दीया और बाती हम का नया अध्याय

लंबे समय तक आप के दिलों को छूने वाले व पति पत्नी के अनूठे रिश्ते पर आधारित धारावाहिक ‘दीया और बाती हम’ की कहानी आगे बढ़ रही है. स्टार प्लस पर प्रसारित होने जा रहे धारावाहिक ‘तू सूरज मैं सांझ पियाजी’ में कहानी है अगली पीढ़ी की, जिस में मुख्य भूमिका में है सूरज और संध्या की बेटी कनक राठी. इसमें यह देखना रोचक होगा कि भाभो का दिल जीतने की कनक की कोशिशें क्या रंग लाएंगी और कनक का उमाशंकर की जीवनसाथी बनने का सफर कैसा होगा.

इस धारावाहिक में अहम किरदार निभा रहे उमाशंकर, कनक और भाभो ने ‘तू सूरज मैं सांझ पियाजी’ के बारे में विस्तार से बातचीत की. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के कुछ अंश:

कनक के किरदार के बारे में बताइए?

कनक 21 साल की एक आधुनिक और स्वतंत्र विचारों वाली आत्मनिर्भर लड़की है जो अपने परिवार को प्राथमिकता देती है. वह एक तरफ अपने पिता की तरह हुनरमंद व दिल की साफ है तो दूसरी तरफ अपनी मां की तरह स्वाभिमानी है, यानी वह जो चाहती है उसे मेहनत व लगन से हासिल भी करती है. संध्या की ही तरह कनक भी बहादुर और आत्मनिर्भर है और जीवन की सभी कठिन परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ है. वह अपने भाई वेद और वंश के बहुत करीब है और भाभो का प्यार पाने का लंबे समय से इंतजार कर रही है.

‘तू सूरज मैं सांझ पियाजी’ में भाभो का किरदार कैसा है?

भाभो सिर्फ स्क्रीन पर बूढ़ी नजर आएंगी, लेकिन जीवन और परिवार के प्रति उन का रवैया वैसा ही रहेगा, जैसा पहले था. ‘तू सूरज मैं सांझ पियाजी’ में भी भाभो के लिए परिवार महत्त्वपूर्ण है. वह धारावाहिक में सूरज व संध्या के बेटे वेद और वंश से प्यार करती है लेकिन उन की बेटी कनक को नहीं अपनाया है. यह भाभो के साथ कनक के संबंध और प्यार की एक अनोखी कहानी है, जिस प्यार का कनक लंबे समय से इंतजार कर रही है.

उमाशंकर को एक पारंपरिक लड़के के रूप में दिखाया जा रहा है. इस में उमा का क्या किरदार है. कुछ बताएं?

उमाशंकर शिव भक्त है, वह आयुर्वेद का डाक्टर है. उसके गांव में हर कोई उस का सम्मान करता है. उस के आसपास के लोग उस की सलाह को गंभीरता से लेते हैं.  उमाशंकर अपनी परंपराओं को सहेजने में बहुत विश्वास रखता है और इनका पालन करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ता.

क्या आपको भी आती है सफर में उल्टी?

क्या आप भी सफर करने से डरती हैं, वो भी सिर्फ इसलिए कि सफर में आपको उल्टी आती है? तो अब आप बेफिकर हो जाइए, क्योंकि हमारे द्वारा बताए जा रहे ये 5 उपाय आपको सफर में उल्टी नहीं आने देंगे और आप अपने सफर का भरपूर आनंद ले पाएंगे.

तो जानिए कौन से हैं ये 5 उपाय.. 

1. जब भी किसी सफर के लिए निकलें, अपने साथ एक पका हुआ नींबू जरूर रख लें. जरा भी अजीब सा मन हो, तो इस नींबू को छीलकर सूंघे, ऐसा करने से आपको उल्टी नहीं आएगी.

2. थोड़ी सी लौंग को भूनकर, इसे पीस लें और एक डिब्बी में भरकर रख लें. जब भी सफर में जाएं या उल्टी जैसा मन हो तो इसे सिर्फ एक चुटकी मात्रा में चीनी या काले नमक के साथ मुंह में रख लें. कुछ तुलसी के पत्ते भी अपने साथ रखें, इसे खाने से भी उल्टी नहीं आएगी.

3. इसके अलावा सफर में जाते वक्त एक बॉटल में नींबू और पुदीने का रस काला नमक डालकर रखें और सफर में इसे थोड़ा-थोड़ा पीते रहें. 

4. नींबू को काटकर, इस पर काली मिर्च और काला नमक बुरककर चाटते रहें. यह तरीका भी आपको उल्टी आने से बचाता है.  

5. अगर आप बस में सफर कर रहे हैं और बस में आपको उल्टी होती है तो जिस सीट पर आप बैठें हैं, वहां साट पर पहले एक पेपर बिछा लें और फिर इस पेपर पर बैठें.

16वीं शताब्दी का है दिल्ली का पुराना किला

दिल्ली सिर्फ देश की राजधानी ही नहीं बल्कि अपने में कई रोचक इतिहास भी समेटे हुए है. दिल्ली अपने में 7 शहरों को समेटे हुए है. यहां का इतिहास बताता है कि आज जो दिल्ली है, वह 11वीं शताब्दी से किसी न किसी शासन का केंद्र रही है. दिल्ली कई बार उजड़ी और कई बार बसी. कई शासकों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और कई बार वे अपनी राजधानी दिल्ली से बाहर भी ले गए. इसी दिल्ली में एक शहर कभी यमुना किनारे वर्तमान शहर के पूर्वी छोर पर स्थित पुराने किले में भी बसता था और इस शहर की गिनती उस दौर के समृद्ध शहरों में होती थी.

पांडवों ने बसाया था इंद्रप्रस्थ

यह कोरी किंवदंती है कि वर्तमान पुराने किले का अस्तित्व महाभारत काल से है और इस शहर का नाम उस वक्त इंद्रप्रस्थ हुआ करता था. महाभारत इतिहास से जुड़ा है, यही संदिग्ध है, फिर भी इस क्षेत्र की खुदाई से प्राचीन मकान दिखे हैं. इस किले के भीतर इंद्रापत नामक गांव 1913 ईस्वी तक मौजूद था, जिसे अंग्रेजों ने हटाया.

शेरशाह सूरी ने बनवाया वर्तमान ढांचा

अभी किले का जो ढांचा मौजूद है, इसे अफगानी शासक शेरशाह सूरी ने बनवाया था. इतिहासकारों के मुताबिक, 1545 ईस्वी में शेरशाह सूरी की मृत्यु होने तक इस का निर्माण अधूरा ही रह गया था, जिसे उस के बेटे इस्लाम शाह या हुमायूं ने पूरा कराया. इस बारे में अब भी जानकारी नहीं है कि किले के कौन से हिस्से का निर्माण किस ने किया. आर्कियोलौजिकल सर्वे औफ इंडिया ने 1954-55 और 1969 से 1973 में पुराने किले की खुदाई की थी और वहां उन्हें 1000 ईसा पूर्व शहर के अस्तित्व के होने की जानकारी मिली थी. इस के अलावा, मौर्य काल से ले कर मुगलकाल के बीच के शुंग, कुशाण, गुप्त, राजपूत और सल्तनत काल के दौरान इस शहर के होने की पुख्ता जानकारी हासिल हुई.

दीनापनाह से शेरगढ़ तक

1533 ईस्वी में हुमायूं ने इस किले का निर्माण शुरू किया था और उस दौर में इसे ‘दीनापनाह’ के नाम से जाना जाता था. इस किले का निर्माण 5 वर्ष में पूरा किया गया. इसे उस दौर में दिल्ली का छठा शहर माना गया. 1540 ईस्वी में सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराया और फिर उस ने इस किले में कई बदलाव किए. उस ने इस किले के जरिए अपनी मृत्यु तक यानी 1545 ईस्वी तक शासन किया.

इस किले को उस दौर में ‘शेरगढ़’ के नाम से जाना जाता था. उस के बाद शेरशाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह ने गद्दी संभाली और अपनी सल्तनत की राजधानी ग्वालियर ले गया और दिल्ली के अलावा पंजाब की सत्ता अपने हिंदू गवर्नर और सेनापति हेमू को सौंप दी. 1553 ईस्वी में उस की मृत्यु के बाद आदिल शाह सूरी ने उत्तर भारत की सत्ता संभाली और हेमू को सेना का प्रधानमंत्री सहित सेनापति बना दिया और खुद आज के उत्तर प्रदेश के चुनार किले में रहने लगा.

हुमायूं ने 1555 में दोबारा किया कब्जा

अबु फजल के मुताबिक, हेमू के पास पूरी शासन व्यवस्था थी और किसी की नियुक्ति और निष्कासन तक का अधिकार उसे प्राप्त था. हालांकि हेमू का अधिकतर समय पूर्वी भारतीय शासकों के साथ लड़ाई में गुजर रहा था और इस का परिणाम यह हुआ कि किला पूरी तरह से उपेक्षित हो गया. उस वक्त हुमायूं काबुल में रह रहा था और उस ने दिल्ली पर चढ़ाई की और 1555 में दोबारा इस किले पर कब्जा कर लिया. पूरे 15 वर्ष तक इस उपेक्षित किले को जीतने के लिए हुमायूं को चौसा और कन्नौज की लड़ाई लड़नी पड़ी. गौरतलब है कि उस के बाद हुमायूं का शासनकाल काफी कम समय रहा और 1 वर्ष बाद 1556 में शेर मंडल की सीढि़यों से गिरने के बाद उस की मौत हो गई.

हेमू ने अकबर की सेना को हराया

जिस वक्त हुमायूं ने दिल्ली के किले पर कब्जा किया, उस वक्त हेमू बंगाल में था, जहां उस ने बंगाल के शासक मुहम्मद शाह को हराया. जानकारी मिलते ही वह दिल्ली की ओर वापस मुड़ा और इस क्रम में उस ने आगरा, इटावा और कानपुर पर आसानी से अपना कब्जा जमा लिया. हेमू ने अपने जीवनकाल में उत्तर भारत में कुल 22 युद्धों में विजय हासिल की और फिर अकबर की सेना को भी हरा कर दिल्ली की सल्तनत पर कब्जा किया.

यह लड़ाई तुगलकाबाद इलाके में 1556 में हुई. इस के बाद हेमू ने अपना राज्याभिषेक पुराने किले में कराया और पूरे उत्तर भारत को हिंदू राज्य के तौर पर घोषित कर दिया. हेमू ने खुद को विक्रमादित्य घोषित किया. हालांकि 1556 ईस्वी में पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू की मौत हो गई.

18 मीटर ऊंची हैं किले की दीवारें

पुराने किले की दीवारें 18 मीटर ऊंची हैं और यह डेढ़ किलोमीटर लंबा है. इस किले में 3 दरवाजे हैं जिस में बड़े दरवाजे का प्रयोग आज भी होता है. बड़ा दरवाजा किले के पश्चिमी छोर पर है. दक्षिणी छोर पर स्थित दरवाजे को हुमायूं दरवाजा कहा जाता है.

इतिहासकारों के मुताबिक, इस दरवाजे का निर्माण हुमायूं ने किया था और यहां से हुमायूं का मकबरा भी साफ दिखाई देता है. इस किले में एक और दरवाजा है जिसे तलाकी दरवाजा कहा जाता है और यह वर्जित दरवाजा है. सभी दरवाजे दो मंजिला हैं और इन का निर्माण बलुवा पत्थर से किया गया है. सभी पत्थरों पर अर्द्धवृत्त के आकार की मेहराबें बनी हुई हैं. इन में सफेद और रंगीन मार्बल लगा हुआ है और नीले रंग के टायल्स का इस्तेमाल किया गया है. इन में झरोखे के साथसाथ छतरी भी बनी हुई हैं. सारी कलाकारी राजस्थानी स्टाइल में है और मुगल आर्किटैक्चर की तरह इस का निर्माण किया गया है. इस किले के भीतर ही शेरशाह द्वारा बनाई गई किलाएखुआना नामक मसजिद और शेर मंडल भी है.

इस किले से अकबर ने नहीं किया शासन

मुगलकालीन शासन के दौर में जब अकबर की तूती पूरे देश में बोलती थी, तो उन्होंने कभी भी इस किले से शासन नहीं किया. एक ओर जहां हुमायूं का मकबरा दिल्ली में है, वहीं अकबर का मकबरा आगरा में है. अकबर का अधिकतर समय आगरा के किले या आसपास ही बीता. हालांकि अकबर के बेटे शाहजहां ने दिल्ली में नए किले ‘लाल किले’ का निर्माण कराया. कालांतर में मुगलकालीन राजधानी दिल्ली होने के कारण आखिर तक लाल किले से ही पूरे देश पर मुगल सल्तनत का कब्जा रहा और शासन यहीं से चलता था.

1947 में बना रिफ्यूजी कैंप

1920 के दशक में जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कोलकाता से हटा कर कहीं और ले जाने का विचार किया तो दिल्ली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उन्होंने इस शहर को अपनी नई राजधानी बनाने का निश्चय किया. राजधानी को दिल्ली लाने में भारतीय वायसराय चार्ल्स हार्डिंग ने सब से अधिक पैरोकारी की थी. उन का मानना था कि हिंदू और मुसलिम दोनों का जुड़ाव इस शहर से है.

एडविन लुटियंस ने इस शहर का निर्माण किया और उस दौर में पुराने किले से एक केंद्रीय रेखा खींची, जिसे आज राजपथ कहा जाता है. देश विभाजन के दौर में पुराने किले के अलावा हुमायूं का मकबरा रिफ्यूजी कैंप में तबदील हो गया जहां पाकिस्तान से विस्थापित मुसलिमों ने शरण ली थी. यहां करीब डेढ़ लाख मुसलिमों ने शरण ली थी जिन में करीब 12 हजार वे सरकारी कर्मचारी भी थे जो पाकिस्तान में नौकरी कर रहे थे. पुराने किले में मौजूद कैंप 1948 तक रहा.

बिखरी पड़ी हैं अतीत की धरोहरें

इस किले के चप्पेचप्पे में अतीत की धरोहरें बिखरी पड़ी हैं और विभिन्न सल्तनतों की कहानी कहती हैं. किलाएकुहना नामक मसजिद का निर्माण शेरशाह सूरी ने किया था. 5 दरवाजों वाली इस मसजिद की शैली उस दौर की कहानी कहती है. ये दरवाजे घोड़े की नाल की डिजाइन के हैं.

इस का निर्माण जामी मसजिद की तर्ज पर किया गया है जहां सुलतान और उस के दरबारी नमाज अता करते थे. इस में लाल और सफेद संगमरमर के अलावा स्लेट का प्रयोग किया गया है. किसी वक्त यहां एक टैंक और फाउंटेन था. इस मसजिद में महिला दरबारी के लिए अलग से नमाज अता करने का स्थान भी बना हुआ था. इस के अलावा यहां एक शेर मंडल भी है. दोमंजिली यह इमारत अष्टभुजाकार है और इस का निर्माण हुमायूं के लिए उस की निजी लाइबे्ररी और वेधशाला के लिए किया गया था. इसी इमारत की सीढि़यों पर फिसलने से हुमायूं की मौत हुई थी.

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए परकोटा

1970 के दशक में इस किले के परकोटे का प्रयोग थिएटर के लिए किया जाने लगा. नैशनल स्कूल औफ ड्रामा ने इस के परकोटे से 3 नाटकों ‘तुगलक’, ‘अंधायुग’ और ‘सुलतान रजिया’ का मंचन किया. इन तीनों नाटकों को प्रख्यात नाटककार इब्राहीम अल्काजी ने निर्देशित किया था.

अब आम करेगा आपकी त्वचा की देखभाल

आम फलों का राजा है और यह आपको इस गर्मी के मौसम से बचाने के लिए तैयार है. क्या आप जानते हैं कि आम का स्वाद तो अच्छा होता ही है, साथ ही यह आपकी त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है. आम त्वचा के काले धब्बे, रंग में असमानता और मुँहासों को दूर करता है साथ ही त्वचा में नयी चमक आ जाती है.

आम में पाया जाने वाला बीटा कैरोटीन और इसके कई अन्य पोषक तत्व आपकी त्वचा में ताजगी भर जोते हैं. तो हम आपको बता रहे हैं कि आप किस प्रकार आम का प्रयोग त्वचा के लिए कर, अपनी त्वचा को सेहतमंद और खूबसूरत बना सकते हैं…

1. स्क्रब

एक चम्मच आम के गूदे में थोड़ी मात्रा में दूध और आधा चम्मच शहद मिलाकर, इस मिश्रण को चेहरे पर घुमाते हुए लगा लें. इससे आपकी त्वचा से मृत कोशिकाओं की परत हट जाएगी और चेहरे पर एक नयी चमक आ जाएगी.

2. आम के छिलके के उपयोग

अक्सर हम सब आम के छिलकों को व्यर्थ समझ कर इन्हें फेंक देते हैं, पर क्या आप जानते हैं कि स्किन की देखभाल के लिए इनका भी उपयोग किया जा सकता है. इनको धूप में सुखाकर, आप इसका पाउडर बना लें और इसे एक चम्मच दही के साथ मिला कर चेहरे पर लेप की तरह लगाएं. यह आपके चेहरा से काले धब्बों को कम करता है और आपके चेहरे पर निखार लाता है.

3. कच्चे आम का रस

कच्चे आमों को काटकर, इन्हें पानी में उबाल लें और अब इस पानी का उपयोग त्वचा पर मुँहासे हटाने के लिए करें. यह यकीनन एक बहुत अच्छा उपाय है.

4. मैंगो क्लींजर

एक चम्मच गेहूं के आटे में आम का गूदा मिला लीजिये और इसे अपनी त्वचा पर लगा लीजिये. यह आपकी त्वचा के छिद्रों में पहुंचकर आपकी त्वचा को अन्दर से साफ करता है.

5. धूप से हुए त्वचा के भूरे पन के लिए

धूप में टेन्ड हुई त्वचा को आम से ठीक किया जा सकता है. पके हुए आम या कच्चे आम के गूदे को दूध की क्रीम में मिलाकर त्वचा पर 10 से 15 मिनट के लिए लगाएं और फिर इसे ठण्डे पानी से धो लें. सप्ताह में ऐसा 2-3 बार करने से आपकी त्वचा में निखार आयेगा.

6. आम और बादाम फेस-वाश

एक चम्मच आम के गूदे को बादाम के पाउडर और एक चम्मच दूध में मिलाकर पेस्ट बनाकर, 20 मिनट तक चेहरे पर लगाने के बाद पानी से धो लेने पर आपकी त्वचा साफ और खूबसूरत नजर आती है.

7. आम के एंटी-ऐजिंग गुण

आम में एंटी-औक्सिडेन्ट्स पाए जाते हैं, जो आयु बढ़ने की गति को कम कर देते हैं. इसमें त्वचा के कैंसर से भी लड़ने की क्षमता होती है. आम एक अच्छे प्राकृतिक मॉइस्चराइजर की तरह काम करता है.

8. बेहतर त्वचा के लिए

¼ आम के गूदे को बादाम पाउडर, 2 चम्मच दूध, और कुटी हुई जई या ओट्स को पीसकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को 20 मिनट तक चेहरे पर लगाकर, चेहरा कुनकुने पानी से धो लें. आपकी त्वचा में आपको खुद फर्क नजर आने लगेगा.

9. दमकती त्वचा

आम में काले धब्बों, एक्ने (acne) तथा अन्य अशुद्धियों को दूर करने के गुण मौजूद होते हैं. इस फल में मौजूद विटामिन ए और कैरोटीन (vitamin A and carotene) त्वचा को जीवन प्रदान करके इसमें नया स्वास्थ्य जगाने की क्षमता रखते हैं. यह त्वचा में नयी ताजगी ले आता है और चमक में वृद्धि करता है.

10. आम और मुल्तानी मिट्टी का फेसपैक

आम के गूदे को मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर प्रतिदिन चेहरे और गर्दन पर 30 मिनट तक लगायें. सूख जाने पर इसे गुनगुने पानी से धो लें. इससे आपकी त्वचा मुलायम होगी.

त्वचा की देखभाल के लिए आम का प्रयोग क्यों करना चाहिए इसके लिए, हम यहां आम के कुछ विशेष गुण और त्वचा पर इसके फायदे बता रहे हैं…

  • आम में पाए जाने वाले कई विटामिन बाहरी तत्वों से आपकी रक्षा करते हैं और गर्मियों में आपको मुँहासों से बचाते हैं.
  • आम, आपकी शुष्क और गर्म मौसम में आपकी त्वचा में नयी जान डालता है.
  • आम में विटामिन सी होता है जो कोलेजन के उत्पादन में सहायता करता है जिससे आप एक स्वस्थ त्वचा पाते हैं.

इन बॉलीवुड सितारों के अंडरवर्ल्ड से रहे संबंध

90 के दशक में बॉलीवुड अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के लेकर काफी चर्चा में रहा. बॉलीवुड और अपराध जगत का ये घातक गंठबंधन उस समय चर्चा में आ गया जब अभिनेता संजय दत्त को एके 47 राइफल रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
इसके बाद एक-एक कर बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के संबंधों का खुलासा होने लगा. लेकिन बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का संबंध कोई 90 के दशक का नहीं था बल्कि उससे कहीं पुराना रहा है.
1. दिलीप कुमार

फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार के संबंध स्मगलिंग का धंधा करने वाले मुंबई के माफिया और दाउद इब्राहिम के गुरू रहे हाजी मस्तान से रहे हैं. जब हाजी मस्तान ने अपनी राजनीति पार्टी बनाई तो दिलीप कुमार ने उसकी पार्टी के लिए प्रचार तक किया है.

2. संजय दत्त

अंडरवर्ल्ड से संबंधों को लेकर फिल्म अभिनेता संजय दत्त ही नहीं उनके पिता और अपने जमाने के हीरों रहे सुनील दत्त के भी संबंध माफिया डॉन हाजी मस्तान से रहे हैं.

3. अनिल कपूर

प्रसिद्ध बॉलीवुड एक्टर अनिल कपूर का नाम भी अंडरवर्ल्ड में जुड़ता रहा है. अनिल कपूर की दाउद के साथ दुबई में क्रिकेट देखते हुए एक फोटो काफी चर्चित रही थी.

4. गोविंदा

अभिनेता गोविंदा पर भी अंडरवर्ल्ड से संबंध रखने के आरोप लगे हैं. दुबई जाकर दाउद की पार्टियों में नाचते हुए गोविंदा का वीडियों भी सामने आ चुका हैं. वर्तमान में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने गोविंदा पर आरोप लगाया था कि चुनाव के दौरान उन्होंने दाउद से मदद ली थी.

5. सलमान खान

फिल्म कलाकार सलमान खान के भी अंडरवर्ल्ड से संबंध किसी से छुपे नहीं हैं. दाउद के भाई नूरा के साथ सलमान की न केवल फोटों है बल्कि डी कंपनी के गुर्गों से बातचीत का उनका फोन भी पुलिस ने टैप किया था.

6. नदीम श्रवण

संगीत कार नदीम श्रवण की जोड़ी वाले नदीम के अंडरवर्ल्ड से संबंधों का असली खुलासा उस समय हुआ जब टी सीरिज कैसेट कंपनी के मालिक गुलशन कुमार की हत्या में उनका नाम सामने आया. गौरतलब है कि इस हत्या से पहले नदीम भाग कर विदेश चले गए थे.

7. जैकी श्रॉफ
जैकी श्रॉफ के संबंध भी डी कंपनी से रहे है. दाउद के दाहिना हाथ माने जाने वाले छोटा शकील के साथ फिल्म अभिनेता की एक फोटों भी है.

8. मन्दाकिनी

फिल्म राम तेरी गंगा मैली की चर्चित हिरोइन मन्दाकिनी दाऊद के साथ दुबई में एक क्रिकेट मैच के दौरान बैठी नजर आई. लेकिन मुंबई बम धमाकों के बाद जब पुलिस ने दाउद पर शिंकजा कसा तो मंदाकिनी बॉलीवुड से ही गायब हो गई.

9. मोनिका बेदी
दाउद की भांति एक समय उसका खास गुर्गा रहे अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम और फिल्म अभिनेत्री मोनिका बेदी के संबंध भी सुर्खियों में रहे.

जहां तक बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के संबंधों की बात है तो कोई एक दो नहीं बहुत से फिल्मी कलाकार, दाउद की दुबई में होने वाली पार्टियों में जाते रहे हैं.
इनमें महमूद और जॉनी लीवर जैसे हास्य कलाकारों से लेकर अनु मलिक और कुमार शानू आदि प्रमुख है, जिनके डी कंपनी की पार्टियों में जाने के सबूत और वीडियों पुलिस के पास है.

ऑनलाइन कार्य करते समय ध्यान देने योग्य बातें

ऑनलाइन पैसे कमाने के कई तरीके हैं. आजकल घर पर रहते हुए भी हर महीने हजारों रुपए कमाए जा सकते हैं. ब्लॉगिंग से लेकर ऑनलाइन ट्यूशन देने जैसे कई तरीके हैं जिससे आप आसानी से पैसे कमा सकते हैं. पर काम जितना आसान लगता है उतना है नहीं, जरा सी असावधानी से आपको अपनी मेहनत की कमाई से हाथ धोना पड़ सकता है.

ऑनलाइन काम करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है-

1. फर्स्ट इंप्रेशन ही है लास्ट इंप्रेशन

चाहे आप किसी भी ऑनलाइन कार्य को करने के लिए प्रयास कर रहे हैं पर पहला प्रभाव अच्छा बनाना बहुत जरूरी है. अगर आपका पहला प्रभाव ही सही नहीं होगा तो कंपनी आपको काम पर नहीं रखेगी.

अगर आप ब्लॉगिंग या यूट्यूब चैनेल के जरिए पैसे कमाना चाहते हैं, तो कुछ अलग करने की सोचें. ध्यान रखें कि आपकी तरह सैंकड़ों लोग हैं जो अपनी किस्मत आजमाना चाह रहे हैं.

2. अपना कौशल दिखाएं

हो सकता है कि आप बहुत अच्छे लेखक या ग्राफिक डिजाइनर हों पर अगर आपको खुद को बेचना नहीं आता है तो आपका कौशल और टेलेंट को कोई महत्व नहीं देगा. आप बिना कुछ हासिल किए ही सालों बीता देंगे. इसलिए ये बहुत जरूरी है कि आप खुद को बेचने की कला विकसित करें.

3. पार्ट टाइम को भी वक्त देना जरूरी

आप अगर पार्ट टाइम में ही ऑनलाइन काम कर रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप इसे दरकिनार कर दें. आपको अपने ऑनलाइन काम को भी जरूरत के अनुसार वक्त देना होगा. वक्त की कमी से आपका काम चौपट हो सकता है.

4. आर्थिक जरूरतों पर ध्यान दें

पहले तय करें कि आप ऐकस्ट्रा पैसे क्यों कमाना चाहते हैं. क्या आप यूं ही थोड़े से ज्यादा पैसे कमाना चाहते हैं या फिर आप किसी खास वजह से जल्द से जल्द ज्यादा पैसे कमाना चाहते हैं. जरूरत के हिसाब से ही आप अपने पार्ट टाइम काम में पैसे और समय लगाएं.

5. ईमानदारी है बहुत जरूरी

माना कि हम उस देश के वासी जिस देश में पैसा बोलता है. पर ईमानदारी बरतने से आपको नुकसान नहीं, उलटे फायदा होगा. अपने काम के प्रति ईमानदार रहें. किसे दूसरे के काम को खुद के नाम से प्रकाशित न करें. अगर आप घर पर काम कर रहे हैं यानि आपका कोई बॉस नहीं है, अपनी मर्जी के मालिक हैं आप. पर इसका मतलब यह नहीं कि आप अपने काम से ही जी चुराने लगें. ध्यान रहे कि आप कुछ अतिरिक्त कमाई के लिए ऑनलाइन काम कर रहे हैं.

एक्ट्रैस मीरा ने बताया कैरियर का सीक्रेट

गुजरात के बड़ौदा शहर की रहने वाली मीरा देवस्थले को बचपन से ही खेलने का शौक था और बास्केटबाल और कबड्डी उनके प्रिय खेल थे. स्कूल लेवल पर वे दोनों ही खेलों में सबसे बेहतर थी. उनके पिता चाहते थे कि मीरा उनकी ही तरह इंजीनियर बने. 12वीं के बाद जब उनके पैरेंटस ने पूछा कि वे किस कैरियर की ओर बढना चाहती हैं तो मीरा ने एक्टिंग का नाम ले लिया और उसके बाद ही मीरा की मम्मी उन्हें लेकर मुम्बई आ गई. अब खेल और इंजीनियरिंग के दोनो रास्ते पीछे छूट गये. 3 साल के एक्टिंग कैरियर में मीरा ने अपने काम से पहचान बना ली. वे एक्टिंग के साथ अपनी पढ़ाई को भी आगे जारी रखते हुये बीए कर रही हैं.

मीरा को पहला रोल ‘ससुराल सिमर का’ में मिला था. वह बहुत बडा रोल नहीं था पर इससे उनमें हौसला बढा. मीरा की असल पहचान सीरियल ‘दिल्ली वाली ठाकुर गर्ल्स’ में मिला. यह रोल उनके हिसाब का था. इसके बाद उन्होंने ‘जिदंगी विंन्स’ में काम किया. इसके बाद मीरा को कलर्स टीवी के ‘उडान‘ सीरियल में चकोर का मुख्य किरदार निभाने को मिला. चकोर के बचपन का सीन खत्म होकर सीरियल युवा चकोर को साथ ले कर आगे बढ रहा है. छोटी चकोर के रूप में स्पंदन ने अपनी एक्टिंग से दर्शको को बहुत प्रभावित किया था.

बडी चकोर का किरदार निभा रही मीरा कहती है ‘काफी चैलेजिंग रोल है. सब कुछ पहले के जैसा ही है. बडे होने पर मेकअप और ड्रेस में बदलाव आया है जो इस किरदार को और भी खास बनाता है.शो की कहानी अभी भी बाल मजदूरी और उनके शोषण के आसपास घूमती है. इसमें उनके साथी कलाकार विजयेन्द्र का महत्वपूर्ण सहयोग है. मीरा कहती हैं कि “ ‘उडान’ में मुख्य किरदार निभाते समय मुझे शूटिंग के समय बहुत ही खास तवज्जों दी जाती है. जिससे कि अब उन्हें स्टार की फीलिंग आने लगी है.”

अपने संघर्ष के विषय में मीरा कहती हैं ‘एक्टिंग की दुनिया में नया सीखने की जरूरत हमेशा बनी रहती है. मुम्बई आने के बाद मैंने कुछ दिन एक्टिंग की ट्रेनिंग ली थी. उससे यही लाभ हुआ कि मुझे कैमरा फेस करना, स्क्रिप्ट याद रखना आ गया. एक्टिंग में परफेक्शन तो काम करने से ही मिलता है. यह हमेशा सीखने वाला काम है. स्कूल से ही स्पोर्टस के प्रति मेरी रूचि थी. यही वजह मुझे स्ट्रांग बनाती है. मेरा मानना है कि आप किसी भी फील्ड में हों, पर आपको स्पोर्ट्स का शौक जरूर रखना चाहिये. इसके साथ साथ एक ही कैरियर लेकर न चलें. यह सोंच कर चलें कि एक कैरियर में सफलता न मिले तो आप दूसरे करियर को अपना सकें. मैं एक्टिंग में सफल नहीं होती तो इंजीनियर या स्पोर्ट्स की फील्ड में ही जाती.

फाइल का नंबर

अह्लमद कक्ष में आ कर निहाल चंद ने इधरउधर देखा. फिर कुरते के नीचे पजामे के नेफे में खोंसा शराब का अद्धा निकाल कर मेज के पीछे बैठे फाइल क्लर्क गोगी सरदार को थमा दिया. गोगी सरदार ने फुरती से अद्धा दरवाजे के पीछे छिपा दिया

फिर मुसकराते हुए बोला, ‘‘तड़का सूखा नहीं लगता.’’

निहाल चंद मुसकराया. उस ने अपनी जेब से 100 रुपए का नोट निकाल कर थमा दिया. मूक अभिवादन कर वह बाहर चला गया.

निहाल चंद ढाबा चलाता था. पिछले साल एसडीएम ने स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ उस के ढाबे का अकस्मात निरीक्षण किया था. आटे के कनस्तर में चूहे की बीट पाई गई थी. इसलिए नमूना लेने का आदेश दे दिया. भरपूर कोशिश करने के बाद प्रयोगशाला से सैंपल पास नहीं करवाया जा सका था और अब उस पर अदालत में मिलावट का केस चल रहा था.

जिस जज की अदालत में मुकदमा था वह सख्त और ईमानदार था. रिश्वत नहीं खाता था. इसलिए लेदे कर मामला नहीं निबट सकता था. मुकदमे का फैसला होने पर सजा निश्चित थी. इसलिए निहाल चंद जोड़तोड़ कर तारीखें आगे बढ़वा लेता था. कभी बीमारी का प्रमाणपत्र पेश कर देता था. कभी उस के इशारे पर खाद्य निरीक्षक गैर हाजिर हो जाता था. कभी संयोग से जज साहब छुट्टी पर होते थे तब वह दानदक्षिणा दे कर लंबी तारीख डलवा लेता था.

लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी? मुकदमा सरकारी था. लिहाजा वादी पक्ष द्वारा दबाव इतना नहीं था. किसी का निजी होता तो वह सुनवाई के लिए दबाव डालता. सरकारी मुकदमे हजारों थे. बरसों चलते थे. एक मुकदमे का फैसला होने तक दर्जन भर जज बदल जाते थे. चंटचालाक लोग जोड़तोड़ कर मुकदमा पहले लंबा खींचते थे फिर जब माहौल मनमाफिक हो जाता था यानी जज या मैजिस्ट्रेट पैसा खाने वाला या सिफारिश मानने वाला आ जाता था तब मामला निबटा लिया जाता था.

 कई मामलों में, जहां सजा लाजिमी थी, मामला नहीं निबट पाता था. चंट लोग, खासकर पैसे वाले व्यापारी, अपनी जगह पैसे के लिए सजा काटने को तैयार आदमी का इंतजाम कर उसे अपने स्थान पर पेश कर देते थे. बेकारी, भुखमरी से लाचार या फिर भारी रकम के बदले जेल और घर में फर्क न समझने वाले मिल ही जाते थे,  जो चुपचाप सजा काट आते थे. बदले में उन के परिवार का पालनपोषण हो जाता था.

निहाल चंद जानता था कि उस को सजा हो जाएगी. इसलिए अब तक वह मामला खींचता आया था. मगर कब तक? कचहरी में बराबर आनेजाने से उसे पता चला था कि खाली पड़े मैजिस्ट्रेट के पद पर नया जज आ रहा था. स्वाभाविक था कि अन्य अदालतों से मुकदमे उस की अदालत में भेजे जाने थे.

अह्लमद बुलाकी राम और क्लर्क गुरविंदर सिंह उर्फ गोगी सरदार को जज साहब ने निर्देश दिया था कि वे उन की अदालत से कुछ मुकदमे, जिन में फौजदारी और दीवानी दोनों थे, नए जज साहब की अदालत में भिजवा दें.

अब चूंकि ये जज साहब न तो पैसा खाते थे न सिफारिश मानते थे, इसलिए निहाल चंद चाहता था कि उस के मुकदमे की फाइल नए जज साहब की अदालत में चली जाए. पेशियों पर चायपानी देते रहने से जानपहचान होनी ही थी. ऊपर से आदमी चंट था. अह्लमद से मामला तय हो गया था. फीस के साथ ‘तड़का’ भी दे आया था.

लंच टाइम हो गया था. दोनों रीडरों के साथ बुलाकी राम ने अह्लमद कक्ष में प्रवेश किया.

‘‘क्यों भई, आज लंच सूखा है या तड़के वाला?’’ रीडर गुलाटी ने पूछा.

‘‘तड़के वाला, साथ में मुरगी भी है,’’ गोगी सरदार ने हंसते हुए कहा.

चपरासी नंद किशोर चाय वाले से खाली गिलास उठा लाया. दरवाजा बंद कर तड़का गिलासों में डाला गया. गिलास समाप्त कर सभी ने मुरगी की टांग चबाई, फिर लंच शुरू हुआ.

‘‘नया मैजिस्ट्रेट तो सुना है कोई लड़की है, शायद नईनई रंगरूट है,’’ गुलाटी ने कहा.

‘‘अच्छा, कहां की है?’’

‘‘शायद रोहतक की है,’’ बुलाकी राम ने कहा.

‘‘बैकग्राउंड क्या है?’’

‘‘आम घर की है. उस का बाप, सुना है कोई सरकारी मुलाजिम था.’’

लंच समाप्त कर इलायची और

सौंफ मुंह में डाल सभी अपनी सीटों पर जा बैठे.

अगले दिन पेशी थी. निहाल चंद नई अदालत के सामने पहुंचा. उस की तरह के वहां अनेक लोग थे जो बाहर टंगे नोटिस बोर्ड पर अपनाअपना मुकदमा और उस का नंबर पढ़ रहे थे. निहाल चंद का मुकदमा भी नई अदालत में लग गया था. रीडर और कंप्यूटर औपरेटर अपनीअपनी सीट पर मुस्तैद थे. नई जज साहिबा अभी नहीं आई थीं. कोठी पर भी नहीं पहुंचीं. उन्हें शायद अदालत में ही अपनी ड्यूटी जौइन करनी थी.

अदालत पुरानी होती तो निहाल चंद और अन्य चतुर लोग रीडर की भेंटपूजा कर लंबी तारीख डलवा लौट जाते. अदालत का समय 10 बजे का था. अधिकांश जज साढ़े 10 से पहले अदालत में नहीं आते थे. यही 40-45 मिनट का समय अदालत के रीडर या स्टाफ की कमाई का होता था. अधिकांश पेशी टालने वाले रीडर को चायपानी का पैसा थमा पेशी ले खिसक जाते थे.

मगर यह अदालत नई खुली थी. नए जज साहब के मिजाज से कोई वाकिफ न था, ऊपर से वह नई रंगरूट लेडी जज थी. लिहाजा, रीडर की हिम्मत फाइलों पर नंबर और पेशियां डालने की नहीं हो रही थी.

निहाल चंद और उसी के समान मामला निबटाने की चाह रखने वाले धड़कते दिल से नई जज साहिबा का इंतजार कर रहे थे. अब 11 बज चुके थे.

तभी एक चमचमाती कार अदालत के बाहर रुकी. कार रुकते ही स्टेनगनधारी पुलिसमैन फुरती से उतरा और उस ने कार का दरवाजा खोल दिया व अदब से एक तरफ खड़ा हो गया.

सफेद झक सलवारकमीज और सफेद ही दुपट्टाधारी एक 25-26 साल की गंभीर चेहरे वाली युवती ने बाहर कदम रखा. आसपास खड़े पुलिसकर्मियों ने उन को सलाम किया. गरदन को हलका खम दे उन्होंने सधे कदमों से अदालत में प्रवेश किया.

चंद मिनटों बाद नई जज साहिबा ने अपना कार्यभार संभाल लिया. प्राथमिकता के तौर पर उन्होंने पहले पुलिस द्वारा पेश किए मामलों की सुनवाई की. किसी को रिमांड दिया, किसी को जेल भेजा तो किसी की जमानत ली. फिर खास मुकदमों की सुनवाई की.

लंच टाइम हो गया था. निहाल चंद को पहली बार अदालत के बाहर इतना समय खड़ा रहना पड़ रहा था. नई जज हर फाइल पर खुद ही नंबर और तारीख डाल रही थीं. रीडर पुराना अनुभवी था. वह जानता था कि जब कोई नया हाकिम या जज आता था, थोड़े दिनों तक इसी तरह मुस्तैदी दिखाता था, बाद में वह अपनेआप ढीला पड़ जाता था या माहौल उस को ढीला कर देता था.

नया हाकिम चूंकि लेडी थी, लिहाजा उस का मिजाज भांपना इतनी जल्दी संभव न था.

नई जज को शायद मिलावट से चिढ़ थी. इसलिए लंच ओवर होने के बाद सारे खाद्य संबंधी मुकदमों की खास खबर ली. निहाल चंद के मुकदमे की फाइल सामने आते ही उन्होंने गौर से देखा कि मुकदमा चले काफी समय हो चुका था, मगर कार्यवाही शून्य थी.

चपरासी ने आवाज लगाई. खाद्य निरीक्षक और निहाल चंद अपने वकील के साथ पेश हुए, ‘‘इस मुकदमे में सरकारी पक्ष के बयान भी नहीं हुए. बयान दर्ज करवाइए,’’ खाद्य निरीक्षक की तरफ देखते हुए जज साहिबा ने कहा.

आरोपपत्र पहले ही दायर था. खाद्य निरीक्षक ने अपना औपचारिक बयान दर्ज करवा दिया. जज साहिबा ने मुलजिम के बयान के लिए टाइमटेबल देख कर मात्र 1 सप्ताह बाद की तारीख लगा दी. निहाल चंद का चेहरा लटक गया. उस की चालाकी धरी की धरी रह गई थी.

1 सप्ताह बाद निहाल चंद के औपचारिक बयान दर्ज हुए. फिर अगले सप्ताह आरोपपत्र पर बहस हुई. अदालत ने मिलावट का आरोप मानते हुए मुकदमा चलाने का फैसला सुनाया. मात्र 3 माह में सुनवाई पूरी कर निहाल चंद को सश्रम 3 वर्ष की सजा सुनाई. अपने चंटपने और चालाकी को कोसता निहाल चंद अपील के लिए अपने वकील के साथ सत्र न्यायालय की तरफ जा रहा था.

 नरेंद्र कुमार टंडन

क्यों नकारते सत्य को अंधविश्वासी

कहीं दिखावे का स्वांग, कहीं डर से श्रद्धा, तो कहीं लकीर की फकीरी. कुल मिला कर यही हैं हम. हमारा समाज, जहां धर्मांधता के कारण पंडेपुजारियों, पुरोहितों द्वारा पर्व, उत्सवों को भी नाना प्रकार के कर्मकांडों से जोड़ कर सत्य तथ्यों को नकारते हुए उन का मूलभूत आनंदमय स्वरूप नष्ट कर दिया गया. शुभ की लालसा और अनिष्ट की आशंका से उन के पालन को विवश साधारण जनमानस का भयभीत मन अंधविश्वासों में घिरता चला गया, क्योंकि हमारे धार्मिक ग्रंथ भी इसी बात की पुरजोर वकालत करते हैं कि ईश्वर के बारे में, धार्मिक कार्यों में कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाना. बातें नहीं मानी तो नष्ट हो जाओगे.

भा. गीता श्लोक 18/58.

अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनंक्ष्यारी. यानी अब यदि तू अहंकार के  कारण नहीं सुनेगा तो पूर्णतया नष्ट हो जाएगा.

न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति. भा. गीता 18/67. यानी उसे यह (ज्ञान) तुझे कभी नहीं कहना चाहिए और न उसे, जो मेरी निंदा करता है.

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज.

अहं त्वा सर्व पापेश्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: भा. गीता 18/66. यानी जब धर्मकर्म (लोकधर्म अथवा लोकव्यवहार जो नाना संबंधों के माध्यम से निर्मित है) को त्याग कर तू सिर्फ मेरी शरण में आ जा. मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा. दुखी मत हो.

यह सब क्या है

अगर भगवान है तो भगवान सर्वशक्तिमान है और उन्हें सब से बताने की क्या आवश्यकता थी? फिर उन्होंने अपना वचन सारी भाषाओं में क्यों नहीं लिखवा दिया? कंप्यूटर सौफ्टवेयर की तरह उन के पास तो सारा ज्ञानविज्ञान हमेशा से है. फिर पत्रों, पत्थरों पर क्यों लिखवाया? जो उन्हें नहीं मानते उन के आगे ये गीताके भगवान के वचन कहनेपढ़ने को क्यों मना किया? जबकि उन के वचन तो कानों में पड़ते ही उन्हें पवित्र बन जाना था. सीधी सी बात है, वे तर्क मांगते और इन के पास कोई जवाब न होता और ढोल की पोल खुल जाती, सत्य सामने आ जाता. सत्य तथ्यों को नकारना, बिना तर्क बिना कारण जाने कुछ भी मान लेना, मनवाना यहीं से शुरू हो गया. धर्मभीरु बना मन यहीं से दुर्बल या यों कहें वहमी बनता गया. इस डर में नएनए अंधविश्वास जन्म लेते गए और अंधविश्वासी बढ़ते गए.

एक ही बात मन की गहराई में बैठ गई कि यदि अकारण, बिना तर्क ऐसा करने से अच्छा और न करने से बुरा हो सकता है, तो हमारे व दूसरों के और क्रियाकलापों से भी बिना तर्क ऐसा करने से अच्छा और न करने से बुरा हो सकता है, तो हमारे व दूसरों के और क्रियाकलापों से भी बिना अच्छाबुरा घट सकता है. बस शुरू हो गया अंधविश्वास का सिलसिला. कभी क्रिकेट की जीत के लिए, तो कभी ओलिंपिक मैडल के लिए, तो कभी नेताओं की चुनाव में जीत के लिए हवन कराए जाने लगते हैं. यदि इन सब से कुछ हो सकता तो बलात्कार, हत्या या दुर्घटना रोकने के लिए भारत महान में कोई हवन क्यों नहीं होता, यह सोचने की बात है.

दिखाने का स्वांग

बिल्ली ने एक बार रास्ता काटा, बुरा हुआ तो वहम हो गया, दोबारा हुआ तो वहम और गहरा हो गया. कहीं तीसरी बार हो गया तो अंधविश्वासी ही बन गया. डर इतना मन में बैठ गया कि रास्ता ही बदल लिया या किसी और के गुजरने का इंतजार कर लेने में ही भलाई समझी. आगे आजमाने की हिम्मत ही नहीं दिखाई गई. डर इतना घर कर गया कि कभी ध्यान भी न गया कि अच्छा भी हुआ था कभी. अपना डर दूसरों में भी डालते चले गए. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, माउथ टू माउथ सब जगह बात फैल गई. जितनी धर्मभीरुओं की संख्या बढ़ती गई उस से अधिक अंधविश्वास और अंधविश्वासियों की संख्या में वृद्धि होती गई. इसलिए सर्वप्रथम धर्म, दूसरा व्यक्ति का दुर्बल भीरु मन मुख्य कारण हैं, जिन के फलस्वरूप अंधविश्वासी सत्य तथ्यों को सरलता से नकारने लगे.

तीसरा कारण है दिखावे का स्वांग. जैसे कुछ जन धार्मिक कर्मकांडों में लिप्त रह कर जताते हैं कि वे बहुत ही धार्मिक हैं, इसलिए अधिक अच्छे, सच्चे और विश्वास के योग्य जन एक पवित्र आत्मा हैं. फिर भले ही वे दानपुण्य की आड़ में गोरखधंधा या कालाधंधा खूब चलाते हों. दुनिया व कानून की नजरों में धूल झोंकते हुए बेशुमार धनदौलत, नामसम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते हों.

परंपराओं की दुहाई

जमीर को ताक पर रख दें तो जीवन में और क्या चाहिए? वे सब इसी मंतव्य को मानने वाले बन जाते हैं. भ्रष्ट बड़ेबड़े नेता, टैक्स की चोरी करने वाली बड़ीबड़ी फिल्मी हस्तियां बड़ी शान से अपने लावलश्कर और मीडिया की चकाचौंध के साथ मंदिरों में, ट्रीटमैंट के मध्य, देवीदेवताओं के दर्शन, भारी दान, चैरिटी कर अपनेआप को धार्मिक, पवित्र और नेक दिखाने का ढोंग करते हैं. क्या यह आंखें खोलने के लिए पर्याप्त नहीं? सच तो यह है कि हम सो नहीं रहे, सब जानतेबूझते आंखें बंद कर के पड़े हैं. सही तो है कि सोए हुए को जगाया जा सकता है पर जागे हुए को नहीं.

चौथा कारण है लकीर की फकीरी व परंपराओं की दुहाई. हमारे पूर्वज, बड़ेबूढ़े जो करते चले आ रहे हैं, आंखें मूंद कर लकीर के फकीर बने हम भी उन का अनुसरण करते जा रहे हैं. ऐसा करना हम अपना कर्त्तव्य मानते हैं. उन के प्रति प्यारआदर दिखाने का एक तरीका समझते हैं. उन से कोई तर्क नहीं करते. बस अनुसरण करते चले जाते हैं. कुछ संतुष्टि मिली, कुछ अच्छा लगने लगा, करतेकरते फिर विश्वास भी होने लगा, वैसे ही जैसे ताला बंद कर आराम से घूमने निकल जाते हैं कि अब घर सुरक्षित हैं. उन कर्मकांडों, अंधविश्वासों को मान कर, पालन कर हम अपनेआप को भविष्य के प्रति सुरक्षित सा अनुभव करने लगे. बस जैसा अपने बड़ों को करते देखा है वैसा बिना सोचेसमझे करते चले आ रहे हैं.

5वां कारण है अशिक्षा, अज्ञानता. यह भी एक बहुत बड़ा कारण है. आज शिक्षा का बहुत तेजी से प्रसार हो रहा है. कुछ मस्तिष्क में क्यों, कैसे प्रश्न भी अंकुरित होने लगे हैं. व्यक्ति हर बात का पहले कारण जानना, फिर मानना चाहता है. परंतु अभी भी हमारे देश की जनसंख्या सौ प्रतिशत शिक्षित नहीं हो पाई है. मोबाइल, गाड़ी का प्रयोग तो करते हैं पर बाबाओं से चमत्कार की आशा में उन के पास जाना नहीं छोड़ते. उन के चंगुल में फंसते जाते हैं. साईं बाबा, आसाराम बापू जैसे लोग कहां गए? उन की असलियत आज किसी से छिपी नहीं. दुर्गम पहाडि़यों के संकरे रास्तों से जान जोखिम में डालने हुए मंगल की अभिलाषा में देवीदेवताओं के दर्शन करने सुदूर मंदिरों में पहुंच जाते हैं. कभीकभी जान से भी हाथ धो बैठते हैं. फिर भी उन्हें विश्वास होता है कि अपने शरीर को कष्ट देने से, भूखे रहने से या चढ़ावा आदि देने से देवीदेवता प्रसन्न हो कर कल्याण करते हैं, मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. परंतु कोई तर्क पूछे तो उत्तर नहीं रहता है उन के पास कि क्यों और कैसे संभव है?

बेसिरपैर की कहानी

किसी ने टोक दिया नजर लग गई और किसी काम के शुरू होते ही छींक दिया तो बुरा हो गया, कहीं काना व्यक्ति दिख जाए तो बहुत बुरा, आंख फड़कना, दीया बुझना, बिल्ली का रास्ता काटना, कुत्ते का रोना ऐसे न जाने अज्ञातवश कितने वहम पाल रखे हैं. शिक्षित हो कर अपना ज्ञान बढ़ा लें तो उन्हें कारणअकारण समझ आ जाए. दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिस का कारण न हो, तर्क न हो. नहीं जानते तो यह हमारी अज्ञानता ही कही जाएगी.

रातदिन कैसे होते हैं? नहीं मालूम तो कुछ भी मनगढंत अटकलें लगा लें. जैसे राक्षस रोज सूर्य को निगल जाता है या बेसिरपैर की कोई और कल्पना. आज भी जाने कितनी कला, कितना विज्ञान दुनियाजहान में छिपा पड़ा है. हमें उस ओर अपना मस्तिष्क दौड़ाना है. मनगढंत बातों से बचना है, जिस के लिए शिक्षा के साथसाथ ज्ञान का होना नितांत आवश्यक है.

हम समय का सदुपयोग न कर निरर्थक कार्यों, ढकोसलों में व्यस्त रह कर यह अनमोल जीवन व्यर्थ में गंवाते हैं. अंधविश्वासों से घिर कर पूर्णतया प्रसन्न भी नहीं रह पाते हैं. इसलिए शिक्षा के साथसाथ जनजन को अपनी बुद्धि के बंद दरवाजे खोल सब से पहले ज्ञान का प्रकाश अपने भीतर फैलाना चाहिए.

– डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

तीसरी आंख से रहें सावधान

स्टूडैंट लाइफ जी रही रीता एक दिन बहुत परेशान थी. कई तरह की आशंकाएं उस के दिमाग में उठ रही थीं. उसे पूरा यकीन था कि वह खुद भी अनजाने में ऐसे गुप्त हथियार का शिकार हुई है, जो उस का सामाजिक जीवन खराब कर सकता है. पर सुकून इस बात का भी था कि उस हथियार का इस्तेमाल करने वाला पकड़ा गया था. रीता शायद कभी परेशान न हुई होती यदि उसे पता नहीं चलता कि शहर के एक कपड़ों के शोरूम के ट्रायलरूम में हिडेन कैमरा पकड़ा गया है. रीता को चूंकि शौपिंग का शौक था, इसलिए अकसर उसी शोरूम में कपड़ों की खरीदारी करने जाती थी. उसे इस बात का पछतावा था, लेकिन दिल के एक कोने में सुकून भी था कि अब शर्मनाक सिलसिला किसी के साथ नहीं चलेगा.

रीता कोई अकेली लड़की नहीं, बल्कि कब कौन युवती या महिला हिडेन कैमरे का शिकार हो जाए, कोई नहीं जानता. 1 साल पहले राजधानी दिल्ली के लाजपतनगर की सैंट्रल मार्केट में ब्रैंडेड कपड़ों के एक शोरूम में जो सच सामने आया था वह बेहद चौंकाने वाला था. दरअसल, एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करने वाली रूबी शोरूम गई. ट्रायलरूम में उस ने देखा कि एक गैप के पीछे की तरफ कैमरा लैंस है. उस ने बाहर निकल कर चैक किया, तो वहां चालू हालत में वीडियो मोड पर मोबाइल लगा हुआ दिखा. हंगामा हुआ तो पुलिस आ गई. इस के बाद पता चला कि शोरूम कर्मी ही इस शर्मनाक करतूत को अंजाम दे रहा था. पुलिस ने उस के खिलाफ छेड़छाड़ की धारा- 354, 354 (सी) व आईटी ऐक्ट के अंतर्गत केस दर्ज कर के जेल भेज दिया.

सार्वजनिक जीवन में संकट

इस से पहले नोएडा शहर के एक गर्ल्स होस्टल के बाथरूम में भी हिडेन कैमरा पकड़ा गया था. जांच के दौरान वहां 3 कैमरे मिले थे.

जयपुर की रहने वाली एक युवती ने एक शोरूम में अपने लिए नए कपड़े खरीदे. कपड़ों को पहन कर देखने के लिए वह चेंजिंगरूम में गई. उस ने 3 टौप बदल कर देखे तभी अचानक उस की नजर छत पर लगे कैमरे पर गई, तो उस के होश उड़ गए. पुलिस ने इस मामलें में काररवाई की.

इस तरह के कई मामले सामने आने लगे हैं. गत वर्ष भाजपा नेत्री स्मृति इरानी ने गोवा स्थित फैब इंडिया के शौरूम के ट्रायलरूम में हिडेन कैमरा पकड़ा. कंप्यूटर हार्डडिस्क की जांच हुई, तो पता चला कि जो भी महिला कपड़े बदलती थी उस के पेट के ऊपर के हिस्से की रिकौर्डिंग होती थी.

ट्रायलरूम, गर्ल्स होस्टल, बाथरूम, कालेज, सार्वजनिक शौचालय, होटल के कमरे में लगा हिडेन कैमरा किसी को भी अपना शिकार बना सकता है. ऐसे में युवतियों व महिलाओं को ऐसी जगहों का इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह छानबीन कर लेनी चाहिए. सतर्क नहीं होंगे तो आप की तसवीरों और वीडियो को पोर्न वैबसाइट से ले कर सोशल मीडिया तक  सार्वजनिक किया जा सकता है.

कौन शातिर हिडेन कैमरे से आप की तसवीरें या वीडियो उतार ले कुछ कहा नहीं जा सकता. सार्वजनिक जीवन में बड़ा संकट आ सकता है. ट्रायलरूम के शीशे के पीछे से भी कोई आप को देख सकता है. इस की खबर भी नहीं होगी. कुछ खास किस्म के कांच किसी भी ट्रायलरूम में हो सकते हैं, जो दिखने में बिलकुल सामान्य लगते हैं. अगर किसी जगह कोई छोटी लाइट या काला बिंदु नजर आए तो सावधान हो जाना चाहिए. ऐसा स्थान जो खासतौर पर महिलाओं के लिए ही बनाया गया हो वहां कैमरे होने की संभावना सब से अधिक होती है. ट्रायलरूम में कपड़े बदलते वक्त पता भी नहीं होता कि वहां कैमरा लगा है.

शिकार होने से बचें

कई बार शातिर लोग वीडियो रिकौर्ड कर के उसे एमएमएस के तौर पर तैयार कर लेते हैं और फिर ब्लैकमेल भी करते हैं. हरियाणा के रोहतक का मामला कुछ ऐसा ही रहा जहां एक लड़की का एमएमएस तैयार कर के उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई. दरअसल, स्टेडियम में कुश्ती की प्रैक्टिस करने वाली एक नाबालिग का चेंजिंग रूम में वीडियो तैयार कर के सैक्सुअल रिलेशन का प्रैशर बनाया. प्लेयर तनाव में आ गई, जिस के चलते उस ने आत्महत्या का प्रयास किया, तो मामला खुला.

वैसे किसी होटल या अनजान कमरे में जाते समय कुछ सावधानियां बरती जाएं, तो हिडेन कैमरे का शिकार होने से बचा जा सकता है. जानकार मानते हैं कि यदि कहीं हिडेन कैमरा नजर आ जाए, तो उसे बिलकुल नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. आप की खामोशी दूसरी महिलाओं के लिए मुसीबत बन सकती है. कैमरा पकड़ में आए, तो मौके पर खुद फैसला करने की कतई न सोचें. ऐसे में शोरशराबा करने और झगड़े से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसी जगहों के संचालक सुबूतों को नष्ट कर सकते हैं. बेहतर तरीका यही है कि अपने परिचितों के साथ पुलिस को तत्काल सूचना दे दी जाए.

मानसिक रूप से बीमार

साइबर क्राइम ऐक्सपर्ट कर्मवीर सिंह कहते हैं कि किसी मौल, होटल या रेस्तरां आदि के ट्रायल या बाथरूम में महिलाओं को देखना चाहिए कि वहां की दीवारें गहरे रंग की न हों. सफेद रंग की दीवारें होने पर खुफिया कैमरे के होने की संभावना नहीं होती, क्योंकि कैमरे का लैंस व्हाइट नहीं होता. गहने रंग वाली दीवारों में कैमरा लगाना आसान होता है और वह पकड़ में भी नहीं आता. ट्रायलरूम में पूर्ण प्रकाश व्यवस्था होनी चाहिए. प्रकाश कम होगा, तो कैमरे को पकड़ना मुश्किल होगा.

डाक्टर फरीदा खान कहती हैं, ‘‘ऐसे लोग किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से बीमार होते हैं, वे कुंठित होते हैं. जब वे गलत तरीके की हरकतें करने की हिम्मत नहीं कर पाते, तो अपनी कुंठाओं को शांत करने के लिए इस तरह के वीडियो बना कर देखते हैं और उन का गलत इस्तेमाल भी करते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि वीडियो सार्वजनिक करने से किसी की जिंदगी भी तबाह हो सकती है.’’

राजकोट में सामने आया एक मामला इसी कुंठा से मिलताजुलता है. एक फोटोग्राफर ने अपने स्टूडियो में ट्रायलरूम बनाया था जहां महिलाएं फोटो खिंचाने के लिए कपड़े बदलती थीं. उस ने वहां एक कैमरा छिपा कर रखा था. जैसे ही कोई ग्राहक वहां कपड़े बदलने के लिए जाती थी, तो वह चुपके से कैमरा औन कर देता था, जिस की रिकौर्डिंग उस के कंप्यूटर में होती थी.

घिनौनी मानसिकता

उत्तराखंड के देहरादून शहर के एक व्यक्ति ने तो सभी सीमाओं को लांघ दिया. अधेड़ उम्र का सरबजीत पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह हमेशा आदर्श व संस्कारों की बात किया करता था. यों तो वह खुद 2 शादीशुदा बेटियों का पिता था, लेकिन हकीकत में वह इनसानियत को शर्मसार कर देने वाली घिनौनी मानसिकता का वारिस था. जवान लड़कियों के जिस्म को देखना और उन की क्लिप तैयार करना उस का रोजमर्रा का काम था. अनगिनत लड़कियों को बेलिबास देख कर वह अपनी कुंठा को शांत करता था. लड़कियों के बाथरूम में लगाए गए वैब कैमरे के जरीए वह उन की हर हलचल को अपने बैडरूम में लगे कंप्यूटर पर गुपचुप देखता था. वह अकेला रहता था और अपने घर के कमरों में छात्राओं को ही बतौर किराएदार रखता था. उसे खुद भी याद नहीं था कि उस ने अब तक कितनी लड़कियों को अपनी गंदी नजरों का शिकार बनाया. इस अजीब मानसिकता का भी वह शिकार था कि जल्द ही वह एक लड़की को देख कर उकता जाता था और नई लड़की की ख्वाहिश जाग उठती थी, तो वह बहाने से कमरा खाली करा लेता था. वह पकड़ा नहीं जाता, यदि एक लड़की की नजर बाथरूम के गीजर में लगे कैमरे पर न गई होती.            

यहां हो सकते हैं कैमरे

हिडेन कैमरा छिपाने की कुछ खास जगहें निर्धारित होती हैं. इस के लिए पहले से सतर्क रहा जाए, तो किसी के गलत इरादों से बिलकुल बचा जा सकता है. ऐक्सपर्ट्स की मानें, तो जिन चीजों में कैमरा होने की संभावना अधिक होती है उन में फूलों के गमले, फोटो फ्रेम, छत के सैंटर में लगा पंखा, बाथरूम का शावर, गैस या बिजली का गीजर, बिजली का स्विच, कमरे के हैंगर हुक, दीवार की घड़ी, फैंसी लाइट व बेकार रखे टीवी रिमोट शामिल होते हैं. इस के अलावा कपड़ों के शोरूम के ट्रायलरूम में भी कैमरा होने की संभावना ज्यादा होती है.

शरीर के ऊपरी भाग को कवर करने वाले कैमरे दीवार के बल्ब, दरवाजे, अलमारी के हैंडल या डिजाइन में हो सकते हैं.

शरीर के निचले भाग को कवर करने वाला कैमरा किसी बेकार पड़े सामान, स्टूल, मेज या दरवाजे के अंदर सफाई से छिपाया गया हो सकता है. शीशे के पीछे भी कैमरा हो सकता है. होस्टल या होटल के रूम में कैमरा शीशे के पीछे, टीवी सैट के अंदर, सजावटी सामान या एसी में हो सकता है. वाशरूम में कैमरा आमतौर पर शीशे के पीछे, किसी कोने या किसी सजावटी वस्तु में हो सकता है.

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