रंगों के त्योहार में न हो सेहत बेरंग

होली रंगों में डूब जाने का त्योहार है. होली पर हर किसी का रंगों में सराबोर होने का मन करता है, लेकिन कहीं यह चाहत आप की त्वचा की रंगत न उड़ा दे, इस का भी रखें ध्यान. कौस्मैटिक स्किन ऐंड होम्योक्लीनिक की होम्योफिजीशियन डा. करुणा मलहोत्रा ने बताया कि कैमिकल रंगों से कभी होली न खेलें. अपने दोस्तों को भी यह बता दें कि कैमिकल युक्त रंग त्वचा को हानि पहुंचाते हैं.

अगर कोई रंग रगड़ कर लगाया गया हो, तो उसे साबुन के बजाय फेस वाश से धोएं, पर धोते समय यह ध्यान रखें कि त्वचा पर लगे रंग को हरगिज रगड़ कर न हटाएं वरना त्वचा को नुकसान हो सकता है. अगर चेहरे में खुजली महसूस हो रही हो, तो ग्लिसरीन और गुलाबजल को मिला कर फेस पर लगाएं और थोड़ी देर बाद चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें. आराम मिलेगा.

होली पर त्वचा को रंगों से बचाने के लिए पूरे बदन को ढकने वाले वस्त्र पहनें. इस से शरीर के कम भाग रंगों के प्रभाव में आएंगे.

ऐसे रंगों से बचें

रंगों में मौजूद कैमिकल्स आप की जिंदगी बेरंग कर सकते हैं. फोर्टिस हौस्पिटल के कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. विकास गोस्वामी के मुताबिक गीले रासायनिक रंगों में भी ग्रीन कौपर सल्फेट, मरकरी सल्फेट, क्रोमियम जैसे अकार्बनिक और बैंजीन जैसे घातक ऐरोमैटिक कंपाउंड होते हैं.

सिल्वर रंग में मौजूद ऐल्यूमीनियम ब्रोमाइड और लाल रंग में मौजूद मरकरी सल्फाइड त्वचा के कैंसर का कारण बन सकते हैं. इस के साथसाथ रूखापन, हलकी खारिश, जलन, चकत्ते, ऐलर्जिक डर्मेटाइटिस व कई मामलों में त्वचा झुलस जाती है. ऐसी स्थिति में कैमिकल्स में मौजूद महीन तत्व त्वचा में दाखिल हो कर स्किन कैंसर का भी कारण बन सकते हैं.

परेशानियों और बीमारियों से बचने के लिए होली हर्बल रंगों से ही खेलें, रासायनिक रंगों का इस्तेमाल बिलकुल न करें. चमकीले पेंट, कीचड़ या ग्रीस से होली न खेलें. कानों, मुंह और आंखों में रंग जाने पर तुरंत साफ करें. त्वचा को रंगों के सीधे प्रभाव से बचाएं.

न हो रंग में भंग

रासायनिक रंगों के साथ भांग व नकली मेवे का सेवन भी खतरनाक है. भांग का सेवन बहुत ज्यादा खतरनाक होता है. भांग का सेवन करने वालों में यूफोरिया, ऐंग्जाइटी, साइकोमोटर परफौर्मैंस जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. एक शोध के अनुसार यदि कोई व्यक्ति 15 वर्ष से भांग का सेवन करने लगता है तो 26 वर्ष की आयु में उस में मानसिक विकार होने की संभावना 4 गुना ज्यादा बढ़ जाती है.

शांता आईवीएफ सैंटर की गाइनेकोलौजिस्ट व आईवीएफ विशेषज्ञा डा. अनुभा सिंह ने बताया कि महिलाओं में भांग के सेवन से उन के मां बनने की क्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ता है. गर्भवती महिलाओं द्वारा भांग का सेवन करने से इस का असर भ्रूण पर भी पड़ता है. भांग का उपयोग करने से भूख में कमी, नींद आने में दिक्कत, वजन घटना, चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, बेचैनी और क्रोध बढ़ना जैसे लक्षण शुरू हो जाते हैं.

भांग का सेवन करने से हृदयगति, ब्लडप्रैशर में बदलाव, हृदय संबंधी बीमारी आदि के गंभीर परिणाम सामने आते हैं. इस का क्रोनिक प्रभाव दिमाग पर पड़ने के साथ ही ड्रग की तरह लत भी लग सकती है. भांग से मस्तिष्क के विकास में गड़बड़ी संभव है.

भांग के सेवन के दुष्प्रभाव

– भांग के सेवन के बाद व्यक्ति को अपने मन की स्थितियों या परिस्थितियों के अनुसार प्रिय या अप्रिय प्रभाव महसूस हो सकते हैं.

– काम के दौरान भांग का सेवन करने से दिन में सपने देखने की संभावना ज्यादा होती है, जिस से कामकाज पर प्रभाव पड़ता है.

– भांग के नियमित उपयोग से साइकोटिक ऐपिसोड या सीजोफ्रेनिया होने का खतरा दोगुना हो सकता है.

– भांग के सेवन का आदी होने पर आदमी अन्य सभी चीजों में रुचि लेना बंद कर देता है. अपनी अन्य जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता.

रंगों के त्योहार का असली मजा तभी है जब मस्ती के साथसाथ सेहत का भी पूरा ध्यान रखा जाए. हैप्पी होली.

कैसे रुकें किशोर अपराध, माता पिता को करना होगा इन बातों पर अमल

अंतिम किस्त

पिछले अंक में आप ने पढ़ा:

पिछले कुछ सालों से ऐसे अपराधों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, जिन्हें किशोरों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है. इन अपराधों में चोरी, डकैती, स्नैचिंग, हत्या और यहां तक कि बलात्कार भी शामिल हैं. जो बच्चे देश के भविष्य हैं, अगर समाज द्वारा स्थापित मूल्यों और मान्यताओं से भटक कर आपराधिक कार्यों में लिप्त होंगे, तो यह बहुत कुछ सोचने को विवश करता है.

-अब आगे पढ़ें:

बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? बाल अपराध क्यों जन्म लेते हैं? मनुष्य के अंदर हिंसक और अपराधी भाव क्यों जन्म लेते हैं? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण करना होगा. इस के 2 मुख्य कारण हैं- स्वभावगत और परिवेशगत. इन 2 कारणों के कई उप कारण भी हो सकते हैं, परंतु अगर हम उपरोक्त दोनों कारणों को समग्र रूप से समझ लें, तो उप कारण अपनेआप ही स्पष्ट हो जाते हैं.

पहला: स्वभावगत कारण के मुख्य लक्षण होते हैं- बालक का उग्र और क्रोधी स्वभाव, जिद्दी और हठी होना, किसी चीज को प्राप्त करने के लिए अनुचित हठ, छोटीछोटी बातों पर हंगामा खड़ा करना, बातबात पर हिंसक आचरण आदि. ये लक्षण जब सीमा पार कर जाते हैं, तो अपराध का रूप धारण कर लेते हैं.

दूसरा: परिवेशगत कारण बहुत स्पष्ट होते हैं- अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, कुसंगति, आलस, लालच, अतिमहत्त्वाकांक्षा, कामचोरी, बिना श्रम के बहुत कुछ प्राप्त करने की चाह आदि.

अपराधी कोई भी हो, उस के आपराधिक लक्षण समयसमय पर परिलक्षित होते रहते हैं, परंतु परिवार और समाज उन्हें समय पर पहचान नहीं पाता या पहचान कर भी अनजान बना रहता है. जैसेकि मातापिता अत्यधिक लाड़प्यार में अपने बेटे की बुराइयों को उपेक्षित करते रहते हैं और बाद में बच्चों की बुराइयां उन्हें बड़े अपराध की तरफ आकृष्ट करती हैं. मातापिता को सुध तब आती है, जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है.

स्मार्ट फोन और इंटरनैट की सुविधा के कारण आज बच्चे सैक्स के प्रति विशेषरूप से आकृष्ट हो रहे हैं. जो बच्चे किसी कारणवश सैक्स से वंचित रहते हैं, वे कुंठित हो जाते हैं. आज बलात्कार के ज्यादातर मामलों में आरोपी और पीडि़त दोनों ही कमउम्र के यानी नाबालिग होते हैं.

सैक्स के प्रति आकर्षण

बालमन में जिज्ञासाएं बहुत होती हैं. पहले वैज्ञानिक उपकरणों के अभाव और सामाजिक मूल्यों और मान्यताओं के कारण किशोर उम्र के बच्चे अपनी जिज्ञासाओं को दबा कर रखते थे. अगर उन की जिज्ञासाएं उफान मारती भी थीं, तो भी पारिवारिक और सामाजिक अनुशासन के कारण वे अपराध की ओर आकृष्ट नहीं होते थे. मगर आज परिदृश्य बदल गया है.

फिल्मों में नायकनायिका का खुला और सैक्स से भरपूर अभिनय बच्चों के मन में सैक्स की भावनाओं को भड़काता है. इस के अतिरिक्त इंटरनैट की दुनिया में हर प्रकार का यौन साहित्य और फिल्में उपलब्ध हैं.

सुविधाभोगी बच्चों को ही नहीं, स्मार्ट फोन की वजह से यह आज हर आम और खास बच्चे की पहुंच के अंदर है. इंटरनैट की आभासी दुनिया बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां प्यार नहीं सैक्स की उन्मुक्त और सुगंधित बयार है, वासना का खुला खेल है. बालमन को यह दुनिया बहुत लुभाती है.

बच्चों में सैक्स के प्रति आकर्षण उन्हें प्यार और सैक्स के लिए लड़कियों की तरफ आकर्षित करता है. जिन्हें यह सुख आसानी से प्राप्त हो जाता है, वे अपराध से दूर रहते हैं, परंतु जिन बच्चों को सैक्स का सुख नहीं मिलता वे नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर के उन के साथ सामूहिक बलात्कार और पकड़े जाने के भय से उन की हत्या तक कर डालते हैं.

चौंकाती हैं घटनाएं

इस संदर्भ में 2 घटनाओं का उल्लेख करना अच्छा रहेगा. पिछले दिनों दिल्ली के 4 किशोरों और एक वयस्क व्यक्ति ने जन्मदिन मनाने के बहाने पड़ोस की एक 23 वर्षीय लड़की को एक घर में आमंत्रित किया और फिर रात में उसे बंधक बना कर उस के साथ सामूहिक बलात्कार किया. केवल एक नाबालिग लड़का ही उस लड़की को जानता था. उसी ने लड़की को अपने घर बुलाया था. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि लड़की बिना किशी शंका के उस लड़के के घर गई थी, जबकि उन किशोरों और व्यक्ति ने घटना को पूर्व योजना के तहत अंजाम दिया था. अत: हम यह नहीं कह सकते कि किशोरों की सोच नाबालिग थी. ये सारे अपराधी साधारण परिवारों के हैं.

दूसरा मामला एक छोटी बच्ची के अपहरण का है. इस की जांच मैं ने ही की थी. 2000 में मैं सीबीआई, मुंबई की विशेष शाखा में बतौर डीएसपी तैनात था. अप्रैल, 2000 में मुझे एक अपहरण का मामला जांच के लिए दिया गया. यह मामला गांधीनगर गुजरात का था.

17 साल का आरोपी अपने मामा के साथ वैन से स्कूली बच्चों को छोड़ने और लाने का काम करता था. उस की वैन में एक साढ़े तीन साल की बच्ची भी स्कूल आतीजाती थी. उसी बच्ची का उस ने अपहरण किया था. हालांकि 15 दिन के अंदर ही बच्ची को बरामद कर आरोपी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था, परंतु ज्वलंत प्रश्न यह था कि एक नाबालिग (कानून की भाषा में) आरोपी की साढ़े तीन साल की अबोध बच्ची के अपहरण के पीछे मंशा क्या थी?

विवेचना के दौरान आरोपी की पारिवारिक स्थिति, उस के आचरण, स्वभाव आदि के बारे में जो जानकारी इकट्ठी की गई उस के अनुसार वह अत्यंत गरीब घर का लड़का था. स्कूल में फेल होने के बाद आवारागर्दी करने लगा था. उस की हरकतों से तंग आ कर उस के पिता ने उस के मामा के साथ काम पर लगा दिया था कि व्यस्त रहेगा.

आरोपी की व्यक्तिगत जिंदगी, उस के मनोविज्ञान और आचरण को समझने के लिए उस के मित्रों से बात की गई तो आरोपी के बारे में निम्न मुख्य बातें पता चलीं:

उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं थी.

वह अकसर बच्ची के बारे में बात करता था.

कई मौकों पर उस ने बच्ची की मां की सुंदरता के बारे में भी बात की थी.

वह अकसर किसी लड़की को भगा कर ले जाने की बात करता था.

आरोपी के मामा की मारुति वैन में आनेजाने वाली 2-3 बड़ी लड़कियों से भी बात की गई. उन से पता चला कि वैन में आतेजाते आरोपी अकसर बच्ची को अपनी गोद में बैठा लेता था. उस के गालों में चुटकी काटता था और उसे चूम भी लेता था. अन्य बच्चों के साथ वह ऐसा नहीं करता था. जब कभी उस की मां सड़क तक बच्ची को लेने नहीं आ पाती थी, तो वह बच्ची को उस के घर तक छोड़ने भी जाता था.

आरोपी ने स्वयं स्वीकार किया कि वह बच्ची की मां पर मोहित था, परंतु वह उस की पहुंच से दूर थी. अत: उस ने सोचा कि बच्ची एक दिन बड़ी हो कर अपनी मां जैसी सुंदर होगी और वह उस के साथ शादी कर लेगा.

एक बाल अपराध के कच्चे मन के मनोविज्ञान को समझने के लिए यह बहुत अच्छा उदाहरण है.

कुछ बाल अपराधी केवल इसलिए अपराध कर बैठते हैं, क्योंकि उन्हें किसी की बात नागवार गुजरती है या उन्हें वह काम करना पसंद नहीं होता, जिस के लिए उन के ऊपर दबाव डाला जाता है. गुरुग्राम के प्राइवेट स्कूल में छात्र की हत्या के मामले में किशोर छात्र को परीक्षा स्थगित करवानी थी और इस के लिए वह कई दिनों से योजना बना रहा था. योजना का स्वरूप उस के मन में स्पष्ट नहीं था. परीक्षा टलवाने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार था.

संयोग से उस दिन 7 वर्षीय बालक उसे टौयलट में अकेला मिल गया और उस ने उस की हत्या कर दी. वहीं नोएडा में किशोर द्वारा हत्या के मामले में किशोर छात्र को प्रतिदिन पढ़ने के लिए मां की डांट खानी पड़ती थी. यह बात उसे पसंद नहीं थी. देखने में यह बात बहुत छोटी लगती है. प्रत्येक परिवार में बच्चे पढ़ाई के लिए अपने मांबाप से डांट और मार खाते हैं, परंतु कोई किशोर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे देगा, यह सोच से परे है.

यहां उस लड़के के मनोविज्ञान को समझना होगा. वह संपन्न परिवार से था. बचपन से ही उसे हर प्रकार का सुख मिला था और संभवतया कहीं न कहीं उस के मन में यह रहा होगा कि पढ़ाई जैसे कठिन कार्य के लिए वह मां की डांटडपट क्यों सुनता रहे.

ऐसे रोकें किशोर अपराध

किसी भी अपराध को न तो समाज रोक सकता है न कानून उसे कम कर सकता है. प्रत्येक अपराध के पीछे अपराधी की मानसिकता, उस का स्वभावगत आचरण और परिवेशगत परिस्थितियां काम करती हैं. कुछ अपराध आवेगपूर्ण परिस्थितियों के कारण भी जन्म लेते हैं. ऐसे अपराधों के लिए अपराधी न तो कोई योजना बनाता है, न सोचता है. यह आवेग और विवेकपूर्ण आचरण से घटित हो जाते हैं.

परंतु जैसा कि मान्यता है कि हर तूफान के पहले एक अविश्वसनीय शांति होती है. उसी प्रकार हर अपराध की एक आहट होती है, जिसे सुन कर या पहचान कर हम टाल सकते हैं.

आज आवश्यकता है कि हम अपने बच्चों को सुविधाभोगी दुनिया से दूर भले न करें, परंतु सचेत अवश्य करें.

बच्चों के शौक को पूरा करने के लिए उन्हें ऐसी सुविधाएं न दें, जो जानेअनजाने उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दें.

कुछ मांबाप अतिसंपन्न होते हैं और वे अपने नाबालिग बच्चों के हाथ में मोटरसाइकिल या महंगी कार की चाबी थमा देते हैं. ऐसे में बच्चा अगर सड़क दुर्घटना का शिकार होता है, तो इस के लिए पूर्णरूप से अभिभावक को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. इस तरह का संशोधन हाल में ही यातायात अधिनियम में किया गया है कि दुर्घटना होने पर नाबालिग के साथसाथ उस के पिता पर भी मुकदमा चलाया जा सके.

ध्यान रखें, मातापिता की सावधानी और समझदारी ही बच्चों को अपराध की दुनिया की तरफ ले जाने से रोक सकती है.

सेहत वाले शेक

कैरट मिल्क शेक

सामग्री

• 1 कप दूध

• 4-5 बादाम भीगे हुए

• 1 गाजर कटी हुई

• 1/2 बड़ा चम्मच चीनी

• थोड़े से बर्फ के टुकड़े

• सजाने के लिए चौकलेट सिरप.

विधि

गाजर, बादाम और दूध को एकसाथ उबालें. फिर चीनी डाल कर आंच से उतार कर ठंडा होने दें. फिर मिक्सर में ब्लैंड कर चौकलेट सिरप से सजा कर सर्व करें.

*

कुकी ऐंड क्रीम मिल्क शेक

सामग्री

• 1/2 कप दही

• 3/4 कप दूध

• 1 बड़ा चम्मच कोको पाउडर

• चीनी स्वादानुसार

• थोड़े से बर्फ के टुकड़े

• 3-4 ओरियो कुकीज.

विधि

सारी सामग्री को ब्लैंडर में गाढ़ा और क्रीमी होने तक ब्लैंड कर क्रश्ड ओरियो से सजा कर सर्व करें.

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ब्लूबैरी सोया शेक

सामग्री

• 1/2 कप दही

• 3/4 कप सोया मिल्क

• 1/2 कप फ्रिज में रखे जामुन

• चीनी स्वादानुसार

• थोड़े से बर्फ के टुकड़े.

विधि

सारी सामग्री को ब्लैंड कर के गिलास में डाल कर सर्व करें.

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ऐप्पल सिनमन शेक

सामग्री

• 1/2 कप सेब कटे हुए

• 1/2 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर

• 1 कप दूध

• 1 स्कूप आइसक्रीम

• थोड़े से बर्फ के टुकड़े.

विधि

सारी सामग्री को मिक्सी में अच्छी तरह चलाएं. फिर बर्फ के टुकड़े डाल कर सर्व करें.

*

गुड मौर्निंग मिल्क शेक

सामग्री

• 1 केला

• 5-6 स्ट्राबैरी

• 1/2 कप दूध

• 1 बड़ा चम्मच चीनी या शहद

• 1 बड़ा चम्मच ओट्स

• थोड़े से बर्फ के टुकड़े.

विधि

सारी सामग्री को ब्लैंडर में अच्छी तरह चला कर सर्व करें.

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शैमरौक मिल्क शेक

सामग्री

• 3/4 कप दूध

• 2-3 स्कूप्स वैनिला आइसक्रीम

• थोड़ी सी पुदीनापत्ती

• थोड़े से बर्फ के टुकड़े

• सजाने के लिए चौको चिप्स और फेंटी हुई क्रीम.

विधि

सारी सामग्री को मिक्सर में अच्छी तरह से ब्लैंड करें. फिर गिलास में डाल कर क्रीम और चौको चिप्स से सजा कर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: निधि चौहान चड्ढा

अगर फुरसत मिल जाए तो कभी इन की भी सुन ले सरकार

ओडिशा में कार्तिक का महीना शहरों, कसबों और गांवों की विधवाओं के लिए राहत का सा समय होता है. इस महीने वे अपना घर छोड़ कर जगन्नाथ पुरी के मंदिर के पास बने मकानों में इकट्ठा रह कर पूजा करने के बहाने अपना दुखदर्द अपनी जैसी दूसरी सैकड़ों विधवाओं के साथ शेयर कर सकती हैं.

विधवा होना किसी औरत की अपनी गलती नहीं है. यह गलती तो मृत पति की है. पर आज 2018 में भी ज्यादातर घरों में विधवाओं को सादा जीवन बिताने को मजबूर कर दिया जाता है. पुरानी सोच अच्छीभली पढ़ीलिखी औरतों पर भी हावी हो जाती है और वे खुद पाखंड भरे तीजत्योहारों से बहिष्कृत होने के डर से अलग कर देती हैं.

ओडिशा की ही तरह हर राज्य में औरत के विधवा होते ही उस की खुशी के दरवाजे अपनेआप बंद हो जाते हैं. कुछ जगह खाना एक ही बार मिलता है. अच्छा स्वादिष्ठ खाना कभी चखने को भी नहीं मिलता. मृत पति कमाऊ था तो वह सही ढंग की नौकरी नहीं पा सकती, दुकान हो तो वहां बैठ नहीं सकती, खेत में काम नहीं कर सकती.

सासससुर हों तो घर से निकालने का प्रपंच करने लगते हैं. हाथ में पैसा न हो तो हालत बुरी हो जाती है. पति के मरते ही सारे कागज और चाबियां या तो देवरजेठ ले लेते हैं या बड़ा हो तो बेटा, जिस की पत्नी को विधवा सास से कोई मोह नहीं होता. ओडिशा के पुरी में लगभग 10 हजार इस तरह की औरतें हर साल आती हैं.

भारत की आबादी में लगभग 5 करोड़ औरतें विधवा हैं. ओडिशा में ये ज्यादा हैं, क्योंकि वहां पुरुष ज्यादा छोटी उम्र वाली लड़कियों से शादी करते हैं. पुरुष विधुर हों तो फिर तुरंत विवाह कर लेते हैं चाहे उन के बच्चे हों या न हों पर बच्चों वाली विधवा का दोबारा विवाह तो लगभग असंभव है.

जो सरकार तीन तलाक को ले कर मुसलिम औरतों की दुर्दशा पर घडि़याली आंसू बहा रही है उस के मुंह से इन विधवाओं के लिए क्या कभी एक शब्द भी निकला है?

विधवाओं की दुर्गति वाराणसी और वृंदावन में भी साफ दिखती है, जहां सफेद साडि़यों में कमजोर औरतें बीमार भेड़ों की तरह झुंडों में गलियों में फिरती दिखती हैं.

क्या उन के लिए अच्छे दिन आएंगे या वे हिंदू समाज की पाखंड भरी चक्की में मौत तक इंतजार करती रह जाएंगी?

मेरी भाभी ने मेरे साथ कई बार जिस्मानी संबंध बनाया है. अब फिर से हमबिस्तरी करना चाहती हैं. क्या करूं.

सवाल
मेरे भाई की शादी के 20 साल बाद भी कोई औलाद नहीं हुई. भाभी ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया, तो एक लड़की पैदा हुई, पर वह 3 दिन बाद ही गुजर गई. लड़की मरने के 4 महीने बाद भाभी फिर से मेरे साथ हमबिस्तरी करना चाहती हैं. मैं क्या करूं?

जवाब
आप ने एक बार गुनाह किया है, तो उसे दोहरा भी सकते हैं. लेकिन इस में बहुत खतरा है. पता चलने पर आप की जिंदगी बरबाद हो सकती है.

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देवर पर भारी पड़ा भाभी से संबंध

‘‘अरे वाह देवरजी, तुम तो एकदम मुंबइया हीरो लग रहे हो,’’ सुशीला ने अपने चचेरे देवर शिवम को देख कर कहा.

‘‘देवर भी तो तुम्हारा ही हूं भाभी. तुम भी तो हीरोइनों से बढ़ कर लग रही हो,’’ भाभी के मजाक का जवाब देते हुए शिवम ने कहा.

‘‘जाओजाओ, तुम ऐसे ही हमारा मजाक बना रहे हो. हम तो हीरोइन के पैर की धूल के बराबर भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे नहीं भाभी, ऐसा नहीं है. हीरोइनें तो  मेकअप कर के सुंदर दिखती हैं, तुम तो ऐसे ही सुंदर हो.’’

‘‘अच्छा तो किसी दिन अकेले में मिलते हैं,’’ कह कर सुशीला चली गई.

इस बातचीत के बाद शिवम के तनमन के तार झनझना गए. वह सुशीला से अकेले में मिलने के सपने देखने लगा.

नाजायज संबंध अपनी कीमत वसूल करते हैं. यह बात लखनऊ के माल थाना इलाके के नबी पनाह गांव में रहने वाले शिवम को देर से समझ आई.

शिवम मुंबई में रह कर फुटकर सामान बेचने का काम करता था. उस के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह किसान थे.

गांव में साधारण सा घर होने के चलते शिवम कमाई करने मुंबई चला गया था. 4 जून, 2016 को वह घर वापस आया था.

शिवम को गांव का माहौल अपना सा लगता था. मुंबई में रहने के चलते वह गांव के दूसरे लड़कों से अलग दिखता था. पड़ोस में रहने वाली भाभी सुशीला की नजर उस पर पड़ी, तो दोनों में हंसीमजाक होने लगा.

सुशीला ने एक रात को मोबाइल फोन पर मिस्ड काल दे कर शिवम को अपने पास बुला लिया. वहीं दोनों के बीच संबंध बन गए और यह सिलसिला चलने लगा.

कुछ दिन बाद जब सुशीला समझ गई कि शिवम पूरी तरह से उस की गिरफ्त में आ चुका है, तो उस ने शिवम से कहा, ‘‘देखो, हम दोनों के संबंधों की बात हमारे ससुरजी को पता चल गई है. अब हमें उन को रास्ते से हटाना पड़ेगा.’’ यह बात सुन कर शिवम के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

सुशीला इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी. वह बोली, ‘‘तुम सोचो मत. इस के बदले में हम तुम को पैसा भी देंगे.’’

शिवम दबाव में आ गया और उस ने यह काम करने की रजामंदी दे दी.

नबी पनाह गांव में रहने वाले मुन्ना सिंह के 2 बेटे थे. सुशीला बड़े बेटे संजय सिंह की पत्नी थी. 5 साल पहले संजय और सुशीला की शादी हुई थी.

सुशीला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के महराजगंज थाना इलाके के मांझ गांव की रहने वाली थी. ससुराल आ कर सुशीला को पति संजय से ज्यादा देवर रणविजय अच्छा लगने लगा था. उस ने उस के साथ संबंध बना लिए थे.

दरअसल, सुशीला ससुराल की जायदाद पर अकेले ही कब्जा करना चाहती थी. उस ने यही सोच कर रणविजय से संबंध बनाए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के देवर की शादी हो.

इधर सुशीला और रणविजय के संबंधों का पता ससुर मुन्ना सिंह और पति संजय सिंह को लग चुका था. वे लोग सोच रहे थे कि अगर रणविजय की शादी हो जाए, तो सुशीला की हरकतों को रोका जा सकता है.

सुशीला नहीं चाहती थी कि रणविजय की शादी हो व उस की पत्नी और बच्चे इस जायदाद में हिस्सा लें.

लखनऊ का माल थाना इलाका आम के बागों के लिए मशहूर है. यहां जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है. सुशीला के ससुर के पास  करोड़ों की जमीन थी.

सुशीला को पता था कि ससुर मुन्ना सिंह को रास्ते से हटाने के काम में देवर रणविजय उस का साथ नहीं देगा, इसलिए उस ने अपने चचेरे देवर शिवम को अपने जाल में फांस लिया.

12 जून, 2016 की रात मुन्ना सिंह आम की फसल बेच कर अपने घर आए. इस के बाद खाना खा कर वे आम के बाग में सोने चले गए. वे पैसे भी हमेशा अपने साथ ही रखते थे.

सुशीला ने ससुर मुन्ना सिंह के जाते ही पति संजय और देवर रणविजय को खाना खिला कर सोने भेज दिया. जब सभी सो गए, तो सुशीला ने शिवम को फोन कर के गांव के बाहर बुला लिया.

शिवम ने अपने साथ राघवेंद्र को भी ले लिया था. वे तीनों एक जगह मिले और फिर उन्होंने मुन्ना सिंह को मारने की योजना बना ली.

उन तीनों ने दबे पैर पहुंच कर मुन्ना सिंह को दबोचने से पहले चेहरे पर कंबल डाल दिया. सुशीला ने उन के पैर पकड़ लिए और शिवम व राघवेंद्र ने उन को काबू में कर लिया.

जान बचाते समय मुन्ना सिंह चारपाई से नीचे गिर गए. वहीं पर उन दोनों ने गमछे से गला दबा कर उन की हत्या कर दी.

मुन्ना सिंह की जेब में 9 हजार, 2 सौ रुपए मिले. शिवम ने 45 सौ रुपए राघवेंद्र को दे दिए. इस के बाद वे तीनों अपनेअपने घर चले गए.

सुबह पूरे गांव में मुन्ना सिंह की हत्या की खबर फैल गई. उन के बेटे संजय और रणविजय ने माल थाने में हत्या का मुकदमा दर्ज कराया. एसओ माल विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच शुरू की.

पुलिस ने हत्या में जायदाद को वजह मान कर अपनी खोजबीन शुरू की. मुन्ना सिंह की बहू सुशीला पुलिस को बारबार गुमराह करने की कोशिश कर रही थी.

पुलिस ने जब मुन्ना सिंह के दोनों बेटों संजय और रणविजय से पूछताछ की, तो वे दोनों बेकुसूर नजर आए.

इस बीच गांव में यह पता चला कि सुशीला के अपने देवर रणविजय से नाजायज संबंध हैं. इस बात पर पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, तो उस की कुछ हरकतें शक जाहिर करने लगीं.

एसओ माल विनय कुमार सिंह ने सीओ, मलिहाबाद मोहम्मद जावेद और एसपी ग्रामीण प्रताप गोपेंद्र यादव से बात कर पुलिस की सर्विलांस सैल और क्राइम ब्रांच की मदद ली.

सर्विलांस सैल के एसआई अक्षय कुमार, अनुराग मिश्रा और योगेंद्र कुमार ने सुशीला के मोबाइल को खंगाला, तो  पता चला कि सुशीला ने शिवम से देर रात तक उस दिन बात की थी.

पुलिस ने शिवम का फोन देखा, तो उस में राघवेंद्र का नंबर मिला. इस के बाद पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला से अलगअलग बात की.

सुशीला अपने देवर रणविजय को हत्या के मामले में फंसाना चाहती थी. वह पुलिस को बता रही थी कि शिवम का फोन उस के देवर रणविजय के मोबाइल पर आ रहा था.

सुशीला सोच रही थी कि पुलिस हत्या के मामले में देवर रणविजय को जेल भेज दे, तो वह अकेली पूरी जायदाद की मालकिन बन जाएगी, पर पुलिस को सच का पता चल चुका था.

पुलिस ने तीनों को साथ बिठाया, तो सब ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

14 जून, 2016 को पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. वहां से उन तीनों को जेल भेज दिया गया.

सुशीला अपने साथ डेढ़ साला बेटे को जेल ले गई. उस की 4 साल की बेटी को पिता संजय ने अपने पास रख लिया.

जेल जाते समय सुशीला के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. वह शिवम और राघवेंद्र पर इस बात से नाराज थी कि उन लोगों ने यह क्यों बताया कि हत्या करते समय उस ने ससुर मुन्ना सिंह के पैर पकड़ रखे थे.

VIDEO : प्रियंका चोपड़ा लुक फ्रॉम पीपुल्स चॉइस अवार्ड मेकअप टिप्स

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बच्‍चे की आदत के अनुसार ऐसे सजायें उन का कमरा

आप पूरे घर को किस तरह सजाएं, कुछ ही देर में सोच सकती हैं लेकिन बच्‍चे का कमरा किस तरह डेकोरेट करें, इसमें बहुत दिमाग लगाना पड़ता है. हर बच्‍चे की आदत बिल्‍कुल अलग होती है और उसका कमरा भी इन्‍हीं आदतों के अनुसार होना चाहिए. हालांकि, आप खुद से सोच-समझ कर बच्‍चों के कमरे को रोचक और आरामदायक बना सकती हैं. इसके लिए आपको कई बातों का ध्‍यान रखना चाहिए, जैसे- बच्‍चे के सोने की जगह ठीक हो और कमरे में बाहर की खुली हवा भी आ सकें.

कमरे में ही बच्‍चा, छोटे-छोटे खेलों को खेल पाएं, इतनी जगह अवश्‍य होनी चाहिए. बेड ज्‍यादा ऊंचाई पर न हो, वरना उससे गिरकर उसे चोट लग सकती है. कमरे को डिजाइन करते समय बच्‍चे की उम्र, बच्‍चों की संख्‍या और बेटा व बेटी या का भी ध्‍यान रखें. आइए जानते हैं बच्‍चे के कमरे को डिजाइन करते समय और किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए:

1. रंग-बिरंगा रखें – आप पूरे घर को डीसेंट रखिए, लेकिन बच्‍चों के कमरे को सुंदर और चार्मिंग बनाएं. उसे खूब रंग-बिरंगा रखें. इससे बच्‍चों को अच्‍छा लगेगा और वो अच्‍छा वक्‍त कमरे में व्‍यतीत करेंगे.

2. पर्याप्‍त स्‍थान – बच्‍चों के कमरे में ज्‍यादा सामान न रखें, पर्याप्‍त स्‍थान रहने दें. ताकि बच्‍चे कमरे में ही खिलौने और किताबों को आराम से फैलाकर खेल सकें. इससे उन्‍हें चोट लगने का डर भी नहीं रहेगा.

3. डिजाइनर बेड – इन दिनों, मार्केट में बच्‍चों के लिए कई तरह के बेड उपलब्‍ध हैं. अगर आपके घर में बच्‍चों वाले कमरे में कम जगह है तो उस हिसाब से भी अच्‍छे बेड मिल जाते हैं. कमरे के क्षेत्रफल के हिसाब से भी आप बेड का चयन करें, ताकि उसे वहां फिट करवाने में दिक्‍कत न आएं. बंक बेड भी अच्‍छा विकल्‍प है.

4.मिनी आर्ट गैलरी बनाएं – बच्‍चे को कमरे को सजाने का सबसे अच्‍छा तरीका, वहां आर्ट गैलरी बनाना भी हो सकता है. इससे बच्‍चे को कला में रूचि आएगी या आप कई तस्‍वीरों को भी लगा सकते हैं जो उसके साथ हों.

5.वॉलपेपर – बच्‍चे के कमरे को वॉलपेपर से भी सजाया जा सकता है. यह सबसे सरल विकल्‍प है जिसके लिए बहुत मेहनत करने की आवश्‍यकता भी नहीं पड़ती है और बच्‍चे को बोरिंग भी महसूस नहीं होगा. 2 से 3 सालों के बाद आप चाहें तो वॉलपेपर बदल भी सकते हैं.

6. खेलने की जगह – बच्‍चे के कमरे को सजाने से पहले उसके खेलने का विशेष ध्‍यान रखें. कमरे में पर्याप्‍त स्‍थान रखें, सभी खिलौने ऐसे रखें जो उसकी पहुँच में हों और उसके कुछ दोस्‍त भी आकर खेल लें.

श्रीदेवी के यकीन की हुई जीत, देर रात मुंबई पहुंचेगा पार्थिव शरीर

बौलीवुड की महान अदाकारा श्रीदेवी का गत शनिवार की देर रात दुबई के होटल जुमैरा के कमरा नंबर 2201 में अचानक निधन हो गया था. उसके बाद दुबई पुलिस प्रशासन ने श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को श्रीदेवी के परिजनों को सौंपने से पहले अपने देश के नियमों के मुताबिक गहन छानबीन की, जिसके चलते श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को भारत लाने में काफी देर होती रही.

श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को भारत में लाने में होती देर के बीच उनकी मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए. सूत्रों के अनुसार दुबई पुलिस ने श्रीदेवी के पति बोनी कपूर से करीबन तीन बार पूछताछ की. इस खबर के साथ ही अटकलों का बाजार गर्म हो गया कि बोनी कपूर और श्रीदेवी के बीच मनमुटाव हो गया था. कुछ लोगों ने कहा कि श्रीदेवी और बोनी कपूर के बीच जमकर झगड़ा हुआ था. उसके बाद बोनी कपूर उन्हे दुबई में अकेले ही छोड़कर मुंबई आ गए थे. और दो दिन बाद पुनः श्रीदेवी को मनाने के लिए दुबई पहुंचे थे..वगैरह वगैरह.

कुछ लोगों ने कहा कि श्रीदेवी की बहन श्रीलता भी दुबई में थी और श्रीदेवी व उनकी बहन श्रीलता के बीच भी झगड़े हुए. इस झगड़े में बोनी कपूर ने मध्यस्थता कराने की कोशिश की, जिसके चलते श्रीदेवी अपने पति बोनी कपूर से नाराज थी. यानी कि हर कोई अपने अपने हिसाब से एक नई कहानी सुना रहा था.

लेकिन मंगलवार, 27 फरवरी को भारतीय समय के अनुसार शाम तीन बजे दुबई के पब्लिक प्रोसीक्यूएशन विभाग ने सारी जांच करने के बाद श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को मुंबई, भारत ले जाने की हरी झंडी दे दी. उसके बाद पुलिस ने भारतीय दूतावास और श्रीदेवी के परिजनों को श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को भारत ले जाने का पत्र सौंपा.

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सूत्रों के अनुसार इस पत्र में पुलिस प्रशासन ने श्रीदेवी की मौत का केस पूरी तरह से बंद करने की बात कही गयी है, क्योंकि उन्हें कोई आपराधिक साजिश नजर नहीं आयी. बहरहाल, दुबई में पार्थिव शरीर पर रासायनिक लेपन की क्रिया शुरू की जा चुकी है और आज देर रात तक श्रीदेवी का पार्थिव शरीर मुंबई प्रायवेट जेट विमान से पहुंच जाएगा.

इससे बोनी कपूर और श्रीदेवी के बीच झगड़े की जो कहानियां प्रसारित हो रही थीं, वह गलत साबित हुई. आज भले ही श्रीदेवी इस संसार में नहीं हैं, मगर अंततः एक बार फिर श्रीदेवी का अपना यकीन जीता.

जी हां! लगभग आठ माह पहले श्रीदेवी ने बोनी कपूर के संग अपनी शादी की सफलता की चर्चा करते हुए हमसे एक्सक्लूसिव बात करते हुए बोनी कपूर पर अपने यकीन की बात कही थी. श्रीदेवी ने कहा था-‘‘मैरिड लाइफ में एक दूसरे पर यकीन करना बहुत महत्व रखता है. हमारे बीच यह यकीन कभी नहीं टूटा. इसके अलावा एक शादीशुदा जिंदगी को सफल बनाने में बच्चे अहम किरदार निभाते हैं. यह बच्चे पति व पत्नी के बीच रिश्ते को मजबूती देते हैं. प्यार को बढ़ाते हैं. इसके अलावा जरूरत यह होती हैं कि हम परिवार में अच्छे दोस्त बनकर रहें.’’

इतना नहीं पति बोनी कपूर की चर्चा करते हुए श्रीदेवी ने हमसे कहा था-‘‘बोनी कपूर एक अच्छे पति और एक अच्छे पिता हैं. वह मेरे लिए सब कुछ हैं. मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसे पति मिले. बोनी कपूर ऐसे पति हैं, जो कि मुझे अच्छी तरह से समझते हैं. मुझे प्यार देते हैं. हमारे बीच दिन प्रतिदिन प्यार बढ़ता चला गया. मैं ईश्वर की बहुत शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरी जिंदगी में पति के रूप में बोनी कपूर को भेजा.’’

टैक्स प्लानिंग कब और कैसे करें, जानिये एक्सपर्ट की सलाह

आयकर कानूनों में इतने पेच हैं कि किसी के लिए भी उन्हें समझना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है, जबकि उचित कर नियोजन के द्वारा व्यक्ति न केवल करों की देनदारियों को कम कर सकता है, बल्कि? अपने जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में निर्धारित लक्ष्यों के लिए भी बचत कर सकता है.

टैक्स प्लानिंग क्या है और क्यों जरूरी है, आइए जानते हैं:

टैक्स किसे कहते हैं

हर वित्तवर्ष की शुरुआत में हर नौकरीपेशा शख्स अपने ऐंप्लायर को उस रकम की जानकारी देता है, जो वह इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम, बीमा पौलिसी प्रीमियम, मकान किराया, होम लोन, ऐजुकेशन लोन या बच्चों की ट्यूशन फीस पर खर्च करने वाला है. इसी घोषणा के आधार पर तय होता है कि नौकरी करने वाले शख्स की ऐनुअल टैक्स लायबिलिटी यानी वार्षिक कर देनदारी कितनी होगी और आप के वेतन से कितना टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती या टैक्स डिडक्टिड ऐट सोर्स) कटेगा.

टैक्स प्लानिंग टैक्स चोरी नहीं. इस में आप गंभीरता से अपनी आय के स्रोत और निवेश के विकल्पों की प्लानिंग करते हैं. टैक्स प्लानिंग का मतलब यह भी नहीं है कि आप आंख मूंद कर के धारा 80 सी के विकल्पों में पैसा लगा दें. टैक्स प्लानिंग मुश्किल नहीं बल्कि काफी आसान है.

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टैक्स प्लानिंग की जरूरत क्यों

एक ऐफिशिएंट टैक्स प्लानिंग टैक्स देनदारी कम करने में आप की मदद करती है. उदाहरण के तौर पर हो सकता है कि आप शादी करने वाले हों या फिर आप को घर की जरूरत हो, इस स्थिति में आप को खुद पर आश्रित जीवनसाथी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इंश्योरैंस की जरूरत पड़ेगी, साथ ही आप को होम लोन का भी ख्याल रखना होगा.

ऐंडोमैंट, यूलिप, जीवन बीमा कंपनियों की पेंशन योजनाओं में निवेश कर के भी आप आयकर में बचत कर सकते हैं. धारा 80सी के तहत जीवन बीमा के प्रीमियम भुगतान पर आप सालाना कटौती का लाभ पा सकते हैं.

इसके अलावा जीवन बीमा योजनाओं की मैच्योरिटी पर प्राप्त होने वाले पैसे भी धारा 10(10)डी के तहत टैक्स फ्री होते हैं. लंबी अवधि में यूलिप आप को बेहतर रिटर्न दे सकते हैं, क्योंकि ये शेयर बाजार में निवेश करते हैं और लंबी अवधि में इक्विटी में किया गया निवेश हमेशा ही बेहतर रिटर्न देता है. अगर आप जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं तो टैक्स सेविंग के साथसाथ बचत के लिए ऐंडौमैंट पौलिसी भी ले सकते हैं.

परिवार के आपसी समझौते द्वारा टैक्स प्लानिंग

  • इस के लिए स्वयं की आयकर टैक्स रिटर्न फाइल करने के साथसाथ अपने परिवार के सदस्यों की भी रिटर्न फाइल करें.
  • अपने वयस्क बच्चों के लिए टैक्स प्लानिंग करें.
  • वसीयत द्वारा संपत्ति को ऐसे बांटें, जिस से वह भार उत्तराधिकारियों पर टैक्स के रूप में कम से कम आए.

जब कभी करदाता की देय अधिक होती है, तो वह टैक्स की ऐसी प्लानिंग करे, जिस के द्वारा वह अपनी आय अपने संबंधियों को ट्रांसफर कर सके ताकि उस की टैक्स लाइबिलिटी कम हो जाए. मगर ऐसा करते समय कुछ बातों का उसे ध्यान रखना होगा.

जैसे:

  • संपत्ति ट्रांसफर किए बिना आय ट्रांसफर करना.
  • रिवोकेबल ट्रांसफर की सही प्लानिंग करना.
  • पत्नी, पुत्रवधू, अवयस्क बच्चों को अपनी आय ट्रांसफर करने से बचें.

निवेश विकल्पों का चुनाव

टैक्स बचाने के लिए निवेश के विकल्पों का चुनाव करने में इन बातों का ध्यान रखें:

लिक्विडिटी: आप को पैसे की जरूरत कितनी जल्दी पड़ सकती है? क्या आप 1 या2 साल की अवधि में यह फंड हासिल कर सकते हैं? आप निवेश के किसी भी विकल्प से इतनी जल्दी पैसा निकाल नहीं पाएंगे. यहां तक कि सभी टैक्स बचत विकल्पों के लिए न्यूनतम लौक इन पीरियड 3 साल का है.

जोखिम और रिटर्न: आप को तय करना होगा कि आखिर आप कितना जोखिम लेना चाहते हैं. निवेश के कुछ विकल्पों में जोखिम कम होता है और रिटर्न भी कम. जिन में रिटर्न ज्यादा है उन में जोखिम भी ज्यादा है.

मुद्रास्फीति से सुरक्षा: जो इंस्ट्रूमैंट कम रिटर्न देते हैं वे मुद्रास्फीति के लिहाज से ठीक नहीं हैं. इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि कई इंस्ट्रूमैंट लंबी अवधि तक आप का निवेश रोक लेते हैं और इस पर एक निश्चित दर से ही ब्याज देते हैं. हालांकि मुद्रास्फीति के लिहाज से यह अच्छा नहीं है.

टैक्स छूट: धारा 80सी, 80सीसीसी, 80सीसीडी के तहत आने वाले सभी इंस्ट्रूमैंट इस लिहाज से एकजैसे हैं, क्योंकि आप को इन पर टैक्स छूट का फायदा तभी मिलेगा जब आप इन में निवेश करेंगे. हालांकि इन से मिलने वाली आय में और मैच्योरिटी पर लगने वाले टैक्स में अंतर है.                     –

आलोक अग्रवाल

(चेयरमैन, अलंकित समूह)

श्रीदेवी : बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार का कोई सानी नहीं

54 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह देने वालीं बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी  का मानना रहा है कि वह तो इत्तफाकन अभिनेत्री बनीं. यूं तो श्रीदेवी चार वर्ष की उम्र में एक फिल्म में बाल कलाकार के रूप में नजर आई थीं तब उन्हें कला या अभिनय की कोई समझ नहीं थी. पर सही मायनों में उनका अभिनय करियर 13 वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म ‘‘मुंदूर मुदीच’’ से शुरू हुआ था. 13 वर्ष की उम्र में इस फिल्म में उनका किरदार वयस्क लड़की का था. जबकि बौलीवुड में इन्होंने 1975 में फिल्म ‘‘जूली’’ में बाल कलाकार के रूप में काम करते हुए कदम रखा था.

अंतिम फिल्म ‘‘जीरो’’

1976 में तेरह वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म ‘‘मुंदूर मुदीच’’ से लेकर 7 जुलाई 2017 को प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘‘मौम’’ तक श्रीदेवी ने 300 फिल्मों में अभिनय किया था. उनके करियर की अंतिम और 301 वीं फिल्म ‘‘जीरो’’ होगी. आनंद एल राय निर्देशित इस फिल्म में शाहरुख खान के साथ श्रीदेवी ने मेहमान कलाकार के रूप में अभिनय किया है, यह फिल्म 21 दिसंबर 2018 को प्रदर्शित होगी.

1976 से अब तक के अपने करियर में श्रीदेवी ने अपने दमदार अभिनय से फिल्मकारों, कलाकारों को ही नहीं, बल्कि अपने प्रशंसकों को इस कदर दीवाना बना रखा था कि हर कोई उनके साथ काम करने को लालायित रहता था. पुरूष प्रधान बौलीवुड में श्रीदेवी एकमात्र ऐसी अदाकारा रही हैं, जिनके बल पर फिल्में बौक्स औफिस पर धन कमाया करती थी.

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अपनी शर्तों पर काम

श्रीदेवी हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया करती थीं. बौलीवुड में नारी शक्ति का परचम लहराने वाली श्रीदेवी के लिए खास तौर पर किरदार लिखे जाते थें. यदि श्रीदेवी को अपना किरदार व फिल्म की कहानी न पसंद आए, तो वह उस फिल्म का औफर ठुकरा देती थीं. इतना ही नहीं श्रीदेवी हमेशा इस बात का ख्याल रखती थीं कि वह जिस फिल्म में अभिनय करें, उस फिल्म में उनका किरदार फिल्म के हीरो से कमतर न हो. इसी के चलते श्रीदेवी ने अमिताभ बच्चन के साथ भी कई फिल्में करने से इंकार कर दिया था, जबकि यह वह दौर था जब हर हीरोईन अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म का हिस्सा बनना अपना सौभाग्य समझती थी. कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन स्वयं श्रीदेवी के साथ काम करने को लालायित थें. इसी के चलते अमिताभ बच्चन ने श्रीदेवी के पास फूलों से भरा हुआ ट्रक भिजवाया था.

अमिताभ बच्चन के साथ दोहरी भूमिका निभाने वाली एकमात्र अदाकारा

बहरहाल, बाद में श्रीदेवी ने अमिताभ बच्चन के साथ सबसे पहले फिल्म “इंकलाब’’ की. उसके बाद ‘‘खुदा गवाह’’ और ‘आखिरी रास्ता’ जैसी कुछ फिल्में की. मगर इन फिल्मों में श्रीदेवी के किरदार ही हावी रहें. इतना ही नहीं श्रीदेवी पहली अदाकारा थीं, जिन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘‘खुदा गवाह’’ में दोहरी भूमिका निभायी थीं. अन्यथा अमिताभ बच्चन की किसी भी फिल्म में किसी हीरोईन को दोहरी भूमिका निभाने का अवसर कभी नहीं मिला. मजेदार बात यह थी कि फिल्म ‘खुदा गवाह’ में श्रीदेवी ने अफगानी अंदाज वाली हिंदी में संवाद अदायगी कर लोगों को आश्चर्य चकित किया था.

श्रीदेवी के लिए रेखा ने डब किए थे संवाद

सिनेमा भाषा का मोहताज नहीं होता. इस बात को श्रीदेवी की फिल्मों से भी समझा जा सकता है. श्रीदेवी को तमिल व तेलगू भाषा ही आती थी, मगर वह लंबे समय तक हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाती रहीं. हिंदी फिल्मों में उनके संवाद नाज डब किया करती थीं. फिल्म ‘आखिरी रास्ता’ में श्रीदेवी के संवादों को अभिनेत्री रेखा ने डब किया था. पर श्री देवी ने हिंदी भाषा सीखना शुरू कर दिया था.

‘‘चांदनी’’ में पहली बार खुद संवाद डब किए

14 सितंबर 1989 को प्रदर्शित यश चोपड़ा की फिल्म ‘‘चांदनी’’ से श्रीदेवी का अलग रूप लोगों के सामने आया. यह पहली फिल्म थी, जिसमें श्री देवी ने अपने संवाद खुद डब किए थें और इस फिल्म में पहली बार उन्होंने गाना भी गाया था. फिल्म ‘‘चांदनी” ने बौक्स औफिस पर सफलता के कई नए रिकार्ड स्थापित किए थें. मजेदार बात यह है कि यश चोपड़ा पहले फिल्म ‘‘चांदनी’’ अभिनेत्री रेखा को लेकर बनाना चाहते थें. पर हालात कुछ ऐसे बने कि उन्होंने ‘चांदनी’ के साथ श्रीदेवी को जोड़ा और उसके बाद वह भी श्रीदेवी के अभिनय के कायल हो गए थें. उसके बाद फिल्म ‘‘सदमा’’ में भी श्रीदेवी ने गाना गाया था.

क्यों अहम हैं ‘‘सदमा’’ और ‘‘लम्हे’’

श्रीदेवी के करियर की सफलतम फिल्मों में ‘सदमा’ और ‘लम्हे’ इन दोनों फिल्मों का विशेष महत्व है. 8 जुलाई 1983 को प्रदर्शित फिल्म ‘‘सदमा’’ में श्रीदेवी ने कमल हासन के साथ अभिनय करते हुए एक विक्षिप्त लड़की नेहलता मल्होत्रा उर्फ रश्मी का किरदार निभाया था. कहानी के अनुसार एक दुर्घटना में रश्मी के सिर पर चोट लग जाती है, उनकी याद्दाश्त खो जाती है और वह चार वर्ष की बच्ची की तरह व्यवहार करने लगती हैं. इसमें कमल हासन उन्हे लोरी गा कर सुनाते थें. जबकि 22 नवंबर को प्रदर्शित यश चोपड़ा निर्मित फिल्म ‘‘लम्हे’’ अपने समय से काफी आगे व हिंदुस्तानी परंपराओं को तोड़ने वाली फिल्म थी, जिसमें श्री देवी ने दोहरी भूमिका निभायी थी.

पहली वैनिटी वैन

इन दिनों अमिताभ बच्चन व शाहरुख खान से लेकर तमाम बड़े कलाकारों के पास अपनी वैनिटी वैन है. शूटिंग के दौरान लगभग हर कलाकार, निर्माता से वैनिटी वैन की मांग करता है. मगर श्रीदेवी पहली अदाकारा थीं, जिनके पास अपनी वैनिटी वैन थी.

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