बनना था डाक्टर बन गई ऐक्ट्रैस

मैडिकल की पढ़ाई अधूरी छोड़कर फैशन डिजाइनर बनने की चाह में कृतिका दिल्ली तो आ गईं, मगर उन को यह नहीं मालूम था कि अभिनय की ये रूपहली दुनिया उन का इंतजार कर रही है. अब अदाकारी का यह सफर उन को किस मुकाम तक ले जाएगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

मध्य प्रदेश के छोटे से कसबे की इस लड़की को बचपन से ही फैशन से बहुत लगाव था. बेटी के डाक्टर पापा चाहते थे कि उनकी लाडली भी डाक्टर बन कर उन का हौस्पिटल संभाले, पर कृतिका का मन तो कहीं और ही रमा था.

उन्हें डाक्टरी की पढ़ाई के लिए कोटा भेजा गया, लेकिन वे पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर फैशन डिजाइनर बनने दिल्ली आ गईं. निफ्ट में पढ़ाई करने के दौरान मौडलिंग का जो शौक उन्हें लगा, वो मुंबई आ कर बॉलीवुड इंडस्ट्री में पूरा हुआ. पढ़ाई के दौरान ही पहला शो ‘यहां के हम सिकंदर’ में काम कर चुकीं कृतिका ने ‘कितनी मुहब्बत है’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे धारावाहिकों से दर्शकों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल की है. टीवी शोज के साथ ही उन्होंने कई शौर्ट फिल्में भी की हैं, लेकिन वे कभी छोटे परदे से वे अपना मोह नहीं तोड़ पाईं.

28 साल की कृतिका हमेशा अपनी ड्रैसिंग सैंस को ले कर पहचानी जाती हैं. इन दिनों वे निर्देशक निखिल सिन्हा के शो ‘चंद्रकांता’ में राजकुमारी चंद्रकांता का रोल कर रही हैं.

यहां पेश हैं शो के प्रमोशन के मौके पर उन से हुई दिलचस्प बातचीत के कुछ अंश :

कृतिका कहती है कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वे यहां तक पहुंच पाएंगी. कृतिका बताती हैं कि- ‘‘मैं मध्यप्रदेश के एक छोटे से कसबे से हूं. मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं कभी ऐक्ट्रैस बनूंगी. मेरे पापा डाक्टर थे. मैं जब पढ़ाई के लिए दिल्ली आई तब मुझे सिर्फ यह पता था कि या तो मुझे डाक्टर बनना है या फिर फैशन डिजाइनर. ऐक्ट्रैस बनने के बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं था, लेकिन जब एनएसडी और कमानी में थिएटर देखती थी तब दिल में कहीं ऐक्टिंग करने की हूक उठती थी.

जब निफ्ट में, मैं फैशन डिजाइनर का कोर्स कर रही थी तब शौकिया मौडलिंग भी करने लगी थी. तभी किसी ने कहा था कि तुम्हें एक बार मुंबई जरूर जाना चाहिए. कालेज की छुट्टियों के दौरान वहां गई. ‘यहां के हम सिकंदर’ शो के लिए औडिशन दिया और मेरा चुनाव हो गया. जैसे ही पापा को ये मालूम हुआ तो उन्हें झटका लगा, वैसे मैं उन्हें पहले भी झटका दे चुकी थी, क्योंकि उन्होंने मुझे डाक्टरी की पढ़ाई के लिए कोटा भेजा था, पर मैं उसे बीच में ही पढ़ाई छोड़कर एक फैशन डिजाइनर बनने दिल्ली आ गई थी.’’

कैमरे के सामने ही ऐक्टिंग सीखी

‘‘मैंने ऐक्टिंग का कोई कोर्स नहीं किया है. मैं फैशन डिजाइनर के तौर पर अपना कैरियर बनाना चाहती थी. अगर पहले मालूम होता तो जरूर ऐक्टिंग का कोर्स करती. मैं यह तो नहीं कह सकती कि मेरा कभी मन ही नहीं हुआ कि नाटकों में अभिनय करूं, लेकिन कभी मौका भी नहीं मिला. काफी कम उम्र में ही मेरा चयन ‘यहां के हम सिकंदर’ शो के लिए हो गया, तो एनएसडी में अभिनय सीखने के बारे में सोच ही नहीं पाई. एनएसडी में पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स था. जब तक सोचती तब तक ऐक्ट्रैस बन गई थी.’’

कुछ अलग हट कर करना पसंद है

‘‘चंद्रकांता के लिए कई लोगों ने औडिशन दिया. जब मुझे इस किरदार का प्रस्ताव मिला तो मैं सब से पहले यही सोच रही थी कि मुझे क्यों चंद्रकांता के लिए चुना गया. मैंने अपने अब तक के कैरियर में इस तरह का किरदार कभी नहीं निभाया है. लेकिन देवकीनंदन खत्री के उपन्यास के बारे में सुना बहुत था कि इसमें एक राजकुमारी की कहानी है और राजकुमारी बनना मेरा बचपन का सपना था. जब यह शो दूरदर्शन पर आता था तब मैं बहुत छोटी थी. मुझे अच्छे से याद भी नहीं है कि इसकी कहानी क्या थी, पर मुझे शिखा स्वरूप और इरफान खान द्वारा निभाए गए पात्र अभी भी याद हैं.

जब मैंने सीरियल साइन किया तब थोड़ी सी कन्फ्यूज थी कि पता नहीं लोगों को मेरा यह बदला लुक पसंद आएगा भी या नहीं, लेकिन अब महसूस होता है कि मैंने सही फैसला लिया है. यह शो टीवी के सभी टिपिकल पैटर्न्स को ब्रेक कर रहा है, फिर चाहे वह भाषा हो अथवा ऐक्ट्रैस के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ऐक्स्ट्रा मेकअप.’’

सभी तरह के रोल पसंद हैं

कृतिका एक वैब सीरीज भी कर चुकी हैं. लेकिन उन का कहना है, ‘‘वैब सीरीज और टीवी दोनों ही अलग-अलग मीडियम हैं. मैं किसी में मस्तमौला लड़की बनी हूं तो किसी में सीधी सादी. मुझे दोनों माध्यमों में काम करने का मौका मिला. मैंने 3 शौर्ट फिल्में भी की हैं. हर माध्यम में काम करना चैलेंजिंग होता है. मुझे ऐसे, हर तरह के काम करना पसंद है.

अगर बौलीवुड में कभी चांस मिलता है, तो मैं वहां भी पूरी शिद्दत के साथ काम करना चाहूंगी, लेकिन कोई अच्छा औफर आए तब. हां, अगर रिऐलिटी शो के नाम पर बिग बौस से औफर आया, तो मैं कभी नहीं करूंगी, क्योंकि वहां जो होता है वह मैं नहीं कर सकती.’’

दिल्ली अब भी दिल में है

बातचीत में आगे कृतिका कहती हैं कि ‘‘आज भी जब दिल्ली आती हूं, तो कनाट प्लेस और मंडी हाउस जाना नहीं भूलती. इन जगहों से मेरी कई यादें जुड़ी हैं. मंडी हाउस में, मैं प्ले देखने जाया करती थी और कत्थक की वर्कशौप करती थी. वहां की आर्ट गैलरी में जाना मुझे बहुत पसंद भी था. अगर आप दिल्ली में रह चुके हैं, तो आप कहीं भी जाकर सर्वाइव कर सकते हैं. दिल्ली एक ऐसी जगह है, जो आप को एक लड़की के तौर पर बहुत स्ट्रौंग और स्मार्ट बना देती है, फिर आप दुनिया में कहीं भी रह सकती हैं. इसीलिए जब मैं मुंबई गई, तो मुझे कोई मुश्किल नहीं हुई.

फिट रहने का राज

लंबी शूटिंग के चलते मैं हमेशा यह ध्यान रखती हूं कि शरीर की ऐनर्जी कम न हो पाए, इसलिए थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ खाते रहती हूं. मैं इस समय व्हीट और डेरी प्रोडक्ट्स बिलकुल नहीं ले रही हूं. टीवी इंडस्ट्री में लगातार काम करने के लिए खुद की फिटनैस का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. मैं ज्यादा कुछ नहीं केवल अपनी नानी व दादी के जमाने का हैल्दी खाना मतलब मोटे अनाज वाला खाना खाती हूं. खूब पानी पीती हूं. केवल घर का बना खाना इस समय मेरी डाइट का हिस्सा है.

शादी अभी नहीं, इसीलिए बौयफ्रैंड को छोड़ा

कृतिका ने अपने बौयफ्रैंड सिद्धार्थ बिजपुरिया से ब्रेकअप कर लिया है, खबर है कि शादी को लेकर कुछ आपसी विवाद के कारण यह ब्रेकअप हुआ है. सिद्धार्थ इस रिश्ते को खत्म नहीं करना चाहते और वे कृतिका से पैचअप करने की कोशिश भी कर रहे हैं, लेकिन कृतिका अब इस रिलेशन को आगे नहीं ले जाना चाहतीं, क्योंकि वे अभी शादी के लिए तैयार नहीं हैं, जबकि सूत्रों की माने तो सिद्धार्थ उन्हें शादी करने के लिए फोर्स कर रहे थे.

रिटायरमैंट प्लान ताकि बुढ़ापा आराम से गुजरे

महिलाओं की जिंदगी पुरुषों की तुलना में अधिक होती है. अध्ययन बताता है कि पति की तुलना में पत्नी अधिक उम्र तक जीती है. इस का मतलब पैंशन पर आश्रित जिंदगी, जीवनसाथी के साथ बिताई जाने वाली जिंदगी से लंबी होती है. इसलिए एक घरेलू महिला को अपने पति के रिटायरमैंट प्लान के बारे में जानना बेहद जरूरी है. यदि कोई रिटायरमैंट प्लान नहीं है तो उस के बारे में फैसला करने का यह सब से सही समय है.

यदि आप के पति वैतनिक कर्मचारी हैं तो सभी की तरह उन का भी एक कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ खाता होगा. लेकिन अगर आप के पति यह सोचते हैं कि ईपीएफ उन के रिटायरमैंट के बाद की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है तो उन्हें दोबारा सोचने के लिए मजबूर करें.

सच यह भी है कि यदि कोई रिटायरमैंट की जरूरतों के लिए सिर्फ भविष्य निधि के सहारे है तो उसे रिटायरमैंट के बाद पैसों की कमी से जूझना पड़ सकता है.

ईपीएफ, यहां तक कि लोक भविष्य निधि भी, सौ फीसदी डेट आधारित होने की वजह से महंगाई का असर रोकने में कामयाब नहीं होते. इन पर मिलने वाला वास्तविक रिटर्न, महंगाई समायोजित रिटर्न से कम होता है. इस तरह ये महज बचत को संरक्षित रखने का काम कर पाते हैं. इस समय महंगाई दर 8-9 फीसदी के आसपास है, वहीं फिक्स्ड इनकम निवेश पर मिलने वाला रिटर्न 9 फीसदी के करीब है. डेट असेट यानी ऋण आधारित स्कीमें आप की पूंजी को संरक्षित करने का माध्यम हैं. इन का इस्तेमाल लघु या मध्यम अवधि के लक्ष्यों को पूरा करने में ही किया जा सकता है.

बेहतर विकल्प

लंबी अवधि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इक्विटी में निवेश आवश्यक है. इस के पीछे की धारणा यह है कि निवेश पर रिटर्न महंगाई की दर से 3-4 फीसदी अधिक होना चाहिए. रिटर्न में एक छोटा सा अंतर मैच्योरिटी पर मिलने वाली राशि पर बड़ा असर डालता है. लंबी अवधि के दौरान संपत्तियों के निर्माण में वास्तविक रिटर्न माने रखता है, न कि टोकन यानी सांकेतिक रिटर्न.

पहले के अध्ययन बताते हैं कि एक लंबी अवधि में इक्विटी अन्य साधनों जैसे सोना, डेट या रीयल एस्टेट की तुलना में अधिक रिटर्न देता है. यदि आप गौर करेंगे तो पता चलेगा कि पिछले 10-15-20 सालों में सैंसेक्स का संयोजित वार्षिक रिटर्न क्रमश: 17 फीसदी, 12 फीसदी, 11.23 फीसदी रहा है और रिटायरमैंट का लक्ष्य अकसर इतना ही लंबा होता है. ऐसे में इक्विटी एक सुरक्षित और बेहतर विकल्प हो सकता है.

म्यूचुअल फंड

रिटायरमैंट की जरूरतों को पूरा करने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प है क्योंकि लंबी अवधि में अधिक रिटर्न के साथ यह महंगाई के असर को खत्म करने का माद्दा रखता है. लंबी अवधि का फायदा हासिल करने के लिए निवेश को लगातार बनाए रखना चाहिए. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे म्यूचुअल फंड का चुनाव करना चाहिए जिन का सौ फीसदी एक्सपोजर इक्विटी में हो और जो आगे चल कर आप को डेट फंड में स्विच करने का विकल्प प्रदान करें. इक्विटी और डेट में शिफ्ट होने की ऐसी अंतर्निहित विशेषता संपत्तियों के निर्माण में मददगार साबित होती है.

इन से रहें सतर्क

इक्विटी से मिलने वाला रिटर्न बेहद अस्थिरता भरा होता है क्योंकि यह बाजार के उतारचढ़ावों पर निर्भर करता है. बाजार विभिन्न आर्थिक व गैरआर्थिक कारणों से प्रभावित होता है. लघु अवधि में अस्थिरता ज्यादा होती है जबकि लंबी अवधि में यह कमोबेश पहले जैसी हो जाती है. इसलिए दिनप्रतिदिन होने वाली और गैरप्रासंगिक घटनाओं को अनदेखा कर निवेश को कायम रखना ही बेहतर होता है.    

क्या करें

संपत्तियों के निर्माण करने के लिए एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान का सहारा लें. एसआईपी के जरिए एक तय राशि नियमित अंतराल पर निवेश करें. ऐसा करने से बाजार में होने वाली घटबढ़ से बचा जा सकता है. परिणामस्वरूप लंबे समय तक आप के निवेश की एक औसत लागत बनी रहेगी.

एसआईपी का लब्बोलुआब यह है कि जब बाजार में गिरावट होती है तो आप को निवेश पर अधिक यूनिट मिल जाते हैं लेकिन जब बाजार चढ़ता है तो यूनिट कम मिलते हैं. रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर इक्विटी में संचित सारी निधि को डेट फंड में शिफ्ट कर दें ताकि पूंजी को संरक्षित किया जा सके. रिटायरमैंट के बाद जरूरत के हिसाब से फंड में से रकम निकालें और शेष राशि को बाजार में लगी रहने दें.

रिटायरमैंट के लिए बचत करना आप के जीवन में न सिर्फ अनुशासन लाता है, बल्कि रिटायरमैंट के बाद आप के स्वर्णिम वर्षों को बेहतर भी बनाता है.         

(लेखक बजाज कैपिटल के ग्रुप सीईओ और डायरैक्टर हैं)

ये कदम उठाएं

– 2-3 इक्विटी म्यूचुअल फंड का चुनाव करें और ऐसे रिटायरमैंट फोकस्ड फंड को प्राथमिकता दें जो सौ फीसदी इक्विटी में हों

– निवेश को जारी रखें. बोनस, विंडफौल गेन आदि को उसी एसआईपी में फिर से निवेश करें

– रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर एसआईपी की राशि को बढ़ा दें

– रिटायरमैंट से 3 साल पहले अपने निवेश को जोखिम से दूर रखें

– रिटायरमैंट के बाद एसडब्लूपी यानी सिस्टमैटिक विदड्रौल प्लान का विकल्प अपना कर पैंशन प्राप्त करना शुरू कर दें

– फंड्स को रिटायरमैंट से जोड़ें

– जल्दी शुरुआत करें

अवसर के अनुसार ऐसे हों तैयार

प्रत्येक परिधान की अपनी उपयोगिता होती है, अपना महत्त्व होता है, परंतु उसे पहनने के अवसर अलग-अलग होते हैं. कुछ शालीन, कुछ भड़कीली, कुछ ट्रैडिशनल, कुछ मौडर्न या कुछ इंडोवैस्टर्न आउटलुक वाली ड्रैसेज आप अपनी इच्छा, अपनी जरूरत अथवा अवसर के हिसाब से पहनती हैं. घर में तो आप कुछ भी पहन सकती हैं यानि जिसमें भी आप कंफर्टेबल महसूस करें, पर इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं कि आप दिन भर नाइटी में ही घूमें.

घर के परिधान आराम, काम और घर के सदस्यों के रिश्तों के अनुसार होने चाहिए. सलवार-कुर्ता, कुर्ता-पाजामा, कुर्ती-कैपरी, टौप-शौर्ट्स, फ्रौक, साड़ी कुछ भी. लेकिन यहां बात तो बाहर जाने की या खास अवसरों की है, जब आपको विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दृष्टि से ड्रैसेज को कुछ भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है ताकि आपको इन्हें पहनने, सहेजने, खरीदने व मैनेज करने में आसानी हो :

पार्टी वियर

पार्टी, उत्सव व त्योहारों पर आप वाइब्रैंट कलर्ड परिधानों में अपना जलवा बिखेरते हुए खुशियां मनाएं. ड्यूअल और मल्टीटोन्ड साडि़यां आजकल खूब प्रचलन में हैं. चंदेरी साड़ी नैट के आंचल के साथ, सिल्क, कंजीवरम, बंधानी, कलकुट्टी व बनारसी इत्यादि पारंपरिक साडि़यां किसी भी एज ग्रुप में खूब फबती हैं.

ठंड का मौसम है तो पश्मीना शाल कंधे पर स्टाइल में डाली जा सकती है. इसके अलावा हाल्टर कालर ब्लाउज, गराराशरारा, पटियाला सलवार, चूड़ीदार पर कलियों वाला अनारकली या औब्लीक कालर वाला लंबा ब्रौकेड कुर्ता अथवा ग्लौसी फैब्रिक, प्लाजो के साथ लंबा कंट्रास्ट साइड मिडल कट वाला डिजाइनर कुर्ता, ऊपर हाईनैक फ्रंट ओपन बौर्डर कढ़ाई वाला, स्लीवलैस श्रग गाउन या लंबी खूबसूरत जैकेट पहन सकते हैं.

अगर आपकी उम्र 40 साल से ऊपर है तो आप कफ्तान, स्टाइलिश लेस मैक्सी गाउन में यंग दिखेंगी और आप का अंदाज बिल्कुल निराला व आई कैचिंग लगेगा.

कम उम्र की महिलाएं, लड़कियां, शाइनिंग ब्राइट कलर वाले जंप सूट, फ्लैशी टौप के साथ लौंग स्कर्ट, झीने फ्लोरोसैंट कलर्ड थ्रीफोर्थ गाउन के साथ हाल्टर कालर वाली खूबसूरत फूलों प्रिंट की लौंग फ्रौक, पैच वर्क वाली लंबी स्लीव के साथ कौकटेल-पोर्म ड्रैस ट्यूनिक, स्पैगेटी, कुछ भी ऐसा पहनें जो माहौल में चार चांद लगाए.

आप अपने ड्रेस में स्टोल, बैल्ट, कैप, हैट, ग्लव्ज, स्कार्फ, रंगबिरंगे मिटन इत्यादि ऐक्सैसरीज शामिल करके और भी आकर्षक और स्टाइलिश लग सकती हैं.

पिकनिक, मस्ती और आउटिंग के लिए आप कढ़ी हुई हिप्पी ब्लाउज वाली बोहो ड्रैस, कंट्रास्ट टौप वाले जंप सूट, कैपरी टौप, डैनिम के ब्लू या ब्लैक जींसपैंट, शिमर या नैट प्लाजो लैगिंग्स, प्लेन कुर्ता अथवा कुर्ते के साथ प्रिंटेड स्लीवलैस जैकेट या हाईनैक कोटी पहन सकती हैं. इसके अलावा क्राप्ड टौप्स, फ्लेयर्ड जींस, डैनिम शौर्ट्स और सर्दियों में मिनी स्कर्ट के साथ मोटे कपड़े की कलरफुल टाइट या थर्मल लैगिंग पहनें और अलग-अलग ब्राइट कलर्स की ड्रैसेज लेयरिंग स्टाइल में पहनें ये भी आप पर अच्छी दिखेंगी. सर्दियों में स्लीवलैस जैकेट के साथ कालर वाली शर्ट्स भी खूब जंचती है.

औफिस वियर एण्ड फौर्मल वियर

यदि आप औफिस गोइंग हैं, तो वहां यदि कोई ड्रैस कोड है तो वही पहनें अन्यथा जैसा वहां का चलन हो उस के अनुसार साड़ीसूट या शर्टपैंट, टाईकोट, कट-कालर, प्लेन कालर कोट, बंद गले का टर्टल कालर कोट, लौंग कोट इत्यादि पहनें.

हल्के प्रिंट वाले सोबर और सिम्पल सूट, साडि़यां अथवा तन को शालीनता से ढकने वाली चुस्त स्मार्ट ड्रैसें भी औफिस के लिए उपयुक्त होती हैं. जहां ब्लैक, ब्लू डैनिम जींस के साथ व्हाइट या लाइट कलर्ड बटनअप शर्ट खूब जंचती है, वहीं औफिस में भड़कीले, ब्राइट कलर, डिजाइनर व अंगप्रदर्शन वाली ड्रैस पहनने से परहेज करना चाहिए, ताकि दूसरों के कार्य में आप की वजह से खलल न पड़े.

अपने वर्क प्लेस पर न तो अपने और न ही दूसरों के काम का टैंपो भंग करने में ही समझदारी है आप भी कपड़े स्मार्टली पहनें, जिस से आप स्वयं भी औफिस कार्यों को अच्छी तरह अंजाम दे सकें.

यदि आप औफिस गोइंग नहीं हैं पर आप को कभी किसी औफिस में जाना पड़ता है, तो भी आपको इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है. जाड़ों में, ऐसी जगहों पर मीटिंग्स में स्मार्ट ब्लैक जैकेट या ब्लेजर अथवा ग्रे, स्किन, कौफी कलर व कंधे पर डाली गई शॉल आप पर खूब सूट करेगी.

शादी व सेरेमोनियल वियर

शादियों के लिए गोल्डन, सिल्वर, शाइनिंग, ब्राइट और बोल्ड कलर्स की ड्रैस खूब पसंद की जाती हैं. ट्रैडिशनल साडि़यों में भी इन तरीकों पर खास जोर दें. जरी की भारी बनारसी साड़ियों पर ऐसे ब्लाउज खूब फबेंगे. यदि कोई शादी घर के संबंध में हैं या सहेली की है, तो आप हैवी वर्क वाली चुन्नी के साथ जयपुरी लहंगा, स्ट्रेट या कलियों वाला, जिसमें जरदोजी काम किया गया हो या आप चमकती बूटियों वाला घेरदार लहंगा पहनकर, ऊपर बैकलैस और पूरी बाजू हैवी वर्क वाली सुनहरी, चमकती चोली या कुर्ता भी डाल सकती हैं या कुछ और जिससे आप मस्ती में जी भर कर डांस करने का मजा भी ले सकें.

लेटैस्ट लहंगे में रौयल लुक देने के लिए जैकेट, रोब्स कैप्स का भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है. रिसैप्शन के लिए थोड़ा हलकी जरी, मोती-सितारों या सीप-कढ़ी साड़ी के साथ स्लीवलैस या फोर्थ बाजू वाले बैकलैस ऐलीगैंट बलाउज अथवा अनारकली सूट, नैट लेस या टिशू पर ऐंब्रौयडरी की हुई लौंग स्कर्ट या ज्यादा वर्क की हुई लंबी ग्लौसी फैब्रिक फ्रौक के साथ चमकते स्लीक आभूषणों के साथ आपको स्टाइलिश लुक देगा.

अगर आप हल्दी के फंक्शन में जा रही हैं तो कुछ पीले रंग के परिधान में जाएं. ये बहुत अच्छा लगेगा. इसी तरह मेहंदी की रस्म में जा रही हों तो कोई हरी या मेहंदी कलर की ड्रैस का चुनाव करें, जिससे लगेगा आप वाकई उन की खुशियों में दिल से शामिल होने आई हैं.

ऐक्सरसाइज एण्ड वाक जौग वियर

वाकिंग के लिए ढीला कुर्ता, कुर्ती और पाजामा, टौप, ट्राउजर, कैपरी तथा जौगिंग के लिए ट्रैक सूट, व्यायाम के लिए घुटनों तक स्किनी लैगिंग, शौर्ट, कौटन स्लीवलैस टौप आदि उचित होते हैं, जिन में बौडी को आराम से हिला और घुमा सकें और ये शरीर से पसीना भी सोखता रहे.

सादी संजीदा ड्रैसें

बहुत से ऐसे मौके होते हैं, जब चटक-मटक, दामदार कपड़े पहन कर जाना बिल्कुल उचित नहीं होता, जैसे कि जब किसी मरीज को हौस्पिटल या घर देखने जा रही हों या किसी की मातमपुरसी में जाना होता है, तो आपको सादे, सफेद या हल्के रंग और कम प्रिंट वाले संजीदा कपड़े पहनकर ही जाएं.

नाइट वियर

नाइट गाउन या नाइटी तो कुछ महिलाओं को इतनी प्यारी होती है कि वे घर में हर वक्त उसी में ही रहना पसंद करती हैं. इतना ही नहीं वे सब्जीभाजी खरीदने भी उसी में ही निकल जाती हैं, पर ऐसा करना अशोभनीय है. रात के लिए पजामा-कुर्ता, टौप या नाइट सूट भी सही और सुविधाजनक होते हैं, जिसमें आप कलर, प्रिंट और फैब्रिक अपने सुकून के मुताबिक चुन सकती हैं.

स्पोर्ट्स वियर

ढीले टौप, शौर्ट्स या स्कर्ट्स और स्किनी शौर्ट्स खेलकूद के लिए आरामदेह तो होते ही हैं, साथ ही चुस्तीस्फूर्ति बढ़ाने में भी सहायक होते हैं. तैराकी के लिए भी विविध प्रकार के स्वीमिंग सूट मिलते हैं लेकिन टू पीस या वन पीस और बिकिनी पहनना आपकी अपनी चौइस है. इनके अलावा अन्य सभी परिधान स्वीमिंग के लिए असुविधा जनक और हास्यास्पद होते हैं.

काम नहीं और बहस अनंता

दोस्त होते ही इसलिए हैं कि वे एकदूसरे का वक्तबेवक्त टाइम खोटा कर सकें. दोस्तों के फायदे भी बहुत हैं. दोस्तों का एक सब से बड़ा लाभ यह है कि इन के सामने दिल का गुबार निकालने में आसानी रहती है. घर के सदस्यों से सारी बातें नहीं कही जा सकतीं. घर में रह कर मन में जो कुंठाएं जमा होती रहती हैं उन्हें निकालने के लिए दफ्तर बिलकुल सही जगह है. दफ्तर सरकारी हो तो फिर डर काहे का. पूरे दिन लगे रहो गपशप में. किसी के बाप का क्या जाता है.

मिसेज गुप्ता ने अपनी पहली फाइल खोली ही थी कि मिसेज कपूर उन से हैलोहाय करने आ गईं. पास रखी कुरसी पर लदते ही वे लगीं चहकने, ‘‘मैडम, आज बहुत उदास दिख रही हैं आप. कामवाली नहीं आई थी क्या?’’

मिसेज गुप्ता ने फाइल बंद कर दी. पूरा दिन तो खिचखिच रहती ही है. दफ्तर में सुबहसुबह काम करने का मूड बनाना बहुत कठिन काम है. कई तरह की अड़चनें आती हैं. घर से दुखी हो कर आए लोग अपनीअपनी रामकहानी ले कर बैठ जाते हैं. दफ्तर के सब से बड़े खड़ूस बौस से भी दफ्तर की खुर्रांट लेडीज इतनी नहीं डरतीं जितनी कि वे इन झाड़ूपोंछा वाली यानी कामवालियों से त्रस्त रहती हैं. दफ्तर जाने वाली महिलाओं का नाजायज फायदा भी उठाती हैं ये कामवालियां.

कलम कलमदान में रखते हुए मिसेज गुप्ता बोलीं, ‘‘क्या बताऊं मैडम, सुबहसुबह अपने श्रीमानजी से पंगा हो गया. आप को बताया था न कि मेरी ननद के साथ रिहायशी प्लौट को ले कर झंझट पड़ा हुआ है. मेरी ननद किराए के घर में रहती है. मेरी सास हमारा यह प्लौट उसे दिलवाना चाहती हैं जबकि पिछले 5 साल से हम पेट काटकाट कर उस प्लौट की किस्तें भर रहे हैं. खुले बाजार में प्लौट की कीमत 10 लाख से ऊपर चली गई है. ऐसे में सिर्फ बेसिक कीमत पर अपनी ननद को प्लौट दे देने में हम राजी कैसे हों? ‘हां’ तो मेरे श्रीमानजी ने भी नहीं की, मगर हर तरफ से हम पर दबाव डाला जा रहा है. जहां जाओ, रिश्तेदार कहते हैं कि मुझे यह प्लौट अपनी गरीब ननद को दे देना चाहिए. हम भला कुरबानी क्यों दें?’’

मिसेज गुप्ता उसी रौ में बोलती रहीं, ‘‘खैर, सुबहसुबह हम मियांबीवी में अच्छी झड़प हो गई. ऊपर से मेरी कामवाली माया आधा घंटा लेट आई. मैं ने सारा गुस्सागुबार उसी पर निकाला. बस, पीटा ही नहीं. लताड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह भी इतनी ढीठ निकली कि पलट कर उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मेरा पारा और चढ़ता गया.

‘‘अगर वह कुछ बोले, बड़बड़ाए तो फिर भी लगता है कि आप के कहे का कुछ असर उस पर हो रहा है मगर वह तो बजरबट्टू बन कर काम में लगी रही. अंदर से सौसौ गालियां दे रही होगी. जब भी उस के काम में कोई मीनमेख निकालती हूं तो कई दिन घुग्घू बनी रहती है वह. ढंग से नमस्ते तक नहीं करती. हमें अपनी गरज होती है कि बारबार इन्हें बदलना न पड़े.

‘‘आजकल अच्छे लोग आसानी से कहां मिलते हैं. फिर दूसरी दिक्कत यह है कि हम चाहती हैं कि सुबह सब से पहले ये लोग हमारा काम कर जाएं. हम हाउसवाइफ तो हैं नहीं कि जब चाहा इन से काम करवा लिया. ये कामवालियां बहुत कामचोर होती हैं. जब तक उन्हें टोकते रहो, ठीक काम करती रहती हैं, वरना सारी गंदगी घर में डालती रहती हैं. गुस्से में तो आज मैं थी ही, मैं ने उस से लौबी में 2 बार पोंछा लगवाया तथा सारे घर के परदे मशीन में धुलवाए. उस ने भी चूं तक न की.’’

मिसेज कपूर ने अपनी व्यथाकथा कहनी शुरू की, ‘‘मैं अपने पति के साथ ही सब से पहले दफ्तर आ जाती हूं, मगर आज तो घर में ही 10 बज गए. मेरी कामवाली है न शांताबाई, उस के घर पर पंगा हो गया था. उस का पति एक नंबर का शराबीकबाबी और लंपट है. रात कुछ ज्यादा दारू पी गया होगा. शांताबाई से मारपीट की होगी. सुबहसुबह शांताबाई ने अपनी छोटी बेटी के द्वारा मेरे घर संदेश भिजवाया कि अब वह काम करने नहीं आएगी. अपने पति से लड़झगड़ कर मायके जा रही है. उस ने अपनी पगार के बाकी पैसे मंगवाए थे.

‘‘सुन कर मेरे तो तनबदन में आग लग गई. अभी कुछ दिनों पहले ही मैं ने उसे पोटलीभर पुराने कपड़े तथा जूते दिए थे. आप से क्या छिपाना, अपनी 2 साल की बेटी को क्रेश से हटवा दिया था और उसे शांताबाई के हवाले कर के मैं बेफिक्र हो कर दफ्तर आ जाती थी. मुंहमांगी पगार देती थी उसे. खानापीना, त्योहार की छुट्टी सो अलग. अब नए सिरे से झमेला खड़ा हो गया.’’

मिसेज कपूर थोड़ा सांस ले कर आगे बोलीं, ‘‘मैं अपने हसबैंड को ले कर तुरत शांताबाई की बस्ती में पहुंची. शांताबाई का तो बुरा हाल था. मुंह सूजा हुआ और चेहरा लटका हुआ. अपनी पोटली तैयार किए बैठी थी. उस के पति से बात हुई, वह अलग चीख रहा था. मेरे हसबैंड ने उसे खूब धमकाया, पुलिस में शिकायत करने का डर दिखाया. हमें अपनी गरज थी. बड़ी मुश्किल से उन दोनों में समझौता करवा कर शांताबाई को अपने घर छोड़ कर भागती हुई दफ्तर पहुंची हूं.

‘‘वैसे मिसेज गुप्ता, एक बात है, ये लोग हम से कुछ न कुछ और पाने की फिराक में हर बार इतना हंगामा करते रहते हैं. हम भी क्या करें, ये लोग हमारी मदद न करें तो हमारा दफ्तर आ पाना मुश्किल हो जाए.

‘‘मैं ने शांताबाई को तो सिर्फ अपनी बेटी की देखभाल के लिए रखा हुआ है. घर की साफसफाई तो दूसरी कामवाली गीता करती है. तीसरी कामवाली छाया सुबहशाम बरतन धोती है. एक अन्य छोटी लड़की भी आती है जो मेरे बेटे बबलू को स्कूल के लिए तैयार करवाने में मदद करती है और उसे छोड़ने बस स्टाप तक जाती है व दोपहर में उसे लेने भी जाती है. शांताबाई को सख्त हिदायत दी हुई है कि घर को खुला छोड़ कर न जाए.’’

औरतों में एक खास बात होती है कि किसी से कुछ सुनेंगी तो अपनी रामकहानी सुनाए बिना टलेंगी नहीं. इस के बाद मिसेज जैन, मिसेज भारद्वाज, मिसेज कौशल आदि सब ने बारीबारी से अपनी वर्तमान व भूतपूर्व कामवालियों के दुर्लभ किस्से सुनाए.

लंच टाइम हो गया था. फाइलें ज्यों की त्यों पड़ी इंतजार करती रहीं कि शायद आज उन का निबटान हो जाए. दोपहर बाद राजनीति पर ऐसी जम कर बहस छिड़ी कि पूछिए मत. दफ्तर बंद होने का वक्त आ गया, फाइलें अभी भी तरस रही थीं जबकि नौकरीवालियां ‘घरघर की कामवालियां’ विषय पर बहस करती रहीं.

– जसविंदर शर्मा

फिल्म रिव्यू : लाली की शादी में लड्डू दीवाना

शादी और करियर में से किसे कितना महत्व दिया जाए, इस दुविधा में फंसी युवा पीढ़ी की कहानी को बेतरतीब तरीके से पेश की जाने वाली फिल्म है-‘‘लाली की शादी में लड्डू दीवाना’’. फिल्म में नायक अपने करियर की आड़ में अपनी गर्भवती प्रेमिका से दूर हो जाता है और उसकी शादी किसी अन्य से होती है.

फिल्म की कहानी के केंद्र में एक सायकल की दुकान के मालिक (दर्शन जरीवाला) के बेटे लड्डू (विवान शाह) हैं. उसकी तमन्ना सायकल की दुकान में बैठने की बजाय रातों रात बहुत बड़ा उद्योगपति बनने की है. इसी के चलते वह दूसरे शहर में एक रेस्टारेंट में नौकरी करने लगता है, जहां उसकी मुलकात लाली (अक्षरा हासन) से होती है. जो कि अपने पिता (सौरभ शुक्ला) का घर छोड़कर इसी शहर में नौकरी कर रही है. लड्डू खुद को करोड़पति पिता की संतान बताकर लाली को अपने प्यार में फांसता है. दोनों के बीच प्यार पनपता है और एक साथ रहने लगते हैं. पर लड्डू के दिमाग में तो पैसा हावी है. परिणामतः लड्डू की नौकरी चली जाती है और फिर लाली भी उसका घर छोड़कर चली जाती है.

इसके बाद कहानी में बड़ा मोड़ आता है. रामनगर के युवराज (गुरमीत चौधरी) की दादी को ज्योतिषी बताता है कि यदि युवराज की शादी किसी गर्भवती लड़की से कर दी जाए, तो इनके जीवन में सब कुछ ठीक हो जाएगा. युवराज व लाली की शादी तय हो जाती है. फिर कहानी में कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं और एक दिन लाली एक बच्चे की मां बन जाती है.

फिल्म की कहानी बेवजह खींची गई है. लाली व लड्डू का रोमांस प्रभाव नहीं पैदा करता. युवराज की कहानी से बची खुची कसर पूरी होती है और कहानी अर्थहीन हो जाती है. फिल्म का गीत संगीत असरहीन है. पूरी फिल्म देखकर लगता है कि फिल्म की पटकथा किसी नौसीखिए ने रची है. लेखक व निर्देशक जो मुद्दा लेकर चले थे, उसके साथ भी वह न्याय नहीं कर पाए. कैमरामैन ने अच्छा काम किया है. लोकेशन अच्छी है. मगर इससे फिल्म बेहतर नहीं होती.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो इस फिल्म में विवान शाह और अक्षरा हासन की जोड़ी नहीं जमती है. दोनों युवा होते हुए भी रोमांटिक किरदारों में अजीब से लगते हैं. गुरमीत चौधरी ठीक ठाक हैं.

टी पी अग्रवाल और राहुल अग्रवाल निर्मित तथा मनीष हरीशंकर निर्मित फिल्म ‘‘लाली की शादी में लड्ड दीवाना’’ के संगीतकार विपिन पटवा, रेवंत सिद्धार्थ तथा कलाकार हैं- अक्षरा हासन, विवान शाह, संजय मिश्रा, सौरभ शुक्ला, दर्शन जरीवाला, रवि किशन व अन्य.

खूबसूरती के रंग सितारों के संग

त्वचा की खूबसूरती अंदर से आती है और इस के लिए चाहिए सही खानपान और नियमित वर्कआउट. आज की महिलाएं इस पर खास ध्यान देने लगी है, क्योंकि उन्हें पता है कि हर उम्र में स्किन की सही देखभाल जरूरी है. जिस से आप के चेहरे पर किसी प्रकार के दाग, झाइयां और झुर्रियां न आएं.

ग्लैमर वर्ल्ड में सुंदर चेहरे की तो और अधिक जरुरत होती है, क्योंकि हर दिन धूप में शूटिंग, मेकअप का प्रयोग और अनियमित खानपान से त्वचा बेजान होने लगती है. ऐसे में क्या करती है ये सिने तारिकाएं आइए जानते हैं:

आलिया भट्ट

गर्मी के मौसम में त्वचा में नमी की कमी हो जाती है. ऐसे में पर्याप्त पानी पीना जरूरी होता है. आलिया गर्मी में डिटौक्स वाटर का अधिक प्रयोग करती हैं. जो खासकर नीबू पानी होता है. वे कहती हैं कि इस से शरीर का वजन कंट्रोल में रहता है. डिटौक्स वाटर से पाचन शक्ति बढ़ती है और शरीर में ऊर्जा बनी रहती है.

इस के अलावा मैं कभी डाइट फौलो नहीं करती. 2 घंटे के अंतराल पर खाना खाती हूं. शुगर, फैट और कार्बोहाइड्रेट कम लेती हूं. गर्मियों में पाए जाने वाले फ्रैश फ्रूट्स और सब्जियां अधिक खाती हूं. दिन में 8 से 10 गिलास पानी पीती हूं. वर्क आउट मैं सप्ताह में 4 से 5 दिन करती हूं, जिस में मैडिटेशन खास होता है ताकि लंबी शूटिंग के बाद दिमाग शांत रहे.

आलिया अपनी त्वचा के लिए हमेशा अच्छे ब्रांड के उत्पाद का प्रयोग करती है. गर्मियों में त्वचा नमी युक्त रखने के लिए मौइश्चराजर का प्रयोग दिन में 2 बार करती हैं. अधिक मेकअप वह पसंद नहीं करतीं. काजल, लिप बाम और परफ्यूम वे अपने पर्स में हमेशा रखती हैं. इस के अलावा गर्मियों में त्वचा को नियमित स्क्रब करना नहीं भूलतीं. रैगुलर स्क्रब और स्पा से अपने तनाव को कम करती हैं.

दीपिका पादुकोण

अभिनेत्री दीपिका की स्किन जन्म से ही काफी अच्छी है, लेकिन पूरा दिन मेकअप लगाने से पहले वे चेहरे पर सनस्क्रीन लगाना नहीं भूलतीं. वे अधिकतर मौइश्चराइजर एसपीएफ वाले प्रयोग करती हैं ताकि त्वचा में नमी की कमी न हो. इस के अलावा वे सन ग्लासेज हमेशा पहनती हैं, जिस से सूर्य की किरणें उन की आंखों के आसपास के टिश्यू को क्षति न पहुंचाएं.

रात को सोने से पहले वे अपने मेकअप को फेसवाश से निकाल कर क्रीम या मौइश्चराइजर लगाती हैं. जिस से सुबह उठकर ताजगी महसूस हो. वे कहती हैं कि कई बार घंटो धूप में शूटिंग करनी पड़ती है, जिस के लिए मुझे पहले से ही तैयारी करनी पड़ती है. गर्मी में पानी और लिक्विड डाइट अधिक लेती हूं.

यह जरूरी नहीं कि आप कितना खाते हैं, गर्मी में जरूरी है कि आप खाते क्या हैं? हैल्दी और बैलेंस डाइट हमेशा आप की त्वचा को हैल्दी रखती है. बाडी वाश के लिए वे लिक्विड साबुन का प्रयोग करती हैं.

दीपिका बैडमिंटन प्लेयर भी रही हैं, इसलिए डेली एक्सरसाइज का महत्त्व जानती है. उन का कहना है कि सही व्यायाम से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और त्वचा में चमक बनी रहती है. मैं रेगुलर जिम न भी जा पाऊं तो साइक्लिंग या वाक कर लेती हूं.

अदा शर्मा

फिल्म ‘कमांडो 2’ में अभिनय करने वाली अभिनेत्री अदा शर्मा गर्मियों में अपनी त्वचा की खूब देखभाल करती हैं. वे कहती हैं कि मुझे गर्मियों में पसीना बहुत आता है इसलिए मैं पानी अधिक पीती हूं. इस मौसम में त्वचा और बालों की भी देखभाल मुझे अधिक करनी पड़ती है. अपनी स्कैल्प और चेहरा हमेशा साफ रखती हूं. इस के लिए मैं पपीता और आमंड के नैचुरल फेस पैक का अधिक प्रयोग करती हूं. व्हिट ग्रास जूस मैं त्वचा को टैन होने से बचाने के लिए लगाती हूं और स्किन के अधिक टैन होने पर उसे हटाने के लिए एलो वेरा जैल लगा लेती हूं.

मैं पूरे साल ऐंटीबायोटिक साबुन अपनी त्वचा के लिए प्रयोग करती हूं ताकि किसी प्रकार के रैसेज न हों. अधिकतर मैं गर्मी के मौसम में त्वचा को नमी प्रदान करने के लिए लाइट मौइश्चराइजर का प्रयोग करती हूं, लेकिन अगर अधिक गर्मी हो, तो मैं एलो वेरा जैल लगाती हूं. इस मौसम में अधिक मौइश्चराइजर लगाने से त्वचा चिपचिपी हो जाती है, जिस से मुहांसे का डर रहता है. मैं प्योर वैजीटेरियन हूं और मौसमी फल और सब्जियां खाती हूं. गर्मी में अधिकतर तरल पदार्थ सेवन करती हूं. इस में मैं गाजर का जूस अधिक पसंद करती हूं.

कैटरीना कैफ

हालांकि कैटरीना कैफ की स्किन बहुत सौफ्ट है और हार्श गर्मी का मौसम उन्हें परेशान करता है, पर वे गर्मी के मौसम को बहुत ऐंजौय करती हैं. अगर शूटिंग न हो तो इस मौसम में वह सूती कपड़े पहनना पसंद करती है, ताकि त्वचा को आराम मिले. इस मौसम में वे अधिक मेकअप नहीं लगातीं.

वे कहती हैं कि लाइट मौइश्चराइजर मैं इस मौसम में अधिक लगाती हूं. सनस्क्रीन लगा कर ही बाहर निकलती हूं. खाना मैं बहुत साधारण लेती हूं. जिस में औयल और मिर्च की मात्रा कम हो, जो अधिकतर उबली हुई सब्जियां ही होती हैं. लेकिन मौसमी फलों के जूस और फ्रैश फल लेती हूं. मुझे आम बहुत पसंद है.

कैटरीना गर्मी में त्वचा को साफ रखना बहुत जरूरी समझती हैं, इसलिए दिन में 2 बार फेस वाश से चेहरा धो कर लाइट मौइश्चराइजर लगाती हैं. रात में शूटिंग से आ कर क्लींजिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग अवश्य करती हैं. खूबसूरती को हमेशा कायम रखने के लिए वे मिनरल मड मास्क को अधिक उपयोगी समझती है, क्योंकि इस से त्वचा की गंदगी जल्दी निकल आती है.

कैटरीना एक ऐसी ऐक्ट्रैस हैं जो बिना मेकअप के भी सुंदर दिखती हैं. वे गर्मियों में अपने पर्स में हमेशा लिप बाम और मौइश्चराइजिंग सनब्लाक रखती हैं. उन का कहना है कि खूबसूरती अंदर से आती है, जिस में खुश रहना बहुत जरुरी है.

नियमित वर्कआउट करने में मुश्किल आने पर मैं मैडिटेशन करती हूं, लेकिन अगर समय मिले तो स्विमिंग, वेट ट्रेनिंग और डांस करती हूं. मेरे हिसाब से सोने से पहले शरीर को हल्का महसूस करना चाहिए, इसलिए खाना मैं सोने से 2 घंटा पहले खाती हूं. साबुन मैं अधिकतर मैडिकेटेड ही प्रयोग करती हूं.

श्रद्धा कपूर

श्रद्धा कपूर इन दिनों शूटिंग को ले कर बहुत व्यस्त हैं, ऐसे में उन्हें अपनी त्वचा का खास ध्यान रखना पड़ता है. वे हंसती हुई कहती हैं कि वैसे तो मेरी चमकती त्वचा का राज मेरे माता पिता हैं, जिन से मुझे ये वरदान में मिली है, लेकिन इस की देखभाल मेरे लिए वाकई चुनौती है. मुझे खोई हुई ग्लो को लाने के लिए स्ट्राबेरी और पीच का सेवन नियमित करना पड़ता है.

अधिक समय तक हार्श मौसम में शूटिंग करने से मैं ने पाया कि मेरी त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है. इसलिए सही खानपान इस मौसम में जरूरी है, जिस में अधिक तरल पदार्थ, फ्रूट्स और पानी पीती हूं. मैं कुछ लगाने से अधिक अपनी डाइट पर ध्यान देती हूं.

मुंबई में गर्मी अधिकतर चिपचिपी होती है, ऐसे में नियमित क्लींजर से चेहरे को साफ रखती हूं और लाइट मौइश्चराइजर से खोई हुई नमी को वापस लाती हूं. गर्मियों में मैं अपने स्कैल्प को नारियल तेल से मसाज करवा कर शैम्पू करती हूं. इस के अलावा सनस्क्रीन लगाना नहीं भूलती.

गर्मियों में श्रद्धा अपनी ब्यूटी किट में लिपबाम, हीट प्रोटैक्शन स्प्रे, मेकअप रिमूवर और काटन स्वाइप्स रखती हैं. मेकअप वे अधिक नहीं पसंद करतीं. इसलिए सिंपल रहती हैं. नहाने के लिए वे शावर जेल का प्रयोग करती हैं. वर्कआउट का समय मिले तो जौगिंग करने और जिम में जाती है.

करीना कपूर

गौर्जियस करीना कपूर की त्वचा रुखी होने की वजह से वे गर्मी में हमेशा अच्छे ब्रांड के मौइश्चराइजर का प्रयोग करती हैं. वे प्राकृतिक ब्यूटी प्रोडक्ट का अधिक इस्तेमाल करती हैं. घरेलू नुस्खे उन्हें अपनाना अधिक पसंद है, जिस में खास कर शहद से त्वचा की मालिश कर थोड़ी देर बाद धो देती हैं. इस से त्वचा काफी मुलायम हो जाती है. होम मेड फेस मास्क लगाती हैं. वे गर्मियों में फेसवाश कर हलके गरम पानी से चेहरे को धोती हैं. वे कहती हैं खूबसूरती अंदर से आती है, जिस के लिए मुझे खुश रहना जरुरी है. मैं कोई तनाव नहीं लेती. शूटिंग खत्म होने के बाद रात को मैं अपना मेकअप उतार कर मौइश्चराइजर लगा लेती हूं.

त्वचा की देखभाल के लिए करीना गर्मियों में सही डाइट लेती हैं. वर्कआउट नियमित करती हैं, जिस में जौगिंग, स्विमिंग और जिम शामिल होता है. बौडी क्लीनिंग के लिए शावर जैल का प्रयोग करती है.

जिंदगी से जरूरी नहीं मोबाइल 

आज तकनीक ने हमारे जीवन को काफी आसान बना दिया है. दुनिया भर के काम अब पलक झपकते ही संपन्न हो जाते हैं. हर कदम पर हम किसी न किसी रूप में तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस से जहां हमारा जीवन बहुत सरल और सुविधाजनक हो गया है वहीं दूसरी तरफ इस के दुष्परिणाम जिंदगी में न केवल जहर घोल रहे हैं बल्कि मौत का कारण भी बन रहे हैं.

मोबाइल एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जिस ने जिंदगी की तमाम नई राहें खोल दी हैं. मोबाइल से आप चंद मिनट में घर बैठे अपने किसी दूरस्थ दोस्त या रिश्तेदार से संपर्क साध सकते हैं. यह सर्वसुलभ व आसान रखरखाव के कारण हरेक के पास मौजूद है और इंसान इस के जरिए एकदूसरे से कनैक्टिड रहता है.

किशोरों में तो मोबाइल का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. सुबह से शाम तक किशोरों या युवाओं को मोबाइल  से चिपका देखा जा सकता है. आज मोबाइल न सिर्फ बात करने का जरिया है बल्कि यह मनोरंजन का अकूत खजाना भी है. जब से मोबाइल स्मार्ट हुआ और इंटरनैट से जुड़ा है, तब से इस की अहमियत और बढ़ गई है. युवाओं की उंगलियां तो हर समय मोबाइल स्क्रीन पर फिसलती रहती हैं.

यह सच है कि मोबाइल आज हर किसी की जरूरत है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप अपना जरूरी काम छोड़ कर हर पल मोबाइल से ही चिपके रहें. जब से व्हाट्सऐप, फेसबुक, गेम्स और संगीत मोबाइल पर उपलब्ध हुए हैं तब से इस का इस्तेमाल और अधिक बढ़ गया है, लेकिन इस के फायदे के साथसाथ नुकसान भी सामने आ रहे हैं. अत: जरूरत है इस के सही इस्तेमाल की.

किशोरियों से धोखाधड़ी

मोबाइल पर किशोर एकदूसरे से घंटों चैटिंग करते हैं. वे फर्जी अकाउंट बना कर एकदूसरे को इंप्रैस करने के लिए गलत जानकारी्र देते हैं. अकसर भोलीभाली किशोरियां मोबाइल पर लड़के का खूबसूरत फोटो देख कर आकर्षित हो जाती हैं और प्यार के सपने बुनने लगती हैं.

चैटिंग का यह सिलसिला जब काफी बढ़ जाता है और एकदूसरे पर विश्वास करने का समय आ जाता है तो वे किसी स्थान पर मिलते हैं और साथ मरनेजीने की कसमें खाते हैं. ऐसे में युवती विश्वास कर अपना सबकुछ निछावर कर देती है, लेकिन कई बार युवक वीडियो बना लेते हैं और जब देखते हैं कि लड़की उन के चंगुल से निकलना चाहती है तो वे उसे धमकी देते हैं व इसी वीडियो के जरिए ब्लैकमेल करने की कोशिश करते हैं.

दिल्ली निवासी सुनीता का भी मोबाइल चैटिंग के दौरान एक लड़के से अफेयर हो गया. दोनों अकसर मैट्रो स्टेशन पर मिलते और घंटों साथ गुजारते. सुनीता को अपने बौयफ्रैंड रमेश पर पूरा यकीन था कि वह दूसरे लड़कों की तरह नहीं है. अब सुनीता रमेश से और भी ज्यादा खुल गई थी. एक दिन रमेश उसे एक होटल में ले गया व उस से कहा कि वह उस की इच्छा पूरी कर दे, वैसे भी अब तो हमारी शादी होनी ही है.

सुनीता को रमेश पर पूरा भरोसा था इसलिए उस ने रमेश की इच्छा पूरी कर दी. इस घटना के बाद जब सुनीता ने रमेश से बात करनी चाही तो उस का फोन स्विचऔफ मिला. मन ही मन सुनीता बहुत लज्जित थी. वह यह बात अपने पेरैंट्स को भी नहीं बता सकती थी. आखिरकार वह डिप्रैशन का शिकार हो गई.

सुनीता जैसी कई लड़कियां मोबाइल पर चैटिंग के दौरान बौयफ्रैंड तो बना लेती हैं पर उन्हें धोखा ही मिलता है. इसलिए जरूरी है कि युवतियां मोबाइल का इस्तेमाल तो करें, लेकिन चैटिंग करते समय पूरी सावधानी बरतें.

बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं

जब से मोबाइल का चलन बढ़ा है तब से दुर्घटनाएं भी अधिक हो रही हैं. आज बाइक सवार, साइकिल सवार, स्कूटर सवार, कार चालक व रिकशा चालक भी मोबाइल कान पर लगाए दिखते हैं. अकसर वे कानों में लीड लगा कर बेफ्रिक हो कर सड़क या रेलवे लाइन पार कर जाते हैं जिस का खमियाजा उन्हें अपनी जान दे कर भुगतना पड़ता है. वे इतनी तेज आवाज में म्यूजिक सुनते हैं कि उन्हें अपने आसपास का बिलकुल भी भान नहीं रहता और न किसी गाड़ी आदि का हौर्न सुनाई देता है.

वाहन चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल करने से ध्यान बंटता है और दुर्घटना की पूरी आशंका रहती है. हालांकि सरकार ने वाहन चलाते समय मोबाइल फोन पर बात करना या फिर लीड लगा कर गाने सुनना गैरकानूनी घोषित किया है, लेकिन फिर भी लोग बेधड़क सड़कों पर मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं.

रोहिणी, दिल्ली में रहने वाली कंचन के पति को कंपनी की तरफ से गाड़ी मिली थी. एक दिन कंचन गाड़ी ले कर शौपिंग के लिए निकली. रास्ते में उस की सहेली का फोन आ गया और वह उस से बातें करने लगी. तभी रैडलाइट हो गईर् और मोबाइल पर बात करते हुए उस ने रैडलाइट जंप कर दी, जिस कारण दूसरी तरफ से आ रही गाड़ी से उस की टक्कर हो गई. हालांकि किसी को चोट नहीं आई और एक बड़ा हादसा होतेहोते टल गया.

मोबाइल से सैल्फी जानलेवा हो सकती है

जब से स्मार्टफोन आए हैं सैल्फी लेने का क्रेज किशोरों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. कभीकभी सैल्फी लेना काफी खतरनाक हो जाता है. अकसर अखबारों में सैल्फी लेते समय होने वाले हादसों की खबरें छपती रहती हैं. मैट्रो स्टेशनों व मौल में किशोरकिशोरियां सैल्फी लेते हुए दिख जाएंगे. वे सैल्फी नैट पर अपलोड करते हैं, लेकिन कई बार यह जानलेवा भी बन सकती है. अत: सैल्फी लेते समय पूरी सावधानी बरतें, कहीं आप भी सैल्फी के चक्कर में जान न गंवा बैठें.

मोबाइल से बढ़ती दूरियां

मोबाइल फोन की वजह से रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं. पहले लोग एकदूसरे के घर जाते थे, बातचीत करते थे और एक पारिवारिक रिश्ता कायम होता था, पर मोबाइल की वजह से अब रिश्तों में दरार आने लगी है. लोग दिनभर मोबाइल पर ही व्यस्त रहते हैं. आजकल किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं है. यह सच है कि मोबाइल एक उपयोगी वस्तु है मगर जो इसे अपने ऐंटरटेनमैंट का साधन समझते हैं, वे लोग सिर्फ धोखे में जीते हैं और एक दिन ऐसा भी आता है कि वे जिंदगी में अकेले ही रह जाते हैं और फिर अकेलेपन के कारण डिप्रैशन में डूब जाते हैं.

ऐसा भी देखने में आया है कि इंसान मोबाइल की लत के चलते अपने जीवनसाथी तक को भी भूल जाता है जबकि फिर यहीं से शुरू होती है झगड़े की शुरुआत. गाजियाबाद में रहने वाले अमर श्रीवास्तव पूरे दिन औफिस में रहते हैं जबकि इन की पत्नी सौम्या घर पर अकेली रहती हैं लेकिन जब वे देर रात घर आते हैं तो उन्हें अपनी पत्नी के लिए वक्त नहीं मिलता और जितनी देर भी घर पर रहते हैं बस, मोबाइल पर गेम खेलते हैं या फिर व्हाट्सऐप चलाते हैं. इसी अकेलेपन से घुट कर उन की पत्नी बीमार रहने लगी है.

मोबाइल फोन जितना जरूरी है उस के परिणाम कहीं ज्यादा हानिकारक भी हैं इसलिए मोबाइल का इस्तेमाल सोचसमझ करें.

– पल्लवी निगम

शादी का झांसा दे कर बलात्कार

आमतौर पर देखा गया है कि युवतियां पहले तो किसी युवक की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाती हैं या उस की दोस्ती कबूल कर लेती हैं. बाद में उन का यह दोस्ताना रिश्ता शारीरिक संबंधों तक पहुंच जाता है. यह युवक भी जानता है और युवती भी कि उन की शादी हो नहीं सकती, इस के बावजूद दोनों संबंध बना कर सुख भोगते रहते हैं.

सामान्यत: कोई युवक शादी का झांसा दे कर या बहलाफुसला कर युवती से शारीरिक संबंध नहीं बनाता, लेकिन वक्त आने पर युवतियां उस पर शादी का झांसा दे कर बलात्कार करने या यौन शोषण का आरोप लगा कर उसे जेल भिजवाने से भी नहीं हिचकतीं.

कुछ प्रकरणों में तो युवतियों का कहना होता है कि पिछले 5 साल से वह शादी का झांसा दे कर यौन शोषण कर रहा था. प्रश्न यह है कि यदि वह बलात्कार था, तो 5 साल तक वे चुप क्यों बैठी रहीं? क्यों न पहले दिन या पहली बार में एफआईआर दर्ज कराई गई? इन 5 साल में उन्होंने कई बार संबंध बनाए, तब तो उसे कोई आपत्ति नहीं हुई, तो फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि रजामंदी को बलात्कार का स्वरूप दे कर उसे फंसा दिया?

कुछ युवतियां पैसे वाले लड़कों से दोस्ती करती हैं या उन्हें अपने प्रेमजाल में फंसाती हैं. उन के साथ हमबिस्तर होती हैं और उन के पैसों पर ऐश करती हैं. जब सामने वाला हाथ खींच लेता है, तो वह उसे ब्लैकमेल करने लगती हैं कि या तो वह उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करता रहे या फिर झूठे मुकदमे में फंसने के लिए तैयार रहे?

अब यदि युवक ब्लैकमेल से बचने के लिए उसे धनराशि देता है तो उस की कभी खत्म न होने वाली चाहत बढ़ती जाती है, जो आर्थिक दृष्टि से उसे खोखला कर देती है. ऐसे में जिस दिन वह पैसे देना बंद कर देता है, उस पर शादी करने का झांसा दे कर बलात्कार करने का आरोप मढ़ दिया जाता है.

शादी का झांसा या वादा कर यौन शोषण करने के आरोप प्राय: बेतुके, झूठे और बेबुनियाद होते हैं. युवक लाख सफाई दे, रजामंदी से संबंध बनाने की दुहाई दे, लेकिन उसे सुनता कौन है, नतीजतन, बेकुसूर युवक को सजा हो जाती है.

यदि यह मान भी लिया जाए कि कभी युवक ने शादी करने का वादा किया था और अब उस से मुकर रहा है, तो यह वादाखिलाफी तो हो सकती है, पर बलात्कार नहीं. क्या वादाखिलाफी और बलात्कार एक ही अपराध है? तो फिर उसे बलात्कार के जुर्म में क्यों सलाखों के पीछे डाला जाए?

बलात्कार वह होता है जब कोई बलपूर्वक या डराधमका कर किसी युवती के साथ शारीरिक संबंध बनाता है. मैडिकल जांच से पता चल सकता है कि वह बलात्कार था या आपसी सहमति का नतीजा, क्योंकि बलात्कार में छीनाझपटी, कपड़ों का फटना, प्रजनन अंग में जख्म होना आदि बातें उजागर होती हैं, लेकिन यदि दोनों की सहमति से संबंध बनते हैं तो इस तरह के कोई लक्षण नजर नहीं आते.

जो युवती युवक पर शादी का झांसा दे कर संबंध बनाने जैसे इलजाम लगाती है, कोई उस से पूछे कि वह झांसे में आई क्यों? वह नासमझ तो है नहीं? यदि नाबालिग है तो यह उम्र नहीं शारीरिक संबंध बनाने की, उस ने अपनी सहमति क्यों दी? यदि वह बालिग है तो अपना भलाबुरा खुद जानती है, इस के लिए वह तैयार क्यों हुई?

आजकल मौडर्न सोसायटी या बड़े शहरों में साथ पढ़ने वाले अथवा नौकरीपेशा युवकयुवतियों में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने का चलन बढ़ रहा है. अपने घरपरिवार से दूर युवकयुवती एक कमरे में, एक छत के नीचे बगैर शादी किए रहते हैं, ऐसे युवकयुवतियां शादी को एक बंधन मानते हैं और इस बंधन में बंधना नहीं चाहते, पर शादी के बाद मिलने वाला सुख भोगना चाहते हैं.

न तो उन्हें ‘लिव इन’ में रहने के लिए कोई विवश करता है और न ही शारीरिक संबंध बनाने के लिए. रही बात शादी का झांसा देने की, तो इस का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, क्योंकि शादी नहीं करनी थी, तभी तो वे ‘लिव इन’ में साथ हैं. इसलिए 10 साल तक ‘लिव इन’ में रहने के बाद युवक पर यौन शोषण का आरोप लगाना सरासर नाइंसाफी है.

एक बात यह भी है कि ‘लिव इन’ में रहने वाली युवतियां हों या युवक मौजमस्ती के लिए वे गर्भनिरोधक गोलियों अथवा अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हैं ताकि गर्भ न ठहरे. जरा गौर कीजिए, क्या आज तक किसी ने कंडोम का इस्तेमाल कर बलात्कार किया है? तो फिर यह बलात्कार या यौन शोषण कैसे हो सकता है?

कई बार मंगेतर प्रेमीप्रेमिका जब एकांत में होते हैं तो परिस्थितिवश उन के कदम बहक जाते हैं और वे शादी का इंतजार किए बगैर शारीरिक संबंध बना लेते हैं. ऐसे में युवती या उस के परिजन उस से शादी करना नहीं चाहते तो उलटे उस पर बलात्कार का आरोप लगा कर उस से मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं.

यदि आप शादी से पूर्व शारीरिक संबंध बनाने को गलत मानती हैं तो संबंध न बनाएं. एक सीमा तक ही उसे शारीरिक स्पर्र्श करने दें. शारीरिक संबंधों को ‘शादी के बाद’ के लिए छोड़ सकती हैं.

कोई भी युवक, प्रेमी या मंगेतर तब तक संबंध नहीं बनाता, जब तक कि युवती राजीखुशी तैयार नहीं होती या अपनी मौन स्वीकृति’ नहीं दे देती. यदि युवक पहल करता है और वह उस का मजा लेते हुए उसे सब कुछ करने देती है, तो फिर यह बलात्कार कैसे हुआ?

इस तरह के बलात्कार या यौन शोषण के मुकदमे दर्ज कराने वाली युवतियां खुद भी जानती हैं कि वह बलात्कार नहीं था. कई प्रकरणों में तो युवती उसे बलात्कार सिद्ध करने में असफल रही या युवक ने यह सिद्ध कर दिया कि जो कुछ हुआ वह दोनों की सहमति से हुआ. ऐसे में न्यायालय युवती को बलात्कार का झूठा मुकदमा दर्ज करने पर फटकार लगाता है तथा युवक को बरी कर देता है.

राजस्थान के बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी का मानना है कि छोटी उम्र में अगर जानेअनजाने में भी सहमति से संबंध बनाएं जाएं, तो उसे दुष्कर्म नहीं मानना चाहिए.

इस के व्यावहारिक पहलू को समझने की जरूरत है. ऐसे मामलों में अकसर युवक के खिलाफ पोक्सो ऐक्ट के तहत मामला दर्ज हो जाता है और उसे जीवन भर परेशानी होती है.

राजस्थान के राजसमंद जिले में अपने दौरे में अधिकारियों के साथ बैठक में मनन चतुर्वेदी ने कहा कि आजकल जितने भी पोक्सो ऐक्ट में दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज हो रहे हैं जिन में बालक को दोषी ठहराया जा रहा है, उन में परामर्श की जरूरत है ताकि गलती दोबारा न हो.

मनन चतुर्वेदी ने आगे कहा कि उन्होंने कई आदिवासी इलाकों का दौरा किया और मातापिता तथा किशोरगृहों में रह रहे बच्चों से बात की, तो सामने आया कि उन्हें यह पता ही नहीं है कि वे क्या गलती कर बैठे हैं. उन्होंने कहा कि वे पोक्सो ऐक्ट को गलत नहीं मानतीं, लेकिन यह ऐक्ट लगाने से पहले बच्चों को समझाने की जरूरत भी है.

बच्चे फिल्में देख कर या किसी परिस्थिति में संबंध बना लेते हैं, मगर इस में कहीं न कहीं एकदूसरे की रजामंदी जरूर है. इस के लिए न सिर्फ स्वयंसेवी संगठनों की जिम्मेदारी से परामर्श देते हुए लोगों को प्रेरित करना होगा बल्कि पुलिस व प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए. चतुर्वेदी के बयान पर राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने कहा कि देखना होगा कि चतुर्वेदी ने किस संदर्भ में यह बयान दिया है.

फिल्म रिव्यू : मिर्जा ज्यूलिएट

मिर्जा साहिबां की क्लासिक प्रेम कहानी को तमाम फिल्मकार अपने अपने अंदाज में पेश करते रहे हैं. लगभग6 माह पहले मशहूर फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में एक साथ दो कहानियों यानी कि मिर्जा साहिबां की क्लासिक प्रेम कहानी व आधुनिक युग के मिर्जा साहिबां की प्रेम कहानी को समानांतर पेश करते हुए साहिबां तीर क्यों तोड़े का जवाब तलाशने का प्रयास किया था. अब उसी क्लासिक प्रेम कहानी को निर्देशक राजेश रामसिंह उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर की पृष्ठभूमि में बाहुबलियों व हिंदू मुस्लिम परिवारों की पृष्ठभूमि में इस तरह लेकर आए हैं कि कहानी का पूरा मर्म धराशाही हो गया. फिल्म ‘‘मिर्जा जूलिएट’’ प्यार व रोमांस की बजाए एक्शन, राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते अपने भाई की हत्या करा देने से लेकर आनर किलिंग तक के सारे मुद्दों से ओतप्रोत एक बोझिल फिल्म बनकर रह गयी है.

फिल्म ‘‘मिर्जा जूलिएट’’ की कहानी उत्तर भारत के मिर्जापुर शहर की है, जहां हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग रहते हैं. यहां बाहुबली धर्मराज शुक्ला (प्रियांशु चटर्जी) अपने दो भाईयों नकुल व सहदेव व बहन जूली के साथ रहते हैं. जूली मस्त व बिंदास है. वह निडरता के साथ हर किसी से पंगे लेती रहती है. उसे अपने प्रति अपने भाईयों के प्रेम का अहसास है. जूली की शादी इलाहाबाद के दबंग नेता पांडे परिवार में तय की गयी है. जूली के होने वाले पति राजन पांडे (चंदन राय सान्याल) कामुक किस्म के इंसान है. राजन, जूली को जुलिएट पुकारते हैं और फोन पर किस व सेक्स की बात करते हैं. पर जूली उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती. निजी जीवन में जूली बिंदास है, मगर प्यार, रोमांस व सेक्स से अपरिचित सी है.

इधर रामनवमी के दिन  इलहाबाद में हिंदू और मुसलमानों के जुलूस निकल रहे होते हैं, दोनों में से कोई रास्ता बदलना नहीं चाहते. उस क्षेत्र का पुलिस अधिकारी मुस्लिम नेता सलाउद्दीन और हिंदू नेता यानी कि राजन पांडे चाचा देवी पांडे को राह बदलने के लिए समझाने का असफल प्रयास करते हैं. तभी वहां पुलिस की वर्दी में एक शख्स आता है और देवी पांडे पर गोली चलाकर चला जाता है. आरोप सलाउद्दीन पर लगता है. उधर पता चलता है कि पुलिस वर्दी वाला शख्स जेल का कैदी मिर्जा (दर्शन कुमार) है, जिसने वहां के पुलिस अफसर पाठक के इशारे पर इस हत्या को अंजाम दिया है.

वास्तव में बचपन में अबोध मिर्जा से गुनाह हुआ था, जिसके चलते वह बाल सुधार गृह पहुंचा था. अब मिर्जा जेल से निकलकर शराफत की नई जिंदगी शुरू करने के लिए मिर्जापुर अपने मामा मामी के यहां जाता है. 15साल बाद मिर्जा को देखकर उसके मामा मामी बहुत खुश होते हैं. मिर्जा के मामा और जूली शुक्ला का मकान मिला जुला है, दोनों बचपन में दोस्त रहे हैं. राजन पांडे की हरकतों की वजह से परेशान जूली को मिर्जा के संग सकून मिलता है और दोनों के बीच प्यार हो जाता है. पर इस प्यार की रूकावट जूली के तीनों दबंग भाईयों के अलावा राजन पांडे का पूरा परिवार है.

राजन पांडे को विधायक का चुनाव लड़ने का टिकट मिल जाता है. इसी खुशी में एक जश्न का आयोजन होता है. वहां पर जूली भी अपने भाइयों के साथ आई है. मिर्जा उसके पीछे यहां आकर पांडे परिवार में नौकरी पा गया है. क्योंकि मिर्जा ने राजन पांडे के पिता को बता दिया है कि उन्होंने अपने बेटे राजन पांडे के विधायक बनने का रास्ता आसान करने के लिए खुद मिर्जा के ही हाथ से अपने छोटे भाई की हत्या करवायी है. इस समारोह के दौरान राजन, जूली को अपना कमरा दिखाने मकान के अंदर ले जाता है और कमरे से रोते हुए निकलकर जूली पूरे गांव वालों के सामने राजन पर बलात्कार का आरोप लगाती है. वह पुलिस में शिकायत दर्ज कराना चाहती है. पर जूली के भाई धर्मराज, नकुल व सहदेव उसे जबरन घर ले जाते हैं. इधर गुस्से में मिर्जा, राजन पांडे की पिटाई करता है. पांडे के लोग मिर्जा पर हावी होते हैं, तो किसी तरह मिर्जा वहां से भागने में सफल हो जाता है. पर पांडे की शिकायत पर पुलिस मिर्जा के पीछे पड़ जाती है.

कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. राजन पांडे व जूली अपनी कार से मिर्जा को नेपाल सीमा तक छोड़ने जातेहैं. अब तक जूली को अहसास हो चुका है कि उसका असली प्यार मिर्जा है. वह भी मिर्जा के साथ नेपाल चली जाती है. इस बात की खबर जब पांडे व धर्मराज को मिलती है, तो वह इन दोनों की हत्या के लिए निकल पड़ते हैं. मिर्जा कहता है कि जूली के भाईयों को वह गोली मार देगा. जूली छिपकर मिर्जा की बंदूक से गोली खाली कर देती है. अंत में जूली के भाईयों के हाथ मिर्जा और जूली दोनों मारे जाते हैं.

फिल्म की शुरुआत बहुत घटिया है. इंटरवल से पहले लगता है कि फिल्मकार के पास कहानी नहीं है और वहदुविधा में है कि इस फिल्म को किस दिशा में ले जाए. इंटरवल से पहले लगता है कि वह एक सेक्सी फिल्म बना रहे हैं. फिल्म की गति बहुत धीमी है. इंटरवल के बाद फिल्म की कहानी के पात्र मिर्जा साहिबान के आधुनिक रूप में में आ जाते हैं. पूरी फिल्म देखते समय लगता है कि लेखक और निर्देशक दोनों ही भटके हुए हैं. कभी रोमांस, कभी हिंसा तो कभी राजनीति के चक्कर में घूमते रहते हैं. फिल्म की कथा कथन शैली नीरस व अति धीमी है. पटकथा व निर्देशन की गड़बड़ी के चलते पूरी फिल्म बोर करने के अलावा कुछ नहीं है. फिल्म में पटकथा लेखक शांतिभूषण और निर्देशक राजेश रामसिंह ने जिस तरह से बाहुबलियों व दबंग किरदारों व रिश्तों को जिस तरह से पेश किया है, उससे कोई रिलेट नहीं कर सकता. शायद इन्हे भाई बहन के रिश्तों की अहमियत ही पता नहीं है.

जहां तब अभिनय का सवाल है, तो मिर्जा के किरदार में दर्शन कुमार और जूली शुक्ला के किरदार में पिया बाजपेयी ने बेहतरीन अभिनय किया है. पिया बाजपेयी के अभिनय में ताजगी है. मगर जूली शुक्ला के किरदार में लेखक की अपनी कमियों के चलते कई विरोधाभास है. जबकि दर्शन कुमार के गठन में कमजोरी के चलते कई जगह उनका अभिनय प्रभाव नहीं डाल पाता है. प्रियांशु चटर्जी विलेन के किरदार में अपनी छाप छोड़ने में असफल रहते हैं. राजन पांडे के किरदार के साथ चंदन सान्याल न्याय नही कर पाए. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता. पूरी फिल्म में लेखक व निर्देशक ने महज क्षेत्रीय परिवेश को उभारने पर ही ज्यादा ध्यान दिया, मगर कहानी व फिल्म का बंटाधार कर डाला. दर्शक महज दर्शन कुमार के कारण ही फिल्म को देख सकते हैं.

125 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मिर्जा जूलिएट’’ का निर्माण नीरज कुमार बर्मन, केतन मारू व अमित सिंह, निर्देशक राजेश राम सिंह, संगीतकार कृष्णा सोलो, गीतकार संदीप नाथ तथा कलाकार हैं – दर्शनकुमार, पिया बाजपेयी, प्रियांशु चटर्जी, स्वानंद किरकिर, चंदन राय सान्याल व अन्य.

फिल्मों में आने से पहले ट्रेन में गाना गाता था यह ऐक्टर

यह बात बिलकुल सच है कि अगर हौसला बुलंद हो तो आपको कामयाबी से कोई नहीं रोक सकता. इस नौजवान पर यह वचन सही बैठती है जिसने तमाम मुश्किलों को सामना करते हुए, बिना गॉडफादर के फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाई.

ये हैं ऐक्टर आयुष्मान खुराना. आयुष्मान ने पहली ही फिल्म बॉलीवुड में ऐसी एंट्री की कि उसके लिए इन्हें नैशनल अवॉर्ड से नवाजा गया.

लेकिन शायद ही आप जानते हों कि सफलता के जिस मुकाम पर आज आयष्मान विराजमान हैं वहां तक पहुंचने के लिए आयुष्मान को खूब मशक्कत करनी पड़ी. जब आयुष्मान कॉलेज में थे तो अपना खर्चा निकालने के लिए ट्रेन में गाते थे और फिर जो भी पैसे मिलते उससे वह अपना खर्च निकालते थे.

कॉलेज के दिनों में एक बार गोवा का ट्रिप बना. आयुष्मान के पास पैसे नहीं थे और उन्होंने वही ट्रिक आजमाई. आयुष्मान ने ट्रेन में गाने गाकर इतने पैसे इकट्ठे कर लिए कि वो ट्रिप पर जा सकें.

आयुष्मान खुराना तब 17 साल के ही थे जब पहली बार उन्हें टीवी पर एक रिएलिटी शो में देखा गया. इस रिएलिटी शो में वह एक कंटेस्टेंट थे. इसके बाद आयुष्मान ‘एमटीवी रोडीज’ में नजर आए और विनर बने. विनर बनने के बाद आयुष्मान ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कई रिएलिटी शो में काम किया और कई शोज को होस्ट भी किया.

साल 2012 में उन्होंने फिल्म ‘विक्की डोनर’ से बड़े परदे पर डेब्यू किया. ये फिल्म तो हिट रही ही लेकिन इसमें आयुष्मान की ऐक्टिंग को इतना पसंद किया गया कि उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला.

तभी से आयुष्मान ने फिल्मों का ही रूख कर लिया. हालांकि यहां भी उन्हें असफलता का स्वाद चखने को मिला. डेब्यू के बाद लगातार तीन फ्लॉप से आयुष्मान के करियर पर आंच आ गई लेकिन ‘दम लगाके हायेशा’ ने बचा लिया.

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