वह बुरी नहीं थी: ईशा की लिखी चिट्ठी जब आयशा को मिली

अपने अपार्टमैंट के फोर्थ फ्लोर की गैलरी में बारिश में भीगती खड़ी आयशा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे उस की आंखों से गिरते आंसू ही बारिश बन कर बरस रहे हैं और आज पूरे शहर को बहा ले जाएंगे. इस से पहले तो पुणे में ऐसी बारिश कभी नहीं हुई थी.

तभी आयशा का फोन बजा, लेकिन वह अपनेआप में कुछ इस तरह खोई हुई थी कि उसे फोन की रिंग सुनाई ही नहीं दी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे इतनी जल्दी यह दिन देखना पड़ेगा. वह जानती थी ईशा उस का साथ छोड़ देगी, लेकिन इतनी जल्दी यह नहीं सोचा था. ईशा को तो अपना प्रौमिस तक याद नहीं रहा. उस ने कहा था जब तक वह मौसी नहीं बन जाती वह कहीं नहीं जाएगी. लेकिन वह अपना वादा तोड़ कर यों उसे अकेला, तनहा छोड़ कर चली गई. क्या यही थी उस की दोस्ती?

तभी मोबाइल दोबारा बजा और निरंतर बजता ही रहा. तब जा कर आयशा का ध्यान उस ओर गया और उस ने फोन उठाया.

फोन ईशा की छोटी बहन इषिता का था. फोन उठाते ही इषिता बोली, ‘‘दीदी, आज रात

ही हम नागपुर लौट रहे हैं. दीदी का सामान पैक करते हुए दीदी की अलमीरा से हमें आप के

नाम का एक बंद लिफाफा मिला है, उस में

शायद कोई चिट्ठी है. आप चिट्ठी लेने आएंगी

या फिर औफिस से लौटते हुए जीजाजी कलैक्ट कर लेंगे?’’

यह सुनते ही आयशा बोली, ‘‘नहीं… नहीं… मैं अभी आती हूं.’’

‘‘लेकिन दीदी अभी तो तेज बारिश हो

रही है. आप कैसे आएंगी?’’ इषिता शंका जताते हुए बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, मेरे यहां से वहां की दूरी महज 10 मिनट की है,’’ कह कर आयशा ने फोन रख दिया और बिना छाता लिए भागती हुई ईशा के घर की तरफ दौड़ी.

आज यह 10 मिनट का फासला तय

करना आयशा के लिए काफी लंबा लग रहा था. उसे लग रहा था जैसे उस के कदम आगे बढ़

ही नहीं रहे हैं. रोज तो वह औफिस आतेजाते

ईशा से मिलते हुए जाती थी और पिछले 1 साल से तो वह लगभग रोज ही ईशा से मिलने जाने लगी थी. जब से उसे इस बात की खबर लगी

थी कि ईशा को कैंसर है, तब तो उसे कभी ईशा के घर की दूरी इतनी लंबी नहीं लगी फिर आज क्यों लग रही है. शायद इसलिए कि आज दरवाजे पर मुसकराती हुई उसे ईशा नहीं मिलेगी.

जब से आयशा ने होश संभाला है तब से ईशा और वह फ्रैंड्स हैं. दोनों नागपुर में एक ही सोसाइटी में रहते थे और दोनों का घर भी अगलबगल ही था. था क्या अब भी है. जब आयशा करीब 7 साल की थी, तब ईशा अपनी मम्मी और छोटी बहन इषिता के साथ इस सोसाइटी में शिफ्ट हुई थी. ईशा की मम्मी तलाकशुदा और वर्किंग लेडी थी इसलिए ईशा और इषिता का ज्यादातर समय आयशा के ही घर बीतता था.

आयशा और ईशा हमउम्र थे इसलिए दोनों के बीच बहुत जल्दी गहरी दोस्ती हो गई. बचपन से ही ईशा बहुत खूबसूरत थी. गोरा रंग, काले घने बाल, नीलीनीली आंखें. उस की आंखें बेहद आकर्षक थीं. जो भी उसे देखता उस की सुंदर आंखों की तारीफ किए बिना नहीं रह पाता. वहीं आयशा साधारण नैननक्श की और सांवली थी.

बेसुध सी पूरी तरह से भीगी आयशा ईशा के फ्लैट पहुंची तो उसे इस हाल में देख ईशा की मम्मी और बहन हैरान रह गए. ईशा की मम्मी सामान पैक करना छोड़ दौड़ कर आयशा के करीब आ कर बोलीं, ‘‘यह क्या है आयशा बेटा. हम सब जानते थे न ईशा को जाना ही है फिर

सच को स्वीकारने में तुम्हें इतनी तकलीफ क्यों हो रही है?

आयशा इस बात का कोई जवाब दिए बगैर ईशा की मम्मी से लिपट फूटफूट कर रो पड़ी. तभी इषिता वह लिफाफा ले कर आ गई और आयशा की ओर बढ़ाती हुई बोली, ‘‘दीदी यह लो.’’

आयशा लिफाफा ले कर चुपचाप घर लौट गई. बारिश भी अब थम चुकी थी. घर लौटते वक्त आयशा के मन में इस लिफाफे को ले कर एक बेचैनी सी उठ रही थी. आयशा को अपनी और ईशा की हर छोटीछोटी बात याद आने लगी थी.

आयशा आज भी नहीं भूली है जब कोई ईशा की सुंदरता की तारीफ करता तो उसे कभी इस बात का बुरा नहीं लगता था, लेकिन यदि कोई आयशा की तारीफ करता तो ईशा फौरन चिढ़ जाती और घंटों आयशा से मुंह फुलाए बैठी रहती. आयशा उसे मनाती, उस का होमवर्क भी कंप्लीट कर देती तब कहीं जा कर वह मानती.

आयशा और ईशा दोनों एक ही क्लास में थे इसलिए जब भी क्लास में होमवर्क ज्यादा मिलता ईशा कोई न कोई बहाना बना कर आयशा से नाराज होने का ढोंग करती ताकि वह उस का भी होमवर्क कर दे. आयशा यह बात जानते हुए कि ईशा अपना होमवर्क कंप्लीट कराने के लिए यह सब स्वांग रच रही है, उस का होमवर्क बिना कुछ कहे कंप्लीट कर देती और फिर ईशा आयशा को गले लगा लेती.

सभी को ईशा की सुंदरता और आयशा का सौम्य स्वभाव भाता. समय अपनी गति से चल रहा था और वक्त के साथसाथ ईशा की खूबसूरती और ज्यादा मादक होती जा रही थी. ईशा को अपनी खूबसूरती पर गुमान था. आयशा सांवली अवश्य थी, लेकिन एक आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी.

ईशा की खूबसूरती के सभी दीवाने थे, लेकिन जहां पढ़ाई या कुशल व्यवहार की बात आती आयशा बाजी मार जाती. लेकिन इन सब के वाबजूद दोनों में पक्की दोस्ती थी इसलिए दोनों ने हाई स्कूल पासआउट होने के बाद एक ही इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन ले लिया, जहां उन की मुलाकात क्षितिज से हुई जो उन्हीं की आईटी ब्रांच का सीनियर स्टूडैंट था और कालेज का सब से ज्यादा हैंडसम, डैसिंग, स्मार्ट और इंटैलिजैंट लड़का था जिस पर कालेज की सभी लड़कियां मरती थीं, लेकिन वह लड़का मरमिटा आयशा पर.

आयशा ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था उस के जैसी साधारण सी दिखने वाली लड़की पर कभी कोई इतना हैंडसम लड़का मरमिटने को तैयार होगा.

लेकिन जब ईशा क्षितिज का पैगाम ले कर आई तो आयशा को उस लैटर पर, ईशा पर और खुद पर यकीन ही नहीं हो रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उस लैटर का 1-1 शब्द ईशा का है बस लिखावट किसी और की है.

आयशा यह सब सोचती घर पहुंच गई. वह अपने पति के आने से पहले इस लैटर को इत्मीनान से अकेले में पढ़ना चाहती थी क्योंकि उस की सास को ईशा पसंद नहीं थी. इस वजह से उस के पति भी ईशा से थोड़ी दूरी बना कर रखते थे. लेकिन उसे कभी ईशा से मिलने, उस के घर जाने या दोस्ती समाप्त करने को नहीं कहा इसलिए दोनों की दोस्ती पहले जैसी ही चलती रही.

लिफाफा खोलते हुए आयशा के हाथ कांपने लगे. उस ने जैसे ही

लिफाफा खोल कर चिट्ठी निकाली उस में से मंगलसूत्र गिरा. आयशा हैरान रह गई. आयशा के इतना मनाने और कहने के बावजूद ईशा ने तो शादी करने से मना कर दिया था फिर यह मंगलसूत्र उस ने क्यों खरीदा था? उस ने फौरन उस मंगलसूत्र को उठा लिया और गौर से देखने लगी. यह मंगलसूत्र बिलकुल वैसा ही था जैसा शादी के बाद पहली रात को उस के पति ने उसे उपहारस्वरूप दिया था. आयशा सोच में पड़ गई और उस के अंदर एक अजीब सी हलचल मचने लगी.

आयशा ने फौरन चिट्ठी खोली और पढ़ने लगी. उस में लिखा था, ‘‘डियर आयशा…

‘‘कभी सोचा न था कि मु?ो तुम्हें यह सब लिखना पड़ेगा, लेकिन अगर तुम्हें सचाई बताए बगैर मैं तुम्हारी दुनिया से यों चली जाती तो शायद मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाती. मेरे मन को कभी सुकून नहीं मिलता. जब तुम यह लैटर पढ़ रही होगी मैं इस दुनिया और तुम सब से बहुत दूर जा चुकी होऊंगी.

‘‘मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. तुम हमेशा मेरी सच्ची सखी रही पर मैं कभी तुम्हारी सच्ची सहेली नहीं बन पाई.’’

यह सब पढ़ कर आयशा के माथे पर पसीने की बूंदें और शिकन की लकीरें खिंच गईं. ये सब बेकार की बातें ईशा ने क्यों लिखी हैं? वह एक बहुत ही अच्छी और सच्ची दोस्त थी. उस ने ही तो उसे यकीन दिलाया था कि क्षितिज उस से बेहद प्यार करता है वरना हाथ में क्षितिज का लव लैटर होने के बावजूद वह

यह मानने को कहां तैयार थी कि क्षितिज उस से प्यार करता है. वह खुद भी कहां जान पाई थी कि वह क्षितिज से प्यार करती है. इस बात का एहसास भी तो ईशा ने ही उसे कराया था. लेकिन आगे पढ़ते ही उस का यह भ्रम टूट गया. आगे लिखा था-

‘‘आयशा, तुझे यह जान कर बहुत दुख

होगा और मुझ पर गुस्सा भी आएगा कि क्षितिज तुझ से कभी प्यार नहीं करता था. उस दिन जो लैटर मैं ने तुझे ला कर दिया था वह क्षितिज ने जरूर लिखा था, लेकिन तेरा वह शक

बिलकुल सही था, उस लैटर का 1-1 शब्द

मेरा था.’’

यह पढ़ते ही आयशा की आंखें झिलमिला गईं कि इतना बड़ा झूठ, इतना बड़ा विश्वासघात. ईशा और क्षितिज इतने सालों से उस की भावनाओं के साथ खेल रहे थे. आखिर क्यों?

जैसेजैसे आयशा लैटर पढ़ती जा रही थी वैसेवैसे उसे अपने सवालों के जवाब के साथसाथ ईशा और क्षितिज की सचाई सामने आती जा रही थी और उस की आंखों से झूठ का परदा उठता जा रहा था.

आगे लिखा था, ‘‘तुम जानना चाहती होगी कि जब क्षितिज तुम से प्यार नहीं करता था तो उस ने तुम्हें लव लैटर क्यों लिखा? उस ने तुम्हें लैटर इसलिए लिखा क्योंकि वह चाहता था कि तुम उसे प्यार करने लगो और ऐसा ही हुआ. तुम उस से प्यार करने लगी और मैं यह जानते हुए कि क्षितिज तुम से प्यार नहीं करता, मैं ने तुम्हें यह यकीन दिला दिया कि वह तुम से प्यार करता है और तुम्हें भी यह एहसास दिला दिया कि तुम भी क्षितिज से प्यार करती हो.

‘‘आयशा, मैं तुम्हारी दोषी हूं, मैं ने तुम्हें धोखा दिया, लेकिन मैं ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं अपना प्यार बांटने को तो तैयार थी लेकिन खोने को कतई नहीं. तुम्हें याद होगा

एक दिन तुम ने मुझ से पूछा था, जब तुम मेरे घर पर आई थी और अचानक तुम्हें मेरी मैडिकल फाइल दिख गई जिस पर प्रैगनैंसी पौजिटिव था. तुम जानना चाहती थी न उस बच्चे का पिता कौन है. उस रोज तो मैं तुम्हें बता नहीं पाई थी, लेकिन आज मैं तुम से छिपाऊंगी नहीं क्योंकि तुम्हें यह जानने का हक है. उस बच्चे का पिता कोई और नहीं क्षितिज ही था लेकिन क्षितिज

नहीं चाहता था, इसलिए मुझेअबौर्शन कराना पड़ा. क्षितिज मुझे तभी से चाहने लगा था जब

से उस ने मुझे कालेज कंपाउंड में तुम्हारे साथ देखा था और फिर धीरेधीरे मैं भी उस से प्यार करने लगी.

‘‘क्षितिज और मैं उस वक्त भी एकदूसरे से प्यार करते थे जब मैं ने तुम्हें क्षितिज का लव लैटर दिया था. कालेज कंप्लीट होते ही मैं और क्षितिज शादी करना चाहते थे, लेकिन क्षितिज की मम्मी को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. वे नहीं चाहती थीं उन के घर की बहू विजातीय हो या फिर किसी ऐसे घर से आए जिस के मातापिता का तलाक हो चुका हो.

‘‘क्षितिज भी अपनी मम्मी के विरुद्ध जा कर मुझ से शादी नहीं करना चाहता था क्योंकि वह यह नहीं चाहता था कि समाज के आगे उस की वजह से उस के मातापिता का सिर झूके इसलिए उस ने तुम्हें अपने प्यार में फंसाने का जाल बुना और मैं ने उस का साथ दिया.

‘‘मैं ने तुम्हें कई बार यह सचाई बतानी चाही, लेकिन हर बार क्षितिज को खोने का डर मुझे रोक देता. फिर जब एक साल पहले मुझे

यह पता चला कि मेरे यूटरस में कैंसर है और

मैं बस कुछ दिनों की मेहमान हूं तो क्षितिज ने

भी मु?ा से अपना पल्ला झड़ लिया क्योंकि अब मैं उस की शारीरिक भूख को शांत करने में असमर्थ थी. उस समय मैं बिलकुल तनहा हो

गई थी. कई बार चाहा कि तुम्हें सबकुछ बता

दूं फिर अपने जीवन के अंतिम दिनों में तुम्हें अपनी यह सचाई बता कर तुम्हारी आंखों में

अपने लिए घृणा और नफरत नहीं देखना

चाहती थी इसलिए नहीं बताया, लेकिन यह बोझ ले कर मैं मरना भी नहीं चाहती. आयशा तुम से हाथजोड़ कर माफी चाहती हूं. प्लीज मुझे माफ कर देना.’’

तुम्हारी लिख नहीं पाऊंगी इसलिए

केवल ‘ईशा.’

लैटर पढ़ते हुए आयशा की आंखों से गिरे आंसुओं की बूंदों से लैटर भीग गया

था. तभी आयशा के पति आ गए. उन्हें देख आयशा ने लैटर एक ओर रख दिया.

आयशा के पति आयशा को रोता देख उस के करीब आ कर उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘आयशा, तुम कब तक ईशा के जाने के गम में आंसू बहाती रहोगी. उसे तो जाना ही था सो वह चली गई. मम्मी एकदम सही कहती थीं कि वह अच्छी लड़की नहीं थी इसलिए तो बिना शादी के प्रैंगनैंट हो गई थी तुम तो केवल उस का एक ही अबौर्शन जानती हो न जाने उस ने ऐसे कितने अबौर्शन कराए होंगे. तभी तो उस के यूटरस में कैंसर हुआ और न जाने उस का कितने लोगों के साथ संबंध रहा होगा.’’

यह सुनते ही आयशा चीख पड़ी और एक जोरदार तमाचा अपने पति के गाल पर मारती हुई बोली, ‘‘अपनी बकवास बंद करो क्षितिज.

ईशा बुरी लड़की नहीं थी. तुम ने अपने स्वार्थ

और हवस के लिए उसे बुरा बना दिया. वह बेचारी तो यह समझ ही नहीं पाई कि तुम उस से कभी प्यार ही नहीं करते थे. काश, वह समझ गई होती क्योंकि अगर तुम उस से प्यार करते तो कभी मुझ से शादी नहीं करते. अपने प्यार को पाने के लिए दुनिया से, समाज से लड़ जाते. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि तुम तो केवल अपनेआप से प्यार करते हो. समाज में अपनी झूठी शान के लिए तुम ने मुझ से शादी की और मेरी और ईशा की दोस्ती की आड़ में अपनी हवस को शांत किया,’’ कहते हुए आयशा ने मंगलसूत्र और लैटर क्षितिज के हाथों में थमा दिया और फोन लगाने लगी.

दूसरी ओर से फोन उठाते ही आयशा बोली, ‘‘आंटी, मैं भी आप दोनों के साथ हमेशा के लिए नागपुर चल रही हूं.’’

Father’s day 2023: पिता का वादा

कालेज कैंटीन में अपने मित्रों के संग मस्ती के आलम में था.

‘‘चलो मित्रो, सिनेमा देखने का बहुत मन कर रहा है. थोड़ा मौल घूमते हैं, फिर फिल्म भी देख लेंगे,’’ रोहन ने अपनी राय रखी.

‘‘हूं, वैसे मेरा भी क्लास अटैंड करने का मन नहीं,’’ अनिरुद्ध ने रोहन की बात का समर्थन किया.

मुदित ने कुछ सोचा और फिर हामी भर दी, ‘‘चलो मित्रो, लेकिन किधर चलने का इरादा है?’’

तीनों मित्र कालेज से बाहर आए. औटो में बैठ कर 3-4 मिनट में सिटी वौकमौल पहुंच गए.

तीनों मित्रों ने समय व्यतीत करना था. एक बार पूरा मौल घूम लिया और उस के बाद फूड कोर्ट में बैठ कर लंच किया.

मौल में ही पीवीआर था, वहीं मूवी देखने चले गए. मूवी के इंटरवल के दौरान रोहन पौपकौर्न खरीद रहा था. मुदित वौशरूम गया.

यह क्या एकदम सामने उस के पिता शूशू कर रहे थे. बृजेश का मुंह दीवार की ओर था. उन्होंने मुदित को नहीं देखा. लेकिन मुदित पिता को देख कर घबरा गया और चुपचाप बिना शूशू किए अपनी सीट पर बैठ गया.

मुदित का ध्यान अब सिनेमा स्क्रीन के स्थान पर अपने पिता पर था. वे फिल्म देख रहे हैं. उन का औफिस तो नेहरू प्लेस में है. यहां साकेत में क्या कर रहे हैं? माना किसी क्लाइंट से मिलने आए होंगे लेकिन फिल्म देखने में 3 घंटे क्यों खराब करेंगे? वह तो कालेज स्टूडैंट है. कालेज में मौजमस्ती चलती है, लेकिन उस के पिता भी औफिस छोड़ मौजमस्ती करते हैं इस बात का खयाल मुदित को पहले कभी नहीं आया. उस की नजर अंदर आने वाले गेट पर टिकी हुई थी.

यह क्या? उन के साथ एक महिला भी है. महिला की कमर में हाथ डाले बृजेश दूसरी ओर की सीट पर बैठ गए.

अब मुदित का पूरा ध्यान फिल्म से हट गया. हाल के भीतर अंधेरा हो गया. फिल्म इंटरवल के बाद शुरू हो गई. उस के पिता इस महिला के साथ क्या कर रहे हैं? इस प्रश्न ने उस का दिमाग खराब कर दिया.

फिल्म समाप्ति पर बृजेश अपनी महिला मित्र के साथ आगे चल रहा था. बृजेश का हाथ महिला की कमर पर था.

मुदित सोच रहा था. 20 का वह खुद है. बृजेश 50 पार कर गया है. यह उम्र उस के इश्क लड़ाने की है, उस की तो कोई गर्लफ्रैंड है नहीं, उस के पिताश्री इश्क लड़ाते फिर रहे हैं. उस का दिमाग गरम हो गया. उस ने अपने मित्रों रोहन और अनिरुद्ध के साथ बाकी कार्यक्रम रद्द किया और मालवीय नगर मैट्रो स्टेशन से गुरुग्राम की मैट्रो पकड़ी.

मुदित ने अपने पिता को देख कर थोड़ी दूरी बना ली थी, कहीं उसे देख कर नाराज न हो जाएं, क्लास छोड़ कर फिल्म देख रहा है. बृजेश महिला मित्र के साथ इतना डूबा हुआ था कि उसे एहसास ही नहीं हुआ, उस की हरकत उस के बेटे ने देख ली है.

गुरुग्राम अपने घर पहुंच कर मुदित अपने कमरे में कैद हो गया. बिस्तर पर लेटे हुए घूमते पंखे को देखते हुए उस की आंखें के सामने उस के पिता और उस महिला की शक्ल ही घूम रही थी. उस की मां साधारण गृहिणी हैं. उन की तुलना में वह महिला जवान है और खूबसूरत भी है. इस का यह मतलब तो कतई नहीं है, उस की मां और उस की अनदेखी हो.

बृजेश के पिता का ऐक्सपोर्ट का बढि़या काम है और औफिस नेहरू प्लेस में है. मुदित सोचने लगा, क्या वह महिला औफिस में कार्यरत है या कोई और चक्कर है?

रात को बृजेश अकसर 10 बजे के आसपास आते थे. मुदित की मां बृजेश की प्रतीक्षा करती मिलतीं.

आज मुदित भी पिता की प्रतीक्षा करने लगा. उस के पिता रात 11 बजे आए. फोन कर के पहले ही देर से आने का बता दिया, काम अधिक है. क्लाइंट के साथ मीटिंग है. डिनर औफिस में कर लेंगे. मुदित की मां सो गई थीं. उन्हें बृजेश की काली करतूतों का कोई भी इल्म नहीं था.

आज मुदित का कालेज क्लास छोड़ना एक करिश्माई ही रहा. उस की मौजमस्ती ने पिता का दूसरा रूप दिखला दिया. वह जागता रहा.

मुदित की आंखों से नींद गायब थी. वह ड्राइंगरूम में बैठा पिता की प्रतीक्षा कर रहा था. छोटी लाइट जल रही थी. मुदित टीवी पर मूवी देख रहा था. टीवी की आवाज बंद थी.

बृजेश ने फ्लैट का मेन गेट अपनी चाबी से खोला. मुदित को देख कर चौंके. पूछा, ‘‘आज सोया नहीं?’’

‘‘बस नींद नहीं आ रही थी.’’

‘‘और कालेज कैसा चल रहा है?’’

‘‘ठीक चल रहा है.’’

‘‘कालेज के बाद क्या सोचा है?’’

‘‘आप बताइए पापा, एमबीए करूं या आप का औफिस जौइन करूं?’’

‘‘एमबीए जरूर करो. फिर तो मेरा

औफिस तुम्हारा ही है. रात बहुत हो गईर् है. मैं

भी थका हुआ हूं. सुबह फिर औफिस जल्दी

जाना है. एक कन्साइनमैंट कल ही भेजना है. गुड नाइट मुदित.’’

मुदित ड्राइंगरूम में ही बुत बना बैठा रहा. बृजेश चले गए. मुदित की यही सोच थी कि क्या उस के पिता सचमुच औफिस में व्यस्त थे या फिर उस महिला के साथ?

मुदित के मन में हलचल शुरू हो गई. अगले दिन कालेज में क्लास अटैंड कर के नेहरू प्लेस पहुंच गया. दोपहर का 1 बज रहा था. बिल्डिंग की पार्किंग में उसे पिता की न तो हौंडा सिटी कार नजर नहीं आई और न ही औडी. तीसरी कार मारुति डिजायर तो मम्मी के लिए घर पर रहती है. वह कालेज मैट्रो में आताजाता है. उस का दिमाग घूम गया. क्या आज फिर उस के पिता महिला मित्र के साथ हैं या फिर औफिस के काम से कहीं गए हैं? इस प्रश्न के जवाब के लिए वह औफिस पहुंच गया.

छोटे साहब को देख कर स्टाफ ने मुदित की आवभगत की. एक सरसरी नजर स्टाफ

पर मारी. वह महिला नजर नहीं आई, जो कल पिता के साथ थी.

मुदित कुछ देर औफिस में बैठा. कन्साइनमैंट का पूछा, जो जाना था. जान कर हैरानी हुई, कन्साइनमैंट तो 2 दिन पहले ही जा चुका है. अगला कन्साइनमैंट 10 दिन बाद जाएगा, इसलिए औफिस में बेफिक्री है.

बुझे मन मुदित घर पहुंच कर बिस्तर पर औंधा लेट गया. पापा शर्तिया उस महिला के संग ही होंगे. यदि ऐसा ही है तब पापा मम्मी और उस के साथ गलत कर रहे हैं. लेकिन इस बात का सत्यापन होना आवश्यक है वरना उस को झूठा घोषित कर दिया जाएगा.

मुदित का दिमाग फिर से घूम गया कि अगर वह महिला पापा की बिजनैस क्लाइंट है

तब उस के साथ कमर में हाथ डाल कर फिल्म नहीं देखी जाती है. बिजनैस क्लाइंट के  संग फाइवस्टार होटल में लंच और डिनर होते हैं. पापा उसे और मम्मी को भी 2-3 बार ऐसे डिनर पर ले गए थे.

मुदित पापा की प्रतीक्षा करता रहा. आज भी पापा रात के 12 बजे आए. मम्मी सो गई थीं. कल की भांति मुदित ड्राइंगरूम में हलकी मध्यम रोशनी में टीवी देख रहा था. टीवी की आवाज बंद थी और दिमाग कहीं और था.

बृजेश रात के 12 बजे आए. अपनी चाबी से फ्लैट का मेन गेट खोला. मुदित को बैठा देख ठिठके. पूछा, ‘‘क्या बात है, बंद आवाज में टीवी देख रहे हो?’’

‘‘बस यों ही पापा. नींद नहीं आ रही थी. शाम को सो गया था.’’

‘‘गुड नाइट,’’ कह कर बृजेश अपने कमरे में चले गए. उन्हें इस बात का इल्म नहीं था, मुदित औफिस गया था.

मुदित का दिमाग खराब होता जा रहा था. हालांकि मुदित कालेज मैट्रो से जाता था. बाइक को मैट्रो पार्किंग में खड़ी करता था. लेकिन अगले दिन उस ने बाइक स्टार्ट की लेकिन कालेज नहीं गया.

मुदित नेहरू प्लेस पहुंच गया. उस ने बाइक को पार्किंग में खड़ा किया और अपने पिता की प्रतीक्षा करने लगा.

बृजेश 12 बजे औफिस पहुंचे. 2 घंटे औफिस में रहे.

मुदित पार्किंग में खड़ा हौंडा सिटी कार

पर नजरें गड़ाए था. एक महिला

कार के पास आई और उस ने फोन किया.

मुदित ने उस महिला के आगे से गुजरते हुए उस की शक्ल देखी. फिर मन ही मन बड़ाया कि

अरे यह तो वही है, जो पापा के साथ फिल्म

देख रही थी. मुदित कुछ दूर खड़ा था. बृजेश आए, उस महिला के गले मिले और फिर कार में बैठ गए.

मुदित के देखतेदेखते कार उस के आगे से निकल गई. कुछ देर वह सोचता रहा फिर औफिस चला गया.

‘‘पापा हैं?’’

‘‘पापा तो बाहर मीटिंग में गए हैं,’’ सैक्रेटरी ने बताया.

‘‘ओह नो, मैं ने अपने मित्रों के साथ लंच करना है, फिर फिल्म देखनी है. मेरी पौकेट मनी खत्म हो गई. पापा से 2 हजार रुपए लेने के लिए औफिस आया हूं.’’

सेक्रेटरी ने बृजेश को फोन पर अनुमति

ले कर कैशियर से 2 हजार रुपए मुदित को दिलवा दिए.

मुदित के पास पैसे थे लेकिन वह जासूसी करने औफिस आया था. 2 हजार रुपए जेब में रख कर कुछ देर तक नेहरू प्लेस की कंप्यूटर मार्केट घूमता रहा, फिर घर चला गया.

रात को मुदित ने अपने पिता की प्रतीक्षा नहीं की. रात का डिनर 8 बजे कर लिया और अपने कमरे में टीवी पर फिल्म देखने लगा.

बृजेश भी 10 बजे आ गए. पत्नी संग डिनर किया. फिर मुदित के कमरे में जा कर पूछा, ‘‘औफिस गए थे?’’

‘‘वह क्या है पापा, फ्रैंड्स के साथ फिल्म देखनी थी और लंच भी करना था.’’

‘‘प्रोग्राम था तो मम्मी से सुबह रुपए ले लेते?’’

‘‘बस अचानक प्रोग्राम बना.’’

‘‘गुड नाइट,’’ बृजेश को अभी भी कोई खटका नहीं लगा.

मुदित ने उस महिला का फोटो पार्किंग में दूर से खींचा था. वह फोटो देख रहा था, दूरी के कारण फोटो अस्पष्ट सा था.

जहां लड़के को गर्लफ्रैंड के साथ घूमना चाहिए था, वहां पिताश्री घूम रहे हैं. मुदित ने भी ठान लिया. फसाद की जड़ तक पहुंच कर ही सांस लेगा.

मुदित ने कालेज जाना छोड़ दिया. अपने मित्रों को बोल दिया कि कुछ दिनों के लिए परिवार के साथ बाहर जा रहा है.

मुदित बाइक ले कर पार्किंग में खड़ा हो जाता. वह महिला दोपहर को आती और बृजेश

के साथ कार में चली जाती. मुदित ने उन के मोबाइल से फोटो खींच लिए. मुदित ने उन का पीछा कर के उन के क्रियाकलापों को 1 सप्ताह तक देखा. एक दिन वह महिला नहीं आई. बृजेश कार से कालकाजी एक फ्लैट में गए और शाम को बाहर आए.

बृजेश के जाने के बाद मुदित ने उस फ्लैट की डोरबैल बजाई. 2-3 बार डोरबैल बजाने के बाद फ्लैट गेट खुला. उस महिला ने गेट खोला. उस के वस्त्र अस्तव्यस्त थे.

‘‘तुम कौन?’’

‘‘यही प्रश्न मैं पूछता हं?’’

महिला ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की तो मुदित फुरती से फ्लैट के भीतर हो गया.

‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई भीतर आने की?’’ वह महिला बिगड़ गई.

मुदित ने फ्लैट का गेट बंद कर दिया,

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो… बृजेश से मिलना बंद कर दो.’’

‘‘फौरन निकल जाओ, तुम हो कौन?’’ महिला मुदित का हाथ पकड़ कर फ्लैट का गेट खोलने लगी.

‘‘बृजेश मेरे पिताश्री हैं, इसलिए कह रहा हूं. तुम्हारे इरादे पूरे नहीं होने दूंगा. सारे संबंध तोड़ दो वरना वैसे भी टूटे समझो. आज नहीं तो कल टूटे ही समझ. हमारे पिताश्री जो काम चोरीछिपे कर रहे हैं. मैं शर्त लगा कर कहता हूं कल से मिलना छोड़ देंगे.’’

मुदित ने फ्लैट का गेट खोला और दनदनाता सीढि़यां उतर गया.

बृजेश शाम के 7 बजे ही घर पहुंच गए.

इस समय पिता को घर पर देख कर

मुदित को हैरानी हुई. उस महिला ने बृजेश को फोन पर बता दिया था.

बृजेश ने मुदित को तोलना चाहा, ‘‘आजकल कालेज नहीं जा रहे हो क्या बात है?’’

‘‘रोज जाता हूं.’’

‘‘लगता नहीं है. आजकल बड़ी फिल्में देखी जा रही हैं. औफिस भी गए थे.’’

‘‘वह क्या है, आजकल 2 प्रोफैसर छुट्टी

पर हैं, इस कारण कुछ फिल्म देखने चले जाते. इस चक्कर में पौकेट मनी जल्दी खत्म हो गई,

तो आप से पैसे लेने आया था. फ्रैंड्स को पार्टी देनी थी.’’

‘‘फिल्म और पार्टी में थोड़ा ध्यान कम करो. पढ़ने में ध्यान लगाओ.’’

मुदित ने इस महिला के साथ उन के फोटो व्हाट्सऐप कर दिए, ‘‘पापा, आप इसे छोड़ दो. मैं पीछा करना छोड़ दूंगा.’’

मुदित की मां पितापुत्र के वार्त्तालाप को सम?ाने में असमर्थ थीं.

बृजेश स्तब्ध हो गया. अपने हावभाव को काबू करते हुए कहा, ‘‘मैं सोचता हूं, तुम्हारी ट्रेनिंग अभी से स्टार्ट कर दूं. आखिर मेरा व्यापार तुम ने ही संभालना है. औफिस पैसे मांगने नहीं, काम सीखने आया करो.’’

‘‘कालेज की क्लास अटैंड करने के बाद आ सकता हूं.’’

‘‘कल से आना शुरू करो.’’

‘‘जी पापा.’’

कमरे में जाते ही मुदित ने एक और व्हाट्सऐप और भेजा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं, अब से आप मम्मी के साथ रहेंगे. उस महिला को छोड़ देंगे साथ में अन्य के साथ भी ऐसा किसी प्रकार का संबंध नहीं रखेंगे. आप को पक्के वाला वादा करना होगा.’’

‘‘मेरा वादा है,’’ बृजेश ने उत्तर भेजा.

Father’s Day 2023: पिता का नाम- एक बच्चा मां के नाम से क्यों नहीं जाना जाता

family story in hindi

अपने जैसे लोग: भाग 1-नीरज के मन में कैसी शंका थी

इस नए फ्लैट में आए हमें 6 महीने हो गए हैं. आते ही जैसे एक नई जिंदगी मिल गई है. कितना अच्छा लग रहा है यहां. खुला व स्वच्छ वातावरण, एक ही डिजाइन के बने 10-12 पंक्तियों में खड़े एक ही रंग से पुते फ्लैट. सामने लंबाचौड़ा खुला पार्क, जिस में शाम के समय खेलने के लिए बच्चों की भीड़ लगी रहती है. पार्क से ही लगती हुई दूरदूर तक फैली सांवली, नई बनी चिकनी नागिन सी सड़क, जिस पर एकाध कार के सिवा अधिक भीड़ नहीं रहती. कितना अच्छा लगता है यह सब. हंसतेखेलते हम दूर तक घूम आते हैं.

इन 6 महीनों से पहले जिस जगह 3 महीने गुजार कर आई थी, वहां तो ऐसा लगता था जैसे बदहाली में कोई एक कोना हमें रहने के लिए मिल गया हो. पुरानी दिल्ली में दोमंजिले मकान के नीचे के हिस्से में कमरा रहने को मिला था. धूप का तो वहां नामोनिशान नहीं था. प्रकाश भी नीचे की मंजिल तक पहुंचने में असमर्थ था. आधे कमरे में मैं ने रसोई बनाईर्र्र् हुई थी, आधे में सोना होता. एक छोटी सी कोठरी में नल लगा था, जिसे बरतन साफ करने व कपड़े धोने के अलावा नहाने के काम लाया जाता था.

यह तो अच्छा हुआ कि दिल्ली आने के कुछ महीनों बाद ही ये सरकारी फ्लैट बन कर तैयार हो गए, नहीं तो शायद जीवन या तो उसी बदहाली में बिताना पड़ता या नीरज को नौकरी ही कहीं और तलाश करनी पड़ती.

अपने इस नए मकान को मैं और नीरज थोड़ाथोड़ा कर के इस तरह सजाते रहते जैसे हमें अपने सपनों का महल मिल गया हो और हम अपनी पूर्ण शक्ति के साथ उस में अपनी संपूर्ण कल्पनाओं को साकार होते हुए देखना चाहते हों.

हम दोनों बहुत खुश थे. पर एक दिन शाम को नीरज ने पीछे वाले बरामदे में खड़े हो कर अपने सामने की विशाल कोठियों पर नजर गड़ाते हुए कहा, ‘‘यहां और तो सबकुछ ठीक ही है, लेकिन अपनी पिछली तरफ की ये जो बड़ेबड़े लोगों की कोठियां हैं न, इतनी बड़ीबड़ी… न जाने क्यों आंखों से उतर कर मन के भीतर कहीं चुभ सी जाती हैं. इन के सम्मुख रह कर हीनता का आभास सा होने लगता है. इन के अंदर झांक कर देखने की कल्पना मात्र से बदन सिहर उठता है, सोचता हूं कि कहां हम और कहां ये लोग.’’

मैं आश्चर्य से नीरज के मुंह की ओर ताकती रह गई, ‘‘अरे, ये विचार कैसे आए आप के दिमाग में कि हम इन लोगों से हीन हैं? बड़ी कोठी में रहने और धनवान होने को ही आप महत्त्व क्यों देते हैं? असली महत्त्व तो इस बात का है कि हम जीवन को किस प्रकार से जीते हैं और थोड़ा पा कर भी किस तरह अधिक से अधिक सुखी रह सकते हैं.’’

‘‘आज के युग में धन का महत्त्व बहुत अधिक है, शीला. कई बार तो यही सोच कर मुझे बहुत दुख होता है कि हमें भी किसी बड़े धनवान के यहां जन्म क्यों नहीं मिला या फिर हम इतने योग्य क्यों नहीं हो सके कि हम इतना पैसा कमा सकते कि दिल खोल कर खर्च करते.’’

‘‘यह सब आप के दिल का वहम है. यह सोचना ही निरर्थक है कि हम किसी से कम हैं. देखिए, हमारे पास सबकुछ तो है. हमें इस से अधिक और क्या चाहिए? आराम से गुजर हो रही है.’’

मुझे लगा मैं नीरज को आश्वस्त  करने में काफी सफल हो गई हूं  क्योंकि उस के चेहरे पर संतोष के भाव दिखाई देने लगे थे. हम दोनों प्रसन्नतापूर्वक शाम की चाय पीने लगे.

इतने में 5 वर्षीय बेटा पंकज दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मम्मी, देखो यह सामने वाली कोठी का सनी है न. उस के लिए आज उस के पापा एक नई साइकिल लाए हैं 3 पहियों वाली. हमें भी ला दोगी न?’’

चाय का घूंट मेरे गले में ही अटक गया. मैं नीरज की आंखों में झांकने लगी. उस की जीभ तैयार मिली, ‘‘अब ला दो न, सौ रुपए की साइकिल या अभी जो लैक्चर झाड़ रही थीं उस से खुश करो अपने लाड़ले को. कह रही थीं सबकुछ है हमारे पास.’’

पंकज अनुनयभरी दृष्टि से मेरी ओर निहारे जा रहा था, ‘‘सच बताओ मम्मी, लाओगी न मेरे लिए भी साइकिल?’’

मैं ने खींच कर उसे गले से लगा लिया, ‘‘देखो बेटा, तुम राजा बेटा हो न? दूसरों की नकल नहीं करते. हां, जब हमारे पास रुपए होंगे, हम जरूर ला देंगे.’’ मैं ने उसे बहलाना चाहा था.

‘‘क्यों हमारे पापा भी तो दफ्तर में काम करते हैं, रुपए लाते हैं. फिर आप के पास क्यों नहीं हैं रुपए?’’ वह अपनी बात पूरी करवाना चाहता था.

‘‘अच्छा, ज्यादा नहीं बोलते, कह तो दिया ला देंगे. अब जाओ तुम यहां से,’’ मैं ने क्रोधभरे शब्दों में कहा और पंकज धीरेधीरे वहां से खिसक गया. इधर नीरज का चेहरा ऐसे हो रहा था जैसे किसी ने थप्पड़ मारा हो उस के मुंह पर. अपमान और क्रोध से झल्लाते हुए बोला, ‘‘देखूंगा डांटडपट कर कब तक तुम चुप करवाओगी उसे. आज तो यह पहली फरमाइश है. आगे देखना क्याक्या फरमाइशें होती हैं.’’

मैं चुप रही. बात सच ही थी. पहली वास्तविकता सामने आते ही दिमाग चक्कर खा गया था. कैसे गुजारा होगा ऐसे अमीर लोगों के बीच. हमारे सामने पूरी 6 कोठियां हैं. उन में दर्जन से भी ऊपर बच्चे हैं. सभी नित्य नई वस्तुएं व खिलौने लाते रहेंगे और पंकज देख कर जिद करता रहेगा. कहां तक मारपीट कर उस की भावनाओं को दबाया जाएगा. मैं पंकज के भविष्य के बारे में चिंतित हो उठी. कितने ही अक्ल के घोड़े दौड़ाए, पर कहीं कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया.

अगले ही दिन शाम को नीरज ने सुझाव दिया, ‘‘एक बात हो सकती है. पंकज को उधर खेलने ही न जाने दो. पीछे से जाने वाला दरवाजा हर समय बंद ही रखा करो. सामने वाले फ्लैट हैं न, उन में सब अपने ही जैसे लोग रहते हैं. उन्हीं के बच्चों के साथ सामने के पार्क में खेलने दिया करो पंकज को.’’

बात मेरी भी समझ में आ गई, न इन बड़े लोगों के बच्चों में खेलेगा न, जिद करेगा. मैं ने पिछला दरवाजा खोलना ही छोड़ दिया. लेकिन पंकज सामने की ओर कभी न निकलता. ऊपर बरामदे में खड़ा हो कर, पीछे की कोठियों वाले उन्हीं लड़कों को देखता रहता, जिन में से कोई तो अपनी नई साइकिल पर सवार होता, कोई रेसिंग कार पर, तो कोई लकड़ी के घोड़े पर. कई बार वह पीछे का दरवाजा खोलने की भी जिद करता और मुझे उसे डांट कर चुप कराना पड़ता. अजीब मुसीबत थी बेचारे की.

खुशियों का आगमन: भाग 3 -कैरियर या प्यार में क्या चुनेंगी रेखा?

‘‘नहीं रेखा, उस ने तुम्हारे साथ कोई विश्वासघात नहीं किया है, बल्कि तुम खुद अंधी बन कर उस से प्यार कर रही थीं. अगर वह तुम्हें अंधेरे में रखना चाहता तो आज मुझ से मिलने नहीं आता और न ही अपनी हकीकत बताता. तुम जैसी खूबसूरत, होशियार और अच्छे घर की लड़की, उस से शादी करने के लिए पीछे पड़ी होने के बावजूद उस ने अपने मन पर संयम रखा.

नासमझी तो तुम कर रही थीं, जो उस का पूरा नाम, उस की हकीकत जाने बगैर उस से शादी करने चली थीं. जिस के साथ तुम पूरी जिंदगी बिताना चाहती हो उस का पूरा नाम, उस की सारी हकीकत जानना, तुम ने कभी मुनासिब नहीं समझा. शादी जैसा जिंदगी का अहम फैसला तुम सिर्फ जज्बातों के सहारे कर रही थीं. कितनी बड़ी गलती तुम करने जा रही थीं. तुम्हें मुझे भी विश्वास में लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई.’’

‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है, अब मैं क्या करूं, पिताजी?’’

‘‘ठंडे दिमाग से सोचो. राजेश हमें भी पसंद है. तुम दोनों एकदूसरे के लायक हो, एकदूसरे को संतुष्ट कर के तुम दोनों अपनी गृहस्थी को सुखी रख सकते हो, मगर राजेश अब भी अपनी मां के साथ उसी बस्ती में रहता है और भविष्य में भी वहीं रहेगा, क्योंकि वह अपनी मां को दुखी नहीं करना चाहता है. अपनी मां का अपमान वह सहन नहीं कर पाएगा.

आखिर इतना दुखदर्द सह कर, संघर्ष कर उस की मां ने उसे पढ़ालिखा कर काबिल इनसान बनाया है, उसे वह भला अपने से दूर कैसे रख सकता है? इसलिए अब यह फैसला तुम्हारे हाथ में है कि तुम इसे चुनौती समझ कर राजेश को अपनाना चाहोगी? उस की मां को उस के पूर्व इतिहास के बावजूद सास का दर्जा देना चाहोगी?

उस के प्रति मन में किसी तरह का मैल या नफरत की भावना न रखते हुए उसे आदर, सम्मान देना चाहोगी? अगर तुम यह सब करने के लिए तैयार हो तो ही राजेश के बारे में सोचना.

यह सब तुम्हें अब आसान लग रहा होगा, मगर जब तुम उन मुश्किलों का, समस्याओं का सामना करोगी, तब तुम्हें यह सब मुश्किल लगेगा, क्योंकि इन सब मुश्किलों का सामना तुम्हें अकेले ही करना है. यही सब सोच कर तुम फैसला करना.’’

‘‘मगर ये सब बातें उस ने मुझे क्यों नहीं बताईं?’’

‘‘अपनी मां की हकीकत कौन सा बेटा

अपने मुंह से कहेगा, तुम उसे समझने की, जानने की कोशिश करो. मगर अपने भविष्य का फैसला सोचसमझ कर ही करना. हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, लेकिन पहला कदम तुम्हें उठाना है.’’

उस रात वह पल भर के लिए भी सो नहीं पाई.

रात भर सोचने के बाद भी वह सही निर्णय नहीं ले पा रही थी. क्या यह शादी वह निभा पाएगी? राजेश की मां को सम्मान दे पाएगी? कई सवाल थे पर उन के जवाब उस के पास नहीं थे.

सुबह हुई. सूरज की किरणों से चारों ओर प्रकाश फैल गया और उसी प्रकाश ने उस के विचारों को एक नई दिशा दी और उस ने मिस रेखा साने से उर्मिला रेखा राजेश सावंत बनने का फैसला कर लिया.

Father’s day 2023: वह कौन थी- एक दुखी पिता की कहानी?

Father’s day 2023: ध्रुवा- क्या आकाश के माता-पिता को वापस मिला बेटा

हर मातापिता की तरह आकाश के मातापिता ने भी अपने 25 वर्षीय बेटे की शादी के ढेर सारे सपने संजो रखे थे जिन्हें आकाश के एक फैसले ने मिट्टी में मिला दिया था.

“बेटा आकाश, मिश्रा जी हमारे जवाब के इंतज़ार में हैं, उन की बेटी सुकन्या एमबीए कर के,” मां इंद्रा देवी ने बात शुरू ही की थी कि “मां, आप ने सोच भी कैसे लिया कि मैं ध्रुवा को भूल जाऊंगा, उस का और मेरा साथ आज का नहीं, जन्मजन्मांतर का है. कभी तभी तो सोचिए न मां, कि इतनी भीड़भरी दुनिया में वही क्यों मिली मुझे,” आकाश ने मां की बात को बीच में ही काटा.

“इस में सोचने वाली तो कोई बात ही नहीं. तुम पैसे वाले हो, देखने में स्मार्ट हो. इस से ज्यादा एक लड़की को और क्या चाहिए. उस ने सोचसमझ कर तुम पर डोरा डाला है,” मां इंद्रा देवी ने क्रोधित होते हुए कहा.

“मां, मैं गया था उस के पीछे. उस ने तो महीनों तक मुड़ कर भी नहीं देखा था मेरी ओर,” आकाश हारना नहीं चाहता था, उसे हर हाल में अपने प्यार की जीत चाहिए थी.

“हां, तो तुम्हें कोई अपनी बिरादरी की नहीं मिली. वही एक हूर की परी है दुनिया में,” मां अब भी अपनी संस्कृति, रीतिरिवाज का मोरचा संभाले बोली.”

“जो होना था वह हो चुका. कल उस के मातापिता आ रहे हैं आप लोगों से मिलने के लिए और मैं नहीं चाहता आने वाले समय की बुनियाद में थोड़ी सी भी खटास शामिल हो,” आकाश ने दृढ़ निश्चय लेते हुए कहा.

“कल क्लाइंट के साथ मेरी इंपौर्टेंट मीटिंग है,” आकाश के पिता ने अपनी नाराजगी को अमलीजामा पहनाने की कोशिश की.

“और मेरी महिला समिति की किटी पार्टी है,” मां ने मोबाइल में आंखें गड़ाए कहा.

“समझ गया, आप लोग किसी भी हाल में ध्रुवा को नहीं अपनाने वाले. लेकिन मैं भी कह देता हूं आने वाली परिस्थिति के जिम्मेदार आप लोग ही होंगे,” आकाश का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. अपनी बात कह कर आकाश कमरे से निकल गया.

मातापिता की रजामंदी न मिलने से खीझा हुआ तो वह पहले से ही था, रहीसही कसर दोस्त मनीष के कोरोना पौजिटिव होने की खबर ने पूरी कर दी जिस के संसर्ग में वह भी पिछले कई दिनों से रह रहा था. लेकिन फिलहाल समस्या यह थी कि वह ध्रुवा से क्या कहेगा… रोज उस के सामने अपने मातापिता के खुले विचारों वाले होने के सौ किस्से सुनाया करता था और आज जब सही में खुले विचार से बेटे की खुशियां समेटने की बारी आई तो वे मुकर गए थे.

यही सब सोचता उन कड़ियों को जोड़ने लगा जहां से इस सारे अफसाने की शुरुआत हुई थी. असम राज्य के शिवसागर जिला अपनी खूबसूरती के साथसाथ कई और संस्कृतियों को भी अपनी गोद में उसी प्रकार बढ़नेपनपने देता है जैसे कि वे वहीं की हों. वहीं के एक कौन्वैंट स्कूल में आकाश पढ़ता था. हिंदी फिल्मों के शौकीन आकाश ने गर्लफ्रैंड बनाने के कई प्रयास किए पर हर बार नाकामयाब रहा. उसी समय ध्रुवा ने उसी स्कूल में दाखिला लिया. वैसे तो ध्रुवा के मातापिता की कहीं से औकात न थीं इतने बड़े स्कूल में पढ़ाने की लेकिन ध्रुवा इतनी अच्छी पेंटिंग करती थी कि उसे उस स्कूल के लिए स्कौलरशिप मिली थी और यहीं से शुरुआत हुई थी उन दोनों के प्रेम कहानी की. हुआ यों था कि एक दिन ध्रुवा को कक्षा में डांट पड़ रही थी. ‘ओहो, ध्रुवा, तुम ने फिर होमवर्क नहीं किया,’ राधिका मैम ने उस की कौपी डैस्क पर पटकते हुए कहा. 10वीं कक्षा के सभी विद्यार्थियों की नजर ध्रुवा पर गई- गोरा सा मुखड़ा, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, हलके गुलाबी रंग के होंठ.

‘बोलो, बोलती क्यों नहीं,’ राधिका मैम ने फिर धमकाया.

‘मैडम, मुझे मैथ्स अच्छी नहीं लगती. वैसे भी ए प्लस बी होलस्कवैर का इस्तेमाल जीवन के किस मोड़ पर होता है, मुझे बताएं जरा,’ ध्रुवा ने मासूमियत से उत्तर दिया.

‘बस ध्रुवा, एक तो तुम ने होमवर्क नहीं किया, ऊपर से बड़ीबड़ी बातें…’

‘मैडम, आप ने कभी रंगों के साथ खेला है. उन्हें कागज या कपड़ों पर उकेरा है…’ ध्रुवा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि छुट्टी की घंटी बज गई और सभी कक्षा से बाहर निकल गए.

ध्रुवा का मासूम, सुंदर सा चेहरा, बेबाक हो कर बोलना और नुमाइश में लगी ध्रुवा की पेंटिंग जिस की खूब तारीफ हो रही थी. इन सारी बातों ने आकाश के मन को मोह लिया था.

आकाश चौधरी ध्रुवा की कक्षा का हैड बौय था. कसरती बदन, ऊंचा मस्तक, घुंघराले बालों वाला यह लड़का लड़कियों के बीच हमेशा चर्चा का विषय बना रहता. दरअसल, आकाश हमेशा से स्कूल टौपर भी था.

‘आप को मैथ्स अच्छी नहीं लगती?’ एक दिन ध्रुवा को लाइब्रेरी में अकेला पा कर आकाश ने पूछा.

‘क्या आप रंगों की भाषा जानते हैं? ध्रुवा ने चिढ़ कर जवाब दिया जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.

उसी का तो मैं दीवाना हो गया हूं, आकाश के मन की आवाज थी जो उस के मन में ही दब कर रह गई. पहली मुलाकात में भला कैसे कह सकता है इतनी सारी बातें.

‘आप की पेंटिंग देखी हैं मैं ने, बहुत अच्छा बनाती हैं आप,’ संयोग से मिले अंतरंग पलों को भला कैसे जाने दे सकता था आकाश.

‘क्या फायदा मैथ्स में तो फिसड्डी हूं न,’ ध्रुवा ने होंठों को टेढ़ा करते हुए कहा.

‘आप कहें तो मैं आप की मदद कर सकता हूं,’ आकाश ने अपनी ओर से पहल करते हुए कहा.

‘सच्ची, फिर ठीक है,’ ध्रुवा लगभग उछल पड़ी थी.

स्कूल का टौपर लड़का उस की मदद करना चाह रहा था. इस से अच्छी बात क्या हो सकती थी भला.

इस तरह अपनीअपनी ख्वाहिशों को जरूरतों का नाम दे कर दोनों जीवन के उस राह पर चलने लगे जिसे ज्ञानी लोग बकवास और साधारण लोग पवित्र प्रेम का दर्जा देते हैं.

और इस तरह धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

शुरुआत में तो मुलाकातें छोटी होती थीं पर सपने बड़े होते थे. फिर एक शाम की सिंदूरी बेला में अपने प्यार को सचाई का जामा पहनाने की कोशिश में आकाश का पुरुषत्व हावी हो बैठा जिसे ध्रुवा ने भी नादानी में स्वीकार कर लिया और नदी का अस्तित्व सागर में विलीन हो गया.

इस समर्पण के सिलसिले को रोकने की कोशिश दोनों में से किसी ने न की. नतीजा यह निकला कि ध्रुवा अपनी पढ़ाई भी संपन्न न कर पाई. उसे अपने गर्भवती होने का पता लग चुका. उस ने आकाश को बताने में तनिक भी देरी न की. साधारणतया ऐसी परिस्थितियों में लड़का चिल्लाता है, मुकर जाता है या भागने की कोशिश करता है लेकिन आकाश चौधरी ने इस खुशी को उतने ही प्रसन्नता से स्वीकार किया जितना शायद वह विवाह के बाद स्वीकार करता.

कमी इतनी ही थी की ध्रुवा के मांग में उस के नाम का सिंदूर नहीं था. लोक, समाज की तो जैसे आकाश को परवा ही न थी. उसे, बस, इतना लग रहा था वह पिता बनने वाला है और वह उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए पूर्णरूप से तैयार है. ध्रुवा से वह सचमुच प्यार करता था.

आकाश के पिता महेश चौधरी कंप्यूटर कंपनी के मालिक थे जिस का इकलौता वारिस आकाश ही था. अपने पिता के व्यवसाय को उसे आगे ले जाना है, यह बात उसे बचपन से ही घुट्टी की तरह पिलाई गई थी और उस ने भी उसे स्वीकार कर लिया था और व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत भी करता था. आज जब उस ने अपने मातापिता के सामने ध्रुवा से विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो मातापिता ने जातिवाद को ऊपर रखते हुए इस विवाह से साफ इनकार कर दिया.

अब चिंता की लकीरें आकाश के माथे पर खिंचने लगी थीं क्योंकि इकलौता बेटा होने की वजह से उसे लगता था वह जो चाहेगा मातापिता उस के लिए सहर्ष इजाजत दे देंगे लेकिन मातापिता ने साफ इनकार कर दिया. फिर भी उस ने कदम पीछे नहीं किया. देरसवेर मातापिता मान जाएंगे, यह सोच कर कुछ दोस्तों की मदद से शादी करने का फैसला ले लिया और मन ही मन ध्रुवा को दुलहन के जोड़े में देख मुसकराने लगा.

24 मार्च की शाम को आकाश ने ध्रुवा को फोन किया, ‘बस, कल भर की देरी है, फिर हम दोनों और हमारा मुन्ना…’

ध्रुवा ने बीच में टोका, ‘मुन्ना क्यों, मुन्नी…’

‘चलो ठीक है मुन्नी, फिर हम तीनों एकसाथ होंगे. मैं तुम्हें हर वह खुशी देने की कोशिश करूंगा जिस की चाहत तुम ने सपने में भी की होगी,’ आकाश बोला.

मुझे यकीन है तुम पर, आकाश,’ ध्रुव तो निहाल हुई जा रही थी.

‘ध्रुवा, तुम्हें मुझ पर यकीन तो है न,’ कहतेकहते आकाश एकदो बार खांसने लगा.

‘अपनेआप से ज्यादा,’ ध्रुवा ने मोबाइल को चूमते हुए कहा जैसे वह मोबाइल को नहीं, अपने उस विश्वास को चूम रही थी जो नैटवर्क के दूसरे छोर पर खांस रहा था.

अचानक से आकाश की खांसी बढ़ने लगी, वह बोला, ‘अभी रखता हूं, फिर बाद में बात करते हैं.’

‘ठीक है, थोड़ा पानी पी लो, खांसी ठीक हो जाएगी,’ ध्रुवा ने कहा.

एक सप्ताह पहले से ही 25 मार्च, 2020 का दिन शादी के लिए तय किया गया. शिवसागर का औडिटोरियम बड़ा ही भव्य और विशालकाय है जिस में दोनों सात फेरे लेने वाले थे. सबकुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लेकिन नियति ने अपनी अलग नीति बनाई थी जिस के बारे में किसी को कुछ पता न था.

रात होतेहोते आकाश की खांसी बढ़ने लगी और शरीर तपने लगा. रात के 12 बजतेबजते आकाश को अस्पताल ले जाने की नौबत आ गई. ऐसे में ध्रुवा को खबर देने की जरूरत किसी ने महसूस न की.

अस्पताल पहुंच कर पता चला आकाश कोरोना पौजीटिव है और उसे औक्सीजन की सख्त जरूरत है. मातापिता का रोरो कर बुरा हाल था. उन्होंने इलाज में कोई कसर न छोड़ी. वैंटिलेटर पर भी रखा गया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. अगले दिन शाम के 4 बजतेबजते आकाश ने आखिरी सांस ले ली और मातापिता के सामने उन की दुनिया उजड़ गई. सबकुछ इतनी जल्दी हो गया कि किसी को यकीन नहीं हो रहा था.

जिस वक्त सात फेरे लेने का समय था उस वक्त उस के पिता उसे मुखाग्नि दे रहे थे.

आखिर एक दोस्त की मदद से ध्रुवा तक खबर पहुंची जो सुबह से औडिटोरियम में इंतजार कर रही थी. आकाश के मोबाइल पर कई बार कौल की जो आकाश के घर में बैड के साइड की टेबल पर रखा था. अब ध्रुवा को काटो तो खून नहीं, अब क्या होगा उस का. चारों तरफ सबकुछ बंद. घर जाने तक की गुंजाइश न थी. शादी के बाद जिस घर जाने की बात थी, अब वह रहा नहीं. पेट में 3 महीने का बच्चा लिए अंधेरे रास्ते से गुजर रही थी. दहाड़े मार कर आकाश का नाम लेले कर रोए जा रही थी. पर कोई सुनने वाला न था. पागलों की तरह अपने शरीर से कपड़े, गहने नोचनोच कर फेंक रही थी.

सवाल था, जाए तो कहां जाए? इसी कशमकश में चली जा रही थी. रात अपने घर के सीढ़ियों पर गुजारी. मातापिता अलग नाराज थे. सुबह हुई तो मां ने स्थिति जान कर थोड़ी सहानुभूति दिखाई. लौकडाउन की वजह से सबकुछ बंद हो चुका था. गर्भपात कराने की भी गुंजाइश नहीं रह गई थी. ऐसे में अब उसे एक ही रास्ता सूझ रहा था जिस रास्ते से गुजर कर वह आकाश के पास पहुंच सकती थी. उस ने दिल पर पत्थर रख कर वही रास्ता चुन लिया. बस, सही तरीका अपना कर अंजाम देना चाहती थी.

कहते हैं, मृत्यु जब तक बांहें न फैलाए तब तक कोई अपनी मरजी से उस की आगोश में नहीं जा सकता और वही हुआ. हर कोशिश नाकाम रही. अकेली जान होती, तो रोचिल्ला कर रह लेती. लेकिन उस की कोख में आकाश की निशानी पल रही थी और उस के साथ वह कोई नाइंसाफी नहीं होने देना चाहती थी. अगली सुबह उस ने थोड़ी हिम्मत जुटाई. दृढ़ निश्चय किया और मातापिता को साथ ले कर आकाश के घर पहुंची. निकलते समय बैग में जीवन को

खत्म करने की सामग्री रखना न भूली. वाचमैन ने गेट पर ही रोक दिया. ध्रुवा जो ठान कर आई थी, उसे अंजाम दिए बगैर वापस जाना नहीं चाहती थी.

उस ने एक कागज़ के टुकड़े पर लिखा, ‘मां, आप अपना इकलौता बेटा खो चुकी हैं, कम से कम उस की आखिरी निशानी को तो बचा लीजिए.’

आकाश के मातापिता, जो बेटे को खो कर अपने लिए जीने की वजह खो चुके थे, उस कागज के टुकड़े को पढ़ते ही दौड़ कर बाहर आए. कहने के लिए शब्द नहीं थे. सभी के आंसुओं ने अपनीअपनी बात कही. इंदिरा देवी का जातिवाद बेटे को खो कर खामोश हो चुका था. ध्रुवा को घर के अंदर लेते वक्त सभी ने आकाश को अपने आसपास महसूस किया जैसे उन का बेटा लौट आया हो.

Father’s day 2023: सायोनारा- क्या देव ने पिता के खिलाफ जाकर अंजू से शादी की?

उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

देव ने वहीं बिष्टुपुर के केएमपीएस स्कूल से पढ़ाई की थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई उस ने झारखंड की राजधानी रांची के बिलकुल निकट बीआईटी मेसरा से की थी. उसी कालेज में कैंपस से ही टाटा स्टील में उसे नौकरी मिल गई थी. वैसे उस के पास और भी औफर थे, पर बचपन से इस औद्योगिक नगर में रहा था. यहां की साफसुथरी कालोनी, दलमा की पहाड़ी, स्वर्णरेखा नदी और जुबली पार्क से उसे बहुत लगाव था और सर्वोपरी मातापिता का सामीप्य.

खरकाई नदी के पार आदित्यपुर में उस के पापा का बड़ा सा था. पर सोनारी की कालोनी में कंपनी ने देव को एक औफिसर्स फ्लैट दे रखा था. आदित्यपुर की तुलना में यह प्लांट के काफी निकट था और उस की शिफ्ट ड्यूटी भी होती थी. महीने में कम से कम 1 सप्ताह तो नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ती थी, इसलिए वह इसी फ्लैट में रहता था. बाद में उस के पापामम्मी भी साथ में रहने लगे थे. पापा की दुकान बिष्टुपुर में थी जो यहां से समीप ही था. आदित्यपुर वाले मकान के एक हिस्से को उन्होंने किराए पर दे दिया था. इसी बीच टाटा स्टील का आधुनिकीकरण प्रोजैक्ट आया था. जापान की निप्पन स्टील की तकनीकी सहायता से टाटा कंपनी अपनी नई कोल्ड रोलिंग मिल और कंटिन्युअस कास्टिंग शौप के निर्माण में लगी थी.

देव को भी कंपनी ने शुरू से इसी प्रोजैक्ट में रखा था ताकि निर्माण पूरा होतेहोते नई मशीनों के बारे में पूरी जानकारी हो जाए. निप्पन स्टील ने कुछ टैक्निकल ऐक्सपर्ट्स भी टाटा भेजे थे जो यहां के वर्कर्स और इंजीनियर्स को ट्रेनिंग दे सकें. ऐक्सपर्ट्स के साथ दुभाषिए (इंटरप्रेटर) भी होते थे, जो जापानी भाषा के संवाद को अंगरेजी में अनुवाद करते थे. इन्हीं इंटरप्रेटर्स में एक लड़की थी अंजु. वह लगभग 20 साल की सुंदर युवती थी. उस की नाक आम जापानी की तरह चपटी नहीं थी. अंजु देव की टैक्निकल टीम में ही इंटरप्रेटर थी. वह लगभग

6 महीने टाटा में रही थी. इस बीच देव से उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी. कभी वह जापानी व्यंजन देव को खिलाती थी तो कभी देव उसे इंडियन फूड खिलाता था. 6 महीने बाद वह जापान चली गई थी. देव उसे छोड़ने कोलकाता एअरपोर्ट तक गया था. उस ने विदा होते समय 2 उपहार भी दिए थे. एक संगमरमर का ताजमहल और दूसरा बोधगया के बौद्ध मंदिर का बड़ा सा फोटो.

उपहार पा कर वह बहुत खुश थी. जब वह एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश करने लगी तब देव ने उस से हाथ मिलाया और कहा, ‘‘बायबाय.’’ अंजु ने कहा, ‘‘सायोनारा,’’ और फिर हंसते हुए हाथ हिलाते हुए सुरक्षा जांच के लिए अंदर चली गई. कुछ महीनों के बाद नई मशीनों का संचालन सीखने के लिए कंपनी ने देव को जापान स्थित निप्पन स्टील प्लांट भेजा. जापान के ओसाका स्थित प्लांट में उस की ट्रेनिंग थी. उस की भी 6 महीने की ट्रेनिंग थी. इत्तफाक से वहां भी इंटरप्रेटर अंजु ही मिली. वहां दोनों मिल कर काफी खुश थे. वीकेंड में दोनों अकसर मिलते और काफी समय साथ बिताते थे.

देखतेदेखते दोस्ती प्यार में बदलने लगी. देव की ट्रेनिंग खत्म होने में 1 महीना रह गया तो देव ने अंजु से पूछा, ‘‘यहां आसपास कुछ घूमने लायक जगह है तो बताओ.’’ हां, हिरोशिमा ज्यादा दूर नहीं है. बुलेट ट्रेन से 2 घंटे से कम समय में पहुंचा जा सकता है.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं वहां जाना चाहूंगा. द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने पहला एटम बम वहीं गिराया था.’’ ‘‘हां, 6 अगस्त, 1945 के उस मनहूस दिन को कोई जापानी, जापानी क्या पूरी दुनिया नहीं भूल सकती है. दादाजी ने कहा था कि करीब 80 हजार लोग तो उसी क्षण मर गए थे और आने वाले 4 महीनों के अंदर ही यह संख्या लगभग 1 करोड़ 49 लाख हो गई थी.’’ ‘‘हां, यह तो बहुत बुरा हुआ था… दुनिया में ऐसा दिन फिर कभी न आए.’’

अंजु बोली, ‘‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. परसों ही तो 6 अगस्त है. वहां शांति के लिए जापानी लोग इस दिन हिरोशिमा में प्रार्थना करते हैं.’’

2 दिन बाद देव और अंजु हिरोशिमा गए. वहां 2 दिन रुके. 6 अगस्त को मैमोरियल पीस पार्क में जा कर दोनों ने प्रार्थना भी की. फिर दोनों होटल आ गए. लंच में अंजु ने अपने लिए जापानी लेडी ड्रिंक शोचूं और्डर किया तो देव की पसंद भी पूछी.

देव ने कहा, ‘‘आज मैं भी शोचूं ही टेस्ट कर लेता हूं.’’

दोनों खातेपीते सोफे पर बैठे एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि एकदूसरे की सांसें और दिल की धड़कनें भी सुन सकते थे. अंजु ने ही पहले उसे किस किया और कहा, ‘‘ऐशिते इमासु.’’

देव इस का मतलब नहीं समझ सका था और उस का मुंह देखने लगा था. तब वह बोली, ‘‘इस का मतलब आई लव यू.’’

इस के बाद तो दोनों दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए थे. दोनों कब 2 से 1 हो गए किसी को होश न था. जब दोनों अलग हुए तब देव ने कहा, ‘‘अंजु, तुम ने आज मुझे सारे जहां की खुशियां दे दी हैं… मैं तो खुद तुम्हें प्रपोज करने वाला था.’’

‘‘तो अब कर दो न. शर्म तो मुझे करनी थी और शरमा तुम रहे थे.’’

‘‘लो, अभी किए देता हूं. अभी तो मेरे पास यही अंगूठी है, इसी से काम चल जाएगा.’’

इतना कह कर देव अपने दाहिने हाथ की अंगूठी निकालने लगा. अंजू ने उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने कहा और मैं ने मान लिया. मुझे तुम्हारी अंगूठी नहीं चाहिए. इसे अपनी ही उंगली में रहने दो.’’

‘‘ठीक है, बस 1 महीने से भी कम समय बचा है ट्रेनिंग पूरी होने में. इंडिया जा कर मम्मीपापा को सब बताऊंगा और फिर तुम भी वहीं आ जाना. इंडियन रिवाज से ही शादी के फेरे लेंगे,’’ देव बोला.

अंजू बोली, ‘‘मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा.’’

ट्रेनिंग के बाद देव इंडिया लौट आया. इधर उस की गैरहाजिरी में उस के पापा ने उस के लिए एक लड़की पसंद कर ली थी. देव भी उस लड़की को जानता था. उस के पापा के अच्छे दोस्त की लड़की थी. घर में आनाजाना भी था. लड़की का नाम अजिंदर था. वह भी पंजाबिन थी.

उस के पिता का भी टाटा में ही बिजनैस था. पर बिजनैस और सट्टा बाजार दोनों में बहुत घाटा होने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी. अजिंदर अपनी बिरादरी की अच्छी लड़की थी. उस के पिता की मौत के बाद देव के मातापिता ने उस की मां को वचन दिया था कि अजिंदर की शादी अपने बेटे से ही करेंगे. देव के लौटने के बाद जब उसे शादी की बात बताई गई तो उस ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया.

उस की मां ने उस से कहा, ‘‘बेटे, अजिंदर की मां को उन की दुख की घड़ी में यह वचन दिया था ताकि बूढ़ी का कुछ बोझ हलका हो जाए. अभी भी उन पर बहुत कर्ज है… और फिर अजिंदर को तो तुम भी अच्छी तरह जानते हो. कितनी अच्छी है. वह ग्रैजुएट भी है.’

‘‘पर मां, मैं किसी और को पसंद करता हूं… मैं ने अजिंदर को कभी इस नजर से नहीं देखा है.’’

इसी बीच उस के पापा भी वहां आ गए. मां ने पूछा, ‘‘पर हम लोगों को तो अजिंदर में कोई कमी नहीं दिखती है… अच्छा जरा अपनी पसंद तो बता?’’ ‘‘मैं उस जापानी लड़की अंजु से प्यार करता हूं… वह एक बार हमारे घर भी आई थी. याद है न?’’

देव के पिता ने नाराज हो कर कहा, ‘‘देख देव, उस विदेशी से तुम्हारी शादी हमें हरगिज मंजूर नहीं. आखिर अजिंदर में क्या कमी है? अपने देश में लड़कियों की कमी है क्या कि चल दिया विदेशी लड़की खोजने? हम ने उस बेचारी को वचन दे रखा है. बहुत आसलगाए बैठी हैं मांबेटी दोनों.’’

‘‘पर पापा, मैं ने भी…’’

उस के पापा ने बीच में ही उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘कोई परवर नहीं सुननी है हमें. अगर अपने मम्मीपापा को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें अजिंदर से शादी करनी ही होगी.’’ थोड़ी देर तक सभी खामोश थे. फिर देव के पापा ने आगे कहा, ‘‘देव, तू ठीक से सोच ले वरना मेरी भी मौत अजिंदर के पापा की तरह निश्चित है, और उस के जिम्मेदार सिर्फ तुम होगे.’’ देव की मां बोलीं, ‘‘छि…छि… अच्छा बोलिए.’’

‘‘अब सबकुछ तुम्हारे लाड़ले पर है.’’ कह कर देव के पापा वहां से चले गए. न चाहते हुए भी देव को अपने पापामम्मी की बात माननी पड़ी थी. देव ने अपनी पूरी कहानी और मजबूरी अंजु को भी बताई तो अंजु ने कहा था कि ऐसी स्थिति में उसे अजिंदर से शादी कर लेनी चाहिए. अंजु ने देव को इतनी आसानी से मुक्त तो कर दिया था, पर खुद विषम परिस्थिति में फंस चुकी थी. वह देव के बच्चे की मां बनने वाली थी. अभी तो दूसरा महीना ही चला था. पर देव को उस ने यह बात नहीं बताई थी.

उसे लगा था कि यह सुन कर देव कहीं कमजोर न पड़ जाए. अगले महीने देव की शादी थी. देव ने उसे भी सपरिवार आमंत्रित किया था. लिखा था कि हो सके तो अपने पापामम्मी के साथ आए. अंजु ने लिखा था कि वह आने की पुरजोर कोशिश करेगी. पर उस के पापामम्मी का तो बहुत पहले ही तलाक हो चुका था. वह नानी के यहां पली थी. देव की शादी में अंजु आई, पर उस ने अपने को पूरी तरह नियंत्रित रखा. चेहरे पर कोई गिला या चिंता न थी. पर देव ने देखा कि अंजु को बारबार उलटियां आ रही थीं.

उस ने अंजु से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

अंजु बोली, ‘‘हां तबीयत तो ठीक है… कुछ यात्रा की थकान है और कुछ पार्टी के हैवी रिच फूड के असर से उलटियां आ रही हैं.’’ शादी के बाद उस ने कहा, ‘‘पिछली बार मैं बोधगया नहीं जा सकी थी, इस बार वहां जाना चाहती हूं. मेरे लिए एक कैब बुक करा दो.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बड़ी गाड़ी बुक कर लेता हूं. अजिंदर और मैं भी साथ चलते हैं.’’ अगले दिन सुबहसुबह देव, अजिंदर और अंजु तीनों गया के लिए निकल गए. अंजु ने पहले से ही दवा खा ली थी ताकि रास्ते में उलटियां न हों. दोपहर के कुछ पहले ही वे लोग वहां पहुंच गए. रात में होटल में एक ही कमरे में रुके थे तीनों हालांकि अंजु ने बारबार अलग कमरे के लिए कहा था.

अजिंदर ने ही मना करते कहा था, ‘‘ऐसा मौका फिर मिले न मिले. हम लोग एक ही रूम में जी भर कर गप्प करेंगे.’’ अंजु गया से ही जापान लौट गई थी. देव और अजिंदर एअरपोर्ट पर विदा करने गए थे. एअरपोर्ट पर देव ने जब बायबाय कहा तो फिर अंजु ने हंस कर कहा, ‘‘सायोनारा, कौंटैक्ट में रहना.’’ समय बीतता गया. अजिंदर को बेटा हुआ था और उस के कुछ महीने पहले अंजु को बेटी हुई थी.

उस की बेटी का रंग तो जापानियों जैसा बहुत गोरा था, पर चेहरा देव का डुप्लिकेट. इधर अजिंदर का बेटा भी देखने में देव जैसा ही था. देव, अजिंदर और अंजु का संपर्क इंटरनैट पर बना हुआ था. देव ने अपने बेटे की खबर अंजु को दे रखी थी पर अंजु ने कुछ नहीं बताया था. देव अपने बेटे शिवम का फोटो नैट पर अंजु को भेजता रहता था. अंजु भी शिवम के जन्मदिन पर और अजिंदर एवं देव की ऐनिवर्सरी पर गिफ्ट भेजती थी.

देव जब उस से पूछता कि शादी कब करोगी तो कहती मेरे पसंद का लड़का नहीं मिल रहा या और किसी न किसी बहाने टाल देती थी. एक बार देव ने अंजु से कहा, ‘‘जल्दी शादी करो, मुझे भी गिफ्ट भेजने का मौका दो. आखिर कब तक वेट करोगी आदर्श पति के लिए?’’ अंजु बोली, ‘‘मैं ने मम्मीपापा की लाइफ से सीख ली है. शादीवादी के झंझट में नहीं पड़ना है, इसलिए सिंगल मदर बनूंगी. एक बच्ची को कुछ साल हुए अपना लिया है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों किया? शादी कर अपना बच्चा पा सकती थी?’’

‘‘मैं इस का कोई और कारण नहीं बता सकती, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तुम जो ठीक समझो. बेबी का

नाम बताओ?’’

‘‘किको नाम है उस का. इस का मतलब भी बता देती हूं होप यानी आशा. मेरे जीवन की एकमात्र आशा किको ही है.’’

‘‘ओके उस का फोटो भेजना.’’

‘‘ठीक है, बाद में भेज दूंगी.’’

‘‘समय बीतता रहा. देव और अंजु दोनों के बच्चे करीब 7 साल के हो चुके थे. एक दिन अंजु का ईमेल आया कि वह 2-3 सप्ताह के लिए टाटा आ रही है. वहां प्लांट में निप्पन द्वारा दी मशीन में कुछ तकनीकी खराबी है. उसी की जांच के लिए निप्पन एक ऐक्सपर्ट्स की टीम भेज रही है जिस में वह इंटरप्रेटर है.’’ अंजु टाटा आई थी. देव और अजिंदर से भी मिली थी. शिवम के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स लाई थी.

‘‘किको को क्यों नहीं लाई?’’ देव ने पूछा.

‘‘एक तो उतना समय नहीं था कि उस का वीजा लूं, दूसरे उस का स्कूल… उसे होस्टल में छोड़ दिया है… मेरी एक सहेली उस की देखभाल करेगी इस बीच.’’ अंजु की टीम का काम 2 हफ्ते में हो गया. अगले दिन उसे जापान लौटना था. देव ने उसे डिनर पर बुलाया था. अगली सुबह वह ट्रेन से कोलकाता जा रही थी, तो देव और अजिंदर दोनों स्टेशन पर छोड़ने आए थे. अंजु जब ट्रेन में बैठ गई तो उस ने अपने बैग से बड़ा सा गिफ्ट पैक निकाल कर देव को दिया.

‘‘यह क्या है? आज तो कोई बर्थडे या ऐनिवर्सरी भी नहीं है?’’ देव ने पूछा.

अंजु ने कहा, ‘‘इसे घर जा कर देखना.’’ ट्रेन चली तो अंजु हाथ हिला कर बोली, ‘‘सायोनारा.’’

अजिंदर और देव ने घर जा कर उस पैकेट को खोला. उस में एक बड़ा सा फ्रेम किया किको का फोटो था. फोटो के नीचे लिखा था, ‘‘हिरोशिमा का एक अंश.’’ देव और अजिंदर दोनों कभी फोटो को देखते तो कभी एकदूसरे को प्रश्नवाचक नजरों से. शिवम और किको बिलकुल जुड़वा लग रहे थे. फर्क सिर्फ चेहरे के रंग का था.

रिश्तेनाते: भाग 3- दीपक का शक शेफाली के लिए बना दर्द

शेफाली उम्र में भी सन्नी से बड़ी थी और रिश्ते में भी. शेफाली ने अपने को बड़ा माना था तो सन्नी ने भी उसे बड़प्पन दिया था. सन्नी अपनी मां की भले ही नहीं सुने, मगर वह शेफाली की बात को टालने की कभी हिम्मत नहीं करता था.

कभीकभी तो शेफाली को ऐसा लगता कि वह उस से डरने लगा था.

इस बात का एहसास शेफाली को उस वक्त हुआ था जब कपड़ों की धुलाई करते हुए उसे सन्नी की पतलून की जेब से गुटके का एक अनखुला पाउच मिला था.

‘‘कालेज में जा कर क्या यही बुरी आदतें सीख रहे हो?’’ गुटके का पाउच सन्नी को दिखलाते हुए शेफाली ने डांटने वाले अंदाज में कहा था.

बाद में सन्नी ने उस से कई बार माफी मांगी

थी. ऐसी घटनाओं से उन के रिश्ते में विश्वास बढ़ा था. सन्नी के साथ शेफाली का एक पवित्र रिश्ता था. उन्मुक्त होने के बाद भी उस रिश्ते में एक मर्यादा थी.

लेकिन शेफाली को नहीं मालूम था कि सन्नी के साथ उस की अंतरंगता को दीपक किसी दूसरी नजर से देख रहा था. उस के अंदर शंका का नाग कुंडली मार कर बैठ गया था. देवरभाभी के बीच पवित्र रिश्ते में भी उसे कुछ गलत दिखने लगा था.

इस बात से शेफाली तब तक बेखबर रही

जब तक कि दीपक के मन में कुंडली मारे बैठा शक का नाग अपना फन उठा कर फुंफकार नहीं उठा था. उस वक्त शिखा जन्म ले चुकी थी और शेफाली भविष्य के नए सपने संजो रही थी.

दीपक के शक की जहरीली फुंफकार ने शेफाली को हक्काबक्का सा कर दिया था.

जिंदगी के ऐसे बदरंग पहलू के बारे में तो उस ने कभी सोचा भी नहीं था. किसी औरत के लिए सब से मुश्किल काम होता है अपने चरित्र पर शक करने वाले इनसान के साथ रहना.

जल्दी ही दीपक के साथ दांपत्य संबंधों में

शेफाली का दम घुटने लगा था.

सन्नी और शेफाली के रिश्ते पर शक जाहिर कर के दीपक ने संबंधों में ऐसी दरारें पैदा कर दी थीं, जिन का भरना मुश्किल था. पतिपत्नी के रिश्ते की असली बुनियाद तो विश्वास ही होती है. इस बुनियाद को शक की दीमक जब खोखला कर देती है तो उस पर उन के रिश्ते की इमारत बहुत दिनों तक खड़ी नहीं रह पाती.

ऐसा ही हुआ था. रिश्तों की इमारत ढह गई और शेफाली ने दीपक से अलग होने का फैसला कर लिया.

बहुत कुछ अप्रत्याशित और बुरा घट गया था. मगर इस का अच्छा पहलू केवल यही था कि उन के संबंध टूटने का ज्यादा तमाशा नहीं हुआ. दूसरे नाजुक रिश्ते अप्रभावित रहे. एक परिवार भी टूटने से बच गया. सब कुछ शेफाली और दीपक के बीच में ही निबट गया था.

होटल आ गया था. बाहर के सर्द मौसम से होटल के अंदर दाखिल होना शरीर को थोड़ा राहत देने वाला अनुभव था. यह राहत शेफाली को अतीत की यादों से भी बाहर ले आई.

सन्नी भले ही शर्म और संकोच महसूस कर रहा था, लेकिन शेफाली ने अमित से उसे मिलवाते हुए उस के बारे में कुछ भी नहीं छिपाया था.

अमित ने भी इसे बड़े सहज भाव से लिया था और सन्नी के प्रति गरमजोशी दिखलाई थी.

शेफाली अपने अतीत और वर्तमान को एकसाथ देख बड़ा अजीब महसूस कर रही थी. शेफाली ने कमरे में लगे फोन से 3 कप कौफी और कुछ स्नैक्स का आर्डर दे दिया था.

अमित का कोई भाई नहीं था. दूसरी शादी के बाद शेफाली को पति जरूर मिल गया था, मगर सन्नी वाला रिश्ता नहीं. सन्नी जैसे देवर की कमी लगातार उसे महसूस होती थी.

कौफी के आने तक अमित सन्नी से उस की

पढ़ाई और भविष्य के बारे में उस की योजनाओं पर चर्चा करता रहा. अमित ने सन्नी से एक भी ऐसा सवाल नहीं पूछा, जिस का संबंध उस के निजी जीवन से होता.

कौफी के आने के बाद चर्चा का रुख बदला और उस में शेफाली भी शामिल हो गई. इस बार की चर्चा शिमला के इतिहास और दूसरे हिल स्टेशनों के मुकाबले में उस की खास खूबियों पर केंद्रित रही.

अंत में तो अमित ने सन्नी को अपने यहां आने का खुला निमंत्रण तक दे डाला.

इस के जवाब में सन्नी कुछ भी नहीं कह सका था. अमित से मिलने के बाद सन्नी जब जाने लगा तो शेफाली उसे होटल के गेट तक छोड़ने आई.

सन्नी के चेहरे से लगता था कि कुछ सवाल उस के सीने में उमड़घुमड़ रहे थे.

‘‘हम 2-4 दिन यहीं हैं. हो सके तो मिलने आ जाना.’’

‘‘जी.’’

‘‘कुछ कहना चाहते हो?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘शायद, अगर आप को बुरा न लगे.’’

‘‘तुम कहो, मुझे बुरा नहीं लगेगा,’’ शेफाली ने कहा.

सन्नी कुछ पल खामोश रहा. शायद वह जो कहना चाहता था, उसे कहने में उसे संकोच हो रहा था.

‘‘मैं आज भी आप की उतनी ही इज्जत करता हूं जितनी कि पहले करता था. आप की नाराजगी का डर भी है मुझे. जो कहना चाहता हूं शायद वह मेरी गुस्ताखी भी लगे. इस के बाद भी मैं अपनी बात कहूंगा. आप ने भैया से संबंध को तोड़ा, मगर इस का दर्द दूसरे रिश्तों में भी फैला. दुनिया में बहुत से शादीशुदा स्त्री और पुरुष झगड़ते हैं, उन में बनती नहीं, लेकिन वे सब एकदूसरे को छोड़ तो नहीं देते. अगर झगड़े होते हैं तो सुलहसफाई के अवसर भी होते हैं, किंतु आप लोगों ने तो सुलहसफाई वाला कोई अवसर ढूंढ़ा ही नहीं, सीधे ही जिंदगी का इतना बड़ा फैसला ले लिया. आखिर ऐसी क्या बात हो गई थी, जिस में सुलहसफाई और शादीशुदा संबंधों को बनाए रखने की गुंजाइश ही खत्म हो गई थी? मैं आज आप से इस सवाल का जवाब मांगता हूं, हालांकि बदले हुए हालात में इस का मुझे हक नहीं,’’ सन्नी के शब्दों में एक अनकहा दर्द था.

शेफाली उस के इस दर्द को महसूस कर

सकती थी. उस का यह दर्द एक नासूर बन जाता, अगर शेफाली उस के सवाल का सही जवाब देती.

इसलिए सन्नी के सवाल के जवाब में शेफाली ने स्नेह से अपना हाथ उस के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम एक ऐसे सवाल का जवाब क्यों मांगते हो, सन्नी, जिस से अब कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. जो बीत गया, खत्म हो गया और जिस के वापस आने की कोई संभावना नहीं, उस के लिए अब सवालों में उलझने से क्या फायदा? अतीत कभीकभी राख के उस ढेर जैसा भी होता है जिस को कुरेदने की कोशिश में उस में दबी हुई चिनगारियां हाथ को जला भी देती हैं. इसलिए अच्छा है कि अपने सवाल से तुम भी अतीत की राख को मत टटोलो.’’

शेफाली की बात से सन्नी क्या समझा, क्या

नहीं, वह कह नहीं सकती. मगर लगता था उस ने अपने सवाल का जवाब मांगने की जिद का इरादा छोड़ दिया था.

‘‘चलता हूं,’’ झुक कर शेफाली के कदमों को छूते हुए सन्नी ने कहा.

शेफाली के सीने में कुछ कसक गया. सच था, एक रिश्ता टूटने से कई रिश्ते टूटे थे.

शेफाली की आंखों में नमी आ गई. भरी हुई आंखों से उस ने धुंध में गायब होते हुए सन्नी को देखा.

अतीत बुरा हो या अच्छा, अगर उस से कभी सामना हो जाए तो वह दर्द ही देता है.

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