मैंने मुंबई से दक्षिण कोरिया के लिए प्रस्थान किया और इंचिओन एयरपोर्ट पर पहुंच गई. एयरपोर्ट के बाहर सेना के सैकड़ों फौजियों को देख कर स्तब्ध रह गई. मैं ने सोचा, यहां युद्ध तो नहीं छिड़ने वाला. किंतु शीघ्र ही मुझे पता चला कि इधर अमेरिका के फौजी तैनात रहते हैं क्योंकि यह देश अमेरिका द्वारा सुरक्षित आरक्षित है.
सेना का हर सैनिक बंदूक लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दुकान में गुड्डे सजा कर रख दिए गए हों. एयरपोर्ट से बस ले कर मैं गंतव्य स्थल डेजोन के लिए चल पड़ी. यहां बहुत ही आकर्षक बसें हैं जो हीटिंग, एयरकंडीशनर की सुविधाओं से लैस हैं. सीटें बहुत ही गद्दीदार और पूरी तरह खुलने वाली आरामदायक हैं. सब देख मन गदगद हो गया और इंचिओन से डेजोन का 3 घंटे का सफर इतना सुविधाजनक था कि मालूम ही नहीं पड़ा.
साफ और काफी चौड़ी सड़कें दिखीं. खास बात यह कि हाईवे पर जो लेन बसों के लिए बनी है और जो लेन कारों के लिए बनी है, उन पर सिर्फ उसी तरह के वाहन चल रहे थे, फिर चाहे कोई लेन खाली ही क्यों न हो. यहां प्रदूषण नाममात्र को भी नहीं दिखाई दिया.
गंतव्य पर पहुंची तो मालूम पड़ा 2 दिनों बाद यहां की एक मैगजीन वाले साक्षात्कार लेने के लिए आने वाले हैं. वे लोग आए और उन्होंने भारतीय संस्कृति के बारे में पूछा कि भारत के लोग कैसे कपड़े पहनते हैं, और क्या खाना बनाते हैं? मैं ने उन्हें साड़ी पहन कर व सलवार सूट आदि दिखाए, चपाती बना कर दिखाई. जैसे ही चपाती फूली, वे आश्चर्यचकित रह गए. थाली में कैसे परोसा जाता है और अतिथिसत्कार कैसे किया जाता है आदि के बारे में अनेक बातें बताईं.
भारत की विविध भाषाओं के बारे में बताया तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ. साथ ही, मैं ने बताया कि भारत में इतनी भाषाओं के बावजूद आपस में, व्यवहार में हिंदी या अंगरेजी से काम चलता है.
कोरिया में तो ज्यादातर एक ही भाषा कोरियन बोली जाती है, इसलिए वे समझ नहीं पा रहे थे. मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेज में भी कोरियाई भाषा ही शिक्षा का माध्यम है. लेकिन मिडिल स्कूल से अंगरेजी साथ में पढ़ना अनिवार्य होता है. पर उन का उच्चारण थोड़ा अमेरिकन होता है.
कोरिया में पढ़ेलिखे लोग अंगरेजी समझ जाते हैं किंतु जनसामान्य कोरियन भाषा ही समझ पाते हैं. इस बात का मुझे तब अनुभव हुआ जब एक बार हम लोग यहां के डाउनटाउन में गए और उधर मुझे शौच जाना था. कई लोगों से पूछा कि इधर आसपास रैस्टरूम कहां है, टौयलेट कहां है, बाथरूम कहां है? पर कोई नहीं बता पा रहा था. उन्हें इशारे से, चित्र बना कर भी बताने की कोशिश की किंतु निराशा ही हाथ लगी.
लेकिन अचानक हम लोगों को टौयलेट दिख गया तो राहत मिली. उसी क्षण सोचा कि आज ही घर पहुंच कर सब से पहले इस का कोरियन शब्द इंटरनैट पर ढूंढेंगे, साथ ही दैनिक प्रयोग के कुछ कुछ अन्य शब्द भी. दूसरे ही दिन कुछ आवश्यक शब्द याद कर लिए और फिर उन लोगों से बात करने में सहूलियत हो गई.
डेजोन में, भारतीय लोगों का मिलनसार समुदाय है. वे लोग एकत्रित हो कर भारतीय त्योहारों को बड़े उल्लास से मनाते हैं, खासकर 15 अगस्त पर ध्वजारोहण करना, होली दीवाली मनाना व आसपास के स्थानों पर पिकनिक पर जाना. एक बार हम सब लोग जिरिसिंग गए, जहां बरसात के दिनों में बड़ा ही आकर्षक दृश्य देखने को मिला.
पहाड़ों से झरने गिर रहे थे और ऐसा लगता था बादल जैसे पहाड़ पर ही रखे हैं. चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी. एक तरफ ऊंचे पहाड़ तो दूसरी तरफ गहरी खाड़ी और रास्ता बेहद घुमावदार. रास्ते में अनेक कोरियन मंदिर, मठ और महल देखने को मिले. हम लोग मठ के मोंक से भी मिले, उन की दिनचर्या के बारे में पूछा, वे लोग लकड़ी के तख्ते या लकड़ी के फ्लोर पर कपड़ा बिछा कर सोते हैं.
उन्होंने बताया कि मोंक मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के हो सकते हैं. इस बात का कोई प्रतिबंध नहीं है कि सिर्फ शाकाहारी ही खाएं. रास्ते में कई गांव दिखे. गांव और शहरों की स्वच्छता व चौड़ी सड़कों के होने में फर्क नहीं दिखता.
यहां ज्यादातर लोग तो बौद्ध धर्म को मानते हैं, ईसाई धर्म का प्रचार भी बहुतायत से फैला हुआ है. पर आधे से अधिक लोग ऐसे हैं जो किसी भी धर्र्म को नहीं मानते.
कोरिया में एक और अजीब बात देखने को मिली. यहां सैमसियोंग डोंग और कई जगहों पर तो हर बिल्डिंग के नीचे रैस्टोरैंट्स हैं जिन्हें ज्यादातर महिलाएं ही चलाती हैं. कोरियाई लोगों का मुख्य भोजन मांसाहार ही है. ताजी मछली को उबलते पानी में काट कर डालते या भूनते हैं और उन्हें सौस के साथ खाते हैं.
बीफ, पिग, मछली व अन्य किसी भी जानवर का मांस खाते हैं, जैसे औक्टोपस. कुछ छोटे जानवर तो वे जिंदा खाते हैं. इधर चावल कुछ अलग तरह का मिलता है, बनने के बाद चिपका हुआ सा होता है. पर उस से ये लोग अनेक स्वादिष्ठ पकवान बना कर खाते हैं.
कोरिया में, विदेश से आए शाकाहारी लोगों के लिए भोजन करना थोड़ा मुश्किल तो होता है, पर जिम्बाप, गिम्बाप (चावल सूप और नूडल्स का मिश्रण) और सलाद में तरहतरह के पत्ते खाने के लिए मिल जाते हैं.
आजकल तो जगह जगह इंडियन रैस्टोरैंट भी खुल गए हैं पर वे काफी महंगे हैं. कोरियन ट्रेडिशनल रैस्टोरैंट में तो जमीन पर गद्दी डाल कर बैठते हैं और छोटे स्टूल, मेज पर भोजन रख कर खाते हैं. यहां के लोग अनेक प्रकार के पत्ते खाते हैं और विशेष कर कद्दू का सूप पीते हैं.
कोरियंस अपने स्वास्थ्य का बहुत ही ध्यान रखते हैं. वे बहुत व्यायाम करते हैं और बिना तला, बिना मसाले का भोजन करते हैं. इन लोगों की पोशाक अलग तरह की होती है जिसे ‘हंबोक’ कहते हैं.
‘ब्रेनपूल’ में चयनित लोगों का, यहां की सरकार की तरफ से, प्रतिवर्ष टूर होता है. जिस में इन चयनित लोगों को कोरिया के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में, जो उन की संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, ले जाया जाता है. हम लोग भी इस टूर में गए थे.
अति खास मठों को, गांवों को दिखाया गया. उन की संस्कृति के अनुसार भोजन कराया गया. इन के लकड़ी के मठों की छतों का आकार आगे की तरफ झुकावदार होता है. उस पर सुंदर कारीगरी व खुदाई कर के विविध रंग भरे होते हैं. कुछ मठ तो बहुत ही ऊंचे पहाड़ों पर होते हैं, हम उधर भी गए.
‘उल्सान’ और ‘पोहांग’ में शिपिंग कंपनी और कार कंपनी हैं. ये लोग शिप व कार कैसे बनाते हैं, दिखाया. ये लोग ‘हुंडई’ तथा ‘किया’ कार, मोटर्स बनाते हैं. काफी मात्रा में मोटर्स, कारों व शिपों का निर्यात भी करते हैं.
उन लोगों ने, सम्मान में एक छोटी सी टौय मौडल कार भेंट भी की, जो हम लोगों को आज भी उन सुखद क्षणों की याद दिलाती है. हम लोग समूह में थे, सब ने मिल कर उन पलों का भरपूर आनंद उठाया.
आसपास के गांवों में छोटे छोटे टीले भी देखे, जिन का प्रारंभ में तो मतलब समझ में नहीं आया, बाद में पता चला कि मरने के बाद ये शरीर को जमीन के अंदर गाड़ देते हैं, और फिर ऊपर टीला सा बना देते हैं. जो जितना धनवान होता है उस का टीला उतना ऊंचा होता है. शाही लोगों के गहनेकपड़े आदि भी उसी में सुरक्षित रख देते हैं. गाड़ते समय मुर्दे का पैर जापान की तरफ कर के रखा जाता है. ये लोग जापानियों से बहुत डरते हैं क्योंकि उन्होंने कई बार कोरिया पर राज किया.
आज यह देश ओलिंपिक खेलों की प्रतिस्पर्धाओं में श्रेष्ठ स्थान रखता है. बचपन से ही बच्चों को तरह तरह की ट्रेनिंग्स दी जाती हैं. यहां की फुटबौल टीम विश्वविख्यात है. तैराकी और निशानेबाजी में कोरियंस सराहनीय स्थान प्राप्त करते हैं. व्यापारिक दृष्टि से भी ये किसी से पीछे नहीं हैं. दक्षिण कोरिया के लोगों ने अपने अथक परिश्रम से विश्व में अपनी साख बना ली है.
9 राज्यों और 5 प्रमुख शहरों वाला यह देश विकास की चरम सीमा पर है. सियोल, डेजोन, इंचिओन, बूसान कहीं भी जाइए, एक से बढ़ कर एक सुंदर शहर बसे हुए हैं.
जब हम लोग बूसान गए तो वहां समुद्र पर 4-5 मील लंबा पुल, रंगबिरंगी लाइट से जगमगाते हुए देखा. खास बात यह थी कि इस में एक लेयर में बसें, दूसरे पर कारें और तीसरे पर ट्रेन की आवाजाही चल रही थी.
सियोल में तो अनेक गगनचुंबी इमारतें, रंगबिरंगी लाइट से प्रकाशित अनेक महल जैसे स्थान देखे.
सियोल में कई कंपनियों के कार्यालय हैं, विधानसभा भी यहीं है. यह दक्षिण कोरिया की राजधानी है. सियोल के इतेवान में भारतीय लोगों की जरूरत का सामान भी मिल जाता है. इधर कई भारतीय रैस्टोरैंट भी हैं.
इंचिओन में तो अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट भी बना हुआ है. यह 3 तरफ से घिरा हुआ टापू है. ऐसा लगता है जैसे प्लेन समुद्र में उतर रहा हो. एयरपोर्ट से बाहर आतेजाते समय तो समुद्र पर बने एक बहुत ही लंबे पुल से हो कर जाना पड़ता है.
डेजोन के तो कहने ही क्या, यहां अनेक अनुसंधान करने वाली संस्थाएं हैं, जैसे कोरिया एटौमिक एनर्जी अनुसंधान आदि. अनेक शैक्षणिक संस्थान हैं, जैसे चुनगधाम यूनिवर्सिटी. सैमसंग और एलजी जैसी प्रसिद्ध कई कंपनियों के कार्यालय हैं. बच्चों के लिए यहां साइंस सैंटर, एक्सपो पार्क और वर्ल्ड कप स्टेडियम ‘ओ वर्ल्ड’ भी है.
हम लोगों को एक और बहुत अच्छा अनुभव मिला, जब हम लोग जेजू आइलैंड गए. उधर पनडुब्बी में जाने का सुनहरा अवसर मिला. जेजू आइलैंड जाने के लिए मात्र हवाईमार्ग ही है. यह चारों तरफ समुद्र से घिरा हुआ है. यहां का मौसम सदा ही बहुत अच्छा, घूमनेफिरने लायक होता है. संतरे बहुतायत से पैदा होते हैं. एकदो भारतीय खाने के रैस्टोरैंट भी हैं.
जिंजू शहर जाने का अवसर भी अविस्मरणीय है. यहां एक नदी है, उस के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि एक जापानी सेना औफिसर ने किसी कोरियन लड़की को बंदी बना रखा था. जब वह उस लड़की के साथ इस नदी में नाव पर घूमने आया तो उस लड़की ने जैसे ही गहरा पानी देखा, मौका पा कर उस मेजर को बोट से धक्का दे कर नीचे गिरा दिया और वह बच गई.
कोरिया का इतिहास बहुत रोचक है. यहां भी बौद्धिज्म भारत से ही आया है. कोरिया पर जापानी पाइरेट्स ने करीब 529 बार समुद्रमार्ग से आक्रमण किया. अमेरिकी सुरक्षा में आने के बाद से कोरियन लोगों ने अपनी अथक मेहनत से देश को बहुत ही सुंदर बना लिया है.
यहां जनता के लिए सामान्य यातायात की बसें भी बड़ी आरामदायक हैं. बस का चालक, बस में प्रवेश करते समय आप का अभिवादन करेगा. सब से बड़ी बात तो यह है कि हर बसस्टौप पर डिस्प्ले बोर्ड लगा हुआ है जिस में सदैव ही दिखता रहता है कि अभी बस कौन से स्टौप पर पहुंची है और आप के स्टौप तक कितने देर में पहुंचेगी.
अपाहिज लोगों के लिए बसचालक एक बोर्ड खोल कर नीचा कर देता है, फिर उन की व्हीलचेयर वह स्वयं उतर कर एक सीट से लौक कर देता है. पैसे की अदायगी के लिए बसचालक की साइड में एक बौक्स लगा होता है. उसी में सब लोग पैसे डाल देते हैं और कार्ड डिस्प्ले का बोर्ड लगा होता है. जिसे कार्ड से पैसा देना होता है वह उस बोर्ड पर कार्ड रख देता है और उस के अकाउंट से पैसा कट जाता है. बसकंडक्टर की जरूरत ही नहीं होती, सब लोग ईमानदारी से पैसे देते हैं. अदायगी में कुछ गड़बड़ या प्रौब्लम हो तो चालक को तुरंत मालूम हो जाता है.
दक्षिण कोरिया के लोग मजबूत बिल्डिंग्स और पुल आदि बनाने में महारत रखते हैं. भव्य इमारतें और लंबे, मजबूत पुल कुछ ही महीनों में बना देते हैं. फ्लोर के नीचे ऐसे पाइप बिछाते हैं जिन में गरम पानी प्रवाहित कर घर को ठंड के दिनों में गरम कर सकें. इस माध्यम से वे घर के तापमान पर नियंत्रण रखते हैं. फ्लोर के नीचे से घर गरम करना, यह इन का एक अनोखा और अच्छा तरीका है.
यहां जगह जगह पदयात्रियों के चलने के लिए कोर्क या रबर के फुटपाथ बने हुए हैं ताकि वे सुविधापूर्वक उन पर चल सकें.
कोरियन लोग अपने देश में आए विदेशियों की विशेषतौर से काफी मदद, अपनी समझ के अनुसार करते हैं. मिस्टर लिम नेरे ने भी हम लोगों की हमेशा ही बहुत मदद की. ऐसे कई लोग अकसर इधर मिल जाते हैं.
यहां एक किस्सा आप को बताना चाहूंगी, एक भारतीय था. उसे कहीं जाना था पर उसे मालूम नहीं पड़ रहा था कैसे जाएं. उस के पास खड़े हुए व्यक्ति ने टूटीफूटी भाषा में पूछा, किधर जाना है? फिर वह व्यक्ति बोला, अगर कल सुबह 9 बजे आप इधर खड़े हुए मिले, तो मैं आप को कार से पहुंचा दूंगा. भारतीय व्यक्ति ने सोचा, चलो, आजमा कर देखते हैं कितना सच बोल रहा है. दूसरे दिन 9 बजे वह नियत स्थान पर खड़ा हो गया और ठीक उसी समय वह कोरियन व्यक्ति कार से आया और उसे उस के गंतव्य स्थल तक छोड़ कर आया.
दक्षिण कोरिया की कुछ बातें और परंपराएं भारत से मिलतीजुलती हैं. भारत में 15 अगस्त के दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है. वैसे ही इधर भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. इन लोगों को भी 15 अगस्त के दिन ही पूर्ण स्वतंत्रता मिली थी.
नवंबर माह से तो दक्षिण कोरिया में सड़कों पर बर्फ की चादर सी तन जाती है. पेड़ों पर सिर्फ लकडि़यां रह जाती हैं, उन पर हर डाल पर बर्फ छाई हुई दिखाई देती है. सड़क, फुटपाथ सब के सब बर्फ से आच्छादित होते हैं. बच्चे बर्फ से इग्लू, गुड्डेगुडि़या और स्नोमैन बनाते हैं, बर्फ पर खेलते हैं, स्कैटिंग करते हैं. नदियां बर्फ की चादर जैसी सड़क हो जाती हैं. तापमान 20 से 25 डिगरी तक चला जाता है. इस से भी सब लोग खूब एंजौय करते हैं. इस प्रकार की ठंड नवंबर से अप्रैल तक रहती है.
स्प्रिंग यानी वसंत का मौसम मार्च के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाता है. चैरी ब्लौसम आदि के सुंदर सुंदर, रंगबिरंगे फूल शहर की सुंदरता बढ़ाने लगते हैं. जब पेड़ ठूंठ से होते हैं तब शहर की सारी ऐक्टिविटीज साफ साफ दिखती हैं पर जब हरे हरे पत्ते छा जाते हैं, दूर का दृश्य नहीं दिखता. तब ऐसा लगता है पेड़ कह रहा हो कि अब सब मेरी हरियाली ही देखो. कहां औटम यानी पतझड़ के दौरान पेड़ों पर एक भी पत्ता नहीं, सब के सब ठूंठ और कहां हरियाली का यह आलम.
सुंदरतम दृश्यों को अपने में समेटे यह देश अति सुंदर है. अगर भाषा की समस्या न हो तो यह देश और ज्यादा तरक्की कर सकता है. उत्तरी कोरिया उग्रवादी है, किंतु दक्षिण कोरिया एकदम शांतिप्रिय है. यह पूर्वजों की धरोहर को अच्छी तरह से संभाले हुए है. यहां के पर्यटन स्थल साफ और सुरक्षित है. यहां के निवासियों को मानवतापूर्ण व्यवहार करना अच्छी तरह से आता है. ऐसे देश को मेरा सलाम.