क्यों नकारते सत्य को अंधविश्वासी

कहीं दिखावे का स्वांग, कहीं डर से श्रद्धा, तो कहीं लकीर की फकीरी. कुल मिला कर यही हैं हम. हमारा समाज, जहां धर्मांधता के कारण पंडेपुजारियों, पुरोहितों द्वारा पर्व, उत्सवों को भी नाना प्रकार के कर्मकांडों से जोड़ कर सत्य तथ्यों को नकारते हुए उन का मूलभूत आनंदमय स्वरूप नष्ट कर दिया गया. शुभ की लालसा और अनिष्ट की आशंका से उन के पालन को विवश साधारण जनमानस का भयभीत मन अंधविश्वासों में घिरता चला गया, क्योंकि हमारे धार्मिक ग्रंथ भी इसी बात की पुरजोर वकालत करते हैं कि ईश्वर के बारे में, धार्मिक कार्यों में कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाना. बातें नहीं मानी तो नष्ट हो जाओगे.

भा. गीता श्लोक 18/58.

अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनंक्ष्यारी. यानी अब यदि तू अहंकार के  कारण नहीं सुनेगा तो पूर्णतया नष्ट हो जाएगा.

न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति. भा. गीता 18/67. यानी उसे यह (ज्ञान) तुझे कभी नहीं कहना चाहिए और न उसे, जो मेरी निंदा करता है.

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज.

अहं त्वा सर्व पापेश्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: भा. गीता 18/66. यानी जब धर्मकर्म (लोकधर्म अथवा लोकव्यवहार जो नाना संबंधों के माध्यम से निर्मित है) को त्याग कर तू सिर्फ मेरी शरण में आ जा. मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा. दुखी मत हो.

यह सब क्या है

अगर भगवान है तो भगवान सर्वशक्तिमान है और उन्हें सब से बताने की क्या आवश्यकता थी? फिर उन्होंने अपना वचन सारी भाषाओं में क्यों नहीं लिखवा दिया? कंप्यूटर सौफ्टवेयर की तरह उन के पास तो सारा ज्ञानविज्ञान हमेशा से है. फिर पत्रों, पत्थरों पर क्यों लिखवाया? जो उन्हें नहीं मानते उन के आगे ये गीताके भगवान के वचन कहनेपढ़ने को क्यों मना किया? जबकि उन के वचन तो कानों में पड़ते ही उन्हें पवित्र बन जाना था. सीधी सी बात है, वे तर्क मांगते और इन के पास कोई जवाब न होता और ढोल की पोल खुल जाती, सत्य सामने आ जाता. सत्य तथ्यों को नकारना, बिना तर्क बिना कारण जाने कुछ भी मान लेना, मनवाना यहीं से शुरू हो गया. धर्मभीरु बना मन यहीं से दुर्बल या यों कहें वहमी बनता गया. इस डर में नएनए अंधविश्वास जन्म लेते गए और अंधविश्वासी बढ़ते गए.

एक ही बात मन की गहराई में बैठ गई कि यदि अकारण, बिना तर्क ऐसा करने से अच्छा और न करने से बुरा हो सकता है, तो हमारे व दूसरों के और क्रियाकलापों से भी बिना तर्क ऐसा करने से अच्छा और न करने से बुरा हो सकता है, तो हमारे व दूसरों के और क्रियाकलापों से भी बिना अच्छाबुरा घट सकता है. बस शुरू हो गया अंधविश्वास का सिलसिला. कभी क्रिकेट की जीत के लिए, तो कभी ओलिंपिक मैडल के लिए, तो कभी नेताओं की चुनाव में जीत के लिए हवन कराए जाने लगते हैं. यदि इन सब से कुछ हो सकता तो बलात्कार, हत्या या दुर्घटना रोकने के लिए भारत महान में कोई हवन क्यों नहीं होता, यह सोचने की बात है.

दिखाने का स्वांग

बिल्ली ने एक बार रास्ता काटा, बुरा हुआ तो वहम हो गया, दोबारा हुआ तो वहम और गहरा हो गया. कहीं तीसरी बार हो गया तो अंधविश्वासी ही बन गया. डर इतना मन में बैठ गया कि रास्ता ही बदल लिया या किसी और के गुजरने का इंतजार कर लेने में ही भलाई समझी. आगे आजमाने की हिम्मत ही नहीं दिखाई गई. डर इतना घर कर गया कि कभी ध्यान भी न गया कि अच्छा भी हुआ था कभी. अपना डर दूसरों में भी डालते चले गए. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, माउथ टू माउथ सब जगह बात फैल गई. जितनी धर्मभीरुओं की संख्या बढ़ती गई उस से अधिक अंधविश्वास और अंधविश्वासियों की संख्या में वृद्धि होती गई. इसलिए सर्वप्रथम धर्म, दूसरा व्यक्ति का दुर्बल भीरु मन मुख्य कारण हैं, जिन के फलस्वरूप अंधविश्वासी सत्य तथ्यों को सरलता से नकारने लगे.

तीसरा कारण है दिखावे का स्वांग. जैसे कुछ जन धार्मिक कर्मकांडों में लिप्त रह कर जताते हैं कि वे बहुत ही धार्मिक हैं, इसलिए अधिक अच्छे, सच्चे और विश्वास के योग्य जन एक पवित्र आत्मा हैं. फिर भले ही वे दानपुण्य की आड़ में गोरखधंधा या कालाधंधा खूब चलाते हों. दुनिया व कानून की नजरों में धूल झोंकते हुए बेशुमार धनदौलत, नामसम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते हों.

परंपराओं की दुहाई

जमीर को ताक पर रख दें तो जीवन में और क्या चाहिए? वे सब इसी मंतव्य को मानने वाले बन जाते हैं. भ्रष्ट बड़ेबड़े नेता, टैक्स की चोरी करने वाली बड़ीबड़ी फिल्मी हस्तियां बड़ी शान से अपने लावलश्कर और मीडिया की चकाचौंध के साथ मंदिरों में, ट्रीटमैंट के मध्य, देवीदेवताओं के दर्शन, भारी दान, चैरिटी कर अपनेआप को धार्मिक, पवित्र और नेक दिखाने का ढोंग करते हैं. क्या यह आंखें खोलने के लिए पर्याप्त नहीं? सच तो यह है कि हम सो नहीं रहे, सब जानतेबूझते आंखें बंद कर के पड़े हैं. सही तो है कि सोए हुए को जगाया जा सकता है पर जागे हुए को नहीं.

चौथा कारण है लकीर की फकीरी व परंपराओं की दुहाई. हमारे पूर्वज, बड़ेबूढ़े जो करते चले आ रहे हैं, आंखें मूंद कर लकीर के फकीर बने हम भी उन का अनुसरण करते जा रहे हैं. ऐसा करना हम अपना कर्त्तव्य मानते हैं. उन के प्रति प्यारआदर दिखाने का एक तरीका समझते हैं. उन से कोई तर्क नहीं करते. बस अनुसरण करते चले जाते हैं. कुछ संतुष्टि मिली, कुछ अच्छा लगने लगा, करतेकरते फिर विश्वास भी होने लगा, वैसे ही जैसे ताला बंद कर आराम से घूमने निकल जाते हैं कि अब घर सुरक्षित हैं. उन कर्मकांडों, अंधविश्वासों को मान कर, पालन कर हम अपनेआप को भविष्य के प्रति सुरक्षित सा अनुभव करने लगे. बस जैसा अपने बड़ों को करते देखा है वैसा बिना सोचेसमझे करते चले आ रहे हैं.

5वां कारण है अशिक्षा, अज्ञानता. यह भी एक बहुत बड़ा कारण है. आज शिक्षा का बहुत तेजी से प्रसार हो रहा है. कुछ मस्तिष्क में क्यों, कैसे प्रश्न भी अंकुरित होने लगे हैं. व्यक्ति हर बात का पहले कारण जानना, फिर मानना चाहता है. परंतु अभी भी हमारे देश की जनसंख्या सौ प्रतिशत शिक्षित नहीं हो पाई है. मोबाइल, गाड़ी का प्रयोग तो करते हैं पर बाबाओं से चमत्कार की आशा में उन के पास जाना नहीं छोड़ते. उन के चंगुल में फंसते जाते हैं. साईं बाबा, आसाराम बापू जैसे लोग कहां गए? उन की असलियत आज किसी से छिपी नहीं. दुर्गम पहाडि़यों के संकरे रास्तों से जान जोखिम में डालने हुए मंगल की अभिलाषा में देवीदेवताओं के दर्शन करने सुदूर मंदिरों में पहुंच जाते हैं. कभीकभी जान से भी हाथ धो बैठते हैं. फिर भी उन्हें विश्वास होता है कि अपने शरीर को कष्ट देने से, भूखे रहने से या चढ़ावा आदि देने से देवीदेवता प्रसन्न हो कर कल्याण करते हैं, मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. परंतु कोई तर्क पूछे तो उत्तर नहीं रहता है उन के पास कि क्यों और कैसे संभव है?

बेसिरपैर की कहानी

किसी ने टोक दिया नजर लग गई और किसी काम के शुरू होते ही छींक दिया तो बुरा हो गया, कहीं काना व्यक्ति दिख जाए तो बहुत बुरा, आंख फड़कना, दीया बुझना, बिल्ली का रास्ता काटना, कुत्ते का रोना ऐसे न जाने अज्ञातवश कितने वहम पाल रखे हैं. शिक्षित हो कर अपना ज्ञान बढ़ा लें तो उन्हें कारणअकारण समझ आ जाए. दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिस का कारण न हो, तर्क न हो. नहीं जानते तो यह हमारी अज्ञानता ही कही जाएगी.

रातदिन कैसे होते हैं? नहीं मालूम तो कुछ भी मनगढंत अटकलें लगा लें. जैसे राक्षस रोज सूर्य को निगल जाता है या बेसिरपैर की कोई और कल्पना. आज भी जाने कितनी कला, कितना विज्ञान दुनियाजहान में छिपा पड़ा है. हमें उस ओर अपना मस्तिष्क दौड़ाना है. मनगढंत बातों से बचना है, जिस के लिए शिक्षा के साथसाथ ज्ञान का होना नितांत आवश्यक है.

हम समय का सदुपयोग न कर निरर्थक कार्यों, ढकोसलों में व्यस्त रह कर यह अनमोल जीवन व्यर्थ में गंवाते हैं. अंधविश्वासों से घिर कर पूर्णतया प्रसन्न भी नहीं रह पाते हैं. इसलिए शिक्षा के साथसाथ जनजन को अपनी बुद्धि के बंद दरवाजे खोल सब से पहले ज्ञान का प्रकाश अपने भीतर फैलाना चाहिए.

– डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

तीसरी आंख से रहें सावधान

स्टूडैंट लाइफ जी रही रीता एक दिन बहुत परेशान थी. कई तरह की आशंकाएं उस के दिमाग में उठ रही थीं. उसे पूरा यकीन था कि वह खुद भी अनजाने में ऐसे गुप्त हथियार का शिकार हुई है, जो उस का सामाजिक जीवन खराब कर सकता है. पर सुकून इस बात का भी था कि उस हथियार का इस्तेमाल करने वाला पकड़ा गया था. रीता शायद कभी परेशान न हुई होती यदि उसे पता नहीं चलता कि शहर के एक कपड़ों के शोरूम के ट्रायलरूम में हिडेन कैमरा पकड़ा गया है. रीता को चूंकि शौपिंग का शौक था, इसलिए अकसर उसी शोरूम में कपड़ों की खरीदारी करने जाती थी. उसे इस बात का पछतावा था, लेकिन दिल के एक कोने में सुकून भी था कि अब शर्मनाक सिलसिला किसी के साथ नहीं चलेगा.

रीता कोई अकेली लड़की नहीं, बल्कि कब कौन युवती या महिला हिडेन कैमरे का शिकार हो जाए, कोई नहीं जानता. 1 साल पहले राजधानी दिल्ली के लाजपतनगर की सैंट्रल मार्केट में ब्रैंडेड कपड़ों के एक शोरूम में जो सच सामने आया था वह बेहद चौंकाने वाला था. दरअसल, एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करने वाली रूबी शोरूम गई. ट्रायलरूम में उस ने देखा कि एक गैप के पीछे की तरफ कैमरा लैंस है. उस ने बाहर निकल कर चैक किया, तो वहां चालू हालत में वीडियो मोड पर मोबाइल लगा हुआ दिखा. हंगामा हुआ तो पुलिस आ गई. इस के बाद पता चला कि शोरूम कर्मी ही इस शर्मनाक करतूत को अंजाम दे रहा था. पुलिस ने उस के खिलाफ छेड़छाड़ की धारा- 354, 354 (सी) व आईटी ऐक्ट के अंतर्गत केस दर्ज कर के जेल भेज दिया.

सार्वजनिक जीवन में संकट

इस से पहले नोएडा शहर के एक गर्ल्स होस्टल के बाथरूम में भी हिडेन कैमरा पकड़ा गया था. जांच के दौरान वहां 3 कैमरे मिले थे.

जयपुर की रहने वाली एक युवती ने एक शोरूम में अपने लिए नए कपड़े खरीदे. कपड़ों को पहन कर देखने के लिए वह चेंजिंगरूम में गई. उस ने 3 टौप बदल कर देखे तभी अचानक उस की नजर छत पर लगे कैमरे पर गई, तो उस के होश उड़ गए. पुलिस ने इस मामलें में काररवाई की.

इस तरह के कई मामले सामने आने लगे हैं. गत वर्ष भाजपा नेत्री स्मृति इरानी ने गोवा स्थित फैब इंडिया के शौरूम के ट्रायलरूम में हिडेन कैमरा पकड़ा. कंप्यूटर हार्डडिस्क की जांच हुई, तो पता चला कि जो भी महिला कपड़े बदलती थी उस के पेट के ऊपर के हिस्से की रिकौर्डिंग होती थी.

ट्रायलरूम, गर्ल्स होस्टल, बाथरूम, कालेज, सार्वजनिक शौचालय, होटल के कमरे में लगा हिडेन कैमरा किसी को भी अपना शिकार बना सकता है. ऐसे में युवतियों व महिलाओं को ऐसी जगहों का इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह छानबीन कर लेनी चाहिए. सतर्क नहीं होंगे तो आप की तसवीरों और वीडियो को पोर्न वैबसाइट से ले कर सोशल मीडिया तक  सार्वजनिक किया जा सकता है.

कौन शातिर हिडेन कैमरे से आप की तसवीरें या वीडियो उतार ले कुछ कहा नहीं जा सकता. सार्वजनिक जीवन में बड़ा संकट आ सकता है. ट्रायलरूम के शीशे के पीछे से भी कोई आप को देख सकता है. इस की खबर भी नहीं होगी. कुछ खास किस्म के कांच किसी भी ट्रायलरूम में हो सकते हैं, जो दिखने में बिलकुल सामान्य लगते हैं. अगर किसी जगह कोई छोटी लाइट या काला बिंदु नजर आए तो सावधान हो जाना चाहिए. ऐसा स्थान जो खासतौर पर महिलाओं के लिए ही बनाया गया हो वहां कैमरे होने की संभावना सब से अधिक होती है. ट्रायलरूम में कपड़े बदलते वक्त पता भी नहीं होता कि वहां कैमरा लगा है.

शिकार होने से बचें

कई बार शातिर लोग वीडियो रिकौर्ड कर के उसे एमएमएस के तौर पर तैयार कर लेते हैं और फिर ब्लैकमेल भी करते हैं. हरियाणा के रोहतक का मामला कुछ ऐसा ही रहा जहां एक लड़की का एमएमएस तैयार कर के उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई. दरअसल, स्टेडियम में कुश्ती की प्रैक्टिस करने वाली एक नाबालिग का चेंजिंग रूम में वीडियो तैयार कर के सैक्सुअल रिलेशन का प्रैशर बनाया. प्लेयर तनाव में आ गई, जिस के चलते उस ने आत्महत्या का प्रयास किया, तो मामला खुला.

वैसे किसी होटल या अनजान कमरे में जाते समय कुछ सावधानियां बरती जाएं, तो हिडेन कैमरे का शिकार होने से बचा जा सकता है. जानकार मानते हैं कि यदि कहीं हिडेन कैमरा नजर आ जाए, तो उसे बिलकुल नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. आप की खामोशी दूसरी महिलाओं के लिए मुसीबत बन सकती है. कैमरा पकड़ में आए, तो मौके पर खुद फैसला करने की कतई न सोचें. ऐसे में शोरशराबा करने और झगड़े से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसी जगहों के संचालक सुबूतों को नष्ट कर सकते हैं. बेहतर तरीका यही है कि अपने परिचितों के साथ पुलिस को तत्काल सूचना दे दी जाए.

मानसिक रूप से बीमार

साइबर क्राइम ऐक्सपर्ट कर्मवीर सिंह कहते हैं कि किसी मौल, होटल या रेस्तरां आदि के ट्रायल या बाथरूम में महिलाओं को देखना चाहिए कि वहां की दीवारें गहरे रंग की न हों. सफेद रंग की दीवारें होने पर खुफिया कैमरे के होने की संभावना नहीं होती, क्योंकि कैमरे का लैंस व्हाइट नहीं होता. गहने रंग वाली दीवारों में कैमरा लगाना आसान होता है और वह पकड़ में भी नहीं आता. ट्रायलरूम में पूर्ण प्रकाश व्यवस्था होनी चाहिए. प्रकाश कम होगा, तो कैमरे को पकड़ना मुश्किल होगा.

डाक्टर फरीदा खान कहती हैं, ‘‘ऐसे लोग किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से बीमार होते हैं, वे कुंठित होते हैं. जब वे गलत तरीके की हरकतें करने की हिम्मत नहीं कर पाते, तो अपनी कुंठाओं को शांत करने के लिए इस तरह के वीडियो बना कर देखते हैं और उन का गलत इस्तेमाल भी करते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि वीडियो सार्वजनिक करने से किसी की जिंदगी भी तबाह हो सकती है.’’

राजकोट में सामने आया एक मामला इसी कुंठा से मिलताजुलता है. एक फोटोग्राफर ने अपने स्टूडियो में ट्रायलरूम बनाया था जहां महिलाएं फोटो खिंचाने के लिए कपड़े बदलती थीं. उस ने वहां एक कैमरा छिपा कर रखा था. जैसे ही कोई ग्राहक वहां कपड़े बदलने के लिए जाती थी, तो वह चुपके से कैमरा औन कर देता था, जिस की रिकौर्डिंग उस के कंप्यूटर में होती थी.

घिनौनी मानसिकता

उत्तराखंड के देहरादून शहर के एक व्यक्ति ने तो सभी सीमाओं को लांघ दिया. अधेड़ उम्र का सरबजीत पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह हमेशा आदर्श व संस्कारों की बात किया करता था. यों तो वह खुद 2 शादीशुदा बेटियों का पिता था, लेकिन हकीकत में वह इनसानियत को शर्मसार कर देने वाली घिनौनी मानसिकता का वारिस था. जवान लड़कियों के जिस्म को देखना और उन की क्लिप तैयार करना उस का रोजमर्रा का काम था. अनगिनत लड़कियों को बेलिबास देख कर वह अपनी कुंठा को शांत करता था. लड़कियों के बाथरूम में लगाए गए वैब कैमरे के जरीए वह उन की हर हलचल को अपने बैडरूम में लगे कंप्यूटर पर गुपचुप देखता था. वह अकेला रहता था और अपने घर के कमरों में छात्राओं को ही बतौर किराएदार रखता था. उसे खुद भी याद नहीं था कि उस ने अब तक कितनी लड़कियों को अपनी गंदी नजरों का शिकार बनाया. इस अजीब मानसिकता का भी वह शिकार था कि जल्द ही वह एक लड़की को देख कर उकता जाता था और नई लड़की की ख्वाहिश जाग उठती थी, तो वह बहाने से कमरा खाली करा लेता था. वह पकड़ा नहीं जाता, यदि एक लड़की की नजर बाथरूम के गीजर में लगे कैमरे पर न गई होती.            

यहां हो सकते हैं कैमरे

हिडेन कैमरा छिपाने की कुछ खास जगहें निर्धारित होती हैं. इस के लिए पहले से सतर्क रहा जाए, तो किसी के गलत इरादों से बिलकुल बचा जा सकता है. ऐक्सपर्ट्स की मानें, तो जिन चीजों में कैमरा होने की संभावना अधिक होती है उन में फूलों के गमले, फोटो फ्रेम, छत के सैंटर में लगा पंखा, बाथरूम का शावर, गैस या बिजली का गीजर, बिजली का स्विच, कमरे के हैंगर हुक, दीवार की घड़ी, फैंसी लाइट व बेकार रखे टीवी रिमोट शामिल होते हैं. इस के अलावा कपड़ों के शोरूम के ट्रायलरूम में भी कैमरा होने की संभावना ज्यादा होती है.

शरीर के ऊपरी भाग को कवर करने वाले कैमरे दीवार के बल्ब, दरवाजे, अलमारी के हैंडल या डिजाइन में हो सकते हैं.

शरीर के निचले भाग को कवर करने वाला कैमरा किसी बेकार पड़े सामान, स्टूल, मेज या दरवाजे के अंदर सफाई से छिपाया गया हो सकता है. शीशे के पीछे भी कैमरा हो सकता है. होस्टल या होटल के रूम में कैमरा शीशे के पीछे, टीवी सैट के अंदर, सजावटी सामान या एसी में हो सकता है. वाशरूम में कैमरा आमतौर पर शीशे के पीछे, किसी कोने या किसी सजावटी वस्तु में हो सकता है.

इस शादी सीजन अपनाइये पुराने जमाने का स्टाइल

जूलरी ना सिर्फ हमारी खूबसूरती को बढ़ाती है, बल्कि ये हमारे लुक को भी एक खास टच देती है. और जब बात जूलरी की होती है तो आज के दौर में तो इनका ट्रेंड काफी तेजी से बदल रहा है. इस बदलाव की वजह से 70s की जूलरी का ट्रेंड फिर से लौट आया है.

आइये जानते हैं कि 70s की जूलरी के वो कौन-कौन से ट्रेंड हैं जो एक बार फिर से वापस लौट आए हैं और जिन्हें फॉलो कर के आप न सिर्फ अपनी या अपने किसी खास की शादी को यादगार बना सकती हैं, बल्कि हर महफिल की रौनक भी बन सकती हैं.

ब्रोच – यह ज्वेलरी इस समय काफी ट्रेंड में है. लोग स्टोन और डायमंड वाले ब्रोच को फिर से काफी पसंद कर रहे हैं. इसे आप इंडियन और वेस्टर्न दोनों तरह के आउटफिट्स के साथ पहनकर अपने स्टाइल में एक अलग लुक दे सकती हैं.

पेंडेन्ट के साथ लंबी चेन वैसे आपने ज्यादातर पुरानी फिल्मों में कई एक्ट्रेस को एक लंबी सी चेन के साथ एक बड़ा सा पेंडेन्ट पहने देखा होगा जो उस वक्त इन एक्ट्रेस की खूबसूरती को और भी बढ़ा देता था.

हां तो! ये ट्रेंड एक बार फिर से लौट आया है और अब आप भी चाहें तो एक अलग और स्टाइलिश लुक के लिए इन्हें ट्रॉय कर सकती हैं.

बेबी पर्ल – क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि बहुत सी महिलाएं और लड़कियां बेबी-पर्ल जूलरी पहने नजर आ जाती हैं फिर चाहे वो ईयरिंग्स हो या फिर ब्रेसलेट.

तो फिर देर किस बात की, आप भी इसे अपने कलेक्शन में शामिल करिए. बेबी पर्ल वाली जूलरीज की खास बात ये होती है कि ये ट्रेडिशनल होने के साथ-साथ स्टाइलिश भी लगती हैं.

कॉकटेल रिंग्स – एक स्टोन या फिर एक से ज्यादा स्टोन वाली जड़ाउ अलग-अलग ज्यामिति आकार वाली रिंग्स आपके लुक को और भी स्टाइल बना सकती हैं. इन दिनों ये रिंग्स काफी पॉपुलर हो रही हैं. शादी या फिर किसी भी खास अवसर पर आप इन्हें पहनकर और भी खूबसूरत नजर आ सकती हैं.

बड़ा सा ब्रेसलेट – बड़े आकार वाला ब्रेसलेट इन दिनों लोगों के बीच काफी पॉपुलर हो रहा है. यूनिक डिजाइन वाला बड़ा सा ब्रेसलेट आपके स्टाइल को एक खास लुक देता है. इसे आप इंडियन और वेस्टर्न दोनों तरह के कपड़ों के साथ कैरी कर सकती हैं.

बाजुबंध फैशन की दुनिया में एक वक्त ऐसा भी आया था जब आप बाजुबंध को पूरी तरह से भूल चुके थे लेकिन अब देर से ही सही बाजुबंध का दौर एक बार फिर से लौट आया है, वो भी एक अलग मेकओवर के साथ. लोग चांदी और खास तौर पर डायमंड के जड़ाऊ बाजुबंध काफी पसंद कर रहे हैं. ये आपके ट्रेडिशनल और वेस्टर्न दोनों तरह के ड्रेस के साथ काफी स्टाईलिश लगते हैं.

फरहान अख्तर संभालेंगे तनुज विरवानी का करियर

अपने समय की मशहूर अदाकारा रति अग्निहोत्री के बेटे तनुज विरवानी ने अपने अभिनय करियर की शुरूआत फिल्म ‘‘लव यू सोनिया’’ से की थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर पानी तक नहीं मांगा और इस फिल्म के साथ ही लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि तनुज विरवानी में अभिनेता बनने का एक भी गुण नहीं है, पर इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद तनुज विरवानी ने कमल हासन की बेटी अक्षरा हासन के साथ अपने रोमांस की खबरें फैला कर खुद को सूर्खियों में बनाए रखा, जबकि अक्षरा हासन लगतार इस तरह के रिश्ते से साफ इंकार करती रहीं. मगर रोमांस की इन खबरों ने भी तनुज विरवानी को कोई फायदा नही पहुंचाया.

फिल्म ‘लव यू सोनिया’ के बाद वे ‘‘पुरानी जींस’’ और सनी लियोनी के साथ ‘‘वन नाइट स्टैंड’’ में भी नजर आए. मगर अफसोस की बात यह रही कि तनुज विरवानी की इन तीनों ही फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं किया. इन तीनों फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर ऐसी दुर्गति हुई, जिसकी लोगों ने कल्पना तक नहीं की थी. इसके बाद बॉलीवुड में लोगों ने खुलेआम तनुज विरवानी को सलाह देना शुरू कर दिया कि तनुज को अब अभिनय को अलविदा कहकर किसी अन्य प्रोफेशन में तकदीर आजमानी चाहिए. लेकिन तनुज विरवानी तो सिर्फ फिल्मी हीरो ही बनना चाहते हैं.

अब सूत्रों से मिली खबरों के अनुसार रति अग्निहोत्री के अपने संबंधों के चलते निर्माता व अभिनेता फरहान अख्तर ने तनुज विरवानी के करियर को संवारने की जिम्मेदारी स्वीकार की है. सूत्रों के अनुसार आईपीएल क्रिकेट के इर्द-गिर्द घूमने वाली एक कथा पर फरहान अख्तर व रितेश सिद्धवानी की कंपनी ‘ऑमेजन प्राइम वीडियो’ के संग मिलकर एक वेब सीरीज का निर्माण कर रही है. सूत्र दावा करते हैं कि फरहान अख्तर ने इस वेब सीरीज का पायलट एपीसोड 85 लाख की लागत में फिल्मकार ‘ऑमेजन प्राइम वीडियो’ के मालिकों के पास स्वीकृति के लिए भेजा है, जिसमें रिचा चड्ढा ने भी अभिनय किया है.

यदि सब कुछ ठीक रहा और ‘ऑमेजन प्राइम वीडियो’ के मालिकों ने इस वेब सीरीज के पायलट एपीसेाड को हरी झंडी दे दी, तो फरहान अख्तर इस वेब सीरीज में तनुज विरवानी को अभिनय करने का अवसर देंगे. वैसे तुनज विरवानी के नजदीकी सूत्र दावा कर रहे हैं कि फरहान अख्तर ने बाकायदा इस वेब सीरीज में अभिनय करने के लिए तनुज विरवानी को अनुबंधित  भी कर लिया है.

जब हमने इस बारे में तनुज विरवानी से बात करने का प्रयास किया, तो तनुज विरवानी ने खुलकर कोई बात स्वीकार नहीं की, पर तनुज का मानना है कि बॉलीवुड में सफलता और असफलता तो चलती रहती है. यहां सफल होने के लिए इंसान, खासकर कलाकार को मोटी चमड़ी का होना जरुरी होता है, जिससे वह हर तरह की आलोचनाओं का सामना कर सके.

चमचम चमके घर

पिछले साल पापा ने जब घर में पेंटपौलिश करवाया था तो दीपक ध्यान से सब देख रहा था. बनेबनाए पेंट के डब्बे, ब्रश और रेगमार, बस इन्हीं का तो कमाल है. फिर पापा के साथ हुई मजदूरों की बहस पर भी उस का ध्यान गया. मजदूर दीवारें पेंट कर शाम को धब्बे जमीन पर लगे ही छोड़ जाते, जिन्हें मम्मीपापा के साथ मिल कर दीपक को ही साफ करना पड़ता, तिस पर 3 कमरे पेंट करने में पूरा हफ्ता लगा दिया. सारा सामान बिखरा सो अलग.

सो दीपक ने इस बार सोच लिया था कि वह अपने छोटे भाई के साथ मिल कर स्वयं घर चमकाएगा और ऐसा हुआ भी. दीपक ने पापा से बात कर सामान मंगवा लिया और न केवल घर चमका दिया बल्कि फर्नीचर पर पौलिश कर उसे भी नया लुक दे दिया. पापा बच्चों की इस जिम्मेदारीपूर्ण कार्यप्रणाली को देख फूले न समाए.

चाहे तो हर किशोर दीपक की तरह अपने घर को पेंटपौलिश कर के चमका सकता है. बस, जरूरत है थोड़ी समझदारी और पेंटपौलिश सीखने की, जो आजकल नैट के जमाने में किशोर बखूबी सीख सकते हैं.

दीवारों पर पेंट

घर को चमकाने के लिए सब से जरूरी है दीवारों को रंगना. आप अपने घर के हर कमरे को मनचाहे तरीके से रंग सकते हैं, इस के लिए आप को जरूरत है पेंट की बालटी, ब्रश, रेगमार और मनवांछित रंगों की.

ऐसे रंगें दीवारें

घर की दीवारों को रंगने के लिए पहले उन्हें झाड़ूसे अच्छी तरह धूलमिट्टी हटा कर साफ कर लें. फिर रेगमार से दीवारों को रगड़ें. दीवारों से पुराने पेंट की पपड़ी हटा कर उन्हें प्लेन करें.

वालपुट्टी ले कर उस में प्लास्टर औफ पैरिस मिलाएं, इसे लुगदी जैसा बनाने के लिए इन में थोड़ा पानी मिलाएं, फिर सपाट प्लेटनुमा लोहे की पत्ती से इसे दीवारों पर हुए छेदों, ऊबड़खाबड़ जगहों, दरारों आदि में भरें व समतल करें. थोड़ी देर इसे सूखने दें व पुन: रेगमार से घिस कर एकसार कर समतल कर दें. अब दीवार पेंट के लिए तैयार है.

एक डब्बे में पेंट ले कर उस में मनचाहा कलर मिलाएं व मिक्स कर ब्रश की सहायता से पेंट दीवारों पर फैलाएं. इस प्रकार आप दीवारों पर मनचाहा रंग कर सकते हैं. याद रखें, दीवारों के साथसाथ छत को भी रंगना है लेकिन छत का कलर सफेद ही रखें तो बेहतर है. इस से अधिक प्रकाश नीचे को फैलता है और रोशनी अधिक होती है.

कुछ सावधानियां

– पेंट करते समय ध्यान रखें कि फर्श पर ज्यादा धब्बे न गिरें. इस से बचने के लिए फर्श पर पुराने अखबार बिछा सकते हैं, जिस से धब्बे उन्हीं पर पड़ेंगे और फर्श खराब नहीं होगा.

– अगर बिजली की फिटिंग दीवारों के ऊपर से है तो संभल कर पेंट करें.

– ब्रश के बजाय रोलिंग ब्रश का इस्तेमाल करें, इस से फिनिशिंग अच्छी आएगी.

– पेंट करने के बाद ब्रश डब्बे में ही न छोड़ें बल्कि धो कर साफ कर लें वरना सूखने पर इसे साफ करना व दोबारा इस्तेमाल में लाना मुश्किल होगा.

– दीवारों पर पेंट करने से पहले कमरा खाली कर लें व अलमारी, लकड़ी के पलंग या भारी सामान जिसे निकाल न पाएं, पर कपड़ा डाल दें ताकि पेंट के छींटे पड़ने से वे खराब न हों.

– पेंट करने से पहले हाथों में प्लास्टिक ग्लब्स व सिर पर कपड़ा बांध लें ताकि हाथ व बाल खराब न हों.

– घर के लिए प्लास्टिक पेंट अच्छा रहता है. इसे आसानी से धोया भी जा सकता है.

– पेंट सूखने के बाद सफाई करें व सामान वापस रख लें.

दरवाजों व खिड़कियों पर पेंट

घर के दरवाजे यदि लकड़ी के हैं तो उन पर पेंट करें लेकिन अगर उन पर पहले पौलिश हुई है तो पेंट न करें.

बनाबनाया पेंट बाजार में मिलता है, जो रंग पहले हुआ है वही लें और ब्रश की सहायता से दरवाजों, खिड़कियों, ग्रिलों, लोहे के दरवाजों पर पेंट करें. पेंट करने से पहले फर्श पर अखबार बिछा लेना अच्छा रहता है.

पेंट को सूखने में समय लगता है अत: दूसरा कोट करने से पहले इसे अच्छी तरह सुखा लें. पेंट करते समय ध्यान रखें कि खिड़कियों के शीशों पर पेंट न लगे. अगर थोड़ाबहुत लग भी जाए तो उसे उसी समय कपड़े से पोंछ लें.

फर्नीचर पौलिश

दीवारों, दरवाजों व खिड़कियों को चमकाने के बाद नंबर आता है फर्नीचर की साफ-सफाई का. आप अपने घर के फर्नीचर जैसे सोफा, पलंग, लकड़ी की अलमारी, सैंटर टेबल, कंप्यूटर टेबल आदि को घर पर ही पौलिश कर सकते हैं. इस के लिए सब से पहले यह ध्यान रखने की जरूरत है कि आप का फर्नीचर पुराना है या नया. अगर आप का फर्नीचर नया है तो धूलमिट्टी साफ कर सिर्फ कपड़ा मार कर चमकाया जा सकता है. पतले रेशमी कपड़े से या डस्टिंग ब्रश से इसे साफ करें. साथ ही यह भी ध्यान रखें कि अगर अलमारी पर पहले पेंट किया हुआ है तो दोबारा पेंट ही करें, पौलिश नहीं.

यदि फर्नीचर ज्यादा पुराना नहीं है तो आप बिना पौलिश के भी उसे चमका सकते हैं. इस के लिए निम्न तरीके अपनाएं :

– सब से पहले डस्टिंग ब्रश या पतले रेशमी कपड़े से फर्नीचर पर लगी धूलमिट्टी झाड़ लें.

– फिर औलिव औयल यानी जैतून का तेल व विनिगर (सिरका) मिला कर एक स्प्रे बोतल में भरें और फर्नीचर पर स्पे्र कर दें. थोड़ी देर बाद हलके हाथों से मुलायम कपड़े से पोंछें.

– अगर फर्नीचर पुराना है तो सब से पहले उस की टूटफूट को देखें. कहीं कील निकली है तो ठोंक दें. कब्जे आदि उखड़े हों तो ठीक कर लें. सनमाइका उखड़ रहा है तो उसे पीवीसी एडहैसिव की मदद से चिपका लें.

– अगर लकड़ी में कहीं गड्ढे बन गए हैं तो फैवीकोल में लकड़ी का महीन बुरादा मिला कर लुगदी बना लें व उस से इन गड्ढों को भरें. बाजार में लकड़ी भरने की पुट्टी भी मिलती है आप इस से भी इन्हें भर सकते हैं.

– रेगमार की सहायता से हलके हाथों से रगड़ कर सतह को एकसार करें. अब सतह पौलिश करने को तैयार है.

– बाजार से मैनिलेथेड स्प्रिट, थोड़ा सा लाखदाना व सुंदरस ले कर एक बोतल में डालें व बोतल धूप में रख दें. जब तीनों मिक्स हो जाएं तो रेशमी कपड़े से इस की पोटली बना कर लकड़ी पर फिरा दें. अगर कहीं रंगीन पौलिश करनी है तो इसी घोल में बाजार से कच्चा रंग ले कर मिला लें.

– इस पौलिश किए फर्नीचर को थोड़ी देर सूखने दें. सूखने पर साफ मुलायम कपड़े से पोंछ लें.

घर चमकाने के अन्य टिप्स

– अगर आप के घर के फर्श पर टाइल्स लगी हैं तो उन्हें टाइल क्लीनर से साफ करें. यह काम नियमित एक हफ्ते में वैसे भी कर सकते हैं.

– नौर्मल रंग से रंगी दीवारों की धूलमिट्टी कपड़े से साफ करें व सिर्फ पानी में कपड़ा भिगो कर दागधब्बे साफ करें, ज्यादा रगड़ें नहीं वरना रंग उतरने का डर रहता है.

– दीवारों पर अगर वालपेपर लगा है तो कुनकुने पानी में कपड़ा भिगो कर हलके हाथों से साफ करें.

– वाशबेसिन व टौयलेट को टौयलेट क्लीनर से चमकाएं.

– किचन में लगी टाइलों को टाइल क्लीनर से साफ करें व सिंक अगर स्टील की है तो विम आदि से साफ करें.

– यदि घर का फर्श मार्बल का है तो इसे पौलिश किया जा सकता है.

इस प्रकार जब आप अपने हाथ से घर को पेंट व फर्नीचर को पौलिश करेंगे तो न केवल आप का घर चमकेगा बल्कि आप का फर्नीचर भी सुंदर व नया लगेगा साथ ही मातापिता व घर में आने वाला हर मेहमान आप के इस कदम की तारीफ किए बिना नहीं रहेगा.    

हमेशा अलग-अलग काम करना चाहती हूं : सोनाक्षी सिन्हा

‘दबंग’ फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम सिन्हा की बेटी हैं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. कुछ फिल्मों में उन्होंने कॉस्टयूम डिजाइनर का भी काम किया, उन्हें लगा नहीं था कि वह कभी भी अभिनेत्री बन पाएंगी. लेकिन सलमान खान के प्रोत्साहन ने उन्हें फिल्मों में आने के लिए प्रेरित किया और आज उसका नाम शीर्ष अभिनेत्रियों में जुड़ चुका है.

वह उस पल को लकी मानती हैं, जब उन्होंने ‘दबंग’ के लिए हां कही थी. इस फिल्म की सफलता और दर्शकों की चहेती सोनाक्षी के पास इसके बाद से तो फिल्मों की झड़ी लग गयी. सन ऑफ सरदार, लुटेरा, एक्शन जैक्सन, लिंगा, तेवर, अकीरा आदि कई फिल्में आई. जिसमें कुछ सफल तो कुछ असफल रहीं. फिल्मों के अलावा सोनाक्षी विज्ञापनों को एंडोर्स भी करती हैं, इतना ही नहीं उन्हें छोटे पर्दे पर भी काम करना पसंद है. इन दिनों वह स्टार प्लस की रियलिटी शो ‘नच बलिये 8’ में जज बनी हैं, उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है अंश.

प्र. इस शो से जुड़ना कैसे हुआ? आप कितनी खुश हैं?

इस शो जुड़ना इत्तफाक नहीं था. इससे पहले भी मैंने एक रियलिटी शो किया था उसके खत्म होने के बाद ये मिला. मुझे टीवी पर काम करना बहुत पसंद है, क्योंकि इसकी पहुंच हर घर में होती है. लोग मुझे पसंद भी कर रहे हैं. ये एक डांस शो है और मुझे भी डांस बहुत पसन्द है. मैं इसे मेरे लिए परफेक्ट काम मानती हूं.

प्र. क्या अभी आप कुछ नया डांस फॉर्म इस शो के दौरान सीख रही हैं?

मैं हर फिल्म के साथ एक नई तरह की डांस फॉर्म सीखती हूं. अभी मेरी फिल्म ‘नूर’ आ रही है,उसमें मुझे नया डांस फॉर्म ‘हिप हॉप’ सीखने को मिला. अगर व्यक्ति कुछ पसंद करता है, तो उसे करने में उसे आनंद आता है. मुझे सिंगिंग और डांसिंग पसंद है. इसलिए उसे समझना और करना आसान होता है. मुझे व्यायाम पसंद नहीं है, लेकिन डांस पसंद है. इसलिए मैं डांस क्लासेज जाना पसंद करती हूं, क्योंकि यह फिट रहने का भी एक अच्छा जरिया है. मुझे याद आता है, जब मेरे स्कूल की छुट्टियां शुरू होती थी तो मैं शामक डावर और टेरेंस लुईस की डांस क्लासेस ज्वाइन कर लिया करती थी.

प्र. इस शो में आप किस बात पर अधिक विचार करेंगी?

मैं एक ईमानदार लड़की हूं, किसी और की तरह मैं नहीं बन सकती. कोई भी बात अगर मुझे पसंद नहीं तो मैं धडल्ले से उसे कह देती हूं. इसमें मैं कपल्स के डांस को देखना चाहूंगी, जो अलग-अलग है.

प्र. आप कपल्स के रूप में माता-पिता से कितनी प्रभावित हैं?

उन्हें मैं आदर्श कपल्स मानती हूं. दोनों ने अपने जीवन के करीब 36 साल तक, हर मोड़ पर एक दूसरे का उतार-चढ़ाव में साथ दिया है. मैंने बचपन से देखा है कि पिता के साथ उनका सम्बन्ध बहुत गहरा है. पति-पत्नी के रिश्ते को उन्होंने बहुत जिम्मेदारी के साथ निभाया है. मेरी मां को डांस का बहुत शौक है. लेकिन मेरे पिता नॉन डांसर है.

प्र. आपने डांसिंग, सिंगिंग और एक्टिंग सब कुछ कर लिया है अब आगे क्या रह गया है?

मैं एक क्रिएटिव लड़की हूं और हमेशा कुछ न कुछ नया करने की सोचती हूं. अभी मैं एक ऐसे मुकाम पर भी पहुंच चुकी हूं ,जहां से मैं अपने सपने को पूरा कर सकती हूं. ऐसे में मेरे पास अगर कुछ भी नया करने का मौका मिले तो अवश्य करना चाहूंगी. मेरे हिसाब से लाइफ केवल एक ही काम करने के लिए नहीं है, आप उन सभी काम को कर सकते हैं, जिसे करने में आपको खुशी मिलती है.

प्र. आजकल रिश्तों के माईने बदल गए हैं, हर कोई अपने तरह से रिश्तों को निभाता है, इसमें बहुत कम कपल्स ऐसे हैं जो सालों-साल साथ निभाते हैं, कहां समस्या है? इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?

हर किसी के लिए ये अलग होती है, क्योंकि हर इंसान की सोच अलग है. मेरे हिसाब से मैंने एक रिलेशनशिप जिसे अपने बारे में सोचा है, वह है लव, एफ्फेक्शन, केयरिंग, शेयरिंग, सपोर्ट जो हर काम में होना चाहिए. इसे ही जरुरी समझती हूं. इसमें से कुछ भी कम हो जाये, तो रिश्तों का रूप बदल जाता है.

प्र. इंडियन टीवी को आप दर्शक के रूप में कितना एन्जॉय करती हैं?

फिक्शन से अधिक मैं रियलिटी शो को एन्जॉय करती हूं. उसमें मुझे एक नयापन दिखता है. लेकिन अच्छे शो और अधिक होने की आवश्यकता हमारे टीवी जगत को है, ताकि यूथ भी इसे देखें. मैं फिक्शन शो अधिकतर वेस्ट की देखती हूं. जो फिल्मों की तरह ही बने होते हैं. उसमें हमारे यहां बदलाव की जरुरत है और वैसी ही फिल्मों की तर्ज पर फिक्शन शो भी बनायीं जानी चाहिए.

प्र. क्या आप टीवी पर एक्टिंग करना चाहती हैं? वेब के लिए आपकी सोच क्या है?

टीवी एक बड़ी माध्यम है और करोड़ों लोग इसको देखते हैं, इसके शो हर घर में पहुंचते हैं. ऐसे में कोई अच्छी और रुचिपूर्वक रोल मुझे मिले तो अवश्य करना चाहूंगी. कई बड़े-बड़े कलाकार भी टीवी पर आ चुके हैं. वेब तो हमारा भविष्य है, हर किसी के पास स्मार्टफोन है, वे कुछ न कुछ उसपर देखना पसंद करते हैं. ऐसे में वेब पर काम करने का मौका मिले तो अवश्य करुंगी.

प्र. तनाव में आप क्या करती हैं?

तनाव होने पर मैं अधिकतर डांस करती हूं. ऐसा देखा गया है कि कई बार लोग तनाव में वर्क-आउट भी करते हैं. मैं तनाव से मुक्ति पाने के लिए डांस करना ही बेहतर समझती हूं.

प्र. आपने अपनी अगली फिल्म में एक पत्रकार की भूमिका निभाई है, क्या आपको लगता है कि पत्रकार के लिए भी कुछ बंदिशे होनी चाहिएं?

सभी काम के लिए एक सीमा अवश्य होनी चाहिए, फिर चाहे वह डाक्टर, लेखक, पत्रकार, एक्टर, फिल्म निर्माता आदि कोई भी काम करते हो. कुछ सीमा रेखा अवश्य होनी चाहिए और उसे वह व्यक्ति कभी क्रॉस न करें. अगर आप किसी बात से अपमानित महसूस करते हैं, तो वह बात आपको किसी के लिए नहीं कहनी चाहिए.

प्र. आगे आपकी फिल्म ‘नूर’ आ रही है, उसे लेकर कितनी उत्साहित हैं?

‘नूर’ फिल्म की स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद आई और मैंने तुरंत हां कर दी. इस फिल्म से मैं अपने आपको रिलेट कर सकती थी. यह एक रियल स्टोरी है, जिसमें मैंने रियल लोकेशन, सीमेंट फैक्ट्री में जाकर शूट किया है. वहां मैंने देखा कि कैसे लोग धूल-मिट्टी में काम करते हैं, कैसे उनकी जिंदगी गुजरती है, उनका भविष्य क्या होता होगा, आदि सभी मेरे लिए नए हैं और उस परिवेश में एक महिला पत्रकार की सोच क्या होती है. मेरे लिए ये खास फिल्म है.

कोई पीछा तो नहीं कर रहा

मूलरूप से गुवाहाटी की रहने वाली नजमा 2012 में सिलचर में किराए पर मकान ले कर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी. घर से यूनिवर्सिटी तक का आना-जाना बस से करती. इस में करीब 45 मिनट का समय लगता था.

उस दिन यूनिवर्सिटी में चल रहे यूथ फैस्टिवल की वजह से वह घर लौटने में लेट हो गई. 11 बज चुके थे. वह अपनी सहेली के साथ बस से उतरी. बस से उतर कर गली में करीब 3-4 मिनट की वाकिंग पर उस का घर था. सहेली का घर थोड़ी और दूर था.

नजमा बताती है, ‘‘हम ने देखा कि रास्ते में कुछ लड़के हमें अजीब नजरों से देख रहे हैं. ये वही लड़के थे जो अकसर हम पर कमैंट करते थे. दरअसल, हाल ही में मैंने जिम जौइन किया था. जिम में पहले से कोई लड़की नहीं थी. उस एरिया में लड़कियां जिम नहीं जातीं. यही नहीं, मैं जींस भी पहनती हूं. इसे ले कर भी वे लड़के अकसर मुझ पर कमैंट करते हुए पीछा करते. इन में से कुछ लड़के जिम में मेरे साथ ही थे.

‘‘उस दिन रात में भी ये लड़के हमारा पीछा करने लगे. वे कार में थे. हम तेजी से आगे बढ़े. मेरा घर आ गया था. मैंने अपनी सहेली से कहा कि तू मेरे घर ही रुक जा. पर उस के भाई को बुखार था, इसलिए वह नहीं रुकी और चली गई. मगर थोड़ी देर के बाद ही उस का फोन आया. वह रोती हुई बता रही थी कि ये लड़के उस का पीछा कर रहे हैं और कार में खींचने के प्रयास में हैं. मैं ने तुरंत उस के भाई और अपने पड़ोस में रहने वाले लड़के को उस की सहायता के लिए भेजा.

‘‘इस बीच मेरी सहेली स्वयं को बचाने के लिए मेन रोड छोड़ कर भागने लगी, वहां कंस्ट्रक्शन का मैटीरियल पड़ा था और गाड़ी का निकलना मुमकिन नहीं था. लड़के भी कार छोड़ कर पैदल ही उस के पीछे भागे. वे उसे दबोचने ही वाले थे कि उस का भाई और मेरे पड़ोस का लड़का वहां पहुंच गए. एक बड़ा हादसा होते-होते बच गया.

‘‘पुलिस में शिकायत करने की बात पर सभी ने मुझे ऐसा न करने की सलाह दी. उन का कहना था कि पुलिस मदद तो करेगी नहीं उलटे आप परेशानी में फंस जाओगी.

‘‘अफसोस की बात तो यह थी कि मकानमालिक से ले कर जिम इंस्ट्रक्टर तक सभी मुझे ही दोषी ठहरा रहे थे. उन के मुताबिक हमारा इतनी रात तक घर से बाहर रहना या फिर जींस वगैरह पहनना गलत है.’’

फिलहाल नजमा दिल्ली में मिनिस्ट्री औफ सोशल जस्टिस में कंसलटैंट है. वह स्वीकार करती है कि अब दिल्ली में रहते हुए वह काफी एहतियात बरतती है. लेट नाइट बाहर नहीं रहती. मीडिया के दोस्तों से अच्छा रिश्ता बना कर रखती है. यदि कोई पीछा करता नजर आता है तो अपना रास्ता बदल लेती है. जहां तक संभव हो औटो में जाने से बचती है. कैब बुक करती है.

स्टाकिंग यानी पीछा करना हमारे देश की एक अहम समस्या बन गई है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के 2015 के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में सब से ज्यादा स्टाकिंग की घटनाएं होती हैं.

गत वर्ष इंडियन पीनल कोड की धारा 354 डी के अंतर्गत दर्ज कराई गई कुल 6,266 घटनाओं में से 18% यानी 1,124 घटनाएं दिल्ली की थीं. यदि दिल्ली जैसे शहर में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं तो दूसरे इलाकों की तो बात करना भी बेमानी है.

क्या है स्टाकिंग

स्टाकिंग लगातार और अनचाहा संपर्क, ध्यानाकर्षण, मानसिक प्रताड़ना या इसी तरह का और व्यवहार, जो व्यक्ति विश्ेष की ओर होता है. इस से व्यक्ति के मन में भय उत्पन्न होता है. स्टाकिंग के कारण पीड़ित या उस से जुड़े लोगों के जीवन को खतरा उत्पन्न हो सकता है.

स्टाकर पूर्व प्रेमी/प्रेमिका, पूर्व पति/पत्नी, परिचित या अजनबी कोई भी हो सकता है. कई लोग सैलिब्रिटीज का भी पीछा करते हैं. स्टाकिंग पुरुष व स्त्री दोनों के ही द्वारा की जाती है, लेकिन पुरुष इस मामले में काफी आगे हैं.

शक भी हो सकती है वजह

अनुजा कपूर एक जानीमानी समाज सुधारिका, क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट व ऐडवोकेट हैं. वे बताती हैं, ‘‘एक महिला हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गई है. वह मेरे कुलीग की पत्नी है. यह कुलीग मेरा फैमिली फ्रैंड है और मेरे एनजीओ ‘निर्भया एक शक्ति’ में साथ काम करता है.’’

‘‘उस की पत्नी के दिमाग में शक घर कर गया है. उसे लगता है कि हम दोनों के बीच कुछ चल रहा है. इसी वजह से 4-5 सालों से वह मेरा पीछा कर रही है. पूरी तरह मेरी जिंदगी में घुसने का प्रयास करती है. मेरी हर गतिविधि पर नजर रखती है कि मैं कहां जाती हूं, क्या करती हूं. मेरे कहीं पहुचने से पहले वह या उस का जासूस वहां मौजूद होता है.

‘‘वह मेरे दोस्तों पर नजर रखती है. सोशल मीडिया में मेरे बारे में जानकारियां खंगालती है. अपने पति से मेरे बारे में पूछती है. इतना ही नहीं वह अपने पति के साथ घरेलू हिंसा भी कर रही है. उसे शांति से जीने नहीं दे रही. कभी खाना नहीं देती तो कभी घर में बंद कर देती है. बारबार उस से यही कहती है कि तेरा अनुजा के साथ गलत रिश्ता है.

‘‘दरअसल, प्रभावशाली लोग भी कईर् दफा स्टाकिंग के शिकार हो जाते हैं. इस का मकसद उन्हें डीफेम करना होता है, तो कुछ महिलाएं शक के आधार पर किसी का पीछा करने लगती हैं. अकसर मेरा गार्ड मुझे सूचित करता है कि मैडम जब आप आती हैं तो पीछे से एक गाड़ी आप का पीछा करती आती है. दरअसल, उस महिला ने मेरे खिलाफ डेढ़ लाख रुपयों में एक जासूस रख छोड़ा है, जो खास इवेंट्स वगैरह के दौरान हम दोनों की तसवीरें खींच कर उसे देता है. वह महिला यह बात पति के आगे स्वीकार चुकी है कि सुबूत इकट्ठे करने के लिए उस ने जासूस अपौइंट किया है.

‘‘अफसोस की बात यह है कि इस सारे मामलें में उस महिला को अपने मांबाप का समर्थन भी हासिल है. वह इस बात को नहीं समझती कि स्त्रीपुरुष भी आपस में दोस्त हो सकते हैं. हम एक औफिस में हैं तो क्या इवेंट्स के दौरान साथ नहीं दिखेंगे?

‘‘अब मैं ने तय कर लिया है कि जल्द ही उस महिला पर डीफेम, स्टाकिंग व हैरसमैंट का केस दायर करूंगी, क्योंकि उस ने मेरा और मेरे दोस्त का जीना मुहाल कर रखा है.’’

स्टाकिंग में क्याक्या सम्मिलित है

डा. संदीप गोयल के अनुसार स्टाकिंग के अंतर्गत बहुत सी बातें आते हैं, जिन में प्रमुख हैं:

– स्टाकर के द्वारा फोन, डाक या ईमेल द्वारा लगातार अनचाहे, अनुचित और भयभीत करने वाले संदेश पहुंचाना.

– पीड़ित के लिए बारबार अनचाही चीजें, उपहार या फूल छोड़ना या भेजना.

– घर, स्कूल, कालेज, औफिस या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान तक पीड़ित का पीछा करना या उस के इंतजार में वहां खड़े रहना.

– पीड़ित के बारे में निजी जानकारी प्राप्त करने के लिए निजी जासूसी सेवाएं लेना, सार्वजनिक रिकौर्ड तक पहुंच बनाना या इंटरनैट सर्च सर्विसेज का गलत इस्तेमाल करना.

– पीड़ित के घर से निकलने वाले कूड़े में से उस के बारे में निजी जानकारी जुटाने का प्रयास करना.

अपवाद

– पीछा करने वाला शख्स सरकार द्वारा अधिकृत हो.

– पीछा किसी नियम/कानून के अंतर्गत किया जा रहा हो.

– रीजनेबल और जस्टिफाइड स्टाकिंग.

स्टाकर की मानसिकता

स्टाकर आमतौर पर एकाकी व शर्मीले होते हैं. ऐसे लोग अकेले रहते हैं. उन के पास जीवनसाथी ही नहीं, बल्कि परिवार या दोस्तों जैसे महत्त्वपूर्ण संबंध भी नहीं होते. स्टाकर नादसिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर से पीड़ित होते हैं. वे महसूस करते हैं कि वे दुनिया के सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं.

डा. समीर पारीख, डायरैक्टर मैंटल हैल्थ व बिहैवियरल साइंस, फोर्टिस अस्पताल बताते हैं कि स्टाकर या पागलों की तरह पीछा करने वाले व्यक्ति की मानसिकता ही ऐसी हो जाती है कि वह यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि सामने वाला उस को स्वीकार नहीं करना चाहता. इस के विपरीत वह उस इनसान को अपनी जिंदगी का उद्देश्य बना लेता है, जिसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. कभीकभी देखा गया है कि जो व्यक्ति पारिवारिक सपोर्ट न होने की वजह से पहले ही डिप्रैशन का शिकार हो, उस में इस तरह की जनूनी मानसिकता हो जाती है. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. इस तरह के लोग भावनात्मक रूप से कम और जनूनी तौर पर ज्यादा सोचते हैं. इसलिए यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि अपनी सोच या मीडिया मैसेज के प्रभाव से उत्पन्न हुई एक आपराधिक प्रवृत्ति है.

डा. संदीप गोयल के अनुसार, स्टाकर कई तरह के होते हैं:

अस्वीकृत स्टाकर: इस प्रकार के स्टाकर तब नाराज हो जाते हैं, जब उन के प्रेम संबंध खत्म हो जाते हैं. अस्वीकृत स्टाकर न सिर्फ आत्मकेंद्रित होते हैं, बल्कि ईर्ष्या से भरे हुए भी होते हैं.

विद्वेष या गुस्से से भरे स्टाकर: ऐसे स्टाकर किसी संबंध के समाप्त होने पर अपमानित महसूस करते हैं और दूसरे पक्ष से बदला लेने की भावना से भरे होते हैं.

अंतरंगता चाहने वाले स्टाकर: इस प्रकार के स्टाकर पीड़ित से अंतरंग व रोमानी संबंध चाहते हैं. अगर पीड़ित के द्वारा स्टाकर को अस्वीकार कर दिया जाता है, तो वे लगातार उसे फोन करेंगे, खत लिखेंगे या उस के करीब आने का प्रयास करेंगे. अगर पीड़ित किसी और के साथ रिलेशनशिप में चली/चला जाता है तो वे ईर्ष्या से भर जाते हैं. कई बार ऐसे स्टाकर हिंसक भी हो जाते हैं.

लुटेरे या आक्रामक स्टाकर: इस प्रकार के स्टाकर यौन संतुष्टि की चाह में अनियंत्रित व हिंसक हो जाते हैं. यह जरूरी नहीं कि ऐसे स्टाकर पीड़ित को जानते हों. शायद पीड़ित को पता भी न हो कि कोई उस का पीछा कर रहा है.

अयोग्य प्रेमी: इस प्रकार के स्टाकर सामाजिक रूप से इतने कुशल नहीं होते. वे पीड़ित के साथ रिलेशनशिप में जाना चाहते हैं.

विकृत आकर्षण: इस प्रकार के स्टाकर महसूस करते हैं कि पीड़ित उन से प्यार करता है. इस प्रकार के मामलों में अकसर दूसरा पक्ष उन से उच्च सामाजिक वर्ग का होता है. फिर भी स्टाकर बारबार उस के करीब जाने की कोशिश करते हैं.

क्या कहता है कानून

दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता कुनाल मदान बताते हैं कि हमारे देश में आपराधिक कानून, भारतीय दंड संहिता 1860 के अंतर्गत महिला को सुरक्षा प्रदान की जाती है. निर्भया कांड के बाद कानून में मौजूद कमियों को देखते हुए 2013 में कुछ विशेष सुधार किए गए और आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश 2013 लाया गया, जिस के अंतर्गत किसी महिला का पीछा करना, प्राईवेट जगहों पर महिला को छिप कर देखना या इंटरनैट व सोशल मीडिया के जरीए महिला को सताना यानी साइबर स्टाकिंग आदि ऐक्ट 354 डी के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आते हैं. इस ऐक्ट के प्रावधान के मुताबिक अपराधी यदि पहली बार इस तरह के कृत्य में दोषी पाया जाता है तो उसे 3 साल की सजा व जुर्माना हो सकता है. यदि वह व्यक्ति दोबारा इसी अपराध में दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल तक की सजा व जुर्माना हो सकता है.

स्टाकिंग अपराध के लक्षण

अनचाहे तोहफे मिलना: यदि कोई आप को चुपकेचुपके तोहफे पहुंचा रहा है जैसे गुलाब, चौकलेट, टेडीबियर या लव लैटर, तो गुस्से में आ कर ऐसे तोहफों को घर के बाहर न फेंकें. इस के विपरीत संभाल कर रखें. यदि मामला गंभीर होता है, तो ये सभी तोहफे एक सुबूत के तौर पर इस्तेमाल हो सकते हैं. कई बार कुछ सनकी अपराधी डराने के लिए मरी हुई गिलहरी, खून से लथपथ पत्र आदि चीजें भेजते हैं. इन सब से डरें नहीं, संभाल कर रखें.

मारने की धमकी: यदि कोई आप को इंटरनैट से, मेल से या फिर सामने आ कर मारने की धमकी देता है, आप की हर ऐक्टिविटी पर नजर रखता है, आप को जलाने, खुद को/आप को दोनों को मारने की धमकी देता है.

साइबर स्टाकिंग: डा. संदीप गोयल बताते हैं, ‘‘सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के कारण साइबर स्टाकिंग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. साइबर स्टाकिंग में स्टाकर पीड़ित का पीछा करने के लिए इलैक्ट्रौनिक माध्यमों जैसे इंटरनैट या सैलफोनका इस्तेमाल करते हैं. साइबर स्टाकिंग में स्टाकर स्वयं पीड़ित का पीछा नहीं करते बल्कि उस के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. कई स्टाकर पीड़ित को अपमानित करने के लिए इंटरनैट पर उस का झूठा प्रोफाइल डाल देते हैं या उस की निजी जानकारी सार्वजनिक कर देते हैं.’’

क्या करें सुरक्षा के लिए: कुनाल मदान कहते हैं कि यदि आप अपने आसपास इस

प्रकार की कोई भी संदिग्ध हरकत महसूस करती हैं, तो पुलिस को बुलाने में जरा भी देर न करें. समय रहते ऐसे व्यक्ति को पुलिस के हवाले न किया जाए तो उस के हौसले बढ़ते जाते हैं. और वह कोई भी बड़ा अपराध कर सकता है.                     

कैसे होती है स्टाकिंग

‘‘स्टाकिंग के अंतर्गत बहुत सी बातें आते हैं, जिन में प्रमुख हैं स्टाकर के द्वारा फोन, डाक या ईमेल द्वारा लगातार अनचाहे, अनुचित और भयभीत करने वाले संदेश पहुंचाना. पीड़ित के लिए बारबार अनचाही चीजें, उपहार या फूल छोड़ना या भेजना. घर, स्कूल, कालेज, औफिस या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान तक पीड़ित का पीछा करना या उस के इंतजार में वहां खड़े रहना. पीड़ित के बारे में निजी जानकारी प्राप्त करने के लिए निजी जासूसी सेवाएं लेना, सार्वजनिक रिकौर्ड तक पहुंच बनाना या इंटरनैट सर्च सर्विसेज का गलत इस्तेमाल करना.’’ 

– डा. संदीप गोयल

अपराध की शुरुआत है स्टाकिंग

‘‘स्टाकिंग के ज्यादातर मामले उन लड़कियों के साथ देखे जाते हैं, जिन की शादी नहीं हुई होती है, मामला लाइकिंग से जुड़ा होता है. खासकर एकतरफा चाहत रखने वाले लड़के लड़कियों का पीछा करते हैं और आक्रोश बढ़ता है, तो यह स्टाकिंग रेप या ऐसिड अटैक जैसी गंभीर आपराधिक घटनाओं में भी तबदील हो जाती है. मगर शुरुआत हमेशा स्टाकिंग से ही होती है.’’             

-एलैक्जैंडर बक्शी, ऐडवोकेट

ऐसे तो रिश्ता टूटेगा ही

पतियों को लगातार हड़काने वाली औरतों को दिल्ली के उस पेंटर पति से सबक लेना होगा, जिस ने गुस्से में आ कर अपने 8 वर्षीय बेटे के सामने पत्नी को सिर पर फावड़ा मार-मार कर मार डाला और फिर लाश को बोरे में भर कर सड़क पर डाल आया. यह पति मजदूरी करता था पर अच्छे पढ़े-लिखे घरों में लाखों पति ऐसे होंगे जिन का खून उस पेंटर पति की तरह उबलता हो.

दरअसल, औरतें भूल जाती हैं कि पति कैसा भी हो, कम से कम उन की जबान चलाने से तो वह बदल नहीं सकता. कभीकभार का गुस्सा तो ठीक है पर लगातार शिकायती लहजा अपनाए रखना, रातदिन पतियों की गलतियों, कमियों, सुविधाओं के अभावों, रिश्तेदारों के व्यवहारों पर कमैंटरी करना चाहे औरतें अपना अधिकार व कर्तव्य समझती हों पर पतिपत्नी के बीच विवादों की जड़ आमतौर पर यह लगातार नैगिंग ही होती है जो अच्छेभले पति को पटरी से उतार देती है.

पतिपत्नी में डोमैस्टिक वायलैंस की जड़ में भी यही बड़बड़ाहट होती है और पतियों

का शराब या दूसरी औरतों का सहारा लेने के पीछे यही वजह भी होती है. यह संभव है कि बहुत पतियों में बहुत कमियां हों पर यह पक्का है कि वे कमियां पत्नी के आदेशों, उपदेशों, तानों, कड़वे वचनों, रोनेधोने, धमकियों से दूर नहीं हो सकतीं.

पतिपत्नी का जोड़ा एक विशिष्ट सामाजिक देन है और जब तक जोड़ा बना है दोनों एकदूसरे का पूरक बनें. बायां हाथ हर वह काम नहीं कर सकता जो दायां हाथ कर सकता है और पत्नी को बाएं हाथ का पूरक बनना होता है. उसी तरह पति को पत्नी

के कामों में नुक्स निकालने की जगह खुद काम करने की आदत डालनी चाहिए.

हर पति और हर पत्नी अलगअलग होते हैं. पड़ोस के या रिश्ते के पतिपत्नी क्या कर रहे हैं या क्या कर सकते हैं, यह आदर्श बात नहीं बन सकती. ऊपर वाली घटना में पत्नी पति से कोई जौब लेने को कह रही थी पर यदि पति में क्षमता या योग्यता न हो तो पत्नी के कहने से तो जौब नहीं मिलेगी न?

पतिपत्नी का जोड़ा जब टूटता है तब बहुत कुछ टूटता है, चीनी के बरतन की तरह. इस जोड़े को संभाल कर रखना होता है, इस पर लोहे की पतीली की तरह कल्छी नहीं मारी जा सकती.

आपको लोटपोट कर देगा बॉलीवुड सितारों का ‘अप्रैल फूल’

अप्रैल फूल का दिन ही एकमात्र समय होता है जब हर किसी को किसी दूसरे को मूर्ख बनाने का मौका मिलता है. क्या आपने कभी विचार किया है कि हमारे बॉलीवुड सितारे भी किसी से मजाक कर सकते हैं, अगर हां तो किस-किस के और कितने बड़े-बड़े.

तो आज 1 अप्रैल यानि कि ‘मूर्ख दिवस’ पर हम आपके लिए अपने बॉलीवुड सितारों के कुछ आकर्षक ‘अप्रैल फूल’ के किस्से यानि कि कुछ लोगों के बेवकूफ बनने की तो कुछ लोगों को बेवकूफ बनाने की कहानियां लेकर आए हैं. तो अपने पसंदीदा कलाकारों द्वारा दी गई इस हंसी की खुराक का आनंद लीजिए…

विद्या बालन

फिल्मों के आने के कुछ समय पहले अदाकारा विद्या को उस दिन बड़ा आश्चर्य हुआ जब उन्हें 1 अप्रैल के दिन एक उपहार मिला. वे उस तोहफे को लेकर बहुत ही उत्साहित थी और उसे जल्दी से खोलना चाहती थी. लेकिन जैसे ही उन्होंने उसे खोला, उन्हें एक बड़ा सा पंच मिला क्योंकि उस तोहफे में पैक किया हुआ एक पंचिंग बैग था! यकीनन उनका सिर कुछ समय तक घूमता रहा होगा और फिर कुछ समय बाद उन्हें ये एहसास हुआ कि उन्हें ‘अप्रैल फूल’ बनाया गया था! “

अमिताभ बच्चन

अमिताभ के अनुसार कॉलेज के दिनों में वे कई बार इसके शिकार हो चुके हैं. उन्हीं घटनाओं में से एक घटना के बारे में हम आपको बताना चाहते हैं कि “एक बार बिग बी के एक दोस्त ने उन्हें फोन किया और उनसे जल्द से जल्द अदालत पहुंचने के लिए कहा, क्योंकि उनका दोस्त अपने माता-पिता की इच्छाओं के विरुद्ध शादी कर रहा था इसलिए वे जल्दी से समय पर अदालत पहुंचे और वहां पहुंच कर उन्हें यह महसूस हुआ कि उन्हें मूर्ख बनाया गया था!”

शाहरुख खान

“ये बात तो हम सब जानते हैं कि शाहरुख के बच्चे उनसे बहुत मजाक करते हैं और उनके साथ कई शरारते करते हैं. लेकिन एक दफा शाहरुख खुद बहुत आश्चर्य में पड़ गए जब कुछ ऐसा ही मीडिया ने उनके साथ किया था. जब उन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए मुंबई के ताज लैंड एंड होटल में जाना था और जैसे ही वे स्थल पर पहुंचे, तभी सभी मीडिया वाले और पत्रकार अपना-अपना स्थान छोड़कर ये कहकर जाने लगे कि शाहरुख ने आने में देर की है, वे लेट आएं हैं और सभी लोग उनसे नाराज हैं. इससे पहले कि शाहरुख कुछ कह सकते या सोच सकते, वहां मौजूद सभी लोगों ने उनके चेहरे के भावों को देखकर ताली बजाते और हंसते हुए कहा कि यह ‘अप्रैल फूल’ की एक शरारत थी!

आलिया भट्ट

इसमें कोई नयी बात नहीं है कि “मीडिया ने हमेशा आलिया को उनकी बुद्धि, जिसे सभी न के बराबर ही मानते हैं, के लिए लक्ष्य बनाया है. तो एक बार, एक ये खबर अखबार में आई कि आलिया अपनी फिल्म के लिए गंजी होने जा रही हैं. समाचार पढ़ने के बाद आलिया चौंक गयी थी, बाद में उन्हें पता चला कि यह एक अप्रैल फूल की शरारत है जो मीडिया ने उनके साथ की थी!”

सोनाक्षी सिन्हा

अपने स्कूल के दिनों मे सोना बहुत ही बड़ी प्रैंक मास्टर रहीं हैं. उन्होंने एक बार अपने स्कूल की एक शिक्षिका की किताब में छिपकली रख दी थी, जब उनकी शिक्षिका ने उस किताब को खोला, तो वे इतना डर गई थी, कि बहुत जोर से चिल्लाई पर पूरी कक्षा में सब चुप थे, लेकिन सभी ने इसका बहुत मजा लिया!”

अजय देवगन

अजय तो अपने बारे में भी यही कहते हैं कि “वे एक बड़े मसखरे आदमी हैं. एक बार अजय ने अपने निर्देशक को बुलाया और कहा कि वे उनकी फिल्म को बीच में ही छोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता हैं कि वे गलत दिशा में जा रहे हैं और उन्हें गलत कहानी मिल गई है. वह यह सुनकर उनके निर्देशक बहुत चकित हो गये. बाद में अजय ने उन्हें बताया कि अजय उनको अप्रैल फूल बनाने की कोशिश कर रहे थे! “

सनी लियोनी

हम आपको बता दें कि एक दफा 1 अप्रैल को सनी को एक बड़े निर्माता फोन करके ये कहते हैं कि वे सन्नी से मुंबई के ताज लैंड एंड होटल में मिलना चाहते हैं क्योंकि वे सनी को अपने अगले प्रोजेक्ट मे कास्ट करना चाहते हैं. सनी समय पर वहां पहुंच गई पर वहां उन्हें कोई नहीं मिला, बाद में उन्हे बताया गया कि वे बेवकूफ बन चुकी हैं!

गोविंदा और संजय दत्त

संजय दत्त और गोविंदा ने मिलकर एक बार सेट पर एक कैमरामैन को बेवकूफ बनाया था. एक फिल्म की शूटिंग करते वक्त, वो कैमरामैन हमेशा शॉट खत्म होते ही एक पेड़ के पास जाता था और जब यह वाकिया 2-3 बार हुआ तो संजय दत्त और गोविंदा ने जाकर उसे बताया कि उस पेड़ पर एक भूत रहता है और अब, वो भूत उसे परेशान करेगा.

बस ये जानने के बाद वह कैमरामैन इतना डर गया कि वह शूटिंग के लिए कभी वापस ही नहीं आया. फिल्म के निर्माता को बाद में इस वजह से थोड़ा नुकसान झेलना पड़ा.

बचपन की याद दिलाते हैं ये धारावाहिक

भारत में टीवी का आगमन देर से हुआ था, लेकिन दूरदर्शन के लिए धन्यवाद, यह हमारे लिए कभी बोर नहीं था. दूरदर्शन सब मजेदार, नाटक, मनोरंजन और मूल्य की शिक्षा थी, जिसे हम आधुनिक युग के सास-बहू के धारावाहिक से कभी नहीं सीख सकते थे.

दूरदर्शन के कुछ धारावाहिक हमारे बचपन का हिस्सा थे.

तेनाली रमन

तेनाली रमन सीरियल बुद्धिमान चुटकुले और जीवन सबक से भरा था, न कि हमारी पीढ़ी, बल्कि हमारे दादा दादी भी इसे देखना पसंद करते थे.

अलिफ लैला
अलिफ लैला प्रत्येक दिन के लिए एक नई कहानी के साथ हमें देखने को मिलता था,

ब्योमकेश बक्षी

शर्लक होम्स के संस्करण, ब्योमकेश बक्षी धारावाहिक में एक जासूस की कहानी को बताया जाता था.

कैप्टन व्योम

कैप्टन व्योम ने भारतीय विज्ञान-कथा, कहानियों को एक नए स्तर पर दिखाया. इसे पहले से बेहतर प्रदर्शित किया.

चंद्रकांता

चंद्रकांता की कहानी ने न केवल सच्चे प्यार को दिखाया और प्यार के प्रति हमारे विश्वास को मजबूत किया. बल्कि क्रूर सिंह की शक्ति में भी जोर दिया.
चित्रहार

90 के दशक के दौरान चित्रमय चित्रमाला “चित्रहार” को देखे बिना या सुने बिना अधूरे थे.

देख भाई देख

देख भाई देख एक कॉमेडी धारावाहिक था, देख भाई देख ने हमें सिखाया कि कैसे जीवन के उतार-चढ़ाव के दौरान, परिवार हमेशा एक साथ रहता है.

फौजी

इस धारावाहिक ने भारतीय सेना की महिमा की और हमें उन कठोर प्रशिक्षणों को दिखाया, जिसके माध्यम से सबने जाना की भारतीय फौजी कैसे देश की रक्षा करते है. इस धारावाहिक से शाहरुख खान भी मशहूर हुए थे. शाहरुख खान इस धारावाहिक में मुख्य भूमिका में थे.

जंगल बुक  

यह धारावाहिक रुडयार्ड किपलिंग की पुस्तक पर आधारित थी और बच्चों के रूप में देखने के लिए सबका पसंदीदा कार्टून था. कौन मोगली, शेर खान और बगीरा की कहानियों को भूल सकता है.
महाभारत
इस महाकाव्य धारावाहिक का "मैं समय हूं" हिस्सा पूरे घर को सजाने के लिए अभी भी पर्याप्त है. महाभारत सभी के लिए बहुत पसंदीदा धारावाहिक था.
मालगुडी डेज
इसी नाम की आर के नारायण की पुस्तक के आधार पर, मालगुडी का काल्पनिक शहर यह सीरियल सेट किया गया था, इस धारावाहिक में एक भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को सही ढंग से दर्शाया गया है.

शक्तिमान

भारतीय धारावाहिक के सबसे अच्छे और सबसे प्यारे सुपर हीरो के साथ सभी सुपरहिरों की कमी को पुरा करने के लिए धारावाहिक शक्तिमान बना हुआ था. 
श्रीमान श्रीमति
इस कहानी को "प्यार पड़ोसी" सा शाब्दिक रूप से लिया गया था, लेकिन फिर भी सब अपनी क्लासिक पंचलाइनों के लिए इस कॉमेडी को देखना पसंद करते थे. अभी भी केशू, दिलरुबा, कोकी और प्रेमा जी को याद किया जाता है.

सुरभि

टीवी पर सबसे लोकप्रिय सांस्कृतिक शो सुरभि था, यह एक इतिहास सबक या एक यात्रा की कहानी बताता था.

विक्रम बेताल
यह सीरियल शैक्षणिक योग्यता की सही परिभाषा दर्शाता था, जहां बेताल ने राजा विक्रमादित्य को जीवन के पाठकों के साथ कहानियों को बताया और माता-पिता ने इसे अपने बच्चों को देखने और इस से सीखने के लिए एक बिंदु बनाया.
जबान सम्भाल के
यह शो 90 के दशक के एक आम आदमी की दुर्दशा को हाइलाइट करता है, जो शिक्षित होने के बावजूद भी कितनी परेशानियों का सामना करता है.
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