असहज परिस्थितियों में रहें सकारात्मक

सकारात्मकता सफलता की कुंजी है. असहज परिस्थितियों में संयम व धैर्य ही काम आते हैं. एक शोध के अनुसार पौजिटिविटी हमारे भीतर असीमित ऊर्जा का संचार कर एर्डोफिन नामक हारमोन स्रावित करने में सहायक होती है, जिस से हम प्रसन्नता का अनुभव करते हैं. अगर हम मुश्किल हालात में धैर्य व संयम खोने के बजाय मजबूत इरादों के साथ उन का मुकाबला करें तो निश्चित ही हमारी जीत होगी.

कई बार हम ऐसी असहज परिस्थिति में घिर जाते हैं, जहां स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती है. विशेषकर कार्यस्थल पर यह बहुत जरूरी होता है कि हम कार्य और स्थितियों के बीच बेहतर तालमेल बैठाएं. इस की संभावना तब होती है जब हम घबराने के बजाय बेहद संतुलन के साथ अपना उच्च कार्यप्रदर्शन दिखाएं. इस में सकारात्मकता अहम भूमिका निभाती है, प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स, जिन से प्रबंधन कौशल दिखाते हुए असहज परिस्थितियों से बचा जा सकता है :

ऐसे पाएं औफिस में तनाव से मुक्ति

बहुराष्ट्रीय कंपनियों में प्रोजैक्ट बेस्ड समयसीमा आधारित काम होता है. लिमिटेड टाइमलाइन के भीतर बैस्ट परफौर्मैंस देनी होती है और ऐसे हालात कमोबेश सभी दफ्तरों में होते हैं जहां वर्क का एकदम प्रैशर रहता है. आप ऐसे हालात के लिए बिलकुल तैयार नहीं होते, तो ऐसी स्थिति में एकदम परेशान न हों और बेहतर कार्यनिष्पादन के लिए निम्न तरीके आजमाएं :

–  वर्क प्रोजैक्ट मिलने के बाद उस का अध्ययन करें. प्रोजैक्ट देखते ही उस की जटिलता व समयसीमा का अंदाजा न लगा लें. धैर्यपूर्वक उस का आकलन करें और टाइम फ्रैक्शन तैयार करें.

–  एक रोडमैप बनाएं, जिस से सीमित समयसीमा के भीतर गुणवत्तापूर्ण कार्य प्रदर्शन में सहायता मिलेगी.

–  संभव हो तो अपने किसी अनुभवी सीनियर की ऐक्सक्यूशन मैथड में सहायता लें बशर्ते काम नया हो या फिनिशिंग की जरूरत हो.

–  कुछ समय के लिए अपनी अन्य प्राथमिकताओं को साइड करें, क्योंकि अगर फोकस टारगेटेड वर्क पर होगा तो कार्यसंपादन उम्दा होगा.

–  संयमित रहेंगे तो उलझनों से बचेंगे अन्यथा कार्य पर इस का विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इस से प्रोजैक्ट पैंडिंग हो सकता है.

ऐसे रहें असहज परिस्थितियों में सहज

–  आपा न खोएं.

–  नर्वस होने के बजाय अपने सहकर्मियों से परामर्श करें.

–  जब कुछ समझ न आए तो बौस से अपनी समस्या साझा करें और राय लें. अपनी सूझबूझ और अनुभव से निश्चित तौर पर वे कुछ रास्ता सुझाएंगे.

– तनाव बिलकुल न लें. वर्क को विनविन सिचुएशन में अंजाम दें.

– पुराने प्रोजैक्ट व संगृहीत दस्तावेजों से भी सहायता ली जा सकती है.

–  कार्य व स्थिति की अपरिहार्यता निश्चित रूप से व्यक्ति को तनावग्रस्त करती है, तो जरूरी है नकारात्मक आवेगों से बचें.

–  सुकून, संयम व निष्ठा के साथ किया गया काम हमेशा बेहतर परिणाम देता है इसलिए कार्य के प्रति संवेदनशीलता भी जरूरी है.

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि काम कभी तनाव में न करें. हलकेफुलके अंदाज में बड़े से बड़े प्रोजैक्ट को आसानी से कुशल प्रबंधन के साथ निष्पादित किया जा सकता है. कौशल, क्षमता और योग्यता तभी निखर पाएगी जब तनावमुक्त रहा जाए.

आज की जीवनशैली में तनाव, डर और घबराहट ने हर जगह अपना डेरा जमा रखा है, चाहे घर हो या औफिस, सिर पर हरदम तय वक्त पर असीमित काम निबटाने का बोझ रहता है, लेकिन परिस्थितियां तभी हमारे अनुकूल बनती हैं जब हम उन्हें अपनी इच्छानुसार सकारात्मक रहते हुए अपने हिसाब से मोड़ दें.

हमारे अंतस में असीमित ऊर्जा का भंडार है. अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस ऊर्जा को धनात्मक बनाएं या ऋणात्मक, पर यह तो सौ फीसदी सच है कि जीतेगा वही जिस में नकारात्मकता को भी सकारात्मकता में बदलने का माद्दा हो, जो अपने जनून और आदर्श पौजिटिव सोच से अपने आसपास का माहौल भी जीवंत ऊर्जा से भर दे.

नई बाजार संस्कृति में फंसते युवा

आज एक नई बाजार संस्कृति का प्रसार तेजी से हो रहा है. हर शहर में मौल्स खुल रहे हैं. साथ ही मल्टीप्लैक्स भी हैं, जहां खरीदारी से पहले या बाद में फिल्म देखी जा सकती है. हां, यह बात अलग है कि इस के लिए आप को काफी महंगा टिकट खरीदना पड़ता है. इतना ही नहीं, अब तो महंगे रैस्टोरैंट और बार की सुविधाएं भी इस नई बाजार संस्कृति का हिस्सा बन रही हैं.

युवाओं के मन में हमेशा यह चाह रहती है कि वे स्मार्ट बनें. इस चक्कर में वे बाइक से जगहजगह घूमते हैं. मौल्स में जा कर कम कीमत की चीजें खरीदते नजर आते हैं, लेकिन सचाई कुछ और ही होती है.

यह बात जरूर है कि इस संस्कृति के चलते सभी चीजें एक छत के नीचे उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन साथ ही कुसंस्कृति को भी बढ़ावा मिल रहा है और आगे चल कर यह युवाओं को कहां ले जाएगी, कहा नहीं जा सकता. भारतीय युवाओं पर इस के दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं. यह संस्कृति जीवनयापन की नई समस्या ले कर आई है. हमारा देश सभ्यता और संस्कृति के लिए विख्यात है. आज अमेरिका और इंगलैंड जैसे देश भी हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं, लेकिन हमारी युवापीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति दीवानी है.

नई बाजार संस्कृति युवाओं को अपने कब्जे में ले रही है. बड़ी कंपनियां औफर्स दे कर युवाओं को आकर्षित कर रही हैं. ये दूसरी चीजों पर खुले बाजार से अधिक कीमत वसूल कर बड़ी चालाकी से उस की भरपाई कर लेती हैं. युवा आसानी से इन के जाल में फंस जाते हैं. उन्हें लगता है कि बाजार से कम कीमत पर चीजें खरीद कर उन्होंने अच्छा सौदा किया है, लेकिन सचाई कुछ और ही है.

इस बाजार में अब तो बार चलाने के लाइसैंस भी दिए जा रहे हैं. हुक्का बार तक खुल गए हैं, जहां किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं होती. महिलाओं और बच्चों की मौजूदगी में नशे की पार्टियां चल रही हैं. यह खबर चौंकाने वाली है कि मौल के बार में नाबालिगों की पार्टियां होने लगी हैं. मौल के ये बार ऐसी पार्टियों के लिए अलग से सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं. इस गु्रप को पार्टी के लिए अलग से कैबिन की सुविधा दी जाती है. नाचनेगाने का मन करे तो इन के लिए डांस फ्लोर भी हैं.

नई पीढ़ी की मौजमस्ती का नया साधन उपलब्ध करा कर ये आर्थिक दोहन ही नहीं कर रहे बल्कि युवाओं को राह से भी भटका रहे हैं. ऐसे ही एक बार में किशोरों की पार्टी हुई, जिस में नामचीन निजी स्कूलों के छात्र शामिल थे. एक बार से देर रात को एक छात्रा को भी नशे की हालत में बाहर निकलते हुए देखा गया. आखिर यह संस्कृति युवाओं को किस ओर ले जाएगी, इस का किसी को अंदाजा नहीं है?

प्रशासनिक अधिकारी यह कह कर इस कुसंस्कृति को बढ़ाने के मामले से खुद को अलग कर लेते हैं कि उन का काम लाइसैंस की शर्तों के उल्लंघन के मामले देखने का है. उलटे वे सवाल भी करते हैं कि यदि युवा ऐसे बारों में जा रहे हैं तो उन के अभिभावक क्या कर रहे हैं? हालत यह है कि यह कुसंस्कृति पारिवारिक विघटन का कारण बन रही है.

दाढ़ी बढ़ाने की संस्कृति

क्लीनशेव का जमाना अब चला गया. अब हलकीहलकी दाढ़ी रखने का चलन है. जिन किशोरों की अभी दाढ़ी नहीं आई है वे भी इस के लिए परेशान दिखते हैं. उन में जल्द दाढ़ी आने की चाह रहती है. फिल्मों और धारावाहिकों से यह दाढ़ी का चलन आया है. इस नए लुक को युवक खूब पसंद कर रहे हैं. उन का कहना है कि हलकी दाढ़ी में वे हौट लगते हैं. दाढ़ी सैट करवाने के लिए महंगे हेयर ड्रैसर के पास जाते हैं. वहां उन से मनमाना पैसा वसूला जाता है. यहां भी वे बाजार की गिरफ्त में आ जाते हैं.

अब मर्दाना ब्यूटी सैलून भी खुलने लगे हैं. वहां आप का फेस देख कर दाढ़ी की कटिंग की जाती है. आज युवकों द्वारा बनाए गए तमाम ऐसे हेयरस्टाइल्स आप को दिख जाएंगे, जिन्हें आप ने पहले कभी नहीं देखा होगा. कान के दोनों तरफ बाल साफ, केवल फ्रंट के बाल, वह भी सीधे खड़े हुए. 

आजकल हेयरस्टाइल में शौर्ट, जिगजैग, क्रूकट और रेजर कट फैशन में हैं. बालों का स्टाइल आप की पर्सनैलिटी को खिला देता है. रेजर कट बाल सिर्फ ब्लेड से ही काटे जाते हैं. आज युवक इसे खूब पसंद कर रहे हैं. युवतियों को भी ऐसे ही युवक पसंद आते हैं.

बढ़ती रफ्तार के सौदागर

यह स्टाइल का जमाना है. फैशन के इस दौर में बाइक का शौक युवाओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है. बाइक राइडिंग आजकल युवकयुवतियों का शौक बन चुका है. तेज रफ्तार बाइक चलाना स्टाइल में है. बाइक पर स्टंट दिखाना युवाओं के लिए आम हो गया है, लेकिन इस में छोटी सी लापरवाही से उन की जान पर आ बनती है. बाइक चलाने के लिए केवल ड्राइविंग लाइसैंस की ही नहीं, बल्कि उस के साथ जरूरी दस्तावेजों का होना भी जरूरी होता है.

आज युवक अकसर दस्तावेजों को ले कर नहीं चलते. जब चैकिंग होती है तो वे तेजरफ्तार से बाइक चला कर भागने की कोशिश करते हैं. ये दस्तावेज सरकार की ओर से निर्देशित होते हैं. किसी भी दुर्घटना के बाद पहचान आदि में ये काम आते हैं. लेकिन युवकयुवतियां ऐसा नहीं करते. वे अकसर इन्हें घर पर ही भूल जाते हैं. कोई भी वाहन चलाते समय पौल्यूशन अंडरकंट्रोल सर्टिफिकेट का साथ होना बेहद जरूरी है. इस के न होने पर आप का चालान हो सकता है. इस प्रमाणपत्र को हर 3 महीने में रिन्यू कराना पड़ता है.

राज्य सरकार ड्राइविंग लाइसैंस 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को ही जारी करती है, लेकिन कुछ कम उम्र के किशोर भी इसे फर्जी सर्टिफिकेट या पैसा दे कर प्राप्त कर लेते हैं. आप की बाइक की चोरी या दुर्घटना होने पर ये जरूरी कागजात आप की बहुत मदद करते हैं. ऐसी स्थिति में इंश्योरैंस  कंपनी आप की चोरी हुई बाइक की कीमत या दुर्घटना क्लेम की रकम अदा कर देती है, लेकिन कुछ मनचले युवक इस सर्टिफिकेट को नहीं बनवाते और हादसे का शिकार हो जाते हैं.

दुर्घटनाओं का लाइसैंस जारी है

देश में हर साल करीब 1 लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इस में युवकों की संख्या ज्यादा होती है. उत्तर प्रदेश में खौफनाक आंकड़ा सालाना 15 हजार के आंकड़़े को पार कर जाता है. दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में यह सब से ज्यादा है. इस का मुख्य कारण है आंख मूंद कर ड्राइविंग लाइसैंस जारी करना. दरअसल, ड्राइविंग लाइसैंस नहीं, यह तो मौत के परवान हैं.

कभीकभी तो ड्राइविंग लाइसैंस देते समय इस बात की पुष्टि भी नहीं की जाती कि लाइसैंस लेने वाले को वाकई वाहन चलाना आता भी है या नहीं.

प्रदेश के आरटीओ दफ्तरों का हाल यह है कि वहां न तो इतनी जगह है और न ही इतना स्टाफ कि ड्राइवरों की नियमानुसार जांच की जा सके, तिस पर दलालों की भरमार है, फाइलों का अंबार है. ये पैसा उगाही का अड्डा हैं, यहां नियमों के पालन करने का किसी के पास वक्त नहीं है.

दिल्ली से सटे गाजियाबाद की हालत और भी नाजुक है. गाजियाबाद के आरटीओ दफ्तर का हाल यह है कि यहां ड्राइविंग लाइसैंस बनवाने के लिए रोज करीब 200-300 आवेदन आते हैं. उन में से करीब 100-125 लोगों को बिना वाहन चलवाए ही लाइसैंस जारी कर दिए जाते हैं. यहां दफ्तर में ड्राइविंग टैस्ट लेने के लिए कोई जगह नहीं है.

यह सिर्फ एक दफ्तर की बात नहीं बल्कि अन्य जगह भी ऐसा ही हाल है. कुछ आरटीओ के पास तो दफ्तर के लिए अपनी इमारत तक नहीं है. यहां तो सिर्फ चेहरा देख कर लाइसैंस जारी कर दिया जाता है. यहां भी वाहन चला कर देखने का कोई इंतजाम नहीं है.

हर किसी की जान प्यारी

दूर  का सफर तय करने के लिए बाइक राइडिंग का टशन तो फैशन बन चुका है. इस टशन और जरूरत में सामंजस्य की आवश्यकता है. हम बाइक या कार तो अपने आराम के लिए इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कभीकभी ये हमारे आराम को हराम कर देते हैं.

हमारी जान कितनी कीमती है, शायद आज के युवा नहीं समझते. आज हालत यह है कि किसी की जेब में ड्राइविंग लाइसैंस है तो यह जरूरी नहीं कि वह ड्राइवर होगा ही. ऐसा अनुमान है कि देश में बिना जांच के हर साल करीब 10 लाख लाइसैंस जारी हो जाते हैं. ऐसे ड्राइवर बनेंगे तो दुर्घटनाएं ही होंगी.

देश की जनसंख्या वृद्धि भी दुर्घटनाओं का बहुत बड़ा कारण है, जिस दिन हम जनसंख्या पर काबू पा लेंगे, उस दिन इस में बहुतकुछ सुधार हो सकता है.

जनसंख्या वृद्धि भी रोड पर भीड़ का कारण है. वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है. रोड पर घंटों जाम लग जाता है. जाम खत्म होते ही लोग तेज रफ्तार से अपने गंतव्य की ओर भागते हैं, जिस से दुर्घटनाएं होती हैं. रोड पर भीड़ ज्यादा होने के कारण दुर्घटना की चपेट में निर्दोष लोग आ जाते हैं. इन में युवाओं की संख्या ज्यादा है.

बाइक पर रोमांस

अब पहले वाला रोमांस नहीं रहा. आज युवा बाइक पर रोमांस करते हैं. उन के प्रेम की शुरुआत बाइक पर होती है. बाइक पर ही तो साथी का पूरा स्पर्श मिलता है. पुरानी फिल्मों में बैलगाड़ी पर रोमांस हुआ करता था. इस रोमांस की रफ्तार बड़ी धीमी होती थी, लेकिन आज हवा से बातें करता रोमांस सब को ओवरटेक कर रहा है.

आज के युवा राइडर्स भी हैं और प्रेमी भी. रोमांस के भी अब पर निकल आए हैं. युवतियों को एक अच्छे राइडर की तलाश रहती है. युवतियां भी राइडिंग में पीछे नहीं हैं. आज हर किसी को रफ्तार से प्यार हो गया है. ऐसे में भला रोमांस को भी रफ्तार पकड़ने में देर कैसी?

दरअसल, आज के युवाओं में राइडिंग का जनून है. अपनी गर्लफ्रैंड को बाइक की पिछली सीट पर बैठा कर हवा से बातें करना उन्हें बेहद पसंद है. आज के राइडर्स एकांत में रोमांस का मजा लेना चाहते हैं. वे ऐसी जगह रोमांस करना चाहते हैं, जहां उन्हें ब्रेक लगाने की जरूरत न पड़े, लेकिन कभीकभी इस रोमांस का खतरा भी उन्हें झेलना पड़ता है.

इसलिए युवकों को चाहिए कि बाइक पर रोमांस करते समय बाइक को धीरे चलाएं, बातें कम करें. रैडलाइट और रेलवे क्रौसिंग का खास ध्यान रखें.

अगर आप नौसिखिए हैं तो बाइक पर रोमांस कदापि न करें. ग्रुप के साथ हों तो एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ न मचाएं. हमारी संस्कृति धीरे और सुरक्षित चलने की है.

विजन कुमार पांडेय  

ये पौधे रोकेंगे मच्छरों को घर में आने से

मानसून के समय मच्छर बहुत परेशान करते हैं और बाहर बैठने का मजा भी किरकिरा करते हैं. मच्छर के काटने से खुजली होती है साथ ही यह मलेरिया जैसी बिमारियों को भी खतरा बना रहता है. मच्छरों को दूर रखने के लिए लोग मॉस्किटो रिपेलेन्ट क्रीम और हर्बल मॉस्किटो लोशन इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोगों को इससे एलर्जी भी होती है और वे इनके काटने से नाक, त्वचा और गले से सम्बंधित समस्याओं के शिकार हो जाते हैं.

लोग मच्छरों को भगाने के लिए केमिकल्स भी इस्तेमाल करते हैं लेकिन वह भी स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है. यदि आप प्राकृतिक रूप से मच्छरों से छुटकारा चाहते हैं तो मॉस्किटो रिपेलेन्ट प्लांट्स अपने बगीचे में लगाएं.

आपके घर के लिए कुछ मॉस्किटो रिपेलेन्ट प्लांट्स…

रोजमेरी

रोजमेरी अपने आप में एक नेचुरल मॉस्किटो रिपेलेन्ट है, रोजमेरी के पौधे 4-5 फ़ीट तक लम्बे होते हैं और इनके नीले फूल होते हैं. गर्म मौसम में ये बढ़ते हैं. सर्दी के मौसम में ये नहीं बचते क्योंकि इन्हें गर्मी की जरुरत होती है. इसलिए रोजमेरी को गमले में उगाएं और सर्दियों में इन्हे घर के अंदर रखें. रोजमेरी का इस्तेमाल कुकिंग के लिए भी होता है. रोजमेरी मॉस्किटो रिपेलेन्ट की 4 बूंदों को 1 चौथाई जैतून के तेल के साथ मिलाकर भी लगाया जा सकता है. इस तेल को ठंडे और सूखे स्थान पर रखें.

सिट्रोनेला ग्रास

सिट्रोनेला ग्रास मच्छरों को दूर करने का अच्छा तरीका है. यह 2 मीटर तक बढ़ती है और इसके फूल लॅवेंडर जैसे रंग के होते हैं. इस ग्रास से निकलने वाला सिट्रोनेला ऑयल मोमबत्तियों, परफ्यूम्स, लैम्प्स आदि हर्बल प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है. सिट्रोनेला ग्रास डेंगू पैदा करने वाले मच्छरों (एडीज एजिप्टी) को भी दूर करती है. मच्छरों को दूर करने के लिए सिट्रोनेला ऑयल को बगीचे में जलने वाली कैंडल्स और लालटेंस में छिड़क दें. सिट्रोनेला ग्रास में एंटी- फंगल प्रॉपर्टी भी मौजूद होती है. सिट्रोनेला ग्रास त्वचा के लिए भी सुरक्षित है और लम्बे समय के लिए असरदार है. इसके साथ ही यह किसी प्रकार का नुकसान भी नहीं पहुंचाता है.

गेंदा

गेंदें के फूलों में एक तेज गंध होती है जो मच्छरों को पसंद नहीं आती है. ये पौधे 6 इंच से 3 फीट तक बढ़ते हैं. गेंदें के पौधे अफ्रीकन और फ्रेंच दो तरह के होते हैं. ये दोनों ही मॉस्किटो रिपेलेन्ट हैं. गेंदें के पौधे सब्जियों के पास ही उगाये जाते हैं क्यों कि ये एफिड्स और अन्य कीड़ों को दूर रखते हैं. गेंदे के फूल पीले से डार्क ऑरेंज और लाल रंग के होते हैं. ये सूरज की रौशनी में बढ़ते हैं. मच्छरों को दूर रखने के लिए इन्हे बाउंडरी, पोर्च में या बगीचे में उगाएं.

कैटनिप

कैटनिप एक औषधि है जो पुदीने जैसी होती है. हाल ही में इसे भी मॉस्किटो रिपेलेन्ट माना गया है. हाल ही में किये गए अध्ययन के अनुसार यह डीईईटी से 10 गुना ज्यादा असरदायक है. यह एक एक बारहमासी पौधा है जो धूप में और आंशिक छाया में बढ़ता है. इसके फूल सफ़ेद और लेवेंडर कलर के होते हैं. मच्छरों को दूर रखने के लिए इसे घर के बैकसाइड या छत पर लगाएं. बिल्लियों को इसकी सुगंध अच्छी लगती है इसका बचाव करें. इसकी मसली हुई पत्तियां या इसका लिक्विड स्किन पर भी लगा सकते हैं.

एजीरेटम

एजेराटम प्लांट भी एक अच्छा मॉस्किटो रिपेलेन्ट है. इस प्लांट के फूल हल्के नीले और सफेद होते हैं जो एजेराटोक्रोमीन पैदा करते हैं. यह एक भयंकर गंध है जो मच्छरों को दूर रखती है. इसका इस्तेमाल कमर्शियल मॉस्किटो रिपेलेन्ट और परफ्यूम इंडस्ट्री में होता है. एग्रेटम को स्किन पर ना रगड़ें क्यों कि इसमें कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो स्किन के लिए नुकसानदायक हैं. ये गर्मियों के दौरान सूर्य की पूरी और आंशिक रौशनी में खिलते हैं.

हॉर्समिंट

हॉर्समिंट भी मच्छरों को दूर करने में मददगार है. यह एक बारहमासी पौधा है जिसे किसी विशेष देखभाल की जरुरत नहीं है. इसकी गंध सिट्रोनेला जैसी ही होती है. ये पौधे गर्म मौसम में और रेतीली मिट्टी में उगते हैं. इनके फूल गुलाबी होते हैं. बुखार के इलाज में भी इनका इस्तेमाल होता है.

नीम

नीम का पौधा एक बेहतर मॉस्किटो रिपेलेन्ट है. इसमें कीड़ें मकोड़ों और मच्छरों को दूर रखने का तत्व मौजूद है. बाजार में नीम बेस्ड अनेक मॉस्किटो रिपेलेन्ट और बाम उपलब्ध हैं. मच्छरों को भगाने के लिए आप अपने गार्डन में नीम लगा सकते हैं. आप नीम की पत्तियों को जला सकते हैं या नीम का तेल केरोसीन लैंप में इस्तेमाल कर सकते हैं. मच्छरों को दूर भगाने के लिए आप स्किन पर नीम का तेल भी लगा सकते हैं. नीम के मॉस्किटो रिपेलेन्ट तत्व मलेरिया की रोकथाम के लिए भी उपयोगी है.

लैवेंडर

मच्छरों को दूर रखने के लिए लैवेंडर एक शानदार पौधा है. लैवेंडर आसानी से उग जाता है क्यों कि इसे ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती है. यह 4 फीट की हाइट पर उगता है और इसे धूप की आवश्यकता होती है. केमिकल फ्री मॉस्किटो सोल्युशन बनाने के लिए लैवेंडर ऑयल को पानी में मिलाकर सीधे स्किन पर लगा सकते हैं. मच्छरों पर नियंत्रण करने के लिए इस पौधे को बैठने की जगह लगाएं. मच्छरों को दूर रखने के लिए लैवेंडर ऑयल को गर्दन, कलाई और घुटनों पर भी लगा सकते हैं.

तुलसी

तुलसी का पौधा भी एक मॉस्किटो रिपेलेन्ट है. तुलसी एक ऐसी जड़ी बूटी है जो कि बिना दबाये ही अपनी खुशबु फैलाती है. मच्छरों को दूर रखने के लिए तुलसी को गमले में लगाएं और घर के पीछे रखें. आप तुलसी की पत्तियों को मसलकर त्वचा पर भी रगड़ सकते हैं. खाने को जायकेदार बनाने के लिए भी तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है. आप किसी भी किस्म की तुलसी लगा सकते हैं लेकिन दालचीनी तुलसी, नीम्बू तुलसी और पेरू तुलसी अपनी तेज सुगंध के कारण ज्यादा उपयोगी है.

लेमन बाम

लेमन बाम भी मच्छरों को दूर रखता है. लेमन बाम तेजी से बढ़ता है और इसे कमरे में रखना चाहिए. लेमन बाम की पत्तियों में सिट्रोनेला की अधिक मात्रा में होती है. कई कमर्शियल मॉस्किटो रिपेलेन्ट्स में इसका इस्तेमाल होता है. लेमन बाम की कुछ किस्मों में 38 प्रतिशत तक सिट्रोनेला होती है. मच्छरों को दूर रखने के लिए आप लेमन बाम की पत्तियों को रगड़कर स्किन पर भी लगा सकते हैं.

फिल्म में अभिनय के लिए इस अभिनेता को चलाना पड़ा रिक्शा

साहित्य, कला संस्कृति, पत्रकारिता और सिनेमा में सामांतर रूप से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले एक उम्दा कलाकार थे बलराज साहनी. भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता बलराज साहनी पर दर्शाया गया गीत “ए मेरी जोहरा जंबी” आज भी सबकी जुबा पर जिन्दा है.

बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के रूप में जाना जाता था, जिन्हें रंगमंच और फिल्म दोनों ही माध्यमों में समान दिलचस्पी थी. उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे.

1913 में रावलपिंडी में एक आर्यसमाजी परिवार में जन्मे साहनी का नाम पहले युद्धिष्ठर रखा गया था लेकिन उनकी बुआ ठीक से युद्धिष्ठर नाम का उच्चारण नहीं कर पाती थीं इसलिए उनका नाम बदलकर बलराज रखा दिया गया.

शुरू से ही बलराज साहनी कुछ अलग करना चाहते थे इसलिए उनका मन ना तो पिता के व्यापार में लगा और ना ही किसी नौकरी में. 1946 में फिल्म ‘धरती के लाल’ से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाले बलराज को बतौर अभिनेता अपनी पहचान बनाने के लिए 5 साल तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

1951 में आई फिल्म ‘हमलोग’ से बलराज साहनी को लोग जानने लगे और तभी दो साल बाद 1953 में आई बिमल राय की फिल्म ‘ दो बीघा जमीन’ बलराज साहनी के जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म की कहानी हमारे समाज की कड़वी सच्चाई थी.

फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में एक रिक्शेवाले के किरदार को पर्दे पर जीवंत करने के लिए बलराज ने कोलकाता की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चालाया था. वो बलराज का अभिनय ही था जिसकी बदौलत आज भी ‘दो बीघा जमीन’ को भारतीय सिनेमा के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है.

1961 में रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित फिल्म ‘काबुलीवाला’ में तो बलराज साहनी के अभिनय ने लोगों को झकझोर कर रख दिया. दरअसल, बलराज साहनी का मानना था कि पर्दे पर किसी भी किरदार को साकार करने के लिए उस किरदार के बारे में पूरी जानकारी हासिल की जानी चाहिए. इसलिए वह मुंबई के एक काबुलीवाला में एक महीने तक रहे थे.

लगभग 135 फिल्में करने वाले  बलराज साहनी ने हर किरदार को पूरी इमानदारी से जिया चाहे ‘गर्म कोट’  में क्लर्क की भूमिका हो, ‘दो बीघा जमीन’ में किसान का दर्द या ‘काबुलीवाला’ में अपने वतन के लिए तड़पता पठान,  ‘एक फूल दो माली’ में औलाद के लिए छटपटाता बाप हो या ‘गर्म हवा’ में मुसलमान व्यापारी. बलराज सहानी ने फिल्म इंडस्ट्री में एक से एक कई बहतरीन भूमिकाएं निभाई हैं.

इन आसान मेकअप ट्रिक्स से छिपाएं डबल चिन

चेहरे की खूबसूरती निखारने में तो मेकअप मदद करता ही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई बार मेकअप आपकी कई तरह की सौंदर्य समस्याओं को भी मिनटों में हल कर देता है.

यदि आप डबल चिन से परेशान है और फिटनेस के सारे फंडे अपनाकर थक चुके हैं तो मेकअप आपकी इस ख्वाहिश को काफी हद तक पूरा कर सकता है. अब पार्टी में जाने से पहले शीशे में बार-बार अपनी डबल चिन देखकर परेशान होने की जरूरत नहीं है. आपकी इसी मुसीबत को आसान कर देंगे हमारे द्वारा बताए जा रहे ये फटाफट मेकअप ट्रिक्स…

1. चिन के निचले हिस्से को मेकअप के दौरान थोड़ा डार्क रखें और इसे अपनी गर्दन के कलर से भी इसे मैच करें.

2. मेकअप करते समय गले और आंखों के मेकअप पर ज्यादा ध्यान दें ताकि यह उभरे हुए नजर आएं. इससे लोगों का ध्यान आपकी चिन से हट जाएगा और चेहरा सुंदर दिखने लगेगा.

3. चेहरे की जॉ लाइन पर ध्यान देना भी जरूरी है. मेकअप के जरिए यदि इन्हें उभारा जाए तो भी डबल चिन पर ज्यादा ध्यान नहीं जाता.

4. गले में कोई ज्वैलरी पहनें. नेकलेस की सुंदर डिजाइन या फिर सोने के तारों से बनी चेन लोगों का डबल चिन से ध्यान हटाने का काम करेगी.

5. कपड़ों की डिजाइन भी आपकी सहायता कर सकती है. नेकलाइन, चौड़ा गला और वी-नेक डबल चिन को छिपाने में कारगर साबित होते हैं.

6. हेयरस्टाइल बनाते समय भी बहुत ध्यान दें. बालों को खुला रखें और इन्हें आगे की तरफ रखें. चेहरे के आकार के हिसाब से आप किसी हेयर स्टाइलिस्ट की मदद भी ले सकती हैं.

सिंगिंग सेंसेशन हैं ये बॉलीवुड स्टार्स

बॉलीवुड में एक नया ट्रेंड शुरू हो चुका है. और वह ट्रेंड है एक्टिंग के साथ सिंगिंग का. इन दिनों कई सितारे गानों को अपनी आवाज दे रहे हैं. सितारे अपनी ही फिल्म में खुद पर फिल्माए गए गाने को आवाज दे रहे हैं. एक्टर्स के इस हुनर को खासा पसंद किया जा रहे है.

हाल ही में फिल्म “मेरी प्यारी बिंदू” के लिए परिणीति चोपड़ा ने अपना पहला गाना गाया. इससे पहले भी आलिया भट्ट के गाने को लोगों ने बहुत पसंद किया है. स्टार्स को मल्टी टास्किंग बनना पसंद है, और उनके फैन्स को उनका ये टैलेंट. बॉलीवुड में ऐसे ही कई सितारे हैं जिनकी सिंगिंग को पसंद किया है.

परिणीति चोपड़ा

पहली बार परिणीति ने सिंगिंग को ट्राय किया है. फिल्म मेरी प्यारी बिंदू में उनके गाए गीत “माना की हम यार नहीं” को दर्शक इन दिनों बहुत पसंद कर रहे हैं. यू-ट्यूब पर परिणीति के इस सॉन्ग पर अच्छे-अच्छे कमेंट आ रहे है, किसी ने उनकी वॉइस को सॉफ्ट कहा, तो किसी ने नाइस कहा.

प्रियंका चोपड़ा

मिस वर्ल्ड, प्रियंका चोपड़ा ने अपना पहला म्युजिक एलबम बनाकर बॉलीवुड में एक नए चलन की शुरुआत की थी. प्रियंका को देखकर ही कई अन्य स्टार्स सिंगिंग करने लगे हैं. इनका पहला म्युजिक एलबम 2013 में आया था. एक्टिंग में प्रियंका को पहले ही बहुत वाह-वाह मिल चुकी थी, उनके फैन्स ने उन्हें सिंगिंग में भी बहुत पसंद किया.

सलमान खान

फिल्म “हीरो” से सलमान खान ने पहली बार सिंगिंग की दुनिया में कदम रखा था. इस फिल्म में उन्होंने एक्टिंग तो नहीं की थी, पर अपने सिंगिंग टैलेंट के जरिए उन्हें दर्शकों ने बहुत पसंद किया. उनके चाहने वाले कई दर्शक तो फिल्म भी इस गीत की वजह से देखने गए थे.

आलिया भट्ट

फिल्म “स्टूडेंट ऑफ द ईयर” से एक्टिंग करियर शुरू करने वाली आलिया ने पहली बार हाइवे फिल्म में अपनी आवाज दी थी. उनके गीत को फिल्म में बहुत सराहना मिली. अब तक जिन एक्टर्स ने सिंगिंग कि है, उनमें आलिया भट्ट का नाम सबसे टॉप पर है, उनके हम्प्टी शर्मा की दुल्हनियां सॉन्ग को 9 करोड़ से ज्यादा लोगों ने यू ट्यूब पर देखा है. ये रिकॉर्ड अपने आप में सबसे बड़ा है.

श्रद्धा कपूर

फिल्म आशिकी-2 से फिल्मी दुनिया में श्रद्धा कपूर ने कदम रखा है, इस फिल्म को दर्शकों ने बहुत पसंद किया था. इनकी दूसरी फिल्म ‘एक विलेन’ में श्रद्धा ने अपना पहला गाना “तेरी गलियां” गाया था. फिल्म रॉक ऑन-2 में श्रद्धा ने फिल्म के सारे गाने गए हैं.

बॉलीवुड की इस दमदार आवाज के संघर्ष की कहानी

नेहा कक्कड़ बॉलीवुड का एक ऐसा नाम है, जो आज जवां धड़कनों की पसंदीदा आवाज बन चुकी है. सबके दिल और दिमाग में सिर्फ नेहा कक्कड़ द्वारा गाये गए गाने ही हैं. कहने का मतलब है कि ये सुर आज के समय के यंगिस्तान को अपना दीवाना बना रहा है. ये बात तो आप जानते ही हैं कि नेहा ने बॉलीवुड को अब तक कई सारे सुपरहिट गाने दिये हैं.

‘काला चश्मा’ जैसे और कई सारे सुपरहिट गाने गा चुकीं नेहा कक्कड़ के बचपन के बारे में जानकर आपको बहुत हैरानी होगी.

दरअसल, ये बात अब तक बहुत कम लोग जानते हैं कि बॉलीवुड में संगीत की दुनिया में धीरे-धीरे अपना दबदबा कायम कर रही नेहा का बचपन काफी दयनीय स्थिति में गुजरा है. नेहा का परिवार आर्थिक रूप से इतना कमजोर था कि उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए भी खुद ही पैसे कमाने पड़ते थे. पढ़ाई किसी भी तरह से बाधित न हो, इसलिए नेहा अपने भाई-बहन के साथ रात में जागरण में गाना गाया करती थीं.

कई जगह दिए गए, कई सारे इंटरव्यूज और नेहा के जीवन से जुड़ी खबरों के अनुसार नेहा अपने बचपन से जुड़ी कई सारी बातों का जिक्र करती रहती हैं. उन्होंने अपने बचपन के संघर्ष के बारे में भी अपने प्रशंसकों से कई ऐसी बातें शेयर की हैं, जिन्हें सुनकर उनके फैन्स भी हैरान हो जाते हैं.

ये बात जानकर आपको हैरानी होगी कि नेहा के पिता की समोसे की एक छोटी सी दुकान थी. उनका बचपन बहुत सी कठिनाइयों में बीता है. नेहा के बारे में शायद अब तक आपको ये बात न मालूम हो कि वे जागरण में गाकर पैसे कमाया करती थीं. सर्दी हो या गर्मी, हर मौसम में नेहा अपने भाई-बहन के साथ शाम 7 बजे से सुबह 5 बजे तक जागरण में गाया करती थीं.

नेहा ने खुद ही अपने बचपन के दिनों को याद करती हैं कि उनके पिता, दीदी सोनू कक्कड़ के स्कूल के बाहर ही समोसे बेचा करते थे और दीदी को उनके स्कूल के बच्चे अकसर ताना मारते थे. एक दिन एक बच्चे ने नेहा की दीदी को कहा कि ‘तू बड़ी-बड़ी बात मत कर, बाहर जाकर समोसे बेच’. ये बात उनकी दीदी को यह इतनी बुरी लगी कि वो सारा दिन भर रोती रहीं और जब ये बात नेहा ने सुनी, तो उसी वक़्त उन्होंने ठान लिया खा कि वे अपने पापा की पहचान बनाकर रहेंगी, ताकि उनके परिवार में से किसी को ताने सुनने को न मिले.

उसके बाद नेहा ने कभी अपने करियर के अलावा इधर-उधर नहीं देखा और लगातार परिश्रम करती रहीं. परिणाम ये हुआ कि नेहा कक्क़ड़ आज बॉलीवुड के फेमश सिंगर्स में शामिल हो चुकी हैं और वे लगातार लोगो का दिल जीत रही हैं.

कभी खाया है चिकन का अचार

आपने चिकन के तो कई व्यञ्जन खाया होगा. लेकिन शायद ही आपने कभी चिकन का अचार खाया हो. चिकन का अचार सुन कर चौंकिए नहीं. खाने में बहुत ही लाजबाव और स्वादिष्ट लगता है यह चिकन का अचार.

सामग्री

आधा किलो चिकन

2 चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट

1 चम्मच लाल मिर्च

आधा बड़ा चम्मच हल्दी पाउडर

1 कप सरसों का तेल

आधा चम्मच हींग

1 कप प्याज, बारीक कटा हुआ

आधा बड़ा चम्मच बड़ी इलायची पाउडर

आधा बड़ा चम्मच छोटी इलायची पाउडर

3 तेज पत्ते

3 चौथाई कप जौ का सिरका

1 बड़ा चम्मच मेथी दाना

विधि

सबसे पहले चिकन को अदरक-लहसुन का पेस्ट, लाल मिर्च, हल्दी से मैरिनेट कर 30 मिनट के लिए रख दें. इसके बाद एक पैन में तेल गर्म करें और इसमें चिकन डालकर फ्राई कर अलग निकाल लें.

अब इसी तेल में प्याज और हींग डालकर गोल्डन ब्राउन होंने तक फ्राई करें. फिर इसमें मेथी दाना, तेज पत्ता, छोटी, बड़ी इलायची और जौ का सिरका डालकर उबालने के लिए रखें.

इसके बाद इसमें फ्राई किया हुआ चिकन डाल दें और 3-4 मिनट के लिए पकने के लिए रख दें. आंच बंद करें और चिकन के अचार को ठंडाकर कांच के जार में रखें. इस अचार को आप 1 महीने तक स्टोर करके रख सकती हैं.

लेक जेनेवा : बारबार देखो

जेनेवा झील का सम्मोहन मुझे बार बार वहां ले जाता रहा है. लंदन से स्विट्जरलैंड जाना वैसे भी अब पहले से बहुत आसान होता जा रहा है. इस बार जब मैं वहां पहुंची तो होटल की परिचारिका ने आर्द्र और धुंधले मौसम के लिए दुख प्रकट करते हुए मुझे कमरे की चाबी थमाई, तो मैं ने कहा कि मौसम की परवा नहीं. ऐसा कहना मेरी विनम्रता ही नहीं थी, बल्कि जेनेवा पहुंचने पर ऐसा मौसम मुझे सचमुच ही भाता था.

दूसरे दिन आसमान साफ था. चमचमाते सूर्यप्रकाश में स्विट्जरलैंड की सब से बड़ी झील बेहद खूबसूरत और आकर्षक तो लगती ही है, लेकिन जब पर्वत शिखरों से उतरी धुंध झील पर कलाबाजी दिखाने लगती है और वायु, जल पर ‘कोड़ा’ चलाने लगती है, तब यह उच्छृंखल जगह ट्रैवल एजेंटों द्वारा पर्यटकों के लिए तैयार किए गए ब्रोशरों में दिखने वाले चित्रों से भी अधिक कुतूहलजनक हो उठती है.

अंगरेज कवि बायरन और शेली इस विशाल झील में अचानक आए तूफान में डूबते डूबते बचे थे और तभी इस के बारे में कई कविताएं लिखी थीं. मुझे अब आभास हुआ कि ऐसे अवसर क्यों उन्हें काव्यरचना के लिए प्रेरित करते थे.

मैं पहली बार लगभग 36 वर्षों पहले स्विट्जरलैंड घूमने गई थी और तभी यह विशाल झील देखी थी. तब से अब तक कई बार वहां गई हूं और मौसम चाहे जैसा भी हो, यह झील देख कर सम्मोहित हो उठती हूं, निष्पंद हो उठती हूं.

लगभग 9 मील चौड़ी और 45 मील लंबी यह झील पश्चिमी यूरोप की सब से बड़ी झील है. पर मात्र इस की विशालता ही इसे इतना जीवंत नहीं बनाती, बल्कि चारों ओर हरीभरी पहाड़ियों से घिरी हिमाच्छादित चोटियां इसे ऐसी मोहकता प्रदान करती हैं.

यही कारण है कि स्विट्जरलैंड के प्राकृतिक दृश्यों के सब से बड़े चित्रकार हाडलर द्वारा इस झील का चित्रांकन स्तब्ध कर देता है. लेकिन वे भी इस के झंझावात तथा रहस्यमय सौंदर्य का सही चित्रण नहीं ही कर पाए.

लेक जेनेवा सैलानियों, विशेषकर अंगरेजों की पसंदीदा सैरगाह रही है. 1816 में ब्रिटिश पत्रकारों से बचने के लिए लौर्ड बायरन वहां आए थे. उन दिनों कामातुर ख्यात लोगों की आलोचना करने से संबद्ध कोई कानून नहीं था. वहां उन के साथ परसी बिशी शेली अपनी पत्नी और बच्चों से छिप कर अपनी किशोरी प्रियतमा मेरी गाडविन के साथ आ पहुंचे थे.

इन दोनों कवियों ने लेक जेनेवा के संबंध में ऐसी कविताएं लिखीं कि वह जगह अंगरेजों की प्रिय सैरगाह बन गई. उन की कविताओं की पुस्तकें लिए अंगरेज वहां आ पहुंचते थे. वहीं पर मेरी शेली ने 1816 में अपना विख्यात उपन्यास ‘फ्रेंकेस्टाइन’ लिखा था. यह उपन्यास पढ़ने में जितना रोचक है उतनी ही भयावह उस पर बनी फिल्में हैं.

जब मैं पहली बार वहां गई थी, तब वहां रुकना बहुत खर्चीला नहीं था. इसी कारण तब वहां अंगरेज भी भरे रहते थे. पर अब स्विस फ्रैंक महंगा हो जाने के कारण वहां अंगरेजों की चहलपहल कम हो गई है, पर नवधनाढ्य रूसी यहां गरमी की पूरी छुट्टियां बिताते हैं. फिर भी वहां आने पर इस बात की संतुष्टि हुई कि सप्ताहांत के 2 दिन भी थोड़े में गुजारना कठिन नहीं था.

हम जब पहली बार पूरे सप्ताह के लिए स्विट्जरलैंड गए थे तब हम ने लंदन में ही स्विस टूरिस्ट औफिस से 180 पौंड में 4 दिनों का पास खरीद लिया था. इस पास से हम चाहे जितनी बार बस, ट्रेन, बोट तथा ट्राम द्वारा सभी जगह तो घूम ही सकते थे, वहां के अधिकांश संग्रहालयों में भी बिना टिकट जा सकते थे. सुननेपढ़ने में यह उतना सस्ता तो नहीं लगेगा, पर इस पास से हमें सचमुच काफी बचत हुई.

इस बार स्विट्जरलैंड पहुंचने पर हम सब से पहले मौंट्रेक्स में बहुत ऊंचाई पर बने होटल यूरोटेल में रुके. वहां चारसितारा होटल जैसी सारी सुविधाएं थीं और यह जेनेवा एयरपोर्ट से मात्र 1 घंटे की दूरी पर है. यहां से फेरी टर्मिनल पैदल ही कुछ मिनटों में पहुंचा जा सकता था. इस प्रकार झील के चारों ओर नौकाभ्रमण के लिए यह एक सही जगह थी.

लेक जेनेवा का सब से शानदार आकर्षण है वहां का नावों का तंत्र. कुछ नावें तो पहले की पैडल मार कर चलाने वाली स्टीमर हैं जिन का अपना ही आनंद है, पर आधुनिक स्टीमर भी कम आनंददायी नहीं हैं. पर्यटकों में तो ये लोकप्रिय हैं ही, स्थानीय लोग भी इन्हें पसंद करते हैं.

झील दर्शन के लिए ये बेहद अच्छा और सस्ता साधन है, साथ ही झील के आरपार जाने के लिए सुविधाजनक भी क्योंकि ये छोटेछोटे घनी झाडि़यों वाले 30 से भी अधिक बंदरगाहों पर रुकती हैं.

झील में और उस के आसपास घूमने के बाद हम ने जेनेवा जाना तय किया. लोगों की धारणा है कि जेनेवा एक बहुत ही बोरिंग व्यापारिक शहर है, पर ऐसा केवल उन लोगों के लिए हो सकता है जो केवल व्यापार के सिलसिले में किसी मीटिंग में यहां आते हैं, होटल में ठहरते हैं और मीटिंग के बाद लौट जाते हैं.

जेनेवा दरअसल एक विश्व स्तर का शहर है जिस का इतिहास बहुत समृद्घ और विविधतायुक्त रहा है. वहां अच्छेअच्छे संग्रहालय हैं जिन में एक कला संग्रहालय भी है जिस में हाडलर के बनाए स्विट्जरलैंड संबंधी चित्रों का अच्छा संग्रह है. इन चित्रों को देखना हमें अंतरतम तक भिगो गया. उस के बाद हम पुराने शहर में कलादीर्घाओं और एंटिक वस्तुओं का आनंद लेते रहे.

अगले दिन हम न्योन के लिए चल पड़े जो रोमनकाल में महानगर था. आजकल यह बाजारों वाला मध्यवर्गीय शहर है, क्योंकि पास ही में स्थित बड़े शहर जेनेवा की वजह से इसे छोटा माना जाना स्वाभाविक है. वहां हर तरफ रोमन खंडहर हैं जिन्हें देखना भी एक अलग तरह का अनुभव था. वहां एक भव्य पुरातात्विक संग्रहालय भी है जहां एक से बढ़ कर एक अजूबी चीजें देखने को मिलीं. वहां टूरिस्ट औफिस से मिले एक ब्रोशर से हमें शहर घूमने और वहां के दर्शनीय स्थलों तक पहुंचने में बड़ी आसानी हुई.

न्योन के बाद हम लुसाने पहुंचे. वहां तक तो झील बड़ी नहीं लगी थी पर लुसाने के रास्ते में जेनेवा झील का वृहत्तर रूप दिखने लगा. झील के किनारे बसा लुसाने शहर स्विट्जरलैंड का सब से जीवंत शहर कहा जा सकता है. वहां बाहरी विद्यार्थियों की संख्या अधिक है जिस से वहां खूब चहलपहल बनी रहती है. गरमी के दिन थे, इसलिए वहां की संकरी सड़कें लोगों से भरी पड़ी थीं. सारा वातावरण भूमध्यसागरीय लग रहा था.

ऊपर पहाड़ी पर अलंकृत गिरजाघर से स्तब्ध करते आल्पस पर्वत और लहराती हुई झील को देख कर जो अनुभव हुआ, उसे लेखनी द्वारा बता पाना मुश्किल है. कुछ दृश्य ऐसे होते हैं जिन्हें केवल महसूस किया जा सकता है, न तो लेखनी उन का सही वर्णन कर पाती है और न ही तूलिका द्वारा उन्हें चित्रों में उतारा जा सकता है. शायद, इसे देख कर ही विक्टर ह्यूगो ने लिखा था- ‘मैं ने झील को छतों पर देखा, पहाड़ को झील के ऊपर, बादलों को पहाड़ के ऊपर और तारों को बादलों के ऊपर’. काश, मैं इस से अच्छा लिख पाता.

वेवे पहुंच कर पहले तो लगा कि वह बड़ा ही नीरस शहर है, जहां बहुत ही कम दर्शनीय स्थल हैं, पर कुछ समय बिताने के बाद वह मेरा पसंदीदा शहर बन गया. उपन्यासकार ग्राहम ग्रीन ने अपना घर यहीं बसाया था और चार्ली चैपलिन ने भी शहर के किनारे स्थित महल जैसे घरों में से एक में अपना अंतिम समय बिताया था जिसे अब एक सुंदर संग्रहालय का रूप दे दिया गया है. हम उस ‘होटल डू लेक’ में केवल कौफी पीने गए जहां अनीता बु्रकनर ने अपना इसी नाम का बुकरपुरस्कृत उपन्यास लिखा था.

आश्चर्यजनक रूप से धीरगंभीर मगर लावण्य से भरपूर वेवे के बाद हमें मौंट्रेक्स बड़ा ही बेतुका, गड्डमड्ड, फीका और आधुनिकता का मुलम्मा चढ़ा शहर लगा. पर इन खामियों के बावजूद मौंट्रेक्स में उस के स्वर्णकाल के कुछ अवशेष बचे हुए हैं. रूसी उपन्यासकार नोबोकोव यहीं मौंट्रेक्स पैलेस होटल में रहते थे. होटल के बाहर कुरसी पर बैठी उन की एक भव्य प्रतिमा है जिसे इस प्रकार बनाया गया है जैसे वे तुरंत कुरसी से लुढ़क जाएंगे.

तटक्षेत्र से लगभग आधा घंटा पैदल चल कर हम शैटे द चिलौन से रूबरू हुए. कहा जाता है कि यही वह किला है जिस ने बायरन को उस की चर्चित कविता ‘द प्रिजनर औफ चिलौन’ लिखने को प्रेरित किया था. सोचती हूं कि काश, बायरन की थोड़ी सी भी साहित्यिक प्रतिभा मुझ में भी समा जाती. कई बार लेक जेनेवा जाने पर भी अभी तक तो यह इच्छा पूरी नहीं हुई है, पर अभी भी प्रतीक्षा है.

लंबा नहीं चल पाया इन स्टार्स का रिश्ता

बॉलीवुड में कुछ कपल्स ऐसे हैं जिनकी शादी कुछ समय तक ही टिक पाई. ऐसे में जब उनके अलग होने की बात सामने आई तो उनके फैंस इससे काफी हैरान और निराश हुए. ऐसे सेलेब्रिटीज के बारे में जो शादी के कुछ ही साल बाद एक-दूसरे से अलग हो गए.

कल्कि कोचलीन और अनुराग कश्यप

बॉलीवुड डायरेक्टर अनुराग कश्यप और एक्ट्रेस कल्कि कोचलीन 2011 में शादी के बंधन में बंधे थे. लेकिन इनकी शादी सिर्फ दो साल ही चल पाई और 2013 में दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए. कहा जाता है कि अनुराग की हीरोइनों से नजदीकी बढ़ती जा रही थी जो कल्कि को पसंद नहीं थी.

मल्लिका शेरावत करन सिंह गिल

कहा जाता है कि मल्लिका शेरावत कभी इस बात को नहीं मानतीं कि वो शादी कर चुकी हैं. लेकिन उनकी कुछ तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि उन्होंने पायलट करन सिंह गिल से शादी रचाई थी. मल्लिका की ये शादी सिर्फ एक साल ही चल पाई.

करन सिंह ग्रोवर और श्रद्धा निगम

करन सिंह ग्रोवर की पहली शादी श्रद्धा निगम के साथ हुई थी जो सिर्फ दस महीने ही चल पाई. इसके बाद करन ने जेनिफर विंगेट से शादी की और ये शादी भी दो साल से ज्यादा नहीं टिक पाई. फिलहाल करन एक्ट्रेस बिपाशा बसु के साथ अपनी शादी-शुदा जिंदगी जी रहे हैं.

पुलकित सम्राट और श्वेता रोहिरा

पुलकित सम्राट और श्वेता रोहिरा एक दूसरे के साथ रिलेशनशिप में थे और 2014 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए. इसके बाद पुलकित और यामी गौतम के अफेयर की खबरें सामने आईं और 2015 में ही श्वेता और पुलकित एक दूसरे से अलग हो गए.

मनीषा कोइराला और सम्राट

मनीषा कोइराला ने नेपाली बिजनेस मैन सम्राट से 2010 में शादी की थी लेकिन ये शादी भी लंबे समय तक नहीं चल पाई और दो साल के बाद ही दोनों एक दूसरे से अलग हो गए.

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