राजनीति से नहीं जुड़ेंगी रवीना

जब से अभिनेत्री रवीना टंडन असहिष्णुता के मुद्दे पर भाजपा के समर्थन में तथा अपनी फिल्म ‘मातृ’ के प्रति सेंसर बोर्ड के कठोर रवैए के बावजूद बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया दी है, तब से बॉलीवुड में चर्चांएं गर्म हैं कि रवीना टंडन बहुत जल्द भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बन राजनीति से जुड़ने वाली हैं.

हाल ही मैं रवीना टंडन से खास मुलाकात के दौरान जब हमने उनसे राजनीति से जुड़ने का सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि नहीं!! मैं सिर्फ अच्छे लोगों का समर्थन करती हूं. बचपन में मेरे पिताजी सुनील दत्त के साथ काम करते थें. उन दिनों मैं राजीव गांधी की प्रशंसक थी. पर इसके यह मायने नहीं है कि मैं कांग्रेस या किसी खास दल की समर्थक हूं. सभी जानते हैं कि सुनील दत्त लोगों के लिए काम किया करते थें.

हां! असहिष्णुता के मसले पर मैंने भाजपा का साथ दिया. क्योंकि मेरा मानना है कि किसी भी इंसान को अपने देश को बदनाम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अपने देश के नागरिक होने के नाते मैंने कहा कि दूसरों के सामने अपने देश को शर्मिंदा ना करें. इसके लिए आपको मेरा लॉजिक समझना पड़ेगा. हिंदुस्तान एक ऐसा देश है, जिसने सभी को अपनाया है. फिर चाहे मुसलमान हो, पुर्तगीज हों, ब्रिटिश हों. हमने उन्हें अपनाया भी है और बार बार लूटे भी गए हैं. हमारा कोहीनूर लंदन में पड़ा हुआ है.

मुझे अपने देश से प्यार है. मैं देशभक्त हूं. जब राष्ट्रगीत बजता है, उस वक्त हम घर पर होते हैं, तब भी खड़े हो जाते हैं. मैं आज भी लता मंगेशकर का गाया गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों..’ सुनती हूं, तो मेरी आंखों से आंसू बहने लगते हैं. जब वॉशिंगटन पोस्ट सहित कई विदेशी अखबारों में मैंने खबरें पढ़ी की भारत असहिशुष्ण देश है, तो मैंने अपने देश के उन लोगों का विरोध किया, जो देश को शर्मिंदा करने वाले बयान दे रहे थे. देखिए,जब आप दुनिया के सामने यह तस्वीर पेश करते हैं कि भारत में सड़कों पर किसी को भी मारा जा सकता है और लोग इस देश को छोड़कर जाना चाहते हैं, तो आप बताएं कौन विदेशी कंपनी हमारे देश में आकर व्यापार करना चाहेगी? कौन सी विदेशी कंपनी हमारे देश में इंवेस्ट करना चाहेगी?

मेरा कहना यह है कि यदि आपको किसी राजनैतिक पार्टी से तकलीफ है, तो आप उन पर दोशारोपण करिए. पूरे देश को बदनाम मत कीजिए. अमरीका में जितना रंग भेद है, उतना कहीं नहीं है. पर कभी किसी अमरीकन सिनेटर ने इस पर बात नहीं की. वहां कोई नहीं कहता कि अमरीका इनटॉलरेंट देश है. जबकि वहां सबसे ज्यादा घटना होती है. पर अनुष्का शंकर ने वाशिंगटन पोस्ट में भारत की बुराई की. मैं तो यह बात बर्दाश्त नहीं कर सकती, जो करते हैं, उनका विरोध करूंगी.

वह आगे कहती हैं, ‘‘देखिए, जब हम अपने देश को शर्मसार करते हैं. अपने देश के खिलाफ बयानबाजी करते हैं. तो हमारे अपने देश के आर्थिक हालात बिगड़ते हैं, जिसका असर हम आम लोगों पर पड़ता है. उन पोलीटिकल लीडरों पर कोई असर नहीं होता,जो पैसा बनाकर बैठे हैं.मेरी राय में दो पॉलीटिकल पार्टी की आपसी दुश्मनी हो सकती है. किसी पॉलीटिकल पार्टी से आपको शिकायत हो सकती है,पर इसके लिए आप अपने देश को पूरे विश्व के सामने शर्मासार करें, यह गलत है. कम से कम मुझे बर्दाश्त नहीं.’’

…तो हो सकता है ब्रेस्ट कैंसर

कई अध्ययनों और रिपोर्ट्स के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आतो रहे हैं. क्या आप जानते है कि ब्रेस्ट कैंसर होने की वजहों में अब हवा भी शुमार हो गई है. किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी होगी या नहीं यह इस बात पर निर्भर करती है कि वह कैसी हवा में सांस ले रही है.

जिन इलाकों में उच्च स्तर का वायु प्रदूषण होता है, वहां की महिलाओं के स्तनों के ऊतकों का घनत्व ज्यादा हो सकता है और उसमें कैंसर पनपने की आशंका बढ़ जाती है.

अमेरिका की करीब 2,80,000 महिलाओं पर अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है. कहा गया है कि स्तनों का आकार ऊतकों का घनत्व बढ़ने से बड़ा हो जाता है और वसा की अधिकता से भी आकार बढ़ता जाता है, लेकिन अगर चर्बी बढ़ने से स्तन का आकार बढ़ा हो, तो उसमें कैंसर पनपने की आशंका नहीं रहती.

ये खतरा तब होता है जब ऊतकों का घनत्व बढ़ता है, जिसे मैमोग्राफी मापा जा सकता है.

फाइन पार्टिकल कन्सेंट्रेशन (पीएम 2.5) में एक इकाई की बढ़ोतरी से महिलाओं के स्तनों के ऊतकों का घनत्व बढ़ने की संभावना 4 फीसदी बढ़ जाती है. जिन महिलाओं के ज्यादा घनत्व वाले स्तन हैं और ऊतकों की 20 फीसदी तक उच्च सांद्रता, उन्होंने पीएम 2.5 से भी अधिक वायु प्रदूषण का सामना किया था. इसके विपरीत जिन महिलाओं के कम घनत्व वाले स्तन हैं, उन्होंने पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता का 12 फीसदी कम सामना किया.

कई शोध निष्कर्षों से पता चलता है कि स्तन घनत्व की भौगोलिक विविधता की बातें शहरी और ग्रामीण इलाकों में वायु प्रदूषण की अलग-अलग स्थितियों पर आधारित हैं.

परंपरा और आधुनिकता का संगम ‘बिहार’

ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए बिहार न सिर्फ परंपरा और आधुनिकता की अनूठी तसवीर पेश करता है, बल्कि शिक्षा और ज्ञानविज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय पहचान के लिए यह मशहूर भी है.

बिहार ऐसा प्रदेश है जो अपनी अलग पहचान रखता है. चंद्रगुप्त और अशोक के समय में मगध और इस की राजधानी पाटलिपुत्र का विश्व भर में नाम था. बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. जब तक झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था तब तक यहां खनिज संपदा की कोई कमी नहीं थी लेकिन झारखंड बनने पर खनिज संपदा से लबरेज इलाका वहां चला गया. इस तरह बिहार की आर्थिक संपन्नता को काफी नुकसान पहुंचा है.

पर्यटन व ऐतिहासिक दृष्टि से बिहार का आकर्षण आज भी कायम है. देशविदेश से अनेक सैलानी यहां के ऐतिहासिक स्थलों को देखने हर साल आते हैं. बिहार की राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र और अजीमाबाद भी रहा है. यह शहर अपने सीने में कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है.

पटना के दर्शनीय स्थल

बुद्ध स्मृति पार्क

पटना रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही विशाल और चमचमाते स्तूप पर नजर टिक जाती है. वह इंटरनैशनल लेवल का बना नया पर्यटन स्थल बुद्ध स्मृति पार्क है. उस जगह पर पहले पटना सैंट्रल जेल हुआ करता था.

म्यूजियम

पार्क के भीतर बुद्ध म्यूजियम को बड़ी खूबसूरती से गुफानुमा बनाया गया है जिस में बुद्ध और बौद्ध से जुड़ी चीजें प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं. इसे सिंगापुर के म्यूजियम की तर्ज पर विकसित किया गया है.

मैडिटेशन सैंटर

बौद्ध-कालीन इमारतों की याद दिलाता मैडिटेशन सैंटर बनाया गया है. यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से प्रेरित है. इस में कुल 5 ब्लाक और 60 कमरे हैं. सभी कमरों के सामने के हिस्सों में पारदर्शी शीशे लगाए गए हैं ताकि ध्यान लगाने वाले सामने बौद्ध स्तूप को देख कर ध्यान लगा सकें.

बांकीपुर जेल अवशेष

पार्क को बांकीपुर जेल की जमीन पर बनाया गया है. उस जेल को 1895 में बनाया गया था, जो शुरू में तो अनुमंडल जेल था पर बाद में 1907 में उसे जिला जेल बनाया गया. 1967 में उसे सैंट्रल जेल का दरजा दिया गया था. 1994 में जेल को वहां से हटा कर बेऊर इलाके में शिफ्ट कर दिया गया. उस जेल में देश के पहले राष्ट्रपति रहे डा. राजेंद्र प्रसाद समेत कई स्वतंत्रता सेनानी बंदी के रूप में रहे.

ईको पार्क

पटना के लोगों और पर्यटकों की तफरीह के लिए बना नयानवेला ईको पार्क पटना का नया नगीना है. पटना के बेली रोड पर पुनाईचक इलाके में साल 2011 के अक्तूबर महीने में ईको पार्क पर्यटकों के लिए खोला गया. इसे राजधानी वाटिका भी कहा जाता है. पार्क में बनी  झील में नौका विहार का आनंद लिया जा सकता है. इस में बच्चों के खेलने और मनोरंजन का खासा इंतजाम किया गया है, वहीं बड़ों के लिए आधुनिक मशीनों से लैस जिम भी बनाया गया है.

पटना म्यूजियम

पटना म्यूजियम देशविदेश के पर्यटकों को हमेशा ही लुभाता रहा है. पटना के लोग छुट्टी का दिन यहां बिताना पसंद करते हैं. पटना रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर दूर बुद्ध मार्ग पर बने इस म्यूजियम ने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखा है. प्राकृतिक कक्ष में जीवजंतुओं के पुतलों को रखा गया है जबकि वास्तुकला कक्ष में खुदाई से मिली मूर्तियों को रखा गया है, जिस में विश्वप्रसिद्ध यक्षिणी की मूर्ति भी शामिल है.

संजय गांधी जैविक उद्यान

पटना का यह चिडि़याघर शहर वालों का पसंदीदा पिकनिक स्पौट है. रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर और एअरपोर्ट से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने चिडि़याघर में विभिन्न प्रजातियों के पशु, पक्षी और औषधीय पौधे हैं जो इस की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. चिल्ड्रैन रेलगाड़ी में सैर करने का लुत्फ बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उठाते हैं. उद्यान में विकसित  झील में नौका विहार का भी आनंद लिया जा सकता है. सांपघर और मछलीघर भी पर्यटकों को लुभाते हैं.

कुम्हरार

प्राचीन पटना का भग्नावशेष यहीं मिला था. पटना जंक्शन से 5 किलोमीटर पूरब में पुरानी बाईपास रोड पर स्थित कुम्हरार प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है और यह पिकनिक स्पौट और लवर्स प्वाइंट के रूप में मशहूर हो चुका है.

गोलघर

गंगा नदी के किनारे बना गोलघर ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है. 1770 के भीषण अकाल के बाद साल 1786 में अंगरेजों ने इसे अनाज रखने के लिए बनाया था. 29 मीटर ऊंचे इस गोलाकार भवन के ऊपर चढ़ने के लिए 100 से ज्यादा सीढि़यां हैं. इस के शिखर से पटना शहर का नजारा लिया जा सकता है. इन सब के अलावा जलान म्यूजियम, अगमकुआं, मनेर का मकबरा, सदाकत आश्रम, बिहार विद्यापीठ, गांधी संग्रहालय, तख्त हरमंदिर, शहीद स्मारक, गांधी मैदान, तारामंडल आदि भी पटना के नामचीन पर्यटन स्थल हैं.

अन्य दर्शनीय स्थल

राजगीर

यह स्थान सड़क मार्ग से पटना से 102 किलो-मीटर की दूरी पर है और गया एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां वेणुवन, मनियार मठ, पिप्पल नामक पत्थर का महल है, जिसे पहरा देने का भवन या मचान भी कहते हैं. वैभारगिरी पहाड़ी के दक्षिण छोर पर सोनभद्र गुफा, जरासंध का बैठकखाना, स्वर्ण भंडार, बिंबिसार का कारागार, जीवक आम्रवन और पत्थरों की उम्दा कारीगिरी से बनाई गई सप्तपर्णी गुफा की कलात्मकता देखते ही बनती है.

पटना से 109 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में और नालंदा से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैनियों का महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थल है. पहाड़ पर बना विश्व शांति स्तूप स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूनों में से एक है. रोपवे के जरिए पर्यटक वहां आसानी से पहुंच सकते हैं.

रेलमार्ग से हावड़ा-पटना मुख्य रेलमार्ग पर स्थित बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन सब से नजदीक स्टेशन है. पटना के मीठापुर बस अड्डे से हरेक घंटे गया के लिए बस जाती है.

वैशाली

यहां कई ऐतिहासिक और कलात्मक इमारतें हैं. राजा विशाल का किला, अशोक स्तंभ, बौद्ध स्तूप समेत कई इमारतें अपने दिनों की गवाह बनी आज भी सीना ताने खड़ी हैं. वैशाली के कोल्हुआ गांव में स्थित अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग ‘भीमसेन की लाठी’ भी कहते हैं. स्तंभ के ऊपर घंटाघर है और उस के ऊपर उत्तर की ओर मुंह किए हुए समूचे सिंह की मूर्ति बनी हुई है. यह अशोक स्तंभ आज भी भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक चिह्न बना हुआ है. स्तंभ से 50 फुट की दूरी पर एक तालाब है जिस के पास गोलाकार बौद्ध स्तूप बना हुआ है, जिस के ऊपर के भवन में बुद्ध की मूर्ति है.

वैशाली सड़क मार्ग से पटना एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर और पटना रेलवे स्टेशन से 54 किलोमीटर की दूरी पर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और मुजफ्फरपुर है. गया एअरपोर्ट से वैशाली की दूरी 169 किलोमीटर है.

नालंदा

शिक्षा और ज्ञानविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में नालंदा मशहूर था. नालंदा महाविहार या महाविश्वविद्यालय में दुनिया भर से छात्र पढ़ने आते थे. इस की स्थापना 5वीं सदी ईसापूर्व में कुमारगुप्त प्रथम ने की थी और हर्षवर्द्धन के शासन में यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हो गया था.

सम्राट अशोक ने यहां मठ की स्थापना की थी. जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने यहां काफी समय गुजारा और प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं हुआ था. इस में 10 हजार छात्रों के पढ़ने की व्यवस्था थी और उन्हें पढ़ाने के लिए 1,500 शिक्षक दिनरात लगे रहते थे. यहां बुद्धकाल की बनी हुई धातु, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं.

बोधगया

ईसा से 500 साल पहले बोधगया में ही गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. गया शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया निरंजन नदी के किनारे बसा हुआ है. इस के आसपास कई तिब्बती मठ हैं. वटवृक्ष के नजदीक जापान, चीन, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड द्वारा बनाए गए विशाल बौद्ध स्तूप पर्यटकों को लुभाते हैं.

बिहार में सब से ज्यादा विदेशी पर्यटक बोधगया ही आते हैं. गया शहर में भी कई पर्यटन स्थल हैं. पटना से 94 किलोमीटर की दूरी पर गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. बराबर की गुफाओं में मौर्यकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है.

बोधगया सड़कमार्ग से पटना एअरपोर्ट से 109 किलोमीटर की दूरी पर है. गया एअरपोर्ट से इस की दूरी 8 किलोमीटर है. दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग पर गया रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है.

सासाराम

सासाराम में शेरशाह सूरी और उन के पिता हसन खान सूरी का मकबरा है, जो भारत में पछान स्थापत्य कला का खूबसूरत नजारा पेश करता है. यहां विश्व प्रसिद्ध कैमूर की पहाडि़यां भी हैं.

दियारा

कहीं रेत पर दौड़ते भागते प्रेमी प्रेमिकाएं दुनिया भुलाए, कहीं किनारे बैठा प्रेमी जोड़ा कहीं पानी में छई छपा छई.. करते मुहब्बत के दीवाने, कहीं देहाती भोजन का लुत्फ उठाता परिवार. गंगा के दियारा इलाके में जमा हो कर लोग एकांत का आनंद लेने लगे तो सरकार का ध्यान उस ओर गया. अब दियारा इलाके को पर्यटन स्पौट के रूप में विकसित किया जा रहा है. गंगा पर्यटन के नाम से इस योजना को हकीकत के धरातल पर उतारने की कवायद शुरू हो चुकी है.

पटना और हाजीपुर के बीच गंगा नदी के 2 धाराओं में बंट जाने से गंगा के बीच करीब 4 वर्ग किलोमीटर का इलाका टापू की शक्ल ले चुका है. उस टापू पर युवा लड़के और लड़कियां मौजमस्ती करने की  नीयत से नाव के सहारे पहुंच जाते हैं और शाम ढलने से पहले वहां वापस चले जाते हैं. धीरे धीरे कुछ लोगों ने वहां अपने परिवार के साथ जाना शुरू किया. दियारा में रेत और पानी के बीच समुद्रतट जैसा नजारा और मजा मिलता है.

यह शोर तो बंद होना ही चाहिए

सुबह सुबह अजान से नींद खुल जाने पर गायक सोनू निगम ने ट्वीट कर हंगामा सा खड़ा कर दिया है. जहां बहुत से लोग इसे मुसलिमों के प्रति बढ़ते भेदभाव की शक्ल दे रहे हैं, वहीं दूसरे हर तरह के धार्मिक शोर को बंद कराने का अवसर ढूंढ़ने लगे हैं.

अजान, कीर्तन, जागरण, भजन आदि से आम आदमी को भरमाए रखने की धर्मों की पुरानी आदत है. वे नहीं चाहते कि उन के भक्त जो अज्ञानता, अंधविश्वासों, चमत्कारों की चाह में धर्म के नाम पर अपनी जेबें भी ढीली करते

रहते हैं और मरनेमारने को भी तैयार रहते हैं, बिदक जाएं. इसीलिए सुबहशाम मंदिरों में घंटियां बजाई जाती हैं, गुरुद्वारों से अरदास की आवाजें आती हैं और मसजिदों से अजान की.

सोनू निगम ने सही कहा है कि जब लाउडस्पीकर नहीं थे तब तक जो चाहे चीख कर कुछ भी कर ले, पर ईश्वर की नहीं आदमी की खोज लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर धर्म का प्रचार करना ऐन चुनावों से पहले सड़कों पर नेताओं को वोट देने की गुहार से भी बुरा है.

शांति का हक हरेक को है और यह जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है. किसी भी तरह का शोर चाहे किसी बरात का हो, शामियाने में बज रहे गाने हों या नेताजी का भाषण केवल उन तक पहुंचे जो उस परिधि में हैं जहां उन के भक्त या समर्थक हैं. बाहर जाने वाले शोर को तो बंद करना ही होगा.

सरकार ने पहले ही गाडि़यों में प्रैशर हौर्न लगाने पर प्रतिबंध लगा रखा है. काफी शहरों में लोगों ने अब आमतौर पर हौर्न बजाना बंद कर दिया है. मंत्रियों की गाडि़यों से सायरन तो बहुत पहले से बंद हो चुके हैं. स्कूलों तक को सामूहिक परेड के समय धीमी आवाज में ही लाउडस्पीकर चलाने की अनुमति है. पार्टी में आप इतने जोर से म्यूजिक बजाएं कि पड़ोसी हल्ला करें, तो आफत आ जाती है.

ऐसे में धर्म को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती. धर्म के नाम पर वैसे ही बहुत कुछ अनाचार होता है. कम से कम शांति की हत्या तो न की जाए. माना धर्मों को शांति तो क्या लोगों की हत्याओं पर शर्म नहीं आती पर अंधविश्वासी धर्म के बिचौलिए रात भर या सुबह सुबह तो जीतेजी न मारें.

बैंकों को भा नहीं रही यह पौलिसी

इंश्योरैंस कंपनी की रिवर्स मौर्टगेज की स्कीम का फायदा लेने के लिए एक 80 वर्षीय बुजुर्ग दरदर भटकता हुआ सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा. रिवर्स मौर्टगेज में इंश्योरैंस कंपनी एक संपत्ति पहले रख कर पौलिसी लेने वाले को हर माह कुछ न कुछ देती रहती है और संपत्ति कंपनी को पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद मिलती है.

यह पौलिसी वृद्ध अकेलों के लिए बहुत अच्छी है, जो अपना मकान किसे दे कर जाएं यह नहीं जानते और मकान में संपत्ति फंसी होने के कारण हाथ में पैसा भी नहीं रख पाते.

शायद यह पौलिसी बैंकों और इंश्योरैंस कंपनियों को भा नहीं रही, क्योंकि इस में पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद बहुत से पेच खड़े हो जाते होंगे. ये बुजुर्ग जब सर्वोच्च न्यायाधीश के सामने उपस्थित हुए तो उन्होंने भी कुछ खास नहीं कहा. हां, इतना आश्चर्य अवश्य जताया कि वृद्ध वित्त मंत्री से कैसे मिल लिए जबकि वे सर्वोच्च न्यायाधीश होने के बावजूद वित्त मंत्री से मुलाकात नहीं कर पाते.

इस देश में दिक्कत यही है कि हर अफसर अपने अधिकारों का एक जाल बुन लेता है जिसे पार कर अधिकारी तक पहुंचना कठिन हो जाता है. औरतों को तो और ज्यादा तकलीफ होती है और हर सरकारी दफ्तर में बीसियों औरतें हवाइयां उड़े चेहरे लिए खड़ी दिख जाती हैं, जो फाइलों से घिरे बाबुओं को घेर नहीं पातीं. आज जब अकेली औरतों की संख्या बढ़ रही है, उन्हें खुद ही सरकारी दफ्तरों, बैंकों, अदालतों, जेलों, निजी दफ्तरों, बिजली दफ्तरों, कर अफसरों के पास जाना पड़ता है.

जैसे वृद्ध के साथ लिहाज नहीं किया जाता वैसे ही औरतों को भी बारबार न सुनना पड़ता है और बेटा या बेटी साथ न हो तो वे बहुत तकलीफ पाती हैं. आमतौर पर अब औरतों को किसी भी जगह प्राथमिकता कम ही मिलती है. पुरुष खार खाए रहते हैं कि जो भी थोड़ीबहुत छूट औरतों को औरत होने के नाते मिल जाती है वह अन्याय है.

पुरुषों के मन में यह भी कहीं दबे रहता है कि औरतों को घरों में रह कर अपने हाल पर संतुष्ट रहना चाहिए और यदि किसी जुल्म का सामना करना पड़ रहा है, तो पौराणिक कहानियों की तरह अहिल्या बन कर दंड भोगना चाहिए चाहे दोषी कोई भी हो. वे आज भी इसी मानसिकता में रहते हैं कि स्त्री तो पिता, पति या बेटे के संरक्षण में रहे वरना उस का जीना ही बेकार है.

जो लोग महान संस्कृति का ढोल पीटते रहते हैं उन्हें एहसास होना चाहिए कि हमारे यहां वृद्धों और औरतों के साथ इस तरह का व्यवहार होता है. हमारी संस्कृति

में वृद्ध वानप्रस्थ्य लेते हैं, औरतें सती होती हैं, आज भी यही हो रहा है, बस दंड का स्वरूप बदल गया है.

समधी समधिन नहीं, बनें प्यारे दोस्त

रमाकांतजी और उन की पत्नी खाना खा कर उठे ही थे कि  फोन घनघना उठा. फोन उन के इंदौर शहर में ही रहने वाले समधीजी का था. वे बड़े घबराए स्वर में कह रहे थे, ‘‘भाई साहब नमिता को पेट में बहुत दर्द हो रहा है. मैं अपोलो हौस्पिटल ले कर जा रहा हूं.’’

रमाकांतजी ने झट गाड़ी निकाली और सपत्नीक हौस्पिटल पहुंच गए. उन्हें देख कर उन के समधी गुप्ताजी की जान में जान आई.

‘‘नमिताजी को हर्निया का दर्द है. तुरंत औपरेशन करना पड़ेगा,’’ डाक्टर ने जब गुप्ताजी को बताया तो वे घबरा गए, परंतु समधी रमाकांत और उन की पत्नी ने उन्हें हिम्मत दी, तो वे थोड़ा संभले और फिर औपरेशन करवाने के लिए तुरंत तैयार हो गए. 3 दिन हौस्पिटल में रहने के दौरान रमाकांत दंपती ने नमिता की जीजान से सेवा की. 3 दिन बाद हौस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर आते समय रमाकांत ने गाड़ी अपने घर की ओर मोड़ दी.

नमिताजी ने जब समधी के घर जाने से मना किया तो रमाकांतजी की पत्नी बोलीं, ‘‘बहनजी, इसे समधियाना नहीं अपनी बेटी का घर कहिए. आप की बेटी और दामाद मुंबई में हैं. उन्हें आने में वक्त लगेगा. आप मेरी बहू की मां हैं, इसलिए जब तक आप ठीक नहीं हो जातीं आप और भाई साहब यहीं रहेंगे.’’

रमाकांत दंपती के अनुरोध पर गुप्ता दंपती कुछ न कह सके. 2 दिन बाद उन की बेटी और दामाद भी आ गए. फिर भी सभी एकसाथ एक ही घर में रहे. 15 दिन तक अपनी बेटी के ससुराल में सब के साथ रहने के बाद वे जबरदस्ती अपने घर गईं. परंतु इस दौरान समधी के यहां मिले प्यार, सम्मान और देखभाल की प्रशंसा करते गुप्ता दंपती आज भी नहीं थकते हैं.

सभी सम्मान के हकदार

भारतीय समाज पुरुषप्रधान है. अत: पुरातनकाल से ही लड़की के मातापिता को लड़के के मातापिता की अपेक्षा कमतर माना जाता रहा है, पर अब मान्यताएं बदल रही हैं. लड़कियों का पालनपोषण भी मातापिता लड़कों की ही तरह कर रहे हैं और आज बेटियां समाज में अनेक उच्च पदों पर आसीन हैं. अपने पति के बराबर और कई बार उस से भी अधिक वेतन पाने वाली लड़की किसी भी कीमत में अपने मातापिता को कमतर नहीं देखना चाहती.

आज अधिकतर दंपतियों की 1 या 2 संतानें होती हैं. बेटों की तरह आज बेटियां भी ताउम्र अपने मातापिता की जिम्मेदारी उठाना चाहती हैं. आत्मनिर्भर होने के बाद उन के लिए भी कुछ करना चाहती हैं. बेटी या बेटे के विवाह के समय हमें नए रिश्तेदार मिलते हैं, जो वास्तव में हमारे समान ही सम्मान के हकदार होते हैं. यह हमारा दायित्व है कि अहंकारी, नकचढ़े और स्वार्थी समधीसमधिन बनने के बजाय हम अपने इस नए रिश्ते को प्यार और मित्रतारूपी भाव से सींच कर प्रिय मित्र और सुलझे रिश्तेदार बनें. फिर देखिए कैसे यह रिश्ता आप के लिए खुशनुमा और बेशकीमती बनता है.

जिन परिवारों में बहू के मातापिता को उचित सम्मान प्राप्त नहीं होता, वहां बहू भी अपने सासससुर को समुचित मान नहीं दे पाती. रश्मि की मां जब भी अपनी बेटी से मिलने जाती हैं, तो उस की सास पूरे घर का काम छोड़ कर आराम करने लगती हैं या घूमने चल देती हैं. मांबेटी पूरा दिन घर के काम समाप्त करने में ही लगी रहती हैं. आचारव्यवहार में भी उस की सास यही जताती हैं कि मानो बेटी की मां हो कर रश्मि की मां ने कोई गुनाह किया है जबकि उन की बेटी रश्मि ही अपनी ससुराल का सारा काम संभालती है. इसलिए जब उस की ननदें अपने मायके आती हैं, तो रश्मि भी बीमार हो जाती है. वह भी घर का पूरा काम छोड़ कर बिस्तर पकड़ लेती है.

रश्मि कहती है, ‘‘जब मेरी मां को मेरे घर आ कर काम करना पड़ता है, तो फिर इन की बेटियां क्यों आराम से रहें?’’

आमतौर पर लड़के वाले स्वयं को लड़की के मातापिता से श्रेष्ठ समझते हैं, परंतु कई बार इस के उलट भी देखने में आता है. दीप्ति की बेटी की सास ग्रामीण परिवेश की कम पढ़ीलिखी महिला हैं. इसलिए जब पहली बार उन की समधिन अपनी बहू के मायके आईं, तो दीप्ति ने उन्हें हर बात में यह जताने की कोशिश की कि वे उन से अधिक स्टैंडर्ड, मौडर्न और शिक्षित हैं.

समधिन की पारखी नजरें सब समझ रही थीं, पर वे शांत रहीं. 2 दिन बाद जब वे जाने लगीं तो बोलीं, ‘‘बहनजी, मैं भले कम पढ़ीलिखी और गांव की हूं पर मैं ने अपने बेटे को इस लायक बनाया कि आप ने उसे अपनी बेटी दे कर दामाद के रूप में स्वीकार किया है.’’

दीप्ति खिसिया कर रह गईं. इस प्रकार का व्यवहार हमेशा के लिए मन में कटुता भर देता है और गाहेबगाहे आप की बेटी को ही इस का खमियाजा भुगतना पड़ता है. इसलिए आप की बेटी या बेटे के ससुराल वाले कैसे भी हों, हैं तो आप के दामाद या बहू के ही मातापिता, तो फिर उन के प्रति सदैव आदर का भाव रखें और संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने की कोशिश करें.

जब भी आप के समधी घर आएं आप उन्हें वही मान दें, जो आप को उन के घर जाने पर मिलता है. कभी भी किसी भी अवसर पर उन्हें कमतर दिखाने की कोशिश न करें. सदैव याद रखें कि  बहू के मातापिता के प्रति किया गया आप का व्यवहार अपरोक्ष रूप से आप की बहू को प्रभावित करेगा.

मेरी सहेली कांता जब भी अपने लिए कुछ खरीदती हैं, तो अपनी समधिन के लिए भी खरीदती हैं. इस से बहू गरिमा के मन में अपनी सास के लिए इज्जत और अधिक बढ़ जाती है.

गरिमा कहती है, ‘‘मेरी सास मेरी मां के साथ बिलकुल वैसा ही व्यवहार करती हैं जैसा एक बड़ी बहन अपनी छोटी बहन के साथ करती है. उन के व्यवहार में कभी बड़प्पन या अहंकार नहीं झलकता. भला ऐसी सास को कौन प्यार नहीं करेगा.’’

उपहार लें तो दें भी

भारतीय समाज में अनेक रस्में और रिवाज ऐसे हैं, जिन में लड़की वाले को देना ही होता है. मसलन, विवाह बाद साल भर तक समस्त त्योहार चलाने की रस्म, गर्भावस्था के 7वें माह गोद भराई, संतानोत्पत्ति पर मुंडन संस्कार में वस्त्र व अन्य सामान आदि देने जैसी अनेक परंपराएं हैं. आप केवल लेने का भाव ही न रख कर उन के लिए भी उतना ही देने का भाव रखें. इस से कभी संबंधों में कटुता नहीं आ सकती.

अमिता के सासससुर बेहद सुलझे हुए हैं. जब उस के बेटे के मुंडन संस्कार में उस के मायके से ससुराल के हर व्यक्ति के लिए कपड़े और मिठाई आई, तो उस की सास ने भी उस के मायके के प्रत्येक सदस्य के लिए कपड़े और मिठाई भिजवाई, साथ ही यह भी कहा कि हमारे यहां भी तो नाती हुआ है. यह आप के लिए हमारी खुशी और प्यार है, जिसे आप को स्वीकारना ही होगा,’’ अमिता अपनी सास के इस कदम का गुणगान करते नहीं थकती.

मेरी सहेली अंजू जब अपने बेटेबहू के साथ सिंगापुर घूमने गईं, तो जबरदस्ती अपने समधीसमधिन को भी ले गईं. अपने सासससुर के साथसाथ अपने मातापिता को भी विदेश घुमा कर बहू कृतिका अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रही थी.

अंजू कहती हैं, ‘‘समधियों के साथ रहने से हमें एक अच्छी कंपनी तो मिलती ही है, साथ ही बहू को भी अपने मातापिता के लिए कुछ कर पाने का संतोष रहता है. मेरे बेटे की तरह उस ने भी तो अपने मातापिता के लिए कुछ सपने बुने होंगे. मेरा बेटा यदि हमारे लिए करना चाहता है, तो बहू भी अपने मातापिता के लिए क्यों न करे. उस के मातापिता ने भी तो उसे बनाने में हमारी तरह ही पैसा और परिश्रम खर्च किया है. ऐसे में अपनी बहू की इच्छाओं का मान रखना हमारा प्रथम दायित्व बनता है.’’

आजकल पतिपत्नी दोनों कामकाजी होते हैं. ऐसे में सब से कठिन होता है बच्चों का पालनपोषण. गरिमा कहती है, ‘‘मेरे ससुर और पापा यानी 2 समधियों ने मिल कर इस समस्या का बेहतरीन हल निकाला. जब मेरी बेटी हुई तो मम्मीजी ने उसे क्रैच भेजने से साफ मना कर दिया कि मेरे होते हुए मेरी पोती नौकरों के भरोसे नहीं पलेगी. वे और पापाजी हमारे पास आ गए. जब उन्हें किसी काम से जाना होता था, तो उस अवधि में मेरे मम्मीपापा आ जाते थे. मेरी बेटी आज 5 साल की है पर दादीदादा, नानानानी के प्यार के तले उस ने जो परवरिश पाई है वह मैं कभी भी नहीं दे सकती थी. चारों ने मिल कर हमारी समस्या को चुटकियों में सुलझा दिया.’’

बेटी के मातापिता का भी यह दायित्व बनता है कि वे अपनी बेटी को पति के साथसाथ ससुराल के सभी सदस्यों को साथ ले कर चलना सिखाएं. बेटी को कोई भी शिक्षा देते समय ध्यान रखें कि आप के घर में भी बहू है और वह भी किसी की बेटी है.

श्रुति जब अपनी बेटी के विवाह के बाद पहली बार अपनी समधिन से मिलीं तो बोलीं, ‘‘भाभीजी, आप शुरू से ही बच्चों के पास रहने जाती रहिएगा ताकि इन्हें आप के साथ रहने की आदत रहे. अकसर लोग शुरू में तो बच्चों के पास जाते नहीं और फिर जब भविष्य में उन के पास जा कर कुछ दिन रहना चाहते हैं, तो बच्चों को अकेले रहने की आदत हो चुकी होती है, फिर वे मातापिता को अपने साथ ऐडजस्ट नहीं कर पाते.’’

श्रुति की समधिन आज भी कहती हैं, ‘‘मैं ने ऐसी पहली मां देखीं जिन्होंने अपनी बेटी को इतनी अच्छी सीख दी.’’

आप को अपने समधी की विवशता को भी समझना चाहिए. जैसाकि श्रीप्रकाशजी के साथ हुआ. वे जब आगरा अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने गए, तो अपने बेटे की ससुराल भी पहुंच गए. ससुराल में बहू के वृद्ध मातापिता ही थे. उन से जो बन पड़ा उन्होंने किया, परंतु श्रीप्रकाशजी की अपेक्षाओं पर वे खरे नहीं उतर पाए. उन्होंने घर जा कर बहू के मातापिता को खूब भलाबुरा कहा, ‘‘मैं अपने 4 दोस्तों को बड़े शौक से ले कर गया था. न ढंग का नाश्ता, न खातिरदारी, बस चायबिस्कुट में टरका दिया.’’

जबकि वे अचानक बिना पूर्व सूचना के पहुंच गए थे. ऐसे में उन के समधीसमधिन यथासंभव जो कर सके किया. आप को अपने रिश्तेदारों की विवशता को समझना चाहिए. ऐसे में जब भी आप उन के घर जाएं अपने साथ ही नाश्ता आदि का इंतजाम कर के ले जाएं ताकि आप के जाने से परेशानी की जगह उन्हें मदद हो. आप को उन की इज्जत अपनी इज्जत समझनी चाहिए.         

ध्यान रखने योग्य बातें

– समधी चाहे दूर रहते हों या एक ही शहर में, कभी आप उन्हें बुलाएं और कभी आप उन के यहां जाएं. आपस में मिलतेजुलते रहने से प्रेम और सौहार्द बना रहता है.

– उन के आने पर उचित मानसम्मान और विनम्र व्यवहार करें ताकि वे दोबारा भी आने का साहस कर सकें.

– उन के आने पर बहू या दामाद की कमियों या बुराइयों का ही गुणगान न करें, बल्कि जितना हो सके उतनी तारीफ ही करें ताकि बच्चे के मातापिता आश्वस्त हो सकें.

– बहू के मातापिता के आने पर बहू को उन के साथ वक्त बिताने का अवसर दें. रीमा जब विदेश से अपने देवर की शादी में

1 सप्ताह के लिए आई, तो उस की सास ने उस के मातापिता को उस के कमरे में ही ठहराया ताकि वह अपने मातापिता के साथ वक्त बिता सके.

– जब भी आप जाएं अपने बजट के अनुसार छोटा मोटा तोहफा अवश्य ले जाएं.

– यदि आप के समधी अकेले रहते हैं, तो उन के काम में हाथ बंटाएं और भोजन आदि में अनावश्यक तीमारदारी न करवाएं.

– मिलने पर भूत में हुई किसी अप्रिय घटना का जिक्र कर के ताना न मारें और न ही विवाह में हुई भूलचूक को दोहराएं.

बरकरार रहेगी आपकी त्वचा की खूबसूरती

कभी गर्मी कभी बारिश, कभी तेज धूप से सामना तो कभी चिल्ड एसी. दिनभर में इतने बदलावों के बाद आपकी त्वचा प्यार भरी देखभाल चाहती है. और फिर आप भी तो अपनी खूबसूरती बरकरार रखना चाहती हैं.

आज हम आपको कुछ आसान टिप्स के बारे में बताएंगे जिनके जरिए आपकी त्वचा की दमक बरकरार रहेगी.

कम से कम मेकअप

जितना हो सके मेकअप का कम इस्तेमाल करें. गर्मियों में पीसना और धूल त्वचा पर बुरा असल डालते हैं ऐसे में ज्यादा मेकअप के प्रयोग से त्वचा को खासा नुकसान होता है.

स्किन एक्सफोलिएट

सिर्फ फेस नहीं पूरी बॉडी को एक्सफोलिएट करें. सुंदर त्वचा का बेसिक रूल है एक्सफोलिएट करना. इससे स्किन की डेड सेल्स हट जाती हैं. स्किन को एक्सफोलिएट करते वक्त एक्सफोलिएटर को क्लोकवाइज हल्के हाथों से अप्लाई करें. इसके लिए बॉडी स्क्रबर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. एक्सफोलिएट करने के बाद ताजे पानी से शॉवर लें. दमकती त्वचा के लिए सप्ताह में 3 बार ऐसा जरूर करें.

लोशन लगाएं

रात को सोने से पहले ऑइल फ्री लोशन लगाना न भूलें. सुबह नहाने के बाद तो यह मस्ट है ही. इसके लिए लाइट और जल्दी अब्जॉर्ब होने वाला लोशन इस्तेमाल करें. आप फ्रूटी लोशन ट्राय कर सकती हैं.

सनस्क्रीन लगाएं

यह तो आपको भूलना ही नहीं है. धूप में जाने से पहले अच्छी क्वालिटी का सनस्क्रीन अप्लाई करें. यह ध्यान रखें कि यह आपकी स्किन के हिसाब से होना चाहिए. मसलन, अगर आपकी स्किन ऑइली है तो भूलकर भी ऑइल बेस्ड सनस्क्रीन न लगाएं.

ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं

गर्मियों में पानी ही आपका बेस्टफ्रेंड होना चाहिए. अगर आप बॉडी की जरूरत के मुताबिक पानी पिएंगी तो आपको हेल्दी स्किन और हेल्दी बॉडी दोनों मिलेंगी. हर रोज कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पिएं.

पैरों की देखभाल

पेडीक्योर जरूर करें. पार्लर न जाना चाहें तो घर पर ही पेडीक्योर कर डेड स्किन हटा लें. यह सैंडल का सीजन है. तो खूबसूरत सैंडल में डल स्किन वाले पैर नहीं अच्छे लगेंगे. ऐसे में पैरों को स्क्रब और मॉइश्चराइज करती रहें.

सनग्लास

ये आपकी आंखों को ही आराम नहीं देते बल्कि तेज धूप में आपकी आंखों की नाजुक स्किन को झुलसने से भी बचाते हैं. साथ ही डार्क सर्कल की समस्या को दूर रखते हैं.

गर्मियों में बड़ी समस्या है आपकी जूती की दुर्गंध

गर्मियों का मौसम आते ही पसीने की परेशानी शुरू हो जाती है. इसके लिए आप डिओ से लेकर परफ्यूम तक हर चीज की मदद लेती हैं. पर इस गर्मी के मौसम की एक और बड़ी समस्या है जूते से आने वाली दुर्गंध. ऑफिस या घर में जूतों से पैर बाहर निकालते ही आपके आसपास के लोग नाक बंद करने लगते हैं. कई बार इसके चलते आपको शर्मिंदगी भी उठानी पड़ जाती है.

ये बात आपको शायद ही मालूम हो कि पैरों से आने वाली बदबू को ब्रोमिहाइड्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है. सबके तो नहीं पर आमतौर पर ये समस्या उन लोगों को होती है जिनके पैरों से पसीना सूख नहीं पाता है. आप सभी की त्वचा पर बैक्टीरिया तो रहते हैं और जब यह पसीना इन बैक्टीरिया के संपर्क में आता है तो पैरों से बदबू आने लग जाती है.

बाजार में पैरों की बदबू को दूर करने का कोई बहुत कारगर उपाय नहीं है लेकिन बहुत से ऐसे घरेलू उपाय है, जिन्हें आजमाकर आप इस समस्या को दूर कर सकती हैं…

1. बेकिंग सोडा

सोडियम कार्बोनेट को ही साधरण शब्दों में बेकिंग सोडा के नाम से जाना जाता है. पैरों से आने वाली बदबू को दूर करने का यह एक बेहद कारगर और आसान उपाय है. यह पसीने के pH लेवल को सामान्य रखता है और बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में कारगर होता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए हल्के कुनकुने पानी में बेकिंग सोडा मिला लें और 15 से 20 मिनट तक पैर पानी में ही डुबोए रखें. कुछ हफ्तों तक ये प्रक्रिया दोहराने से आपको फायदा होगा.

2. लैवेंडर ऑयल

लैवेंडर ऑयल न केवल अच्छी खूशबू देता है बल्कि यह बैक्टीरिया को मारने में भी असरदार है. इस तेल में एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं जो पैरों की बदबू को दूर करने में बहुत फायदेमंद रहते हैं. इसके लिए सबसे पहले हल्के गर्म पानी में कुछ बूंदें लैवेंडर ऑयल की डालकर पैरों को उसमें कुछ देर के लिए डुबोकर रखें. दिन में कम से कम दो बार ऐसा करना फायदेमंद रहेगा.

3. फिटकरी

फिटकरी कसैली होती है और इसमें एंटी-सेप्ट‍िक गुण भी पाया जाता है. यह बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकती है. एक चम्मच फिटकरी पाउडर को, एक मग पानी में डालकर उससे पैर धोएं. कुछ दिनों में बदबू की समस्या दूर हो जाएगी.

4. रोड़ा नमक

रोड़ा नमक भी पैरों की इस समस्या को दूर करने में बहुत कारगर है. यह पसीने से होने वाले संक्रमण और बैटीरिया को दूर करने में मददगार होता है. इसका इस्तेमाल भी फिटकरी की ही तरह किया जा सकता है.

5. अदरक और सिरका

आप चाहें तो पानी में सामान्य सिरका मिलाकर उससे भी पैर धो सकते हैं या फिर अदरक के रस को पैर पर मलकर और बाद में कुनकुने पानी से पैर धो भी धो सकते हैं. ऐसे अच्छी तरह से पैर धोने से पैरों की बदबू चली जाती है.

6. पैर रखें साफ

सबसे आखिर में मगर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जूते पहनने से पहले आप यह सुनिश्च‍ित कर लें कि आपके पैर साफ हों. क्योंकि ऐसा पाया गया कि गंदे पैर जूते पहनने से ज्यादा बदबू आती है.

कौन कहता है मां ममता की मूरत है?

कहते हैं कि हर मां ममता की मूरत होती है लेकिन ऐसा फिल्मों में भी हमेशा हो ये जरुरी नहीं और असल जिंदगी में भी ऐसा सच में हो, ये भी हर बार और सबके लिए जरुरी नहीं है. इन बातों को सही साबित करने के लिए हॉलीवुड फिल्मों की मांओं के ये किरदार काफी हैं.

आइये जानते हैं हॉलीवुड फिल्मों की उन मांओं के बारे में जिन्हें ममता की मूरत कहना तो दूर, मां कहना भी सही नहीं होगा.

पाइपर लॉरी

साल 1976 में आई हॉरर फिल्म ‘कैरी’ में उसकी मां पाइपर लॉरी का किरदार एक ऐसी मां की छवि को उजागर करता है जो अपने पागलपन के लिए अपनी बच्ची का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाती.

गोथैल

फैरी टेल फिल्म ‘टैंग्लड’ में रिपंजल की नकली मां का किरदार भी कुछ ऐसा ही था. ताउम्र जवां दिखने के लिए गोथैल नाम की चुड़ैल रिपंजल को कैद करके रखती है ताकि वह उसके जादुई बालों का जादू हमेशा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती रहे.

चार्लीज थेरान

क्या होगा अगर आपको पता चले कि दुनिया खत्म होने वाली है. शायद आप हर पल अपनी फैमिली के साथ बिताना चाहेंगे. हॉलीवुड फिल्म ‘द रोड’ में चार्लीज थेरान ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया है जो इस मुसीबत के समय अपने बच्चे और पति को छोड़कर चली जाती है.

कैट ब्लैंचेट

सिंड्रेला परियों की कहानी में से एक ‘सिंड्रेला’ पर बनी फिल्म में कैट ब्लैंचेट ने सिंड्रेला की सौतेली मां का किरदार निभाया था. यह किरदार भी मां के ग्रे शेड को बयां करता है.

जेड

फिल्म हैंगओवर में जेड ने एक ऐसी मां का किरदार निभाया था जो अपने बेटे को तीन अंजान लोगों के पास इसलिए छोड़कर चली जाती है क्योंकि वह अपने काम में बहुत बिजी रहती है और अपने बच्चे को समय नहीं दे सकती या देना चाहती. क्या आप कभी ऐसा कर सकती हैं?

आपने देखा ‘3 इडियट्स’ के रीमेक का ट्रेलर

आठ साल पहले 2009 में बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान की फिल्म ‘3 इडियट्स’ ने अपनी रिलीज के साथ ही धुआंधार कमाई की और सफलता की एक नई कहानी लिखी. इसे भारत में ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी खूब सराहा गया था.

फिल्म ने कई मामलों में पुराने रिकॉर्ड को तोड़कर नए रिकॉर्ड बनाए. निर्देशक राजकुमार हिरानी की इस फिल्म ने दिलचस्प तरीके से भारत की शिक्षा व्यवस्था पर चोट करते हुए अपनी बात कही. फिल्म की कहानी इतनी रोचक थी जिससे दर्शकों ने खुद को जोड़ कर देखा.

राजकुमार हिरानी की यह फिल्म भारत की सफल फिल्मों में से एक है. इसकी सफलता और उसके फैन्स का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जल्द ही इसका रीमेक आने वाला है. वह भी भारत में नहीं बल्कि मैक्सिको में.

इस फिल्म के रीमेक का ट्रेलर भी बेहद पसंद किया जा रहा है. इस ट्रेलर को देखकर एक बार फिर आपके दिमाग में 3 इडियट्स की यादें ताजा हो जाएंगी. यह ट्रेलर काफी मनोरंजक है और इसमें हिंदी में बनी थ्री इडियट्स के काफी सीन देखना अपने आप में मजेदार अनुभव है.

इस रीमेक को मैक्सिकन निर्देशक कार्लोस बोलाडो ने बनाया है. फिल्म में अल्फांजो दोसाल, क्रिस्चियन वाज्क्वेज और जर्मन वाल्देज मुख्य भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं. फिल्म में करीना कपूर वाला किरदार ऐक्ट्रेस मार्था हाइगारेडा ने निभाया है. मैक्सिकन में फिल्म का नाम ‘3 इडियोटास’ (3 idiotas) है.

मैक्सिकन में बनी इस फिल्म की झलक में वह सब कुछ है जो हिंदी भाषा में था. रैंचो का वायरस को यह समझाना कि वह पढ़ाते कैसे हैं, वायरस का रैंचो को घसीटते हुए क्लास में लेकर जाना, हॉस्टल में होने वाली मस्ती, तीन दोस्त और उनकी दिलचस्प हरकतें.

डिप्रेशन से बचने के लिए देखें फिल्‍म

3 इडियट्स पहली भारतीय फिल्म है जिसने चीन में 100 करोड़ का कारोबार किया था. चीन की कुछ यूनिवर्सिटी में डिप्रेशन से निपटने के लिए बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स को देखने की भी सलाह दी जाती है.

मजा लीजिए इस ट्रेलर का-

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