हवाई जहाज से तेज हाइपरलूप

हमारे देश में ट्रेनों की औसत सुस्त रफ्तार बीते कई दशकों से कायम है, लेकिन उस के साथ ही यह सपना भी आम लोगों को दिखाया जाता रहा है कि भारत में बुलेट ट्रेनें चलेंगी. इधर इस सपने में एक और बढ़ोतरी हुई है.

दावा किया जा रहा है कि नई तकनीक की मदद से दिल्ली से मुंबई का सफर 1 घंटा 10 मिनट में और मुंबई से चेन्नई का सफर सिर्फ 30 मिनट में पूरा हो सकता है. इसी तरह चेन्नई से बेंगलुरु की दूरी महज आधे घंटे में तय हो सकेगी. इन दूरियों को तय करने में वैसे तो हवाईजहाज से ज्यादा समय लगता है, लेकिन फरवरी, 2017 में रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने एक ऐसी टैक्नोलौजी पर चर्चा की, जिसे अगर वास्तविकता में बदला जा सका तो लोग बुलेट ट्रेन से भी तेज सफर कर सकते हैं. यह नई तकनीक है हाइपरलूप, जिस की इन दिनों अमेरिका समेत कईर् देशों में चर्चा है.

ऐसे हुई शुरुआत

हालांकि यह एक मुश्किल काम माना जाता है कि जिस रफ्तार से विमान हवा में उड़ते हैं, उसी गति से ट्रेनें जमीन पर चल सकें. इस बारे में अभी तक सब से अधिक तेजी बुलेट ट्रेनें ही दिखा सकी हैं. अब तक के प्रयोगों में बुलेट ट्रेन अधिकतम 600 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच सकी है पर सफर के जिस एक नए उपाय की चर्चा दुनिया में हो रही है, इस तकनीक से जमीन पर ही 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चल सकती है. यह चमत्कार एक नई तकनीक हाइपरलूप के माध्यम से पूरा करने का सपना देखा जा रहा है. हाइपरलूप का संबंध अंतरिक्ष तकनीक से भी जोड़ा जा सकता है. असल में, लोगों को अंतरिक्ष की सैर कराने की तैयारी कर रही प्रसिद्ध स्पेस कंपनी ‘स्पेसऐक्स’ के जनक और टेस्ला मोटर्स के कोफाउंडर व सीईओ एलन मस्क ने ही सब से पहले हाइपरलूप तकनीक से ट्रेन चलाने के बारे में सोचा है. एलन मस्क ने साल 2013 में हाइपरलूप का प्रस्ताव दुनिया के सामने रखते हुए ऐलान किया था कि दुनिया में कोई भी संगठन चाहे तो संसाधन जुटा कर हाइपरलूप प्रोजैक्ट पर काम कर सकता है. यही वजह है कि मस्क के बजाय इस कल्पना को 2 अन्य कंपनियां हाइपरलूप वन और हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टैक्नोलौजीज (एचटीटी) साकार करने में जुटी हुई हैं और ये दुनियाभर में 7 परियोजनाओं के लिए समझौते पर दस्तखत कर चुकी हैं.

हाइपरलूप कंपनी ऐसी टैक्नोलौजी पर काम कर रही है जो लो प्रैशर ट्यूब्स में चुंबकीय उत्तोलन के जरिए एक जगह से दूसरी जगह तक  ले जाने में सक्षम है.

भारत में हाइपरलूप

हाइपरलूप प्रोजैक्ट के तहत भारत में 5 गलियारों पर काम शुरू करने की योजना बनाई जा रही है. इन में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, तिरुअनंतपुरम, चेन्नईबेंगलुरु, मुंबईचेन्नई और 2 बंदरगाहों को जोड़ने की योजना है. फिलहाल कंपनी हाइपरलूप वन अमेरिका के नेवाडा में ऐसे ट्रैक का प्रोटोटाइप (कामकाजी मौडल) बना रही है. एक प्रोजैक्ट आबू धाबी को दुबई से जोड़ने का भी है.

ऐसा पहला व्यावसायिक प्रोजैक्ट 2020 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है. बहरहाल, देश में हाइपरलूप का क्या भविष्य हो सकता है, इस के बारे में फरवरी, 2017 में दिल्ली में ‘भारत के लिए हाइपरलूप का विजन’ नामक एक सम्मेलन आयोजित हुआ था, जिस में भाग लेने के बाद रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने कहा, ‘मुंबई और दिल्ली के बीच करीब 60 मिनट और चेन्नई से मुंबई केवल 30 मिनट में जाने के बारे में सोच रहा हूं. हम नजदीक से देख रहे हैं कि यह कैसे हो सकता है.’

उन्होंने कहा कि भारतीय रेलवे आधुनिकीकरण और स्पीड बढ़ाने पर जोर दे रहा है. स्पीड पर हमारा फोकस है. हम सभी ट्रेनों की औसत गति को बढ़ाने में जुटे हुए हैं. हम ने मौजूदा ट्रैक्स पर ही दिल्लीमुंबई और दिल्लीहावड़ा के बीच ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए हैं. इन बातों से लगता है कि अगले कुछ वर्षों में हम बुलेट ट्रेन के साथसाथ कुछ जगहों पर हाइपरलूप तकनीक से चलने वाली ट्रेनें भी देख सकेंगे.

कुछ तथ्य

– हाइपरलूप को हाई स्पीड ट्रेनों के विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है. इस तकनीक में कम दबाव के स्टील ट्यूब के जरिए पौड्स में सामान और यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह लाना ले जाना संभव हो सकेगा.

– हाइपरलूप कंपनी माल, यात्री छोटे पार्सल या कूरियर आदि के लिए अलगअलग मौडल के हाइपरलूप डैवलप कर रही है.

– हाइपरलूप वन में वर्ल्डवाइड बिजनैस डैवलपमैंट के ऐलन जेम्स ने बताया था, ‘10-10 सैकंड के अंतराल पर चल रहे पौड्स प्रत्येक दिशा में हर घंटे 20 हजार यात्रियों को ढो सकते हैं. इसी तरह हरेक मालवाहक पौड 70 टन सामान ढो सकता है.’

बुलेट की रफ्तार

हाइपरलूप तकनीक से पहले हमारे देश में पिछले एक दशक से बुलेट ट्रेन लाने की बात जोरशोर से की जा रही है. हालांकि अभी तक ऐसी कोई ट्रेन देश में नहीं चल सकी है, लेकिन जापानचीन ने इस मामले में कई रिकौर्ड कायम कर डाले हैं. उल्लेखनीय है कि जापान में 60 के दशक में, जबकि फ्रांस, ब्रिटेन और जरमनी में 80 के दशक में बुलेट ट्रेनें दौड़ने लगी थीं.

60 के दशक में जब जापान में बुलेट ट्रेनें चलाई गईं तब वहां ऐसी ट्रेनों को हाई स्पीड ट्रेन कहा जाता था. वहां सब से पहले टोक्यो और ओसाका के बीच हाई स्पीड ट्रेन सेवा शुरू की गई थी. इस के बाद 80 के दशक में फ्रांस, ब्रिटेन और जरमनी ने भी हाई स्पीड रेल नैटवर्क की शुरुआत की. आज यूरोप के ज्यादातर देशों में हाई स्पीड ट्रेनें चलती हैं.

चीन में नई बुलेट ट्रेनें चलाने के बाद वहां का हाई स्पीड रेल नैटवर्क 9,300 किलोमीटर का हो गया. जापान में सब से पहले 1964 में टोक्यो और ओसाका के बीच हाई स्पीड ट्रेन सेवा शुरू की गई थी. जापान में बुलेट ट्रेन को ‘शिनकांसेन’ कहा जाता है. इन ट्रेनों का संचालन जापान रेलवेज ग्रुप करता है जिस में 4 कंपनियां शामिल हैं.

जापान में बुलेट ट्रेनें फिलहाल 2,388 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग पर चलती हैं और इन की औसत गति 240 से 300 किलोमीटर प्रति घंटे रहती है. इस के अलावा एक मिनी शिनकांसेन यानी मिनी बुलेट या हाई स्पीड रेलमार्ग भी है जिस पर 130 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से ट्रेन चलती है.

जापान में बुलेट ट्रेनों की गति बढ़ाने के प्रयोग भी समयसमय पर किए जाते रहे हैं. जैसे वर्ष 1996 में वहां 443 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एक बुलेट ट्रेन चलाई गईर् थी. इस के बाद 2003 में मैगलेव ट्रेन को 581 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चला कर जापान ने विश्व कीर्तिमान बनाया था. हालांकि तेज गति के रिकौर्ड बनाने के मामले फ्रांस की टीजीवी (ट्रेने ग्रैंडे विटेसे यानी हाई स्पीड ट्रेन) किसी से पीछे नहीं रही है. वर्ष 1972 से 2007 के बीच फ्रांस की इस बुलेट ट्रेन ने कई बार तेज रफ्तार के कीर्तिमान कायम किए.

फ्रांस की राष्ट्रीय रेल सेवा एसएनसीएफ द्वारा संचालित टीजीवी ने यात्रियों की सुरक्षा से कोई समझौता किए बगैर 3 अप्रैल, 2007 को 574.8 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलने का रिकौर्ड अपने नाम किया है. खास उल्लेखनीय बात यह है कि टीजीवी आज दुनिया भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गई है और यूरोप जाने वाले पर्यटक इस से यात्रा करना नहीं भूलते हैं.

ब्रिटेन जरमनी आगे आए

फ्रांस की तरह ही जरमनी और ब्रिटेन की बुलेट ट्रेनें भी वहां के रोजमर्रा के जीवन में शामिल हो चुकी हैं. वे वहां लंबी दूरी की यात्राओं का सुविधाजनक विकल्प साबित हो रही हैं. फ्रांसीसी बुलेट टीजीवी की सफलता देखने के फौरन बाद जरमनी ने भी अपने यहां हाई स्पीड रेल नैटवर्क बनाने और उन पर बुलेट ट्रेनें चलाने का फैसला किया था, लेकिन इस मामले में पैदा हुए कानूनी विवादों के कारण जरमनी की बुलेट ट्रेन इंटरसिटी ऐक्सप्रैस (आईसीई) का संचालन शुरू होने में 10 वर्ष का विलंब हो गया, लेकिन जब जरमन इंटरसिटी ऐक्सप्रैस ने पटरियों पर दौड़ना शुरू किया तो इस ने कार्यकुशलता और विशेष रूप से समय पर ट्रेनों के आवागमन के मामले में उल्लेखनीय सफलता हासिल की. आज जरमनी की ये बुलेट ट्रेनें यूरोप के आरपार रोजाना हजारों यात्रियों का सफर आसान बना रही हैं. जापान, फ्रांस, जरमनी ब्रिटेन समेत आज यूरोप के ज्यादातर देशों में हाई स्पीड ट्रेनें चलती हैं.

मैगलेव भी पीछे नहीं

वर्ष 2013 में जापान ने एक ऐसी रेलगाड़ी का सफल परीक्षण किया था जिस की रफ्तार 500 किलोमीटर प्रति घंटे होती है. खास बात यह रही कि यह ट्रेन लोहे की पटरियों पर नहीं बल्कि पटरी से ऊपर हवा में अदृश्य चुंबकीय ट्रैक पर दौड़ती है. फिलहाल वहां पलक झपकते नजरों से ओझल हो जाने वाली ऐसी 5 ट्रेनें बनाई गई हैं जो वर्ष 2027 में लोगों को रिकौर्ड रफ्तार के साथ बने सफर का आनंद देंगी. इन ट्रेनों को ‘मैगलेव’ नाम दिया गया है, क्योंकि ये चुंबकीय ट्रैक पर हवा में फिसलती हैं.

मैगलेव का मतलब है मैगनेटिक लैविटेशन. इन तेज रफ्तार ट्रेनों को दौड़ने के लिए न पहिए चाहिए, न ऐक्सल, न बियरिंग. मैगलेव तकनीक विद्युतचुंबकीय चमत्कार की देन है. इस के लिए लोहे की परंपरागत पटरियों के बजाय नई तरह की चुंबकजडि़त पटरियां बिछाई जाती हैं. असल में चुंबक के चारों ओर अदृश्य चुंबकीय क्षेत्र होता है. हर चुंबक की शक्ति उस के सिरों पर सब से अधिक होती है. ये सिरे धु्रव कहलाते हैं, उत्तरी धु्रव (एन) और दक्षिणी ध्रुव (एस).

चुंबक के सिरों के ये नाम पृथ्वी के धु्रवों के अनुसार रखे गए हैं. चुंबक के विपरीत धु्रव एकदूसरे की ओर आकर्षित होते हैं जबकि समान धु्रव यानी उत्तरीउत्तरी या दक्षिणीदक्षिणी धु्रव एकदूसरे से दूर भागते हैं. जब किसी सुचालक चीज जैसे तांबे के तार में बिजली का करंट दौड़ता है तो उस के चारों ओर अदृश्य चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है. इस तरह बनाए जाने वाले चुंबक विद्युतचुंबक कहलाते हैं.

चुंबकीय ताकत से चलने वाली मैगलेव ट्रेनों का यही रहस्य है. पटरी पर लगे इलैक्ट्रोमैगनेटों के तीव्र चुंबकीय बल के कारण ये हवा में कुछ सेंटीमीटर ऊपर उठ जाती हैं ओर चुंबकों के कारण ही हवा में सरपट फिसलती हैं. पटरी और ट्रेन में लगे चुंबकों के कारण आकर्षण और विकर्षण बल पैदा होते हैं जिस के कारण रेलगाड़ी हवा में सरकती जाती है.

इलैक्ट्रोमैगनेट क्षणभर के लिए चुंबकीय क्षेत्र को पलट देते हैं तो तेज विकर्षण बल पैदा होता है, इस से रेलगाड़ी हवा में टिकी रहती है. ये एक बार फिर चुंबकीय क्षेत्र को बदल देते हैं और ट्रेन आगे निकल जाती है. हर पल कई बार यही क्रिया लगातार दोहराए जाने पर रेलगाड़ी तेजगति से भागती रहती है. खास बात यह है कि  मैगलेव तकनीक से सामान्य वातावरण में ट्रेन 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है.

न फंसें विज्ञापनों के भ्रामक जाल में

16 वर्षीय सान्या अपने चेहरे के सांवलेपन और पिंपल्स से बहुत परेशान थी. उस ने अनेक उपाय किए पर कोई फायदा न हुआ. फिर उस ने टीवी पर एक ब्यूटी क्रीम का विज्ञापन देखा, जिस में चेहरे को गोरा व बेदाग बनाने की बात कही जा रही थी. विज्ञापन से प्रभावित हो कर सान्या ने भी वह क्रीम औनलाइन और्डर कर दी.

क्रीम की डिलीवरी पा कर सान्या खुश थी. उसे लग रहा था कि अब जल्द ही वह गोरी व बेदाग त्वचा की मलिका हो जाएगी. क्रीम पर लिखे निर्देशानुसार रात को सान्या ने कुछ दिन क्रीम लगाई. लेकिन इस से सान्या का पूरा चेहरा लाल होने लगा था और पूरे चेहरे पर जलन और खुजली मचने लगी.

अब सान्या को पछतावा हो रहा था कि क्यों उस ने बिना सोचेसमझे विज्ञापन के झांसे में आ कर इतनी बड़ी मुसीबत मोल ले ली. सान्या जैसे अनेक किशोर विज्ञापन से आकर्षित हो कर कोई भी प्रोडक्ट खरीद लेते हैं और धोखा खा जाते हैं. बदले में उन के पास सिवा पछतावे के कोई और उपाय नहीं बचता.

औनलाइन शौपिंग : धोखे की गुंजाइश ज्यादा

रोहन कई दिन से अपने लिए आईपैड खरीदने की सोच रहा था, लेकिन सभी आईपैड उस के बजट से बाहर थे. ऐसे में एक दिन इंटरनैट पर उस ने औनलाइन एक आईपैड देखा, जो उस के बजट में मिल रहा था. रोहन ने बिना सोचेसमझे आईपैड और्डर कर दिया.

जब आईपैड आया तो पता चला कि उस की कोईर् गारंटीवारंटी नहीं थी. साथ ही आईपैड की मैन्यूफैक्चरिंग डेट भी बहुत पुरानी थी. शायद इसीलिए उसे वह आईपैड मार्केट रेट से कम दाम में मिल गया था. सस्ते के चक्कर में आ कर रोहन को पुराने आईपैड से ही काम चलाना पड़ा.

इसी तरह कई औनलाइन फैशन साइट्स पर आकर्षक ड्रैसेज बहुत कम कीमत पर मिलने का विज्ञापन दिया जाता है और किशोर विज्ञापन के झांसे में आ कर औनलाइन शौपिंग कर लेते हैं, लेकिन जब ड्रैस उन के सामने आती है तो न तो ड्रैस का कलर वह होता है जो विज्ञापन में दिखाया गया होता है और न ही उस का फैब्रिक.

इसलिए औनलाइन शौपिंग करते समय सिर्फ विज्ञापनों के वादों पर न जाएं बल्कि पूरी तरह जांचपड़ताल करने के बाद ही शौपिंग करें और साथ ही अगर औनलाइन शौपिंग में कैश औन डिलीवरी का औप्शन हो तो वही लें ताकि आप डिलीवरी के बाद प्रोडक्ट की जांचपरख कर ही पेमैंट करें.

विज्ञापन और सेहत से खिलवाड़

टीवी पर दिखाए जाने वाले कई विज्ञापनों में दिखाया जाता है कि फलांफलां टौनिक पीने से आप की हाइट बढ़ जाएगी और फलां जूस पीने से आप का वजन कम हो जाएगा और आप किसी फिल्मी स्टार की भांति स्लिमट्रिम और फिट दिखने लगेंगे. ऐसे विज्ञापनों के झांसे में आने से बचें और बिना डाक्टर की सलाह के कोई हैल्थ टौनिक न लें.

किशोरावस्था में लड़कों को बौडी बनाने की और लड़कियों को खूबसूरती बढ़ाने और मैंटेंड फिगर पाने की चाहत होती है, जिस के चलते वे विज्ञापनों के झांसे में आ जाते हैं और सेहत से खिलवाड़ कर बैठते हैं. जहां पैसे की तो बरबादी होती ही है, सेहत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

एक के साथ एक फ्री का लालच

कई बार किशोर किसी मौल या शौपिंग स्टोर में जाते हैं और वहां जा कर एक के साथ एक फ्री या बाय वन गैट टू फ्री के झांसे में आ जाते हैं और बिना जरूरत का सामान भी खरीद लाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि स्कीम में  उन्हें सस्ता सामान मिल रहा है जबकि यह कंपनियों की स्ट्रेटजी होती है. वे अपना सामान निकालने के लिए ऐसी युक्तियां रचते हैं, वह प्रोडक्ट मार्केट में आउटडेटेट हो चुका होता है इसलिए ऐसा सामान खरीदने से बचें.

तंत्र मंत्र यंत्र के धोखे

वे किशोर छात्र जो पढ़ाई में कमजोर होते हैं परीक्षा में सफलता पाने के लिए देर रात आने वाले रत्नों, मंत्रों और यंत्रों के विज्ञापनों के झांसे में आ जाते हैं जो दावा करते हैं कि उक्त रत्न को धारण करने से उन्हें परीक्षा में सफलता मिलेगी.

ये विज्ञापन वास्तव में सिर्फ छलावा होते हैं जो अपना धंधा चमकाने के लिए किशोरों को मेहनत की राह से भटकाते हैं जिन के भरोसे रह कर छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ कर रत्नों के जरिए सफलता पाने की आस में रहते हैं, लेकिन जब परीक्षा परिणाम आता है तो उन के सामने वास्तविकता आती है.

इसलिए अपनी मेहनत और लगन पर विश्वास रखें और ऐसे अंधविश्वास भरे विज्ञापनों के भ्रामक जाल से बचें.

पेरैंट्स की सलाह लें

कोई भी शौपिंग करने से पहले पेरैंट्स की सलाह लें. सिर्फ विज्ञापनों में दिखाए गए वादों पर भरोसा न करें, क्योंकि विज्ञापनों में सिर्फ प्रोडक्ट की खूबियों को उजागर किया जाता है, सब अच्छाअच्छा दिखाया जाता है. अगर विज्ञापन में कोई उत्पाद आप को पसंद आता भी है तो उसे खरीदने से पहले किसी ऐसे व्यक्ति की राय लें जिस ने वह उत्पाद प्रयोग किया हो यानी विज्ञापन के दिखावों पर न जाएं अपनी अक्ल लगाएं.

जब सजाना हो बच्चों का बेडरूम

बच्चों का बेडरूम सजाते समय सभी माता-पिता को बहुत मजा आता है. वे अपनी सारी कल्पनाएं बच्चे के कमरे को सजाने में लगा देना चाहते हैं. यदि आप भी अपने बच्चे का बेडरूम सजाना चाहते हैं, कुछ विशेष बातों का का ध्यान जरूर रखें.

कमरे के बनाएं कलरफुल

ब्राइट कलर के खिलौने, बीन बैग, बेडशीट, कुशन्स, लॉन्ड्री बेस्केट आदि से बच्चों के कमरे को कलरफुल लुक मिलेगा.

आकर्षक हो बेडरूम

बच्चों के बेडरूम के लिए आजकल मार्केट में तरह-तरह के शेप व साइज के फर्नीचर उपलब्ध हैं, जैसे- बंक बेड, रेस कार बेड, बर्ड या एनिमल शेप की चेयर आदि. इन्हें खरीदकर आप अपने बच्चे के बेडरूम को और भी आकर्षक बना सकती हैं.

फर्नीचर

बच्चों के बेडरूम के लिए फर्नीचर चुनते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि उनके कॉर्नर नुकीले न हों, वरना बच्चों को चोट लग सकती है.

बच्चों के लिए जरूरी

अपने बच्चे में पढाई के प्रति रूचि पैदा करने के लिए उसके कमरे की एक दीवार पर इंफॉमेंटिव टाइल्स लगाएं, इससे उसका कमरा खूबसूरत भी लगेगा और क्रिएटिव भी. बच्चों के कमरे में कम से कम फर्नीचर रखें, ताकि उन्हें खेलने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके.

बेडरूम के रंग

बच्चें के कमरे को ब्लू, पिंक, यलो, पर्पल, ऑरेंज जैसे ब्राइट कलर्स से पेंट करवाएं. बच्चें का बेडरूम सजाते समय उनकी भी सलाह लें. इससे आप अपने बच्चे की कल्पनाशक्ति के बारे में भी जान सकेंगे.

बच्चों के खेल

बच्चे के रूम में छोटा सा टेन्ट लगाकर आप उसे अपने खिलौनों के साथ वहां पर खेलने को कहें, ऐसा करने में उसे बहुत मजा आएगा.

कार्टून

बच्चों के कमरे की दीवार पर उनकी पसंद के कार्टून कैरेक्टर के पोस्टर या वॉल पेपर लगाएं. अपने पसंदीदा कैरेक्टर से बातें करना बच्चों को अच्छा लगता है.

यौनजनित बीमारियां : शरमाना मना है

यौनजनित एलर्जी व संक्रमण को ले कर अकसर लोग बात करने से झिझकते, जबकि निजी व शर्मिंदगीभरी बात समझ कर छिपाने से कई बार गंभीर रोगों का रूप ले लेता है. इसलिए यौन संबंधी एलर्जी को ले कर डाक्टरों से खुल कर परामर्श व उपचार लें.

यौनजनित एलर्जी एवं रोगों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि यह थोड़ा निजी सा मामला है. इस बारे में बात करने में लोग झिझकते हैं और अकसर चिकित्सक या परिजनों को भी नहीं बताते. जहां यौन संसर्ग से होने वाले रोग (एसटीडी) कुछ खास विषाणु एवं जीवाणु के कारण होते हैं, वहीं यौनक्रिया से होने वाली एलर्जी लेटेक्स कंडोम के कारण हो सकती है. अन्य कारण भी हो सकते हैं, परंतु लेटैक्स एक प्रमुख वजह है.

यौन संसर्ग से होने वाले रोग

एसटीडीज वे संक्रमण हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करने पर फैलते हैं. ये रोग योनि अथवा अन्य प्रकार के सैक्स के जरिए फैलते हैं, जिन में मुख एवं गुदा मैथुन भी शामिल हैं. एसटीडी रोग एचआईवी वायरस, हेपेटाइटिस बी, हर्पीज कौंपलैक्स एवं ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसे विषाणुओं या गोनोरिया, क्लेमिडिया एवं सिफलिस जैसे जीवाणु के कारण हो सकते हैं.

इस तरह के रोगों का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जो अनेक व्यक्तियों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर जो सैक्स के समय बचाव के साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं.

कैंकरौयड : यह रोग त्वचा के संपर्क से होता है और अकसर पुरुषों को प्र्रभावित करता है. इस के होने पर लिंग एवं अन्य यौनांगों पर दाने व दर्दकारी घाव हो जाते हैं. इन्हें एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है और अनदेखा करने पर इन के घातक परिणाम हो सकते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर इस रोग के होने की आशंका बहुत कम हो जाती है.

क्लैमाइडिया : यह अकसर और तेजी से फैलने वाला संक्रमण है. यह ज्यादातर महिलाओं को होता है और इलाज न होने पर इस के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते, परंतु कुछ मामलों में योनि से असामान्य स्राव होने लगता है या मूत्र त्यागने में कष्ट होता है. यदि समय पर पता न चले तो यह रोग आगे चलकर गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या पूरी प्रजनन प्रणाली को ही क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

क्रेब्स (प्यूबिक लाइस) : प्यूबिक लाइस सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो जननांगों के बालों और त्वचा में पाए जाते हैं. ये खुजली, जलन, हलका ज्वर पैदा कर सकते हैं और कभीकभी इन के कोई लक्षण सामने नहीं भी आते. कई बार ये जूं जैसे या इन के सफेद अंडे जैसे नजर आ जाते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर भी इन जुंओं को रोका नहीं जा सकता, इसलिए बेहतर यही है कि एक सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ ही यौन संसर्ग किया जाए. दवाइयों से यह समस्या दूर हो जाती है.

गोनोरिया : यह एक तेजी से फैलने वाला एसटीडी रोग है और 24 वर्ष से कम आयु के युवाओं को अकसर अपनी चपेट में लेता है. पुरुषों में मूत्र त्यागते समय गोनोरिया के कारण जलन महसूस हो सकती है, लिंग से असामान्य द्रव्य का स्राव हो सकता है, या अंडकोशों में दर्द हो सकता है. जबकि महिलाओं में इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते. यदि इस की चिकित्सा समय से न की जाए, तो जननांगों या गले में संक्रमण हो सकता है. इस से फैलोपियन ट्यूब्स को क्षति भी पहुंच सकती है जो बांझपन का कारण बन सकती है.

हर्पीज : यह रोग यौन संसर्ग अथवा सामान्य संपर्क से भी हो सकता है. मुख हर्पीज में मुंह के अंदर या होंठों पर छाले या घाव हो सकता है. जननांगों के हेर्पेस में जलन, फुंसी हो सकती है या मूत्र त्याग के समय असुविधा हो सकती है. यद्यपि दवाओं से इस के लक्षण दबाए जा सकते हैं, लेकिन इस का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है.

एचआईवी या एड्स : ह्यूमन इम्यूनोडैफिशिएंसी वाइरस अथवा एचआईवी सब से खतरनाक किस्म का यौनजनित रोग है. एचआईवी से पूरा तंत्रिका तंत्र ही नष्ट हो जाता है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है. एचआईवी रक्त, योनि व गुदा के द्रव्यों, वीर्य या स्तन से निकले दूध के माध्यम से फैल सकता है. सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ यौन संबंध रख कर और सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर के एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है.

पैल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज : पीआईडी एक गंभीर संक्रमण है और यह गोनोरिया एवं क्लेमिडिया का ठीक से इलाज न होने पर हो जाता है. यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है, जैसे फैलोपियन ट्यूब. गर्भाशय या डिंबग्रंथि में प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण स्पष्ट नहीं होते. परंतु इलाज न होने पर यह बांझपन या अन्य कई समस्याओं का कारण हो सकता है.

यौनजनित एलर्जी : इस तरह की एलर्जी की अकसर लोग चर्चा नहीं करते. सैक्स करते वक्त कई बार हलकीफुलकी एलर्जी का पता भी नहीं चलता. परंतु, एलर्जी से होने वाली तीव्र प्रतिक्रियाओं की अनदेखी नहीं हो सकती, जैसे अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण, और एनाफाइलैक्सिस. इन में से कई एलर्जिक प्रतिक्रियाएं तो लेटैक्स से बने कंडोम के कारण होती हैं. कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे कि वीर्य से एलर्जी, गस्टेटरी राइनाइटिस आदि.

लेटैक्स एलर्जी : यह एलर्जी कंडोम के संपर्क में आने से होती है और स्त्रियों व पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं. लेटैक्स एलर्जी के लक्षणों में प्रमुख हैं- जलन, रैशेस, खुजली या अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण और एनाफाइलैक्सिस आदि. ये लक्षण कंडोम के संपर्क में आते ही पैदा हो सकते हैं.

यह एलर्जी त्वचा परीक्षण या रक्त परीक्षण के बाद पता चल पाती है. यदि परीक्षण में एलजीई एंटीबौडी मिलते हैं तो इस की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि वे लेटैक्स से प्रतिक्रिया करते हैं. लेटैक्स कंडोम का प्रयोग बंद करने से इस एलर्जी को रोका जा सकता है.

वीर्य से एलर्जी : बेहद कम मामलों में ऐसा होता है, लेकिन कुछ बार वीर्य में मौजूद प्रोटीन से स्त्री में इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बार भोजन या एनसैड्स व एंटीबायोटिक्स में मौजूद प्रोटीन पुरुष के वीर्य से होते हुए स्त्री में एलर्जी करने लगते हैं. इस का लक्षण है –

योनि संभोग के 30 मिनट के भीतर योनि में जलन. अधिक प्रतिक्रियाओं में एरियूटिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा और एनाफाइलैक्सिस आदि शामिल हैं. प्रभावित महिला के साथी के वीर्य की जांच कर के इस एलर्र्जी की पुष्टि की जा सकती है.

दरअसल, नियमित यौन जीवन जीने वाले महिलाओं व पुरुषों को किसी विशेषज्ञ से प्राइवेट पार्ट्स की समयसमय पर जांच कराते रहना चाहिए. इस से यौनजनित विभिन्न रोगों का पता चलेगा और उन से आप कैसे बचें, इस का भी पता चल सकेगा. यदि ऐसी कोई समस्या मौजूद हुईर्, तो आप उचित इलाज करा सकते हैं. यह अच्छी बात नहीं है कि झिझक या शर्र्म के चलते ऐसी बीमारियों का इलाज रोक कर रखा जाए. यदि आप को या आप के साथी को ऐसी कोईर् बीमारी या एलर्जी हो, तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

(लेखक ब्लूम आईवीएफ ग्रुप के मैडिकल डायरैक्टर हैं.)

बिना तलाक के इन अभिनेताओं ने की दूसरी शादी

हेमा मालिनी की बेटी ईशा देओल प्रेग्नेंट हैं. ईशा ने 29 जून 2012 में बिजनेसमैन भरत तख्तानी से मुंबई के इस्कॉन मंदिर में बढ़े धूमधाम से शादी की थी. लेकिन बात अगर ईशा की मम्मी हेमा की शादी की करें तो उनकी शादी में काफी परेशानियां आई थीं. जिसका कारण हेमा और धर्मेंद्र का रिलेशन था जो उस वक्त काफी सुर्खियों में था.

धर्मेंद्र और हेमा मालिनी के रिश्ते से जुड़े कुछ विवाद.

पहले से शादीशुदा धर्मेंद्र और हेमा के प्यार ने तो बॉलीवुड में बवाल मचाया ही, लेकिन उनकी शादी की खबर ने तो लोगों को हैरान ही कर दिया था.

धर्मेंद्र ने हेमा से तब शादी की, जब उनकी बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी और बेटे सनी देओल फिल्मों में आने की तैयारी कर रहे थे और परिवार इस शादी के एकदम खिलाफ था.

उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर ने उन्हें तलाक देने से इनकार कर दिया था. ऐसे में प्यार और परिवार के बीच बैलेंस बनाते हुए धर्मेंद्र ने धर्म बदलकर हेमा से शादी की थी.

वैसे हेमा और धर्मेंद्र के अलावा भी बॉलीवुड में ऐसे कई एक्टर्स मौजूद हैं, जिन्होंने अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना ही दूसरी शादी कर ली.

1. सलीम खान-हेलन

स्क्रिप्ट राइटर सलीम खान की पहली पत्नी का नाम सलमा खान है, जिनसे उनकी मुलाकात 1959 में हुई थी. एक इंटरव्यू के दौरान सलीम खान ने खुलासा किया था कि शादी से पहले उन्हें सलमा को करीब पांच साल तक डेट किया था. वहीं, उन्होंने हेलन से 1981 में बिना सलमा को तलाक दिए शादी की थी. मौजूदा समय में पूरी खान फैमिली एक साथ एक ही घर में रहती है.

2. संजय खान-जीनत अमान

एक्टर संजय खान और जीनत अमान का अफेयर किसी से छुपा नहीं था. कहा जाता है कि इन्होंने छुपकर शादी की थी. जीनत से मुलाकात के वक्त संजय खान शादीशुदा थे और उनके बच्चे भी थे. हालांकि, एक साल बाद ही दोनों की तलाक की खबरें भी आईं और संजय अपनी पहली पत्नी जरीन के पास वापस लौट गए.

3. उदित नारायण-दीपा

फेमस प्लेबैक सिंगर उदित नारायण का नाम भी उन सेलेब्स में शुमार है, जिन्होंने बिना पहली पत्नी को तलाक दिए दूसरी शादी की. उनकी पहली पत्नी का नाम रंजना झा है. उन्होंने दीपा से रंजना को तलाक दिए बगैर शादी की. उनकी इस शादी को लेकर पहली पत्नी रंजना ने काफी हंगामा किया था और बात पुलिस तक पहुंच गई थी. हालांकि, बाद में मामला ठीक हो गया.

4. राज बब्बर-स्मिता पाटिल

बॉलीवुड एक्टर राज बब्बर भी शादीशुदा थे. उनकी पहली पत्नी का नाम नादिरा जहीर है. एक्ट्रेस स्मिता पाटिल से उनके अफेयर की चर्चा खूब हुई. शादीशुदा होने के बावजूद उन्होंने नादिरा को तलाक दिए बिना स्मिता से शादी की थी. हालांकि, यह शादी अधिक दिनों तक नहीं टिक पाई और अपने पहले बच्चे प्रतीक बब्बर को जन्म देने के कुछ ही घंटों में स्मिता पाटिल की मौत हो गई थी. इसके बाद राज वापस अपनी पहली पत्नी नादिरा के पास चले गए.

फिल्में जिन्हें देख कर जवानी याद आ जाए

प्रेम की दीवानगी को निर्देशक ने फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में बखूबी दिखाया. सिनेमा हमआप से उतना ही जुड़ा है जितना जीवन के और रंग, आप को इस का एहसास हो या न हो लेकिन जब प्यार खिलता है तो सारी दुनिया खूबसूरत नजर आती है.

किशोरावस्था में हमें मुहब्बत और अचानक किसी के बहुत अच्छे लगने का एक अच्छा सा एहसास होने लगता है. इस एहसास की दुनिया में ही खो जाने का मन करता है. हम से कई गलतियां भी होती हैं, हमें प्यार की खुशी का भी पता चलता है, हमारा दिल टूटता है और किसी के नकारने का भी पता चलता है.

कुछ ऐसी फिल्में हैं जिन्हें देखने पर आप को किशोरावस्था की यादें ताजा हो जाएंगी, ऐसी यादें जो वक्त के साथ काम के बीच लगभग गायब हो गई थीं. राजकपूर की फिल्म ‘बौबी’ में अल्हड़ जोड़े की प्रेमकहानी जब भी परदे पर आती है तो उसे देख कर हम भी अपने अतीत की गहराइयों में गोते लगाने लगते हैं और जिंदगी के बीत गए पन्नों पर अपनी धुंधलाती प्रेमकहानी की तसवीर खोजने लगते हैं.

अल्हड़ प्रेम का सजीव चित्रण हिंदी सिनेमा में कई बार किया गया है. हंसतेखिलखिलाते झरने की तरह हिंदी सिनेमा सामाजिक यथार्थ और मानवीय रिश्तों के आवेग, तपिश, त्रासदी और छिछोरापन सब को अपने में समेटे निरंतर आगे बढ़ता रहा है.

इस प्रबल सिनेमाई झरने ने जन्म दिया है कर्णप्रिय गीतसंगीत को, कालजयी कथाओं व पात्रों की प्रेम में डूबी कहानियों को जो आज के अंधेरे मल्टीप्लैक्स की डिजिटल स्क्रीन पर आ कर कभी आप को आप की जिंदगी के खुशनुमा 17वें साल में ले जाती हैं, कभी लोरियां सुनाती हैं और कभी डरातीहंसाती हैं.

प्रेम का बदलता रूप

पहले की सिनेमाई प्रेमकहानियों में पारिवारिक मूल्यों की प्राथमिकता होती थी ताकि सामान्य दर्शक उसे आसानी से पचा सकें. कुछ फिल्मों की प्रेमकहानियां इतनी लोकप्रिय हुईं कि वे आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई हैं. ‘मोहब्बतें’, ‘दिल चाहता है’, ‘कयामत से कयामत तक’, ‘मैं ने प्यार किया’, ‘हम आप के हैं कौन’, ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ ऐसी ही फिल्में हैं. इन्हें देख कर हमें अपनी जवानी का एहसास होता है.

‘मसान’ और ‘सरबजीत’ जैसी फिल्मों से अपने अभिनय की वाहवाही पा चुकीं रिचा चड्ढा का कहना है, ‘‘फिल्मों में प्रेमकहानियों का होना फिल्मों की जान जैसा है. पहले के दौर में प्रेम का प्रदर्शन सिर्फ आंखों की भाषा में होता था. आज फिल्मों में प्रेमप्रदर्शन के माने बदल गए हैं, पर अंदाज वही है.’’

संगीत की पवन में पनपता प्रेम

प्यार की पींगें बढ़ाने में प्रेम से भरे हुए कर्णप्रिय संगीत की अहम भूमिका होती है. श्वेतश्याम से ले कर डौल्बी डिजिटल साउंड वाली शायद ही कोई ऐसी फिल्म बौलीवुड में आई हो जिस में प्रेमभरे संगीत की औक्सीजन न हो. हमारी फिल्मों का किस्सा भी ऐसा है जहां बिना तरानों के कोई फिल्म पूरी नहीं होती.

अगर नायक, नायिका को छेड़ता है तो गा उठता है, ‘अरे लाल दुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता…’, अगर नायिका के रूपशृंगार की तारीफ करनी हो तो धीमे स्वर में ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो…’ गुनगुना उठता है. फिल्मों में संगीत का यह खुमार आज से 85 साल पहले बनी फिल्म ‘आलमआरा’ से शुरू हो गया था. तब से ले कर आज तक 8 दशकों के बीत जाने पर भी संगीत का सुरूर कम नहीं हुआ.

फिल्मों में बात अगर प्रेमकहानियों की की जाए तो रोमांटिक फिल्मों में संगीत हमेशा मधुर और ताजगीभरा रहा है. ‘मुझे कुछ कहना है’ (फिल्म बौबी) ‘हम बने तुम बने एक दूजे के लिए’, (फिल्म एकदूजे के लिए), ‘ऐ मेरे हमसफर’ (फिल्म कयामत से कयामत तक) ऐसे गीत हैं जिन्हें सुन कर आज भी हमारा दिल धड़कने लगता है.

‘काला चश्मा जंचता है…’ जैसे हिट गीत देने वाली सिंगर नेहा कक्कड़ का कहना है, ‘‘बिना प्रेमगीतों के तो बौलीवुड फिल्मों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. गाने दर्शकों को खुद से जोड़ते हैं.’’

फिल्मों के शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर की सभी फिल्मों में प्रेम में पगे हुए संगीत की मिठास हमेशा रहती थी. उन्हें संगीत की बहुत अच्छी समझ थी.

फिल्मों में टीनऐज रोमांस

रुपहले परदे पर टीनऐज रोमांस की शुरुआत तो बहुत पहले हो गई थी पर राजकपूर ने अपनी फिल्मों से इसे अच्छी तरह भुनाया. उन की फिल्मों में उन का नेहरू विचारधारा से प्रभावित होना साफ नजर आता था. अपनी अधिकांश फिल्मों के हीरो राजकपूर खुद रहते थे. ‘आग’, ‘श्री 420’, ‘आवारा’, ऐसी ही फिल्में थीं जो नरगिस के साथ उन्होंने कीं.

‘मेरा नाम जोकर’ उन की सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी फिल्म थी जोकि वर्ष 1970 में प्रदर्शित हुई और जिस के निर्माण में 6 वर्षों से भी अधिक समय लगा. ‘मेरा नाम जोकर’ बौक्स औफिस पर हिट फिल्म साबित नहीं हुई जिस से वे काफी मायूस हो गए थे. इस फिल्म को बनाने में उन्होंने काफी ज्यादा पैसा खर्च कर दिया था, जिससे आर के स्टूडियो घाटे में चला गया था.

काफी दिनों तक फिल्म निर्माण से दूर रहने के बाद उन्होंने किशोरावस्था रोमांस के सहारे एक फिल्म बनाने की सोची. उस समय की मशहूर कौमिक आर्ची को देख कर उन्होंने अल्हड़ हीरोइन और किशोर हीरो की कल्पना की. जिस के लिए अपने बेटे ऋषि कपूर और डिंपल कपाडि़या को चुना. राजकपूर का यह फार्मूला काम कर गया और फिल्म ‘बौबी’ ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की.

दिल सोलह साला बन जाए

फिल्मी दुनिया के पिटारे में ऐसी कई फिल्में पड़ी हैं जो अनमोल मोती के समान हैं. हर साल अपने साथ कामयाबी के उतारचढ़ाव ले कर आती हैं, जैसे इस बार ‘नीरजा’ से शुरू हुआ सफर आमिर खान की ‘दंगल’ पर जा कर खत्म हुआ. कुछ कामयाब फिल्में ऐसी हैं जिन्हें देख कर आज भी दिल झूम उठता है. बौलीवुड में कालेज और स्कूल की दोस्ती व रोमांस पर भी कई फिल्में बनी हैं. जिन्हें देख कर हमें अपने कालेज की कैंटीन और क्लास में पनपा पहला क्रश याद आ जाता है.

‘जो जीता वही सिकंदर’ स्कूल रोमांस पर बनी इस फिल्म ने आमिर खान को कई लड़कियों के दिलों की धड़कन बना दिया था. इस फिल्म का गाना ‘पहला नशा पहला खुमार…’ आज भी पहले क्रश की याद दिलाता है.

‘मोहब्बतें’ फिल्म बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने वाले 3 युवा लड़कों की प्रेमकहानी के बीच शाहरुख जैसे लवगुरु की प्रेमशिक्षा और रोबदार प्रिंसिपल की कैमिस्ट्री पर बनी. इस फिल्म के संवाद बहुत लोकप्रिय हुए थे. इन सब के अलावा ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’, ‘गिप्पी’, ‘तेरे संग’, ‘उड़ान’, ‘कुछकुछ होता है’, ‘3 इडियट’, ‘मैं हूं न’, ‘फुकरे’, ‘जाने तू या जाने न’, ‘2 स्टेट’ आदि कई फिल्में हैं जिन में स्कूल, कालेज की गलियों, क्लास, कैंटीन में पनपते प्रेम को दर्शाया गया है.                       

शराब पीकर बेहोश हुई लड़की के साथ तीन लड़कों ने किया…देखिए वीडियो

अभी हाल ही में लड़कियों के साथ कुछ ऐसी घटनायें हुई हैं, जिसे हमारा सभ्‍य समाज कभी भी सही नहीं मानता है. बता दें कि  अभी हाल ही में नए साल के सेलिब्रेशन के दौरान बेंगलुरु और दिल्ली से महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की जैसी घटनाएं सामने आईं थीं, जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया गया था कि ऐसा कैसे हो गया. जहां पर पढ़े-लिखे लोग महिला सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बाते करते हैं.

इस वीडियो में दिखाया गया है कि लड़की ने छोटे कपड़े पहने हैं और तीन लड़कों के बीच में बिल्कुल अकेली है. वो लड़कों के साथ शराब पी रही है. साथ ही लड़की ने सिगरेट भी पी. यही नहीं वो लड़कों के साथ गाने पर थिरकी भी. आखिर वह बेहोश हो जाती है और फिर लड़कों ने उसके साथ कुछ ऐसा किया जो आपके लिए अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. इसके लिये आपको यह वीडियो देखना पड़ेगा.

इस वी‌ड‌ियो को सिनेमॉन्क्ज नाम के चैनल ने ‘द ईजी गर्ल’ के नाम से अपलोड किया है.

आप भी देखिए ये वीडियो

फिल्म रिव्यू : फुल्लू

मासिक धर्म, उससे जुड़ी साफ सफाई और सामाजिक टैबू को दिखाने की कोशिश करती फिल्म ‘फुल्लू’ में निर्देशक अभिषेक सक्सेना कमजोर पटकथा की वजह से अपनी पकड़ से काफी दूर रहे. हालांकि ऐसी फिल्म को बड़े पर्दे पर मनोरंजन और संदेश के साथ दिखाना मुश्किल होता है. ये एक सामाजिक मुद्दा है जो 21वीं सदी में आज भी कई पढ़े-लिखे घरों से लेकर आम जन समाज में विद्यमान है. इसे कितना भी कोई कोशिश कर लें, इस सामाजिक टैबू से अपने आप को निकाल पाना मुश्किल है, क्योंकि जो भी व्यक्ति इस बारे में अपनी खुली विचार रखता है, उसे अभद्र और अश्लीलता की संज्ञा दी जाती है. फिल्म की कहानी कुछ अधूरी लगी.

फुल्लू का सपना ज्योंही पूरा होने वाला था कि फिल्म खत्म हो गयी. फिल्म में अभिनेता शरीब हाश्मी ने काफी अच्छा काम किया है, फुल्लू की भूमिका के लिए उन्होंने मेहनत किया है. अभिनेत्री ज्योति सेठी अपनी भूमिका के अनुसार ठीक जंची. फिल्म में जब-जब उनकी एंट्री हुई फिल्म अच्छी लगी.

कहानी

फुल्लू (शरीब हाश्मी) एक गांव का लड़का है, जो अपनी मां और बहन के साथ रहता है. वह कोई काम-काज नहीं करता, जिससे उसकी मां हमेशा परेशान रहती है और खुद गुदड़ी बेचकर गुजर-बसर करती है. फुल्लू केवल गांव की महिलाओं के लिए फिक्रमंद है और पास के शहर से उनके लिए जरुरत के सामान ला देता है. माहवारी के बारें में अंजान फुल्लू उनके लिए सैनेटरी पैड भी लाता है. जिसे हमेशा काली पन्नी में दुकानदार देता है. उसके इस तरह इधर-उधर घूमने और कुछ काम न करने की वजह से परेशान उसकी मां उसकी शादी ज्योति सेठी से करवा देती है.

शादी के बाद फुल्लू को जब मासिक धर्म के बारे में पता चलता है, तो वह शहर की डॉक्टरनी से इस ‘जनानी रोग’ और साफ सफाई न होने की वजह से होने वाली बीमारी का पता करता है. वह गांव में महिलाओं की सेहत के लिए गांव में खुद सैनिटरी पैड बनाने और सब महिलाओं को कम पैसे में बेचने की बात सोचता है. इस सोच से उसे कई प्रकार की समस्या आती है. इस तरह कहानी अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म के गाने कुछ खास नहीं हैं. कॉमेडी के नाम पर इस फिल्म में कुछ अधिक देखने को नहीं मिला. हालांकि इस फिल्म में एक अच्छा मेसेज है, जो हमारे समाज के लिए जरुरी है. इसलिए इसे एक बार देखा जा सकता है. इस फिल्म को टू एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

इन शोज का रिप्लेसमेंट कहीं नहीं है

सास-बहू, कॉमेडी, रिएलिटी शोज, आजकल हमें घर में रखे ईडियट बॉक्स में कितना कुछ देखने को मिलता है, अब तो आप अपने टीवी पर इंटरनेट भी चला सकते हैं. टीवी भी अब एडवांस हो गया है और तरह-तरह की चीजें दिखाता है, मगर आज भी हम कभी-कभी वो पुराने शोज ढूंढ़ते हैं, जिन्होंने एक जमाने में हमें खूब हंसाया था.

कलाकारों का वो ह्यूमर, कहानी पेश करने का अंदाज, पंच लाइंस सब कुछ कितना फ्रेश और मजेदार लगता था. कुछ टॉप शोज, जिन्हें हर कोई फिर से टीवी पर देखना चाहता है.

1. देख भाई देख

शेखर सुमन, फरीदा जलाल, नवीन निश्चल और ‘देख भाई देख’ शो का हर पात्र आपको अपने तरीके से मनोरंजित करता था. फैमिली कॉमेडी के साथ हर एपिसोड में कुछ नया और बेहतरीन सीखने को भी मिलता था. दीवान फैमिली के इस कॉमेडी शो की क्लिप्स लोग आज भी इंटरनेट पर ढूंढ़ते हैं.

2. ऑफिस-ऑफिस

पंकज कपूर के इस शो में सरकारी विभागों की कामचोरी को लाइट नोट पर दर्शाना गजब का था. हंसी-मजाक में रिश्वत, लापरवाही और आम जनता की परेशानियों को इतनी बेहतरीन तरीके से किसी ने पेश नहीं किया है.

3. हम पांच

5 बेटियां जो छोरों से कम नहीं थीं. फैमिली ड्रामा का एक और धारावाहिक, जिसका हर एक करेक्टर आपको आज भी याद होगा. स्वीटी, जो गाना गाते हुए गेट खोलती थी, काजल जो भाईगीरी में अव्वल थी, महिलाओं के प्रति मोर्चे के लिए हमेशा खड़े रहने वाली मनीषा भी सभी को याद है.

4. तू-तू, मैं-मैं

सास बहू के झगड़ों को आप आज भी देखते होंगे. लेकिन, वो दौर कुछ और था जब इस झगड़े को लोग ‘तू-तू, मैं-मैं’ कहते थे. रीमा लागू और सुप्रिया पिलगांवकर के सास-बहू के झगड़े ने तकरीबन 6 सालों तक लोगों को हंसाया.

5. श्रीमान-श्रीमती

ये शो तो, मानो खत्म ही नहीं होना चाहिए था. शेखर, दिलरुबा, कोकिला और प्रेमा शालिनी की मजेदार केमिस्ट्री आज के सीरियल्स में कहां.

आपने देखा ‘बद्री की दुल्हनिया’ पर ये वायरल डांस वीडियो

इसी साल रिलीज हुई वरुण धवन और आलिया भट्ट की फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के वैसे तो लगभग गाने काफी पॉपुलर हुए, लेकिन इसके टाइटल सॉन्ग को दर्शकों ने बेहद पसंद किया.

इसमें कोई शक नहीं कि ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के टाइटल सॉन्ग ने खूब वाहवाही बटोरी है. इतना ही नहीं इस गाने का क्रेज इतना ज्‍यादा युवाओं में बढ़ गया कि कइयों ने तो इस गाने के डांस स्‍टेप को फॉलो करके अपने डांस का वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया.

इन दिनों इंटरनेट पर ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ पर कुछ लड़कियों द्वारा किए डांस का वीडियो काफी वायरल हो रहा है

इसी क्रम में हम आज आपको एक ऐसा ही वीडियो दिखाने जा रहे हैं, जिसे कासा डे डांस (casa de dance) नाम के एक यू-ट्यूब चैनल ने अपलोड किया है. बता दें, इस वीडियो में कुल 6 लड़कियों ने जबरदस्त डांस किया है और यह वीडियो इंटरनेट पर काफी वायरल भी हो रही है.

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इन लड़कियों ने आलिया से भी दमदार परफॉर्मेंस किया है. इस वीडियो में परफॉर्म कर रही लड़कियों के डांस के मूव्‍स ऐसे हैं, जो आपका दिल जीत लेंगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें