इमरान हाशमी : सिर मुड़ाते ही ओले पड़े

बॉलीवुड में सफलता की राह इतनी आसान नहीं होती है, जितनी लोग समझते हैं. कई असफल फिल्मों के निर्देशक, टोनी डिसूजा के संग जब इमरान हाशमी ने क्रिकेटर मो.अजहरुद्दीन की बायोपिक फिल्म ‘‘अजहर’’ की, तो वह टोनी डिसूजा से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होने ‘अजहर’ के प्रदर्शन से पहले ही ऐलान कर दिया कि वह अब बतौर निर्माता अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ‘‘इमरान हाशमी फिल्म्स’’ की शुरूआत कर रहे हैं. उस वक्त इमरान हाशमी ने कहा था कि उनकी कंपनी के तहत बनने वाली पहली फिल्म में वह अभिनय भी करेंगे, जबकि निर्देशक होंगे टोनी डिसूजा. उसके बाद हवा में उड़ते हुए टोनी डिसूजा ने भी बड़ी-बड़ी डींगे हांकी थी. टोनी डिसूजा ने दावा किया था कि फिल्म की पटकथा तैयार है, पर वह इसके कथानक को लेकर कुछ भी नहीं बताएंगे. उस वक्त इमरान हाशमी और टोनी डिसूजा ने दावा किया था कि वह जून 2016 में फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे.

मगर 13 मई 2016 को फिल्म ‘‘अजहर’’ प्रदर्शित होते ही स्थितियां बदल गयीं, क्योंकि ‘अजहर’ की बाक्स ऑफिस पर उसकी बड़ी दुर्गति हो गयी. जिसके चलते इमरान हाशमी की टोनी डिसूजा के निर्देशन वाली यह फिल्म अब तक शुरू नहीं हो पायी. मजेदार बात यह है कि इमरान हाशमी या टोनी डिसूजा भी इस फिल्म को लेकर चर्चा नहीं करना चाहते. बॉलीवुड के बिचौलिए मानते हैं कि ‘अजहर’ के असफल होने के बाद सभी का टोनी डिसूजा पर से विश्वास उठ गया. बॉलीवुड के सूत्र मानते हैं कि अब यह फिल्म कभी नही बनेगी. ध्यान देने वाली बात यह है कि ‘अजहर’ के असफल होने के बाद से इमरान हाशमी के करियर पर भी ग्रहण लग गया है. उन्हें कोई नई फिल्म नहीं मिली. जबकि अजय देवगन के साथ वह एक फिल्म ‘‘बादशाहों’’ कर रहे हैं. इसकी भी शूटिंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.

मध्य प्रदेश : प्रेम, प्रकृति, परंपरा का अद्वितीय संगम

भारत की हृदयस्थली कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में शेरों की दहाड़ से ले कर पत्थरों में उकेरी गई प्रेम की मूर्तियों का सौंदर्य वहां जाने वाले के मन में ऐसी यादें छोड़ जाता है कि दोबारा जाने के लिए उस का मन ललचाता रहता है.

बांधवगढ़ नैशनल पार्क में टाइगर देखने से ले कर ओरछा के महलों व खजुराहो के मंदिरों की मूर्तियों में आप वास्तविक भारत को खोज सकते  हैं. इस राज्य का इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और यहां के लोग इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं.

यहां आने वाले सैलानियों के लिए प्रदेश का टूरिज्म विभाग विशेष तौर पर मुस्तैद रहता है ताकि पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो. इस बार मध्य प्रदेश को नैशनल टूरिज्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है. मध्य प्रदेश के पर्यटन राज्यमंत्री सुरेंद्र पटवा को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने सर्वोत्तम पर्यटन प्रदेश का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया.  

दर्शनीय स्थल

मांडू

खंडहरों के पत्थर यहां के इतिहास की कहानी बयां करते हैं. यहां के हरियाली से भरे बाग, प्राचीन दरवाजे, घुमावदार रास्ते बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं.

रानी रूपमती का महल एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है जो स्थापत्य का एक बेहतरीन नमूना है. यहां से नीचे स्थित बाजबहादुर के महल का दृश्य बड़ा ही विहंगम दिखता है, जोकि अफगानी वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. मांडू विंध्य की पहाडि़यों पर 2 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिंडोला महल, शाही हमाम और नक्काशीदार गुंबद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं.

नीलकंठ महल की दीवारों पर अकबरकालीन कला की नक्काशी भी काबिलेतारीफ है. अन्य स्थलों में हाथी महल, दरियाखान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मुगीथ की मसजिद और जाली महल भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

धार से 33 और इंदौर से 99 किलोमीटर दूर स्थित मांडवगढ़ (मांडू) पहुंचने के लिए इंदौर व रतलाम नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं. बसों से भी मांडू जाया जा सकता है. नजदीकी एअरपोर्ट (99 किलोमीटर) इंदौर है.

ओरछा

16वीं व 17वीं शताब्दी में बुंदेला राजाओं द्वारा बनवाई गई ओरछा नगरी के महल और इमारतें आज भी अपनी गरिमा बनाए हुए हैं. स्थापत्य का मुख्य विकास राजा बीर सिंहजी देव के काल में हुआ. उन्होंने मुगल बादशाह जहांगीर की स्तुति में जहांगीर महल बनवाया जो खूबसूरत छतरियों से घिरा है. महीन पत्थरों की जालियों का काम इस महल को एक अलग पहचान देता है.

इस के अतिरिक्त राय प्रवीन महल देखने योग्य है. ईंटों से बनी यह दोमंजिली इमारत है. इस महल की भीतरी दीवारों पर चित्रकला की बुंदेली शैली के चित्र मिलते हैं. राजमहल और लक्ष्मीनारायण मंदिर व चतुर्भुज मंदिर की सज्जा भी बड़ी कलात्मक है. फूल बाग, शहीद स्मारक, सावन भादों स्तंभ, बेतवा के किनारे बनी हुई 14 भव्य छतरियां भी देखने योग्य स्थल हैं.

यह ग्वालियर से 119 किलोमीटर और खजुराहो से 170 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां छोटा रेलवे स्टेशन है.

सांची

भारत में बौद्धकला की विशिष्टता व भव्यता सदियों से दुनिया को सम्मोहित करती आई है. सांची के स्तूप विश्व विरासत में शुमार हैं. स्तूप, प्रतिमाएं, मंदिर, स्तंभ, स्मारक, मठ, गुफाएं, शिलाएं व प्राचीन दौर की उन्नत प्रस्तर कला की अन्य विरासतें अपने में समाए हुए सांची को वर्ष 1989 में यूनैस्को की विश्व विरासत सूची में शमिल किया गया है. बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां देशी व विदेशी पर्यटक प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचते हैं.

सांची में सुपरफास्ट रेलें नहीं रुकतीं, इसलिए भोपाल आ कर यहां आना उपयुक्त रहता है. सांची देश के लगभग सभी नगरों से सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.

खजुराहो

खजुराहो के मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र हैं. पर्यटक यहां स्थापित भारतीय कला के अद्भुत संगम को देख कर दांतों तले उंगली दबाने से अपने को नहीं रोक पाते. मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई  विभिन्न मुद्राओं की प्रतिमाएं भारतीय कला का अद्वितीय नमूना प्रदर्शित करती हैं. यहां काममुद्रा में मग्न मूर्तियों के सौंदर्य को देख कर  खजुराहो को प्यार का प्रतीक पर्यटन स्थल कहना भी अनुचित नहीं होगा. काममुद्रा के साक्षी इन मंदिरों में प्रतिवर्ष असंख्य जोड़े अपनी हनीमून यात्रा पर यहां आते हैं.

किसी समय इस क्षेत्र में खजूर के पेड़ों की भरमार थी. इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ. मध्यकाल में ये मंदिर भारतीय वास्तुकला के प्रमुख केंद्र माने जाते थे. वास्तव में यहां 85 मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु वर्तमान में 22 ही शेष रह गए हैं.

मंदिरों को 3 भागों में बनाया गया है. यहां का सब से विशाल मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर है. उसी के पास ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ चौंसठ योगनी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, घंटाई मंदिर, आदिनाथ और दूल्हादेव मंदिर प्रमुख हैं. मंदिरों की प्रतिमाएं मानव जीवन से जुड़े सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दुख, नृत्य, संगीत और उन की मुद्राओं को दर्शाती हैं. ये शिल्पकला का जीवंत उदाहरण हैं.

शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं. ये कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर व कोमल पक्ष को दर्शाती हैं. खजुराहो तो अद्वितीय है ही, इस के आसपास भी अनेक दर्शनीय स्थान हैं जो आप की यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं. इन में राजगढ़ पैलेस, गंगऊ डैम, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान एवं हीरे की खदानें आदि हैं.

खजुराहो के लिए दिल्ली व वाराणसी से नियमित फ्लाइट उपलब्ध हैं व खजुराहो रेलवे स्टेशन सभी प्रमुख रेल मार्गों से जुड़ा है.

पचमढ़ी

प्राकृतिक सौंदर्य के कारण सतपुड़ा की रानी के नाम से पहचाने जाने वाले पर्यटन स्थल पचमढ़ी की खोज 1857 में की गई थी. यकीन मानिए, आप मध्य प्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल पचमढ़ी जाएंगे तो प्रकृति का भरपूर आनंद उठाने के साथसाथ तरोताजा भी हो जाएंगे.  सतपुड़ा के घने जंगलों का सौंदर्य यहां चारों ओर बिखरा हुआ है. यहां का वाटर फौल, जिसे जमुना प्रपात कहते हैं, पचमढ़ी को जलापूर्ति करता है.

सुरक्षित पिकनिक स्पौट के रूप में विकसित अप्सरा विहार का जलप्रपात देखते ही बनता है. प्रियदर्शनी, अप्सरा विहार, रजत प्रपात, राजगिरि, डचेस फौल, जटाशंकर, हांडी खोह, धूपगढ़ की चोटी और पांडव गुफाएं यहां के प्रमुख स्थल हैं. यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया है. यहां भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता है. निकटतम हवाई अड्डा भोपाल 210 किलोमीटर की दूरी पर है.

बांधवगढ़

राजशाहों का पसंदीदा शिकारगाह रहा है बांधवगढ़. प्रमुख आकर्षण जंगली जीवन, बांधवगढ़ नैशनल पार्क में शेर से ले कर चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भौंकने वाले हिरण, सांभर, जंगली बिल्ली, भैंसे से ले कर 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव और 250 प्रजातियों के पक्षियों के रैन बसेरे हैं.

448 स्क्वायर किलोमीटर में फैला बांधवगढ़ भारत के नैशनल पार्कों में अपना प्रमुख स्थान रखता है. यहां पहाड़ों पर 2 हजार साल पुराना बना किला भी देखने लायक है. बांधवगढ़ प्रदेश के रीवा जिले में स्थित है. यहां आवागमन के सभी साधन देश भर से उपलब्ध हैं.

नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर में है. यह रेल मार्ग से भी जबलपुर, कटनी, सतना से जुड़ा हुआ है.

कान्हा किसली

940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विकसित कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान है. इसे देखने के लिए किराए पर जीप मिल जाती है. कान्हा में वन्यप्राणियों की 22 प्रजातियों के अलावा 200 पक्षियों की प्रजातियां हैं. यहां बामनी दादर एक सनसैट पौइंट है. यहां से सांभर, हिरण, लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणियों को आसानी से देखा जा सकता है.  जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क मार्ग से कान्हा पहुंचा जा सकता है. नजदीकी विमानतल जबलपुर में है.

बढ़ती उम्र थम सी जाए

उम्र के हर पड़ाव पर जिस तरह जिंदगी करवटें बदलती रहती है, वैसे ही हमारे रूपरंग में भी बदलाव आता रहता है. खासकर 16 से 26 और 26 से 30 की उम्र कब हो जाती है पता ही नहीं चलता. बढ़ती उम्र का अंदाजा तब होता है जब चेहरा उम्र की चुगली करने लगता है. इस के बाद शुरू हो जाता है बेचैनी का दौर. यह दौर महिलाओं के लिए सब से दुखद होता है, क्योंकि कोई भी महिला कभी भी अपनी उम्र से अधिक नहीं दिखना चाहती.

क्यों दिखते हैं लोग उम्रदराज

हाल ही में किए गए एक शोध से पता चला है कि बढ़ती उम्र के साथसाथ शरीर की कार्यक्षमता कम होने लगती है. जिस की वजह से शरीर के लिए जरूरी तत्त्व माइलिन में कमी आने लगती है और इंसान उम्रदराज दिखने लगता है. लेकिन जब खराब जीवनशैली के चलते कम उम्र में ही माइलिन में कमी आने लगे तो भी इंसान उम्रदराज दिखने लगता है. यहीं से शुरू होती है ऐजिंग की प्रौब्लम.

ऐजिंग साइन की पहचान

यह भ्रम है कि ऐजिंग साइन यानी मार्क्स या चिह्न 30 की उम्र पार करते ही चेहरे पर दिखने लगते हैं. त्वचा विशेषज्ञों की मानें तो सूर्य की तेज किरणें त्वचा को डैमेज कर देती हैं. ये डैमेजेज उम्र बढ़ने पर त्वचा पर काले धब्बों के रूप में उभर कर सामने आते हैं. ऐसे में अकसर महिलाएं बाजार में उपलब्ध तमाम सनस्क्रीन में से कोई खरीद कर इस्तेमाल करने लगती हैं. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि सनस्क्रीन लेते वक्त एसपीएफ के लैवल पर गौर करना चाहिए और उसे अपनी त्वचा की जरूरत के हिसाब से ही लेना चाहिए. वैसे ऐजिंग साइन स्किन में फाइबर्स की मात्रा बढ़ने से भी दिखाईर् देने लगते हैं. कई बार त्वचा के छिद्र इतने खुल जाते हैं कि उन में व्हाइट हैड्स और ब्लैक हैड्स पड़ जाते हैं. यह भी एक तरह से ऐजिंग साइन है. नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल के कौस्मैटिक सर्जन डा. अनूप धीर कहते हैं कि उम्र के साथ ऐजिंग प्रौब्लम का होना आम बात है, लेकिन सही लाइफस्टाइल से खुद को ज्यादा उम्र का होने पर भी कम उम्र का दिखाया जा सकता है.

जानिए ऐसी डाइट के बारे में, जिस के इस्तेमाल से उम्रदराज दिखने पर नियंत्रण रखा जा सकता है.

ऐंटी ऐजिंग डाइट

टमाटर और तरबूज में लाइकोपेन होता है, जो फ्री रैडिकल्स को न्यूट्रिलाइज करता है और त्वचा को कैंसर से बचाता है.

लहसुन और प्याज भी ऐजिंग प्रौब्लम को दूर करने के मजबूत हथियार हैं. ये शरीर के इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाते हैं.

स्प्राउट्स और हरी सब्जियों को अपने आहार में शामिल करें. खासकर बंदगोभी और फूलगोभी में ऐंटीऔक्सीडैंट्स मौजूद होते हैं, जो त्वचा कैंसर से बचाते हैं.

चाय और डार्क चौकलेट में भी ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं, जो शरीर को फिट रखते हैं.

अधिक से अधिक पानी का सेवन भी बहुत जरूरी है. दिन भर में कम से कम 6 से 8 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए. पानी से त्वचा में नमी बनी रहती है.

शहद, लैमन औैर ग्रीन टी के नियमित सेवन से बौडी का ऐक्स्ट्रा फैट कम होता है.

अपने आहार में विटामिन सी का प्रयोग करें. इस से स्किन यंगर लगती है. सभी तरह के ड्राईफ्रूट्स और साइट्रिक फ्रूट्स जैसे मौसंबी और संतरे में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है.

डाइट में शुगर और साल्ट दोनों की संतुलित मात्रा होनी चाहिए ताकि ब्लडप्रैशर कंट्रोल में रहे. दरअसल, नमक के अधिक सेवन से युरिन आउटपुट रुक जाता है और शरीर में पानी इकट्ठा होने लगता है.

लाइफस्टाइल सुधारें

असंतुलित खानपान

ऐजिंग प्रौब्लम में सब से बड़ा हाथ असंतुलित खानपान का होता है, क्योंकि अब लोग हरी सब्जियों या फलों की जगह फास्ट फूड खाना ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसे में वे स्वाद के चक्कर में सेहत को भूल जाते हैं. इस बाबत डाइटीशियन डाक्टर चारू का कहना है कि जंक फूड के ज्यादा सेवन से शरीर में पोषक तत्त्वों को ग्रहण करने की क्षमता नहीं रहती और शरीर फैट ज्यादा कंज्यूम करने लगता है, जिस से बौडी बैलेंस खत्म हो जाता है. इस के लिए खाने में सलाद और हरी सब्जियों को शामिल करना चाहिए. इस से शरीर में माइक्रोन्यूट्रैंट बढ़ते हैं, जो त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद हैं. व्यायाम की कमी: शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम जरूरी है. व्यायाम करने से रक्तसंचार सही रहता है, जिस से त्वचा में चमक आ जाती है साथ ही शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्त्व भी पसीने के जरीए बाहर निकल जाते हैं.

अधूरी नींद

आज की फास्ट ट्रैक लाइफ में लोग सब से पहले अपनी नींद से समझौता कर लेते हैं. लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि अधूरी नींद डार्क सर्कल्स को न्योता देती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अधूरी नींद से शरीर में पीएच बैलेंस्ड नहीं रहता और गंदे ऐंजाइम्स शरीर में ही स्टोर रह जाते हैं. कुछ कौस्मैटोलौजिस्ट का यह भी कहना है कि सोते वक्त हमारी आंखों के आसपास मौइश्चराइजर बनता है, जो डार्क सर्कल्स को बनने से रोकता है. लेकिन अधूरी नींद के कारण यह मौइश्चराइजर नहीं बन पाता तो आंखों के नीचे काले घेरे बनने लगते हैं.

तनाव

तनाव की वजह से शरीर में स्टै्रस हारमोंस बढ़ जाते हैं जिन की वजह से चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं.

पानी की कमी

ऐजिंग की समस्या को रोकने पानी बहुत सहायक है, लेकिन अगर इस के सेवन में असावधानी बरती जाए तो शरीर से डीटौक्सिफिकेशन होना बंद हो जाता है, जिस से त्वचा सांस लेना बंद कर देती है. शरीर में पानी की संतुलित मात्रा जाती रहे, इस के लिए पानी के अलावा ग्रीन टी, नीबू पानी, मिंट वाटर और कोकोनट वाटर पीते रहना चाहिए.

डाइटीशियन डाक्टर चारू बताती हैं कि कम फैट वाले व फाइबर से भरपूर फूड ऐंटीऔक्सीडैंट्स के स्रोत होते हैं. वे औक्सीडेशन या ऐजिंग की उस प्रक्रिया को रोक देते हैं, जो फ्री रैडिकल्स के कारण होती है. इसलिए डाइट वैसी ही लेनी चाहिए, जो इन खूबियों से भरपूर हो.

बॉलीवुड में अपनी जगह ढूंढ ली है : राज कुमार राव

फिल्म ‘लव सेक्स धोखा’ से लेकर ‘अलीगढ़’ तक राज कुमार राव ने अपने अभिनय के नित नए आयाम पेश किए हैं. ‘शाहिद’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने के बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी. हाल ही में उनकी फिल्म ‘न्यूटन’ को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया. बहरहाल इन दिनों वह 17 मार्च को प्रदर्शित हो रही अपनी फिल्म ‘ट्रैप्ड’ को लेकर काफी रोमांचित हैं.

अपनी अभिनय यात्रा को लेकर क्या सोचते हैं?

मेरी अब तक की यात्रा कंटेंट ओरिएंटेड रही है. मुझे हर प्रतिभाशाली निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिला. कलाकार के तौर पर मुझे बहुत प्रयोगात्मक काम करने का मौका मिला. मुझे तो इस यात्रा में बहुत मजा आया. मुझे लगता है कि मैंने बॉलीवुड में बहुत सही समय पर कदम रखा, जब सिनेमा बदल रहा था, नए नए फिल्मकार आ रहे थे. मुझे लगता है कि मैंने अपनी एक जगह ढूंढ़ ली है.

डॉली की डोली को सफलता नहीं मिली?

ऐसा भी हो सकता है. ‘डॉली की डोली’ में मैं पूरी फिल्म में नहीं था. कुछ दृष्यों में ही था. मैं फिर कहूंगा कि हम कलाकार हैं. फिल्म के भविष्य का एहसास नहीं कर सकते. हमारे हाथ में मेहनत करना होता है, वह मैं ईमानदारी के साथ करता हूं. बाकी तो दर्शकों पर निर्भर करता है. वैसे मैंने तो लोगों के कई भ्रम तोड़े हैं. लोगों को भ्रम था कि मैं कभी डांस नहीं कर सकता. पर मैंने डांस करके दिखाया. और इस साल बहुत कुछ होगा.

यानी कि 2017 में आप कब्जा करने वाले हैं?

मैं ऐसी सोच नही रखता. यह सच है कि इस वर्ष मेरी कई फिल्में एक साथ प्रदर्शित होंगी. कुछ फिल्में पिछले वर्ष प्रदर्शित होने वाली थी, पर किन्हीं कारणों से वह पिछले वर्ष प्रदर्शित न हो सकीं. तो अब इस वर्ष कई फिल्में प्रदर्शित होंगी. इस वर्ष ‘बहन होगी तेरी’, ‘शिमला मिर्ची’, ‘ओमार्टा’ ‘ट्रैप्ड’ व ब्लैक कॉमेडी फिल्म ‘न्यूटन’ प्रदर्शित होंगी. ट्रैप्ड एक सर्वाइवल ड्रामा है. रमेश सिप्पी के निर्देशन में हास्य फिल्म ‘शिमला मिर्ची’ कर रहा हूं. एक बंगला फिल्म कर रहा हूं. इंडो अमरीकन निर्देशक अमृता सिंह गुजराल की कॉमेडी फिल्म ‘फाइव वेडिंग’ में नरगिस फाखरी के साथ काम कर रहा हूं. इसकी शूटिंग हमने चंडीगढ़ में की है. इसमें मैंने भारतीय अफसर हरभजन सिंह का किरदार निभाया है. यह फिल्म भारतीय शादी, प्यार, मौत और पुनर्जन्म की बात करती है. इसमें कुछ विदेशी कलाकार हैं. नरगिस फाखरी के साथ चंडीगढ़ घूमने का भी मौका मिला. पर सबसे पहले ट्रैप्ड प्रदर्शित होगी.

फिल्म ट्रैप्ड क्या है?

यह फिल्म एक सर्वाइवल ड्रामा है. कैसे शौर्य नामक युवक एक ऐसी इमारत के एक मकान के अंदर फंस जाता है, जहां पानी, बिजली व खाने पीने का कोई सामान नहीं है. कैसे वह सर्वाइव करता है. यानी कि खुद को जीवित रखने में सफल होता है. उसी की कहानी है. इस किरदार को निभाना एक कलाकार के तौर पर मेरे लिए शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तर पर काफी चुनौतीपूर्ण रही. मैं शौर्य का किरदार निभा रहा था, तो मैंने कुछ दिन पहले से ही वह जिंदगी निभानी शुरू कर दी थी. मैंने खुद खाना पीना छोड़ दिया था. बीस दिन तक एक गाजर और एक ब्लैक कॉफी ही लेता रहा. शारीरिक तौर पर काफी चुनौती थी, पर मजा भी आया. इस तरह का किरदार निभाने का मौका पता नहीं दुबारा कब मिलेगा.

इस किरदार को निभाते समय आपने उनके बारे में सोचा जो कि भुखमरी के शिकार होकर मौत के मुंह में समा जाते हैं?

कई बार सोचा. मुझे एहसास हुआ कि वह कितने असहाय होते होंगे. क्योंकि हमारे शरीर को भोजन, पानी, बिजली, प्रकाष, हवा सब कुछ चाहिए. इंसान कुछ दिन बिना भोजन किए तो गुजार सकता है, मगर बिना पानी के खुद को जीवित रखना बहुत मुश्किल है. अब मैं बहुत आसानी से उन लोगों के दर्द, तकलीफ को समझ सकता हूं, जिन क्षेत्रों में सूखा पड़ता है, लोगों को पीने का पानी भी नसीब नहीं होता है. इस फिल्म को करते समय मैंने महसूस किया कि हमारे शरीर को पानी की बहुत ज्यादा जरुरत होती है. एक कलाकार व राज कुमार के रूप में भी मेरे अंदर फ्रस्ट्रेशन का एहसास इस बात को लेकर बना रहता था कि शरीर को जो चाहिए वह नहीं मिल रहा है.

कभी आपने सोचा कि भुखमरी के शिकार या सूखाग्रस्त क्षेत्र के लोगों के लिए क्या किया जाना चाहिए?

सच कहूं तो ऐसे लोगों की स्थिति सोचकर मुझे बहुत तकलीफ होती है. बहुत बुरा लगता है. यदि किसी इंसान को पीने का पानी न नसीब हो तो हमारे लिए इससे अधिक शर्मनाक बात कोई नहीं हो सकती.

कमरे के अंदर बंद इंसान की कहानी है, तो फिर इसमें हीरोइन क्या कर रही है?

फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है. अब इस प्रेम कहानी को लेखक व निर्देशक ने किस तरह से बुना है, वही इस फिल्म की खूबी है. मगर नब्बे प्रतिशत फिल्म कमरे के अंदर है.

आपको राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले. आपकी फिल्में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में धूम मचा रही है. इसके बावजूद भारत में आपकी फिल्मों के प्रदर्शन में काफी समस्याएं आ रही है?

ऐसा कुछ नहीं है. देखिए, फिल्म ‘ट्रैप्ड’ को लेकर हम सभी ने योजना बनायी थी कि हम पहले इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ले जाएंगे, उसके बाद भारत के सिनेमाघरों में प्रदर्शित करेंगे. अक्टूबर 2016 में ‘ट्रैप्ड’ को मामी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया, जिसे काफी सराहना मिली. उसके बाद हमने इसके प्रदर्शन की बात सोची. अब हम 17 मार्च को इसे प्रदर्शित कर रहे हैं.

जब आपको फिल्म ट्रैप्ड की कहानी सुनायी गयी थी, तब किस बात ने आपको इंस्पायर किया था?

मैं विक्रमादित्य मोटावणे का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं. मैं उनके साथ फिल्म करना चाहता था और यह फिल्म वही निर्देशित कर रहे थें. मैंने उनकी फिल्में ‘उड़ान’ व ‘लुटेरा’ देखी थी. जब ‘मसान’ की स्क्रीनिंग के दौरान विक्रमादित्य ने मुझसे इस कहानी का जिक्र किया, तो मैंने खुद उनसे पूछा कि कब करनी है. इस कहानी से प्रभावित होने की वजह यह रही कि मैं सर्वाइवल ड्रामा का बहुत बड़ा फैन हूं. मुझे इस तरह की फिल्में देखकर उत्साह आता था कि कैसे आपको पूरी फिल्म को लेकर चलना है. फिल्म में आपके किरदार का पूरा एक ग्राफ है. तो मुझे लगा कि मेरे लिए इस किरदार को निभाना चुनौतीपूर्ण रहेगा. मैंने पहले इस तरह का किरदार निभाया नहीं था. भारत में इस तरह की फिल्म भी नहीं बनी है.

बॉलीवुड के कई कलाकार हॉलीवुड में काम कर अच्छा नाम कमा रहे है. इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में आपकी फिल्मों ने धूम मचायी और अंततरराष्ट्रीय स्तर पर आपकी भी एक पहचान बन गयी है. ऐसे में आप हॉलीवुड फिल्में नहीं करना चाहते हैं?

यदि किसी अच्छी फिल्म का ऑफर मिले, तो मैं जरूर करूंगा. वैसे मैंने एक फिल्म ‘लव सोनिया’ की है, जो कि इंडो अमरीकन फिल्म है. इसके अलावा मैंने एक फिल्म ‘‘फाइव वेंडिंग’’ की है. देखिए, मेरी राय में हर कलाकार को अंग्रजी फिल्म करनी चाहिए. क्योंकि अंग्रेजी भाषा की पहुंच पूरे विश्म में है. मैं हाल ही में यूरोप गया था, वहां मैंने पाया कि लोग हॉलीवुड फिल्में ही देखना चाहते हैं. तो हॉलीवुड फिल्में करने से कलाकार के तौर पर हमारी पहुंच बढ़ जाती है. हम ज्यादा दर्शक वर्ग तक पहुंच जाते हैं. पर इन दिनों हमारा करियर बॉलीवुड में बहुत अच्छा चल रहा है. इसलिए मेरा सारा ध्यान यहीं पर है. पर जब भी कोई अच्छी हॉलीवुड फिल्म मिलेगी, तो जरूर करना पसंद करुंगा.

फिल्म लव सोनिया में महिलाओं की तस्करी का मुद्दा उठाया गया है. इस फिल्म को करने के बाद इस समस्या पर आपकी अपनी सोच क्या बनी?

इस फिल्म को करते समय मैंने बहुत दर्दनाक कहानियां सुनी. मैं कई ऐसी लड़कियों से मिला, जिन्हें इस तरह के चंगुल से मुक्त कराया जा चुका है. इनकी कहानी सुनने के बाद मैंने अपने आपको बेबस पाया. क्योंकि मैं इनके लिए कुछ कर नहीं पा रहा था. मुझे लगा कि कम से कम सिनेमा के माध्यम से हम इस कहानी को कह तो रहे हैं. इससे लोगों में जागरूकता आएगी. हो सकता है कि इस पर कोई बहस छिडे़.

फिल्म ‘फाइव वेडिंग’ में आपने पहली बार नरगिस फाखरी के साथ काम किया है?

जी हां! वह स्वयं अमरीकन हैं. उनके अंग्रेजी बोलने का लहजा अलग है.

तो उनके साथ काम करने के आपके अनुभव क्या रहे?

फिल्म ‘फाइव वेडिंग’ में नरगिस का किरदार अमरीकन लड़की का ही है. फिल्म अंग्रेजी भाषा की है. उनके साथ ही इस फिल्म में मुझे भी अंग्रेजी बोलने का मौका मिला. उनके साथ काम करने में मजा आया. वह बहुत फनी हैं. मेरी अच्छी दोस्त हैं. वह सेट पर वीडियो भी बना रही थी.

मैं ‘एबीवीपी’ पर यकीन नहीं करती : स्वरा भास्कर

दक्षिण भारत के तेलगू भाषी नेवल ऑफिसर व रक्षा विशेषज्ञ उदय भास्कर और ईरा भास्कर की बेटी स्वरा भास्कर की शिक्षा दिक्षा दिल्ली के जे एन यू विश्वविद्यालय में हुई है. उनकी मां ईरा भी ‘जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय’ दिल्ली में सिनेमा की प्रोफेसर हैं.

‘जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एमए करने वाली स्वरा भास्कर एक बेहतरीन अदाकारा हैं. उन्होंने शिक्षा के महत्व पर बात करने वाली फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’ में अभिनय कर काफी पुरस्कार बटोरे. अब उनकी नई फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च को प्रदर्शित होने वाली है.

‘निल बटे सन्नाटा’ के प्रदर्शन से पहले जेएनयू में कन्हैया व उमर खालिद का मुद्दा गर्माया था. तब स्वरा भास्कर ने उमर खालिद के पक्ष में खुला पत्र लिखा था. उस वक्त स्वरा भास्कर ने भाजपा सरकार व छात्र संगठन ‘एबीवीपी’ के खिलाफ मोर्चा खोला था. अब जबकि उनकी फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ प्रदर्शित हो रही है, तो दिल्ली विश्वविद्यालय फिर से सूखिर्यों में है.

एक बार फिर स्वरा भास्कर ने छात्र संगठन ‘एबीवीपी’ के खिलाफ और छात्र संगठन ‘आइसा’ के पक्ष में मुहीम चला रखी है. ‘जे एन यू’ की छात्रा रही स्वरा भास्कर के दिमाग में यह बात बैठी हुई है कि ‘जे एन यू’ से जुड़ा कोई भी शख्स या छात्र गलत बात नहीं कर सकता. वह छात्र संगठन ‘आइसा’ को सबसे ज्यादा इमानदार व संस्कारी मानती हैं. जबकि उनकी नजर में ‘एबीवीपी’ महज गुंडई करता है.

हाल ही में ही हमारी मुलाकात स्वरा भास्कर से हुई.  

शिक्षा की बात करने वाली फिल्म निल बटे सन्नाटा के प्रदर्शन के बाद किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?

बॉक्स ऑफिस के साथ साथ लोगों की तरफ से भी बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. फिल्म हिट रही. फिल्म दस सप्ताह चली, पैसे कमा लिए. छोटी फिल्मों के लिए यह सब बहुत जरुरी है. लोगों ने कल्पना नहीं की थी कि लोगों के घरों में काम करने वाली बाई और शिक्षा को लेकर इस तरह की फिल्म भी बन सकती है. यह मां व बेटी की कहानी लोगों के दिल में बसने के साथ ही एक मिसाल बन गयी है. 

कुछ लोगों ने पत्र लिखकर कहा कि फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’ देखने के बाद उनकी बेटी ने इंटरनेट से आई ए एस का फॉर्म निकालकर भरा और परीक्षा की तैयारी कर रही है. इस तरह की कम से कम दो पत्र तो मुझे याद हैं. अभी कुछ दिन पहले मैं दिल्ली हाट बाजार में खरीददारी कर रही थी, तब एक पिता ने अपनी बेटी से मिलवाते हुए बताया कि मेरी फिल्म देखकर उनकी बेटी आई ए एस बनने की लिए पढ़ाई कर रही है. जब हम छोटे थे, तब मेरे घर काम करने आती थीं चंद्रा, अब वह काम नहीं करती है, मैंने दिल्ली में दूसरी महिलाओं के साथ उन्हें भी बुलाकर अपनी यह फिल्म दिखायी. फिल्म देखने के बाद पांच मिनट तक मुझसे चिपककर वह रोयीं. इन दिनों दिल्ली में मेरे घर पर गीता दीदी काम करती हैं, उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें यह बात अच्छी लगी कि हमने उनकी कहानी को फिल्म में दिखाया.

फिल्म निल बटे सन्नाटा शिक्षा और अपने बच्चों को कुछ बनाने के सपनों की बात करती हैं. इन दिनों जो कुछ विश्वविद्यालयों में हो रहा है, क्या उससे लोगों के सपने पूरे होंगे? क्या यही सही शिक्षा है?

मुझे लगता है कि विश्वविद्यालयों में लोगों का आपस में वाद विवाद होना, उनका आपस में राजनीतिक मतभेद होना बुरी बात नहीं है. विश्वविद्यालय इसी के लिए बनती हैं. मगर हिंसा का होना बहुत बुरी बात है. एक खास गुट का दूसरे छात्रों पर अपनी सोच, अपने एजंडे को लागू करना, अपनी फिलोसफी को थोपना ठीक नहीं है. मैं एबीवीपी की बात कर रही हूं. एबीवीपी हमेशा गलत ढंग से लोगों को बरगलाना और धमकाता है. दिल्ली पुलिस का हिंसा की जगह पर मूक दर्शक बने रहना गलत है.

सरकार का इस पर प्रतिक्रिया न देना अथवा जो पिट रहे हैं, उन्हीं पर आरोप लगाना भी गलत है. मैं तो एबीवीपी की किसी भी कही हुई बात पर यकीन नहीं करती. मेरी राय में एबीवीपी के लोग सिर्फ झूठ बोलते हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि जब से इनकी सरकार आयी है, तभी से सारे भारत विरोधी नारे लग गए. इस सरकार से पहले भी वामपंथी, कांग्रेसी,कश्मीरी लोग जेएनयू में पढ़ते रहे हैं.

पर इस सरकार के आते ही भारत के विनाश की योजना बननी शुरू हो गयी. यह तर्कहीन बाते हैं. मैं जेएन यू की छात्रा रही हूं. मैं उनकी हरकतें जानती हूं. इसलिए मुझे एबीवीपी की बातों पर भरोसा नहीं है. उनका सारा काम झूठ पर चलता है. वह छात्रों की राजनीति करते हैं, पर एबीवीपी ने कभी छात्रों के मुद्दे को नहीं उठाया. उन्हें सिर्फं गुंडई, दबंगई व अनावश्यक विवाद फैलाने में ही रूचि रहती है. आप अपने अध्यापकों के साथ सम्मान से पेश नहीं आते हैं. आप अपने गुरू की इज्जत नहीं कर सकते, तो फिर आप क्या लोगों को देशप्रेम सिखाओगे. एबीवीपी के लोग अपने गुरूओं का सम्मान नहीं करते हैं, वह देश का क्या खाक सम्मान करेंगे.

मान लो कि इस तरह के नारे लगे हों, तो उसका मुकाबला तर्क से करें, हिंसा से न करें. यदि वह कुछ बोल रहे हैं,तो उसका मुकाबला आप बोली से करिए,हाथ क्यों उठा रहे हैं?हाथ वही इंसान उठाता है, जिसके पास कोई तर्क न बचा हो. मैं आपसी झगड़े या आत्मरक्षा की बात नहीं कर रही. मैं सामाजिक वाद विवाद की बात कर रही हूं.

सामाजिक वार्तालाप में जो इंसान हिंसा का रास्ता अपनाता है, इसके मायने हैं कि उसके पास तर्क नहीं है. यही हमारे विश्वविद्यालयों में हो रहा है. जिनके पास तर्क खत्म हो चुके हैं, वही हाथ उठा रहे हैं. देखिए,मैं देशभक्त हूं. मुझे मेरे देश से प्यार है. मैं हर नारे का तर्कसंगत जवाब दे सकती हूं. लेकिन मुझे हाथ उठाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. मैंने कश्मीरी विद्यार्थियों से ही नहीं बल्कि जो लोग वास्तव में अलगाव वादी हैं, उनसे भी बात की है. उनसे बात करते समय मुझे कभी भी हाथ उठाने की जरुरत नहीं पड़ी, तो फिर आपको हाथ उठाने की जरुरत क्यों पड़ रही हैं.

पर हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कालेज में जो कुछ हुआ, उसमें एबीवीपी और आइसा दोनों ने एक दूसरे पर लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर कई तरह के आरोप लगाए हैं?

मैं एबीवीपी की किसी भी बात पर यकीन नहीं करती हूं. वह जहां भी जाते हैं, मारपीट ही करते हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि जहां जहां भारत के खिलाफ नारे लग रहे हैं, वहां वहां एबीवीपी कैसे पहुंच जाता है. यह आष्चर्य जनक बात है. जहां जहां हिंसा शुरू होती है, वहां भी एबीवीपी पहुंच जाता है. ऐसा कैसे हो जाता है?

आइसा की तरफ से हैदराबाद में कार्यक्रम कराया जाता है, वहां भी एबीवीपी की वजह से पुलिस को हाथ उठाना पड़ा. तो आप देख लीजिए, एबीवीपी का इतिहास है, जहां हिंसा होगी, वहां एबीवीपी होगा. मैं दुःख के साथ कहती हूं कि मेरे मन में एबीवीपी के प्रति सहानुभूति होना दूर की बात है, मैं उन पर विश्वास ही नहीं करती. सबसे बड़ी बात यह है कि एबीवीपी खुद हिंसा शुरू करते हैं और दूसरों पर लड़कियों के साथ छेड़खानी करने व हिंसा करने का आरोप लगा देते हैं.

इंटरनेट पर सत्येन्द्र के वीडियो हैं, यह 2016 का वीडियो हैं, जिसमें वह अपने शिक्षक से बदतमीजी से बात कर रहा है. उसके भाई पर दहेज का आरोप लगा हुआ है. उसकी भाभी ने उसके परिवार पर घरेलू हिंसा का आरोप लगा रखा है. इसलिए मैं इन लोगों पर विश्वास नहीं करती. जब वह कहते हैं कि आइसा के लोगों ने लड़कियों के साथ छेड़खानी की,तो वह साफ झूठ बालते हैं.

मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि किसी भी पक्ष को लड़कियो के साथ छेड़खानी करने की जरूरत क्यों पड़ जाती है?

यह एबीवीपी की मानसिकता है. दो साल में एबीवीपी की तरफ से यह चौथा घटनाक्रम है. इससे पहले दिल्ली में औरतें एक आंदोलन चला रही थीं, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्राएं नुक्कड़ नाटक कर रही थी, उन पर भी एबीवीपी ने ही हमला किया था. हमारे देश में जबसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार आयी है, तब से तमाम छोटे छोटे गुट उभरकर आ गए हैं. फिर चाहे वह बजरंगदल हो या गौरक्षक संगठन हो संजय लीला भंसाली की पिटाई करने वाला राजपूत करणी सेना हो.

भाजपा की सरकार बनने से पहले मैंने गौ रक्षक का नाम ही नहीं सुना था. मगर लोगों ने दो साल में ही गायों की सुरक्षा की बात सोचना शुरू किया. अचानक आपको पर्यावरण और जानवरों की सुरक्षा याद आने लगी है. इससे यह साफ जाहिर होता है कि ढाई साल पहले तक जो लोग अपने आपको हाशिए पर पाते थे, उन्हें अब लग रहा है कि हमारी सरकार है, तो हम कुछ भी कर सकते हैं.

आप मेरे सवाल का जवाब नहीं दे रही हैं. मेरा सवाल है कि आइसाछात्र संघठन हो या एबीवीपी’. क्या विश्वविद्यालय के अंदर हिंसा करना या लड़कियों के साथ छेड़खानी करना जायज है?

मैंने कब कहा कि जायज है. अगर दिल्ली पुलिस एबीवीपी के खिलाफ एफआइआर लिखने से मना कर दे तो क्या करें. हो यह रहा है कि जो लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं. पर आप उन्हें जाने दे रहे हो. उसके बाद आप लोग गुरमेहर सहित दूसरों मुद्दों पर सोशल मीडिया व टीवी चैनलों पर बहस छेड़ते हैं, जिसका इस घटनाक्रम से कोई लेना देना नहीं है.

मजेदार बात यह है कि बहस में कौन किसका पिता था. किसने क्या किया. जैसी चर्चाएं शुरू कर दी और जिसने गुंदागर्दी की उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की. इससे आप क्या संदेश दे रहे हैं. आप खुद विश्वविद्यालय में हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं. दिल्ली पुलिस उन्हें पूरी छूट देते हुए कह रही है कि आओ आपको जो कुछ करना हो, करो, आपकी सरकार है. हम दिल्ली पुलिस के लोग चुपचाप खड़े रहेंगे. इससे आप विश्वविद्यालय में किस तरह की शिक्षा को बढ़ावा देंगे.

आप भूल जाते हैं.जेएनयू का तीन माह से नजीब नामक छात्र गायब है. उसे एबीवीपी के लोगों ने मारा. आज तक मिला नहीं. इसका जवाब दिल्ली पुलिस या दिल्ली की सरकार के पास नहीं है. एबीवीपी के लोग ‘भारत माता की जय’ चिल्लाने के अलावा कोई जवाब नहीं दे सकते.

दुःख के साथ कहना चाहूंगी कि यह बहुत चिंता जनक स्थिति है. यदि आपको लगता है कि मैं जान बूझकर किसी खास पक्ष की बात कर रही हूं, तो आप सोचते रहिए, मुझे फर्क नहीं पड़ता. अगर आपको लगता हैं कि मैं आइसा छात्रसंघ की समर्थक हूं, तो इससे मेरी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. आप देख लीजिए, पिछले ढाई साल से केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद से ही एबीवीपी की हिंसात्मक गतिविधियां बढ़ी हैं.

नजीब को ढूंढ़ने के लिए जेएनयू के छात्र लगातार आंदोलन व मुहीम चला रहे हैं. लेकिन हमारे देश की मीडिया भी इस आंदोलन/मुहीम की चर्चा नहीं कर रहा है. यह छात्र सोशल मीडिया पर नजीब की तलाश की मुहीम चला रहे हैं. पर छात्रों के पास इतना धन नहीं होता कि वह कुछ कर सकें. उनके पास मीडिया की तरह कलम की ताकत नहीं है. जिस ढंग की शक्ति एबीवीपी के पास है, वैसी शक्ति भी उनके पास नही है. पर वह सब जगह सवाल कर रहे हैं. मुझे लगता है कि नजीब मारा गया.

मेरा सीधा सवाल यह है कि विश्वविद्यालयों में शुक्षा क्या हो रहा है?

मैं यह कहूंगी कि यदि आप विश्वविद्यालय में सवाल पूछने की आजादी खत्म कर देंगे, तो शिक्षा अपने आप बंद हो जाएगी.

आखिर क्या वजह है कि छात्र आंदोलन व हिंसा की घटनाएं जेएनयू व दिल्ली विष्वविद्यालय में ही होती हैं. मुंबई विश्विविद्यालय में इस ढंग की घटनाएं नहीं सुनायी देती?

आप जेएनयू को दोश ना दें. हैदराबाद विश्वविद्यालय में बहुत बड़ा कांड हुआ. एक छात्र ने आत्महत्या कर ली, जिसको लेकर बवाल भी हुआ, पर कोई परिणाम नहीं निकला. यूं तो मुझे मुबंई विष्वविद्यालय के बारे में जानकारी नहीं है. शायद मुंबई में बॉलीवुड, मीडिया व कॉरपोरेट हावी हैं. दूसरी बात मुंबई विश्वविद्यालय में लिबरल आर्ट की बजाय सबसे ज्यादा कॉमर्स पढ़ाया जाता है. फिर विज्ञान पढ़ाया जाता है.

जबकि दिल्ली विष्वविद्यालय व जेएनयू लिबरल आर्ट के केंद्र हैं. यहां सामाजिक इतिहास, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान पढ़ाया जाता है. हैदराबाद व इलहाबाद विश्वविद्यालयों में भी यही विषय ज्यादा पढ़ाई जाते हैं. इलहाबाद विश्वविद्यालय में भी बड़े बड़े कांड हुए हैं. पर जेएनयू बदनाम है, इसलिए लोग वहां कि हर छोटी बड़ी घटना को बड़ा बनाकर पेश करते हैं. दूसरी बात दिल्ली देय की राजधानी है. केंद्र सरकार का दबदबा है. दिल्ली पुलिस, केंद्र सरकार के अधीन काम करती है.

तो आप भारत विरोधी नारों को जायज ठहराती है?

मेरी नजर में जब भारत विरोधी नारे लगते हैं, तो उससे बातचीत शुरू होती है, जिससे नई बातें सामने आती हैं. जब वार्तालाप होगा, बहस होगी,तभी समाज व देश प्रगति करता है. महात्मा गांधी जी ने बात बात कर कर के देष को आजाद कराया था. गांधी जी को हिंसा का रास्ता अपनाने की जरूरत नहीं पड़ी. देखिए,उस जमाने में भगतसिंह जैसे हिंसावादी नेता भी थे,पर सफलता तो अहिंसावादी और बातचीत करने वाले गांधी ने ही दिलायी.

आपको नहीं लगता कि एबीवीपी को उन लोगों से समस्या है,जो आम जगहों यानी कि पब्लिक प्लेस पर द्विअर्थी गाने गाते हैं या अश्लील बातें करते हैं?

क्या समाज सुधार का ठेका एबीवीपी को मिला है? आप समाज के ठेकेदार नही हैं. देश कानून व संविधान से चलता है. देश के कानून ने ही तय किया है कि पब्लिक प्लसे में क्या क्या किया जा सकता है. कानून में कहीं नही लिखा हैं कि दो लोग हाथ पकड़कर पब्लिक प्लेस में साथ में नही चल सकते. यदि आपको किसी के किसी काम से समस्या है, तो आप उसके खिलाफ कानून का सहारा लीजिए.

मैं लिखकर देती हूं कि यदि दो लोग पब्लिक प्लेस में किसिंग कर रहे हैं और आप पुलिस के पास जाएंगें, तो पुलिस आपको ही भगाएगी. क्योंकि पुलिस को कानून की समझ है. यह अदालत तय करेगी कि क्या सही है व क्या गलत. आप किसी को गलत मानकर उसका मुंह काला कर दें, उसकी पिटाई करें, यह सब गलत है.

आप किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. हिंसा का रास्ता नही अपना सकते.आप संविधान के खिलाफ काम नहीं कर सकते. आप उसके ठेकेदार नहीं बन सकते हैं. किसी इंसान को अछूत मानना भी अपराध है.

क्या वजह है कि जब आपकी फिल्म रिलीज होने वाली होती है, तभी दिल्ली विश्वविद्यालय या जेएनयू में बवाल हो जाता है?

मुझे भी नहीं पता. मेरे निर्माता भी यही सवाल मुझसे पूछ रहे थे. पर हो यही रहा है कि मेरी फिल्म के रिलीज से पहले कोई न कोई भारत का राजनीतिक मुद्दा गर्मा जाता है. मेरी फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’ के रिलीज से दो माह पहले जेएनयू में कन्हैया और उमर खालिद का मुद्दा गर्माया था. मैंने उमर खालिद के पक्ष में खुला पत्र लिख दिया था. अब ‘अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च को प्रदर्शित होने वाली है, तो दिल्ली विश्वविद्यालय का मुद्दा गर्मा गया है. जहां एबीवीपी ने आग लगा रखी है. अब मैं सोचती हूं कि मैं अपना फेक ट्वीटर एकाउंट खोल लूं. जहां मैं राजनीतिक बातें किया करूं,जिससे मेरी फिल्मों पर असर ना पड़े.

उमर खालिद के पक्ष में आपने खुला पत्र लिखा था. इस बार आपने कोई पत्र नहीं लिखा?

पिछली बार मेरे खुले पत्र को लेकर बहुत बवाल हो गया था. इस बार भी लिखना चाहती थी. पर समय नहीं मिला. मैं फिल्म के प्रमोशन में व्यस्त हूं.

रिटायरमैंट प्लान ताकि बुढ़ापा आराम से गुजरे

महिलाओं की जिंदगी पुरुषों की तुलना में अधिक होती है. अध्ययन बताता है कि पति की तुलना में पत्नी अधिक उम्र तक जीती है. इस का मतलब पैंशन पर आश्रित जिंदगी, जीवनसाथी के साथ बिताई जाने वाली जिंदगी से लंबी होती है. इसलिए एक घरेलू महिला को अपने पति के रिटायरमैंट प्लान के बारे में जानना बेहद जरूरी है. यदि कोई रिटायरमैंट प्लान नहीं है तो उस के बारे में फैसला करने का यह सब से सही समय है. यदि आप के पति वैतनिक कर्मचारी हैं तो सभी की तरह उन का भी एक कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ खाता होगा. लेकिन अगर आप के पति यह सोचते हैं कि ईपीएफ उन के रिटायरमैंट के बाद की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है तो उन्हें दोबारा सोचने के लिए मजबूर करें.

सच यह भी है कि यदि कोई रिटायरमैंट की जरूरतों के लिए सिर्फ भविष्य निधि के सहारे है तो उसे रिटायरमैंट के बाद पैसों की कमी से जूझना पड़ सकता है.

ईपीएफ, यहां तक कि लोक भविष्य निधि भी, सौ फीसदी डेट आधारित होने की वजह से महंगाई का असर रोकने में कामयाब नहीं होते. इन पर मिलने वाला वास्तविक रिटर्न, महंगाई समायोजित रिटर्न से कम होता है. इस तरह ये महज बचत को संरक्षित रखने का काम कर पाते हैं. इस समय महंगाई दर 8-9 फीसदी के आसपास है, वहीं फिक्स्ड इनकम निवेश पर मिलने वाला रिटर्न 9 फीसदी के करीब है. डेट असेट यानी ऋण आधारित स्कीमें आप की पूंजी को संरक्षित करने का माध्यम हैं. इन का इस्तेमाल लघु या मध्यम अवधि के लक्ष्यों को पूरा करने में ही किया जा सकता है.

बेहतर विकल्प

लंबी अवधि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इक्विटी में निवेश आवश्यक है. इस के पीछे की धारणा यह है कि निवेश पर रिटर्न महंगाई की दर से 3-4 फीसदी अधिक होना चाहिए. रिटर्न में एक छोटा सा अंतर मैच्योरिटी पर मिलने वाली राशि पर बड़ा असर डालता है. लंबी अवधि के दौरान संपत्तियों के निर्माण में वास्तविक रिटर्न माने रखता है, न कि टोकन यानी सांकेतिक रिटर्न.

पहले के अध्ययन बताते हैं कि एक लंबी अवधि में इक्विटी अन्य साधनों जैसे सोना, डेट या रीयल एस्टेट की तुलना में अधिक रिटर्न देता है. यदि आप गौर करेंगे तो पता चलेगा कि पिछले 10-15-20 सालों में सैंसेक्स का संयोजित वार्षिक रिटर्न क्रमश: 17 फीसदी, 12 फीसदी, 11.23 फीसदी रहा है और रिटायरमैंट का लक्ष्य अकसर इतना ही लंबा होता है. ऐसे में इक्विटी एक सुरक्षित और बेहतर विकल्प हो सकता है.

म्यूचुअल फंड

रिटायरमैंट की जरूरतों को पूरा करने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प है क्योंकि लंबी अवधि में अधिक रिटर्न के साथ यह महंगाई के असर को खत्म करने का माद्दा रखता है. लंबी अवधि का फायदा हासिल करने के लिए निवेश को लगातार बनाए रखना चाहिए. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे म्यूचुअल फंड का चुनाव करना चाहिए जिन का सौ फीसदी एक्सपोजर इक्विटी में हो और जो आगे चल कर आप को डेट फंड में स्विच करने का विकल्प प्रदान करें. इक्विटी और डेट में शिफ्ट होने की ऐसी अंतर्निहित विशेषता संपत्तियों के निर्माण में मददगार साबित होती है.

इन से रहें सतर्क

इक्विटी से मिलने वाला रिटर्न बेहद अस्थिरता भरा होता है क्योंकि यह बाजार के उतारचढ़ावों पर निर्भर करता है. बाजार विभिन्न आर्थिक व गैरआर्थिक कारणों से प्रभावित होता है. लघु अवधि में अस्थिरता ज्यादा होती है जबकि लंबी अवधि में यह कमोबेश पहले जैसी हो जाती है. इसलिए दिनप्रतिदिन होने वाली और गैरप्रासंगिक घटनाओं को अनदेखा कर निवेश को कायम रखना ही बेहतर होता है.    

क्या करें

संपत्तियों के निर्माण करने के लिए एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान का सहारा लें. एसआईपी के जरिए एक तय राशि नियमित अंतराल पर निवेश करें. ऐसा करने से बाजार में होने वाली घटबढ़ से बचा जा सकता है. परिणामस्वरूप लंबे समय तक आप के निवेश की एक औसत लागत बनी रहेगी.

एसआईपी का लब्बोलुआब यह है कि जब बाजार में गिरावट होती है तो आप को निवेश पर अधिक यूनिट मिल जाते हैं लेकिन जब बाजार चढ़ता है तो यूनिट कम मिलते हैं. रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर इक्विटी में संचित सारी निधि को डेट फंड में शिफ्ट कर दें ताकि पूंजी को संरक्षित किया जा सके. रिटायरमैंट के बाद जरूरत के हिसाब से फंड में से रकम निकालें और शेष राशि को बाजार में लगी रहने दें.

रिटायरमैंट के लिए बचत करना आप के जीवन में न सिर्फ अनुशासन लाता है, बल्कि रिटायरमैंट के बाद आप के स्वर्णिम वर्षों को बेहतर भी बनाता है.         

(लेखक बजाज कैपिटल के ग्रुप सीईओ और डायरैक्टर हैं)

ये कदम उठाएं

– 2-3 इक्विटी म्यूचुअल फंड का चुनाव करें और ऐसे रिटायरमैंट फोकस्ड फंड को प्राथमिकता दें जो सौ फीसदी इक्विटी में हों.

– निवेश को जारी रखें. बोनस, विंडफौल गेन आदि को उसी एसआईपी में फिर से निवेश करें.

– रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर एसआईपी की राशि को बढ़ा दें.

– रिटायरमैंट से 3 साल पहले अपने निवेश को जोखिम से दूर रखें.

– रिटायरमैंट के बाद एसडब्लूपी यानी सिस्टमैटिक विदड्रौल प्लान का विकल्प अपना कर पैंशन प्राप्त करना शुरू कर दें.

– फंड्स को रिटायरमैंट से जोड़ें.

– जल्दी शुरुआत करें.

अब क्या करेंगी बिपाशा बसु

गुरबानी कौर व रोनिता शर्मा रेखी के लंदन फैशन शो में रैम्प पर  चलने के लिए हामी भरने, पैसा वसलूने व आयोजकों के खर्च पर अपने पति करण ग्रोवर संग लंदन पहुंची बिपाशा बसु ने अनप्रोफेशनल रवैया अपनाते हुए फैशन शो में रैम्प चलने से इंकार कर पति के साथ लंदन घूमने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालते हुए बिपाशा बसु खुद को विजेता मान रही थी. लेकिन अब उनका यह अनप्रोफेशनल रवैया उनके लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है.

वास्तव में जब रोनिता शर्मा रेखी ने बिपाशा के इस अनप्रोफेशनल रवैए पर एक लेख फेसबुक पर लिखा, तो गुस्से में बिपाशा ने ट्वीटर पर उसे गाली दी. तब रोनिता रेखी ने बिपाशा की सारी हकीकत सामने लाने वाला एक लेख फेसबुक पर डाला. तथा बिपाशा बसु का काम देखने वाली कंपनी ‘क्वान’ को कानूनी नोटिस भी भेजी. पर ‘क्वान’ व बिपाशा के कानों पर जॅूं नही रेंगी. उलटे बिपाशा बसु ने गुरबानी कौर व रोनिता शर्मा रेखी से बातचीत कर मामला सुलझाने की बजाय ट्वीटर पर इनके खिलाफ एक खुला पत्र लिखकर धमकाने का असफल प्रयास किया. यहीं पर बिपाशा बसु ने बड़ी गलती कर दी.

बिपाशा के इस कदम के बाद गुरबानी कौर ने सबसे पहले बिपाशा बसु और उनके पति करण सिंह ग्रोवर के लंदन से मुंबई वापसी के टिकट रद्द करा दिए. अब गुरबानी कौर ने बिपाशा से कहा है कि बिपाशा की वजह से उन्हे बीस लाख रूपए का नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई यानी कि बीस लाख रूपए तुरंत बिपाशा बसु चुकाएं अन्यथा वह उनके खिलाफ कानूनी कारवाही करेंगी. तो वहीं रोनिता शर्मा ने कहा है कि यदि बिपाशा बसु ने जल्दी बीस लाख रूपए नहीं चुकाए, तो वह उनके खिलाफ सारे सबूत, वीडियो रिकार्डिंग, फोन पर बातचीत की रिकार्डिंग, होटल लॉबी की सीसी टीवी फुटेज सहित सारे सबूत सोशल मीडिया की हर साइट पर डालने के साथ ही पूरे विश्व की मीडिया को देने के साथ ही कानूनी काररवाही करेंगी.

अब बिपाशा बसु क्या करेंगी, यह तो वही जाने..

मनचाही सुंदरता पाएं

कहा जाता है कि सुंदरता जो कुदरत की देन है, अन्य तरीकों से हासिल नहीं की जा सकती, पर अब यह बात पुरानी हो गई है. साइंस की मदद से ऐसी तकनीक का विकास हो गया है कि अगर कोई चाहे तो मनचाही सुंदरता हासिल कर सकता है.

क्या सुंदरता जरूरी है

इस में संदेह नहीं कि एक सुंदर व्यक्ति किसी भी जगह अपनी उपस्थिति से पहली ही नजर में एक विशेष प्रभाव छोड़ता है.  सुंदरता कई फायदे भी दिला देती है. खासतौर से युवतियां तो सुंदरता के बल पर कई काम दूसरों से करवा लेती हैं. यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति सुंदर और आकर्षक होता है वह पैसे, रुतबे, शिक्षा और सामाजिक स्तर के मामले में दूसरों के मुकाबले काफी आगे होगा. 

लिजा स्लेटरी वौकर ने अपने शोध के आधार पर कहा है कि सुंदरता से शिक्षा के क्षेत्र में कई लाभ मिल जाते हैं, जैसे स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी स्तर पर सुंदर दिखने वाले युवकयुवतियों को शिक्षक स्मार्ट और बुद्धिमान मानते हैं और उन्हें अच्छे नंबर दे देते हैं. इस से उन का आत्मविश्वास बढ़ता है और आगे चल कर खुद को साबित करने के ज्यादा मौके मिलते हैं. 

पुरानी है चाहत

पुराने जमाने में भी स्त्रीपुरुष सुंदर दिखना चाहते थे. खासतौर से युवतियां कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक 18वीं सदी में चेहरे पर लगाने के लिए जिस पाउडर का इस्तेमाल करती थीं, उस में भारी मात्रा में गंधक और पारे का प्रयोग किया जाता था. इसी तरह 19वीं सदी की युवतियां व्हेल मछली की हड्डियों से बने जो आभूषण चेहरे पर सजाती थीं, उन से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती थी, लेकिन सुंदर दिखने के लिए वे यह तकलीफ उठाने को तैयार रहती थीं.

इस समय दुनिया में लोग सिर्फ क्रीमपाउडर लगा कर ही सुंदर नहीं हो रहे हैं बल्कि ब्यूटी पार्लर जा कर वे अपने चेहरे और हाथपांव यानी नखशिख तक को आकर्षक बनवाने का प्रयास करते हैं. इसी तरह मेकअप का मतलब अब सिर्फ चेहरे पर क्रीमपाउडर आदि लगाना नहीं रहा बल्कि पहने या लगाए जा सकने वाले ऐसे मैडिकल पौलिमर पैच आदि जैसे तरीके ढूंढ़े जा रहे हैं जिन से चेहरे की कमियों को लंबे समय तक छिपाया जा सके. मेकअप के ऐसे सामान बनाने की कोशिश हो रही है जो न सिर्फ खूबसूरती को तुरंत बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं बल्कि त्वचा के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकते हैं. वैज्ञानिक कह रहे हैं कि भविष्य में त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों में पानी की भूमिका और भी बढ़ सकती है. 

दवाएं बनाएंगी सुंदर

आप सुंदर और सैक्सी दिखाई दें, इसलिए अरबों डौलर खर्च कर के दुनिया में कई प्रयोग हो रहे हैं और ऐसी दवाएं व तकनीक खोजी जा रही हैं जो इस काम में मददगार साबित हो सकें. अभी जिस तरह लोग बोटोक्स के इंजैक्शन लगवा कर अपने चेहरे का आकारप्रकार बदलवाते हैं, उसी प्रकार वैज्ञानिक अब अपीरियंस मैडिसिन कहलाने वाली अन्य दवाओं की खोज में जुटे हैं ताकि लोग दवाओं की बहुत सूक्ष्म मात्रा ले कर चेहरे के दोष दूर कर नाकहोंठ जैसे अंग सुधार सकें.

वैज्ञानिक भी अपनी प्रयोगशालाओं में आम इंसान की खूबसूरती बढ़ाने के लिए नुसखे तलाश रहे हैं. त्वचा की कोमलता बनाए रखने, मोटापा कम करने, कमर और पेट की चरबी पिघलाने, बाल उगाने  और अनचाहे बालों को हटाने के लिए नई दवाओं, क्रीमों और लेजर जैसी तकनीक की खोज की जा रही है. हम दिखने में सुंदर लगें, विज्ञान जगत इस के लिए ‘अपीरियंस मैडिसिन’ पर काम कर रहा है. ऐसी दवाओं का उद्देश्य चेहरे की झुर्रियां हटाना या उन्हें आने से रोकना है.

इस के अलावा त्वचा की रंगत सुधारने और होंठों की बनावट में चेहरे की सुंदरता के हिसाब से अंतर लाने वाली दवाओं और इंजैक्शन को अपीरियंस मैडिसिन की श्रेणी में गिना जाता है. कहा जा रहा है कि निकट भविष्य में क्रीमपाउडर से ज्यादा इस्तेमाल अपीरियंस मैडिसिन का होगा. खास बात यह होगी कि ऐसी दवाओं के साइड इफैक्ट्स भी न के बराबर होंगे.

ये दवाएं कौन सी होंगी, इस का एक उदाहरण फ्लोरिडा (अमेरिका) के जूपिटर में स्थित स्क्राइप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट में वैज्ञानिकों द्वारा एसआर9009 नामक एक ऐसा तत्त्व विकसित करने से मिलता है जो व्यायाम कराने वाले सारे फायदे दिला सकता है. फिलहाल एसआर9009 का परीक्षण चूहों पर किया गया है. पाया गया है कि इस से चूहों की भोजन पचाने की क्षमता बढ़ गई और वे पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय हो गए.

इसी तरह की एक खोज न्यूयौर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी मैडिकल सैंटर में हुई है, जहां एटीएक्स101 नामक एक सिंथैटिक मौलिक्यूल बनाया गया है जो चेहरे की चरबी कम करते हुए लोगों को डबलचिन जैसी समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है. शरीर में पहुंचने पर ये मौलेक्यूल त्वचा के नीचे मौजूद वसा को पिघलाने लगते हैं और उस वसा को शरीर में पहुंचा देते हैं ताकि वह ऊर्जा में बदल कर खत्म हो जाए. इंसानों में इस मौलिक्यूल के इस्तेमाल की भी अभी मंजूरी नहीं मिली है.

डीएनए और स्पेस तकनीक का इस्तेमाल

किसी व्यक्ति के चेहरे पर झुर्रियां न आएं और वह हमेशा जवान दिखे इस के लिए विज्ञान भी कोशिशें कर रहा है. अगर व्यक्ति बूढ़ा नहीं होगा, तो उस की सुंदरता भी बरकरार रह सकती है, इसलिए यह कोशिश डीएनए टैस्टिंग के जरिए की जा रही है. आस्ट्रेलिया में एक नए तरह का स्किन डीएनए टैस्ट विकसित किया गया है, जिस में किसी व्यक्ति के मुंह की लार के माध्यम से उस की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है. इस से यह पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति में किस उम्र में जा कर चेहरे पर झुर्रियां पड़ सकती हैं और उस की त्वचा में कब रंग (पिगमैंटेशन) की समस्याएं बढ़ सकती हैं. इन तथ्यों को जान कर वह समय से इन का इलाज कर सकेगा.

भविष्य में डीएनए टैस्टिंग जैसी आधुनिक तकनीक ही लोगों को सुंदर बनाने में मददगार नहीं होगी बल्कि जिस स्पेस टैक्नोलौजी से अभी उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा रहे हैं और बाहरी अंतरिक्ष में खोजबीन का काम हो रहा है, उसी तकनीक से लोगों को सजीलासुंदर बनाने के प्रयास भी हो रहे हैं. जैसे अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा बाह्य अंतरिक्ष में अपने सैटेलाइट्स से अंतरतारकीय धूल कण (स्टेलर डस्ट पार्टिकल्स) पकड़ने के लिए जिस लिपोफिलिप तकनीक का इस्तेमाल करती है, उसी तकनीक के जरिए, ऐसे अनोखे कंघे बनाए जा रहे हैं जो सिर का मैल खींचते हुए बालों की चमक कायम रख सकते हैं और उन के इस्तेमाल से रूखापन नहीं होता. कुछ सौंदर्य विज्ञानी व्यंग्य में कह रहे हैं कि यह खोज चंद्रमा पर इंसान के कदम पड़ने जितनी क्रांतिकारी नहीं है, लेकिन आम इंसान भी चंद्रमा जितना चमकदार कहां होता है.

मशीन का सहारा ले कर बनें आकर्षक

सुंदरता में चारचांद लगाने का काम ब्यूटी पार्लर में इंसान ही क्यों करे? अच्छा हो कि यह काम मशीनों के हवाले कर दिया जाए जिस से व्यक्ति जब चाहे, मशीन से खुद को सुंदर बनाने का आकलन करवा सके और फिर उस के मुताबिक सुधार करवा सके. इसी नजरिए से सऊदी अरब की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के डेनियल कोहेन और उन की टीम ने एक ब्यूटी मशीन बनाई है, जो किसी व्यक्ति के चेहरे की नापतोल कर के बता सकती है कि उस के चेहरे में क्याक्या सुधार किए जाएं जिस से वह सुंदर दिख सके.

यह मशीन बनाने के लिए कोहेन ने इसराईली और जरमन लोगों के चेहरों का मिलान करते हुए 93 तरह के चेहरे बनाए. इन चेहरों की खूबियों को दर्ज करते हुए आकर्षण के बुनियादी सिद्धांत बनाए गए ताकि बेहतर और सुंदर चेहरों की एक निश्चित पहचान बनाई जा सके. मशीन से चेहरे में किए जाने वाले सुधारों की जानकारी ले कर प्लास्टिक सर्जन वैसे ही बदलाव सर्जरी के माध्यम से कर सकते हैं और कोई भी व्यक्ति सुंदर दिख सकता है.

शस्त्रों की होड़ में पिसती शांति

संयुक्त राष्ट्र संघ की बच्चों के उत्थान के लिए काम करने वाली एजेंसी यूनिसेफ यानी यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रैंस फंड का आकलन है कि अगर मौजूदा हालात ऐसे ही रहे तो इस साल 80 हजार बच्चों पर मौत का साया मंडरा रहा है.

यूनिसेफ ने यह आकलन नाइजीरिया के मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए लगाया है. उस के मुताबिक, नौर्थईस्ट नाइजीरिया में इस साल 5 लाख बच्चों को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है. वहीं, बोको हराम की वजह से पैदा हुए मानवीय संकट के कारण 80 हजार बच्चों को अगर इलाज की सुविधा नहीं मिली तो उन की मौत हो सकती है. इस तरह, अकेले नाइजीरिया में ही हजारों बच्चों का भविष्य अधर में है.

वहीं, दूसरी ओर सीरिया के अलेप्पो में राष्ट्रपति बशर अल असद की सेनाओं ने शहर के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया है. ऐेसे में अलेप्पो के पूर्वी हिस्से में विद्रोहियों के कब्जे वाले छोटे से इलाके में फंसे लोगों ने भावुक अंतिम संदेश भेजे हैं. सीरियाई सेना की तेज बमबारी के बीच इन लोगों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील की. अपने ट्वीट में कार्यकर्ता लीना ने लिखा कि पूरी दुनिया के लोगों, सोना मत. आप कुछ कर सकते हो. प्रदर्शन करो, यहां के नरसंहार को रोको.

अपने वीडियो संदेश में लीना ने कहा कि घेराबंदी में फंसे अलेप्पो में नरसंहार हो रहा है. यह मेरा अंतिम वीडियो हो सकता है. असद के खिलाफ विद्रोह करने वाले 50 हजार से अधिक लोगों पर नरसंहार का खतरा है. लोग बमबारी में मारे जा रहे हैं. अलेप्पो को बचाओ, इंसानियत को बचाओ. कई संदेशों में उम्मीद खत्म होती दिखती है.

एक वीडियो में एक व्यक्ति कह रहा है कि हम बातचीत से थक गए हैं. कोई हमारी नहीं सुन रहा है. वह देखो, बैरल बम गिर रहा है. यह वीडियो बम गिरने की आवाज के साथ खत्म होता है. सुबह उठा एक व्यक्ति लिखता है, ‘क्या मैं अभी जिंदा हूं?’

भारत व पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 में हुए युद्घ में 16 दिसंबर को भारतीय सेना ने दुश्मन के 93 हजार सैनिकों को, आत्मसमर्पण कराने के बाद, बंदी बना लिया था. बंदी बनाए गए इन सैनिकों की, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के अडि़यल रवैए के कारण, ढाई वर्ष तक भारत को मजबूरी में मेहमाननवाजी करनी पड़ी. एक जिद्दी प्रधानमंत्री के कारण हजारों सैनिकों तथा उन के परिवारजनों को कष्ट झेलना पड़ा. भारत को भी उन की सुरक्षा तथा खानेपीने के लिए भारी खर्च करना पड़ा.

पिछले 20 सालों से चल रहे प्रोजैक्ट का नतीजा है कि भारत ने इंटरकौंटिनैंटल बैलिस्टिक मिसाइल का 5वां टैस्ट सफलतापूर्वक कर लिया है. अग्नि-5 मिसाइल एटमी हथियार ले जाने की क्षमता रखती है तथा 5,500 किलोमीटर तक मार कर सकती है. चीन भी इस की जद में है. मिसाइल का चौथा टैस्ट जनवरी 2015 में किया गया था. रक्षा मामलों में होने वाले खर्च में भारत ने रूस को पछाड़ा. पहले नंबर पर अमेरिका, दूसरे पर चीन, तीसरे स्थान पर ब्रिटेन, चौथे पर भारत तथा 5वें स्थान पर रूस है.

रिपोर्ट का एक अहम पहलू यह है कि इस के मुताबिक, वर्ष 2018 में ब्रिटेन को पछाड़ते हुए भारत सूची में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा, क्योंकि पिछली सरकारों ने इस कार्यक्रम पर बहुत पैसा खर्च किया था.

लेकिन व्यापक विनाश के हथियार आतंकियों के हाथों न पड़ें, इस मुद्दे को भारत ने यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में जोरदार तरीके से उठाया है. विश्व की शांति की सब से बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि तन्मय लाल ने कहा कि विनाशकारी हथियार को आतंकियों के हाथ में पहुंचने से रोकने के लिए हुआ समझौता देशों की सरकारों को जल्द से जल्द स्वीकार करना चाहिए.

पाकिस्तान की सेना के संरक्षण में वहीं रह रहे आतंकवादी हाफिज सईद ने अपने योग्य व तेजतर्रार छात्रों से दूसरे देशों के न्यूक्लियर शोध संस्थानों में दाखिला लेने की अपील की है. यह दुनिया के लिए चिंता का विषय है. आतंकवादियों का विभिन्न नागरिकताओं का कौकेटेल बड़ी तादाद में अलगअलग देशों में नुकसान पहुंचाने की घातक योजना बना रहा है. अपनी सुविधा व सुरक्षा के लिए किए तकनीकी विकास द्वारा मानव ने, नासमझी से, दुनिया को ही खत्म करने के सारे इंतजाम कर लिए हैं.

क्यूबा देश ने चेक रिपब्लिक देश का कर्ज चुकाने के लिए अनोखा औफर दिया है. शीतयुद्घ के दौरान लिए गए कर्ज को उतारने के लिए उस ने रुपए की जगह रम शराब देने की पेशकश की है.

चेक रिपब्लिक के वित्त मंत्रालय ने बताया कि क्यूबा सरकार की ओर से 18 अरब रुपयों (222 मिलियन पाउंड) का कर्ज शराब के रूप में चुकाने का प्रस्ताव रखा गया है. क्यूबा ने कहा है कि वह रुपयों के बदले उतने ही मूल्य की रम शराब देगा और किस्तों में कर्ज चुकाएगा. अगर चेक रिपब्लिक क्यूबा के इस प्रस्ताव को मान लेता है तो उस के पास इतनी रम शराब जमा हो जाएगी जो शायद आने वाले 100 साल में भी खत्म न हो.

युद्ध के नाम पर कर्ज

इस तरह के मामले दिखाते हैं कि कुछ देशों की अर्थव्यवस्था शराब, अफीम तथा घातक हथियारों के वृहद उत्पादन पर निर्भर होती जा रही है. क्यूबा ने यह कर्ज शीतयुद्घ के दौरान अपने शत्रु अमेरिका को डराने के लिए हथियार खरीदने के लिए लिया था. इन देशों की युद्घ के नाम पर अपने नागरिकों को कर्जे में लादने तथा किसी भी तरीके से अपनी तथा अपने नागरिकों की आय बढ़ाने की नीयत खोटी है. यह नीति शराबखोरी, नशाखोरी तथा घातक शस्त्रों की होड़ को बढ़ा रही है.

साउथ चाइना सी में चीन अति आधुनिक तथा मारक मिसाइलें तैनात कर रहा है. सैटेलाइट से ली गई तसवीरें इस सत्य को दुनिया के सामने उजागर कर रही हैं. चीन ने अपने मिलिटरी पावर का प्रदर्शन करने के लिए वहां पर जोरदार युद्घ अभ्यास भी किया है. साउथ चाइना सी के द्वीपों को ले कर दक्षिणपूर्व एशिया के अन्य देश भी अपना अधिकार व्यक्त कर चुके हैं. और वे भी चीन से मुकाबले को तैयार हैं. चीन की प्रभावी क्षेत्र विस्तार की नीति पूरे विश्व के लिए खतरा बन गई है. अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ताईवान से बातचीत करने पर बीजिंग ने अमेरिका को धमकी दे डाली है. सीमा विवाद को ले कर भारत का चीन के साथ हमेशा तनाव बना रहता है.

विश्व के अनेक गरीब देश शिक्षा की दयनीय हालत से जूझ रहे हैं. सरकारों को जो पैसा शिक्षा जैसे सब से महत्त्वपूर्ण कार्य पर खर्च करना चाहिए, विश्व में शक्तिशाली देशों की गलत नीतियों तथा शोषण की प्रवृत्ति के कारण गरीब तथा छोटे देशों को अपने रक्षा बजट पर खर्च करना पड़ रहा है. बड़े देश घातक तथा अधिक मारक शस्त्रों का निर्माण कर के उस की बिक्री बढ़ाने के लिए नएनए हथकंडे अपनाते हैं. विश्व के सभी छोटेबड़े देशों का रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है.

कभी आप ने सोचा है कि देश की अर्थव्यवस्था अगर बहुत बुरी हालत में चली जाए या फिर आप कंगाल हो गए, तो क्या करेंगे? नौर्वे में एक प्रथा है कि स्कूली पढ़ाई खत्म होने पर लगभग 18 वर्ष की उम्र में लोग बहुत कम पैसों के साथ बच्चों को अफ्रीका भेज देते हैं. वहां कोई होटल बुकिंग नहीं होती. कोई साथी नहीं होता. वे टैंट वगैरा में रेगिस्तान में रहते हैं, कुछ भी खातेपीते हैं. इस बीच, वे कई चीजें सीखते हैं, जीवन का मूल्य समझते हैं.

इस प्रकार नौर्वे के बच्चे विश्व में बढ़ते शरणार्थियों को गाली नहीं देते, क्योंकि वे उन का कठिन जीवन देख चुके होते हैं. गरीबी का दर्द गरीब व्यक्ति ही बेहतर तरीके से समझ सकता है. नौर्वे ने चांद तथा मंगल पर अपने रौकेट नहीं भेजे लेकिन वह देश विश्व में अपने वृद्घों को सभी प्रकार की सुविधाएं देने में सब से आगे है.

विश्व के सभी देशों के नीतिनिर्माताओं को नौर्वे से अच्छी सीख ले कर उसे अपने देश में भी अपनाना चाहिए. हमें 100 वर्षों की दीर्घकालीन योजनाएं बनाने से पहले अपने देशप्रदेश के सब से अंतिम व्यक्ति के हित को ध्यान में रख कर विकास की योजनाएं बनानी चाहिए, न कि सब से घातक शस्त्र बनाने की होड़ में पड़ने के और झूठे राष्ट्रवाद व देशभक्ति के नारे लगाने के.

– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’

निर्माताओं ने लगाई मीडिया पर पाबंदी

आपको हमेशा आपके पसंदीदा सीरियल के बारे में टेलीविजन पर कुछ न कुछ जानकारी मिलती ही रहती है. बहुत से सीरियल के सेट पर जाकर मीडिया आपको आपके पसंदीदा टीवी कलाकारों के बारे में और सीरियल से जुड़ी मजेदार-मजेदार बातें बताते रहते हैं.

कुछ समय पहले टेलीविजन जगत की बड़ी निर्देशक एकता कपूर ने अपने सीरियल्स के सेट पर मीडिया के लोगों के आने पर रोक लगा दी थी, अब इनके बाद सेट पर मीडिया को बैन करने वालों की सूची में एक और नाम शामिल हो गया है.

इस बार बारी है टेलीविजन की निर्देशक गुल खान की, उन्होंने अपने शो ‘इश्कबाज’ के सेट पर मीडिया के आने पर रोक लगा दी है. इस शो की निर्माता टीम में शामिल गुल खान का कहना है कि ये खबर सच है. उनके अनुसार बहुत से मीडिया वाले अपने काम और मार्गदर्शन के चलते अपने साथ सेट से कुछ-कुछ फुटेज ले जाते रहते हैं और इनसे ही संबंधित कुछ घटनाओं की वजह से हमें ये कदम उठाना पड़ा.

पिछले दिनों मीडिया में इस धारावाहिक के आने वाले एपिसोड का खुलासा पहले से ही कर दिया गया, जिसके चलते इसके निर्माताओं ने शूटिंग सैट पर मीडिया के आने पर रोक लगा दी है. 
आपको बता दें कि इससे पहले पिछले ही दिनों एकता कपूर ने भी यही फैसला लिया था. एकता कपूर के बाद मीडिया पर बैन लगाने वाला ये दूसरा प्रोडक्शन हाउस है.

जैसा कि लोगों को अपने पसंदीदा सीरियल के बारे में कोई न कोई जानकारी मीडिया के जरिये मिल जाती थी, लेकिन अब इस फैसले के बाद सीरियल के प्रशंसक काफी निराश होंगे. 

टीवी पर इश्कबाज सीरियल के प्रशंसक काफी ज्यादा हैं. इस सीरियल को लोग काफी पसंद कर रहे हैं. ये सीरियल टीवी टीआरपी रेटिंग में काफी आगे भी है. कई अन्य धारावाहिकों के सेट पर मीडिया के बैन होने के बाद से इश्कबाज को काफी लोकप्रियता मिली थी.

इस शो के निर्माताओं ने ये फैसला इसलिए लिया ताकि सीरियल का अहम भाग प्रसारित होने से पहले लीक न हो सके, क्योंकि ऐसा होता है तो इससे शो की टीआरपी पर काफी असर पड़ता है. अब इस बारे में लोगों का क्या रिएक्शन रहता है ये देखना दिलचस्प है. देखते हैं कि क्या लोग इस शो के निर्माताओं के इस कड़े फैसले को सही मानेंगे या नहीं.

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