बच्‍चे की आदत के अनुसार ऐसे सजायें उन का कमरा

आप पूरे घर को किस तरह सजाएं, कुछ ही देर में सोच सकती हैं लेकिन बच्‍चे का कमरा किस तरह डेकोरेट करें, इसमें बहुत दिमाग लगाना पड़ता है. हर बच्‍चे की आदत बिल्‍कुल अलग होती है और उसका कमरा भी इन्‍हीं आदतों के अनुसार होना चाहिए. हालांकि, आप खुद से सोच-समझ कर बच्‍चों के कमरे को रोचक और आरामदायक बना सकती हैं. इसके लिए आपको कई बातों का ध्‍यान रखना चाहिए, जैसे- बच्‍चे के सोने की जगह ठीक हो और कमरे में बाहर की खुली हवा भी आ सकें.

कमरे में ही बच्‍चा, छोटे-छोटे खेलों को खेल पाएं, इतनी जगह अवश्‍य होनी चाहिए. बेड ज्‍यादा ऊंचाई पर न हो, वरना उससे गिरकर उसे चोट लग सकती है. कमरे को डिजाइन करते समय बच्‍चे की उम्र, बच्‍चों की संख्‍या और बेटा व बेटी या का भी ध्‍यान रखें. आइए जानते हैं बच्‍चे के कमरे को डिजाइन करते समय और किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए:

1. रंग-बिरंगा रखें – आप पूरे घर को डीसेंट रखिए, लेकिन बच्‍चों के कमरे को सुंदर और चार्मिंग बनाएं. उसे खूब रंग-बिरंगा रखें. इससे बच्‍चों को अच्‍छा लगेगा और वो अच्‍छा वक्‍त कमरे में व्‍यतीत करेंगे.

2. पर्याप्‍त स्‍थान – बच्‍चों के कमरे में ज्‍यादा सामान न रखें, पर्याप्‍त स्‍थान रहने दें. ताकि बच्‍चे कमरे में ही खिलौने और किताबों को आराम से फैलाकर खेल सकें. इससे उन्‍हें चोट लगने का डर भी नहीं रहेगा.

3. डिजाइनर बेड – इन दिनों, मार्केट में बच्‍चों के लिए कई तरह के बेड उपलब्‍ध हैं. अगर आपके घर में बच्‍चों वाले कमरे में कम जगह है तो उस हिसाब से भी अच्‍छे बेड मिल जाते हैं. कमरे के क्षेत्रफल के हिसाब से भी आप बेड का चयन करें, ताकि उसे वहां फिट करवाने में दिक्‍कत न आएं. बंक बेड भी अच्‍छा विकल्‍प है.

4.मिनी आर्ट गैलरी बनाएं – बच्‍चे को कमरे को सजाने का सबसे अच्‍छा तरीका, वहां आर्ट गैलरी बनाना भी हो सकता है. इससे बच्‍चे को कला में रूचि आएगी या आप कई तस्‍वीरों को भी लगा सकते हैं जो उसके साथ हों.

5.वॉलपेपर – बच्‍चे के कमरे को वॉलपेपर से भी सजाया जा सकता है. यह सबसे सरल विकल्‍प है जिसके लिए बहुत मेहनत करने की आवश्‍यकता भी नहीं पड़ती है और बच्‍चे को बोरिंग भी महसूस नहीं होगा. 2 से 3 सालों के बाद आप चाहें तो वॉलपेपर बदल भी सकते हैं.

6. खेलने की जगह – बच्‍चे के कमरे को सजाने से पहले उसके खेलने का विशेष ध्‍यान रखें. कमरे में पर्याप्‍त स्‍थान रखें, सभी खिलौने ऐसे रखें जो उसकी पहुँच में हों और उसके कुछ दोस्‍त भी आकर खेल लें.

श्रीदेवी के यकीन की हुई जीत, देर रात मुंबई पहुंचेगा पार्थिव शरीर

बौलीवुड की महान अदाकारा श्रीदेवी का गत शनिवार की देर रात दुबई के होटल जुमैरा के कमरा नंबर 2201 में अचानक निधन हो गया था. उसके बाद दुबई पुलिस प्रशासन ने श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को श्रीदेवी के परिजनों को सौंपने से पहले अपने देश के नियमों के मुताबिक गहन छानबीन की, जिसके चलते श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को भारत लाने में काफी देर होती रही.

श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को भारत में लाने में होती देर के बीच उनकी मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए. सूत्रों के अनुसार दुबई पुलिस ने श्रीदेवी के पति बोनी कपूर से करीबन तीन बार पूछताछ की. इस खबर के साथ ही अटकलों का बाजार गर्म हो गया कि बोनी कपूर और श्रीदेवी के बीच मनमुटाव हो गया था. कुछ लोगों ने कहा कि श्रीदेवी और बोनी कपूर के बीच जमकर झगड़ा हुआ था. उसके बाद बोनी कपूर उन्हे दुबई में अकेले ही छोड़कर मुंबई आ गए थे. और दो दिन बाद पुनः श्रीदेवी को मनाने के लिए दुबई पहुंचे थे..वगैरह वगैरह.

कुछ लोगों ने कहा कि श्रीदेवी की बहन श्रीलता भी दुबई में थी और श्रीदेवी व उनकी बहन श्रीलता के बीच भी झगड़े हुए. इस झगड़े में बोनी कपूर ने मध्यस्थता कराने की कोशिश की, जिसके चलते श्रीदेवी अपने पति बोनी कपूर से नाराज थी. यानी कि हर कोई अपने अपने हिसाब से एक नई कहानी सुना रहा था.

लेकिन मंगलवार, 27 फरवरी को भारतीय समय के अनुसार शाम तीन बजे दुबई के पब्लिक प्रोसीक्यूएशन विभाग ने सारी जांच करने के बाद श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को मुंबई, भारत ले जाने की हरी झंडी दे दी. उसके बाद पुलिस ने भारतीय दूतावास और श्रीदेवी के परिजनों को श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को भारत ले जाने का पत्र सौंपा.

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सूत्रों के अनुसार इस पत्र में पुलिस प्रशासन ने श्रीदेवी की मौत का केस पूरी तरह से बंद करने की बात कही गयी है, क्योंकि उन्हें कोई आपराधिक साजिश नजर नहीं आयी. बहरहाल, दुबई में पार्थिव शरीर पर रासायनिक लेपन की क्रिया शुरू की जा चुकी है और आज देर रात तक श्रीदेवी का पार्थिव शरीर मुंबई प्रायवेट जेट विमान से पहुंच जाएगा.

इससे बोनी कपूर और श्रीदेवी के बीच झगड़े की जो कहानियां प्रसारित हो रही थीं, वह गलत साबित हुई. आज भले ही श्रीदेवी इस संसार में नहीं हैं, मगर अंततः एक बार फिर श्रीदेवी का अपना यकीन जीता.

जी हां! लगभग आठ माह पहले श्रीदेवी ने बोनी कपूर के संग अपनी शादी की सफलता की चर्चा करते हुए हमसे एक्सक्लूसिव बात करते हुए बोनी कपूर पर अपने यकीन की बात कही थी. श्रीदेवी ने कहा था-‘‘मैरिड लाइफ में एक दूसरे पर यकीन करना बहुत महत्व रखता है. हमारे बीच यह यकीन कभी नहीं टूटा. इसके अलावा एक शादीशुदा जिंदगी को सफल बनाने में बच्चे अहम किरदार निभाते हैं. यह बच्चे पति व पत्नी के बीच रिश्ते को मजबूती देते हैं. प्यार को बढ़ाते हैं. इसके अलावा जरूरत यह होती हैं कि हम परिवार में अच्छे दोस्त बनकर रहें.’’

इतना नहीं पति बोनी कपूर की चर्चा करते हुए श्रीदेवी ने हमसे कहा था-‘‘बोनी कपूर एक अच्छे पति और एक अच्छे पिता हैं. वह मेरे लिए सब कुछ हैं. मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसे पति मिले. बोनी कपूर ऐसे पति हैं, जो कि मुझे अच्छी तरह से समझते हैं. मुझे प्यार देते हैं. हमारे बीच दिन प्रतिदिन प्यार बढ़ता चला गया. मैं ईश्वर की बहुत शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरी जिंदगी में पति के रूप में बोनी कपूर को भेजा.’’

टैक्स प्लानिंग कब और कैसे करें, जानिये एक्सपर्ट की सलाह

आयकर कानूनों में इतने पेच हैं कि किसी के लिए भी उन्हें समझना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है, जबकि उचित कर नियोजन के द्वारा व्यक्ति न केवल करों की देनदारियों को कम कर सकता है, बल्कि? अपने जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में निर्धारित लक्ष्यों के लिए भी बचत कर सकता है.

टैक्स प्लानिंग क्या है और क्यों जरूरी है, आइए जानते हैं:

टैक्स किसे कहते हैं

हर वित्तवर्ष की शुरुआत में हर नौकरीपेशा शख्स अपने ऐंप्लायर को उस रकम की जानकारी देता है, जो वह इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम, बीमा पौलिसी प्रीमियम, मकान किराया, होम लोन, ऐजुकेशन लोन या बच्चों की ट्यूशन फीस पर खर्च करने वाला है. इसी घोषणा के आधार पर तय होता है कि नौकरी करने वाले शख्स की ऐनुअल टैक्स लायबिलिटी यानी वार्षिक कर देनदारी कितनी होगी और आप के वेतन से कितना टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती या टैक्स डिडक्टिड ऐट सोर्स) कटेगा.

टैक्स प्लानिंग टैक्स चोरी नहीं. इस में आप गंभीरता से अपनी आय के स्रोत और निवेश के विकल्पों की प्लानिंग करते हैं. टैक्स प्लानिंग का मतलब यह भी नहीं है कि आप आंख मूंद कर के धारा 80 सी के विकल्पों में पैसा लगा दें. टैक्स प्लानिंग मुश्किल नहीं बल्कि काफी आसान है.

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टैक्स प्लानिंग की जरूरत क्यों

एक ऐफिशिएंट टैक्स प्लानिंग टैक्स देनदारी कम करने में आप की मदद करती है. उदाहरण के तौर पर हो सकता है कि आप शादी करने वाले हों या फिर आप को घर की जरूरत हो, इस स्थिति में आप को खुद पर आश्रित जीवनसाथी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इंश्योरैंस की जरूरत पड़ेगी, साथ ही आप को होम लोन का भी ख्याल रखना होगा.

ऐंडोमैंट, यूलिप, जीवन बीमा कंपनियों की पेंशन योजनाओं में निवेश कर के भी आप आयकर में बचत कर सकते हैं. धारा 80सी के तहत जीवन बीमा के प्रीमियम भुगतान पर आप सालाना कटौती का लाभ पा सकते हैं.

इसके अलावा जीवन बीमा योजनाओं की मैच्योरिटी पर प्राप्त होने वाले पैसे भी धारा 10(10)डी के तहत टैक्स फ्री होते हैं. लंबी अवधि में यूलिप आप को बेहतर रिटर्न दे सकते हैं, क्योंकि ये शेयर बाजार में निवेश करते हैं और लंबी अवधि में इक्विटी में किया गया निवेश हमेशा ही बेहतर रिटर्न देता है. अगर आप जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं तो टैक्स सेविंग के साथसाथ बचत के लिए ऐंडौमैंट पौलिसी भी ले सकते हैं.

परिवार के आपसी समझौते द्वारा टैक्स प्लानिंग

  • इस के लिए स्वयं की आयकर टैक्स रिटर्न फाइल करने के साथसाथ अपने परिवार के सदस्यों की भी रिटर्न फाइल करें.
  • अपने वयस्क बच्चों के लिए टैक्स प्लानिंग करें.
  • वसीयत द्वारा संपत्ति को ऐसे बांटें, जिस से वह भार उत्तराधिकारियों पर टैक्स के रूप में कम से कम आए.

जब कभी करदाता की देय अधिक होती है, तो वह टैक्स की ऐसी प्लानिंग करे, जिस के द्वारा वह अपनी आय अपने संबंधियों को ट्रांसफर कर सके ताकि उस की टैक्स लाइबिलिटी कम हो जाए. मगर ऐसा करते समय कुछ बातों का उसे ध्यान रखना होगा.

जैसे:

  • संपत्ति ट्रांसफर किए बिना आय ट्रांसफर करना.
  • रिवोकेबल ट्रांसफर की सही प्लानिंग करना.
  • पत्नी, पुत्रवधू, अवयस्क बच्चों को अपनी आय ट्रांसफर करने से बचें.

निवेश विकल्पों का चुनाव

टैक्स बचाने के लिए निवेश के विकल्पों का चुनाव करने में इन बातों का ध्यान रखें:

लिक्विडिटी: आप को पैसे की जरूरत कितनी जल्दी पड़ सकती है? क्या आप 1 या2 साल की अवधि में यह फंड हासिल कर सकते हैं? आप निवेश के किसी भी विकल्प से इतनी जल्दी पैसा निकाल नहीं पाएंगे. यहां तक कि सभी टैक्स बचत विकल्पों के लिए न्यूनतम लौक इन पीरियड 3 साल का है.

जोखिम और रिटर्न: आप को तय करना होगा कि आखिर आप कितना जोखिम लेना चाहते हैं. निवेश के कुछ विकल्पों में जोखिम कम होता है और रिटर्न भी कम. जिन में रिटर्न ज्यादा है उन में जोखिम भी ज्यादा है.

मुद्रास्फीति से सुरक्षा: जो इंस्ट्रूमैंट कम रिटर्न देते हैं वे मुद्रास्फीति के लिहाज से ठीक नहीं हैं. इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि कई इंस्ट्रूमैंट लंबी अवधि तक आप का निवेश रोक लेते हैं और इस पर एक निश्चित दर से ही ब्याज देते हैं. हालांकि मुद्रास्फीति के लिहाज से यह अच्छा नहीं है.

टैक्स छूट: धारा 80सी, 80सीसीसी, 80सीसीडी के तहत आने वाले सभी इंस्ट्रूमैंट इस लिहाज से एकजैसे हैं, क्योंकि आप को इन पर टैक्स छूट का फायदा तभी मिलेगा जब आप इन में निवेश करेंगे. हालांकि इन से मिलने वाली आय में और मैच्योरिटी पर लगने वाले टैक्स में अंतर है.                     –

आलोक अग्रवाल

(चेयरमैन, अलंकित समूह)

श्रीदेवी : बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार का कोई सानी नहीं

54 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह देने वालीं बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी  का मानना रहा है कि वह तो इत्तफाकन अभिनेत्री बनीं. यूं तो श्रीदेवी चार वर्ष की उम्र में एक फिल्म में बाल कलाकार के रूप में नजर आई थीं तब उन्हें कला या अभिनय की कोई समझ नहीं थी. पर सही मायनों में उनका अभिनय करियर 13 वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म ‘‘मुंदूर मुदीच’’ से शुरू हुआ था. 13 वर्ष की उम्र में इस फिल्म में उनका किरदार वयस्क लड़की का था. जबकि बौलीवुड में इन्होंने 1975 में फिल्म ‘‘जूली’’ में बाल कलाकार के रूप में काम करते हुए कदम रखा था.

अंतिम फिल्म ‘‘जीरो’’

1976 में तेरह वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म ‘‘मुंदूर मुदीच’’ से लेकर 7 जुलाई 2017 को प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘‘मौम’’ तक श्रीदेवी ने 300 फिल्मों में अभिनय किया था. उनके करियर की अंतिम और 301 वीं फिल्म ‘‘जीरो’’ होगी. आनंद एल राय निर्देशित इस फिल्म में शाहरुख खान के साथ श्रीदेवी ने मेहमान कलाकार के रूप में अभिनय किया है, यह फिल्म 21 दिसंबर 2018 को प्रदर्शित होगी.

1976 से अब तक के अपने करियर में श्रीदेवी ने अपने दमदार अभिनय से फिल्मकारों, कलाकारों को ही नहीं, बल्कि अपने प्रशंसकों को इस कदर दीवाना बना रखा था कि हर कोई उनके साथ काम करने को लालायित रहता था. पुरूष प्रधान बौलीवुड में श्रीदेवी एकमात्र ऐसी अदाकारा रही हैं, जिनके बल पर फिल्में बौक्स औफिस पर धन कमाया करती थी.

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अपनी शर्तों पर काम

श्रीदेवी हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया करती थीं. बौलीवुड में नारी शक्ति का परचम लहराने वाली श्रीदेवी के लिए खास तौर पर किरदार लिखे जाते थें. यदि श्रीदेवी को अपना किरदार व फिल्म की कहानी न पसंद आए, तो वह उस फिल्म का औफर ठुकरा देती थीं. इतना ही नहीं श्रीदेवी हमेशा इस बात का ख्याल रखती थीं कि वह जिस फिल्म में अभिनय करें, उस फिल्म में उनका किरदार फिल्म के हीरो से कमतर न हो. इसी के चलते श्रीदेवी ने अमिताभ बच्चन के साथ भी कई फिल्में करने से इंकार कर दिया था, जबकि यह वह दौर था जब हर हीरोईन अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म का हिस्सा बनना अपना सौभाग्य समझती थी. कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन स्वयं श्रीदेवी के साथ काम करने को लालायित थें. इसी के चलते अमिताभ बच्चन ने श्रीदेवी के पास फूलों से भरा हुआ ट्रक भिजवाया था.

अमिताभ बच्चन के साथ दोहरी भूमिका निभाने वाली एकमात्र अदाकारा

बहरहाल, बाद में श्रीदेवी ने अमिताभ बच्चन के साथ सबसे पहले फिल्म “इंकलाब’’ की. उसके बाद ‘‘खुदा गवाह’’ और ‘आखिरी रास्ता’ जैसी कुछ फिल्में की. मगर इन फिल्मों में श्रीदेवी के किरदार ही हावी रहें. इतना ही नहीं श्रीदेवी पहली अदाकारा थीं, जिन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘‘खुदा गवाह’’ में दोहरी भूमिका निभायी थीं. अन्यथा अमिताभ बच्चन की किसी भी फिल्म में किसी हीरोईन को दोहरी भूमिका निभाने का अवसर कभी नहीं मिला. मजेदार बात यह थी कि फिल्म ‘खुदा गवाह’ में श्रीदेवी ने अफगानी अंदाज वाली हिंदी में संवाद अदायगी कर लोगों को आश्चर्य चकित किया था.

श्रीदेवी के लिए रेखा ने डब किए थे संवाद

सिनेमा भाषा का मोहताज नहीं होता. इस बात को श्रीदेवी की फिल्मों से भी समझा जा सकता है. श्रीदेवी को तमिल व तेलगू भाषा ही आती थी, मगर वह लंबे समय तक हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाती रहीं. हिंदी फिल्मों में उनके संवाद नाज डब किया करती थीं. फिल्म ‘आखिरी रास्ता’ में श्रीदेवी के संवादों को अभिनेत्री रेखा ने डब किया था. पर श्री देवी ने हिंदी भाषा सीखना शुरू कर दिया था.

‘‘चांदनी’’ में पहली बार खुद संवाद डब किए

14 सितंबर 1989 को प्रदर्शित यश चोपड़ा की फिल्म ‘‘चांदनी’’ से श्रीदेवी का अलग रूप लोगों के सामने आया. यह पहली फिल्म थी, जिसमें श्री देवी ने अपने संवाद खुद डब किए थें और इस फिल्म में पहली बार उन्होंने गाना भी गाया था. फिल्म ‘‘चांदनी” ने बौक्स औफिस पर सफलता के कई नए रिकार्ड स्थापित किए थें. मजेदार बात यह है कि यश चोपड़ा पहले फिल्म ‘‘चांदनी’’ अभिनेत्री रेखा को लेकर बनाना चाहते थें. पर हालात कुछ ऐसे बने कि उन्होंने ‘चांदनी’ के साथ श्रीदेवी को जोड़ा और उसके बाद वह भी श्रीदेवी के अभिनय के कायल हो गए थें. उसके बाद फिल्म ‘‘सदमा’’ में भी श्रीदेवी ने गाना गाया था.

क्यों अहम हैं ‘‘सदमा’’ और ‘‘लम्हे’’

श्रीदेवी के करियर की सफलतम फिल्मों में ‘सदमा’ और ‘लम्हे’ इन दोनों फिल्मों का विशेष महत्व है. 8 जुलाई 1983 को प्रदर्शित फिल्म ‘‘सदमा’’ में श्रीदेवी ने कमल हासन के साथ अभिनय करते हुए एक विक्षिप्त लड़की नेहलता मल्होत्रा उर्फ रश्मी का किरदार निभाया था. कहानी के अनुसार एक दुर्घटना में रश्मी के सिर पर चोट लग जाती है, उनकी याद्दाश्त खो जाती है और वह चार वर्ष की बच्ची की तरह व्यवहार करने लगती हैं. इसमें कमल हासन उन्हे लोरी गा कर सुनाते थें. जबकि 22 नवंबर को प्रदर्शित यश चोपड़ा निर्मित फिल्म ‘‘लम्हे’’ अपने समय से काफी आगे व हिंदुस्तानी परंपराओं को तोड़ने वाली फिल्म थी, जिसमें श्री देवी ने दोहरी भूमिका निभायी थी.

पहली वैनिटी वैन

इन दिनों अमिताभ बच्चन व शाहरुख खान से लेकर तमाम बड़े कलाकारों के पास अपनी वैनिटी वैन है. शूटिंग के दौरान लगभग हर कलाकार, निर्माता से वैनिटी वैन की मांग करता है. मगर श्रीदेवी पहली अदाकारा थीं, जिनके पास अपनी वैनिटी वैन थी.

श्रीदेवी : हीरो से ज्यादा पारिश्रमिक राशि पाने वाली अदाकारा

बौलीवुड हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है. फिल्मों में अभिनय करने के लिए हीरो यानी कि पुरुष कलाकार को हीरोइन यानी कि महिला कलाकार के मुकाबले काफी अधिक पारिश्रमिक राशि मिलती है.

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पिछले कुछ वर्षों से बौलीवुड में दीपिका पादुकोण, स्वरा भास्कर, सोनम कपूर सहित कुछ अभिनेत्रियों ने पुरुष कलाकारों के समान पारिश्रमिक राशि की मांग को लेकर मुहीम चला रखी है.

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मगर श्री देवी को बिना किसी तरह की मुहीम चलाए ही पुरुष कलाकारों के समकक्ष या उससे अधिक पारिश्रमिक राशि मिलती थी. यहां तक खुद बोनी कपूर ने फिल्म ‘‘मिस्टर इंडिया’’के लिए अपने भाई अनिल कपूर से काफी ज्यादा ग्यारह लाख रूपए की पारिश्रमिक राशि श्रीदेवी को दी थी.

कार्डियक अरेस्ट : लक्षण और कैसे कर सकते हैं बचाव

बौलीवुड समेत दक्षिण की कई शानदार फिल्में देने वाली लाखों दिलों की धड़कन श्रीदेवी का शनिवार (24 फरवरी) की रात दुबई में कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया. अचानक से ऐसा हो जाने पर बौलीवुड इंडस्ट्री के साथ ही हर कोई सदमें में है. आखिर अचानक से ऐसा कैसे हो गया, इस बात पर अभी भी यकीन नहीं होता कि ये सच है, पर अफसोस कि ना चाहते हुए भी हर किसी को इस सच्चाई को स्वीकारना ही पड़ेगा.

आइये जानते हैं उस वजह यानी कि कार्डियक अरेस्ट के बारें में, जिसने पल भर में श्रीदेवी को हम सबसे दूर कर दिया. साथ ही जानते हैं इसके लक्षण और बचाव के बारे में.

दिल का दौरा और हृदय गति का रुकना, इन दोनों ही स्थिति एक दूसरे से पर्याय है, लेकिन दोनों में मामूली फर्क होता है. पहले दिल के दौरे के बारे में जान लेते हैं.

दिल का दौरा (हार्ट अटैक) क्या है

दिल का दौरा तब पड़ता है जब कोई नस जाम होने पर दिल के एक सेक्शन तक औक्सीजन वाला अच्छा खून नहीं पहुंचा पाती है. अगर जाम हो चुकी नस को तुरंत नहीं खोला जाता है तो दिल का वह हिस्सा अपने आप पोषित होने लगता है, लेकिन नस मरने लगती है. इसके लक्षण धीरे-धीरे शुरू होते हैं और घंटों, दिनों और हफ्तों तक बने रहते हैं, जब तक कि हृदय गति ही न रुक जाए. आमतौर पर दिल का दौरा पड़ने पर दिल का धड़कना बंद नहीं होता है. महिलाओं में दिल का दौरा पड़ने के लक्षण पुरुषों के मुकाबले भिन्न हो सकते हैं.

कार्डियक अरेस्ट क्या है?

कार्डियक अरेस्ट अक्सर बिना चेतावनी के अचानक होता है. यह दिल में एक इलेक्ट्रीकल मलफंक्शन (विद्युतीय खराबी) के कारण होता है, इससे दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है. ऐसी स्थिति तो arrhythmia कहते हैं. दरअसल जब दिल धड़कता है तो उससे वैद्युत संवेग पैदा होता है, जिसकी मदद से शरीर में रक्त का संचार होता है. धड़कन अनियंत्रित होने पर शरीर में रक्त का संचार कभी तेजी से होता है तो कभी धीमी गति से, ऐसे में शरीर के बाकी हिस्सों जैसे कि फेंफड़े और दिमाग आदि पर असर पड़ता है. इसके रुकने पर व्यक्ति का उसके दिमाग पर जोर नहीं रहता और वह व्यक्ति चेतना खो देता है और उसकी नब्ज बंद हो जाती है.

कार्डियक अरेस्ट के कारण, शरीर में औक्सीजन का वितरण रूक जाता है. जिसके कारण दिल पर बुरा असर पड़ता है और मरीज की जान भी जा सकती है. इसके इलाज के लिए पीड़ित को जल्द से जल्द सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रेसस्टिसेशन) दिया जाता है. जिससे दिल की धड़क को नियमित किया जा सके. सीपीआर में बीमार को डिफाइब्रिलेटर से बिजली के झटके दिए जाते हैं, जिससे हृदयगति सामान्य हो सके.

यह दिल के दौरे से अलग है, लेकिन यह दिल के दौरे का कारण हो सकता है. गौरतलब है कि कार्डियक अरेस्ट एक मेडिकल इमरजेंसी है, जिसका कुछ खास स्थितियों में अगर समय से इलाज किया जाए तो मरीज की जान बच सकती है.

दिल की दूसरी खराबियां भी कार्डियक अरेस्ट के लिए वजह बन सकती हैं. इनमें दिल की मांस-पेशियों का मोटा हो जाना (कार्डियोमायोपैथी), दिल का बंद होना, खून में ज्यादा मात्रा में फाइब्रोनिजन का पाया जाना, और लंबे समय तक क्यू-टी सिंड्रोम रहना शामिल है. क्यू-टी सिंड्रोम में भी दिल की धड़कन कभी तेज तो कभी धीमी पड़ जाती है.

बचाव

एक रिपोर्ट के अनुसार इन हालातों में बचाव के लिए सबसे पहले देखना चाहिए कि मरीज सही से सांस ले पा रहा है या नहीं, अगर नहीं ले पा रहा है तो ‘सीपीआर’ प्रणाली पर काम करना चाहिए, इसके तहत मरीज के सीने पर हाथों से दबाव दिया जाता है. मरीज के सीने को एक मिनट के भीतर 100 से 120 बार तक दबाना चाहिए. हर 30 बार दबाने के बाद उसकी सांस को जांच लेना चाहिए. बिना देर किए मिनटों मे किसी डौक्टर को दिखाना चाहिए.

मराठी फिल्म रिव्यू- आम्ही दोघी

कुछ रिश्ते जन्म से ही मिले होते हैं, जिन्हें हम नकार नहीं सकते. दूर होते हुए भी उनकी यादे हमेशा हमारे मन में रहती है. लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो अप्रत्याशित रूप से हमारे जिन्दगी में आते हैं और उनकी अहमियत जीवनभर बनी रहती है. ऐसे ही एक रिश्ते की कहानी है फिल्म “आम्ही दोघी”. यह फिल्म गौरी देशपांडे द्वारा लिखित कथा संग्रह ‘पाऊस आला मोठा’ पर आधारित है.

सावि (प्रिया बापट) एक प्रैक्टिकल और खुले विचारों की लड़की है. पिता (किरण करमरकर) कोल्हापुर के जाने माने वकील होने के वजह से बचपन से ही हर सुख सुविधा उसके कदमों में रहती है. मां नहीं होने का कुछ फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि हम प्रैक्टिकल है, यह बचपन से ही उसे उसके पिता सिखाते हैं. इसलिए वह ठान लेती है कि आगे से किसी भी बात का बुरा नहीं मानना है. एक दिन अचानक पिता शादी करके दूसरी मां (मुक्ता बर्वे) को घर लाते है, जिसका नाम अम्मी है.

अम्मी और सावि की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. उसे पढने-लिखने बिल्कुल नहीं आता है. साड़ी लपेटकर और बालों का अम्बाडा बांध कर वह पुरे दिन रहती है. “मेरे पिता की पत्नी ऐसी कैसी हो सकती है? मुझसे बिना पूछे उन्होंने शादी क्यों की?” ऐसे अनेक प्रश्न सावि के मन उठते हैं, जिनको वह मन में ही दबाये रहती है. पिता के इस तरह प्रैक्टिकल रवैये से सावि उनसे मानसिक तौर पर दूर होते जाती है. लेकिन सावि और अम्मी के बीच दोस्ती हो जाती है.

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धीरे-धीरे अपने मुहफट स्वभाव के कारण सावि अम्मी से भी दूर होने लगती है. आगे की पढाई करने के लिए मुंबई आने के बाद वह अम्मी को पूरी तरह से भूल जाती है. एक दिन अचानक अम्मी उसके पिता की मौत की खबर लेकर उसके घर आती हैं. इतना होने पर भी सावि को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. वह अम्मी को अपने घर में रहने देती है. लेकिन दोनों के बीच पहले जैसी दोस्ती नहीं हो पाती है. सावि को शादी जैसे रिवाजों पर विश्वास नहीं होने के कारण उसका प्रेमी राम (भूषण प्रधान) उसे छोड़कर चला जाता है.

यह बात उसे बुरी तो लगती है लेकिन इसे भी वह जान बुझकर टाल देती है. उसे समझने वाली एकमात्र अम्मी को भी ल्यूकेमिया की बीमारी हो जाती है. अब तक समानांतर चलने वाली सावि और अम्मी की जिन्दगी एक बिंदु पर आकर मिलने वाली होती है, लेकिन उससे पहले ही अम्मी के जीवन का अंत हो जाता है. मरने के पहले अम्मी का आखिरी संवाद सावि के जिन्दगी को मानसिक रूप से बदल देता है. प्रैक्टिकल होकर हम कितने रिश्ते गवा देते हैं, ये सोचकर सावि जिन्दगी में पहली बार रोती है. इस बार उसके और अम्मी के बीच भावुक रिश्ते का एहसास सावि को सही मायने में होता है.

फिल्म की पूरी कहानी में उनके साथ होता है गुरू ठाकुर का गाना “ कोणते नाते म्हणू”. यह गाना कहानी में जान डालता है. कहानी में कहीं भी उलझन नहीं है, फिर भी समय काल का थोडा हेर फेर दिखाई देता है. वास्तव में कौन सा समय चल रहा है. कितने वर्ष आगे जा रहा है, बिल्कुल पता नहीं चल पाता है. अम्मी के प्रति आत्मीयता रखने वाले पिता सावि से इतना दूरी क्यों बनाये रखते है यह अंत तक समझ नहीं आता है. प्रिया बापट, मुक्ता बर्वे सहित सभी कलाकारों ने बहुत अच्छा अभिनय किया है. लेकिन स्कूल जाने वाली सावि की भूमिका में प्रिया बापट के बजाय उसी उम्र की कोई और अभिनेत्री होती तो सहज लगता. फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती है, यही निर्देशक की सफलता है.                                        –

निर्देशक- प्रतिमा जोशी                                 कलाकार- मुक्ता बर्वे, प्रिया बापट, भूषण प्रधान एवं किरण करमरकर

पटकथा– प्रतिमा जोशी, भाग्यश्री जाधव              संवाद- भाग्यश्री जाधव

श्रीदेवी की मौत के दिन पूरे हुए पहली सफल फिल्म ‘‘हिम्मतवाला’’ के 35 वर्ष

सच न सिर्फ कड़वा बल्कि कई बार बड़ा भयानक और अचंभित करने वाला होता है. श्रीदेवी की मौत के साथ कई अचंभित करने वाले हादसे जुड़े हुए हैं.

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25 फरवरी 2018 के दिन जब बौलीवुड में लोग श्रीदेवी की पहली सुपर डुपर हिट फिल्म ‘‘हिम्मतवाला’’ के 35 वीं वर्षगांठ का जश्न मनाने की सोच रहे थें, तभी बौलीवुड व श्रीदेवी के प्रशंसको को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को खबर मिली कि श्रीदेवी का दुबई में निधन हो गया.

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जी हां ! 25 फरवरी, 1983, दिन शुक्रवार को श्रीदेवी व जीतेंद्र के अभिनय तथा के राघवेंद्र राव के निर्देशन से सजी फिल्म ‘‘हिम्मत वाला’’ प्रदर्शित हुई थी. यानी कि आज 25 फरवरी 2018 को 35 वर्ष पूरे हुए, मगर आज अच्छी खबर नहीं बल्कि श्रीदेवी के चले जाने की दुःखद खबर मिली. इसे भी श्रीदेवी के अनुसार इत्तफाक ही कहा जाएगा.

श्रीदेवी : यह महज इत्तफाक या इतिहास का दोहराव

बौलीवुड की मशहूर अदाकारा श्रीदेवी को काल ने शनिवार, 24 फरवरी रात डेढ़ बजे, दुबई में अपने पास बुला लिया, मगर उनकी जिंदगी के साथ कई इत्तफाक जुड़े हुए थे, जो कि उनके परिवार से जुड़े हर शख्स को याद रहेंगे.

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श्रीदेवी ने अभिनय के क्षेत्र में अपने पिता की अनिच्छा के बावजूद एक अजीबोगरीब इत्तफाक के साथ कदम रखा था और जिस दिन उनके पिता की मौत हुई थीउस दिन वह अपनी एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थीं. खुद श्रीदेवी ने हमसे बात करते हुए इस बात का दुःखी मन से जिक्र किया था. श्रीदेवी ने बताया था. ‘‘मैं अपने पिता की मौत को कभी नहीं भुला सकती. जिस दिन मेरे पिता की मौत हुई, उस दिन मैं फिल्म‘‘लम्हें’’ की शूटिंग कर रही थी. मैंने उनसे कुछ समय पहले ही फोन पर लंबी चौड़ी बात की थी, पर मुझे यह दुःख हमेशा सताता रहता है कि जिस वक्त उनकी मौत हुई, उस वक्त मैं उनके पास नहीं थी. काश! मैं उस वक्त उनके पास होती.

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अब इसे भी हम तकदीर की बात कह सकते हैं. मेरे पिता ने मुझे बहुत प्यार दिया. मैं पूरी जिंदगी उनके बहुत करीब थी. उन्होंने मुझे बहुत सिखाया था. मेरे पिता कि मेरे दिलों दिमाग में बहुत खूबसूरत यादें हैं. जिन्हें कोई छीन नहीं सकता. मैं उन्हें कभी भुला नहीं सकती. ’’

और अब इसे इत्तफाक कहें या इतिहास का दोहराव कहें कि श्रीदेवी ने अपनी बेटी जान्हवी कपूर को अनिच्छा के साथ बौलीवुड से जुड़ने की इजाजत दी थी और अब जबकि दुबई में श्रीदेवी का हृदय गति रूकने से निधन हुआ, तो श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर भी उनके पास नहीं थी, बल्कि जान्हवी कपूर मुंबई में अपनी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थीं.

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