नाइट क्रीम चुनने में ना करें ये गलतियां

रात, त्वचा को आराम और सुकून देने वाला समय होता है. इसलिए चेहरे को अच्छे से साफ करने के बाद रात में बढ़िया परिणाम देने वाली मॉइश्चराइजर लगाएं. आप हालांकि इस उलझन में पड़ सकती हैं कि कौन सा मॉइश्चराइजर आपकी त्वचा के लिए बढ़िया साबित होगा.

लेकिन आप इस से परेशान ना हों. आप किसी भी सनस्क्रीन इंडीग्रिएंट्स से रहित क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. आपको खास तौर से नाइट क्रीम खरीदने की जरूरत नहीं है, क्योंकि फर्क बस इतना है कि नाइट क्रीम हानिकारक यूवी किरणों से सुरक्षा प्रदान करने वाला एसपीएफ से युक्त नहीं होता है, इसलिए आप बेहिचक बढ़िया इंडीग्रेडिएंट्स से समृद्ध अपनी त्वचा के लिए उपयुक्त क्रीम चुनें.

– बोसवेलिया सेराटा (शल्लकी), कॉफी बीन के सत्व से युक्त, ब्राह्मी, कालमेघ, यष्टिमधु, पत्थरचूर, हार्स चेस्टनट जैसे औषधीय पौधों के सत्व और तेलों व विटामिन ई, सी और अन्य एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर नाइट क्रीम लगाएं. अगर आपकी उम्र ज्यादा है तो उच्च मात्रा वाले औषधीय गुणों से युक्त क्रीम लगाएं.

– क्रीम ऐसी होनी चाहिए जो त्वचा में गहराई से समा जाए. ऐसी क्रीम न लगाएं जो त्वचा पर तैलीय रूप में साफ नजर आए और सही से अवशोषित न हो सके.

– त्वचा के प्रकार जैसे तैलीय, रूखी या सामान्य के अनुसार ही क्रीम चुनें. त्वचा को सूट करने वाली बढ़िया मॉइश्चराइजर लगाएं.

 – सिंथेटकि खूशबू या रंगों वाली क्रीम न लगाएं क्योंकि इससे आपकी त्वचा में खुजली और जलन हो सकती है. अच्छी नाइट क्रीम में पैराबेस आदि केमिकल नहीं होना चाहिए. अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है तो अल्कोहल युक्त क्रीम न लगाएं, क्योंकि इससे एक्जीमा, रूखापन जैसी समस्या हो सकती है.

– नाइट क्रीम त्वचा को पोषण देने और त्वचा की कोशिकाओं को रिपेयर करने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं, इसलिए इसे सनस्क्रीन और एसपीएफ रहित होना चाहिए.

दलितों की आसान नहीं जिंदगी

वर्ष 2016 में सामाजिक व राजनीतिक उथलपुथल के चलते देश में जाति विभाजन की पीड़ा सहते लोगों का दर्द देखने को मिला. जनवरी में पीएचडी स्टूडैंट रोहित वेमुला द्वारा की गई आत्महत्या ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि हमारी शिक्षा प्रणाली दलित विद्यार्थियों के साथ कैसा व्यवहार कर रही है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को गिनें तो देश की जनसंख्या का 25 प्रतिशत दलित समाज है.

दलित समाज के लोगों से बात करने पर उन्होंने अपने मन की बातें कहीं-काशी, मुंबई के कचरा उठाने वाले सफाईकर्मी अजय का परिवार मराठवाड़ा क्षेत्र के सूखाग्रस्त जालना जिले में रहता है. उस के संयुक्त परिवार के पास

6 एकड़ जमीन है. सिंचाई की असुविधा के कारण उस के पिता सफाईकर्मी का काम करने के लिए मुंबई आ गए थे. जैसा कि इस काम को करने वाले अन्य लोगों का अंत होता है, वैसे ही अजय के पिता की भी क्षय रोग यानी टीबी से ही मृत्यु हुई. अजय की मां भी यही काम करने मुंबई आ गई थी. 10वीं कक्षा पास न कर पाने पर अजय ने भी बृहत मुंबई म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन यानी बीएमसी की क्लीनर फोर्स को जौइन कर लिया.

अजय का कहना है, ‘‘अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने भाजपा प्रशासन के जरिए रिजर्वेशन के खिलाफ अपना मौलिक एजेंडा लागू करवाना शुरू किया है. मैं सभी तथाकथित मराठों और ब्राह्मणों से पूछना चाहता हूं कि आप लोग यह कचरे वाली नौकरी क्यों नहीं करते, आप अपने शहर को वैसे साफ क्यों नहीं करते जैसे हम करते हैं, बहुजनों के लिए ही इस रोजगार में शतप्रतिशत आरक्षण क्यों है? मैं यह काम नहीं करना चाहता. मेरी 3 बेटियां स्कूल जा रही हैं. मैं चाहता हूं कि समाज हमारे काम का महत्त्व समझे, दूसरे लोग भी अपने हाथ गंदे करें. मराठों और ब्राह्मणों द्वारा यह काम किया जाना तो दूर की बात है, हम सब हाउसिंग सोसाइटी में भी जाते हैं तो वहां का गार्ड भी डस्टबिन उठाने में हमारी मदद नहीं करता. हमारे काम का हर तरफ अपमान किया जाता है.’’

वहीं, एक कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर के पद पर सेवारत 25 वर्षीया रीता पवार अपने समुदाय के अच्छे भविष्य के लिए कुछ करना चाहती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मैं कभी नहीं छिपाती कि मैं बुद्घ को मानती हूं और डा. बाबासाहेब अंबेडकर की अनुयायी हूं. मैं हमेशा धाराप्रवाह अंगरेजी बोलती हूं. फिर भी कौर्पोरेट वर्ल्ड में लेग मुझ से कहते हैं, ‘अरे, तुम तो बिलकुल भी उन में से नहीं लगती, तुम तो ब्राह्मण लगती हो.’ मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या आप को नहीं पता कि बाबासाहेब, जिन्होंने भारत का संविधान लिखा, हम में से ही एक थे. यह कहने का मतलब क्या है कि मैं दलित नहीं लगती, क्या सभी दलित गंदे और सांवले ही होने चाहिए?’’

आरक्षण पर रीता अपने विचार स्पष्ट रूप से बताती हैं, ‘‘शहरी लोगों को लगता है कि आरक्षण का गलत प्रयोग होता है पर यदि आप ध्यान दें तो कुछ ही दलितों को आर्थिक रूप से इस का फायदा होता है. पर ग्रामीण क्षेत्रों में, उपेक्षित बस्तियों में हमें लोगों को शिक्षित करने के लिए आरक्षण की आवश्यकता है. दलितों से क्रूरता की भावना के चलते पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती, यह सचाई है. मेरे समुदाय के बारे में मुझे देख कर ही फैसला न लें.’’

57 वर्षीय राधा 2012 में गुजरात में ग्राम पंचायत की सदस्या चुनी गईं. सरपंच को दलित स्त्री के साथ काम करना रास नहीं आ रहा था. उन्हें अकेले को ही नहीं, अन्य लोगों को भी पंचायत औफिस में राधा मंजूर नहीं थी. राधा ने इस से निबटने की ठानी. वे बताती हैं, ‘‘वे नहीं चाहते थे कि मैं औफिस आऊं पर मैं ने जाना नहीं छोड़ा. यह मेरा अधिकार था. वे मुझे रोकने वाले कौन थे. मुझे ऐसे कोई नहीं डरा सकता. मुझे लोगों ने चुना है. यही प्रेरणा मुझे रोज काम पर भेजने के लिए काफी थी. पर परेशानियां कम नहीं थीं. सरपंच लगातार मेरा अपमान करता रहा. मैं ने फोन पर उन की बातें रिकौर्ड कर लीं और शिकायत दर्ज करवा दी. मैं समृद्घ किसान परिवार से हूं. मैं रोज काम पर जाती हूं. अपनी कुरसी पर गर्व से बैठती हूं और सब फैसले अपनी मरजी से लेती हूं.’’

दलित लड़कियों को गांव में दूसरी कक्षा के बाद स्कूल नहीं भेजा जाता  क्योंकि यह डर रहता है कि ऊंची जाति के लड़के उन्हें परेशान करेंगे, उन का शोषण होगा. राधा कहती हैं, ‘‘सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. हाल ही में मेरे गांव के लड़कों को बहुत पीटा गया क्योंकि वे एक दुकान के बाहर शौर्ट्स पहन कर खड़े थे.’’ दलितों को तो ऊंची जाति वाले लोगों के हिसाब से ही व्यवहार करना चाहिए. खाना, पीना, विवाह, कपड़े पहनना सब ऊंची जाति वालों के बनाए नियमों से करने चाहिए. ऊंची जाति वाले शौर्ट्स पहनते हैं, इसलिए दलित नहीं पहन सकते.

पहचान की तलाश

महेश सर्वेय्या को अपने 13 सदस्यीय परिवार के साथ अपेक्षाकृत ज्यादा पावरफुल अहीर समुदाय द्वारा मजबूर करने पर उना जिले के अंकोलाजी गांव को छोड़ना पड़ा. 500 लोगों की भीड़ ने उस के भाई लालजी को जला दिया क्योंकि उन्हें शक था कि लालजी का 19 वर्षीया अहीर लड़की से अफेयर चल रहा है. गांव से उना 10 मिलोमीटर दूर है जो 2012 में घटी इस घटना के बाद सुर्खियों में तब फिर आया जब मृत गाय की खाल निकालने के लिए दलितों को पीटा गया और नग्न अवस्था में घुमाया गया. उस के भाई के कातिल को गिरफ्तार तो किया गया पर जल्दी ही जमानत पर छोड़ दिया गया. गांव में महेश के परिवार का जीवन दूभर हो गया. सो, उन्हें गांव छोड़ना ही पड़ा. परिवार ने अपनी जमीन वापस लेने के लिए सरकार से बहुत फरियाद की. 2014 में 139 दिनों की भूखहड़ताल भी की.

महेश अब किराए के मकान में रहता है. उस का कहना है, ‘‘राज्य सरकार ने हमें जमीन नहीं दी, सिर्फ झूठे वादे किए. हम ने अब उम्मीद ही छोड़ दी है.’’  परिवार के स्त्रीपुरुष जीवनयापन के लिए अब हर छोटा कहा जाने वाला काम भी करते हैं. 8वीं तक पढ़े महेश को लगता है कि गुजरात में दलित होने का मतलब जीतेजी मर जाना है, चाहे चपरासी हो या पुलिस अफसर, एमएलए हो या एमपी. गुजरात के दलितों के पास न तो पावर है न पहचान. हम पैरों तले कुचले हुए तब भी थे, आज भी हैं. हम अमीरों और प्रभावशाली जातियों के नौकर ही हैं. दलित के जीवन में सरकारी पद का भी कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि पूरे कैरियर में उसे लोअर रैंक पर ही रखा जाता है. राज्य में दलितों के विकास की उम्मीद नहीं है, यहां सिर्फ चपरासी ही बन सकते हैं.

बनारस के एक कालेज में 30 वर्षों से क्लर्क के पद पर कार्य कर रहे 57 वर्षीय राजेश का अपना घर है. उन के 3 बच्चे हैं. वे अपने छात्रजीवन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘ब्राह्मण लड़कों को आगे बिठाया जाता था, मुझे पीछे. मेरे पास एक ही शर्ट थी जो वहां से मिली थी जहां मां काम करती थी. पहले तो सिर्फ स्पोर्ट्स टीचर ही मुझे बिना बात के मारा करते थे, फिर उच्च जाति के लड़कों का मुझे मारना ही उन का खेल हो गया था. मैं स्कूल जाने से इतना डरता था कि मेरी मां ने मुझे स्कूल भेजना ही बंद कर दिया था. कुछ नहीं बदला है, न हिंदू धर्म, न ब्राह्मण, न कुछ और. रोज दलितों को मारा जाता है. मैं ने दलितों की अधिकार संस्था — दलित संघर्ष समिति जौइन कर ली. मैं अब भले ही बूढ़ा हो जाऊं पर अब दलितों के अधिकार के लिए लड़ता ही रहूंगा.’’

विक्रोली, मुंबई की 40 वर्षीया रमा 15 वर्षों से सरकारी कर्मचारी हैं. वे कहती हैं, ‘‘झाड़ू लगाना, डिलीवरी का काम, माली, सफाई, सब आज भी दलित ही करते हैं. हमारे यहां किसी भी त्योहार पर न पड़ोसी आएंगे, न खाएंगे.’’

कुल मिला कर देखा जाए तो स्थिति बहुत चिंताजनक है. हम इंसान ही इंसानों के बीच धर्म, जाति की दीवारें खड़ी करने में लगे रहेंगे तो उन्नति कब करेंगे, आगे कब बढ़ेंगे. कोई भी धर्म, जाति, राजनीतिक पार्टी देश के उज्जवल भविष्य से बढ़ कर तो नहीं है.

…तो उम्र बढ़ जाएगी

अमेरिकी भविष्यवेत्ता, आविष्कारक व लेखक रे कुर्जवील रोजाना 2 दर्जन गोलियों का सेवन करते हैं. उन्हें कोई बीमारी नहीं है, पर वे भविष्य का एक सपना देख रहे हैं, जिसे साकार करने के लिए वे दवा की इतनी गोलियां रोजाना खाते हैं. उन का मानना है कि अब साइंस की मदद से इंसान की उम्र बढ़ाई जा सकती है.

साइंस जिस तरह से उम्र बढ़ाने का सपना पाले हुए है, उसे देख कर यह संभावना अब ज्यादा दूर नहीं लगती कि इंसान की औसत आयु में 15 से 20 साल का इजाफा हो सकता है और वह सौ के पार जा कर भी सक्रिय जीवन जी सकता है. इस के लिए वैज्ञानिक कईर् तरह के प्रयोग और खोजबीन कर रहे हैं.

हाल ही में एक ऐसी ही खोज में उन्हें जेलीफिश परिवार के एक सदस्य हाइड्रा नामक जीव में ऐसे संकेत मिले हैं जिन्हें अमरत्व की अवधारणा के करीब माना जा रहा है. अमेरिका के पामोना  कालेज के एक शोधकर्ता डेनियल मार्टिनेज के अनुसार, ‘‘यह जीव बढ़ती उम्र को मात देने में सक्षम पाया गया है. लगभग 1 सेंटीमीटर लंबे हाइड्रा के शरीर की स्टेम सैल (कोशिकाओं) में यह खूबी पाई गई है कि वे खुद को नए स्टेम सैल से लगातार बदलते रहते हैं यानी शरीर से पुरानी कोशिकाएं खुद ही हटती जाती हैं और नई कोशिकाएं उन का स्थान लेती रहती हैं. इस से हाइड्रा का शरीर एकदम नया बना रहता है. इस खोज से इंसान की उम्र लंबी होने की संभावना बढ़ गई है.

कब होगा करिश्मा

दिसंबर, 2015 में दिल्ली के एक कार्यक्रम में शामिल हुए वैज्ञानिक डा. एब्रे डि ग्रे (सैल रिसर्च फाउंडेशन के चीफ साइंस औफिसर) ने भी इस के बारे में एक अनुमान लगाने की कोशिश की थी. उन्होंने इस की पूरी उम्मीद जगाई है कि अगले 15 वर्ष में यह संभव हो सकता है कि इंसान कम से कम सौ साल तो जीए ही. बढ़ती उम्र रोकने वाली दवाओं के अनुसंधान पर काम कर रहे डा. ग्रे के मतानुसार कोशिकाओं के क्षरण को रोक कर और शरीर में मौजूद मालेक्यूल्स की चाल पलट कर बढ़ती उम्र को कुछ हद तक थामा जा सकता है, जिस से सौ साल की जिंदगी को एक आम बात बनाना मुमकिन है.

क्या है बुढ़ापा

साइंस की नजर में बूढ़ा होना यानी ऐजिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिस का सामना पृथ्वी पर मौजूद हर प्राणी को करना पड़ता है. वनस्पतियों और जीवधारियों में तो बढ़ती उम्र साफ दिखती है, चेहरे और हाथपांव में पड़ती झुर्रियों, झुकते शरीर और कमजोर होती हड्डियों के अलावा आंख, कान से ले कर हर इंद्रीय का क्षरण बुढ़ापे का साफ संकेत होता है, पर विज्ञान की नजर में बुढ़ापा असल में कोशिकाओं के विभाजन की दर पर निर्भर है. मानव की कोशिकाएं अपनी मृत्यु से पहले औसत रूप से अधिकतम 50 बार विभाजित होती हैं. जितनी बार कोशिकाएं विभाजित होती हैं. इंसानी क्षमताओं में उतनी ही कमी आने लगती है.

बुढ़ापे के एक अन्य टैलोमर्स की लंबाई घटना भी माना जाता है. टैलोमर नाम का एंजाइम युवावस्था में प्रचुर मात्रा में बनता है जो डीएनए कोशिकाओं को टूटफूट से बचाता है. टैलोमर असल में प्रत्येक डीएनए के दोनों छोरों पर लगने वाली ढक्कन जैसी संरचनाएं हैं, जिन की लंबाई उम्र बढ़ने के साथ कम होती जाती है. शरीर के बूढ़े होने के कई कारणों में टैलोमर्स के छोटे होते जाने की भूमिका सब से महत्त्वपूर्ण समझी जाती है.

बढ़ने लगी उम्र

आज से 100 या 50 साल पहले इंसान की औसत आयु कोई खास नहीं थी. 50 साल की उम्र के बाद लोग बूढ़े लगने लगते थे, पर 50 वर्ष में ही पूरी दुनिया में औसत उम्र बढ़ चुकी है. कम से कम 1970 में पैदा हुए अमेरिकियों पर यह बात तो लागू होती ही है, जिन की औसत उम्र पहले 70.8 वर्ष मानी गई थी, जो अब से 15 साल पहले यानी वर्ष 2000 में 77 साल मानी जाने लगी थी. इसी तरह वयस्क अमेरिकियों की औसत उम्र 2002 में अगर 75 साल मानी जा रही थी, तो अब आगे उस में 11.5 साल की और बढ़ोतरी की उम्मीद है. इंसान की औसत उम्र में सहसा बढ़ोतरी होती लग रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक उम्दा खानपान और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं का इस में बड़ा योगदान है.

उम्र बढ़ाने की तकनीक

करीब 10 वर्ष पहले अमेरिकी साइंटिस्ट रे कुर्जवील ने घोषणा की थी कि आगे चल कर साइंस से बढ़ती उम्र को रोकना और फिर उम्र घटाने की प्रक्रिया शुरू करना मुमकिन हो जाएगा. कुर्जवील की यह उम्मीद नैनो टैक्नोलौजी पर टिकी है, जिस से शारीरिक संरचनाओं को रीप्रोग्राम किया जा सकेगा. हो सकता है कि कुर्जवील की भविष्यवाणी निकट भविष्य में एक प्रस्थापना तक ही सीमित रहे, पर अमेरिका के अल्वार्ट आइंस्टाइन कालेज औफ मैडिसिन की पहल पर वैज्ञानिकों की एक इंटरनैशनल टीम ने इस संदर्भ में जो खोजबीन की है वह इंसान की उम्र 100 साल तक बढ़ाने का ठोस आधार बन सकती है. इस टीम ने 97 साल की औसत उम्र वाले अमेरिकी अश्केनाजी यहूदी समुदाय में लंबी उम्र देने वाला जीन खोजा है जो इस समुदाय में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है. इस जीन की वजह से शरीर में टैलोमर्ज नाम का एंजाइम प्रचुर मात्रा में बनता है जो डीएनए कोशिकाओं को टूटफूट से बचाता है. साइंटिस्ट इस कोशिश में हैं कि टैलोमर्ज एंजाइम की मात्रा बढ़ा कर बुढ़ापे की रफ्तार कम की जाए और इस तरह इंसान की उम्र थोड़ी और बढ़ा दी जाए.

उपवास है लंबी उम्र का राज

उम्र बढ़ाने के सिलसिले में शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर नियंत्रित तरीके से उपवास रखा जाए तो इस से न सिर्फ बढ़ते वजन को घटाया जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य फायदे भी हो सकते हैं.  खासतौर से उम्र बढ़ाना भी संभव है. दुनिया में 1930 से ही एक ऐसे प्रयोग के बारे में लोगों को बताया जा रहा है, जिस के तहत कम कैलोरी पर पल रहे चूहे उन चूहों की तुलना में ज्यादा दिन तक जिंदा रहे जिन्हें पौष्टिकता से भरपूर भोजन दिया गया था. यह बात आज भी कई शोध साबित कर रहे हैं. जैसे, यूनिवर्सिटी कालेज लंदन स्थित इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ ऐजिंग के बुढ़ापे से निबटने के मकसद से आनुवंशिकी और लाइफस्टाइल फैक्टरों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक भी कुछ ऐसे ही नतीजों पर पहुंच रहे हैं.

इंस्टिट्यूट में रिसर्च टीम से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक डा. मैथ्यू पाइपर का कहना है कि आहार पर नियंत्रण जीवन को दीर्घायु बनाने का एक असरदार तरीका है. डा. पाइपर के मुताबिक यदि आप किसी चूहे के आहार में 40त्न की कमी कर दें तो वह 20 या 30त्न ज्यादा जीवित रहेगा. उन के जैसी राय रखने वाले कई अन्य वैज्ञानिकों का दावा है कि आहार पर नियंत्रण से मनुष्य का जीवनकाल भी बढ़ाया जा सक ता है.

हार्मोन आईजीएफ-1 का कमाल

उपवास के दौरान एक खास किस्म के हारमोन के असर को वैज्ञानिकों ने दर्ज किया है. असल में स्तनधारियों में जीवन अवधि बढ़ाए जाने का विश्व रिकौर्ड एक नई प्रजाति के चूहे का है, जिस की उम्र 40त्न तक बढ़ सकती है. इस प्रयोग के दौरान आनुवंशिक रूप से संबंधित चूहों को जब खाना देना बंद कर दिया गया, तो इस से हारमोन आईजीएफ-1 के  स्तर में कमी आने लगी. पर साथ ही यह भी पाया गया कि शरीर की बढ़ोतरी में कारगर यह हारमोन ऐसी स्थिति में शरीर में आ रही कमियों और टूटफूट को रिपेयर करने लग गया. इस शोध के संबंध में दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता प्रोफैसर वाल्टर लौंग ने कहा कि जैसे ही शरीर में आईजीएफ-1 हारमोन स्तर कम होता है तो इस का असर शरीर पर होता है और मरम्मत करने वाले कई जीन शरीर में सक्रिय हो जाते हैं. हालांकि दावा किया जाता है कि शरीर में आईजीएफ-1 नामक हारमोन की बहुत कम मात्रा से इंसान बौना रह जाता है, लेकिन ऐसे बौने इंसान आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती उम्र से जुड़े 2 प्रमुख रोगों कैंसर और मधुमेह से सुरक्षित भी पाए गए हैं.

उम्र की आणविक घड़ी को खिसकाना

डा. पाइपर उम्र बढ़ाने के एक और तरीके पर बात करते हुए कहते हैं कि यदि हमें ऐजिंग से जुड़े जीन मिल जाते हैं तो ऐजिंग की घड़ी को आगे खिसकाया जा सकता है. डा. पाइपर के मुताबिक फ्रूट फ्लाइज (एक प्रकार की मक्खी) मनुष्यों की तरह ही बूढ़ी होती है. प्रयोगशाला में जीनों के म्यूटेशन से भी फ्रूट फ्लाई समेत कुछ जीवजंतुओं का जीवन बढ़ाने में सफलता मिली है.

अमेरिकन एसोसिएशन फौर द ऐडवांसमैंट औफ साइंस की बैठक में यूनिवर्सिटी औफ द कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने जो खुलासे किए हैं, वे तो यह उम्मीद भी जगा रहे हैं कि अगर साइंस ने बुढ़ापे की रोकथाम वाली तकनीक में और तरक्की कर ली, तो प्रतीकात्मक रूप से मृत्यु को भी टालना संभव होगा.

दरअसल, ऐजिंग की घड़ी के पीछे खिसकाने संबंधी एक प्रयोग बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया में किया गया है. वहां वैज्ञानिकों की एक शोध टीम ने अपने एक प्रयोग में एक बूढ़े चूहे की रक्त स्टैम कोशिका में एक दीर्घायु जीन मिला कर उस की आणविक घड़ी को पीछे खिसका दिया. इस से बूढ़ी स्टैम कोशिकाओं में नई जान आ गई और वे फिर से नई रक्त कोशिकाएं उत्पन्न करने में समर्थ हो गईं.

दीर्घायु जीन का नाम सर्ट3 है. सर्ट3 समूह का एक प्रोटीन है, जो रक्त की स्टेम कोशिकाओं को तनाव से निबटने में मदद करता है. शोधकर्ताओं ने देखा कि जब वृद्ध हो रहे चूहे की रक्त स्टैम कोशिकाओं में सर्ट3 मिलाया तो नई रक्त स्टैम कोशिकाएं बनने लगीं. इस के असर से रक्त स्टैम कोशिकाओं के भीतर बुढ़ापे से जुड़ी गिरावट थम गई और उन में पुनर्जीवित होने की संभावनाएं पैदा हो गईं.

साइंस अब बुढ़ापे को अनियंत्रित और बेतरतीब प्रक्रिया नहीं मानती. नई परिभाषा के अनुसार ऐजिंग एक नियंत्रित प्रक्रिया है और इस में तबदीली की संभावनाएं भी हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि हमें ऐसी तबदीली के तौरतरीके बहुत स्पष्ट रूप से नहीं मालूम. जिस दिन ये रहस्य खुल जाएंगे, लंबी उम्र इंसानों के लिए कोई बड़ी बात नहीं रह जाएगी.                      

उम्र बढ़ाएं, करोड़ों पाएं

इंसान की उम्र के पीछे साइंटिस्ट यों ही नहीं पड़े हैं. इस के पीछे एक वजह यह भी है कि इस के लिए भारीभरकम पुरस्कार भी घोषित किए जा चुके हैं, जैसे सिलिकौन वैली के एक बड़े उद्यमी (हेज फंड मैनेजर) जून युन ने मनुष्य की उम्र 120 साल तक ले जाने वाली वैज्ञानिक खोज के लिए वर्ष 2015  की शुरुआत में ही 10 लाख डौलर के एक पुरस्कार पालो आल्टो लौन्गेविटी प्राइज की घोषणा कर रखी है. युन चाहते हैं कि वैज्ञानिक लाइफ कोड को हैक कर लें और इस तरह ऐजिंग को रोकते हुए इंसान की लंबी उम्र का रास्ता खोल दें, पर एंटीऐजिंग के प्रयासों को बढ़ावा देने वालों में युन अकेले नहीं हैं.

वर्ष 2013 में गूगल ने इसी मकसद से कैलिफोर्निया लाइफ कंपनी (कैलिको) की स्थापना की थी जो उम्र बढ़ाने के उपायों की खोजबीन कर रही है. इसी तरह वर्ष 2014 में अमेरिकी बायोलौजिस्ट और तकनीक के महारथी के्रग वेंटर ने ऐक्स प्राइज फाउंडेशन के संस्थापक पीटर डियामैंडिस के साथ मिल कर ह्यूमन लौन्गेविटी इंक नामक कंपनी की स्थापना कुछ इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की थी. यह कंपनी वर्ष 2020 तक 10 लाख मानव सीक्वेंस का डाटाबेस तैयार करने में लगी हुई है, जिस के आधार पर लंबी और स्वस्थ जिंदगी के राज खोले जा सकेंगे.

फिल्म रिव्यू : कमांडो 2

कुछ दिनों पहले ही हमने आपको बताया था कि देश की सरकार बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा किस तरह बदला हुआ नजर आ रहा है. मगर कोई फिल्मकार दर्शकों के मनोरंजन की बात भूलकर किस तरह सरकारी एजेंडे वाली फिल्म बनाता है, यह जानना हो तो विपुल अमृतलाल शाह निर्मित व देवेन भोजानी निर्देशित फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ देखनी चाहिए अन्यथा इस फिल्म में चंद बेहतरीन स्टंट दृश्यों के अलावा कुछ नही है.

यूं तो भारतीय सिनेमा की शुरूआत करने वाले फिल्मकारों ने देश को ब्रिटिशों से आजाद कराने के शस्त्र के रूप में फिल्म का सहारा लिया था. उस वक्त का फिल्मकार इस तरह का धार्मिक व ऐतिहासिक सिनेमा बना रहा था, जिससे देश की जनता का मनोरंजन हो तथा जनता के अंदर देश प्रेम व देश के प्रति कुछ करने की भावना प्रज्वलित हो. सिनेमा की इस कसौटी पर ‘‘कमांडो 2’’ कहीं से भी खरी नहीं उतरती.

कहने को तो फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ तीन साल पहले प्रदर्शित हो चुकी फिल्म ‘‘कमांडो’’ का सिक्वअल है. इस फिल्म में कमांडो मलेशिया जाकर देश का काला धन देश में लेकर आने की मुहीम पर है. जो कि वास्तव में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 2014 में लोकसभा चुनाव के वक्त दिए गए भाषण व किए गए वादे के अनुरूप यह कमांडो चालाकी से देश के उद्योगपतियों व कालाबाजारियों का कालाधन इधर से उधर करने वाली अपराधी विक्की चड्ढा के माध्यम से सारा काला धान तीन करोड़ किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर यानी कि डलवा देने के बाद विक्की चड्ढा को मौत की नींद सुला देता है. और पता चलता है कि यह सारा काम कमांडो व इंस्पेक्टर बख्तावर ने देश के प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री के इशारे पर किए हैं.

फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ की कहानी शुरू होती है कमांडो करणवीर सिंह डोगरा (विद्युत जामवाल) द्वारा कुछ अपराधियों की एक्शन दृश्यों से. वह अपराधी को अपनी बंदूक की गोली से मौत की नींद सुलाने के बाद अपने सहयोगी द्वारा खुद पर गोली चलवाकर इसे एक जायज इनकाउंटर साबित करता है. फिर पता चलता है कि उसे विक्की चड्ढा को पकड़ने की मुहीम का हिस्सा बनना है.

देश की रॉ एजेंसी के पास विक्की चड्ढा के तीन चेहरे हैं. इनमें से एक चेहरा विक्की चड्ढा (ठाकुर अनूप सिंह) व उसकी पत्नी मारिया (ईशा गुप्ता) के साथ मलेशिया में पकड़ा जाता है. इस खबर से देश के काले बाजारियों में हड़कंप मच जाता है. इनका काला धन विदेशों में विक्की चड्ढा ही सुरक्षित करने का काम करता है. इन कालेबाजारियों के संग देश की गृहमंत्री लीला (शेफाली छाया) का बेटा दिशांक (सुहेल नायर) भी जुड़ा हुआ है. वह अपनी मां से कहता है कि विक्की को भारत न लाया जाए. लीला अपने बेटे से कहती है कि उन्हें अब तक विपक्षियों ने हराया नहीं था, पर अब उसने उन्हें हरा दिया.

उसके बाद बेटे के इशारे पर लीला कालेबाजारियों से मिलती है और उन्हें आश्वस्त करती है कि उनका नुकसान नहीं होगा. वह बताती है कि वह अपनी पसंद की टीम मलेशिया भेजेंगी और वहां से विक्की चड्ढा व उसकी पत्नी को भारत लाकर तिहाड़ जेल में रखा जाएगा. एक दिन जेल के अंदर एक हादसे मे वह घोयल होगा, अस्पताल जाते समय रास्ते में वह दम तोड़ देगा. किसी को भी किसी पर शक नहीं होगा. यह सारी बातचीत करणवीर और रॉ के चीफ सुनकर हैरान रह जाते हैं. पर करणवीर कहता है कि वह सब कुछ संभाल लेगा. फिर प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गयी बैठक में लीला अपनी सारी योजना समझाती हैं. लीला ने मलेशिया जाने के लिए पुलिस इंस्पेक्टर बख्तावर (फ्रेडी दारूवाला), इनकाउंटर स्पेशलिस्ट भावना रेड्डी (अदा शर्मा), इंटरनेट हैकर जफर हुसेन व स्पेशल पुलिस इंस्पेक्टर पांडे को चुना है. एअरपोर्ट पर पता चलता है कि की करणवीर ने किस तरह एक चाल चली और पांडे की जगह खुद पहुंच गया. लीला,अपने चहेते इंस्पेक्टर बख्तावर से कहती है कि यदि करणवीर उसकी राह का रोड़ा बने तो उसे गोली से उड़ा देना, वह सब कुछ संभाल लेंगी.

मलेशिया पहुंचने पर भारतीय दूतावास के अय्यर साहब मिलते हैं. वह इन्हें उस जगह ले जाते हैं, जहां विक्की चड्ढा व उसकी पत्नी मारिया को रखा गया गया है. वहां पर मारिया, करणवीर के कहानी सुनाकर साबित करती है कि वह खुद देश भक्त बनना चाहती है. अब मारिया की योजना के अनुसार करण काम करता है. मारिया के इशारे पर जब करण उसे लेकर युनिवर्सिटी पहुंचता है, तो वहां तमाम खतरनाक लोग हैं. उस वक्त मारिया खुद ही विक्की चड्ढा को गोली मारकर कहती है कि असल में वह मारिया नहीं बल्कि विक्की चड्ढा है. पर अब तक करणवीर और बख्तावर के रास्ते अलग हो चुके हैं. बख्तावर,लीला से अय्यर को आदेश दिलाता है कि करणव भावना रेड्डी को बंदी बना ले. और वह विक्की चड्ढा के साथ दस प्रतिशत पर समझौता कर उसके साथ हो जाता है.

इधर करणवीर, अय्यर के फोन से लीला को फोन कर बीस प्रतिशत पर बात तय करता है. घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. पता चलता है कि विक्की चड्ढा एक सायबर हैकर की मदद से उन लोगों के बैंक एकाउंट हैक किए हैं, जो मर चुके हैं और अब वह काला बाजारियों का पैसा इन बैक खातो में ट्रांसफर कर सभी का धन सुरक्षित करने वाली है. विक्की चड्ढा, बख्तवार के सामने ही यह काम शुरू करती है. कुछ समय में वहां करणवीर पहुंचता है. उसे विक्की के गुंडो के अलावा बख्तावर का मुकाबला करना पड़ता है. सभी को परास्त करता है. पर ट्रांसफर को नहीं रोकता. सारा पैसा तीन करोड़ खातों में ट्रांसफर हो जाने के बाद करण बताता है कि उसने सारे बैंक एकाउंट नंबर बदलकर भारतीय किसानों के बैंक एकाउंट नंबर कर दिए थे. अब यह सारा धन तीन करोड़ भारतीय किसानों के बैंक खातो में पहुंच गया. उधर भारत का किसान अपने खाते में पैसा पाकर खुशी से झूम रहा है.

अब बख्तावर उठकर खड़ा हो जाता है. करण बताता है कि देश के प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के साथ मिलकर करण व बख्तावर ने एक योजना के तहत ही इस काम को अंजाम दिया है.

कहानी में सरकारी एजंडे को नजरंदाज कर दें, तो कुछ भी नयापन नहीं है. मगर कहानी में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं, जिन्हें सिनेमा की आजादी के नाम पर भुलाया जा सकता है. मसलन-काले धन पर कार्यवाही वित्तमंत्री करता है, गृहंमत्री नहीं.

एक्शन के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म पसंद आ सकती है. विद्युत के प्रशंसक यह फिल्म देख सकते हैं. मगर अतिरंजित पटकथा व अतिंरजित अभिनय के चलते फिल्म काफी कमजोर हो जाती है. फिल्म के संवाद भी स्तरीय नहीं है. जिससे फिल्म का स्तर गिरता है. विद्युत जामवाल ने कुछ खतरनाक एक्शन दृश्य किए हैं, मगर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट के अलावा कोई भाव नहीं आता. उनके चेहरे पर गुस्सा भी नहीं आता.

फिल्म में मनोरंजन व रोमांस का अभाव है. अदा शर्मा फिल्म की नायिका हैं, इसलिए वह जबरन चूमा चाटी करती रहती हैं. पर अभिनय के मामले में अदा शर्मा काफी निराश करती है. उन्होंने तेलगू लड़की के किरदार को महज कैरीकेचर बना दिया है. ईशा गुप्ता कुछ दृश्यों में ही जमती है. उनके किरदार में जो शातिर बदमाश का भाव आना चाहिए, वह नहीं उभरता. फ्रेडी दारूवाला जमे नहीं. वह तो रिएलिटी शो के पात्र बनकर रह गए. शेफाली शाह भी ठीक ठाक रहीं. मां बेटे के बीच जो भावनात्मक दृश्य होना चाहिए था, उसे निर्देशक पकड़ नहीं पाए.

दो घंटे 15 मिनट की अवधिवाली फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ का निर्माण विपुल अमृतलाल शाह व निर्देशन देवेन भोजानी ने किया है. फिल्म के लेखक रितेश शाह, कैमरामैन चिरंतन दास तथा कलाकार हैं- विद्युत जामवाल, अदा शर्मा, फ्रेडी दारूवाला, सुहेल नायर, अनूप सिंह, शेफाली शाह व अन्य.

मार्च में करें प्रकृति दर्शन

मार्च का महीना यानी कि घूमने फिरने का महीना. गर्मीयों और बसंत ऋतु के बीच का महीना, ‘मार्च’. इस महीने में न तो कड़ाके की ठंड पड़ती है और न ही आसमान से बरसते अंगारे झेलने पड़ते हैं. इस महीने में देश के ज्यादातर हिस्सों में मौसम खुशनुमा ही रहता है. जब मौसम अपनी सर्दी के कपड़ों को सहज कर रख रहा हो और गर्मी की तैयारी कर रहा हो, ऐसे में आपको भी मौसम का लुत्फ उठाना चाहिए.

देर किस बात की, यहां पर बताए गए किसी एक डेस्टीनेशन को मार्च में घूमने के लिए कोई भी जगह चुन लें और मौसम के बदलते रंगों को करीब से महसूस कीजिए.

मार्च की छुट्टियां बिताएं यहां-

1. ऊटी, तमिलनाडु

तमिलनाडु के राजनीतिक हालात भले ही ठीक न हो, पर आप वहां आराम से घूमने-फिरने जा सकती हैं. तमिलनाडु का ऊटी बाकि तमिलनाडु से काफी अलग है. यहां आकर आपको लगेगा की आप दक्षिण में नहीं बल्कि उत्तर की किसी जगह आ गए हों. अगर आपको दार्जिलिंग की ऐतिहासिक टॉय ट्रेन पर सफर करने का मौका नहीं मिला, तो आप यहां टॉय ट्रेन से यात्रा कर सकती हैं. अंग्रेजों के शासनकाल की झलक आज भी यहां देखी जा सकती है. चा बागान की हरियाली से लेकर बहते झरनों का मधूर संगीत, सब कुछ है ऊटी में. ऊटी जाकर टाइगर हिल, ऊटी झील और डोडाबेट्टा जाना न भूलें.

2. सिक्किम

भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की अलग ही खूबसूरती है. उत्तर पूर्वी भारत का राज्य सिक्किम मार्च में और भी ज्यादा खूबसूरत लगता है. शहर की भाग दौड़ से दूर कुछ दिन शांति में बिताने का आइडिया बुरा नहीं है. सिक्कीम में जहां एक तरफ चाय के बागान हैं वहीं दूसरी तरफ बर्फ से ढकी पहाड़ियां भी हैं. रवांगला चाय बागान में आपको और्किड और रोडोडेंड्रोन फूलों की कई प्रजातियां भी देखने को मिलेंगी. तिस्ता और रंगीत नदीयों में आप वाटर स्पोर्ट्स भी ऐंजॉय कर सकती हैं. सिक्कीम में गुरुडोंगमर झील, नाथु ला पास, युमथांग वैली जरूर जाएं.

3. माउंट आबु, राजस्थान

गर्म रेगिस्तान वाले राज्य राजस्थान में एक हिल स्टेशन भी है, माउंट आबु. सूखे रेगिस्तान में माउंट आबु कुदरत का करिश्मा ही है. दिलवारा की नक्काशी और नक्की झील की शांति आपके सारे तनावों को कुछ दिनों के लिए भूलने पर मजबूर कर देगी. मार्च में यहां घूमना सबसे अच्छा है क्योंकि बाकि पूरे साल यहां धर्म के ठेकेदारों की भीड़ रहती है. जैन धर्म के अनुयायीयों के लिए माउंट आबु आस्था का केन्द्र है.

4. कश्मीर

मार्च यानी की कश्मीर में बसंत का आगमन. कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा गया है, और मार्च में स्वर्ग में विभिन्न प्रकार के फूल खिलते हैं. फूलों से ढकी खूबसूरत वादियां आपके और कश्मीर के तनावों को भी ढक लेंगी. इस राज्य की खूबसूरती को देखकर यकीन करना मुश्किल है की यहां के लोग दो धारी तलवार पर चलते हुए जिन्दगी गुजार रहे हैं. पर आप अपने नयनों को खुश करने के लिए यहां मार्च में जरूर जाएं.

5. लेह

किसी भी इंसान को जिन्दगी में एक बार लेह तक रोड ट्रिप पर जरूर जाना चाहिए. लेह आकर समाज के बंधनों से बंधा हुआ इंसान भी परिंदों जैसा महसूस करने लगता है. 11,000 फीट की ऊंचाई पर बसे इस शहर के लोगों में आपको बहुत ज्यादा अपनापन मिलेगा. लेह जाकर मैगनेटिक हिल, जंसकार वैली और पैंगेंग सो जाना न भूलें, वरना लेह की ट्रिप अधूरी रह जाएगी.

क्या सचमुच भूत बन जाएंगी अनीता हसनंदानी

बड़े पर्दे के बाद टेलीविजन पर स्टार प्लस के सीरियल ‘ये है मोहब्बतें’ में शगुन का किरदार निभाकर मशहूर हुईं अभिनेत्री अनीता हसनंदानी मशहूर अब टीवी के एक नए सीरियल में भूत बनकर अपने दर्शकों को डराने वाली हैं.

यूं तो ‘ये है मोहब्बतें’ के मुताबिक शगुन यानि कि अनीता हसनंदानी सीरियल में मां बनने वाली हैं. इसके अलावा भी आने वाले दिनों में सीरियल में कई नाटकीय मोड़ देखने को मिलेंगे ही, लेकिन अभी अनीता को लेकर यह एक बड़ी खबर है.

अनीता के प्रशंसकों के लिए यह एक खुशखबरी है कि अनीता जल्द ही ‘सब टीवी’ के नये शो ‘त्रिदेवियां’ में नजर आऐंगी और इसमें वे एक भूत का किरदार निभा रहीं हैं. सूत्रों की मैने तो अनीता ने तो इस सीरियल के लिए शूटिंग भी शुरू कर दी है.

शो ‘ये है मोहब्बतें’ की कई कड़ियों में अनीता हसनंदानी ने भूत बनकर अपने सभी दर्शकों को खूब डराया था. हालांकि बाद में सबको पता ही चल गया था कि वो शगुन और इशिता का एक प्लान था जो कि सीरियल में रमण को निधि की चाल से बचाने के लिए बनाया गया था. ये नाटकीय घटनाऐं तो आपको याद ही होंगे. पर खबरों के अनुसार इस बार अनीता सच में भूत बनकर सभी को डराने वाली हैं.

हम आपको बताना चाहते हैं कि टेलीविजन अभिनेता अली असगर भी इस नये सीरियल ‘त्रिदेवियां’ में नजर आएंगे.

विद्या बालन की बेगम जान में क्या है खास

फिल्म ‘ कहानी 2’ में अपनी एक्टिंग के जलवे दिखाने के बाद विद्या बालन फिर से स्क्रीन पर अपने जलवे बिखेरने के लिए तैयार हैं. जल्द ही वो फिल्म ‘बेगम जान’ में नजर आने वाली हैं. इस फिल्म में विद्या का अंदाज ऐसा होगा जो दर्शकों ने अभी तक नहीं देखा होगा.

खबर है कि फिल्म ‘बेगम जान’ श्रीजीत मुखर्जी की बंगाली फिल्म ‘राजकाहिनी’ का हिंदी रीमेक है, जिसे नेशनल अवॉर्ड मिला था.

फिल्म की कहानी 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद के बंगाल की है. फिल्म की पृष्ठभूमि में कोठे पर रहने वाली 11 महिलाएं हैं. विभाजन के बाद जब नई सीमा रेखा बनती है तो उस कोठे का आधा हिस्सा भारत में पड़ता है और आधा पाकिस्तान में. फिल्म में विद्या बालन ने इस कोठे की मालकिन का किरदार निभाया है. जबकि श्रीजीत मुखर्जी की फिल्म में ये किरदार रितुपर्णा सेनगुप्ता ने निभाया था और इसके लिए उन्हें दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब मिला.

हाल ही में इस फिल्म से विद्या बालन का फर्स्ट लुक भी सोशल मीडिया पर सामने आया है. जिसमें विद्या बालन एक चारपाई पर पड़ी हुक्का पीती नजर आईं. विद्या का ये अंदाज उनकी अब तक की फिल्मों में नहीं देखा गया है. ‘द डर्टी पिक्चर’ की तरह ही ये फिल्म भी विद्या के करियर को नई ऊंचाइयां देगी. फिल्म में गौहर खान भी हैं जो वेश्या के किरदार में नजर आएंगी. किरदार में ढलने के लिए गौहर खान ने ना तो मेक-अप किया और ना चेहरे की देखभाल के लिए कोई चीज ही इस्तेमाल की.

..तो चमक उठेंगे पुराने बर्तन

बर्तन चमकाना बड़ा मुश्क‍िल काम है. उस पर अगर बर्तन जल जाए तो और मुसीबत हो जाती है. अगर आपके बर्तन भी जल गए हैं और अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही पुराने लगने लगे हैं तो इन तरकीबों से आप उन्हें नया बना सकती हैं.

यहां कुछ ऐसे टिप्स दिए जा रहे हैं, जिससे आपके बर्तन और आपका किचन चमकने लगेगा.

1. कांच के बर्तन और कप की सफाई के लिए रीठे के पानी का इस्तेमाल करें.

2. पीतल के बर्तन साफ करने के लिए नींबू को आधा काट लें व इस पर नमक छिड़ककर बर्तनों पर रगड़ने से वे चमकने लगते हैं.

3. बर्तनों पर जमे मैल को साफ करने के लिए पानी में थोड़ा-सा सिरका व नींबू का रस डालकर उबाल लें.

4. जले हुए बर्तनों को साफ करने के लिए उसमें एक प्याज डालकर अच्छी तरह उबाल लें. फिर बर्तन साबुन से साफ करें.

5. एल्यूमीनियम के बर्तनों को चमकाने के लिए बर्तन धोने वाले पाउडर में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बर्तनों को साफ करें.

6. प्याज का रस और सिरका बराबर मात्रा में लेकर स्टील के बर्तनों पर रगड़ने से बर्तन चमकने लगते हैं.

7. प्रेशर कुकर में लगे दाग-धब्बों को साफ करने के लिए कुकर में पानी, 1 चम्मच वॉशिंग पाउडर व आधा नींबू डालकर उबाल लें. बाद में बर्तन साफ करने वाले स्क्रबर से हल्का रगड़कर साफ कर लें.

8. चिकनाई वाले बर्तनों को साफ करने के लिए सिरका कपड़े में लेकर रगड़ें, फिर साबुन से अच्छी तरह धोएं.

“एक की तारीफ का मतलब अन्य से लगाव खत्म होना नहीं”

फिल्मी माहौल में पले बढ़े वरुण धवन ने बॉलीवुड में बहुत कम समय में अपनी एक खास पहचान बना ली है. वह लगातार सफलता की ओर अग्रसर हैं. तो वहीं बॉलीवुड में नताशा दलाल के संग उनके रिश्तों की चर्चाएं हैं. वरुण धवन अक्सर नताशा के साथ नजर आ जाते हैं, पर अब तक वरुण ने खुलकर इस रिश्ते की बात कबूल नहीं की है. पर इन दिनों वह दस मार्च को होली के अवसर पर प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ की चर्चा करते रहते हैं.

आपके करियर के टर्निंग प्वाइंट क्या रहा?

मेरे करियर की पहली फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ थी. इस फिल्म से जुड़ना मेरे करियर, मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ रहा. इस फिल्म के बाद मेरी ईमेज एक चॉकलेटी ब्वॉय की बन गयी. लोगों को समझ में आया कि मैं सिर्फ क्लासी फिल्में करता हूं और खुश रहता हूं. लेकिन एक साल के बाद मेरे करियर में दूसरा मोड़ आया, जब मैंने अपने पिता डेविड धवन के निर्देशन में फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’ की. इस फिल्म ने मेरी इमेज बदली.

इसके बाद मेरी फिल्म आयी ‘बदलापुर’. बदलापुर मेरे करियर की बहुत बड़ी टर्निंग प्वाइंट रही. इसमें मेरा किरदार बहुत अलग था. इसके बाद ‘ए बी सी डी’ रही, इस फिल्म ने सौ करोड़ का व्यापार भी किया. उसके बाद मैंने ‘दिलवाले’ व ‘ढिशुम’की. अब मेरी नई फिल्म आ रही है ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’. उम्मीद करता हूं कि यह फिल्म भी मेरे करियर में एक नया मोड़ लेकर आएगी.

इन फिल्मों के चलते आपकी निजी जिंदगी में क्या बदलाव आए?

‘मैं तेरा हीरो’ के समय मुझे साबित करना था कि सोलो हीरो के रूप में मैं फिल्म को सफलता दिला सकता हूं. तो मुझ पर बहुत बड़़ा दबाव था. इस फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाने से मेरा अपना आत्म विश्वास बढ़ गया. मुझे निजी जिंदगी में अहसास हुआ कि मैं भी फिल्म में हीरो बन सकता हूं. उस वक्त मैं निजी जिंदगी में बहुत खुश था. जब मैंने ‘बदलापुर’ की, तो माहौल थोड़ा सा धीमा व डार्क हो गया था. यह फिल्म भी बहुत डार्क थी. इसका असर मेरी जिंदगी में बहुत पड़ा. मेरी निजी जिंदगी में कुछ झगड़े भी हुए. अब जब मैं ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ की शूटिंग कर रहा था, तब बीच में मैं थोड़ा अग्रेसिव हो गया था. क्योंकि इस किरदार में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो मेरी निजी जिंदगी पर भी पूरी तरह से छा गयी थीं.

क्या आपके पिता ने मैं तेरा हीरोआपकी ईमेज को बदलने के लिए बनायी थी?

देखिए, पहली फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में मेरे साथ दो दूसरे नए हीरो भी थे. जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि इस फिल्म से मेरी इमेज एक क्लासी किस्म करने वाले चॉकलेटी हीरो की हो गयी थी. अब ईमेज बदलना था. तो फिल्मों में अलग पहचान बनाने के लिए रिस्क तो लेनी होती है. फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’ के समय मैंने रिस्क लिया. मेरे पिता ने रिस्क लिया और खुद को साबित करने का मेरे उपर दबाव भी था. यदि मैं यह कहूं कि मेरे पिता पर मुझसे ज्यादा दबाव था, तो गलत नहीं होगा.

आप बद्रीनाथ की दुल्हनिया को हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया का सिक्वअल मानते हैं या नहीं?

मैं इसे सिक्वअल नहीं बल्कि फ्रेंचाइजी वाली फिल्म मानता हूं. सिक्वअल में कहानी आगे बढ़ती है. पर यहां कहानी बहुत अलग है. किरदार अलग है. किरदार व कहानी का माहौल अलग है. हां! दोनों फिल्मों के कलाकार समान हैं. हम इसे ‘लव फ्रेंचाइजी’ मानते हैं. दोनों ही फिल्मों में प्यार ही मुख्य मुद्दा है. इसके अलावा पिछली फिल्म की ही तरह यह फिल्म भी दुल्हन व शादी के बारे में है.

बद्रीनाथ की दुल्हनिया को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

बद्री झांसी के एक साहूकार का लड़का है. जिसे कोटा में रह रही वैदेही पसंद आ जाती है. कोटा और झांसी अलग जगह है. दोनों शहरों की अपनी अलग अलग खासियत है. जबकि इनके बीच चार घंटे की दूरी है. पर दोनों शहर के लोगों की सोच रहन सहन बहुत अलग है. इस फिल्म में इस बात को बेहतर तरीके से पेश किया गया है, कि दो चार घंटे की दूरी में हमारे यहां कैसे भाषा और रहन सहन बदल जाती है.

छोटे शहर के लोगों की सोच, मानसिकता, बातचीत का लहजा बहुत अलग होता है. इसको अपने किरदार में ढालने के लिए आपने क्या किया?

फिल्म के निर्देशक शशांक खेतान इस मसले पर काफी शोध कर चुके हैं. वह कानपुर, झांसी, लखनउ, कोटा सहित कई छोटे छोटे शहरों में जा चुके हैं. वहां रहकर हुए काफी कुछ समझ चुके थे. वह इन शहरों से मेरे लिए करीबन तीस वीडियो लेकर आए थे. मैंने उन वीडियो को देखा. दो माह का वर्कशॉप किया. मैंने बात करने के लहजे पर काम किया. भाषा के एक्सेंट पर काम किया. उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान इन सभी जगहों पर बात करने का लहजा अलग है. तो मुझे झांसी का एक्सेंट भी लाना था. पर इस बात का भी ख्याल रखना था कि फिल्म पूरे देश वालों के लिए बन सके. इस पर काम करने पर मुझे समय लगा. देखिए, झांसी में भी किसान और साहूकार दोनों अलग अंदाज में बात करते हैं.

बद्री क्या है?

झांसी का रहने वाला नवयुवक है बद्रीनाथ बसंल. बद्री का किरदार बहुत प्यारा है. शराबी है. मगर गाली गलौज नहीं करता. वह वैदेही के प्यार को पाने के लिए कई तरह की हरकतें करता रहता है. बद्री उन लोगों में से है, जो कुछ भी करने से पहले सोचते नहीं हैं, बस कर जाते हैं.

झांसी के लोग गर्म दिमाग के होते हैं?

बिलकुल सही कहा! बद्री भी गर्म दिमाग का है. किसी ने गलत बात कर ली, तो सीधे मारामारी पर उतर जाता है. पर वह हंसमुख भी है. दिलवाले भी हैं. झांसी के लोग बहुत संजीदा किस्म के होते हैं. भावुक हैं.

चलिए मंबई और झांसी के बीच का अंतर बता दीजिए?

बहुत अलग माहोल है. हमने झांसी के किले में जाकर शूटिंग की. वहां से आसमान बहुत साफ नजर आता है. मुझे झांसी और कोटा दोनों जगह का वातावरण और खाना अच्छा लगा. वहां के लोग सोचते बहुत अलग ढंग से हैं, बातचीत करते समय गुणाभाग नहीं लगाते. लाभ हानि नहीं सोचते हैं.

कोटा और झांसी में क्या फर्क हैं?

कोटा में कोचिंग क्लासेस बहुत हैं. आईआई टी का हब बना हुआ है. मतलब कोटा एक पढ़ाकू शहर है. इसीलिए वैदेही में समझदारी बहुत है. जबकि झांसी में मारामारी का मासला है. मुझे तो दोनों जगह शूटिंग करने में मजा आया.

जब आप अपने पिता या भाई के निर्देशन में काम करते हैं अथवा जब दूसरे निर्देशकों के साथ काम करते हैं. तो कहां सहज रहते हैं?

देखिए, धर्मा प्रोडक्शन तो मेरे लिए परिवार की तरह है. शशांक भी पारिवारिक सदस्य की तरह हो गए हैं. इन लोगों के साथ मैं भावनात्मक रूप से जुड़ जाता हूं. इनकी जब मैं फिल्में करता हूं, तो मैं आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भावनात्मक दृष्टिकोण से चाहता हूं कि फिल्म सफल हो.

कहा जा रहा है कि आप सलमान खान का स्थान लेने वाले हैं?

इन चर्चाओं को मैं गंभीरता से नहीं लेता. मैं तो चाहूंगा कि इस तरह की चीजें ना लिखी जाएं. पर मैं अपना व्यक्तित्व नहीं बदल सकता. मेरे व्यक्तित्व के आधार पर किसी को कुछ लगता है, तो बात अलग है. यह सच है कि मुझे सलमान खान या गोविंदा जिस तरह की फिल्में करते रहे हैं, वह सारी फिल्में बहुत पसद हैं.

गोविंदा ने आपके पापा के खिलाफ जो बयान बाजी की है, उसे आप कैसे देखते हैं?

मुझे पता है कि गोविंदा और मेरे पापा ने एक साथ काम करते हुए इतिहास रचे हैं. दोनों इज्जतदार और प्रतिभाशाली लोग हैं. अब गोविंदा ने जो कुछ कहा, अब उस वक्त उनके अपने मन में जो था, वही उन्होंने कहा. पर मेरे पिता के मन में उनके प्रति कोई नाराजगी नहीं है. हमारे परिवार में नकारात्मक बातों पर सोचा नही जाता. उन्होंने जो कुछ कहा, वह कहकर अच्छा लग रहा है. तो कुछ नहीं कह सकता. मैं उनके खिलाफ कुछ भी कहकर बयानबाजी नहीं कर सकता. क्योंकि मेरी परवरिश ऐसी हुई है, उन्होंने तो करण जौहर के खिलाफ भी बाते की हैं. पर वह भूल गए कि हमारी फिल्म की रिलीज की तारीख आठ माह पहले ही घोषित कर दी गयी थी. मैं आज भी उनकी इज्जत करता हूं. इसलिए उनके खिलाफ कोई बात नहीं करूंगा.

दूसरी बात एक कलाकार के तौर पर किसी भी कलाकार को इस बात पर निर्देशक से नाराज नहीं होना चाहिए कि वह उसे लेकर फिल्म नहीं बना रहा है. हर कलाकार किसी भी निर्देशक के साथ काम कर सकता है. एक निर्देशक किसी भी कलाकार के साथ काम कर सकता है. तीसरी बात रचनात्मकता में आप किसी को बांध कर नही रख सकते. फिर भी उनके खिलाफ बात नहीं करना चाहता.

घर पर आप लोगों के बीच फिल्म को लेकर क्या बातें होती हैं?

हम लोग सिनेमा, फिल्म की पटकथा, कंटेंट, सिनेमा में आ रहे बदलाव आदि पर बहुत लंबी लंबी बहस करते हैं. यह सब जब चर्चाएं होती हैं, तो मेरे जहन में कहीं न कहीं बस ही जाती हैं. पर सेट पर मैं पूरी तरह से निर्देशक का कलाकार बनकर काम करता हूं.

आप आलिया भट्ट की बड़ी तारीफ करते हैं?

वह मेरी फिल्म की हीरोइन हैं. हमने एक साथ तीन फिल्में की हैं. हमारे शुभचिंतक भी हैं.

इससे नताशा दलाल को तकलीफ नहीं होती हैं?

बिलकुल नहीं होती है. होनी भी नही चाहिए. कलाकार के तौर पर मैं किसी की भी तारीफ कर सकता हूं. आलिया भट्ट की तारीफ करने के अर्थ यह नही हैं कि नताशा के प्रति मेरा लगाव कम हैं. मैं तो पुरूष कलाकारों कि भी तारीफ करता हूं .

आप ट्वीटर पर बहुत व्यस्त रहते हैं. ट्वीटर का बॉक्स ऑफिस पर कितना असर पड़ता है?

ट्वीटर और बॉक्स ऑफिस का कोई संबंध नही है. मुझे पता है कि तमाम कलाकार ऐसे हैं, जो ट्वीटर पर नही हैं. पर उनकी फिल्में सफलता के रिकॉर्ड बनाती है. आमिर खान ट्वीटर पर नही हैं, आमिर खान किसी टीवी चैनल पर नहीं गए. पर ‘दंगल’ ने कमायी के रिकॉर्ड बना दिए. मैं ट्वीटर पर फिल्म को प्रमोट करने नही जाता. बल्कि अपने मन की बातें लिखने जाता हूं. मैं हमेशा सकारात्मक बातें ही ट्वीटर पर डालता हूं.

सोशल मीडिया पर कलाकारों को गालियां बहुत मिलती हैं?

मुझे तो गालियां नही मिली. शायद मैं भी सिर्फ पॉजीटिव बातें करता हूं.

बायोपिक फिल्में नहीं करना चाहते?

बायोपिक फिल्में करनी है, पर अभी थोड़ा समय है, बाद में करूंगा.

इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

पुरानी फिल्म ‘जुड़वा’ की सिक्वअल फिल्म ‘जुड़वा 2’ की शूटिंग शुरू कर चुका हूं. पहले दिन हमने गणपति के भजन के गाने के फिल्मांकन से शुरूआत की है. इसका निर्देशन मेरे पिता डेविड धवन कर रहे हैं. इसमें मेरे साथ जैकलीन फर्नांडिश और तापसी पन्नू हैं. जैकलीन के  साथ यह मेरी दूसरी और तापसी पन्नू के साथ पहली फिल्म है.

‘भाभी जी…’ वाली स्मिता का बोल्ड लुक

युवा एक्ट्रेस स्मिता दुबे जितना अच्छी आर्टिस्ट हैं उतना ही अच्छा उनका बोल्ड और ब्यूटीफुल लुक है. उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर की रहने वाली स्मिता की शिक्षा मुम्बई में हुई. बीकॉम की पढाई के ही समय उनको टीवी सीरियल चन्द्रनं दिनीमें काम करने को मिला. इसके बाद उन्हें कॉमेडी सीरियल भाभी जी घर पर हैमें रोल मिल गया.

ग्लैमर नर्स के साथ स्मिता ने होली स्पेशल के लिये तैयार एपीसोड में अपनी अदाकारी दिखाई. इसके साथ स्मिता ने भोजपुरी फिल्म मोहब्बत की सौगातमें भी काम किया है. कुछ हिन्दी फिल्मों में भी उनके काम करने की बातचीत चल रही है.

डांस, एक्टिंग और रीडिंग का शौक रखने वाली स्मिता कहती हैं, मुझे ज्यादातर ग्लैमर वाले रोल ही ऑफर हो रहे हैं. इसकी वजह यह हो सकती है कि मैं ग्लैमरस नजर आती हूं. भाभी जीमें टीका और मलखान मुझे छेड़ते हैं. इसमें मुझे कॉमेडी बहुत अच्छी लगती है. मैं ऐसे ही रोल करना पंसद करती हूं. इसके अलावा मुझे डांस वाले रोल पंसद हैं. वैसे मुझे पता है कि गंभीर किरदार भी मैं बहुत अच्छे से कर सकती हूं. यही कारण है कि भोजपुरी फिल्म और हिन्दी सीरियलों के साथ ही साथ मुझे हिन्दी फिल्मोँ में भी काम करने का मौका मिल रहा है.

स्मिता कहती हैं कि ग्लैमर से आपकी पहचान बन सकती है. पर लंबे समय तक काम करने और दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ने के लिये गंभीर किरदार भी करना जरूरी होता है. भाभी जी कॉमेडी सीरियल जरूर है पर उसमें कॉमेडी के बीच गंभीर मुद्दे भी उठते हैं. यही कारण है कि शो सभी तरह के दर्शक देखते हैं और पसंद करते हैं. इस शो में काम करके मुझे नई पहचान मिली है.

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