इस समर ट्रेंड में है शर्ट ड्रेस

गर्मी के मौसम में हम सब आरामदेह कपड़े पहनना चाहते हैं. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि ऐसे कपड़े स्टाइलिश कहां होते हैं? तो हम आपको बता दें कि  आरामदेह कपड़े भी स्टाइलिश होते हैं. बस आपको फैशन ट्रेंड्स पर अपनी नजर रखनी होगी.

एक ऐसा ही फैशन ट्रेंड है, शर्ट ड्रेस. वैसे तो आप इसे हर मौसम में पहनकर स्टाइलिश लुक पा सकती हैं, पर खासतौर से गर्मी के मौसम में यह आपको काफी कूल लुक देगा. इस ड्रेस की खास बात यह है कि यह बहुत महंगा नहीं है और आप इसे किसी भी औपचारिक या अनौपचारिक मौकों पर पहनकर शान से चल सकती हैं.

किसी भी मौके पर शर्ट ड्रेस पहनने से पहले आपको सोचना नहीं होगा. आप इसे ऑफिस, पार्टी या कहीं घूमने जाने में भी पहन सकती हैं. हल्के रंग के शर्ट ड्रेस इस सीजन खूब चलन में हैं. शर्ट ड्रेस के साथ सनग्लास, सैंडल और रिस्ट वॉच जैसी एक्सेसरीज जरूर पहनें. अभी बिना बटन के चेक्स वाले शर्ट ड्रेस ट्रेंड में हैं. इसे पहनने के लिए आपको किसी खास हेयरस्टाइल या मेकअप की जरूरत नहीं पड़ेगी. शर्ट ड्रेस को और प्रभावी बनाने में हमारे ये टिप्स आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

चुनें ढीली शर्ट ड्रेस

कभी भी टाइट फिटिंग वाली शर्ट ड्रेस पहनने की गलती न करें. अपने लिए ढीली-ढाली शर्ट ड्रेस चुनें. यह आप पर न केवल खूबसूरत लगेगी बल्कि आपको आराम भी महसूस होगा. ढीली शर्ट ड्रेस का यह मतलब नहीं है कि आप अपने साइज से बड़ी ड्रेस या बेहद ढीली शर्ट ड्रेस खरीद लें. मुख्य रूप से आपको अपने लिए ऐसी शर्ट ड्रेस लेनी है, जिसमें अतिरिक्त आराम देने वाले कट हों ताकि आपको चलने-फिरने में आसानी हो.

दूसरी ड्रेस की भी ले सकती हैं मदद

शर्ट ड्रेस को ज्यादा स्टाइलिश बनाने के लिए आप इस पर दूसरे ड्रेस की परत भी चढ़ा सकती हैं. इसके ऊपर कोई भी श्रग डाल सकती हैं या आप इसके साथ किसी दूसरे आउटफिट का खुले बटन वाला टॉप भी पहन सकती हैं.

पूरे घेर वाली शर्ट ड्रेस लें

आजकल शर्ट ड्रेस बहुत-सी कट्स के साथ आ रही हैं, जिससे कि यह पहनने पर ऊंची-नीची सी दिखती हैं. अगर आपके शरीर का निचला हिस्सा भारी है तो यह शर्ट ड्रेस आपकी जांघों के पास चिपक सकती है. इस परेशानी से बचने के लिए लोवर या टाइट्स पहनें, जिससे आपका निचला हिस्सा अजीब ना लगे.

बेल्ट का करें इस्तेमाल

आजकल बिना किसी शेप वाली शर्ट ड्रेस भी ट्रेंड में है, लेकिन यह आपके खूबसूरत फिगर को कहीं छिपा देती है. इस समस्या से उबरने के लिए आपको केवल एक ट्रेंडी-सा बेल्ट या फिर प्यारी-सी फैब्रिक टाई कमर के पास बांधनी होगी. अपने लुक को और निखारने के लिए आप अलग-अलग तरह की टाई और बेल्ट का इस्तेमाल कर सकती हैं.

फैशनेबल एक्सेसरीज

अपनी साधारण और प्लेन शर्ट ड्रेस में नई जान डालने के लिए इसे कुछ फैशनेबल एक्सेसरीज के साथ पहनें. अगर आप अपनी शर्ट ड्रेस को ज्यादा आकर्षक बनाना चाहती हैं तो इसके साथ स्टेटमेंट नेकलेस या एक शानदार घड़ी पहनें. अलग लुक पाने के लिए आप इसके साथ मेटैलिक सैंडिल या फिर जूते भी पहन सकती हैं.

शर्ट ड्रेस की लंबाई के हिसाब से चुनें हील्स

ड्रेस की लंबाई जितनी कम हो, हील की लंबाई भी उसी हिसाब से कम होनी चाहिए. फैशन के इस नियम को हमेशा याद रखें. अगर आप शर्ट ड्रेस में आधुनिक और प्रभावशाली दिखना चाहती हैं तो इसके साथ हाई हील्स पहन सकती हैं, लेकिन शर्ट ड्रेस की लंबाई कम हो तो हाई हील से बचें, वर्ना यह आपका पूरा लुक खराब कर देगी. कम लंबाई वाली शर्ट ड्रेस के साथ फ्लैट फुटवियर पहनकर आप बहुत स्टाइलिश दिख सकती हैं.

फिल्म रिव्यू : नूर

पाकिस्तानी लेखिका सबा सय्यद के उपन्यास ‘कराची आर यू किलिंग’ पर बनी फिल्म ‘नूर’ अति कमजोर कहानी वाली फिल्म है. मगर फिल्म देखकर एहसास होता है कि लेखक ने पत्रकार, न्यूजरूम, संपादक की बहुत गलत कल्पना की है. यह अति कमजोर कथानक पर बनी निराश करने वाली फिल्म है.

फिल्म ‘‘नूर’’ की कहानी मुंबई की 28 वर्षीय पत्रकार नूरा रॉय चौधरी (सोनाक्षी सिन्हा) की है, जिसे सभी नूर कह कर बुलाते हैं. उनकी मां बचपन में ही गुजर गयी थीं. वह अपने पिता (एम के रैना) के साथ रहती हैं. उनके पिता ने घर में एक बिल्ली पाल रखी है और वह अक्सर बिल्ली के साथ ही समय बिताते हैं. यह बात नूर को पसंद नहीं आती.

उधर नूर की जिंदगी में दो दोस्त जारा पटेल (शिवानी दांडेकर) और शाद सहगल (कानन गिल)हैं. शाद का लंदन में अपना रेस्टारेंट है, पर वह अक्सर मुंबई में ही बना रहता है. नूर का बॉस शेखर दास (मनीष चौधरी) अपनी पत्नी लवलीन के पिता के चैनल के लिए खबरें व वीडियो इंटरव्यू आदि इकट्ठा करके देते हैं. नूर हमेशा इंसानी जिंदगी की सच्चाई को उकेरने वाली कहानियों पर काम करना पसंद करती है. पर शेखर दास उसे बार बार फिल्म जगत में दौड़ाते हैं.

जब शेखर दास नूर को सनी लियोनी का इंटरव्यू करने के लिए भेजते हैं, तो उसे गुस्सा आता है. नूर हमेशा बहुत बड़ी पत्रकार बनकर सीएनएन के लिए काम करने व एक अच्छे प्रेमी व पति की चाहत को लेकर सोचती रहती है. इसी बीच एक दिन नूर की मुलाकात सीएनएन में कार्यरत पत्रकार और फोटोग्राफर अयान मुखर्जी (पूरब कोहली) से होती है. नूर, अयान के करीब होने के प्रयास में लग जाती है.

अचानक एक दिन नूर को अपने घर में काम करने वाली मालती से पता चलता है कि कपाड़िया ट्रस्ट के डॉक्टर दिलीप शिंदे ने मालती के भाई विलास को नौकरी देने का लालच देकर उसकी किडनी निकाल ली. नूर को लगता है कि वह इसे ब्रेकिंग न्यूज के तहत देकर रातों रात बहुत बड़ी पत्रकार बन जाएगी. और सीएनएन में उसकी नौकरी पक्की हो जाएगी. मालती के मना करने के बावजूद नूर उसकी सुरक्षा की जिमेदारी लेते हुए मालती और उसके भाई विलास के इंटरव्यू की वीडियो रिकॉर्डिंग करती है. इस वीडियो रिकॉर्डिंग को देखकर शेखर दास कहते हैं कि इसका प्रसारण करना है या नहीं, इसका निर्णय दो दिन बाद करेंगे. पर नूर को जल्दी है.

उसे लगता है कि शेखर दास जानबूझकर अपनी पत्नी लवलीन के इशारे पर उसकी प्रतिभा को दबाने का काम कर रहे हैं. वह गुस्से में अयान से मिलकर सारी बात बताती है. अयान उस पर प्यार लुटाता है. नूर,अयान के साथ उसके होटल के कमरे में पहुंचती है. जब सुबह होती है, तो होटल कमरे के बिस्तर पर अयान व नूर के हालात देखकर समझा जा सकता है कि रात में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन चुके हैं. दोनों पूरी रात जगे हैं. अयान उससे कहता है कि वह रात की खुमारी उतारे, तब तक वह बाहर किसी से मिलकर वापस आता है.

शाम को जब सीएनएन पर नूर की विलास तांबे वाली स्टोरी अयान के नाम से चलती है, तो जारा नूर को फोन करती है. सच जानकर नूर को एहसास होता है कि वह ठगी गयी. वह तुरंत शेखर दास के पास पहुंचती है. शेखर दास उससे कहते हैं कि ‘‘अयान मुखर्जी तो ठग है. पत्रकारिता में ऐसा कई बार होता है. नूर, तुम बुद्धिमान हो, तुम्हें खबर पकड़ना आता है. मगर हर खबर पर रिसर्च करना जरुरी होता है. जो कि तुमने इस खबर में नहीं किया. डॉ शिंदे बहुत बड़े इंसान हैं. एक पत्रकार के साथ उसकी अपनी जिम्मेदारी को भूल गयी. तुमने खुद को बड़ा बनाने के चक्कर में यह नहीं सोचा कि मालती व विलास का क्या होगा. किसी भी सच्चाई को यूं ही नहीं दिया जाता. खबर को चार दिन बाद लोग भूल जाएंगे…’’

नूर मालती के घर जाती है, तो पता चलता है कि उसके घर पर ताला है. बाद में पता चलता है कि मालती और उसके भाई विलास को अगवा कर लिया गया है. नूर के पिता को धमकियां मिलती है. अब नूर को गलती का एहसास होता है. वह शा के साथ लंदन चली जाती है. कुछ दिन बाद पता चलता है कि विलास मारा गया. डॉ. शिंदे बरी हो गए. फिर नूर वापस आती है. लवलीन, नूर से कहती है कि उसने उसके पति शेखर पर विश्वास नहीं किया तथा चोट पहुंचाई है. फिर नूर रिसर्च करके फेसबुक पर रिपोर्ट लिखती है. जिसमें किडनी चोरी के पूरे जाल का पर्दाभास करने के साथ ही मुंबई शहर की कमजोरियों व कमियों को गिनाती है. रातो रात वह स्टार बन जाती है. डां शिंदे के खिलाफ गवाही देने के लिए सैकड़ो लोग आ जाते हैं. डॉ शिंदे गिरफ्तार हो जाते हैं. शाद, नूर के सामने शादी का प्रस्ताव रखता है.

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी अति धीमी गति से आगे बढ़ना और कमजोर कथानक है. फिल्म पत्रकार की कहानी कहती है, मगर फिल्म में पत्रकार, उसकी जिंदगी और उसके आस पास का ताना बाना ठीक से नहीं उकेरा गया. क्या एक चैनल के दफ्तर में बॉस यानी कि संपादक के अलावा महज नूर ही काम करती है? फिल्म की पटकथा में कसावट की बहुत ज्यादा जरुरत है. फिल्म के कुछ संवाद काफी हार्ड हीटिंग हैं. पटकथा लेखक ने नूर को एक आपदा के रूप में ही चित्रित किया है. पूरी फिल्म अवास्तविक लगती है. लेखक ने ‘न्यूज रूम’, संपादक व पत्रकार की जो कल्पना की है, वह भी गलत तथा अवास्तविक है.

गीत संगीत ठीक ठाक है. लोकेशन बेहतर है. यह फिल्म अपनी लागत वसूल कर पाएगी, इसमे संशय है. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो एक बार फिर सोनाक्षी सिन्हा ने निराश ही किया है. पत्रकार के किरदार में वह पूरी तरह से विफल हैं. पूरी फिल्म में वह पत्रकार कम जोकर ही ज्यादा नजर आयी. शायद उन्हें इस बात का एहसास हो रहा था, इसीलिए नूर खुद को कई बार जोकर ही कहती है. वैसे भी जो इंसान खुद को जोकर कहेगा या समझेगा, वह पत्रकार हो ही नहीं सकता. इसके अलावा कानन गिल, मनीष चौधरी, स्मिता तांबे, शिवानी दांडेकर ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है.

एक घंटे 54 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘नूर’’ का निर्माण टीसीरीज और विक्रम मल्होत्रा  ने मिलकर किया है. फिल्म के निर्देशक सुनहिल सिप्पी, संगीतकार अमाल मलिक तथा कलाकार हैं- सोनाक्षी सिन्हा, शिवानी दांडेकर, कानन गिल, मनीष चौधरी, पूरब कोहली, स्मिता तांबे व अन्य.

‘किसी शर्त पर बाहुबली 3 नहीं करूंगा’

भारतीय सिनेमा को अलग मुकाम पर ले जाती है फिल्म बाहुबली और बाहुबली- द कनक्लूजन. 450 करोड़ी इस फिल्म में जितनी मेहनत की गई है शायद ही किसी और फिल्म में की गई होगी.

बाहुबली स्टार प्रभास ने हाल ही में कहा था कि बाहुबली खत्म होने के बाद सबसे पहले वह अपने बाल कटवाएंगे. और अब जो उनहोंने कहा है उसे सुन कर आप जरूर ही अचम्भित हो उठेंगे. उन्होंने कहा है कि ये फिल्म चाहे कितनी भी खास है लेकिन वह दोबारा ऐसा कोई किरदार नहीं करेंगे.

प्रभास ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि बाहुबली जैसी फिल्में आपका बहुत सारा वक्त और टैलेंट मांगती है. और अब मैं अपने करियर में दोबारा ऐसी कोई फिल्म नहीं करना चाहूंगा. बाहुबली 3 के बारे में पूछने पर भी प्रभास का जवाब था कि बाहुबली जैसा मैं कुछ नहीं करना चाहूंगा. बाहुबली के लिए उन्होंने अपने जीवन के 4.5 साल दे दिए हैं.

प्रभास का कहना है कि राजामौली के साथ काम करना एक अनुभव है. ये पूछने पर कि क्या वो अपने डायरेक्टर से डरते हैं, प्रभास का जवाब था कि उनके साथ ऐसा संबंध बन चुका है कि अब मैं घबराता हूं, डरता नहीं. मैं घबराता हूं कि वो किसी चीज को लेकर ज्यादा परेशान तो नहीं हो रहे. मैं हमेशा सेट पर कोशिश करता था कि पूरी तैयारी से जाऊं जिसे राजामौली को कोई दिक्कत ना हो और मैं बिना उन्हें परेशान किए, ज्यादा सवाल जवाब किए बिना बस जल्दी से एक अच्छा सा शॉट उन्हें दे दूं.

सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी फिल्म

फिल्म अप्रैल 2017 में रिलीज हो रही है और फिल्म के लिए तैयारियां धुंआधार तरीके से चल रही है. माना जा रहा है कि ये पहली भारतीय फिल्म होगी जो कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी. बाहुबली को दो पार्ट में बनाया गया है. फिल्म दो भाषाओं मे बनाई गयी थी तेलुगू और तमिल, जिसके बाद इसे मलयालम, हिंदी और फ्रेंच में डब किया गया.

प्रभास ने सीखी रॉक क्लाइंबिंग

बाहुबली के लिए प्रभास ने पहाड़ पर चढ़ना सीखा. उन्होंने फिल्म में कई सीन्स में पहाड़ की चढ़ाई की है. या यूं कहिए पूरी फिल्म में वो पहाड़ पर ही चढ़े हैं. वहीं किरदार में परफेक्ट नजर आने के लिए राणा दुग्गाबाती ने अपने 88 किलो वजन को बढ़ाकर 120 किलो किया. हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्मसिटी का करीब 100 एकड़ के हिस्से में बाहुबली का सेट बनाया गया था.

50000 फिट का पोस्टर

बाहुबली फिल्म का सबसे बड़ा पोस्टर 50000 फिट का था, जिसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ट रिकॉर्ड्स में दर्ज कराया गया. राजामौली ने बाहुबली का ट्रेलर बड़े लेवल पर रिलीज किया. ये पहली फिल्म थी जिसका ट्रेलर डॉल्बी एटमॉस में रिलीज किया गया था.

बाहुबली का म्यूजियम

बाहुबली एक पहली ऐसी फिल्म है जिसका एक म्यूजियम तैयार किया गया है. फिल्म से जुड़ी हर एक चीज रखी जाएगी एक्टर्स की कॉस्ट्यूम से लेकर उनके हथियारों तक.

मेरा रास्ता बहुत कठिन है : अलंकृता श्रीवास्तव

विवादित फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव दिल्ली की हैं. उन्हें बचपन से ही फिल्मों का शौक था. उनके इस शौक को बल दिया, उनके माता-पिता ने, जिन्होंने हर काम में उन्हें आजादी दी. पढाई पूरी कर वह मुंबई आईं और पिछले 13 वर्षों से यहां अकेले रह रही हैं.

स्पष्ट भाषी और साहसी अलंकृता की फिल्म को ‘सेन्सर बोर्ड’ की ‘सर्टिफिकेशन’ का इंतजार है. इस फिल्म के निर्माता प्रकाश झा हैं. ‘सर्टिफिकेशन’ न मिलने की वजह से परेशान निर्माता, निर्देशक ने कानून का दरवाजा खटखटाया है. यह फिल्म ट्रिपल तलाक और महिलाओं की आजादी को छिनने वालों पर एक तमाचा है जिसे सेन्सर बोर्ड किसी भी हालत में रिलीज नहीं करना चाहती. इस विषय पर बातचीत हुई, पेश है अंश.

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

दिल्ली में मैंने अपनी प्रारम्भिक पढाई पूरी कर पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की. फिर मैं फिल्म ‘गंगाजल’ के लिए ट्रेनी बनकर मुंबई आई. मैंने प्रकाश झा को उस फिल्म के लिए एसिस्ट किया. पहली फिल्म से मैंने बहुत कुछ सीखा.

इसके बाद चीफ एसिस्टेंट बनी और जयप्रकाश, अपहरण आदि फिल्में की. इसके बाद मैंने कुछ छोटी फिल्में अकेले की और फिर ‘राजनीति’ फिल्म में असोसिएट निर्देशक बन गयी. इस तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयी. इसके बाद मैंने ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की विषय पर काम करना शुरू किया. इसे लिखने में थोड़ा समय लगा. प्रकाश झा ने इसे एक बार में पसंद किया. 2014 से मैंने इस फिल्म को करना शुरू किया है फिल्म तो बन गयी है, लेकिन रिलीज नहीं हो पा रही है.  

आपने इस विषय को ही क्यों चुना? क्या कोई अनुभव जो आपके जीवन से जुड़ी हुई है?

मैं एक भारतीय महिला हूं. मुझे भी कुछ न कुछ बंदिशों का सामना करना पड़ता है, मुझे वह आजादी नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए. उस आजादी की चाहत बहुत स्ट्रोंग है और लगता है कि मैं खुलकर जी नहीं रही हूं. हालांकि मेरा परिवार मुझे पूरी आजादी देता है. उन्होंने कभी किसी काम से नहीं रोका.

मैं सालों से मुंबई में अकेली रहती हूं. कभी उन्होंने ये नहीं कहा कि शादी कर लो. ऐसे में जिन्हें इतनी अजादी नहीं है, समाज उन्हें हर काम करने से मना करता है, वे कैसे जीती होंगी?

मैं उन महिलाओं की दुनिया में जाकर उसे महसूस करना चाहती थी और उनके अंदर जो आजादी की चाहत होती है, उसे ही दिखाने की कोशिश की है. ये फिल्म किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं है, बल्कि सभी महिलाओं के लिए है.

12 साल की उम्र में मुझे सेक्सुअल हैरेस्मैंट का सामना करना पड़ा था. मैं दिल्ली के एक पार्क में सैर करने गयी थी, दो लोग मेरे पास आये, मुझे पकड़ना चाहा और मैं चिल्लाई और भाग खड़ी हुई. तब मुझे लगा कि अब मैं वुमन बन चुकी हूं और आस-पास कुछ गलत है, मैं आजाद घूम नहीं सकती.

मैंने अपने आप को तो बचा लिया, पर मेरी मासूमियत खो चुकी थी. इससे पहले मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं था. मैंने अपनी पढाई देहरादून के एक ऐसे स्कूल में की थी जहां लड़के और लड़कियों को समान समझा जाता था. परिवार में भी वही माहौल था. लेकिन इस घटना के बाद मैं सतर्क हो चुकी थी.

इसका शीर्षक ऐसा क्यों है? क्या ये किसी खास समुदाय से सम्बन्ध रखती है?

ये शीर्षक सांकेतिक है, जिसमें दिखाया गया है कि आप महिला को दबाने की कितनी भी कोशिश करें, उनके अंदर जो चाहत है वह कभी नहीं मरती. उनके जो सपने है उन्हें दबाया नहीं जा सकता. ये केवल एक समुदाय नहीं, सभी समुदाय की महिलाओं को लेकर बनाया गया है.

असल में हमारे समाज में जो महिलाओं के लिए जो भूमिका निर्धारित की गयी है, जिसमें वह केवल एक बेटी, पत्नी, मां या सास बनकर ही खुश है, ये पुरुषों की गलत सोच है. उसमें वे खुश नहीं, वे उससे निकल कर निश्चय ही कुछ और चाहती है.

उन्हें अपने लाइफ के किसी निर्णय को लेने की चाहत, अपने शरीर की चाहत जो उनकी अपनी है, ऐसे किसी भी बात को दबाया नहीं जा सकता. उसे ही दिखाने की कोशिश की गयी है. पुरुष प्रधान समाज में किसी महिला को अपने मन के भाव कहने का हक नहीं होता. पहले महिलाओं को जानकारी कम थी, अब सभी लोग इस नए माहौल में जीना चाहते हैं.

इस फिल्म को विदेशों में इतने अवॉर्ड मिल रहे हैं, यहां क्या समस्या है?

‘सेन्सर बोर्ड’ ने खुद ही कह दिया है कि ये ‘लेडी ओरिएंटेड’ फिल्म है. उनके हिसाब से पुरुष प्रधान मानसिकता में इस फिल्म की कोई अहमियत नहीं है. सेंसर बोर्ड जो सर्टिफाई करते हैं, उनका रवैया अशिक्षित लोगों के जैसा है. आज के समय से हिसाब से वे बात नहीं करते. वे इसे एक राजनीति का रूप देते हैं.

फिल्मों में सेक्स तो बहुत होते हैं, लेकिन वे सभी पुरुषों को संतुष्ट करने के हिसाब से होता है. जैसे कि आइटम सॉन्ग, डबल मीनिंग जोक्स या संवाद. लेकिन एक महिला अगर कहानी अपने नजरिये से कहना चाहे तो उसे दिखाने की इजाजत नहीं देते, क्योंकि ये सब उन पुरुषों को ‘अनकम्फर्टेबल’ बनाता है और वे सर्टिफिकेशन करने से घबराते हैं. अभी तो फिल्म कोर्ट में गयी है और मैं कोशिश कर रही हूं कि ये ‘पास’ हो जाय.

क्या महिला निर्देशक को पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में काम करना मुश्किल होता है?

कठिन अवश्य है और अगर विषय अलग हो तो और भी अधिक मुश्किल होती है. मुझे पता है कि मेरा रास्ता भी कठिन है, पर मैंने इसे खुद चुना है, जो भी कहानी मुझे प्रेरित करेगी, मैं उसे अवश्य करुंगी, अंत तक लडूंगी. मुझे अपनी बात कहनी ही है.

ऐसे में महिलाएं आजाद है, कहना गलत होगा क्या? कौन अधिक जिम्मेदार है, परिवार समाज या धर्म?

सौ प्रतिशत, महिलाएं आजाद नहीं हैं. ज्योंही वे आगे बढ़ना चाहती हैं, लोग उन्हें दबा देते है. हर देश, हर समुदाय में महिलाएं अलग-अलग ढंग से प्रताड़ित की जाती हैं. जिम्मेदार सभी हैं, लेकिन परिवार सबसे पहले आता है. माता-पिता अपने बेटी को पहले समझें. इसके अलावा हर एक महिला दूसरी महिला को किसी न किसी रूप में घर में या बाहर में सहयोग करें ये जरुरी है.

रियल लाइफ में आप कैसी हैं?

मैं किताबें खूब पढ़ती हूं. जिसमें महिला लेखिका खास होती हैं, इसके अलावा दोस्तों के साथ रहना पसंद करती हूं.

गृहशोभा के पाठकों को क्या संदेश देना चाहती हैं?

मैं महिलाओं से कहना चाहती हूं कि आप अपनी इच्छाओं को दबाएं नहीं, बल्कि खुलकर कहें. किसी भी प्रताड़ना का मुकाबला करें. इसमें दूसरी महिलाएं भी उनका साथ दें.

टेलीविजन जगत की सबसे हॉट अभिनेत्रियां

साल 2016 में आई सबसे सेक्सी एशियन विमिन की लिस्ट में टीवी ऐक्ट्रेस निया शर्मा ने तीसरा स्थान हासिल किया था. कटरीना कैफ समेत कई बॉलिवुड अभिनेत्रियां इस लिस्ट में निया शर्मा से पीछे थीं. निया की ही तरह कई और टीवी अभिनेत्रियां हैं जो ऑन स्क्रीन भले ही बेहद सिंपल किरदार निभा रही हों लेकिन ऑफ स्क्रीन बेहद सेक्सी हैं जिसका प्रमाण मिलता है उनके सोशल मीडिया अकाउंट से. टीवी की इन हॉट और सेक्सी ऐक्ट्रेसेज पर डालते हैं एक नजर.

करिश्मा शर्मा

स्टार प्लस के शो ये है मोहब्बतें में नेगेटिव किरदार निभा चुकीं करिश्मा शर्मा इन दिनों टीवी की सबसे सेक्सी ऐक्ट्रेस बनती जा रही हैं. करिश्मा के इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की गई बेहद सेक्सी और सेन्शुअस तस्वीरें इस बात का दावा भी कर रही हैं.

करिश्मा तन्ना

करिश्मा शर्मा के बाद बात करिश्मा तन्ना की जो बिग बॉस 8 में आने के बाद से टीवी की सबसे पॉप्युलर अभिनेत्री बन गई हैं. करिश्मा अब बॉलिवुड में एंट्री की तैयारी कर रही हैं. दरअसल, करिश्मा संजय दत्त की बायॉपिक में नजर आएंगी जिसमें रणबीर कपूर, संजय दत्त की भूमिका निभा रहे हैं.

शमा सिकंदर

शमा सिकंदर, विक्रम भट्ट की इरॉटिक वेब सीरीज ‘माया’ में अपने बोल्ड अवतार से लाइमलाइट में आयीं. हालांकि इस वेब सीरीज से पहले टीवी पर शमा, बाल वीर और ये मेरी लाइफ है जैसे सीरियल्स में सिंपल किरदार निभा चुकी हैं.

रूबीना दिलैक

टीवी पर सीरियल छोटी बहू से अपने करियर की शुरुआत करने वाली रूबीना इन दिनों कलर्स पर आने वाले शो शक्ति अस्तित्व के अहसास की में किन्नर का किरदार निभा रही हैं. वैसे तो वह शो में ज्यादातर वक्त साड़ी में नजर आती हैं लेकिन निजी जिंदगी में रूबीना किसी दीवा से कम नहीं हैं.

रोशनी चोपड़ा

एक बच्चे के जन्म के बाद भी रोशनी चोपड़ा का सेक्सी अवतार नहीं बदला है. कई टीवी शोज में अदाकारी कर चुकीं रोशनी खुद भी एक फैशन डिजाइनर हैं.

मॉनी रॉय

कलर्स चैनल के सीरियल नागिन में लीड किरदार निभाने वाली टीवी ऐक्ट्रेस मॉनी रॉय भी अपने हॉट और सेक्सी अवतार के लिए जानी जाती हैं. मॉनी भी सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव हैं और अपनी सेक्सी तस्वीरें पोस्ट करती रहती हैं.

मनमोहक दक्षिण कोरिया

मैंने मुंबई से दक्षिण कोरिया के लिए प्रस्थान किया और इंचिओन एयरपोर्ट पर पहुंच गई. एयरपोर्ट के बाहर सेना के सैकड़ों फौजियों को देख कर स्तब्ध रह गई. मैं ने सोचा, यहां युद्ध तो नहीं छिड़ने वाला. किंतु शीघ्र ही मुझे पता चला कि इधर अमेरिका के फौजी तैनात रहते हैं क्योंकि यह देश अमेरिका द्वारा सुरक्षित आरक्षित है.

सेना का हर सैनिक बंदूक लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दुकान में गुड्डे सजा कर रख दिए गए हों. एयरपोर्ट से बस ले कर मैं गंतव्य स्थल डेजोन के लिए चल पड़ी. यहां बहुत ही आकर्षक बसें हैं जो हीटिंग, एयरकंडीशनर की सुविधाओं से लैस हैं. सीटें बहुत ही गद्दीदार और पूरी तरह खुलने वाली आरामदायक हैं. सब देख मन गदगद हो गया और इंचिओन से डेजोन का 3 घंटे का सफर इतना सुविधाजनक था कि मालूम ही नहीं पड़ा.

साफ और काफी चौड़ी सड़कें दिखीं. खास बात यह कि हाईवे पर जो लेन बसों के लिए बनी है और जो लेन कारों के लिए बनी है, उन पर सिर्फ उसी तरह के वाहन चल रहे थे, फिर चाहे कोई लेन खाली ही क्यों न हो. यहां प्रदूषण नाममात्र को भी नहीं दिखाई दिया.

गंतव्य पर पहुंची तो मालूम पड़ा 2 दिनों बाद यहां की एक मैगजीन वाले साक्षात्कार लेने के लिए आने वाले हैं. वे लोग आए और उन्होंने भारतीय संस्कृति के बारे में पूछा कि भारत के लोग कैसे कपड़े पहनते हैं, और क्या खाना बनाते हैं? मैं ने उन्हें साड़ी पहन कर व सलवार सूट आदि दिखाए, चपाती बना कर दिखाई. जैसे ही चपाती फूली, वे आश्चर्यचकित रह गए. थाली में कैसे परोसा जाता है और अतिथिसत्कार कैसे किया जाता है आदि के बारे में अनेक बातें बताईं.

भारत की विविध भाषाओं के बारे में बताया तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ. साथ ही, मैं ने बताया कि भारत में इतनी भाषाओं के बावजूद आपस में, व्यवहार में हिंदी या अंगरेजी से काम चलता है.

कोरिया में तो ज्यादातर एक ही भाषा कोरियन बोली जाती है, इसलिए वे समझ नहीं पा रहे थे. मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेज में भी कोरियाई भाषा ही शिक्षा का माध्यम है. लेकिन मिडिल स्कूल से अंगरेजी साथ में पढ़ना अनिवार्य होता है. पर उन का उच्चारण थोड़ा अमेरिकन होता है.

कोरिया में पढ़ेलिखे लोग अंगरेजी समझ जाते हैं किंतु जनसामान्य कोरियन भाषा ही समझ पाते हैं. इस बात का मुझे तब अनुभव हुआ जब एक बार हम लोग यहां के डाउनटाउन में गए और उधर मुझे शौच जाना था. कई लोगों से पूछा कि इधर आसपास रैस्टरूम कहां है, टौयलेट कहां है, बाथरूम कहां है? पर कोई नहीं बता पा रहा था. उन्हें इशारे से, चित्र बना कर भी बताने की कोशिश की किंतु निराशा ही हाथ लगी.

लेकिन अचानक हम लोगों को टौयलेट दिख गया तो राहत मिली. उसी क्षण सोचा कि आज ही घर पहुंच कर सब से पहले इस का कोरियन शब्द इंटरनैट पर ढूंढेंगे, साथ ही दैनिक प्रयोग के कुछ कुछ अन्य शब्द भी. दूसरे ही दिन कुछ आवश्यक शब्द याद कर लिए और फिर उन लोगों से बात करने में सहूलियत हो गई.

डेजोन में, भारतीय लोगों का मिलनसार समुदाय है. वे लोग एकत्रित हो कर भारतीय त्योहारों को बड़े उल्लास से मनाते हैं, खासकर 15 अगस्त पर ध्वजारोहण करना, होली दीवाली मनाना व आसपास के स्थानों पर पिकनिक पर जाना. एक बार हम सब लोग जिरिसिंग गए, जहां बरसात के दिनों में बड़ा ही आकर्षक दृश्य देखने को मिला.

पहाड़ों से झरने गिर रहे थे और ऐसा लगता था बादल जैसे पहाड़ पर ही रखे हैं. चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी. एक तरफ ऊंचे पहाड़ तो दूसरी तरफ गहरी खाड़ी और रास्ता बेहद घुमावदार. रास्ते में अनेक कोरियन मंदिर, मठ और महल देखने को मिले. हम लोग मठ के मोंक से भी मिले, उन की दिनचर्या के बारे में पूछा, वे लोग लकड़ी के तख्ते या लकड़ी के फ्लोर पर कपड़ा बिछा कर सोते हैं.

उन्होंने बताया कि मोंक मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के हो सकते हैं. इस बात का कोई प्रतिबंध नहीं है कि सिर्फ शाकाहारी ही खाएं. रास्ते में कई गांव दिखे. गांव और शहरों की स्वच्छता व चौड़ी सड़कों के होने में फर्क नहीं दिखता.

यहां ज्यादातर लोग तो बौद्ध धर्म को मानते हैं, ईसाई धर्म का प्रचार भी बहुतायत से फैला हुआ है. पर आधे से अधिक लोग ऐसे हैं जो किसी भी धर्र्म को नहीं मानते.

कोरिया में एक और अजीब बात देखने को मिली. यहां सैमसियोंग डोंग और कई जगहों पर तो हर बिल्डिंग के नीचे रैस्टोरैंट्स हैं जिन्हें ज्यादातर महिलाएं ही चलाती हैं. कोरियाई लोगों का मुख्य भोजन मांसाहार ही है. ताजी मछली को उबलते पानी में काट कर डालते या भूनते हैं और उन्हें सौस के साथ खाते हैं.

बीफ, पिग, मछली व अन्य किसी भी जानवर का मांस खाते हैं, जैसे औक्टोपस. कुछ छोटे जानवर तो वे जिंदा खाते हैं. इधर चावल कुछ अलग तरह का मिलता है, बनने के बाद चिपका हुआ सा होता है. पर उस से ये लोग अनेक स्वादिष्ठ पकवान बना कर खाते हैं.

कोरिया में, विदेश से आए शाकाहारी लोगों के लिए भोजन करना थोड़ा मुश्किल तो होता है, पर जिम्बाप, गिम्बाप (चावल सूप और नूडल्स का मिश्रण) और सलाद में तरहतरह के पत्ते खाने के लिए मिल जाते हैं.

आजकल तो जगह जगह इंडियन रैस्टोरैंट भी खुल गए हैं पर वे काफी महंगे हैं. कोरियन ट्रेडिशनल रैस्टोरैंट में तो जमीन पर गद्दी डाल कर बैठते हैं और छोटे स्टूल, मेज पर भोजन रख कर खाते हैं. यहां के लोग अनेक प्रकार के पत्ते खाते हैं और विशेष कर कद्दू का सूप पीते हैं.

कोरियंस अपने स्वास्थ्य का बहुत ही ध्यान रखते हैं. वे बहुत व्यायाम करते हैं और बिना तला, बिना मसाले का भोजन करते हैं. इन लोगों की पोशाक अलग तरह की होती है जिसे ‘हंबोक’ कहते हैं.

‘ब्रेनपूल’ में चयनित लोगों का, यहां की सरकार की तरफ से, प्रतिवर्ष टूर होता है. जिस में इन चयनित लोगों को कोरिया के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में, जो उन की संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, ले जाया जाता है. हम लोग भी इस टूर में गए थे.

अति खास मठों को, गांवों को दिखाया गया. उन की संस्कृति के अनुसार भोजन कराया गया. इन के लकड़ी के मठों की छतों का आकार आगे की तरफ झुकावदार होता है. उस पर सुंदर कारीगरी व खुदाई कर के विविध रंग भरे होते हैं. कुछ मठ तो बहुत ही ऊंचे पहाड़ों पर होते हैं, हम उधर भी गए.

‘उल्सान’ और ‘पोहांग’ में शिपिंग कंपनी और कार कंपनी हैं. ये लोग शिप व कार कैसे बनाते हैं, दिखाया. ये लोग ‘हुंडई’ तथा ‘किया’ कार, मोटर्स बनाते हैं. काफी मात्रा में मोटर्स, कारों व शिपों का निर्यात भी करते हैं.

उन लोगों ने, सम्मान में एक छोटी सी टौय मौडल कार भेंट भी की, जो हम लोगों को आज भी उन सुखद क्षणों की याद दिलाती है. हम लोग समूह में थे, सब ने मिल कर उन पलों का भरपूर आनंद उठाया.

आसपास के गांवों में छोटे छोटे टीले भी देखे, जिन का प्रारंभ में तो मतलब समझ में नहीं आया, बाद में पता चला कि मरने के बाद ये शरीर को जमीन के अंदर गाड़ देते हैं, और फिर ऊपर टीला सा बना देते हैं. जो जितना धनवान होता है उस का टीला उतना ऊंचा होता है. शाही लोगों के गहनेकपड़े आदि भी उसी में सुरक्षित रख देते हैं. गाड़ते समय मुर्दे का पैर जापान की तरफ कर के रखा जाता है. ये लोग जापानियों से बहुत डरते हैं क्योंकि उन्होंने कई बार कोरिया पर राज किया.

आज यह देश ओलिंपिक खेलों की प्रतिस्पर्धाओं में श्रेष्ठ स्थान रखता है. बचपन से ही बच्चों को तरह तरह की ट्रेनिंग्स दी जाती हैं. यहां की फुटबौल टीम विश्वविख्यात है. तैराकी और निशानेबाजी में कोरियंस सराहनीय स्थान प्राप्त करते हैं. व्यापारिक दृष्टि से भी ये किसी से पीछे नहीं हैं. दक्षिण कोरिया के लोगों ने अपने अथक परिश्रम से विश्व में अपनी साख बना ली है.

9 राज्यों और 5 प्रमुख शहरों वाला यह देश विकास की चरम सीमा पर है. सियोल, डेजोन, इंचिओन, बूसान कहीं भी जाइए, एक से बढ़ कर एक सुंदर शहर बसे हुए हैं.

जब हम लोग बूसान गए तो वहां समुद्र पर 4-5 मील लंबा पुल, रंगबिरंगी लाइट से जगमगाते हुए देखा. खास बात यह थी कि इस में एक लेयर में बसें, दूसरे पर कारें और तीसरे पर ट्रेन की आवाजाही चल रही थी.

सियोल में तो अनेक गगनचुंबी इमारतें, रंगबिरंगी लाइट से प्रकाशित अनेक महल जैसे स्थान देखे.

सियोल में कई कंपनियों के कार्यालय हैं, विधानसभा भी यहीं है. यह दक्षिण कोरिया की राजधानी है. सियोल के इतेवान में भारतीय लोगों की जरूरत का सामान भी मिल जाता है. इधर कई भारतीय रैस्टोरैंट भी हैं.

इंचिओन में तो अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट भी बना हुआ है. यह 3 तरफ से घिरा हुआ टापू है. ऐसा लगता है जैसे प्लेन समुद्र में उतर रहा हो. एयरपोर्ट से बाहर आतेजाते समय तो समुद्र पर बने एक बहुत ही लंबे पुल से हो कर जाना पड़ता है.

डेजोन के तो कहने ही क्या, यहां अनेक अनुसंधान करने वाली संस्थाएं हैं, जैसे कोरिया एटौमिक एनर्जी अनुसंधान आदि. अनेक शैक्षणिक संस्थान हैं, जैसे चुनगधाम यूनिवर्सिटी. सैमसंग और एलजी जैसी प्रसिद्ध कई कंपनियों के कार्यालय हैं. बच्चों के लिए यहां साइंस सैंटर, एक्सपो पार्क और वर्ल्ड कप स्टेडियम ‘ओ वर्ल्ड’ भी है.

हम लोगों को एक और बहुत अच्छा अनुभव मिला, जब हम लोग जेजू आइलैंड गए. उधर पनडुब्बी में जाने का सुनहरा अवसर मिला. जेजू आइलैंड जाने के लिए मात्र हवाईमार्ग ही है. यह चारों तरफ समुद्र से घिरा हुआ है. यहां का मौसम सदा ही बहुत अच्छा, घूमनेफिरने लायक होता है. संतरे बहुतायत से पैदा होते हैं. एकदो भारतीय खाने के रैस्टोरैंट भी हैं.

जिंजू शहर जाने का अवसर भी अविस्मरणीय है. यहां एक नदी है, उस के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि एक जापानी सेना औफिसर ने किसी कोरियन लड़की को बंदी बना रखा था. जब वह उस लड़की के साथ इस नदी में नाव पर घूमने आया तो उस लड़की ने जैसे ही गहरा पानी देखा, मौका पा कर उस मेजर को बोट से धक्का दे कर नीचे गिरा दिया और वह बच गई.

कोरिया का इतिहास बहुत रोचक है. यहां भी बौद्धिज्म भारत से ही आया है. कोरिया पर जापानी पाइरेट्स ने करीब 529 बार समुद्रमार्ग से आक्रमण किया. अमेरिकी सुरक्षा में आने के बाद से कोरियन लोगों ने अपनी अथक मेहनत से देश को बहुत ही सुंदर बना लिया है.

यहां जनता के लिए सामान्य यातायात की बसें भी बड़ी आरामदायक हैं. बस का चालक, बस में प्रवेश करते समय आप का अभिवादन करेगा. सब से बड़ी बात तो यह है कि हर बसस्टौप पर डिस्प्ले बोर्ड लगा हुआ है जिस में सदैव ही दिखता रहता है कि अभी बस कौन से स्टौप पर पहुंची है और आप के स्टौप तक कितने देर में पहुंचेगी.

अपाहिज लोगों के लिए बसचालक एक बोर्ड खोल कर नीचा कर देता है, फिर उन की व्हीलचेयर वह स्वयं उतर कर एक सीट से लौक कर देता है. पैसे की अदायगी के लिए बसचालक की साइड में एक बौक्स लगा होता है. उसी में सब लोग पैसे डाल देते हैं और कार्ड डिस्प्ले का बोर्ड लगा होता है. जिसे कार्ड से पैसा देना होता है वह उस बोर्ड पर कार्ड रख देता है और उस के अकाउंट से पैसा कट जाता है. बसकंडक्टर की जरूरत ही नहीं होती, सब लोग ईमानदारी से पैसे देते हैं. अदायगी में कुछ गड़बड़ या प्रौब्लम हो तो चालक को तुरंत मालूम हो जाता है.

दक्षिण कोरिया के लोग मजबूत बिल्डिंग्स और पुल आदि बनाने में महारत रखते हैं. भव्य इमारतें और लंबे, मजबूत पुल कुछ ही महीनों में बना देते हैं. फ्लोर के नीचे ऐसे पाइप बिछाते हैं जिन में गरम पानी प्रवाहित कर घर को ठंड के दिनों में गरम कर सकें. इस माध्यम से वे घर के तापमान पर नियंत्रण रखते हैं. फ्लोर के नीचे से घर गरम करना, यह इन का एक अनोखा और अच्छा तरीका है.

यहां जगह जगह पदयात्रियों के चलने के लिए कोर्क या रबर के फुटपाथ बने हुए हैं ताकि वे सुविधापूर्वक उन पर चल सकें.

कोरियन लोग अपने देश में आए विदेशियों की विशेषतौर से काफी मदद, अपनी समझ के अनुसार करते हैं. मिस्टर लिम नेरे ने भी हम लोगों की हमेशा ही बहुत मदद की. ऐसे कई लोग अकसर इधर मिल जाते हैं.

यहां एक किस्सा आप को बताना चाहूंगी, एक भारतीय था. उसे कहीं जाना था पर उसे मालूम नहीं पड़ रहा था कैसे जाएं. उस के पास खड़े हुए व्यक्ति ने टूटीफूटी भाषा में पूछा, किधर जाना है? फिर वह व्यक्ति बोला, अगर कल सुबह 9 बजे आप इधर खड़े हुए मिले, तो मैं आप को कार से पहुंचा दूंगा. भारतीय व्यक्ति ने सोचा, चलो, आजमा कर देखते हैं कितना सच बोल रहा है. दूसरे दिन 9 बजे वह नियत स्थान पर खड़ा हो गया और ठीक उसी समय वह कोरियन व्यक्ति कार से आया और उसे उस के गंतव्य स्थल तक छोड़ कर आया.

दक्षिण कोरिया की कुछ बातें और परंपराएं भारत से मिलतीजुलती हैं. भारत में 15 अगस्त के दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है. वैसे ही इधर भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. इन लोगों को भी 15 अगस्त के दिन ही पूर्ण स्वतंत्रता मिली थी.

नवंबर माह से तो दक्षिण कोरिया में सड़कों पर बर्फ की चादर सी तन जाती है. पेड़ों पर सिर्फ लकडि़यां रह जाती हैं, उन पर हर डाल पर बर्फ छाई हुई दिखाई देती है. सड़क, फुटपाथ सब के सब बर्फ से आच्छादित होते हैं. बच्चे बर्फ से इग्लू, गुड्डेगुडि़या और स्नोमैन बनाते हैं, बर्फ पर खेलते हैं, स्कैटिंग करते हैं. नदियां बर्फ की चादर जैसी सड़क हो जाती हैं. तापमान 20 से 25 डिगरी तक चला जाता है. इस से भी सब लोग खूब एंजौय करते हैं. इस प्रकार की ठंड नवंबर से अप्रैल तक रहती है.

स्प्रिंग यानी वसंत का मौसम मार्च के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाता है. चैरी ब्लौसम आदि के सुंदर सुंदर, रंगबिरंगे फूल शहर की सुंदरता बढ़ाने लगते हैं. जब पेड़ ठूंठ से होते हैं तब शहर की सारी ऐक्टिविटीज साफ साफ दिखती हैं पर जब हरे हरे पत्ते छा जाते हैं, दूर का दृश्य नहीं दिखता. तब ऐसा लगता है पेड़ कह रहा हो कि अब सब मेरी हरियाली ही देखो. कहां औटम यानी पतझड़ के दौरान पेड़ों पर एक भी पत्ता नहीं, सब के सब ठूंठ और कहां हरियाली का यह आलम.

सुंदरतम दृश्यों को अपने में समेटे यह देश अति सुंदर है. अगर भाषा की समस्या न हो तो यह देश और ज्यादा तरक्की कर सकता है. उत्तरी कोरिया उग्रवादी है, किंतु दक्षिण कोरिया एकदम शांतिप्रिय है. यह पूर्वजों की धरोहर को अच्छी तरह से संभाले हुए है. यहां के पर्यटन स्थल साफ और सुरक्षित है. यहां के निवासियों को मानवतापूर्ण व्यवहार करना अच्छी तरह से आता है. ऐसे देश को मेरा सलाम.

जब घर पर आएं मेहमान तो कैसे करें मेहमाननवाजी

वैलकम रूम के इंटीरियर में कुछ बातों का ध्यान रखकर डिफरेंट एण्ड स्टाइलिश लुक दिया जा सकता है. गेस्ट रूम को बेस्ट रूम बनाने के लिए मेहमानों के आने से पहले उनकी खातिरदारी की तैयारी शुरू कर दीजिए और अपनी इस मुलाकात को यादगार बनाने की हर मुमकिन कोशिश कीजिए.

गेस्ट रूम के रंग

गेस्ट रूम में हमेशा हल्के रंगों का प्रयोग करें, जैसे ऑफ व्हाइट, क्रीम, लाइट ब्ल्यू आदि. हल्के रंग आंखों को सुकून पहुंचाने वाले होते है. इसके साथ ही कमरे को आकर्षक लुक देने के लिए कमरे की चादरें और पर्दों के रंग मिलते-जुलते ही सिलेक्ट करें.

गेस्ट रूम को स्टोर रूम न बनाए

कुछ लोग गेस्ट रूम को स्टोरेज रूम में भी बदल देते हैं. इसलिए गेस्ट रूम में घर की कोई भी पुरानी चीज या फिर बेकार पडे सामान को ना रखें. इससे घर के इस हिस्से में ठहरने वाले मेहमान को परेशानी हो सकती है.

अलमेरा

गेस्ट रूम में कपडों और दूसरे सामान को रखने के लिए एक अलमारी जरूर रखें. इससे आपके मेहमानों का सामान भी कमरे में बिखरा नहीं रहेगा.

फर्नीचर

कमरे में फर्नीचर बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए. इससे गेस्ट को चलने फिरने में आसानी होगी.

कूडे दान

कमरे में कचरा रखने के लिए छोटा-सा कूडे दान जरूर रखें. इससे कचरा कमरे में नहीं फैलेगा और आपका गेस्ट रूम भी साफ रहेगा.

पुस्तक व पत्रिकाएं

आप चाहें तो गेस्ट रूम में साइड टेबल पर कुछ पुस्तक व पत्रिकाएं भी रख सकते हैं. इससे अच्छा इम्प्रेशन पड़ता है और आपके मेहमानों का मनोरंजन भी हो जाएगा.

फिल्म रिव्यू : मातृ-द मदर

मां आखिर मां ही होती है, उसकी जगह शायद कोई नहीं ले सकता. और अगर उसे अपनी बेटी को एक हादसे की वजह से खोना पड़े, तो शायद वह किसी भी हद तक जा सकती है. ऐसी ही संवेदनशील विषय पर आधारित फिल्म मातृ-द मदर एक ‘रेप रिवेंज थ्रिलर’ फिल्म है. जिसे रेप की राजधानी दिल्ली से प्रेरित होकर बनाया गया है. इसके निर्देशक अश्तर सईद है.

फिल्म में मुख्य भूमिका अभिनेत्री रवीना टंडन ने निभाया है. पूरी फिल्म में रवीना शुरू से लेकर अंत तक छाई रहीं. उनके साथ एक हादसा हो जाने के बाद किस तरह वह अपने आप को सम्हालती है और कैसे पति का सहयोग न होने के बावजूद बदला लेती है, उसे बहुत ही बारीकी से दर्शाया है. यह फिल्म पुरुष मानसिकता की ओर भी इशारा करती है, जो हर समस्या का जिम्मेदार महिला को ही मानता है. पूरी फिल्म में रवीना के इस मानसिक आघात को जिसमें गुस्सा, दुःख, दर्द, आंसू आदि सभी भाव को बहुत ही सरीके से दिखया गया है.

रवीना की अब तक की सभी फिल्मों में शायद ये एक अलग और खास फिल्म है. जिसे सजीव करने के लिए उन्होंने खूब मेहनत की है. फिल्म के सभी पात्र किसी न किसी रूप में कहानी को सपोर्ट करते हुए दिखे. खासकर उनकी सहेली की भूमिका निभा रही दिव्या जगदाले ने खूब अभिनय किया है.

कहानी

दिल्ली में रहने वाली विद्या चौहान (रवीना टंडन) एक स्कूल टीचर है, जिसकी एक टीनएजर बेटी टिया (अलीशा खान) है. स्कूल में वार्षिक उत्सव होता है, जिसका उद्घाटन मुख्य मंत्री गोवर्धन मलिक (शैलेन्द्र गोयल) करता है और टिया को बेहतरीन प्रदर्शन के लिए अवॉर्ड देता है. जहां उसका बेटा अपनी दोस्तों के साथ दर्शकों के बीच में होता है. स्कूल के वार्षिक उत्सव खत्म होने के बाद आनंदित टिया और उसकी  मां गाड़ी से घर लौट रहे होते हैं, वे सड़क जाम में फंस कर रास्ता बदल लेते हैं. ऐसे में मुख्य मंत्री का बेटा अपूर्वा मलिक (मधुर मित्तल) अपने दोस्तों के साथ उनका पीछा करता है.

गलत, अनजान रास्ता और इन लड़कों को देखकर विद्या घबरा जाती है और एक दुर्घटना की शिकार हो जाती है. ऐसे में वे लड़के उन्हें उठाकर ले जाते हैं और गैंग रेप होता है. जिसमें टिया का मर्डर भी हो जाता है. सभी लड़के उन्हें लेकर मरा हुआ समझ कर सुनसान जगह पर फेंक देते हैं, लेकिन विद्या बच जाती है. उसका पति रवि चौहान (रुशद राणा) उसे ही दोषी मान उसे छोड़ देता है.

विद्या अपनी सहेली का सहारा लेती है. उसकी सहेली और विद्या कानून का सहारा लेकर अपराधी को सजा देने की कोशिश करते है, पर मुख्या मंत्री का बेटा होने की वजह से वह भी पीछे हट जाता है. ऐसे में विद्या खुद बदला ऐसे लेती है कि पुलिस जानकर भी उसे पकड़ नहीं पाती. इस तरह कहानी काफी उतार चढ़ाव के बाद अंजाम तक पहुंचती है.

शुरुआत में फिल्म की रफ्तार कुछ धीमी थी, बाद में अच्छी लगी. विलेन के किरदार में अपूर्वा मलिक ने अच्छा अभिनय किया है. फिल्मो में गाने कुछ खास नहीं हैं, क्योंकि उसकी कोई जरुरत भी नहीं थी. निर्देशक फिल्म की स्क्रिप्ट को थोड़ी और ‘क्रिस्पी’ बनाते तो शायद ये और अच्छी फिल्म बन सकती थी. बहरहाल रवीना को इस ‘स्ट्रॉन्ग’ भूमिका में देखा जा सकता है. इसे ‘थ्री स्टार’ दिया जा सकता है.

फिल्मों में ये सीन करने से डरते हैं आमिर

बॉलीवुड में ऐसे कई सितारे हैं जो फिल्मों में अपनी शर्त पर ही काम करते हैं और उसके आगे वो किसी की नहीं सुनते. किसी सितारे का नो किस क्लॉज होता है तो किसी का कुछ. कई बार इन सितारों के आगे निर्माता-निर्देशक को झुकना पड़ता है और उनकी शर्तों को मानना भी पड़ता है.

इन्हीं सितारों में से एक सितारा आमिर खान भी हैं. आमिर दो दशक से भी ज्यादा लंबे समय से फिल्म इंडस्ट्री में हैं. बॉलीवुड में 100, 200 और 300 करोड़ क्लब की शुरूआत करने का श्रेय आमिर को ही जाता है. लेकिन एक चीज है जिससे आमिर को बहुत डर लगता है और झिझक होती है. वह कभी इस चीज को अपने फिल्म में नहीं करना चाहते हैं.

आमिर ने आज तक अपनी हर फिल्म में इस चीज से परहेज किया है. और जब भी वो कोई फिल्म साइन करते हैं तो इस बात का जरूर ख्याल रखते हैं कि अपनी शर्त फिल्म निर्देशक और निर्माता को पहले ही बता देते हैं.

दरअसल आमिर अपनी किसी भी फिल्म में लो एंगिल शॉट नहीं रखते और इस बारे में वो फिल्ममेकर को पहले ही बता देते हैं.

यहां तक कि उन्होंने निर्देशकों को खास हिदायत दे रखी है कि उन्हें कभी भी लो एंगिल में ना शूट किया जाए. हम आपको बता दें की लो एंगिल शॉट वो शॉट है जिसमें कैमरे के एक खास एंगिल के जरिए कलाकार को लंबा या ज्यादा प्रभावशाली दिखाया जाता है.

आमिर को लो एंगिल शॉट बिल्कुल भी पसंद नहीं है. अगर गौर किया जाए तो उनके अब तक के करियर में किसी भी फिल्म में आमिर का लो एंगिल शॉट देखने को नहीं मिलता.

ताज्जुब की बात है कि जिस एक्टर को फिल्म के लिए बोल्ड सीन से लेकर किस सीन करने में कोई एतराज नहीं उसे लो एंगिल शॉट से इस कदर झिझक होती है.

आपके लिए हैं ये बिजनेस आइडिया

आपके अगल-बगल ऐसी तमाम महिलाएं होती हैं जो अपने जीवन में एक तरफ जहां घर संभालती हैं तो दूसरी ओर अपना बिजनेस या ऑफिस का काम करती हैं. क्या आप भी अपना खुद का छोटा सा बिजनेस शुरु करना चाहती हैं, पर अन्य महिलाओं की तरह आपको भी ये समझ नहीं आता कि आप इसकी शुरुआत कैसे करेंगी.

यहां हम आपको बताएंगे कि महिलाएं अपने लिए छोटा बिजनेस कैसे शुरु कर सकती हैं? आप एक अच्छा आंत्रपेन्योर बन कर आसानी से घर से काम कर सकती हैं. इसकी शुरूआत बड़े कारोबार से नहीं बल्कि छोटे काम से भी की जा सकती है. नीचे हम आपको ऐसे ही कुछ विकल्पों के बारे में बता रहे हैं.

बुटीक

आमतौर पर भारतीय घरों में लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई का हुनर सिखाया जाता है. हालांकि शहर में बुटीकों की कमी नहीं है. लेकिन दूसरों से अलग दिखने के लिए आप आपकी बुटीक की ओर रुख कर सकती हैं.

ब्यूटी पार्लर

इस काम को शुरू करने के लिए इसे अच्छे से सीखना बहुत ज़रूरी है. यदि पैसों कि कमी के कारण आप पार्लर नहीं खोल सकती तो आप होम सर्विस दे सकती हैं. शादी के सीजन में पार्लर का काम करने वालों की अच्छी कमाई हो जाती है.

फिटनेस सेंटर, जैसे जिम या योग

यह काम बिना निवेश के नहीं खोला जा सकता. इस व्यस्त जीवन में फिट रहने के लिए जिम जाना, योग करना या कसरत करना बहुत अहम हो गया है. यदि आप स्वयं योग या एरोबिक्स ट्रेनर हैं तब क्लास संभालना आपके लिए आसान होगा. ड़ायट की जानकारी सही सलाह देने में काम आएगी.

कंसल्टेंसी

आपका तजुर्बा और आपके कॉन्टेक्टस आपको इस फील्ड में खड़ा कर सकते हैं. आज का सर्विस सेक्टर पहले से बहुत बदल गया है. हर सेक्टर की अपनी जरूरते और काम करने का ठंग है. यदि आप सही पद पर सही व्यक्ति का चुनाव करने में सक्षम है. तब आप इस कैरियर विकल्प के साथ आगे बढ़ सकती हैं.

ऑनलाइन व्यापार

इस विकल्प ने खरीद-बेच के कई द्वार खोल दिए हैं. यदि आप छोटा-मोटा व्यापार करती हैं तो ऑनलाइन उसे बड़ा बना सकता है. ऑनलाइन पर आप हस्तशिल्प वस्तुओं भी बेच सकते हैं. यदि आप फ्रीलान्सिंग के बारे में सोच रही हैं, तब लेखन, ग्राफिक डिजाइनिंग, लेखांकन, वर्चूअल असिस्टन्ट व अनुवादक का अनुभव आपके काम आ सकता है. इसके लिए आपको सही फ्रीलान्सिंग वेबसाइट या एजेंसी से संपर्क करना होगा.

रेस्टोरेंट

क्या मेहमाननवाजी के दौरान आपके खाने की तारीफ होती है? क्या लोग आपके खाने की रेसपी मांगते हैं? अगर आपके हाथों में ये जादू है तो आप एक रेस्तोरां या कैफे की मालकिन बन सकती हैं. अथवा बेकरी के उत्पादों को ऑर्डर पर बनाकर बेच सकती हैं.

क्रेच

बच्चों को स्त्रियों से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता. यदि आपको बच्चों के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता है. उनकी मासूम और प्यारी बातें आपके मन को खुश करती हैं. ऐसे में क्रेच घर की जिम्मेदारियों के साथ अन्य ज़रूरतों को पूरा करने का अच्छा तरीका है.

गिफ्ट शॉप

यह व्यापार बिना किसी अनुभव के शुरू किया जा सकता है. इस व्यापार की नीव हैं, आपकी दुकान की वस्तुएं. अपनी दुकान को अनोखी और सुंदर वस्तुओं से सजाएं ताकि इनकी खोज ग्राहकों को आपकी दुकान तक ले आए.

इंटीरियर डेकोरेशन शॉप

आज एक्सटीरियर से ज्यादा खर्चा घर के इंटीरियर पर किया जाता है. जिसकी वजह से मकान की लागत बढ़ जाती है. लैप से लेकर शो पीस तक की चीजें आपके घर के आकार को बदलने की क्षमता रखती हैं. इंटीरियर डिजाइनिंग की समझ और रियल एस्टेट कॉन्टेंक्टस आपके व्यापार को फायदेमंद बना सकते हैं.

पेट शॉप

पालतू जानवर को घर के सदस्य की तरह रखा जाता है. उसे एक नाम दिया जाता है. उसे साफ सुथरा रखने के अलावा उसकी जरूर से जुडी हर चीज़ को अहमियत दी जाती है. फिर चाहे ये चीज़ें उसका खाना हो या गले में बंधा पट्टा.

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