अंधविश्वासों का विश्वास

मेरे एक परिचित का प्रिंटिंग प्रैस है. उन की मशीन का एक बहुमूल्य पार्ट गायब हो गया. मशीन के कमरे में जाने वाले बहुत थे, पर मशीन को मुख्यरूप से 3 ही कर्मचारी प्रयोग कर रहे थे. उन का प्रैस तीनों शिफ्ट चलता था. पूछताछ करने व धमकाने पर भी कर्मचारी अनजान बने थे. किन्ही कारणों से वे मामला पुलिस में देना नहीं चाहते थे.

एकाएक उन को किसी ने एक बाबा का नाम बताया जो चोर कौन है यह भी बता देंगे और सामान भी दिला देंगे. वे अगले ही दिन बाबाजी के पास गए और उस के अगले ही दिन उन्होंने मुझे बताया कि वह पार्ट वहीं रखा मिल गया जहां से गायब हुआ था. वे बाबाजी का गुणगान कर रहे थे कि बिना कुछ कहे उन्होंने सब जान लिया. यहां तक कि कर्मचारियों के नाम भी बता दिए.

मुझे हैरानी हुई. मैं ने उन से विस्तार में बाबाजी से भेंट के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि उन्हें ले जा कर एक कमरे में बिठा दिया गया था. फिर बाबाजी के सहयोगी आए. उन्होंने उन की समस्या पूछी, फिर कागजकलम दे कर कहा कि अपनी समस्या इस कागज पर लिख दीजिए, उस के नीचे अपने इष्ट देव का नाम लिख दीजिए. फिर एक और कागज पर उस कमरे में जाने वाले सभी कर्मचारियों के नाम तथा उस के नीचे किसी फूल का नाम. फिर एक कागज पर जिन कर्मचारियों पर शक है उन के नाम तथा उस के नीचे एक फल का नाम लिखने को कहा.

फिर तीनों कागज अपनी जेब में रखने को कहा और बोले, ‘बाबाजी जब बुलाएंगे तब जाइएगा और जब कागज मांगें तो उन को दे दीजिएगा’. पर उन को हैरानी हुई जब बाबाजी ने कोई कागज नहीं मांगा, खुद ही समस्या बता दी और तीनों संदिग्ध कर्मचारियों के नाम भी बताए.

फिर उन्होंने कुछ देर ध्यान लगाया और फिर आंखें खोल कर कहा, ‘उन्होंने सब देख लिया है और किस ने चोरी की है और कहां ले गया है, यह भी देख रहा हूं. तुम जा कर कर्मचारियों को बोल दो कि बाबा ने सब देख लिया है और उन्होंने कहा है कि यदि परसों सुबह तक उस चोर कर्मचारी ने पार्ट वहीं नहीं रख दिया जहां से चुराया था तो वे परसों प्रैस में आएंगे और सब के सामने उस का नाम भी बता देंगे और सामान भी बरामद करवा देंगे. उस के बाद वह चाहे जेल जाए, चाहे पुलिस के डंडे खाए.’

यह सब सुन कर मैं ने अपने परिचित से कहा कि बाबा ने मनोवैज्ञानिक दांव खेला है और ऐसा भ्रम पैदा किया कि चोर ने चुपचाप सामान वहीं रख दिया.

पर मेरे परिचित बोले कि उन्होंने मेरी समस्या और कर्मचारियों के नाम कैसे बता दिए?

मैं ने कुछ सोचते हुए उन से पूछा कि आप ने कागज पर नाम लिखा तो उन के सहयोगी ने देख लिया होगा. वे बोले कि नहीं, उस ने नहीं देखा. मैं ने कहा कि आप ने किसी मेज पर रख कर लिखा. वे बोले कि नहीं, मेज तो वहां थी ही नहीं. बाबाजी के शिष्य एक किताब लिए हुए थे. जब मैं लिखने के लिए कागज रखने के लिए कुछ ढूंढ़ रहा था तो उन्होंने वह किताब मुझे दे कर कहा, ‘इस पर रख कर लिख लो.’ मैं ने पूछा कि किताब कैसी थी. उन्होंने कहा कि पता नहीं, उस पर कवर चढ़ा था. अब सारा माजरा समझते मुझे देर न लगी.

मैं ने उन से कहा कि आप को जो किताब दी गई थी उस पर कवर चढ़ा था, उस के अंदर किताब पर एक सादा कागज लगा कर रखा गया था. उस सादे कागज पर एक कार्बनपेपर लगा दिया गया था. आप से जब समस्या व कर्मचारियों के नाम लिखवाए गए तब नीचे सादे कागज पर कार्बन की वजह से सब कौपी हो गया. नीचे, देवता, फल, फूल के नाम इसलिए लिखवाए गए कि किताब के अंदर के कागज के कवर पर लिखी कार्बन से उतरी प्रति पर लिस्टों को अलगअलग समझा जा सके.

वह व्यक्ति तो वहीं बैठा रहा, मगर किताब उस ने अंदर भिजवा दी. बाकी तो केवल मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की बात थी. वे जानते थे कि आप चमत्कृत हो जाएंगे और कर्मचारियों को यह बताएंगे कि किस प्रकार आप के बिना कहे ही बाबाजी सब जान गए और कर्मचारियों के नाम भी बताए. आगे का काम उन की धमकी ने कर दिया.

दरअसल, हम में से बहुत से लोग पढ़ेलिखे हो कर भी इस प्रकार की छोटीछोटी तिकड़मों में विश्वास कर लेते हैं और किसी पाखंडी साधू, बाबा को सिद्धपुरुष मान बैठते हैं. कई लोग तो ऐसों के पीछे अपना तनमनधन सब लुटा बैठते हैं.

पकड़ी गई चोरी

ऐसी ही एक घटना मेरी किशोरवस्था की है. मेरे पिताजी भीमताल (जिला नैनीताल) में राजकीय नौर्मल स्कूल में प्रिंसिपल थे. एक बहुत ही प्रसिद्ध स्वनामधन्य बाबा जिन का लखनऊ में एक बड़ा मंदिर भी है, भीमताल आए. उन के आने से पहले ही छोटे से शहर में चहलपहल बढ़ गई थी. अनेक गाडि़यां, अनेक भक्त, दर्शनार्थियों की भीड़ उन के दर्शन के लिए जमा हो गई.

मेरे पिताजी आधुनिक विचारों के थे और वे इन सब समारोहों, अवसरों में नहीं जाते थे. उस दिन शाम को पिताजी व कुछ परिचित बैठे थे. एकाएक एक व्यक्ति आया, उस ने कहा, ‘बाबाजी ने राकेश को बुलाया है.’ यह मेरा नाम था. मैं उस वर्ष 9वीं कक्षा में था. मेरे पिताजी ने आगे पूछा तो उस ने कहा कि हमें कुछ पता नहीं है, हम तो आप को जानते भी नहीं. बाबाजी ने कहा कि यहां एक श्रीवास्तवजी पिं्रसिपल हैं. उन का लड़का राकेश मेरा बड़ा भक्त है. उस को बुला लाओ. सब लोग हैरान.

मुझे ले कर पिताजी, मां व कुछ परिचित भारी भीड़ के बीच बाबाजी के पास पहुंचे. बाबाजी ने मुझे अपने पास बिठाया और कुछकुछ अच्छी शिक्षाएं दीं और फिर पिताजी से कहा, ‘यह मेरा बड़ा भक्त है. इस का खयाल रखना. फिर मुझ से छोटे भाई का नाम ले कर पूछा कि वह नहीं आया. फिर कहा कि तुम 5 भाई हो. इसी प्रकार की कुछ और बातें कहीं और मुझे आशीर्वाद दे कर जाने को कहा.

सभी लोग बड़े हैरान थे. उस दिन घर में यही चर्चा चलती रही. भीमताल जैसे कसबे में यह बात जल्दी ही फैल गई कि किस प्रकार बाबाजी ने पिं्रसिपल साहब के लड़के को नाम ले कर बुला लिया और घर की भी बातें बताईं. बाबा तो अंतर्यामी हैं.

1-2 दिन बाद एक प्रशिक्षणार्थी शिक्षक पिताजी के पास किसी काम से आया. बातोंबातों ही में उस ने पूछा, ‘साहब, आप बाबाजी के पास गए थे.’ पिताजी को कुछ संदेह हुआ. उन्होंने उस से पूछा, ‘तुम गए थे क्या?’ वह बोला, ‘हां, मैं तो उन का बड़ा भक्त हूं. दर्शन करने गया था.’

पिताजी ने पूछा कि और कुछ बात हुई? उस ने कहा, ‘हां, मुझ से पूछ रहे थे कि तुम्हारे पिं्रसिपल कौन हैं, उन के परिवार में कौनकौन हैं, कितने बच्चे हैं, नाम क्या हैं. मुझे आप के बड़े दोनों बेटों के नाम याद थे, सो, मैं ने बता दिए थे.’

अब सब स्पष्ट हो गया

ऐसे ही एक अंतर्यामी बाबाजी थे जिन्होंने अपने शिष्यों के अलगअलग सांकेतिक नाम रखे थे, जैसे किसी का संतान, किसी का गृहविवाद, किसी का संपत्ति, किसी का मुकदमा. फरियादी को जिस कक्ष में बिठाया जाता था, उस में बाबाजी के कुछ अन्य शिष्य भी फरियादी बन कर बैठे रहते थे. बातोंबातों में लोगों से उन की तकलीफ जान लेते थे. फिर जब बाबाजी के पास किसी फरियादी को ले जाना होता था, तो यह व्यवस्था थी कि उन का वह शिष्य अंदर ले कर जाता जिस संबंध में समस्या होती थी. यानी अगर किसी को संतान की समस्या है तो जिस का सांकेतिक नाम संतान है वह उसे ले जाता था.

बाबाजी सामने आए फरियादी के साथ आए शिष्य के सांकेतिक नाम से तुरंत जान जाते थे कि समस्या किस बारे में है. वे भक्त को देख कर आंख बंद कर लेते. थोड़ी देर ध्यानमग्न हो कर बैठते, फिर आंखें खोल कर बड़े गंभीर शब्दों में कुछ इस प्रकार बोलते, ‘संतान, संतान की समस्या से तो सभी जूझ रहे हैं. कुछ पा कर, कुछ न पा कर. बोल, तू क्या चाहता है?’

भक्त चमत्कृत. बिना कहे बाबाजी ने सब जान लिया. बाबाजी पर उस का विश्वास जम जाता कि ऐसे चमत्कारी बाबा निश्चित ही उस की समस्या दूर करेंगे.

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों, मानवशास्त्रियों जैसे रोंडा ब्रायन, जोसफ मर्फी आदि द्वारा अनेक पुस्तकों व व्याख्यानों के माध्यम से बताया गया है कि मनुष्य के मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विचारतरंगें भी विद्युत चुंबकीय तरंगें यानी इलैक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स होती हैं. वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रतिस्थापित किया जा चुका है कि पूरा विश्व व प्रत्येक पदार्थ विद्युत चुंबकीय तरंगों से ही बना है. यदि हम किसी पदार्थ को सूक्ष्म से सूक्ष्मतर तोड़ते जाएं तो अणु, फिर परमाणु और अंत में पदार्थ नष्ट हो जाएगा और विद्युत चुंबकीय तरंगें वातावरण में विस्तारित हो जाएंगी.

यही कारण है कि वैज्ञानिक इन विद्युत चुंबकीय तरंगों में उस पार्टिकल को ढूंढ़ रहे हैं जो बे्रन पार्टिकल या गौड पार्टिकल (ब्रह्मोस या हिग्स बोसान) है जो यह निश्चित करता है कि कब तरंग, पदार्थ के कण यानी पार्टिकल में बदल जाएगी.

इसी सिद्धांत पर यह विश्लेषण मैटाफिजिक्स के वैज्ञानिकों ने किया है कि मनुष्य का विचार जिस चीज पर सतत केंद्रित हो जाता है तथा उस की प्राप्ति का विश्वास हो जाता है, वह सृष्टि के मूल नियम आकर्षण के नियम (ला औफ अट्रैक्शन) के कारण उस की ओर आकर्षित होती है और उस लक्ष्य, वस्तु की प्राप्ति संभव हो जाती है.

मनचाहे फल की चाह में लुटते लोग

चार्ल्स हैवेल के अनुसार, ‘मनुष्य के प्रत्येक विचार की एक निश्चित आवृत्ति (फ्रीक्वैंसी) होती है. जब एक ही विचार बराबर आता रहता है तो व्यक्ति एक निश्चित फ्रीक्वैंसी लगातार सृष्टि में भेजता रहता है. यह एक चुंबकीय सिग्नल की तरह होती है जो समानांतर फ्रीक्वैंसी को ला औफ अट्रैक्शन द्वारा खींच कर ले आती है और हमारा अभीष्ट हम को प्राप्त हो जाता है’

एक उदाहरण से यह और भी अधिक स्पष्ट होगा. टीवी के भिन्नभिन्न चैनलों की अलगअलग फ्रीक्वैंसी होती है. हम टीवी के रिमोट से जो चैनल चुनते हैं वह उस की फ्रीक्वैंसी से ट्यून हो कर उसे टीवी स्क्रीन पर ले आती है.

फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में शाहरुख  खान द्वारा बोला हुआ यह डायलौग इस तथ्य को बिलकुल स्पष्ट कर देता है, ‘जब हम पूरी शिद्दत से किसी चीज को चाहते हैं तो सारी कायनात उसे हम से मिलाने में लग जाती है.’

इस कारण, यदि किसी इच्छा या वस्तु की प्राप्ति पर निरंतर ध्यान बना रहे और मन में दृढ़विश्वास  हो कि यह तो प्राप्त होगी ही, तो उस के प्राप्ति की संभावना बहुत बढ़ जाती है.

ऊपर लिखे चमत्कारों से प्रभावित होने वाले भक्त के मन में यह विश्वास घर कर जाता है कि इतने चमत्कारी बाबाजी ने कहा है तो यह निश्चित ही हो कर रहेगा. प्रत्येक व्यक्ति की अपनी परिस्थितियां भी होती हैं परंतु फिर भी यह विश्वास काफी मामलों में मनचाहे फल की प्राप्ति करा देता है और लोग इसे बाबाजी का चमत्कार मान बैठते हैं.

वे यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही अपने लक्ष्य, उद्देश्य की प्राप्ति पर विश्वास रखते, बाबाजी पर विश्वास न कर स्वयं लक्ष्यप्राप्ति पर अडिग विश्वास बना कर अपने प्रयासों, उपक्रमों में लगे रहते तो भी उन को अभीष्ट प्राप्त होता ही.

एक और तथ्य जो विचारणीय है वह यह कि औसत के नियम (ला औफ एवरेजेस) के अनुसार भी जितने लोग ऐसे चमत्कारी बाबाओं के पास जाते हैं उन में लगभग 40-50 फीसदी को वैसे भी अभीष्ट फल मिल जाता है और लगभग आधे खाली हाथ भी रहते हैं.

ऐसा इसलिए भी होता है कि अधिकांश मनुष्य जिस प्रकार की फरियाद करते हैं उन में सामान्यतया पूरी हो सकने वाली मांगें भी रहती हैं, जैसे परीक्षा  में पास होना, मुकदमें में जीत, पुत्र की प्राप्ति आदि. जिस की मुराद स्वाभाविक रूप से भी पूरी हो जाती है वह उसे बाबाजी का चमत्कार मान बैठता है और उन के गुण गाता है. पर जिस की मुराद पूरी नहीं होती, उस का बाबाजी से मोह भंग हो जाता है. वह बाबाजी के पास फिर जाता नहीं. वहां पर मौजूद रहने वाली भीड़ में पुराने वही फरियादी उपस्थित रहते हैं जिन की इच्छा स्वाभाविक रूप से पूरी हो गई हो.

ऐसे में नए फरियादी व भक्त को ये लोग अपनी फलप्राप्ति के किस्से सुनासुना कर बाबाजी के प्रति और भी भरोसा जगाते रहते हैं. इन्हीं भक्तों की सौगातों, भेटों, चढ़ावों से बाबाजी की दुकान चलती है.

सकारात्मक सोच की जरूरत

हर जागरूक व्यक्ति को दूसरों को समझाने और खुद समझने की जरूरत है कि वास्तव में यह चमत्कार किसी बाबाजी का नहीं, केवल अपने खुद की पौजिटिव थिंकिंग यानी सकारात्मक सोच का है.

यदि आप बिना किसी प्रयास, उपक्रम के बैठेबैठे सबकुछ पाने की अभिलाषा रखते हैं तब तो फिर ऐसे बाबाओं, स्वामियों के पास जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. पर, आप अपने लक्ष्यउद्देश्य के प्रति पूरे मनोयोग व निष्ठा के साथ प्रयास करते हैं तथा लक्ष्य प्राप्ति का आप को दृढ़विश्वास है, सोतेजागते आप का विश्वास इस बात पर दृढ़ है कि यह लक्ष्य तो प्राप्त होगा ही, तो आप देखेंगे कि रास्ते बनने लगेंगे, मददगार सामने आने लगेंगे, अवसरों के द्वार खुलने लगेंगे और निश्चितरूप से सफलता आप के द्वार खड़ी होगी.   

50 रुपए में बिकती लड़कियां

दुनियाभर में देह व्यापार के लिए ह्यूमन ट्रैफिकिंग यानी मानव तस्करी का जाल दिनबदिन मजबूत होता जा रहा है. इस में होती मोटी कमाई के मद्देनजर बीते कुछ सालों में भारत समेत दुनिया के कई देशों में यह तस्करी सब से बड़े धंधे के रूप में उभरी है. कई देशों में देह व्यापार को कानूनी मान्यता हासिल है तो कहीं सबकुछ गैरकानूनी. कानून से कहीं नजर बचा कर तो कहीं उसे साथ मिला कर यह धंधा अरबों का हो चुका है.

भारत में तो यह गैरकानूनी है लेकिन अन्य देशों की बात करें तो चीन में देह व्यापार का धंधा करीब 73 अरब डौलर का हो चुका है. हालांकि वहां यह व्यापार गैरकानूनी है इस के बावजूद दुनिया का सब से बड़ा बाजार चीन में

ही मौजूद है. चीन सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी मसाज पार्लरों, बारों और नाइट क्लबों में यह धंधा धड़ल्ले से चल रहा है.

वहीं, स्पेन दुनिया का दूसरा देश है जहां पौर्न व्यापार फलफूल रहा है. वहां यह व्यापार करीब 26.5 अरब डौलर का है. यूएन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 39 फीसदी स्पैनिश पुरुषों ने एक बार यौनकर्मी से संबंध बनाए हैं. जापान में यह व्यापार 24 अरब डौलर, जरमनी में 18 अरब डौलर, अमेरिका में 14.6 अरब डौलर, दक्षिण कोरिया में 12 अरब डौलर और थाइलैंड में 6.4 अरब डौलर का हो चुका है.

जाहिर है जहां इतनी बड़ी कमाई के विकल्प होंगे वहां देह व्यापार के नाम पर मानव तस्करी, लड़कियों की खरीदफरोख्त और उन के खिलाफ अपराध होने तय हैं.

वेश्यावृत्ति का जाल

अगर भारत की ही बात करें, तो यहां का देह व्यापार करीब 8.4 अरब डौलर का माना जाता है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2013 में तकरीबन साढ़े 6 करोड़ लोगों की तस्करी की गई. इन में से अधिकतर बच्चे हैं जिन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी या भीख मांगने के काम में लगाया गया. वाक फ्री फाउंडेशन के 2014 के ग्लोबल स्लेवरी इंडैक्स के मुताबिक, भारत में 1.4 करोड़ से अधिक लोग आधुनिक गुलामी में जकड़े हुए हैं.

वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाने के लिए यहां लंबे समय से एक पक्ष मांग कर रहा है. बावजूद इस के, देश में आज भी इस कारोबार में कोई भी लड़की या औरत मरजी से नहीं आती, या तो हालात उन्हें इस धंधे में ले आते हैं या फिर उन्हें बेच दिया जाता हैं.

फिलीपींस, जहां यह कारोबार करीब 6 अरब डौलर का बताया जाता है, सैक्स टूरिज्म के लिए दुनियाभर में चर्चित है. भारत की तरह फिलीपींस और तुर्की जैसे देशों में गरीबी और मजबूरी की मार झेल रही नाबालिग लड़कियां देह व्यापार का हिस्सा बन रही हैं. लेकिन नेपाल की कहानी तो सब से बुरी है. वहां गरीबी और भूकंप की त्रासदी झेल रहे परिवार अपनी ही बेटियों का सौदा करने को मजबूर हैं.

बदहाल नेपाल

धनुकी सिसकसिसक कर रो रही थी. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. पुलिस वाले कुछ भी पूछते तो उस की सिसकियां तेज हो जाती थीं. आंसू और सिसकियों के बीच वह कुछ बोलती तो समझ में कुछ नहीं आता. पुलिस वाले भी परेशान थे कि इस लड़की को किस तरह से चुप कराएं.

करीब एकडेढ़ घंटे के बाद जब उस का रोना बंद हुआ तो उस 14 साल की मासूम लड़की ने जो कुछ कहा, उसे सुन कर पुलिस वालों के भी होश उड़ गए. उस ने कहा, ‘‘मैं नेपाल के रौटहट की रहने वाली हूं और जिला स्कूल में पढ़ती हूं. मेरे स्कूल के दोस्त सत्येंद्र ने मुझ से कहा था कि हम दोनों के घर वाले हमारा विवाह नहीं होने देंगे, इसलिए हम लोग घर से भाग जाते हैं और भारत में जा कर शादी कर लेंगे.

‘‘सत्येंद्र ने कहा कि पटना में एक उस का पहचानवाला है. वह शादी का सारा इंतजाम करा देगा. हम दोनों पटना आ गए. यहां आने पर उस की नीयत बदल गई. वह मुझ से गंदे काम करने के लिए कहता था. जब मैं शादी की बात करती तो वह बहाने बनाने लगा. कुछ दिनों के बाद उस के साथ 2-4 लड़के भी आने लगे. वे लोग मेरे साथ छेड़छाड़ करने लगे. डर से मेरी आवाज नहीं निकलती थी. वे लोग जोरजबरदस्ती करते और फिर चले जाते. कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. सत्येंद्र कभीकभी ही मिलने आता और कहता था कि वह मुझे रानी बना कर रखेगा, मैं राज करूंगी. एक दिन मौका मिलते ही मैं कमरे से भाग निकली और थाने आ गई.’’

धनुकी की दास्तान को सुन कर पुलिस वाले भी चकरा गए. पुलिस अफसरों के दिमाग घूमने की वजह यह नहीं थी कि किसी लड़की को बहलाफुसला कर जिस्म के धंधे में धकेल दिया गया, बल्कि वे इस बात को ले कर चकराए थे कि 14-15 साल के बच्चे भी ट्रैफिकिंग के धंधे में लगे हुए हैं. आमतौर पर इतनी कम उम्र के लड़कों पर इन मामलों में पुलिस को शक नहीं होता है.

कुछ इसी तरह पिछले साल 24 अगस्त को 15 साल की नाबालिग नेपाली लड़की जानकी को बहलाफुसला कर उस का पड़ोसी उसे ले भागा. नेपाल से उसे भगा कर वह पटना पहुंचा. 10वीं क्लास में पढ़ने वाली जानकी नेपाल के बीरगंज उपमहानगर पालिका क्षेत्र की रहने वाली है. उस के घर के पास ही रहने वाला विकास कुमार सोनी उस से शादी करने का झांसा दे कर उसे अपने साथ भगा ले गया.

आसपास के लोगों ने बताया कि पिछली 13 जुलाई को जानकी और विकास सड़क के किनारे बातचीत कर रहे थे. लड़की के चाचा वीरेंद्र साहा ने बीरगंज थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर में लिखवाया था कि पटना के मालसलामी महल्ले का रहने वाला लड़का विकास जानकी को बहलाफुसला कर ले भागा है.

विकास नेपाल में मोबाइल टावर लगाने का काम करता था. पुलिस ने जब विकास के मोबाइल टावर की लोकेशन का पता किया तो पटना के मालसलामी इलाके में उस के होने का पता चला. लड़की के मामा शिवशंकर चौधरी ने पटना के मालसलामी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और एएसपी विकास वैभव को मामले की जानकारी दी गई. शिवशंकर ने बताया कि पिछली 13 जुलाई को उस की भांजी स्कूल के लिए घर से निकली थी, उस के बाद उस का कोई पता नहीं चला.

भूकंप से बिगड़े हालात

हिमालय की गोद में बसे, प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर नेपाल ने 25 अप्रैल, 2015 और उस के बाद आए तेज व विनाशकारी भूकंप के कई झटकों को झेला. नेपाल के 26 जिलों में भूकंप ने जानमाल को काफी नुकसान पहुंचाया जबकि पश्चिमी हिस्से में इस का खास असर नहीं हुआ. करीब 10 हजार लोगों के मरने और 30 हजार लोगों के घायल होने व 7 लाख से ज्यादा घरों के मलबे में तबदील होने के बाद नेपाल में पलायन की रफ्तार तेज हो गई है. हजारों लोगों की जान गंवाने के बाद नेपाल के सामने सब से बड़ी चुनौती भूकंप के प्रकोप से बच गए लोगों और देश की पूरी व्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने की है.

नेपाल से लौट कर आया बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी प्रखंड का रहने वाला मजदूर विमल साहनी का कहना है, ‘‘वहां खाने के सामान और पानी की अभी भी बहुत कमी है. सारी दुकानें बंद हैं. बिजली नहीं रहने की वजह से रात में परेशानी कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है.’’

भूकंप की त्रासदी झेल रहा नेपाल अब एक और नया दर्द झेल रहा है. गरीबी और पैसों की किल्लत की वजह से लोग अपनी बेटियों को बेच रहे हैं. कई लड़कियां परिवार को दुख में देख कर खुद को दलालों के हाथों सौंप रही हैं. नेपाल में इन दिनों लड़कियों और बच्चों को काम दिलाने के नाम पर कई दलाल हर इलाके में खासकर राहत शिविरों के आसपास घूम रहे हैं.

साल 2015 में नेपाल में आए भयंकर भूकंप की तबाही के बाद वहां लड़कियां और औरतें 50-100 रुपए में सैक्स करने के लिए राजी हो रही हैं. इस से नेपालियों में एड्स का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.

पब्लिक अवेयरनैस फौर हैल्थफुल एप्रोच फौर लिविंग के मैडिकल डायरैक्टर और एड्स स्पैशलिस्ट डाक्टर दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि पिछले 7-8 महीनों में पटना स्थित उन की क्लीनिक में नेपाल से आए एड्स के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. रक्सौल, बीरगंज और जनकपुर आदि इलाकों के कईर् लोग एचआईवी की चपेट में आ गए हैं. भूकंप के बाद सबकुछ गवां चुकी औरतें और लड़कियां अपना जिस्म बेच कर अपनी जिंदगी चला रही हैं. सैक्स के दौरान सुरक्षा का उपाय नहीं करने से एचआईवी मरीजों की संख्या और बढ़नी तय है. नेपाल से पटना में उन की क्लीनिक में आए एचआईवी मरीजों की तादाद में 15 फीसदी का इजाफा हुआ है.

सक्रिय गिरोह

दलाल आमतौर पर गरीब बच्चों के मांबाप को समझाते हैं कि वे बच्चों को मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, पटना जैसे शहरों में नौकरी पर लगवा देंगे. इस से अच्छा पैसा मिलेगा और उन की जिंदगी बदल जाएगी. खानेपीने की दिक्कत खत्म हो जाएगी. काम के साथ उन के बेटेबेटियों की पढ़ाई का भी इंतजाम कर दिया जाएगा. पढ़ने के बाद ज्यादा अच्छी नौकरी मिल जाएगी.

सुनसरी का रहने वाला जीवन थापा  बताता है, ‘‘मानव तस्करी में संलिप्त गिरोह पढ़ाई, खाना और बेहतर जीवन दिलाने का वादा करते हैं. भूकंप और गरीबी की दोहरी मार झेल रहे मांबाप आसानी से इन के झांसों में फंस जाते हैं. वे बेटियों को बेहतर जिंदगी देने और कुछ रुपयों के चक्कर में जानेअनजाने उन की जिंदगी को बदतर बना रहे हैं.’’

गौरतलब है कि नेपाल और भारत के बीच 1,750 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है. दोनों देशों के लोगों को एकदूसरे देश में आनेजाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती है. सीमा सुरक्षा बल के डीजी बंशीधर शर्मा कहते हैं, ‘‘दोनों देशों के बीच कुल 26 चौकियां बनी हुई हैं और रोजाना करीब 10 हजार लोग आरपार होते हैं. इस के बाद भी पूरी चौकसी बरती जाती है. ट्रैफिकिंग के मामलों पर भी नजर रखी जाती है और इस बारे में किसी पर थोड़ा सा भी शक होने पर पूरी जांचपड़ताल की जाती है.’’

डीजी बंशीधर आगे कहते हैं, ‘‘बिहार और नेपाल का बौर्डर काफी संवेदनशील है. भारत और नेपाल के बीच रोटी और बेटी का रिश्ता होने की वजह से दोनों देशों के बीच काफी आवाजाही रहती है. ऐसे में संदिग्धों को पहचानने में जवानों को काफी परेशानी होती है. खुलीसीमा का फायदा गैरकानूनी लोग आसानी से उठाने की कोशिश करते रहते हैं. इसे रोकने के लिए सीमा सुरक्षा बल ने बौर्डर इंटरैक्शन टीम का गठन किया है. इस टीम के लोग सादी वरदी में लोगों से मिलतेजुलते रहते हैं और संदिग्धों पर नजर रख रहे हैं.’’

दलालों की चांदी

पूर्णियां कोर्ट के सीनियर वकील संजय कुमार सिन्हा कहते हैं, ‘‘नेपाल में लड़कियों को बेचने व खरीदने का धंधा जोरों से चल रहा है. भूकंप से बदहाल नेपाल में खाने के लाले पड़े हुए हैं. सरकार असमंजस में है. ऐसे में लड़कियों को खरीद कर उन्हें वेश्यालयों तक पहुंचाने वाले दलालों की चांदी हो गई है.

नेपाली लड़कियां 3 से 15 हजार रुपए तक में बेच दी जाती हैं. गरीब पैसों के लालच या परिवार के बाकी लोगों की पेट की आग को बुझाने के लिए बेटियों को दरिंदों के हाथों बेच देते हैं. तस्कर उन लड़कियों को दिल्ली, मुंबई या कोलकाता के बाजारों में डेढ़ से ढाई लाख रुपए तक में बेच डालते हैं. वहां से ज्यादातर नेपाली लड़कियों को अरब, हौंगकौंग, जापान, कोरिया, अफ्रीका, मलयेशिया, थाइलैंड आदि देशों में पहुंचा दिया जाता है. वहां लड़की के सारे पासपोर्ट, वीजा, पहचानपत्र आदि दस्तावेजों को जब्त कर लिया जाता है, ताकि लड़की भाग न सके.’’

काठमांडू और उस के आसपास के इलाकों में चल रही कई ट्रैवल एजेंसियां और मैरिज ब्यूरो संस्थाएं लड़कियों की तस्करी के खेल में शामिल हैं. ऐसा केवल काठमांडू में नहीं, बल्कि दुनियाभर में दलालों की नजर उन मजबूर परिवारों या लड़कियों पर रहती है. लड़कियों की शादी कराने, नौकरी दिलाने आदि का झांसा दे कर वे गरीब और भोलेभाले मांबाप को अपने जाल में फंसा लेते हैं. उन्हें समझाया जाता है कि गरीबी की वजह से वे अपनी बेटी का विवाह तो कर नहीं सकते हैं, ऐसे में मैरिज ब्यूरो के जरिए अच्छा लड़का मिल सकता है.

गरीबी की मार

पोखरा का रहने वाला दिलीप थापा बताता है, ‘‘मेरी बेटी दिव्या की शादी दिल्ली के किसी व्यापारी से कराने की बात कही गई थी. मैं ने ट्रैवल एजेंट की बात मान ली. गरीबी की वजह से मैं अपनी बेटी का विवाह किसी अच्छे लड़के से नहीं कर सकता था. इसलिए मैं बेटी को विवाह के लिए दिल्ली भेजने के लिए राजी हो गया. जब ट्रैवल एजेंट दिव्या को ले कर जाने लगा तो उस ने मेरे हाथ में 2 हजार रुपए थमाए थे. उसी समय मेरा माथा ठनका था कि उस ने 2 हजार रुपए क्यों दिए? रुपए तो मुझे देने चाहिए थे, पर कुछ कह नहीं सका.’’

थापा रोते हुए बताता है, ‘‘आज मेरी बेटी को दिल्ली गए 3 महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन उस का कोई अतापता नहीं है. ट्रैवल एजेंट के औफिस में पूछता हूं तो वहां लोग यही कहते हैं कि तुम्हारी बेटी की शादी कर दी गई है. वह अपने ससुराल में राज कर रही होगी.’’ यह कहतेकहते दिलीप की आंखों में आंसू छलक आते हैं. उसे इस बात का मलाल है कि क्यों उस ने अपनी बेटी को ट्रैवल एजेंट के हवाले कर दिया था.

विराटनगर के एक ट्रैवल एजेंट ने बताया कि इन दिनों कई फर्जी ट्रैवल एजेंट्स और प्लेसमैंट एजेंसियों के एजेंट्स नेपाल में खुलेआम धूम रहे हैं. वे इस बात की पड़ताल करते रहते हैं कि किस परिवार को भूकंप से ज्यादा नुकसान हुआ है. किस परिवार में कितनी लड़कियां और बच्चे हैं.

गरीब परिवार की लड़कियों को देख कर उन की बांछें खिल उठती हैं. लड़की के मांबाप को दलाल आसानी से समझा लेते हैं कि उन की बेटी को नौकरी मिल जाएगी और वह हर महीने अपनी कमाई से मोटी रकम घर भेजेगी. उस की शादी भी करा दी जाएगी. जिस से परिवार का गुजारा बढि़या से चलेगा. नया घर बनाने में मदद मिल जाएगी. दलालों के इस झांसे में लोग फंस जाते हैं और उन के हाथों में अपनी बेटी व मासूम बच्चों को सौंप देते हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक, भूकंप के बाद नेपाल के राहत शिविरों में 15 लाख से ज्यादा लड़कियां रह रही हैं और उन की हिफाजत का कोई इंतजाम नहीं है. इतना ही नहीं, करीब 30 हजार ऐसी लड़कियां हैं जिन के मांबाप समेत परिवार के सभी सदस्यों को भूकंप ने लील लिया. वे पूरी तरह से बेसहारा व लावारिस जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं. ऐसी लड़कियों को काम दिलाने के नाम पर बहलानाफुसलाना काफी आसान है. पैसे, भोजन, काम और घर मिलने के लालच में वे बड़ी ही आसानी से दलालों की गिरफ्त में फंस रही हैं.

नेपाल के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वहां 38 फीसदी लोग गरीबीरेखा के नीचे रहते हैं. इस के साथ ही नेपाल एशिया का सब से गरीब देश भी है. बेहतर जिंदगी और कमाई की नीयत से 52.8 फीसदी नेपाली लड़कियां एजेंटों के झांसे में फंस रही हैं. परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए 19 फीसदी और प्रेम के चक्कर में फंस कर 1.4 फीसदी नेपाली लड़कियां घर छोड़ रही हैं.

रक्सौल में रहने वाले भारत-नेपाल मैत्री संघ के सदस्य अनिल कुमार सिन्हा बताते हैं कि नेपाल से 10 से 35 साल की लड़कियों और औरतों की तस्करी होने की खबरें आएदिन सुनने को मिल रही हैं और उन्हें भारत समेत दुबई, हौंगकौंग आदि देशों के वेश्यालयों में पहुंचाया जा रहा है.

दुबई में तस्करी

गौरतलब है कि कुछ महीने दिल्ली एयरपोर्ट पर दिल्ली पुलिस ने एयरलाइन के 2 कर्मचारियों के साथ 2 तस्करों को दबोचा था. वे अपने साथ 21 नेपाली लड़कियों को दुबई ले जाने की कोशिश में थे. लड़कियों ने पुलिस को बताया था कि सभी लड़कियों को दुबई में अच्छी नौकरी देने की बात कही गई थी.

बौर्डर पुलिस के मुताबिक, ‘‘लड़कियों के तस्कर गरीब लड़कियों को वेश्यालयों में पहुंचाने के अलावा उन्हें और भी कई तरह के धंधों में झोंक रहे हैं. इन्हें घरेलू कामकाज, भीख मांगने, मजदूरी, सर्कस में मजदूरी आदि के कामों में भी लगाया जाता है. सुंदर और जवान लड़कियों व औरतों को सैक्स के धंधे में धकेल दिया जाता है और बाकी औरतों को दूसरे कामों में भी लगा दिया जाता है.

पुलिस के मुताबिक, वेश्यालयों के साथ ही डांसगर्ल, बारगर्ल और मसाजगर्ल के रूप में भी नेपाली लड़कियों को आसानी से खपाया जाता है. पटना, मुजफ्फरपुर, रांची, कोलकाता आदि के कई मसाजपार्लरों में नेपाली लड़कियां काम करती हुई आसानी से दिख जाती हैं.

भारत में सैक्स का कारोबार करीब 4 लाख करोड़ रुपए का है. दिल्ली के जीबी रोड, कोलकाता के सोनागाछी, मुंबई के कामाठीपुरा, पुणे के पेठ, इलाहाबाद के मीरगंज, बनारस के शिवदासपुर, मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान, मुंगेर के श्रवण बाजार आदि रैडलाइट इलाकों में 3-4 महीनों के दौरान नेपाली लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. पिछले 8 अगस्त को पुणे के पेठ इलाके में छापामारी कर पुलिस ने 700 नेपाली लड़कियों को बरामद किया था.

लड़की को उस के घर से लेने के बाद एजेंट्स लड़की को सीमापार कराने में सहायता पहुंचाने वालों के हाथों में 10-12 हजार रुपए थमा देते हैं. भारत और नेपाल के बीच खुलीसीमा होने के कारण दोनों देशों के लोग बेरोकटोक एकदूसरे के देशों में आतेजाते रहते हैं. सीमा पर बसे लोगों को हर चोररास्ते का पता होता है और वे कस्टम व सीमा सुरक्षा बलों की आंखों में आसानी से धूल झोंक देते हैं. वे लोग एजेंट्स द्वारा सौंपी गई लड़की या औरत को अपना परिवार वाला बता कर सीमा के पार पहुंचा देते हैं.

भारत की सीमा में पहुंचने के बाद एजेंट्स टैक्सी बुक करते हैं और सामान या लड़कियों को बिहार समेत उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई आदि के वेश्यालयों तक पहुंचाते हैं. इस के लिए एजेंट्स टैक्सी वालों को 10 से 15 हजार रुपए तक दे देते हैं. रेल या बस के मुकाबले टैक्सी से सफर करना उन के लिए ज्यादा महफूज होता है.

वेश्यालयों में लड़कियों को बेच कर एजेंट्स 75 हजार रुपए से 1 लाख रुपए प्रति लड़की झटक लेते हैं. वहीं, 30 साल से ज्यादा उम्र की औरतों की कीमत 40 से 50 हजार रुपए लगाईर् जाती है. विदेशों के वेश्यालयों यानी थाइलैंड, मलयेशिया, कोरिया, जापान, हौंगकौंग, आस्ट्रेलिया, चीन आदि देशों में एक लड़की के बदले एजेंट्स की 30 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है.

शोषण की हद

रक्सौल पुलिस ने पिछले दिनों एक 14 साल की नेपाली लड़की को जख्मी हालत में रक्सौल रेलवे स्टेशन के पास से बरामद किया. लड़की ने पुलिस को बताया कि वह नेपाल के पोखरा शहर की रहने वाली है. पिछले साल 24 जुलाई को कुछ लोगों ने उसे उठा लिया और 3 दिनों तक अंधेरे कमरे में भूखाप्यासा रखा. जब भूख से उस की बेचैनी बढ़ने लगी तो एक रोटी खाने को दी. उस के बाद 10 से ज्यादा लोगों ने उस के साथ कई दिनों तक बलात्कार किया.

उस के बाद उस की आंखों पर पट्टी बांध कर बाहर निकाला गया और एक अंजान जगह व मकान में छोड़ दिया गया. 2 दिनों के बाद कुछ लोग आए और उसे मुजरा सीखने की ट्रेनिंग देने की बात करने लगे. इनकार करने पर बैल्ट से पीटा गया और 2 लोगों ने बलात्कार किया. बेबस हो कर उस ने मुजरा सीखना शुरू किया. एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद उसे दूसरी जगह ले जाया गया. वहां नएनए लोग आते थे और उस से नाचने के लिए कहते और उस के बाद उस का बलात्कार करते.

एक दिन मौका पा कर वह भाग निकली. बाहर निकल कर पता किया तो लोगों ने बताया कि वह मुजफ्फरपुर शहर में है. वहां से ट्रेन में बैठ कर रक्सौल पहुंच गई. वहां से नेपाल जाने की कोशिश कर रही थी कि कुछ पुलिस वालों ने पकड़ लिया.

भारत-नेपाल सीमा पर मानव तस्करी की रोकथाम का काम कर रही स्वयंसेवी संस्था भूमिका विहार की निदेशक शिल्पी सिंह बताती हैं, ‘‘मानव तस्करी के मामले में बिहार का सीमांचल इलाका ट्रांजिट पौइंट बनता जा रहा है. संस्था की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 सालों में 519 बच्चे गायब हुए, जिन में ज्यादातर लड़कियां थी. विवाह और नौकरी का लालच दे कर लड़कियों की तस्करी की जाती है. बच्चों को गायब करने के बाद उन्हें वेश्यालयों में पहुंचा कर उन्हें देह व्यापार के जलील धंधे में झोंक दिया जाता है.’’

कुल मिला कर नेपाल ही नहीं, देशविदेश के हर कोने में लड़कियां देह व्यापार के धंधे में झोंकी जा रही हैं. उन की मुफलिसी का फायदा उठा कर चमड़ी से दमड़ी कमाने वाले लोगों ने इसे एक कमाऊ पेशा बना लिया है. जिस में ऊपर से ले कर नीचे तक सब भ्रष्ट हैं. इंसानियत के लिहाज से स्थिति भयावह व चिंताजनक है. इंसानियत थोड़े से इंसानरूपी हैवानों की दरिंदगी का शिकार है.                           

भूख और गरीबी के हाथों मजबूर

बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के एक पौश इलाके के आलीशान मकान से छुड़ाई गई 16 साल की नेपाली लड़की सुनिति गुरूंग से हुई बातचीत से यह साफ हो जाता है कि नेपाल में आए भूकंप के बाद कई परिवारों के सामने खाने के लाले पड़े हुए हैं. दलाल नेपालियों को बरगला कर उन की बेटियों को खरीदने व बेचने का धंधा कर रहे हैं, लेकिन कई लोग जानबूझ कर अपनी बेटियों को दलालों के हाथों सौंप भी रहे हैं.

इस के पीछे उन की यही सोच है कि बेटी बेच कर कुछ पैसे तो मिलेंगे ही, साथ में बेटी भी भूख व गरीबी से नहीं मरेगी. कई बेटियां तो परिवार की फांकाकशी से तंग आ कर खुद ही जिस्म के दलालों से मिल कर मोलभाव कर रही हैं. सुनिति से बातचीत के दौरान कई दर्दनाक व खौफनाक सचाइयों का खुलासा हो जाता है.

भूकंप वाले दिन आप के साथ क्या हुआ था?

भूकंप में मेरे मांबाप की मौत हो गई. जिस समय भूकंप आया था उस समय मैं स्कूल में थी. घर पहुंची तो देखा कि मेरा घर पूरी तरह से गिर गया है और मांबाप उस में दब कर मर गए हैं. चारों ओर चीखपुकार मची हुई थी. मैं भी रो रही थी.

उस के बाद क्या हुआ?

पुलिस वालों ने बताया कि मेरे मांबाप मर गए हैं. उन्होंने पूछा कि और कोई रिश्तेदार है तुम्हारा? मैं ने कहा, ‘‘नहीं.’’ उस के बाद मुझे कैंप में पहुंचा दिया गया. 8 दिनों तक कैंप में रही. खाना और पानी भी नहीं मिलता था. दिनभर में इतना खाना भी नहीं मिलता था कि पेट भर सके.

फिर क्या किया?

काम खोजने निकली तो कहीं काम नहीं मिला. सब यही कहते थे कि कैंप में ही रहो. पूरा नेपाल तबाह हो गया है, कोई काम अभी नहीं मिलेगा.

कैंप में किसी ने कोई बदतमीजी या गलत हरकत तो नहीं की?

लड़कियों के लिए अलग कैंप था, लेकिन वहां खाना और पानी पहुंचाने वाले कुछ लोग लड़कियों और औरतों से गंदी बातें करते थे. मुझे अच्छा नहीं लगता था और बहुत गुस्सा आता था.

दलाल के चक्कर में फंस कर मुजफ्फरपुर कैसे पहुंची?

कैंप में ही खाने का पैकेट बांटने वाले एक आदमी ने कहा कि वह पटना में अच्छी नौकरी दिला देगा. मैं तैयार हो गई. उस ने पटना ले जाने के बजाय मुझे यहां (मुजफ्फरपुर) एक औरत के घर में छोड़ दिया. उस ने कहा कि औरत पटना पहुंचा देगी. 2 दिन तो ठीकठाक गुजरे लेकिन उस के बाद रोज 3-4 आदमी आते और मेरे साथ जबरदस्ती करते थे.

तब क्या सोचा आप ने?

क्या सोचती. उस समय तो लगा कि अब पूरी जिंदगी उसी नरक में बितानी पड़ेगी. बाहर निकलने का कोई ओरछोर ही पता नहीं चलता था. हर तरफ मजबूत पहरा था.

वहां खाना और रुपया आदि मिलता था?

खानापीना तो समय पर मिलता था लेकिन रुपयों के बारे में पूछने पर कहा जाता था कि उस का मेहनताना बैंक में जमा हो रहा है. चुपचाप काम से काम रखो.

बाहर निकलने का मौका कैसे मिला?

एक दिन सुबह उठ कर तैयार हो रही थी कि हल्ला मचने लगा और भागदौड़ होने लगी. मैं कमरे से बाहर निकली तो देखा कि चारों तरफ पुलिस वाले खड़े हैं और सभी को पकड़ रहे थे. मैं बाहर की ओर भागने लगी तो पुलिस वालों ने मुझे भी पकड़ लिया. अब पुलिस वाले कहते हैं कि वे मुझे घर भेज देंगे. अब मैं नेपाल जा कर क्या करूंगी. वहां कौन मुझे काम देगा? कौन खानापीना देगा? जिंदगी कैसे कटेगी? कुछ पता नहीं चल रहा है?

(खुफिया विभाग के एक अफसर के सहयोग से लड़की से बात हो सकी है. उन के अनुरोध पर लड़की का नाम बदल दिया गया है.)

ताकि शरीर बना रहे साफ और स्वच्छ

गरमी का मौसम हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने (डिटौक्स) के लिए एकदम उपयुक्त समय होता है, क्योंकि इन दिनों ताजा और्गैनिक फलों और सब्जियों की काफी उपलब्धता होती है. शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालना बेहद जरूरी है. कुछ फलों की मदद से अपने शरीर को साफ करने में मदद मिल सकती है. ये शरीर को स्वस्थ और तरोताजा बना सकते हैं:

– गरमी के मौसम में डिटौक्स के लिए तरबूज सब से अच्छा खा-पदार्थ है. इस से शरीर में काफी क्षारीय गुणों वाले तत्त्व बनते हैं और इस में काफी मात्रा में साइट्रोलाइन होता है. इस से आर्जिनिन बनने में मदद मिलती है, जिस से शरीर में अमोनिया एवं अन्य हानिकारक तत्त्व बाहर निकलते हैं. इस के साथ ही तरबूज पोटैशियम का भी अच्छा स्रोत है, जो हमारी डाइट में सोडियम की मात्रा को संतुलित करता है और सफाई के दौरान हमारी किडनियों को भी सपोर्ट करता है.

– नीबू लिवर के लिए बेहतरीन उत्तप्रेरक है और यह यूरिक ऐसिड और अन्य हानिकारक रसायनों को घुला देता है. यह शरीर को क्षारीय बनाता है. इस तरह से यह शरीर के पीएच को संतुलित करता है.

– शरीर से हानिकारक तत्त्वों को निकालने में खीरा भी काफी मददगार होता है. इस में पानी की काफी मात्रा होती है, जिस से मूत्र प्रणाली में गतिशीलता आती है. 1/2 कप कटे खीरे में केवल 8 कैलोरी होती है.

– अमीनो ऐसिड प्रोटीन युक्त पदार्थों में पाया जाता है. हानिकारक तत्त्वों को शरीर से निकालने की प्रक्रिया के लिए यह बहुत आवश्यक है.

– सब्जियों को भाप में पकाने या हलका फ्राई करना अच्छा विकल्प है, क्योंकि इस से पोषक तत्त्वों का क्षय नहीं होता है.

– हानिकारक तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने के लिए कुछ हलकेफुलके व्यायाम करें. डिटौक्सिंग के दौरान यह जरूरी है कि आप अलकोहल और कैफीन से दूर रहें.

– पुदीने की पत्तियां गरमी में ठंडक का एहसास देती हैं. ये खाने को ज्यादा प्रभावी तरीके से पचाने में मदद करती हैं और लिवर, पित्ताशय और छोटी आंत से पित्त के प्रवाह में सुधार लाती हैं व आहार वसा को विघटित करती हैं.

– पोलिफेनोल्स युक्त हरी चाय का खूब सेवन करें, क्योंकि यह शक्तिशाली ऐंटीऔक्सिडैंट का काम करती है.

– कैफीन से दूर रहें, क्योंकि यह शरीर को पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने में अड़चन खड़ी करती है. शराब का सेवन न करें, क्योंकि यह रक्तप्रवाह में आसानी से अवशोषित होती है और शरीर के हर हिस्से को प्रभावित करती है.

– खूब पानी पीएं. पुरुषों को प्रतिदिन कम से कम 3 लिटर और महिलाओं को करीब 2.2 लिटर पानी पीना चाहिए. पानी महत्त्वपूर्ण अंगों से हानिकारक तत्त्वों को बाहर निकालता है और पोषक तत्त्वों को कोशिकाओं तक पहुंचाता है.

– अपने आहार में फाइबरयुक्त भोजन की मात्रा बढ़ाएं. फाइबरयुक्त आहार प्रतिरोधक प्रणाली के नियमन में अहम भूमिका निभाता है. इस की वजह से कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारी, मधुमेह, कैंसर और मोटापे का खतरा कम होता है.

– तय मात्रा में लेकिन नियमित तौर पर दूध का सेवन करें. दूध में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता होती है, जो हड्डियों के लिए खासतौर पर जरूरी हैं. यह हमारे शरीर से अशुद्ध चीजों को बाहर निकालने के दौरान शरीर को मजबूत बनाता है.

– प्रतिदिन सुबह गरम पानी में नीबू और शहद मिला कर पीएं. यह पाचनतंत्र को सक्रिय करता है और कब्ज से दूर रखने में मदद करता है.

– विटामिंस महत्त्वपूर्ण पोषक हैं, जिन का शरीर अपनेआप पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं कर सकता. इसलिए आहार में विटामिंस संतुलित मात्रा में होने जरूरी हैं.

शरीर से हानिकारक तत्त्वों को निकालने में सोने की भी अहम भूमिका होती है. जब हम एक बच्चे की तरह सोते हैं तो सभी कोशिकाओं और ऊतकों में समुचित औक्सीजन का संचार होता है. औक्सीजन की उपलब्धता सभी आवश्यक अंगों को अच्छी तरह चलाने में मदद करती है. यह त्वचा को कोमल एवं आंखों को चमकदार बनाती है.

– सोनिया नारंग, पोषण विशेषज्ञा, ओरिफ्लेम इंडिया

फिल्म रिव्यू : डेथ इन ए गंज

कहानीकार मुकुल शर्मा ने सत्तर के दशक में एक लघु कहानी लिखी थी, जिस पर उनकी बेटी व अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा बतौर निर्देशक फिल्म ‘‘डेथ इन ए गंज’’ लेकर आयी हैं,जो कि बंगला फिल्मों की परिपाटी वाली फिल्म कही जा सकती है.

जब इंसान को बार बार अपमानित किया जाए या कुचला जाए, तो यह सब किसी भी इंसान के लिए भुलाना मुश्किल होता है. ऐसे में इंसान डिप्रेशन का शिकार हो खुद को ही खत्म कर लेता है. इस बात को यह फिल्म बेहतरीन ढंग से चित्रित करती है.

कहानी 1979 की रांची के पास मैक्लुस्की गंज में रहने वाले ओ पी बख्शी (ओमपुरी) और मिसेस अनुपमा बख्शी (तनूजा) के घर पर छुट्टी बिताने आने वाले रिश्तेदारों में से एक नंदू (गुलशन देवैया) के भाई शुतु (विक्रांत मैसे) के इर्द गिर्द घूमती है. इस घर में नंदू (गुलशन देवैया), बोनी (तिलोत्मा शोम), मिमी (कलकी कोचलीन), ब्रायन (जिम सर्भ), तानी (आर्या शर्मा) व शुतु (विक्रांत मैसे) जमा हुए हैं.

इस परिवार में रहने आने वाले यह सभी एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं. मगर इनके बीच जो संबंध हैं, उससे एहसास होता है कि इनमें आपस में आत्मीयता का अभाव है. इन सभी की अपनी समस्याएं और परेशानियां हैं, जिन्हें कोई दूसरा समझ नहीं पाता. यह सभी पिकनिक मनाने आए हैं, मगर सभी तन्हा व परेशान हैं.

शुतु अपनी समस्याओं से जूझ रहा है. वह पढ़ाई में असफल हो चुका है, तो कहीं न कहीं डिप्रेशन का शिकार है. उसकी मां भी उसके बर्ताव से परेशान है और अपनी बहन अनुपमा बख्शी को पत्र लिखकर मदद मांगती है. शुतु को सभी अपमानित व कुचलने का ही प्रयास करते हैं. सभी उस पर अपनी धौंस जमाते हैं. कहानी आगे बढ़ती है, तो पता चलता है कि गर्म दिमाग के विक्रम की शादी हो गयी है और विक्रम ने अपनी पत्नी को सोने की पायल पहनने के लिए दी है. इसके बावजूद विक्रम व मिमी के बीच अवैध संबंध हैं.

एक दिन जब व्रिकम अपनी पत्नी के सामने मिमी की अनदेखी करता है, तो मिमी बहाने से शुतु का अपने कमरे में ले जाती है और उसके यौन क्रीड़ा कर अपनी प्यास बुझाती है. शुतु को लगता है कि मिमी उससे प्यार करने लगी है. दोनों दूसरे दिन घने बाग में जाकर प्यार करने के साथ साथ शारीरिक भूख मिटाते हैं. उसके दूसरे दिन विक्रम का साथ पाते ही मिमी भी शुतु को अपमानित कर विक्रम के संग चल देती है. इससे शुतु व्यधित होता है और ओ पी बख्शी से बंदूक छीनकर खुद को सभी के सामने गोली मार लेता है. उसकी मौत हो जाती है.

फिल्म की गति धीमी है, मगर सशक्त कहानी व पटकथा के साथ ही उत्कृष्ट निर्देशन के चलते फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहती है. बंगला पृष्ठभूमि के सभी किरदार

अंग्रेजी,बंगला व हिंदी बोलते हुए नजर आते हैं. इंसानी रिश्तों, उनके अंदर की कसक आदि का बेहतरीन चित्रण है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो बार बार कुचले जा रहे व अपमानित हो रहे शुतु के किरदार में विक्रांत मैसे ने जान डाल दी है. रणवीर शोरी, कल्की कोचलीन व बाल कलाकार आर्या शर्मा ने भी उल्लेखनीय अभिनय किया है. स्व. ओम पुरी व तनूजा के अभिनय की तो हर कोई हमेशा तारीफ करता है. इसमें भी इन दोनों ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है.

एक घंटे 44 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘ए डेथ इन ए गंज’’ का निर्माण अषीश भटनागर विजय कुमार स्वामी, हनी त्रेहान, अभिषेक चौबे तथा पटकथा लेखन व निर्देशन कोंकणा सेन शर्मा ने किया है. संगीतकार सागर देसाई, कैमरामैन सिरसा रे तथा कलाकार हैं, ओम पुरी, तनूजा, विक्रांत मैसे, रणवीर शोरी, तिलोत्मा शोम, गुलशन देवैया, जिम सर्भ, आर्या शर्मा व अन्य.

फिल्म रिव्यू : डियर माया

बौलीवुड में कभी मनीषा कोईराला की गिनती अति खूबसूरत व बेहतरीन अदाकारा के रूप में हुआ करती थी. पर कैंसर की बीमारी के चलते वह लंबे समय तक अभिनय से दूर रहीं. अब कैंसर की बीमारी से लड़कर जीत हासिल करने के बाद नई जिंदगी की शुरुआत करते हुए उन्होंने फिल्म ‘‘डियर माया’’ से अभिनय में वापसी की है. जिसे देखकर कहा जा सकता है कि मनीषा कोईराला ने वापसी के तौर पर गलत फिल्म का चयन किया है. कहानी, पटकथा व निर्देशन हर स्तर पर यह कमजोर फिल्म है. फिल्म में किसी भी किरदार को सशक्त तरीके से नहीं गढ़ा गया है. फिल्म का सशक्त पक्ष शिमला की लोकेशन मात्र ही है.

फिल्म की कहानी शिमला की है, जहां दो लड़कियां एना (मदीहा ईमाम) और ईरा (श्रेया चैधरी) जो कि आपस में बहुत गहरी दोस्त हैं, उनके बीच पड़ोस में रहने वाली माया (मनीषा कोईराला) हमेशा चर्चा का विषय रहती हैं. माया हमेशा अपने बड़े से बंगले की चार दीवारी के अंदर कैद रहती हैं. ज्यादातर समय वह घर के अंदर बंद रहकर काले या नीले रंग की पोशाक पहनने वाली गुड़िया बनाती रहती हैं. उन्होंने अपने घर के अंदर काफी पक्षियों को पिंजरे में कैद कर रखा है. जिनकी देखभाल करने के लिए एक बूढ़ी नौकरानी उनके साथ रहती है. माया का जीवन अवसाद से भरा हुआ है. खुशी नाम की कोई चीज नहीं है. एना की मां हमेशा एना को समझाती है कि वह ईरा से दूर रहे. क्योंकि ईरा आत्मकेंद्रित लड़की है, वह सिर्फ अपने बारे में सोचती है. वह कभी भी एना को नुकसान पहुंचा सकती है. पर एना को यह सब गलत लगता है.

एना की मां (इरावती हर्षे) से एना व ईरा को पता चलता है कि माया के पिता की मौत के बाद माया के चाचा ने उसकी मां व उसे इतनी तकलीफें दी थी कि एक दिन माया की मां कहीं चली गयी. उसके बाद माया के चाचा ने उस पर भी अत्याचार किया. माया के चाचा के गुस्से की वजह से सभी डरते थे. माया के चाचा की नजर माया की संपत्ति पर रही, जिसके चलते उन्होंने माया की शादी नही होने दी और माया से कहा कि लड़के ने उसे अस्वीकार कर दिया.

सब कुछ जानने के बाद ईरा व एना निर्णय लेते हैं कि वह माया के जीवन में खुशियां भरेंगे. काफी सोचविचार कर ईरा व एना, माया को देव नामक काल्पनिक युवक के नाम से प्रेम पत्र लिखना शुरू कर देती हैं. इन प्रेम पत्रों में देव लिखता है कि किस तरह वह उन्हें पसंद करने लगा था. पर उसके चाचा ने ही उन्हे मिलने नहीं दिया. वगैरह..धीरे धीरे माया की जिंदगी में बदलाव आने लगता है. पर ईरा को यह बर्दाश्त नही कि सब कुछ एना कर जाए, इसलिए वह भी एक पत्र देव की तरफ से लिखकर उस लिफाफे में भेजती है, जिस पर दिल्ली का पता लिखा है. उसके बाद माया शिमला में अपना घर व सारा सामान बेचकर अपने कुत्तों के साथ दिल्ली पहुंच जाती है. इधर एना परेशान है कि माया दिल्ली में क्या करेंगी.

सारा सच जानकर एना के माता पिता नाराज होकर उसे दिल्ली में होस्टल में रहकर पढ़ने भेज देते हैं. एना अपनी तरफ से माया को तलाशने की कोशिश करती है. छह वर्ष बीत जाते हैं. अंततः वह दिल्ली की दीवारों पर माया की तस्वीर के साथ गुमशुदगी के बारे में पोस्टर चिपका देती है. माया बताती हैं कि उसके साथ दिल्ली में क्या क्या हुआ और आखिर उसे एक देव कैसे मिला.

फिल्म में दो सहेलियों की दोस्ती, बनते बिगड़ते रिश्ते, प्रेम के साथ गुमशुदगी का मसला भी है. मगर सब कुछ बहुत ही सतही स्तर पर है. फिल्म बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है. इंटरवल के बाद तो फिल्म एकदम शिथिल हो जाती है. फिल्म को एडीटिंग टेबल पर छोटा करने की जरुरत थी. अति कमजोर कहानी को बेहतर बनाया जा सकता था. गुमशुदगी के मसले पर काफी कुछ कहा जा सकता था, पर यह फिल्म चुप रहती है. पटकथा व निर्देशन में भी काफी कमियां हैं. माया के शिमला से दिल्ली पहुंचने व गायब रहने का रहस्य भी ठीक से नहीं उभरता. प्रभाव हीन संवाद व गीत फिल्म को स्तरहीन बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो मनीषा कोईराला ने अपनी तरफ से बेहतर परफार्मेंस देने की कोशिश की है, मगर जब किरदार सही ढंग से न लिखा गया हो, पटकथा कमजोर हो, तो कलाकार भी बेबस हो जाता है. एना की मां के किरदार में इरावती हर्षे ने अच्छा काम किया है. श्रेया चौधरी व मदीहा ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.

दो घंटे ग्यारह मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘डियर माया’’ की निर्देशक सुनैना भटनागर तथा कलाकार हैं-मनीषा कोईराला, ईरावती हर्षे, श्रेया चौधरी, मदीहा इमाम व अन्य.

फिल्म रिव्यू : बेवाच

एक्शन कामेडी फिल्म ‘‘बेवाच’’ की कहानी इसी नाम के एक लोकप्रिय शो पर आधारित है. मगर अफसोस की बात है कि नब्बे के दशक के इस लोकप्रिय टीवी शो की तुलना इस फिल्म के साथ नहीं की जा सकती. इस फिल्म में एकशन की भरमार है. बंदूकें चल रही हैं. लाशे मिल रही हैं. महिला पात्रों को छाती दिखाना अनिवार्य सा लगता है. गालियां भी हैं. हास्य के नाम पर फूहड़ता के अलावा कुछ नही है. जिसके चलते भारत में ‘वयस्क’ तथा विदशों में यह ‘‘आर’’ श्रेणी की फिल्म है.

विदेशो में समुद्री बीच और उसके किनारे को ‘बेवाच’ कहा जाता है. यह कहानी फ्लोरीडा के एम्राल्ड बे की है. जहां पर ‘लाइफ गार्डस’ यानी कि जीवन रक्षक के रूप में मिच बुचन्नान (द्वायने जान्सन) की टीम कार्यरत है. 500 से अधिक लोगों की जान बचा चुके मिच लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. इस बात से स्थानीय पुलिस अफसर गार्नेर (याहया अब्दुल मस्तीन) और मिच के उच्चाधिकारी कैप्टन थोर्पे (रोब हुबेल) नाराज रहते हैं. एक दिन सुबह सुबह समुद्री बीच पर सैर करते समय हंटले क्लब के सामने मिच को ड्रग्स का एक छोटा सा पैकेट मिलता है. अब हंटले क्लब की मालकिन विक्टोरिया (प्रियंका चोपड़ा) हैं.

इधर ‘लाइफ गार्डस’ का हिस्सा बनने के लिए कई लोग प्रयासरत हैं. इसमें से पूर्व ओलंपिक तैराक मैट ब्राड (जैक इफ्रान) भी हैं, जो कि बेरोजगार हैं. उसे शराब पीने की बुरी लत है. मिच का उच्चाधिकारी जान बूझकर मैट ब्राड को ‘लाइफ गार्ड’ टीम का हिस्सा बनाने के लिए मिच से कहता है. मिच को न चाहते हुए भी रॉनी (जोन बास) और क्विन (अलेक्जेंडर ददारियो) के साथ ब्राड को भी अपनी टीम से जोड़ना पड़ता है. रॉनी की प्रेमिका सी जे पारकर (केली रोहब्राच) भी हैं. जबकि क्विन पर ब्राड फिदा है.

उधर मिच को इस बात का शक हो चुका है कि विक्टोरिया क्लब की आड़ में ड्रग्स का कारोबार चला रही है. जब बीच समुद्र में खड़े याच्ट में आग लग जाती है, तो मिच के आदेश का उल्लंघन कर ब्राड आग में कूदता है, बड़ी मुश्किल से उसे सी जे पारकर बचाती है. जबकि याच्ट पर लगी आग से एक मृत व्यक्ति को लाया जाता है, जिसकी पहचान शहर के एक अधिकारी के रूप में होती है. मिच इस इंसान के शरीर की जांच करना शुरू करता है, तो पुलिस अफसर गार्नेर उसे रोकता है. पुलिस अफसर का तर्क है कि अपराध की जांच करना उसका दायित्व है, जबकि मिच का दायित्व सिर्फ लाइफ गार्ड की ही है. ब्राड भी पुलिस अफसर का साथ देता है. परिणामतः ब्राड तथा मिच का साथ देने वाले अन्य लाइफ गार्डस के लोगों के बीच दुराव पैदा हो जाता है.

विक्टोरिया द्वारा आयोजित पार्टी में ब्राड शराब पीकर बहक जाता है, तब मिच भीड़ के सामने ब्राड का अपमान करता है. दूसरे दिन नशा उतरने पर ब्राड को गलती का अहसास होता है कि वह अपनी बुरी आदतों के चलते ही गरीब हुआ है. वह मिच से माफी मांगकर एक मौका देने के लिए कहता है. मिच उसे माफ कर देता है.

मिच अपनी तरफ से विक्टारिया के खिलाफ जांच कर रहा है. वह एक दिन ब्राड व क्विन को लेकर उस शवग्रह में जाता है, जहां याच्ट से मिली लाश पर विक्टोरिया के आदमी गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट रख रहे होते हैं. सारी बातें क्विन अपने मोबाइल में रिकार्ड कर लेती है, पर ऐन वक्त पर उनकी मौजूदगी उजागर हो जाती है. फिर विक्टोरिया के आदमी यानी कि गुंडे मोबाइल तोड़कर सारे सबूत मिटा देते हैं. मिच पुलिस अफसर के पास पहुंचता है, पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं. बल्कि मिच का उच्चाधिकारी उसे नौकरी से बाहर कर ब्राड को मुखिया बना देता है. उसके बाद ब्राड ‘लाइफ गार्डस’ के बाकी सदस्यों के साथ मिलकर विक्टेारिया के खिलाफ लग जाता है, ऐन वक्त पर वह मिच से मदद मांगता है. अंत में विक्टोरिया के ड्रग्स साम्राज्य का खात्मा हो जाता है. मिच को पुनः ‘लाइफगार्डस’ का मुखिया बना दिया जाता है.

कथानक स्तर पर कोई नवीनता नहीं है. बौलीवुड में इस तरह के कथानक पर कई फिल्में बन चुकी हैं. फिल्म में हास्य व एक्शन कुछ भी सही ढंग से नहीं उभरता. वैसे फिल्म को तहस नहस करने में कुछ काम सेंसर बोर्ड ने भी किया है. फिल्म में कोई भी कलाकार सही ढंग से हास्य दृश्यों को नहीं निभा पाया. जैक इफ्रान पटकथा में बंधे हुए नजर आते हैं. क्योंकि वह भी अपने अभिनय का प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं. फिल्म के महिला पात्र तो महज खानापूर्ति के लिए ही हैं. कुछ महिला पात्र तो समुद किनारे बिकनी या अर्धनग्नावस्था में घूमने के लिए नजर आनी ही चाहिए. परिणामतः बेहतरीन कलाकारों की मौजूदगी भी इस फिल्म को बाक्स आफिस पर बुरी तरह से डूबने से कोई नहीं बचा सकता.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म ‘‘बेवाच’’ में खलनायक विक्टोरिया के किरदार में प्रियंका चोपड़ा को देखकर तरस आता है कि क्या वह इतना छोटा व घटिया काम करने के लिए ही हौलीवुड फिल्म से जुड़ी हैं. खलनायिका के रूप में उनका किरदार सही ढंग से लिखा ही नहीं गया है, वह सशक्त किरदार के रूप में नहीं उभरता है. उपर से प्रियंका चोपड़ा का अभिनय भी सतही ही है. महज बोल्ड पहनावा व मेकअप ही अभिनय का हिस्सा नहीं होता, यह बात हर अभिनेत्री को याद रखनी चाहिए. इस फिल्म से प्रियंका चोपड़ा के कम से कम भारतीय प्रशंसक तो काफी निराश होंगे.

एक घंटे 56 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘बेवाच’’ का निर्माण इवान रैतमन, मिचाइल बर्क, डगलस ने किया है. जबकि भारत की तरफ से ‘‘वायकाम 18’’ जुड़ा हुआ है. निर्देशक सेठ गोरडन, पटकथा लेखक दमियान शनन व मार्क स्विफ्ट, संगीतकार क्रिस्टोफर, कैमरामैन इरिक स्टीलबर्ग तथा कलाकार हैं-द्वायने जानसन, याह्या अब्दुल मस्तीन, प्रियंका चोपड़ा,  जोन बास, अलेक्जेंडर ददारिया, केली रोहब्राच, रोब हुबेल व अन्य.

क्या है मौनी के परफेक्ट फिगर का राज

कलर्स के शो नागिन 2 की नागिन मौनी रॉय को कौन नहीं जानता. मौनी नागिन में अपनी एक्टिंग के साथ-साथ बेहतरीन फिगर के लिए भी जानी जाती हैं. इस बेहतरीन फिगर का राज हाल ही में मौनी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट के जरिए खोला है. दरअसल मौनी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक तस्वीर पोस्ट की है जिसमें वो जिम में कड़ी मेहनत करती हुई दिख रही हैं.

मौनी ने जिम में स्ट्रेचिंग करते हुए अपनी एक तस्वीर पोस्ट की है जिसमें वो बड़े ही साहसी तरीके से स्ट्रेचिंग करती दिख रही हैं. इस फोटो के साथ उन्होंने कैप्शन दिया है “एंड देन वी जिम”. अपनी पसंदीदा नागिन को इस तरह स्ट्रेचिंग करते देख उनके कई फैंस ने कमेंट किए हैं. उन्हीं में से एक ने कमेंट किया है “बी केयरफुल”.

मौनी ने टीवी पर अपने करियर की शुरुआत 2007 में क्योंकि सास भी कभी बहू थी से की थी. इस शो में वो बॉलीवुड एक्टर पुलकित सम्राट के अपोजिट नजर आईं थी.

देवों के देव महादेव में मोहित रैना के अपोजिट आने के बाद उन्हें काफी पसंद किया जाने लगा. नागिन में शिवन्या और शिवांगी के किरदार के बाद तो वो घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गई हैं.

 

 

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संजय दत्त की फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू करेंगी अंकिता!

टेलीविजन एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे के फैन्स के लिए एक अच्छी खबर है. मीडिया में छाई रिपोर्ट के मुताबिक, अंकिता की झोली में फाइनली एक फिल्म आ चुकी है. कहा जा रहा है कि अंकिता को बॉलीवुड स्टार संजय दत्त की अगली फिल्म ‘मलंग’ के लिए साइन कर लिया गया है. हालांकि, इससे पहले भी अंकिता के बॉलीवुड में डेब्यू की खबरें आई थीं लेकिन अब तक अंकिता बड़े पर्दे पर नहीं उतर पाईं.

बता दें कि सबसे पहले शाहरुख खान की फिल्म ‘हैप्पी न्यू इयर’ से अंकिता के बॉलीवुड डेब्यू की खबरें आई थीं, जिसमें यकीनन बात नहीं बन सकी. इसके बाद संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित अगली फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर खबर आई कि इस फिल्म से वह बॉलीवुड में अपने सफर की शुरुआत कर सकती हैं, लेकिन यहां भी उनके फैन्स को निराश ही होना पड़ा. अब अंकिता को बॉलीवुड में देखने की चाह रखने वाले उनके फैन्स का यह सपना शायद जल्द पूरा हो.

हालांकि, इस खबर को लेकर अभी तक न तो अंकिता ने और न ही डायरेक्टर ओमंग कुमार ने कुछ कन्फर्म किया है, लेकिन उनके फैन्स उम्मीद करते हैं कि इस बार सब कुछ सही हो और वे अपनी चहेती एक्ट्रेस को बड़े पर्दे पर देख सकें. मशहूर टीवी सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ के बाद से अब तक अंकिता ने किसी और शो के लिए काम नहीं किया है.

मैंने अपनी शर्तों पर काम किया है : प्रियंका चोपड़ा

फिल्म ‘फैशन’ से चर्चित हुई अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने बॉलीवुड और हॉलीवुड में अपनी एक खास जगह बना ली है. देश हो या विदेश हर जगह उनके फैन फौलोवर्स की संख्या लाखों-करोड़ों में है. मिस वर्ल्ड बनने के बाद उन्हें पहचान मिली और इसे उन्होंने केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में सिद्ध कर दिया कि वह एक मंझी हुई अदाकारा हैं.

अभिनय में उनका शुरूआती दौर अधिक अच्छा नहीं था, लेकिन उनकी लगन और मेहनत उन्हें यहां तक ले आई. आज वह नंबर वन की अभिनेत्री हैं. उन्होंने हर तरह के किरदार निभाए हैं. प्रियंका अपने देश लौटने के बाद यहां की फिल्मों और अपने प्रोडक्शन हाउस को लेकर व्यस्त हैं. उन्होंने कई साल अमेरिका में गुजारे, लेकिन उन्हें बॉलीवुड और अपना परिवार सबसे अधिक पसंद है.

प्रियंका का हॉलीवुड में जाना एक इतफाक नहीं था, बल्कि उनकी इच्छा थी कि वह उनके काम करने के तरीका और वहां की इंडस्ट्री को अच्छी तरह समझ सकें. उनसे मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.

घर लौटने के बाद पहला काम क्या किया?

उस दिन मैं घर पर देर से पहुंची और बालकनी में गयी. वहां की सारी चीजें, बुक शेल्फ सब ठीक किया. सारी खिड़कियां खोली और बड़ा अच्छा महसूस हुआ. मेरी मां हमेशा अमेरिका जाती रहती है और बातें होती रहती है. इसलिए उससे अधिक यहां की मिट्टी को मैंने ‘मिस’ किया.

हॉलीवुड में एंट्री करना कितना मुश्किल था?

सीरियल क्वांटिको की पॉपुलैरिटी ही इसकी खास वजह है. वहां मुझे बुलाया गया और मैंने जब फिल्म ‘बेवाच’ की कहानी सुनी तो मुझे पसंद आई थी. मैं इसमें विलेन हूं और ये किरदार मेरे लिए नया था. मुझे हमेशा से चैलेंजिंग और नयी भूमिका करना पसंद है. हालांकि कई हिंदी फिल्म जैसे ‘साथ खून माफ’ और ‘ऐतराज’ में विलेन की भूमिका मैंने निभाई है, पर ये उससे अलग है.

वहां काम करने का ढंग अलग नहीं है. वहां भी फिल्म मेकिंग ऐसे ही होता है, लेकिन वहां की बजट अलग है, हर काम बड़े स्तर पर होता है और समय से हर काम खत्म हो जाता है. भाषा में केवल फर्क है. इसके अलावा टीवी और फिल्म में काफी अंतर है, जो यहां भी है.

हॉलीवुड में आपने बॉलीवुड की कलाकार के रूप में काम किया, क्या आप किसी प्रकार की अलगाववाद की शिकार हुईं?

वहां के लोगों को बॉलीवुड के बारें में जानकारी कम है, हमारी फिल्मों में कहानी के साथ-साथ कैसे डांस, डांसर और गाना आ जाता है, ये कैसे कहानी को आगे बढाती है, ये उन्हें समझ नहीं आती. ऐसे में उन्हें समझान पड़ा कि हमारी संस्कृति में गाना बजाना बचपन से होता है. बच्चा पैदा हो या शादी ब्याह, गाना बजाना और डांस हर जगह होता है. कही भी संगीत बजे, हम डांस कर लेते है. इस तरह उन्हें समझ आया और उन्होंने मेरी कई हिंदी फिल्में, जिसमें ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘बर्फी’ देखी. उन्हें मेरी एक्टिंग पसंद आई.

इसके अलावा मुझे अपना काम पता है और वह मुझे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने सिखाया है, इसलिए हॉलीवुड में काम करते वक्त कुछ कमी न हो, इसका ध्यान रखती थी. मुझे कभी भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि मेरी स्किन ब्राउन है और वे मुझे अलग समझते हैं. वहां मेरे कई अच्छे दोस्त बन चुके हैं, जो मेरी सहायता करते हैं.

आपको मराठी फिल्म ‘वेंटिलेटर’ के लिए नैशनल अवार्ड मिला, इस बारें में क्या कहना चाहती हैं?

मुझे खुशी है कि मुझे अवार्ड मिला. मैं इस फिल्म की कहानी से बहुत अधिक प्रेरित थी. इसे मैंने अपने पिता के लिए बनायी थी. मुझे याद आता है जब मेरे पिता वेंटिलेटर पर थे, तब आई सी यू के बाहर यही सब हो रहा था. मेरे पिता के परिवार के लोग पंजाबी हैं और मेरे मां के तरफ के लोग बिहारी हैं, सबके अलग-अलग विचार आ रहे थें. इस तरह ‘टू स्टेट्स’ की बातचीत चल रही थी.

इसके अलावा मैंने जिस वजह से अपनी प्रोडक्शन कंपनी बनायी और वह कामयाब हो रही है, तो खुशी की बात है, क्योंकि जब मैं इंडस्ट्री में आई थी तो मुझे ‘हेल्प’ करने वाला कोई नहीं था. मैं मिस वर्ल्ड थी इसलिए फिल्में मिली. मुझे अपने आप को परिचय करवाना पड़ा. इसलिए मैं अपनी कंपनी में नए लेखक, निर्देशक, संगीतकार, गायक और कलाकार को मौका देती हूं. मैं चाहती हूं कि फिल्में छोटी भले ही हो पर अच्छी हो.

हिंदी फिल्मों को कितना मिस करती हैं? आगे की प्लानिंग क्या है?

हिंदी फिल्म और इस इंडस्ट्री को मिस करती हूं, यहां मेरा परिवार भी है. आगे मैं कुछ स्क्रिप्ट पढ़ रही हूं, पसंद आने पर करुंगी. इसके अलावा मैं अपनी प्रोडक्शन कंपनी में कई रीजनल फिल्में जैसे मराठी, सिक्किम, बांग्ला, कोंकणी आदि बनाउंगी. इसमें सारे कलाकार उसी जगह से लेने की कोशिश की जाएगी, ताकि वे उससे जुड़ सकें. सिक्किम में तो मेरी पहली प्रोजेक्ट होगी, क्योंकि वहां फिल्म इंडस्ट्री नहीं है.

गर्मियों में आप अपनी देखभाल कैसे करती हैं? आपकी फिटनेस का राज क्या है?

वहां तो ठण्ड का मौसम हमेशा रहता है. यहां गर्मी में एसी में रहती हूं, लेकिन मुझे गर्मी का मौसम पसंद है. मेरा कोई खास डाइट प्लान नहीं होता, मैं सब खाती हूं, लेकिन कुछ सावधानियां रखनी पड़ती है ताकि वजन न बढ़े. प्रोटीन अधिक कार्बोहाइड्रेट कम लेना पड़ता है. मुझे घर के गरम-गरम फुल्के बहुत पसंद हैं. इसके अलावा विदेश में भी मेरे साथ रसोइयां जाती हैं, जो वहां खाना बनाती है. पानी और लिक्विड गर्मियों में अधिक लेती हूं.

मेरी जींस अच्छी है, इसलिए हमेशा फिट रहती हूं. इसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है. 40 की उम्र तक मेरे पिता का स्वास्थ्य बहुत अच्छा था. मेरी मां भी फिट है और मेरी प्रोडक्शन हाउस पूरी तरह से सम्हालती है. अपने वजन को नियंत्रित रखने के लिए मैं वर्क आउट करती हूं, सही आउट फिट पहनती हूं.

आप अपनी जर्नी को कैसे देखती हैं? एक्टर और एक्ट्रेस में पारिश्रमिक अंतर को कैसे देखती हैं?

मैंने जो फिल्में की, उसमें सफल फिल्में अधिक थी और आज मैं यहां पहुच चुकी हूं, मैंने कभी ट्रेंड फौलो नहीं किया. लीड करने की कोशिश की. उसे मैंने एन्जॉय किया और इसकी क्रेडिट बहुत सारे लोगों को जाता है, जिन्होंने मेरी असफल फिल्मों के बाद भी मुझे सहयोग दिया आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. मैं नए कलाकारों को भी यही संदेश देना चाहती हूं कि जो भी काम मिले, उसमें कुछ नया लाने की कोशिश करें, ज्ञान बढायें, घबराएं नहीं. काम अच्छा मिले तो चमत्कार होकर ही रहता है.

पूरा विश्व पुरुष प्रधान है. जितना यहां महिला और पुरुषों की समानता के लिए लड़ाई लड़ी जाती है, वहां भी वैसी ही बहस चलती रहती है. सालों से यही चल रहा है, लेकिन यह दौर अब खत्म हो रहा है. आजकल एक्ट्रेस की फिल्में भी सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर रही है, उम्मीद है आगे दो सौ और तीन सौ करोड़ भी पार कर लेगी. इसमें दर्शकों सबसे अधिक जिम्मेदार है. उन्हें अपनी टेस्ट बदलनी होगी, उन्हें महिला लीड फिल्मों को देखने के लिए आगे आना होगा. इससे जो एक्टर और एक्ट्रेस के बीच में मेहनताना में अंतर है वह कम होगा, क्योंकि पूरे विश्व  में एक्टर को एक्ट्रेस से अधिक पारिश्रमिक मिलता है, लेकिन इतना सही है कि मुझे वहां के लोगों ने बहुत प्यार दिया और मुझे मेहनताना भी सही मिला. विदेश में भी मैंने शुरू से ही अपनी शर्तों पर काम किया है.

आप सोशल मीडिया पर कितनी एक्टिव हैं और किसी पोस्ट पर कितनी सतर्कता बरतती हैं ताकि बाद में कंट्रोवर्सी न हो?

इसके लिए मैं मीडिया को जिम्मेदार मानती हूं, जो हर पोस्ट को आर्टिकल बना लेती है. मैंने अगर कुछ पोस्ट किया है तो मेरे 1.5 मिलियन फौलोअर्स ने उसे पढ़ लिया है. मीडिया उसे अगर तवज्जों न दे तो कोई बात आगे नहीं बढ़ेगी. सभी को अपनी बात रखने का हक है. मेरे पेरेंट्स ने ये मुझे बचपन से सिखाया है कि किसी भी सही बात को कहने में कभी डरो नहीं और मैं वैसा ही करती हूं. मैं आगे भी यूथ को कहना चाहती हूं कि कुछ सही या गलत नहीं होता, डेमोक्रेटिक कंट्री में सब अपनी राय दे सकते हैं और सब कुछ परिप्रेक्ष्य होता है.

बिग बी होस्ट करेंगे ‘कौन बनेगा करोड़पति’ सीजन 9

बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन जल्द ही छोटे पर्दे पर वापसी करने वाले हैं. अमिताभ सोनी एंटरटेनमेंट के मशहूर शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के होस्ट के तौर पर टीवी पर वापसी करेगें. कौन बनेगा करोड़पति का ये 9वां सीजन होगा.

जी हां, पिछले दिनों खबर थी कि ये शो अब ऐश्वर्या या फिर माधुरी होस्ट कर सकती हैं लेकिन अब कंफर्म हो गया है कि अमिताभ बच्चन ही इसे होस्ट करेंगे.

शो का शेड्यूल बेहद ही कड़ा होने वाला है इसलिए शो के निर्माता बेहद मेहनत कर रहे हैं. बच्चन ने शो की शूटिंग के लिए 17 दिन दिए हैं. 10 दिन अगस्त में और 7 दिन सितंबर में. शो में कुल 30 एपिसोड होने हैं इसलिए या तो अमिताभ 17 दिन में 30 एपिसोड शूट करेगें या अपने टाइम को आगे बढाएगें. कौन बनेगा करोड़पति 2000 में शुरू हुआ था और दर्शकों के बीच काफी मशहूर हो गया था.

बता दें कि साल 2000 में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की शुरुआत हुई थी. इस शो ने ना सिर्फ लोगों के दिलों पर राज किया ही बल्कि कई लोगों की जिंदगी भी इस शो ने संवार दी. टीआरपी की दौड़ में भी इस शो ने झंडे गाड़ दिए थे.

रामायण और महाभारत के बाद ये पहला टीवी शो था जिसके लिए तमाम लोगों की निगाहें टीवी की तरफ मुड़ जाती थीं. दर्शक इस शो में अमिताभ को होस्ट के तौर पर देखना काफी पसंद करते हैं लेकिन ये लंबे ब्रेक के बाद टीवी पर आता है. शो का पिछला सीजन 2014 में प्रसारित हुआ था जिसके बाद अब ये फिर से दर्शकों के बीच छाने के लिए तैयार है.

पिछले दिनों खबर थी कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ को इस बार नया होस्ट मिलने वाला है. खबर यहां तक थी कि रणबीर कपूर, अमिताभ बच्चन को रिप्लेस करेंगे बाद में रिपोर्ट आई कि उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन या माधुरी दीक्षित इस बार ‘केबीसी’ होस्ट कर सकती हैं.

‘केबीसी’ का अंतिम सीजन 2014 में आया था और अब शो के मेकर्स फिर से नया सीजन लाना चाहते हैं, जो प्राइम टाइम पर प्रसारित होगा.

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