सुबह सुबह शालू को प्ले स्कूल पहुंचा कर प्रिया घर के काम समाप्त कर औफिस पहुंच गई. शालू के स्कूल जाने से पहले ही वह 2 घंटों में फुरती से घर के काम निबटाती है. प्रिया ने औफिस में घड़ी देखी. 2 बज चुके थे. वह शालू को लेने स्कूल पहुंची क्योंकि टीचर ने नोट भेजा था कि प्रिंसिपल से मिल लें. वरना रिकशे वाला रोज उसे घर के पास बने क्रैच में छोड़ आता था जहां प्रिया उस का लंच सुबह ही दे आती थी. उस के कपड़ों का बैग भी रहता था.

‘‘प्रियाजी आप की बेटी आजकल ज्यादा ही गुस्से में रहती है. जब देखो साथी बच्चों के साथ लड़ाई झगड़ा करती है. कल तो इस ने बगल में बैठे पीयूष को बोतल फेंक कर मार दी. 2 दिन पहले वह पायल के साथ ?झगड़ा करने लगी. पायल लंच में सैंडविच लाई थी. उस ने शालू को सैंडविच नहीं दिए तो शालू ने उस का टिफिन ही उठा कर नीचे फेंक दिया. बताइए इस तरह की हरकतें कब तक सही जाएंगी. पता नहीं इतनी छोटी सी बच्ची इतनी अग्रैसिव क्यों है,’’ टीचर ने यह शिकायत क्लास प्रिंसिपल से की थी.

‘‘हां मैं ने भी देखा है. घर में भी शालू गुस्से में चीजें उठा कर फेंक देती है.’’

‘‘देखिए मैं बस यही कह सकती हूं कि बच्चे घर में जैसा बड़ों को करते देखते हैं उस का काफी असर उन पर पड़ता है. इस बात का खयाल रखें कि ऐसा कुछ बच्ची के आगे न हो.’’

‘‘मैं बिलकुल इस बात का खयाल रखूंगी,’’ कह कर प्रिया शालू को ले कर घर चली आई मगर दिल में तूफान मचा था. कहीं न कहीं शालू के इस रवैए की वजह घर में होने वाले  झगड़े ही थे. शालू अकसर अपने मांबाप के  झगड़े देखती थी.

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