मेरी देवरानी साक्षी 14 साल सर्विस करने के बाद अपने विभाग की हैड बन गई है. उस ने अपनी पदोन्नति की खुशी में आज जो पार्टी दी है, उस में उस के औफिस की सारी सहेलियां बहुत सजधज कर आई थीं.
मैं ने काफी कोशिश करी पर मुझ से बातें करने में किसी की दिलचस्पी ही नहीं थी. उन के बीच चह रहे वार्त्तालाप के लगभग सारे विषय उन की औफिस की जिंदगी से जुड़े थे.
उन के रुखे व्यवहार के कारण मेरा मन आहत हुआ, अचानक मैं खुद को बहुत अलगथलग, उदास व उपेक्षित सा महसूस करने लगी थी. मु लगा कि ये सब मुझे अपनी कंपनी में शामिल करने के लायक नहीं समझ रही थीं.
मैं एक तरफ कोने में बैठ कर उस समय को याद करने लगी जब मैं भी औफिस जाती थी. इन सब की तरह ढंग से तैयार हो कर घर से निकलना कितना अच्छा लगता था. औफिस में मैं भी नईनई चुनौतियों का सामना करने के लिए इन की तरह आत्मविश्वास से भरी नजर आती थी.
शादी के सालभर बाद मेरी बेटी मानसी पैदा हुई थी. उस के होने से 3 महीने पहले मैं ने नौकरी से त्यागपत्र तो दे दिया पर मेरा इरादा था कि जब वह कुछ बड़ी हो जाएगी तो मैं फिर से नौकरी करना शुरू कर दूंगी.
मगर वह समय मेरी जिंदगी में फिर लौट कर कभी नहीं आया. मानसी के होेने के 2 साल बाद मेरे बेटे सुमित का जन्म हो गया. मैं कुछ सालों के बाद नौकरी करना शुरू कर देती पर अपनी देवरानी साक्षी के कारण ऐसा नहीं कर सकी थी.
सुमित के होने के सालभर बाद मेरे देवर वसुराज की शादी साक्षी से हुई थी. वह एमबीए थी और अच्छे पद पर नौकरी करती थी.
हमारी तेजतर्रार स्वभाव वाली सास को साक्षी का देर से औफिस से लौटना व रसोई के कामों में बहुत कम हाथ बंटाना अच्छा नहीं लगता था. इस कारण सासूमां को उसे डांटने व अपमानित करने के मौके बड़ी आसानी से रोज ही मिल जाते थे.
ऐसा कर के सासू साक्षी को दबाना चाहती थीं पर साक्षी दबने को तैयार नहीं थी. इस कारण घर का माहौल कुछ दिनों में ही इतना खराब हो गया कि साक्षी घर से अलग होने की सोचने लगी.
साक्षी ने मु?ा से एक शाम साफसाफ कह दिया, ‘‘भाभी, मैं अगर नौकरी छोड़ कर घर में बैठी तो पागल हो जाऊंगी. मेरे लिए अच्छा कैरियर बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है.’’
एक दिन साक्षी को घर लौटने में रात के
11 बज गए क्योंकि वह औफिस से ही अपने एक सहयोगी की शादी में शामिल होने चली गई थी.
उस दिन घर में सासूमां की बहन का पूरा परिवार भी डिनर के लिए आया हुआ था. साक्षी देवरजी की इजाजत ले कर शादी के समारोह में शामिल होने गई थी, पर सासूमां ने उस के देर से लौटने पर सब मेहमानों के सामने बहुत क्लेश किया था.
साक्षी अपने कमरे में जा कर ऐसी बंद हुई कि किसी के बुलाने पर भी बाहर नहीं आई. मैं जब देर रात को उस के कमरे में खाना ले कर गई, तो वह छोटी बच्ची की तरह मुझ से लिपट कर बहुत जोर से रो पड़ी थी.
तब भावुक हो कर मैं ने उस से वादा कर लिया था, ‘‘साक्षी, तुम घर की चिंता छोड़ो और
बेफिक्र हो कर नौकरी करो. मेरे होते तुम्हारे नौकरी करने पर कभी आंच नहीं आएगी. घर तो मैं संभाल ही रही हूं और आगे भी संभालती रहूंगी. इस मामले में मांजी की डांटफटकार को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया करो.’’
मगर आज अपने उस फैसले के कारण मेरे मन में गुस्सा, चिड़ व गहरा असंतोष पैदा हो रहा था. साक्षी की औफिस की सहेलियों को देख कर मन बारबार सोच रहा था कि कितनी चुस्तदुरुस्त और आत्मविश्वास से भरी नजर आ रही हैं ये सब की सब. मेरा व्यक्तित्व इन की तुलना में कितना फीका लग रहा है.
अपने व साक्षी के बच्चों को संभालतेसंभालते मेरी विवाहित जिंदगी के 30 साल निकल गए हैं. उन चारों को ढंग से पालपोस कर बड़ा करने के लिए सुबह से रात तक चकरघिन्नी सी घूमती
रही हूं.
इस कारण मुझे इज्जत और वाहवाही तो खूब मिली पर मेरा व्यक्तित्व मुरझा गया और यह बात आज मेरे मन को बहुत कचोट रही थी.
वैसे मुझे साक्षी से कोई शिकायत नहीं है. उस ने अलग तरह से हमारे संयुक्त परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियां पूरी करी हैं. बिजलीपानी के बिल देवरजी ही भरते रहे हैं. मकान की मरम्मत व रंगरोगन सदा उन्होंने ही कराया है. मेरी बेटी मानसी की पढ़ाई का आधे से ज्यादा खर्चा मेरे देवर ने ही उठाया था.
आज यह बात मन में बहुत जोर से चुभ रही है कि घरगृहस्थी के कामों में उलझे रहने से मेरे व्यक्तित्व का विकास रुक गया. तभी तो साक्षी की सहेलियों के साथ खुल कर बातें करने में मुझे अजीब सा डर लग रहा है. मुझे साफ महसूस हो रहा है कि मेरे अंदर नए लोगों से मिलनेजुलने का आत्मविश्वास खो गया है.
‘‘भाभी, किस सोच में डूबी हो,’’ साक्षी ने अचानक पास आ कर सवाल पूछा तो मैं चौंक गई.
‘‘कुछ नहीं,’’ न चाहते हुए भी मेरा स्वर उदास हो गया.
‘‘फिर भी जो मन में चल रहा है मुझे बताओ न,’’ वह मेरा हाथ थाम कर बड़े अपनेपन से मुसकराई.
‘‘मैं सोच रही थी कि तुम्हारी इन स्मार्ट, सुंदर सहेलियों के सामने मेरा व्यक्तित्व कितना बौना और बेजान आ रहा है. आज महसूस कर रही हूं कि मुझे हमेशा के लिए नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी,’’ अपने मन की पीड़ा को मैं ने उसे बता ही दिया.
‘‘भाभी, अगर आप नौकरी नहीं छोड़तीं
तो आज यह प्रमोशन पार्टी न हो रही होती. आप ने घर की जिम्मेदारियां संभालीं, तो ही मैं पूरी लगन व मेहनत से औफिस में काम कर तरक्की के इतने ऊंचे मुकाम तक पहुंच पाई हूं,’’ यह जवाब दे कर साक्षी ने मेरा मूड ठीक करने का प्रयास किया.
मैं ने साक्षी की बात का कोई जवाब नहीं दिया पर मेरी आंखों से एकाएक आंसू बहने लगे. साक्षी ने पहले अपने रूमाल से मेरे आंसू पोंछे और फिर अचानक तालियां बजा कर सब मेहमानों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने लगी.
‘‘साक्षी, यह क्या कर रही हो. मेरा तमाशा न बनाना, प्लीज,’’ मैं ने उसे रोकने की कोशिश करी पर उस ने तालियां बजाना जारी रखते हुए खुद और मुझे सारे मेहमानों की नजरों का केंद्र बिंदु बना ही दिया.
जब सब का ध्यान हमारी तरफ हो गया तो उस ने ऊंची आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘मैं आप सब का एक खास इंसान से परिचय कराना चाहती हूं. मुझे प्रमोशन दिलाने में, मेरी लगन और मेहनत के साथसाथ इस इंसान का सहयोग भी बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है.
‘‘आप सब को लग रहा होगा कि अब मैं अपने जीवनसाथी का गुणगान करूंगी तो मैं वैसा कुछ नहीं करने जा रही हूं. वे तो उलटा हमेशा मुझे डांटते थे कि मैं अपनी कमाई का घमंड न करूं और आए दिन नौकरी छुड़वा देने की धमकी देते रहते थे.’’
साक्षी के इस मजाक पर जब मेहमानों का हंसना रुक गया तो वो आगे बोली, ‘‘आज मेरा बेटा मोहित 10वीं कक्षा में है और बेटी तान्या 12वीं कक्षा में. दोनों हमेशा फर्स्ट आते हैं. आज मैं हर तरह से सुखी और संतुष्ट हूं. क्या आप सब जानना चाहेंगे कि मेरी व मेरे बच्चों की सफलता व खुशियों के लिए सब से महत्त्वपूर्ण योगदान किस का है?
‘‘कहा जाता है कि हर पुरुष की सफलता के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है. मेरे जीवन को अपार खुशियों से भरने में भी एक स्त्री का हाथ है और वह हैं बहुत सीधीसादी व सब के सुखदुख बांटने वाली मेरी ये सीमा भाभी. मैं चाहती हूं कि आप सब इन का एक बार जोर से तालियां बजा कर स्वागत करें.’’
सभी मेहमानों ने बड़े जोरशोर से तालियां बजा कर मेरा अभिनंदन किया. सच कहूं तो इस वक्त मैं खुश होने के साथ बहुत शरमा भी उठी थी.
साक्षी भावुक अंदाज में मेहमानों से आगे बोली, ‘‘मेरी इन सीमा भाभी के पास
सोेने का दिल है. इन के कारण मैं शादी के बाद से ही अपने दोनों बच्चों की देखभाल की चिंता से पूरी तरह मुक्त रही हूं. जब मेरे बच्चे स्कूल से लौटते थे तो उन्हें किसी आया की डांटफटकार नहीं बल्कि अपनी ताईजी का प्यार मिलता था. ये सीमा भाभी ही थीं जिन के कारण उन्हें हमेशा खाना गरम और अपनी मनपसंद का मिला. इन्होंने दोपहर का अपना आराम त्याग कर उन्हें होमवर्क कराया. मेरे बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार इन्होंने ही दिए हैं.
‘‘मैं आज सीमा भाभी को बताना चाहती हूं कि हम नौकरी करने वाली औरतें तो घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों को निभाते हुए मशीन बन कर रह जाती हैं. हमारे चमकदार व्यक्तित्व में बहुत कुछ नकली और बनावटी होता है. मैं अपने बच्चों को कभी इतने अच्छे ढंग से नहीं पाल सकती थी जैसे इन्होंने ने पाला है.
‘‘मेरी सीमा भाभी ने हमारे इस घर को जोड़ कर रखा है. ये स्नेह व त्याग की जीतीजागती मिसाल हैं. मैं ने कभी नहीं कहा है पर आज आप सब के सामने कहती हूं कि इस जिंदगी में तो मैं इन के प्यार, स्नेह और त्याग का कर्ज कभी नहीं उतार पाऊंगी. पर मैं जो कर रही हूं उस की प्लानिंग मैं ने और बसु ने कई महीनों से कर रखी थी. हम ने गोमतीनगर के एक कमर्शियल कौंप्लैक्स में एक दुकान खरीदी है जिस में भाभी के बनाए और डिजाइन किए कपड़े बिकेंगे. यह हमारी ओर से एहसानों का बदला नहीं है, प्यार का मान है. भाभी यह लो सारे कागज, दुकान आप के नाम पर है,’’ कहते हुए साक्षी ने सीमा के हाथ में एक फाइल पकड़ा दी.
आंखों से आंसू बहा रही साक्षी ने वहीं सब के सामने मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लिया तो तालियों की तेज आवाज से पूरा पंडाल एक बार फिर गूंज उठा. उसे प्यार से गले लगाते हुए मेरे मन की सारी शिकायतें, हीनभावना व कड़वाहट जड़ से दूर हो गई थी.
मुझे परिवार के सारे सदस्यों ने घेर लिया. सब की आंखों में मुझे अपने लिए प्रशंसा व आदर के भाव साफ नजर आ रहे थे. मेरी आंखों से अब जो आंसू बह रहे थे तो वे खुशी और गहरे संतोष के थे.