फिल्म रिव्यू : पूर्णा

25 मई 2014 को 13 वर्षीय लड़की पूर्णा मालावात ने एवरेस्ट की उंची चोटी पर पहुंचकर एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे कम उम्र की लड़की बन गयी थी. उसी लड़की की कहानी को सिनेमा के परदे पर राहुल बोस लेकर आए हैं. कम बजट में बनी यह फिल्म कुछ कमियों के बावजूद देखने लायक व प्रेरणा दायक फिल्म है. पहाड़ों की चढ़ाई में रूचि न रखने वाले भले ही इसका ज्यादा आनंद न ले सकें, मगर एक 13 वर्षीय लड़की की कहानी उन्हे अंत तक बांधकर रखती है.

फिल्म ‘पूर्णा’ की कहानी आंध्र प्रदेश के एक गांव की लड़की पूर्णा मालावत(अदिति इनामदार)की कहानी है. घर के आर्थिक हालात बहुत खराब हैं. वह सरकारी स्कूल की फीस भी नहीं दे सकती. पूर्णा के साथ उसकी चचेरी बहन प्रिया(एस मारिया) भी पढ़ती है. एक दिन प्रिया को पता चलता है कि एक स्कूल ऐसा भी है, जहां रहकर पढ़ाई करनी होती है और वहां पर फीस नहीं लगती. इसके अलावा वहां पर भरपेट व अच्छा भोजन भी मिलता है. प्रिया व पूर्णा योजना बनाकर घर से भागने की तैयारी करती हैं. मगर प्रिया का खड़ूस पिता उन्हे पकड़ लेता है.प्रि या की कम उम्र में ही शादी हो जाती है.

इधर पूर्णा के पिता अपने भाई के मुकाबले कम कठोर हैं. उनके पास पूर्णा की शादी के लिए उस वक्त पैसे नहीं थे, इसलिए वह दो तीन साल तक पढ़ने के लिए पूर्णा को सरकारी बोर्डिंग स्कूल में भेज देते हैं. बोर्डिंग स्कूल का घटिया खाना देखकर पूर्णा गुस्साती है और बोर्डिंग स्कूल छोड़कर भागती है. उधर अमरीका से पढ़ाई करके डॉ. आर.एस. प्रवीण कुमार(राहुल बोस)लौटे हैं, जो कि मुख्यमंत्री(हर्षवर्धन) व अन्य अफसरों के साथ बैठकर बातें कर रहे हैं. मुख्यमंत्री प्रवीण को पुलिस विभाग में भेजना चाहते हैं, पर वे स्कूल के निरीक्षण अधिकारी बनना चाहता है.

खैर, मुख्यमंत्री उन्हें स्कूल का निरीक्षण अधिकारी बना देते हैं. पद संभालते ही प्रवीण कुमार को पूर्णा के भागने की खबर मिलती है. मजबूरन अपनी सहायक के साथ वह संबंधित स्कूल की तरफ रवाना होते हैं. रास्ते में एक जगह रोती हुई पूर्णा पर नजर पड़ती है. प्रवीण कुमार उससे बात कर उसे समझाकर वापस बोर्डिंग स्कूल लेकर आते हैं. वहां के प्राचार्य व अन्य शिक्षक बड़ी बड़ी बातें हांकते हैं.

प्रवीण बोर्डिंग में बच्चों को परोसे जाने वाले खाने का निरक्षण करने के लिए है, वहां खाने पहुंच जाते हैं और पहला कौर मुंह में लेते ही हैरान रह जाते हैं. फिर वह कैंटीन के ठेकेदार व कुछ शिक्षकों को निकाल देते हैं. आंदोलन होता है. एक शिक्षक मुख्यमंत्री से शिकायत की बात करता है, प्रवीण कुमार स्वयं मुख्यमंत्री को फोन लगाकर उसके हाथ में फोन पकड़ा देते हैं.

उसके बाद धीरे धीरे चीजें सुधरने लगती हैं. इधर एक माह की स्कूल में छुट्टी होने पर कुछ बच्चे पर्वतारोहण के प्रशिक्षण के लिए जा रहे होते हैं, तो पूर्णा अपनी बहन प्रिया से बात करने के बाद उन्हीं बच्चों के साथ चली जाती है. साथ में उसका दोस्त आनंद (मनोज कुमार)भी है. उसकी मेहनत देखकर वहां के अफसर खुश हो जाते हैं.

चार बच्चों के साथ पूर्णा को प्रशिक्षण के लिए देहरादून भेजा जाता है. अंत में आर्मी के लोग उसे व आनंद को एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रशिक्षण देते हैं. अब जब एवरेस्ट पर चढ़ने का अवसर आता है, तो एक महिला अफसर मीना गुप्ता(हीबा शाह) विरोध कर देती है. तब फिर प्रवीण कुमार मुख्यमंत्री की मदद लेते हैं. अंततः आनंद व पूर्णा को पर्वतारोही के रूप में एवरेस्ट पर चढ़ने का अवसर मिल जाता है. कई कठिनाईयों के बावजूद वह दोनों सफलता पाते हैं.

बायोपिक फिल्म ‘पूर्णा’ देखते समय एक भावुक व प्रेरक कहानी का आनंद मिलता है. लेखक प्रशांत पांडे व श्रेया देव वर्मा तथा निर्देशक राहुल बोस ने एक छोटी लड़की के जिंदगी में आगे बढ़ने या उम्मीदों के टूटने पर नम होती आंखों के साथ जो मानवीय भावनाएं होती हैं, उन्हे बहुत बेहतरीन तरीके से परदे पर उकेरा है. एक बेहतरीन व सटीक पटकथा, बेहतरीन निर्देशन, कैमरामैन सुभ्रांशु की बेहतरीन फोटोग्राफी, 13 वर्षीय लड़की अदिति इनामदार की बेहतरीन पर्फमेंस के चलते फिल्म बेहतर बन गयी है.

फिल्म का गीत संगीत भी फिल्म को उत्कृष्ट बनाने में मदद करता है. फिल्म में बाल विवाह, सरकारी तंत्र के काम करने के तरीके, सिस्टम की कमियों के साथ ही इस बात को भी उजागर किया गया है कि जब सिस्टम ठीक से काम करता है तो कई प्रतिभाओं को विकसित होने का मौका मिलता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म देखते समय इस बात का एहसास ही नहीं होता कि अदिति इनामदार की यह पहली फिल्म है. उन्होंने जबरदस्त प्रतिभा का परिचय दिया है और अपने किरदार पूर्णा को सार्थक किया है. इसके अलावा राहुल बोस सहित सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है. फिल्म में कुछ कमियां हैं, इसके बावजूद यह फिल्म हर इंसान को न सिर्फ देखना चाहिए, बल्कि अपने बच्चों को भी दिखाना चाहिए.

1 घंटा 45 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘पूर्णा’ का निर्माण अमित पटनी और राहुल बोस ने किया है .लेखक प्रशांत पांडे व श्रेया देव वर्मा, संगीतकार सलीम सुलेमान, कैमरामैन सुभ्राशु, निर्देशक राहुल बोस तथा कलाकार हैं- अदिति इनामदार, राहुल बोस, हीबा शाह व अन्य.

अपना काम स्वयं करें

अच्छी आदतें हमारे व्यक्तित्व को निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अच्छी आदतों से हमारे लाइफस्टाइल में लगातार निखार आता है. कैसी भी परिस्थितियां हों, अच्छी आदतों के कारण बुरे से बुरे समय में भी आप के अंदर एक आत्मविश्वास रहता है, जिस से जीवन के रास्ते खुद सहज होते चले जाते हैं.

इन्हीं अच्छी आदतों में से एक है अपना काम स्वयं करने की आदत यानी परिश्रम और मेहनत से कभी भी पीछे न हटना. हर व्यक्ति चाहे किशोर ही क्यों न हों, में यह आदत वरदान है. किशोरावस्था से ही यदि अपना काम स्वयं करने की आदत खुद में विकसित कर लें, तो हर क्षेत्र में सफलता की उम्मीद रहेगी.

अपना हाथ मजबूत करें

इंसान अपने हाथों से अपनी मेहनत, अपनी कर्मठता द्वारा सफलता के शिखर को छू सकता है. हाथ पर हाथ रखे बैठे रहने से आलसी व्यक्ति अपना जीवन बेकार कर लेता है. इसलिए बच्चों को अपने हाथों को हमेशा मजबूत बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए. किशोर जो भी काम करें, उस

में दूसरे व्यक्ति की भूमिका कम से कम हो. किसी भी काम को छोटा या बड़ा न समझें. अपनी क्षमता को देखते हुए जो भी बन पड़े अपने काम को करते रहना चाहिए. धीरेधीरे काम की आदत में निखार और निपुणता का विकास होता चला जाएगा.

घर से करें शुरुआत

कहा जाता है कि घर बच्चों की प्रथम पाठशाला है. घर में बहुत से काम होते हैं, जिन में अपनी मांबहन या बड़ों की मदद से काम करने की शुरुआत की जा सकती है. अपने काम खुद करने की आदत डालें.

सुबह उठने के बाद अपना बिस्तर ठीक करना, चादर आदि तह बना कर रखना, बिखरे सामान निश्चित जगह पर रखना, नहाते समय बाथरूम में बहता साबुन का पानी साफ करना, जमा पानी को वाइपर द्वारा निकालना, अपना गीला तौलिया धूप में सुखाना, जूते पौलिश करना आदि बहुत से ऐसे छोटेमोटे काम हैं जिन्हें किशोर खुद करने की आदत डालें.

इस से जहां किशोरों में आत्मनिर्भरता विकसित होती है वहीं वे हर किसी के दुलारे भी बनते हैं. भविष्य में किसी कारणवश घर से दूर रहना पड़े तो भी ज्यादा असुविधा नहीं होती.

नौकर हैं तो खुद काम क्यों करें

बहुत से घरों में काम करने के लिए नौकर या मेड रखे होते हैं. ऐसे में यह सोच पनपना स्वाभाविक है कि किशोर काम क्यों करें? इस प्रसंग में एक प्रेरक कहानी प्रस्तुत है, ‘बेहद अमीर खलीफा हजरत (मुहम्मद साहब के साथी) के घर रात के समय किसी जरूरी काम से एक सज्जन आए, उस समय सभी नौकर सोने जा चुके थे.

‘खलीफा ने उन के सभी कागजों को ध्यान से पढ़ना शुरू किया ही था कि लैंप में तेल खत्म हो गया और वे तेल लेने के लिए उठे. तभी मेहमान ने हैरानी से कहा कि आप नौकर को क्यों नहीं उठा देते. आप को क्या पता कि तेल कहां रखा होगा.

‘खलीफा ने कहा कि नौकर भी तो इंसान ही हैं. उन्हें भी आराम और छुट्टी की जरूरत होती है, उन के साथ भी मैं छोटेमोटे काम करता रहता हूं ताकि उन की अनुपस्थिति में मुझे कोई परेशानी न हो.’

अकसर देखा गया है कि मेड या नौकर के छुट्टी पर जाते ही घर में काम को ले कर अफरातफरी मच जाती है इसलिए मेड के साथ भी छोटेमोटे काम कराते रहें. नौकर या मेड के होने पर काम की आदत होने से थोड़ीबहुत असुविधा तो होगी पर काम भारी बोझ नहीं लगेगा.

एक और बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि वक्त हमेशा एकसमान नहीं रहता, इसलिए मेड या नौकरों पर निर्भरता एक हद तक रखनी चाहिए. अपने हाथों पर भरोसा रखें और मेहनत से काम करने की आदत डालें.

अगर आप ऐसा करेंगे तो जीवन में कैसा भी बदलाव आए, आप को कोई चिंता या भय नहीं सताएगा. मेड के न आने पर भी परिजनों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. साथ ही घर में कितने भी सदस्य हों सभी काम समय रहते पूरे हो जाएंगे.

रसोई में करें छोटेमोटे काम

जब भी समय मिले रसोई में किसी बड़े के साथ मिल कर छोटेमोटे काम करते रहना चाहिए. रसोई में आजकल बहुत से सहायक यंत्र आ गए हैं जैसे, मिक्सी फूडप्रोसैसर, माइक्रोवेव, ओवन आदि जिन की मदद से खाना बनाना बहुत आसान हो गया है. किशोर मां के साथ किचन में चाय बनाना, सब्जी काटना, बाजार से लाया गया सामान डब्बों में डालना या सुनिश्चित स्थान पर रखना, डाइनिंगटेबल पर बरतन, मैट लगाना, पानी रखना, मेहमानों के आने पर पानी देना, खाना सर्व करना आदि बड़े आराम से कर सकते हैं. काम करते रहने से आप में एक सैल्फ कौन्फिडैंस डैवलप होगा. आप को पता होगा कि किचन में कौन सी चीज कहां रखी है. इस से अकेले रहने पर आराम से अपने लायक भोजन का इंतजाम कर सकेंगे.

अपना काम खुद करने के फायदे

अपना काम स्वयं करने के बहुत से फायदे हैं. मेहनत और काम का अभ्यास होने से आप को भविष्य में आराम हो सकता है कभी भी नुकसान नहीं होगा. आज के दौर में अकसर घर से दूर जौब या पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है. ऐसे में आप को घर से दूर बाहर अकेले होस्टल में, किराए पर या बतौर पीजी में रहना पड़ सकता है.

अगर आप को किचन या घरेलू कामों की समझ होगी तो अपना इंतजाम अच्छे से कर पाएंगे. रोजरोज बाहर का खाना बहुत महंगा भी पड़ता है और उस के हाइजैनिक होने की भी गारंटी नहीं होती.

अन्य फायदे

सेहतमंद लंबी उम्र : काम करने से शरीर मजबूत बनाता है. इम्यूनिटी बढ़ती है और सेहत ठीक रहती है. एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग का विकास होता है. एकाग्रता भी बढ़ती है और आप अपनी पढ़ाई आराम से कर सकते हैं.

कार्य कुशलता : किसी भी काम के निरंतर करते रहने से आप उस के अभ्यस्त हो जाते हैं. यह कार्यकुशलता जीवन में हमेशा आप को लाभ पहुंचाएगी.

मजबूत रिश्ते : सेहतमंद और कुशाग्रबुद्धि का बच्चा समाज में हर रिश्ते को सफलता से जीता है. उस का सामाजिक दायरा हमेशा बड़ा रहता है.

दिनचर्या में सुधार : अपने काम को नियम और सुचारु रूप से करने से आलसभरी दिनचर्या में बदलाव आता है. जो काम धीरेधीरे पूरे दिन घसीट कर किया जाता था वह समय पर पूरा हो जाता है. इस से पढ़ाईर् या कुछ भी करने के लिए समय की काफी बचत हो जाती है.

नई सोच और संतोष : काम की आदत के विकास से आत्मनिर्भरता का गुण विकसित होता है. काम की सफलता के बाद एक उत्साह और संतोष का भाव जागता है, जिस से जीवन में उन्नति के नए मार्ग खुलते हैं.

सुंदरता में निखार : काम करने से शरीर ऐक्टिव रहता है. चेहरे पर आत्मविश्वास झलकता है. पसीना निकालने से शरीर का जमा फैट निकल जाता है.

अंत में हम कह सकते हैं कि एक सुनहरे भविष्य के लिए मेहनत और काम करने का जज्बा होना बेहद जरूरी है. एक एवरेज स्टूडैंट अपनी मेहनत से आलसी व कुशाग्रबुद्धि छात्र से ज्यादा आगे निकल जाता है. जिंदगी जीना ही सिर्फ हमारा मकसद नहीं होना चाहिए बल्कि किसी लक्ष्य को प्राप्त करना, जीवन को भरपूर जीना और खुश रहना हमारा मकसद होना चाहिए.

फिल्म रिव्यू : नाम शबाना

फिल्म ‘नाम शबाना’ एक्शन स्पाई थ्रिलर फिल्म है, जिसे शिवम् पाण्डेय ने निर्देशित किया है. इस प्रकार की फिल्म पहले भी आ चुकी है, और इसमें अधिकतर फिल्मों में अक्षय ने ही अभिनय किया है. पर यहां सबसे अलग बात यह है कि इस फिल्म में तापसी पन्नू ने एक्शन किया है.

फिल्म को देखकर लगता है लेखक और निर्देशक इस फिल्म को बनाते समय थोड़ी दुविधा में थे. तापसी पर पूरी तरह से विश्वास न होने की वजह से ‘स्टार फैक्टर’ अक्षय कुमार को लिया गया, जो पूरी फिल्म के दौरान कहानी को सपोर्ट करती हुई दिखे. हालांकि अक्षय की एंट्री फिल्म में काफी देर से हुई. फिल्म के शुरुआत में लग रहा था कि फिल्म मनोज वाजपेयी और तापसी पन्नू के कंधों पर है और कहानीकार ने तापसी पन्नू को ही ध्यान में रखकर ही पूरी कहानी लिखी है. लेकिन अक्षय के पर्दे पर आने के बाद कहानी में थोड़ी दम आया.

तापसी ने अपनी भूमिका को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत की है. पर लचर पटकथा की वजह से उनका अभिनय बहुत अधिक उभर कर नहीं आ पाया. शुरु में फिल्म की रफ्तार बहुत धीमी थी, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म ठीक लगी. मनोज बाजपेयी इसमें कुछ खास नहीं कर पाए हैं.

कहानी

शबाना (तापसी पन्नू) एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की है, जो अपनी मां के साथ रहती है. उसका अतीत काफी दर्दनाक है. वह कूडो चैम्पियन है और उस क्षेत्र में नाम कमाना चाहती है. वह एक साहसी लड़की है और किसी को भी सबक सिखाने से पीछे नहीं हटती. उसका एक लॉयल बॉयफ्रेंड है. लेकिन एक दिन जब वह अपने बॉयफ्रेंड के साथ उसका बर्थडे मनाकर बाइक के पीछे बैठकर घर लौट रही थी, तो रास्ते में कुछ  मनचले लड़कों ने उसके साथ छेड़खानी की और शबाना उन लड़कों से लड़ पड़ी.

इसी झगड़े में उसके बॉयफ्रेंड का मर्डर उसकी आंखों के सामने हो जाता है. परेशान और दुखी शबाना उन लड़कों को सबक सिखाना चाहती है. इसी बीच मनोज वाजपेयी (भारत की एक सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख) को एक फुर्तीले और जाबांज एजेंट की तलाश है, क्योंकि उन्हें टोनी (पृथ्वीराज सुकुमारन)को मारना है. टोनी देश में आर्मस की सप्लाई करता है, पर उसे कोई भी पकड़ नहीं पाया है.

शबाना के सारे साहसी कारनामो को मनोज बाजपेयी कैमरे में कैद करते हैं और एक दिन उससे खुश होकर वह एक डील करते हैं ,जिसमें दोनों को फायदा हो. शबाना राजी हो जाती है और अपना बदला लेकर खतरनाक मिशन पर निकल पड़ती है, जिसमें उसका साथ देता है, एजेंट अजय सिंह राजपूत(अक्षय कुमार). इस प्रकार काफी जद्दोजहद के बाद कहानी अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म में गानों का अधिक महत्व नहीं दिखाई पड़ा, कोई भी गाना ऐसा नहीं था जो, गुनगुनाया जा सके. फिल्म जरुरत से अधिक लम्बी है. पटकथा को और अधिक काट-छांट करने की जरुरत थी. अगर आप एक्शन फिल्म पसंद करते हैं तो ये एक बार देखने लायक है. इसे टू एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

                                                   

हैप्पी बर्थडे नागेश कुकुनूर

‘हाय…आई एम नागेश कुकुनूर…नाम तो सुना ही होगा?’ जी नहीं, इसकी कोई गैरंटी नहीं कि आपने नागेश कुकुनूर का नाम सुना ही होगा. हैरतअंगेज बात तो है पर यह हकीकत है. नागेश कोई राहुल तो नहीं, जिनका नाम आपने सुना होगा, और आप अंदर ही अंदर वैसा बनना चाह रहे होंगे या राहुल जैसा कोई प्रेमी ढूंढ रहे होंगे. खैर… नागेश के बारे में ये कहना गलत नहीं होगा, कि वे कोई खास(क्योंकि अधिकतर लोगों के लिए खास वहीं हैं, जो पर्दे पर दिखते हैं) न होकर भी बहुत खास हैं.

आज अचानक नागेश के बारे में बात करने की वजह है. वैसे भी बिना वजह बातें की नहीं की जाती. अब कोई तथाकथित सुपरस्टार छींक भी दे तो खबर बन जाती है, पर कुछ ऐसे पर्दे के पीछे के सुपरस्टार हैं जिन्हें दो-तीन मौकों पर ही खास तौर से याद किया जाता है. पहला, अगर उन्होंने कोई अवार्ड जीता हो, दूसरा अगर उनका जन्मदिन हो और तीसरा अगर वे कुछ सरफिरों का शिकार हुए हों. पर नागेश को किसी धर्म और संस्कृति को बचाने वाली झुंड का शिकार नहीं होना पड़ा है और आज नागेश का जन्मदिन है.

नागेश कुकुनूर नायडु या नागेश कुकुनूर पैरेलल सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हैद्राबाद ब्लूज(1998), रॉकफॉर्ड(1999), इकबाल(2005), डोर(2006), आशायें(2010), लक्ष्मी(2014), धनक(2016) जैसी फिल्में बनाईं हैं. अब शायद आपको याद आ गया होगा कि नागेश कौन हैं, क्योंकि आपने उनकी कई फिल्में देखी हैं.

नागेश आज एक विशेष दर्शक वर्ग के बीच लोकप्रिय निर्माता-निर्देशक हैं. नाच-गाने वाली बॉलीवुड की फिल्मों से उनकी फिल्में काफी अलग हैं. शायद इसलिए लैला-शिला को पसंद करने वाले इनकी फिल्मों तक नहीं पहुंच पाते. पर नागेश उन विषयों पर बात करते हैं, जो हमारे समाज का हिस्सा हैं. ‘धनक’ के छोटू और परी भारत में लगभग हर घर में पाए जाते हैं. भाई-बहन का प्यार तो हर घर में दिखता ही है. पर अंधे भाई की आंखें बनी बहन को इतने अच्छे से चित्रित करना… यह सिर्फ नागेश का ही कमाल हो सकता है. 

जानिए नागेश से जुड़ी कुछ खास बातें-

1. केमिकल इंजीनियरिंग

नागेश ने केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. फिल्मी दुनिया में आने से पहले वे अमेरिका में एक इंवायरन्मेंटल कन्सलटेंट के रूप में काम करते थे. अपने इंजीनियरिंग करियर से कमाए पैसों से ही उन्होंने अपनी फिल्म हैद्राबाद ब्लूज बनाई थी. इस फिल्म को सिर्फ 17 दिनों में शूट किया गया था. यह बहुत ही कम बजट की फिल्म थी. इस फिल्म की स्क्रिप्ट को उन्होंने अमेरिका के भारतीयों से प्रेरित होकर लिखा था.

2. बचपन से ही था फिल्मों से लगाव

नागेश को बचपन से ही फिल्में देखना का शौक था. वे अकसर तेलुगु, हिन्दी, अंग्रेजी फिल्में देखते थे. शायद उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें आगे जाकर क्या करना है.

3. असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर किया काम

नागेश ने कुछ दिनों के लिए असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में भी काम किया था. नागेश कुकुनूर ने ‘वीर हनुमान’ के सेट पर बतौर सह-निर्देश काम किया था. गौरतलब है कि उन्हें कुछ दिनों में ही पता चल गया था कि वे इस काम के लिए नहीं बने हैं.

4. कमर्शियल फिल्मों में भी आजमाई किस्मत

नागेश ने आर्ट फिल्मों में अलग तरह का कन्टेंट डालकर बेहतरीन फिल्में बनाई हैं. पर उन्होंने कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया है. ‘तस्वीर 8X10’ उनकी कमर्शियल फिल्म है, जिसमें अक्षय कुमार ने अभिनय किया था. गौरतलब है कि इस फिल्म ने उतनी शौहरत नहीं कमाई.

5. एसआईसी(SIC) बैनर तले बनाते हैं फिल्में

कुकुनूर एसआईसी के बैनर तले फिल्में बनाते हैं. पर बहुत कम ही लोग एसआईसी का असल मतलब जानते हैं. आमतौर पर प्रोडक्शन हाउस के मालिक अपने या अपनों के नाम तले फिल्में बनाते हैं, पर कुकुनूर की SIC का फुल फॉर्म है Stability is Curse. यह अपनेआप में ही बहुत कुछ कह देता है. जिन्दगी में कभी भी किसी को रुकना नहीं चाहिए, आगे बढ़ते रहना चाहिए.

6. अपनी फिल्मों में करते हैं अभिनय

नागेश अपनी फिल्मों में अभिनय भी करते हैं. ये रोल सिर्फ अभिनय का शौक पूरा करने के लिए नहीं किए गए हैं, बल्कि ये रोल फिल्म पर एक अलग छाप छोड़ती दिखाई देती है. जैसे- रॉकफॉर्ड में उन्होंने एक शिक्षक का रोल अदा किया था, वहीं लक्ष्मी में उन्होंने एक दलाल का किरदार निभाया था.

7. बहुत ही कम दिनों में पूरी करते हैं फिल्में

ये नागेश की ही खासियत है कि वे बहुत ही कम दिनों में ही बेहतरीन फिल्म शूट कर लेते हैं. उन्होंने धनक को चाइल्ड आर्टिस्ट्स के साथ सिर्फ 33 दिनों में ही पूरा कर लिया था.

8. जब पार्टी में पसंद कर ली अपने फिल्म की प्रोटेगोनिस्ट

नागेश की फिल्म लक्ष्मी में मोनाली ठाकुर ने बॉलीवुड में डिब्यु किया. एक इंटरव्यू के दौरान कुकुनूर ने बताया था कि उन्होंने एक पार्टी के दौरान मोनाली को देखा था और उन्हें मोनाली के चेहरे पर लक्ष्मी दिखाई दी.

गौरतलब है कि मोनाली ने 14 वर्ष की एक लड़की का किरदार निभाया था जिसे जबरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है.

समाज की हकीकत दिखाने वाली फिल्में बनाने के लिए हम नागेश के शुक्रगुजार हैं. समाज की हकीकत को इतने सरल तरीके से पेश करना आसान नहीं है. नागेश कुकुनूर को हमारी पूरी टीम की तरफ से जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.

क्यों खास होगी फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है’

इस साल आने वाली और सुपरस्टार सलमान खान और अभिनेत्री कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’, जो कि साल की सबसे ज्यादा प्रतीक्षित फिल्मों में से एक है. इन दोनों कलाकारों ने फिल्म ‘एक था टाइगर’ में एक साथ काम किया था, जो कि एक ब्लॉकबस्टर हिट फिल्म थी.

तो इस नयी फिल्म के बारे में हम आपके लिए यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें लेकर आए हैं. जानिए क्या खास है, फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में!

1. फिल्म में है सलमान खान की अद्वितीय भूमिका

यह सुनने में आ रहा है कि अभिनेता सलमान खान इस फिल्म में एक बहुत अलग भूमिका निभाने वाले हैं. यह भूमिका होगी, 70 वर्षीय व्यक्ति की. क्या सलमान वाकई ये विशेष भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं, अगर हां तो दर्शकों के लिए यह एक चौंकाने वाली जानकारी है!

2. सलमान और कैटरीना 5 सालों बाद एकसाथ नजर आएंगे

ये बात ध्यान देने योग्य है कि सलमान खान और कैटरीना कैफ 5 सालों के बाद एक साथ पर्दे पर आ रहे हैं. लंबे समय तक इस जोड़ी को केवल याद किया गया है. कैटरीना कैफ का अब सलमान के साथ काम करना निश्चित रूप से फिल्म के लिए बहुत सी सुर्खियां बटोरेगा.

3. फिल्म एक था टाइगर की सिक्वल फिल्म

फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है’ साल 2012 में आई फिल्म एक था टाइगर का सीक्वल है. यकीनन लोगों को इससे भी उतनी ही उम्मीदें हैं.

4. निर्देशक अली अब्बास जफर ने थामी बागडोर

फिल्म ‘सुल्तान’ और अन्य हिट फिल्मों से प्रसिद्धि पाने वाले निर्देशक अली अब्बास जफर, आखिरकार सलमान को निर्देशित करने जा रहे हैं. फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ का पहला हिस्सा यानि कि फिल्म ‘एक था टाइगर’ निर्देशक कबीर खान द्वारा निर्देशित की गई थी, लेकिन इस बार, अली अब्बास जफर इस फिल्म के निर्देशन के प्रभारी होंगे.

4. फिल्म की कहानी

फिल्म ‘एक था टाइगर’ में हमने जो कुछ भी देखा था, इस फिल्म की कहानी उससे बहुत भिन्न होगी. खबरों के अनुसार, इस सीक्वल फिल्म में, सलमान खान के वर्तमान जीवन और पिछले समय को दिखाया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ कैटरीना कैफ, दर्शकों को पुन: पाकिस्तानी एजेंट की भूमिका में नजर आएंगी.

5. शूटिंग ऑस्ट्रिया में

इस फिल्म में भी आप कई अलग-अलग और बहुत खूबसूरत जगहों को देखेंगे. फिलहाल फिल्म के निर्माता शूटिंग के लिए सही जगह खोजने में व्यस्त हैं. सूत्रों के मुलाबिक “इस फिल्म की शूटिंग मार्च से ऑस्ट्रिया में शुरू होगी.”

6. हॉलीवुड के एक्शन हीरो टॉम स्ट्रथर्स करेंगे फिल्म में सलमान की मदद

फिल्मों से जुड़ी खबरों की माने तो हॉलीवुड के एक्शन डायरेक्टर टॉम स्ट्रथर्स, जिन्होंने द डार्क नाइट राइज और एक्स मेन जैसी फिल्मों पर काम किया है, वे टाइगर जिंदा है की टीम के साथ काम करेंगे. इस फिल्म में उनका स्पर्श निश्चित रूप से फिल्म में होने वाले एक्शन अनुक्रमों को बढ़ाएगा.

7. दो बड़ी फिल्मों की हो सकती है भिड़ंत

इस क्रिसमस यानि कि माह दिसम्बर 2017 अंत में दो बड़े निर्देशकों की फिल्मों ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘दत्त बायोपिक’ के बीच संघर्ष देखा जा सकता है और यदि ये संघर्ष आखिरकार हो ही जाए, तो यह पहली बार होगा जब कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर साल 2010 में आई फिल्म दबंग के बाद से रिलीज की तारीख पर सलमान खान से आमने सामने होगा.

गर्मियों में ध्यान से करें कपड़ों का चुनाव

गर्मी का मौसम ही एक ऐसा वक्त है जब आप खुद को आकर्षक परिधानों के साथ पेश कर, अपनी पर्सनैलिटी का आकर्षण बढ़ा सकती हैं.

कई मशहूर फैशन डिजाइनर्स और सौंदर्य विशेषज्ञों के मुताबिक

1. गर्मियों में शॉर्ट्स पहनना आपको आकर्षक बनाता है और डेनिम शॉर्ट्स को तो गर्मी के मौसम का प्रतीक भी माना जाता है. लेकिन हां इसे पहनने के कुछ ही घंटों बाद यह आपको भारी लगने लगता है. इसलिए हम आप चाहें तो पसीने और चिपचिप से बचने के लिए सूती शॉर्ट पहने जा सकते है.

2. कभी कभी वीकेंड में बाहर खाना खाने जाने और शाम को आउटिंग पर जाने के लिहाज से मैक्सी ड्रेसेज या लंबी पोशाकें काफी चलन में हैं. लेकिन कई बार इनके लंबे होने की वजह से आप इनमें फंस भी सकती हैं, जो यकीनन एक असहज स्थिति होगी तो इसके लिए आपको चाहिए कि लंबी स्लिट की मैक्सी वाले पोशाकों का चुनाव करें.

3. गर्मी के मौसम में आपको पहनने के लिए चौड़े और हवादार टॉप्स का चुनाव करना चाहिए. ये गर्मी में आपको काफी आराम देते हैं. गर्मी में चुस्त और टाइट कपड़ों के बजाय चौड़े और हवादार पैंट पहनें. इससे आपको गर्मी नहीं लगती और चलने में भी आसानी होती है.

4. अपने पेशेवर कार्यो और ऑफिस जाने के लिए जब आप परिधानों को चुनाव करते हैं तो हल्के रंगों के कपड़ों का चुनाव करें. ऐसे में आपके लिए बटनदार कमीज जैसे क्लासिक टॉप और सूती कुर्तियां का इस्तेमाल करना भी बेहतर होगा.

ये सितारे नहीं देख पाए अपनी आखिरी फिल्म

जिंदगी कब साथ छोड़ जाए ये कहना बहुत मुश्किल है. अभी बॉलीवुड के दमदार अभिनेता ओम पुरी के निधन ने सबको हैरत में डाल दिया था.  लेकिन वे अपने किरदार को आखिरी बार पर्दे पर नहीं देख पाएं. हालांकि वो अकेले ऐसे सितारे नहीं हैं, इससे पहले भी कई बड़े सितारे अपनी आखिरी फिल्म पुरी तो कर गए लेकिन उसे देख नहीं पाए.

1. राजेश खन्ना
एक वक्त था जब बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की हिंदी सिनेमा में तूती बोलती थी, लेकिन एक ऐसा वक्त भी आया जब उनके पास फिल्में नहीं थी. 2011 में उनकी दो फिल्में ‘जानलेवा ब्लैकब्लड’ और ‘रियासत’ की शूटिंग तो पूरी हो गई थी, लेकिन उसके बाद उन्हें कैंसर हो गया और उनका देहांत हो गया. निधन के 2 साल बाद उनकी फिल्म ‘रियासत’ रिलीज हुई थी.

2. शम्मी कपूर
बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में से एक शम्मी कपूर ने अपने पोते की फिल्म ‘रॉकस्टार’ में एक छोटा सा रोल किया था. लेकिन इस फिल्म की शूटिंग खत्म करके कुछ दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई और वो खुद को आखिरी बार पर्दे पर नहीं देख पाए. ये फिल्म बेहद हिट रही थी.

3. अमरीश पुरी
बॉलीवुड के मशहूर विलेन अमरीश पुरी भी अपनी आखिरी फिल्म नहीं देख पाए थे. उनकी फिल्म ‘कच्ची सड़क’ की शूटिंग पूरी हो गई थी लेकिन 2005 में उनका देहांत हो गया और फिल्म सितम्बर 2006 में रिलीज हुई थी.

4. दिव्या भारती
महज 19 साल की उम्र में दिव्या भारती का निधन हो गया था. उनकी मौत ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया था. उनकी मौत के 9 महीने बाद रिलीज हुई फिल्म ‘शतरंज’ उनकी आखिरी फिल्म थी जो सुपरहिट साबित हुई थी.

5. संजीव कुमार
संजीव कुमार एक मल्टी-टैलेंटेड एक्टर थे. उन्होंने 47 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनकी मौत के बाद उनकी 10 फिल्में रोक दी गई थी, जिसमें उन्हें काम करना था. फिल्म ‘प्रोफेसर की पड़ोसन’ संजीव की मौत के बाद रिलीज की गई थी.

6. फारूक शेख
अपनी कमाल की एक्टिंग के लिए पहचाने जाने वाले एक्टर फारूक शेख का निधन दिसम्बर 2013 में हुआ. इसके एक साल बाद उनकी आखिरी फिल्म ‘यंगिस्तान’ रिलीज हुई थी. इससे पहले वह ‘ये जवानी है दीवानी’ में रनबीर कपूर के पिता के रोल में दिखे थे

7. ओम पुरी
ओम, सलमान के साथ फिल्म ‘ट्यूब्लाइट’ के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब वो अपने किरदार को पर्दे पर नहीं देख पाएंगे. इससे पहले उन्होंने सलमान के साथ फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में काम किया था. इसके अलावा ओम पुरी ने करण जौहर की फिल्म ‘द गाजी अटैक’ में भी अपनी कला का आखिरी बार प्रदर्शन किया था.

कमतर नहीं लड़कियां

अमूमन समाज में लड़कियों को लड़कों से कमतर आंका जाता है. शारीरिक सामर्थ्य ही नहीं अन्य कामों में भी यही समझा जाता है कि जो लड़के कर सकते हैं वह लड़कियां नहीं कर सकतीं, जबकि इस के कई उदाहरण मिल जाएंगे जिन में लड़कियों ने खुद को लड़कों से बेहतर साबित किया है. पिछले वर्ष संपन्न हुए रियो ओलिंपिक और रियो पैरालिंपिक खेलों में खिलाडि़यों की इतनी बड़ी फौज में से सिर्फ  लड़कियों ने ही देश की झोली में मैडल डाल कर देश का नाम रोशन किया. यही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियां लड़कों से न केवल कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं बल्कि आगे हैं. हमेशा देश में 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट में लड़कियां ही पहले पायदान पर रहती हैं.

चाहे आईएएस बनने की होड़ हो, विमान या लड़ाकू जहाज उड़ाने की या फिर मैट्रो चलाने की, लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. इस के बावजूद लड़कियों को लड़कों से कमतर आंकना समाज की भूल है.

कुछ धार्मिक पाखंडों, सामाजिक कुरीतियों और परंपराओं ने भी लड़कियों को लड़कों से कमतर मानने की भूल की है. इसी के चलते भ्रूण हत्या तक हो रही है. आज जरूरत है इस दकियानूसी विचार को झुठलाने व खुद को साबित करने की, जिस का सब से सरल उपाय है पढ़लिख कर काबिल बनना.

आप को बता दें कि घर में सब्जी बनाने से ले कर देश चलाने तक में लड़कियां व महिलाएं आगे हैं और उन्होंने यहां खुद को साबित कर दिखा भी दिया है कि हम किसी से कम नहीं हैं.

देशदुनिया में किनकिन जगहों पर नाम कमाया

पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में टौप

जीवन में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा और परिवार का साथ मिले, तो कोई भी ऐसा कार्य नहीं जिसे कर पाना असंभव हो. इस का जीताजागता उदाहरण है टीना डाबी, जिस ने महज 22 वर्ष की उम्र में पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में टौप किया.

इस का श्रेय टीना ने अपनी मम्मी को दिया. साथ ही अपनी मेहनत व लगन को भी टीना ने इस जीत की वजह बताया है, जिस का परिणाम यह हुआ कि वे अपना गोल अचीव करने के लिए जीजान से जुट गईं. यहां तक कि उन की मम्मी ने टीना के लिए सरकारी नौकरी तक छोड़ दी.

राजनीति विज्ञान की छात्रा टीना ने न सिर्फ लेडी श्रीराम कालेज दिल्ली से गै्रजुएशन की बल्कि स्टूडैंट औफ द ईयर भी बनीं और यूपीएससी की परीक्षा में टौप कर अपनी पहचान बनाई.

2016 की 12वीं की टौपर बनी सुकृति गुप्ता

कोई भी कार्य करने के लिए व्यक्ति के अंदर दृढ़ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है. यही इच्छाशक्ति इंसान को ऊंचाई तक पहुंचा देती है. इसी के बल पर दिल्ली के अशोक विहार स्थित मोंटफोर्ट स्कूल में पढ़ने वाली सुकृति गुप्ता ने 2016 में 500 में से 497 अंक प्राप्त कर 12वीं में पूरे देश में टौप कर दिखा दिया कि अब लड़कियां सिर्फ घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि वे खुद को लड़कों से बेहतर साबित कर रही हैं. इतना ही नहीं, सुकृति अब अपने पेरैंट्स की तरह इंजीनियर बन कर देश के लिए कुछ करना चाहती है. ऐसा करने में सिर्फ सुकृति गुप्ता ही नहीं बल्कि अन्य कई लड़कियां भी प्रयासरत हैं.

सब से युवा प्रतिभागी बनी मास्टर शैफ इंडिया

लड़कियां अब सिर्फ घर की रसोईर् संभालने तक ही सीमित नहीं रहतीं, बल्कि वे अपने इस हुनर को किसी प्लेटफौर्म के जरिए दुनिया के सामने ला कर नाम भी कमाती हैं.

इस शो में विजेताओं के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है, जिन्हें कुकरी स्किल्स, टैस्ट, इनोवेशन और डिशेज प्रैजेंट करने के आधार पर विजेता घोषित किया जाता है. सीजन 5 में कीर्ति के साथ आखिरी दौड़ में आशिमा अरोड़ा, दिनेश पटेल और मिरवान विनायक थे, जिन्हें पछाड़ कर उन्होंने साबित कर दिया कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं. कीर्ति अब तक के सभी सीजन्स में विनर बनने वाली सब से युवा प्रतिभागी हैं.

ओलिंपिक 2016 में लड़कियों ने लहराया परचम

रियो ओलिंपिक में लड़कियों ने ही देश की लाज बचाई. हरियाणा की साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य पदक जीत कर दिखा दिया कि  चाहे आप के लक्ष्य के रास्ते में कितने ही विरोधी खड़े हों और आप के पास साधन भी सीमित हों, लेकिन यदि लगन, सच्ची निष्ठा और मेहनत हो तो हर बाधा खुद ब खुद दूर हो जाती है.

साक्षी ने परिवार में दादाजी की सपोर्ट से मात्र 12 वर्ष की उम्र में रोहतक से प्रशिक्षण लिया और आज उन का संघर्ष और मेहनत जीत के रूप में सामने है.

वहीं पी वी सिंधु ने ओलिंपिक में बैडमिंटन चैंपियनशिप में रजत पदक जीत कर बता दिया कि बचपन में वह जो सपना देखती थी उसे उस ने आज पूरा कर के दिखा दिया. 2009 में 13 वर्ष की छोटी सी उम्र में सिंधु ने जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था.

आप को बता दें कि जिमनास्टिक जैसे खेल में जिस में भारत अभी तक अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पाया था, त्रिपुरा की 22 वर्षीय दीपा कर्माकर ने 2016 के ओलिंपिक में क्वालिफाई कर सब को चौंका दिया.

दिव्यांग ने जीता पैरालिंपिक

जहां हम हलकी सी चोट लगने पर हिम्मत हार जाते हैं, वहीं दीपा मलिक ने रियो पैरालिंपिक में शौटपुट में पैरालाइसिस की शिकार होने के बावजूद सिल्वर मैडल जीत कर देश का मान बढ़ाया. वे इस खेल में सिल्वर मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.

उन्होंने साबित कर दिया कि जब तक हम खुद को लाचार मानते रहेंगे तब तक कभी जीत नहीं पाएंगे, लेकिन जिस दिन हम ने सोच लिया कि हमारे हौसले के आगे हमारी दिव्यांगता भी आड़े नहीं आ सकती, उस दिन हम असंभव को भी संभव कर सकते हैं.

दिव्यांगता के बावजूद एवरेस्ट पर फतेह

अरुणिमा सिन्हा जिन्होंने एक ट्रेन लूट में अपना पैर गंवा दिया था, लेकिन फिर भी उन के जज्बे की दाद देनी होगी कि वे दुनिया की सब से ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर फतेह कर पहली दिव्यांग महिला बनीं.

चाय वाली उपमा बनी बिजनैस वूमन औफ द ईयर

26 साल की उपमा विरदी को आस्ट्रेलिया में बिजनैस वूमन औफ द ईयर अवार्ड भारतीय चाय की पहचान आस्ट्रेलिया में कराने के कारण मिला. वहां के लोग कौफी ज्यादा पीते हैं, लेकिन उपमा ने उन्हें अपनी मसाला चाय का ऐसा चसका लगाया कि अब वे उन के फैन हो गए हैं.

उपमा जो मूल रूप से चंडीगढ़ की हैं, ने किसी काम को छोटा नहीं समझा, तभी तो पेशे से वकील होने के बावजूद वे खाली समय में चाय बना कर लोगों को सर्व करती थीं, अब तो बड़ेबड़े इवैंट्स में उन्हें बुला कर उन से मसाला चाय बनाना सीखा जाता है. आज वे पूरी दुनिया में चाय वाली के नाम से मशहूर हो गई हैं.

देश की पहली महिला फाइटर पायलट

भारतीय वायुसेना में पहली बार 3 महिला लड़ाकू पायलटों की नियुक्ति हुई, जिस में अवनि चतुर्वेदी मध्य प्रदेश से, भावना कंठ बिहार से और मोहना सिंह राजस्थान से हैं.

उपरोक्त के अलावा पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पहली महिला आईपीएस किरण बेदी, राजनेत्री सुषमा स्वराज और कई अन्य मिसाल हैं इस बात की कि लड़कियां लड़कों वाला हर काम कर सकती हैं और कहीं भी लड़कों से कमतर नहीं हैं.

लड़कियां भी सीखें इलैक्ट्रीशियन, प्लंबर का काम

अंजलि की ग्रैजुएशन की परीक्षा चल रही थी. एक दिन वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी कि अचानक बिजली गुल हो गई. उस ने इनवर्टर औन किया तो भी घर में बिजली नहीं आई, जबकि पड़ोस के घरों में बिजली थी. उस समय रात के 10 बज रहे थे. किसी इलैक्ट्रीशियन को बुलाना भी संभव नहीं था. अंजलि ने जैसेतैसे मोमबत्ती की रोशनी में परीक्षा की तैयारी की और दूसरे दिन परीक्षा दे पाई.

परीक्षा के बाद अंजलि ने अपनी मां से कहा कि मुझे भी बिजली का काम सीखना है ताकि ऐसी स्थिति आने पर छोटेमोटे फौल्ट खुद ठीक कर पाऊं.

अंजलि की मां ने कहा कि तुम लड़की हो कर बिजली का काम कैसे सीख पाओगी, लेकिन अंजलि ने कहा कि मां आज तमाम लड़कियां इलैक्ट्रिक और इलैक्ट्रौनिक्स में आईटीआई, पौलिटैक्निक व इंजीनियरिंग की डिग्रियां ले रही हैं. सभी डिग्रियों में यही सारी चीजें सिखाई जाती हैं तो मैं क्यों नहीं सीख सकती.

अंजलि की मां ने उस के पापा से कह कर अंजलि को बिजली का काम सीखने की इच्छा से अवगत करा दिया.

अंजलि के पापा को पहले तो यह बात बड़ी अजीब लगी, लेकिन जब उन्होंने रात में मेनस्विच का फ्यूज उड़ जाने की वजह से परीक्षा की तैयारी में बाधा आने के बारे में सुना तो उन्हें भी लगा कि अंजलि भले ही उन की इकलौती लड़की है, लेकिन उसे बिजली का काम सिखाने में हर्ज नहीं. यह छोटीमोटी समस्याओं से नजात दिलाने में कारगर साबित होगा.

उन्होंने अपने नजदीकी इलैक्ट्रीशियन से अंजलि को बिजली का काम सिखाने के लिए राजी कर लिया. उस ने 2 महीने की छुट्टियों में इलैक्ट्रीशियन से बिजली के छोटेमोटे काम सीख लिए.

इस के बाद घर में जब भी बिजली का छोटामोटा फौल्ट होता या कोई औैर समस्या होती तो बिना इलैक्ट्रीशियन को बुलाए उसे वह खुद ठीक कर लेती.

अंजलि ने जो निर्णय लिया वह काबिलेतारीफ था. उस ने न केवल लड़कियों पर लगे इस आक्षेप को दूर किया कि लड़कियां बिजली का काम नहीं सीख या कर सकतीं बल्कि यह भी साबित कर दिया कि कोई भी काम सीखना कठिन नहीं है.

अकसर घरों में बिजली की जो समस्याएं देखी जाती हैं उन में मेन स्विच का फ्यूज का उड़ जाना, तार में शौर्टसर्किट होना, विद्युत उपकरणों का फ्यूज हो जाना, पंखे का रैग्यूलेटर खराब होना, ट्यूबलाइट का स्टार्टर खराब होना, प्रैस आदि में छोटेमोटे फौल्ट होना आम बात होती है. इस के लिए हम इलैक्ट्रीशियन के पास जाते हैं तो वह मनमाफिक पैसे की मांग करता है, जबकि काम कुछ भी नहीं होता. ऐसे में अगर घर के किशोर थोड़ी हिम्मत करें तो बात बन सकती है.

बिजली के अलावा जो चीज महत्त्वपूर्ण है, वह है वाटर सप्लाई, जिस के माध्यम से घर के अलगअलग हिस्सों में न केवल पानी पहुंचाया जाता है बल्कि सीवर, शौचालय, आरओ सिस्टम इत्यादि महत्त्वपूर्ण चीजें भी इन्हीं से जुड़ी होती हैं. ऐसे में अगर अचानक पानी के पाइप में कहीं लीकेज हो जाए तो उस दिन नहानेधोने से ले कर शौच जाने व पीने के पानी तक की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है.

अचानक आई इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए प्लंबर के पास भागने के बजाय अगर थोड़ाबहुत काम सीख लिया जाए तो समस्या का समाधान घर पर ही सस्ते में हो सकता है.

खाली समय में सीखें काम

इलैक्ट्रिक व प्लंबरिंग से जुड़ी छोटीमोटी परेशानियों से नजात पाने के लिए अगर अपने खाली समय का उपयोग किया जाए और किसी ऐक्सपर्ट इलैक्ट्रीशियन या प्लंबर के साथ काम सीखा जाए तो यह फायदेमंद साबित हो सकता है. प्लंबर का काम करने वाले लोगों को अकसर काम के दौरान सहायक की जरूरत होती है, जो उन के कार्यों  में सहयोग करते रहते हैं. इन लोगों से संपर्क कर प्लंबरिंग व इलैक्ट्रिक का काम सीखा जा सकता है.

बिजली मिस्तरी संजय रावत का कहना है कि अकसर घरों में बिजली की वायरिंग, बिजली के उपकरणों की फिटिंग के दौरान ऐक्सपर्ट के रूप में अकेले काम नहीं किया जा सकता है. इसलिए हमें सहायक की आवश्यकता होती है. बिजली मरम्मत के कार्यों की जानकारी न होने के बावजूद इन्हें अच्छीखासी राशि का भुगतान भी करना पड़ता है. अकसर हमारे साथ सीखने वाले लोग कुछ ही दिन में इलैक्ट्रिक का काम करतेकरते ऐक्सपर्ट बन जाते हैं और कमाई भी करने लगते हैं.

इसी तरह प्लंबरिंग से जुड़े फौल्ट जैसे छोटेमोटे कार्यों को किसी प्लंबर का सहायक बन कर सीखा जा सकता है और इस से जहां घर की छोटीमोटी समस्या सुलझती है वहीं आप आसपास काम कर कमाई भी कर सकते हैं. बिजली मिस्तरी या प्लंबर 400-500 रुपए तक ले लेता है जबकि इन छोटेमोटे कार्यों के बारे में खुद जानकारी रखी जाए तो अनावश्यक पैसे के खर्च से बचा जा सकता है.

कोई भी सीख सकता है काम

यह जरूरी नहीं कि बिजली व प्लंबरिंग से जुड़े मरम्मत के कार्य करने की क्षमता सिर्फ लड़कों में ही होती है, बल्कि लड़कियां भी इस तरह के कार्य आसानी से कर सकती हैं. बिजली मरम्मत का कार्य सीखने वाली लड़की नाजमीन का कहना है कि वह इलैक्ट्रिक ट्रेड से आईटीआई का कोर्स कर रही है. जब उस ने इस कोर्स को करने का निर्णय लिया तो उस के घर वालों ने उस का विरोध किया, लेकिन नाजमीन ने सब को विश्वास में ले कर इस कोर्स में दाखिला लिया. वह आईटीआई के अंतिम वर्ष में है. वह न केवल बिजली के खंभों पर चढ़ कर बिजली मरम्मत का कार्य कर लेती है बल्कि घरों में वायरिंग व छोटेबड़े फौल्ट दूर करने में भी निपुण है.

लड़कियां इलैक्ट्रीशियन, प्लंबर से तो काम सीख ही सकती हैं इस के अलावा सरकारी संस्थान कम समय के बिजली व प्लंबरिंग से जुड़े ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं जहां से न केवल निशुल्क ट्रेनिंग ली जा सकती है बल्कि इस के लिए सरकारी छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है.

भारत सरकार व राज्य सरकार कारीगरों से जुड़ी ट्रेनिंग स्थानीय लैवल पर उपलब्ध करा रही है. भारत सरकार द्वारा कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, नैशनल स्किल डैवलपमैंट कौरपोरेशन सहित तमाम विभागों व मंत्रालयों द्वारा एनजीओ व ट्रेनिंग देने वाली कंपनियों के माध्यम से प्रशिक्षित किए जाने का काम किया जा रहा है, जो न केवल निशुल्क होता है बल्कि टे्रनिंग पूरी होने के बाद इस का प्रमाणपत्र वजीफा भी दिया जाता है. ऐसे में ट्रेनिंग के इच्छुक लड़केलड़कियां इलैक्ट्रीशियन व प्लंबरिंग का काम सीखने के लिए इन से संपर्क कर सकते हैं.                                 

घर में रखें टूलबौक्स

बिजली या प्लंबरिंग से जुड़े कार्य या मरम्मत के लिए तमाम तरह के उपकरणों या टूल्स की जरूरत पड़ती है. इन टूल्स के बिना कोई भी ऐक्सपर्ट मरम्मत का कार्य नहीं कर सकता इसलिए अगर आप ने इलैक्ट्रीशियन या प्लंबरिंग का काम सीख लिया है तो इस के साथ रिपेयर के लिए काम आने वाले आवश्यक टूल्स भी घर पर रखना न भूलें.

बिजली मरम्मत में काम आने वाले प्रमुख टूल्स

बिजली उपकरणों की मरम्मत करने के लिए सब से जरूरी टूल के रूप में ग्लव्स का इस्तेमाल होता है. ये उन चीजों से बने होते हैं जिन में अगर गलती से बिजली का नंगा तार छू जाए तो झटका लगने की आशंका नहीं होती. इस के अलावा बोर्ड, स्विच या बिजली के उपकरणों के पेच कसने के लिए अलगअलग साइज के स्क्रूड्राइवर सैट की जरूरत पड़ती है.

बिजली मरम्मत में काम आने वाला एक महत्त्वपूर्ण टूल प्लायर होता है जिस के द्वारा तारों को आपस में जोड़ने, ऐंठने का काम किया जाता है. वहीं नोज प्लायर के द्वारा दबाने व चैनल लौक  के द्वारा भी लौक किए जाने का काम किया जाता है. बिजली के अन्य कुछ टूल्स जिन का महत्त्वपूर्ण उपयोग होता है, उन में वायर कटर, टैस्टर, अलगअलग साइज के रिंच, निडिलनोज प्लायर, स्ट्रिपर, रेजर चाकू, रोटो स्प्रिट, पाइप रीमर इलैक्ट्रिक लेबल, अर्थ मैग्नेट टेप, वोल्टेज डिटैक्टर, सीटरौकसा, मैग्नेटिक नट ड्राइवर, इंसूलेटेड स्कू्रड्राइवर सैट, स्क्रूहोल्डरसैट, नाकआउट सैट, टोन जनरेटर, टैगआउट किट, ड्रिल बिट्स, लैड हैड, लैंप, सहित जरूरत पर आने वाले तमाम टूल्स का उपयोग किया जाता है.

आप के घर में जिस तरह के वायर या वायरिंग का उपयोग किया गया है इस के लिए जरूरी टूल्स को अपने घर पर जरूर रखना चाहिए जिस से अचानक आने वाले किसी फौल्ट से निबटा जा सके.

प्लंबरिंग के काम में आने वाले जरूरी उपकरण

प्लंबरिंग में अकसर जो पाइप ब्लौकेज, लीकेज या टूटफूट की समस्या देखी गईर् है, इस के हिसाब से इन की मरम्मत के लिए जिन महत्त्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत पड़ सकती है उन में एडजस्टेबल रिंच, टेफलान टेप, पाइप कटर, पाइप लुब्रिकैंट्स और ब्रश, वैसिन रिंच हैं. इन में पाइप कटर द्वारा आवश्यकता पड़ने पर पाइप को काट कर जोड़ने, टेप के माध्यम से नापने का काम किया जा सकता है. इस के अलावा भी तमाम तरह के टूल्स की जरूरत पड़ सकती है, जिस में इनसाइड और आउटसाइड पाइप रीमर, इलैक्ट्रिक ड्रिल, घर में लगी टोंटियों के साइज की दूसरी टोंटियां इत्यादि हैं.     

एसआईपी के बारे में जानती हैं आप

एसआईपी आपको एक म्युचुअल फंड में एक साथ 5,000 रूपये के निवेश की बजाय 500 रूपये के 10 बंटे हुये निवेश की सुविधा देता है. ये आपको एक बार में भारी पैसा निवेश करने की जगह म्यूचुअल फंड में कम अवधि का (मासिक या त्रैमासिक) निवेश करने की आजादी देता है. इससे आप अपनी अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों को प्रभावित किये बिना म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. एसआईपी कैसे काम करता है ये बेहतर समझने के लिये आपको Rupee cost averaging और धन के जुङते रहने की शक्ति (power of compounding) को समझना जरूरी है.

एसआईपी एक औसत आदमी की पहुंच के अंदर म्यूचुअल फंड निवेश को ले आया है क्योंकि यह उन तंग बजट लोगों को भी निवेश करने योग्य बनाता है जो एक बार में बड़ा निवेश करने के बजाय 500 या 1,000 रूपये नियमित रूप से निवेश कर सकते हैं.

एसआईपी के माध्यम से छोटी छोटी बचत करना शायद पहली बार में आकर्षक न लगे लेकिन ये निवेशकों में बचत की आदत डालता है और बढ़ते वर्षों में इससे आपको अच्छा-खासा प्रतिलाभ (रिटर्न) मिलेता है. 1,000 रुपये महीने का एक एसआईपी का धन 9% की दर से 10 वर्षों में बढकर 6.69 लाख रूपये, 30 साल में 17.38 लाख रूपये और 40 साल में 44.20 लाख तक हो सकता है.

यही नही धनी लोगों को भी ये गलत समय और गलत जगह पर निवेश करने की आशंका से बचाता है. हांलाकि एसआईपी का असली फायदा निचले स्तर पर निवेश करने से मिलता है.

एसआईपी के बहुत सारे लाभ हैं

1. अनुशासित निवेश

अपने धन कोष को सुरक्षित बनाये रखने के मुख्य नियम हैं- लगातार निवेश करना, अपने निवेशों पर ध्यान केन्द्रित रखना और अपने निवेश के तरीके में अनुशासन बनाये रखना. हर महीने कुछ राशि अलग निकालने से आपकी मासिक आमदनी पर अधिक अन्तर नही पड़ेगा. आपके लिये भी बड़े निवेश हेतु इकट्ठा पैसा निकालने से बेहतर होगा कि हर महीने कुछ रुपये बचाये जायें.

2. रुपये के जुड़ते रहने की शक्ति (Power of Compounding)

निवेश गुरु सुझाव देते हैं कि किसी भी व्यक्ति को हमेशा जल्दी निवेश शुरु करना चाहिये. इसका एक मुख्य कारण है चक्रवृद्धि ब्याज मिलने का लाभ. चलिये इसे एक उदाहरण से समझते हैं. प्रसून(अ) 30 साल की उम्र से 1,000 रूपये हर साल बचाना शुरू करता है, वहीं प्रसूव (ब) भी इतना ही धन बचाता है लेकिन 35 साल की आयु से. जब 60 साल की उम्र में दोनों अपना निवेश किया हुआ पैसा प्राप्त करते हैं तो (अ) का फंड 12.23 लाख होता है और (ब) का केवल 7.89 लाख. इस उदाहरण में हम 8% की दर से रिटर्न मिलना मान सकते हैं. तो ये साफ है कि शुरु में 50,000 रूपये निवेश का फर्क आखिरी फंड पर 4 लाख से ज्यादा का प्रभाव डालता है. ये रुपये के जुड़ते रहने की शक्ति (Power of compounding) के कारण होता है. जितना लंबा समय आप निवेश करेंगे उतना ज्यादा आपको रिटर्न मिलेगा.

अब मान लीजिये कि (अ) हर साल 10,000 निवेश करने की बजाय 35 वर्ष की उम्र से हर 5 साल बाद 50,000 निवेश करता है इस स्थिति में उसकी निवेश किया धन उतना ही रहेगा (जो कि 3 लाख है) लेकिन उसे 60 साल की उम्र में 10.43 लाख का फंड (कोष) मिलता है. इससे पता चलता है कि देर से निवेश करने में समान धन डालने पर भी व्यक्ति शुरू में मिलने वाले चक्रवृद्धि ब्याज के फायदे को खो देता है.

3. रुपये की कीमत का औसत (Rupee Cost Averaging)

ये मुख्य रूप से शेयरों में निवेश के लिये उपयोगी है. जब आप एक फंड में लगातार धन का निवेश करते हैं तो रुपये की कम कीमत के समय में आप शेयर की ज्यादा यूनिट खरीदते हैं. इस प्रकार समय के साथ आपकी प्रति शेयर या (प्रति यूनिट) औसत कीमत कम होती जाती है. यह रुपये की औसत लागत की नीति होती है जो एक लंबी अवधि के समझदार निवेश के लिये बनाई गयी है. ये सुविधा अस्थिर बाजार में निवेश के खतरे को कम करती है और बाजार के उतार चढ़ाव भरे सफर में आपको सहज बनाये रखती है.

जो लोग एसआईपी के माध्यम से निवेश करते हैं वे बाजार के उतार के समय को भी उतनी ही अच्छी तरह संभाल सकते हैं जैसे वो बाजार के चढ़ाव के समय को. एसआईपी के द्वारा आप के निवेश की औसत लागत कम होती है, तब भी जब आप बाजार के ऊंचे या नीचे सभी प्रकार के दौर से गुजरते हैं.

4. सुविधाजनक

ये निवेश का बहुत ही आसान तरीका है. आपको केवल पूरे भरे हुये नामांकन फॉर्म के साथ चेक जमा करना होगा जिससे म्यूचु्अल फंड में आपके द्वारा कही गयी तारीख पर चेक जमा हो जायेगा और अपके खाते में शेयर यूनिट आ जायेंगी .

5. अन्य लाभ

इसमें कैपिटल गेन पर लगने वाला टैक्स (जहां भी लागू होता है) निवेश करने के समय पर निर्भर होता है.

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