टीवी ने दिलाई इन सितारों को बड़े पर्दे पर पहचान

बॉलीवुड में ऐसे कई दिग्गज सितारे मौजूद हैं, जिन्होंने छोटे पर्दे से अपना अभिनय शुरू किया और आज बड़े पर्दे पर अपना करिश्मा दिखा रहे हैं. शाहरुख खान, विद्या बालन, प्राची देसाई, यामी गौतम, राजपाल यादव टीवी जगत के कुछ ऐसे सितारे हैं जिन्होंने टीवी के जरिये ही अपना अभिनय करियर शुरू किया और आज वो बॉलीवुड के लिए माइल स्टोन बन गए हैं.

आइए, जानते हैं ऐसे ही सेलेब्स के बारे में जिन्होंनें छोटे पर्दे से ही अपने करियर शुरूआत की और आज वो बड़े पर्दे पर अपनी चमक बिखेर रहे हैं.

शाहरुख खान

इस लिस्ट में अगर सबसे पहला नाम किसी का आता है तो वो है बॉलीवुड के किंग खान शाहरुख खान का. नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से होने के कारण शाहरुख को फिल्मों में ब्रेक मिलना इतना आसान नहीं था. इसलिए बॉलीवुड में कदम रखने से पहले शाहरुख ने टीवी सीरियल ‘सर्कस’ और ‘फौजी’ में अपना हाथ आजमाया. उन्होंने 1988 में आई सीरियल ‘फौजी’ में कमांडो अभिमन्यु राय का किरदार निभा अपने ऐक्टिंग करियर की शुरूआत की.

विद्या बालन

आज बॉलीवुड में अपने ऐक्टिंग का लोहा मनवाने वाली विद्या बालन ने अपने करियर की शुरूआत प्रसिद्ध कॉमेडी सीरियल ‘हम पांच’ से की थी. इस शो में उन्होंने राधिका का किरदार निभाया था. इसके बाद वह कई म्यूजिक वीडियो और कमर्शियल ऐड में भी नजर आईं.

इरफान खान

जबरदस्त ऐक्टिंग और बेहतरीन डायलॉग डिलवरी से अपनी अलग पहचान बनाने वाले अभिनेता इरफान खान ने भी अपने ऐक्टिंग करियर की शुरूआत छोटे पर्दे से ही की थी. उन्होंने ‘चाणक्या’, ‘चंद्रकांता’, ‘भारत एक खोज’, ‘बनेगी अपनी बात’, ‘सारा जहां हमारा’ और ‘स्पर्श’ जैसे कई टीवी धारावाहिक में काम किया है.

प्राची देसाई

‘रॉक ऑन’, ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ और ‘अजहर’ जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुकी प्राची देसाई, बॉलीवुड में डेब्यू करने से पहले जी टीवी पर प्रसारित होने वाले सिरियल ‘कसम से’ की लोकप्रिय चेहरा थीं. इस सीरियल में बानी के किरदार के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.

सुशांत सिंह राजपूत

‘किस देश में है मेरा दिल’ से अपने ऐक्टिंग की शुरूआत करने वाले सुशांत सिंह राजपूत सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ में मानव का किरदार निभा लाखों लोगों के दिलों की धड़कन बन गए. फिल्म ‘काई पो चे’ से सुशांत ने बॉलीवुड में डेब्यू किया. टीम इंडिया के पूर्व कप्तान एम एस धोनी की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘एम एस धोनी: एन अनटोल्ड स्टोरी’ से सुशांत ने खूब सुर्खियां बटोरी.

यामी गौतम

फिल्मी पर्दे पर ‘विक्की डोनर’ से अपना बॉलीवुड डेब्यू करने वाली खूबसूरत अभिनेत्री यामी गौतम ने भी अपने करियर के शुरुआत में ‘ये प्यार ना होगा कम’ और ‘चांद के पार चलो’ जैसे टीवी सीरियल किये हैं.

पंकज कपूर

बड़े पर्दे पर फिल्म ‘आरोहन’ में डेब्यू करने से पहले पंकज कपूर ने ‘बी ए एल एल बी’, ‘वाह भाई वाह’, ‘साहबजी बीवीजी गुलामजी’ जैसे कई टीवी सीरियलों में काम किया है. कॉमेडी शो ‘ऑफिस ऑफिस’ से पंकज खासे लोकप्रिय हुए. ‘ऑफिस ऑफिस’ में वह अपने किरदार मुसद्दीलाल के लिए जाने जाते हैं.

हंसिका मोटवानी

‘कोई मिल गया’ में बाल कलाकार के रूप में अभिनय करने वाली हंसिका ने भी अपने ऐक्टिंग करियर की शुरूआत ‘शक लक बूम बूम’, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ जैसे सीरियलों से की थी.

राजपाल यादव

आज एक बेहतरीन हास्य कलाकार के रूप में जाने वाले राजपाल यादव बॉलीवुड में कदम रखने से पहले टीवी सीरियल में काम करते थें. उन्होंने टीवी सीरियल ‘मुंगेरी के भाई नौरंगीलाल’ में काम किया है.

ग्रेसी सिंह

फिल्म ‘लगान’ से बॉलीवुड में एंट्री करने वाली ग्रेसी सिंह ने भी छोटे पर्दे पर ऐक्टिंग में हाथ आजमाया था. उन्होंने सीरियल ‘अमानत’ से ऐक्टिंग की शुरूआत की.

टेलीविजन का दायरा पहले की तुलना में अब काफी बड़ा हो चुका है इसलिए फिल्मी सितारे भी कभी प्रमोशन के बहाने तो कभी रिएलिटी शो के होस्ट या जज के रूप में छोटे पर्दे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से नहीं चूकते.

क्रेडिट कार्ड पर बैंक नहीं बताते फायदे की ये 5 बातें

भारत में क्रेडिट कार्ड का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. ऑनलाइन शॉपिंग हो या रिटेल स्‍टोर से खरीदारी, रेस्‍टोरेंट से लेकर मूवी के टिकट के लिए हम धड़ल्‍ले से क्रेडिट कार्ड का इस्‍तेमाल करते हैं. यदि आपके पास क्रेडिट कार्ड नहीं है, तो आपके पास कार्ड के लिए दिन भर में दो से तीन फोन आ जाते हैं. वहीं यदि आपके पास कार्ड है तो दूसरी कंपनी के कार्ड, अपनी ही कंपनी का एडिशनल कार्ड जैसे लुभावने ऑफर भी मिलते हैं. लेकिन बैंक कई बार क्रेडिट कार्ड से जुड़ी कुछ महत्‍वपूर्ण शर्तें आपसे छिपा जाते हैं.

फ्री ईएमआई स्‍कीम लेने से पहले जान लें शर्तें

अक्‍सर बैंक अपने प्रिविलेज कस्‍टमर्स को फ्री ईएमआई या फिर क्रेडिट कार्ड पर जीरो परसेंट पर ईएमआई का वादा करते हैं. लेकिन बैंक शायद ही आपको जीरो ईएमआई से जुड़ी शर्तों को पढ़ने या समझने का समय देते हैं. आपको मालूम होना चाहिए कि जीरो प्रतिशत ब्याज पर ईएमआई पर नियम एवं शर्तें लागू होती हैं. अगर एक भी शर्त का उल्लंघन करते हैं तो 5 या 10 नहीं बल्कि 20 प्रतिशत से भी ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है.

समय पर करा लें अपने प्‍वाइंट रिडीम्‍ड

बैंक आपको कभी भी खुद से नहीं बताता है कि आप अपने प्वाइंट्स को कैसे रिडीम कर सकते हैं. ऐसे में जानकारी न होने से लाखों प्वाइंट्स पड़े रह जाते हैं और क्रेडिट कार्ड एक्सपायर हो जाता है. इसके अलावा जब आपके प्वाइंट्स 1000 से 10,000 जैसे लैंडमार्क को क्रॉस करते हैं तब बैंक आपको ये नहीं बताता कि आपके इतने प्वाइंट हो गए हैं और आप उन्हें रिडीम कर कैशबैक लाभ ले सकते हैं.

ड्यू डेट का रखें ध्‍यान

आपने अक्सर देखा होगा कि आपको मोबाइल बिल भरना हो तो टेलीकॉम कंपनियां लगातार एसएमएस भेजती हैं. वहीं बैंक भी आपको मिनिमम बैलेंस के लिए रिमाइंडर भेजती हैं. लेकिन क्रेडिट कार्ड के बिल को जमा करने के लिए आपके पास कोई मैसेज नहीं आता. वास्‍तव में देखा जाए तो बैंक खुद नहीं चाहते कि आप समय पर बिल जमा कर दें. ऐसे में आप खुद ही अपनी ड्यू डेट का ख्‍याल रखें. बैंक तो यही चाहते हैं कि आप लेट करें और बाद में लेट फीस भरें.

फ्री में कार्ड अपग्रेड का लगता है वार्षिक चार्ज

बैंक आपको अक्‍सर कार्ड अपग्रेड करने का ऑफर देते हैं. अक्‍सर बैं‍क की एक्‍जीक्‍यूटिव आपको फ्री ऑफ कॉस्ट अपने सिल्वर कार्ड को गोल्ड में और गोल्ड को प्लेटिनम में अपग्रेड करवाने का लालच देते हैं. लेकिन ये नहीं बताते कि नए क्रेडिट कार्ड के लिए आपको 500 रुपए से लेकर 700 रुपए तक का शुल्क भी देना पड़ेगा.

लिमिट बढ़ने से भी बढ़ता है एनुअल चार्ज

क्रेडिट कार्ड धारकों को अक्सर एक कॉल आती है कि आपके क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट लिमिट मुफ्त में बढ़ाई जा रही है. बैंक आपको प्रिविलेज कस्‍टमर मानते हुए आपकी लिमिट को दो गुना या इससे अधिक कर देता है. यहां आपसे आपकी सहमति भी नहीं मांगी जाती. लेकिन बैंक आपको कभी ये नहीं बताता कि इसके बाद आपका वार्षिक शुल्‍क बढ़ जाएगा.

“पाक युवा को बिगाड़ रहे हैं सलमान”

बॉलीवुड के ‘सुल्तान’ सलमान खान आजकल पाकिस्तानी हिरोइनें के निशाने पर हैं, पहले पाकिस्तान की मशहूर एक्ट्रेस सबा कमर ने सलमान को भला-बुरा कहा था और अब एक और अभिनेत्री ने सलमान के बारे में कुछ ऐसा ही बयान दिया है.

पाकिस्तान की एक्ट्रेस और पॉप सिंगर रबी परिजादा ने कहा है कि ‘बॉलीवुड में हर दूसरी फिल्म क्राइम और इसी तरह की सीन्स से भरी हुई है, खासकर सलमान खान की फिल्में. मेरा सवाल ये है कि आखिर वहां के लोग युवाओं को क्या सिखा रहे हैं? ऐसा लगता है जैसे वो क्राइम को ही बढ़ावा दे रहे हैं.’

एक पाकिस्तानी दैनिक की खबर के मुताबिक रबी पीरजादा को लगता है कि पाक के दर्शक स्थानीय सिनेमा से ज्यादा भारतीय फिल्में देखना पसंद करते हैं. बॉलीवुड की फिल्मों को ज्यादा तरजीह देते हैं जिसकी वजह से पाकिस्तानी सिनेमा पर बुरा असर पड़ा है.

ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी कलाकारों ने बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान को पूरी तरह अपना टारगेट बना लिया है तभी तो एक बाद एक सभी सलमान पर बयानबाजी कर रहे हैं.

आपको बता दें कि इससे पहले पाकिस्तानी हीरोइन सबा कमर ने सलमान खान और बाकी बॉलीवुड कलाकारों पर निशाना साधा था. सलमान को लेकर तो सबा ने ये तक कह दिया था कि वो छिछोरे हैं और उन्हें डांस भी नहीं आता.

ये घरेलू उपाय देंगे आपको खांसी से आराम

खांसी एक सामान्‍य सी बीमारी है पर असल मायने में यह तकलीफ बहुत देती है. खांसी दूर करने के लिए बाजार में मिलने वाली दवाईयां या कफ-सीरप्स आपको बेवक्त उनींदा बना देती हैं. इससे बचने के लिए आप कुछ कारगर घरेलू उपाय भी आपना सकते हैं.

खांसी होने का कोई समय नहीं होता, न ही ये किसी खास बीमारी के साथ आने का इंतजार करती है. ज्यादातर सर्दी, खांसी, सिरदर्द, जुकाम जैसी कुछ बीमारियां होने पर आप इलाज के लिए हम चिकित्सक के पास जाने से बचने की कोशिश करते हैं. खांसी होने की असल वजह भी आपको मालूम नहीं हो पाती है.

बदलता मौसम, ठंडा-गर्म खा या पी लेना या फिर धूल या किसी अन्यी चीज की एलर्जी होने से खांसी हो सकती है. इनमें सूखी खांसी होने पर आपको  ज्यादा तकलीफ होती है. खांसी की समस्या होने पर आप सुकून से कोई काम भी नहीं कर पाते.

आइए आज हम आपको खांसी से बचने के कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताते हैं..

1. घर पर बने गाय के दूध का 15-20 ग्राम घी और काली मिर्च को एक कटोरी में लेकर हल्की आंच में गरम करके, कुछ समय रखकर उसे ठंडा करके लगभग 20 ग्राम पिसी हुई मिश्री मिला दें. अब इससे काली मिर्च निकालकर खा लीजिए. घर पर बनाई गई इस इस खुराक को दिन में दो बार, लगातार दो-तीन दिन तक लेने से पकी खांसी बंद हो जाएगी.

2. तुलसी के कुछ पत्ते, 5 काली मिर्च, 5 नग काला मनुक्का, 5 ग्राम गेहूं के आटे का छान, 6 ग्राम मुलहठी और 3 ग्राम बनफशा के फूल, ये सभी लेकर 200 ग्राम पानी में उबाल लीजिए. जब पानी उबलकर आधा हो जाए तो इसे ठंडा कर छान लें. रात को सोते समय इसे फिर गर्म करके, इसमें बताशे डालकर गरम-गरम पी लें. इस खुराक को 3-4 दिन तक लेने से खांसी से आराम मिलता है.

3. सेंधा नमक की एक डली को आग पर अच्छे से गरम करें, जब नमक की डली गर्म होकर लाल हो जाए तो तुरंत आधा कप पानी में डालकर निकाल लें. खांसी होने पर सोने से पहले इस पानी को पीने से खांसी काफी हद तक ठीक हो जाती है.

4. एक ग्राम सेंधा नमक और 125 ग्राम पानी को मिलाकर, इसके आधा होने तक उबालें. खांसी होने पर सुबह-शाम इस पानी को पीने से खांसी में बहुत आराम मिलता है.

5. इसके अलावा इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर भी आप अपनी खांसी से निजात पा सकते हैं.

  • शहद, किशमिश और मुनक्के को मिलाकर खाने से खांसी ठीक हो जाती है.
  • त्रिफला में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर पीने से खांसी होने में फायदा मिलता है.
  • दो-तीन दिन तुलसी, कालीमिर्च और अदरक की चाय पीने से खांसी समाप्त होती है.
  • हींग, त्रिफला, मुलेठी और मिश्री को नींबू के रस में मिलाकर खाना भी खांसी पर असरदार है.

मिनटों में बनाएं राइस कौर्न अशर्फी

सामग्री

2 कप चावल पके हुए

1 आलू कटा हुआ

1 कप स्वीट कौर्न

1/2 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटी हुई

1 छोटा चम्मच जीरा

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी हुई

2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लैक्स

तलने के लिए तेल

नमक व मिर्च स्वादानुसार

विधि

एक बाउल में चावलों के साथ आलू, स्वीट कौर्न, अदरक, जीरा, धनियापत्ती और थोड़ा सा पानी मिला कर मिश्रण तैयार करें. तैयार मिश्रण की पैटीज बना कर कौर्नफ्लैक्स से कोट करें और गरम तेल में सुनहरा होने तक तलें. पसंदीदा सौस के साथ सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: शैफ एम. रहमान

नाइट क्रीम चुनने में ना करें ये गलतियां

रात, त्वचा को आराम और सुकून देने वाला समय होता है. इसलिए चेहरे को अच्छे से साफ करने के बाद रात में बढ़िया परिणाम देने वाली मॉइश्चराइजर लगाएं. आप हालांकि इस उलझन में पड़ सकती हैं कि कौन सा मॉइश्चराइजर आपकी त्वचा के लिए बढ़िया साबित होगा.

लेकिन आप इस से परेशान ना हों. आप किसी भी सनस्क्रीन इंडीग्रिएंट्स से रहित क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. आपको खास तौर से नाइट क्रीम खरीदने की जरूरत नहीं है, क्योंकि फर्क बस इतना है कि नाइट क्रीम हानिकारक यूवी किरणों से सुरक्षा प्रदान करने वाला एसपीएफ से युक्त नहीं होता है, इसलिए आप बेहिचक बढ़िया इंडीग्रेडिएंट्स से समृद्ध अपनी त्वचा के लिए उपयुक्त क्रीम चुनें.

– बोसवेलिया सेराटा (शल्लकी), कॉफी बीन के सत्व से युक्त, ब्राह्मी, कालमेघ, यष्टिमधु, पत्थरचूर, हार्स चेस्टनट जैसे औषधीय पौधों के सत्व और तेलों व विटामिन ई, सी और अन्य एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर नाइट क्रीम लगाएं. अगर आपकी उम्र ज्यादा है तो उच्च मात्रा वाले औषधीय गुणों से युक्त क्रीम लगाएं.

– क्रीम ऐसी होनी चाहिए जो त्वचा में गहराई से समा जाए. ऐसी क्रीम न लगाएं जो त्वचा पर तैलीय रूप में साफ नजर आए और सही से अवशोषित न हो सके.

– त्वचा के प्रकार जैसे तैलीय, रूखी या सामान्य के अनुसार ही क्रीम चुनें. त्वचा को सूट करने वाली बढ़िया मॉइश्चराइजर लगाएं.

 – सिंथेटकि खूशबू या रंगों वाली क्रीम न लगाएं क्योंकि इससे आपकी त्वचा में खुजली और जलन हो सकती है. अच्छी नाइट क्रीम में पैराबेस आदि केमिकल नहीं होना चाहिए. अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है तो अल्कोहल युक्त क्रीम न लगाएं, क्योंकि इससे एक्जीमा, रूखापन जैसी समस्या हो सकती है.

– नाइट क्रीम त्वचा को पोषण देने और त्वचा की कोशिकाओं को रिपेयर करने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं, इसलिए इसे सनस्क्रीन और एसपीएफ रहित होना चाहिए.

दलितों की आसान नहीं जिंदगी

वर्ष 2016 में सामाजिक व राजनीतिक उथलपुथल के चलते देश में जाति विभाजन की पीड़ा सहते लोगों का दर्द देखने को मिला. जनवरी में पीएचडी स्टूडैंट रोहित वेमुला द्वारा की गई आत्महत्या ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि हमारी शिक्षा प्रणाली दलित विद्यार्थियों के साथ कैसा व्यवहार कर रही है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को गिनें तो देश की जनसंख्या का 25 प्रतिशत दलित समाज है.

दलित समाज के लोगों से बात करने पर उन्होंने अपने मन की बातें कहीं-काशी, मुंबई के कचरा उठाने वाले सफाईकर्मी अजय का परिवार मराठवाड़ा क्षेत्र के सूखाग्रस्त जालना जिले में रहता है. उस के संयुक्त परिवार के पास

6 एकड़ जमीन है. सिंचाई की असुविधा के कारण उस के पिता सफाईकर्मी का काम करने के लिए मुंबई आ गए थे. जैसा कि इस काम को करने वाले अन्य लोगों का अंत होता है, वैसे ही अजय के पिता की भी क्षय रोग यानी टीबी से ही मृत्यु हुई. अजय की मां भी यही काम करने मुंबई आ गई थी. 10वीं कक्षा पास न कर पाने पर अजय ने भी बृहत मुंबई म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन यानी बीएमसी की क्लीनर फोर्स को जौइन कर लिया.

अजय का कहना है, ‘‘अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने भाजपा प्रशासन के जरिए रिजर्वेशन के खिलाफ अपना मौलिक एजेंडा लागू करवाना शुरू किया है. मैं सभी तथाकथित मराठों और ब्राह्मणों से पूछना चाहता हूं कि आप लोग यह कचरे वाली नौकरी क्यों नहीं करते, आप अपने शहर को वैसे साफ क्यों नहीं करते जैसे हम करते हैं, बहुजनों के लिए ही इस रोजगार में शतप्रतिशत आरक्षण क्यों है? मैं यह काम नहीं करना चाहता. मेरी 3 बेटियां स्कूल जा रही हैं. मैं चाहता हूं कि समाज हमारे काम का महत्त्व समझे, दूसरे लोग भी अपने हाथ गंदे करें. मराठों और ब्राह्मणों द्वारा यह काम किया जाना तो दूर की बात है, हम सब हाउसिंग सोसाइटी में भी जाते हैं तो वहां का गार्ड भी डस्टबिन उठाने में हमारी मदद नहीं करता. हमारे काम का हर तरफ अपमान किया जाता है.’’

वहीं, एक कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर के पद पर सेवारत 25 वर्षीया रीता पवार अपने समुदाय के अच्छे भविष्य के लिए कुछ करना चाहती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मैं कभी नहीं छिपाती कि मैं बुद्घ को मानती हूं और डा. बाबासाहेब अंबेडकर की अनुयायी हूं. मैं हमेशा धाराप्रवाह अंगरेजी बोलती हूं. फिर भी कौर्पोरेट वर्ल्ड में लेग मुझ से कहते हैं, ‘अरे, तुम तो बिलकुल भी उन में से नहीं लगती, तुम तो ब्राह्मण लगती हो.’ मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या आप को नहीं पता कि बाबासाहेब, जिन्होंने भारत का संविधान लिखा, हम में से ही एक थे. यह कहने का मतलब क्या है कि मैं दलित नहीं लगती, क्या सभी दलित गंदे और सांवले ही होने चाहिए?’’

आरक्षण पर रीता अपने विचार स्पष्ट रूप से बताती हैं, ‘‘शहरी लोगों को लगता है कि आरक्षण का गलत प्रयोग होता है पर यदि आप ध्यान दें तो कुछ ही दलितों को आर्थिक रूप से इस का फायदा होता है. पर ग्रामीण क्षेत्रों में, उपेक्षित बस्तियों में हमें लोगों को शिक्षित करने के लिए आरक्षण की आवश्यकता है. दलितों से क्रूरता की भावना के चलते पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती, यह सचाई है. मेरे समुदाय के बारे में मुझे देख कर ही फैसला न लें.’’

57 वर्षीय राधा 2012 में गुजरात में ग्राम पंचायत की सदस्या चुनी गईं. सरपंच को दलित स्त्री के साथ काम करना रास नहीं आ रहा था. उन्हें अकेले को ही नहीं, अन्य लोगों को भी पंचायत औफिस में राधा मंजूर नहीं थी. राधा ने इस से निबटने की ठानी. वे बताती हैं, ‘‘वे नहीं चाहते थे कि मैं औफिस आऊं पर मैं ने जाना नहीं छोड़ा. यह मेरा अधिकार था. वे मुझे रोकने वाले कौन थे. मुझे ऐसे कोई नहीं डरा सकता. मुझे लोगों ने चुना है. यही प्रेरणा मुझे रोज काम पर भेजने के लिए काफी थी. पर परेशानियां कम नहीं थीं. सरपंच लगातार मेरा अपमान करता रहा. मैं ने फोन पर उन की बातें रिकौर्ड कर लीं और शिकायत दर्ज करवा दी. मैं समृद्घ किसान परिवार से हूं. मैं रोज काम पर जाती हूं. अपनी कुरसी पर गर्व से बैठती हूं और सब फैसले अपनी मरजी से लेती हूं.’’

दलित लड़कियों को गांव में दूसरी कक्षा के बाद स्कूल नहीं भेजा जाता  क्योंकि यह डर रहता है कि ऊंची जाति के लड़के उन्हें परेशान करेंगे, उन का शोषण होगा. राधा कहती हैं, ‘‘सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. हाल ही में मेरे गांव के लड़कों को बहुत पीटा गया क्योंकि वे एक दुकान के बाहर शौर्ट्स पहन कर खड़े थे.’’ दलितों को तो ऊंची जाति वाले लोगों के हिसाब से ही व्यवहार करना चाहिए. खाना, पीना, विवाह, कपड़े पहनना सब ऊंची जाति वालों के बनाए नियमों से करने चाहिए. ऊंची जाति वाले शौर्ट्स पहनते हैं, इसलिए दलित नहीं पहन सकते.

पहचान की तलाश

महेश सर्वेय्या को अपने 13 सदस्यीय परिवार के साथ अपेक्षाकृत ज्यादा पावरफुल अहीर समुदाय द्वारा मजबूर करने पर उना जिले के अंकोलाजी गांव को छोड़ना पड़ा. 500 लोगों की भीड़ ने उस के भाई लालजी को जला दिया क्योंकि उन्हें शक था कि लालजी का 19 वर्षीया अहीर लड़की से अफेयर चल रहा है. गांव से उना 10 मिलोमीटर दूर है जो 2012 में घटी इस घटना के बाद सुर्खियों में तब फिर आया जब मृत गाय की खाल निकालने के लिए दलितों को पीटा गया और नग्न अवस्था में घुमाया गया. उस के भाई के कातिल को गिरफ्तार तो किया गया पर जल्दी ही जमानत पर छोड़ दिया गया. गांव में महेश के परिवार का जीवन दूभर हो गया. सो, उन्हें गांव छोड़ना ही पड़ा. परिवार ने अपनी जमीन वापस लेने के लिए सरकार से बहुत फरियाद की. 2014 में 139 दिनों की भूखहड़ताल भी की.

महेश अब किराए के मकान में रहता है. उस का कहना है, ‘‘राज्य सरकार ने हमें जमीन नहीं दी, सिर्फ झूठे वादे किए. हम ने अब उम्मीद ही छोड़ दी है.’’  परिवार के स्त्रीपुरुष जीवनयापन के लिए अब हर छोटा कहा जाने वाला काम भी करते हैं. 8वीं तक पढ़े महेश को लगता है कि गुजरात में दलित होने का मतलब जीतेजी मर जाना है, चाहे चपरासी हो या पुलिस अफसर, एमएलए हो या एमपी. गुजरात के दलितों के पास न तो पावर है न पहचान. हम पैरों तले कुचले हुए तब भी थे, आज भी हैं. हम अमीरों और प्रभावशाली जातियों के नौकर ही हैं. दलित के जीवन में सरकारी पद का भी कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि पूरे कैरियर में उसे लोअर रैंक पर ही रखा जाता है. राज्य में दलितों के विकास की उम्मीद नहीं है, यहां सिर्फ चपरासी ही बन सकते हैं.

बनारस के एक कालेज में 30 वर्षों से क्लर्क के पद पर कार्य कर रहे 57 वर्षीय राजेश का अपना घर है. उन के 3 बच्चे हैं. वे अपने छात्रजीवन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘ब्राह्मण लड़कों को आगे बिठाया जाता था, मुझे पीछे. मेरे पास एक ही शर्ट थी जो वहां से मिली थी जहां मां काम करती थी. पहले तो सिर्फ स्पोर्ट्स टीचर ही मुझे बिना बात के मारा करते थे, फिर उच्च जाति के लड़कों का मुझे मारना ही उन का खेल हो गया था. मैं स्कूल जाने से इतना डरता था कि मेरी मां ने मुझे स्कूल भेजना ही बंद कर दिया था. कुछ नहीं बदला है, न हिंदू धर्म, न ब्राह्मण, न कुछ और. रोज दलितों को मारा जाता है. मैं ने दलितों की अधिकार संस्था — दलित संघर्ष समिति जौइन कर ली. मैं अब भले ही बूढ़ा हो जाऊं पर अब दलितों के अधिकार के लिए लड़ता ही रहूंगा.’’

विक्रोली, मुंबई की 40 वर्षीया रमा 15 वर्षों से सरकारी कर्मचारी हैं. वे कहती हैं, ‘‘झाड़ू लगाना, डिलीवरी का काम, माली, सफाई, सब आज भी दलित ही करते हैं. हमारे यहां किसी भी त्योहार पर न पड़ोसी आएंगे, न खाएंगे.’’

कुल मिला कर देखा जाए तो स्थिति बहुत चिंताजनक है. हम इंसान ही इंसानों के बीच धर्म, जाति की दीवारें खड़ी करने में लगे रहेंगे तो उन्नति कब करेंगे, आगे कब बढ़ेंगे. कोई भी धर्म, जाति, राजनीतिक पार्टी देश के उज्जवल भविष्य से बढ़ कर तो नहीं है.

…तो उम्र बढ़ जाएगी

अमेरिकी भविष्यवेत्ता, आविष्कारक व लेखक रे कुर्जवील रोजाना 2 दर्जन गोलियों का सेवन करते हैं. उन्हें कोई बीमारी नहीं है, पर वे भविष्य का एक सपना देख रहे हैं, जिसे साकार करने के लिए वे दवा की इतनी गोलियां रोजाना खाते हैं. उन का मानना है कि अब साइंस की मदद से इंसान की उम्र बढ़ाई जा सकती है.

साइंस जिस तरह से उम्र बढ़ाने का सपना पाले हुए है, उसे देख कर यह संभावना अब ज्यादा दूर नहीं लगती कि इंसान की औसत आयु में 15 से 20 साल का इजाफा हो सकता है और वह सौ के पार जा कर भी सक्रिय जीवन जी सकता है. इस के लिए वैज्ञानिक कईर् तरह के प्रयोग और खोजबीन कर रहे हैं.

हाल ही में एक ऐसी ही खोज में उन्हें जेलीफिश परिवार के एक सदस्य हाइड्रा नामक जीव में ऐसे संकेत मिले हैं जिन्हें अमरत्व की अवधारणा के करीब माना जा रहा है. अमेरिका के पामोना  कालेज के एक शोधकर्ता डेनियल मार्टिनेज के अनुसार, ‘‘यह जीव बढ़ती उम्र को मात देने में सक्षम पाया गया है. लगभग 1 सेंटीमीटर लंबे हाइड्रा के शरीर की स्टेम सैल (कोशिकाओं) में यह खूबी पाई गई है कि वे खुद को नए स्टेम सैल से लगातार बदलते रहते हैं यानी शरीर से पुरानी कोशिकाएं खुद ही हटती जाती हैं और नई कोशिकाएं उन का स्थान लेती रहती हैं. इस से हाइड्रा का शरीर एकदम नया बना रहता है. इस खोज से इंसान की उम्र लंबी होने की संभावना बढ़ गई है.

कब होगा करिश्मा

दिसंबर, 2015 में दिल्ली के एक कार्यक्रम में शामिल हुए वैज्ञानिक डा. एब्रे डि ग्रे (सैल रिसर्च फाउंडेशन के चीफ साइंस औफिसर) ने भी इस के बारे में एक अनुमान लगाने की कोशिश की थी. उन्होंने इस की पूरी उम्मीद जगाई है कि अगले 15 वर्ष में यह संभव हो सकता है कि इंसान कम से कम सौ साल तो जीए ही. बढ़ती उम्र रोकने वाली दवाओं के अनुसंधान पर काम कर रहे डा. ग्रे के मतानुसार कोशिकाओं के क्षरण को रोक कर और शरीर में मौजूद मालेक्यूल्स की चाल पलट कर बढ़ती उम्र को कुछ हद तक थामा जा सकता है, जिस से सौ साल की जिंदगी को एक आम बात बनाना मुमकिन है.

क्या है बुढ़ापा

साइंस की नजर में बूढ़ा होना यानी ऐजिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिस का सामना पृथ्वी पर मौजूद हर प्राणी को करना पड़ता है. वनस्पतियों और जीवधारियों में तो बढ़ती उम्र साफ दिखती है, चेहरे और हाथपांव में पड़ती झुर्रियों, झुकते शरीर और कमजोर होती हड्डियों के अलावा आंख, कान से ले कर हर इंद्रीय का क्षरण बुढ़ापे का साफ संकेत होता है, पर विज्ञान की नजर में बुढ़ापा असल में कोशिकाओं के विभाजन की दर पर निर्भर है. मानव की कोशिकाएं अपनी मृत्यु से पहले औसत रूप से अधिकतम 50 बार विभाजित होती हैं. जितनी बार कोशिकाएं विभाजित होती हैं. इंसानी क्षमताओं में उतनी ही कमी आने लगती है.

बुढ़ापे के एक अन्य टैलोमर्स की लंबाई घटना भी माना जाता है. टैलोमर नाम का एंजाइम युवावस्था में प्रचुर मात्रा में बनता है जो डीएनए कोशिकाओं को टूटफूट से बचाता है. टैलोमर असल में प्रत्येक डीएनए के दोनों छोरों पर लगने वाली ढक्कन जैसी संरचनाएं हैं, जिन की लंबाई उम्र बढ़ने के साथ कम होती जाती है. शरीर के बूढ़े होने के कई कारणों में टैलोमर्स के छोटे होते जाने की भूमिका सब से महत्त्वपूर्ण समझी जाती है.

बढ़ने लगी उम्र

आज से 100 या 50 साल पहले इंसान की औसत आयु कोई खास नहीं थी. 50 साल की उम्र के बाद लोग बूढ़े लगने लगते थे, पर 50 वर्ष में ही पूरी दुनिया में औसत उम्र बढ़ चुकी है. कम से कम 1970 में पैदा हुए अमेरिकियों पर यह बात तो लागू होती ही है, जिन की औसत उम्र पहले 70.8 वर्ष मानी गई थी, जो अब से 15 साल पहले यानी वर्ष 2000 में 77 साल मानी जाने लगी थी. इसी तरह वयस्क अमेरिकियों की औसत उम्र 2002 में अगर 75 साल मानी जा रही थी, तो अब आगे उस में 11.5 साल की और बढ़ोतरी की उम्मीद है. इंसान की औसत उम्र में सहसा बढ़ोतरी होती लग रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक उम्दा खानपान और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं का इस में बड़ा योगदान है.

उम्र बढ़ाने की तकनीक

करीब 10 वर्ष पहले अमेरिकी साइंटिस्ट रे कुर्जवील ने घोषणा की थी कि आगे चल कर साइंस से बढ़ती उम्र को रोकना और फिर उम्र घटाने की प्रक्रिया शुरू करना मुमकिन हो जाएगा. कुर्जवील की यह उम्मीद नैनो टैक्नोलौजी पर टिकी है, जिस से शारीरिक संरचनाओं को रीप्रोग्राम किया जा सकेगा. हो सकता है कि कुर्जवील की भविष्यवाणी निकट भविष्य में एक प्रस्थापना तक ही सीमित रहे, पर अमेरिका के अल्वार्ट आइंस्टाइन कालेज औफ मैडिसिन की पहल पर वैज्ञानिकों की एक इंटरनैशनल टीम ने इस संदर्भ में जो खोजबीन की है वह इंसान की उम्र 100 साल तक बढ़ाने का ठोस आधार बन सकती है. इस टीम ने 97 साल की औसत उम्र वाले अमेरिकी अश्केनाजी यहूदी समुदाय में लंबी उम्र देने वाला जीन खोजा है जो इस समुदाय में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है. इस जीन की वजह से शरीर में टैलोमर्ज नाम का एंजाइम प्रचुर मात्रा में बनता है जो डीएनए कोशिकाओं को टूटफूट से बचाता है. साइंटिस्ट इस कोशिश में हैं कि टैलोमर्ज एंजाइम की मात्रा बढ़ा कर बुढ़ापे की रफ्तार कम की जाए और इस तरह इंसान की उम्र थोड़ी और बढ़ा दी जाए.

उपवास है लंबी उम्र का राज

उम्र बढ़ाने के सिलसिले में शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर नियंत्रित तरीके से उपवास रखा जाए तो इस से न सिर्फ बढ़ते वजन को घटाया जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य फायदे भी हो सकते हैं.  खासतौर से उम्र बढ़ाना भी संभव है. दुनिया में 1930 से ही एक ऐसे प्रयोग के बारे में लोगों को बताया जा रहा है, जिस के तहत कम कैलोरी पर पल रहे चूहे उन चूहों की तुलना में ज्यादा दिन तक जिंदा रहे जिन्हें पौष्टिकता से भरपूर भोजन दिया गया था. यह बात आज भी कई शोध साबित कर रहे हैं. जैसे, यूनिवर्सिटी कालेज लंदन स्थित इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ ऐजिंग के बुढ़ापे से निबटने के मकसद से आनुवंशिकी और लाइफस्टाइल फैक्टरों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक भी कुछ ऐसे ही नतीजों पर पहुंच रहे हैं.

इंस्टिट्यूट में रिसर्च टीम से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक डा. मैथ्यू पाइपर का कहना है कि आहार पर नियंत्रण जीवन को दीर्घायु बनाने का एक असरदार तरीका है. डा. पाइपर के मुताबिक यदि आप किसी चूहे के आहार में 40त्न की कमी कर दें तो वह 20 या 30त्न ज्यादा जीवित रहेगा. उन के जैसी राय रखने वाले कई अन्य वैज्ञानिकों का दावा है कि आहार पर नियंत्रण से मनुष्य का जीवनकाल भी बढ़ाया जा सक ता है.

हार्मोन आईजीएफ-1 का कमाल

उपवास के दौरान एक खास किस्म के हारमोन के असर को वैज्ञानिकों ने दर्ज किया है. असल में स्तनधारियों में जीवन अवधि बढ़ाए जाने का विश्व रिकौर्ड एक नई प्रजाति के चूहे का है, जिस की उम्र 40त्न तक बढ़ सकती है. इस प्रयोग के दौरान आनुवंशिक रूप से संबंधित चूहों को जब खाना देना बंद कर दिया गया, तो इस से हारमोन आईजीएफ-1 के  स्तर में कमी आने लगी. पर साथ ही यह भी पाया गया कि शरीर की बढ़ोतरी में कारगर यह हारमोन ऐसी स्थिति में शरीर में आ रही कमियों और टूटफूट को रिपेयर करने लग गया. इस शोध के संबंध में दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता प्रोफैसर वाल्टर लौंग ने कहा कि जैसे ही शरीर में आईजीएफ-1 हारमोन स्तर कम होता है तो इस का असर शरीर पर होता है और मरम्मत करने वाले कई जीन शरीर में सक्रिय हो जाते हैं. हालांकि दावा किया जाता है कि शरीर में आईजीएफ-1 नामक हारमोन की बहुत कम मात्रा से इंसान बौना रह जाता है, लेकिन ऐसे बौने इंसान आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती उम्र से जुड़े 2 प्रमुख रोगों कैंसर और मधुमेह से सुरक्षित भी पाए गए हैं.

उम्र की आणविक घड़ी को खिसकाना

डा. पाइपर उम्र बढ़ाने के एक और तरीके पर बात करते हुए कहते हैं कि यदि हमें ऐजिंग से जुड़े जीन मिल जाते हैं तो ऐजिंग की घड़ी को आगे खिसकाया जा सकता है. डा. पाइपर के मुताबिक फ्रूट फ्लाइज (एक प्रकार की मक्खी) मनुष्यों की तरह ही बूढ़ी होती है. प्रयोगशाला में जीनों के म्यूटेशन से भी फ्रूट फ्लाई समेत कुछ जीवजंतुओं का जीवन बढ़ाने में सफलता मिली है.

अमेरिकन एसोसिएशन फौर द ऐडवांसमैंट औफ साइंस की बैठक में यूनिवर्सिटी औफ द कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने जो खुलासे किए हैं, वे तो यह उम्मीद भी जगा रहे हैं कि अगर साइंस ने बुढ़ापे की रोकथाम वाली तकनीक में और तरक्की कर ली, तो प्रतीकात्मक रूप से मृत्यु को भी टालना संभव होगा.

दरअसल, ऐजिंग की घड़ी के पीछे खिसकाने संबंधी एक प्रयोग बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया में किया गया है. वहां वैज्ञानिकों की एक शोध टीम ने अपने एक प्रयोग में एक बूढ़े चूहे की रक्त स्टैम कोशिका में एक दीर्घायु जीन मिला कर उस की आणविक घड़ी को पीछे खिसका दिया. इस से बूढ़ी स्टैम कोशिकाओं में नई जान आ गई और वे फिर से नई रक्त कोशिकाएं उत्पन्न करने में समर्थ हो गईं.

दीर्घायु जीन का नाम सर्ट3 है. सर्ट3 समूह का एक प्रोटीन है, जो रक्त की स्टेम कोशिकाओं को तनाव से निबटने में मदद करता है. शोधकर्ताओं ने देखा कि जब वृद्ध हो रहे चूहे की रक्त स्टैम कोशिकाओं में सर्ट3 मिलाया तो नई रक्त स्टैम कोशिकाएं बनने लगीं. इस के असर से रक्त स्टैम कोशिकाओं के भीतर बुढ़ापे से जुड़ी गिरावट थम गई और उन में पुनर्जीवित होने की संभावनाएं पैदा हो गईं.

साइंस अब बुढ़ापे को अनियंत्रित और बेतरतीब प्रक्रिया नहीं मानती. नई परिभाषा के अनुसार ऐजिंग एक नियंत्रित प्रक्रिया है और इस में तबदीली की संभावनाएं भी हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि हमें ऐसी तबदीली के तौरतरीके बहुत स्पष्ट रूप से नहीं मालूम. जिस दिन ये रहस्य खुल जाएंगे, लंबी उम्र इंसानों के लिए कोई बड़ी बात नहीं रह जाएगी.                      

उम्र बढ़ाएं, करोड़ों पाएं

इंसान की उम्र के पीछे साइंटिस्ट यों ही नहीं पड़े हैं. इस के पीछे एक वजह यह भी है कि इस के लिए भारीभरकम पुरस्कार भी घोषित किए जा चुके हैं, जैसे सिलिकौन वैली के एक बड़े उद्यमी (हेज फंड मैनेजर) जून युन ने मनुष्य की उम्र 120 साल तक ले जाने वाली वैज्ञानिक खोज के लिए वर्ष 2015  की शुरुआत में ही 10 लाख डौलर के एक पुरस्कार पालो आल्टो लौन्गेविटी प्राइज की घोषणा कर रखी है. युन चाहते हैं कि वैज्ञानिक लाइफ कोड को हैक कर लें और इस तरह ऐजिंग को रोकते हुए इंसान की लंबी उम्र का रास्ता खोल दें, पर एंटीऐजिंग के प्रयासों को बढ़ावा देने वालों में युन अकेले नहीं हैं.

वर्ष 2013 में गूगल ने इसी मकसद से कैलिफोर्निया लाइफ कंपनी (कैलिको) की स्थापना की थी जो उम्र बढ़ाने के उपायों की खोजबीन कर रही है. इसी तरह वर्ष 2014 में अमेरिकी बायोलौजिस्ट और तकनीक के महारथी के्रग वेंटर ने ऐक्स प्राइज फाउंडेशन के संस्थापक पीटर डियामैंडिस के साथ मिल कर ह्यूमन लौन्गेविटी इंक नामक कंपनी की स्थापना कुछ इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की थी. यह कंपनी वर्ष 2020 तक 10 लाख मानव सीक्वेंस का डाटाबेस तैयार करने में लगी हुई है, जिस के आधार पर लंबी और स्वस्थ जिंदगी के राज खोले जा सकेंगे.

फिल्म रिव्यू : कमांडो 2

कुछ दिनों पहले ही हमने आपको बताया था कि देश की सरकार बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा किस तरह बदला हुआ नजर आ रहा है. मगर कोई फिल्मकार दर्शकों के मनोरंजन की बात भूलकर किस तरह सरकारी एजेंडे वाली फिल्म बनाता है, यह जानना हो तो विपुल अमृतलाल शाह निर्मित व देवेन भोजानी निर्देशित फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ देखनी चाहिए अन्यथा इस फिल्म में चंद बेहतरीन स्टंट दृश्यों के अलावा कुछ नही है.

यूं तो भारतीय सिनेमा की शुरूआत करने वाले फिल्मकारों ने देश को ब्रिटिशों से आजाद कराने के शस्त्र के रूप में फिल्म का सहारा लिया था. उस वक्त का फिल्मकार इस तरह का धार्मिक व ऐतिहासिक सिनेमा बना रहा था, जिससे देश की जनता का मनोरंजन हो तथा जनता के अंदर देश प्रेम व देश के प्रति कुछ करने की भावना प्रज्वलित हो. सिनेमा की इस कसौटी पर ‘‘कमांडो 2’’ कहीं से भी खरी नहीं उतरती.

कहने को तो फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ तीन साल पहले प्रदर्शित हो चुकी फिल्म ‘‘कमांडो’’ का सिक्वअल है. इस फिल्म में कमांडो मलेशिया जाकर देश का काला धन देश में लेकर आने की मुहीम पर है. जो कि वास्तव में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 2014 में लोकसभा चुनाव के वक्त दिए गए भाषण व किए गए वादे के अनुरूप यह कमांडो चालाकी से देश के उद्योगपतियों व कालाबाजारियों का कालाधन इधर से उधर करने वाली अपराधी विक्की चड्ढा के माध्यम से सारा काला धान तीन करोड़ किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर यानी कि डलवा देने के बाद विक्की चड्ढा को मौत की नींद सुला देता है. और पता चलता है कि यह सारा काम कमांडो व इंस्पेक्टर बख्तावर ने देश के प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री के इशारे पर किए हैं.

फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ की कहानी शुरू होती है कमांडो करणवीर सिंह डोगरा (विद्युत जामवाल) द्वारा कुछ अपराधियों की एक्शन दृश्यों से. वह अपराधी को अपनी बंदूक की गोली से मौत की नींद सुलाने के बाद अपने सहयोगी द्वारा खुद पर गोली चलवाकर इसे एक जायज इनकाउंटर साबित करता है. फिर पता चलता है कि उसे विक्की चड्ढा को पकड़ने की मुहीम का हिस्सा बनना है.

देश की रॉ एजेंसी के पास विक्की चड्ढा के तीन चेहरे हैं. इनमें से एक चेहरा विक्की चड्ढा (ठाकुर अनूप सिंह) व उसकी पत्नी मारिया (ईशा गुप्ता) के साथ मलेशिया में पकड़ा जाता है. इस खबर से देश के काले बाजारियों में हड़कंप मच जाता है. इनका काला धन विदेशों में विक्की चड्ढा ही सुरक्षित करने का काम करता है. इन कालेबाजारियों के संग देश की गृहमंत्री लीला (शेफाली छाया) का बेटा दिशांक (सुहेल नायर) भी जुड़ा हुआ है. वह अपनी मां से कहता है कि विक्की को भारत न लाया जाए. लीला अपने बेटे से कहती है कि उन्हें अब तक विपक्षियों ने हराया नहीं था, पर अब उसने उन्हें हरा दिया.

उसके बाद बेटे के इशारे पर लीला कालेबाजारियों से मिलती है और उन्हें आश्वस्त करती है कि उनका नुकसान नहीं होगा. वह बताती है कि वह अपनी पसंद की टीम मलेशिया भेजेंगी और वहां से विक्की चड्ढा व उसकी पत्नी को भारत लाकर तिहाड़ जेल में रखा जाएगा. एक दिन जेल के अंदर एक हादसे मे वह घोयल होगा, अस्पताल जाते समय रास्ते में वह दम तोड़ देगा. किसी को भी किसी पर शक नहीं होगा. यह सारी बातचीत करणवीर और रॉ के चीफ सुनकर हैरान रह जाते हैं. पर करणवीर कहता है कि वह सब कुछ संभाल लेगा. फिर प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गयी बैठक में लीला अपनी सारी योजना समझाती हैं. लीला ने मलेशिया जाने के लिए पुलिस इंस्पेक्टर बख्तावर (फ्रेडी दारूवाला), इनकाउंटर स्पेशलिस्ट भावना रेड्डी (अदा शर्मा), इंटरनेट हैकर जफर हुसेन व स्पेशल पुलिस इंस्पेक्टर पांडे को चुना है. एअरपोर्ट पर पता चलता है कि की करणवीर ने किस तरह एक चाल चली और पांडे की जगह खुद पहुंच गया. लीला,अपने चहेते इंस्पेक्टर बख्तावर से कहती है कि यदि करणवीर उसकी राह का रोड़ा बने तो उसे गोली से उड़ा देना, वह सब कुछ संभाल लेंगी.

मलेशिया पहुंचने पर भारतीय दूतावास के अय्यर साहब मिलते हैं. वह इन्हें उस जगह ले जाते हैं, जहां विक्की चड्ढा व उसकी पत्नी मारिया को रखा गया गया है. वहां पर मारिया, करणवीर के कहानी सुनाकर साबित करती है कि वह खुद देश भक्त बनना चाहती है. अब मारिया की योजना के अनुसार करण काम करता है. मारिया के इशारे पर जब करण उसे लेकर युनिवर्सिटी पहुंचता है, तो वहां तमाम खतरनाक लोग हैं. उस वक्त मारिया खुद ही विक्की चड्ढा को गोली मारकर कहती है कि असल में वह मारिया नहीं बल्कि विक्की चड्ढा है. पर अब तक करणवीर और बख्तावर के रास्ते अलग हो चुके हैं. बख्तावर,लीला से अय्यर को आदेश दिलाता है कि करणव भावना रेड्डी को बंदी बना ले. और वह विक्की चड्ढा के साथ दस प्रतिशत पर समझौता कर उसके साथ हो जाता है.

इधर करणवीर, अय्यर के फोन से लीला को फोन कर बीस प्रतिशत पर बात तय करता है. घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. पता चलता है कि विक्की चड्ढा एक सायबर हैकर की मदद से उन लोगों के बैंक एकाउंट हैक किए हैं, जो मर चुके हैं और अब वह काला बाजारियों का पैसा इन बैक खातो में ट्रांसफर कर सभी का धन सुरक्षित करने वाली है. विक्की चड्ढा, बख्तवार के सामने ही यह काम शुरू करती है. कुछ समय में वहां करणवीर पहुंचता है. उसे विक्की के गुंडो के अलावा बख्तावर का मुकाबला करना पड़ता है. सभी को परास्त करता है. पर ट्रांसफर को नहीं रोकता. सारा पैसा तीन करोड़ खातों में ट्रांसफर हो जाने के बाद करण बताता है कि उसने सारे बैंक एकाउंट नंबर बदलकर भारतीय किसानों के बैंक एकाउंट नंबर कर दिए थे. अब यह सारा धन तीन करोड़ भारतीय किसानों के बैंक खातो में पहुंच गया. उधर भारत का किसान अपने खाते में पैसा पाकर खुशी से झूम रहा है.

अब बख्तावर उठकर खड़ा हो जाता है. करण बताता है कि देश के प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के साथ मिलकर करण व बख्तावर ने एक योजना के तहत ही इस काम को अंजाम दिया है.

कहानी में सरकारी एजंडे को नजरंदाज कर दें, तो कुछ भी नयापन नहीं है. मगर कहानी में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं, जिन्हें सिनेमा की आजादी के नाम पर भुलाया जा सकता है. मसलन-काले धन पर कार्यवाही वित्तमंत्री करता है, गृहंमत्री नहीं.

एक्शन के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म पसंद आ सकती है. विद्युत के प्रशंसक यह फिल्म देख सकते हैं. मगर अतिरंजित पटकथा व अतिंरजित अभिनय के चलते फिल्म काफी कमजोर हो जाती है. फिल्म के संवाद भी स्तरीय नहीं है. जिससे फिल्म का स्तर गिरता है. विद्युत जामवाल ने कुछ खतरनाक एक्शन दृश्य किए हैं, मगर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट के अलावा कोई भाव नहीं आता. उनके चेहरे पर गुस्सा भी नहीं आता.

फिल्म में मनोरंजन व रोमांस का अभाव है. अदा शर्मा फिल्म की नायिका हैं, इसलिए वह जबरन चूमा चाटी करती रहती हैं. पर अभिनय के मामले में अदा शर्मा काफी निराश करती है. उन्होंने तेलगू लड़की के किरदार को महज कैरीकेचर बना दिया है. ईशा गुप्ता कुछ दृश्यों में ही जमती है. उनके किरदार में जो शातिर बदमाश का भाव आना चाहिए, वह नहीं उभरता. फ्रेडी दारूवाला जमे नहीं. वह तो रिएलिटी शो के पात्र बनकर रह गए. शेफाली शाह भी ठीक ठाक रहीं. मां बेटे के बीच जो भावनात्मक दृश्य होना चाहिए था, उसे निर्देशक पकड़ नहीं पाए.

दो घंटे 15 मिनट की अवधिवाली फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ का निर्माण विपुल अमृतलाल शाह व निर्देशन देवेन भोजानी ने किया है. फिल्म के लेखक रितेश शाह, कैमरामैन चिरंतन दास तथा कलाकार हैं- विद्युत जामवाल, अदा शर्मा, फ्रेडी दारूवाला, सुहेल नायर, अनूप सिंह, शेफाली शाह व अन्य.

मार्च में करें प्रकृति दर्शन

मार्च का महीना यानी कि घूमने फिरने का महीना. गर्मीयों और बसंत ऋतु के बीच का महीना, ‘मार्च’. इस महीने में न तो कड़ाके की ठंड पड़ती है और न ही आसमान से बरसते अंगारे झेलने पड़ते हैं. इस महीने में देश के ज्यादातर हिस्सों में मौसम खुशनुमा ही रहता है. जब मौसम अपनी सर्दी के कपड़ों को सहज कर रख रहा हो और गर्मी की तैयारी कर रहा हो, ऐसे में आपको भी मौसम का लुत्फ उठाना चाहिए.

देर किस बात की, यहां पर बताए गए किसी एक डेस्टीनेशन को मार्च में घूमने के लिए कोई भी जगह चुन लें और मौसम के बदलते रंगों को करीब से महसूस कीजिए.

मार्च की छुट्टियां बिताएं यहां-

1. ऊटी, तमिलनाडु

तमिलनाडु के राजनीतिक हालात भले ही ठीक न हो, पर आप वहां आराम से घूमने-फिरने जा सकती हैं. तमिलनाडु का ऊटी बाकि तमिलनाडु से काफी अलग है. यहां आकर आपको लगेगा की आप दक्षिण में नहीं बल्कि उत्तर की किसी जगह आ गए हों. अगर आपको दार्जिलिंग की ऐतिहासिक टॉय ट्रेन पर सफर करने का मौका नहीं मिला, तो आप यहां टॉय ट्रेन से यात्रा कर सकती हैं. अंग्रेजों के शासनकाल की झलक आज भी यहां देखी जा सकती है. चा बागान की हरियाली से लेकर बहते झरनों का मधूर संगीत, सब कुछ है ऊटी में. ऊटी जाकर टाइगर हिल, ऊटी झील और डोडाबेट्टा जाना न भूलें.

2. सिक्किम

भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की अलग ही खूबसूरती है. उत्तर पूर्वी भारत का राज्य सिक्किम मार्च में और भी ज्यादा खूबसूरत लगता है. शहर की भाग दौड़ से दूर कुछ दिन शांति में बिताने का आइडिया बुरा नहीं है. सिक्कीम में जहां एक तरफ चाय के बागान हैं वहीं दूसरी तरफ बर्फ से ढकी पहाड़ियां भी हैं. रवांगला चाय बागान में आपको और्किड और रोडोडेंड्रोन फूलों की कई प्रजातियां भी देखने को मिलेंगी. तिस्ता और रंगीत नदीयों में आप वाटर स्पोर्ट्स भी ऐंजॉय कर सकती हैं. सिक्कीम में गुरुडोंगमर झील, नाथु ला पास, युमथांग वैली जरूर जाएं.

3. माउंट आबु, राजस्थान

गर्म रेगिस्तान वाले राज्य राजस्थान में एक हिल स्टेशन भी है, माउंट आबु. सूखे रेगिस्तान में माउंट आबु कुदरत का करिश्मा ही है. दिलवारा की नक्काशी और नक्की झील की शांति आपके सारे तनावों को कुछ दिनों के लिए भूलने पर मजबूर कर देगी. मार्च में यहां घूमना सबसे अच्छा है क्योंकि बाकि पूरे साल यहां धर्म के ठेकेदारों की भीड़ रहती है. जैन धर्म के अनुयायीयों के लिए माउंट आबु आस्था का केन्द्र है.

4. कश्मीर

मार्च यानी की कश्मीर में बसंत का आगमन. कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा गया है, और मार्च में स्वर्ग में विभिन्न प्रकार के फूल खिलते हैं. फूलों से ढकी खूबसूरत वादियां आपके और कश्मीर के तनावों को भी ढक लेंगी. इस राज्य की खूबसूरती को देखकर यकीन करना मुश्किल है की यहां के लोग दो धारी तलवार पर चलते हुए जिन्दगी गुजार रहे हैं. पर आप अपने नयनों को खुश करने के लिए यहां मार्च में जरूर जाएं.

5. लेह

किसी भी इंसान को जिन्दगी में एक बार लेह तक रोड ट्रिप पर जरूर जाना चाहिए. लेह आकर समाज के बंधनों से बंधा हुआ इंसान भी परिंदों जैसा महसूस करने लगता है. 11,000 फीट की ऊंचाई पर बसे इस शहर के लोगों में आपको बहुत ज्यादा अपनापन मिलेगा. लेह जाकर मैगनेटिक हिल, जंसकार वैली और पैंगेंग सो जाना न भूलें, वरना लेह की ट्रिप अधूरी रह जाएगी.

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