Family Story: प्रिया ने औफिस पहुंचते ही बिना समय गंवाए फाइल में लगी चिट्ठियों को पढ़ कर उन्हें छांटने का काम शुरू कर दिया. उसे मालूम था संपादक आज स्तंभ की फाइलें मांगेंगे. मैगजीन की डैडलाइन आ चुकी है. काम शुरू हुए 10 मिनट ही हुए थे कि उसे लगा उस की कुरसी की बगल में कोई खड़ा है. बिना कुछ कहे देर से. संपादक ने फाइल के लिए चपरासी भेजा होगा, प्रिया ने यही समझ. लेकिन चेहरा घुमा कर देखा तो हड़बड़ा गई. बगल में धीर खड़ा था.
धीर प्रिया के औफिस में ही काम करता था. रिपोर्टर था, लेकिन धीर से उस का व्यक्तिगत तौर पर परिचय नहीं था. बातचीत कभी नहीं रही. आमनेसामने दिख गए तो बस एकदूसरे को विश कर दिया. धीर की 6 महीने पहले पौलिटिकल ब्यूरो में नियुक्ति हुई थी, इतना ही वह उस के बारे में जानती थी.
प्रिया काम में पूरी तरह लीन थी, इसलिए धीर संकोचवश जल्दी उसे बोल नहीं पाया. प्रिया कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. नियुक्ति के आधार पर धीर भले ही जूनियर था, लेकिन उम्र में कम से कम उस से 2-3 साल बड़ा तो होगा ही.
‘‘जी कहिए,’’ प्रिया ने पूछा.
‘‘मैं धीर हूं. पौलिटिकल ब्यूरो में हूं.’’
‘‘मैं जानती हूं. मुझ से कोई काम है?’’ प्रिया ने उसे पूरा सम्मान देते हुए कहा.
‘‘जी.’’
‘‘कहिए?’’
‘‘बैठिएबैठिए. आप काम कीजिए. अभी नहीं. लंच के समय बात करेंगे. आप से अलग
से कुछ बात करनी है,’’ धीर ने कहने के साथ
ही प्रिया की बगल में बैठी लड़की की तरफ
नजर दौड़ाई.
लड़की का नाम ऋचा था. प्रिया से जूनियर थी. पत्रों और स्तंभ के लिए आई रचनाओं को अलग कर फाइल में लगाने का काम करती थी.
प्रिया ने कुछ नहीं कहा. वह खामोशी से धीर के चेहरे को देख रही रही. वह समझ गई जो भी बात है, धीर उस लड़की के सामने नहीं कहना चाहता. वह थोड़ा परेशान हुई. स्तंभ विभाग और पौलिटिकल ब्यूरो एकदम अलगअलग विभाग हैं. काम को ले कर भी इन दोनों विभाग के बीच किसी तरह का संबंध नहीं है, फिर औफिस की ऐसी क्या बात है जो धीर को अकेले में करनी है? प्रिया समझ नहीं पाई. उस के चेहरे से धीर ने समझ लिया कि वह परेशान है ‘‘मैं लंच करने के बाद लाइब्रेरी में आप का इंतजार करूंगा,’’ धीर ने प्रिया की हैरानी पर बिना ध्यान दिए कहा और उसे उसी तरह उलझन में छोड़ चला गया.
प्रिया ने कह तो दिया ठीक है, लेकिन उस के दिल में धुकधुकी मची थी.
‘देखा जाएगा,’’ अंत में प्रिया मन में उठ रहे तरहतरह के सवालों को झटक फिर से काम में जुट गई.
‘द पब्लिक फोरम’ मैगजीन में आए प्रिया को 1 साल हो गया था. यह उस की पहली नौकरी थी. शुरू में उसे भी ऋचा की तरह पाठकों के पत्रों, स्तंभ के लिए आई रचनाओं को छांटने का जिम्मा मिला था. 4 महीने बाद ही संपादक ने उस की मेहनत से खुश हो कर उक्वसे स्तंभ विभाग का इंचार्ज बना दिया था. 1 साल बीत जाने के बावजूद दफ्तर में उस की घनिष्ठता किसी से नहीं हो पाई थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
₹ 499₹ 399
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
 
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
₹ 1848₹ 1399
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
  • 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...