अदा खान ने शिमला में मनाया जन्मदिन

फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में अपना जन्मदिन मनाने के लिए कलाकार बड़े होटल में बड़ी पार्टियों का आयोजन करते हैं, जिसमें वह टीवी व फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को आमंत्रित करते हैं. इस बार सारे तामझाम से दूर अदा खान ने शिमला में अपना जन्म दिन मनाया क्योंकि अदा खान पार्टी पर पैसा खर्च नहीं करना चाहती थीं. इसी के साथ वह पहली बार शिमला की सैर भी कर आयीं.

इस संबंध में जब अदा खान से बात हुई, तो अदा खान ने कहा ‘‘मैंने इस बार अपना जन्मदिन किसी अच्छी खूबसूरत जगह पर मनाने का फैसला करते हुए शूटिंग से चार दिन की छुट्टी ली थी. मैंने यह निर्णय यह सोचकर लिया कि जन्मदिन पर मुंबई में बड़ी पार्टी पर पैसा खर्च करने की बजाय खूबसूरत जगह की सैर करना मेरे लिए ज्यादा अच्छा रहेगा. इसके अलावा शूटिंग के तनाव से भी राहत मिलेगी. इसीलिए मैंने काफी सोचकर खूबसूरत जगह शिमला को चुना. शिमला की नैचुरल प्राकृतिक सुंदरता मनमोह लेती है. गर्मियों में तो शिमला की हरी भरी व खूबसरत छटा देखते ही बनती है. सच कह रही हूं मैं पहली बार शिमला गयी थी और अब मुझे लगता है कि मैंने बहुत सही निर्णय लिया. शिमला की इस चार दिन की यात्रा को मैं कभी भुला नहीं सकती.’’

प्रकृति की गोद में लें छुट्टियों का मजा

रोजमर्रा के कामकाज की थकान के बाद सबको तलाश होती है सुकून के कुछ पलों की. शहर की इमारतों और भीड़भाड़ से अलग अगर आप भी कुछ दिन प्रकृति की गोद में बिताना चाहते हैं तो हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे जगहों के बारे में जिनकी याद आपके जेहन में हमेशा ताजा रहेंगी.

इंडोनेशिया

घूमने के लिहाज से इंडोनेशिया काफी सस्ता है. भीड़-भाड़ से अलग बाली के दूरदराज में स्थित बीच प्राकृतिक नजारों से भरे पड़े हैं. इन बीचों में लोमबेक और गिली द्वीप प्रमुख हैं. बड़े खूबसूरत शहरों, चमचमाती सड़कों और रंगा-रंग जिंदगी के अलावा जावा द्वीप समूह में भी कई खूबसूरत जगह मौजूद हैं. वहां आप जिंदा ज्वालामुखी और पंगाडरन की वाइल्ड लाइफ का अनंद ले सकती हैं.

जॉर्डन

जॉर्डन में नई और पुरानी संस्कृति को एक साथ देखा जा सकता है. यहां के प्राकृतिक नजारे भी अद्भुत हैं. आधुनिक शहर अम्मान से मृत सागर और जॉर्डन के सिटी ऑफ पेट्रा को देखना एक अलग अनुभव है.

केन्या

अगर आपको जानवरों का शौक है तो केन्या आपके लिए शानदार विकल्प है. यहां 50 से ज्यादा नेशनल पार्क और रिजर्व क्षेत्र हैं, जहां के अपने कुछ खास नियम हैं. इसके अलावा यहां खूबसूरत बीचों की भी भरमार है.

बेलीज

सेंट्रल अमरिका स्थित बेलीज में 87 अलग-अलग तरह के इकोसिस्टम हैं, जिनसे इकोसिस्टम और कृषि को लाभ मिलता है. यही इस देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है. मयन मंदिर यहां मुख्य आकर्षण का केंद्र है.

साबूदाना से निखारें खूबसूरती

साबूदाना सेहत के लिए हेल्‍दी होता है. अक्‍सर हम व्रत और उपवास के दौरान ही इसे अपने डाइट में शामिल करते है. लेकिन रोजाना इसे खाने के भी कई फायदे हैं, इसमें भारी मात्रा में ऊर्जा और कार्बोहाइड्रेटस पाया जाता है.

इसे खाने के अलावा दूसरी चीजों के साथ मिलाकर चेहरे और बालों में लगाना भी काफी फायदेमंद होता है. आइए जानते है कि कैसे साबुदाने से मुलायम और चमकदार स्किन पाई जा सकती है.

रिंकल्स से पाएं निजात

साबुदाने को अंडे के पीले भाग के साथ मिलाकर अगर चेहरे पर लगाया जाएं तो चेहरे से रिंकल्‍स निकल जाते है.

हेयर फॉल की समस्या घटाए

साबुदाने के पाउडर को ऑलिव ऑयल के साथ मिलाकर पेस्‍ट बना लें. फिर इसे बालों पर 30 मिनट के लिए लगा लें. इससे हेयर फॉल की समस्‍या कम होती जाएगी.

दूर होगी टैनिंग की समस्या

साबुदाने पाउडर को कच्‍चे दूध के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाएं. इससे चेहरे की रंगत बढ़ेगी और टैन जाएगां.

बाल बनाओ मुलायम

साबुदाने के पाउडर को दही, गुलाब जल और शहद के साथ चमकदार व मुलायम बालों के लिए लगाएं.

दाग धब्बे हटाए

शहद और नींबू के रस के साथ साबुदाना पाउडर को चेहरे पर लगाएं, इससे चेहरे से दाग धब्‍बे दूर हो जाएंगे.

खाना बनाएं तनाव भगाएं

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कुकिंग को स्ट्रैस बस्टर माना जाता है, क्योंकि जब आप खाना बनाते हैं तो आप उसे बनाने और उस का स्वाद बढ़ाने के लिए तरह तरह की सामग्री का प्रयोग करते हैं. सब्जियों को काटने से ले कर बनाने तक की पूरी प्रक्रिया में आप का ध्यान बंट जाता है, जिस से आप का स्ट्रैस लैवल कम हो जाता है.

एक सर्वे में यह पाया गया कि बेकिंग से महिलाओं और पुरुषों में करीब 40% स्ट्रैस कम हो जाता है. इसलिए खाना बनाने को बोझ नहीं, बल्कि अपनी मानसिक और शारीरिक हैल्थ के लिए उपयोगी मानने की जरूरत है.

इस बारे में हाइपर सिटी में आयोजित ‘कुकिंग विद ऐक्सपर्ट’ में आए सैलिब्रिटी शैफ रणवीर बरार का कहना है, ‘‘कुकिंग बैस्ट थेरैपी है, जो किसी भी दिमागी परेशानी को कम कर सकती है. बड़ेबड़े शहरों में कुकिंग से स्ट्रैस लैवल को कम करने की दिशा में वर्कशौप चलाई जा रही हैं. पूरा विश्व इसे थेरैपी मानता है. 5 साल पहले विदेशों में जो स्ट्रैस लैवल था उसे बेकिंग और कुकिंग से 80% तक कम करने में मदद मिली है. मेरी लाइफ में भी कुकिंग की वजह से बहुत परिवर्तन आया है. मैं 16 साल की उम्र में कोयला ढोता था और मसाले कूटता था. आज 23 वर्षों में मैं यहां तक पहुंच पाया हूं. मेरे हिसाब में लड़के हों या लड़कियां सभी के लिए कुकिंग आना आवश्यक है.’’

कुकिंग के निम्न फायदे हैं.

– खाना एकदूसरे को जोड़ता है, फिर चाहे वह फ्रैंड हो या परिवार वाले, अच्छे भोजन की सब की चाह रहती है.

– कुकिंग करते समय तरहतरह के व्यंजनों को काटना पड़ता है, जिस में सब्जियों के कलर और मसालों के फ्लेवर काटने वाले की नसों को शांति प्रदान करते हैं, जिस से तनाव कम होता है.

– सब्जियों को काटना, मसलना, क्रश करना, स्लाइस करना, छीलना आदि सभी काम ध्यान को प्रभावी तरीके से किसी भी समस्या से दूर हटाते हैं, जिस से आप तनावमुक्त हो जाते हैं.

– कुकिंग में क्रिएटिविटी खूब होती है. जितना आप उसे सही तरीके से पेश करेंगे, उतने ही आप नएनए तरीके सोचेंगे. इस से आप गुड फील करेंगे.

– अगर आप अच्छा खाना बनाती हैं, तो अधिकतर फ्रैंड या परिवार वाले आप के इस हुनर की तारीफ करते नहीं थकते. इस से आप का मनोबल ऊंचा होता है.

– जब आप खाना किसी दोस्त या परिवार वालों की पसंद का बनाती हैं और वे उसे खुश हो कर खाते हैं और आप के साथ खुशी को शेयर भी करते हैं, तो इस से आप पर स्ट्रैस की जगह फूड हावी हो जाता है.

– खाना बनाना एक कला है, जो हर व्यक्ति में अलगअलग होती है और शांति देती है.

– खाना बनाना आने पर आप अपना मनपसंद खाना खा सकते हैं, जिस से आप को सुकून मिलेगा और तनाव दूर होगा.

यह सही है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कामकाजी महिलाओं के लिए खाना बनाना आसान नहीं होता. ऐसे में आप अगर स्मार्ट कुकिंग करना चाहती हैं तो यह तैयारी पहले से कर लें.

– कुकिंग में प्रयोग होने वाली पूरी सामग्री का प्रबंध आप नहीं कर सकतीं तो ऐसे में स्मार्ट कुकिंग का सब से अच्छा तरीका यह है कि बाजार में मिलने वाले तरहतरह के मसालों का प्रयोग खाने में करें. इस के लिए पौष्टिकता, टेस्ट और सुगंध बनाने वाले मसालों का ध्यानपूर्वक चयन कर खरीद कर घर में रखें.

– सब्जियों को रात में काट कर, कच्चे मसाले की सामग्री को पीस कर, भिगो कर और भाप दे कर पहले से फ्रिज में रख लें.

– अगर दाल बनानी है तो उसे पहले से भिगो कर रखें ताकि जल्दी पक जाए. इस से उस के पोषक तत्त्व भी कायम रहते हैं और गल भी जल्दी जाती है.

कामकाजी महिलाओं के लिए रणवीर बरार कहते हैं, ‘‘कामकाजी महिलाएं अपना ध्यान न रख कर पूरे परिवार का खयाल रखती हैं. इस से उन का ‘मूड’ और ‘मौरल’ दोनों ही नीचे चले जाते हैं. ऐसे में उन्हें अपना खयाल पहले रखना चाहिए ताकि उन्हें काम के दौरान किसी प्रकार का तनाव न रहे.’’

द मम्मी टमी

डिलिवरी के बाद भी इन महिलाओं का पेट प्रैगनैंट लेडी की ही तरह निकला होता है. टमी को वापस अपनी शेप में आने में कम से कम 6 हफ्ते का समय लगता है, इसलिए तब तक इन का फ्लैट टमी के लिए ट्राई करना बेकार है. डिलिवरी के बाद महिलाएं वेट कम करने के चक्कर में बहुत जल्दी ऐक्सरसाइज करना शुरू कर देती हैं, डिलिवरी के समय लगभग हर महिला का वजन 9 से 11 किलोग्राम तक बढ़ता ही है. इसे कम करने लिए वे डाइटिंग का सहारा लेने लगती हैं, जो गलत है. इस के अलावा वे स्तनपान कराने से भी बचती हैं.

मेकओवर प्लान

नौर्मल डिलिवरी के 6 हफ्तों के बाद आराम से ऐक्सरसाइज शुरू की जा सकती है और अगर डिलिवरी सिजेरियन से हुई हो तो कम से कम 3 महीने बाद ही कोई ऐक्सरसाइज शुरू करनी चाहिए. किसी भी ऐक्सरसाइज को शुरू करने से पहले डाक्टर से राय जरूर लें.

 – कई शोधों में यह प्रमाणित हो चुका है कि नियमित रूप से स्तनपान कराने से 500 कैलोरी घटती है यानी स्तनपान से फिट हुआ जा सकता है.

– डिलिवरी के बाद कैल्सियम और आयरनयुक्त आहार लें. – सुबह और शाम वाक करना सब से अच्छी ऐक्सरसाइज है. इस से शरीर की अकड़न कम होगी.

– टोनिंग, ब्रीदिंग जैसी ऐक्सरसाइज से शुरुआत करें.

– टमी को फ्लैट करने के लिए केगेल ऐक्सरसाइज करें.

– पेट के ऐक्स्ट्रा फैट को दूर करने के लिए पीट के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ लें. पेट पर दोनों हाथ क्रौस की मुद्रा में रखें और सिर को ऊपर की ओर उठाएं. गहरी सांस लेते हुए धीरेधीरे छोड़ें.

– सभी ऐक्सरसाइज कितनी देर और कैसे करनी चाहिए यह डाक्टर से बातचीत के बाद ही तय करें.

जब बौस धमकाए…

आज युवाओं की सब से बड़ी समस्या यह है कि वे किसी की नहीं सुनते, उन्हें किसी का ऊंची आवाज में बोलना बरदाश्त नहीं होता. औफिस हो या घर उन्हें तो बस अपने स्टाइल में जीना पसंद है तभी तो यदि बौस उन्हें जरा सी भी कड़क आवाज में कुछ कह देता है तो वे गुस्से से तमतमा जाते हैं. ऐसे में वे बौस को खरीखोटी सुनाने से भी गुरेज नहीं करते. मन ही मन वे जौब छोड़ने तक का फैसला कर बैठते हैं.

लेकिन क्या कभी जब आप को बौस ने धमकाया तब आप ने खुद का आकलन किया कि आखिर बौस ने आप को धमकाया क्यों? क्या वास्तव में आप की गलती थी या फिर मामूली सी बात पर आप को झाड़ दिया. कई बार बौस आप को आगे बढ़ाने के लिए या आप की ग्रोथ के लिए भी डांटते हैं, लेकिन गुस्से में होने के कारण आप उन के भीतर छिपी भावना को नहीं पहचान पाते और इसे बौस की दादागीरी या हुक्म चलाना समझ बैठते हैं.

इसलिए जब भी बौस आप को किसी बात के लिए डांटें तो खुद में तो सुधार लाएं ही साथ ही निम्न बातों को भी नजरअंदाज न करें :

गलती न दोहराएं

एक बार जिस बात के लिए आप को बौस से डांट पड़ी हो अगली बार उस गलती को दोहराने की कोशिश न करें, क्योंकि बारबार गलती करने पर माफी मिले, यह जरूरी नहीं.

यदि बौस ने आप को किसी काम को करने की डैडलाइन दे रखी है तो आप कोशिश करें कि डैडलाइन से पहले ही उस काम को पूरा कर लें, क्योंकि इस से एक तो आप को बौस की नाराजगी नहीं झेलनी पड़ेगी साथ ही आप काम के प्रति सीरियस हैं, यह भी पता चलेगा.

एक बात और, जब हम किसी काम को दबाव या हड़बड़ी में करते हैं तो उस में गलती के चांसेज ज्यादा होते हैं. इस से अच्छा है कि समय पर और सही ढंग से काम पूरा करें.

इस का एक फायदा और भी है कि अगर कभी अचानक किसी जरूरी काम से आप को बाहर जाना पड़े तो आप अपने बौस से काम पूरा होने के कारण छुट्टी मांगने का हक भी रख पाएंगे.

बौस से पड़े डांट तो न करें डिस्कस

गलती होने पर तो बौस की डांट खानी ही पड़ती है, लेकिन कई बार बेवजह डांट भी पड़ती है, जो सहन करनी पड़ती है, इस डांट का हर जगह ढिंढोरा पीटना कि पता नहीं खुद को क्या समझते हैं, मेरी इन्सल्ट कर दी, खुद को तो कुछ आताजाता नहीं वगैरावगैरा कह कर जब आप इस तरह की बातें ग्रुप में शेयर करते हैं तो भले ही उस समय आप के साथ काम करने वाले आप की हां में हां मिला कर आप को सही ठहराएं, लेकिन हो सकता है कि उन में से कोई बौस का खास हो, जो आप से मीठीमीठी बातें कर के सब उगलवा ले, लेकिन बाद में उन्हीं बातों को बौस के सामने मिर्चमसाला लगा कर पेश कर दे जिस से आप की इमेज और खराब हो जाए.

जब बौस भी अपनी ऐसी आलोचना सुनेंगे तो हो सकता है कि आप को सबक सिखाने के लिए किसी ऐसे कार्य में उलझा दें कि उस के बाद आप खुद ही जौब छोड़ने पर मजबूर हो जाएं. इसलिए अच्छा यही है कि बौस की डांट व बात को अपने तक ही सीमित रखें.

काम में परफैक्शन लाएं

टैक्नोलौजी के इस युग में हमें सबकुछ रैडीमेड मिल जाता है यानी सारा मैटर नैट से पकापकाया मात्र एक क्लिक से ले सकते हैं, लेकिन उस से काम में परफैक्शन नहीं आएगा और हो सकता है कि आप की चोरी भी पकड़ी जाए, तो ऐसे में बैस्ट तरीका यही है कि आप अपने काम में क्वालिटी लाने के लिए रिसर्च वर्क करें न कि डैस्क वर्क. जब आप किसी एक टौपिक पर कई जगह से कलैक्शन करेंगे तो रिजल्ट तो बैस्ट निकलेगा ही और बौस चाह कर भी आप के काम में कमी नहीं निकाल पाएंगे.

कायदे कानून न तोड़ें

औफिस में एकजैसा काम करतेकरते हम बोरिंग सा फील करने लगते हैं. ऐसे में रीफ्रैश होने के लिए इधरउधर जा कर एकदूसरे की सीट पर खडे़ हो जाते हैं, जिस से हम दूसरों का समय तो खराब करते ही हैं साथ ही कुछ की नजरों में भी खटकने लगते हैं. फोन पर लाउडली बात करना, पूरा दिन व्हाट्सऐप पर लगे रहना, औफिस आवर्स में फेसबुक पर चैट करने में व्यस्त रहना, यदि औफिस में पंचिंग मशीन नहीं है तो रजिस्टर में गलत टाइम ऐंटर करना, बीचबीच में बिना बताए कई बार औफिस से बाहर जाना जैसी बातें औफिस रूल्स का खुलेआम उल्लंघन हैं.

ऐसे कर्मचारी को देख कर बाकी स्टाफ का भी गलत काम करने का हौसला बढ़ता है. इस से बेहतर है कि लंच टाइम व टी ब्रेक में ही मौजमस्ती करें, जिस से कोई आप को टोकने न पाए और आप की गुडविल भी बनी रहे.

कूल माइंड से हैंडिल करें सिचुएशन

ह्यूमन नेचर ऐसा होता है कि जब कोई धो रहा होता है तब गुस्सा आना स्वाभाविक है. ऐसे में हम गलत भी बोल जाते हैं लेकिन ठीक उसी तरह अगर बौस आप पर झल्ला रहे हों तो आप उस समय शांत रहें.

भले ही आप तब मन ही मन किलसें कि मुझे जिस बात के लिए डांट पड़ी वह गलती तो मैं ने की ही नहीं और अगर मैं ने इस समय अपना पक्ष रखा तो बौस वाट लगा देंगे, ऐसे में आप भड़ास निकालने के लिए उलटासीधा बोलना शुरू कर देते हैं, लेकिन समझदारी इसी में है कि उस वक्त शांत रहें और समय अनुकूल होने पर अपनी बात रखें.

चेहरे को मन का दर्पण न बनने दें

कहते हैं चेहरा मन का दर्पण होता है, क्योंकि मन के भाव चेहरे पर साफ दिखाई देते हैं, लेकिन जब आप बौस के सामने खड़े हों और किसी बात पर बौस आप को डांटें, चाहे वह बात गलत हो और आप को सुन कर गुस्सा भी आ रहा हो, तब भी चेहरे पर गुस्से वाले ऐक्सप्रैशन न आने दें और नौर्मल रहने का प्रयास करें.

तुरंत जौब बदलने की न सोचें

जब तक चैलेंज को ऐक्सैप्ट नहीं करेंगे तब तक आगे कैसे बढ़ पाएंगे. मुश्किल से मुश्किल सिचुऐशन बिना भयभीत हुए हैंडिल करें. यह नहीं कि चैलेंज मिलते ही या बौस की डांट पड़ते ही जौब छोड़ने का मन बना लें. हां, बेहतर जौब जरूर सर्च करते रहें.

फैमिली लाइफ प्रभावित न हो

जब कभी हमें औफिस में डांट पड़ती है तो हम उस का गुस्सा घर पर उतारते हैं. कभी खाना नहीं खाते, तो कभी घर वालों से भी ऊंची आवाज में बात करते हैं, अकेले गुमसुम बैठे रहते हैं जिसे देख कर घर वाले परेशान होते हैं. इसलिए औफिस की बातों को औफिस में ही छोड़ने की कोशिश करें, क्योंकि कभीकभार आप उदास होंगे तब आप को अवश्य ही घर से सहानुभूति भी मिल जाएगी, लेकिन अगर आप उसे रूटीन बना लेंगे तब आप को वहां से भी सपोर्ट मिलना बंद हो जाएगा.

एचआर से शेयर करें प्रौब्लम

यदि आप को अपने बौस से कोई प्रौब्लम है और वे भी आप की कोई बात सुनने को तैयार नहीं हैं तो सीधे औनर के पास जाने से अच्छा है कि एचआर को बताएं कि आप को अपने बौस से तालमेल बैठाने में दिक्कत हो रही है, खुल कर अपनी बात रखें. अवश्य आप को सही राह मिलेगी.

लेकिन यदि आप सीधे ओनर के पास पहुंच जाएंगे तो बात बजाय संभलने के और बिगड़ेगी और ऐसे में आप का अपने हैड के साथ काम करना भी मुश्किल हो जाएगा. इसलिए गुस्से से अच्छा है कि सोचसमझ कर फैसला लें.

शोषण न सहें

बौस यदि आप पर काम का ज्यादा बोझ डालें, आप की जरा सी गलती पर अपशब्द कहने लगें, ड्यूटी आवर्स में काम न दे कर छुट्टी के वक्त ढेर सारे काम थमा दें और उन्हें आज ही खत्म करने की बात कहें या फिर लेटनाइट काम करवाने के बावजूद ड्रौपिंग सर्विस न दें व छुट्टी देने से मना करें, तो ऐसे में आप पहले तो उन के सामने अपनी बात रखें, लेकिन फिर भी यदि आप को लगे कि उन से कहने का कोई फायदा नहीं, तो आप जौब चेंज करने के बारे में सोचें.

नौकरी में बौस की थोड़ीबहुत तो सुननी ही पड़ती है, लेकिन अगर काम के नाम पर शोषण हो तो उस औफिस को बाय कहने में ही भलाई होगी. यह सोच कर न घबराएं कि कैसे ऐडजस्ट करेंगे नई जगह पर, क्योंकि अगर आप में काबिलीयत है तो आप को ऐडजस्टमैंट में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा.

जब बौस कराएं पर्सनल काम

यदि बौस आप को काम के बीच में बारबार डिस्टर्ब करें जैसे कि नैट से मूवी टिकट बुक करवा दो, मेरे बेटे या बेटी का होमवर्क कर दो, प्रोजैक्ट पूरा कर दो वगैरावगैरा, जिस से आप अपना औफिस वर्क समय पर न कर पाएं तो आप एकाध बार तो खुशीखुशी इस काम को कर दें, लेकिन अगर आप को लगता है कि बौस ने इसे रूटीन बना लिया है तो उन्हें नम्रता से निवेदन कर कहें कि आप के पर्सनल कार्य करने से मेरी क्रिएटिविटी प्रभावित हो रही है.

आप की यह बात सुन कर बौस भी समझ जाएंगे कि अगर मैं ने अपने पर्सनल कार्य करवाने जारी रखे तो बात ओनर तक पहुंच सकती है. आप का इतना कहना ही उन में डर पैदा कर देगा, क्योंकि इस के कारण आप की प्रोफैशनल लाइफ प्रभावित हो तो यह सही नहीं है.              

बौस भी इन बातों का रखें खयाल

–       कर्मचारियों को प्रैशर में न रखें.

–       अगर किसी कर्मचारी ने गलत काम भी किया है तो पहले उसे आराम से समझाएं, यदि मिस्टेक रिपीट हो तब सख्ती बरतें.

–       सिर्फ एक कर्मचारी की बात सुन कर बाकी कर्मचारियों के प्रति अपनी राय न बनाएं. अपनी सुनी व देखी बात पर ही विश्वास करें.

–       कर्मचारियों की प्रौब्लम को नजरअंदाज न करें.

–       अगर किसी कर्मचारी ने कोई आइडिया दिया है तो यह कह कर उस की इंसल्ट न करें कि तुम से तो मुझे ऐसे ही बकवास आइडिया की उम्मीद थी बल्कि उसे मोटीवेट करें कि तुम ने अच्छा सोचा है, लेकिन इस से और बेहतर सोचो, जिस से कंपनी को फायदा हो. आप की ऐसी बात सुन कर वह अपना बैस्ट देने की कोशिश करेगा.

–       बौस का मतलब आप दादागीरी न समझें वरना कर्मचारी आप की रिस्पैक्ट करना छोड़ देंगे.

–       सब के साथ एकजैसा व्यवहार करें.

–       अगर आप ने किसी काम को करने के लिए डैडलाइन दे रखी है तो उस से पहले कर्मचारियों को नौक न करें, क्योंकि इस से वे खुद को ज्यादा प्रैशर में फील करने के कारण काम में मन नहीं लगा पाएंगे.

अमेरिका : कितना अच्छा, कितना बुरा

‘वर्ल्ड गिविंग इंडैक्स’ के मुताबिक किसी अजनबी की मदद करने में अमेरिकियों का स्थान दुनिया में पहला है. इसी तरह अमेरिका में 69% से ज्यादा फायर फाइटर्स, वौलंटियर्स हैं. ऐसी कितनी ही बातें हैं, जो अमेरिकी मानसिकता को भारतीयों से भिन्न बनाती हैं. ज्यादातर भारतीयों की तरह अमेरिकी निठल्ले बैठना पसंद नहीं करते. वे मेहनती होते हैं. नए आईडियाज डैवलप करने, नई सोच सामने रखने या फिर चीजों को नए तरीके से करने का प्रयास करने में अमेरिकी नहीं हिचकते और अकसर परिणाम आश्चर्यजनक निकलते हैं. काम के प्रति उन का जनून और सकारात्मक प्रवृत्ति देखते ही बनती है.

काफी हद तक मानसिकता में इस अंतर का ही नतीजा है कि अमेरिकी हम से बहुत समृद्ध और विकसित हैं. ज्यादातर पिछड़े या विकासशील देशों जिन में भारत भी शामिल है के युवाओं के लिए अमेरिका सपनों की मंजिल के समान है तभी तो यहां आने और बसने की होड़ लगी रहती है. पर सिक्के का दूसरा पहलू भी है. अच्छाइयों के साथसाथ यहां की जीवनशैली में कुछ कमियां भी हैं.

यदि भारतीय प्रयास करें तो अमेरिका की अच्छाइयों को अपने जीवन में उतार कर और मानसिकता में बदलाव ला कर अपने देश के प्रति भी वैसा आकर्षण पैदा कर सकते हैं, जिस की चाह हम भारतीयों को अमेरिका की ओर खींचती है.

अमेरिका विश्व के समृद्ध, शक्तिशाली व विकसित देशों में एक है. यह भारत से 3 गुना से भी ज्यादा बड़ा है जबकि इस की जनसंख्या भारत से 4 गुना कम है. काश, अगर आजादी के बाद हम अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण रख पाते तो हमारी स्थिति कहीं बेहतर होती.

आजकल अमेरिका पिछड़े और विकासशील देशों के लोगों के लिए सपनों की मंजिल है.

अच्छा पहलू

उच्च जीवन स्तर: यहां लोगों का जीवन स्तर काफी ऊंचा है. यहां पार्टटाइम घरेलू काम जैसे कुकिंग, सफाई, माली आदि का काम करने वालों के पास भी सभी सुविधाएं जैसे कार, टैलीविजन, स्मार्टफोन, माइक्रोवैव आदि उपलब्ध हैं.

पर्याप्त अवसर: यहां हर किसी को अपनी योग्यता के अनुसार जीवन में पर्याप्त अवसर हैं. सब को आगे बढ़ने के समान अवसर हैं. किसी जाति, धर्म या अल्पसंख्यक के नाम पर रिजर्वेशन नहीं है. अमेरिका संभवतया दुनिया का ऐसा देश है जहां केवल अपनी क्षमता के बल पर दुनिया में सब से ज्यादा बड़े उद्योगपति हुए हैं.

श्रम की इज्जत: आप चाहे छोटे से छोटा काम करते हों या फिर किसी बड़ी कंपनी के चेयरमैन क्यों न हों, यहां का समाज दोनों का बराबर आदर करता है. इसी तरह व्यापार में भी समान आदर दिया जाता है. आप किसी छोटे पेशे जैसे बाल काटने या किसी बड़ी कंपनी के मालिक हैं, कानून दोनों को बराबर मानता है, समाज भी कोईर् भेदभाव नहीं करता है.

धार्मिक और नस्ली भेदभाव नहीं: यहां कानून और समाज दोनों की नजर में धर्म, नस्ल या जाति के नाम पर कोई भेदभाव नहीं है. यही कारण है कि दुनिया के लगभग सभी देश, धर्म और नस्ल के लोगों के रहते हुए भी यहां आपस में दंगे, आगजनी, लूटपाट नहीं होती है. हालांकि कुछ छिटपुट नस्ल की घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. आज अमेरिका में अनेक सरकारी पदों पर तथा अनेक प्रमुख कंपनियों के उच्च पदों पर गैरअमेरिकी मूल के लोग मिलेंगे, जिन में कई भारतीय भी हैं.

अपना भविष्य खुद चुनें: यहां स्कूलों और कालेजों में पढ़ाई के दौरान आप को जिस विषय में रुचि हो अपना भविष्य खुद चुनें और आगे बढ़ें. हमारे यहां ज्यादातर बच्चों को मातापिता की इच्छा के अनुसार डाक्टर, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्र का चुनाव करना पड़ता है.

सामाजिक समानता: यहां लोगों की आमदनी में बहुत बड़ा फासला होते हुए भी समाज में कम आय वालों के प्रति कोई हीनभावना नहीं है.

समान कानून और अधिकार: इस देश में सब के लिए एक कानून लागू है. धर्म या जाति के नाम पर कोई दूसरा कानून या रिजर्वेशन नहीं होता है.

स्वतंत्र देश, स्वतंत्र नागरिक: अमेरिका सही मामले में स्वतंत्र देश है और इस के नागरिक भी पूर्ण स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं. अमेरिकी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करते. यहां स्वतंत्रता के नाम पर आए दिन हड़ताल, बंद या तोड़फोड़ की घटना नहीं होती है.

एक राष्ट्र: अमेरिका में 50 राज्य होते हुए भी वह एक राष्ट्र है. हमारे यहां हम लोगों में बंगाली, गुजराती या महाराष्ट्रियन आदि होने की भावना पहले है.

कठोर अनुशासन: यहां नियमों का पालन करना अनिवार्य है, आप चाहे जो भी हों. यातायात के नियमों का अच्छी तरह पालन किया जाता है. हाल ही में विश्व रिकौर्ड और विश्वविख्यात तैराक माइकल फेल्प जिन्होंने 2016 के ओलिंपिक तक 22 स्वर्ण पदक ले कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है, उन्हें भी 2 बार नशे में कार चलाने के लिए गिरफ्तार किया गया था.

शांतिपूर्ण मतदान: यहां का मतदान पूर्णतया शांतिपूर्वक होता है.

अभिवादन: अमेरिका में कहीं भी जाएं अमेरिकी हंस कर अभिवादन करते मिलेंगे. ज्यादा बातें नहीं करेंगे पर हायहैल्लो, गुड मौर्निंग आदि समय और मौसम के अनुसार जरूर करेंगे.

सभी देशों के व्यंजन उपलब्ध हैं: अमेरिका में दुनिया के लगभग सभी देशों के लोग बसे हैं, इसलिए यहां लगभग सभी देशों के व्यंजनों का आनंद उठाया जा सकता है.

अच्छी सड़कें: पूरे अमेरिका में सड़कों और फ्लाईओवरों का जाल बिछा है. यही कारण है कि लोग लंबी दूरी तक कार से ही आराम से सफर करते हैं. अत्यधिक दूरी के लिए हवाई सफर करते हैं. रेल यातायात न तो उतना विकसित है और न ही लोग उस से आमतौर पर सफर करना पसंद करते हैं. हाई वे पर थोड़ीथोड़ी दूरी पर पैट्रोल पंप मिलेंगे. इन में अनेक में खानेपीने और फ्री प्रसाधन की भी व्यवस्था है. छोटेबड़े होटल मिलेंगे जहां प्रसाधन का फ्री उपयोग कर सकते हैं.

बच्चों में आत्मनिर्भरता: अमेरिका में बच्चों को छोटी उम्र से ही अपने सभी काम खुद करना सिखाया जाता है. इसीलिए वे अपने निजी कार्य कम उम्र से खुद करने लग जाते हैं.

समय की पाबंदी: यहां कोई भी समय बरबाद नहीं करना चाहता है. ये समय का मूल्य समझते हैं. हर काम अपने निश्चित समय पर होता है.

इंटरनैट का जन्मदाता: इंटरनैट का जन्म भी अमेरिका में ही हुआ था जिस से पूरी दुनिया आजकल हर किसी के हाथ में है और यह पूरी दुनिया को 222 (वर्ल्ड वाइड वेब) के द्वारा जोड़े रखता है. आधुनिक इंटरनैट का जन्म 1990 में टीम ली द्वारा यहीं हुआ था.

उदारता: अमेरिकी सरकार और अमीर लोगों में उदारता भी देखने को मिलती है. जहां सरकार अपने करदाताओं के पैसों से अन्य पिछड़े या गरीब देशों की सहायता करती है, वहीं दूसरी तरफ धनी उद्योगपति और हौलीवुड सितारे भी अन्य देशों के सामाजिक उत्थान के  लिए करोड़ों का अनुदान देते हैं.

उच्च शिक्षा और अनुसंधान के पर्याप्त अवसर: अमेरिका की विश्वस्तर यूनिवर्सिटीज में सारी दुनिया से विद्यार्थी आ कर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं. कइयों को स्कालरशिप भी मिलती है. यहां मेधावी विद्यार्थियों के लिए अनुसंधान की भी व्यवस्था है.

सर्वांगीण विकास पर जोर: यहां बचपन से ही व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता दी जाती है. मसलन बच्चे पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भाग लेते हैं. सभी बच्चे शुरू से ही किसी न किसी खेलकूद जैसे चैस, तैराकी, टैनिस, बास्केटबौल, ऐथलैटिक्स आदि में भाग लेते हैं. सरकार भी खेलों पर होने वाले खर्च पर आयकर में छूट देती है.

कमजोर पहलू

आधुनिक शस्त्रों का निर्माता: अमेरिका दुनिया में आधुनिक शस्त्रों का प्रमुख निर्माता है. शस्त्रों के निर्यात में यह विश्व में प्रथम स्थान पर है. ऐसे में हर समय इस बात का भय बना रहता है कि ये हथियार अगर आतंकवादियों और कट्टरपंथियों के हाथ में आ जाएं तो हजारों निर्दोष जान गंवा बैठेंगे.

प्रदूषण फैलाना: यहां के कारखाने और करोड़ों कारें वायुमंडल में प्रदूषण फैलाते हैं. इस मामले में चीन के बाद यह दूसरे नंबर पर है.

मोटापा: यहां काफी लोग मोटापे के शिकार हैं, करीब एकतिहाई लोग. इस की वजह जहां यहां दूध, दही, चीज, पनीर आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, वहीं यहां जंक फूड, पिज्जा, बर्गर आदि का प्रचलन भी बहुत है.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी: अमेरिका में पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था की कमी है. लगभग हर किसी के पास अपनी कार होती है. लंबी दूरी की रेल यात्रा या बस यात्रा बहुत कम उपलब्ध है.

दुनिया के बारे में अनभिज्ञता: यहां के ज्यादातर लोग दुनिया के बारे में कम जानते हैं. जैसे कुछ अरसा पहले एक क्विज में लोगों को अमेरिका को दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र कहते सुना गया था.

गन फ्रीडम: यहां हर कोई आसानी से बंदूक पा सकता है, जिस के चलते हाल ही में शूटिंग के कई मामले देखने को मिले. यहां तक कि स्कूल के बच्चे भी ऐसी वारदातों में शामिल थे.

समलैंगिकता: यहां समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता है. लोग समलैंगिकता को ले कर अपने अधिकारों की बात करते हैं, पर यह अप्राकृतिक तो है ही.

महंगा श्रम: यहां लेबर बहुत महंगी है. इसी कारण सोफे, टैलीविजन, फोन, माइक्रोवैव आदि घरेलू उपकरणों की मरम्मत कराने की जगह उन्हें फेंक कर नया ही लेना बेहतर समझते हैं.

पारिवारिक आत्मीयता की कमी: यहां परिवार में आपसी प्रेम और आत्मीयता की भारत की तुलना में कमी है. बचपन से ही बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के चक्कर में बडे़ होतेहोते उन में प्रेम और पारिवारिक बंधन कमजोर हो जाता है.

आवश्यकता से अधिक टैक्नोलौजी: यहां आधुनिक तकनीक का बहुत ज्यादा प्रयोग होता है. घर में ज्यादातर काम माइक्रोवैव ओवन, डिश वाशर (बरतन धोने और सुखाने की मशीन), वाशर ड्रायर (कपड़े धोने और सुखाने की मशीन) से हो जाता है. बच्चों के हाथ में आधुनिक गैजेट देखे जा सकते हैं. इस पर महान वैज्ञानिक आइंस्टीन की यह बात याद आती है, ‘‘मुझे उस दिन का डर है जिस दिन तकनीक मानव वार्त्तालाप से ऊपर हो जाए. तब यह दुनिया मूर्खों की एक पीढ़ी होगी.’’               

वजन कम करने के बहुत फायदे मिले : परिणीति चोपड़ा

फिल्म ‘लेडीज वर्सेज रिकी बहल’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत करने वाली परिणीति को पहली फिल्म में ही काफी सफलता मिली. इस के बाद उन्होंने ‘इश्कजादे’, ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘हंसी तो फंसी’ आदि फिल्मों में काम किया. फिल्मों से अधिक परिणीति ने विज्ञापनों में काम किया. कुछ समय तक वे फिल्मों से दूर रह कर अपना वजन घटाने में व्यस्त रहीं. जल्द ही उन की फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदू’ रिलीज होने जा रही है. इस फिल्म के संबंध में उन से कुछ सवालजवाब हुए:

यह फिल्म आप की दूसरी फिल्मों से कितनी अलग है?

यह मेरे लिए बहुत अलग फिल्म है. मैं ने जब इस की स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे लगा कि इस तरह की फिल्में अभी तक दर्शकों ने देखी नहीं हैं. इस फिल्म में जीवन के हर भाग से एक गाना जुड़ा है, जो एक कहानी कहता है. अभी तक बौलीवुड में ऐसी फिल्म नहीं बनी है.

फिल्म चुनते वक्त किस बात का ध्यान रखती हैं?

फिल्म में उस की स्क्रिप्ट और भूमिका मुख्य होती है. इस के अलावा फिल्म निर्देशक कौन है, यह बात भी अवश्य देखती हूं. किसी फिल्म को करने से मना करना मुश्किल होता है, क्योंकि हर निर्देशक के लिए उस की फिल्म उस के दिल का टुकड़ा होती है. मगर मैं जिस फिल्म की कहानी पसंद नहीं करती या जिसे करने में मुझे दिल से खुशी नहीं होती उसे करने के लिए प्रैशर में हां कह कर फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगी.

आप हमेशा बिंदास गर्ल की भूमिका निभाती हैं. क्या आप को लगता है कि आज की जैनरेशन भी ऐसी ही है?

नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. हां, बिंदू एक बिंदास लड़की है, जो अपना हर काम आधा कर के छोड़ देती है. उस की कोई प्लानिंग नहीं होती है. पर आज की जैनरेशन ऐसी नहीं है. वह उद्देश्य पर पूरी तरह फोकस्ड है. वह जानती है कि उसे क्या करना है और उसे पाने के लिए मेहनत भी करती है. इस फिल्म में मेरा चरित्र भी वैसा ही है. मैं अपने उद्देश्य को पाना चाहती हूं, पर कभीकभी केयरलैस हो जाती हूं. मगर रियल लाइफ में मैं ऐसी बिलकुल नहीं हूं.

इस फिल्म में आप ने आशा भोसले के गाने गाए हैं. यह आप के लिए कितना मुश्किल था?

मैं ने यह नहीं सोचा कि ये आशाजी के गाने हैं. बस मुझे उन के ये गीत पसंद हैं. मुझे गाना आता है और मौका मिला तो मैं ने गा लिया. हां, लेकिन मैं चाहती हूं कि मेरे गीतों को भी लोग उतना ही पसंद करें जितना आशाजी के गीतों को पसंद करते हैं. इन गीतों को गाते वक्त किसी प्रकार का प्रैशर नहीं था, क्योंकि उन के गीत हमेशा उन के ही रहेंगे.

फिल्म का कौन सा पार्ट मुश्किल था?

कोलकाता की गरमी में फिल्म की शूटिंग करना बहुत मुश्किल था.

क्या कभी ऐसा हुआ कि आप ने बोला कुछ और लिखा कुछ और गया? ऐसा होने पर आप क्या करती हैं?

पहले तो देखना पड़ता है कि किस बात को ले कर आलोचना की जा रही है. अगर मैं ने कुछ गलत किया है, जो मुझे करना नहीं चाहिए था, तो ऐसे में मुझे पता होता है कि मुझे सुनना पड़ेगा और मैं उस के लिए तैयार रहती हूं. मैं ऐसी स्थितियों से निकलना जानती हूं. कई बार जो कहती हूं, उसे मीडिया तोड़मरोड़ कर लिखता है. तब मुझे बहुत बुरा लगता है. तब मैं कुछ भी बोलने से डरती हूं, क्योंकि मीडिया कई बार ऐसे प्रश्न पूछता है जिन के जवाब मुझे नहीं पता होते हैं.

फिल्मों में आने के बाद आप ने अपनेआप को पूरी तरह से बदला है. यह किसी दबाव में किया या फिर खुद ही फिट रहना पसंद करती हैं?

यह बात सही है कि इंडस्ट्री में आने के बाद मुझे फिटनैस पर ध्यान देना पड़ा. 12 सालों से वजन कम करने का मेरा प्रयास चल रहा था. आप जो मेरी यह काया देख रही हैं. यह मेरी 12 सालों की मेहनत का ही फल है. इंडस्ट्री का प्रैशर यही था कि मुझे परदे पर और अधिक सुंदर दिखना है.

हर महिला को अपने वजन का ध्यान रखना चाहिए. वजन घटने के मुझे बहुत फायदे मिले हैं. अब मैं काफी देर तक काम करने पर भी नहीं थकती हूं. पहले मैं 4 घंटे की शिफ्ट में ही थक जाती थी. अब तो मैं अपने सारे पुराने कपड़े भी पहन सकती हूं.

फिल्मों में आने के बाद लाइफ कितनी बदली है?

मैं बहुत बदली हूं. मुझे अपना काम पसंद है. मैं मेहनत भी कर सकती हूं, लेकिन मैं पूरा साल काम नहीं कर सकती. मुझे काम के साथसाथ परिवार और दोस्तों के साथ रहना भी पसंद है. उन्हें मिस नहीं कर सकती, इसलिए बीचबीच में ब्रेक लेती रहती हूं. मुझे काम और परिवार के बीच तालमेल बैठाना आता है.

इंडस्ट्री की चकाचौंध देख कर ज्यादातर यूथ मुंबई ऐक्टिंग के लिए आ जाते हैं. उन्हें क्या मैसेज देना चाहती हैं?

मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि जितना ग्लैमर फिल्मों में दिखाया जाता है उतना होता नहीं है. न सब कुछ आसान है और न ही मुमकिन. असल जिंदगी में अभिनय के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. लौंग शिफ्ट, लौंग ट्रैवलिंग आदि सब कुछ करना पड़ता है. यूथ को इस सब के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि किसी भी चुनौती को स्वीकार सकें.

“एक दूसरे के सपनों को समझना जरुरी”

पूरी दुनिया में बच्चों को शिकायत होती है कि माता-पिता उनके सपने को समझ नहीं पाते और उनपर अपनी इच्छाएं थोपते हैं. जबकि हर माता पिता की ये कोशिश होती है कि उनका बच्चा सबसे अकलमंद और सबसे कामयाब हो और इस कोशिश में वे अपना जी जान लगा देते हैं, लेकिन क्या बच्चे बड़े होकर माता-पिता के सपनों को समझने की कोशिश करते हैं? क्या वे देखते हैं कि उनके लिए माता-पिता ने अपने किन सपनों को अधूरा छोड़ा है?

एक सर्वे में पता चला है कि 50 वर्ष से ऊपर के 98 प्रतिशत माता-पिता के सपने अधूरे है. इस विषय पर एबट के एक सेमीनार में अभिनेत्री नीना गुप्ता और उनकी डिजाइनर बेटी मसाबा गुप्ता ने अपने रिश्ते और सपनों को लेकर बातचीत की. पेश है अंश.

नीना, सिंगल मदर होते हुए भी आपने बेटी के सपने को कैसे पूरा किया?

नीना – मैंने अकेले बेटी को पाला है. बहुत बार बहुत मुश्किलें आई बहुत सी चीजें मैं नहीं कर सकी, जो की जा सकती थी, क्योंकि काम करना था और उसे पालना भी था. बहुत सी चीजें ऐसी थी जो उसे मिलनी चाहिए थी पर मिली नहीं.

माता-पिता दोनों का होना बच्चे के लिए बहुत जरुरी है. उसके बिना बच्चे ‘सफर’ करते हैं, लेकिन उस बारें में मैं अधिक नहीं सोचती, क्योंकि उसके बिना भी हम दोनों को बहुत कुछ मिला है. जो नहीं मिला, उसे सोचकर कुछ कर नहीं सकते.

नीना, आज मसाबा एक प्रसिद्ध डिजाइनर हैं, क्या उनका यही सपना था? मसाबा बचपन में कैसी थीं?

मसाबा की लेखन बहुत अच्छी है. बहुत अच्छा डांस करती है और अच्छा गाती भी है. ऐसे में मुझे लगा था कि वह सिंगर, डांसर या लेखन के क्षेत्र में जाएगी, लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि जहां वह पढ़ना चाहती थी वहां एडमिशन नहीं मिला. फिर उसने मुंबई के एस एन डी टी कॉलेज में गयी और वहां उसने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर वेंडील रोड्रिक के साथ काम करने लगी और फिर डिजाइनर बन गयी.

मसाबा, क्या आपको मां के क्षेत्र में जाने की इच्छा नहीं हुई?

बचपन में अभिनय के क्षेत्र में जाने की इच्छा थी लेकिन जब बड़ी हुई तो सपने अलग हो गएं. मेरी मां ने भी सिंगर बनने के लिए मुझे लन्दन भेजा. लेकिन यहां आकर मैंने डिजाइनर वेंडील रोड्रिक के साथ एक फैशन वीक में मैंने काम किया और डिजाइनिंग शुरू कर दी.

नीना, क्या आपको खुद बचपन से पता था कि आप अभिनेत्री ही बनेंगी? आपके माता-पिता का कितना सहयोग था?

नीना – मेरे माता-पिता हमेशा मेरे एक्टिंग के विरुद्ध थें. वे मुझे आई ए एस ऑफिसर बनाना चाहते थें, क्योंकि मैं पढाई में बहुत अच्छी थी. मेरी मां तो इस क्षेत्र को गलत समझती थी, पर होना यही था.

नीना, आप अपनी बेटी के लिए कितनी स्ट्रिक्ट मदर थीं?

मैं स्ट्रिक्ट थी भी और नहीं भी. कई बार ऐसा हुआ कि मसाबा जो समय बाहर जाने के लिए मांगती थी, उससे ‘लेट’ हो जाती थी. ऐसे में मैं मेरी सहेलियों से पूछती थी कि क्या किया जाय. मैं स्ट्रिक्ट मां थी, क्योंकि मैंने कभी भी उसे घर की चाभी नहीं दी. मुझे ही घर खोलना पसंद था, ताकि पता लगे कि वह कहां से आई है.

नीना, टीनएज में लड़कियां बहुत रिवोल्ट करती हैं ऐसे में आपने मसाबा को कैसे सम्भाला?

वैसी ही थी मसाबा, झूठ बोलना, किसी बात से मना करूं तो गुस्सा हो जाना, चीखना–चिल्लाना, गुस्से से फोन बंद कर देना आदि करती थी, ऐसे में मैं उसे पास बिठाकर सारी बातें एक्सप्लेन किया करती थी.

आप दोनों के बीच का रिश्ता कैसा रहता है?

नीना – मेरी बेटी मेरी खास दोस्त है और मेरा खूब ख्याल रखती है. अभी वह मेरी अभिभावक बन चुकी है. मुझे क्या करना है, उसकी सलाह देती रहती है. पहले मैं उसके व्यवसाय में हाथ बटाती थी, लेकिन शादी के बाद उसका पति उसे ‘हेल्प’ करने लगा. मैंने वह काम छोड़ कर एक धारावाहिक में डबल रोल करने लगी और ये सलाह मेरी बेटी ने ही मुझे दिया.

मसाबा- बचपन में मां से डरती थी, पर अब दोस्ताना रिश्ता है. किसी भी बात को हम बैठकर सुलझा लेते हैं.

मसाबा, आप अपनी मां की किस सीख को जीवन में उतारती हैं?

मां ने हमेशा मुझे मेहनत से काम करना सिखाया है. इतना ही नहीं उन्होंने हमेशा ये भी बताया कि भले ही तुम्हें परिवार और पति का सहयोग मिले पर काम को कभी छोड़ना नहीं. अभी मैं काम कर रही हूं और मुझे अब समझ में आता है कि उनका इस तरह के बातों को कहने का अर्थ क्या है.

मसाबा, क्या आपने कभी गौर किया है कि आपकी मां का सपना क्या था?

मुझे पता है मेरी मां को संगीत की बहुत रूचि थी, लेकिन उन्हें इस ओर जाने का कभी मौका नहीं मिला. वह एक सिंगल मां थी, ऐसे में उन्हें मेरी परवरिश करने में बहुत मेहनत करनी पड़ी. अभी वह शास्त्रीय संगीत सीख रही हैं. मैं बहुत खुश हूं कि देर से ही सही, पर वह अपने सपने को पूरा कर रही हैं.

नीना, अभी आप क्या कर रही हैं?

मैंने अभी एक छोटी फिल्म की है इसके अलावा मैं एक कहानी लिख रही हूं. मैं अपना कुछ करने की कोशिश कर रही हूं जिसमें मैं निर्माता और निर्देशक भी बनूंगी उस दिशा में काम चल रहा है. परिवार से जुड़ी हुई फिल्में बनाना चाहती हूं.

आप दोनों आजकल के माता-पिता जो अपने सपने को बच्चों के लिए अधूरा छोड़ देते हैं, उनके लिए क्या संदेश देना चाहती हैं?

नीना – मैंने खुद भी अपने सपने को छोड़ा नहीं है. ऐसे में सभी माता-पिता जिनके सपने पूरे नहीं हुए है. उन्हें बच्चों पर थोपे नहीं. बच्चों को उनके हिसाब से आगे बढ़ने दें. आपके जो अधूरे सपने हैं, उसे जब भी समय मिले पूरा करें.

मसाबा – बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता को किसी बात के लिए दोषी न ठहराए, बल्कि उनकी देख-भाल करें. उन्हें देखना चाहिए कि किस तरह पेरेंट्स ने उन्हें आगे बढ़ने और उनके सपनों को पूरा करने में मेहनत की है. अब उनकी बारी है कि वे माता-पिता के अधूरे सपनों को पूरा करें.

‘कान्स’ में जाना हर फिल्मकार का सपना : जिया उल खान

ऐसा बहुत कम होता है कि किसी फिल्मकार की पहली ही फिल्म ‘‘कान्स इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में ‘डेब्यू डायरेक्टर’ के प्रतियोगिता खंड का हिस्सा बन जाए. पर यह गौरव भारतीय फिल्मकार जिया उल खान के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘‘विराम’’ को मिला है.

मोतीहारी, बिहार निवासी एक पुलिस अफसर के बेटे जिया उल खान दिल्ली में पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई आए थे. बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म ‘‘विराम’’ इन दिनों कान्स फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा रही है.

क्या आपने कान्स फिल्म फेस्टिवल को ध्यान में रखकर ही फिल्म ‘‘विराम’’ का निर्माण किया?

हर फिल्मकार का सपना होता है कि उसकी फिल्म ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ का हिस्सा बने. हमें खुशी है कि हमारी फिल्म का विश्व प्रीमियर 18 मई को ‘‘कान्स इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में हुआ. हमारी फिल्म के निर्माता हरी मेहरोत्रा 65 साल के हैं. 25-30 साल पहले वह मुंबई में अभिनेता बनने आए थे. कुछ वजहों से उन्हें मुंबई से वापस जाना पड़ा था. अब वह दोबारा वापस आए हैं, तो उनके अपने कुछ सपने हैं. फिल्म बनाना उनका पेषा नहीं पैशन है.

जब हमने फिल्म निर्माण शुरू किया था, तभी यह योजना बनी थी कि हम सबसे पहले अपनी फिल्म को कान्स फिल्म फेस्टिवल में ले जाएंगे, उसके बाद भारत में रिलीज करेंगे. आपको पता होगा कि कान्स फिल्म फेस्टिवल का नियम है कि फिल्म सबसे पहले उनके फेस्टिवल में जानी चाहिए, उसके बाद दूसरे किसी फेस्टिवल में भेजी जाए.

फिल्म वास्तव में कान्स फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा रही या उसके बाजार सेक्शन में है?

हमने अपनी फिल्म को ऑफिशियली कान्स फिल्म फेस्टिवल में फिल्म भेजा था. ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में डेब्यू डायरेक्टर के प्रतियोगिता खंड में हमारी फिल्म ‘विराम’ का चयन हुआ था, जिसे 18 मई को वहां दिखाया गया. प्रतियोगिता खंड में फिल्म होने की वजह से हमें काफी दर्शक मिले. अब हमारी फिल्म के कमाने के अवसर बढ़ गए हैं. पूरे विश्व में 35 देश हैं, जहां भारतीय फिल्म देखी जाती हैं. इसीलिए हमने अपनी फिल्म का ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में प्रीमियर करने का निर्णय लिया. कान्स में मौजूद फिल्मकारों व वितरकों की मांग पर हम इसे बाजार सेक्शन में भी दिखा सकते हैं. अभी 28 मई तक कान फिल्म फेस्टिवल चलेगा.   

आपकी फिल्म में बड़े कलाकार नही हैं. इसलिए आप इसे कान्स फिल्म फेस्टिवल में ले गए?

आप ऐसा कह सकते हैं. फिल्म को पुरस्कार मिले या ना मिले, लेकिन जब कोई फिल्म किसी इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बन जाती है, तो उसके लिए वितरक खोजना आसान हो जाता है. मुझे लगता है कि हमारी मानसिकता आज भी गुलामी की है. देश आजाद है. हम आजाद हैं. जब हमारी कोई फिल्म किसी भी यूरोपियन देश के फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बन जाती है, तो हमारे यहां उसे हाथों हाथ लिया जाता है. फिल्म के प्रति लोगों का नजरिया बदल जाता है. लोग सोचते हैं कि फिल्म में कुछ तो है, तभी तो इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी गयी.

दूसरी बात आज की तारीख में फिल्म की कमायी का जरिया सिर्फ बॉक्स ऑफिस नहीं रहा. अब डिजीटल प्लेटफॉर्म से भी कमायी होती है. फिल्म फेस्टिवलों से भी कमायी होती है. पूरे 70 प्लेटफार्म हैं, जहां फिल्म बिकती है और कमायी होती है. यदि हमारी फिल्म ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में पुरस्कृत हो गयी, तो एक माह के अंदर हम दो या तीन गुणा कमा लेंगे.

यदि ऐसा है, तो फिल्में बीच में ही बनना बंद क्यों हो जाती हैं?

आपने एकदम सही कहा. मेरे एक मित्र का कहना है कि, ‘कोई भी फिल्म असफल नहीं होती है, उसका बजट असफल होता है.’ फिल्मों के रूकने की वजह यह होती है कि हम तैयारी नहीं करते हैं. फिल्म निर्माण शुरू करने से पहले अपनी पूरी तैयारी करनी चाहिए. जब फिल्म सही बजट में बनेगी, तो कोई समस्या नहीं आएगी. हमारे यहां तो प्री प्रोडक्शन पर ध्यान ही नहीं दिया जाता. कई बार निर्माताओं के आपसी ‘ईगो’ के चलते फिल्म रिलीज नही होती है.

फिल्म ‘‘विराम’’ क्या है?

यह फिल्म एक मैच्योर प्रेम कहानी है. फिल्म का नायक 55 वर्ष के उद्योगपति मेहरोत्रा (नरेंद्र झा) हैं, जिनकी पत्नी की मृत्यू हो चुकी है. फिर उनकी जिंदगी में एक लड़की मातुल (उर्मिला महंता) आती है. कैसे प्यार इन दोनों क जिंदगी में बदलाव लाता है. जब एक पुरूष और एक स्त्री मिलेगें, तो किसी न किसी मोड़ पर रोमांस तो होगा ही. इसी के साथ इसमें रहस्य का तड़का भी है.

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