बचपन से अभिनय का शौक रखने वाली अभिनेत्री पिया बाजपेयी ने तमिल, तेलुगू और मलयालम फिल्मों से अपने कैरियर की शुरुआत की. उन का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ, लेकिन कैरियर की शुरुआत दिल्ली में हुई. बचपन से ही पिया अत्यंत चंचल स्वभाव की थीं. शुरूशुरू में उन के माता पिता नहीं चाहते थे कि वे फिल्मों में काम करें, पर उन के आत्मविश्वास को देख कर उन्होंने हां कही. आज उन के परिवार वाले उस की इस कामयाबी से खुश हैं. पिया की फिल्म ‘मिर्जा जूलिएट’ में उन की भूमिका उन के स्वभाव से काफी मिलतीजुलती है. उन से मिल कर बात करना रोचक था. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश:
फिल्म ‘मिर्जा जूलिएट’ के लिए हां करने की वजह क्या थी?
मुझे इस फिल्म की भूमिका बहुत अच्छी लगी. अधिकतर ऐसा होता है कि नरेशन कुछ होता है और ऐक्टिंग के बाद कुछ और हो जाता है, लेकिन इस में मैं ने जो सुना वही दिखाया जाएगा, ये अच्छी बात है.
इस फिल्म की भूमिका आप से कितना मेल खाती है?
मैं ने इस में एक छोटे शहर की दबंग लड़की की भूमिका निभाई है. जो मुझ से काफी मेल खाती है. मैं रियल में भी एक छोटे शहर इटावा से हूं, मुझे याद है कि बचपन में मैं टौमबौय जैसी थी. कोई लड़का अगर मुझे कुछ कह देता था, तो उसे पकड़ कर खूब मारती थी. मेरे पिताजी ने कहा था कि अगर लड़ाई हो तो मार के आना, खुद पिटाई खा कर नहीं.
पिताजी ने मुझे बेटे की तरह पाला है. मेरी बातचीत और चलनेफिरने का ढंग सब लड़कों की तरह था. मैं ने बाइक और जीप चलाई है. त्योहारों में मेरे लिए हमेशा पैंटशर्ट ही आते थे.
फिल्मों में आने के बाद मैं ने लड़कियों वाली ड्रैस पहननी शुरू की. इसलिए जब मुझे इस तरह की ही भूमिका का औफर मिला तो मैं ने तुरंत हां कर दी.
फिल्म में छोटे शहर के लोग जब बड़े शहरों में जाते हैं तो अपनेआप को वहां के माहौल में फिट बैठाने के लिए क्याक्या करते हैं, जिसे देख कर दूसरों को लगता है कि यह चालाक लड़की है, लेकिन ऐसा होता नहीं है, अपनेआप को स्मार्ट दिखाने के लिए वे ऐसा करती हैं. इस फिल्म में भी मेरी भूमिका वैसी ही लड़की की है. इस की शूटिंग बनारस और धर्मशाला में हुई है.
क्या फिल्मों में आना इत्तफाक था?
मेरे जीवन में कुछ भी इत्तफाक नहीं था. मैं जब 7वीं कक्षा में थी, मुझे डांस का बहुत शौक था, पड़ोस में गाना बजता था और मैं डांस करना शुरू कर देती थी. इतना ही नहीं स्कूल, कालेज सभी जगह डांस कार्यक्रम में भाग लेती थी. मेरी इस रुचि को देख कर पापा ने एक दिन कहा था कि 12वीं पूरी होने के बाद वे मुझे ऐक्ंिटग व डांसिंग का कोर्स करवा देंगे, लेकिन जब मैं 12वीं में आई तो उन्होंने साफ मना कर दिया, लेकिन चिनगारी तो उन्होंने लगा ही दी थी.
मुझे लगा कि इटावा से निकल कर ही मेरी लाइफ बन सकती है, क्योंकि यह एक छोटा शहर है, यहां लाइफ नहीं बन सकती. वहां से निकल कर मैं दिल्ली आई. कंप्यूटर कोर्स किया, रिसैप्शनिस्ट की जौब की, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाई और इस तरह मैं धीरेधीरे मुंबई में सैट हो गई.
मुंबई में कितना संघर्ष किया?
मुंबई में मैं ने पहले डबिंग आर्टिस्ट के रूप में काम किया, क्योंकि मेरी हिंदी अच्छी है. इस के बाद प्रिंट ऐड में काम शुरू कर दिया, जिस से मुझे कमर्शियल ऐड मिलने लगे. ऐसा करतेकरते मुझे हिंदी फिल्म ‘खोसला का घोंसला’ की रीमेक तमिल फिल्म में काम करने का मौका मिला. मेरी वह फिल्म हिट हो गई, फिर फिल्मों का सिलसिला शुरू हो गया.
करीब 12-13 दक्षिण भारतीय फिल्में करने के बाद मुझ में हिंदी फिल्म करने की इच्छा पैदा हुई, क्योंकि मैं जितनी फिल्में कर रही थी, भाषा समझ में न आने की वजह से मेरे मातापिता उस में भाग नहीं ले पा रहे थे. मुझे सब आधाअधूरा लग रहा था.
मैं ने एक साल का ब्रेक लिया और मुंबई रुकी. उसी दौरान मुझे हिंदी फिल्म ‘लाल रंग’ मिली. उस के तुरंत बाद ‘मिर्जा जूलिएट’ मिल गई.
साउथ की और यहां की फिल्मों में क्या अंतर है?
सिर्फ भाषा का अंतर है. वहां भी लोग अच्छी और खराब फिल्में बनाते हैं.
आप के काम में परिवार ने किस तरह का सहयोग दिया?
परिवार वालों ने पहले कभी मुझे सहयोग नहीं दिया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मैं हीरोइन बनूं. उन्हें लग रहा था कि मैं एक सीधीसादी और छोटे शहर की लड़की हूं. लोग यहां मुझे बेवकूफ बना देंगे. समय बरबाद हो जाएगा, लाइफ सैटल नहीं हो पाएगी आदि चिंता उन्हें सता रही थी.
मेरे परिवार में सभी बहुत पढ़ेलिखे हैं ऐसे में ऐसी सोच वाजिब थी. फिर मुंबई की कहानियां उन्होंने अखबारों में काफी पढ़ी थीं. उन्होंने मेरा साथ देने से साफ मना कर दिया था, पर मुझे विश्वास था कि मैं सफल हो जाऊंगी, अत: मैं दिल्ली गई. आज उन्हें मुझ पर गर्व है, वे मेरी उपलब्धि से खुश हैं.
किसी नए शहर में अकेले रहना कितना मुश्किल था?
अगर आप अपनी जिम्मेदारी खुद लेते हैं, तो जंगल में भी रह सकते हैं. आप कहीं भी रहें हमेशा सतर्क रहना चाहिए. मुझे दिल्ली या मुंबई कहीं भी रहने में कोई समस्या नहीं आई.
फिल्मों में अंतरंग दृश्य करने में कितनी सहज रहती हैं?
मुझे अभी तक कोई भी इंटीमेट सीन करने में मुश्किल नहीं आई. फिल्म ‘लाल रंग’ में भी कुछ किसिंग सीन थे, इस में भी हैं. दक्षिण की किसी भी फिल्म में मेरा कोईर् भी किसिंग सीन नहीं था, लेकिन मैं कैमरे पर अधिक फोकस्ड रहती हूं. अगर फिल्म की डिमांड है, तो उसे करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं.
मेरे लिए निर्देशक, कोऐक्टर खास माने रखते हैं, इस के अलावा मैं जो भी दृश्य करूं, वह ओरिजनल लगे, इस बात पर अधिक ध्यान देती हूं.
फिल्मों की पाबंदी के बारे में क्या सोचती हैं?
फिल्मों का सर्टिफिकेशन जरूरी है, फिल्म को देख कर उस के हिसाब से उसे सर्टिफाई कर देना चाहिए, न कि उस पर पाबंदी लगाई जाए. इस के बाद दर्शक हैं, जो फिल्म के भविष्य को तय करते हैं. वैसे तो लोग यूट्यूब पर हर तरह की फिल्में देख लेते हैं. मेरे हिसाब से फिल्म जैसे बनी है, उस के हिसाब से सर्टिफिकेट दें. किसी की पसंद या नापसंद को आप डिक्टेट नहीं कर सकते.
समय मिले तो क्या करना पसंद करती हैं?
मैं बहुत बड़ी फिटनैस फ्रीक हूं. समय मिलने पर जिम जाती हूं जिस में मैं मार्शल आर्ट की एक कठिन विधा परकौर करती हूं. खानेपीने पर ध्यान देती हूं, किताबें पढ़ती हूं, फिल्में देखती हूं. मेरे फ्रैंड्स नहीं हैं. फिल्म की यूनिट के लोग ही मेरे फ्रैंड्स हैं. मुझे खाना बनाने का शौक है. सबकुछ बना लेती हूं. नौनवैज नहीं बनाती, क्योंकि मैं खाती नहीं हूं. मैं ने खाना बनाना घर से बाहर निकल कर ही सीखा है. मैं चाय अच्छी बनाती हूं.
आप को कभी ‘कास्टिंग काउच’ का सामना करना पड़ा?
किसी भी क्षेत्र में चाहे वह हिंदी सिनेमा जगत हो या कोई कौरपोरेट वर्ल्ड हर जगह महिलाओं को किसी न किसी रूप में प्रताड़ित होना पड़ता है. इस के लिए वे खुद जिम्मेदार होती हैं.
जिस के पास पावर है वह उस का प्रयोग किसी न किसी रूप में करता है, लेकिन आप अगर खुद उन्हें बता देते हैं कि आप को अपनेआप पर भरोसा नहीं, आप एक रात में ऐक्ट्रैस बनना चाहती हैं, कुछ भी करने के लिए तैयार हैं, तो आप का यूज कौन नहीं करेगा? इस तरह की घटनाओं में दोनों का योगदान होता है. एक अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता.
कोई ड्रीम प्रोजैक्ट है?
मैं हमेशा एक अच्छी फिल्म करना चाहती हूं. अभी मैं अपनेआप को प्रूव कर रही हूं.
कुछ और दूसरी रीजनल फिल्में करने का शौक है?
मैं कोई भी अच्छी फिल्म, किसी भी भाषा में हो, करना पसंद करूंगी.
रिलेशनशिप पर आप की सोच क्या है? क्या आप को कभी किसी से प्यार हुआ?
रिलेशनशिप जल्दी टूटती है क्योंकि वह बनती भी जल्दी है. आजकल बनावटी चीजें बहुत हो रही हैं. ऐसे में मैं अपने काम पर अधिक ध्यान देती हूं. मेरा काम ही मेरा प्यार है.
कितनी फैशनेबल हैं?
मैं फैशनेबल बिलकुल नही हूं, जो मिले उसी को पहन लेती हूं.
तनाव होने पर क्या करती हैं?
तनाव होने पर दौड़ने चली जाती हूं.
शौपिंग मेनिया है?
मुझे जो पसंद आए उसे अवश्य खरीद लेती हूं, नहीं तो रात में उस के सपने आते हैं. वे कपड़े, जूते कुछ भी हो सकते हैं.
आप अपना आदर्श किसे मानती हैं?
मैं अपनी मां कांति बाजपेयी को अपना आदर्श मानती हूं.
यूथ जो इस क्षेत्र में आना चाहे उन्हें क्या मैसेज देना चाहेंगी?
यूथ के लिए मेरा मैसेज यही है कि आप जो भी सपने देखें, उन्हें ईमानदारी से फौलो करने की हिम्मत रखें. सभी स्टार बनने के लिए मुंबई आते हैं, पर वे सही ढंग से मेहनत नहीं करते और जब फेल हो जाते हैं, तो रोते हैं और सब को दोषी ठहराते हैं. मेरे हिसाब से सपने जितने अधिक बड़े होते हैं, मेहनत उतनी ही अधिक होती है. उस के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.