सिर्फ जोखिम नहीं है म्‍यूचुअल फंड्स

जब भी कोई म्‍यूचुअल फंड्स के बारे में बात करता है तो आपके दिमाग में सबसे पहले एक ही ख्‍याल आता है, कि क्‍या म्‍यूचुअल फंड रिस्‍की है? जिस तरह से आप घर में पैसे अलग-अलग जगह पर रखती हैं. ठीक उसी तरह से म्‍यूचुअल फंड की किसी एक स्‍कीम में ही सारे पैसे नहीं लगाने चाहिए. आपको अलग-अलग स्‍कीम में निवेश करना चाहिए अगर आप ऐसा करती हैं तो रिस्‍क कम हो जाता है.

प्रोफेशनल फंड मैनेजर

आप सोचती होंगी कि कैसे पता चले कि किस म्‍यूचुअल फंड में निवेश करना चाहिए और किसमें नहीं निवेश करना चाहिए. इसके लिए आपको टेंशन लेने की आवश्‍यकता नहीं है क्‍योंकि यह सब कुछ देखने का काम प्रोफेशनल फंड मैनेजर का होता है. उसके अनुभव से आपका रिस्‍क और भी कम होता है.

डायर्विसिफिकेशन

डायवर्सिफिकेशन यानि कि विविधीकरण के अंतर्गत निवेश करने से रिस्‍क कम हो जाता है. अलग-अलग जगह पर पैसों को निवेश करने से डर कम रहता है और नुकसान भी कम होता है. निवेश करने में रिस्‍क तो है, पर इस रिस्‍क को कम करना आसान भी है. म्‍यूचुअल फंड आपके पैसे को एक सुरक्षित कवर में छुपा कर रखते हैं.

अपनी जरुरतों के हिसाब से चुनाव करें

निवेश करने से पहले आप यह जान लें कि आपके निवेश का उद्देश्‍य क्‍या है? यदि निवेश की समयावधि चुने गए फंड के अनुरूप है तो आप खुद को बहुत छोटी अवधि के उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रखती हैं. मान लीजिए, आपने किसी इक्‍वटी फंड में निवेश किया है तो आप छोटी अवधि के उतार-चढ़ाव से प्रभावित हो सकती हैं, लेकिन लंबी अवधि में इस बात की काफी संभावना है कि आपको इक्‍वटी से जुड़े दीर्घकालीन प्रतिफल हासिल हों.

सही जानकारी रखें

म्‍यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले सही जानकारी लेकर रखें. ऐसा नहीं कि किसी के कहने पर किसी भी स्‍कीम पर इन्‍वेस्‍टमेंट कर दें. इसके लिए जरुरी है कि एक्‍सपर्ट की सलाह लें और कई म्‍यूचुअल फंड स्‍कीम के बारे में अच्‍छे से जांच लें.

मैं फिल्में दूसरों की सलाह से नहीं, अपनी पसंद से चुनती हूं : नेहा शर्मा

फैशन डिजाइनर नेहा शर्मा ने तेलुगू फिल्म ‘चिरूथा’ से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. आज वे बौलीवुड में भी अपनी धाक जमाने का प्रयास कर रही हैं. उन का कहना है कि वे बौलीवुड में कुछ खास किरदार निभा कर नाम कमाना चाहती हैं.

नेहा शर्मा उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन के कैरियर को फिल्म की असफलता प्रभावित नहीं करती. 2007 में चरण तेज के साथ तेलुगू फिल्म ‘चिरुथा’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने के बाद वे हिंदी फिल्मों से जुड़ीं. पिछली फिल्म ‘तुम बिन 2’ की असफलता के बाद वे अनिल कपूर और अर्जुन कपूर के संग ‘मुबारकां’ फिल्म में काम कर खुश हैं. पेश हैं उन से हुई बातचीत के खास अंश :

आप का कैरियर जिस तरह से बढ़ रहा है, इससे आप कितना खुश हैं?

मैं अपने कैरियर को ले कर काफी खुश हूं. इसकी सब से बड़ी वजह यह है कि हर इंसान के लिए सफलता के मायने अलग होते हैं. आपके लिए सफलता के जो मायने हैं, वही मेरे लिए हों, ऐसा जरूरी नहीं है. मेरी सफलता का सबसे बड़ा पैमाना ये है कि मैं जो कुछ करना चाहती हूं, जिस तरह का काम करना चाहती हूं, उसे करने के मुझे अवसर मिले.

मैं अपनेआप को खुशकिस्मत मानती हूं कि मैं खुद से अपनी फिल्में चुन सकती हूं. मैं हमेशा वही काम करती हूं, जिसे करने के लिए मेरा दिल कहे. मुझे यह पसंद नहीं कि कोई इंसान मुझे सलाह दे कि मुझे यह फिल्म करनी चाहिए या यह नहीं करनी चाहिए. यदि दूसरों की सलाह पर फिल्में करना सफलता का पैमाना है तो मुझे यह पसंद नहीं. मुझे लगता है कि अब तक के कैरियर में मैं ने वही काम किया, जो मुझे पसंद आया. इसलिए मैं खुश हूं. इसी आधार पर मुझे लगता है कि मेरा कैरियर बहुत सही तरीके से आगे बढ़ रहा है.

मगर बौलीवुड में कलाकार का कैरियर तो फिल्म की सफलता के इर्दगिर्द घूमता है?

देखिए, यह सब अलगअलग नजरिए से खुद को देखने का तरीका होता है. कुछ लोगों को अपनेआप को नंबर वन कहलाने की चाहत होती है, तो वे बताते रहते हैं कि हमारी फिल्म ने इतने करोड़ कमा लिए. मैं नंबर वन, नंबर 2 या नंबर 3 में यकीन नहीं रखती. वास्तव में वे कलाकार, जो नंबर की चूहादौड़ में हैं, उन्हें तमाम लोग कंट्रोल करते हैं. इन के इर्दगिर्द लंबीचौड़ी फौज रहती है, जो इन्हें पल-पल पर टोकती रहती है कि उन्हें क्या करना है या क्या नहीं करना है.

मेरे इर्दगिर्द ऐसी कोई फौज नहीं है. मैं खुश हूं. मेरे लिए सफलता बहुत बड़ी बात है. पर मैं हमेशा वही काम करना चाहती हूं, जिस में मुझे खुशी मिले. जिस काम को करने के लिए मेरा मन गवाही दे. मुझे कोई टोकने वाला नहीं है, जो मुझ से कहे कि मुझे क्या करना है. मैं तो फिल्में भी दूसरों की सलाह से नहीं, अपनी पसंद से चुनती हूं.

‘तुम बिन 2’ की असफलता से आप के कैरियर पर क्या असर हुआ?

हम सब की ढेरों अपेक्षाएं और उम्मीदें होती हैं, उसी के अनुरूप हम योजना बनाते हैं, जब उस तरह से चीजें नहीं होतीं तो हम हताश हो जाते हैं. परिणामत: हमारा कैरियर खत्म होने लगता है, लेकिन मैं तो फिल्म की शूटिंग पूरी करते ही उसे भूल कर आगे बढ़ जाती हूं. इसलिए किसी भी फिल्म की असफलता का मेरे कैरियर पर कोई असर नहीं होता.

जहां तक ‘तुम बिन 2’ की असफलता का सवाल है, तो मेरे हिसाब से फिल्म सफल रही, निर्माता को नुकसान नहीं हुआ. लोगों को मेरा काम भी पसंद आया. दूसरी सफलता और असफलता दोनों ही हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं. हमें सफलता की ही तरह असफलता को भी लेना चाहिए. मैं सफलता मिलने पर हवा में नहीं उड़ती और असफलता से मायूस नहीं होती.

मैं इस बात का गम नहीं मानती कि मुझे क्या नहीं मिला, पर जो मिलता है, उसका जश्न जरूर मनाती हूं. तीसरी बात मैं इस बात पर यकीन करती हूं कि किसी भी फिल्म की सफलता व असफलता कलाकार के हाथ में नहीं होती है.

कलाकार के अलावा फिल्म के साथ बहुत सी चीजें जुड़ी होती हैं. मसलन, फिल्म का निर्माता कौन है? फिल्म के साथ कौन सा स्टूडियो जुड़ा हुआ है? निर्देशक कौन है? उस ने पहले कौन सी फिल्में बनाई हैं? गाने किस तरह के हैं? संगीतकार कौन है? कलाकार कौनकौन हैं? पता नहीं कितनी लंबी सूची होती है, जब तक इन सारी चीजों पर चैकलिस्ट नहीं लगेगी, तब तक फिल्म की सफलता की गारंटी कोई नहीं दे सकता.

एक कलाकार के तौर पर आप फिल्में चुनते समय कुछ तो ध्यान देती होंगी?

कलाकार के तौर पर हम उस तरह के कटैंट वाली फिल्म चुनते हैं, जिसमें हमें यकीन होता है. हम कहानी या पटकथा के बारे में जानकारी दे कर अपने आप से सवाल करते हैं कि क्या यह हमें पसंद है? क्या हम किरदार के साथ इत्तेफाक रखते हैं? क्या हम इसे अपने अभिनय से संवार सकेंगे? इन सारे सवालों का जवाब ‘हां’ हो तो हम फिल्म कर लेते हैं.

हीरोइन के रूप में फिल्म ‘तुम बिन 2’ करने के बाद मल्टीस्टारर फिल्म ‘मुबारकां’ में छोटा सा कैमियो करना कहां तक उचित है?

यह मसला पानी से भरे आधे गिलास की ही तरह है. इस गिलास को देखने का हर इंसान का अपना अलग नजरिया होता है. क्या आप मल्टीस्टारर फिल्म ‘अंदाज अपना अपना’ में जिस किरदार को जूही चावला ने निभाया था, भुला सकते हैं? वह भी तो छोटा सा किरदार था. इसी तरह मेरा दावा है कि जब फिल्म ‘मुबारकां’ प्रदर्शित होगी, तो लोगों को मेरा किरदार याद रहेगा.

इस मल्टीस्टारर फिल्म में अभिनय कर मैं ने बहुत कुछ सीखा. जहां मुझे दिग्गज अभिनेता अनिल कपूर के साथ काम कर बहुत कुछ सीखने को मिला, तो वहीं मैं लंबे समय से अनीस बजमी के निर्देशन में फिल्म करने का सपना देख रही थी.

मैं तो उनकी कौमेडी फिल्मों की मुरीद हूं. मैंने उन की हर फिल्म देखी है. ऐसे में जब अनीस बजमी ने मेरे सामने ‘मुबारकां’ में कैमियो करने का प्रस्ताव यह कहते हुए रखा कि इस में अनिल कपूर व अर्जुन कपूर भी हैं, तो मैं ने इसे तुरंत लपक लिया.

इस के अलावा आज मैं अपने कैरियर के जिस मुकाम पर हूं वहां मुझे ज्यादा से ज्यादा अच्छा काम, बेहतरीन लोगों के साथ करना है. मैं ‘मुबारकां’ के अलावा कुछ दूसरी रोचक व बड़ी फिल्में कर रही हूं, पर जब तक उन की घोषणा निर्माता न कर दें, मैं उस पर बात नहीं कर सकती.

फिल्म में आप का क्या किरदार है?

बहुत ज्यादा विस्तार से बताना तो ठीक नहीं होगा, लेकिन यह फनी फिल्म है. मेरा किरदार भी फनी है. मैं लोगों को इस फिल्म में हंसाऊंगी.

अनिल कपूर के साथ ’मुबारकां’ में काम करने के क्या अनुभव रहे?

बहुत मजा आया. वे काफी बड़े कलाकार हैं. विविधतापूर्ण किरदार निभा चुके हैं. वे ऐनर्जी से भरपूर हैं. हर किसी से गर्मजोशी के साथ मिलते हैं. काम के प्रति उन का समर्पण देख कर मैं दंग रह गई. उन से बहुत कुछ सीखने को मिला.

क्या यह माना जाए कि आप महत्त्वाकांक्षी नहीं हैं?

किस ने कहा? मैं महत्त्वाकांक्षी हूं, लेकिन मेरे लिए सफलता के माने कुछ और हैं. मेरे लिए सफलता का अर्थ नंबर वन की कुरसी हथियाना नहीं है. मैं इस तरह की किसी भी चूहादौड़ का हिस्सा नहीं हूं.

मेरे लिए सफलता का पैमाना इस बात पर निर्भर करता है कि मैं अपनी पसंद के किरदार व पसंद की फिल्में चुनने के लिए स्वतंत्र हूं. किसी भी फिल्म को स्वीकार करने में मुझे काफी समय लगता है. कुछ लोग मुझे चूजी समझते हैं.

अब तो आप की बहन आयशा शर्मा भी बौलीवुड में संघर्ष कर रही हैं?

वे भी दूसरी आम युवतियों की तरह हैं, जो अपने लिए बौलीवुड में जगह तलाश रही हैं.

आपने कुछ दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी अभिनय किया है. आप को लगता है कि वहां काम करना ज्यादा आसान है?

आसान कहीं नहीं होता. हर जगह आप को अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी जगह बनानी होती है. यही बात बौलीवुड, टौलीवुड, हौलीवुड हर जगह लागू होती है.

आप ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था, वह अब काम आ रहा है?

दिल्ली में मैं ने निफ्ट से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. फैशन डिजाइनिंग करने से हमें पोशाक कैसे डिजाइन करनी है, यह समझ में आता है. इसी के चलते मेरे लिए अपनी फिल्मों के किरदारों के अनुरूप पोशाकों को अपनी डिजाइनर के साथ बैठ कर डिजाइन करवाना आसान होता है. इस के अलावा अब मैं ने अपना ऐप शुरू किया है. अब मैं अपना खुद का लेबल शुरू करने वाली हूं.

आप को अपने ऐप की जरूरत क्यों महसूस हुई?

मुझे जरूरत महसूस नहीं हुई, लेकिन ऐप बनाने वाली कंपनी इस्कापेक्स ने मुझ से संपर्क किया. उन्होंने मुझे ऐप के बारे में विस्तृत जानकारी दी. तब मुझे एहसास हुआ कि ऐप होना कितना जरूरी है, क्योंकि इस में बहुत कुछ है.

मेरे फैंस मेरे संपर्क में आने के लिए मेरे बारे में जानकारी हासिल करने के लिए अलगअलग सोशल मीडिया यानी कि इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर वगैरा पर जाते हैं. इससे उनका काफी समय बरबाद होता है.

अब उन्हें मेरे बारे में किसी भी जानकारी को हासिल करने के लिए अलगअलग सोशल मीडिया पर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्हें सारी जानकारी मेरे ऐप से मिल जाएगी.

किन फिल्मकारों के साथ काम करना चाहती हैं?

मैं संजय लीला भंसाली के साथ फिल्में करना चाहती हूं. यदि वे अपनी किसी ऐतिहासिक फिल्म से जुड़ने का औफर देंगे, तो मैं आंख मूंद कर उन के इस औफर को स्वीकार कर लूंगी.

मैं संजय लीला भंसाली से फिल्म की पटकथा भी नहीं मांगूगी, क्योंकि मुझे पता है कि संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में महिला किरदारों को बहुत ही भव्यता व शालीनता के साथ पेश करते हैं. उनकी फिल्म में महिला पात्र हमेशा सशक्त होते हैं.

आप एक राजनीतिज्ञ परिवार से जुड़ी हुई हैं. तो क्या फिल्मों में क्या करना है या क्या नहीं ऐसा कुछ है?

बिलकुल नहीं. मैंने कोई सीमाएं नहीं बनाई हैं. मैं किरदार की मांग के अनुरूप हर तरह की पोशाक पहनने के लिए तैयार हूं. मैं ने अपने पिता व भागलपुर से कांग्रेस के विधायक अजीत शर्मा के लिए चुनाव प्रचार किया है. मगर मेरा राजनीति से जुड़ने का कोई इरादा नहीं है.

आप ने एक चीनी फिल्म ‘झौंगजौंग’ की थी. कोई दूसरी चीनी फिल्म करने वाली हैं?

ऐतिहासिक फिल्म है. पिछले वर्ष चीन में प्रदर्शित हुई और सफल हुई. वहां फिल्म करने का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा. वहां फिल्मकार पटकथा, विषय व चरित्र पर बहुत बारीकी से काम करते हैं. यदि दूसरी फिल्म का औफर मिला, तो जरूर करना चाहूंगी.

अब दक्षिण भारतीय फिल्में नहीं कर रही हैं?

जब किसी अच्छे कथानक वाली फिल्म का औफर मिलेगा, तो जरूर करना चाहूंगी.

किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

कोई सीमारेखा तो खींची नहीं है. मगर मैं संजीदा या गंभीर किस्म के किरदार फिलहाल नहीं निभाना चाहती. मैं हमउम्र के हलकेफुलके किरदारों को ही निभाना चाहती हूं. रोमांटिक किरदारों को निभाना चाहती हूं.

सच कहूं तो मुझे ढेर सारे चरित्र निभाने हैं. अभी तो मेरे कैरियर की शुरुआत हुई है. मुझे उम्मीद है कि अभी मेरी राह में तमाम औफर आएंगे. मैं यह भी अच्छी तरह से समझती हूं कि मैं उस मुकाम पर नहीं हूं, जहां शाहरुख खान या सलमान खान हैं.

इन सभी कलाकारों ने 20-25 साल के कैरियर में 2-3 सौ फिल्में की हैं. तो जब मैं उस मुकाम पर पहुंचूंगी, तो शायद मैं लोगों से कह सकूंगी कि मुझे यह किरदार या यह फिल्म करनी है.

सच यही है कि जो दूसरे कर रहे हैं, उन से मैं कुछ अलग काम करना चाहती हूं. मेरी कोशिश रहती है कि मैं जो भी किरदार निभाऊं वह मेरे लिए ड्रीम रोल साबित हो. इस के लिए मैं अपनी तरफ से पूरी मेहनत करती हूं.

कोई खास किरदार जो करना चाहती हों?

ऐसा कुछ नहीं है. मैं अलगअलग तरह की फिल्में करना चाहती हूं. हर जौन में काम करना है. मुझे लगता है कि जिंदगी में काम ज्यादा और आराम कम करना चाहिए. तो मेरी कोशिश यही है कि मैं बहुत सी फिल्में करूं और सब अलग तरह की हों, जिस से मेरे अंदर की अभिनय कला का विकास हो सके. आप को याद होगा कि मैं ने अभिनय की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. जो कुछ सीखा है, काम करते हुए सीखा है.

शौक?

कुकिंग, पढ़ना, कुत्तों के साथ खेलना, संगीत सुनना मुझे पसंद है. मुझे बचपन से ही नृत्य का शौक रहा है. मैं ने कत्थक की विधिवत ट्रेनिंग ली है. इसके अलावा मैंने जेज, सालसा जैसे कई वैस्टर्न डांस के फौर्म की भी ट्रेनिंग हासिल की.

पसंदीदा अभिनेत्री?

विद्या बालन, मधुबाला, कैमरोन डियाज.

खुशबू ही नहीं बीमारी भी देते हैं फूल

फूल यूं तो खुशबू देते हैं लेकिन इनके परागकण जब एलर्जिक होते हैं तो सांस लेना दूभर करते हैं. अक्सर आपने देखा होगा कि हर इंसान को किसी न किसी चीज से एलर्जी होती हैं, किसी को भीड़ व गर्द से एलर्जी है, तो वहीं सैकड़ों लोग हर साल दवाओं की एलर्जी से जान गंवा बैठते हैं. कई लोगों को ठंड से शरीर पर दाने हो जाते हैं, किसी को सूरज की रोशनी में जाने पर एलर्जी हो जाती है. यानी किसी व्यक्ति को किसी भी पदार्थ से एलर्जी हो सकती है.

फूलों के छोटे-छोटे परागकणों के कारण भी कई लोगों को एलर्जी हो जाती है. यह एलर्जी वसंत ऋतु में फूल खिलने के समय बहुत आम होती है. भारत में यह आम नहीं है लेकिन अमेरिका व यूरोप जैसे ठंडे देशों में इस का काफी असर देखा गया है. अमेरिका में 4 करोड़ लोगों में यह एलर्जी पाई जाती हैं. यूरोप में हर 5वें शख्स में यह एलर्जी है. दरअसल, पश्चिमी देशों में सर्दी शुरू होने से पहले ही पतझड़ आ जाता है. सर्दी के खत्म होने पर जब वसंत ऋतु आती है तो पेड़ों पर लगे रंग-बिरंगे नए फूल देखने में बहुत सुंदर लगते हैं लेकिन मन को लुभाने वाले इन फूलों में से निकलते हैं छोटे-छोटे बीज जिन्हें पौलेन ग्रेन या परागकण कहा जाता है. ये हवा में मिल कर चारों तरफ फैल जाते हैं. इन के कारण नाक और गले में जलन व सांस लेने में दिक्कत आने लगती है.

पौलेन सीधा फेफड़ों पर जम कर असर करता है. पौलेन वास्तव में इतने बारीक होते हैं कि ये सांस लेते वक्त कब मुंह में चले जाते हैं, इसका किसी को भी पता नहीं चल पाता और ये अत्यधिक बारीक होने के कारण फेफड़ों पर परत बना देते हैं, जिससे अचानक ही सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. इसके अलावा, पौलेन फेफड़ों में पहुंच कर या गले में संक्रमण कर सकता है. इससे खासकर एलर्जी वाले मरीजों को दिक्कत होती है.

ऐसा भी माना जाता है कि अधिक साफ-सफाई वाले देशों में इस बीमारी का ज्यादा असर होता है. इसकी वजह यह है कि साफ वातावरण में रहकर शरीर की बीमारी से लड़ने की क्षमता यानी इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिसके कारण शरीर बीमारियों का मुकाबला करने में बेबस महसूस करने लगता है.

शायद यही वजह है कि भारत में यह एलर्जी उतनी आम नहीं है. हां, बड़े शहरों में जहां लोग अपना सारा दिन एयरकंडीशंड कमरों में बिताते हैं, वे आसानी से इस एलर्जी के शिकार हो जाते हैं.

क्यों होती है एलर्जी

सवाल यह उठता है कि कुछ लोगों को परागकण से एलर्जी क्यों होती है और यह एलर्जी किस तरह से हमारे शरीर को प्रभावित करती है? इस बारे में डाक्टर कोचर का कहना है कि ये छोटे-छोटे परागकण नाक में घुस कर उसके अंदर की श्लेष्मा की परत से चिपक जाते हैं, इसके बाद ये नाक से गले तक पहुंच जाते हैं, जहां इन्हें या तो निगल लिया जाता है या फिर खांस कर बाहर निकाल दिया जाता है. इससे कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन कभी-कभी परागकण, रोग प्रतिरक्षा तंत्र यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की ताकत पर असर करते हैं.

दरअसल, समस्या की जड़ पराग में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जिन लोगों को पराग से एलर्जी होती है, उन के शरीर का रोग प्रतिरक्षा तंत्र कुछ खास किस्म के पराग के प्रोटीन को खतरा समझने लगता है. इसलिए जब उन के शरीर में ये परागकण घुस आते हैं, तो ऐसा चक्र शुरू हो जाता है कि जिस से शरीर के उतकों में पाई जाने वाली मास्ट कोशिकाएं फट जाती हैं और ये बड़ी तादाद में हिस्टामीन नाम का पदार्थ छोड़ती हैं.

हिस्टामीन की वजह से खून की नलियां फैल जाती हैं और उन में से पदार्थों के आरपार जाने का रास्ता खुल जाता है. इस वजह से बीमारियों से लड़ने वाली कोशिकाओं से भरा द्रव्य बह कर बरबाद हो जाता है. नतीजनन, नाक बहने लगती है और उस में खुजली होने लगती है, ऊतक फूल जाते हैं और आंखों से पानी आने लगता है.

फूलों में मौजूद पौलेन की वजह से लोगों को अस्थमा की एलर्जी भी हो जाती है. बच्चों का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, इसलिए उन्हें एलर्जी की समस्या ज्यादा होती है. कुछ बच्चों की सांस की नली असाधारण रूप से संवेदनशील होती है, जो वातावरण में मौजूद धूल के कणों की वजह से सिकुड़ जाती है और उस में सूजन आ जाती है, इसी वजह से बच्चों को सांस लेने में तकलीफ और खांसी की समस्या होती है. आमतौर पर फूलों के परागकणों से यह एलर्जी होती है. इसलिए जहां तक संभव हो, बच्चों को इन से दूर रखने की कोशिश करें.

लक्षण पहचानें…

–  छींकें और आंखों से पानी आना.

–  आंखों का लाल होना.

–  खांसी, जुकाम और नजला होना.

–  कन्जेशन और गले में खारिश.

–  शरीर में जगहजगह चकत्ते पड़ना.

–  सांस लेने में दिक्कत होना.

–  तालू, नाक या आंखों में खुजली होना.

ये बात शायद आप नहीं जानते होंगे कि फूलों के परागकण के संपर्क में आने के कारण अस्थमा का अटैक भी आ सकता है. वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों की हवा में घुले हुए फफूंद और परागकण एलर्जी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं. यह बात पर्यावरण मंत्रालय की ओर से 2008 में विभिन्न शहरों पर किए गए एक सर्वे में भी सामने आ चुकी है. सर्वे में फफूंद के 40 और अन्य 70 प्रकार के परागकण एलर्जी के लिए विशेष कारण बताए गए थे.

कैसे करें बचाव

–  पौलेन प्रभावित क्षेत्रों में जाने से बचें.

–  धुएं से बचें.

–  पौलेन से बचने के लिए अपने पास रूमाल रखें.

–  हवा चलने के साथ यदि पौलेन उड़ रहा हो तो रूमाल से अपना मुंह ढक लें.

–  यदि परागकणों से एलर्जी है तो दोपहर के वक्त, जब परागकणों की संख्या बढ़ जाती है, तो बाहर काम करने या खेलने से परहेज करें.

–  बगीचे या पत्तियों के ढेरों में भी काम न करें.

–  पौलेन से बचने के लिए मास्क पहनना चाहिए. उन लोगों को जरूर मास्क का प्रयोग करना चाहिए जिन्हें श्वास से संबंधित समस्या है.

–  घर में जाते ही अपने हाथपांवमुंह जरूर धोने चाहिए.

–  आंखों को बचाने के लिए चश्मा  लगाएं.

–  छोटे बच्चों को परागकणों के संपर्क में आने से बचाएं.

–  जिन लोगों को इस से एलर्जी है वे डाक्टर के निर्देशानुसार एंटी एलर्जिक दवा हर वक्त अपने पास रखें.

–  धुले हुए सूती कपड़े पहनें.

–  अस्थमा और एलर्जी के मरीज दवाइयों का सेवन करते रहें.

–  अधिक परेशानी होने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

–  एलर्जी का कारण जानने के लिए सब से पहले इस का टैस्ट कराएं और फिर डाक्टर के निर्देशानुसार इस का इलाज करें.

(यह लेख ईएनटी स्पैशलिस्ट डा. हरप्रीत सिंह कोचर और स्किन स्पैशलिस्ट डा. प्रदीप सेठी से बातचीत पर आधारित है.)

सही वक्त पर सही आउटफिट

भारत विभिन्न परंपराओं के साथसाथ परिधानों के भी कई प्रकार समेटे हुए है. यह देश अलगअलग भाषा, संस्कृति और खानपान के साथसाथ अलगअलग पहनावे के लिए भी दुनिया भर में मशहूर है. यह एक ऐसा देश है जहां कदमकदम पर फैशन के अनेक रंग और ढंग बिखरे हुए हैं. यदि सिर्फ परिधानों की बात की जाए तो भारत में हर मौके के लिए अलगअलग आउटफिट निश्चित हैं. लेकिन जब ट्रैंड और स्टाइल का संगम होता है तो आउटफिट की रूपरेखा बदल जाती है. पारंपरिक होते हुए भी उस में फैशनेबल का टैग लग जाता है.

परिधान पुराना अंदाज नया

दरअसल, भारत में अलगअलग समय पर अलगअलग देशों के राजाओं की हुकूमतें रही हैं और हर शासनकाल अपने साथ अलग पहनावा ले कर भारत आया. रजिया सुलतान के पहनावे से प्रभावित रजिया सूट और मुगल वंश की अनारकली के अनारकली सूट अब तक भारत में महिलाओं के फैशन का विस्तार कर रहे हैं. कहने के लिए यों तो ये बहुत ही पुराने परिधान हैं, लेकिन फैशन ने इन्हें चमका दिया है.

इन की रूपरेखा में भी बदलाव किया गया है. अपने नए कलेवर में इस तरह के सूट शादी और छोटेमोटे फैमिली फंक्शनों के लिए उपयुक्त हैं. लेकिन आप किसी की बर्थडे पार्टी या औफिशियल पार्टी में इस तरह के सूट पहन कर जाएंगी तो यह फैशन ब्लंडर ही कहलाएगा.

वैस्टर्न फैशन

इस के साथ ही भारत में आए ब्रिटिश राज ने भी भारतीयों की फैशन सैंस को बढ़ाया है. यही वजह है कि आज भारतीय महिलाओं को वैस्टर्न फैशन में आसानी से लिपटा देखा जा सकता है. विनीता कहती हैं कि अब हर महीने नया फैशन मार्केट में देखने को मिल जाता है. हर नई चीज को एक बार खुद पर जरूर आजमाना चाहिए. लेकिन इस बात की सैंस बहुत जरूरी है कि कौन सा आउटफिट किस अवसर पर पहना जाए.

कई लड़कियां दोपहर के समय हो रही पार्टी में ईवनिंग गाउन पहन कर चली जाती हैं जबकि नाम से ही साफ है ईवनिंग गाउन ईवनिंग पार्टी के लिए होते हैं. ईबे कंपनी द्वारा हाल ही में 1000 महिलाओं पर कराए गए सर्वे के अनुसार लगभग 15% महिलाएं यह गलती करती हैं.

फैशन जो बनाए जवां

फैशन यानी जो आप को अपटुडेट रखे. लेकिन अपटुडेट होने के चक्कर में कई बार महिलाएं इस बात का खयाल नहीं रख पातीं कि उन की उम्र के हिसाब से उन पर क्या जंचेगा. खासतौर पर घरेलू महिलाओं के लिए फैशन का मतलब रंगबिरंगी साड़ी या साधारण सी सलवारकमीज ही होती है. विनीता कहती हैं कि साड़ी तक सीमित महिलाओं को हम यह नहीं कह सकते कि वे फैशनेबल नहीं हैं.

आजकल बाजार में साडि़यों के कई पैटर्न मौजूद हैं. उन्हें ट्राई किया जा सकता है. लेकिन जरूरी है पैटर्न के हिसाब से डै्रपिंग. जी हां, फैशन वर्ल्ड में साडि़यों के साथ बहुत प्रयोग हो रहे हैं. अब साडि़यों में डिजाइनर्स क्रिएटिविटी दिखते हैं. खासतौर पर ड्रैपिंग के अलगअलग तरीकों को ध्यान में रख कर साड़ी को डिजाइन किया जाता है. लेकिन महिलाएं उसी पुराने ढर्रे पर हर साड़ी ड्रैप कर लेती हैं और यहीं वे फैशन की दौड़ से बाहर हो जाती हैं.

आउटफिट्स ही नहीं ऐक्सैसरीज के मामले में भी महिलाएं कई बार गलतियां कर बैठती हैं. सिर्फ आउटफिट अच्छा होने से ही बात नहीं बनती. ऐक्सैसरीज आउटफिट के लुक को इनहैंस करती हैं. इसलिए इन का चुनाव सही और सीमित होना चाहिए. लेकिन बहुत महिलाएं आउटफिट और ऐक्सैसरीज के चुनाव में सही तालमेल नहीं बैठा पाती हैं जैसे जो हेयर ऐक्सैसरीज ट्रैडिशनल आउटफिट के साथ पहननी चाहिए उन इस्तेमाल कैजुअल वियर के साथ करना फैशन मिस्टेक ही है.

बहुत अधिक फंकी लुक वाले फुटवियर पहनने से बचें. ये आप को फैशनेबल लुक से ज्यादा चाइल्डिश लुक देंगे. माना कि ऐनिमल प्रिंट ट्रैंड में हैं, लेकिन ध्यान रखें ये कैजुअल प्रिंट हैं. प्रोफैशनल और ट्रैडिशनल आउटफिट्स में इन का प्रयोग न करें. इनरवियर को आउटवियर पर फ्लौंट करने का फैशन अब पुराना हो चुका है और यह बहुत भद्दा भी लगता है, इसलिए ध्यान रखें कि आप की ब्रा की बैल्ट और पैंटी आउटवियर से ढकी रहे. ज्वैलरी पहनने की शौकीन हैं तो अवसर के अनुसार उस का चयन करें.

बाजार में यों तो कई तरह की ज्वैलरी हैं लेकिन इस का चयन ड्रैस पैटर्न पर निर्भर करता है. आप कितनी भी अच्छी ड्रैस पहन लें, लेकिन मेकअप और हेयरस्टाइल पर ध्यान न दिया जाए तो आप फैशनेबल कम फूहड़ ज्यादा लगेंगी.

ट्रैवल इंश्योरैंस: बेफिक्री में बीते छुट्टियां

एक महिला पत्रिका में उपसंपादक अनुराधा ने अपनी 10वीं एनिवर्सरी के मौके पर शादी के समय पूरे न हुए ख्वाबों को अब पूरा करने और जीभर एंजौय करने की ठानी थी. इस के लिए उस ने महीनों से तैयारी की थी. एकएक पैसा जोड़ा था. अपनी तमाम सहेलियों से इस संबंध में खुशीखुशी चर्चा की थी. जिस हिल स्टेशन उन्हें जाना था, उस ने वहां के इतिहास भूगोल के बारे में खूब ढूंढ़ ढूंढ़ कर पढ़ा था.

लेकिन ऐन मौके पर समय फिर दगा दे गया. पता चला कि उत्तरपूर्व में कानून और व्यवस्था की हालत खराब होने के कारण उसे जहां जाना था वहां कर्फ्यू लगा दिया गया है. इस कारण वहां जाने वाली सभी फ्लाइटें कैंसिल कर दी गई हैं.

अनुराधा, उस के पति और उन के 2 छोटेछोटे बच्चे महीनों से एकएक दिन गिनगिन कर गुजार रहे थे और हर शाम उन्होंने एक बड़ा वक्त उन योजनाओं को बनाने में खर्च किया था कि वे कैसेकैसे एंजौय करेंगे.

आर्थिक नुकसान से बचें

ऐन मौके पर बिगड़ी कानून और व्यवस्था की स्थिति ने सब गुड़गोबर कर दिया. लेकिन यह कोई अनहोनी घटना नहीं थी. उत्तरपूर्व के जो राजनीतिक हालात हैं उन के कारण वहां ऐसा अकसर हो जाता है. यह अकेले अनुराधा के साथ घटी घटना नहीं थी बल्कि और भी तमाम लोगों के साथ भी पहले ऐसा हो चुका था.

सवाल है ऐसी स्थिति में जब ऐन मौके पर आप के तमाम सपनों पर पानी फिर जाए, आप का सबकुछ कियाधरा बराबर हो जाए तो क्या करें? क्या इसे नियति मान कर चुपचाप बैठ जाएं और जो आर्थिक चपत लग चुकी हो उसे बुरे सपने की तरह भूल जाएं? या फिर घूमने न जा सकने पर कम से कम अपने आर्थिक नुकसान को तो बचाएं? आप पूछेंगे यह कैसे संभव है?

हम कहेंगे ये सब संभव है बशर्ते हम कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम बनाते समय इस आशंका को भी ध्यान में रखें कि ऐन मौके पर जाना कैंसिल भी हो सकता है.

जी हां, आप बिलकुल सही सुन रहे हैं. किसी प्राकृतिक आपदा को रोकना, ऐन मौके पर कानून और व्यवस्था की हालत बिगड़ जाना या ऐसी ही किसी परिस्थिति पर हमारा कोई वश नहीं होता. ऐसी तमाम स्थितियों पर हम असहाय हो जाते हैं. लेकिन इस स्थिति से बचना भले ही न संभव हो पर आप अपनी यात्रा का बीमा करवा सकते हैं ताकि आप की गाढ़ी कमाई बरबाद न हो.

छुट्टियों का आनंद मनाते हुए आप के साथ कुछ अनहोनी न हो, लेकिन यदि ऐसा हो ही जाए तो इस की वजह से आप के पीछे बचे आप के परिवार के लोग एक झटके में ही अनाथ जैसा न महसूस करें.

रिस्क कवर कराएं

खराब मौसम या लचर कानून व्यवस्था की स्थिति के चलते अगर आप की फ्लाइट कैंसिल हो जाती है या आप का पासपोर्ट गुम हो जाता है तो आप को दरदर की ठोकरें न खानी पड़ें. ठीक है कि एक जमाना था जब छुट्टियों का बीमा संभव नहीं था. लेकिन अब यह कोई अजनबी शब्द नहीं है.

यूरोप और अमेरिका में तो पिछले 70 के दशक से ही यात्रा का बीमा होता रहा है. हमारे यहां भी पिछले कई सालों से ट्रैवल इंश्योरैंस हो रहा है. मुंबई, गोआ, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद तमाम शहरों में हौलिडे इंश्योरैंस अब काफी बड़ी संख्या में होने लगे हैं.

जब तक देश में बीमा सिर्फ सरकारी एजेंसियों के हाथ में था तब तक बहुत सारी स्थितियों, चीजों और अवस्थाओं का बीमा संभव नहीं था. लेकिन अब बीमा क्षेत्र सिर्फ सरकारी एकाधिकार में नहीं रहा. आज की तारीख में बीमा के क्षेत्र में निजी कंपनियों का खासा दखल होचुका है. यही वजह है कि नई से नई परिघटनाएं, चीजें और अवस्थाएं बीमा के दायरे में आ रही हैं.

हौलिडे इंश्योरैंस यानी ट्रैवल इंश्योरैंस बीमा के दायरे में आने वाली नई चीज है. हालांकि अभी हमारे यहां यात्रा का बीमा कराए जाने का इतना ज्यादा चलन नहीं बढ़ा कि आप को अपने इर्दगिर्द चारों तरफ ऐसे लोग नजर आएं. लेकिन हां, अगर आप कोशिश करें तो ऐसे लोगों से आप जरूर मिल सकते हैं क्योंकि जैसेजैसे हिंदुस्तानियों की आय बढ़ रही है, हौलिडे इंश्योरैंस पर्यटन जीवनशैली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनता जा रहा है.

भरपूर लुत्फ उठाएं

आज की तारीख में यात्रा का मतलब महज किसी मशहूर जगह जा कर किसी भी तरह, कितनी भी मुसीबतों में रहते हुए उस जगह को देख आना भर नहीं है और न ही समुद्र के किनारे मौजमस्ती या किसी पहाड़ी रिजौर्ट की सैर करना भर रह गया है. आज पर्यटन में बंगी जंपिंग, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग, डीप सी वौकिंग, ट्रैकिंग जैसे तमाम एडवैंचरस स्पोर्ट्स भी शामिल हो चुके हैं.

लोग अपनी छुट्टियों का भरपूर लुत्फ उठाने के लिए जब पर्यटन के लिए निकलते हैं तो इन तमाम चीजों को भी अपने कार्यक्रमों में शामिल करते हैं. पिछले साल चेन्नई स्थित एक निजी साधारण बीमा कंपनी ने ऐसे तमाम एडवैंचरस स्पोर्ट्स के लिए इंश्योरैंस की सुविधा उपलब्ध कराई ताकि आप अपने पैसों का भरपूर लुत्फ ले सकें और अगर लुत्फ नहीं ले पाए तो आप का पैसा यों बरबाद न हो.

कहते हैं पुराने जमाने में जब लोग यात्रा पर निकलते थे तो अपने आसपड़ोस वालों से, रिश्तेदारों से, घरपरिवार के लोगों से मिल कर जाया करते थे क्योंकि कोई निश्चित नहीं होता था कि वे लोग सकुशल वापस लौट पाएंगे.

लेकिन अब स्थिति बदल गई है, यात्राएं छोटी हो गई हैं, कम खतरनाक रह गई हैं. हर जगह मैडिकल की सुविधा उपलब्ध है. इंटरनैट, मोबाइल और टैलीफोन आदि के चलते आदमी हर समय अपने घरपरिवार से जुड़ा भी रहता है. लेकिन संकट तो संकट है. अभी भी ऐसा नहीं है कि आप घर से खुशियों का लुत्फ उठाने के लिए पर्यटन को जाएं और गारंटी से घर सकुशल वापस लौट ही आएं.

माना कि कई तरह की समस्याओं पर काबू पा लिया गया है लेकिन दुस्साहसिक खेलों में हिस्सा लेतेसमय कब कोई जिंदगी से चूक जाए, भला इस की गारंटी कौन ले सकता है. इसलिए छुट्टियों में घर से निकलते समय रिस्क कवर करा लेना अक्लमंदी का ही काम है.

पति के साथ कमरे में सोफिया कर रही थीं…और वायरल हो गया वीडियो

अक्सर विवादों में रहने वाली सोफिया हयात एक बार फिर चर्चाओं में हैं. इस बार उन्होंने कुछ ऐसा किया है जिसे जानकर कोई भी हैरान रह जाएगा. आए दिन फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाली सोफिया ने इस बार हदें पार करते हुए अपने पति के साथ एक इंटीमेट वीडियो पोस्ट किया है.

सोफिया ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें वो पति व्लाद स्टैन्श्यू के साथ इंटीमेट होती नजर आ रही हैं. इसके साथ उन्होंने कैप्शन लिखा है – ये है मेरा नया म्यूजिक वीडियो और सॉन्ग ओम शांति ओम. उन्होंने आगे लिखा- जागो बच्चों, आप स्वर्ग में हो. सच्चे प्यार और इंटीमसी के बारे में सभी को जानना चाहिए. आपको बता दें कि सोफिया ने कुछ समय पहले ही अपने से 10 साल छोटे व्लाद स्टैन्श्यू से शादी की है. जो एक आर्किटेक्ट हैं.

सोफिया कभी नन बन जाती हैं तो कभी शादी कर लेती हैं. ऐसे में असली सोफिया क्या हैं इसे तय करना मुश्किल हो जाता है. बता दें ये कोई पहली बार सोफिया ने ऐसा नहीं किया है. वह इससे पहले भी कई बार सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर कर चुकी हैं. सोफिया इसी वजह से काफी चर्चाओं में रहती हैं.

इससे पहले सोफिया ने पोस्ट की थी बैकलेस फोटो

सोफिया ने हाल ही में अपनी एक बेहद बोल्ड फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी. इस फोटो में उन्होंने कुछ पहना नहीं हुआ था और फोटो उनके बैक की थी. सोफिया की कमर पर सिर्फ खुले बाल दिखाई दे रहे थे. उनके इस फोटो को पोस्ट करते ही सोशल मीडिया पर इसे लाइक और कमेंट करने वालो का तांता लग गया था. इसके साथ ही फोटो सोशल मीडिया पर आते ही वायरल हो गई थी. इस फोटो को पोस्ट करते हुए सोफिया ने अपने बालों की खूबसूरती का बखान करने वाला कैप्शन भी दिया था.

खैर, पहले आप देखिए वीडियो और फिर देखिए सोफिया की बैकलेस फोटो

 

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फिल्म रिव्यू : बैंक चोर

इन दिनों एक नए किस्म का सिनेमा बनने लगा है. फिल्मकार चाहते हैं कि दर्शक अपना दिमाग, अपना विवेक सब कुछ घर पर रखकर उनकी फिल्म देखने आएं और उनकी वाहवाही करते हुए चले जाएं, जो कि नामुमकिन सा है. यही वजह है कि हास्य व रोमांचक फिल्म ‘‘बैंक चोर’’ दर्शकों को आकर्षित करने या हंसाने की बजाय बोर करती है.

फिल्म की कहानी तीन बैंक चोरों के इर्द गिर्द घूमती है. एक महाराष्ट्रियन युवक चंपक (रितेश देशमुख) दो दिल्ली के युवकों गेंदा (विक्रम थापा) और गुलाब (भुवनेश अरोड़ा) के साथ बैक में चोरी करने जाता है. फिर एक आफिसर अमजद खान (विवेक ओबेराय), एक टीवी रिपोर्टर गायत्री गांगुली ( रिया चक्रवर्ती), एक दूसरे गैंग का चोर (साहिल वैद्य) के अलावा सिक्यूरिटी फोर्स, अलार्म, टीवी कैमरा और अनावश्यक गीत संगीत के माध्यम से लोगों को हंसाने की कहानी है.

मगर फिल्म का एक भी सीन ऐसा नहीं है, जहां दर्शक को हंसी आ सके. हर किरदार वही घिसे पिटे व सुने सुनाए जोक्स ही सुनाता है. इंटरवल से पहले दर्शक सोचने पर मजबूर हो जाता है कि वह कहां फंस गया. इंटरवल के बाद फिल्म सधती हुई नजर आती है, मगर कुछ समय बाद बिखर जाती है. इतना ही नहीं फिल्म का क्लायमेक्स बहुत निराश करता है.

पटकथा लेखक बलजीत सिंह मारवाह ने पटकथा लेखन में बहुत लापरवाही बरती है. बम्पी का निर्देशन भी उत्साहित नहीं करता. परिणामतः रितेश देशमुख व विवेक ओबेराय जैसे प्रतिभाशाली कलाकार भी फिल्म को संभाल नहीं पाते.

दो घंटे 6 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘बैंक चोर’’ का निर्माण ‘वाय एफ’ फिल्मस के बैनर तले किया गया है. निर्देशक बम्पी हैं. कलाकार हैं-रितेश देशमुख, विवेक ओबेराय, भुवनेश अरोड़ा, विक्रम थापा  व अन्य.

बेटी सारा के डेब्यू से खुश नहीं हैं पापा सैफ

सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान डायरेक्टर अभिषेक कपूर की फिल्म ‘केदारनाथ’ से डेब्यू करने जा रही हैं. उनके इस डेब्यू से पापा सैफ खुश नहीं हैं तो वहीं मां अमृता सिंह उनकी मदद कर रही हैं.

सैफ ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘मैं सारा के अभिनय पर उंगली नहीं उठा रहा हूं, मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि ये स्टेबल प्रोफेशन नहीं है, इस प्रोफेशन में सभी डरे हुए हैं. आप कितनी ही बेहतरीन एक्टिंग कर लें, लेकिन इस प्रोफेशन में कोई गारंटी नहीं है. कोई भी पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए इस तरह लाइफ नहीं चाहेंगे’.

सैफ ने इंटरव्यू में कहा, ‘सारा हमेशा से एक्ट्रेस ही बनना चाहती थी. मुझे याद कुछ साल पहले जब हम एक स्टेज के लिए विदेश गए थे तो सारा भी मेरे साथ थी. जब मैं सलमान खान और अन्य स्टार्स के साथ स्टेज पर था तो सारा बैक स्टेज से हमें देख रही थी. उसे देखकर मुझे उस वक्त एहसास हुआ था कि सारा एक्ट्रेस बनना चाहती है’.

बता दें कि डायरेक्टर अभिषेक कपूर की ये फिल्म इस साल के अंत तक फ्लोर पर आ जाएगी. फिल्म में सारा के अपोजिट एक्टर सुशांत सिंह राजपूत नजर आएंगे. बीते दिनों सारा, मां अृमता के साथ सुशांत सिंह और अभिषेक कपूर के साथ डिनर पर भी गईं थी.

 

 

 

 

 

 

 

 

इन बॉलीवुड स्टार्स का छोटे पर्दे पर नहीं चला जादू

बॉलीवुड के ऐसे कई स्टार्स हैं, जिनका बड़े पर्दे पर तो खूब जादू चलता है लेकिन छोटे पर्दे पर आते ही उनकी चमक फीकी पड़ने लगती है. बॉलीवुड में कई ऐसे सितारे हैं जो बड़े पर्दे की कामयाबी को छोटे पर्दे पर दोहरा नहीं सके. कुछ ऐसे ही स्टार्स की छोटे पर्दे की पारी पर एक नजर.

अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति गेम शो से स्मॉल स्क्रीन पर वापसी कर रहे हैं. ये बेहद कामयाब शो है, मगर जब बिग बी ने अनुराग कश्यप के शो युद्ध से फिक्शन में किस्मत आजमायी तो फ्लॉप हो गए. ये शो खास कामयाबी हासिल नहीं कर पाया था.

शाहरुख खान

शाहरुख खान ‘क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं’, शो के साथ छोटे पर्दे पर आए थे, लेकिन शो को कुछ खास लोकप्रियता हासिल नहीं हुई. शाहरुख के शो जोर का झटका को भी खास दर्शक नहीं मिल सके थे.

गोविंदा

2001 में गोंविदा ने ‘छप्पड़ फाड़ के’ रिएलिटी शो को होस्ट किया, लेकिन यह शो भी दर्शकों को खास रास नहीं आया. शो को वक्त से पहले ही ऑफ एयर कर दिया गया था.

अर्जुन कपूर

खतरों के खिलाड़ी सीजन 7 को अर्जुन कपूर ने होस्ट किया था. इस सीजन को दर्शकों ने खास पसंद नहीं किया था. शो को अच्छी टीआरपी नहीं मिली थी. सीजन 8 फिर से रोहित शेट्टी होस्ट कर रहे हैं.

माधुरी दीक्षित

बॉलीवुड दिवा माधुरी दीक्षित शो (कहीं ना कहीं कोई है) 2002 में लेकर आयी थीं, मगर माधुरी को जो जादू बड़े पर्दे पर दिखता है, वो इस शो में नजर नहीं आया. उम्मीद तो बहुत थी, मगर ये मेट्रिमोनियल शो एक सीजन के बाद सर्वाइव ना कर सका.

सौरी पापा

विचारों के भंवर में डूबतेउतराते अमन की पलकें भीग गईं. उस की जिंदगी को तो झंझावातों ने घेर रखा था. शुभि, उस की प्यारी सी बेटी…उस के दिल का टुकड़ा जिसे वह बेइंतहा प्यार करता था, स्याह अंधियारों में भटक रही थी और वह हर संभव कोशिश कर के भी उसे उजाले की ओर नहीं खींच पा रहा था.

रोज की तरह आज सुबह वह औफिस गया था. अभी वह अपनी टेबल पर बैठा जरूरी काम निबटा रहा था कि उस के पड़ोसी राजीव का फोन आ गया, ‘अमनजी, आप की बेटी शुभि की तबीयत अचानक खराब हो गई है. आप औफिस से सीधे सिटी अस्पताल पहुंचिए. हम शुभि को ले कर वहीं पहुंच रहे हैं.’

काल रिसीव करते समय उस ने मोबाइल कस कर न पकड़ा होता तो वह उस के हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया होता. उस का दिमाग एकाएक सुन्न हो गया था.

किसी से बिना कुछ कहेसुने वह दौड़ता हुआ औफिस से बाहर आया और कार स्टार्ट कर फुल स्पीड पर दौड़ा दी. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि रास्ते में कहीं लालबत्ती नहीं मिली. मिलती तो भी वह सारे नियमकायदों को तोड़ता हुआ निकल जाता. इस वक्त वह जिस मनोस्थिति में था उस में जैसे भी हो मौत से संघर्ष करती शुभि के करीब जल्दी से जल्दी पहुंचने के अलावा कोई विकल्प नहीं था उस के पास.

सिटी अस्पताल के इमर्जैंसी वार्ड के बाहर कालोनी में रहने वाले अमन के शुभचिंतकों की खासी भीड़ जमा थी. उसे देखते ही राजीव लपक कर उस के पास आ कर बोला, ‘‘हम ठीक वक्त पर यहां पहुंच गए थे. डाक्टरों ने उपचार शुरू कर दिया है. अब चिंता की कोई बात नहीं है.’’

‘‘आप लोगों का यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भूलूंगा,’’ वह भर्राए कंठ से हाथ जोड़ कर बोला.

‘‘आप हमें शर्मिंदा कर रहे हैं,’’ राजीव ने प्रतिरोध किया, ‘‘पड़ोसी होने के नाते यह तो हमारा फर्ज था.’’

आसपड़ोस में अच्छा व्यवहार रखने की अहमियत आज ठीक से समझ आ गई थी उसे. संकट की इस घड़ी में ये लोग साथ न होते तो पता नहीं क्या होता. उस का हलक सूखने लगा.

‘‘मैं शुभि को एक नजर देखना चाहता हूं,’’ उस ने राजीव से फरियाद की. लाख कोशिशों के बावजूद उस की आंखें झरने लगी थीं.

‘‘अभी यह ठीक नहीं होगा. डाक्टरों ने किसी को भी अंदर जाने से मना कर दिया है,’’ राजीव सहानुभूति से उस का हाथ दबा कर बोला, ‘‘प्लीज, संभालिए अपनेआप को. आप इस तरह होश खो देंगे तो आप की पत्नी का क्या होगा? उन का तो पहले से ही रोरो कर बुरा हाल हो गया है.’’

‘‘कहां है नेहा?’’ अमन चारों ओर देखता हुआ भरे स्वर में बोला.

राजीव उसे गैलरी के अंत तक ले गया. वहां कोने में पड़ी बैंच पर नेहा आंखें बंद किए अधलेटी सी बैठी थी. उस के गालों पर बहती ताजा आंसुओं की लकीर बता रही थी कि ऊपर से शांत सागर के भीतर ज्वारभाटे के कितने तूफान चल रहे थे.

अमन ने अपना कांपता हाथ नेहा के सिर पर रखा. नेहा की पलकों में हलकी सी जुंबिश हुई. अमन को देखते ही वह बिजली की गति से उठी और उस से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘थोड़ा सा जहर ला कर मुझे भी खिला दो.’’

वह जड़ हो कर रह गया.

‘‘मुझे मेरी बेटी सहीसलामत चाहिए,’’ वह हिचकियों के बीच बोली, ‘‘उसे कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूंगी.’’

‘‘सब्र करो, नेहा. अभीअभी डाक्टर साहब से बात हुई है मेरी. वे बता रहे थे कि शुभि बिलकुल ठीक है. थोड़ी देर में हम उस के पास होंगे,’’ उस की विक्षिप्त सी हालत देख कर वह बड़ी मुश्किल से बोल पाया. य-पि किसी अनहोनी की आशंका से वह खुद कांप रहा था. सबकुछ घूमता हुआ सा लग रहा था उसे, फिर भी नेहा की खैरियत के लिए सफेद झूठ बोल गया था अमन.

‘‘सच कह रहे हैं आप,’’ उस की आंखों में निश्चयअनिश्चय के भाव घुमड़ने लगे थे.

‘‘बेटी की जितनी फिक्र तुम्हें है उतनी मुझे भी है. मैं भला झूठ क्यों बोलूंगा.’’

वह बैंच पर उस के पास ही बैठ गया. उस की दलीलों से नेहा पता नहीं पूरी तरह आश्वस्त हुई थी कि नहीं, पर पहले से बेहतर नजर आने लगी थी. अमन के कंधे से सिर टिकाए उस के आंसू अब भी झर रहे थे.

नशे की अधिकता से शुभि की जान पर आ बनी थी. अमन के देखते ही देखते उस के जीवन की खुशियां हाशिए पर आती जा रही थीं और वह न चाहते हुए भी सबकुछ देखने के लिए मजबूर था.

शुभि उस की एकलौती बेटी थी. वह बहुत प्यार करता था अपनी बच्ची से. यथासंभव उस की हर इच्छा को पूरी करने का प्रयास भी किया. फिर भी पता नहीं क्या कमी रह गई थी उस के लाड़प्यार में कि शुभि उस के हाथों से फिसलती चली गई. उस का मन कर रहा था कि दीवार पर पटकपटक कर अपना सिर फोड़ ले.

समय की रफ्तार कितनी तीव्र होती है, एक अंधड़ आया नहीं कि पलक झपकते चेहरेमोहरे और हालात सबकुछ बदल जाते %E

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