आपके दुपट्टे को बनाइये अपना स्टाइल स्टेटमेंट

दुपट्टा सिर्फ ड्रेस का हिस्सा नहीं, यह स्टाइल स्टेटमेंट भी बन गया है. कंधे पर यूं ही लटकाकर इसके असर को कम न करें. इसमें भी अपनी रचनात्मकता दिखाइए और दुपट्टे को यूं ही लहराने का सिलसिला खत्म कर दीजिए. दुपट्टे का इस्तेमाल नए तरीके से कैसे करें, आइए जानें :

एपल कट कुर्ते पर स्कार्फ जैसा दुपट्टा

आप कुर्ते भी ऐसे पहनती हैं जो पारंपरिक कम और स्टाइलिश ज्यादा लगते हैं या कहें आपको वेस्टर्न लुक देते हैं, तो दुपट्टे के कारण अपना यह लुक बर्बाद न करें. फैशन डिजाइनर श्रुति संचेती कहती हैं, ‘अगर आपने एपल कट कुर्ता पहना हुआ है तो दुपट्टे को गले पर कई राउंड में डाल कर पहनिए. फिर देखिए, आप पारंपरिक कपड़े को वेस्टर्न स्टाइल में पहनकर भी शानदार दिखेंगी.’

स्कार्फ की तरह दुपट्टा

दुपट्टा पहनना मतलब बोरिंग ड्रेस और बोरिंग लुक. आप भी ऐसा मानती हैं तो दुप्पट्टे को हर उस तरह से पहनिए जैसे स्कार्फ पहना जा सकता है. जैसे एक बार क्रॉस करके या दो राउंड के बाद दोनों छोरों को आगे की तरफ डालना या फिर दुपट्टे को बालों में बांध कर दोनों सिरों को आगे की ओर ले आएं. इसके अलावा पूरे दुपट्टे को सिर्फ गले पर ही लपेट कर भी इसका बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है. श्रुति कहती हैं, ‘पहले ढाई मीटर के दुपट्टे आते थे. उनकी चौड़ाई भी काफी होती थी, ऐसे में उनकी स्टाइलिंग कर पाना उतना आसान भी नहीं होता था. पर, अब ऐसा नहीं है. आप हल्के और कम चौड़ाई वाले दुपट्टे के साथ मनमर्जी की स्टाइलिंग आजमा सकती हैं. हल्के दुपट्टे की स्टाइलिंग आप आसानी से स्कार्फ की तरह से कर सकती हैं.’

शेरोन की तरह भी अच्छा लगेगा

साधारण-सा सूट पहना है आपने, कुछ नयापन नहीं लग रहा. पर दुपट्टा बहुत सुंदर कसीदाकारी वाला है तो क्या करेंगी? उसे फैला कर पूरे कंधों से डाल लेंगी? अगली बार ऐसा मत कीजिए. अगली बार सूट पर कसीदाकारी वाला दुपट्टा पहना हो तो उसे शेरोन की तरह पहनिए. शेरोन यानी बीच पर लड़कियां बिकनी के ऊपर जिसे पहनती हैं ताकि स्टाइलिश दिखने के अलावा बॉडी भी ढकी रहे. आप तरह-तरह के स्टाइल को मिक्स और मैच भी कर सकती हैं.

साड़ी के पल्लू सा दुपट्टा

आप जिस-जिस तरह से साड़ी पहनती हैं न, बस उसी तरह से दुपट्टे को पहनना शुरू कर दीजिए. जैसे दुपट्टे का एक सिरा कमर पर ठीक वैसे ही लगाइए जैसे साड़ी में पल्लू दिखता है. दुपट्टे का दूसरा सिरा पीछे यूं हीं लटकने दीजिए. इसके अलावा दुपट्टे के साथ आप सीधे पल्लू वाली साड़ी का स्टाइल भी आजमा सकती हैं. या फिर कंधे पर एक तरफ दुपट्टे के बीच वाले हिस्से में पिन लगा दीजिए. अब एक हिस्सा पीछे थोड़ा लटकने दीजिए, फिर दूसरे हिस्से के दोनों कोनों में से एक को दूसरे कंधे पर पिन कीजिए. अब दुपट्टे का प्रिंट उस छोड़े हुए कोने के साथ पूरे सूट की खूबसूरती बढ़ाएगा.

बेल्ट भी लगेगी सुंदर

स्टाइलिश दिखने के लिए आप सूट पर बेल्ट भी बांध सकती हैं. ऐसा करने से आपके सलवार-सूट को वन-पीस ड्रेस वाला लुक मिलेगा. बस इसके लिए करना यह है कि दुपट्टे को बेसिक तरीके से डालिए. पीछे की ओर दोनों सिरे छोड़ दीजिए और फिर इन सिरों के साथ बेल्ट लगा लीजिए. मतलब ऐसे कि सिरे इसमें दब जाएं. यह लुक सच में बहुत अच्छा लगेगा. दुपट्टे की किसी और स्टाइल के साथ भी आप बेल्ट लगा सकती हैं.

शिक्षाप्रद फिल्मी गीत

फिल्में हमारे जीवन का अटूट हिस्सा हैं या कहें कि फिल्में समाज का आईना हैं तो अतिशयोक्ति न होगी. लोग फिल्मों से प्रभावित होते थे, होते हैं और होते रहेंगे. भला इस में किसे संदेह हो सकता है? बात बच्चों की करें तो यह तथ्य आसानी से समझ में आ जाता है कि चाहे उन्हें पाठ्यपुस्तकों में लिखी बातें समझ में आएं या न आएं लेकिन फिल्मों के गीत, संवाद ऐसे कंठस्थ हो जाते हैं जैसे तोता रटंत विद्या में पारंगत हो जाता है.

इसलिए हम आज के फिल्म उद्योग ‘बौलीवुड’ के हृदय से आभारी हैं. कारण, जनमत को जगाने और ‘शिक्षाप्रद’ फिल्मी गीतों की रचना में जो जिम्मेदारी उस ने उठा रखी है वह वाकई काबिलेतारीफ है. आजकल जनहित में ऐसेऐसे शिक्षाप्रद फिल्मी गीतों का निर्माण हो रहा है कि उन्हें सुनसुन कर दर्शकों का मन प्रफुल्लित हो जाता है. दिल में एक नया जोश, उमंग और अरमान उठने लगते हैं. ऐसी अद्भुत काव्य रचनाएं बच्चे, युवा और बुजुर्ग पीढ़ी की जबान पर इस कदर रचबस गई हैं कि ये फिल्मी गीत प्रेरणास्रोत का कार्य कर रहे हैं.

इन फिल्मी गीतों के ‘गूढ़ संदेश’ को आसानी से समझा जा सकता है. बशर्ते, हम अपने दिमाग का इस्तेमाल इन्हें समझने में कतई न करें. ‘तर्क’ या ‘बुद्धि’ से इन गीतों को समझना नामुमकिन है, इन्हें समझने के लिए एकदम ‘बुद्धिहीन’ होना पड़ेगा. आज के फिल्मी गीतों पर गौर फरमा लीजिए, आप भी हमारी बात आसानी से समझ जाएंगे.

‘मुन्नी बदनाम हुई…’ इस लोकप्रिय गीत ने आजकल देशविदेश में खूब धूम मचाई है. इस गीत के मूल संदेश को सब आसानी से समझ गए हैं, ‘बदनामी’ में ही लोकप्रियता का राज छिपा है. पहले भी एक नामचीन शायर महोदय ने फरमाया था, ‘बदनाम होंगे तो क्या…नाम भी तो होगा…’ वही बात हुई न? पल भर में सुपरडुपर लोकप्रियता पाने का इस से अच्छा दूसरा उपाय क्या हो सकता है?

मुन्नीजी ने अपनी बदनामी का गली- गली ढिंढोरा पिटवा कर रातोंरात लोक- प्रियता का चरम छू लिया. इस से तो हमें भी जलन होती है. इतना लिखलिख कर अभी तक हम अपने लिए एक अदद पुरस्कार या सम्मान नहीं जुटा सके. अजी, कौन भाव देता है हमें. हम तो बस कलम घिसे जा रहे हैं. एक बार एक साहित्य सेवी संस्था ने हमें सम्मानित करने का ‘सशुल्क औफर’ भी दिया था लेकिन हमारी मजबूरी थी कि हमारे पास उतनी रकम नहीं थी, सो लोकप्रियता पाने से चूक गए.

यह गीत ‘शौर्टकट’ में प्रसिद्धि पा लेने का नायाब गुरुमंत्र है. मुन्नीजी आज सब की आदर्श और प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं. आज हालत यह है कि उन की प्रेरणा पा कर उच्च, मध्यम और निम्न परिवारों की कन्याएं यथाशीघ्र बदनाम होने में जुट गई हैं ताकि वे भी लोकप्रियता की बुलंदी पा लें और जम कर पैसा बटोर सकें. हमारे लाखों युवा मुन्नीजी के बताए बदनामी के रास्ते पर चल कर फटाफट लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचने को बेताब हैं.

लेकिन एक बात समझ से बाहर है कि बदनाम हो कर ‘लोकप्रियता’ पाने का ‘झंडूबाम’ से भला क्या संबंध है? हो सकता है कि कवि ने इस ‘रूपक’ को इस गीत की रचना में किसी खास प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया हो. यह हमारी कमअक्ली ही है जो प्रसिद्धि पाने और ‘झंडूबाम’ होने के बीच के अनिवार्य और शाश्वत संबंध को नहीं समझ पा रहे हैं. यह निश्चय ही कोई खास संदेश देती कालजयी काव्य रचना है.

‘मुन्नी की बदनामी’ का एक हमसाथी गीत ‘शीला की जवानी…’ और भी ज्यादा शिक्षाप्रद फिल्मी गाना है. ‘शीला’ अपनी जवानी और सैक्सी फिगर का सार्वजनिक प्रदर्शन करकर के युवा, बुजुर्ग और बच्चों में एक नया जोश भर रही है. कितना सुखद अनुभव होता है जब नर्सरी के बच्चे ‘शीला-सैक्सी-शीला की जवानी’ जैसी विशुद्ध साहित्यिक शब्दावली का धड़ल्ले से उच्चारण करते हुए बुलंद आवाज में इस गीत को गाते नजर आते हैं.

दिल को बड़ा संतोष होता है कि फिल्मों के जरिए ही सही बच्चों का सामान्य ज्ञान और ‘आई क्यू’ तेजी से ‘इंपू्रव’ हो रहे हैं. ये दृश्य मन को प्रफुल्लित करते हैं. हमारे देश में वैसे तो चाहे ‘सैक्स शिक्षा’ के नाम पर कितना ही विवाद या बहस क्यों न हो लेकिन इन शिक्षाप्रद फिल्मी गानों से ‘सैक्स’ जैसे नाजुक और संवेदनशील विषय की जानकारी कितनी आसानी से दी जा सकती है, यह इस गीत का गूढ़ प्रयोजन प्रतीत होता है.

एक और गीत बड़ा महत्त्वपूर्ण है. ‘जोर का झटका हाय जोरों से लगा… शादी बन गई उम्रकैद की सजा…’ लगता है  इस गाने की रचना जनसंख्या और परिवार कल्याण मंत्रालय के सौजन्य से हुई है. यह गीत देश की विस्फोटक होती जनसंख्या की समस्या और शादीब्याह से उत्पन्न होने वाले लफड़ोें पर हमारा ध्यान आकृष्ट कराता है. जनसंख्या के बारे में सरकारी हिदायतों व संदेशों पर चाहे जनता ध्यान न देती हो लेकिन इस गीत ने बड़े सुंदर ढंग से गृहस्थी में होने वाले रोजरोज के लफड़ों को बखूबी समझाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है.

गीत पर गौर फरमाएं. इस में बाकायदा विश्लेषण किया गया है कि हमें उस ‘तथाकथित’ पहले बुद्धिहीन ‘जोड़े’ को ढूंढ़ना चाहिए जिस ने अपने रोमांस के मजे के चक्कर में अक्षम्य गलती कर के इस सृष्टि को आदमजात से भर दिया. वहीं से गृहस्थ जीवन में अंतहीन आफतों, लफड़ों का पुलिंदा शुरू हुआ. ‘हम दो हमारे दो’ की भी क्या जरूरत है? शादी के लफड़े में फंसना ही मूर्खता है. अगर इस ‘मूल मंत्र’ को युवा समझ लें तो जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, दहेज प्रथा, तलाक और हत्या जैसी सामाजिक समस्याओं का समाधान क्षणमात्र में संभव है.

हम उस महान कवि के आगे भी नतमस्तक हैं जिन्होंने एक अमूल्य रहस्यवादी गीत ‘चोली के पीछे क्या है’ रच कर जनता पर बड़ा उपकार किया था. इस गीत ने पहली बार उस रहस्य की ओर सब का ध्यान खींचा था कि आखिर ‘चोली के पीछे’ क्या रहस्य छिपा है?

हमें लगता है इस से पहले तक दुनिया पागल थी, जो इस ‘रहस्य’ को सार्वजनिक करने की तरफ ध्यान ही नहीं दे रही थी. इस रहस्य को उजागर करने का एकमात्र श्रेय उस गीत के रचनाकार को ही दिया जाना चाहिए. हम यह नहीं मान सकते कि पहले किसी व्यक्ति को चोली के पीछे के रहस्य का ज्ञान नहीं था, हमें शिकायत इस कारण है कि अनुभवी बुजुर्ग पीढ़ी इस दिव्य ज्ञान को अब तक छिपाए क्यों बैठी थी? यह युवा पीढ़ी के साथ सरासर अन्याय और उन के ‘राइट टू नो’ का खुला उल्लंघन था. इस पहेली को इस संगीत ने चुटकियों में सुलझा दिया. इस गीत ने ही बच्चेबच्चे का ध्यान चोली के पीछे छिपे गूढ़ रहस्य की तरफ आकर्षित किया और बच्चों के सामान्य ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी.

एक और गीत देखिए, ‘तेरे इश्क से मीठा कुछ भी नहीं…’ भला इस गीत से क्या शिक्षा मिलती है? साफसुथरा निष्कर्ष है कि दुनिया में सब से मीठा ‘इश्क’ है. इस तथ्य को समझ लें तो देश में चीनी के बढ़ते दामों की समस्या को यह गाना चुटकियों में हल कर सकता है.

देश में चीनी का कम उत्पादन हो और दाम 50 रुपए से बढ़ कर 100 रुपए प्रतिकिलो तक भी जा पहुंचे तो क्या फर्क पड़ता है. ‘इश्क’ चीनी से कहीं ज्यादा स्वीट है तो फिर खूब ‘इश्क’ फरमाएं और शुगर की समस्या से हाथोंहाथ नजात पाएं. न ‘डायबिटीज’ का अंदेशा और न ‘शुगर की समस्या’. हो गई न लाइफ स्वीट और शुगर फ्री.

‘लेले ले, लेले मजा ले…रात का जम के मजा ले…’ कितना प्यारा और मासूम सा शिक्षाप्रद गीत है. यह गीत भटकों का पथप्रदर्शक तो है ही, साथ ही अनजान लोगों को ‘रात’ के मजे लूटने की मासूम प्रेरणा देता है. यह गीत घायल पड़े ‘आम आदमी’ को मरहम लगाने का बेहतरीन कार्य भी करता है.

‘आम आदमी’ का जीवन समस्याओं के जाल में इस कदर जकड़ा हुआ है कि उसे हमेशा दो जून की रोटी की चिंता ही सताती रहती है. बेचारे के पास रोमांस के लिए न तो समय है और न ही मूड. बेचारा ‘रात के मजे’ की कल्पना करे तो कैसे? महंगाई से टूटी कमर और बेरोजगारी, भुखमरी ने पहले ही उस की ‘रोमांस की कैपेसिटी’ को छूमंतर कर दिया है लेकिन यह गीत पलपल मानसिक सपोर्ट देने के साथ आम आदमी को ‘मोर ऐक्टिव’ और आशावादी बनने की पे्ररणा देता प्रतीत होता है.

‘तेरे मीठेमीठे होंठों की शबनम पी लूं… तेरे संग एक खुमारी है…’ यह गीत देश से पेयजल और नशे की लत छुड़ाने वाला उद्धारक प्रतीत होता है. होंठों की शबनम से प्यास बुझती है, यह कितनी अहम जानकारी हुई. भारत से पेयजल की समस्या तो हो गई न छूमंतर. क्या समाधान है, अधरों का रसपान करें और प्यास बुझा लें. तृप्ति का मुफ्त समाधान. न कोल्ड ड्रिंक की जरूरत और न बीयरशीयर की. खुमारी का एहसास भी होंठों से ही मिल रहा है.

यह तो बहुउपयोगी जानकारी हुई. इस ज्ञान से तो देश से मद्यपान की बुराई को आसानी से मुक्त किया जा सकता है. महात्मा गांधी बेचारे पूरे जीवन शराब की लत छुड़वाने के लिए संघर्ष करते रहे किंतु निष्ठुर जनता ने उन की एक न सुनी. हमें इस गीत से एक नई उम्मीद की किरण दिखाई पड़ती है. हो सकता है इस गीत को शराब कंपनियों और बोतल बंद पानी विक्रेता पसंद न करें किंतु यह गीत है बड़ा लोक कल्याणकारी.

एक गीत और देखें, ‘बीड़ी जलइ ले…जिगर मा बड़ी आग है…’ यह गीत ईंधन की समस्या का शर्तिया इलाज नजर आता है. ‘पावर क्राइसिस’ का क्रांतिकारी समाधान है. बीड़ी जिगर से जल सकती है तो फिर गैसचूल्हा भी आसानी से जल सकता है. लोग पता नहीं क्यों इन शिक्षाप्रद बातों को ग्रहण नहीं करते. देश की जनता फालतू ईंधन की किल्लत के लिए त्राहिमामत्राहिमाम का तांडव रचती है.

‘एक, दो, तीन, चार, पांच… दस, ग्यारह, बारह, तेरह…’ 90 के दशक में इस गीत ने प्राथमिक शिक्षा का कितना प्रचारप्रसार किया था. अध्यापक बेचारे बच्चों को 1 साल में भी 1 से 10 तक की गिनती नहीं सिखा पाते. वह काम इस गीत ने चुटकियों में कर दिखाया. मानेंगे न आप फिल्मों के असर के महत्त्व की बात को.

शिक्षाप्रद फिल्मी गानों की लंबी सूची है. कहां तक वर्णन करें? अच्छी बात यही है कि हम इन फिल्मी गीतों के सकारात्मक पहलू को परखें, उन के संदेशों को दिल से अपनाएं, ये गीत लोककल्याणकारी हैं. इन में न जाने कितनी ही समस्याओं के स्थायी और मुफ्त समाधान उपलब्ध हैं.

बड़े खर्चों की टेंशन के लिए छोटी सी प्लानिंग

क्या आप लंबे समय से कार खरीदने के बारे में सोच रही हैं, लेकिन समय समय पर बड़े खर्चे आने के कारण आपको अपनी कार के ड्रीम प्‍लान को आगे खिसकाना पड़ता है. किसी समय जब आप कार के डाउनपेमेंट के लिए राशि जुटा पाती हैं, तो पता चलता है कि कार की कीमत भी और बढ़ गई है. तब आपको एक बार फिर से पैसे जमा होने का इंतजार करना होगा. ऐसा अक्‍सर आपके साथ अक्सर होता होगा.

अगर आप आने वाले एक या दो साल में कोई बड़ी राशि की चीज खरीदना चाहती हैं, तो इसके लिए जरूरी है प्रोपर प्लानिंग. इसके लिए कुल राशि को जानें और उसे बराबर हिस्सों में बांट लें. ऐसा करने से आपको पैसे जमा करने का पर्याप्त समय मिल जाएगा. मंहगी चीज जैसे कि गाड़ी या स्कूटी के लिए पहले से प्लानिंग जरूरी है. नीचे दिए गए चार स्टेप्स ये जानिए आप कैसे कर सकती हैं प्लानिंग…

1. अपने टार्गेट अमाउंट को जानें

किसी भी चीज को खरीदने से पहले उसकी कीमत जान लें. इसके बाद अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार फैसला करें क्या आप उस खरीदने की स्थिति में हैं या नहीं. महंगी चीज खरीदने से पहले सुनिश्चित कर लें कि आपकी कितनी जरूरतें है.

उदाहरण के तौर पर अगर आप 60,000 रुपए की स्कूटी खरीदना चाहती हैं तो यह राशि आपका टार्गेट अमाउंट है.

2. अपने टार्गेट अमाउंट को बराबर हिस्सों में बांट लें

एक बार अपनी टार्गेट राशि को जानने के बाद इसे बांट लें. मान लीजिए जैसे आपका टार्गेट अमाउंट 60,000 रुपए है तो इसे 12 महीनों में बांटने से हर महीने का 6000 रुपए बनेगा. ऐसा करने से आप पूरे साल अपने टार्गेटिड अमाउंट को ध्यान में रखकर बचत कर पाएंगी.

3. इस टार्गेट अमाउंट को जमा करने के लिए कैसे करें निवेश

जमा करने के लिए आप हर महीने अपनी सैलरी से बचत कर के बैंक में जमा कर सकती हैं या फिर कोशिश करें कि अपने पैसे को ऐसी जगह निवेश करें जहां से आपको ज्यादा से ज्यादा ब्याज मिल सकता है. इससे आप साल के अंत तक अपनी अनुमानित राशि से ज्यादा जमा कर पाएंगी.

4. क्या करें अगर टार्गेटिड अमाउंट बहुत ज्यादा है

मान लीजिए कि आपकी टार्गेटिड राशि 2.5 लाख रुपए है. ऐसे में आपको 21000 रुपए महीने की बचत करनी होगी. ऐसे में बैंक में जमा करना करने आपको ज्यादा ब्याज नहीं मिलेगा. निवेश और पूंजी बढ़ाने के लिए ऐसे निवेश विकल्प का चयन करें, जिससे आपको ज्यादा से ज्यादा ब्याज मिल सकें. इस स्थिति में सिर्फ बचत काम नहीं आएगी आपको निवेश की ओर भी बढ़ना होगा.

खरीदारी में समझदारी

शौपिंग का शौक भला किसे नहीं होता. बस, यह बात अलग है कि किसी को कपड़े खरीदने का शौक होता है तो किसी को ज्वैलरी का. अच्छा ग्राहक वही है जो शौपिंग तो करे, लेकिन अपनी पौकेट का भी ध्यान रखे ताकि शौपिंग के बाद टैंशन न हो.

यह बात टीनएजर्स पर तो और भी ज्यादा लागू होती है, क्योंकि उन्हें गिनीगिनाई पौकेटमनी जो मिलती है और उसे ही उन्हें इस तरह खर्च करना होता है जिस से गर्लफ्रैंड भी खुश हो सके और अपने ऐंजौयमैंट पर भी वे पूरा खर्च कर सकें. आइए जानें, कैसे करें शौपिंग :

इंटरनैट का इस्तेमाल करें : आप जो भी सामान खरीदना चाहते हैं उस की जानकारी के लिए एक बार इंटरनैट का इस्तेमाल जरूर करें. इस से आप को अलगअलग ब्रैंड्स के प्रोडक्ट की कीमत का पता चल जाएगा. इसे तुलनात्मक खरीदारी कहा जाता है.

आमतौर पर हम एक मल्टीब्रैंडेड स्टोर पर चले जाते हैं और वहां एक ही प्रोडक्ट के विकल्प तलाशते हैं ऐसे में स्टोर के पास पूरा मौका होता है कि वह आप की जेब टटोल कर ब्रैंडेड प्रोडक्ट्स की अलगअलग कीमत बताए. इसलिए इंटरनैट पर कीमत की जानकारी लेना आप की जेब को हलका नहीं होने देगा.

शौपिंग की जगह तय करें : शौपिंग से पहले हम अकसर यह नहीं सोचते कि हमें कहां से क्या खरीदना है. शौपिंग वाले दिन हम पर्स ले कर घर से चल देते हैं मौल्स और स्टोर्स में जगहजगह चक्कर लगाने लगते हैं. आखिर में जो दिखाई दे जाता है उसे खरीद लेते हैं. इस से न सिर्फ समय बल्कि पैसा भी बरबाद होता है इसलिए पहले यह तय कर लें कि आप को कहां से सामान खरीदना है. इस से आप को अच्छी चीजें खरीदने में भी आसानी होगी.

सूची तैयार करें : आप उन जगहों की सूची बना लें जहां आप की पसंद का सामान सही दाम में मिलता है, इस से समय और पैसे दोनों की बचत होती है और सामान भी अच्छी क्वालिटी का मिल जाता है.

बजट 20 फीसदी कम करें : शौपिंग पर निकलने से पहले आराम से बैठ कर बजट तैयार करें कि आप को किस के लिए क्या और कितना खरीदना है. सूची तैयार करते समय ध्यान रखें कि चीजों को प्राथमिकता देते हुए लिखें, ताकि सही समय पर सही चीज खरीदी जा सके. चीजों पर कितना खर्च होगा, उसे जोड़ें और अब 20 फीसदी कम कर दें. खयाल रखें कि अब जो खर्च आया है, उसी पर टिके रहें.

सीजन में जहां भी सेल लगी हो उस का ध्यान रखें और अपने बजट व पसंद के मुताबिक खरीदारी करें. खरीदारी के दौरान अपने बजट पर बारबार ध्यान दें ताकि आप बजट से ज्यादा न खर्च दें.

रिटर्न पौलिसी भी जानें : अगर घर जाने पर कोई सामान पसंद नहीं आया तो वह कितने दिन में वापस किया जा सकता है, इस के बारे में भी बात करें. वापस करने पर पैसे मिलेंगे या फिर कोई पर्ची आदि मिलेगी यह भी पूछें.

लेटैस्ट ट्रैंड क्या है पता करें : शौपिंग पर जाने से पहले अखबारों में आने वाले विज्ञापन, इंटरनैट पर सर्च कर लें कि मार्केट में लेटैस्ट क्या चल रहा है ताकि आप कोई आउट औफ फैशन चीज न खरीद लाएं.

सेल में करें समझदारी से शौपिंग : सेल के सीजन में ग्राहकों को लुभाने के लिए कई लुभावने औफर होते हैं. जैसे 2 शर्ट खरीदने पर 1 शर्ट फ्री आदि. 2 शर्ट की जरूरत न होने पर भी हम लालच में खरीद लेते हैं और अपना बजट बिगाड़ लेते हैं इसलिए इस तरह के प्रलोभन में न आएं और उतना ही खरीदें जितनी आप को जरूरत हो.

कौपीराइट मार्क देखें : वैबसाइट के होमपेज पर कौपीराइट मार्क भी जरूर देखें. कौपीराइट साल, मौजूदा साल या एक साल से ज्यादा पुराना न हो. साथ ही वैबसाइट पर कस्टमर केयर का नंबर दिया है या नहीं, यह भी देखना जरूरी है.

शिपिंग औफर : कई साइट्स आप को प्रोडक्ट लेने पर फ्री शिपिंग चार्ज की सुविधा देती हैं जिस से प्रोडक्ट की कीमत और भी कम हो जाती है. अगर फ्री शिपिंग नहीं है तो हमेशा प्रोडक्ट की कीमत शिपिंग चार्ज को जोड़ कर ही देखें, क्योंकि शिपिंग का खर्च भी आप की जेब पर ही पड़ रहा है.

औनलाइन रिव्यू पढ़ें : किसी भी औनलाइन शौपिंग वैबसाइट पर अपने क्रैडिट कार्ड की जानकारी देने से पहले उस के बारे में लोगों के रिव्यू जरूर पढ़ लें.

कंपनी की शर्तों पर भी ध्यान दें : शौपिंग वैबसाइट्स 500 रुपए से अधिक की खरीदारी पर ज्यादातर डिलीवरी फ्री रखती हैं जिसे कस्टमर एक बड़ी सुविधा के रूप में देखता है, लेकिन कभीकभार फ्री डिलीवरी के साथ शर्तें भी लिखी होती हैं, जिन को कस्टमर तवज्जो नहीं देते और देख कर भी नहीं पढ़ते, जिस के कारण कस्टमर को अनजाने में अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़ते हैं.

पेटीएम से करें शौपिंग और बनें स्मार्ट ग्राहक : पेटीएम एक प्रकार का औनलाइन बटुआ है, जिस में आप पैसे रख सकते हैं और फिर इस पैसे के जरिए औनलाइन खरीदारी कर सकते हैं. हालांकि इस बटुए में पैसे डालने के लिए आप को डैबिट कार्ड, क्रैडिट कार्ड या फिर औनलाइन बैंकिंग का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन एक बार आप इस में पैसे डाल दें तो फिर आप सिर्फ पेटीएम के जरिए ही उसे खर्च कर सकते हैं.

इस में पैसे रखने की सीमा करीब 10 हजार रुपए है जिसे कुछ कागजी कार्यवाही करने के बाद बढ़ाया जा सकता है. पेटीएम के जरिए आप अपने रोजमर्रा के काम बिना समय गवाए कर सकते हैं. जैसे कि मोबाइल रिचार्ज कराना, बिल भरना, औनलाइन शौपिंग करना, सिनेमा के टिकट बुक कराना और अब तो चाय वाले से ले कर किराना स्टोर तक पेटीएम से भुगतान ले रहे हैं.

तो ‘मलंग’ में संजय दत्त के साथ होंगी ऐश्वर्या राय बच्चन

संजय दत्त ने अपनी वापसी वाली फिल्म ‘‘भूमि’’ की शूटिंग पूरी कर आरंभ सिंह के निर्देशन में बनने वाली फिल्म ‘‘मलंग’’ की शूटिंग के लिए तैयारी करने में जुट गए हैं. सूत्रों के अनुसार संजय दत्त की सिफारिश पर आरंभ सिंह ने अपनी इस फिल्म के साथ ऐश्वर्या राय बच्चन को भी जोड़ने जा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार 2005 में प्रदर्शित फिल्म ‘शब्द’ में संजय दत्त और ऐश्वर्या राय बच्चन की जोड़ी को काफी पसंद किया गया था. मगर उसके बाद इन दोनों ने कभी एक साथ काम नहीं किया.

फिल्म के निर्देशक आरंभ सिंह से जब हमारी बात हुई, तो आरंभ सिंह ने कहा- ‘‘हम अपनी रोमांटिक रोमांचक फिल्म ‘मलंग’ की शूटिंग दिसंबर माह में शुरू करने वाले हैं. संजय दत्त चाहते हैं कि इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन हों, जिससे वह 2005 के करिश्मे को इस फिल्म में दोहरा सकें. तो हमने ऐश्वर्या राय बच्चन से संपर्क किया है. पर अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ है. हम अपनी इस फिल्म के द्वारा दर्शकों को प्यार की नई परिभाषा देने के साथ ही रोमांचक अनुभव भी कराने वाले हैं. हम यह फिल्म शिमला व वाराणसी में फिल्माएंगे.’’

अभिनेत्री से गायिका बन नरगिस की भारत वापसी

इन दिनों हर कलाकार अभिनय के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी अपनी किस्मत आजमाने में लगे हुए हैं. प्रियंका चोपड़ा, श्रृद्धा कपूर, सोनाक्षी सिन्हा और परिणीति चोपड़ा अभिनय के अलावा गायकी में भी अपना हाथ आजमा चुकी हैं, तो फिर भला मूलतः अमरीकन मॉडल व अभिनेत्री और बौलीवुड फिल्म ‘‘रॉकस्टार’’ से बौलीवुड में अभिनेत्री बन चुकी नरगिस फाखरी कैसे पीछे रहती. वैसे भी नरगिस फाखरी फिलहाल बेरोजगार हैं. वे पिछले आठ माह से अमरीका के लॉस एंजेल्स शहर में ही रह रहीं थीं.

अब तक बौलीवुड में चर्चा थी कि नरगिस फाखरी ने हमेशा के लिए बौलीवुड को बाय-बाय कर दिया है, पर अब वे एक बार फिर भारत वापस आयी हैं. इस बार उनका मकसद भारत में बतौर गायिका अपने सिंगल गाने ‘‘हबितान विगाड़ दी’’ का प्रचार करना है. इतना ही नहीं इस बार नरगिस फाखरी भारत अकेले नहीं आयी हैं, बल्कि कैनेडियन म्यूजीशियन कारडिनाल ऑफिशेल के साथ आयी हैं.

वास्तव में गायक व संगीतकार, परिचय ने दो गानों की धुने बनाकर नरगिस के पास, लास एजेंल्स भेजी थी. जिसमें से एक नरगिस को पसंद आयी और उसी पर परिचय व नरगिस ने गाना गाया और अब इस सिंगल गाने का वीडियो टोरंटों शहर में फिल्माया गया. इस वीडियो में टोरंटो शहर के 1800 फिट ऊंचे कम्यूनीकेषन सेंटर को भी दिखाया गया है.

सूत्रों के अनुसार पूर्वी और पष्चिमी देश का मिलान करने के लिए इस सिंगल गाने के साथ कैनेडियन रैपर कारडिनाल ऑफिशेल को भी जोड़ा गया और वीडियो में भी उन्हे रखा गया है. इस सिंगल गाने में नरगिस ने पंजाबी लाइन्स गायी हैं, जिसके लिए उन्हें काफी रिहर्सल करनी पड़ी, क्योंकि नरगिस फाखरी को पंजाबी या हिंदी भाषा आती नही है. सूत्र तो यहां तक दावा करते हैं कि सही उच्चारण के लिए नरगिस ने सो बार रीटेक दिया था.

नरगिस का दावा है कि वे परिचय के साथ इसके बाद दूसरा सिंगल भी लेकर आने वाली हैं. यानि कि अब नरगिस फाखरी अभिनय की बजाय गायकी पर ध्यान देने लगी हैं.

संक्रमण के आसान शिकार हैं शिशु

बच्चों में एलर्जी भले ही आम समस्या है लेकिन बच्चा एलर्जी के साथ ही बड़ा हो जाए और आगे चल कर एलर्जी गंभीर रूप धारण कर ले, यह ठीक नहीं. इस के लिए क्या करें, जानने के लिए यहां पढ़ें.

अगर आप ध्यान दें तो कई बार कीड़ेमकोड़ों के काटने से इंसैक्ट बाइट एलर्जी हो जाती है. इस में खुजली होनी शुरू हो जाती है.

एलर्जन के प्रभाव में जब सांस के रास्ते सिकुड़ जाते हैं तो ऐसी स्थिति दमा बन जाती है. दमा भी एलर्जी का ही एक रूप है.

शिशुओं में एलर्जी होना, खासकर 0-3 साल के बच्चों में एलर्जी होना, एक आम समस्या है, जो बड़े होने पर अपनेआप ठीक हो जाती है. लेकिन अगर इस का समय पर इलाज न कराया जाए तो इस के परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं.

बच्चों में 3 तरह की एलर्जी देखने को मिलती हैं…

– एयर बौर्न एलर्जी

– फूड एलर्जी और

– इंसैक्ट बाइट एलर्जी.

एयर बौर्न  एलर्जी : बच्चों में होने वाली सब से सामान्य एलर्जी एयर बौर्न एलर्जी यानी हवा के द्वारा होने वाली एलर्जी होती है. यह एलर्जी धूल, घरेलू गंदगी पर रेत के कण, फूलों के परागकण, हवा में प्रदूषण और फंगस आदि से होती है.

एयर बौर्न एलर्जी होने पर कई बच्चों को रैशेज हो जाते हैं, त्वचा पर लाललाल चकत्ते बन जाते हैं. अगर सांस के रास्ते की एलर्जी है तो बच्चे की सांस फूलने लग जाती है, कइयों की नाक बहना शुरू हो जाती है, खांसी आने लगती है, आंखों से पानी आने लगता है और वे लाल हो जाती हैं.

यह भी जानना जरूरी है कि एयर बौर्न एलर्जी, जो बच्चों में होने वाली एलर्जी का प्रमुख कारण है, इससे नाक, कान और गला सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. ऐसे में एलर्जी का सही समय पर सही इलाज न कराने से बड़े होने पर बच्चों को इन अंगों से संबंधित समस्याएं ज्यादा होती हैं.

इतना ही नहीं, इस से बच्चे की वृद्धि भी प्रभावित होती है क्योंकि परेशानी के कारण बच्चा रातभर सोएगा नहीं. ऐसे में चिड़चिड़ा होने के साथ ही उस की एकाग्रता भी प्रभावित होगी. छोटे बच्चों में इस तरह की एलर्जी उस के विकास को सब से ज्यादा प्रभावित करती है.

फूड एलर्जी : 1 या 2 प्रतिशत बच्चों में फूड एलर्जी यानी खाद्य पदार्थों से एलर्जी होती है, क्योंकि छोटे बच्चे बहुतकुछ खाते नहीं हैं, तो ऐसे में इस एलर्जी के होने की संभावना बहुत कम होती है.

ऐसे बच्चों में ज्यादातर एलर्जी की शिकायत तब देखी जाती है जब उन्हें कोई नया खाद्य पदार्थ दिया जाता है. इतना ही नहीं, दूध से भी कुछ बच्चों को एलर्जी होती है. ऐसा उन बच्चों को होता है जिन के घर वाले बच्चे के 1 साल का होने के पहले ही उसे गाय का दूध देना शुरू कर देते हैं. हालांकि, ऐसा बहुत कम होता है.

फूड एलर्जी होने पर कई बच्चों को जहां पेटदर्द होता है, वहीं कई बच्चों को पेट में मरोड़ उठने शुरू हो जाते हैं. कई बार फूड एलर्जी होने पर बच्चों की त्वचा पर रैशेज भी हो जाते हैं. गहरे रंग की पोटी होनी शुरू हो जाती है. हजार में से एक बच्चे की पोटी में खून भी निकल आता है. ऐसा होने पर बच्चे बहुत ज्यादा रोने लगते हैं, बेचैन से हो जाते हैं, सोते नहीं हैं, चिड़चिड़े हो जाते हैं. पेटदर्द के कारण बच्चे बेहद पैनिक हो जाते हैं.

इंसैक्ट बाइट एलर्जी : कई बार बच्चों को कीड़ेमकोड़ों के काटने से एलर्जी हो जाती है. इंसैक्ट बाइट एलर्जी होने पर कीड़े के काटने वाली जगह पर वैसा ही निशान सा बन जाता है, जैसे मच्छर के काटने पर बनता है. स्किन पर दाने या चकत्ते बन जाते हैं, खुजली होनी शुरू हो जाती है. इस तरह की एलर्जी तब होती है जब बच्चा या तो पार्क में चला जाए और वहां उसे कोई कीड़ा काट ले. कई लोग अपने घर में कुत्ते, बिल्ली, तोता आदि पालते हैं. ऐसी स्थिति में इन पालतू पशुपक्षियों से भी बच्चे को एलर्जी हो सकती है.

दुष्प्रभाव

एलर्जी का समय पर इलाज न कराने पर बच्चों में, बड़े होने पर, कई तरह की समस्याएं होने की संभावना बनी रहती है. समय रहते इलाज करा लेने पर एलर्जी समाप्त हो जाती है और बच्चा पहले जैसी स्थिति में आ जाता है.

बच्चे को जो भी तकलीफ होती है उसे दूर करने के लिए एलर्जन से दूरी बनाना जरूरी होता है. एलर्जी को कंट्रोल करना जरूरी है, इस से एलर्जी के कारण बच्चों में स्थायी बदलाव नहीं आता है और धीरेधीरे एलर्जी दूर हो जाती है. लेकिन अगर ऐसा न किया जाए और लापरवाही बरती जाए, तो कई बार परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं.

जिन बच्चों को सांस संबंधी यानी रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट की एलर्जी होती है, उन का समय पर इलाज जरूरी है. उसे उस माहौल से हटाया जाए जिस की वजह से उसे एलर्जी हो रही है.

अगर एलर्जन से बच्चे को दूर रखना संभव नहीं है तो उसे नियमित दवाइयां देने की जरूरत होती है, ताकि बच्चे की परेशानी न बढ़े. इसमें लापरवाही बरतने और बारबार रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में एलर्जी होने पर बच्चे के फेफड़ों में स्थायी तौर पर बदलाव हो सकता है और उसे आजीवन सांस संबंधी परेशानी हो सकती है.

बारबार एलर्जी होने पर बच्चा बारबार खांसेगा, हमेशा इस तकलीफ से गुजरेगा. इस से उस के विकास पर असर पड़ेगा. वह सोएगा नहीं, तो हमेशा चिड़चिड़ा सा बना रहेगा. बीमारी की वजह से वह स्कूल भी नहीं जा पाएगा. कुल मिला कर देखा जाए तो एलर्जी का उचित इलाज नहीं कराने से बच्चे का पूरा विकास प्रभावित हो सकता है.

कई बार माता-पिता को यह बात समझ ही नहीं आती है कि उन के बच्चे को किस चीज से एलर्जी है, उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन के बच्चे को एलर्जी है और बच्चा इसी स्थिति में बड़ा हो जाता है. ऐसी स्थिति होने पर बच्चे को बड़े होने पर कई अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं. कई बच्चों में एलर्जी की वजह से एड्रीनल ग्लैंड बारबार बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चे को सुनने में थोड़ी परेशानी हो जाती है.

बढ़ती उम्र में अगर इस तरह की समस्या बच्चे को होती है तो उस के बोलने की क्षमता प्रभावित होती है. क्योंकि, इस उम्र में बच्चा जब सुनता है तभी वह बोलना सीखता है. सुनने में बहुत ज्यादा दिक्कत आने, नाक बंद होने, कान बंद होने आदि समस्या होने पर बच्चे का संपूर्ण विकास प्रभावित होने लगता है.

इलाज है जरूरी

एलर्जी को रोकना संभव नहीं है तो उसे नियंत्रित करना जरूरी है ताकि बच्चे को ज्यादा नुकसान न पहुंचे. एयर बौर्न एलर्जी को कंट्रोल करना कठिन होता है, क्योंकि हम हवा को तो नहीं बदल सकते. ऐसे में एलर्जी को कंट्रोल करने के लिए दवाइयों का सहारा लिया जाता है. इस तरह एलर्जी दबी रहती है.

बच्चे के एलर्जी का स्तर क्या है, इस के आधार पर ही उसे ट्रीटमैंट दिया जाता है. ट्रीटमैंट कितने दिनों तक लिया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे को किस तरह की परेशानी हो रही है. अगर एलर्जी की समस्या सीजन को ले कर हो रही है यानी मौसम में आने वाले बदलाव के कारण परेशानी है, तो बस उस बदलाव से बचने के लिए उसी समय बच्चे को दवाइयां दी जाती हैं.

कई बच्चों को वसंत के मौसम, जिसे फ्लावरिंग मौसम कहते हैं, से एलर्जी होती है. तो कई बच्चों को सर्दी की शुरुआत होने यानी बरसात के बाद हवा में होने वाले बदलाव से एलर्जी हो जाती है. इस तरह की मौसमी एलर्जी के लिए बच्चों को कम से कम 3 महीने तक लगातार दवा देनी पड़ती है.

कई बच्चों को सालभर एलर्जी होती रहती है. ऐसे बच्चों को ज्यादा दिक्कत रहती है और फिर उन का ट्रीटमैंट भी अलग तरह का होता है. सालभर बने रहने वाली एलर्जी में दवा की मात्रा एलर्जी की गंभीरता पर निर्भर करती है. कई बच्चों को 3 महीने तक दवा देने के बाद ही आराम आ जाता है तो कइयों को लगातार कई महीने तक दवाइयां देनी पड़ती हैं.

एयर बौर्न एलर्जी के बढ़ने पर बच्चों को एंटी एलर्जिक दवाइयां दी जाती हैं. ये दवाइयां सिरप या टैबलेट के रूप में ली जाती हैं. ये दवाइयां एलर्जी को बढ़ने और विकरालरूप धारण करने से रोकती हैं. बड़े बच्चों को इनहेलेशन और नेबुलाइजर देना पड़ता है. नाक में स्प्रे दिया जाता है. जिन्हें आंखों से पानी आता है उन्हें आईड्रौप दिया जाता है. सांस फूलने पर इनहेलर दिया जाता है या फिर नेबुलाइज किया जाता है.

अगर फूड एलर्जी है तो फिर जिस खाद्य पदार्थ से एलर्जी है, उस से परहेज करना होता है. इस से बच्चा ठीक हो जाएगा. वैसे, बहुत सारी एलर्जी तो बिना दवा के अपनेआप ही ठीक हो जाती हैं. असल में जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, उसे एलर्जी की आदत पड़ जाती है, खासकर फूड एलर्जी की. मिल्क एलर्जी 2 से 3 वर्ष के बाद अपनेआप ठीक हो जाती है.

सांस की एलर्जी जैसे-जैसे सांस की नली बड़ी होती जाती है, बच्चे को आराम पड़ता जाता है और उसे उस की आदत पड़ जाती है. लगभग 50-60 प्रतिशत बच्चों में बड़े होने के साथ एलर्जी की समस्या अपनेआप दूर हो जाती है.

– बच्चों के आसपास की जगहों को साफ रखें.

– बच्चों को जानवरों से दूर रखें.

– बार-बार छींकना, इचिंग जैसी समस्याओं को हलके में न लें.

– बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत करें.

– घर को हमेशा बंद न रखें, खुला और हवादार बनाए रखें.

(लेखक बीएलके सुपर स्पैशलिटी अस्पताल, नई दिल्ली में पीडियाट्रीशियन हैं)

मानसून में खुद को कैसे सजाती हैं आप?

मानसून के दिनों में ज्‍यादा मेकअप करना जोखिम है, बारिश के दौरान मेकअप के खराब हो जाने का डर बना रहता है, इसलिए बारिश के दिनों में मेकअप बहुत हल्‍का और वॉटरप्रुफ करना चाहिए. चेहरे पर वॉटरप्रुफ फाउंडेशन,स्‍मज न होने वाली लिपिस्‍टक और वॉटरप्रुफ आईलाइनर आदि का इस्‍तेमाल करना चाहिए. ऐसे प्रोडक्‍ट बारिश के दिनों में बेहद जरूरी होते है.

यहां हम कुछ मानसून मेकअप टिप्‍स के बारे में बता रहे है जो कि मानसून में मेकअप के दौरान आपकी मदद कर सकते है.

1. चेहरे से ऑइल साफ करें

सबसे पहले अपने चेहरे को अच्‍छी तरह पानी से धो लें और 5 से 10 मिनट तक चेहरे पर आईसक्‍यूब लगा लें. इससे चेहरे का तैलीयपन खत्‍म हो जाएगा और मेकअप ज्‍यादा समय तक चेहरे पर टिका रहेगा.

2. ऑयली और ड्राई त्‍वचा के लिये

जिन महिलाओं की त्‍वचा शुष्‍क है वह बर्फ मलने के बाद टोनर का भी इस्‍तेमाल कर सकती है ताकि उनकी त्‍वचा में नमी आ जाए. वहीं जिन महिलाओं की त्‍वचा ऑयली है वह एस्‍ट्रीजेंट का इस्‍तेमाल कर सकती हैं.

3. बेस तैयार करें

मेकअप का बेस तैयार करने के लिए फाउंडेशन का इस्‍तेमाल न करें.

4. आंखों के लिये

आंखों पर हल्‍का सा आईलाइनर लगाएं, उसके ऊपर हल्‍के भूरे, पिंक या पेस्‍टल रंग के आईशैडो का इस्‍तेमाल करे. इसके बाद वॉटरप्रुफ मस्‍कारा लगाएं.

5. होंठो पर

होंठो पर सॉफ्ट मैटी लिपिस्‍टक लगाएं, यह लिपिस्‍टक ही मानसून के दौरान सबसे बेहतर रहती है. लेकिन होंठो पर शाइन लाने के लिए आप पिंक ग्‍लॉस का इस्‍तेमाल भी कर सकती हैं.

6. वॉटरप्रुफ मॉश्‍चराइजर लगाएं

बारिश के दिनों में वॉटरप्रुफ मॉश्‍चराइजर के यूज को न नकारें. अगर आप स्‍कीन ऑयली है तो हल्‍का मेकअप ही करें.

7. अपना हेयरस्‍टाइल साधारण और आसान रखें

अगर बारिश के दिनों में ज्‍यादा स्‍टाईलिश हेयरस्‍टाइल रखेगी तो भीगने के बाद उसे सुलझाना बेहद मुश्किल हो सकता है या बाल टूटने का ड़र सबसे ज्‍यादा रहेगा. मानसून के दौरान बैंड या लेयर हेयरस्‍टाइल को अपनाएं.

8. चमकदार ज्‍वैलरी न पहनें

मानसून के दौरान चमकदार ज्‍वैलरी न पहनें. स्‍टोन ज्‍वैलरी को ज्‍यादा पहनें. हल्‍के गहने मानसून के दौरान आरामदायक रहते है.

9. लाइट मेकअप करें

अगर आप चमकना चाहती हैं तो मेकअप को लाइट रखें और लाइट शेड का यूज करें जैसे – पिंक, ब्राउन या पीच कलर्स का. 

10. आईब्रो पेंसिल का प्रयोग न करें

मानसून के दौरान अपनी आईब्रो को हमेशा सेट रखें और आईब्रो पेंसिल का इस्‍तेमाल भूल से भी न करें. इन दिनों में पेंसिल के बहने का ड़र रहता है.

11. बालों को रोज धुलें

अपने बालों को रोजाना धुलें. रूसी से बचने के लिए नियमित रूप से मसाज भी करें. बालों की देखभाल करें. बारिश के दिनों में बालों की एक्‍ट्रा केयर रखनी पड़ती है.

12. कॉटन के कपड़े पहने

मानसून के दौरान जींस न पहने. हल्‍के कॉटन के कपडे पहने. जैसे – कैप्री, कॉटन पैंट या थ्री फोर्थ आदि.

13. न पहने सफेद कपड़े

सफेद कपड़ों को न पहनें. सफेद कपड़े आसानी से गंदे हो जाते है इसलिए डार्क कलर के कपड़े पहने.

14. सैंडिल व चप्‍पल पहनें

लेदर के शूज या सैंडिल न पहनें. हल्‍के और मजबूत सैंडिल व चप्‍पल पहनें. जहां तक हो, स्‍नीकर्स ही पहनें

टीवी पर राज करते हैं ये कलाकार

टेलीविजन इंडस्ट्री को आप छोटा मत समझिये यहां भी स्ट्रगल गजब का होता है. आपके सभी फेवरेट टीवी स्टार्स जिन्हें आप आज लीड किरदारों में देखते हैं वो कभी आपको सेकेंड लीड किरदार या छोटे मोटे रोल्स में भी दिखे थे, मगर शायद आपकी नजर उन पर उस समय नहीं गई.

आज के समय में ये कलाकार टेलीविजन इंडस्ट्री पर राज कर रहे हैं मगर एक समय था जब ये लीड रोल में नहीं थे. पर अपनी मेहनत से इन्होंने सबकी नजरों में भी और दिल में भी घर बना लिया.

साक्षी तनवर

हाल ही में फिल्म ‘दंगल’ में आमिर खान के साथ दिखाई देने वाली साक्षी को अपने सबसे पहले टेलीविजन पर्दे पर नोटिस किया होगा एकता कपूर के शो ‘कहानी…घर घर की’ में. लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि इससे पहले साक्षी शो “कुटुंब” में भी दिखाई दी थी मगर छोटे से किरदार माया मित्तल के रूप में. इसके बाद उन्हें ‘कहानी… घर घर की’ में लीड किरदार लीड किरदार मिला.

द्रष्टि धामी

मधुबाला, पॉपुलर शो मधुबाला की लीड द्रष्टि धामी ने भी यहां तक पहुंचने के लिए बहुत कुछ किया. आपने इन्हें शो ‘दिल मिल गए’ में डॉक्टर मुस्कान के रूप में देखा होगा. हालांकि, लोगों ने उन्हें इस शो में भी बहुत पसंद किया था मगर लीड किरदार उन्हें साल 2010 में शो ‘गीत – हुई सबसे पराई’ में मिला.

विक्रांत मेस्सी

फिल्म ‘लूटेरा’, ‘दिल धड़कने दो’ और ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ में नजर आने वाले विक्रांत को अपने टीवी से बॉलीवुड में जम्प करते हुए तो देखा लेकिन आपको बता दें कि विक्रांत ने पॉपुलर शो “बालिका वधु” में भी एक छोटा सा मगर अहम किरदार निभाया था. जगदीश की बहन सुगना का पति श्याम, जिसकी मौत हो जाती थी? धारावाहिक ‘बाबा ऐसो वर दीजो’ में लीड किरदार निभाने से पहले विक्रांत “बालिका वधु” में दिखे थे.

बरुन सोबती

धारावाहिक ‘इस प्यारा को क्या नाम दूं’ से सबका दिल जीतने वाले बरुन सोबती को आज कौन नहीं जानता? लेकिन, एक समय था जब इन्हें शायद ही किसी ने नोटिस किया था. “दिल मिल गए” के दुसरे सीजन में बरुन ने डॉक्टर राज सिंह का किरदार निभाया था और इसके बाद उन्हें शो ‘बात हमारे पक्की है’ में लीड रोल मिला था.

रवि दुबे

आपके फेवरेट जमाई राजा ने भी सेकेंड लीड रोल निभाया है. साल 2010 में धारावाहिक ‘सास बिना ससुराल’ में लीड रोल से पहले रवि को आपने ’12/24 करोल बाग’ में सेकेंड लीड ओमकार के रोल में देखा होगा. आज रवि टीवी इंडस्ट्री के सबसे चहीते कलाकार में से एक हैं.

खरीदारी सीखें, लूट से बचें

कुछ साल पहले टैलीविजन पर एक विज्ञापन आता था, जिस में एक बच्चा दुकानदार से शुद्ध नमक मांगता है, लेकिन दुकानदार उसे बच्चा समझ कर साधारण नमक थमा देता है, जिसे देख कर बच्चा तुरंत दुकानदार से कहता है, ‘‘शुद्ध नहीं समझते क्या… मुझे शुद्ध नमक ही चाहिए.’’

इस विज्ञापन में जिस तरह से बच्चे को जागरूक दिखाया गया है उसी तरह आज के किशोरों को भी जागरूक होने की जरूरत है, क्योंकि अकसर किशोर जब खरीदारी के लिए जाते हैं तब न तो मोलभाव करते हैं और न ही जांचपड़ताल. बस, दुकानदार को बताया कि क्या चाहिए और ले कर चल दिए. कई किशोर तो ऐसे भी होते हैं जो  खरीदारी के समय भी अपने फोन पर ही व्यस्त रहते हैं. कुछ किशोरों को तो इतनी जल्दी रहती है कि देखते भी नहीं कि दुकानदार ने क्या दिया है और उन्हें क्या चाहिए था, जिस की वजह से दुकानदार उन्हें आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं, कभी ज्यादा पैसे वसूल लेते हैं, तो कभी खराब सामान दे कर अपना फायदा कर लेते हैं, इसलिए जरूरी है कि किशोर खरीदारी की कला सीखें ताकि जब कोई उन्हें लूटने की कोशिश करे तो समझदारी से निबट सकें.

सस्ते के चक्कर में न पड़ें

किशोर सस्ते के चक्कर में बेवकूफ बन जाते हैं, उन्हें लगता है कि इतने कम दाम में क्या मिलता है इसलिए एक नहीं बल्कि 2-3 खरीद लेते हैं. बाद में जब इस्तेमाल होता है तब अफसोस होता है. ऐसे में न सिर्फमम्मी की डांट सुननी पड़ती है बल्कि सारी पौकेटमनी भी खत्म हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि खरीदारी करते समय सस्ती चीजों पर न टूट पड़ें, बल्कि अच्छी तरह जांचपड़ताल कर के ही सामान खरीदें.

खुद पर करें भरोसा

जब खरीदारी के लिए किसी दुकान पर जाते हैं तो दुकानदार कई तरह के लुभावने औफर देने के साथसाथ प्यार भरी बातें भी करने लगता है. जैसे ले कर जाओ, तुम पर अच्छा लगेगा, तुम्हारी उम्र के सारे टीनएजर्स यहीं से सामान खरीदते हैं. आज तक किसी तरह की शिकायत नहीं आई.

ऐसे में अधिकांश किशोर दुकानदार की बातों में आ जाते हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि उन के लिए क्या अच्छा है और उन्हें क्या करना चाहिए, दुकानदार से ज्यादा जरूरी है कि खुद पर भरोसा करें और अपनी चौइस को प्राथमिकता दें न कि दुकानदार के आश्वासन को.

जल्दबाजी न दिखाएं

कई बार किशोर खरीदारी के लिए जाते हैं तो दुकान में घुसते ही कहने लगते हैं, ‘‘अंकल, प्लीज जल्दी दे दो, टाइम नहीं है.’’

आप के ऐसा कहते ही दुकानदार जल्दी में सब से महंगा प्रोडक्ट देता है और अगर आप थोड़ा सस्ता दिखाने के लिए कहते हैं तो उस के पास जो सब से सस्ता व खराब होता है आप के सामने रख देता है. दुकानदार को पता होता है कि आप जल्दी में ज्यादा मीनमेख तो निकालेंगे नहीं, बस चुपचाप ले लेंगे, इसलिए हड़बड़ी के बजाय समय दे कर सामान खरीदें.

फ्रैंड्स के साथ जाएं

कोशिश करें कि जब शौपिंग करने जाएं तो अपने फ्रैंड्स के साथ जाएं, क्योंकि कोई साथ होने पर दुकानदार भी एक बार जरूर सोचता है. अगर आप पसंद करने में कहीं फंसते हैं तो फ्रैंड्स आप की मदद करते हैं, अपना विचार भी देते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि आप के फ्रैंड्स को कोई ऐसी दुकान पता हो जहां अच्छा सामान कम दाम पर मिलता हो.

जांचपड़ताल करें

ऐसा न करें कि दुकान में घुसें और सामान ले कर बाहर निकल जाएं. अगर आप को उस चीज के बारे में पहले से पता है तो ठीक है, लेकिन अगर आप नई चीज खरीद रहे हैं तो खरीदने से पहले 2-3 दुकानों में पता जरूर कर लें. इस से आप को वैराइटी के साथसाथ प्राइज व क्वालिटी का भी अंदाजा हो जाएगा.

मोलभाव करना भी सीखें

दुकानदार ने जितना बताया है उतनी कीमत पर ही न खरीद लें, मोलभाव जरूर करें. यह न सोचें कि मम्मी ने तो जोड़ कर पैसे दिए ही हैं, फिर क्या मोलभाव करना. यह जरूरी नहीं है कि जितना मूल्य लिखा है उतने पर ही खरीदना पड़ेगा. आप एमआरपी पर मोलभाव कर सकते हैं. यह दुकानदार पर निर्भर करता है कि वह एमआरपी से कितने कम पर आप को देता है.

दूसरों की देखादेखी न करें

ऐसा न करें कि किसी दूसरे को खरीदते देख आप भी वही खरीदने लगें. जरूरी नहीं है कि सामने वाले की जो जरूरत हो वही आप की भी हो इसलिए अपनी जरूरत और बजट के अनुसार सामान खरीदें.

ओवर ऐक्साइटमैंट न दिखाएं

अगर दुकानदार आप को कोई ऐसा सामान दिखाए जो आप को एक नजर में पसंद आ जाए या आप जैसा ढूंढ़ रहे थे वह एकदम वैसा ही हो, तो एकदम से खुश न हों, क्योंकि आप ऐसा करते हैं तो इस से दुकानदार निश्चित रूप से दाम ज्यादा बताएगा, इसलिए नौर्मल व्यवहार करें.

खुद को डरासहमा न दिखाएं

खुद को भोलाभाला व मासूम न दिखाएं बल्कि कौन्फिडैंटली प्रेजैंट करें. अगर आप खुद को मासूम दिखाते हैं तो दुकानदार आप को आसानी से बेवकूफ बना सकता है इसलिए स्मार्ट खरीदार बनें.

बेकार की खरीदारी न करें

किशोरों की आदत होती है कि वे सोचते हैं यह भी ले लेता हूं, वह भी ले लेता हूं, जरूरत तो पड़ ही जाएगी. ऐसा न करें बल्कि आप को जिस चीज की जरूरत है वही खरीदें.

कीमत का रखें खास ध्यान

बाजार में आप के सामने कोई सामान बिक रहा है तो वह कितने में बिक रहा है, इस की जानकारी जरूर रखें. फिर रेटलिस्ट से उसे मिलाएं, इस से आप को उस की सही कीमत का अंदाजा लगाने में आसानी होगी. कई बार आप खूबसूरत फैंसी पैकिंग के पैसे दे रहे होते हैं इसलिए ऊपरी खूबसूरती पर न जाएं बल्कि क्वालिटी देखें.

अपना बजट तय करें

यह थोड़ा मुश्किल है लेकिन बजट तय करना ठीक रहता है इस से आप अतिरिक्त खर्च से बचते हैं और कंट्रोल में रहते हैं. आप को जिस चीज की जरूरत है उसे ही खरीदें, फालतू खर्च न करें.

एटीएम कार्ड न सौंप दें

आप अपना एटीएम कार्ड कभी भी दुकानदार को न सौंपें कि वह ही पिन नंबर वगैरा डाल ले. पता चला वह ज्यादा अमाउंट डाल दे और आप को पता ही न चले. इस के साथ ही जब भी डिजिटल पेमैंट करें तब थोड़ी सावधानी बरतें, जैसे वौलेट द्वारा भुगतान करने पर ट्रांजैक्शन पूरा न हो, तो तुरंत दोबारा न करें. क्योंकि कई बार सर्वर स्लो होने के कारण ट्रांजैक्शन पूरा होने में समय लग सकता है.

औनलाइन सर्च कर के जाएं

जब किसी चीज की खरीदारी के लिए जाएं तो औनलाइन सर्च कर लें. इस से एक अंदाजा लग जाता है कि किस प्राइज में चीजें बिक रही हैं, क्या खासीयत है. आमतौर पर औनलाइन में प्रोडक्ट की पूरी जानकारी दी रहती है जिसे आप आराम से पढ़ सकते हैं, लेकिन अगर दुकानदार के भरोसे रहते हैं तो वह वही दिखाएगा जिस में उस का प्रौफिट होगा और हां, रिव्यू पढ़ना न भूलें. रिव्यू से आप को पौजिटिव व नैगेटिव दोनों पहलुओं के बारे में पता चलता है जिस से खरीदने में आसानी होती है.

बिल जरूर लें

अधिकांश किशोरों की आदत होती है कि वे जल्दीजल्दी में बिल नहीं लेते और अगर ले भी लेते हैं तो दुकान से बाहर निकलते ही फाड़ कर फेंक देते हैं. ऐसा न करें, क्योंकि अगर आप के पास बिल नहीं होगा तो दुकानदार रिटर्न करने में आनाकानी कर सकता है कि बिना बिल के सामान वापस नहीं लेगा इसलिए बिल जरूर लें. एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि बिल पक्का हो, जिस पर दुकान का नाम लिखा हो व मुहर लगी हो.

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