावा और कई तरह के मिक्सचर मिलते हैं.

इंदौर बेहतरीन दालों के लिए भी जाना जाता है. मधुरम दाल मिल यहां तुअर, मूंग व अन्य दालों का उत्पादन वर्षों से कर रही है.

अनाज की खरीद के सही मौसम को ले कर भी इंदौर के लोग जागरुक हैं. पीसी मेहता ऐंड संस फर्म के डाइरैक्टर पीसी मेहता एवं सुशील मेहता इस में लोगों की मदद भी करते हैं.

करारे पापड़: इंदौर में पापड़ भी बड़े चाव से खाया जाता है. अग्रवाल पापड़ और फूड प्रोडक्ट्स, इंदौर के डाइरैक्टर अनूप अग्रवाल ने बताया, ‘‘हमारे यहां कई तरह के पापड़ बनाए जाते हैं. इस से हजारों महिलाओं को रोजगार मिलता है. पापड़ का आटा ठेकेदारों द्वारा घरघर पहुंचाया जाता है और फिर महिलाएं उसे बेल कर लाती हैं. इसे आगे प्रोसैस करने के लिए फैक्टरी में भेज दिया जाता है.’’

माहवारी : धर्म का पहरा क्यों, बता रही हैं कुछ सफल महिलाएं

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दुनिया के हर समाज व वर्ग में चाहे वह विकसित हो या पिछड़ा, समान या आंशिक रूप से अंधविश्वास प्रचलित है. अंधविश्वास कई प्रकार के होते हैं, जिन में कुछ जातिगत, कुछ धार्मिक तो कुछ सामाजिक होते हैं और कुछ तो विश्वव्यापी होते हैं, जिन की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उखाड़ना आसान नहीं है. धर्म के नाम पर महिलाओं के  लिए विशेष रिवाज और परंपराएं बनाई गई हैं, जो उन्हें पुरुषों से अलग व सामाजिक अधिकारों से दूर रखती हैं.

लगभग हर धर्म में माहवारी के समय महिलाओं को अपवित्र माना जाता है. परंपराओं की आड़ में उन के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और धर्म के नाम पर पीछे धकेला जाता है. माहवारी के समय रसोईघर व धार्मिक स्थान पर जाने की मनाही, घर की किसी चीज को हाथ नहीं लगाना, दिन में सोने, नहाने से ले कर पहनने, खानेपीने तक पर पाबंदी आदि पीढ़ी दर पीढ़ी मजबूत होती गई. यहां तक कि आज भी परिवर्तन सतही ही है.

कहते हैं आज के विज्ञान युग में समय के  साथ बहुत कुछ बदल रहा है. ऐसे में जो कई सौ सालों में नहीं हुआ वह मात्र पिछले 20-30 सालों में हुआ है. काफी खुलापन आया है. महिलाएं अपने अधिकारों एवं आत्मसम्मान के प्रति सचेत हो रही हैं और कई धार्मिक व सामाजिक रूढि़वादी मान्यताएं तोड़ कर आगे बढ़ रही हैं. लेकिन 21वीं सदी में भी समाज में बहुत से ऐसे रीतिरिवाज, आडंबर हैं, जिन्हें आज की महिलाएं जारी रखे हुए हैं, जिन के आधार पर उन के पूर्वज उन्हें अपवित्र बताते आए हैं.

वास्तव में यह सैल्फ चौइस है या बेवकूफी, आइए, जानते हैं ऐसी ही कुछ स्वतंत्र विचारधारा की महिलाओं से:

नियम को धर्म की चादर से लपेट दिया गया: पत्रकार व लेखिका रेनू शर्मा कहती हैं, ‘‘हमारे पूर्वजों ने महिलाओं के लिए जो भी कायदेकानून बनाए वे उन के हित में ही थे. माहवारी के समय का नियम महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को ध्यान में रख कर बनाया गया था, जिस से उन दिनों की कमरतोड़ मेहनत से आराम मिल सके. यह बिलकुल उचित एवं वैज्ञानिक आधार पर था, क्योंकि माहवारी के दौरान महिलाओं में कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक उतारचढ़ाव आते हैं. यह सारे नियम उस समय की मांग थी जिसे धर्म की चादर से लपेट दिया गया अन्यथा माहवारी के समय महिला अपवित्र होती है, पूजापाठ नहीं कर सकती है, किसी धार्मिक स्थल पर नहीं जा सकती आदि अंधविश्वास है.

‘‘मैं इस में विश्वास नहीं करती, परंतु सदियों से जो चला आ रहा है उसे सुधरने में वक्त लगेगा. हमें क्या करना है, कहां जाना है यह हमारा व्यक्तिगत मामला है न कि धार्मिक अंधविश्वास.’’

हालांकि रेनू शर्मा का पूर्वजों के फैसले को सही कहना गलत है. उस समय भी ये नियम न स्वास्थ्य और न ही सुरक्षा के लिए बने थे. ये नियम तो पंडों और पुजारियों ने बनाए थे वरना औरतें जब तक अकेली थीं, बिना परिवार के थीं, बच्चे भी पालती थीं, खाना भी जुटाती थीं और माहवारी से भी निबटती थीं.

टूट रही हैं रुढि़वादी परंपराएं: बिजनैस वूमन शीतल विखनकर का कहना है, ‘‘इस मामले में हम ने सभी रुढि़वादी परंपराएं तोड़ दी हैं, केवल मंदिर में जाने और पूजापाठ करने के अलावा. यह किसी धर्म से प्रभावित न हो कर हमारी व्यक्तिगत राय है. मैं या मेरे परिवार में कोई भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करता है. माहवारी के समय भी यदि कोई जाना चाहता है तो जा सकता है. शुभअशुभ या अपवित्रता जैसा कुछ भी नहीं होता है. ये सब धार्मिक कुरीतियां हैं, जिन्हें आज की पीढ़ी धीरेधीरे समझ रही है.

वैसे मंदिर में जाना माहवारी के दौरान क्यों गलत है जब बाकी शारीरिक क्रियाएं वैसे ही होती रहती हैं, मंदिरों में न जाना सिर्फ एक अंधविश्वाश है, जिस के सहारे औरतों के साथसाथ आदमियों को भी गुलाम बनाया गया है. यदि माहवारी खराब है, तो मूत्र त्यागना भी गलत है पर हर मंदिर में शौचालय बने होते हैं.

हमारा जीवन कर्मों और मन की स्वच्छता पर निर्भर करता है: डा. अनुपमा वर्मा कहती हैं, ‘‘मैं पेशे से डाक्टर हूं और साइंस में यकीन करती हूं. मेरे परिवार में हमेशा खुलापन रहा है. मेरा मानना है कि माहवारी के दौरान पूजापाठ करना, मंदिर जाना अशुभ नहीं होता है. महिला अपनी सुविधानुसार कुछ भी करने को स्वतंत्र है. धर्म और माहवारी का कोई संबंध नहीं है. यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. हमारे पूर्वजों ने सोचसमझ कर और हमारे हित में बहुत सारे अच्छे नियम बनाए थे, लेकिन कुछ धार्मिक कट्टरता से ग्रस्त लोगों ने इन्हें धर्म से जोड़ कर महिलाओं के शोषण का जरीया बना दिया. हमारा जीवन हमारे कर्मों और मन की स्वच्छता पर निर्भर करता है ना कि समाज में व्याप्त धार्मिक कुरीतियों को मानने से.’’ यह विचार भी आधा वैज्ञानिक और आधा अंधविश्वास भरा है.

वैज्ञानिक आधार पर ही नियम बनाए गए थे: समाजसेविका निशा सुमन जैन का कहना है, ‘‘मैं किसी भी रुढि़वादी विचारधारा को नहीं मानती हूं और न ही अंधविश्वास को बढ़ावा देती हूं. यदि मैं माहवारी के दौरान मंदिर नहीं जाती हूं तो यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है न कि शगुनअपशुन का डर. हमारे पूर्वजों ने महिलाओं के हित में वैज्ञानिक आधार पर ही नियम बनाए थे और सख्ती बरतने के लिए धर्म का प्रयोग किया अन्यथा माहवारी से धर्म का कोई संबंध नहीं है. इस से जुड़े नियम उस समय और परिस्थिति के अनुकूल थे, जिन की आज आवश्यकता नहीं है. फिर भी इन्हें माना जा रहा है, तो यह बिलकुल अंधश्रद्धा है. मेरे हिसाब से यदि हम खुद को स्वस्थ और स्वच्छ समझ रहे हैं जो पूजापाठ के साथ हर काम कर सकते हैं.’’

आज की महिलाएं सहीगलत का फैसला स्वयं ले सकती हैं: सेवानिवृत शिक्षिका शोभा पांडेय का कहना है, ‘‘मैं धर्म के नाम पर किसी भी परंपरा को नहीं मानती हूं. मैं ने अपने जीवन में ऐसे कई रीतिरिवाज और परंपराएं तोड़ी हैं. मैं पिताजी की मौत पर श्मशाम भी गई थे. किसी ने ऐतराज नहीं किया था. इतना ही नहीं, महिलाओं के प्रमुख त्योहार वट सावित्री की पूजा और करवाचौथ का व्रत रखना छोड़ दिया है. इस में मेरे पति और परिवार को कोई आपत्ति नहीं है.

‘‘मेरा मानना है कि माहवारी से संबंधित कोई भी रिवाज या परंपरा महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर बनाई गई थी जिसे धर्म से जोड़ कर अशुद्ध, अपवित्र की संज्ञा दे कर महिलाओं का शोषण किया गया. आज हम स्वतंत्र हैं. सहीगलत में फर्क स्वयं कर सकते हैं. किसी धर्म या समाज से प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं है.’’

अनहोनी का डर

ये सभी विचार समाज की उन सभी महिलाओं के हैं, जो शिक्षित, स्वतंत्र व खुले विचारों की हैं, जो कहती हैं कि अंधश्रद्धा में विश्वास नहीं करती हैं. रुढि़वादी परंपराओं को मानने को व्यक्तिगत विचार मानती हैं, लेकिन जब बात धर्म की आती है, तो उलझ सी जाती हैं और धार्मिक कुतर्कों पर तर्क देते हुए स्वयं को अंधविश्वासी साबित कर देती हैं.

एक तरफ कहती हैं कि वे अंधश्रद्धा में विश्वास नहीं करती हैं और दूसरी तरफ वे सभी परंपराओं को मानती भी हैं, जिन की उत्पत्ति धर्म से हुई है. वे मानती हैं यह गलत है, नहीं होना चाहिए. प्रकृति का नियम है, माहवारी के दौरान भी धार्मिक स्थलों पर जा सकती हैं, पूजापाठ कर सकती हैं.

मगर जब उन से पूछो कि क्या वे जाती हैं तो जवाब मिलता है नहीं. कहती हैं कि यह अंधश्रद्धा नहीं बल्कि हमारा व्यक्तिगत निर्णय है. लेकिन वास्तविकता यह है कि इस व्यक्तिगत निर्णय या सैल्फ चौइस के पीछे हमारे मन में व्याप्त किसी अनहोनी का डर है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है.

बदलनी होगी सोच

सत्य यह है कि जो बदलाव हम देख रहे हैं वे केवल हमारे रहनसहन, पहननेओढ़ने तक ही सीमित है. मानसिकता तो आज भी वही है जिसे बदलना इस से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. यह कोई धर्म संबंधित विवादास्पद मुद्दा नहीं है, बल्कि हमारी सोच का है, हमारी मानसिकता का है, जो हमें विचलित कर के पीछे की ओर ले जाता है, जो कहता है कि समस्या आप हैं और यह बात हमारे मस्तिष्क में बैठ चुकी है. आसानी से तो नहीं हुआ होगा यह, जरूर कई प्रयोग हुए होंगे.

महिला ही पुरुषत्व को आगे बढ़ाती है

लगभग उसी तरह जैसे 1920 में वोल्फगांग कोहलर द्वारा किए गए प्रसिद्ध सोशल ऐक्सपैरिमैंट- ‘फाइव मंकीज ऐंड अ लैडर्स’ नामक स्टोरी में किया गया है, जिस में वैज्ञानिकों ने एक पिंजरे में 5 बंदर, सीढ़ी के शीर्ष पर रखे कुछ केलों के साथ बंद कर दिए. जब भी कोई एक बंदर सीढ़ी पर चढ़ता बाकी बंदरों को ठंडे पानी से भिगो दिया जाता था.

ऐसे में जब कोई एक चढ़ता तो उसे बाकी बंदर पीटने लगते. धीरेधीरे उन में एक दहशत बैठ गई. अब कुछ भी हो जाए कोई चढ़ने का प्रयास नहीं करता. फिर वैज्ञानिक इन की जगह एक के बाद एक नए बंदर लाते और जो भी चढ़ने का प्रयास करता, उस की वैसे ही पिटाई होती. अब ठंडा पानी डालने की जरूरत नहीं, लेकिन जो भी चढ़ता उस की पिटाई होगी. क्यों हो रही है, किसी को नहीं पता. इसलिए हो रहा है, क्योंकि ऐसे ही होता आ रहा है. यह मानव व्यवहार और मानसिकता को समझने का एक बेहतरीन उदाहरण है.

वैसे बंदर और मनुष्य में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. ऐसा कई बार बिना कोई कारण बताए हम से कहा जाता है कि ऐसा नहीं करना है, ऐसा करोगे तो वैसे हो जाएगा इत्यादि और हम बंदरों की तरह ही बिना जानेसमझे जैसा होता आया है, उसी को सच मान लेते हैं. वैसे ही करते आ रहे है, क्योंकि यही आसान है. असल में महिला ही पुरुषत्व को आगे बढ़ाती है और ऐसे रूढि़वादी विचारों को प्रवाह देती आई है.

परंपराओं के नाम पर शोषण

कितना अजीब है कि वैज्ञानिक युग में भी तथ्यों को नए सिरे से समझने के बजाय हम विज्ञान को भी इन रूढि़यों के अज्ञान का सहायक बना रहे हैं, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जो भी मान्यताएं और विश्वास आज विज्ञान द्वारा समर्थित नहीं हैं, उन के मूल स्रोतों को समझा जाए और उन के ऊपर से अंधविश्वास का परदा हटाया जाए.

समाज में धर्म के नाम पर सदियों से महिलाओं के लिए पुरुषों से अलग कायदेकानून बनाए गए हैं. रीतिरिवाज व परंपराओं के नाम पर हमेशा उन का शोषण हुआ या फिर उन के विकास को रोका गया, जिस के लिए सीमाएं निर्धारित की गईं और नियंत्रण में रखने के अनेक हथकंडे अपनाए गए. नतीजतन महिलाएं नियंत्रित ही नहीं, बल्कि इन आधारहीन रिवाजों की आदी भी हो गईं.

स्पष्ट है कि धर्म कभी महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान नहीं दे सकता है. यदि महिलाओं को समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है, तो अपने अधिकारों व आत्मसम्मान को धर्म से ऊपर समझना होगा. यह सदियों से जकड़ी हमारी मानसिकता का परिणाम है, जिसे अब बदलने की आवश्यकता है. बहस की जगह तर्क और अंधविश्वास की जगह आत्मचिंतन करने की जरूरत है और यह बहुत आसान है.

आत्मसम्मान से बड़ा कोई धर्म नहीं

पिछले दिनों मुंबई के एक एनजीओ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इसी से संबंधित सवाल पूछे जाने पर दक्षिण एशिया की प्रसिद्ध सामाजिक व नारीवादी कार्यकर्ता, लेखक, कवियित्री कमला भसीन कहती हैं, ‘‘महिलाएं माहवारी के समय अपवित्र होती हैं, धार्मिक स्थल पर नहीं जा सकती हैं इत्यादि कुप्रथाएं पितृसत्ता और पुरुषत्व बनाए रखने के लिए रची गई साजिश है. ये सब महिलाओं का घोर विरोधी शास्त्र मनुस्मृति की देन है. ये सब महिलाओं पर बड़ी ही चालाकी से थोपे गए हैं, उन के मन में भय पैदा किया गया है, जिस से उन का मनोबल टूटने के साथसाथ मानसिकता भी उसी तरह की हो गई.

‘‘विडंबना ऐसी रही कि इस मुद्दे पर कभी किसी ने विरोध नहीं किया. समय के साथ वह मानसिकता दृढ़ होती गई और इन आडंबरयुक्त धर्म व परंपराओं को बढ़ाने में महिलाओं का सब से ज्यादा हाथ है. यह कोई 50-100 साल का नहीं, बल्कि हजारों सालों का दोष है, जो इतनी आसानी से नहीं जाएगा. हमें यह समझना होगा कि यदि भगवान है तो हर जगह है अन्यथा कहीं नहीं है. अंधानुकरण करने के बजाय सवाल पूछें, तर्कवितर्क करें, जबजब मौका मिले विरोध करें और हमेशा याद रखें आत्मसम्मान से बड़ा कोई धर्म या समाज नहीं है.’’

दरअसल, मंदिरमसजिद जाना ही अंधविश्वास है और एक अंधविश्वास दूसरे अंधविश्वासों को जन्म देता है

कब खत्म होगा जाति भेदभाव : पुणे की यह घटना आप को झकझोर देगी

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भारतीय समाज में जाति प्रथा सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन में बहुत गहराईर् से जुड़ी हुई है. इस व्यवस्था के खिलाफ कोई भी कार्य पाप और भगवान का अपमान माना जाता है. वास्तविकता में यह कोई भगवान का दिया गुण नहीं है, जिस का अनुकरण किया जाए.

आजादी के 70 साल बाद भी हमारे देश में जाति और छुआछूत की भावना कितनी गहरी है, इस का अंदाजा हाल ही में घटी पुणे की एक घटना से लगा सकते हैं, जहां एक महिला वैज्ञानिक ने अपने घर में खाना बनाने वाली महिला पर जाति छिपा कर काम लेने और धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

पुणे के शिवाजी नगर में रहने वाली डा. मेधा विनायक खोले का आरोप था कि खाना बनाने वाली महिला निर्मला 1 साल से खुद को ब्राह्मण और सुहागिन बता कर काम कर रही थी जो कि झूठ था.

इस से उन के पितरों और देवताओं का अपमान हुआ. वैसे तो इस देश में जाति के आधार पर अन्याय और शोषण की घटनाएं आम बात हैं, लेकिन यह मामला हमारी उस गलतफहमी को दूर करता है जहां हम सोच रहे थे कि केवल अशिक्षित और मानसिक रूप से पिछड़े लोग ही इन धार्मिक और सामाजिक कुप्रथाओं का पालन कर रहे हैं, जबकि पुणे जैसे विकासशील शहरों में कुछ शिक्षित और संपन्न लोग उन से भी 2 कदम आगे हैं.

रोजगार की कमी एक समस्या

इस मामले में एक महिला के ऊपर झूठ बोल कर काम लेने का आरोप इसलिए लगा, क्योंकि वह छोटी जाति की है. लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि आखिर क्यों एक घरेलू कामकाज में कुशल महिला को इस तरह झूठ बोलने की जरूरत पड़ी?

देश में बेरोजगारी का जो माहौल है उस से साधारण जन काफी परेशान हैं. सरकारी एवं गैरसरकारी औफिसों में ही नहीं, बल्कि घरेलू रोजगारों में भी तेजी से गिरावट आई है. तथाकथित ऊंची जातियों द्वारा अपने घरों में छोटी जाति के लोगों को नौकरी देने से ले कर वेतन देने तक आनाकानी, भेदभाव और उन का शोषण किया जाता रहा है, जो आज भी जारी है.

रूढि़वादी मानसिकता बदलने की जरूरत

आज समाज के कुछ लोग ऊपरी तौर पर इस तरह के सामाजिक मानदंडों को छोड़ने का दिखावा जरूर कर रहे हैं. नेता, मंत्रीगण राजनीतिक लाभ के लिए दलितों के घर भोजन और साथ बैठने का दिखावा करते हैं, लेकिन उन के सामाजिक और धार्मिक विश्वासों में आज भी जातिवाद अच्छी तरह से स्थापित है.

इस सामाजिक मानसिकता का उन्मूलन करने में सब से बड़ी समस्या इस के लिए आम सामाजिक स्वीकृति है. जब तक यह खत्म नहीं होगा, इस समस्या से नजात पाना नामुमकिन है, क्योंकि कानून केवल शोषण से सुरक्षा प्रदान कर सकता है और शिक्षा निचली जातियों को उन के अधिकारों की जानकारी दे सकती है, लेकिन ऊंची जाति वालों के व्यवहार में बदलाव नहीं ला सकती है.

संकीर्ण मानसिकता का द्योतक

21वीं सदी में भी भारतीय समाज में जाति प्रथा अच्छी तरह से स्थापित और पवित्र नियम के रूप में इसलिए जारी है, क्योंकि यह एक विशेष वर्ग के अहंकार से जुड़ी हुई है. हजारों वर्षों से बनी यह वह मानसिकता है, जिस से ऊंची जातियां स्वयं को श्रेष्ठ साबित करती आई हैं.

आज भी ऊंची जातियां अपने घरों और बच्चों में छोटी जातियों के प्रति भेदभाव की भावना और जातिवाद के जहर को संस्कार के रूप में घोलने का हरसंभव प्रयास करती हैं. उन्हें निचली जातियों से श्रेष्ठ समझने की सीख देती हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी होता आया है. समाजशास्त्री प्रो. हरी नारके के अनुसार हमारा समाज विकासशील और प्राचीन मानसिकता के बीच फंस कर रह गया है. यह मानसिकता पूरी तरह से अहंकार और अंधश्रद्धा से जुड़ी है.

आजादी के बाद भारतीय संविधान में अनुच्छेद 13, 14, 15, 16 के अनुसार जाति के आधार पर लगाया गया कोई भी आरोप गंभीर और दंडनीय है, लेकिन इन नियमों को दरकिनार कर राष्ट्र और समाज की उपेक्षा करते हुए केवल जातिगत कल्याण के लिए सोचने की खतरनाक प्रवृत्ति न केवल साधारण जन, बल्कि देश के शिक्षित और बुद्धिजीवी जनों में भी व्याप्त है.

देश के शहरों में रहने वाली नई पीढ़ी का मानना है कि संविधान में जाति के आधार पर किसी भी काम को मान्यता नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि गांवों में ये सब आज भी जारी है. लेकिन पुणे जैसे प्रगतिशील शहर में ऐसे मामले का होना इस बात सुबूत है कि जाति का अहं किस हद तक लोगों के मन में भरा है.

श्रीदेवी कैमरे के सामने ही नहीं कैमरे के पीछे भी अभिनय करती थीं : राम गोपाल वर्मा

VIDEO : बिजी वूमन के लिए हैं ये ईजी मेकअप टिप्स

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दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी को लेकर निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने कई खुलासे किया हैं. ‘ग्रेट रौबरी’, ‘गोविंदा गोविंदा’ और ‘हैरान’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके राम गोपाल वर्मा का कहना है कि श्रीदेवी बहुत नाखुश महिला थीं. अक्सर ऐसा देखने में आता है कि किसी भी व्यक्ति का जीवन उसे देखने वाले की सोच से बिल्कुल उल्टा होता है, श्रीदेवी का जीवन इसका जीता जागता उदाहरण था.

श्रीदेवी (54) का निधन शनिवार (24 फरवरी 2018) को दुबई में एक होटेल के बाथरूम में हो गया था. पौस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, उनकी मृत्यु दुर्घटनावश बाथटब में गिरकर डूबने से हुई है. निर्देशक ने निजी विचार लिखते हुए कहा कि श्रीदेवी देश की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली महिला और सबसे बड़ी सुपरस्टार थीं, लेकिन यह कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है. वर्मा ने लिखा, ‘बहुतों के लिए श्रीदेवी का जीवन परिपूर्ण था. सुंदर चेहरा, महान प्रतिभा, देश की सबसे बड़ी स्टार और दो सुंदर बेटियों के साथ दूर से आदर्श दिखता उनका परिवार. दूर से यह सब देखकर लोग इस जीवन के सपने देख सकते हैं, इससे ईर्ष्या कर सकते हैं, लेकिन क्या श्रीदेवी बहुत खुश इंसान थीं और क्या वह एक खुशनुमा जिंदगी जी रही थीं?’

वर्मा ने कहा कि ‘इंग्लिश विंग्लिश’ की हल्की चमक को छोड़ दें तो श्रीदेवी बहुत नाखुश जिंदगी जी रही थीं. उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा था और बहुत कम उम्र में फिल्मी सफर शुरू करने के कारण जिंदगी ने उन्हें सामान्य गति से बढ़ने का वक्त कभी नहीं दिया. राम गोपाल वर्मा ने सवाल करते हुए कहा, ‘बाहरी शांति से ज्यादा उनकी मानसिक अवस्था ज्यादा चिंतनीय थी.

निर्देशक ने कहा, उन्हें बहुत कम उम्र से प्रसिद्धि का स्वाद मिल गया था, जिसने उन्हें कभी आत्मनिर्भर होने का मौका नहीं दिया और वह नहीं बनने दिया जो वह वास्तव में बन सकती थीं या बनना चाहती थीं. वह कैमरे के सामने ही नहीं कैमरे के पीछे भी अभिनय कर रही थीं. श्रीदेवी अंदर ही अंदर जिस दर्द को जी रही थीं, मैं उस दर्द को उनकी आंखों में देख सकता था, क्योंकि वह वास्तव में महिला के शरीर में कैद एक बच्ची थीं. एक इंसान के तौर पर वह निष्कपट थीं और अपने कड़वे अनुभवों के कारण वहमी भी.

वर्मा कहते हैं कि वह श्रीदेवी को तब से जानते हैं, जब वह अपनी पहली फिल्म ‘क्षण क्षणम’ के लिए उनसे मिली थीं. फिल्म निर्माताओं के लिए श्रीदेवी हमेशा बहुत शर्मीली, असुरक्षित महसूस करने वाली और कम आत्मविश्वास वाली अदाकारा थीं. उन्होंने लिखा, ‘मैंने अपनी आंखों से देखा था कि उनके पिता की मृत्यु तक उनका जीवन आकाश के एक पक्षी की तरह था और उसके बाद उनकी ओवर प्रोटेक्टिव मां के कारण उनका जीवन पिंजड़े में बंद पंक्षी की तरह हो गया. कई लोगों के लिए वह सबसे सुंदर महिला थीं, लेकिन क्या वह सोचती थीं वह सुंदर हैं?’

उन्होंने कहा, ‘वह अपनी बेटियों के लिए चिंतित थीं. बावजूद कि उनकी बड़ी बेटी फिल्म धड़क से बौलिवुड में कदम रखने जा रही हैं और बौलीवुड छोटी बेटी को भी अपना लेगा.  उन्होंने कहा, ‘मैं सामान्य तौर पर किसी की मृत्यु के बाद यह नहीं कहता कि आपकी आत्मा को शांति मिले, लेकिन उनके मामले में मैं वास्तव में यह कहना चाहता हूं, क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि जिंदगी में पहली बार उनको शांति मिली होगी.’

घूमने के लिए सबसे सस्ती हैं दुनिया की ये 10 जगह

क्या आप घूमने-फिरने की शौकीन हैं. अगर हां, तो ये खबर आपके लिए है. गर्मियों की छुट्टी होने वाली है. ऐसे में अगर आप नई और अच्छी जगहों की सैर करना चाहती हैं. वो भी कम बजट में तो आपके लिए एक खुशखबरी है. दरअसल, दुनियाभर में ऐसी कई जगह हैं, जहां आप न सिर्फ कम बजट में सैर-सपाटा कर सकती हैं, बल्‍कि नेचर का मजा भी ले सकती हैं. इस साल के दुनियाभर के सबसे सस्ते डेस्टिनेशन की एक लिस्ट फोर्ब्स ने जारी की है, जो आपके दुनिया घूमने के सपने को पूरा करने में मदद कर सकती है.

ये हैं दुनिया के टौप-10 सस्ते डेस्टिनेशन

जांजीबार

जांजीबार के बारे में लोगों का सोचना हैं कि यह एक महंगा डेस्टीनेशन है. अगर आप भी ऐसा सोचते हैं कि तो आप गलत है. पूर्वी अफ्रीका के यूनाइटेड रिपब्लिक औफ तंजानिया का एक अर्द्ध-स्वायत्त हिस्सा है. यहां घूमने के लिए आपको अपने जेब पर ज्यादा भार लेकर चलने की जरूरत नहीं है. आपको यहां तुलिया जांजीबार और मेलिया जांजीबार जैसे कई लक्जरी रिसौटर्स मिल जाएंगे. जहां आप कम दामों में मौज मस्ती कर सकती हैं.

अल्बुफेरा, पुर्तगाल

विदेश में घूमने का प्लान कर रही हैं, तो पुर्तगाल आपके लिए एक अच्छा औप्शन हो सकता है. पुर्तगाल में अल्बुफेरा आपके लिए एक ऐसी जगह है. जहां की जलवायु, शानदार समुद्री तट, सुंदर और अद्भुत चट्टानें आपको निश्चत रूप से आनंद देंगे. यहां रहने के लिए सस्ते अपार्टमेंट्स के साथ-साथ आपको खाने के लिए भी बहुत कम दामों में अच्छा खाना मिल जाएगा.

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सेंट मार्टिन

सेंट मार्टिन कैरेबियन सागर में लीवार्ड द्वीप समूह का हिस्सा है. कैरेबियन सागर दो समूह में बांटा है. आधा हिस्सा फ्रांस के हिस्से में आता है जो सेंट मार्टिन के नाम से जाना जाता है. दूसरा दक्षिण का हिस्सा सिंट मार्टिन नीदरलैंड एंटीलिज का हिस्सा है. दोनों ही तटों पर खूबसूरती के सुंदर नजारों के साथ आप अपनी छुट्टियों को भी और यादगार बना सकती हैं. यहां पर आपको समुद्र के सुंदर तटों के नाजारों के साथ सस्ते बार और खाने-पीने के लिए रेस्तरां मिल जाएंगे.

नेपल्स

नेपल्स यूरोपीय महाद्वीप के इटली के दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित सबसे पुराने शहरों में से एक है. जहां की खूबसूरती समुद्र के किनारों पर बनें सुंदर नजारें, समुद्र से दिखने वाले पहाड़ लोगों को बार-बार यहां आने के लिए मजबूर करता है. नेपल्स एक ऐसा शहर जहां आप घूमने-फिरने के साथ यहां के इतिहास को भी बहुत करीब से जान सकती हैं. यहां सांस्कृतिक स्थलों के साथ-साथ आपको स्मारक भी नजर आएंगे, जो यहां के इतिहास को बताता है. नेपल्स को ही पिज्जा का जनक माना जाता है.

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श्रीलंका

बादलों में छिपे पर्वत, झरने, चाय के बागान, ताड़ के पेड़ों के गलियारे और बहुत से हसीन नजारों को समेटे श्रीलंका भी इस लिस्ट में शामिल है. जंगलों में ट्रेकिंग करने के शौकीन हैं या समंदर के किनारे घंटों बैठना पसंद है तो यह देश आपको बेहद पसंद आएगा. यहां बुद्ध की संस्कृति को करीब से जानने का अनुभव भी लिया जा सकता. आप इस देश में कम खर्च में घूमने का पूरा मजा ले सकती हैं.

कुक आइलैंड

आपने अगर एक बार इस आइलैंड की सैर कर ली तो आपका आइलैंड को लेकर नजरिया बदल जाएगा. ये अपने आप में बेहद अद्भुत है साथ ही इसमें 15 आइलैंड का समावेश है. कुक आइलैंड में वो सब कुछ है जिसे आप दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में ढूंढने की उम्मीद करेंगी. यहां आपको पारंपरिक और आधुनिक खूबसूरती का समावेश मिलेगा.

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उज्बेकिस्तान

मध्य एशिया में यात्रा करना वाकई कई मायनों में एडवेंचर्स है. बुनियादी ढांचे वहां की सुंदरता को बयां करते हैं हालांकि सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं लेकिन आधुनिकीकरण के साथ चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं. समरकंद और बुखारा में यहां के भव्य संरक्षित धार्मिक स्थलों का मिश्रण देखा जा सकता है. यहां की संस्कृति, भोजन लोगों को अपनी ओर खींचते हैं.

वैंकूवर

कनाडा एक रंग-बिरंगा देश है. यहां का टूरिज्म भी दूसरे देशों से बेहतर माना जाता है. पूरी दुनिया से लोग यहां घूमने आते हैं. यह बेहद खूबसूरत है. मेपल सेंटेड इस भूमि पर ऐसी बहुत सी जगह हैं, जहां एक बार घूमने जरूर जाना चाहिए. वैंकूवर कनाडा का सबसे खूबसूरत जगह में से एक है. वैंकूवर में घूमने का सही समय स्प्रिंग का मौसम माना जाता हैं.

फुकेट, थाईलैंड

थाईलैंड के फुकेट द्वीप को एशिया के सबसे लोकप्रिय रिसौर्ट के रूप में माना जाता है. यहां वो सब कुछ है जिसकी कल्पना एक शानदार छुट्टी मनाने के लिए की जा सकती है. भारतीयों के बीच टूरिजम के लिहाज से थाइलैंड दुनिया के सबसे लोकप्रिय देशों में से एक है. इससे रोमांटिक जगह आपको नहीं मिलेगी. यहां शानदार होटल, खूबसूरत बीच, कई तरह के रोमांच, और आस-पास के बेइंतहा खूबसूरत द्वीपों की सैर के साथ आपको सब कुछ मिलेगा. यह शहर अपनी खूबसूरत इमारतों और दिलकश नजारों के लिए पूरी दुनिया के टूरिस्टों में मशहूर है.

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बुल्गारिया

दक्षिण-पूर्वी यूरोप में बुल्गारिया घूमने के लिए दुनिया के सबसे सस्ते देशों में सातवें स्थान पर है. काले समंदर के किनारे बसे इस देश में आमतौर पर ब्रिटिश घूमने आते हैं. अगर आपको समंदर के किनारे घूमना पसंद है तो बुल्गारिया की राजधानी सोफिया बेस्ट औप्शन है. यह यूरोप का दूसरा सबसे पूराना शहर है, जहां ज्यादातर म्यूजियम और गैलरीज देखने को मिलेंगी.

इन तरीकों से सुनिश्चित करें नियमित आय

मुसीबतें कभी बताकर नहीं आती, इसके लिए पहले तैयार रहना जरूरी है. भविष्य की आर्थिक जरूरतों के लिए हम एक बड़ी राशि इंश्योरेंस, यूलिप, फिक्स डिपौजिट और म्यूचुअल फंड जैसे विकल्पों में निवेश करते रहते हैं. लेकिन इन सब के बावजूद भी कई बार ऐसी मुसीबतों से निपटने में असमर्थ हो जाते हैं. पैसों की एकदम से जरूरत पड़ने की स्थिति में हम अपनी एफडी या यूलिप का प्रीमैच्योर विड्रौल कर लेते हैं, नतीजन पूरी रकम भी नहीं मिल पाती.

इस की तरह की गलतियों से बचने के लिए रखें नीचे दी गई बातों का ख्याल-

कैश आउटफ्लो जैसे कि होम लोन, लोन ऐर इंश्योरेंस प्रीमियम ऐसे खर्चें हैं जो पहले से तय होते हैं. इनके साथ दिक्कत तब आती है जब कैश इन्फ्लो यानि कि आय में अनियमितता आ जाती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि जो लोग स्वनियोजित हैं या सीजनल व्यवसाय के साथ जुड़े हैं उन्हें आकस्मिक व्यय के लिए एक फंड तैयार करना चाहिए. विशेषज्ञ मानते हैं कि इमर्जेंसी फंड की राशि उतनी होनी चाहिए जो आपके 6 महीनों के खर्चों को पूरा कर सके. इस राशि को सेविंग एकाउंट या लिक्विड म्युचुअल फंड में निवेश करें. इन फंड्स में लौक-इन पीरिएड नहीं होता और विड्रौल में भी ज्यादा समय नहीं लगता. बचत खाते में इमर्जेंसी फंड के तौर पर जमा राशि किसी भी समय एटीएम की मदद से निकाल सकते हैं.

अपने अनुभव के हिसाब से आकलन कर लें कि एक महीने में औसतन आपका कितना खर्चा होता है. इसके बाद जो भी सरप्लस हो उसे लिक्विड फंड में निवेश कर दें. इस राशि का इस्तेमाल तुरंत भुगतान में किया जा सकता है जैसे कि किसी नए इक्विपमेंट या फिर यदि आपका व्यव्साय बढ़ता है तो अतिरिक्त औफिस जगह के डिपौजिट के लिए. कोशिश करें कि निजी और बिजनेस खर्चें अलग रखें, इससे आपको मौजूदा बिजनेस के खर्चों, मुनाफा और व्यवसाय में क्या नया है जैसी चीजों के बारे में पता चलता रहेगा.

finance

कैश फ्लो में उस समय पर भी दिक्कत देखने को मिलती है जब अनपेक्षित खर्चें सामने आ जाते हैं. ऐसी स्थिति में बेहतर है कि डेट को एसेट क्रियेट करने में, राजस्व बढ़ाने और प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें बजाय इस तरह कि चीजों के पीछे भागने के जो आपके व्यवसाय में कोई बढ़ोतरी नहीं कर रहे. एक डौक्टर के उदाहरण से समझें- डौक्टर के लिए सबसे नया, अप टू डेट इक्विपमेंट लेना अपने क्लिनिक के इंटिरीयर से ज्यादा महत्वपूर्ण है.

डेट का सही इस्तेमाल करें और फिक्स्ड डिपौजिट, म्युचुअल फंड्स, स्टौक्स या प्रौपर्टी के लिए ओवरड्राफ्ट के विकल्प का चयन करें. यह पर्सनल लोन की तुलना में कम ब्याज दरों पर उपलब्ध होता है. क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करेत दौरान हर महीने की पूरी बकाया राशि का भुगतान करें. कोशिश करें कि न्यूनतम से ज्यादा भुगतान कर दें.

एक बार इमरजेंसी फंड का निर्माण करने के बाद सुनिश्चित करें कि सभी संभावित जोखिम जैसे कि हेल्थ, अक्षमता, मृत्यु (वित्तीय देनदारी) और प्रौपर्टी इंश्योरेंस कंपनी को ट्रांस्फर कर दें. मूल रूप से वो सभी खरीद जिनकी जरूरत मेडिकल इमरजेंसी, अक्षमता, जीवन, एसेट (कार, होम, औफिस इक्विपमेंट) या अन्य किसी व्यवसायिक देनदारी के लिए हैं. ऐसा न होने की स्थिति में आपके परिवार या व्यवसाय को भारी जोखिम उठाना पड़ सकता है.

जब भविष्य के लिए आपका ये प्लान तैयार हो जाए तो अपने परिवार की जरूरत और अपनी रिटायरमेंट की जरूरतों को पूरा करें. अपने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में डेट, इक्विटी, रियल एस्टेट और गोल्ड को शामिल करें.

प्रिया प्रकाश का नया वीडियो वायरल, लोग करने लगे ट्रोल

मलयालम एक्ट्रेस प्रिया प्रकाश वारियर पिछले दिनों अचानक सोशल मीडिया की स्टार बन गई. दरअसल, मलयालम फिल्म Oru Adaar Love का गाना ‘माणिक्य मलाराया पूवी…’ वेलेंटाइन डे के मौके पर खूब वायरल हुआ. इस गाने में प्रिया प्रकाश अपनी आंखों से खूब निशाने साधती हुई नजर आईं.

गाने में प्रिया प्रकाश बोहें मटकाते और आंख मारती हुई दिखाई देती है. बस इस गाने के सामने आने के बाद हर कोई उनका दीवाना हो गया.

वहीं अब प्रिया प्रकाश का एक वीडियो सामने आया जिसमें प्रिया गाना गाती हुई भी दिखाई दे रही हैं. दर्शकों का कहना है कि प्रिया बेहद अच्छी अदाकरा हैं, वहीं उनके डांसर होने की बात भी सामने आई है और अब लोग उन्हें गाना गाते हुए भी सुन रहे हैं.

इसके चलते सोशल मीडिया पर प्रिया का सिंगिंग वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है. इस वीडियो में प्रिया प्रकाश वारियर ‘कभी अलविदा न कहना’ का टाइटल ट्रैक गाती हुई नजर आ रही हैं. प्रिया इस गाने को मगन होकर गाती हुई दिख रही हैं.

वहीं देखने वालों को उनका ये वीडियो भी खूब पसंद आ रहा है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कह रहे हैं कि ये गाना प्रिया नहीं गा रही हैं. ट्विटर पर अपलोड इस वीडियो पर ट्वीटर यूजर कमेंट करते हुए कह रहे हैं कि यह सब लिप्सिंग का कमाल है. तो वहीं प्रिया को सपोर्ट करने वालों की भी कमी नहीं हैं. इस वीडियो के सामने आने के बाद इस ट्वीट पर प्रिया के चाहने वालों ने प्रिया को मल्टी टैलेंटेट कहना शुरू कर दिया.

अगर ‘चक दे इंडिया’ न साइन की होती तो आज नैशनल टीम में होती : चित्रांशी रावत

एक हौकी खिलाड़ी मैदान छोड़ कर फिल्मों में कैसे आ गईं?

सच बताऊं, तो मेरे अंदर बचपन से एक प्लेयर रहा है, आर्टिस्ट कभी नहीं. मैं जब उत्तरांचल की जूनियर टीम में खेलती थी तब जूनियर नैशनल टूरनामैंट के लिए जबलपुर आई थी. उस समय वहां फिल्म ‘चक दे इंडिया’ की टीम महिला हौकी खिलाडि़यों का अपनी फिल्म के लिए औडीशन ले रही थी. मैं ने भी अपनी फ्रैंड्स के साथ यह सोच कर औडीशन दे दिया कि शाहरुख खान के नाम का झूठा उपयोग कर ये लोग कोई टैलीफिल्म बना रहे हैं. मजाकमजाक में दिया मेरा औडीशन निर्देशक को पसंद आ गया और मुझे मुंबई बुला लिया गया.

ऐक्टिंग के लिए क्या तैयारी की थी?

शुरुआत में तो 6 महीने मैं ने सिर्फ हौकी ही खेली, लेकिन जब पता चला कि हौकी के साथ ऐक्टिंग भी करनी है तब जरूर सोच में पड़ गई. लेकिन फिर यह सोच कर कि सिर्फ यही फिल्म करनी है सीरियस नहीं हुई. जब फिल्म ‘सुपरडुपर’ हिट हुई तो साथ में हम लोग भी हिट हो गए. तब सोचा चलो अब ऐक्टिंग में ही सीरियस हो कर कैरियर बनाया जाए.

ऐक्टिंग के बाद हौकी खेलना छोड़ दिया क्या?

मैं अभी भी अपनेआप को एक खिलाड़ी ही मानती हूं. अगर उस समय ‘चक दे इंडिया’ फिल्म न साइन की होती तो आज नैशनल टीम में जरूर होती, क्योंकि जब मेरा औडीशन हुआ तो उस समय मैं नैशनल की ही तैयारी कर रही थी. मेरे साथ की कई लड़कियां आज नैशनल टीम में खेल रही हैं. मुंबई में मैं जैसे ही काम से फ्री होती हूं हौकी ले कर मैदान में पहुंच जाती हूं.

फिल्मों से खेलों को बढ़ावा मिलता है?

जरूर मिलता है. जब ‘भाग मिल्खा भाग,’ ‘चक दे इंडिया,’ ‘मैरी कौम’ फिल्में आईं तब लोगों ने जाना कि इन खिलाडि़यों ने यहां तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष किया. हौकी के जादूगर ध्यानचंद की बायोपिक भी बनने वाली है. यकीनन ऐसी फिल्में लोगों को खेलों के प्रति आकर्षित करती हैं.

मेरा पीआर बहुत खराब है

खबरों में कम आने के सवाल पर चित्रांशी कहती हैं कि मैं ने काम तो बहुत किया है पर क्या करूं उस की पब्लिसिटी करना मुझे नहीं आता. मेरा स्वभाव ऐसा है कि मैं लोगों से ज्यादा नहीं मिलती. मेरा मानना है कि चेहरा दिखाने से अच्छा है अपना काम दिखाओ.

घूमना पसंद है

मैं बहुत घुमंतू मूड की हूं, इसलिए उस प्रोजैक्ट को नहीं करती, जिस में बंध जाऊं. तभी मैं टीवी पर काम कम करती हूं. आज टीवी पर 12 से 16 घंटे शूटिंग ही होती है और शो कई महीने चलते हैं. थिएटर करने की एक वजह यह भी है, क्योंकि हमारा ग्रुप विदेशों में भी कई शो कर चुका है.

थिएटर का शौक

शुरुआत में तो थिएटर के नाम से ही मेरे हाथपांव फूल जाते थे, लेकिन जब लोगों ने सलाह दी कि अगर ऐक्टिंग करनी है तो स्टेज पर जाना ही होगा. तब थिएटर करने लगी. मैं ने 2 साल तो सिर्फ थिएटर ही किया. कोई और काम नहीं. मैं एक प्रयास थिएटर ग्रुप में हूं और पद्मिनी कोल्हापुरे, असरानीजी के साथ कई शो कर चुकी हूं.

शाहरुख मेरे मैंटोर हैं

उत्तरांचल की रहने वाली चित्रांशी रावत स्कूल के दिनों से ही हौकी की बेहतरीन प्लेयर रही हैं. 17 साल की उम्र में ही वह उत्तरांचल की महिला हौकी टीम में खेलने लगी थी. शाहरुख को अपना मैंटोर बताने वाली चित्रांशी ने फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में ठेठ हरियाणवी लड़की कोमल चौटाला का रोल निभाया था.

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