स्मार्टफोन हम सब की जिंदगी का अटूट हिस्सा बन चुका है. सुबह उठने से ले कर रात सोने तक हम इस पर निर्भर रहते हैं, फिर चाहे बात मौर्निंग अलार्म की हो, औन लाइन पेमैंट की, शौपिंग की, बोरियत के समय संगीत सुनने या फिल्म देखने की, कोई जरूरी मेल करना हो या फिर अपने दोस्तों व रिश्तों से जुड़ने की. हम सभी का पूरा संसार इसी छोटे से उपकरण में समाया हुआ है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस छोटे से उपकरण से हमारा यह जुड़ाव हमारे व्यवहार में कई समस्याएं भी पैदा कर रहा है? अगर आप स्मार्टफोन से जरूरी जानकारी नहीं निकाल पा रहे, तो आप परेशान हो जाते हैं. अगर आप तक मैसेज या कौल नहीं पहुंच रही, तो आप परेशान होने लगते हैं. अगर आप के पास प्रीपेड कनैक्शन है, तो स्मार्टफोन में बैलेंस कम होते ही आप को घबराहट होने लगती है. कई लोगों में इंटरनैंट की स्पीड भी तनाव को बढ़ाती है.
फेसबुक या अन्य सोशल नैटवर्किंग साइट पर खुद का स्टेटस अपलोड न कर पाने या दूसरों केस्टेटस न पढ़ पाने पर भी बेचैनी होती है. इस के अतिरिक्त कुछ लोगों को हमेशा अपने स्मार्टफोन के खोने का डर बना रहता है यानी अगर एक मिनट भी फोन उन की नजरों से दूर हो जाए, तो वे बेचैन होने लगते हैं. अपने स्मार्टफोन के खो जाने के डर से उन की दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं.
नोमोफोबिया नामक बीमारी
लोवा स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए हालिया शोध के अनुसार स्मार्टफोन लोगों में नोमोफोबिया नामक नई बीमारी पैदा कर रहा है. इस रोग में व्यक्ति को हर वक्त अपने मोबाइल फोन के गुम हो जाने का भय रहता है और कईर् बार तो यह फोबिया लोगों पर इस कदर हावी हो जाता है कि वे टौयलेट भी जाते हैं तो भी अपना मोबाइल फोन साथ ले जाते हैं और दिन में औसतन 30 से अधिक बार अपना फोन चैक करते हैं. असल में उन्हें डर होता है कि फोन घर पर या कहीं भूल जाने पर उन का कोई जरूरी मैसेज या कौल छूट जाएगी और उन का यह डर उन के व्यवहार और व्यक्तित्व में बदलाव का कारण भी बनता है. इस डर से ग्रस्त लोगों को लगता है कि बिना फोन के वे दुनिया से पूरी तरह कट जाएंगे.
फोन के बिना जिंदगी अधूरी
लंदन में हुए अन्य अध्ययन में कहा गया है कि नोमोफोबिया आज के दौर की एक गंभीर समस्या है और इस की गंभीरता को जानने के लिए लंदन में करीब 1 हजार लोगों पर एक अध्ययन हुआ, जिस में 66% लोगों ने कहा कि उन्हें अपने मोबाइल फोन के खोने का डर सताता रहता है. अध्ययन में यह भी पाया गया कि 18 से 24 वर्ष के बीच के युवाओं में मोबाइल के प्रति सब से ज्यादा लगाव होता है. इस उम्र के करीब 77% लोग अपने मोबाइल के बिना 1 मिनट भी नहीं रह सकते. ऐसे लोगों को लगता है कि मोबाइल फोन के बिना उन की जिंदगी अधूरी है. वे इस के बिना नहीं रह पाएंगे. अध्ययन में यह भी पाया गया कि नोमोफोबिया का शिकार व्यक्ति औसतन 1 दिन में करीब 37 बार अपना मोबाइल फोन चैक करता है.
क्या है इलाज
माना कि स्मार्टफोन की तकनीक आप को स्मार्ट और अपडेट रखती है, मगर साथ ही यह ध्यान रखने की भी जरूरत है कि यह तकनीक आप के लिए सुविधा बनने की बजाय परेशानी का कारण न बने. मोबाइल फोन की इस लत से निकलने के लिए जरूरी है कि आप अपने जीवन के कुछ लक्ष्य बनाएं. खुद को अपनी मनपसंद हौबी में व्यस्त रखने की कोशिश करें. औफिस में काम करते समय फोन को ऐरोप्लेन मोड पर रखें. ऐसा करने से आप फालतू की कौल्स और मैसेजेस से बच जाएंगे. अपने सभी सोशल मीडिया एप्स की नोटिफिकेशन बंद रखें. साथ
ही फोन में फालतू के एप्स न रखें. इस से आप फोन पर निर्भर नहीं रहेंगे. वर्चुअल वर्ल्ड में रिश्तों को निभाने की बजाय वास्तविक जीवन में दोेस्तों के साथ समय बिताएं. जितना हो सके फोन को खुद दूर रखने की कोशिश करें. धीरेधीरे अनुशासन से ही आप इस लत से निकल पाएंगे.