असल क्राइम माफिया पर बनी ये हिट फिल्में

बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी हैं, जो असल जिंदगी पर आधारित हैं और ऐसी फिल्में अमूमन अच्छा कारोबार भी करती हैं, लेकिन बॉलीवुड में ऐसी भी कई फिल्में हैं, जो रियल लाइफ विलेन को पर्दे पर हीरो की तरह दिखाती हैं.

आइए देखते हैं ऐसी ही कुछ फिल्में जो रियल लाइफ विलेन्स से प्रेरित हैं और असल क्राइम माफिया के जीवन की कहानी को दर्शाती हैं :

1. शूटआउट ऐट लोखंडवाला

शूटआउट ऐट लोखंडवाला कहानी है एटीएस के चीफ, ए. ए. खान की, जो 16 नवंबर 1991 को 400 पुलिसकर्मियों के साथ लोखंडवाला कॉम्प्लैक्स में एक कुख्यात गैंगस्टर माया दोलास का एंकाउंटर करते हैं. अपूर्व लाखिया की इस फिल्म में विलेन को ही असली हीरो दिखाया गया है .

2. बैंडिट क्वीन

डकैत फूलन देवी के जीवन पर आधारित इस फिल्म में सीमा बिस्वास मुख्य किरदार में है. शेखर कपूर की इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ट फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्दशन का भी पुरस्कार मिला था.

3. शूटआउट ऐट वडाला

साल 2013 में आई संजय गुप्ता की यह फिल्म देश में पहले दर्ज हुए एंकाउटर पर आधारित है. मुंबई पुलिस ने सबसे पहला एंकाउंटर मान्या सुर्वे का डॉं अंबेडकर कॉलेज, वडाला में जनवरी 11, 1982 को किया था. यह फिल्म काफी हिट रही.

4. पान सिंह तोमर

एक सैनिक और एथलीट से बाघी डकैत बने पान सिंह तोमर के जीवन पर आधारित यह फिल्म बेहद शानदार है. तिग्मांशु धुलिया की इस फिल्म में इरफान खान मुख्य भूमिका में है. नेश्र्नल गेम्स में गोल्ड जीतने वाले पान सिंह तोमर की फिल्म को भी नेश्र्नल अवॉर्ड मिला.

5. स्पेशल 26

नीरज पांडे की इस फिल्म की कहानी आधारित है सबसे कुख्यात ओपेरा हाउस में की गई चोरी पर, जिसमें नकली सीबीआई बन कर एक शख्स और उसकी कुछ लोगों की टीम मशहूर ज्वैलरी वाले को करोड़ों को चूना लगा कर चंपत हो जाते हैं. फिल्म टिकट खिड़की पर भी खूब चली.

6. सिन्स

कई आपत्तिजनक सीन के चलते विनोद पांडे की इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया. फिल्म कैथलिक पादरी और एक महिला के प्रेम संबंध की सच्ची घटना पर आधारित हैं. इस फिल्म का काफी विरोध भी हुआ था. केरल के एक पादरी को एक शादीशुदा महिला के साथ अवैध संबंध और हत्या के मामले में मौत की सजा हुई थी.

7. वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई

मिलन लथूरिया की यह फिल्म मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया को बेहद करीब से दिखाती है. हाजी मस्तान और दाउद इब्राहिम के जीवन पर बनी इस फिल्म ने अंडरवर्ल्ड की काली दुनिया पर राज करने वाले डॉन की अच्छाई और उसूलों को दर्शाया था. फिल्म बेहद सफल रही थी.

8. रक्त चरित्र

आंध्र प्रदेश के राजनेता के जीवन पर बनी इस फिल्म में विवेक ऑबेरॉय मुख्य किरदार में हैं. एक नेता की असल जिंदगी में तमान-उतार चढ़ाव और सत्ता तक पहुंचने की उसके सफर को इस फिल्म में अच्छे ढंग से दिखाया गया है.

9. ओए लक्की, लक्की ओए

‘सुपरचोर’ कहलाने वाले देवेंद्र बंटी की जिंदगी से प्रेरित इस फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया. एक चोर अपने शातिर दिमाग से कैसे लोगों और पुलिस वालों को बेवकूफ बना सकता है. अमीर लोगों के घरों से गाड़ियां, गहने, टीवी, म्युजिक सिस्टम के साथ यह चोर पालतू जानवरों को भी चुरा सकता है.

10. डर्टी पॉलिटिक्स

राजस्थान के कुख्यात भंवरी देवी मर्डर केस पर बनी इस फिल्म को दर्शकों ने कोई खास तवज्जो नहीं दी. राजनैतिक दबावों के चलते फिल्म ने रिलीज से पहले ही दम तोड़ दिया और फिल्म असलियत से भटक गई. कमजोर स्क्रिप्ट के कारण फिल्म फ्लॉप रही.

मशहूर हैं भोजपुरी फिल्मों के ये अभिनेता

भारत में हर साल करीब 140 फिल्में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री रिलीज करती है. उत्तर प्रदेश-बिहार-उत्तराखंड कई हिस्सों में ये फिल्में धूम मचाती है. पर इनकी कमाई और इनके अभिनेताओं की कमाई कितनी होती है, इस पर शायद ही किसी की नजर जाती है.

भोजपुरी इंडस्ट्री की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म मनोज तिवारी की ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ है. इसकी कमाई 20 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई थी. भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता भी बॉलीवुड अभिनेताओं के जितनी ही कमाई करते हैं. ऐसे ही भोजपुरी फिल्मों के कुछ अभिनेता भी हैं जो मशहूर भी हैं और कमाई भी अच्छी कर लेते हैं.

मनोज तिवारी

मनोज तिवारी की फीस 50 से 55 लाख है. मनोज तिवारी अब राजनेता बन चुके हैं. वह दिल्‍ली भाजपा के अध्यक्ष हैं. लेकिन आज भी वह भोजपुरी फिल्मों के सबसे महंगे अभिनेता हैं. वह मौका निकाल-निकाल कर दिल्ली से पटना जाते हैं. वहां से फिल्में कर के लौट आते हैं. हालांकि अब वह कैरियर के ढलान पर हैं. लेकिन बावजूद इसके इनकी फीस कम नहीं हो रही. उनकी आखिरी फिल्में “अंधा कौन” और “यादव जी पान वाले”. मनोज ने भोजपुरी फिल्म जगत में फिल्म “ससुरा बड़ा पइसा वाला” से कदम रखा था. इसके बाद वह हिट होते गए.

रवि किशन

रवि किशन की फीस 50 लाख है. बॉलीवुड फिल्मों से असफल होकर भोजपुरी फिल्मों का रुख करने वाले रवि किशन आज भी 15 से 20 भोजपुरी फिल्मों का हिस्सा होते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि उनका स्वर्णिम दौर अब निकल चुका है. लेकिन रवि ने अपनी फीस नहीं घटाई. एक दौर में वह भोजपुरी फिल्मों के बिग बी जैसी उपाधियां पाने लगे थे. लेकिन पिछले साल उनकी ‘लव और राजनीति’ और 2015 में ‘पंडित जी बताई न बियाह कब होई 2’ ही आ पाईं. इन दिनों वह फिर से बॉलीवुड और दक्षिण के सिनेमा में लौट गए हैं.

पवन सिंह

पवन सिंह की फीस 45 से 50 लाख है. गायकी के रास्ते अभिनेता बनने वाली लीक पर चलकर पवन ‌सिंह ने सबसे अधिक ख्याति बटोरी है. वह एक समय पर सबसे अधिक महंगे गायक और फिलहाल भोजपुरी के सबसे ख्यातिप्राप्त अभिनेता हैं. इन दिनों आप कई बार टीवी पर श्री जंगरोधक सिमेंट के विज्ञापन में देखते होंगे. उन्होंने कम समय में इतनी उचाई छूने का रिकॉर्ड बनाया है. पिछले साल उनकी फिल्म “गदर” ने खूब धूम मचाया. पिछले साल वह भोजपुरी इंडस्ट्री से सबसे अधिक टैक्स चुकाने वाले शख्स रहे.

खेसारी लाल यादव

यादव जी की फीस 35 से 40 लाख है. यह भोजपुरी इंडस्ट्री के तेज तर्रार अभिनेताओं में गिने जाते हैं. यह बॉलीवुड के अभिनेताओं के पदचिह्नों पर चलते हुए फिल्मों से होने वाले मुनाफों में अपना हिस्सा मांगते हैं. फिर भी उनकी आम फीस 35 से 40 लाख रुपये है. फिलहाल भोजपुरी इंडस्ट्री में खेसारी सबसे अधिक मांग वाले अभिनेता हैं. फिल्मों के मामलों में वह बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार से भी आगे हैं.

पिछले साल उनकी छह फिल्में रिलीज हुईं. “खिलाड़ी”, “साजन चले ससुराल 2”, “होगी प्यार की जीत”, “दंबग आशिक”, “जलवा”, “दिलवाला”. फिल्मों के नाम सुनने में आपको बॉलीवुडी लगेंगे. ‌इनकी फिल्‍में भी बॉलीवुड की तरह ही होती हैं. इनकी बाकी फिल्में भी आपको “शोला और शबनम”, “लहू के दो रंग”, “कच्चे धागे”, “बंधन”, “प्रेम रोग” आदि हैं.

दिनेश लाल यादव

दिनेश लाल की फीस 10 लाख है. दिनेश लाला जी निरहुआ नाम से भोजपुरी इंडस्ट्री में जाने जाते है. ये वो अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने कैरियर के साथ अपनी फीस घटाई-बढ़ाई. फिलहाल यह अपनी हर फिल्म के लिए 10 लाख रुपये लेते हैं. दिनेश ने भी गायकी के रास्ते फिल्मों में जगह बनाई. बाद में “बिग बॉस” और “निरहुआ” सिरीज की फिल्मों में इन्होंने अपनी पहचान देशव्यापी कर ली.

इस एक्टर ने शाहरुख को बनाया सुपरस्टार

शाहरुख खान आज बॉलीवुड के बादशाह हैं. आज शाहरुख खान सफलता के जिस मुकाम पर हैं वहां पहुंचना और उसे बरकरार रखना सभी के बस की बात नहीं. बहुत ही कम लोगों को ऐसा स्टारडम नसीब होता है और बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं जो इसे बनाकर रख पाते हैं.

शाहरुख बॉलीवुड के उन चुनिंदा सितारों में से हैं जिन्हें अपने करियर की शुरुआत में काफी मशक्कत करनी पड़ी. लेकिन इस मामले में वो खुशनसीब रहे कि कई लोगों ने करियर बनाने में उनकी मदद भी की.

फिल्मों में शाहरुख को लाने का श्रेय बॉलीवुड की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी को दिया जाता है जिन्होंने फिल्म ‘दिल आशना है’ से शाहरुख को लॉन्च किया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में शाहरुख को सुपरस्टार किसने बनाया.

शाहरुख को सुपरस्टार बनाने का श्रेय जिस शख्स को जाता है असल में वो भी एक एक्टर है. और वह एक्टर और कोई नहीं बल्कि अरमान कोहली है.

शाहरुख की फिल्म ‘दीवाना’ जबरदस्त हिट थी और इसी फिल्म की कामयाबी के बाद शाहरुख को ‘बाजीगर’ और ‘डर’ जैसी फिल्में मिलीं. इन फिल्मों ने शाहरुख को टॉप स्टार्स की लीग में ला खड़ा किया.

एक तरह से फिल्म ‘दीवाना’ शाहरुख के करियर में टर्निंग पॉइंट साबित हुई थी. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले इस फिल्म के हीरो शाहरुख नहीं बल्कि अरमान कोहली थे. ‘दीवाना’ में अरमान कोहली और दिव्या भारती की जोड़ी थी.

अरमान इस फिल्म के लिए पोस्टर से लेकर फोटोशूट तक कर चुके थे. यहां तक कि फिल्म का पहला शेड्यूल भी उन्होंने शूट कर लिया था, लेकिन किसी कारणवश अरमान को ये फिल्म छोड़नी पड़ी.

अरमान के इस तरह बीच में फिल्म छोड़ने से निर्देशक राज कंवर के होश उड़ गए, उन्हें कुछ समझ नहीं आया और फिर बिना देर किए उन्होंने शाहरुख खान को ‘दीवाना’ के लिए साइन कर लिया. उसके बाद जो हुआ वो इतिहास बन गया. फिल्म जबरदस्त हिट रही और शाहरुख सुपरस्टार बन गए. उनकी और दिव्या भारती की जोड़ी को भी खूब पसंद किया गया. और इस तरह अरमान कोहली की वजह से शाहरुख खान ने स्टारडम का परचम बॉलीवुड में लहरा दिया. इस फिल्म के बाद शाहरुख ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफलता के नए आयाम रचे.

आज भी शाहरुख अरमान को अपने गॉडफादर मानते हैं. इसका खुलासा शाहरुख ने कुछ वक्त पहले एक रिएलटी शो में भी किया था. तब शाहरुख ने बताया था कि आज भी उन्होंने अपने घर में ‘दीवाना’ का वो पोस्टर फ्रेम करके लगाया हुआ है जिसमें अरमान कोहली और दिव्या भारती हैं.

कटप्पा के कारण यहां रिलीज नहीं होगी बाहुबली 2

बाहुबली में कटप्पा का किरदार निभाने वाले एक्टर सत्यराज की वजह से ‘बाहुबली 2’ के कर्नाटक में रिलीज होने को लेकर मुश्किलें खड़ी हो गईं हैं. तकरीबन 2,000 कन्नड़ संगठन इस फिल्म की रिलीज को पूरे प्रदेश में रोकने के लिए तैयार हैं. इनका नेतृत्व ऐक्टिविस्ट वतल नागराज कर रहे हैं.

मीडिया से बातचीत में वतल ने कहा, ‘हम कर्नाटक के एक भी थिएटर में इस फिल्म को रिलीज नहीं होने देंगे. हम फिल्म के खिलाफ नहीं, बल्कि इसमें कटप्पा का रोल प्ले करने वाले ऐक्टर सत्यराज के खिलाफ हैं.’

उन्होंने कहा कि जब सभी तमिल एक्टर्स ने कावेरी के पानी को शेयर करने के लिए आवाज उठाई तो ऐसे में सत्यराज का कदम अपमानजनक रहा. वतल के मुताबिक, ‘सत्यराज ने सभ्यता की सभी सीमाओं को लांघा है. उन्होंने कर्नाटक और यहां के वासियों के खिलाफ फालतू बातें की हैं. हमने भी तमिलनाडु के खिलाफ प्रोटेस्ट किया लेकिन हम वहां के लोगों के खिलाफ नहीं हैं.’

वतल की मानें तो जब बाहुबली का पहला भाग यहां हाल ही में फिर से रिलीज किया गया तो प्रदर्शनकारियों ने सिनेमाघरों के मालिकों से आग्रह किया था कि वे इस फिल्म को बैन करें और उन्होंने मांगों को स्वीकारा भी था. आगामी 28 अप्रैल को रिलीज होने वाली इस फिल्म को लेकर पूरी तैयारी है और इसको प्रदर्शित नहीं करने दिया जाएगा.

हालांकि, वतल नागराज ने यह भी कहा कि अगर एक्टर माफी मांग लेता है तो वह अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं. इससे पहले सुपरस्टार रजनीकांत ने भी कर्नाटक के खिलाफ कुछ ऐसे कॉमेंट किए थे जिसे लेकर प्रदर्शनकारियों ने उनसे माफी मांगने को कहा था. रजनीकांत ने माफी मांगी थी और उसके बाद ही उनकी फिल्म ‘शिवाजी’ रिलीज हो सकी थी.

अद्भुत हैं अजंता-एलोरा की गुफाएं

पुरातनकाल की ऐतिहासिक धरोहरों व कलाकृतियों में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए अजंता-एलोरा की गुफाएं बेहतर पर्यटन विकल्प हैं. सौंदर्यबोध की अप्रतिम सुंदरता समेटे इन गुफाओं में एक बार आ कर तो देखिए.

गुफाओं की अनूठी स्थापत्यकला देखने के लिए देशीविदेशी पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. इन गुफाओं के भित्तिचित्र भारतीय शिल्पकला के सर्वोत्तम नमूने माने जाते हैं.

अजंता-एलोरा की गुफाओं की यात्रा एक शानदार अनुभव है. यदि आप कलाप्रेमी हैं और पुरातनकाल की ऐतिहासिक धरोहरों व कलाकृतियों के प्रशंसक हैं तो अजंता-एलोरा आप के लिए एक बहुत अच्छा पर्यटन स्थल है. इन गुफाओं को 1983 में वर्ल्ड हैरिटेज की सूची में शामिल किया जा चुका है. यहां की गुफाओं में की गई नायाब चित्रकारी व मूर्तिकला अपनेआप में अद्वितीय है.

औरंगाबाद से तकरीबन 2 घंटे की ड्राइव में टैक्सी से अजंता की गुफाओं तक पहुंचा जा सकता है. विश्वप्रसिद्ध अजंता-एलोरा की चित्रकारी व गुफाएं कलाप्रेमियों के लिए हमेशा से ही आकर्षण का प्रमुख केंद्र रही हैं. विशालकाय चट्टानें, हरियाली, सुंदर मूर्तियां और यहां बहने वाली वाघोरा नदी यहां की खूबसूरती में चारचांद लगाती हैं.

अजंता में छोटीबड़ी 32 प्राचीन गुफाएं हैं. 2,000 साल पुरानी अजंता की गुफाओं के द्वार को बहुत ही खूबसूरती से सजाया हुआ है. घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएं अत्यंत ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्त्व की हैं. खूबसूरत चित्रों और भव्य मूर्तियों के अलावा यहां सीलिंग पर बने चित्र अजंता की गुफाओं को एक नया सौंदर्यबोध देते हैं. इन शानदार कलाकृतियों को बनाने में कौन सी तकनीक इस्तेमाल की गई होगी, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है. इस पहेली को सुलझाने के लिए विश्वभर के लोग यहां आते हैं.

वाघोरा नदी यहां की खूबसूरती में और चारचांद लगा देती है. कहा जाता है कि गुफाओं की खोज आर्मी औफिसर जौन स्मिथ व उन के दल ने 1819 में की थी. वे यहां शिकार करने आए थे. तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाएं नजर आईं. इस के बाद ही ये गुफाएं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गईं. यहां की सुंदर चित्रकारी व मूर्तियां कलाप्रेमियों के लिए अनमोल तोहफा हैं.

हथौड़े और छेनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियां अपने आप में अप्रतिम सुंदरता समेटे हैं. गुफाएं देखने के लिए आप को कई बार सीढि़यां चढ़नी और उतरनी होंगी. इस के लिए आप को स्वास्थ्य की दृष्टि से फिट रहना होगा. हर गुफा के पास एक बोर्ड लगा है जिस पर हिंदी व अंगरेजी में गुफा की संख्या और संबंधित जानकारी लिखी हुई है. चित्रों की उम्र तीव्र प्रकाश के कारण कम हो रही थी, इसलिए गुफाओं में 4 से 5 लक्स की रोशनी ही होती है यानी टिमटिमाती मोमबत्ती जैसी रोशनी. किसी भी चित्र की खूबसूरती का पूरा एहसास होने के लिए 40 से 50 लक्स तीव्रता वाली रोशनी की जरूरत होती है.

एलोरा की गुफाएं औरंगाबाद से लगभग 30 किलोमीटर दूर एलोरा की गुफाएं हैं. एलोरा में 34 गुफाएं हैं. ये गुफाएं बसाल्टिक की पहाड़ी के किनारेकिनारे बनी हुई हैं.

महत्त्वपूर्ण बातें

मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, नासिक, इंदौर, धूले, जलगांव आदि शहरों से औरंगाबाद के लिए बस सुविधा उपलब्ध है. सोमवार का दिन छोड़ कर आप कभी भी अजंता-एलोरा जा सकते हैं. औरंगाबाद रेलवेस्टेशन से दिल्ली व मुंबई के लिए ट्रेन सुविधा है. औरंगाबाद रेलवे स्टेशन के पास महाराष्ट्र पर्यटन विभाग का होटल है.

अगर गरमी के मौसम में जा रहे हैं तो सुबह जल्दी पहुंच जाएं, साथ में पानी, हैट और सन ग्लासेज ले जाना न भूलें. वैसे, यहां की यात्रा करने का सब से अच्छा समय नवंबर से फरवरी का है.

गुफाओं तक पहुंचने के लिए आप को कुछ चढ़ाई वाला रास्ता तय करना पड़ेगा, बाद में रास्ता सरल और सुगम है. इसलिए इस दौरान आरामदायक जूते पहनें.

बंदरों से सावधान रहें.

यूनेस्को की इस विरासत स्थल को पूरी तरह देखने के लिए आप को 3-4 घंटे की आवश्यकता होगी. पूरे दिन का यह ट्रिप आप को निराश नहीं करेगा.

भोजन के लिए एमटीडीसी के रेस्तरां काफी अच्छे हैं.

टिकट एरिया के पास मंडराने वाले फेरीवालों से बच कर रहें, वे परेशान करते रहते हैं.

जरूरी बातें

ऐसे गाइडों से बच कर रहें जो अपनी जानपहचान वाली उन दुकानों पर ले जाते हैं जहां उन का कमीशन बंधा होता है. उन दुकानों पर खरीदारी का सामान महंगा होता है.

बुजुर्गों के लिए यहां जाना थोड़ा थकानभरा हो सकता है. इसलिए वे स्वस्थ हों तभी वहां जाएं. यहां जाने का सब से बेहतरीन समय सर्दी का है.

सुबह जल्दी से जल्दी गुफाओं तक पहुंच जाएं और शाम को 4 बजे तक वापस औरंगाबाद पहुंच जाएं ताकि आप बीबी का मकबरा, पंचकी और सिद्धार्थ गार्डन व चिडि़याघर जैसे स्थलों का भी आनंद ले सकें.

अपनी त्वचा के अनुसार चुनें सनस्क्रीन

सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वॉयलेट किरणें न केवल त्वचा को जलाती हैं, बल्कि इससे स्किन कैंसर की आशंका भी बढ़ती है. त्वचा को इन हानिकारक किरणों से बचाने के लिए सनस्क्रीन का प्रयोग बहुत जरूरी है. यदि आप सनस्क्रीन का चुनाव कर रही हैं तो सबसे ज्यादा जरूरी है त्वचा के हिसाब से सही सनस्क्रीन की पहचान और उसे सही तरीके से लगाने की विधि का जानकारी होना.

त्वचा के अनुसार चुनें सनस्क्रीन

सनस्क्रीन का चुनाव अपनी त्वचा के अनुसार ही करें. अधिकांश लोगों की शिकायत होती है कि सनस्क्रीन लगाने के बाद उनकी त्वचा बहुत तैलीय हो जाती है इसलिए वे सनस्क्रीन नहीं लगाते. त्वचा तैलीय है तो स्प्रे या फिर जेल टाइप की सनस्क्रीन का प्रयोग करें. यह आपके रोमछिद्रों को बंद नहीं करेगा और त्वचा तैलीय भी नहीं होगी.

जबकि शुष्क त्वचा के लिए मॉइस्चराइजर बेस्ड सनस्क्रीन लोशन का प्रयोग करना चाहिए. यदि सनस्क्रीन लगाने के बाद आपकी त्वचा की चमक खो जाती है तो समझिए कि यह सनस्क्रीन आपकी त्वचा के लिहाज से ठीक नहीं है. इसलिए हमेशा मैट फिनिश वाली सनस्क्रीन चुनें.

यूवीए और यूवीबी प्रोटेक्शन है जरूरी

सनस्क्रीन लोशन त्वचा को सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाता है, लेकिन ये किरणें दो प्रकार की होती हैं, यूवीए और यूवीबी. यूवीए किरणें त्वचा की पिग्मेंटेशन को बढ़ाती है, जबकि यूवीबी किरणें टैनिंग और स्किन कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं. इसलिए यूवीए से बचाव के लिए ‘एसपीएफ’ का चिन्ह और यूवीबी से बचाव के लिए ‘पीए’ का प्रतीक अवश्य जांच लीजिए. यूवीबी किरणों से बचाव के लिए आपका सनस्क्रीन कम से कम एसपीएफ 30 वाला होना चाहिए. त्वचा की रक्षा करने के लिए इतना एसपीएफ पर्याप्त होता है.

कब और कितना लगाएं

सही सनस्क्रीन की पहचान जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी यह भी है कि आप सनस्क्रीन लोशन लगाती कब और कितनी मात्रा में हैं. धूप में निकलने से कम से कम 20 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाने से ही फायदा मिलता है. ऐसा करने से सनस्क्रीन लोशन आपकी त्वचा में अच्छे तरीके से मिल जाएगी और सूर्य की किरणों के प्रभाव को बेअसर करने में कारगर हो सकेगी. यदि आप तैराकी करने जा रही हैं तो वाटरप्रूफ सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल करें.

महिलाएं भी लें वित्तीय फैसलों में भाग

आज के समय पर ये बात कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं पुरूषों से ज्यादा मल्टी टास्किंग हैं और कामकाजी महिलाएं इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. अगर आप भी कामकाजी हैं तो ये बात तो आप बहुत अच्छी तरह समझती होंगी कि, महिलाएं घर और ऑफिस, कितनी अच्छी तरह से संभालती हैं. पर आज भी महिलाओं का सशक्तिकरण को मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जिनमें लड़कियों को शिक्षित करना और महिलाओं का वित्तीय रूप से सशक्त होना.

ये बात तो सभी मानते हैं कि महिलाओं को वित्तीय रूप से मजबूत करने से समाज को बहुत फायदा होगा. अधिकतर देखा गया है कि ज्यादातर परिवारों के वित्तीय फैसले पुरूष ही करते हैं और जहां आवश्यक होता है वहां महिलाएं केवल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करती हैं. कार खरीदने या घर खरीदने जैसे फायनेन्शियल फैसलों में महिलाएं पीछे क्यों रहती हैं. इसके लिए आपको थोड़ा सा प्रयास करना होगा..

धीरे-धीरे शुरूआत करें : क्या इसमें बदलाव लाया जा सकता है? क्यों नहीं. बिल्कुल बदलाव लाया जा सकता है. इसके लिए हमें निवेश और फाइनेंशियल प्लानिंग के कुछ बेसिक समझने होंगे.

छोटी-छोटी चीजों पर दें ध्यान : आप अपनी बैंक ब्रांच जाकर चेक, कैश डिपॉजिट करवा सकती हैं. अपनी पासबुक अपडेट करवा सकती हैं. आप घर के बिल ऑनलाइन पे कर सकती हैं. इसके अलावा आप ट्रेन, बस के टिकट बुक करवा सकती हैं. बेहतर होगा अगर आप अपने खर्च का पूरा हिसाब खुद रखेंगी.

इंश्योरेंस के बारे में जाने : जैसे-जैसे आप आगे बढ़ें, आपको इंश्योरेंस के बारे में जानना चाहिए. आप अपने परिवार के लिए लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस करवाएं. इसके अलावा आपका मकान, दुकान भी दूसरे खतरों से सुरक्षित रहें इसके लिए इंश्योरेंस करवाएं.

वित्तीय सलाहकार की सहायता लें : इसके लिए अगला कदम हैं वित्तीय सलाहकार की सहायता लें. अपने निवेश से संबंधित सवाल पूछें. वित्तीय सलाहकार से समझें कि महंगाई कैसे आपके निवेश पर असर डालती है. म्युचुअल फंड के रिटर्न कैसे महंगाई के मुकाबले ज्यादा होते हैं. अपने पोर्टफोलियो और लक्ष्य को समय-समय पर ट्रैक करना सीखें.

निवेश की शुरूआत जल्दी करें : याद रखें आप जितना जल्दी निवेश की शुरूआत करेंगे उतनी ही जल्दी अपने जीवन के विभिन्न लक्ष्यों को पा सकेंगी. अपनी रिटायरमेंट की रकम का भी इंतजाम कर सकेंगे.

नियमों की जानकारी रखने की कोशिश करें : आप इनकम टैक्स रिटर्न भरने में भी सहयोग कर सकती हैं. रिटर्न की प्रक्रिया समझने में कोई बुराई नहीं है. समय-समय पर ऐसे प्रोडक्ट्स और नियमों की जानकारी रखें जो आपके निवेश को प्रभावित करते हैं. जैसे कि रिजर्व बैंक का दरें बढ़ाना या घटाना.

ऐसा सब करने के लिए आपको शुरूआत में कुछ कठिनाई होगी. लेकिन आप जैसे-जैसे इसमें शामिल होने लगेंगी, आपको अच्छा लगने लगेगा और ये आपके लिए जरुरी भी है.

हिन्दी सिनेमा में यादगार नाम है ‘किदर शर्मा’

बॉलीवुड फिल्म निर्माता किदर शर्मा, का जन्म 12 अप्रैल को हुआ था. फिल्म निर्माता होने के साथ-साथ किदर एक स्क्रिप्ट राइटर, लीरिसिस्ट भी थे. 50 से ज्यादा हिन्दी फिल्में बनाने के साथ उन्होंने साल 1949 में आई फिल्म ‘नेकी और बदी’ में मुख्य किरदार निभाया था. किदर शर्मा का जन्म नरोवल, जो कि अब पाकिस्तान में हैं, के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था.

उस समय किदर, देवकी बोस की फिल्मों से काफी प्रेरित थे और उनकी ही फिल्मों से प्रेरित होकर उन्होंने बतौर पेंटर कलकत्ता की एक थियेटर कंपनी में काम करना शुरु कर दिया था. किदर के हुनर को देखते हुए देवकी बोस ने उन्हें लिरिक्स और कुछ डायलॉग्स लिखने की सलाह दी.

एक बीमारी के बाद 29 अप्रैल साल 1999 में, हिंदी के बड़े फिल्म निर्माता किदर शर्मा की मौत हो गई थी. विडंबना से, किदर को उनकी मौत के एक दिन बाद ही महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुंबई के शाममखानंद हॉल में ‘राज कपूर पुरस्कार’ दिया जाना था. इसमें विडंबना ये थी कि, किदर शर्मा ही वे निर्माता थे जिन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए राज कपूर जैसे अभिनेता की खोज की थी. राज कपूर के अलावा उन्होंने मधुबाला, गीता बाली, भरत भूषण, मेहताब और माला सिन्हा जैसी अन्य सितारे भी हिन्दी सिनेमा को दिये थे.

किदर शर्मा ने नील कमल जैसी सुपर हिट फिल्म के अलावा देवदास, विद्यापति, चित्रलेखा, , सुहाग रात, जोगन, बावर नैन, पयाज नैन, जिंदगी, करोड़पति, अनाथा आश्रम, विशाखकन्या, मुमताज महल, भंवारा और भेगी पोल्केन जैसी कई हिट फिल्मों का निर्माण किया.

किदर शर्मा ने ‘पंछी’ नाम से कविताओं की एक पुस्तक भी प्रकाशित की थी, जिसकी एक प्रति गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ऑटोग्राफ्ड है. किदर की फिल्म ‘चित्रलेखा’ की सफलता के बाद, उस समय के काफी बड़े फिल्म निर्माता और साल 1927 की काफी चर्चित फिल्म ‘गनसुंदरी’ के डायरेक्टर चंदुलाल शाह ने साल 1941 में अपने लिए फिल्म बनाने के लिए किदर को बॉम्बे आमंत्रित किया.

किदर शर्मा ने चंदुलाल शाह के साथ, उस समय के कुछ सबसे बड़े सितारों के साथ फिल्मों का निर्देशन किया, जैसे फिल्म ‘अरमान’ में मोतीलाल और शमीम और विशाख्य और ‘गौरी’ में अभिनेता पृथ्वीराज कपूर. फिल्म ‘गौरी’ वही फिल्म है जिसमें किदर ने एक नये चेहरे मोनिका देसाई को मुख्य भूमिका में रखा था. इसी फिल्म में राज कपूर को सहायक निर्देशक के रूप में पहला ब्रेक मिला था.

ये कहना गलत नहीं होगा कि किदर द्वारा बनाई गई अधिकतर फिल्मों ने किसी न किसी बॉलीवुड हस्ती को ब्रेक दिया है. अगर इस बारे में और बात की जाए तो किदर की फिल्म ‘दुनिया एक सराय’ में मीना कुमारी को बाल कलाकार के रूप में अपना पहला ब्रेक मिला था.

यहीं बात खत्म नहीं होती, किदर ने रंजीत स्टूडियोज के लिए, दिलीप कुमार की भूमिका वाली और नर्गिस अभिनीत फिल्म ‘जोगन’ बनाई, जो एक सर्वकालिक क्लासिक फिल्म मानी जाती है और इसे आज भी याद किया जाता है. ये बात जानकर आपको हैरानी होगी कि किदर शर्मा ऐसे भारतीय फिल्म निर्देशक हैं जिन्हें साल 1945 में पहली मरतबा हॉलीवुड और यूनाइटेड किंगडम के लिए फिल्म प्रतिनिधिमंडल के लिए चुना गया था.

50 के दशक में, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शर्मा के गीतों को सुना, जिनसे प्रभावित होकर नेहरू ने, उन्हें बुलाया और ‘चिल्ड्रन्स फिल्म सोसायटी’ का निर्देशक बनने के लिए कहा. इस सोसायटी के लिए बनाई गई उनकी पहली फिल्म थी, ‘जलदीप’ जिसने वेनिस फिल्म फेस्टिवल पुरस्कार भी हासिल किया था.

एक उत्कृष्ट कवि के रूप में शर्मा ने कई शानदार गीतों को लिखा, जिन्हें उस वक्त के महान गायक के एल सैगल द्वारा गाया गया, इनमें ‘बालम आयो बसो मोरे मन में’, ‘मैं क्या जानू क्या जादू है’, ‘सो जा राजकुमारी’, ‘दुख के अब दिन बीते नहीं’ और ‘पंछी काहे होत उदास’ जैसे, यादगार गीत शामिल हैं.

एक गीत है जिसे मधुबाला ने एक बार अपने मरने से पहले उन्हें समर्पित करने के लिए किदर से कहा था, ‘राधा को न तरसा, श्याम पछताएगा’. हिन्दी सिनेमा में पटकथा लेखन और संवाद में किदर शर्मा की प्रतिभा सचमुच गहन सराहनीय है.

जब एक डायरेक्टर ने एक्ट्रेस को जड़ दिया थप्पड़

एक्ट्रेस तनुजा कौन नहीं जानता होगा. वह अपने जमाने की दिलकश अदाकाराओं में से एक थीं. तनुजा की मां शोभना समर्थ और बड़ी बहन नूतन हिंदी फिल्मों की बड़ी स्टार थीं. इसलिए तनुजा का भी हीरोइन बनना लाजमी था.

तनुजा ने अपने करियर की शुरुआत निर्देशक केदार शर्मा की फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ से की थी. तनुजा को लगता था कि उनकी मां और बहन तो बड़ी स्टार हैं ही, इसलिए वो भी सुपरहिट हीरोइन बनेंगी. लेकिन तनुजा गलत निकलीं. पहली फिल्म में ही उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जो उन्होंने सोचा तक नहीं था.

बता दें कि तनुजा को 1960 में उनकी मां शोभना समर्थ ने फिल्म ‘छबीली’ में लॉन्च किया था. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान तनुजा इतने नखरे दिखाती थीं कि पूरी यूनिट उनसे परेशान रहती थी. यही काम उन्होंने केदार शर्मा की फिल्म में भी किया. तनुजा सेट पर हर समय हंसी-मजाक में व्यस्त रहती थीं. लेकिन केदार शर्मा को ये सब बिलकुल पसंद नहीं था.

सूत्रों की मानें तो फिल्म के एक सीन में तनुजा को रोना था लेकिन वो बार-बार हंस रही थीं. ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार हुआ. तनुजा अपने काम को बिलकुल भी संजीदगी से नहीं लेती थीं. तनुजा ने केदार शर्मा से कहा कि आज मेरा रोने का मूड नहीं है. इसी बात से नाराज होकर केदार शर्मा ने तनुजा को जोरदार तमाचा जड़ दिया.

ये देखकर पूरी टीम सन्न रह गई. तनुजा रोते हुए केदार शर्मा की शिकायत करने मां शोभना के पास पहुंची. जब तनुजा ने पूरी बात बताई तो मां ने उल्टा तनुजा को एक और थप्पड़ जड़ दिया. क्योंकि वो तनुजा के व्यवहार से अच्छी तरह वाकिफ थीं. अब तनुजा का रो-रोकर बुरा हाल था.

शोभना तनुजा को वापस सेट पर लेकर गईं और केदार शर्मा से कहा कि अब ये रो रही है. शूटिंग शुरू कर दीजिए. इसके बाद तनुजा ने पर्फेक्ट शॉट दिया.

बता दें कि केदार शर्मा उस समय के गुस्सैल निर्देशकों में से एक माने जाते थे. वो तनुजा से पहले कई सुपरस्टार को तमाचा जड़ चुके थे. खैर तनुजा को इस थप्पड़ ने ही बुलंदियों पर पहुंचाया.

नहीं चला इन सुपरहिट फिल्मों के सीक्वल का जादू

साल 2015 में आई बाहुबली फिल्म ने बहुत सी बड़ी बजट की फिल्मों को पीछे छोड़ दिया था. फिल्म की कामयाबी को देखते हुए फिल्म के निर्देशक और निर्माताओं ने बाहुबली-2 बनाने का भी फैसला किया था. अब कुछ कम दिन ही बचे हैं बाहुबली-2 पर्दे पर आने ही वाली है. इस फिल्म को लेकर दर्शकों में कुछ ज्यादा ही उत्साह है और ये उत्साह फिल्म के ट्रेलर रिलीज के समय ही देखने को मिल गया था.

लेकिन बॉलीवुड की सभी फिल्मों के सीक्वल से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है. लेकिन फिर भी निर्देशक फिल्मों पर दाव खेल ही लेते हैं. बॉलीवुड में ऐसी बहुत सी फिल्में हैं जिनके सीक्वल बुरी तरह फ्लॉप रहे हैं.

तुम बिन

2001 में बनी फिल्म तुम बिन को बहुत पसंद किया गया था इसका म्यूजिक और गाने भी बहुत हिट हुए थे लेकिन फिल्म का दूसरा भाग तुम बिन-2 को जब पर्दे पर लाया गया तो फिल्म 2001 जैसा जादू नहीं कर पाई.

आशिकी-2

राहुल रॉय और अनु अग्रवाल की फिल्म आशिकी ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. लेकिन फिल्म का दूसरा भाग वैसा जलवा नहीं चला पाया था. हालांकी फिल्म का म्यूजिक बहुत हिट हुआ था.

कृष 2 और 3

कोई मिल गया फिल्म को सभी ने खूब सराहा था लेकिन फिल्म के दोनों हा भाग फ्लॉप रहे. कृष फिल्म का म्यूजिक भी लोगों को कुछ खास पसंद नहीं आया था.

राज-2

राज फिल्म का अंदाजा बिपाशा बसु की कामयाबी से लगाया जा सकता है. बिपाशा रातों रात स्टार बन गई थी. लेकिन फिल्म का सीक्वल दर्शकों के सिर के ऊपर से निकल गया था.

डॉन-2

अमिताभ बच्चन की फिल्म डॉन में जो बात थी वो शाहरुख की डॉन में दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आयी. फिल्म हर तरह से बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही थी. फिल्म के गाने भी हिट नहीं हुए थे.

डेढ़ इश्किया

फिल्म इश्किया का सीक्वल दर्शकों पर फिल्म के पहले भाग जैसा जादू नहीं चला पाई. फिल्म में माधुरी और हुमा कुरैशी मिलकर भी विद्या बालन की कमी पूरी नहीं कर पाई.

ग्रेट ग्रैंड मस्ती

अडल्ट कॉमेडी साबित हुई फिल्म मस्ती का पार्ट-2 भी नहीं चल पाया. फिल्म की अडल्ट कॉमेडी ने फिल्म को बोझिल बना दिया. फिल्म अपने पहले पार्ट जैसा दर्शकों को मजा नहीं दे सकीं.

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