हर निसंतान जोड़े को आईवीएफ की जरूरत नहीं

आजकल लोगों के काम करने के अनियमित घंटे, निष्क्रिय जीवनशैली, तनावपूर्ण जीवन, अपर्याप्त खानपान, अधिक उम्र में विवाह, तंबाकू एवं शराब का सेवन, शारीरिक परिश्रम में कमी होने आदि के कारण वे निसंतानता के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में आईवीएफ एवं आईयूआई जैसी प्रक्रियाएं ऐसे लोगों के लिए काफी लाभप्रद साबित हो रही हैं.

हालांकि निसंतान जोड़ों के लिए केवल आईवीएफ ही एकमात्र विकल्प नहीं, सही और सटीक इलाज से प्राकृतिक रूप से भी संतानसुख प्राप्त हो सकता है. लोगों की यह धारणा होती है कि आईवीएफ द्वारा जन्मा बच्चा अनुवांशिक तौर से जोड़े का नहीं होता, जो गलत है क्योंकि महिलाएं अपने ही अंडे और पुरुष अपने ही शुक्राणु से मातापिता बन सकते हैं. साथ ही, आईवीएफ दर्दरहित प्रक्रिया होती है. इस दौरान रोज के काम भी आसानी से किए जा सकते हैं और इस में अस्पताल में भरती रहने की जरूरत भी नहीं होती है.

निसंतान जोड़ों को बिना देरी के निसंतानता विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श लेना चाहिए. आईवीएफ, आईयूआई, लैप्रोस्कोपी प्रक्रियाओं आदि के बारे में जानना चाहिए. इस के अलावा आईवीएफ कराने से पहले सभी प्रकार की जांचों को करा लेना चाहिए जिस में सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या और आकार एवं स्त्रियों के अंडे की संख्या व गर्भाशय का आकार होता है.

जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब खराब या बंद हो जाती है, वे मां बनने में अक्षम हो जाती हैं. पर यदि लैप्रोस्कोपी से बंद ट्यूब को खोल दिया जाए तो सामान्यतौर पर, आईयूआई या आईवीएफ से मां बनना संभव है.

शून्य शुक्राणु वाले पुरुष भी अपने ही शुक्राणुओं से पिता बन सकते हैं. कम शुक्राणु वाले पुरुष बिना आईवीएफ के सफलता प्राप्त कर सकते हैं. जिन महिलाओं में अंडा बनने की क्षमता कम है, वे भी अपने अंडे से गर्भवती हो सकती हैं, आवश्यकता है केवल सटीक जांच एवं सही उपचार की.

निसंतानता के कारण

आईवीएफ पद्धति से इलाज करवाने वाली महिलाओं में पहले 38 से 45 वर्ष आयुवर्ग की महिलाएं अधिक होती थीं लेकिन बीते कुछ सालों में इस इलाज के लिए आने वाली महिलाओं के आयु समूह में बदलाव आया है. अब कम आयुवर्ग की महिलाएं भी आईवीएफ के लिए आती हैं.

आज के समय में ये तकनीक बांझपन को दूर कर निसंतान दंपतियों के लिए आशा की एक नई किरण है.

किस चिकित्सक से परामर्श लें?

–       निसंतानता विशेषज्ञ से परामर्श लें.

–       आईवीएफ व उस से जुड़ी बातों के बारे में जानें.

–       स्त्रीरोग विशेषज्ञ का परामर्श ही काफी नहीं.

–       उम्र के साथ शुक्राणु कम होने पर विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.    

(डा. पूजा गांधीलेखिका उदयपुर में गीतांजलि फर्टिलिटी सैंटर में आईवीएफ की विशेषज्ञ हैं.)          

चीन की सिंगिंग सेंसेशन हैं ट्यूबलाइट की एक्ट्रेस झू झू

सलमान खान की फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ में उनकी को-स्टार कोई और नहीं बल्कि फेमस चाइनीज एक्ट्रेस और सिंगर झू झू हैं. इससे पहले झू झू, चाइनीज फिल्मों के साथ ही कई हॉलीवुड फिल्मों और अमेरिकन टीवी शो में भी काम कर चुकी हैं और अब ‘ट्यूबलाइट’ के जरिए वह बॉलीवुड में डेब्यू करने जा रही हैं.

इस बेहतरीन एक्ट्रेस के बारे में ऐसी कई बातें हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. जानें झू झू के बारे में कुछ अनसुनी बातें.

बचपन से है पिआनो बजाने का शौक

महज 3 साल की उम्र से ही झू झू ने पिआनो बजाना शुरू कर दिया था. धीरे-धीरे वह इतना अच्छा पिआनो बजाने लगीं कि जूनियर स्कूल में उन्होंने स्टेज पर ब्यूटी एंड द बीस्ट की कहानी को स्टेज पर पिआनो के जरिए परफॉर्म किया.

चाइना की सिंगिंग सेंसेशन हैं झू झू

2005 में झू झू, चीन के एक फेमस म्यूजिक चैनल के साथ जुड़ी और म्यूजिकल प्रोग्राम होस्ट करने लगीं. पेइचिंग में हुए एक लोकल सिंगिंग कॉन्टेस्ट में उनका टैलंट सामने आया और इसके बाद उन्होंने नैशनल लेवल सिंगिंग प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया. 2009 में झू झू का पहला एल्बम लॉन्च हुआ.

हॉलीवुड में भी किया काम

‘क्लाउड ऐटलस’ और ‘द मैन विद द आयरन फिस्ट्स’ जैसी हॉलीवुड फिल्मों में छोटे-छोटे रोल करने के बाद आखिरकार झू झू को अमेरिकन टीवी सीरीज मॉर्को पोलो में मुख्य किरदार निभाने का मौका मिला.

एक काबिल इंजिनियर

एक्टर और सिंगर होने के साथ ही झू झू एक काबिल इंजिनियर भी हैं. झू झू ने पेईचिंग टेक्नॉलजी एंड बिजनस यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया. उनके मेजर सब्जेक्ट्स में इल्केट्रॉनिक्स और इन्फॉर्मेशन इंजिनियरिंग शामिल था.

संगीत में प्रयोग जारी रहेगा : शेखर रावजुआनी

बौलीवुड के गानों को अपनी आवाज दे चुके शेखर रावजुआनी ने हिंदी के अलावा मराठी और गुजराती गानों को भी अपनी आवाज दी है.

8 साल की उम्र से संगीत को अपना साथी बनाने वाले शेखर ने छोटे परदे पर अपने कैरियर की शुरुआत रिऐलिटी शो ‘सारेगामा पा’ के जज से की थी. लेकिन फिल्मी कैरियर की शुरुआत ‘प्यार में कभीकभी…’ गाने से की. यह गाना म्यूजिक लवर्स को बेहद पसंद आया था. लेकिन शेखर को पहचान 2003 में फिल्म ‘झंकार बीट्स’ से मिली. इस फिल्म में उन की गायकी ने उन्हें ‘न्यू टेलैंट हंट आर.डी बर्मन’ का पुरस्कार भी दिलाया था.

संगीत के अलावा अंगरेजी थिएटर में भी काम कर चुके शेखर ने फिल्म ‘नीरजा’ से अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत की थी. फिल्म में सोनम के साथ उन के छोटे से अभिनय की भी प्रशंसा हुई, लेकिन इस के बावजूद उन्होंने अभिनय को कैरियर बनाने में जल्दबाजी नहीं की.

उन के संगीत व ऐक्टिंग के बारे में हुई उन से गुफ्तगू के कुछ अंश पेश हैं.

विशाल के साथ आप की जोड़ी कैसे बनी?

हम दोनों में कोई पारिवारिक संबंध नहीं है. सिर्फ दोस्ती और संगीत का रिश्ता है, जो हम दोनों को आज तक एकसाथ जोड़े हुए है. 1999 में हम दोनों एक साथ आए और कई फिल्मों को संगीत दिया. 2003 में आई फिल्म ‘झंकार बीट्स’ से ले कर ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’, ‘सुलतान’, ‘बैंजो’, ‘बेफिक्रे’ सहित कई सुपरहिट फिल्मों का संगीत हमारे नाम है.

हम दोनों आज भी एकदूसरे का सम्मान करते हैं. हम संगीत को हलके में नहीं लेते. जब हम काम करते हैं, तो न ईगो होता है और न ही प्रतिस्पर्धा की भावना. एक और बात हम दोनों में समान है कि जब किसी फिल्म की धुन बनानी होती है तो हम लोगों के विचार काफी हद तक मिलते हैं.

आप अपने संगीत पर क्या नया प्रयोग  करते हैं?

मैं हमेशा अपने संगीत में नएनए प्रयोग करता रहता हूं जैसे मेरी पिछली फिल्म ‘सुलतान’ हरियाणा की कहानी पर थी तो मैं ने हरियाणवी रागिनी का प्रयोग सुलतान के गाने ‘बेबी को बेस पसंद है…’ पर किया है. इसी तरह हम लोगों ने फिल्म ‘रा वन’ के गाने ‘छम्मक छल्लो…’ को इंटरनैशनल कलाकारों के साथ मिल कर बनाया था. वह गाना हिंदी होते हुए भी अमेरिका, ब्रिटेन में खूब हिट हुआ.

अब आप की ऐक्टिंग कब देखने मिलेगी?

फिल्म ‘नीरजा’ को साइन करने से पहले मेरे पास कई फिल्मों की स्क्रिप्ट्स आई थीं, लेकिन मैं ने साइन नहीं की. जब ‘नीरजा’ में लोगों ने मेरे छोटे से अभिनय की तारीफ की तो अब सोचा है कि अगर अच्छी फिल्म का औफर आता है तो जरूर काम करूंगा. मुझे ऐक्टिंग करने की जल्दबाजी पहले भी नहीं थी और अब भी नहीं है. मैं कुछ अर्थपूर्ण करना चाहता हूं.

आप ने ब्रिटिश नाटकों में भी काम किया है. क्या वे हिंदी नाटकों से अलग होते हैं?

बेशक, रंगमंच की जिम्मेदारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है. मैं ने ब्रिटिश प्ले ‘सिंफनी टू ए लास्ट जैनरेशन’ में काम किया था. उस में मेरा रोल बेहद अलग किस्म का था. मुझे नहीं लगता कि यहां के लोगों को मेरे किरदार के बारे में पता होगा. मैं ने एक ब्रिटिश सिपाही का किरदार निभाया था. इस के मेकअप और हथियार के लिए उन लोगों ने महीनों रिसर्च की. यहां के नाटकों में मैं ने अभी तक काम नहीं किया है, इसलिए मैं कुछ बता नहीं सकता.

लेकिन इतना रोमांटिक चेहरा और सिपाही का रोल क्या यह अन्याय नहीं है?

बिलकुल नहीं. मैं फिल्म ‘नीरजा’ में भी हलकी दाढ़ी रखे था, क्योंकि अगर क्लीनशेव हो गया तो लोग मुझे पहचानेंगे नहीं. सिपाही के रोल के लिए उन्होंने मेरे मेकअप पर महीनों मेहनत की. वे मेरे चेहरे पर एक निशान बनाना चाहते थे. जब मैं पूरे गैटअप में आया तो खुद को न पहचान सका.

आम के शौकीन हैं तो जरूर बनाएं मैंगो भल्ले

सामग्री

2 आम

100 ग्राम मूंग की दाल

1/2 छोटा चम्मच अदरक कद्दूकस किया

200 ग्राम दही

1 बड़ा चम्मच इमली की चटनी

100 ग्राम तेल

1/2 छोटा चम्मच भूना जीरा पाउडर

1 बड़ा चम्मच बेसन

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती की चटनी

शक्कर एवं लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार

नमक स्वादानुसार

विधि

मूंग की दाल को 3 घंटे पानी में भिगो लें. आधी दाल को मिक्सी में मोटी एवं आधी को बारीक पीस लें. एक आम की कतरन कर मिक्सी में चला लें. कांच के प्याले में दाल, 2 बड़े चम्मच आम की कतरन, अदरक, बेसन एवं मसाले डाल कर अच्छी तरह मिला लें.

कड़ाही में तेल गरम कर हाथ से दाल के भल्ले बना तेल में सुनहरा होने तक तल लें. गरम पानी में मैंगो भल्ले डाल दें. दही में आम का पल्प एवं मसाले डाल मथ लें.

दही में मैंगो भल्ले पानी लगे हाथ से दबा कर निकाल कर, इमली की चटनी, नमक, जीरा, मिर्च पाउडर, आम की कतरन, धनियापत्ती की चटनी डाल लें.

फ्रिज में ठंडा कर मैंगो भल्ले पर इमली व धनिया की चटनी, आम की कतरन और जीरा पाउडर डाल कर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: मंजु जैसलमेरिया

खूबसूरती के लिए करें ये एक्सरसाइज

आप कितनी भी खूबसूरत क्यों न हों लेकिन फेस का फैट आपकी ब्यूटी को दबा देता है. चेहरे पर चर्बी की वजह से डबल चिन दिखाई देने लगती है. तो कुछ ऐसे एक्सरसाइज करें जिससे यह फैट खत्म हो जाए.

हा-हा-हा

हा हा हा.. समझ गईं न आप. आपको हंसना है और वो भी खुलकर. फेस को खूबसूरत लुक देने में यह एक्सरसाइज आपके खूब काम आएगी. मुस्कुराएं और फिर मुस्कान के दोनों छोरों को उंगलियों की मदद से स्ट्रेच करें. कुछ देर बाद छोड़ दें. कम से कम पांच बार ऐसा करें. हंसने से फेस की मसल्स टोन और टाइट बनती हैं.

लॉयन फेस

इसे करने के लिए मुंह जितना खोल सकते हैं खोलें, सांस बाहर छोड़ें. आंखें जितनी खोल सकें खोलें. दो से तीन मिनट तक इसी अवस्था में रहें. इसके बाद सामान्य मुद्रा में आकर गहरी लंबी सांस लें.

मुंह को बनाएं गुब्बारा

मुंह में इतनी हवा भरें, जैसे कि गुब्बारा फुलाने के लिए भरते हैं. पांच सेकंड तक इसी पॉजिशन में रहें. पांच सेकंड तक दाएं गाल को दबाएं और फिर बाएं को. फिर नॉर्मल पॉजिशन में आ जाएं. ऐसा पांच से आठ बार करें.

गरदन को सामने की ओर खींचें

अपनी गरदन को सामने की ओर खींचें और पीछे की ओर ले जाएं. गरदन जितना पीछे ले जा सकती हैं, ले जाएं. ऐसा पांच सेकंड के लिए करें. यह एक बेहद साधारण-सा योगासन है. इसे करने से ठुड्डी के नीचे का फैट आपको कम होता महसूस होगा.

नीचे के होंठ से ढ़कें ऊपर के होंठ

अपने निचले होंठ से ऊपरी होंठ को ढकने की कोशिश करें. ऐसा करने से आप चिन वाले हिस्से में खिंचाव महसूस करेंगी. 10 सेकंड तक ऐसा करें. रुकें और फिर से यह आसन करें.

बड़ों के संघर्ष से लें प्रेरणा

सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जीवन में इन दोनों का खासा महत्त्व है. असफलता से अधिकतर लोग घबरा कर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं. ऐसे में हमें बड़ों के संघर्ष से प्रेरणा मिलती है, जिस के सहारे हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते हैं. महात्मा गांधी से ले कर अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, लाल बहादुर शास्त्री और राजेंद्र प्रसाद जैसे बहुत से ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन के जीवन से प्रेरणा ली जा सकती है. ये लोग भी कई बार बचपन से ले कर पढ़ाई और बाकी जीवन में असफल हुए पर हार न मानी.

बड़े लोगों की आत्मकथा या उन के संघर्ष के बारे में जान कर पता चलता है कि सफलता मेहनत के बाद ही मिलती है. इन बड़े लोगों की कहानियों से हमें प्रेरणा मिलती है. उन की राह पर चल कर हम भी सफल हो सकते हैं.

युवावस्था में कैरियर से ले कर निजी संबंधों तक कई बार असफलता हाथ लगती है. काफी मेहनत से पढ़ाई करने के बाद भी कंपीटिशन में सफलता नहीं मिलती. खेल, ऐक्टिंग, डांस और सिंगिंग जैसे कैरियर में भी असफलता ज्यादा और सफलता कम मिलती है. 

ऐसे में जब हम बड़े लोगों के संघर्ष को देखते हैं तो मन मजबूत हो जाता है. हम नए सिरे से मेहनत करने लग जाते हैं. इस के बाद हम दोहरी मेहनत से सफलता के लिए जुट जाते हैं. सही दिशा में किए गए प्रयास से सफलता मिलनी तय है.

असफलता में छिपी सफलता

असफलता में ही सफलता छिपी होती है. जरूरत इस बात की है कि हम यह अवश्य देखें कि किन कारणों से असफलता मिली है. अगर हम सही माने में विचार करेंगे तो साफ पता चल जाता है कि हम क्यों असफल हुए? कई बार अपनी सफलता के लिए हम खुद को जिम्मेदार न मान कर दूसरे पर दोषारोपण करते हैं, जो सही नहीं है. जब तक हम खुद का सही तरह से आत्मविवेचन नहीं करेंगे तब तक हमें असफलता के कारण का पता ही नहीं चलेगा और उसे दूर कर हम सफलता की राह पर आगे नहीं बढ़ सकते. ऐसे में जरूरी है कि हम खुद अपना आत्मविवेचन सही तरह से करें, इसी से सफलता का रास्ता निकलता है.

शिमला में पहचान विमन वैलफेयर सोसाइटी चलाने वाली मनोविज्ञानी बिंदू जोशी कहती हैं, ‘‘जिंदगी की तपिश को मुसकरा कर झेलिए, ‘धूप कितनी भी तेज हो समंदर सूखा नहीं करते.’ असफलता से घबराने की जरूरत नहीं है. बड़े लोग हमारे प्रेरणास्रोत हैं, उन के जीवन के संघर्ष से पता चलता है कि सफल होने से पहले वे कितने प्रयास करते हैं.

‘‘आमतौर पर युवाओं को लगता है कि हम पहली बार में ही सफल क्यों नहीं हो गए. यह सोच ठीक नहीं होती. यही हमें डिप्रैशन का शिकार बना देती है. बी पौजिटिव छोटा शब्द जरूर है, पर इस का असर गहरा है. यह आगे बढ़ने की राह दिखाता है.’’

जरूरी है लगातार प्रयास

 ‘‘लाइफ इज नौट द बैड औफ रोज यानी जीवन सदा खुशहाल नहीं रहता,’’ यह कहती हैं टीचर दीपिका चतुर्वेदी. लखनऊ निवासी दीपिका आगे कहती हैं, ‘‘बिना संघर्ष के सफलता नहीं मिलती. देश को आजाद कराने में हमारे स्वतंत्रता सैनानियों ने लंबे समय तक लड़ाई लड़ी. उन की कहानियों को पढ़ कर हमें पता चलता है कि उन्हें महान बनने में कई बार असफलता मिली और लंबा संघर्ष करना पड़ा. आज की युवापीढ़ी कम मेहनत में सफलता पाना चाहती है, इसीलिए उसे निराशा भी जल्दी मिलती है. यह सोच रखना बहुत जरूरी है कि सफलता आसानी से नहीं मिलती और असफलता से घबराना नहीं चाहिए.‘‘

परिवार का साथ मददगार

एकल परिवारों के बच्चे अपने मन की बात खुल कर नहीं कह पाते, क्योंकि वे दब्बू बन जाते हैं. मातापिता के पास उन के लिए समय की कमी होती है. वे बच्चों के मन का हाल नहीं जान पाते. ऐसे में असफल हो रहे बच्चों को भावनात्मक मदद नहीं मिलती. कहानीकार प्रिया सिंह कहती हैं, ‘‘हमारे घरपरिवार में ही ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जिन्हें असफलता के बाद सफलता मिली है. संयुक्त परिवारों में दादादादी या नानानानी ऐसी बातें बच्चों को बताती थीं.

‘‘अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘बागवान’ में दिखाया गया था कि बच्चे अपने मातापिता के बजाय दादादादी के ज्यादा करीब थे. वे दादादादी को अपने मन की बात आसानी से बताते थे. इसी तरह सामान्य घरों में भी होता था. एकल परिवारों में बच्चे ज्यादा हतोत्साहित होते हैं. संयुक्त परिवारों में यह हालात कम दिखते हैं. परिवार का साथ और देखरेख भी बहुत मददगार होती है.’’

सफलता का ताला खोलती है संघर्ष की चाबी

मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएट दीपाली श्रीवास्तव का मानना है, ‘‘जीवन में सफलता संघर्ष के बाद ही मिलती है. संघर्ष के दौर में जो बातें निराशाजनक होती हैं, सफलता मिलने के बाद वही सब अच्छा लगने लगता है. उस की यादें सुखद हो जाती हैं. हम जब तमाम फिल्म स्टारों की चकाचौंध भरी जिंदगी देखते हैं तो सोचते हैं कि इन लोगों का रहनसहन कितना अच्छा है, लेकिन हमें उस समय यह पता नहीं होता कि यह सफलता उन्हें कितने संघर्ष के बाद मिली है.

‘‘ये लोग जब अपने बारे में बताते हैं तो पता चलता है कि इन का जीवन भी संघर्ष भरा था. वे सड़क पर खड़े हो कर खाना खाते थे, एक छोटे से घर में रहते थे, बस और ट्रेन से सफर करते थे. कई लोगों ने तो यहां तक बताया कि वे संघर्ष के दिनों में कईकई दिन भूखे रहे. संघर्ष के जरिए ही सफलता का ताला खुलता है. बड़े लोगों के संस्मरण हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के साथसाथ निराशा भरे जीवन से बाहर निकालने का काम भी करते हैं.’’

बड़ों की जीवनी प्रेरणादायक

बड़े लोगों का जीवनपरिचय सदा हमारी शिक्षा व्यवस्था का अंग रहा है. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि इस से बच्चों को पता चल जाता था कि महान लोग कैसे सफल हुए. पहले लोगों के पास अवसर कम और साधन सीमित होते थे. ऐसे में सफलता बड़ी मुश्किल से मिलती थी. समाजसेवी शिवा पांडेय कहती हैं, ‘‘प्रेरक प्रसंग, जीवनी और मार्गदर्शक कहानियों का जीवन में काफी महत्त्व होता है. इन्हें पढ़ने के बाद उत्साह का संचार होता है और निराशा का भाव खत्म हो जाता है.

‘‘आज बड़ी संख्या में युवाओं के आत्महत्या के उदाहरण सुनने को मिलते हैं, अगर वे सही माने में सफलता और असफलता के बीच के महत्त्व को समझ जाएं तो ऐसे हालात से बचा जा सकता है. हर क्षेत्र में असफलता होती है. हर महान आदमी को उस से गुजरना पड़ता है. फेल होने के बाद दोगुनी मेहनत की जरूरत होती है. पूरे उत्साह से किया गया प्रयास सफल जरूर होता है. बस, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए.’’

सही दिशा में हो प्रयास

शादी के बाद सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा ले कर मिसेज यूपी बनी इलाहाबाद की काजल माधवानी कहती हैं, ‘‘पेरैंट्स को शुरू से ही बच्चों को ये प्रेरणादायक कहानियां पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. बड़े लोगों की जीवनी बच्चे खुद न पढ़ सकें तो उन्हें पढ़ कर सुनाएं. केवल राजनीति या फिल्म ही नहीं विज्ञान के क्षेत्र में भी देखें तो पता चलता है कि कितनी बार असफल होने के बाद प्रयोग सफल होते हैं. आविष्कारक कईकई बार असफल होने के बाद अपने प्रयोग में सफल हुए हैं. भाप का इंजन, बिजली का बल्ब, टैलीफोन जैसे बहुत से ऐसे आविष्कार हैं जो धीरधीरे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए. आविष्कार पहली बार कम ही सफल होते हैं.

‘‘आविष्कार करने वाला कभी हार नहीं मानता. लगातार प्रयास करने के बाद ही सफलता हासिल होती है. वैज्ञानिकों की जीवनी पढ़ने से पता चलता है कि यदि वे पहली बार मिली असफलता से घबरा कर हिम्मत हार गए होते तो आज इतनी सारी चीजें नहीं मिलतीं. जरूरत इस बात की है कि हम सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें तभी सफलता निश्चित होगी.’’

संघर्ष से मिलती है प्रेरणा

महिला नेता और बिजनैस विमन वंदना प्रसाद कहती हैं, ‘‘महान लोगों के संघर्ष के साथ ही अपने मातापिता, बड़े भाईबहन या आसपास के सफल लोगों की बातें भी हमें प्रभावित करती हैं. कई बार बच्चों को लगता है कि कहानियां काफी पहले की हैं. अब ये उतनी प्रभावी नहीं रहीं. ऐसे में आज के समय में जो लोग अपनी मेहनत से सफल हुए हैं उन को देख कर भी प्रेरणा ली जा सकती है, जो जोखिम लेने को तैयार होता है, वही सफल रहता है.

‘‘जोखिम में असफलता भी मिलती है. जरूरत इस बात की है कि आप असफलता से घबरा कर न बैठें. घरपरिवार के साथ शिक्षा व्यवस्था में यह होना चाहिए कि महान लोगों के विषय में उन की असफलताओं के बारे में बताया जाए. यह भी बताया जाए कि असफलता से किस तरह से बाहर आ कर उन लोगों को सफलता मिली. आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडिएट’ में एक शब्द ‘औल इज वैल’ के महत्त्व को प्रभावी तरह से दिखाया गया. यह सामान्य जीवन में प्रेरणा देता है.’’             

विश्वव्यापी दृष्टिकोण विकसित करने की जरूरत

निर्माण, अनुसंधान, सुशासन, मानवीय  स्वतंत्रताओं, संवैधानिक सरकारों, जनता की चाह, निरंकुश मीडिया, गरीबी व बीमारी से लड़ाई की जगह दुनिया भर में नए ट्रैंड उभर रहे हैं, जो जनता को न जाने किस तरफ ले जा रहे हैं. यह सरकारों की जबरदस्ती के कारण हो रहा है या तकनीक की नई खोजों के कारण और उन के बावजूद कहना थोड़ा कठिन होता जा रहा है. इन उदाहरणों को देखिए :

–       फिलीपींस के  राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर देश में नशीली दवाओं की तस्करी नहीं रुकी तो सैनिक शासन लगाया जाएगा. एक बैठक में उन्होंने देश में भयावह होती ड्रग्स की समस्या पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा कि नशीली दवाओं से देश में 40 लाख लोग प्रभावित हैं. यदि यह समस्या अधिक गंभीर हुई तो मैं मार्शल लौ की घोषणा कर दूंगा. राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट और कांग्रेस का हवाला देते हुए कहा कि हमें इस संबंध में कोई नहीं रोक सकता. मेरे लिए देश सर्वोपरि है. नशीली दवा के तस्करों के खिलाफ चलाए अभियान में गत वर्ष जुलाई से अब तक 6 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 10 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है या फिर खुद उन्होंने आत्मसमर्पण किया है.

–       जापान के बुजुर्ग जेल जाना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें वहां वे तमाम सुविधाएं मिल रही हैं जो उन के घर में मौजूद नहीं हैं. ये लोग जेल जाने के लिए चोरी जैसे अपराध कर रहे हैं. जेल में समय पर भोजन और चिकित्सकीय सुविधाएं मिलती हैं और बुढ़ापे में इस से ज्यादा इंसान को क्या चाहिए? रोज सुबह पौने 7 बजे उठना, 20 मिनट बाद नाश्ता करना. फिर ठीक 8 बजे काम पर पहुंच जाना. समय पर दोपहर तथा रात्रि का भोजन मिलता है. यह  बुजुर्ग कैदियों की दिनचर्या है.

बुजुर्ग कैदियों की देखरेख के लिए सरकार ने अलग से बजट जारी किया है. वहां की जेलें नर्सिंगहोम बनती जा रही हैं. बुजुर्गों का अकेलापन जेल जाने का एक प्रमुख कारण है. बुजुर्गों को जेल में कई लोगों के साथ रहने का मौका मिलता है. वे घर की तरह अकेलापन व मायूसी महसूस नहीं करते. पुलिस की एक रिपोर्ट में बुजुर्गों के अपराध में वृद्धि के लिए आर्थिक कठिनाई, बुजुर्गों की बढ़ रही आबादी और उन में बढ़ती लालची प्रवृत्ति को जिम्मेदार ठहराया गया है. उत्तरी ब्राजील की एक जेल में 2 गिरोहों के बीच हुई हिंसा में 10 कैदियों के मारे जाने की खबर थी. ब्राजील की जेलें कैदियों के बीच होने वाली हिंसा के लिए विश्व में बदनाम हैं.

–       तालिबान के कब्जे में कैद लोगों के वीडियो में एक अमेरिकी और एक आस्ट्रेलियाई नागरिक दिखाई दिया है. इन दोनों का अपहरण पिछले साल अगस्त में काबुल से किया गया था. वीडियो तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने प्रसारित किया. यह वीडियो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि ये दोनों जीवित हैं. हिंसाग्रस्त अफगानिस्तान के उत्तरी प्रांत जावजान में सैकड़ों महिलाओं ने आतंकवादी संगठन इसलामिक स्टेट और तालिबान के खिलाफ हथियार उठा लिए हैं.

अपने परिवार पर ढाए जुल्मों से दुखी इन महिलाओं ने यह कदम उठाया है. अफगानिस्तान के  गृह मंत्रालय के उप प्रवक्ता नजीब दानिश ने कहा कि हम किसी भी प्रकार के सशस्त्र समूह का तब तक समर्थन नहीं करेंगे, जब तक वे सेना के अंतर्गत नहीं आते. हम उम्मीद करते हैं कि ये महिलाएं अफगानिस्तान में सुरक्षाबलों में शामिल हों तो उन्हें सेना के हिस्से के रूप में मदद कर सकते हैं. दूसरी ओर, महिलाओं ने सेना पर उन की सुरक्षा करने में असमर्थ रहने का आरोप लगाया है.

–       अगर समुद्र का जलस्तर महज 1 मीटर बढ़ता है तो पर्यटनस्थली माने जाने वाला मालदीव जलमग्न हो जाएगा. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की अर्थ औब्जर्वेटरी रिपोर्ट में यह अंदेशा जताया गया है. मालदीव दुनिया के उन तमाम देशों में से एक है, जिन के अस्तित्व पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है. मालदीव वास्तव में एक द्वीप समूह है. पर्यटन मालदीव की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है. संयुक्त राष्ट्र संघ का कहना है कि समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी से मालदीव अपना बहुत कुछ खो सकता है. मालदीव एशिया का सब से छोटा देश है. इस की कुल आबादी लगभग पौने 4 लाख है.

–       पाकिस्तान का कहना है कि भारत की अग्नि-5 जैसी अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें दक्षिण एशियाई इलाके में अमन के लिए खतरा हैं. पाकिस्तान ने यह बात बौखलाहट में उस मिसाइल टैक्नोलौजी कंट्रोल रेजीम (एमटीसीआर) से कही है, जिस के 35 देश हिस्सा हैं और जो खतरनाक मिसाइल टैक्नोलौजी के ट्रांसफर को रोकने का काम करता है.

–       चीन ने पाकिस्तान के बीच तैयार हो रहे आर्थिक कौरिडोर की सुरक्षा के नाम पर विशाल लड़ाकू जलपोत पाकिस्तान को सौंपे हैं. इस के अलावा 2 अन्य पोत भी वह आने वाले समय में पाकिस्तान को सौंपेगा. इस के जरिए वह इस आर्थिक कौरिडोर की जौइंट सिक्योरिटी करेगा. पाक नेवी के अधिकारी के मुताबिक पाकिस्तान और चीन के बीच बन रहा यह आर्थिक कौरिडोर पूरे क्षेत्र में गेम चेंजर साबित होगा. अधिकारी के मुताबिक इस कौरिडोर का फायदा बलूचिस्तान को भी समान रूप से मिलेगा और वहां पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे, साथ ही हजारों युवाओं को भी काम मिल सकेगा.

–       अमेरिका के लौस एंजिलिस में 15 साल की एक किशोरी जेना को हिजाब पहनने के कारण चालक ने स्कूल बस से 2 बार उतारा. किशोरी के परिवार वालों ने घटना को ले कर केस दर्ज करा दिया है और स्कूल वालों से माफी की मांग की है. बाद में जेना ने एक साक्षात्कार में बताया कि हिजाब मेरे मजहब का हिस्सा है. हर दिन मैं अपने कपड़ों के हिसाब से हिजाब पहनती हूं. उस ने बताया कि ड्राइवर ने बस में स्पीकर से मेरे हिजाब पर कमैंट किया.

–       फ्रांस ने लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे भारत को निशाना बनाने वाले पाकिस्तान के आतंकी समूहों के खिलाफ निर्णायक कार्यवाही पर जोर दिया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जिस आतंकी मसूद अजहर पर प्रतिबंध का प्रस्ताव लाई थी उसे पकड़ने के लिए उस ने भारत के साथ मिल कर काम करने का संकल्प लिया. फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां मार्क एरौल्ट ने कहा, ‘‘खतरे की गंभीरता पर न जाते हुए आतंकवाद से लड़ने की अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की प्रतिबद्धता हर जगह एक सी होनी चाहिए. ऐसे खतरों के मद्देनजर देश को अपनी रक्षा का अधिकार है. हम आतंकवादियों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत निर्णायक कार्यवाही होते देखना चाहते हैं.’’ उन्होंने फ्रांस और भारत के बीच आतंक से लड़ाई में सहयोग बढ़ाने का भी जिक्र किया.

–       अमेरिका के राष्ट्रपति डौनल्ड ट्रंप ने कहा कि मैक्सिको सरकार के साथ इस मामले में बातचीत अभी लंबित है और उन का प्रशासन जल्द ही दक्षिणी सीमा पर दीवार बनाने की अपनी योजना पर अमल करेगा ताकि अवैध आवर्जनों को बाहर रखा जा सके तथा मैक्सिको इस पर आने वाले खर्च की भरपाई करेगा. मैक्सिको के राष्ट्रपति एनरिक पेना नीतो ने कहा है कि वे दीवार बनाने का खर्च वहन नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने ट्रंप के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की इच्छा जताई. उन्होंने आगे कहा, ‘‘हम एक देश के तौर पर और मैक्सिको के नागरिक होने के नाते किसी चीज को कभी बरदाश्त नहीं करेंगे जो हमारी प्रतिष्ठा के खिलाफ हो.’’

–       अमेरिकी राष्ट्रपति डौनल्ड ट्रंप द्वारा विदेश मंत्री पद के लिए चुने गए रेक्स टिलरसन ने कहा कि वह यात्रा पर आने वाले मुसलिमों पर पूर्ण प्रतिबंध का समर्थन नहीं करते. हालांकि उन्होंने जोर दे कर कहा कि इसलामिक स्टेट आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिका को युद्ध मैदान में तो लड़ाई जीतनी ही चाहिए. विचारों का युद्ध भी उसे जीतना होगा. ट्रंप ने देश में मुसलिमों की यात्रा और अप्रवासन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात कही थी.

अमेरिका के राष्ट्रपति डौनल्ड ट्रंप ने रूस के पास उन के खिलाफ विवादास्पद दस्तावेज होने के लिए अपने ही देश की खुफिया एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि यह नाजी जरमनी में रहने जैसा है. उन्होंने कहा कि वे सब से बड़े रोजगारसृजक होंगे और मैं सच कह रहा हूं कि इस पर कड़ी मेहनत करने वाला हूं. प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति डौनल्ड ट्रंप के रुख की आलोचना करते हुए जगहजगह रैलियां निकालीं और प्रवासी अधिकारों के प्रति समर्थन जताया. साथ ही यह भी बताया कि मुसलिम तथा अल्पसंख्यकों के प्रति डौनल्ड ट्रंप के चुनाव के दौरान दिए गए बयान संतुलित नहीं हैं.

–       अमेरिका के निवर्तमान ओबामा प्रशासन ने कहा कि भारत के एनएसजी सदस्यता की राह में चीन अवरोधक बना हुआ है. यह कम्युनिस्ट देश नई दिल्ली के प्रयास में लगातार बाधा डाल रहा है. चीन इस बात को ले कर भारत का पक्षपातपूर्ण विरोध कर रहा है कि उस ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. उस का कहना है कि बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर के भारत को एनएसजी सदस्यता नहीं दी जा सकती. अगर ऐसा किया जाता है तो पाकिस्तान को भी एनएसजी सदस्यता दी जानी चाहिए.

हमारा मानना है कि केवल अपने राष्ट्रीय हित की सोच के चलते विश्व को एकमात्र अपनी स्वार्थपूर्ति के तरीके से चलाने की होड़ से विश्व का हर विचारशील व्यक्ति चिंतित है. आज हम ने विश्व में ऐसा कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं बनाया है, जिसे प्रभावशाली ढंग से पूरे विश्व के देशों तथा उस में रहने वाले प्रत्येक नागरिक पर वैधानिक रूप से लागू किया जा सके.

उस कानून की कोई मान्यता नहीं होती जिसे न तो वैधानिक रूप से लागू किया जा सके और न ही उसे तोड़ने वाले को दंडित किया जा सके. ऐसे कानून को कानून की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. वैश्विक दृष्टि से आज कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून विश्व में नहीं है, जिस के अभाव में सारा विश्व कानूनविहीन बनता जा रहा है.

प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’          

समझदार बनें, अंधविश्वास से बचें

हमारे परिवारों में बच्चे को अंधविश्वास के घेरे में पालपोस कर बड़ा किया जाता है. बचपन से बच्चे के दिमाग में बैठा शुभअशुभ का डर उस के जीवन में मजबूती से पकड़ बना कर उसे कमजोर और भाग्यवादी बना देता है. किस दिन किस दिशा की तरफ जाना है, घर से क्या खा कर जाने से शुभ होगा, किस रंग के कपड़े पहनने से हर इच्छा पूरी होगी, इस तरह के अंधविश्वासों के घेरे में जब बच्चा बड़ा होता है तो वह इसे अपने बुजुर्गों की परंपरा समझ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाता है.

अब प्रश्न उठता है कि एक बेहद अंधविश्वासी बच्चे को जो हर रूढ़ी को बड़ी सख्ती से बचपन से जवान होने तक निभाता है, अपने जीवन में असफलता का सामना क्यों करना पड़ता है? जवाब बहुत ही सहज और सरल है, सफलता और असफलता जीवन के 2 अभिन्न अंग हैं. हम कितने भी जादूटोने व अंधविश्वास अपनाएं सफलताअसफलता, सुखदुख सामान्य रूप से हमारे जीवन में आतेजाते रहेंगे.

कैसे मिलता है अंधविश्वास को बढ़ावा

राजीव का बेटा पिछले साल 12वीं में फेल हो गया था. सभी को काफी बुरा लगा. पढ़ने में एवरेज स्टूडैंट उन का बेटा इस साल काफी मेहनत कर रहा था. बच्चे को गले में एक देवी की आकृति वाला लौकेट पहनाया गया था जिसे कभी न उतारने की उसे सख्त हिदायत दी गई थी. पूछने पर राजीव ने बताया, ‘‘जब से परीक्षा में अच्छे अंक दिलाने वाला लौकेट बेटे को पहनाया है, उस का मन पढ़ने में खूब लग रहा है.’’

सच यह था कि राजीव का बेटा साइंस साइड से नहीं पढ़ना चाहता था. उस का मन आर्ट साइड में था पर राजीव ने प्रैशर में उसे साइंस दिला दी. इस तरह समस्या का मूल कारण जाने बिना किशोर के दिल में बैठ गया कि लौकेट पहनने से वह अच्छे अंकों से पास हो जाएगा. अब वह अपने मित्रों में भी इस लौकेट के चमत्कार को बताएगा और बहुत से उस के साथी इस अंधविश्वास को अपना कर बिना मेहनत के पास होने का भ्रम पाल लेंगे.

इस में कोई शक नहीं कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें काफी मजबूती से हमारे दिलोदिमाग में बैठ जाती हैं. बारबार असफल होने पर मन बहुत कमजोर हो जाता है, कमी कहां हुई जो सफलता की राह में रोड़ा बनी उन के कारण जानने के स्थान पर टोनेटोटके, तंत्रमंत्र, गंडेताबीज और भी न जाने कितनी तरह के अंधविश्वासों में फंस जाता है.

कैसे पाएं अंधविश्वास पर काबू

अंधविश्वास का मतलब है किसी पर भी आंख मूंद कर विश्वास करना औैर जब हम किसी के बताए रास्ते पर बिना अपनी बुद्धिविवेक के इस्तेमाल के चल पड़ते हैं, तो वह रास्ता हमें प्रगति के बजाय विनाश की ओर ले जाता है. कुछ समय के लिए ये रास्ते सुखद लग सकते हैं, परंतु अंत में अंधविश्वासी व्यक्ति अपने को लुटा हुआ ही महसूस करता है.

बहुत से परिवारों में बरसों पुराने ऐसे ही अंधविश्वास चलते रहते हैं. बिना लौजिक जाने घरपरिवार में बेतुके बिना सिरपैर के अंधविश्वास इसलिए चलाए जाते हैं, क्योंकि बुजुर्गों ने इन्हें शुरू किया था. ऐसे अंधविश्वासों को छोड़ना ही समझदारी है, लेकिन बच्चों के मन में इन का इतना डर बैठा होता है कि वे सोचते हैं अगर हम ने कुछ नया किया तो परिवार के साथ कुछ न कुछ बुरा हो जाएगा. पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरावादी रूढि़यों को एकदम से तोड़ना भी आसान नहीं है परंतु प्रयास करने से बहुत कुछ किया जा सकता है. आइए, देखें कैसे बच्चे इन प्रगतिबाधक अंधविश्वासों पर काबू पा सकते हैं :

मेहनत और लगन से करें काम : किशोरावस्था नए जोश और हौसले का दूसरा नाम है. किशोरों को खुद भी अंधविश्वास का बहिष्कार करना चाहिए और अपने परिजनों से भी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस खोखली परंपरा से होने वाले नुकसान पर बात करनी चाहिए. संभव हो तो अपने आसपास के मित्रों को भी बताएं कि मेहनत ही एक ऐसी सीढ़ी है जो सफलता तक पहुंचा सकती है. अंधविश्वास पर निर्भरता इंसान को बुजदिल और आलसी बनाती है, जो किशोरों के पूरे व्यक्तित्व को कुंठित कर देता है.

सकारात्मक सोच को दें वरीयता :  नकारात्मक विचारों के लोग ही अंधविश्वास में ज्यादा विश्वास करते हैं. सुखसुविधाओं में पले लोग जरा सी परेशानी आते ही टोनेटोटकों या किसी जादुई शक्ति में विश्वास करने लगते हैं. जहां नकारात्मक विचार होंगे वहां अंधविश्वास लंबे समय तक पैर जमा कर अपना राज करता है. पंडेपुजारियों, पूजापाठ और तंत्रमंत्र पर पैसा व वक्त बरबाद होता है. अत: सकारात्मक विचारों को वरीयता दें. कई बार हमारे प्रयास और मेहनत में कोई कमी नहीं होती, परंतु दिशा ठीक न होने के कारण बारबार असफलता का मुंह देखना पड़ता है. अगर मन को मजबूत कर तथ्यहीन अंधविश्वासों को त्याग कर सही दिशा में सकारात्मक प्रयास करें तो आप को सफलता अवश्य मिलेगी.

एक अन्वेषक की तरह जागरूक बनें : एक जागरूक अन्वेषक की तरह हर समय यह विश्लेषण करें कि अंधविश्वास हमें कितना नुकसान पहुंचा रहा है. उस पर अमल कर के घरपरिवार का कितना भला हो रहा है. अपनी कमियों पर बारीकी से विचार करें, संभव हो तो परिजनों के साथ बैठ कर अपने सफलअसफल कार्यों की लिस्ट बनाएं और उस पर ध्यान दें.

कैरियर के लिए प्रयास कर रहे युवाओं के लिए यह फौर्मूला बहुत उपयोगी है. इस के बाद उन्हें किसी जादुई ताबीज या अंधविश्वास की जरूरत नहीं रहेगी.

अंत में हम कह सकते हैं कि अंधविश्वास हमारी बुद्धि, विद्या और बल को बाधित करते हैं और जीवन में उन्नति के सारे दरवाजे बंद कर देते हैं.

अपनी कड़ी मेहनत और लगन का पूरा श्रेय किसी ताबीज, टोनेटोटके या तंत्रमंत्र को देना ठीक नहीं. कैरियर में सफलता चाहिए या परीक्षा में अच्छे अंक तो सही दिशा में मेहनत करें. कदमकदम पर अंधविश्वास की दुकानें खोले ढोंगी बाबातांत्रिक मौके का फायदा उठाते हैं. अत: किशोर हर समय जागरूक रहें, समझदार बनें और अंधविश्वास से बचें.   

– पुनीता सिंह               

बहुउपयोगी है मांड़

चावल का प्रयोग हर घर में किया जाता है. चावल पकने के बाद जो पानी शेष रह जाता है उसे प्राय: छान कर फेंक दिया जाता है. चीन व जापान में चावल के मांड़ को जिसे राइस वाटर कहा जाता है, का प्रयोग स्वास्थ्य व सौंदर्य को निखारने में करते हैं. यह पौष्टिक तत्त्वों से भरा होता है. जानते हैं, मांड़ के क्याक्या फायदे हैं:

– 1 गिलास राइस वाटर का प्रयोग ऐनर्जी ड्रिंक की तरह किया जा सकता है. आप अपनी इच्छानुसार इस में कटी पुदीनापत्ती, भुना जीरा पाउडर और काला नमक भी मिला कर पी सकते हैं.

– राइस वाटर का प्रयोग शरीर के तापमान को संतुलित रखता है. गरमी के मौसम में इस का सेवन सेहत के लिए बहुउपयोगी है.

– यदि आप को कब्ज की शिकायत रहती है तो राइस वाटर का प्रयोग कब्ज दूर करने में विशेष लाभदायक होगा.

– राइस वाटर उत्तम प्रकार के कार्बोहाइड्रेट का भंडार है.

– 1 गिलास राइस वाटर का सेवन अल्जाइमर जैसी समस्या को रोकने में भी कारगर है.

– राइस वाटर का सेवन डायरिया में भी किया जाता है. न केवल वयस्क को वरन बच्चों को भी डायरिया में इस का सेवन उन की उम्र के अनुसार कम या अधिक मात्रा में करने से लाभ मिलता है.

– गैस से संबंधित समस्याओं में भी राइस वाटर का सेवन उपयोगी है.

मांड़ न केवल स्वास्थ्यवर्धक है वरन सौंदर्यवर्धक भी है, क्योंकि यह विटामिन व खनिज तत्त्वों से भरपूर होता है. मसलन:

– इस का प्रयोग फेशियल क्लीनर की तरह बखूबी किया जा सकता है. एक कौटन बौल को राइस वाटर में डुबो कर उस से चेहरे पर हलके हाथ से मसाज करें. जब सूख जाए तो चेहरा धो लें. इस का नियमित प्रयोग त्वचा को साफमुलायम बनाने के साथसाथ उस में कसाव व चमक भी लाता है.

– फेशियल टोनर की तरह भी इस का प्रयोग किया जा सकता है. कौटन बौल को इस में डुबो कर त्वचा पर लगाएं. यह खुले रोमछिद्रों को बंद कर के त्वचा को कसाव प्रदान करता है, साथ ही त्वचा को चमकदार भी बनाता है.

– ऐक्ने पीडि़त त्वचा में भी इस का प्रयोग लाभदायक है. साथ ही यह वाटर त्वचा पर ऐस्ट्रिंजैंट की तरह असर करता है.

– राइस वाटर का स्टार्च कंपोनैंट त्वचा पर ऐक्जिमा को ठीक करने में भी उपयोगी है. साफ कपड़ा राइस वाटर में भिगो कर ऐक्जिमा से प्रभावित त्वचा पर थपथपा कर लगाएं. जब कपड़ा सूख जाए, तो दोबारा ऐसा करें. नियमित प्रयोग करें. जरूर फायदा होगा.

– सनबर्न से झुलसी त्वचा पर भी ठंडे राइस वाटर का प्रयोग लाभकारी है.

– बालों को स्वस्थ, चमकदार बनाने के लिए उन्हें राइस वाटर से रिंस करें. बालों को शैंपू करने के बाद इसे बालों में लगा कर हलके हाथों से मसाज करें. फिर पानी से बालों को धो लें. ऐसा हफ्ते में 1-2 बार किया जा सकता है.

– राइस वाटर हेयर कंडीशनर का भी काम करता है. इस में चंद बूंदें लैवेंडर या रोजमैरी की मिलाएं और बालों में लगा कर करीब 10 मिनट लगा रहने दें. फिर साफ पानी से धो लें.

– राइस वाटर चूंकि ऐंटीऔक्सिडैंट, नमी व यूवी किरणों को अब्जौर्व करने की क्षमता रखता है, अत: त्वचा की बारीक लाइनें व बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने में भी यह लाभदायक है.

– त्वचा की जलन व रैशेज को दूर करने के लिए ठंडे राइस वाटर का प्रयोग उपयोगी है.

– बालों पर इस का नियमित प्रयोग उन्हें मजबूती व चमक तो देता ही है, उन्हें टूटने से भी  रोकता है तथा लंबा भी बनाता है. इस का पूरा लाभ उठाने के लिए बालों पर इसे कम से कम 20 मिनट तक लगा कर रखें. फिर साफ पानी से धो लें.

अत: अगली बार जब भी चावल बनाएं, तो मांड़ को फेंकने से पहले किसी जार में डाल कर फ्रिज में रख लें. इसे फ्रिज में 4-5 दिनों तक रखा जा सकता है. प्रयोग करते समय इसे हिला जरूर लें. 

सिर्फ इन 4 स्टार्स के साथ काम करना चाहती हैं दिशा पाटनी!

महेंद्र सिंह धोनी की बायॉपिक ‘धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ से बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत करने वालीं एक्ट्रेस दिशा पाटनी की इस समय बॉलीवुड में काफी डिमांड है और इसलिए अब फिल्ममेकर्स के सामने वह अपनी कुछ खास शर्तें भी रखने लगी हैं.

अब खबर यह आ रही है कि दिशा अपनी फिल्मों को लेकर काफी सावधानी बरत रही हैं. वह फिल्मों को लेकर काफी चूजी हो गई हैं और आजकल फिल्म साइन करने के लिए कुछ खास शर्तें रख रही हैं, जिसे पूरा कर पाना निर्माताओं के लिए मुश्किल साबित हो रहा है.

इस बारे में बताते हुए दिशा के करीबी सूत्र ने कहा, ‘वह आजकल अपने पास आने वाले निर्माताओं से यही मांग करती हैं कि वह उनकी फिल्म में तभी काम करेंगी अगर उस फिल्म में उनके साथ रणबीर कपूर, रणवीर सिंह, वरुण धवन या टाइगर श्रॉफ जैसे एक्टर हों, वरना वह स्क्रिप्ट तक सुनने से इनकार कर देती हैं.’

खबरों की मानें तो दिशा करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द इयर-2’ और ‘बागी 2’ में भी काम कर रही हैं. हाल ही में वह फेमस हॉलीवुड एक्टर ‘जैकी चैन’ के साथ ‘कुंग फू योगा’ में भी नजर आ चुकीं हैं.

दिशा सोशल मीडिया पर भी खूब एक्टिव रहती हैं और अपने फोटोज और वीडियोज अपलोड करती रहती हैं. दिशा अपनी एक्टिंग के साथ-साथ अपने डांस को लेकर भी चर्चा में रहती हैं.

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