सुंदर पिचाई : दिग्गज सीईओ

देश में तेजी से बढ़ती डिजिटलीकरण की प्रक्रिया उन लोगों के उल्लेख के बगैर अधूरी है जिन्होंने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में भारत के डिजिटल चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई है. इन्हीं में से एक नाम है पी सुंदरराजन का जिन्हें प्यार से सुंदर पिचाई कहा जाता है. इस समय वे इंटरनैट कंपनी गूगल के सीईओ हैं. बेशक आज सुंदर पिचाई कैरियर की बेहतरीन ऊंचाई पर हैं पर उन के जीवन की कहानी किसी ऐसे पढ़ेलिखे किशोर से अलग नहीं है जिस की आंखों में परिवार, समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक सपना होता है.

जनवरी, 2017 में जब वे भारत दौरे पर थे तो उस दौरान वे आईआईटी खड़गपुर भी गए थे, जहां कभी उन्होंने पढ़ाई की थी. वहां के छात्रों से उन्होंने कई अनुभव साझा किए और अपनी कालेज लाइफ के दिलचस्प किस्से उन्हें बताए. उन्होंने बताया कि एक समय था जब उन के घर में न टीवी था, न कार और न ही टैलीफोन.

तकनीक से उन का परिचय पहली बार 1984 में लैंडलाइन फोन से हुआ था, जो उन के घर पर लगाया गया था. तब सुंदर महज 12 साल के थे लेकिन उस टैलीफोन की बदौलत उन्हें दर्जनों लोगों के टैलीफोन नंबर मुंहजबानी याद हो गए थे. इस से उन्हें तकनीक को ले कर अपने लगाव का भी पता चला था. हालांकि इस में उन के पिता का भी योगदान है जो चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) स्थित एक ब्रिटिश कंपनी जीईसी में इंजीनियर थे.

सुंदर का परिवार 2 कमरे के मकान में रहता था और उस में सुंदर की पढ़ाई के लिए अलग से कोई कमरा नहीं था. वे ड्राइंगरूम के फर्श पर अपने छोटे भाई के साथ सोते थे, पर इन अभावों के बावजूद सुंदर सिर्फ 17 साल की उम्र में आईआईटी की परीक्षा पास कर आईआईटी, खड़गपुर में दाखिला पाने में सफल रहे. वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई (1989-93) पूरी करने के दौरान हर बैच में सुंदर टौपर रहे.

1993 में फाइनल परीक्षा में अपने बैच में टौप करने के साथ ही उन्होंने सिल्वर मैडल हासिल किया. उस के बाद स्कौलरशिप पर आगे की पढ़ाई के लिए वे 1995 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए.

स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गैस्ट रहते हुए पैसे बचाने के लिए उन्होंने कई पुरानी चीजें इस्तेमाल कीं, लेकिन पढ़ाई से समझौता नहीं किया. स्टैनफोर्ड में सुंदर पीएचडी करना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो न सका. इसी बीच उन्होंने अमेरिका की सिलीकौन वैली में सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी अप्लाइड मैटीरियल में बतौर इंजीनियर और प्रोडक्ट मैनेजर  काम शुरू कर दिया, लेकिन उन्हें यह नौकरी पसंद नहीं आई, इसलिए उसे बीच में छोड़ कर व्हार्टन स्कूल औफ द यूनिवर्सिटी औफ पेंसिलवेनिया एमबीए करने चले गए. व्हार्टन में पिचाई को साइबर स्कौलर और पामर स्कौलर उपाधियों से सम्मानित किया गया. एमबीए करते ही वे मैंकिजी ऐंड कंपनी में प्रबंध सलाहकार चुन लिए गए.

सफर गूगल का

सुंदर 1 अप्रैल, 2004 को गूगल में आए. यहां उन का पहला प्रोजैक्ट प्रोडक्ट मैनेजमैंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्च टूलबार को बेहतर बना कर दूसरे ब्राउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था. इस के बाद उन्होंने गूगल गीयर, गूगल पैक जैसे उत्पाद बनाए.

गूगल टूलबार पर काम करते हुए ही सुंदर को यह आइडिया आया था कि गूगल का अपना ब्राउजर होना चाहिए. ब्राउजर असल में इंटरनैट चलाने वाले माध्यम होते हैं जैसे इंटरनैट ऐक्सप्लोरर, फायर फौक्स, मोजिला आदि. हालांकि उस समय गूगल के सीईओ एरिक श्मिट को यह आइडिया पसंद नहीं आया, क्योंकि उन्हें यह एक महंगा काम लगा. लेकिन बाद में सुंदर ने गूगल के सहसंस्थापक लैरी पेज और सरगेई ब्रिन को गूगल का अपना वैब ब्राउजर बनाने के लिए राजी कर लिया.

वर्ष 2008 में गूगल क्रोम के नाम से यह ब्राउजर बन कर दुनिया के सामने आया और इंटरनैट की दुनिया में छा गया. आज सब से ज्यादा इसी का इस्तेमाल होता है.

सुंदर के इस योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2008 में पहले वाइस प्रैसिडैंट बनाया गया, उस के बाद 2012 में वे सीनियर वाइस प्रैसिडैंट (क्रोम और ऐप्स) बनाए गए. वर्ष 2013 में पिचाईर् को गूगल में ऐंड्रौयड शाखा का मुखिया बनाया गया, जबकि 2014 में उन्हें प्रोडैक्ट चीफ घोषित किया गया.

वर्ष 2015 में जब गूगल ने एक और कंपनी अल्फाबेट बनाई तो कामकाज के बढ़ते दायरे को संभालने के लिए 10 अगस्त को सुंदर पिचाई कंपनी के सीआईओ बना दिए गए. गूगल का सीईओ बनने से पहले माइक्रोसौफ्ट के सीआईओ बनने की रेस में भी पिचाई का नाम शामिल था, लेकिन बाद में उन की जगह सत्य नडेला को चुना गया. बीच में ट्विटर ने भी उन को अपने पाले में करने का प्रयास किया था, लेकिन जानकारों के मुताबिक, गूगल ने 10 से 50 मिलियन डौलर का बोनस दे कर उन को कंपनी में बने रहने पर सहमत कर लिया.

नहीं भूलेंगे वे दिन

खुद पिचाई को अपनी किशोरावस्था और जवानी के दिनों की यादें सम्मोहित करती हैं. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों से उन का नाता कभी नहीं टूटता और वे जबतब इंटरनैट के जरिए उन से अपने जीवन और कैरियर की बातें साझा करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि चेन्नई में स्कूली पढ़ाई के दौरान उन्हें क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था. हाईस्कूल क्रिकेट टीम में कप्तानी करते हुए सुंदर ने तमिलनाडु राज्य का क्षेत्रीय टूरनामैंट जीता था.

अपनी तेज याद्दाश्त के कारण भी पिचाई जाने जाते हैं. करीबी लोग उन से 1984 के दौर से भूले हुए टैलीफोन नंबर पूछते हैं, जो बता कर सुंदर उन्हें अचंभित कर देते हैं.

हां, मैं ने भी बंक मारा

आईआईटी खड़गपुर के छात्रों को सुंदर अपने कालेज जीवन की कई ऐसी बातें भी बता चुके हैं जिन के बारे में सुन कर विश्वास नहीं होता. जैसे, एक बार उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया कि छात्र जीवन में उन्होंने कई बार कालेज की कक्षाओं से बंक मारा. अकसर सुबह की क्लास में से वे गायब हो जाते थे.

सुंदर कहते हैं कि कालेज में पढ़ाई के दौरान ऐसा करना सही लगता था, लेकिन जीवन में कुछ बनना है. इस ध्येय को सामने रखते हुए उन्होंने मेहनत में कोई कमी नहीं आने दी. सुंदर को हिंदी नहीं आती थी, लेकिन स्कूल में हिंदी के बारे में जो कुछ सीखा था, उस से काम चलाने की कोशिश की, जिस में एकाध बार कुछ गड़बड़ी भी हो गई. जैसे, कालेज में अगर साथी छात्र मजे में एकदूसरे को बुलाने के लिए ‘अबे…’ कह कर गाली देते थे, तो सुंदर को लगता था कि यह एक तरह का संबोधन है.

एक बार खुद सुंदर ने इस का इस्तेमाल किया. एक बार कालेज मेस में अपने जानकार को जाते हुए देखा, तो उसे बुलाने के लिए आवाज लगाई ‘अबे…’ बाद में उन्हें पता चला कि यह तो गाली है. इस से वहां बैठे लोग बुरा मान गए और कुछ देर के लिए मैस बंद कर दिया गया.

कालेज मेस में खाने को ले कर सुंदर से जो मजेदार सवालजवाब किए जाते थे, उन में से खुद सुंदर को एक काफी पसंद आता था. यारदोस्त वहां अकसर सुंदर से पूछते थे. ‘बताओ, यह दाल है या सांबर,’ सुंदर कभी इस का सही उत्तर नहीं दे पाते थे.

आसान नहीं था गर्लफ्रैंड से मिलना

सुंदर पिचाई अपनी पत्नी यानी अंजलि से आईआईटी खड़गपुर में ही मिले थे. अंजलि वहीं की छात्रा थीं, पर अंजलि से मिलना आसान नहीं था. तब घर पर कंप्यूटर नहीं था और स्मार्टफोन भी नहीं होते थे. अंजलि आईआईटी के गर्ल्स होस्टल में रहती थी, लेकिन उस से मिलने के लिए होस्टल में जा कर वहां तैनात कर्मचारी से मिन्नतें करनी पड़ती थीं.

वह कर्मचारी तेज आवाज में पुकारता था, ‘अंजलि, आप से मिलने सुंदर आया है.’

यह आवाज सुन कर हरकोई जान जाता था कि कौन किस से मिलने आया है. उस समय इस से बड़ी झिझक होती थी. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों को यह किस्सा सुनाते हुए सुंदर ने कहा था कि आज के मोबाइल युग में किसी से दिल की बात कहना कितना आसान हो गया है.

जीवन और कैरियर में सफलता को ले कर भी सुंदर पिचाई का नजरिया बहुत स्पष्ट है. उन का कहना है कि हो सकता है आप कभीकभी फेल भी हो जाएं, पर इस से घबराना नहीं चाहिए. इस के लिए वे खुद गूगल के सहसंस्थापक लैरी पेज का विचार सामने रखते हैं, जो कहा करते हैं कि आप को बड़े काम करने का लक्ष्य रखना चाहिए. ऐसे में यदि आप कभी नाकाम भी हो गए, तो आप कुछ ढंग का सृजित कर पाएंगे जिस से आप काफी कुछ सीखेंगे.

तोलें, फिर बोलें

वाणी एक माध्यम है जो विचारों का आदानप्रदान करने में सहायक है परंतु कभी-कभार यह भी हो जाता है :

रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगे सरग पाताल,

आपु तो कहि भीतर रही जूती सहत कपाल.

यानी उच्चारण कितना हो, ज्यादा क्या है और कम क्या? जितना हम साबित कर सकें या जिस को निभा पाएं उतना ही कहें. शब्दों को यहांवहां कहना ठीक होगा या नहीं. यह बात विचारणीय है, क्योंकि आज के दौर में जनमानस में एक बात गहरे बैठ गई है :

जो इधरउधर की बकता है,

वही तो उत्तम से उत्तम वक्ता है.

सही बात, सही समय पर कहना, सही व्यक्ति से कहना और सही वक्त पर कहना, यही वे खास बिंदु हैं जिन पर अमल कर के वाक कला को विकसित व पल्लवित किया जा सकता है अन्यथा समाज से तिरस्कृत होने में देर नहीं लगती. यह भी सच है कि जिसे अपने भावों को सही तरीके से व्यक्त करना नहीं आता वह किसी काम का नहीं रह जाता.

गूंगे के गुड़ वाली बात भी बहुत महत्त्व रखती है कि अगर अच्छी बात भी सब से नहीं बांटी तो एक अच्छा अनुभव अनसुना, अनसमझा व अनबूझा ही रह जाएगा. यह भी गलत ही होगा. एक बड़ी खूबसूरत कहावत भी तो है न:

जबान शीरीं, मुल्क गीरीं,

जबान टेढ़ी, मुल्क बांका.

यानी कायदे से बोलना इतना फायदेमंद है कि सभी वश में हो जाते हैं. महाभारत की कथाओं में शिशुपाल का प्रसंग भी तो हमें यही समझाता है न कि शिशुपाल के वश में उस के शब्द थे ही नहीं. सहने की भी एक सीमा होती है, आखिरकार इस कड़वी वाणी और अंडबंड शब्दावली के चलते ही शिशुपाल को जान से हाथ धोना पड़ा. कहने का तात्पर्य यह है कि बोलना किसी कला से कम नहीं है. बात को रुई सा मुलायम और कोमल ही रहने देना चाहिए. रूखापन लाने से सभी का नुकसान होता है :

बातहि हाथ पाइए,

बातहि हाथी पांव.

जो बात करने की कला जानता है वह सबकुछ पा लेता है, जो यह कला नहीं जानता वह गलत बोलने के फलस्वरूप दंडित भी हो जाता है. दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि मूर्ख ही होगा वह व्यक्ति जो बोलने से पहले तोलता न हो.

बॉक्स ऑफिस पर अक्षय व शाहरुख की भिड़ंत

कुछ दिन पहले जब शाहरुख खान के खास मित्र करण जौहर ने सलमान खान के साथ मिलकर एक फिल्म के निर्माण की घोषणा की थी और उस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के लिए अक्षय कुमार को अनुबंधित किया, तो लगा था कि फिल्म उद्योग में समीकरण तेजी से बदल चुके हैं. मगर अब एक नई कहानी उभर कर आयी है, जो कि समझ से परे है.

जी हां! अब अक्षय कुमार ने बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख खान को टक्कर देने का मन बना लिया है. इम्तियाज अली निर्देशित फिल्म ‘‘द रिंग’’, जिसका नाम बदल सकता है, 11 अगस्त 2017 को प्रदर्शित होने वाली है. इस फिल्म में शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा की जोड़ी है. मगर अब अक्षय कुमार ने ऐलान किया है कि उनकी फिल्म ‘‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’’ को वह 11 अगस्त 2017 को ही प्रदर्शित करेंगे यानी कि अब बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख खान और अक्षय कुमार की टक्कर होगी. अक्षय कुमार के इस ऐलान के बाद लोगों को शाहरुख खान की ‘रईस’ और रितिक रोशन की फिल्म ‘काबिल’ के टकराव की याद सताने लगी है.

बहरहाल, अक्षय कुमार और शाहरुख खान के बॉक्स ऑफिस पर टकराने की वजहें पता नहीं चल रही है. मगर लोग आश्चर्य चकित जरुर हैं. लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि अब कौन सा नया समीकरण बन रहा है.

वैसे अक्षय कुमार और शाहरुख खान की फिल्में 2004 में बॉक्स ऑफिस पर टकरा चुकी हैं. 2004 में यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘वीरजारा’ जिसमें शाहरुख खान थे, के साथ ही अब्बास मस्तान निर्देशित फिल्म ‘एतराज’, जिसमें अक्षय कुमार थे, एक ही दिन प्रदर्शित हुई थी. उस वक्त ‘वीरजारा’ ने 19 करोड़ और ‘एतराज’ ने सात करोड़ कमाए थे. लेकिन 2004 से 2017 के बीच बहुत कुछ बदल चुका है.

फिलहाल बॉक्स ऑफिस के हालात अक्षय कुमार के पक्ष में नजर आ रहे हैं. लोग कहने लगे हैं कि अक्षय कुमार जिस पर हाथ रख देते हैं, वह सोना बन जाता है. अक्षय कुमार की छोटे बजट की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा खासा धन कमाया है. 2016 में अक्षय कुमार ने कई सफल फिल्में दी.

अब 2017 में भी ‘नाम शबाना’ व ‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’ सहित उनकी कई बेहतरीन फिल्में आने वाली हैं. जबकि शाहरुख खान की कई फिल्में लगातार असफल होकर उन्हे हाशिए पर ढकेल चुकी हैं. मगर 2016 में उनकी फिल्म ‘‘रईस’’ से उन्हें थोड़ी सी राहत मिली.

ऐसे में अब यदि अक्षय कुमार और शाहरुख खान की फिल्में 11 अगस्त को आपस में टकराएंगी, तो कितना-कितना नुकसान होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. मगर जिस तरह के हालात अभी हैं, उनसे तो लगता है कि अक्षय कुमार ने किसी खुन्नस के ही चलते शाहरुख खान को झटका देने के मकसद से ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ को 11 अगस्त को प्रदर्शित करने का ऐलान किया है. 11 अगस्त को समय है, देखना पड़ेगा कि इस बीच दोनों में से कोई पीछे हटता है या…

शोएब के डोले शोले पर फिदा दीपिका

अभिनेत्री दीपिका कक्कड़ अपने साथी शोएब इब्राहिम के डोले शोले की तारीफ करने का कोई मौका चूक नहीं रही थी. दीपिका ने कहा कि शोएब के डोले देख कर सोचिए कि डांस के दौरान कैसे मैंने उसे लिट किया होगा. दीपिका ने कहा कि हम दोनो ही ट्रेन्ड डांसर नहीं है. डांस शो ‘नच बलियें‘ में काम करने के लिये हम तैयार हो गये क्योकि इस बार की थीम बहुत खास थी. ‘रोमांस वाला डांस‘ दिखाना किसी चुनौती से कम नहीं है. हमारे लिये अच्छा यह है कि हमें बहुत दिन बाद एक साथ काम करने का मौका मिला रहा है. स्टार प्लस के डांस शो ‘नच बलिए‘ की बातचीत करते दीपिका खुल कर हंस रही थी शोएब के साथ मस्ती का कोई मौका चूक नहीं रही थीं, वहीं शोएब उनका साथ दे रहे थे.

दीपिका की पहचान टीवी सीरियल देवी, अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो और ससुराल सिमर का से बनी. दीपिका की सबसे पहचान ससुराल सिमर का की ‘सिमर’ को जाता है. अब दीपिका अपने साथी शोएब के साथ ‘नच बलिए’ में है. वे पहली बार रियल्टी शो कर रही हैं. दीपिका का कहना है कि मुझे एक्टिंग बहुत पंसद है और मैं टीवी सीरियल से खुश हॅू. अपने और शोएब के रिश्तों को लेकर वे कहती हैं हम एक दूसरे के साथ पूरी ईमानदारी से है. यही हमारे रिश्ते की मजबूती है.

‘नच बलिये‘ के सीजन 8 में 10 सेलेबे्रेटी जोडियां आ रही है. इनमें दिव्यांका-विवेक, भारती सिह-हर्ष, सनाया-माहित, प्रीतम-अमनजीत, सिद्वार्थ-तप्ती, उत्कर्षा-मनोज, सोनम-एबीगैंल, अश्क- ब्रेण्ट गॉबल, मोनालिसा अंतरा-विक्रांत सिंह और दीपिका – शोएब हैं. सोनाक्षी सिन्हा, टेरेंस लेविस और मोहित सूरी इस शो के जज हैं. दीपिका कहती हैं कि शो में दर्शको को डांस और रोमांस दोनो देखने को मिलेगा.

फ्लॉप बॉलीवुड एक्टर्स जो बन गए सफल निर्देशक!

वो कहते हैं न कि अगर एक दरवाजा बंद होता है तो सौ खुल भी जाते हैं, बिल्कुल सही कहते हैं. हम बॉलीवुड के ऐसे ही कलाकारों की बात कर रहे हैं. कई बार अगर कोई अभिनेता या अभिनेत्री चल नहीं पाते तब उसके बाद भी उनके पास विकल्प की कमी नहीं होती है.

अक्सर वे प्रोडक्शन में चले जाते हैं और कई बार डायरेक्शन या निर्देशन भी ऐसे कलाकारों के लिए एक विकल्प बनकर उभरता है. ऐसे कई सितारे भी हैं बॉलीवुड में, जिन्होंने एक्टिंग करियर ना चल पाने के बाद डायरेक्शन में हाथ आजमाया और सफल हो गए.

ऐसे ही कुछ चुनिंदा नामों को हम आपके लिए लेकर आये हैं:

पूजा भट्ट : 15 से ज्यादा हिन्दी फिल्मों और कुछ तमिल और तैलुगु फिल्मों में काम करने के बाद, अभिनेत्री पूजा भट्ट ने अभिनय से दूरी बनाकर निर्देशन की ओर रुख कर लिया. अभिनेत्री होकर कुछ खास हुनर न दिखा सकने वाली पूजा, एक निर्देशक के तौर पर काफी सफल रहीं.

जुगल हंसराज : मोहब्बते जैसी सफल फिल्म में अभिनय करने वाले अभिनेता जुगल हंसराज बचपन से अभिनय के क्षेत्र मं कान कर रहे थे. अपने फिल्मी करियर में सफलता न पाकर, जुगल ने निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजनाने के बारे में सोचा.

निर्देशन करियर में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धी है कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (एनीमेशन) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (2008) प्राप्त हुआ है.

अरबाज खान : पेशे से तो अभिनेता ही कहे जाने वाले अरबाज खान ने अब अभिनय के साथ-साथ प्रोडक्शन और निर्देशन की तरफ भी रुख किया है. बतौर निर्देशक अरबाज खान ने दबंग जैसी सफल फिल्में दी हैं.

आशुतोष गोवारिकर : बतौर अभिनेता आशुतोष ने टेलीवीजन जगत के कई शोज और कई फिल्मों में काम किया है. एक निर्देशक के तौर पर वे लगान जैसी कई सफल फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं.

सुभाष घई : साल 1969 में आई सुपर हिट फिल्म अराधना में बतौर सहायक अभिनेता काम करने वाले सुभाष घई अभिनय कुछ खास नहीं कर सके और उन्होंने भी निर्देशन का रास्ता पकड़ लिया और काफी सफलता भी पाई.

अभिषेक कपूर : काई पो चे फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला है. अभिषेक को साल 1996 में आई फिल्म ‘उफ्फ ये मोहब्बत’ के लिए बतौर अभिनेता याद किया जाता है.

राकेश रोशन : 25 से भी ज्यादा फिल्मों में बतौर अभिनेता अभिनय करने वाला राकेश रोशन, अपनी अभिनय की राह छोड़ कर निर्देशन की राह में आगे बढ़ गए और निर्देशन करते हुए उन्होंने कई सफल फिल्में दी हैं.

स्वाद नहीं सेहत भी बनाते हैं मसाले

भारत को तो हमेशा से ही मसालों का देश कहा जाता है. यहां खाने में बहुतायत से प्रयोग होने वाले मसाले जैसे कि काली मिर्च, धनिया, लौंग, दालचीनी, गरम मसाला महज हमारे खाने को सुगंधित और लजीज ही नहीं बनाते बल्कि ये हमार सेहत को भी दुरुस्त रखते हैं.
आज हम आपको बताएंगे कि स्वाद के साथ-साथ खाने को जायकेदार बनाने वाले मसाले किस तरह आपको सेहतमंद बनाते हैं. जानिए मसालों के फायदे के बारे में..

मसाले बेहतर क्यों हैं? 
क्या आप ये बात जानते हैं कि प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए मसाले केवल खाने को ही स्वादिष्ट नहीं बनाते बल्कि स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं. अगर हम लाल मिर्च को छोड़ दें, तो बाकी सभी मसालों में एंटी-आक्सीडेंट्स और कैंसररोधी तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

इन मसालों के ये हैं बड़े-बड़े गुण..
इलायची : भारत समेत दुनिया भर में, खाने में इलायची का इस्तेमाल किया जाता है. इलायची में पाया जाने वाला तेल आपके पाचन को बेहतर बनाए रखने में मददगार होता है.

दालचीनी : खाने में मसाले के अलावा दालचीनी का उपयोग टूथपेस्ट, माउथवाश और च्वुइंगम में भी होता है. दालचीनी में पाए जाने वाले यूजेनॉल और सिनेमेल्डीहाइड किसी दर्द निवारक की तरह काम करते हैं. दालचीनी शरीर में खून के बहाव और थक्का जमने की प्रक्रिया को ठीक रखती है और आपके शरीर से जलन को दूर करती है. इसके अलावा दालचीनी का खास उपयोग डायबिटीज के मरीजों के लिए किया जाता है, क्योंकि मधुमेह के इलाज में भी दालचीनी कारगर है.

हल्दी : खाने में मसाले की तरह डाली जाने वाली हल्दी हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है. हल्दी सर्दी जुकाम दूर करती है. इसमें कैंसर प्रतिरोधक गुण पाए जाते हैं. हल्दी आपके शरीर के खून को साफ करती है और आपको भरपूर ऊर्जा प्रदान करती है.

लौंग : आमतौर पर खाने को सुगंधित बनाने के लिए लौंग का इस्तेमाल होता है. ये तो आप जानते ही हैं कि दांत का दर्द दूर करने में लौंग के तेल को एक अच्छा इलाज माना जाता है. इसके अलावा लौंग में पाया जाने वाला यूजेनाल जलन व आर्थराइटिस (जोड़ों की बीमारी) के दर्द से निजात दिलाता है.

जीरा : दाल बघारने या चावल फ्राई करने में इस्तेमाल होने वाला जीरा पाचन ठीक रखने के साथ-साथ सूजन दूर करने में भी मददगार साबित होता है. आपके शरीर से अशुद्ध खून साफ रखने में भी जीरा अहम भूमिका निभाता है.

आप भी चाहती हैं हेयर कलर तो…

यदि, लेकिन आप ब्यूटी पार्लर जाने के बजाय घर पर स्वयं ही बाल रंगना चाहती हैं तो आपको ध्यान रखना चाहिए कि आपके बालों का कलर आपकी उम्र, व्यवसाय और जीवनशैली से भी मेल खाता हो. और हां! ये बात भी ध्यान में रखिएगा कि आपके बालों में कलर तभी फबेगा जब आप उसे अपनी त्वचा को ध्यान में रख कर लगाएंगी.

यहां आज हम आपको बता रहें हैं कि आप अपने बालों को कैसे कलर करें :

रंगों के शेड्स को मिलाकर लगाएं

1. यदि आप अपने बालों में चमक चाहती हैं तो दो तरह के शेड्स को मिलाकर लगाएं यानि कि अपने बेस कलर के साथ हाई लाइट या लो लाइट रंग का मेल करें.

2. क्या आप जानते हैं कि, आपके बालों पर फेस फ्रेमिंग हाई लाइटर वास्तव में आपके चेहरे की त्वचा पर रंगत ला देते हैं और ये आपको बालों को ट्रेंडी लुक देते हैं.

3. आप चाहें तो बालों की सबसे ऊपर वाली परत के नीचे-नीचे गहरा लो लाइट रंग कर के आप अपने बालों को भी घना बना सकती हैं.

हाई लाइट करें

1. बालों में इन्हें स्ट्रिक्स कहा जाता है. अपने बालों में कलर करते वक्त आपको बस कुछ खास बातों का ध्यान रखना होता है. बेस कलर या एक या दो टोन हल्का शेड, आपको अपने मध्यम भूरे और गहरे भूरे बालों के लिए ही चुनना चाहिए.

2. अब बालों के लाइट ब्राउन लुक के लिए अपने चेहरे के इर्द-गिर्द बालों की पहली परत के आधे इंच को 5 से 8 भागों में बाट लें औऱ इन्हें फाइल में लपेट कर पिन लगा लें. बाकी बचे बालों पर बेस कलर लगाएं. फिर इसके बाद एक-एक कट के हर भाग पर हल्का रंग कर दें.

लो लाइट बालों के लिए

1. अगर आपके बालों का रंग हल्का है तो आप पर बालों का रंग बालों आपका लुक ही चेंज कर देता है.

2. आप सबसे पहले अपने सारे बालों पर बेस कलर लगा कर, अब बालों की ऊपरी परत पर पिन लगा लें और निचली परत को 1 इंच के 5 से 8 भागों में बांट दें और इन पर गहरा रंग लगा लें. ऐसे रंग करने के बाद आप खुद को एक प्रोफैशनल लुक में पाएंगी.

इस तरह लगाएं कलर

1. बालों की जड़ें : सिरों की तुलना में बालों की जड़ें प्राकृतिक रूप में ज्यादा गहरे रंग की होती हैं. इसलिए उनकी ओर ज्यादा ध्यान दें. जड़ों की ओर से रंग लगाना शुरू करें और बीच की लंबाई तक जाएं. रंग लगाने के कुछ देर बाद बालों में कंघी करें ताकि बाकी के बालों पर प्राकृतिक शेड आए. अखिर में साफ पानी से सिर धो लें. एक बात ध्यान रखें कि रंग लगाने के 24 घंटे बाद ही शैंपू करें .

2. कलर से चमक लाएं : कलर चमकदार लगे, इसके लिए बालों पर प्री-कलर हेयर थेरेपी करवाएं और बाल रंगने से 2 दिन पहले हेयर स्पा ट्रीटमेंट जरूर लें. इस से आपके बाल नरम रहेंगे और क्षतिग्रस्त भी नहीं होंगे.

कलर्ड वाले बालों की देखभाल

1. बालों में शैंपू : आपको अपने रंगीन बालों के लिए तैयार किये विशेष तरह के शैंपू को ही चुनना चाहिए, ताकि आपके बाल खराब न हों. ये विशेष तरह के शैम्पू, आपके बालों को ज्यादा नमी देने वाले होते हैं .

2. बालों में कंडीशनर : कलर्ड बालों के लिए बने विशेष तरह के कंडीशनर ही उपयोग में लें. इनमें सिलिकॉन कंपाउंड ज्यादा होते हैं, जोकि आपके बालों को सुरक्षित रखते हैं .

3. मास्क लगाएं : सप्ताह में एक बार डीप कंडीशनिंग ट्रीटमेंट भी लें और विटामिन बी-5 वाला हेयर मास्क लगाएं.

अद्भुत खजाना : ड्रमहैलर

कनाडा के एल्बर्टा प्रदेश की राजधानी एडमन्टन के दक्षिणपूर्व की ओर 300 किलोमीटर की दूरी पर ड्रमहैलर नामक एक प्रसिद्ध स्थान है. कनाडा के बैडलैंड इलाके में वर्ष 1913 में एक बहुत छोटे गांव के रूप में बसने के बाद इसे वहीं के एक व्यक्ति सैमुअल ड्रमहैलर के नाम से जाना जाने लगा. उसी समय इस गांव के समीप कोयले का विशाल भंडार पाए जाने से वह स्थान कनाडा के सब से तेजी से विकसित स्थान में परिवर्तित हो गया.

केवल 17 वर्षों के अल्पकाल में वर्ष 1930 तक यह गांव पूरे पश्चिमी संसार का सब से तेजी से विकसित हो कर एक अत्यंत सुंदर शहर में परिवर्तित होने वाला केवल कनाडा का ही नहीं, बल्कि विश्व का एक ज्वलंत उदाहरण बन गया. दरअसल, जैसे ही कोयला भंडार पाए जाने की खबर कनाडा के साथ अमेरिका तथा यूरोप में पहुंची, वहां उथलपुथल सी मच गई, विशेषकर उन देशों की कोलमाइंस की कंपनियों में. एल्बर्टा प्रदेश बेहद ठंडा होने के कारण कोयला वहां के घरों को गरम रखने तथा भोजन आदि बनाने के लिए एक प्राकृतिक देन थी. कोल भंडार की विशालता को देखते हुए तमाम देशों से आ कर 139 माइंस कंपनियां रजिस्टर्ड हो गईं और सभी ने कार्य प्रारंभ कर दिया.

हजारों की संख्या में यूरोप, अमेरिका आदि से इन कंपनियों में काम करने वाले ड्रमहैलर पहुंच गए. उन के रहने के लिए बहुत से मकान आदि बनाए जाने लगे. इधर अच्छी बात यह हुई कि उस स्थान से निकलने वाला कोयला, मकानों में जलाने के दृष्टिकोण से बहुत उत्तम क्वालिटी का था. कनाडा सरकार ने बिना समय नष्ट किए ड्रमहैलर से, समीप के पूर्ण विकसित शहर कैलगरी तक 1913 में ही रेल लाइन बिछा दी ताकि कोयला ढोने तथा वितरण में आसानी हो जाए.

कहते हैं कि उस समय ड्रमहैलर में यूरोप की 20-25 भाषाओं को बोलने वाले व्यक्ति रहते थे जो वहां की माइंस के कर्मचारी थे. अगले 50 वर्षों तक बहुत बड़ी मात्रा में वहां की माइंस द्वारा कोयला निकाला जाता रहा. रिकौर्ड्स के अनुसार 60 मिलियन टन कोयला ड्रमहैलर से बाहर भेजा गया. यही समय था कि माइंस में कोयला समाप्त होने लगा था. यह वर्ष 1979 का समय था कि कोयले के भंडार कम होते ही उस स्थान पर तेल तथा गैस के विशाल भंडार मिल गए. इस समय तक वहां के आसपास खेती के साथ टूरिज्म का भी तेजी से विकास हो गया था. सो, खानों को बंद कर दिया गया जो अब टूरिस्टों के देखने का केंद्र बन गई हैं.

गैस तथा तेल के निकलते ही कनाडा के उस बेहद ठंडे प्रांत में, जो संसार के उत्तरी धु्रव के बहुत पास होने से बहुत ठंडा, विशेषकर जाड़ों के मौसम में, जबकि इस प्रदेश में अकसर बर्फीले तूफान आते एवं हिमपात होता है, गैस के मिल जाने से वहां के मकानों को कोयला जला कर गरम करने के स्थान पर अब वैज्ञानिक तरीकों से गैस द्वारा सैंट्रली हीटेड बना कर इच्छानुसार तापक्रम पर रखा जा सकता है जो सुविधाजनक हो गया.

साथ ही, अब इस भाग के मकानों में एक भाग अंडरग्राउंड भी बनाने के प्रावधान होने लगे ताकि यदि कभी बड़े भयंकर तूफान आने से मकान के ऊपरी भागों के नष्ट होने की संभावना हो तो अंडरग्राउंड वाले भाग में जा कर सुरक्षित रहा जा सकता है. मौसम के क्षेत्र में यहां के विश्वविद्यालयों में कमाल के अनुसंधान हुए हैं जिन के कारण मौसम विभाग में बहुत से ऐसे वैज्ञानिक यंत्र लग गए हैं जिन की भविष्यवाणियों में आश्चर्यजनक परिवर्तन आए हैं जो सत्यता के अत्यंत समीप हैं. लगातार मौसम की भविष्यवाणियां टैलीविजनों, इंटरनैट, मोबाइल फोनों पर आती रहती हैं ताकि नागरिक उसी के अनुसार सतर्कता बरत सकें.

यह अच्छी बात है कि मेरा बड़ा पुत्र संजय अपनी फैमिली के साथ एल्बर्टा प्रदेश की राजधानी एडमन्टन में रहता है. भारत एवं कनाडा का दोहरा नागरिक है. मैं गरमी में अकसर उस के पास कनाडा आता जाता रहता हूं. हम सब इन्हीं दिनों कनाडा के दर्शनीय स्थलों को देखने जाते हैं. हम लोगों ने डायनासौर के प्राचीन गढ़ ड्रमहैलर को देखने जाने का प्रोग्राम बनाया. मौसम विभाग की इस भविष्यवाणी के आधार पर कि सुबह से शाम 6 बजे तक ड्रमहैलर का मौसम सामान्य रहेगा तथा शाम 6 बजे से मौसम खराब होने के साथ तेज बारिश होने की संभावना है, सुबह 8.30 बजे घर से चल कर ठीक 3 घंटे में ड्राइव कर रास्ते के बसंती वातावरण का आनंद लेते हुए हम लोग 11.30 बजे ड्रमहैलर के सुंदर टाउन में पहुंच गए. कहीं कोई भीड़ नहीं थी. वातावरण शांत था.

इस स्थान का नक्शा हम ने यहां आने से पहले ही इंटरनैट द्वारा निकाल लिया था तथा उसी के अनुसार हम टाउन के मध्य में बने एक अत्यंत सुंदर पार्क में पहुंच गए जहां डायनासौर की एक बहुत विशाल स्टेच्यू ने हमारा स्वागत किया. पता चला कि मानव निर्मित यह स्टेच्यू डायनासौर की सब से विशाल प्रतिमा थी. हम सब उसे देख कर दंग रह गए. उस की ऊंचाई 86 फुट तथा वजन 1,45,000 पाउंड्स था जिसे ज्यादातर स्टील द्वारा बनाया गया था तथा इस पर लगे पेंट्स इस का प्राकृतिक रूप देते हैं. इस विशाल मूर्ति के पास ही विजिटर्स इन्फौरमेशन के लिए अत्यंत सुंदर इमारत थी. इसी इमारत के एक ओर से एक जीना बना था जिस के द्वारा इस विशाल मगर अंदर से खोखले डायनासौर के खुले जबड़ों तक जाया जा सकता था, जहां से खड़े हो कर संपूर्ण ड्रमहैलर टाउन के साथ दूरदूर तक की पहाड़ियों को देखा जा सकता था.

यह उसी विशाल डायनासौर की प्रतिमा थी जिस के पूर्वज लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी के इसी भाग में स्वच्छंदता से घूमा करते थे तथा इन्हीं प्राणियों का संपूर्ण अमेरिकी कौंटिनैंट में एकछत्र साम्राज्य था. एल्बरटोसौरस प्रजाति का यह भयंकर प्राणी लगभग 69 मिलियन वर्षों से 100 मिलियन वर्षों के बीच एल्बर्टा के इसी भाग में बहुलता से घूमा करते थे. ड्रमहैलर के बहुत से मकानों, दुकानों तथा मौलों के सामने विभिन्न आकारों की इसी प्राणी की प्रतिमाएं लगी हुई थीं. बड़ी प्रतिमा वाले पार्क में बैंचों पर बैठ कर हम ने लंच किया. फिर हम 30 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति का हुडूज नामक वह आश्चर्यजनक चमत्कार, जिसे हम लोगों ने जीवन में पहली बार ही सुना था, देखने के लिए चल दिए.

हम लोग कुछ ही किलोमीटर आगे गए थे कि सड़क के दोनों ओर की पहाडि़यों के निचले भाग में जमीन से 2-3 फुट की ऊंचाई पर लगभग 11/2 फुट की ऊंचाई के साथ पहाडि़यों के बड़े भाग में स्थित कुछ अजीब सी प्रतिमाएं दिखीं. हम हैरान थे. इस प्रकार की रचनाएं केवल एक पहाड़ी पर ही नहीं, बल्कि बीसियों पहाडि़यों पर मौजूद थीं. ठीक उसी तरह जैसे बहुत से प्राचीन मंदिरों में देवीदेवताओं की प्रतिमाएं हों. कुछ भी समझ में नहीं आया कि यह क्या है. आखिरकार हम उस स्थान पर पहुंच गए जहां नक्शे के अनुसार हमें जाना था.

उस स्थान पर लगभग 50-60 व्यक्ति मौजूद थे. हम लोग गाड़ी पार्क कर वहीं पहुंच गए. वहां उसी तरह की प्रतिमाएं थीं जो हम ने मार्ग की पहाडि़यों के निचले भागों में बनी देखी थीं. साथ ही बहुत से प्राचीन भवनों के खंडहरों के थमलों की आकृतियां, जो लगभग 5-6 फुट ऊंचाई की थीं तथा विभिन्न आकारों की थीं, भी देखीं. वहां खड़े एक व्यक्ति से मैं ने पूछा कि यह क्या है तो उस ने बताया कि ये हुडूज हैं. ये ज्वालामुखी से निकले लावे की गरम मिट्टी एवं बैडलैंड में उपस्थित ग्लेशियर्स के ज्वालामुखी के अत्यंत गरम लावे के संपर्क में आने से बर्फ के पिघले पानी से मिल कर यहां की तेज हवाओं, पहाड़ों के इरोजन आदि के प्रभाव से कई मिलियन वर्षों में बनी प्रतिमाएं हैं, जो हुडूज कहलाती हैं.

बाद में हम लोगों ने वहां बनी स्टील की सीढि़यों पर चढ़ कर बहुत से अन्य तरह तरह के आकारों की प्रतिमाओं को बहुत पास से देखा. प्रकृति का यह मनोहारी दृश्य देख कर हम आश्चर्यचकित रह गए. कुछ इन्फौरमेशन सैंटर से मिले लिटरेचर में मैं ने यह भी पढ़ा कि हुडूज ड्रमहैलर की मिट्टी, कुछ सीमेंट के समकक्ष मिट्टी, ज्वालामुखी लावा, समुद्री शैल, सैंडस्टोन आदि के मिक्स्चर के पानी में मिलने के बाद तेज हवाओं, फ्रोस्ट आदि के प्रभाव से लाखों साल में ये अजीबअजीब प्रतिमाओं की शक्ल में परिवर्तित हुई हैं. प्रकृति की ये भूगर्भीय रचनाएं ड्रमहैलर की लगभग 11 हैक्टेअर बैडलैंड भूमि में ईस्ट काउली नामक स्थान तक बहुतायत में पाई जाती हैं.

हुडूज देखने के बाद हम लोग 12 किलोमीटर दूर स्थित घोस्टटाउन देखने गए. उस स्थान पर जाने के लिए करीब 1 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए स्टील के बने 11 पुलों से गुजरना पड़ा. एक प्राचीन नदी, जिस का नाम वाइंडिंग रोज बड रिवर है, पर लगभग 1 किलोमीटर के रास्ते को पार करने के लिए 11 पुल हैं जो सब एकलेन पुल हैं. ये पुल प्राचीनकाल में कोयले की खानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए कोयला ढोने के काम आते थे. इन पुलों को पार किया. वहां एक उजाड़ टाउन था जिस में 10-15 घर बने थे. सब खाली पड़े थे.

पास में एक अत्यंत प्राचीन बार भी थी. इस स्थान पर हम ने 2-3 आदमियों को घूमते भी देखा था किंतु वे घोस्ट नहीं लग रहे थे. हम लोग फिर उन 11 ब्रिजेज को पार करते हुए सीधे ड्रमहैलर पहुंचे तथा वहां से लगभग 10 किलोमीटर पर स्थित अत्यंत सुंदर पहाडि़यों से घिरे ‘मिडलैंड प्रोविंशियल पार्क’ पहुंचे जिस में डायनासौर का म्यूजियम बना हुआ है. इसे रौयल टाइरैल म्यूजियम नाम से 1985 में कनाडा सरकार ने बनवाया था. इसे देखने संसार के विभिन्न भागों से प्रतिवर्ष 4 लाख से अधिक सैलानी पहुंचते हैं.

अब तक की हमारी यात्रा में हम ने कहीं भी भीड़ नहीं देखी थी, यहां तक कि ड्रमहैलर एक बड़ा शहर होने पर भी इस की जनसंख्या केवल 8,200 ही होने से कहीं भी भीड़भाड़ न थी किंतु हम उस स्थान पर कम से कम 2 हजार पर्यटकों को देख कर चकित हो गए. हम टिकट ले कर जैसे ही प्रथम हौल में पहुंचे, एक अत्यंत विशाल डायनासौर का संपूर्ण अस्थिपंजर दिखा जिस की विशालता देख कर हम दंग रह गए.

यह अस्थिपंजर लगभग 100 मिलियन वर्षों पुराने डायनासौर का था. संजय, मधु, सिद्धार्थ एवं अनीष चारों के पास कैमरे थे जिन्होंने उस प्राचीन अस्थिपंजर के चित्र लिए. हम लोग काफी समय तक उस विशाल अस्थिपंजर को देखते रहे. अन्य विशाल हौल में 3 और बड़े एवं लगभग 37 अन्य छोटे डायनासौर के बच्चों एवं मध्यम आकार के डायनासौर के अस्थिपंजर थे. सभी अस्थिपंजरों को बहुत सुंदरता के साथ यथास्थान पर प्रदर्शित किया गया था.

इस म्यूजियम की बड़ी बात यह है कि इस के एक बड़े भाग में एक विशाल लैबोरेटरी भी स्थित है जिस में नए खोजे गए फौसिल्स को पूरी तरह वैज्ञानिक ढंगों से साफ कर के सारे अस्थिपंजरों को एसैंबल किया जाता है जिस के लिए आधुनिकतम वैज्ञानिक यंत्र लगे हैं. विशेषकर उन वयस्क विशाल शरीर वाले डायनासौर के अस्थिपंजरों को जोड़ने के लिए उस विशाल लैब की छत पर भी यंत्र लगे हैं जो अस्थिपंजरों को जोड़ते समय सही पोजीशन पर आवश्यकतानुसार उन की पोजीशन आदि बदल कर उन्हें सुरक्षित रख सकें. इस लैब तथा म्यूजियम के बीच की दीवार पूर्णतया पारदर्शक शीशे द्वारा बनी हुई है ताकि म्यूजियम के दर्शक आसानी से लैब में होता हुआ काम स्वयं देख सकें.

म्यूजियम के एक भाग में प्रीहिस्टोरिक पानी के पौधों का अपूर्व संग्रह है जिन्हें मुख्यतया वान्कूवर द्वीपों की नर्सरियों से खरीदा गया है. ऐसे पौधे अभी तक पैसीफिक महासागर की तलहटी में पाए जाते हैं जो लगभग पूर्णतया अंधकार में ही उगते हैं तथा प्रीहिस्टोरिक एल्बर्टा के पौधों से बहुत मिलतेजुलते हैं. क्योंकि गहरे पानी में अंधकार में उगने वाले ये पौधे, अंधकार में ही उग सकते हैं अत: म्यूजियम के एक बड़े भाग में इस प्रकार के बहुत से पौधों के लिए एक अलग भाग है जहां पूर्ण अंधकार रहता है. साइड में लगी बहुत कम लाइट के साथ शीशे के पीछे स्थित पानी में इन्हें देखा जा सकता है.

इस म्यूजियम में एक बहुत बड़ी चट्टान भी रखी है जिस के मध्य में लाखों वर्ष पूर्व दब जाने से एक मीडियम आकार के डायनासौर का सारा भाग आसपास की मिट्टी आदि के साथ चट्टान में परिवर्तित हो गया था तथा डायनासौर का पूरा शरीर एक फौसिल में परिवर्तित हो गया था, दिखता है. उस चट्टान को इस प्रकार तोड़ा गया है कि पूरे डायनासौर के फौसिल के एक साइड का पूरा शरीर स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है. इस के अतिरिक्त लगभग 4-5 फुट चौड़ी तथा इतनी ही ऊंची एक चट्टान का शिलाखंड भी वहां रखा है जिस में संसार के बहुत से बेहद कीमती हीरे तथा अन्य तरहतरह के कई रंग वाले बेहद कीमती पत्थर दिखते हैं. चट्टान पर लिखा है कि इस चट्टान की कीमत कई बिलियन डौलर है.

यहां मैं पाठकों को यह भी बताना चाहूंगा कि एक जीववैज्ञानिक होते हुए भी मेरी डायनासौर्स के आकारों के बारे में एक बहुत बड़ी भ्रांति इस म्यूजियम के देखने के बाद दूर हो गई है. म्यूजियम में लगभग 145 से 200 मिलियन वर्ष पूर्व के एक डायनासौर की, पैर से घुटने तक की काफी मोटी तथा 11 फुट ऊंची हड्डी का फौसिल रखा है. अब अनुमान कीजिए कि जिस प्रीहिस्टोरिक प्राणी की नीचे के पंजे से ले कर घुटने तक की लंबाई 11 फुट थी तो उस का पूरा शरीर कितना बड़ा होगा? किंतु जैसेजैसे समय बीतता गया, इन प्राणियों के आकार छोटे होते गए जो प्रदर्शित फौसिल्स से सिद्ध हो जाता है. डायनासौर के 1-2 मिलियन वर्ष पूर्व के उन के आकार उन के 200 मिलियन पूर्व के बुजुर्गों की अपेक्षा लगभग 1/3 ऊंचाई के ही रह गए थे. यही कारण है कि उन के आकारों से संबंधित मेरी भ्रांति दूर हो गई थी.

‘रौयल टाइरैल म्यूजियम औफ पैलान्टोलौजी’ से बाहर आने तक शाम को 5:15 बज चुके थे. यद्यपि ड्रमहैलर का एक और मुख्य आकर्षण केंद्र वहां की सदैव के लिए बंद माइन्स थीं किंतु उन्हें देखने के लिए हमारे पास समय का अभाव था. दूसरे, हमें यह भी ज्ञात था कि शाम 6 बजे से बहुत तेज वर्षा का प्रकोप होने वाला है, हम ने तत्काल अपनी गाड़ी एडमन्टन की ओर दौड़ा दी. हम लोगों ने लगभग 100 किलोमीटर का सफर तय किया था कि ड्रमहैलर में बेहद तेज बारिश के साथ मौसम बहुत खराब हो चुका था. यह सूचना हमें अपने मोबाइल द्वारा प्राप्त हो गई थी. हमें तसल्ली थी कि हम ने अपने मिशन का विशेष भाग अत्यंत सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था तथा ठीक 8:15 बजे शाम को हम लोग एडमन्टन में अपने घर पहुंच गए थे.

बॉलीवुड के इन सितारों की दुश्मनी सालों पुरानी

बॉलीवुड इंडस्ट्री में सितारों के बीच दोस्ती और दुश्मनी होना कोई बड़ी बात नहीं है. इस इंडस्ट्री में कई ऐसे सितारे हैं जो कई सालों से अच्छे दोस्त हैं और इस दोस्ती को अच्छी तरह से निभाना जानते हैं.
लेकिन दूसरी तरफ इंडस्ट्री के कुछ ऐसे सितारे हैं जिनके बीच सालों से किसी न किसी विवाद को लेकर मनमुटाव चला आ रहा है. ये सितारे सालों से एक-दूसरे के जानी दुश्मन माने जाते हैं.

1. करण जौहर और अजय देवगन
फिल्म मेकर करण जौहर और अजय देवगन के बीच दुश्मनी की शुरूआत फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’ के दौरान शुरू हुई थी. करण ने रानी मुखर्जी, काजोल और शाहरुख के साथ एक कोल्ड ड्रिंक का एड शूट किया था. इस एड शूट के दौरान भी अजय के साथ करण का व्यवहार अच्छा नहीं था. शाहरुख और अजय की लड़ाई की वजह से करण जौहर अजय को नजर अंदाज करते रहे हैं.

2. शाहरुख खान और अजय देवगन
शाहरुख खान और अजय देवगन की दुश्मनी की शुरुआत राकेश रोशन की फिल्म ‘करण अर्जुन’ के दौरान हुई थी. इस फिल्म के लिए शाहरुख और अजय को चुना गया था लेकिन अजय देवगन शाहरुख को ऑफर किया गया रोल करना चाहते थे.
दोनों ने इस बारे में राकेश रोशन से बात भी की लेकिन वो किसी भी तरह के बदलाव के लिए तैयार नहीं हुए. इसी दौरान इस फिल्म में सलमान की एंट्री हो गई और ये बात शाहरुख ने अजय को नहीं बताया. तब से अजय देवगन और शाहरुख खान एक-दूसरे से दूरी बनाने लगे.

3. आमिर खान और रेखा
अभिनेता आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन ने 80 के दशक में ‘लॉकेट’ नाम की फिल्म शुरू की थी. इस फिल्म में अभिनेत्री रेखा मुख्य किरदार निभा रही थीं. रेखा ने फिल्म की शूटिंग के दौरान कई शूट कैंसिल किए और वक्त की पाबंदी को नजरअंदाज कर दिया.
ये फिल्म बहुत मुश्किल से पूरी हो पाई थी. आमिर ने ये सब काफी करीब से देखा था लिहाजा इंडस्ट्री में अपना मुकाम हांसिल करने के बाद आमिर ने इस बात पर कभी रिएक्ट नहीं किया लेकिन उन्होंने कभी भी रेखा के साथ काम नहीं किया.

4. अनुराग कश्यप और राकेश रोशन
डायरेक्टर अनुराग कश्यप और राकेश रोशन के बीच दुश्मनी उस वक्त शुरू हुई जब साल 2006 में फिल्म ‘कृष’ आई थी. सुभाष घई के एक्टिंग स्कूल व्हिसलिंग वुड्स में अनुराग को लेक्चर के लिए बुलाया गया था.
लेक्चर के दौरान अनुराग ने स्टूडेंट्स से सिनेमा में सक्सेस को लेकर बात की. उसी समय अनुराग ने “कृष” को दोयम दर्जे की फिल्म बताया था. बस उनकी इसी बात से राकेश रोशन और सुभाष घई समेत इंडस्ट्री के कई लोग नाराज हो गए.

5. सनी देओल और आदित्य चोपड़ा
अभिनेता सनी देओल और आदित्य चोपड़ा के बीच दुश्मनी की शुरूआत फिल्म “डर” के दौरान हुई थी जो आज तक कायम है. इस फिल्म के लिए आदित्य ने सनी को राजी तो कर लिया था लेकिन जो वादे किए थे वो पूरे नहीं हुए.
इसी बात को लेकर सनी और आदित्य ने आज तक एक-दूसरे से बात नहीं की. इतना ही नहीं उसके बाद से सनी देओल यशराज के किसी प्रोजेक्ट से फिर कभी नहीं जुड़े.

इन सितारों के बीच दुश्मनी सालों पहले शुरू हुई थी जो आज भी जारी है. आज भी ये एक-दूसरे से बात करने से बचते हैं. जिसे देखकर तो यही लगता है कि उनकी ये दुश्मनी कभी ना खत्म होनेवाली दुश्मनी है.

महंगी न पड़ जाए सेकेंड हैंड कार

हम भारतीय जरूरत या शौकीया तौर पर कार नहीं रखते, पर दूसरों की आंखों को लुभाने या सच कहें तो जलाने के लिए गाड़ियां रखते हैं. भारत में जितनी तेजी से नित नए कारों के मॉडल लॉन्च हो रहे हैं उतनी ही तेजी से सेकेंड हैंड कारों का बाजार भी बढ़ रहा है. कारों के शौक के कारण आजकल लोग 1-2 साल में ही नई कार बेच देते हैं. यही कारण है कि सेकेंड हैंड कारों का बाजार पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ा है और लोग भी सेकेंड हैंड कारें खरीद रहे हैं. पर सेकेंड हैंड कार लेने से पहले सावधानी बहुत जरूरी है. कार के बारे में अच्छे से जांच-पड़ताल कर लेना बहुत जरूरी है.

बाहरी खूबसरती पर ही फिदा हो जाते हैं, चाहे वो इंसान की हो या कार की. पर ऐसा करनी बेवकूफी है. क्योंकि जो दिखता है, वो होता नहीं. लुक के अलावा भी कुछ बातें हैं जो सेकेंड हैंड कार खरीदते वक्त जहन में होनी चाहिए.

कार की इंश्योरेंस हिस्ट्री के बारे में जानकारी जुटाएं

आपने जो सेकेंड हैंड कार पसंद की है उसका इंश्योरेंस आपको बहुत सारी जानकारियां दे सकता है. सबसे पहले ये पता करें कि जो कार आप खरीदने जा रहे हैं उसका इंश्योरेंस है या नहीं. अगर है तो क्या नियमित रूप से उसका प्रीमियम भरा गया है या नहीं. इंश्योरेंस क्लेम की हिस्ट्री से आप ये पता कर सकते हैं कि कभी कार दुर्घटनाग्रस्त हुई है या नहीं. इश्योरेंस के कागजों को अपने नाम पर ट्रांसफर करवा लें.

रजिस्ट्रेशन के पेपर्स की जांच भी है जरूरी

कार खरीदने से पहले हर कागज की अच्छे से जांच करवा लें. आप इसके लिए आरटीओ ऑफिस की मदद ले सकते हैं. यह सुनिश्चित कर लें की कार के मालिक ने हर तरह के टैक्स भरे हैं. अगर कार लोन लेकर खरीदी गई है तो मालिक से एनओसी लेना न भूलें.

यूं पता करें कार की हालत 

गाड़ी के लुक पर फिदा होकर गाड़ी के टायर के बारे में भूल मत जाना भविष्य में आपकी परेशानीयां बढ़ा सकती हैं. गाड़ी के टायर से आप बहुत कुछ पता कर सकते हैं. टायर के साइज, रिम के अलाइनमेंट के बारे में अच्छे से जांच करें. इससे कार की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है. अगर टायर ज्यादा घिसे हैं तो कार न खरीदें.

कार एक्सीडेंटल न हो

कार के लक्जरी लुक से ज्यादा जरूरी है ये पता करना कि कहीं कार एक्सीडेंटल तो नहीं है. लेकिन सबसे पहले हमें ये जांच लेना चाहिए कि कहीं ये कार एक्‍सीडेंटल तो नहीं है. कार के पेंट से आप यह पता कर सकते हैं. कार के बोनट, डोर और डिक्‍की को अच्छे से जांच करें. बोनेट, डोर सबको खोल कर चेक करें.

इंजन क्वालिटी चैक करवाएं

सेकेंड हैंड कार बेचने वाले कार को चमका देते हैं. पर इंजन की क्वालिटी तो आपको ही चैक करनी पड़गी. आप अनुभवी मैकेनिक की मदद से इंजन को चैक करा सकते हैं. बेहतर होगा कि आप अपने कार का चेक अप एक अनुभवी मैकेनिक से कराएं.

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